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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 756 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूदीवस्स णं दीवस्स जगतो अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं पन्नत्ता।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप की जगति आठ योजन की ऊंची है और मध्य में आठ योजन की चौड़ी है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 790 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अट्ठ सया अनुत्तरोववाइयाणं गतिकल्लाणाणं ठितिकल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिया अनुत्तरोववाइयसंपया हुत्था।

Translated Sutra: भगवान महावीर के उत्कृष्ट ८०० ऐसे शिष्य थे जिनको कल्याणकारी अनुत्तरोपपातिक देवगति यावत्‌ भविष्य में (भद्र) मोक्ष गति निश्चित है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 794 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अट्ठजोयणसते उड्ढमबाहाए सूरविमाने चारं चरति।

Translated Sutra: रत्नप्रभा पृथ्वी के समभूमि भाग से ८०० योजन ऊंचे ऊपर की ओर सूर्य का विमान गति करता है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 795 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ नक्खत्ता चंदेणं सद्धिं पमद्दं जोगं जोएंति, तं जहा–कत्तिया, रोहिणी, पुनव्वसू, महा, चित्ता, विसाहा, अनुराधा, जेट्ठा।

Translated Sutra: आठ नक्षत्र चन्द्र के साथ स्पर्श करके गति करते हैं, यथा – कृतिका, रोहिणी, पुनर्वसु, मघा, चित्रा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 805 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नवविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया। पुढविकाइया नवगतिया नवआगतिया पन्नत्ता, तं जहा– पुढविकाइए पुढविकाइएसु उवव-ज्जमाणे पुढविकाइएहिंतो वा, आउकाइएहिंतो वा, तेउकाइएहिंतो वा, वाउकाइएहिंतो वा, वणस्सइकाइएहिंतो वा, बेइंदिएहिंतो वा, तेइंदिएहिंतो वा, चउरिंदिएहिंतो वा, पंचिंदिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकायत्तं विप्पजहमाने पुढविकाइयत्ताए वा, आउकाइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए वा, वाउकाइयत्ताए वा, वनस्सइकाइयत्ताए वा, बेइंदियत्ताए वा, तेइंदियत्ताए

Translated Sutra: संसारी जीव नौ प्रकार के हैं, यथा – पृथ्वीकाय यावत्‌ वनस्पतिकाय, एवं बेइन्द्रिय यावत्‌ पंचेन्द्रिय। पृथ्वीकायिक जीवों की नौ गति और नौ आगति। यथा – पृथ्वीकायिक पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो तो पृथ्वीकायिकों से यावत्‌ पंचेन्द्रियों से आकर उत्पन्न होते हैं। पृथ्वीकायिक जीव पृथ्वीकायिकपन को छोड़कर पृथ्वीकायिक
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 809 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमीभागाओ नव जोअणसताइं उड्ढं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति।

Translated Sutra: इस रत्नप्रभा पृथ्वी के सम भूभाग से नवसौ योजन की ऊंचाई पर ऊपर का तारामण्डल गति करता है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 846 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नवविहे आउपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा– गतिपरिणामे, गतिबंधनपरिणामे, ठितीपरिणामे, ठितिबंधनपरिणामे, उड्ढंगारवपरिणामे, अहेगारव-परिणामे, तिरियंगारवपरिणामे, दीहंगारवपरिणामे, रहस्संगारवपरिणामे।

Translated Sutra: आयु परिणाम नौ प्रकार का है, यथा – गति परिणाम, गतिबंधणपरिणाम, स्थितिपरिणाम, स्थितिबंधण – परिणाम, उर्ध्वगोरवपरिणाम, अधोगोरवपरिणाम, तिर्यग्‌गोरव परिणाम, दीर्घ गोरवपरिणाम और ह्रस्व गोरव परिणाम
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 873 Gatha Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कंसे संखे जीवे गगणे वाते य सारए सलिले । पुक्खरपत्ते कुम्मे विहगे खग्गे य भारंडे ॥

Translated Sutra: कांस्यपात्र के समान अलिप्त, शंख के समान निर्मल, जीव के समान अप्रतिहत गति, गगन के समान आलम्बन रहित, वायु के समान अप्रतिबद्ध विहारी, शरद ऋतु के जल के समान स्वच्छ हृदय वाले, पद्मपत्र के समान अलिप्त, कूर्म के समान गुप्तेन्द्रिय, पक्षी के समान एकाकी, गेंडा के सींग के समान एकाकी, भारंड पक्षी के समान अप्रमत्त, हाथी के
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 875 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भविस्सइ, से य पडिबंधे चउव्विहे पन्नत्ता तं जहा- अंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जं णं दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सइ, तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंत्तीए मुत्तीए गुत्तीए सच्च संजम तव गुण सुचरिय सोय चिय फल-परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिति

Translated Sutra: उन विमलवाहन भगावन का किसी में प्रतिबंध (ममत्व) नहीं होगा। प्रतिबंध चार प्रकार के हैं, यथा – अण्डज, पोतज, अवग्रहिक, प्रग्रहिक। ये अण्डज – हंस आदि मेरे हैं, ये पोतज – हाथी आदि मेरे हैं, ये अवग्रहिक – मकान, पाट, फलक आदि मेरे हैं। ये प्रग्रहिक – पात्र आदि मेरे हैं। ऐसा ममत्वभाव नहीं होगा। वे विमलवाहन भगवान जिस – जिस
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 877 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नव नक्खत्ता ‘चंदस्स पच्छंभागा’ पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: नौ नक्षत्र चन्द्र के पीछे से गति करते हैं, यथा –
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१०

Hindi 888 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधा लोगट्ठिती पन्नत्ता, तं जहा– १. जण्णं जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायंति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता। २. जण्णं जीवाणं सया समितं पावे कम्मे कज्जति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता। ३. जण्णं जीवाणं सया समितं मोहणिज्जे पावे कम्मे कज्जति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता। ४. न एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं जीवा अजीवा भविस्संति, अजीवा वा जीवा भविस्संति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता। ५. न एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं तसा पाणा वोच्छिज्जिस्संति ‘थावरा पाणा भविस्संति’, थावरा पाणा वोच्छिज्जिस्संति तसा पाणा भविस्संति–एवंप्पेगा

Translated Sutra: लोक स्थिति दस प्रकार की है, यथा – जीव मरकर बार – बार लोक में ही उत्पन्न होते हैं। जीव सदा पापकर्म करते हैं। जीव सदा मोहनीय कर्म का बन्ध करते हैं। तीन काल में जीव अजीव नहीं होते हैं और अजीव जीव नहीं होते हैं। तीन काल में त्रसप्राणी और स्थावर प्राणी विच्छिन्न नहीं होते हैं। तीन काल में लोक अलोक नहीं होता है और
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१०

