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Scripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-८ प्रत्यनीक | Hindi | 421 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति?
हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति, अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं?
हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमण मुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समाउच्चत्तेणं।
जइ णं भंते! Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में क्या दो सूर्य, उदय और अस्त के मुहूर्त्त में दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, मध्याह्न के मुहूर्त्तमें निकट में होते हुए दूर दिखाई देते हैं? हाँ, गौतम ! जम्बूद्वीपमें दो सूर्य, उदय के समय दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, इत्यादि। भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य, उदय के समय में, मध्याह्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
Hindi | 438 | Gatha | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. जंबुद्दीवे २. जोइस, ३. अंतरदीवा ३१. असोच्च ३२. गंगेय ।
३३. कुंडग्गामे ३४. पुरिसे, णवमम्मि सतम्मि चोत्तीसा ॥ Translated Sutra: १. जम्बूद्वीप, २. ज्योतिष, ३. से ३० तक (अट्ठाईस) अन्तर्द्वीप, ३१. अश्रुत्वा ३२. गांगेय, ३३. कुण्डग्राम, ३४. पुरुष। नौवें शतक में चौंतीस उद्देशक हैं। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-१ जंबुद्वीप | Hindi | 439 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला नामं नगरी होत्था–वण्णओ। माणिभद्दे चेतिए–वण्णओ। सामी समोसढे, परिसा निग्गता जाव भगवं गोयमे पज्जुवासमाणे एवं वदासी–कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे! किंसंठिए णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे?
एवं जंबुद्दीवपन्नत्ती भाणियव्वा जाव एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे चोद्दस सलिला-सयसहस्सा छप्पन्नं च सहस्सा भवंतीति मक्खाया।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: उस काल और उस समय में मिथिला नगरी थी। वहाँ माणिभद्र चैत्य था। महावीर स्वामी का समवसरण हुआ। परिषद् निकली। (भगवान् ने) – धर्मोपदेश दिया, यावत् भगवान् गौतम ने पर्युपासना करते हुए इस प्रकार पूछा – भगवन् ! जम्बूद्वीप कहाँ है ? (उसका) संस्थान किस प्रकार है ? गौतम ! इस विषय में जम्बूद्वीपप्रज्ञाप्ति में कहे अनुसार – जम्बूद्वीप | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-२ | Hindi | 440 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा? एवं जहा जीवाभिगमे जाव– Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने पूछा – भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं, और करेंगे ? जीवाभिगमसूत्रानुसार कहेना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१० |
उद्देशक-४ श्यामहस्ती | Hindi | 487 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से सामहत्थी अनगारे जायसड्ढे जाव उट्ठाए Translated Sutra: उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था (वर्णन) वहाँ द्युतिपलाश नामक उद्यान था। वहाँ श्रमण भगवान महावीर का समवसरण हुआ यावत् परीषद् आई और वापस लौट गई। उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीरस्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार थे। वे ऊर्ध्वजानु यावत् विचरण करते थे। उस काल और उस समय में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१० |
उद्देशक-६ सभा | Hindi | 490 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जातो भूमिभागातो उड्ढं एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव पंच वडेंसगा पन्नत्ता, तं जहा–असोगवडेंसए, सत्तवण्णवडेंसए, चंपगवडेंसए, चूयवडेंसए मज्झे, सोहम्मवडेंसए। से णं सोहम्म-वडेंसए महाविमाने अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र की सुधर्मासभा कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूभाग से अनेक कोटाकोटि योजन दूर ऊंचाई में सौधर्म नामक देवलोक में सुधर्मासभा है; इस प्रकार सारा वर्णन राजप्रश्नीयसूत्र के अनुसार जानना, यावत् पाँच अवतंसक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-९ शिवराजर्षि | Hindi | 508 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता दाहिणगं दिसं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ।
तए णं से सिवे रायरिसी तच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ।
तए णं से सिवे रायरिसि तच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव Translated Sutra: फिर मधु, घी और चावलों का अग्नि में हवन किया और चरु (बलिपात्र) में बलिद्रव्य लेकर बलिवैश्वदेव को अर्पण किया और तब अतिथि की पूजा की और उसके बाद शिवराजर्षि ने स्वयं आहार किया। तत्पश्चात् उन शिवराजर्षि ने दूसरी बेला अंगीकार किया और दूसरे बेले के पारणे के दिन शिवराजर्षि आतापनाभूमि से नीचे ऊतरे, वल्कल के वस्त्र | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-१० लोक | Hindi | 510 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कतिविहे णं भंते! लोए पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे लोए पन्नत्ते, तं जहा–दव्वलोए, खेत्तलोए, काललोए, भावलोए।
खेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अहेलोयखेत्तलोए, तिरियलोयखेत्तलोए, उड्ढलोयखेत्तलोए।
अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमापुढवि-अहेलोयखेत्तलोए।
तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! असंखेज्जविहे पन्नत्ते, तं जहा–जंबुद्दीवे दीवे तिरियलोयखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखेत्तलोए।
उड्ढलोयखेत्तलोए Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! लोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का है। यथा – द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक। भगवन् ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का। यथा – अधोलोक – क्षेत्रलोक, तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक और ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक। भगवन् ! अधोलोक – क्षेत्रलोक कितने प्रकार | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-१० लोक | Hindi | 511 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लोए णं भंते! केमहालए पन्नत्ते?
गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलससहस्साइं दोन्निय सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस अंगुलाइं अद्धंगुलगं च किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं।
तेणं कालेणं तेणं समएणं छ देवा महिड्ढीया जाव महासोक्खा जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए मंदरचलियं सव्वओ समंता संपरि-क्खित्ताणं चिट्ठेज्जा। अहे णं चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ चत्तारि बलिपिंडे गहाय जंबुद्दीवस्स दीवस्स चउसु वि दिसासु बहियाभिमुहीओ ठिच्चा ते चत्तारि बलिपिंडे Translated Sutra: भगवन् ! लोक कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप, समस्त द्वीप – समुद्रों के मध्य में है; यावत् इसकी परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। किसी काल और किसी समय महर्द्धिक यावत् महासुख – सम्पन्न छह देव, मन्दर पर्वत पर मन्दर की चूलिका | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-५ अतिपात | Hindi | 543 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! पाणाइवायवेरमणे, जाव परिग्गहवेरमणे, कोहविवेगे जाव मिच्छादंसणसल्लविवेगे–एस णं कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते?
गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते।
अह भंते! उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मया, पारिणामिया–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता?
गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता।
अह भंते! ओग्गहे, ईहा, अवाए, धारणा–एस णं कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नत्ता?
गोयमा! अवण्णा, अगंधा, अरसा, अफासा पन्नत्ता।
अह भंते! उट्ठाणे, कम्मे, बले, वीरिए, पुरिसक्कार-परक्कमे–एस णं कतिवण्णे जाव कति फासे पन्नत्ते?
गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे पन्नत्ते।
सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे कतिवण्णे Translated Sutra: भगवन् ! प्राणातिपात – विरमण यावत् परिग्रह – विरमण तथा क्रोधविवेक यावत् मिथ्यादर्शनशल्यविवेक, इन सबमें कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श कहे हैं ? गौतम ! (ये सभी) वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित कहे हैं। भगवन् ! औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी बुद्धि कितने वर्ण, गन्ध, रस | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१३ |
उद्देशक-४ पृथ्वी | Hindi | 573 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! लोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते?
गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए ओवासंतरस्स असंखेज्जइभागं ओगाहेत्ता, एत्थ णं लोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते।
कहि णं भंते! अहेलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते?
गोयमा! चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए ओवासंतरस्स सातिरेगं अद्धं ओगाहेत्ता, एत्थ णं अहेलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते।
कहि णं भंते! उड्ढलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते?
गोयमा! उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हेट्ठिं बंभलोए कप्पे रिट्ठविमाने पत्थडे, एत्थ णं उड्ढलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते
कहि णं भंते! तिरियलोगस्स आयाममज्झे पन्नत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स बहुमज्झदेसभाए Translated Sutra: भगवन् ! लोक के आयाम का (मध्यभाग) कहाँ कहा गया है ? गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के आकाश – खण्ड के असंख्यातवे भाग का अवगाहन करने पर लोक की लम्बाई का मध्यभाग कहा गया है। भगवन् ! अधोलोक की लम्बाई का मध्यभाग कहाँ कहा गया है ? गौतम ! चौथी पंकप्रभापृथ्वी के आकाशखण्ड के कुछ अधिक अर्द्धभाग का उल्लंघन करने के बाद, अधोलोक की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१३ |
उद्देशक-६ उपपात | Hindi | 585 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–संतरं भंते! नेरइया उववज्जंति? निरंतरं नेरइया उववज्जंति?
गोयमा! संतरं पि नेरइया उववज्जंति, निरंतरं पि नेरइया उववज्जंति। एवं असुरकुमारा वि। एवं जहा गंगेये तहेव दो दंडगा जाव संतरं पि वेमाणिया चयंति, निरंतरं पि वेमाणिया चयंति। Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर उत्पन्न होते रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी। असुरकुमार भी इसी तरह उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार जैसे नौवे शतक के बत्तीसवें गांगेय उद्देशक में उत्पाद और उद्वर्त्तना के सम्बन्ध में दो दण्डक कहे हैं, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१४ |
उद्देशक-८ अंतर | Hindi | 625 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! सालरुक्खे उण्हाभिहए तण्हाभिहए दवग्गिजालाभिहए कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! इहेव रायगिहे नगरे सालरुक्खत्ताए पच्चायाहिती। से णं तत्थ अच्चिय-वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहिय-पाडिहेरे लाउल्लोइयमहिए यावि भविस्सइ।
से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति।
एस णं भंते! साललट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे दीवे Translated Sutra: भगवन् ! सूर्य की गर्मी से पीड़ित, तृषा से व्याकुल, दावानल की ज्वाला से झुलसा हुआ यह शालवृक्ष काल मास में काल करके कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! यह शालवृक्ष, इसी राजगृहनगर में पुनः शालवृक्ष के रूपमें उत्पन्न होगा। वहाँ पर अर्चित, वन्दित, पूजित, सत्कृत, सम्मानित और दिव्य, सत्य, सत्यावपात, सन्निहित – प्रातिहार्य | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१४ |
उद्देशक-८ अंतर | Hindi | 626 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं भंते! उंबरलट्ठिया उण्हाभिहया तण्हाभिहया दवग्गिजालाभिहया कालमासे कालं किच्चा कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे पाडलिपुत्ते नगरे पाडलिरुक्खत्ताए पच्चायाहिति। से णं तत्थ अच्चिय-वंदिय-पूइय-सक्कारिय-सम्माणिए दिव्वे सच्चे सच्चोवाए सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइय-महिए यावि भविस्सइ।
से णं भंते! तओहिंतो अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गमिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं काहिति।
तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए Translated Sutra: भगवन् ! दृश्यमान सूर्य की उष्णता से संतप्त, तृषा से पीड़ित और दावानल की ज्वाला से प्रज्वलित यह उदुम्बरयष्टिका कालमास में काल करके कहाँ जाएगी ? कहाँ उत्पन्न होगी ? गौतम ! इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में पाटलिपुत्र नामक नगर में पाटली वृक्ष के रूप में पुनः उत्पन्न होगी। वह वहाँ अर्चित, वन्दित यावत् पूजनीय होगी। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 657 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते से णं भंते! गोसाले मंखलिपुत्ते कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने?
एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी कुसिस्से गोसाले नामं मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालमासे कालं किच्चा उड्ढं चंदिम-सूरिय जाव अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगतियाणं देवाणं बावीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। तत्थ णं गोसालस्स वि देवस्स बावीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
से णं भंते! गोसाले देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिति? कहिं उववज्जिहिति?
