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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 377 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ठियासणत्था सइया परंमुही, सुयलंकरिया वा अनलंकरिया वा।
निक्खमाणा पमया हि दुब्बलं, मनुस्समालेह-गया वि करिस्सई॥ Translated Sutra: अलग आसन पर बैठी हुई, शयन में सोती हुई, मुँह फिराकर, अलंकार पहने हो या न पहने हो, प्रत्यक्ष न हो लेकिन तसवीर में बताई हो उनको भी प्रमाद से देखे तो दुर्बल मानव को आकर्षण करते हैं। यानि देखकर राग हुए बिना नहीं रहता। इसलिए गर्मी वक्त के मध्याह्न के सूर्य को देखकर जिस तरह दृष्टिबंध हो जाए, वैसे स्त्री को चित्रामणवाली | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 378 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] चित्त-भित्तिं न निज्झाए नारिं वा सुयलंकियं।
भक्खरं पि व दट्ठूणं दिट्ठिं पडिसमाहरे॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 379 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] हत्थ-पाय-पडिच्छिन्नं, कन्न-नासोट्ठि-वियप्पियं।
सडमाणी-कुट्ठवाहीए, तमवित्थीयं दूरयरेणं बंभयारी विवज्जए॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 380 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] थेर-भज्जा य जा इत्थी, पच्चंगुब्भड-जोव्वणा।
जुन्न-कुमारिं, पउत्थवइं, बाल-विहवं तहेव य॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 381 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अंतेउरवासिनी चेव, स-पर-पासंड-संस्रियं।
दिक्खियं साहुणी वा वि, वेसं तह य नपुंसगं॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 382 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] कण्हिं गोणिं खरिं चेव, वडवं अविलं अविं तहा।
सिप्पित्थिं पंसुलिं वा वि, जम्मरोगि-महिलं तहा॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 383 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] चिरे संसट्ठमचेल्लिक्कं-एमादीपावित्थिओ।
पगमंती जत्थ रयणीए अह पइरिक्के दिनस्स वा॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 384 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं वसहिं सन्निवेसं वा सव्वोवाएहिं सव्वहा।
दूरयर-सुदूर-दूरेणं बंभयारी विवज्जए॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 477 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा सव्वाइं सेयाइं बहु-विग्घाइं भवंति उ।
सेयाण परं सेयं सुयक्खंधं निव्विग्घं Translated Sutra: या तो श्रेयकारी – कल्याणकारी कार्य कईं विघ्नवाले होते हैं। श्रेय में भी श्रेय हो तो यह श्रुतस्कंध है, इसलिए उसे निर्विघ्न ग्रहण करना चाहिए। जो धन्य है, पुण्यवंत है वो ही इसे पढ़ सकते हैं। सूत्र – ४७७, ४७८ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ कुशील लक्षण |
Hindi | 478 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे धन्ने पुन्ने महानुभागे से वाइया ।
से भयवं केरिसं तेसिं कुसीलादीण लक्खणं ।
सम्मं विन्नाय जेणं तु सव्वहा ते विवज्जए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 773 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अइदुलहं भेसज्जं बल-बुद्धि-विवद्धणं पि पुट्ठिकरं।
अज्जा लद्धं भुज्जइ, का मेरा तत्थ गच्छम्मि॥ Translated Sutra: अति दुर्लभ बल – बुद्धि वृद्धि करनेवाले शरीर की पुष्टि करनेवाले औषध साध्वी ने पाए हो और साधु उसका इस्तमाल करे तो उस गच्छ में कैसे मर्यादा रहे ? शशक, भसक ही बहन सुकुमालिका की गति सुनकर श्रेयार्थी धार्मिक पुरुष को सहज भी (मोहनीयकर्म का) भरोसा मत करना। सूत्र – ७७३, ७७४ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 774 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोऊण गई सुकुमालियाए तह ससग-भसग-भइणीए।
ताव न वीससियव्वं सेयट्ठी धम्मिओ जाव॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७७३ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 779 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दिन-दिक्खियस्स दमगस्स अभिमुहा अज्ज चंदना अज्जा।
नेच्छइ आसन-गहणं सो विनओ सव्व-अज्जाणं॥ Translated Sutra: एक ही दिन के दीक्षित द्रमक साधु की सन्मुख चिरदीक्षित आर्या चंदनबाला साध्वी खड़ी होकर उसका सन्मान विनय करे और आसन पर न बैठे वो सब आर्या का विनय है। सौ साल के पर्यायवाले दीक्षित साध्वी हो और साधु आज से एक दिन का दीक्षित हो तो भी भक्ति पूर्ण हृदययुक्त विनय से साधु साध्वी को पूज्य है। सूत्र – ७७९, ७८० | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 780 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वास-सय-दिक्खियाए अज्जाए अज्ज-दिक्खिओ साहू।
