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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 37 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं नो सम्मं पट्ठविताइं भवंति।
एवं दंसनसावगोत्ति पढमा उवासगपडिमा। Translated Sutra: (उपासक प्रतिमा – १) क्रियावादी मानव सर्व (श्रावक श्रमण) धर्म रूचिवाला होता है। लेकिन सम्यक् प्रकार से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास का धारक नहीं होता (लेकिन) सम्यक् श्रद्धावाला होता है, यह प्रथम दर्शन – उपासक प्रतिमा जानना। (जो उत्कृष्ट से एक मास की होती है।) | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 38 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा दोच्चा उवासगपडिमा–
सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहो-ववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावकासियं नो सम्मं अनुपालित्ता भवति।
दोच्चा उवासगपडिमा। Translated Sutra: अब दूसरी उपासक प्रतिमा कहते हैं – वो सर्व धर्म रुचिवाला होता है। (शुद्ध सम्यक्त्व के अलावा यति (श्रमण) के दश धर्म की दृढ़ श्रद्धावाला होता है) नियम से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण और पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन करता है। लेकिन सामायिक और देसावगासिक का सम्यक् प्रतिपालन नहीं कर सकता। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 39 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा तच्चा उवासगपडिमा–
सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण- पोसहोववा-साइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दस-ट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं नो सम्मं अनुपालित्ता भवति।
तच्चा उवासगपडिमा। Translated Sutra: अब तीसरी उपासक प्रतिमा कहते हैं – वो सर्व धर्म रुचिवाला और पूर्वोक्त दोनों प्रतिमा का सम्यक् परिपालक होता है। वो नियम से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात – आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास का सम्यक् प्रकार से प्रतिपालन करता है। सामायिक और देसावकासिक व्रत का भी सम्यक् अनुपालक होता है। लेकिन वो चौदश, | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 40 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा चउत्था उवासगपडिमा–
सव्वधम्मरुई यावि भवति। तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोव-वासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठ मुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं नो सम्मं अनुपालेत्ता भवति। चउत्था उवासगपडिमा। Translated Sutra: अब चौथी उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाला (यावत् यह पहले कही गई तीनों प्रतिमा का उचित अनुपालन करनेवाला होता है।) वो नियम से बहुत शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास और सामायिक, देशावकासिक का सम्यक् परिपालन करता है। (लेकिन) एक रात्रि की उपासक प्रतिमा का सम्यक् परिपालन | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 41 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा पंचमा उवासगपडिमा– सव्वधम्मरुई यावि भवति।
तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोव-वासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति।
से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्ण-मासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति।
से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिनाणए वियडभोई मउलिकडे दियाबंभचारी रत्तिं परिमाणकडे। से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं पंचमासे विहरेज्जा।
पंचमा उवासगपडिमा। Translated Sutra: अब पाँचवी उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है। (यावत् पूर्वोक्त चार प्रतिमा का सम्यक् परिपालन करनेवाला होता है।) वो नियम से कईं शीलव्रत, गुणव्रत, प्राणातिपात आदि विरमण, पच्चक्खाण, पौषधोपवास का सम्यक् परिपालन करता है। वो सामायिक देशावकासिक व्रत का यथासूत्र, यथाकल्प, यथातथ्य, यथामार्ग | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 42 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा छट्ठा उवासगपडिमा– सव्वधम्म रुई यावि भवति।
तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति।
से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से अपरिण्णाते भवति। से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे विहरेज्जा।
छट्ठा उवासगपडिमा। Translated Sutra: अब छठ्ठी उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाला यावत् एक रात्रि की उपासक प्रतिमा का सम्यक् अनुपालन कर्ता होता है। वो स्नान न करनेवाला, दिन में ही खानेवाला, धोति की पाटली न बांधनेवाला, दिन और रात में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। लेकिन वो प्रतिज्ञापूर्वक सचित्त आहार का परित्यागी नहीं होता। इस | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 43 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा सत्तमा उवासगपडिमा–से सव्वधम्मरुई यावि भवति।
तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से अपरिण्णाते भवति। से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं सत्तमासे विहरेज्जा।
सत्तमा उवासगपडिमा। Translated Sutra: अब सातवीं उपासक प्रतिमा कहते हैं – वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है। यावत् दिन – रात ब्रह्मचारी और सचित्त आहार परित्यागी होता है। लेकिन गृह आरम्भ के परित्यागी नहीं होता। इस प्रकार के आचरण से विचरते हुए वह जघन्य से एक, दो या तीन दिन से उत्कृष्ट सात महिने तक सूत्रोक्त मार्ग अनुसार इस प्रतिमा का पालन करते हैं। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 44 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा अट्ठमा उवासगपडिमा–सव्वधम्मरुई यावि भवति।
तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति।
से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से अपरिण्णाते भवति। से णं एतारूवेणं विहारेणं विहरमाणे जहन्नेणं एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा, उक्कोसेणं अट्ठमासे विहरेज्जा।
अट्ठमा Translated Sutra: अब आठवीं उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है। यावत् दिन – रात ब्रह्मचर्य का पालन करता है। सचित्त आहार का और घर के सर्व आरम्भ कार्य का परित्यागी होता है। लेकिन अन्य सभी आरम्भ के परित्यागी नहीं होते। इस प्रकार के आचरणपूर्वक विचरते वह जघन्य से एक, दो, तीन यावत् आठ महिने तक सूत्रोक्त मार्ग | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 45 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा नवमा उवासगपडिमा–सव्वधम्मरुई यावि भवति।
तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति।
से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलि-कडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से परिण्णाते भवति, उद्दिट्ठभत्ते से अपरिण्णाते भवति। Translated Sutra: अब नौवीं उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व धर्म रूचिवाले होते हैं। यावत् दिन – रात पूर्ण ब्रह्मचारी, सचित्ताहार और आरम्भ के परित्यागी होते हैं। दूसरे के द्वारा आरम्भ करवाने के परित्यागी होते हैं। लेकिन उद्दिष्ट भक्त यानि अपने निमित्त से बनाए हुए भोजन करने का परित्यागी नहीं होता। इस प्रकार आचरणपूर्वक विचरते | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 46 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा दसमा उवासगपडिमा–सव्वधम्मरुई यावि भवति।
तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठ-पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति।
से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से परिण्णाते भवति, उद्दिट्ठभत्ते से परिण्णाते भवति। से णं खुरमुंडए वा छिधलिधारए वा। तस्स णं आभट्ठस्स समाभट्ठस्स कप्पंति Translated Sutra: अब दशवीं उपासक प्रतिमा कहते हैं – वो सर्व धर्म रूचिवाला होता है। (इसके पहले बताए गए नौ उपासक प्रतिमा का धारक होता है।) उद्दिष्ट भक्त – उसके निमित्त से बनाए भोजन – का परित्यागी होता है वो सिर पर मुंड़न करवाता है लेकिन चोटी रखता है। किसी के द्वारा एक या ज्यादा बार पूछने से उसे दो भाषा बोलना कल्पे। यदि वो जानता हो | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 47 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरा एक्कारसमा उवासगपडिमा–सव्वधम्मरुई यावि भवति।
तस्स णं बहूइं सील-व्वय-गुण-वेरमणपच्चक्खाण -पोसहोववासाइं सम्मं पट्ठविताइं भवंति। से णं सामाइयं देसावगासियं सम्मं अनुपालित्ता भवति। से णं चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठ-पुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहोववासं सम्मं अनुपालित्ता भवति।
से णं एगराइयं उवासगपडिमं सम्मं अनुपालेत्ता भवति। से णं असिणाणए वियडभोई मउलिकडे रातोवरातं बंभचारी। सचित्ताहारे से परिण्णाते भवति, आरंभे से परिण्णाते भवति, पेस्सारंभे से परि-ण्णाते भवति, उद्दिट्ठभत्ते से परिण्णाते भवति। से णं खुरमुंडए वा लुत्तसिरए वा गहितायारभंडगनेवत्थे जे इमे समणाणं Translated Sutra: अब ग्यारहवी उपासक प्रतिमा कहते हैं। वो सर्व (साधु – श्रावक) धर्म की रूचिवाला होने के बावजूद उक्त सर्व प्रतिमा को पालन करते हुए उद्दिष्ट भोजन परित्यागी होता है। वो सिर पर मुंड़न करवाता है या लोच करता है। वो साधु आचार और पात्र – उपकरण ग्रहण करके श्रमण – निर्ग्रन्थ का वेश धारण करता है। उनके लिए प्ररूपित श्रमणधर्म | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Hindi | 48 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुतं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पन्नत्ताओ।
कतराओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पन्नत्ताओ?
इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–मासिया भिक्खुपडिमा, दोमासिया भिक्खुपडिमा, तेमासिया भिक्खुपडिमा, चउमासिया भिक्खुपडिमा, पंचमासिया भिक्खुपडिमा, छम्मासिया भिक्खुपडिमा, सत्तमासिया भिक्खुपडिमा, पढमा सत्त-रातिंदिया भिक्खुपडिमा, दोच्चा सत्तरातिंदिया भिक्खुपडिमा, तच्चा सत्तरातिंदिया भिक्खुपडिमा, अहोरातिंदिया भिक्खुपडिमा, एगराइया भिक्खुपडिमा। Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सूना है। इस (जिन प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने निश्चय से बारह भिक्षु प्रतिमा बताई है। उस स्थविर भगवंत ने निश्चय से बारह भिक्षु प्रतिमा कौन – सी बताई है ? उस स्थविर भगवंत ने निश्चय से कही बारह भिक्षु – प्रतिमा इस प्रकार है – एक मासिकी, द्विमासिकी, त्रिमासिकी, | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Hindi | 49 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा– दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति।
मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स कप्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणगस्स अण्णाउंछं सुद्धोवहडं, निज्जूहित्ता बहवे दुपय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किवण-वनीमए, कप्पति से एगस्स भुंजमाणस्स पडिग्गाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचण्हं, नो गुव्विणीए, नो बालवच्छाए, नो दारगं पज्जेमाणीए, नो अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहट्टु दलमाणीए, नो बाहिं एलुयस्स Translated Sutra: मासिकी भिक्षु प्रतिमा को धारण करनेवाले साधु काया को वोसिरा के तथा शरीर के ममत्व भाव के त्यागी होते हैं। देव – मानव या तिर्यंच सम्बन्धी जो कोई उपसर्ग आता है उसे वो सम्यक् प्रकार से सहता है। उपसर्ग करनेवाले को क्षमा करते हैं, अदीन भाव से सहते हैं, शारीरिक क्षमतापूर्वक उसका सामना करता है। मासिक भिक्षु प्रतिमाधारी | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Hindi | 50 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दोमासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा –दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति। सेसं तं चेव, नवरं–दो दत्तीओ, तेमासियं तिण्णि दत्तीओ, चाउमासियं चत्तारि दत्तीओ, पंचमासियं पंच दत्तीओ, छम्मासियं छ दत्तीओ, सत्तमासियं सत्त दत्तीओ। जतिमासिया तत्तिया दत्तीओ। Translated Sutra: द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा धारक साधु हंमेशा काया के ममत्व का त्याग किया हुआ, इत्यादि सर्व कथन प्रथम भिक्षुप्रतिमा समान जानना। विशेष यह कि भोजन – पानी की दो दत्ति ग्रहण करना कल्पे तथा दूसरी प्रतिमा का पालन दो मास तक करे, इसी प्रकार से भोजन – पानी की एक एक दत्ति और एक – एक मास की प्रतिमा का पालन सात दत्ति पर्यन्त | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Hindi | 51 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमं सत्तरातिंदियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स निच्चं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्मं सहति खमति तितिक्खति अहियासेति।
कप्पति से चउत्थेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहानीए वा उत्ताणगस्स वा पासेल्लगस्स वा नेसज्जियस्स वा ठाणं ठाइत्तए। तत्थ दिव्व-मानुस-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा।
तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा कप्पति से पुव्वपडिलेहियंसि Translated Sutra: अब आठवीं भिक्षुप्रतिमा बताते हैं, प्रथम सात रात्रिदिन के आठवीं भिक्षुप्रतिमा धारक साधु सर्वदा काया के ममत्व रहित – यावत् उपसर्ग आदि को सहन करे वह सब प्रथम प्रतिमा समान जानना। उस साधु को निर्जल चोथ भक्त के बाद अन्न – पान लेना कल्पे, गाँव यावत् राजधानी के बाहर उत्तासन, पार्श्वासन या निषद्यासन से कायोत्सर्ग | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Hindi | 52 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अहोरातियावि, नवरं– छट्ठेणं भत्तेणं अपानएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा ईसिं दोवि पाए साहट्टु वग्घारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए। तत्थ दिव्व-मानुस्स-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा।
तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा, कप्पति से पुव्वपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिट्ठवित्तए, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए।
एवं खलु एसा अहोरातिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अनुपालिया यावि भवति।
एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस अनगारस्स निच्चं Translated Sutra: इसी प्रकार ग्यारहवीं – एक अहोरात्र की भिक्षुप्रतिमा के सम्बन्ध में जानना। विशेष यह कि निर्जल षष्ठभक्त करके अन्न – पान ग्रहण करना, गाँव यावत् राजधानी के बाहर दोनों पाँव सकुड़कर और दोनों हाथ घुटने पर्यन्त लम्बे रखकर कायोत्सर्ग करना। शेष पूर्ववत् यावत् जिनाज्ञानुसार पालन करनेवाला होता है। अब बारहवीं भिक्षुप्रतिमा | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ८ पर्युषणा |
Hindi | 53 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंच हत्थुत्तरे होत्था, तं जहा–हत्थुत्तराहिं चुए, चइत्ता गब्भं वक्कंते। हत्थुत्तराहिं गब्भातो गब्भं साहरिते। हत्थुत्तराहिं जाते। हत्थुत्तराहिं मुंडे भवित्ता अगारातो अणगारितं पव्वइए। हत्थुत्तराहिं अनंते अनुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने। सातिणा परिनिव्वुए भयवं जाव भुज्जो-भुज्जो उवदंसेइ।
Translated Sutra: उस काल, उस समय में श्रमण भगवान महावीर की पाँच घटनाएं उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुई। उत्तरा – फाल्गुनी नक्षत्र में – देवलोक से च्यवन, गर्भसंक्रमण, जन्म, दीक्षा तथा अनुत्तर अनंत अविनाशी निरावरण केवल ज्ञान और केवलदर्शन की प्राप्ति। भगवंत स्वाति नक्षत्र में परिनिर्वाण प्राप्त हुए। यावत् इस पर्युषणकल्प | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 54 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ। पुण्णभद्दे नाम चेइए–वण्णओ, कोणिए राया, धारिणी देवी, सामी समोसढे, परिसा निग्गया, धम्मो कहितो, परिसा पडिगया।
अज्जोति! समणे भगवं महावीरे बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वदासी–एवं खलु अज्जो! तीसं मोहणिज्जट्ठाणाइं, जाइं इमाइं इत्थी वा पुरिसो वा अभिक्खणं-अभिक्खणं आयरेमाणे वा समायरेमाणे वा मोहणिज्जत्ताए कम्मं पकरेइ, तं जहा– Translated Sutra: उस काल उस समय में चम्पानगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था। कोणिक राजा तथा धारिणी राणी थे। श्रमण भगवान महावीर वहाँ पधारे। पर्षदा नीकली। भगवंतने देशना दी। धर्म श्रवण करके पर्षदा वापिस लौटी। बहुत साधु – साध्वी को भगवंत ने कहा – आर्यो ! मोहनीय स्थान ३० हैं। जो स्त्री या पुरुष इस स्थान का बारबार सेवन करते हैं, वे महामोहनीय | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 55 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे केइ तसे पाणे, वारिमज्झे विगाहिया ।
उदएणक्कम्म मारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो कोई त्रस प्राणी को जल में डूबाकर मार डालते हैं, वे महामोहनीय कर्म का बन्ध करते हैं। प्राणी के मुख – नाक आदि श्वास लेने के द्वारों को हाथ से अवरुद्ध करके। अग्नि की धूम्र से किसी गृह में घीरकर मारे तो महामोहनीय कर्मबन्ध करे। सूत्र – ५५–५७ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 56 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पाणिणा संपिहित्ताणं, सोयमावरिय पाणिणं ।
अंतोनदंतं मारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५५ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 57 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जायतेयं समारब्भ, बहुं ओरुंभिया जणं ।
अंतोधूमेण मारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५५ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 58 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सीसम्मि जो पहणति, उत्तमंगम्मि चेतसा ।
विभज्ज मत्थगं फाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो कोई प्राणी को मस्तक पर शस्त्रप्रहार से भेदन करे, अशुभ परिणाम से गीला चर्म बांधकर मारे, छलकपट से किसी प्राणी को भाले या ड़ंडे से मार कर हँसता है, तो महामोहनीय कर्मबन्ध होता है। सूत्र – ५८–६० | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 59 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सीसावेढेण जे केइ, आवेढेति अभिक्खणं ।
तिव्वासुहसमायारे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५८ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 60 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुणो-पुणो पणिहीए, हणित्ता उवहसे जनं ।
फलेणं अदुव डंडेणं, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५८ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 61 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गूढाचारी निगूहेज्जा, मायं मायाए छायई ।
असच्चवाई निण्हाई, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो गूढ़ आचरण से अपने मायाचार को छूपाए, असत्य बोले, सूत्रों के यथार्थ को छूपाए, निर्दोष व्यक्ति पर मिथ्या आक्षेप करे या अपने दुष्कर्मों को दूसरे पर आरोपण करे, सभा मध्य में जान – बूझकर मिश्र भाषा बोले, कलहशील हो – वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ६१–६३ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 62 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धंसेति जो अभूतेणं, अकम्मं अत्तकम्मुणा ।