गोयमा! इहेव जंबुद्दीवे Translated Sutra: भगवन् ! देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य गोशालक मंखलिपुत्र काल के अवसर में काल करके कहाँ गया, कहाँ उत्पन्न हुआ ? हे गौतम ! वह ऊंचे चन्द्र और सूर्य का यावत् उल्लंघन करके अच्युतकल्प में देवरूप में उत्पन्न हुआ है। वहाँ गोशालक की स्थिति भी बाईस सागरोपम की है। भगवन् ! वह गोशालक देव उस देवलोक से आयुष्य, भव और स्थिति | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१५ गोशालक |
Hindi | 659 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले सन्निवेसे माहणकुलंसि दारियत्ताए पच्चायाहिति।
तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कवालभावं जोव्वणगमणुप्पत्तं पडिरूवएणं सुक्केणं, पडिरूवएणं विनएणं, पडिरूवयस्स भत्तारस्स भारियत्ताए दलइस्सति। सा णं तस्स भारिया भविस्सति–इट्ठा कंता जाव अणुमया, भंडकरंडगसमाणा तेल्लकेला इव सुसंगोविया, चेलपेडा इव सुसंपरिग्गहिया, रयणकरंडओ विव सुसारक्खिया, सुसंगोविया, मा णं सीयं, मा णं उण्हं जाव परिसहो-वसग्गा फुसंतु। तए णं सा दारिया अन्नदा कदायि गुव्विणी ससुरकुलाओ कुलघरं निज्जमाणी अंतरा दवग्गिजालाभिहया काल-मासे कालं Translated Sutra: वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल करके इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विन्ध्य – पर्वत के पादमूल में बेभेल सन्निवेश में ब्राह्मणकुल में बालिका के रूप में उत्पन्न होगा। वह कन्या जब बाल्यावस्था का त्याग करके यौवनवय को प्राप्त होगी, तब उसके माता – पिता उचित शुल्क और उचित विनय द्वारा पति को भार्या के रूप | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-२ जरा | Hindi | 667 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे जाव दिव्वाइ भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विपुलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति, एत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे। एवं जहा ईसाने तइयसए तहेव सक्के वि, नवरं–आभिओगे ण सद्दावेति, हरी पायत्ताणियाहिवई, सुघोसा घंटा, पालओ विमानकारी, पालगं विमाणं, उत्तरिल्ले निज्जाणमग्गे, दाहिणपुरत्थिमिल्ले रतिकरपव्वए, सेसं तं चेव जाव नामगं सावेत्ता पज्जुवासति। धम्मकहा जाव परिसा पडिगया।
तए णं से सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे समणं Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में शक्र देवेन्द्र देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर यावत् उपभोग करता हुआ विचरता था। वह इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की ओर अपने विपुल अवधिज्ञान का उपयोग लगा – लगाकर जम्बूद्वीप में श्रमण भगवान महावीर को देख रहा था। यहाँ तृतीय शतक में कथित ईशानेन्द्र की वक्तव्यता के समान शक्रेन्द्र कहना। विशेषता यह है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-५ गंगदत्त | Hindi | 674 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अन्नदा णं भंते! सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं वंदति नमंसति सक्कारेति जाव पज्जुवासति, किण्णं भंते! अज्ज सक्के देविंदे देवराया देवाणुप्पियं अट्ठ उक्खित्तपसिणवागरणाइं पुच्छइ, पुच्छित्ता संभंतियवंदनएणं वंदइ नमंसइ जाव पडिगए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाने दो देवा महिड्ढिया जाव महेसक्खा एगविमाणंसि देवत्ताए उववन्ना, तं जहा–मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए य, अमायिसम्मदिट्ठिउववन्नए य।
तए णं से मायिमिच्छदिट्ठिउववन्नए Translated Sutra: भगवन् ! गौतम ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार करके पूछा – भगवन् ! अन्य दिनों में देवेन्द्र देवराज शक्र (आता है, तब) आप देवानुप्रिय को वन्दन – नमस्कार करता है, आपका सत्कार – सन्मान करता है, यावत् आपकी पर्युपासना करता है; किन्तु भगवन् ! आज तो देवेन्द्र देवराज शक्र आप देवानुप्रिय से संक्षेप में आठ प्रश्नों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-५ गंगदत्त | Hindi | 676 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–गंगदत्तस्स णं भंते! देवस्स सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवानुभावे कहिं गते? कहिं अनुप्पविट्ठे?
गोयमा! सरीरं गए, सरीरं अनुप्पविट्ठे, कूडागारसालादिट्ठंतो जाव सरीरं अनुप्पविट्ठे। अहो णं भंते! गंगदत्ते देवे महिड्ढिए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे।
गंगदत्तेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुती से दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमन्नागए? पुव्वभवे के आसी? किं नामए वा? किं वा गोत्तेणं?
कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा Translated Sutra: भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से यावत् पूछा – ‘भगवन् ! गंगदत्त देव की वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति यावत् कहाँ गई, कहाँ प्रविष्ट हो गई ?’ गौतम ! यावत् उस गंगदत्त देव के शरीर में गई और शरीर में ही अनुप्रविष्ट हो गई। यहाँ कूटाकारशाला का दृष्टान्त, यावत् वह शरीर में अनुप्रविष्ट हुई, (तक समझना चाहिए।) | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-९ बलीन्द्र | Hindi | 687 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहिण्णं भंते! बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तिरियमसंखेज्जे जहेव चमरस्स जाव बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो रुयगिंदे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते। सत्तरस एक्कवीसे जोयणसए– एवं पमाणं जहेव तिगिच्छकूडस्स पासायवडेंगस्स वि तं चेव पमाणं, सीहासणं सपरिवारं बलिस्स परियारेणं, अट्ठो तहेव, नवरं–रुयगिंदप्पभाइं–रुयगिंदप्पभाइं–रुयगिंदप्पभाइं।
सेसं तं चेव जाव बलिचंचाए रायहानीए अन्नेसिं च जाव रुयगिंदस्स णं उप्पायपव्वयस्स उत्तरे णं छक्कोडिसए तहेव जाव Translated Sutra: भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की सुधर्मा सभा कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में तीरछे असंख्येय द्वीपसमुद्रों को उल्लंघ कर इत्यादि, चमरेन्द्र की वक्तव्यता अनुसार कहना; यावत् (अरुणवरद्वीप की बाह्य वेदिका से अरुणवरद्वीप समुद्र में) बयालीस हजार योजन अवगाहन करने के बाद वैरोचनेन्द्र | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-५ ईशान | Hindi | 708 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहिं णं भंते! ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जहा ठाणपदे जाव मज्झे ईसानवडेंसए।
से णं ईसानवडेंसए महाविमाने अद्धतेरसजोयणसय-सहस्साइं–एवं जहा दसमसए सक्कविमान-वत्तव्वया सा इह वि ईसानस्स निरवसेसा भाणियव्वा जाव आयरक्ख त्ति। ठिती सातिरेगाइं दो सागरोवमाइं, सेसं तं चेव जाव ईसाने देविंदे देवराया, ईसाने देविंदे देवराया।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान की सुधर्मा सभा कहाँ कही है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अत्यन्त सम रमणीय भूभाग से ऊपर चन्द्र और सूर्य का अतिक्रमण करके आगे जाने पर इत्यादि वर्णन यावत् प्रज्ञापना सूत्र के ‘स्थान’ पद के अनुसार, यावत् – मध्य भाग में ईशानावतंसक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-२ विशाखा | Hindi | 727 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। बहुपुत्तिए चेइए–वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे–एवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरं–एत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में विशाखा नामकी नगरी थी। वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य था। (वर्णन) एक बार वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत् परीषद् पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वीतिय उद्देशक में शक्रेन्द्र का जैसा वर्णन है, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-८ भूमि | Hindi | 794 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसु णं भंते! पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु अत्थि ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा?