भत्तिब्भर-निब्भराए वंदन-विनएण सो पुज्जो॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७७९ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 875 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आलावाओ पणओ, पणयाओ रेती, रतीए वीसंभो।
वीसंभाओ नेहो, पंचविहं वड्ढए पेम्मं॥ Translated Sutra: आलाप – बातचीत करने से प्रणय पैदा हो, प्रणय से रति हो, रति से भरोसा पैदा हो। भरोसे से स्नेह इस तरह पाँच तरह का प्रेम होता है। इस प्रकार वो नंदिषेण प्रेमपाश से बँधा होने के बाद भी शास्त्र में बताया श्रावकपन पालन करे और हररोज दश या उससे ज्यादा प्रतिबोध करके गुरु के पास दीक्षा लेने को भेजते थे। सूत्र – ८७५–८७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1077 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ता जे अविदिय-परमत्थे, गोयमा नो य जे मुणे।
तम्हा ते विवज्जेज्जा, दोग्गई-पंथ-दायगे॥ Translated Sutra: इसलिए जो परमार्थ को नहीं जानते और हे गौतम ! जो अज्ञानी हैं, वो दुर्गति के पंथ को देनेवाले ऐसे पृथ्वीकाय आदि कि विराधना गीतार्थ गुरु निश्रा में रहकर संयम आराधना करनी। गीतार्थ के वचन से हलाहल झहर का पान करना। किसी भी विकल्प किए बिना उनके वचन के मुताबिक तत्काल झहर का भी भक्षण कर लेना। परमार्थ से सोचा जाए तो वो विष | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1078 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गीयत्थस्स उ वयणेणं, विसं हलाहलं पि वा।
निव्विकप्पो पभक्खेज्जा, तक्खणा जं समुद्दवे॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1079 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ विसं तोसं, अमयरसायणं खु तं।
णिव्विकप्पं न संसारे, मओ वि सो अमयस्समो॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1080 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अगीयत्थस्स वयणेणं, अमयं पि न घोट्टए।
जेण अयरामरे हविया, जह किलाणो मरिज्जिया॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1081 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परमत्थओ न तं अमयं, विसं तं हलाहलं।
ण तेण अयरामरो होज्जा, तक्खणा निहणं वए॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1082 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अगीयत्थ-कुसीलेहिं संगं तिविहेण वज्जए।
मोक्ख-मग्गस्सिमे विग्घे, पहम्मी तेणगे जहा॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०७७ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ गीतार्थ विहार |
Hindi | 1174 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सईण सील-वंताणं मज्झे पढमा महाऽऽरिया।
धुरम्मि दियए रेहा एयं सग्गे वि घूसई॥ Translated Sutra: समग्र सती, शीलवंती के भीतर मैं पहली बड़ी साध्वी हूँ। रेखा समान मैं सब में अग्रेसर हूँ। उस प्रकार स्वर्ग में भी उद्घोषणा होती है। और मेरे पाँव की धूल को सब लोग वंदन करते हैं। क्योंकि उसकी रज से हर एक की शुद्धि होती है। उस प्रकार जगत में मेरी प्रसिद्धि हुई है। अब यदि मैं आलोचना दूँ। मेरा मानसिक दोष भगवंत के पास | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं चूलिका-१ एकांत निर्जरा |
Hindi | 1376 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कइविहं पायच्छित्तं उवइट्ठं गोयमा दसविहं पायच्छित्तं उवइट्ठं, तं च अनेगहा जाव णं पारंचिए। Translated Sutra: हे भगवंत ! कितने प्रकार के प्रायश्चित्त उपदिष्ट हैं ? हे गौतम ! दश प्रकार के प्रायश्चित्त उपदिष्ट हैं, वे पारंचित तक में कईं प्रकार का है। हे भगवंत ! कितने समय तक इस प्रायश्चित्त सूत्र के अनुष्ठान का वहन होगा ? हे गौतम ! कल्की नाम का राजा मर जाएगा। एक जिनालय से शोभित पृथ्वी होगी और श्रीप्रभ नाम का अणगार होगा तब तक | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-२ | Hindi | 76 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू लहुसगं फरुसं वयति, वयंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी थोड़ा लेकिन कठोर या असत्य वचन बोले, बुलवाए या बोलनेवाले की अनुमोदना करे (भाषा समिति का भंग होने से) तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ७६, ७७ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-५ | Hindi | 375 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू उद्देसियं सेज्जं अनुपविसति, अनुपविसंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी औदेशिक (साधु के निमित्त से बनी) सप्राभृतीक (साधु के लिए समय अनुसार परिवर्तन करके बनाई हुई), सपरिकर्म (लिंपण, गुंपण, रंगन आदि परिकर्म करके बनाई हुई) शय्या अर्थात् वसति या स्थानक में प्रवेश करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ३७५–३७७ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Hindi | 762 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू कट्ठकम्माणि वा चित्तकम्माणि वा पोत्थकम्माणि वा दंतकम्माणि वा मणिकम्माणि वा सेलकम्माणि वा गंथिमाणि वा वेढिमाणि वा पूरिमाणि वा संघातिमाणि वा पत्तच्छेज्जाणि वा विहाणि वा वेहिमाणि वा चक्खुदंसणपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी चक्षुदर्शन अर्थात् देखने की अभिलाषा से यहाँ कही गई दर्शनीय जगह देखने का सोचे या संकल्प करे, करवाए या अनुमोदना करे। लकड़े का कोतरकाम, तसवीरे, वस्त्रकर्म, लेपनकर्म, दाँत की वस्तु, मणि की चीज, पत्थरकाम, गूँथी – अंगूठी या कुछ भी भरके बनाई चीज, संयोजना से निर्मित पत्ते निर्मित या कोरणी, गढ़, तख्ता, छोटे | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Hindi | 778 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू दिवा गोमयं पडिग्गाहेत्ता दिवा कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिंपंतं वा विलिंपिंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी गोबर या विलेपन द्रव्य लाकर दूसरे दिन, दिन में लाकर रात को, रात को लाकर दिन में या रात को लाकर रात में, शरीर पर लगे घा, व्रण आदि एक या बार – बार लिंपन करे, करवाए या करनेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त। सूत्र – ७७८–७८५ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Hindi | 779 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू दिवा गोमयं पडिग्गाहेत्ता रत्तिं कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिंपंतं वा विलिंपंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ७७८ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Hindi | 780 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू रत्तिं गोमयं पडिग्गाहेत्ता दिवा कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिंपंतं वा विलिंपंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ७७८ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Hindi | 781 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू रत्तिं गोमयं पडिग्गाहेत्ता रतिं कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिंपंतं वा विलिंपंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ७७८ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Hindi | 782 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू दिवा आलेवणजायं पडिग्गाहेत्ता दिवा कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिंपंतं वा विलिंपंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ७७८ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Hindi | 783 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू दिवा आलेवणजायं पडिग्गाहेत्ता रत्तिं कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिंपंतं वा विलिंपंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ७७८ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Hindi | 784 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू रत्तिं आलेवणजायं पडिग्गाहेत्ता दिवा कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिंपंतं वा विलिंपंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ७७८ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१२ | Hindi | 785 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू रत्तिं आलेवणजायं पडिग्गाहेत्ता रत्तिं कायंसि वणं आलिंपेज्ज वा विलिंपेज्ज वा, आलिंपंतं वा विलिंपंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: देखो सूत्र ७७८ | |||||||||
