Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Gujarati | 187 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं पम्हे विजए, अस्सपुरा रायहानी, अंकावई वक्खारपव्वए। सुपम्हे विजए, सीहपुरा रायहानी, खीरोदा महानई। महापम्हे विजए, महापुरा रायहानी, पम्हाई वक्खारपव्वए। पम्हगावई विजए, विजयपुरा रायहानी, सीहसोया महानई। संखे विजए, अवराइया रायहानी, आसीविसे वक्खार-पव्वए। कुमुदे विजए, अरजा रायहानी, अंतोवाहिणी महानई। नलिने विजए, असोगा रायहानी, सुहावहे वक्खारपव्वए। सलिलावई विजए, वीयसोगा रायहानी, दाहिणिल्ले सीतोदामुहवनसंडे।
उत्तरिल्लेवि एमेव भाणियव्वे जहा सीयाए, वप्पे विजए, विजया रायहानी, चंदे वक्खार-पव्वए। सुवप्पे विजए, वेजयंती रायहानी, ओम्मिमालिनी नई। महावप्पे विजए, जयंती रायहानी, Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૮૭. એ પ્રમાણે ૧. પક્ષ્મ વિજયમાં અશ્વપુરા રાજધાની, અંકાવતી વક્ષસ્કાર પર્વત, પછી ૨. સુપક્ષ્મવિજય, સિંહપુરા રાજધાની, ક્ષીરોદા મહાનદી, પછી ૩. મહાપક્ષ્મ વિજય, મહાપુરા રાજધાની, પક્ષ્માવતી વક્ષસ્કાર પર્વત, પછી ૪. પક્ષ્મકારવતી વિજય, વિજયપુરા રાજધાની, શીતસ્રોતા મહાનદી, પછી ૫. શંખવિજય, અપરાજિતા રાજધાની, આશીવિષ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Gujarati | 193 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इमे वक्खारा, तं जहा–चंदपव्वए सूरपव्वए नागपव्वए देवपव्वए। सीयोयाए महानईए दाहिणिल्ले कूले– खीरोया सीहसोया अंतोवाहिनीओ नईओ, उम्मिमालिनी फेणमालिनी गंभीरमालिनी उत्तरिल्ल -विजयानंतराओ। इत्थ परिवाडीए दो-दो कूडा विजयसरिसनामया भाणियव्वा। इमे दो-दो कूडा अवट्ठिया तं जहा–सिद्धाययनकूडे पव्वयसरिसनामकूडे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮૭ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Gujarati | 239 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अच्चुए देविंदे देवराया महं देवाहिवे आभिओग्गे देवे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! महत्थं महग्घं महरिहं विउलं तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह।
तए णं ते आभिओग्गा देवा हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया जाव पडिसुणित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं जाव समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णियकलसाणं, एवं रुप्पमयाणं मणिमयाणं सुवण्णरुप्पमयाणं सुवण्ण मणिमयाणं रुप्पमणिमयाणं सुवण्णरुप्प-मणिमयाणं अट्ठसहस्सं भोमेज्जाणं, अट्ठसहस्सं वंदणकलसाणं, एवं भिंगाराणं आयंसाणं थालाणं पातीणं सुपइट्ठाणं चित्ताणं रयणकरंडगाणं Translated Sutra: ત્યારે તે દેવેન્દ્ર દેવરાજ અચ્યુત મહાદેવાધિપતિ, પોતાના આભિયોગિક દેવોને બોલાવે છે, બોલાવીને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે દેવાનુપ્રિયો ! તીર્થંકરના અભિષેકને માટે તમે શીધ્ર મહાર્થ, મહાર્ઘ, મહાર્હ, વિપુલ સામગ્રી ઉપસ્થાપિત કરો અર્થાત લાવો. ત્યારે તે આભિયોગિક દેવો હર્ષિત, સંતુષ્ટ થઈ યાવત્ આજ્ઞા સ્વીકારીને ઉત્તર – | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Gujarati | 344 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमानं भंते! कइ देवसाहस्सीओ परिवहंति? गोयमा! सोलस देवसाहस्सीओ परिवहंति–चंदविमानस्स णं पुरत्थिमेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं संखतल विमलनिम्मलदहिधण गोखीर फेण रययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउट्ठ वट्ट पीवरसु-सिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडंबियमुहाणं रत्तुप्पल-पत्तमउयसूमालतालुजीहाणं महुगुलियपिंगलक्खाणं पीवरवरोरुपडिपुण्णविउलखंधाणं मिउविसय-सुहुमलक्खणपसत्थवरवण्णकेसरसडोवसोहियाणं ऊसिय सुणमिय सुजाय अप्फोडिय नंगूलाणं वइरामयणक्खाणं वइरामयदाढाणं वइरामयदंताणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुयाणं तवणिज्ज जोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૪૪. ભગવન્ ! ચંદ્ર વિમાનને કેટલા હજાર દેવો વહન કરે છે ? ચંદ્ર વિમાનને પૂર્વમાં શ્વેત, સુભગ, સુપ્રભ, શંખતલ – વિમલ – નિર્મલ, ધન દહીં, ગાયના દૂધના ફીણ, રજતના સમૂહની જેમ પ્રકાશક, સ્થિર, લષ્ટ, પ્રકોષ્ઠ, વૃત્ત, પીવર, સુશ્લિષ્ટ, વિશિષ્ટ, તીક્ષ્ણ દાઢાથી વિડંબિત મુખવાળા, રક્ત ઉત્પલ – મૃદુ – સુકુમાલ તાળવું અને જીભવાળા, | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 145 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति...