हंता अत्थि। एएसु णं पंचसु महाविदेहेसु नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो
एएसु णं भंते! पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं पन्नवयंति?
नो इणट्ठे समट्ठे।
एएसु णं पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु, पुरिम-पच्छिमगा दुवे अरहंता भगवंतो पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं पण्णवयंति, अवसेसा णं अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पन्नवयंति। एएसु णं पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पन्नवयंति।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे Translated Sutra: भगवन् ! महाविदेह क्षेत्रों में अरहन्त भगवान सप्रतिक्रमण पंच – महाव्रत वाले धर्म का उपदेश करते हैं ? (गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं है। भरत तथा ऐरवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम ये दो अरहन्त भगवंत सप्रतिक्रमण पाँच महाव्रतोंवाले और शेष अरहन्त भगवंत चातुर्याम धर्म का उपदेश करते हैं और पाँच महाविदेह क्षेत्रों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-८ भूमि | Hindi | 796 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं केवतियं कालं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति?
गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति।
जहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं एगं वाससहस्सं पुव्वगए अनुसज्जिस्सति, तहा णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए अवसेसाणं तित्थगराणं केवतियं कालं पुव्वगए अनुसज्जित्था?
गोयमा! अत्थेगतियाणं संखेज्जं कालं, अत्थेगतियाणं असंखेज्जं कालं। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में इस अवसर्पिणीकाल में आप देवानुप्रिय का पूर्वगतश्रुत कितने काल तक रहेगा ? गौतम ! इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में मेरा पूर्वश्रुतगत एक हजार वर्ष तक रहेगा। भगवन् ! जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणीकाल में अवशिष्ट अन्य तीर्थंकरों का पूर्वगतश्रुत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-८ भूमि | Hindi | 797 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए देवानुप्पियाणं केवतियं कालं तित्थे अनुसज्जिस्सति?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए ममं एगवीसं वाससहस्साइं तित्थे अनुसज्जिस्सति। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में आप देवानुप्रिय का तीर्थ कितने काल तक रहेगा ? गौतम ! इक्कीस हजार वर्ष तक रहेगा। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-९ चारण | Hindi | 801 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! चारणा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा चारणा पन्नत्ता, तं जहा–विज्जाचारणा य, जंघाचारणा य।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–विज्जाचारणे-विज्जाचारणे?
गोयमा! तस्स णं छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं विज्जाए उत्तरगुणलद्धिं खममाणस्स विज्जाचारणलद्धी नामं लद्धी समुप्पज्जइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ– विज्जाचारणे-विज्जाचारणे।
विज्जाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गतो, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते?
गोयम! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। देवे णं महिड्ढीए जाव महेसक्खे जाव इणामेव-इणामेव त्ति कट्टु केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं तिहिं अच्यरानिवाएहिं Translated Sutra: भगवन् ! चारण कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा – विद्याचारण और जंघाचारण। भगवन् विद्याचारण मुनि को ‘विद्याचारण’ क्यों कहते हैं ? अन्तर – रहित छट्ठ – छट्ठ के तपश्चरणपूर्वक पूर्वश्रुतरूप विद्या द्वारा तपोलब्धि को प्राप्त मुनि को विद्याचारणलब्धि नामकी लब्धि उत्पन्न होती है। इस कारण से यावत् | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-८ चमरचंचा | Gujarati | 140 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अरणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसयसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तिगिंछिकूडे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते–सत्तरस-एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेणं चत्तारितीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं, मज्झे चत्तारि चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं, उवरिं सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं, दोन्निय बत्तीसुत्तरे Translated Sutra: ભગવન્ ! અસુરેન્દ્ર અસુરકુમારરાજ ચમરની સુધર્માસભા ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની દક્ષિણે તીર્છા અસંખ્ય દ્વીપ સમુદ્રો ગયા પછી અરુણવરદ્વીપના વેદિકાના બાહ્ય છેડાથી અરુણોદય સમુદ્રમાં ૪૨,૦૦૦ યોજન ગયા પછી આ અસુરેન્દ્ર અસુરકુમાર રાજ ચમરનો તિગિચ્છિકકૂટ નામે ઉત્પાતપર્વત છે. તે ૧૭૨૧ યોજન ઊંચો | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-९ समयक्षेत्र | Gujarati | 141 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किमिदं भंते! समयखेत्ते त्ति पवुच्चति?
गोयमा! अड्ढाइज्जा दीवा, दो य समुद्दा, एस णं एवइए समयखेत्तेति पवुच्चति।
तत्थ णं अयं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वब्भंतरे। एवं जीवाभिगमवत्तव्वया नेयव्वा जाव अब्भिंतर-पुक्खरद्धं जोइसविहूणं। Translated Sutra: ભગવન્ ! ક્યા ક્ષેત્રને સમયક્ષેત્ર કહે છે ? ગૌતમ ! અઢી દ્વીપ અને બે સમુદ્ર એટલું એ સમયક્ષેત્ર કહેવાય. તેમાં આ જંબૂદ્વીપ છે તે બધા દ્વીપ – સમુદ્રોની વચ્ચોવચ્ચ છે. એ પ્રમાણે બધુ જીવાભિગમ સૂત્ર મુજબ કહેવું યાવત્ અભ્યંતર – પુષ્કરાર્ધદ્વીપ. પણ તેમાં જ્યોતિષ્કની હકીકત ન કહેવી. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१० अस्तिकाय | Gujarati | 149 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? संखेज्जे भागे फुसति? असंखेज्जे भागे फुसति? सव्वं फुसति?
गोयमा! नो संखेज्जइभागं फुसति, असंखेज्जइभागं फुसति, नो संखेज्जे भागे फुसति, नो असंखेज्जे भागे फुसति, नो सव्वं फुसति।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घनोदही धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? संखेज्जे भागे फुसति? असंखेज्जे भागे फुसति? सव्वं फुसति?