Hindi 900 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधे जीवपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा–गतिपरिणामे, इंदियपरिणामे, कसायपरिणामे, लेसापरिणामे, जोगपरिणामे, उवओगपरिणामे, नाणपरिणामे, दंसणपरिणामे, चरित्तपरिणामे, वेयपरिणामे। दसविधे अजीवपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा–बंधणपरिणामे, गतिपरिणामे, संठाणपरिणामे, भेदपरिणामे, वण्णपरिणामे, रसपरिणामे, गंधपरिणामे, फासपरिणामे, अगुरुलहुपरिणामे, सद्दपरिणामे।

Translated Sutra: जीव परिणाम दस प्रकार के हैं, यथा – गति परिणाम, इन्द्रिय परिणाम, कषाय परिणाम, लेश्या परिणाम, योग परिणाम, उपयोग परिणाम, ज्ञान परिणाम, दर्शन परिणाम, चारित्र परिणाम, वेद परिणाम। अजीव परिणाम दस प्रकार के हैं, यथा – बन्धन परिणाम, गति परिणाम, संस्थान परिणाम, भेद परिणाम, वर्ण परिणाम, रस परिणाम, गंध परिणाम, स्पर्श परिणाम,
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१०

Hindi 953 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधा गती पन्नत्ता, तं जहा– निरयगती, निरयविग्गहगती, तिरियगती, तिरियविग्गहगती, मनुय-गती, मनुयविग्गहगती, देवगती, देवविग्गहगती, सिद्धिगती, सिद्धिविग्गहगती।

Translated Sutra: गति दश प्रकार की है, यथा – नरक गति, नरक की विग्रहगति, तिर्यंचगति, तिर्यंच की विग्रहगति, मनुष्य – गति, मनुष्य विग्रहगति, देवगति, देव विग्रहगति, सिद्धगति, सिद्ध विग्रहगति
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-१०

Hindi 961 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसी इमे दस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे, तं जहा– १. एगं च णं ‘महं घोररूवदित्तधरं’ तालपिसायं सुमिणे पराजितं पासित्ता णं पडिबुद्धे। २. एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलगं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ३. एगं च णं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ४. एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयनामयं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ५. एगं च णं महं सेतं गोवग्गं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ६. एगं च णं महं पउमसरं सव्वओ समंता कुसुमितं सुमिणे पासित्ता णं पडिबुद्धे। ७. एगं च णं महं सागरं उम्मी-वीची-सहस्सकलितं

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में ये दस महास्वप्न देखकर जागृत हुए। यथा – प्रथम स्वप्न में एक महा भयंकर जाज्वल्यमान ताड़ जितने लम्बे पिशाच को देखकर जागृत हुए। द्वीतिय स्वप्न में एक श्वेत पंखों वाले महा पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, तृतीय स्वप्न में एक विचित्र रंग की पांखों वाले महा पुंस्कोकिल
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-९

Gujarati 846 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नवविहे आउपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा– गतिपरिणामे, गतिबंधनपरिणामे, ठितीपरिणामे, ठितिबंधनपरिणामे, उड्ढंगारवपरिणामे, अहेगारव-परिणामे, तिरियंगारवपरिणामे, दीहंगारवपरिणामे, रहस्संगारवपरिणामे।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૪૬. આયુ પરિણામ નવ ભેદે છે. તે આ – ગતિ પરિણામ, ગતિ બંધન પરિણામ, સ્થિતિ પરિણામ, સ્થિતિ બંધન પરિણામ, ઉર્ધ્વગૌરવ પરિણામ, અધો ગૌરવ પરિણામ, તિર્યગ્‌ગૌરવ પરિણામ, દીર્ઘ ગૌરવ પરિણામ, હ્રસ્વ ગૌરવ પરિણામ. સૂત્ર– ૮૪૭. નવ નવમિકા ભિક્ષુ પ્રતિમા ૮૧ અહોરાત્ર વડે અને ૪૦૫ – ભિક્ષાઓ વડે યથાસૂત્ર યાવત્‌ આરાધેલી હોય છે. સૂત્ર–
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-१०

Gujarati 888 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधा लोगट्ठिती पन्नत्ता, तं जहा– १. जण्णं जीवा उद्दाइत्ता-उद्दाइत्ता तत्थेव-तत्थेव भुज्जो-भुज्जो पच्चायंति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता। २. जण्णं जीवाणं सया समितं पावे कम्मे कज्जति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता। ३. जण्णं जीवाणं सया समितं मोहणिज्जे पावे कम्मे कज्जति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता। ४. न एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं जीवा अजीवा भविस्संति, अजीवा वा जीवा भविस्संति–एवंप्पेगा लोगट्ठिती पन्नत्ता। ५. न एवं भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जं तसा पाणा वोच्छिज्जिस्संति ‘थावरा पाणा भविस्संति’, थावरा पाणा वोच्छिज्जिस्संति तसा पाणा भविस्संति–एवंप्पेगा

Translated Sutra: લોક સ્થિતિ અર્થાત લોકનો સ્વભાવ દશ ભેદે કહેલ છે – (૧) જે લોકમાં જીવો મરી મરીને ત્યાં ત્યાં જ વારંવાર ઉત્પન્ન થાય છે એ પ્રમાણે એક લોકસ્થિતિ કહી. (૨) જે જીવોને પ્રવાહથી નિરંતર પાપકર્મ બંધાય છે, એ પ્રમાણે એક લોકસ્થિતિ કહી છે. (૩) જે જીવોને પ્રવાહથી નિરંતર મોહનીય પાપકર્મ બંધાય છે, એમ એક લોકસ્થિતિ કહી છે. (૪) એમ થયું નથી,
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-१ Gujarati 73 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहा पुढविकाइया पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। दुविहा आउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। दुविहा तेउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। दुविहा वाउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। दुविहा वणस्सइकाइया पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमा चेव, बायरा चेव। दुविहा पुढविकाइया पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव। दुविहा आउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव। दुविहा तेउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव। दुविहा वाउकाइया पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा चेव, अपज्जत्तगा चेव। दुविहा वणस्सइकाइया

Translated Sutra: ૧. પૃથ્વીકાયિક બે ભેદે કહેલ છે – સૂક્ષ્મ અને બાદર. ૨ થી ૫. એ રીતે વનસ્પતિકાયિક પર્યંત સર્વ એકેન્દ્રિયના બે ભેદે કહેલ છે – સૂક્ષ્મ અને બાદર. ૬. પૃથ્વીકાયિક બે ભેદે કહેલ છે – પર્યાપ્તક અને અપર્યાપ્તક. ૭ થી ૧૦. એ રીતે વનસ્પતિકાયિક પર્યંત સર્વ એકેન્દ્રિયના બે ભેદ જાણવા. ૧૧. પૃથ્વીકાયિક બે ભેદે કહેલ છે – પરિણત – (અચિત્ત),
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-२ Gujarati 77 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे देवा उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा चारट्ठितिया गतिरतिया गति-समावन्नगा, तेसि णं देवाणं सता समितं जे पावे कम्मे कज्जति, तत्थगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति, अन्नत्थगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति। नेरइयाणं सता समियं जे पावे कम्मे कज्जति, तत्थगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति, अन्नत्थगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं। मनुस्साणं सत्ता समितं जे पावे कम्मे कज्जति, इहगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति, अन्नत्थगतावि एगतिया वेदनं वेदेंति। मनुस्सवज्जा सेसा एक्कगमा।