...एगोरुयदीवे णं दीवे Translated Sutra: हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है। मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है – आदि। इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत् पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना। उस शिलापट्टक पर बहुत से एको – रुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 164 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घनकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अनुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधी अनेगसाहप्पसाहविडिमा अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ Translated Sutra: उस जगती के ऊपर और पद्मवरवेदिका के बाहर एक बड़ा विशाल वनखण्ड है। वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन गोल विस्तार वाला है और उसकी परिधि जगती की परिधि के समान ही है। वह वनखण्ड काला है और काला ही दिखाई देता है। यावत् उस वनखण्ड के वृक्षों के मूल बहुत दूर तक जमीन के भीतर गहरे गये हुए हैं, वे प्रशस्त किशलय वाले, प्रशस्त पत्रवाले | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 169 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ निसीहियाए दो दो तोरणा पन्नत्ता। वण्णओ जाव सहस्स-पत्तहत्थगा
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो सालभंजियाओ पन्नत्ताओ। वण्णओ।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो नागदंतगा पन्नत्ता। नागदंतावण्णओ उवरिमनागदंता नत्थि।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो हयसंघाडा दोदो गयसंघाडा एवं नरकिन्नरकिंपुरिस-महोरगगंधव्वउसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा एवं पंतीओ वीहीओ मिहुणगा।
दोदो पउमलयाओ जाव पडिरूवाओ।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो दिसासोवत्थिया पन्नत्ता सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो वंदनकलसा पन्नत्ता। वण्णओ।
तेसि णं तोरणाणं Translated Sutra: उस विजयद्वार के दोनों ओर दोनों नैषेधिकाओं में दो दो तोरण कहे गये हैं। यावत् उन पर आठ – आठ मंगलद्रव्य और छत्रातिछत्र हैं। उन तोरणों के आगे दो दो शालभंजिकाएं हैं। उन तोरणों के आगे दो दो नागदंतक हैं। उन नागदंतकों में बहुत सी काले सूत में गूँथी हुई विस्तृत पुष्पमालाओं के समुदाय हैं यावत् वे अतीव शोभा से युक्त | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 179 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए विजयदेवत्ताए उववन्ने।
तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे Translated Sutra: उस काल और उस समय में विजयदेव विजया राजधानी की उपपातसभा में देवशयनीय में देवदूष्य के अन्दर अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण शरीर में विजयदेव के रूप में उत्पन्न हुआ। तब वह उत्पत्ति के अनन्तर पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पूर्ण हुआ। वे पाँच पर्याप्तियाँ इस प्रकार हैं – आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रिय | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 180 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से विजए देवे महयामहया इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरत्थि-मेणं दारेणं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासन वरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स आभिओगिया देवा आलंकारियं भंडं उवणेंति।
तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताइं लूहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदनेणं Translated Sutra: तब वह विजयदेव शानदार इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त हो जाने पर सिंहासन से उठकर अभिषेकसभा के पूर्व दिशा के द्वार से बाहर नीकलता है और अलंकारसभा की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशा के द्वार से उसमें प्रवेश करता है। फिर उस श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व की ओर मुख करके बैठा। तदनन्तर उस विजयदेव की सामानिकपर्षदा के देवों ने आभियोगिक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिणमें, मालवंतवक्षस्कार पर्वत के पश्चिममें एवं गन्धमादन वक्षस्कारपर्वत के पूर्वमें उत्तरकुरा क्षेत्र। वह पूर्व पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की तरह अर्ध | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 315 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते कति देवसाहस्सीओ परिवहंति गोयमा चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभ-गाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउवट्टपीवर-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबितमुहाणं रत्तुप्पलपत्त-मउयसुमालालु-जीहाणं मधुगुलियपिंग-लक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुन्नविउलखंधाणं मिउविसय पसत्थसुहुमलक्खण-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं चंकमितललिय-पुलितथवलगव्वित-गतीणं उस्सियसुणिम्मि-यसुजायअप्फोडियणंगूलाणं वइरामयनक्खाणं वइरामयदंताणं पीतिगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं मनोहराणं अमीयगतीणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव वहन करते हैं ? गौतम ! १६००० देव, उनमें से ४००० देव सिंह का रूप धारण कर पूर्वदिशा से उठाते हैं। वे सिंह श्वेत हैं, सुन्दर हैं, श्रेष्ठ कांति वाले हैं, शंख के तल के समान विमल और निर्मल तथा जमे हुए दहीं, गाय का दूध, फेन चाँदी के नीकर के समान श्वेत प्रभावाले हैं, उनकी आँखें शहद की गोली | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 169 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ निसीहियाए दो दो तोरणा पन्नत्ता। वण्णओ जाव सहस्स-पत्तहत्थगा