जहा रयणप्पभा तहा घनोदहि-घनवाय-तणुवाया वि।
इमी से णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए ओवासंतरे धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૪૯. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વી શું ધર્માસ્તિકાયના સંખ્યાત ભાગને સ્પર્શે છે કે અસંખ્યાત ભાગને કે સંખ્યાત ભાગોને કે અસંખ્યાત ભાગોને કે તેને આખાને સ્પર્શે છે ? ગૌતમ ! તે સંખ્યાત ભાગને નથી સ્પર્શતી, પણ અસંખ્યાત ભાગને સ્પર્શે છે, સંખ્યાત ભાગો કે અસંખ્યાત ભાગો કે આખાને સ્પર્શતી નથી. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Gujarati | 152 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं मोया नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं मोयाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे नंदने नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे। परिसा निग्गच्छइ, पडिगया परिसा।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स दोच्चे अंतेवासी अग्गिभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वदासि– चमरे णं भंते! असुरिंदे असुरराया केमहिड्ढीए? केमहज्जुतीए? केमहाबले? केमहायसे? केमहासोक्खे? केमहानुभागे? केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए?
गोयमा! चमरे णं असुरिंदे असुरराया महिड्ढीए, महज्जुतीए, महाबले, महायसे, महासोक्खे, महानुभागे! Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે મોકા નામે નગરી હતી. નગરીનું વર્ણન ઉવાવાઈ સૂત્ર અનુસાર જાણવું. તે મોકા નગરી બહાર ઈશાનકોણમાં નંદન નામે ચૈત્ય હતું (વર્ણન કરવું) તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવાન મહાવીર સ્વામી સમોસર્યા(પધાર્યા), પર્ષદા ધર્મશ્રવણ માટે નીકળી, ધર્મ સાંભળી પર્ષદા પાછી ફરી. તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના બીજા શિષ્ય | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Gujarati | 153 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो सामानियदेवा एमहिड्ढीया जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुररन्नो तावत्तीसया देवा केमहिड्ढीया?
तावत्तीसया जहा सामाणिया तहा नेयव्वा। लोयपाला तहेव, नवरं–संखेज्जा दीव-समुद्दा भाणियव्वा।
जइ णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो लोगपाला देवा एमहिड्ढीया जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररन्नो अग्गमहिसीओ देवीओ केमहिड्ढियाओ जाव केवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए?
गोयमा! चमरस्स णं असुरिंदस्स असुररन्नो अग्गमहिसीओ देवीओ महिड्ढियाओ जाव महानु-भागाओ। ताओ णं तत्थ साणं-साणं भवणाणं, Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૩. ભગવન્ ! જો અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમર એવી મોટી ઋદ્ધિવાળો યાવત્ એવી વિકુર્વણાવાળો છે, તો ભગવન્ ! અસુરેન્દ્ર ચમરના સામાનિક દેવોની કેવી મોટી ઋદ્ધિ યાવત્ વિકુર્વણા શક્તિ છે ? ગૌતમ ! અસુરેન્દ્ર ચમરના સામાનિક દેવો મહર્દ્ધિક યાવત્ મહાનુભાગ છે, તેઓ ત્યાં પોત – પોતાના ભવનો ઉપર – સામાનિકો ઉપર – પટ્ટરાણી | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Gujarati | 156 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! सक्के देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासि तीसए नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडि-पुण्णाइं अट्ठ संवच्छराइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेत्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए सक्कस्स देविंदस्स Translated Sutra: ભગવન્ ! જો દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રની આવી મહાઋદ્ધિ યાવત્ આટલું વિકુર્વણા સામર્થ્ય છે, તો તેઓના તિષ્યક નામના સામાનિક દેવ, જે આપના તિષ્યક નામના અણગાર હતા. તેઓ પ્રકૃતિભદ્રક યાવત્ વિનિત નિરંતર છઠ્ઠ – છઠ્ઠના તપોકર્મપૂર્વક આત્માને ભાવતા, પ્રતિપૂર્ણ આઠ વર્ષ શ્રામણ્ય પર્યાય પાળીને, માસિક સંલેખના વડે આત્માને સંયોજી | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Gujarati | 157 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं तच्चे गोयमे वायुभूई अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी – जइ णं भंते! सक्के देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव एवइयं च णं पभू विकुव्वित्तए, ईसाने णं भंते! देविंदे देवराया केमहिड्ढीए? एवं तहेव, नवरं–साहिए दो केवलकप्पे जंबुद्दीवे दीवे, अवसेसं तहेव। Translated Sutra: ભગવન્ ! એમ કહી ત્રીજા ગૌતમ વાયુભૂતિ અણગારે ભગવંત મહાવીરને યાવત્ આ પ્રમાણે કહ્યું – ભગવન્ ! જો દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્ર આવો મહર્દ્ધિક યાવત્ આટલી વિકુર્વણા સામર્થ્યવાળો છે, ભગવન્ ! તો દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાન કેવો મહાઋદ્ધિક છે ? તેમજ જાણવુ. વિશેષ એ કે – સાધિક બે સંપૂર્ણ જંબૂદ્વીપ ભરવામાં સમર્થ છે. બાકી પૂર્વ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Gujarati | 158 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी कुरुदत्तपुत्ते नामं अनगारे पगतिभद्दए जाव विनीए अट्ठमंअट्ठमेणं अनिक्खित्तेणं, पारणए आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोक-म्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे बहुपडिपुण्णे छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणित्ता, अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेत्ता, तीसं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा ईसाने कप्पे सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૮. ભગવન્ ! જો દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાનની આવી મહાઋદ્ધિ અને આવું વિકુર્વણા સામર્થ્ય છે તો – આપ દેવાનુપ્રિયના શિષ્ય પ્રકૃતિ ભદ્રક યાવત્ વિનિત કુરુદત્તપુત્ર નામે સાધુ કે જે નિરંતર અઠ્ઠમ અઠ્ઠમ અને પારણે આયંબિલ સ્વીકારીને એ પ્રકારે કઠિન તપોકર્મથી આત્માને ભાવિતકરતા, ઊંચે હાથ રાખીને સૂર્યાભિમુખ રહી આતાપના | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Gujarati | 160 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ जाव परिसा पज्जुवासइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाने देविंदे देवराया ईसाने कप्पे ईसानवडेंसए विमाने जहेव रायप्पसेणइज्जे जाव दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसइबद्धं नट्टविहिं उवदंसित्ता जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए, तामेव दिसिं पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता। एवं वदासी–अहो णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। ईसानस्स णं भंते! सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे कहिं गते? कहिं अनुपविट्ठे?