Translated Sutra: (૧) જે દેવો ઉર્ધ્વલોકમાં ઉત્પન્ન થયેલા છે, તે બે પ્રકારે છે – કલ્પોપપન્નક – (બાર દેવલોકમાં ઉત્પન્ન), વિમાનોપપન્નક – (ગ્રૈવેયક અને અનુત્તર વિમાનમાં ઉત્પન્ન). ચારોપપન્નક અર્થાત્ જે જ્યોતિષ્ક દેવો છે, તે પણ બે ભેદે છે – ચારસ્થિતિક હોય એટલે કે અઢીદ્વીપની બહાર ગતિ રહિત હોય અથવા ગતિરતિક – અર્થાત્ અઢીદ્વીપમાં સતત
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-२ Gujarati 78 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया दुगतिया दुयागतिया पन्नत्ता, तं जहा– नेरइए नेरइएसु उववज्जमाने मनुस्सेहिंतो वा पंचिंदियतिरिक्ख-जोणिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से नेरइए नेरइयत्तं विप्पजहमाने मनुस्सत्ताए वा पंचिंदियतिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेज्जा। एवं असुरकुमारावि, नवरं–से चेव णं से असुरकुमारे असुरकुमारत्तं विप्पजहमाने मनुस्सत्ताए वा तिरिक्खजोणियत्ताए वा गच्छेज्जा। एवं– सव्वदेवा। पुढविकाइया दुगतिया दुयागतिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जमाने पुढवि-काएहिंतो वा नो पुढविकाइएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाने पुढविकाइयत्ताए

Translated Sutra: (૧) નૈરયિકોને બે ગતિ, બે આગતિ કહી છે – નરકને વિશે ઉત્પન્ન થતા નારકી,મનુષ્ય અથવા પંચેન્દ્રિય તિર્યંચોમાંથી ઉત્પન્ન થાય. તે જ રીતે નૈરયિકપણાને છોડતો નૈરયિક મનુષ્ય કે પંચેન્દ્રિય તિર્યંચપણામાં જાય. એ રીતે અસુરકુમારો પણ જાણવા. વિશેષ એ કે – અસુરકુમાર અસુરકુમારત્વને છોડતો મનુષ્યપણા કે તિર્યંચ યોનિકપણામાં જાય.
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-२ Gujarati 79 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–भवसिद्धिया चेव, अभवसिद्धिया चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरोववन्नगा चेव, परंपरोववन्नगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–गतिसमावन्नगा चेव, अगतिसमावन्नगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–पढमसमओववन्नगा चेव, अपढमसमओववन्नगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–आहारगा चेव, अनाहारगा चेव। एवं जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–उस्सासगा चेव, नोउस्सासगा चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–सइंदिया चेव, अनिंदिया चेव जाव वेमाणिया। दुविहा नेरइया

Translated Sutra: ૧. નૈરયિકો બે ભેદે કહ્યા છે – ભવસિદ્ધિક, અભવસિદ્ધિક. વૈમાનિક સુધી સર્વે દંડકોમાં આ પ્રમાણે જાણવું. ૨. નૈરયિક બે ભેદે – અનંતરોપપન્નક, પરંપરોપપન્નક વૈમાનિક સુધી સર્વે દંડકોમાં આ પ્રમાણે જાણવું. ૩. નૈરયિક બે ભેદે – ગતિસમાપન્નક, અગતિસમાપન્નક વૈમાનિક સુધી સર્વે દંડકોમાં આ પ્રમાણે જાણવું. ૪. નૈરયિક બે ભેદે – પ્રથમસમયોપપન્નક,
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Gujarati 85 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दोण्हं उववाए पन्नत्ते, तं जहा–देवाणं चेव, नेरइयाणं चेव। दोण्हं उव्वट्टणा पन्नत्ता, तं जहा–नेरइयाणं चेव, भवनवासीणं चेव। दोण्हं चयणे पन्नत्ते, तं जहा–जोइसियाणं चेव, वेमाणियाणं चेव। दोण्हं गब्भवक्कंती पन्नत्ता, तं जहा–मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं आहारे पन्नत्ते, तं जहा–मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं वुड्ढी पन्नत्ता, तं जहा–मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। दोण्हं गब्भत्थाणं–निवुड्ढी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्घाते कालसंजोगे आयाती मरणे पन्नत्ते, तं जहा– मनुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं

Translated Sutra: (૧) ઉપપાત – (જીવો નો જન્મ) બે ભેદે છે – દેવોનો, નારકોનો. (૨) ઉદ્વર્તના – (જીવોનું મરણ) બે ભેદે છે – નૈરયિકોની, ભવનવાસીઓની. (૩) ચ્યવન – (મરણ) બે ભેદે છે – જ્યોતિષ્કોનું, વૈમાનિકોનું. (૪) ગર્ભ વ્યુત્ક્રાંતિ – (ઉત્પત્તિ) બે ભેદે છે – મનુષ્યોની, પંચેન્દ્રિય તિર્યંચોની. (૫) બે પ્રકારના જીવો ગર્ભમાં આહાર કરે છે – મનુષ્યો, પંચેન્દ્રિય
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-२ Gujarati 176 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविधा लोगठिती पन्नत्ता, तं जहा–आगासपइट्ठिए वाते, वातपइट्ठिए उदही, उदहीपइट्ठिया पुढवी। तओ दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–उड्ढा, अहा, तिरिया। तिहिं दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति–उड्ढाए, अहाए, तिरियाए। तिहिं दिसाहिं जीवाणं–आगती, वक्कंती, आहारे, वुड्ढी, णिवुड्ढी, गतिपरियाए, समुग्घाते, काल-संजोगे, दंसणाभिगमे, जीवाभिगमे पन्नत्ते, तं जहा–उड्ढाए, अहाए, तिरियाए। तिहिं दिसाहिं जीवाणं अजीवाभिगमे पन्नत्ते, तं जहा–उड्ढाए, अहाए, तिरियाए। एवं–पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं। एवं–मनुस्साणवि।