अदुवा तुमकासित्ति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६१ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 63 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जाणमाणो परिसाए, सच्चामोसाणि भासति ।
अज्झीणज्झंज्झे पुरिसे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६१ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 64 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनायगस्स नयवं, दारे तस्सेव धंसिया ।
विउलं विक्खोभइत्ताणं, किच्चाणं पडिबाहिरं ॥ Translated Sutra: जो अनायक मंत्री – राजा को राज्य से बाहर भेजकर राज्यलक्ष्मी का उपभोग करे, राणी का शीलखंड़न करे, विरोधकर्ता सामंतो की भोग्यवस्तु का विनाश करे तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ६४, ६५ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 65 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवकसंतंपि ज्झंपेत्ता, पडिलोमाहिं वग्गुहिं ।
भोगभोगे वियारेति, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] Translated Sutra: देखो सूत्र ६४ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 66 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अकुमारभूते जे केइ, कुमारभुतेत्तिहं वदे ।
इत्थीहिं गिद्धे विसए, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो बालब्रह्मचारी न होते हुए अपने को बालब्रह्मचारी कहे, स्त्री आदि के भोगो में आसक्त रहे, वह गायों के बीच गद्धे की प्रकार बेसूरा बकवास करता है। आत्मा का अहित करनेवाला वह मूर्ख मायामृषावाद और स्त्री आसक्ति से महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ६६–६८ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 67 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अबंभचारी जे केइ, बंभचारित्तिहं वदे ।
गद्दभे व्व गवं मज्झे, विस्सरं नदती नदं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६६ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 68 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अप्पणो अहिए वाले, मायामोसं बहुं भसे ।
इत्थीविसयगेहीए, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] Translated Sutra: देखो सूत्र ६६ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 83 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सढे नियडिपण्णाणे, कलुसाउलचेतसे ।
अप्पणो य अबोहीए, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] Translated Sutra: देखो सूत्र ८० | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 84 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे कहाधिकरणाइं, संपउंजे पुणो-पुणो ।
सव्वतित्थाण भेयाए, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: चतुर्विध श्रीसंघ में भेद उत्पन्न करने के लिए जो कलह के अनेक प्रसंग उपस्थित करता है, वह महा – मोहनीय कर्म बांधता है। | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 85 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य आधम्मिए जोए, संपउंजे पुणो-पुणो ।
सहाहेउं सहीहेउं, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो (वशीकरण आदि) अधार्मिक योग का सेवन, स्वसन्मान, प्रसिद्धि एवं प्रिय व्यक्ति को खुश करने के लिए बारबार विधिपूर्वक प्रयोग करे, जीवहिंसादि करके वशीकरण प्रयोग करे, प्राप्त भोगों से अतृप्त व्यक्ति, मानुषिक और दैवी भोगों की बारबार अभिलाषा करे वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ८५, ८६ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 86 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे य मानुस्सए भोगे, अदुवा पारलोइए ।
तेऽतिप्पयंतो आसयति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८५ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 87 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इड्ढी जुती जसो वण्णो, देवाणं बलवीरियं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो ऋद्धि, द्युति, यश, वर्ण एवं बल – वीर्य युक्त देवताओं का अवर्णवाद करता है, जो अज्ञानी पूजा की अभिलाषा से देव – यक्ष और असूरों को न देखते हुए भी मैं इन सबको देखता हूँ ऐसा कहे – वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ८७, ८८ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 88 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अपस्समाणो पस्सामि, देवे जक्खे य गुज्झगे ।