गोयमा! Translated Sutra: (૧) તે કાળે તે સમયે રાજગૃહી નામે નગરી હતી. નગરી વર્ણન ‘ઉવાવાઈ’ સૂત્ર મુજબ જાણવું. ભગવાન મહાવીર પધાર્યા, પરિષદ(સભા)ધર્મ શ્રવણ માટે નીકળી યાવત પરિષદ ભગવંતને પર્યુપાસે છે. તે કાળે તે સમયે દેવેન્દ્ર દેવરાજ, શૂલપાણી, વૃષભવાહન, ઉત્તરાર્ધ – લોકાધિપતિ, ૨૮ લાખ વિમાનાવાસ અધિપતિ, આકાશસમ નિર્મલ વસ્ત્રધારી, માળાથી સુશોભિત, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा | Gujarati | 161 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचा रायहानी अणिंदा अपुरोहिया या वि होत्था।
तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं बालतवस्सिं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासि–
एवं खलु देवानुप्पिया! बलिचंचा रायहानी अणिंदा अपुरोहिया, अम्हे य णं देवानुप्पिया! इंदाहीणा इंदाहिट्ठिया इंदाहीणकज्जा, अयं च णं देवानुप्पिया! तामली बालतवस्सी तामलित्तीए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभागे नियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणाज्झूसणाज्झूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवण्णे, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं तामलिं Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬૧. ત્યારે તે બલિચંચા રાજધાનીમાં રહેનારા ઘણા અસુરકુમાર દેવ – દેવીઓએ તામલિ બાલતપસ્વીને અવધિ વડે જોયો. પછી પરસ્પર બોલાવીને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે દેવાનુપ્રિયો ! બલિચંચા રાજધાની ઇન્દ્ર, પુરોહિત રહિત છે હે દેવાનુપ્રિયો ! આપણે ઇન્દ્રાધીન અને ઇન્દ્રાધિષ્ઠિત છીએ. ઇન્દ્રના તાબે કાર્ય કરીએ છીએ. હે દેવાનુપ્રિયો | |||||||||
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शतक-३ |
उद्देशक-२ चमरोत्पात | Gujarati | 172 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरे णं भंते! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? पत्ते? अभिसमन्नागए?
एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए या वि होत्था।
तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं Translated Sutra: અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરે તે દિવ્ય દેવઋદ્ધિ યાવત્ ક્યાં લબ્ધ – પ્રાપ્ત – અભિસન્મુખ કરી ? ગૌતમ ! તે કાળે તે સમયે આ જ જંબૂદ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં વિંધ્યગિરિની તળેટીમાં બેભેલ નામે સંનિવેશ હતું. તેનું વર્ણન ઉવાવાઈ સૂત્રાનુસાર ચંપાનગરી મુજબ જાણવું. તે બેભેલ સંનિવેશે પૂરણ નામે ગૃહસ્થ રહેતો હતો, તે આઢ્ય, દિપ્ત યાવત્ | |||||||||
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शतक-३ |
उद्देशक-३ क्रिया | Gujarati | 183 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–कम्हा णं भंते! लवणसमुद्दे चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु अतिरेगे वड्ढइ वा? हायइ वा?
लवणसमुद्दवत्तव्वया नेयव्वा जाव लोयट्ठिई, लोयाणुभावे।
सेवं भंते! सेवं भंते? त्ति जाव विहरति। Translated Sutra: ભગવન્ ! એમ કહી ગૌતમસ્વામી શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને વાંદી – નમીને આમ કહ્યું – ભગવન્ ! લવણ સમુદ્રની વેળા(પાણી) ચૌદશ, આઠમ, પૂનમ અને અમાસે વધારે કેમ વધે છે કે ઘટે છે ? જીવાભિગમમાં જેમ લવણસમુદ્ર વક્તવ્યતા છે તે લોક – સ્થિતિ સુધી અહીં જાણવી. જ્યાં સુધી લવણસમુદ્ર જંબૂદ્વીપને ન ડૂબાડે કે લોકાનુભાવથી એકોદકં ન કરે ત્યાં | |||||||||
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शतक-३ |
उद्देशक-५ स्त्री | Gujarati | 189 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए?
नो इणट्ठे समट्ठे।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए?
हंता पभू।
अनगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइआइं पभू इत्थिरूवाइं विउव्वित्तए?
गोयमा! से जहानामए–जुवइं जुवाणे हत्थेणं हत्थंसि गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अणवारे वि भाविअप्पा वेउव्वियससमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा! अनगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थि-रूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૮૯. ભગવન્ ! ભાવિતાત્મા અણગાર, બાહ્ય પુદ્ગલો લીધા સિવાય એક મોટા સ્ત્રીરૂપને યાવત્ સ્યંદમાનિકા – રૂપને વિકુર્વવા સમર્થ છે ? ગૌતમ ! આ અર્થ સમર્થ નથી. ભગવન્ ! ભાવિતાત્મા અણગાર બાહ્ય પુદ્ગલો લઈને એક મહાસ્ત્રીરૂપ યાવત્ સ્યંદમાનિકા રૂપને વિકુર્વવા સમર્થ છે ? હા, ગૌતમ ! સમર્થ છે. ભગવન્ ! ભાવિતાત્મા અણગાર | |||||||||
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शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Gujarati | 194 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–सक्कस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कति लोगपाला पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा–सोमे जमे वरुणे वेसमणे।
एएसि णं भंते! चउण्हं लोगपालाणं कति विमाना पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि विमाना पन्नत्ता, तं जहा– संज्झप्पभे वरसिट्ठे सयंजले वग्गू।
कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो संज्झप्पभे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त तारारूवाणं बहूइं जोयणाइं जाव पंच वडेंसया पन्नत्ता, Translated Sutra: રાજગૃહનગરમાં યાવત્ પર્યુપાસના કરતા આ રીતે કહ્યું – ભગવન્ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રને કેટલા લોકપાલ છે? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – સોમ, યમ, વરુણ, વૈશ્રમણ. એ ચાર લોકપાલને કેટલા વિમાનો છે ? ગૌતમ ! ચાર, તે આ – સંધ્યાપ્રભ, વરશિષ્ટ, સ્વયંજલ, વલ્ગુ. ભગવન્ ! શક્રેન્દ્રના સોમ લોકપાલનું સંધ્યાપ્રભ નામક મહાવિમાન ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપમાં | |||||||||