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो सालभंजियाओ पन्नत्ताओ। वण्णओ।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो नागदंतगा पन्नत्ता। नागदंतावण्णओ उवरिमनागदंता नत्थि।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो हयसंघाडा दोदो गयसंघाडा एवं नरकिन्नरकिंपुरिस-महोरगगंधव्वउसभसंघाडा सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा एवं पंतीओ वीहीओ मिहुणगा।
दोदो पउमलयाओ जाव पडिरूवाओ।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो दिसासोवत्थिया पन्नत्ता सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा।
तेसि णं तोरणाणं पुरतो दोदो वंदनकलसा पन्नत्ता। वण्णओ।
तेसि णं तोरणाणं Translated Sutra: વિજયદ્વારના બંને પડખે બે પ્રકારની નિષિધિકામાં બબ્બે તોરણો કહ્યા છે. તે તોરણો વિવિધ મણિમય આદિ પૂર્વવત્ કહેવું યાવત્ આઠ અષ્ટમંગલો અને છત્રાતિછત્ર જાણવું. તે તોરણો આગળ બબ્બે શાલભંજિકા કહી છે. વર્ણન પૂર્વવત્. તે તોરણોની આગળ બબ્બે નાગદંતકો કહ્યા છે. તે નાગદંતકો મુક્તાજાલમાં અંદર લટકતી માળાયુક્ત છે. તે નાગદંતકો | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 164 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घनकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अनुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधी अनेगसाहप्पसाहविडिमा अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ Translated Sutra: તે જગતીની ઉપર બહારની પદ્મવરવેદિકામાં અહીં એક મોટું વનખંડ કહ્યું છે. તે દેશોન બે યોજન ચક્રવાલ વિષ્કંભથી છે અને તેની પરિધિ જગતી સમાન છે. તે વનખંડ કૃષ્ણ, કૃષ્ણ આભાવાળું યાવત્ અનેક શકટ – રથ – યાન – યુગ્ય પરિમોચન, સુરમ્ય, પ્રાસાદીય, શ્લક્ષ્ણ, લષ્ટ, ઘૃષ્ટ, મૃષ્ટ, નીરજ, નિષ્પંક, નિર્મળ, નિષ્કંટકછાયા, પ્રભા – કિરણ – ઉદ્યોત | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 166 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा–विजये वेजयंते जयंते अपराजिते। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬૬. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના કેટલા દ્વારો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – વિજય, વૈજયંત, જયંત, અપરાજિત. સૂત્ર– ૧૬૭. ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપનું વિજય નામે દ્વાર ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની પૂર્વે ૪૫,૦૦૦ યોજન અબાધાએ ગયા પછી જંબૂદ્વીપ દ્વીપના પૂર્વાંતમાં તથા લવણ સમુદ્રના પૂર્વાર્ધના પશ્ચિમ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Gujarati | 145 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति...
...एगोरुयदीवे णं दीवे Translated Sutra: એકોરુકદ્વીપ દ્વીપનો અંદરનો ભૂમિભાગ ચર્મમઢિત મૃદંગ સમાનબહુસમ રમણીય કહેલ છે. એ રીતે શયનીય કહેવું યાવત્ પૃથ્વીશિલાપટ્ટકનું પણ વર્ણન કરવું જોઈએ. ત્યાં ઘણા એકોરુકદ્વીપક મનુષ્યો અને સ્ત્રીઓ બેસે છે સુવે છે, યાવત્ વિચરે છે. હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! એકોરુક દ્વીપમાં તે – તે દેશમાં, ત્યાં – ત્યાં ઘણા ઉદ્દાલક, કોદ્દાલક, | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 179 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए विजयदेवत्ताए उववन्ने।
तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે વિજયદેવ, વિજયા રાજધાનીમાં ઉપપાતસભામાં દેવશયનીયમાં દેવદૂષ્યથી ઢંકાયેલી અંગુલના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ શરીરમાં વિજયદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થયો. ત્યારે તે વિજયદેવ ઉત્પત્તિ પછી પાંચ પ્રકારની પર્યાપ્તિથી પૂર્ણ થયો. તે આ રીતે – આહાર પર્યાપ્તિ, શરીર પર્યાપ્તિ, ઇન્દ્રિય પર્યાપ્તિ, આનપ્રાણ પર્યાપ્તિ, | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 180 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से विजए देवे महयामहया इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरत्थि-मेणं दारेणं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासन वरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स आभिओगिया देवा आलंकारियं भंडं उवणेंति।
तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताइं लूहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदनेणं Translated Sutra: ત્યારપછી તે વિજયદેવ મહાન ઇન્દ્રાભિષેકથી અભિષિક્ત થયેલો હતો તે સિંહાસનથી ઊભો થાય છે. સિંહાસન થકી ઊભો થઈને અભિષેક સભાના પૂર્વ દિશાના દ્વારથી નીકળે છે, નીકળીને જ્યાં અલંકારિક સભા છે ત્યાં આવે છે, આવીને તે અલંકારિક સભામાં અનુપ્રદક્ષિણા કરતા – કરતા પૂર્વ દ્વારેથી અનુપ્રવેશે છે. પૂર્વના દ્વારેથી પ્રવેશીને | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Gujarati | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: હે ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ, જંબૂદ્વીપ કેમ કહેવાય છે ? ગૌતમ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં મેરુ પર્વતની ઉત્તરે, નીલવંતની દક્ષિણે માલ્યવંત વક્ષસ્કાર પર્વતની પશ્ચિમે, ગંધમાદન વક્ષસ્કાર પર્વતની પૂર્વે ઉત્તરકુરા નામે કુરા ક્ષેત્ર છે. તે પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબું અને ઉત્તર – દક્ષિણ પહોળું, અર્દ્ધ ચંદ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વિષ્કંભથી | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Gujarati | 315 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते कति देवसाहस्सीओ परिवहंति गोयमा चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभ-गाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउवट्टपीवर-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबितमुहाणं रत्तुप्पलपत्त-मउयसुमालालु-जीहाणं मधुगुलियपिंग-लक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुन्नविउलखंधाणं मिउविसय पसत्थसुहुमलक्खण-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं चंकमितललिय-पुलितथवलगव्वित-गतीणं उस्सियसुणिम्मि-यसुजायअप्फोडियणंगूलाणं वइरामयनक्खाणं वइरामयदंताणं पीतिगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं मनोहराणं अमीयगतीणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं Translated Sutra: ભગવન્ ! ચંદ્રવિમાનને કેટલા હજાર દેવ વહન કરે છે ? ગૌતમ ! ચંદ્રવિમાનને કુલ ૧૬,૦૦૦ દેવ વહન કરે છે. તેમાં પૂર્વના ૪૦૦૦ દેવો સિંહરૂપ ધારણ કરી ઉઠાવે છે. તે સિંહ શ્વેત, સુભગ, સુપ્રભ, શંખતલ સમાન વિમલ, નિર્મલ, ઘન દહીં, ગાયનું દૂધ, ફીણ, ચાંદીના સમૂહ સમાન શ્વેત પ્રભાવાળો છે. તેની આંખ મધની ગોળી સમાન પીળી છે, મુખમાં સ્થિત સુંદર | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Hindi | 173 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयं पि सुक्करमलीहं दुक्करं तव-संजमं।
नीसल्लं जेण तं भणियं सल्लो य निय-दुक्खिओ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७२ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1074 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुढवि-काइयं एक्कं दरमलेंतस्स गोयमा ।
असाय-कम्म-बंधो हु दुव्विमोक्खे ससल्लिए॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०७२ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Gujarati | 173 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयं पि सुक्करमलीहं दुक्करं तव-संजमं।
नीसल्लं जेण तं भणियं सल्लो य निय-दुक्खिओ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૨ | |||||||||
Mahanishith | મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Gujarati | 1074 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुढवि-काइयं एक्कं दरमलेंतस्स गोयमा ।
असाय-कम्म-बंधो हु दुव्विमोक्खे ससल्लिए॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૭૨ | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 661 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] विहवा पउत्थवइया पयारमलमंति दट्ठुमेगागिं ।
दारपिहाणय गहणं इच्छमणिच्छे य दोसा उ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Gujarati | 661 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] विहवा पउत्थवइया पयारमलमंति दट्ठुमेगागिं ।
दारपिहाणय गहणं इच्छमणिच्छे य दोसा उ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 205 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चूडामणिमउडरयण-भूसणणागफडगरुलवइरं-पुण्णकलसंकिउप्फेस सीह-हयवर-गयअंक-मगर-वद्धमाण निज्जुत्तचित्तचिंधगता सुरूवा महिड्ढीया महज्जुतीया महायसा महब्बला महानुभागा महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडयतुडियथंभियभुया अंगद-कुंडल-मट्ठगंड तलकण्णपीडधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमालामउलिमउडा कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्ला-णुलेवणधरा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुत्तीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ Translated Sutra: इनके मुकुट या आभूषणों में अंकित चिह्न क्रमशः इस प्रकार हैं – चूडामणि, नाग का फन, गरुड़, वज्र, पूर्णकलश, सिंह, मकर, हस्ती, अश्व और वर्द्धमानक इनसे युक्त विचित्र चिह्नोंवाले, सुरूप, महर्द्धिक, महाद्युतिवाले, महाबलशाली, महायशस्वी, महाअनुभाग वाले, महासुखवाले, हार से सुशोभित वक्षस्थल वाले, कड़ों और बाजूबन्दों से स्तम्भित | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 217 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वाणमंतराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! वाणमंतरा देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरिं एगं जोयणसतं ओगाहित्ता हेट्ठा वि एगं जोयणसतं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु, एत्थ णं वाणमंतराणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जनगरावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं।