Translated Sutra: લોકસ્થિતિ ત્રણ ભેદે છે – આકાશને આધારે વાયુ છે, વાયુને આધારે ઉદધિ છે, ઉદધિને આધારે પૃથ્વી છે. ત્રણ દિશાઓ કહી છે – ઉર્ધ્વ, અધો, તિર્છી. ત્રણ દિશામાં જીવોની ગતિ પ્રવર્તે છે. એ રીતે આગતિ, ઉત્પત્તિ, આહાર વૃદ્ધિ, નિર્વૃદ્ધિ, ગતિપર્યાય, સમુદ્‌ઘાત, કાળસંયોગ, દર્શનાભિગમ, જ્ઞાનાભિગમ, જીવાભિગમ (જાણવા). ત્રણ દિશામાં જીવોને
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Gujarati 222 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गुरुं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–आयरियपडिनीए, उवज्झायपडिनीए, थेरपडिनीए। गतिं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा– इहलोगपडिनीए, परलोगपडिनीए, दुहओलोग-पडिनीए। समूहं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा– कुलपडिनीए, गणपडिनीए, संघपडिनीए। अणुकंपं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–तवस्सिपडिनीए, गिलाणपडिनीए, सेहपडिनीए। भावं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–नाणपडिनीए, दंसणपडिनीए, चरित्तपडिनीए। सुयं पडुच्च तओ पडिनीया पन्नत्ता, तं जहा–सुत्तपडिनीए, अत्थपडिनीए, तदुभयपडिनीए।

Translated Sutra: ગુરુને આશ્રીને ત્રણ પ્રત્યનીક – (પ્રતિકુળ આચરણ કરનાર) કહેલ છે – આચાર્ય પ્રત્યનીક, ઉપાધ્યાય પ્રત્યનીક, સ્થવિર પ્રત્યનીક. ગતિને આશ્રીને ત્રણ પ્રત્યનીક કહ્યા છે – આલોક પ્રત્યનિક, પરલોક પ્રત્યનિક, ઉભયલોક પ્રત્યનિક. સમૂહને આશ્રીને ત્રણ પ્રત્યનિક છે – કુળ પ્રત્યનિક, ગણ પ્રત્યનિક, સંઘ પ્રત્યનિક. અનુકંપાને આશ્રીને
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Gujarati 235 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ लेसाओ दुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा। तओ लेसाओ सुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा। तओ लेसाओ– दोग्गतिगामिणीओ, संकिलिट्ठाओ, अमणुन्नाओ, अविसुद्धाओ, अप्पसत्थाओ, सीत-लुक्खाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– कण्हलेसा, नीललेसा, काउलेसा। तओ लेसाओ– सोगतिगामिणीओ, असंकिलिट्ठाओ, मणुन्नाओ, विसुद्धाओ, पसत्थाओ, निद्‌धु-ण्हाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– तेउलेसा, पम्हलेसा, सुक्कलेसा।

Translated Sutra: ૧. ત્રણ લેશ્યાઓ દુર્ગન્ધવાળી છે – કૃષ્ણ લેશ્યા, નીલ લેશ્યા, કાપોત લેશ્યા. ૨. ત્રણ લેશ્યાઓ સુગંધ વાળી છે – તેજો, પદ્મ, શુક્લ લેશ્યા. એ રીતે ૩. દુર્ગતિમાં લઈ જનારી, ૪. સદ્‌ગતિમાં લઈ જનારી, ૫. સંક્લિષ્ટા, ૬. અસંક્લિષ્ટા, ૭. અમનોજ્ઞ, ૮. મનોજ્ઞ, ૯. અવિશુદ્ધા, ૧૦. વિશુદ્ધા, ૧૧. અપ્રશસ્તા, ૧૨. પ્રશસ્તા, ૧૩. સ્નિગ્ધરુક્ષા, ૧૪. સ્નિગ્ધઉષ્ણ
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Gujarati 270 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा– सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे। एवं–बलिस्सवि– सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे। धरणस्स– कालपाले, कोलपाले, सेलपाले, संखपाले। भूयाणंदस्स – कालपाले, कोलपाले, संखपाले, सेलपाले। वेणुदेवस्स– चित्ते, विचित्ते, चित्तपक्खे, विचित्तपक्खे। वेणुदालिस्स- चित्ते, विचित्ते, विचित्तपक्खे, चित्तपक्खे। हरिकंतस्स- पभे, सुप्पभे, पभकंते, सुप्पभकंते। हरिस्सहस्स- पभे, सुप्पभे, सुप्पभकंते, पभकंते। अग्गिसिहस्स– तेऊ, तेउसिहे, तेउकंते, तेउप्पभे। अग्गिमाणवस्स– तेऊ, तेउसिहे, तेउप्पभे, तेउकंते। पुण्णस्स– ‘रूवे, रूवंसे’, ‘रूवकंते,

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૭૦. અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરને ચાર લોકપાલો કહ્યા – સોમ, યમ, વરુણ, વૈશ્રમણ. એ રીતે બલીન્દ્રના ચાર લોકપાલો – સોમ, યમ, વૈશ્રમણ, વરુણ. ધરણેન્દ્રના ચાર લોકપાલો કાલપાલ, કોલપાલ, શૈલપાલ, શંખપાલ. ભૂતાનંદના ચાર લોકપાલો – કાલપાલ, કોલપાલ, શંખપાલ, શૈલપાલ. વેણુદેવના ચાર લોકપાલો – ચિત્ર, વિચિત્ર, ચિત્રપક્ષ, વિચિત્રપક્ષ. વેણુદાલિના
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स्थान-४

उद्देशक-२ Gujarati 315 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा– पगतिबंधे, ठितिबंधे, अनुभावबंधे, पदेसबंधे। चउव्विहे उवक्कमे पन्नत्ते, तं जहा–बंधणोवक्कमे, उदीरणोवक्कमे, उवसमणोवक्कमे, विप्परिनाम-णोवक्कमे। बंधणोवक्कमे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पगतिबंधणोवक्कमे, ठितिबंधणोवक्कमे, अनुभावबंध-णोवक्कमे, पदेस-बंधणोवक्कमे। उदीरणोवक्कमे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पगतिउदीरणोवक्कमे, ठितिउदीरणोवक्कमे, अनुभाव-उदीरणोवक्कमे, पदेसउदीरणोवक्कमे। उवसामणोवक्कमे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पगतिउवसामणोवक्कमे, ठितिउवसामणोवक्कमे, अनुभावउवसामणोवक्कमे, पदेसउवसामणोवक्कमे। विप्परिनामणोवक्कमे चउव्विहे

Translated Sutra: ચાર પ્રકારે બંધ કહેલ છે – પ્રકૃતિ બંધ, સ્થિતિ બંધ, અનુભાવ બંધ, પ્રદેશ બંધ. ચાર પ્રકારે ઉપક્રમ કહેલ છે – બંધનોપક્રમ, ઉદીરણોપક્રમ, ઉપશમોપક્રમ, વિપરિણામનોપક્રમ. બંધનોપક્રમ ચાર ભેદે છે – પ્રકૃતિ – સ્થિતિ – અનુભાવ – પ્રદેશ બંધનોપક્રમ. ઉદીરણોપક્રમ ચાર ભેદે છે – પ્રકૃતિ – સ્થિતિ – અનુભાવ – પ્રદેશ ઉદીરણોપક્રમ. ઉપશમોપક્રમ
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Gujarati 348 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि अवायणिज्जा पन्नत्ता, तं जहा–अविनीए, विगइपडिबद्धे, अविओसवितपाहुडे, माई। [सूत्र] चत्तारि वायणिज्जा पन्नत्ता, तं जहा–विणीते, अविगतिपडिबद्धे, विओसवितपाहुडे, अमाई।