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शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Gujarati | 195 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स दाहिणे णं सोहम्मे कप्पे असंखेज्जाइं जोयण-सहस्साइं वीईवइत्ता, एत्थ णं सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो वरसिट्ठे नामं महाविमाने पन्नत्ते–अद्धतेरसजोयणसयसहस्साइं–जहा सोमस्स विमाणं तहा जाव अभिसेओ। रायहानी तहेव जाव पासायपंतीओ।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो जमस्स महारन्नो इमे देवा आणा उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–जमकाइया इ वा, जमदेवयकाइया इ वा, पेतकाइया इ वा, पेतदेवयकाइया इ वा, असुरकुमारा, असुरकुमारीओ, कंदप्पा, निरयपाला, Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯૫. ભગવન્ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રના યમ લોકપાલનું વરશિષ્ટ નામે મહાવિમાન ક્યાં આવેલ છે ? ગૌતમ ! સૌધર્માવતંસક મહાવિમાનની દક્ષિણે સૌધર્મકલ્પથી અસંખ્ય હજાર યોજન ગયા પછી શક્રેન્દ્રના યમ લોકપાલનું વરશિષ્ટ નામક મહાવિમાન છે. તે ૧૨|| લાખ યોજન લાંબુ – પહોળું છે, ઇત્યાદિ ‘સોમ’ના વિમાન માફક યાવત્ અભિષેક, રાજધાની, | |||||||||
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शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Gujarati | 199 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो सयंजले नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स पच्चत्थिमे णं जहा सोमस्स तहा विमान-रायधानीओ भाणियव्वा जाव पासादवडेंसया, नवरं–नामनाणत्तं।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो इमे देवा आणाउववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–वरुणकाइया इ वा, वरुणदेवयकाइया इ वा, नागकुमारा, नागकुमारीओ, उदहि-कुमारा, उदहिकुमारीओ, थणियकुमारा, थणियकुमारीओ–जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया, तप्पक्खिया, तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो आणा-उववाय-वयण-निद्देसे Translated Sutra: ભગવન્ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રના વરુણ લોકપાલનું સ્વયંજલ નામક મહાવિમાન ક્યાં આવેલ છે ? ગૌતમ ! સૌધર્માવતંસક મહાવિમાનની પશ્ચિમે સૌધર્મકલ્પ છે, ત્યાંથી અસંખ્ય યોજન ગયા પછી યાવત્ બધું સોમ લોકપાલ જેમ જાણવું. તેમજ વિમાન, રાજધાની, યાવત્ પ્રાસાદાવતંસકો વિશે સમજવું, માત્ર નામમાં ફેરફાર છે. શક્રના વરુણ લોકપાલની | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-७ लोकपाल | Gujarati | 200 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो वग्गू नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! तस्स णं सोहम्मवडेंसयस्स महाविमानस्स उत्तरे णं जहा सोमस्स विमान-रायहाणि-वत्तव्वया तहा नेयव्वा जाव पासादवडेंसया।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो इमे देवा आणा-उववाय-वयण-निद्देसे चिट्ठंति, तं जहा–वेसमणकाइया इ वा, वेसमणदेवयकाइया इ वा, सुवण्णकुमारा, सुवण्णकुमारीओ, दीवकुमारा, दीवकुमारीओ, दिसाकुमारा, दिसाकुमारीओ, वाणमंतरा, वाणमंतरीओ–जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते तब्भत्तिया तप्पक्खिया तब्भारिया सक्कस्स देविंदस्स देवरन्नो वेसमणस्स महारन्नो आणा-उववाय-वयण-निद्देसे Translated Sutra: ભગવન્ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ શક્રના વૈશ્રમણ લોકપાલનું વલ્ગુ નામે મહાવિમાન ક્યાં છે ? ગૌતમ ! સૌધર્માવતંસક મહાવિમાન ની ઉત્તરે છે. બધી વક્તવ્યતા સોમલોકપાલના વિમાન, રાજધાની માફક અહીં જાણવી. યાવત્ પ્રાસાદાવતંસક. શક્રના વૈશ્રમણ લોકપાલની આજ્ઞા – ઉપપાત – વચન – નિર્દેશમાં આ દેવો રહે છે – વૈશ્રમણકાયિક, વૈશ્રમણ દેવ – | |||||||||
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शतक-४ |
उद्देशक-१ थी ८ लोकपाल विमान अने राजधानी | Gujarati | 208 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे नगरे जाव एवं वयासी–ईसानस्स णं भंते! देविंदस्स देवरन्नो कइ लोगपाला पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि लोगपाला पन्नत्ता, तं जहा–सोमे, जमे, वेसमणे, वरुणे।
एएसि णं भंते! लोगपालाणं कइ विमाना पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि विमाना पन्नत्ता, तं जहा–सुमणे, सव्वओभद्दे, वग्गू, सुवग्गू।
कहि णं भंते! ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो सोमस्स महारन्नो सुमणे नामं महाविमाने पन्नत्ते?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव ईसाने नामं कप्पे पन्नत्ते।
तत्थ णं जाव पंच वडेंसया पन्नत्ता, तं जहा– अंकवडेंसए, फलिहवडेंसए, रयणवडेंसए, जायरूव-वडेंसए, मज्झे ईसानवडेंसए।
तस्स Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: / ૨૦૯ અનુવાદ: રાજગૃહ નગરમાં યાવત્ ગૌતમસ્વામીએ આ પ્રમાણે પૂછ્યું – ભગવન્ ! દેવેન્દ્ર દેવરાજ ઈશાનને કેટલા લોકપાલો છે ? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – સોમ, યમ, વરુણ, વૈશ્રમણ. ભગવન્ ! આ લોકપાલોને કેટલા વિમાનો છે ? ગૌતમ ! ચાર. તે આ – સુમન, સર્વતોભદ્ર, વલ્ગુ, સુવલ્ગુ. ભગવન્ ! ઈશાનેન્દ્રના સોમ લોકપાલનું સુમન નામે | |||||||||
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शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Gujarati | 216 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं चंपाए नगरीए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था–वण्णओ। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं जाव एवं वयासी– जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिण-मागच्छंति, पाईण-दाहिणमुग्गच्छ दाहिण-पडीण-मागच्छंति, दाहिण-पडीणमुग्गच्छ पडीण-उदीण-मागच्छंति, पडीण-उदीण-मुग्गच्छ उदीचि-पाईणमागच्छंति?
हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ जाव उदीचि-पाईणमागच्छंति।
जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે ચંપા નામે નગરી હતી. (વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્ર અનુસાર જાણવું). તે ચંપાનગરી બહાર પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતુ (ચૈત્ય વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્ર અનુસાર જાણવું). કોઈ વખતે ભગવંત મહાવીર સ્વામી પધાર્યા. ભગવંતના વંદનાર્થે પર્ષદા નીકળી, ધર્મ શ્રવણ કરી પર્ષદા પાછી ગઈ. તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના મોટા શિષ્ય ગૌતમગોત્રીય | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Gujarati | 217 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि दिवसे भवइ; जया णं पच्चत्थिमे णं दिवसे भवइ, तया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ?