ते णं भोमेज्जा नगरा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा अहे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिता उक्किन्नंतरविउलगंभीरखायपरिहा पागारट्टालय कबाड तोरण पडिदुवारदेसभागा जंत सयग्घि मुसल मुसुंढिपरिवारिया अओज्झा सदाजता सदागुत्ता अडयालकोट्ठगरइया Translated Sutra: भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त वाणव्यन्तर देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के एक हजार योजन मोटे रत्नमय काण्ड के ऊपर तथा नीचे भी एक सौ योजन छोड़कर, बीच में आठ सौ योजन में, वाण – व्यन्तर देवों के तीरछे असंख्यात भौमेय लाखों नगरावास हैं। वे भौमेयनगर बाहर से गोल और अंदर से चौरस तथा नीचे से कमल की कर्णिका | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 226 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वेमानियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! वेमानिया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणसताइं बहूइं जोयणसहस्साइं बहूइं जोयणसयसहस्साइं बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद- बंभलोय-लंतय- महासुक्क-सहस्सार- आणय-पाणय- आरण-अच्चुत- गेवेज्ज-अनुत्तरेसु, एत्थ णं वेमानियाणं देवाणं चउरासीइ विमानावाससतसहस्सा सत्तानउइं च सहस्सा तेवीसं च विमाना भवंतीति मक्खातं।
ते णं विमाना सव्वरतणामया Translated Sutra: भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक वैमानिक देवों के स्थान कहाँ हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के अत्यधिक सम एवं रमणीय भूभाग से ऊपर, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा तारकरूप ज्योतिष्कों के अनेक सौ, अनेक हजार, अनेक लाख, बहुत करोड़ और बहुत कोटाकोटी योजन ऊपर दूर जाकर, सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१७ लेश्या |
उद्देशक-४ | Hindi | 464 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हलेस्सा णं भंते! वण्णेणं केरिसिया पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए–जीमूए इ वा अंजने इ वा खंजणे इ वा कज्जले इ वा गवले इ वा गवलवलए इ वा जंबूफले इ वा अद्दारिट्ठए इ वा परपुट्ठे इ वा भमरे इ वा भमरावली इ वा गयकलभे इ वा किण्हकेसरे इ वा आगासथिग्गले इ वा किण्हासोए इ वा किण्हकणवीरए इ वा किण्हबंधुजीवए इ वा, भवेतारूवा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, किण्हलेस्सा णं एत्तो अनिट्ठतरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुन्नतरिया चेव अमनामतरिया चेव वण्णेणं पन्नत्ता।
नीललेस्सा णं भंते! केरिसिया वण्णेणं पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए– भिंगे इ वा भिंगपत्ते इ वा चासे इ वा चासपिच्छे इ वा सुए Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्या वर्ण से कैसी है ? गौतम ! जैसे कोई जीमूत, अंजन, खंजन, कज्जल, गवल, गवल – वृन्द, जामुनफल, गीलाअरीठा, परपुष्ट, भ्रमर, भ्रमरों की पंक्ति, हाथी का बच्चा, काले केश, आकाशथिग्गल, काला अशोक, काला कनेर अथवा काला बन्धुजीवक हो। कृष्णलेश्या इससे भी अनिष्टतर है, अधिक अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और अधिक अमनाम वर्णवाली | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Gujarati | 205 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चूडामणिमउडरयण-भूसणणागफडगरुलवइरं-पुण्णकलसंकिउप्फेस सीह-हयवर-गयअंक-मगर-वद्धमाण निज्जुत्तचित्तचिंधगता सुरूवा महिड्ढीया महज्जुतीया महायसा महब्बला महानुभागा महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडयतुडियथंभियभुया अंगद-कुंडल-मट्ठगंड तलकण्णपीडधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमालामउलिमउडा कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्ला-णुलेवणधरा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुत्तीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૩ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Gujarati | 217 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वाणमंतराणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! वाणमंतरा देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरिं एगं जोयणसतं ओगाहित्ता हेट्ठा वि एगं जोयणसतं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठसु जोयणसएसु, एत्थ णं वाणमंतराणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेज्जनगरावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं।
ते णं भोमेज्जा नगरा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा अहे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिता उक्किन्नंतरविउलगंभीरखायपरिहा पागारट्टालय कबाड तोरण पडिदुवारदेसभागा जंत सयग्घि मुसल मुसुंढिपरिवारिया अओज्झा सदाजता सदागुत्ता अडयालकोट्ठगरइया Translated Sutra: ભગવન્ ! વ્યંતરોમાં પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા દેવોના સ્થાનો ક્યાં કહેલા છે ? ભગવન્ ! વ્યંતર દેવો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ૧૦૦૦ યોજન પ્રમાણ જાડા રત્નમય કાંડના ઉપર – નીચેના ૧૦૦ યોજન છોડીને વચ્ચેના ૮૦૦ યોજનમાં અહીં વ્યંતર દેવોના તિર્છા ભૂમિ સંબંધી અસંખ્યાતા લાખો નગરો છે એમ કહેલ છે. તે ભૌમેય નગરો | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Gujarati | 226 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! वेमानियाणं देवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पन्नत्ता? कहि णं भंते! वेमानिया देवा परिवसंति? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणसताइं बहूइं जोयणसहस्साइं बहूइं जोयणसयसहस्साइं बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता, एत्थ णं सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद- बंभलोय-लंतय- महासुक्क-सहस्सार- आणय-पाणय- आरण-अच्चुत- गेवेज्ज-अनुत्तरेसु, एत्थ णं वेमानियाणं देवाणं चउरासीइ विमानावाससतसहस्सा सत्तानउइं च सहस्सा तेवीसं च विमाना भवंतीति मक्खातं।