अन्नाणी जिनपूयट्ठी, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८७ | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 89 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एते मोहगुणा वुत्ता, कम्मंता वित्तवद्धणा ।
जे तु भिक्खू विवज्जेत्ता, चरेज्जऽत्तगवेसए ॥ Translated Sutra: ये तीस स्थान सर्वोत्कृष्ट अशुभ फल देनेवाले बताये हैं। चित्त को मलिन करते हैं, इसलिए भिक्षु इसका आचरण न करे और आत्मगवेषी होकर विचरे। | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 90 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं जाणिया इतो पुव्वं, किच्चाकिच्चं बहुं जढं ।
तं वंता ताणि सेविज्जा, तेहिं आयारवं सिया ॥ Translated Sutra: जो भिक्षु यह जानकर पूर्वकृत् कृत्य – अकृत्य का परित्याग करे, उन – उन संयम स्थानों का सेवन करे जिससे वह आचारवान बने, पंचाचार पालन से सुरक्षित रहे, अनुत्तरधर्म में स्थिर होकर अपने सर्व दोषों का परित्याग करे, जो धर्मार्थी, भिक्षु शुद्धात्मा होकर अपने कर्तव्यों का ज्ञाता होता है, उनकी इस लोक में कीर्ति होती है | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 91 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयार गुत्ते सुद्धप्पा, धम्मे ठिच्चा अनुत्तरे ।
ततो वमे सए दोसे, विसमासीविसो जहा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९० | |||||||||
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दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 92 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुवंतदोसे सुद्धप्पा, धम्मट्ठी विदितापरे ।
इहेव लभते कित्तिं, पेच्चा य सुगतिं वरं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९० | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 93 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं अभिसमागम्म, सूरा दढपरक्कमा ।
सव्वमोहविनिम्मुक्का, जातीमरणमतिच्छिया ॥
–त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: दृढ़, पराक्रमी, शूरवीर भिक्षु सर्व मोहस्थानो का ज्ञाता होकर उनसे मुक्त होता है, जन्म – मरण का अतिक्रमण करता है। ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 94 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ, गुणसिलए चेइए।
रायगिहे नगरे सेणिए नामं राया होत्था–रायवण्णओ एवं जहा ओववातिए जाव चेल्लणाए सद्धिं विहरति। Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। गुणशील चैत्य था। श्रेणिक राजा था। चेल्लणा रानी थी। (सब वर्णन औपपातिक सूत्रवत् जानना) | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 95 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे अन्नया कयाइ ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सिरसा कंठे मालकडे आवद्धमणि-सुवण्णे कप्पिय-हारद्धहार-तिसरय-पालंब-पलंबमाण-कडि-सुत्तय-सुकयसोभे पिणिद्धगेवेज्जे अंगुलेज्जगल-लियंगय-ललियकयाभरणे जाव कप्परुक्खए चेव अलंकित-विभूसिते नरिंदे सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं जाव ससिव्व पियदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासनवरंसि पुरत्थाभिमुहे निसीयति, निसीइत्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–
गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया! जाइं इमाइं रायगिहस्स Translated Sutra: तब उस राजा श्रेणिक – बिंबिसारने एक दिन स्नान किया, बलिकर्म किया, विघ्नशमन के लिए ललाट पर तिलक किया, दुःस्वप्न दोष निवारणार्थ प्रायश्चित्तादि विधान किये, गले में माला पहनी, मणि – रत्नजड़ित सुवर्ण के आभूषण धारण किये, हार – अर्धहार – त्रिसरोहार पहने, कटिसूत्र पहना, सुशोभित हुआ। आभूषण व मुद्रिका पहनी, यावत् कल्पवृक्ष | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 96 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे जाव गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति।
तते णं रायगिहे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु जाव परिसा निग्गता जाव पज्जुवासेति।
तते णं ते चेव महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति करेत्ता वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता नामगोयं पुच्छंति, पुच्छित्ता नामगोत्तं पधारेंति, पधारेत्ता एगततो मिलंति, मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, अवक्कमित्ता एवं वदासि–