Translated Sutra: ચાર ભેદે વ્યક્તિઓ વાચનાને માટે અયોગ્ય છે – અવિનીત, વિગઈ આસક્ત, અનુપશાંત અને માયાવી. ચાર ભેદે વ્યક્તિઓ વાચનાને માટે યોગ્ય છે – વિનીત, વિગઈમાં અનાસક્ત, ઉપશાંત અને કપટરહિત.
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Gujarati 349 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–आतंभरे नाममेगे नो परंभरे, परंभरे नाममेगे नो आतंभरे, एगे आतंभरेवि परंभरेवि, एगे नो आतंभरे नो परंभरे। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–दुग्गए नाममेगे दुग्गए, दुग्गए नाममेगे सुग्गए, सुग्गए नाममेगे दुग्गए, सुग्गए नाममेगे सुग्गए। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–दुग्गए नाममेगे दुव्वए, दुग्गए नाममेगे सुव्वए, सुग्गए नाममेगे दुव्वए, सुग्गए नाममेगे सुव्वए। चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–दुग्गए नाममेगे दुप्पडितानंदे, दुग्गए नाममेगे सुप्पडितानंदे, सुग्गए नाममेगे दुप्पडितानंदे, सुग्गए नाममेगे सुप्पडितानंदे। चत्तारि

Translated Sutra: (૧) ચાર ભેદે પુરુષો કહ્યા છે – કોઈ પોતાનું પોષણ કરે છે, અન્યનું નહીં. કોઈ બીજાનું પોષણ કરે છે પોતાનું નહીં, કોઈ પોતાનું અને પરનું બંનેનું પોષણ કરે છે., કોઈ બંનેનું પોષણ ન કરે તે. (૨) ચાર ભેદે પુરુષો કહ્યા – કોઈ પુરુષ દુર્ગત – (પહેલા નિર્ધન હોય) અને પછી પણ દુર્ગત હોય., કોઈ પહેલા દુર્ગત હોય અને પછી સુગત – (ધનવાન) થાય. કોઈ
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Gujarati 359 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउहिं ठाणेहिं जीवा य पोग्गला य नो संचाएंति बहिया लोगंता गमणयाए, तं जहा–गतिअभावेणं, निरुवग्गहयाए, लुक्खताए, लोगाणुभावेण।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૫૭
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-४ Gujarati 404 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउहिं ठाणेहिं जीवा नेरइयाउयत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा– महारंभताए, महापरिग्गहयाए, पंचिंदियवहेणं, कुणिमाहारेणं। चउहिं ठाणेहिं जीवा तिरिक्खजोणिय आउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा– माइल्लताए, नियडि-ल्लताए, अलियवयणेणं, कूडतुलकूडमानेणं। चउहिं ठाणेहिं जीवा मनुस्साउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा– पगतिभद्दताए, पगतिविणीययाए, साणुक्कोसयाए, अमच्छरिताए। चउहिं ठाणेहिं जीवा देवाउयत्ताए कम्मं पगरेंति, तं जहा– सरागसंजमेणं, संजमासंजमेणं, बालतवो-कम्मेणं, अकामनिज्जराए।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૦૩
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Gujarati 424 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंच वण्णा पन्नत्ता, तं जहा–किण्हा, निला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला। पंच रसा पन्नत्ता, तं जहा–तित्ता, कडुया, कसाया, अंबिला, मधुरा। पंच कामगुणा पन्नत्ता, तं जहा–सद्दा, रूवा, गंधा, रसा, फासा। पंचहिं ठाणेहिं जीवा सज्जंति, तं जहा–सद्देहिं, रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहिं। पंचहिं ठाणेहिं जीवा रज्जंति, तं जहा–सद्देहिं, रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहिं। पंचहिं ठाणेहिं जीवा मुच्छंति, तं जहा–सद्देहिं, रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहिं। पंचहिं ठाणेहिं जीवा गिज्झंति, तं जहा–सद्देहिं, रूवेहिं, गंधेहिं, रसेहिं, फासेहिं। पंचहिं ठाणेहिं जीवा अज्झोववज्जंति, तं जहा–सद्देहिं,

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૨૪. (૧) પાંચ વર્ણો કહ્યા – કૃષ્ણ, નીલ, લાલ, પીળો, સફેદ. (૨) પાંચ રસો કહ્યા – તિક્ત યાવત્‌ મધુર. (૩) પાંચ કામ ગુણો કહ્યા – શબ્દ, રૂપ, રસ, ગંધ, સ્પર્શ. (૪) પાંચ સ્થાને જીવો આસક્ત થાય છે – શબ્દ યાવત્‌ સ્પર્શ, એ પ્રમાણે (૫) રાગ પામે છે, (૬) મૂર્ચ્છા પામે છે, (૭) ગૃદ્ધ થાય છે, (૮) આકાંક્ષાવાળા થાય છે, (૯) મૃત્યુ પામે છે. (૧૦) પાંચ સ્થાનોનું
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Gujarati 425 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं जीवा दोग्गतिं गच्छंति, तं जहा– पाणातिवातेणं, मुसावाएणं, अदिन्नादाणेणं, मेहुणेणं, परिग्गहेणं। पंचहिं ठाणेहिं जीवा सोगतिं गच्छंति, तं जहा– पाणातिवातवेरमणेणं, मुसावायवेरमणेणं, अदिन्ना-दानवेरमणेणं, मेहुणवेरमणेणं, परिग्गहवेरमणेणं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૨૪
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-१ Gujarati 440 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविहा पडिहा पन्नत्ता, तं जहा–गतिपडिहा, ठितिपडिहा, बंधणपडिहा, भोगपडिहा, बल-वीरिय-पुरिसयारपरक्कमपडिहा।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૪૦. પ્રતિઘાત – (અવરોધ) પાંચ ભેદે કહેલ છે – ગતિ પ્રતિઘાત , સ્થિતિ પ્રતિઘાત, બંધન પ્રતિઘાત, ભોગ પ્રતિઘાત, બળ – વીર્ય – પુરુષકાર પરાક્રમ પ્રતિઘાત. સૂત્ર– ૪૪૧. આજીવિક પાંચ ભેદે કહેલ છે – જાતિ આજીવિક – કુલ આજીવિક – કર્મ આજીવિક – શીલ્પ આજીવિક – લિંગ આજીવિક. સૂત્ર– ૪૪૨. રાજ ચિહ્નો પાંચ કહ્યા છે – ખડ્‌ગ, છત્ર, મુગટ,
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-२ Gujarati 455 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं निग्गंथा निग्गंथीओ य एगतओ ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति, तं जहा- १. अत्थेगइया निग्गंथा य निग्गंथीओ य एगं महं अगामियं छिण्णावायं दीहमद्धमडविमनुपविट्ठा, तत्थेगयतो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति। २. अत्थेगइया निग्गंथा य निग्गंथीओ य गामंसि वा नगरंसि वा खेडंसि वा कव्वडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा निगमंसि वा आसमंसि वा सन्निवेसंसि वा रायहाणिंसि वा वासं उवागता एगतिया जत्थ उवस्सयं लभंति, एगतिया नो लभंति, तत्थेगतो ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेतेमाणा नातिक्कमंति। ३. अत्थेगइया निग्गंथा