ते णं विमाना सव्वरतणामया Translated Sutra: ભગવન્ ! પર્યાપ્તા – અપર્યાપ્તા વૈમાનિક દેવોના સ્થાનો ક્યાં કહ્યા છે ? ભગવન્ ! વૈમાનિક દેવો ક્યાં વસે છે ? ગૌતમ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગથી ઊંચે ચંદ્ર – સૂર્ય – ગ્રહ – નક્ષત્ર – તારારૂપથી ઘણા સેંકડો યોજન, ઘણા હજારો યોજન, ઘણા લાખો યોજન, ઘણા કરોડ યોજનો, ઘણા કોડાકોડી યોજનો ઉપર દૂર જઈએ એટલે અહીં સૌધર્મ, | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१७ लेश्या |
उद्देशक-४ | Gujarati | 464 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हलेस्सा णं भंते! वण्णेणं केरिसिया पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए–जीमूए इ वा अंजने इ वा खंजणे इ वा कज्जले इ वा गवले इ वा गवलवलए इ वा जंबूफले इ वा अद्दारिट्ठए इ वा परपुट्ठे इ वा भमरे इ वा भमरावली इ वा गयकलभे इ वा किण्हकेसरे इ वा आगासथिग्गले इ वा किण्हासोए इ वा किण्हकणवीरए इ वा किण्हबंधुजीवए इ वा, भवेतारूवा? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे, किण्हलेस्सा णं एत्तो अनिट्ठतरिया चेव अकंततरिया चेव अप्पियतरिया चेव अमणुन्नतरिया चेव अमनामतरिया चेव वण्णेणं पन्नत्ता।
नीललेस्सा णं भंते! केरिसिया वण्णेणं पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए– भिंगे इ वा भिंगपत्ते इ वा चासे इ वा चासपिच्छे इ वा सुए Translated Sutra: ભગવન્ ! કૃષ્ણલેશ્યા વર્ણથી કેવી છે ? ગૌતમ ! જેમ કોઈ મેઘ, અંજન, ખંજન, કાજળ, ગવલ, ગવલવલય, જાંબુ, લીલા અરીઠાનું ફૂલ, કોયલ, ભ્રમર, ભ્રમર પંક્તિ, હાથીનું બચ્ચુ, કાળુ કેસર, આકાશથિગ્ગલ, કાળું અશોક, કાળી કણેર, કાળો બંધુજીવક છે, શું એવા પ્રકારની કૃષ્ણલેશ્યા હોય ? ગૌતમ ! એ અર્થ યુક્ત નથી. કૃષ્ણલેશ્યા એથી વધુ અનિષ્ટ, અતિ અકાંત, અતિ | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 29 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसिं णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस सालभंजिया-परिवाडीओ पन्नत्ताओ। ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकियाओ नानाविहरागवसणाओ नानामल्लपिणद्धाओ मुट्ठिगेज्झसुमज्झाओ आमेलग-जमल जुयल वट्टिय अब्भुन्नय पीण रइय संठियपओहराओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसय पसत्थ लक्खण संवेल्लियग्गसिरयाओ ईसिं असोगवरपायवसमुट्ठियाओ वामहत्थग्गहियग्गसालाओ ईसिं अद्धच्छिकडक्खचिट्ठितेहिं लूसमाणीओ विव, चक्खुल्लोयणलेसेहिं अन्नमन्नं खिज्जमाणीओ विव, पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगयाओ चंदाननाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का विव उज्जोवेमाणाओ Translated Sutra: उन द्वारों की दोनों बाजुओं की निशीधिकाओं में सोलह – सोलह पुतलियों की पंक्तियाँ हैं। ये पुतलियाँ विविध प्रकार की लीलाएं करती हुई, सुप्रतिष्ठित सब प्रकार के आभूषणों से शृंगारित, अनेक प्रकार के रंग – बिरंगे परिधानों एवं मालाओं से शोभायमान, मुट्ठी प्रमाण काटि प्रदेश वाली, शिर पर ऊंचा अंबाडा बांधे हुए और समश्रेणि | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 42 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामानियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता उववायसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अनुपयाहिणीकरेमाणे-अनुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं अनुप-विसइ, अनुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवानपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं करेइ, करेत्ता जल-मज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसूईभूए हरयाओ Translated Sutra: तत्पश्चात् वह सूर्याभदेव उन सामानिकपरिषदोपगत देवों से इस अर्थ को सूनकर और हृदय में अवधारित कर हर्षित, सन्तुष्ट यावत् हृदय होता हुआ शय्या से उठा और उठकर उपपात सभा के पूर्वदिग्वर्ती द्वार से नीकला, नीकलकर ह्रद पर आया, ह्रद की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशावर्ती तोरण से होकर उसमें प्रविष्ट हुआ। पुर्वदिशावर्ती | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 83 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं दढपतिण्णे दारगे पंचधाईपरिक्खित्ते–खीरधाईए मज्जणधाईए मंडणधाईए अंकधाईए कीलावणधाईए, अन्नाहि बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं वामणियाहिं वडभियाहिं बब्बरियाहिं बउसि-याहिं जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं थारु-इणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं दमिलाहिं सिंहलीहिं पुलिंदीहिं आरबीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मुरंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं नानादेसीहिं विदेस-परिमंडियाहिं इंगिय चिंतिय पत्थिय वियाणयाहिं सदेश नेवत्थ गहिय देसाहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं, चेडिया-चक्कवाल वरतरुणिवंद