जस्स णं देवाणुप्पिया Translated Sutra: उस काल उस समय में धर्म के आदिकर तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर विचरण करते हुए, यावत् गुणशील चैत्य में पधारे। उस समय राजगृह नगर के तीन रास्ते, चार रस्ते, चौक में होकर, यावत् पर्षदा नीकली, यावत् पर्युपासना करने लगी। श्रेणिक राजा के सेवक अधिकारी श्रमण भगवान महावीर के पास आए, प्रदक्षिणा की, वन्दन – नमस्कार किया, | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 97 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं से सेणिए राया तेसिं पुरिसाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण हियए सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जहा कोणिओ जाव वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता ते पुरिसे सक्कारेति सम्मानेति विपुलं जीवियारिहं पीतिदानं दलयति, दलयित्ता पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता नगरगुत्तियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–
खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! रायगिहं नगरं सब्भिंतर-बाहिरियं आसित्तसम्मज्जितोवलित्तं जाव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणति। Translated Sutra: उस समय राजा श्रेणिक इस संवाद को सुनकर – अवधारित कर हृदय से हर्षित एवं संतुष्ट हुआ यावत् सिंहासन से उठकर सात – आठ कदम चलके वन्दन – नमस्कार किए। उन सेवकों को सत्कार – सन्मान करके प्रीति पूर्वक आजीविका योग्य विपुल दान देकर विदा किए। नगर रक्षकों को बुलाकर कहा कि आप शीघ्र ही राजगृह नगर को बाहर से और अंदर से परिमार्जित | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 98 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं सेणिए राया बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हय-गय-रहजोहकलियं चाउरंगिणिं सेनं सन्नाहेहि जाव से वि पच्चप्पिणति।
तए णं से सेणिए राया जाणसालियं सद्दावेति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! धम्मियं जानप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेहि, उवट्ठवेत्ता मम एतमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि।
तते णं से जानसालिए सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जानसालं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जाणाइं पच्चुवेक्खति, पच्चुवेक्खित्ता Translated Sutra: उसके बाद श्रेणिक राजाने सेनापति को बुलाकर कहा – शीघ्र ही रथ, हाथी, घोड़ा एवं योद्धायुक्त चतुरंगिणी सेना को तैयार करो यावत् मेरी यह आज्ञापूर्वक कार्य हो जाने का निवेदन करो। उसके बाद राजा श्रेणिक ने यानशाला अधिकारी को बुलाकर श्रेष्ठ धार्मिक रथ सुसज्ज करने की आज्ञा दी। यानशाला अधिकारी भी हर्षित – संतुष्ट होकर | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 99 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया भिंभिसारे जानसालियस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवा-गच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम-जोग्ग-वग्गण-वामद्दणमल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपागसहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विंहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण-पाणि-पाय-सुउमाल-कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं Translated Sutra: श्रेणिक राजा बिंबिसार यानचालक से पूर्वोक्त बात सूनकर हर्षित तुष्टित हुआ। स्नानगृह में प्रविष्ट हुआ। यावत् कल्पवृक्ष समान अलंकृत एवं विभूषित होकर वह श्रेणिक नरेन्द्र, यावत् स्नानगृह से नीकला। चेल्लणादेवी के पास आया और चेल्लणा देवी को कहा – हे देवानुप्रिये ! श्रमण भगवान महावीर यावत् गुणशील चैत्य में | |||||||||
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दशा १0 आयति स्थान |
Hindi | 100 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तते णं सा चेल्लणा देवी सेणियस्स रन्नो अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिया पीइमना परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहिया सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति सेणियस्स रण्णो एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता जेणेव मज्जनघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ण्हाता कयबलिकम्मा कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ता।
किं ते? वरपायपत्तनेउर-मणिमेहल-हार-रइय-ओविय-कडग-खुड्ड-एगावली-कंठमुरज-तिसरय -वरवलय-हेमसुत्तय-कुंड-लुज्जोवियाणणा रयणभूसियंगी चीनंसुयं वत्थं परिहिता दुगुल्ल-सुकुमार-कंतरमणिज्ज-उत्तरिज्जा सव्वोउय-सुरभिकुसुम-सुंदररयित-पलंब-सोहंत-कंत-विकसंत-चित्तमाला Translated Sutra: राजा श्रेणिक से यह कथन सूनकर चेल्लणादेवी हर्षित हुई, संतुष्ट हुई यावत् स्नानगृह में जाकर स्नान कर के बलिकर्म किया, कौतुक – मंगल किया, अपने सुकुमार पैरों में झांझर, कमर में मणिजड़ित कन्दोरा, गले में एकावली हार, हाथ में कड़े और कंकण, अंगुली में मुद्रिका, कंठ से उरोज तक मरकतमणि का त्रिसराहार धारण किया। कान में पहने |