Translated Sutra: પાંચ કારણે સાધુ – સાધ્વી એકત્ર સ્થાન, શય્યા, નિષદ્યા કરે તો જિનાજ્ઞાનું અતિક્રમણ કરતા નથી – (૧) જેમ સાધુ – સાધ્વી કદાચિત્‌ કોઈ મહા લાંબી, નિર્જન, અનિચ્છનીય અટવીમાં પ્રવેશે, ત્યાં એકત્રપણે સ્થાન, શય્યા, નિષદ્યાને કરતા જિનાજ્ઞા ઉલ્લંઘતા નથી. (૨) કેટલાક સાધુ – સાધ્વી ગામમાં, નગરમાં યાવત્‌ રાજધાનીમાં રહેવાને આવે,
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-३ Gujarati 496 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविधा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा– एगिंदिया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया। एगिंदिया पंचगतिया पंचागतिया पन्नत्ता, तं जहा– एगिंदिए एगिंदिएसु उववज्जमाणे एगिंदि-एहिंतो वा, बेइंदिएहिंतो वा, तेइंदिएहिंतो वा, चउरिंदिएहिंतो वा, पंचिंदिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। ‘से चेव णं से’ एगिंदिए एगिंदियत्तं विप्पजहमाने एगिंदियत्ताए वा, बेइंदियत्ताए वा, तेइंदिय-त्ताए वा, चउरिंदियत्ताए वा, पंचिंदियत्ताए वा गच्छेज्जा। बेइंदिया पंचगतिया पंचागतिया एवं चेव। एवं जाव पंचिंदिया पंचगतिया पंचागतिया पन्नत्ता, तं जहा–पंचिंदिए जाव गच्छेज्जा। पंचविधा सव्वजीवा

Translated Sutra: (૧) સંસારી જીવો પાંચ ભેદે કહ્યા – એકેન્દ્રિયથી પંચેન્દ્રિય. (૨) એકેન્દ્રિયો પાંચ ગતિ અને પાંચ આગતિવાળા છે. તે આ રીતે – એકેન્દ્રિય, એકેન્દ્રિયમાં ઉપજતો એકેન્દ્રિય યાવત્‌ પંચેન્દ્રિયમાંથી આવીને ઉપજે તે જ એકેન્દ્રિય જીવ. તે એકેન્દ્રિયત્વને છોડતો એકેન્દ્રિયથી પંચેન્દ્રિયપણામાં જાય. (૩) બેઇન્દ્રિય જીવો પાંચ
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-३ Gujarati 504 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचविधे जीवस्स निज्जाणमग्गे पन्नत्ते, तं जहा–पाएहिं, ऊरूहिं, उरेणं, सिरेणं, सव्वंगेहिं। पाएहिं निज्जायमाणे निरयगामी भवति, ऊरूहिं निज्जायमाणे तिरियगामी भवति, उरेणं निज्जाय-माणे मनुयगामी भवति, सिरेणं निज्जायमाणे देवगामी भवति, सव्वंगेहिं निज्जायमाणे सिद्धिगति-पज्जवसाणे पन्नत्ते।

Translated Sutra: શરીરમાંથી જીવને નીકળવાનો માર્ગ પાંચ પ્રકારે છે, તે આ – પગથી, સાથળથી, હૃદયથી, મસ્તકથી, સર્વાંગથી. જીવ જો પગેથી નીકળે તો નરકગામી થાય, સાથળની નીકળે તો તિર્યંચગામી થાય, છાતીથી નીકળે તો મનુષ્ય ગામી થાય, મસ્તકેથી નીકળે તો તિર્યંચગામી થાય,
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-६

Gujarati 525 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, तसकाइया। पुढविकाइया छगतिया छआगतिया पन्नत्ता, तं जहा– पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जमाने पुढविकाइएहिंतो वा, आउकाइएहिंतो वा, तेउकाइएहिंतो वा, वाउकाइएहिंतो वा, वनस्सकाइएहिंतो वा, तसकाइएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकाइयत्तं विप्पजहमाने पुढविकाइयत्ताए वा, आउकाइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए वा, वाउकाइयत्ताए वा, वनस्सइकाइयत्ताए वा तसकाइयत्ताए वा गच्छेज्जा। आउकाइया छगतिया छआगतिया एवं चेव जाव तसकाइया।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૨૧
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-६

Gujarati 544 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छद्दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– पाईणा, पडीणा, दाहिणा, उदीणा, उड्ढा, अधा। छहिं दिसाहिं जीवाणं गती पवत्तति, तं जहा– पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए, अधाए। छहिं दिसाहिं जीवाणं– आगई वक्कंती आहारे वुड्ढी निवुड्ढी विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्घाते कालसंजोगे दंसणाभिगमे नाणाभिगमे जीवाभिगमे अजीवाभिगमे पन्नत्ते, तं जहा– पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, उदीणाए, उड्ढाए, अघाए। एवं पंचिंदियतिरिक्खजोनियाणवि। मनुस्साणवि।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૪૪. છ દિશાઓ કહી છે – પૂર્વ, પશ્ચિમ, દક્ષિણ, ઉત્તર, ઊર્ધ્વ, અધો. (૧) આ છ દિશામાં જીવોની ગતિ પ્રવર્તે છે. એ રીતે (૨) આગતિ, (૩) વ્યુત્ક્રાંતિ, (૪) આહાર, (૫) વૃદ્ધિ, (૬) નિર્વૃદ્ધિ, (૭) વિકુર્વણા, (૮) ગતિપર્યાય, (૯) સમુદ્‌ – ઘાત, (૧૦) કાલસંયોગ, (૧૧) દર્શનાભિગમ, (૧૨) જ્ઞાનાભિગમ, (૧૩) જીવાભિગમ, (૧૪) અજીવાભિગમ એમ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-६