परियाल संपरिवुडे वरिसधर कंचुइमहयरवंदपरिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे-साहरिज्जमाणे Translated Sutra: उसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ शिशु, क्षीरधात्री, मंडनधात्री, मज्जनधात्री, अंकधात्री और क्रीडापनधात्री – इन पाँच धायमाताओं की देखरेख में तथा इनके अतिरिक्त इंगित, चिन्तित, प्रार्थित को जानने वाली, अपने – अपने देश के वेष को पहनने वाली, निपुण, कुशल – प्रवीण एवं प्रशिक्षित ऐसी कुब्जा, चिलातिका, वामनी, वडभी, बर्बरी, बकुशी, | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 29 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसिं णं दाराणं उभओ पासे दुहओ निसीहियाए सोलस-सोलस सालभंजिया-परिवाडीओ पन्नत्ताओ। ताओ णं सालभंजियाओ लीलट्ठियाओ सुपइट्ठियाओ सुअलंकियाओ नानाविहरागवसणाओ नानामल्लपिणद्धाओ मुट्ठिगेज्झसुमज्झाओ आमेलग-जमल जुयल वट्टिय अब्भुन्नय पीण रइय संठियपओहराओ रत्तावंगाओ असियकेसीओ मिउविसय पसत्थ लक्खण संवेल्लियग्गसिरयाओ ईसिं असोगवरपायवसमुट्ठियाओ वामहत्थग्गहियग्गसालाओ ईसिं अद्धच्छिकडक्खचिट्ठितेहिं लूसमाणीओ विव, चक्खुल्लोयणलेसेहिं अन्नमन्नं खिज्जमाणीओ विव, पुढविपरिणामाओ सासयभावमुवगयाओ चंदाननाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ चंदाहियसोमदंसणाओ उक्का विव उज्जोवेमाणाओ Translated Sutra: તે દ્વારના બંને પડખે નિષિધિકાઓમાં સોળ – સોળ જાળ – કટકની પંક્તિ છે. તે જાલકટક સર્વરત્નમય, સ્વચ્છ યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. તે દ્વારોના બંને પડખે નિષિધિકાઓમાં સોળ – સોળ ઘંટાની પંક્તિઓ કહી છે. તે ઘંટાનું વર્ણન આ પ્રમાણે છે – જાંબુનદમયી ઘંટા, વજ્રમય લોલક, વિવિધ મણિમય ઘંટાપાસા, તપનીયમય સાંકળો, રજતમય દોરડાઓ છે. તે ઘંટાઓ | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 31 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं वनसंडाणं अंतो बहुसमरमणिज्जा भूमिभागा पन्नत्ता–से जहानामए आलिंगपुक्खरेति वा जाव नानाविह पंचवण्णेहिं मणीहिं य तणेहिं य उवसोभिया।
तेसि णं गंधो फासो णायव्वो जहक्कमं।
तेसि णं भंते! तणाण य मणीण य पुव्वावरदाहिणुत्तरागतेहिं वातेहिं मंदायं-मंदायं एइयाणं वेइयाणं कंपियाणं फंदियाणं घट्टियाणं खोभियाण उदीरियाणं केरिसए सद्दे भवइ?
गोयमा! से जहानामए सीयाए वा संदमाणीए वा रहस्स वा सच्छत्तस्स सज्झयस्स सघंटस्स सपडागस्स सतोरणवरस्स सनंदिघोसस्स सखिंखिणिहेमजालपरिखित्तस्स हेमवय चित्तविचित्त तिणिस कनगणिज्जुत्तदारुयायस्स सुसंपिणद्धारकमंडलधुरागस्स कालायससुकयणेमिजंतकम्मस्स Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૧. તે વનખંડોમાં બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગ છે. જેમ કોઈ આલિંગ પુષ્કર(ઢોલકના ચામડાથી મઢેલ ભાગ)જેવું સપાટ છે. યાવત્ તે ભૂમિતલ વિવિધ પંચવર્ણી મણિ અને તૃણો વડે શોભિત છે. તેના ગંધ અને સ્પર્શ યથાક્રમે પૂર્વ સૂત્રમાં વર્ણવ્યા અનુસાર જાણવા. ભગવન્ ! તે તૃણ અને મણિઓ પૂર્વ – પશ્ચિમ – દક્ષિણ – ઉત્તરના વાયુના સ્પર્શથી | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Gujarati | 42 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामानियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता उववायसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अनुपयाहिणीकरेमाणे-अनुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं अनुप-विसइ, अनुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवानपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं करेइ, करेत्ता जल-मज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसूईभूए हरयाओ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૧ | |||||||||
Rajprashniya | રાજપ્રશ્નીય ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Gujarati | 83 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं दढपतिण्णे दारगे पंचधाईपरिक्खित्ते–खीरधाईए मज्जणधाईए मंडणधाईए अंकधाईए कीलावणधाईए, अन्नाहि बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं वामणियाहिं वडभियाहिं बब्बरियाहिं बउसि-याहिं जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं थारु-इणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं दमिलाहिं सिंहलीहिं पुलिंदीहिं आरबीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मुरंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं नानादेसीहिं विदेस-परिमंडियाहिं इंगिय चिंतिय पत्थिय वियाणयाहिं सदेश नेवत्थ गहिय देसाहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं, चेडिया-चक्कवाल वरतरुणिवंद परियाल संपरिवुडे वरिसधर कंचुइमहयरवंदपरिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे-साहरिज्जमाणे Translated Sutra: ત્યારપછી દૃઢપ્રતિજ્ઞ બાળક પાંચ ધાત્રીથી પાલન કરાતો – ક્ષીરધાત્રી, મજ્જનધાત્રી, મંડનધાત્રી, અંકધાત્રી, ક્રીડાપનધાત્રી. બીજી પણ ઘણી ચિલાતિકા, વામનિકા, વડભિકા, બર્બરી, બાકુશિકા, યોનકી, પલ્હવિકા, ઇસિનિકા, વારુણિકા, લાસિકા, લાકુસિકા, દમિલી, સિંહલી, આરબી, પુલિન્દ્રિ, પકવણી, બહલી, મુરુંડી, પારસી આદિ વિવિધ દેશ – વિદેશની | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | English |
Source of Illumination |
1. Mangalasutra | 11 | View Detail | |||
Mool Sutra: Thiradhariyasilamala, vavagayaraya jasohapadihattha.