Nishithasutra | निशीथसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-१७ | Hindi | 1247 | Sutra | Chheda-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू वप्पाणि वा फलिहाणि वा उप्पलाणि वा पल्ललाणि वा उज्झराणि वा निज्झराणि वा वावीणि वा पोक्खराणि वा दीहियाणि वा गुंजालियाणि वा सराणि वा सरपंतियाणि वा सरसरपंतियाणि वा कण्णसोयपडियाए अभिसंधारेति, अभिसंधारेंतं वा सातिज्जति। Translated Sutra: जो साधु – साध्वी दुर्ग, खाई यावत् विपुल अशन आदि का आदान – प्रदान होता हो ऐसे स्थान के शब्द को कान से श्रवण करने की ईच्छा या संकल्प प्रवृत्ति करे, करवाए, अनुमोदन करे तो प्रायश्चित्त। (उद्देशक – १२ में सूत्र ७६३ से ७७४ उन बारह सूत्र में इन सभी तरह के स्थान की समझ दी है। इस प्रकार समझ लेना। फर्क केवल इतना कि बारहवे | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
एषणा |
Hindi | 677 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] घासेसणा उ भावे होइ पसत्था तहेव अपसत्था ।
अपसत्था पंचविहा तव्विवरीया पसत्थाउ ॥ Translated Sutra: अप्रशस्त भावग्रासएषणा – उसके पाँच प्रकार हैं वो इस प्रकार – संयोजना, खाने के दो द्रव्य स्वाद के लिए इकट्ठे करना। प्रमाण – जरुरत से ज्यादा आहार खाना। अंगार – खाते समय आहार की प्रशंसा करना। धूम्र – खाते समय आहार की नींदा करना। कारण – आहार लेने के छह कारण सिवा आहार लेना। संयोजना यानि द्रव्य इकट्ठा करना। वो दो | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
संयोजना |
Hindi | 678 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दव्वे भावे संजोअणा उ दव्वे दुहा उदहि अंतो ।
मिक्खं चिय हिंडंतो संजोयंतंमि बाहिरिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६७७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
संयोजना |
Hindi | 679 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खीरदहिसूवकट्टरलंभे गुडसप्पिवडगवालुंके ।
अंतो उ तिहा पाए लंबण वयणे विभासा उ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६७७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
संयोजना |
Hindi | 680 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संयोयणाए दोसो जो संजोएइ भत्तपानं तु ।
दव्वाई रसहेउं वाघाओ तस्सिमो होइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६७७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
संयोजना |
Hindi | 681 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संजोयणा उ भावे संजोएऊण तानि दव्वाइं ।
संजोयइ कम्मेणं कम्मेण भवं तओ दुक्खं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६७७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
संयोजना |
Hindi | 682 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पत्ते य पउरलंभे मुत्तुव्वरिए य सेसगमनट्ठा ।
दिट्ठो संजोगो खलु अह कूकमो तस्सिमो होइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६७७ | |||||||||
Pindniryukti | पिंड – निर्युक्ति | Ardha-Magadhi |
संयोजना |
Hindi | 683 | Gatha | Mool-02B | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रसहेउं पडिसिद्धो संयोगो कप्पए गिलाणट्ठा ।
जस्स व अभत्तछंदो सुहोचिओऽभाविओ जो य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६७७ | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 177 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भूयत्थेणाधिगया, जीवाजीवा य पुण्णपावं च ।
सहसम्मुइयासवसंवरी य रोएइ उ निसग्गो ॥ Translated Sutra: जो व्यक्ति स्वमति से जीवादि नव तत्त्वों को तथ्य रूप से जान कर उन पर रुचि करता है, वह निसर्ग रुचि। जो व्यक्ति तीर्थंकर भगवान् द्वारा उपदिष्ट भावों पर स्वयमेव चार प्रकार से श्रद्धान् करता है, तथा वह वैसा ही है, अन्यथा नहीं, उसे निसर्गरुचि जानना। सूत्र – १७७, १७८ | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२ स्थान |
Hindi | 178 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो जिनदिट्ठे भावे, चउव्विहे सद्दहाइ सयमेव ।
एमेव नन्नह त्ति य, निस्सग्गरुइ त्ति नायव्वो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७७ | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Hindi | 297 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सव्वजीवप्पबहुं महादंडयं वत्तइस्सामि–१. सव्वत्थोवा गब्भक्कंतिया मनुस्सा, २. मनुस्सीओ संखेज्जगुणाओ, ३. बादरतेउक्काइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, ४. अनुत्तरोववाइया देवा असंखेज्जगुणा, ५. उवरिमगेवेज्जगा देवा संखे-ज्जगुणा, ६. मज्झिमगेवेज्जगा देवा संखेज्ज-गुणा, ७. हेट्ठिमगेवेज्जगा देवा संखेज्जगुणा, ८. अच्चुते कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ९. आरण कप्पे देवा संखेज्जगुणा, १०. पाणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ११. आणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ...