Gujarati 587 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विधे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनामनिधत्ताउए, गतिनामनिधत्ताउए, ठितिनामनिधत्ताउए, ओगाहणानामनिधत्ताउए, पएसनामनिधत्ताउए, अणुभागनामनिधत्ताउए। छव्विहे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनामनिधत्ताउए, गतिनामनिधत्ताउए, ठितिनामनिध-त्ताउए, ओगाहणानामनिधत्ताउए, पएसनामनिधत्ताउए, अनुभागनामनिधत्ताउए। एवं जाव वेमाणियाणं। नेरइया नियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति। एवं असुरकुमारावि जाव थणियकुमारा। असंखेज्जवासाउया सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिया नियमं छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पगरेंति। असंखेज्जवासाउया सन्निमनुस्सा नियमं छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૮૭. આયુબંધ છ ભેદે કહ્યો છે – જાતિનામ નિધત્ત, ગતિનામ નિધત્ત, સ્થિતિનામ નિધત્ત, અવગાહનાનામ નિધત્ત, પ્રદેશનામ નિધત્ત, અનુભાવનામ નિધત્ત – આયુ. નૈરયિકને છ ભેદે આયુબંધ કહ્યો – જાતિ યાવત્‌ અનુભાવ – નામનિધત્તાયુ. એ રીતે વૈમાનિક સુધી જાણવુ. નૈરયિકો નિયમા છ માસ શેષાયુ રહેતા પરભવનું આયુ બાંધે. એ રીતે અસુર યાવત્‌
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-७

Gujarati 594 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तविधे जोणिसंगहे पन्नत्ते, तं० अंडजा, पोतजा, जराउजा, रसजा, संसेयगा, संमुच्छिमा, उब्भिगा। अंडगा सत्तगतिया सत्तागतिया पन्नत्ता, तं जहा– अंडगे अंडगेसु उववज्जमाने अंडगेहिंतो वा, पोतजेहिंतो वा, जरा- उजेहिंतो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयगेहिंतो वा, संमुच्छिमेहिंतो वा, उब्भिगेहिंतो वा उववज्जेज्जा। सच्चेव णं से अंडए अंडगत्तं विप्पजहमाने अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा, जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, संमुच्छिमत्ताए वा, उब्भिगत्ताए वा गच्छेज्जा। पोतगा सत्तगतिया सत्तागतिया एवं चेव। सत्तण्हवि गतिरागती भाणियव्वा जाव उब्भियत्ति।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૯૪. યોનિ સંગ્રહ સાત ભેદે કહ્યો છે – અંડજ – ઇંડાથી ઉત્પન્ન, પોતજ – ચામડીનાં આવરણ વિના ઉત્પન્ન થનારા. જરાયુજ – ચર્મ આવરણ રૂપ,, રસજ – રસમાં ઉત્પન્ન થનાર, સંસ્વેદજ – પસીનાથી ઉત્પન્ન,, સંમૂર્ચ્છિમજ – સંયોગ વિના ઉપન્ન,, ઉદ્‌ભિજ્જ – ભૂમિ ભેદીને ઉત્પન્ન થનાર. અંડજ જીવ સાત ગતિક, સાત આગતિક કહ્યા છે – અંડજ જીવ, અંડજમાં
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-८

Gujarati 700 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठविधे जोणिसंगहे पन्नत्ते, तं जहा–अंडगा, पोतगा, जराउजा, रसजा, संसेयगा, संमुच्छिमा, उब्भिगा, उववातिया। अंडगा अट्ठगतिया अट्ठागतिया पन्नत्ता, तं जहा–अंडए अंडएसु उववज्जमाने अंडएहिंतो वा, पोतएहिंतो वा, जराउजेहिंतो वा, रसजेहिंतो वा, संसेयगेहिंतो वा, संमुच्छिमेहिंतो वा, उब्भिएहिंतो वा, उववातिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से अंडए अंडगत्तं विप्पजहमाने अंडगत्ताए वा, पोतगत्ताए वा, जराउजत्ताए वा, रसजत्ताए वा, संसेयगत्ताए वा, संमुच्छिमत्ताए वा, उब्भियत्ताए वा, उववातियत्ताए वा गच्छेज्जा। एवं पोतगावि जराउजावि सेसाणं गतिरागती

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૯૯
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-८

Gujarati 702 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठहिं ठाणेहिं मायी मायं कट्टु नो आलोएज्जा, नो पडिक्कमेज्जा, नो निंदेज्जा नो गरिहेज्जा, नो विउट्टेज्जा, नो विसोहेज्जा, नो अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, नो अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिव-ज्जेज्जा, तं जहा– करिंसु वाहं, करेमि वाहं, करिस्सामि वाहं, अकित्ती वा मे सिया, अवण्णे वा मे सिया, अविनए वा मे सिया, कित्ती वा मे परिहाइस्सइ, जसे वा मे परिहाइस्सइ अट्ठहिं ठाणेहिं मायी मायं कट्टु आलोएज्जा, पडिक्कमेज्जा, निंदेज्जा, गरिहेज्जा, विउट्टेज्जा, विसोहेज्जा, अकरणयाए अब्भुट्ठेज्जा, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जेज्जा, तं जहा– १. मायिस्स णं अस्सिं लोए गरहिते भवति। २. उववाए

Translated Sutra: આઠ સ્થાને માયાવી માયા કરીને આલોચતો નથી, પ્રતિક્રમતો નથી યાવત્‌ પ્રાયશ્ચિત્ત સ્વીકારતો નથી, તે આ – (૧) મેં કર્યું છે, (૨) હું કરું છું, (૩) હું કરીશ, (૪) મારી અપકીર્તિ થશે, (૫) મારો અપયશ થશે, (૬) પૂજા – સત્કારની મને હાનિ થશે. (૭) કીર્તિની હાનિ થશે, (૮) યશની હાનિ થશે. આઠ સ્થાને માયાવી માયા કરીને આલોચે યાવત્‌ પ્રાયશ્ચિત્ત સ્વીકારે
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-८

Gujarati 790 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अट्ठ सया अनुत्तरोववाइयाणं गतिकल्लाणाणं ठितिकल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिया अनुत्तरोववाइयसंपया हुत्था।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૯૦. શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને અનુત્તરોપપાતિક, ગતિકલ્યાણક યાવત્‌ આગમેષિભદ્રક ૮૦૦ સાધુની ઉત્કૃષ્ટ અનુત્તરોપપાતિક સંપત થઈ. સૂત્ર– ૭૯૧. આઠ ભેદે વાણવ્યંતર દેવો કહ્યા છે – પિશાચ, ભૂત, યક્ષ, રાક્ષસ, કિંનર, કિંપુરિષ, મહોરગ, ગાંધર્વ. આ આઠ વાણવ્યંતર દેવોના આઠ ચૈત્યવૃક્ષો કહ્યા છે. તે આ – સૂત્ર– ૭૯૨. પિશાચોનું કલંબ,
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-९