Bahuvinayabhusiyanga, suhaim sahu payacchantu. Translated Sutra: May the saints, who have adorned themselves firmly with the garland of virtues, earned glorious reputation and are devoid of attachments, and are the embodiments of humility, grant me happiness. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | English |
Source of Illumination |
9.Dharmasutra | 106 | View Detail | |||
Mool Sutra: Ahamikko khalu suddho, damsanananamaio sada ruvi.
Na vi atthi majjha kimci vi, annam paramanumittam pi. Translated Sutra: Verily I am alone, pure, eternal and formless and possessing the qualities of apprehension and comprehension except these is nothing, not even an atom, that is my own. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | English |
Source of Illumination |
12. Ahimsasutra | 156 | View Detail | |||
Mool Sutra: Nani kammassa khayattha-mutthido notthido ya himsae.
Adadi asadham ahimsattham, appamatto avadhago so. Translated Sutra: A wise person is one who always strives to eradicate his Karmas and is not engaged in himsa. One who firmly endeavours to remain non-violent is verily a non-killer. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | English |
Path of Liberation |
21. Sadhanasutra | 293 | View Detail | |||
Mool Sutra: Rasa pagamam na niseviyavva, payam rasa dittikara naranam.
Dittam ca kama samabhiddavamti, dumam jaha sauphalam va pakkhi. Translated Sutra: One should not take delicious deshes in excessive quantity; for the delicious dishes normally stimulate lust in a person. Persons whose lusts are stimulated are mentally disturbed like trees laden with sweet fruits frequently infested with birds. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | English |
Path of Liberation |
(A) BAHYATAPA | 448 | View Detail | |||
Mool Sutra: Jo jassa u aharo, tatto omam tu jo kare.
Jahannenegastthai, evam davvena u bhave. Translated Sutra: A person, who takes food less even by a morsel than his usual diet, is said to practise penance called formal unodari (partial fasting). | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | English |
Metaphysics |
34. Tattvasutra | 592 | View Detail | |||
Mool Sutra: Uvaogalakkhanamanai-nihanamatthamtaram sarirao.
Jivamaruvim karim, bhoyam ca sayassa kammassa. Translated Sutra: A soul is characterised by consciousness; is enternal, immortal, different from the body (in which it is embodied), formless, an agnet, and the door and enjoyer of his own Karmas (i.e., fruits of his actions). | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | English |
Metaphysics |
34. Tattvasutra | 594 | View Detail | |||
Mool Sutra: Ajjivo puna neo, puggala dhammo adhamma ayasam.
Kalo puggala mutto, ruvadiguno amutti sesa du. Translated Sutra: Ajiva should again be known (to be of five kinds): matter (pudgala), motion (dharma) rest (adharma), space (akasa) and time (kala): matter has form as it has the attributes of colour etc., the rest of them are verily formless. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | English |
Metaphysics |
34. Tattvasutra | 620 | View Detail | |||
Mool Sutra: Vijjadi kevalananam, kevalasokkham ca kevalam virayam.
Kevaladitthi amuttam, atthittam sappadesattam. Translated Sutra: IN the emancipated souls, there are attributes like absolute knowledge, absolute bliss, absolute potentiality, absolute vision, formlessness, existence and extension. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
१. मङ्गलसूत्र | English | 11 | View Detail | ||
Mool Sutra: थिरधरियसीलमाला, ववगयराया जसोहपडिहत्था।
बहुविणयभूसियंगा, सुहाइं साहू पयच्छंतु।।११।। Translated Sutra: May the saints, who have adorned themselves firmly with the garland of virtues, earned glorious reputation and are devoid of attachments, and are the embodiments of humility, grant me happiness. | |||||||||
Saman Suttam | Saman Suttam | Prakrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
९. धर्मसूत्र | English | 106 | View Detail | ||
Mool Sutra: अहमिक्को खलु सुद्धो, दंसणणाणमइओ सदाऽरूवी।
ण वि अत्थि मज्झ किंचि वि, अण्णं परमाणुमित्तं पि।।२५।। Translated Sutra: Verily I am alone, pure, eternal and formless and possessing the qualities of apprehension and comprehension except these is nothing, not even an atom, that is my own. |