...१२. अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १३. छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १४. सहस्सारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, १५. Translated Sutra: हे भगवन् ! अब मैं समस्त जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण करने वाले महादण्डक का वर्णन करूँगा – १. सबसे कम गर्भव्युत्क्रान्तिक हैं, २. मानुषी संख्यातगुणी अधिक हैं, ३. बादर तेजस्कायिक – पर्याप्तक असंख्यात – गुणे हैं, ४. अनुत्तरौपपातिक देव असंख्यातगुणे हैं, ५. ऊपरी ग्रैवेयकदेव संख्यातगुणे हैं, ६. मध्यमग्रैवेयकदेव | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Gujarati | 297 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सव्वजीवप्पबहुं महादंडयं वत्तइस्सामि–१. सव्वत्थोवा गब्भक्कंतिया मनुस्सा, २. मनुस्सीओ संखेज्जगुणाओ, ३. बादरतेउक्काइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा, ४. अनुत्तरोववाइया देवा असंखेज्जगुणा, ५. उवरिमगेवेज्जगा देवा संखे-ज्जगुणा, ६. मज्झिमगेवेज्जगा देवा संखेज्ज-गुणा, ७. हेट्ठिमगेवेज्जगा देवा संखेज्जगुणा, ८. अच्चुते कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ९. आरण कप्पे देवा संखेज्जगुणा, १०. पाणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ११. आणए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, ...
...१२. अधेसत्तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १३. छट्ठीए तमाए पुढवीए नेरइया असंखेज्जगुणा, १४. सहस्सारे कप्पे देवा असंखेज्जगुणा, १५. Translated Sutra: ભગવન્ ! હવે સર્વ જીવોના અલ્પબહુત્વ મહાદંડકનું વર્ણન કરીશ. ૧ – સૌથી થોડાં ગર્ભજ મનુષ્યો છે, ૨ – માનુષી તેનાથી સંખ્યાતગણી છે, ૩ – પર્યાપ્તા બાદર તેઉકાયિક તેનાથી અસંખ્યાતગણા, ૪ – અનુત્તરોપપાતિક દેવો તેનાથી અસંખ્યાતગણા, ૫ – ઉપલી ગ્રૈવેયકના દેવો તેનાથી સંખ્યાતગણા, ૬ – મધ્યમ ગ્રૈવેયક દેવો તેનાથી સંખ્યાતગણા, ૭ | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 577 | View Detail | ||
Mool Sutra: न वि तं सत्थं च विसं च, दुप्पउतु व्व कुणइ वेयालो।
जंतं व दुप्पउत्तं, सप्पु व्व पमाइणो कुद्धो।।११।। Translated Sutra: दुष्प्रयुक्त शस्त्र, विष, भूत तथा दुष्प्रयुक्त यन्त्र तथा क्रुद्ध सर्प आदि प्रमादी का उतना अनिष्ट नहीं करते, जितना अनिष्ट समाधिकाल में मन में रहे हुए माया, मिथ्यात्व व निदान शल्य करते हैं। इससे बोधि की प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है तथा वह अनन्तसंसारी होता है। संदर्भ ५७७-५७८ | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Prakrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 578 | View Detail | ||
Mool Sutra: जं कुणइ भावसल्लं, अणुद्धियं उत्तमट्ठकालम्मि।
दुल्लहबोहीयत्तं, अणंतसंसारियत्तं च।।१२।। Translated Sutra: कृपया देखें ५७७; संदर्भ ५७७-५७८ | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 577 | View Detail | ||
Mool Sutra: नापि तत् शस्त्रं च विषं च, दुष्प्रयुक्तो वा करोति वैतालः।
यन्त्रं वा दुष्प्रयुक्तं, सर्पो वा प्रमादिनः क्रुद्धः।।११।। Translated Sutra: दुष्प्रयुक्त शस्त्र, विष, भूत तथा दुष्प्रयुक्त यन्त्र तथा क्रुद्ध सर्प आदि प्रमादी का उतना अनिष्ट नहीं करते, जितना अनिष्ट समाधिकाल में मन में रहे हुए माया, मिथ्यात्व व निदान शल्य करते हैं। इससे बोधि की प्राप्ति दुर्लभ हो जाती है तथा वह अनन्तसंसारी होता है। संदर्भ ५७७-५७८ | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३३. संलेखनासूत्र | Hindi | 578 | View Detail | ||
Mool Sutra: यत् करोति भावशल्य-मनुद्धृतमुत्तमार्थकाले।
दुर्लभबोधिकत्वं, अनन्तसंसारिकत्वं च।।१२।। Translated Sutra: कृपया देखें ५७७; संदर्भ ५७७-५७८ |