Gujarati 805 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नवविहा संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता, तं जहा–पुढविकाइया, आउकाइया, तेउकाइया, वाउकाइया, वणस्सइकाइया, बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिंदिया, पंचिंदिया। पुढविकाइया नवगतिया नवआगतिया पन्नत्ता, तं जहा– पुढविकाइए पुढविकाइएसु उवव-ज्जमाणे पुढविकाइएहिंतो वा, आउकाइएहिंतो वा, तेउकाइएहिंतो वा, वाउकाइएहिंतो वा, वणस्सइकाइएहिंतो वा, बेइंदिएहिंतो वा, तेइंदिएहिंतो वा, चउरिंदिएहिंतो वा, पंचिंदिएहिंतो वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पुढविकाइए पुढविकायत्तं विप्पजहमाने पुढविकाइयत्ताए वा, आउकाइयत्ताए वा, तेउकाइयत्ताए वा, वाउकाइयत्ताए वा, वनस्सइकाइयत्ताए वा, बेइंदियत्ताए वा, तेइंदियत्ताए

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૦૩
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-९

Gujarati 875 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि णं तस्स भगवंतस्स कत्थइ पडिबंधे भविस्सइ, से य पडिबंधे चउव्विहे पन्नत्ता तं जहा- अंडएइ वा पोयएइ वा उग्गहेइ वा पग्गहिएइ वा, जं णं जं णं दिसं इच्छइ तं णं तं णं दिसं अपडिबद्धे सुचिभूए लहुभूए अणप्पगंथे संजमेणं अप्पाणं भावेमाणे विहरिस्सइ, तस्स णं भगवंतस्स अनुत्तरेणं नाणेणं अनुत्तरेणं दंसणेणं अनुत्तरेणं चरित्तेणं एवं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं मद्दवेणं लाघवेणं खंत्तीए मुत्तीए गुत्तीए सच्च संजम तव गुण सुचरिय सोय चिय फल-परिनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पजिहिति

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૭૨
Sthanang સ્થાનાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

स्थान-१०

Gujarati 900 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधे जीवपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा–गतिपरिणामे, इंदियपरिणामे, कसायपरिणामे, लेसापरिणामे, जोगपरिणामे, उवओगपरिणामे, नाणपरिणामे, दंसणपरिणामे, चरित्तपरिणामे, वेयपरिणामे। दसविधे अजीवपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा–बंधणपरिणामे, गतिपरिणामे, संठाणपरिणामे, भेदपरिणामे, वण्णपरिणामे, रसपरिणामे, गंधपरिणामे, फासपरिणामे, अगुरुलहुपरिणामे, सद्दपरिणामे।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૯૫
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-४ Hindi 25 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता केवतियं एते दुवे सूरिया अन्नमन्नस्स अंतरं कट्टु चारं चरंति आहिताति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ छ पडिवत्तीओ। तत्थ एगे एवमाहंसु– ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसतं अन्नमन्नस्स अंतरं कट्टु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा– एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता एगं जोयणसहस्सं एगं च चउतीसं जोयणसयं अन्नमन्नस्स अंतरं कट्टु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा– एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता एगं जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं अन्नमन्नस्स अंतरं कट्टु सूरिया चारं चरंति आहिताति वएज्जा–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु– ता एगं दीवं एगं समुद्दं अण्ण मण्णस्स अंतरं

Translated Sutra: भारतीय एवं ऐरवतीय सूर्य परस्पर कितने अन्तर से गति करता है ? अन्तर सम्बन्धी यह छह प्रतिपत्तियाँ हैं। कोई एक परमतवादी कहता है कि ये दोनों सूर्य परस्पर एक हजार योजन के एवं दूसरे एकसो तैंतीस योजन के अन्तर से गति करते हैं। कोई एक कहते हैं कि ये एक हजार योजन एवं दूसरे १३४ योजन अंतर से गति करते हैं। कोई एक ऐसा कहते
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-५ Hindi 26 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता केवतियं ते दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ पंच पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता एगं जोयणसहस्सं एगं च तेत्तीसं जोयणसयं दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु– ता एगं जोयणसहस्सं एगं च चउत्तीसं जोयणसयं दीवं समुद्दं वा ओगा-हित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता एगं जोयणसहस्सं एगं च पणतीसं जोयणसयं दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण एवमाहंसु–ता अवड्ढं दीवं समुद्दं वा ओगाहित्ता सूरिए

Translated Sutra: वहाँ कितने द्वीप और समुद्र के अन्तर से सूर्य गति करता है ? यह बताईए। इस विषय में पाँच प्रतिपत्तियाँ हैं। कोई एक कहता है कि सूर्य एक हजार योजन एवं १३३ योजन द्वीप समुद्र को अवगाहन करके सूर्य गति करता है। कोई फिर ऐसा प्रतिपादन करता है की एक हजार योजन एवं १३४ योजन परिमित द्वीप समुद्र को अवगाहीत करके सूर्य गति करता
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-५ Hindi 27 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वयं पुण एवं वयामो–ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं जंबुद्दीवं दीवं असीतं जोयणसतं ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहन्निया दुवालसमुहुत्ता राती भवति। एवं सव्वबाहिरेवि, नवरं–लवणसमुद्दं तिन्नि तीसे जोयणसए ओगाहित्ता चारं चरइ, तया णं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राती भवति, जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, गाहाओ भाणियव्वाओ।

Translated Sutra: हे गौतम ! में इस विषय में यह कहता हूँ कि जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को उपसंक्रमीत करके गति करता है तब वह जंबूद्वीप को १८० योजन से अवगाहीत करता है, उस समय प्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अट्ठारह मुहूर्त्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। इसी तरह सर्वबाह्य मंडल में भी जानना। विशेष यह की लवणसमुद्र
Suryapragnapti सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र Ardha-Magadhi

प्राभृत-१

प्राभृत-प्राभृत-६ Hindi 28 Sutra Upang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ता केवतियं ते एगमेगेणं राइंदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ सत्त पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ। तत्थ एगे एवमाहंसु–ता दो जोयणाइं अद्धबायालीसं तेसीतिसतभागे जोयणस्स एगमेगेणं राइंदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु १ एगे पुण एवमाहंसु–ता अड्ढाइज्जाइं जोयणाइं एगमेगेणं राइंदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु २ एगे पुण एवमाहंसु–ता तिभागूणाइं तिन्नि जोयणाइं एगमेगेणं राइंदिएणं विकंपइत्ता-विकंपइत्ता सूरिए चारं चरइ आहितेति वएज्जा–एगे एवमाहंसु ३ एगे पुण

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! क्या सूर्य एक – एक रात्रिदिन में प्रविष्ट होकर गति करता है ? इस विषय में सात प्रतिपत्तियाँ हैं। जैसे की कोई एक परमतवादी बताता है की – दो योजन एवं बयालीस का अर्द्धभाग तथा एक योजन के १८३ भाग क्षेत्र को एक – एक रात्रि में विकम्पीत करके सूर्य गति करता है। अन्य एक मत में यह प्रमाण अर्द्धतृतीय योजन कहा है।
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