हंता गोयमा! जया णं जंबूदीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं दिवसे जाव उत्तर-दाहिणे णं राई भवइ।
जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणड्ढे उवकोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं उत्तरड्ढे वि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ; जया णं उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं जहन्निया Translated Sutra: *ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપમાં દક્ષિણાર્દ્ધમાં દિવસ હોય છે, ત્યારે ઉત્તરાર્ધમાં પણ દિવસ હોય છે, જ્યારે ઉત્તરાર્ધમાં પણ દિવસ હોય છે, ત્યારે જંબૂદ્વીપમાં મેરુની પૂર્વ – પશ્ચિમે રાત્રિ હોય છે ? હા, ગૌતમ ! જ્યારે જંબૂદ્વીપમાં દક્ષિણાર્ધમાં પણ દિવસ હોય ત્યારે યાવત્ પૂર્વ પશ્ચિમમાં રાત્રિ હોય છે. *ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Gujarati | 218 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं अणं-तपुरक्खडे समयंसि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ?
हंता गोयमा! जया णं जंबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तह चेव जाव पडिवज्जइ।
जया णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं पच्चत्थिमे ण वि वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ; जया णं पच्चत्थिमे णं वासाणं पढमे समए पडिवज्जइ, तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स Translated Sutra: *ભગવન્ ! જ્યારે જંબૂદ્વીપમાં દક્ષિણાર્ધમાં વર્ષાનો પ્રથમ સમય હોય ત્યારે ઉત્તરાર્ધમાં પણ વર્ષાનો પ્રથમ સમય હોય અને ઉત્તરાર્ધમાં વર્ષાનો પ્રથમ સમય હોય ત્યારે જંબૂદ્વીપના મેરુની પૂર્વ – પશ્ચિમે તે સમય પછી તુરંત જ વર્ષાનો આરંભ થાય ? હા, ગૌતમ ! એ પ્રમાણે જ હોય. *ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપના મેરુની પૂર્વે વર્ષાનો પ્રથમ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-१ सूर्य | Gujarati | 219 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणे णं भंते! समुद्दे सूरिया उदीण-पाईणमुग्गच्छ पाईण-दाहिणमागच्छंति, जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि भाणियव्वा, नवरं–अभिलावो इमो जाणियव्वो।
जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ, तं चेव जाव तदा णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं राई भवति।
एएणं अभिलावेणं नेयव्वं जाव जया णं भंते! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ; जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ, तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी अवट्ठिएणं तत्थ Translated Sutra: ભગવન્ ! લવણસમુદ્રમાં સૂર્ય ઈશાન ખૂણામાં ઊગીને અગ્નિ ખૂણામાં અસ્ત થાય છે? ઇત્યાદિ. ગૌતમ ! જેમ જંબૂદ્વીપનાં સૂર્યના સંબંધમાં કહ્યું તેમ બધું જ કથાન લવણ સમુદ્રનાં સૂર્યના સંબંધમાં પણ કહેવું. વિશેષ એ કે – આ વક્તવ્યતામાં જંબૂદ્વીપ શબ્દને સ્થાને લવણ સમુદ્ર શબ્દ કહેવો. તે આલાવો આમ કહેવો – ભગવન્ ! લવણસમુદ્રના દક્ષિણાર્ધમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-५ |
उद्देशक-५ छद्मस्थ | Gujarati | 241 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] छउमत्थे णं भंते! मनूसे तीयमनंतं सासयं समयं केवलेणं संजमेणं, केवलेणं संवरेणं, केवलेणं बंभचेरवासेनं, केवलाहिं पवयणमायाहिं सिज्झिंसु? बुज्झिंसु? मुच्चिंसु? परिनिव्वाइंसु? सव्व-दुक्खाणं अंतं करिंसु?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। जहा पढमसए चउत्थुद्देसे आलावगा तहा नेयव्वा जाव अलमत्थु त्ति वत्तव्वं सिया। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૪૧. ભગવન્ ! છદ્મસ્થ મનુષ્ય, વીતી ગયેલા શાશ્વતા અનંતકાળમાં માત્ર સંયમ વડે, સંવર વડે, બ્રહ્મચર્ય વડે અને માત્ર અષ્ટ પ્રવચનમાતા દ્વારા સિદ્ધ થયા છે ? – ગૌતમ ! તેમ શક્ય નથી. જેમ પહેલા શતકના ચોથા ઉદ્દેશાના આલાવા છે, તેમ યાવત્ ‘અલમસ્તુ’ કહ્યું ત્યાં સુધી જાણવું. સૂત્ર– ૨૪૨. ભગવન્ ! અન્યતીર્થિકો એમ કહે છે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-५ तमस्काय | Gujarati | 291 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किमियं भंते! तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति? किं पुढवी तमुक्काए त्ति पव्वच्चति? आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति?
गोयमा! नो पुढवि तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति, आऊ तमुक्काए त्ति पव्वुच्चति।
से केणट्ठेणं? गोयमा! पुढविकाए णं अत्थेगइए सुभे देसं पकासेइ, अत्थेगइए देसं नो पकासेइ। से तेणट्ठेणं।
तमुक्काए णं भंते! कहिं समुट्ठिए? कहिं संनिट्ठिए?
गोयमा! जंबूदीवस्स दीवस्स बहिया तिरियमसंखेज्जे दीव-समुद्दे वीईवइत्ता, अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साणि ओगाहित्ता उवरिल्लाओ जलंताओ एगपएसियाए सेढीए–एत्थ णं तमुक्काए समुट्ठिए।
सत्तरस-एक्कवीसे Translated Sutra: ભગવન્ ! આ તમસ્કાય શું છે ? શું પૃથ્વી કે પ્રાણી તમસ્કાય કહેવાય ? ગૌતમ ! પૃથ્વી તમસ્કાય ન કહેવાય, પણ પાણી ‘તમસ્કાય’ કહેવાય. ભગવન્ ! એમ શામાટે કહ્યું ? ગૌતમ ! કેટલોક પૃથ્વીકાય શુભ છે, તે અમુક ક્ષેત્રને પ્રકાશિત કરે છે, કેટલોક પૃથ્વીકાય એવો છે કે જે ક્ષેત્રના એક ભાગને પ્રકાશિત નથી કરતો, તેથી એમ કહ્યું. ભગવન્ ! તમસ્કાયના |