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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३२ गांगेय | Hindi | 453 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! पवेसणए पन्नत्ते?
गंगेया! चउव्विहे पवेसणए पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयपवेसणए, तिरिक्खजोणियपवेसणए, मनुस्स-पवेसणए, देवपवेसणए।
नेरइयपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गंगेया! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा– रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढवि-नेरइयपवेसणए।
एगे भंते! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होज्जा, सक्करप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा?
गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा।
दो भंते! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा?
गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा।
अहवा Translated Sutra: भगवन् ! प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! चार प्रकार का – नैरयिक प्रवेशनक, तिर्यग्योनिक – प्रवेशनक, मनुष्य – प्रवेशनक और देव – प्रवेशनक। भगवन् ! नैरयिक – प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! सात प्रकार का – रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमपत्रथ्वीनैरयिक – प्रवेशनक। भंते ! क्या एक नैरयिक जीव नैरयिक – प्रवेशनक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३२ गांगेय | Hindi | 454 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गंगेया! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए जाव पंचिंदियतिरिक्ख-जोणियपवेसणए।
एगे भंते! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणियपवेसणएणं पविसमाणे किं एगिंदिएसु होज्जा जाव पंचिंदिएसु होज्जा?
गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा।
दो भंते! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं–पुच्छा।
गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। अहवा एगे एगिंदिएसु होज्जा एगे बेइंदिएसु होज्जा, एवं जहा नेरइयपवेसणए तहा तिरिक्खजोणियपवेसणए वि भाणियव्वे जाव असंखेज्जा।
उक्कोसा भंते! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं–पुच्छा।
गंगेया! Translated Sutra: भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? पांच प्रकार का – एकेन्द्रियतिर्यञ्चयो – निकप्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक – प्रवेशनक। भगवन् ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय जीवो में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३२ गांगेय | Hindi | 455 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गंगेया! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–समुच्छिममनुस्सपवेसणए, गब्भवक्कंतियमनुस्सपवेसणए य।
एगे भंते! मनुस्से मनुस्सपवेसणएणं पविसमाणे किं संमुच्छिममनुस्सेसु होज्जा? गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु होज्जा?
गंगेया! संमुच्छिममनुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु वा होज्जा।
दो भंते! मनुस्सा–पुच्छा।
गंगेया! संमुच्छिममनुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु वा होज्जा। अहवा एगे संमुच्छिममनुस्सेसु होज्जा एगे गब्भव-क्कंतियमनुस्सेसु होज्जा, एवं एएणं कमेणं जहा नेरइयपवेसणए तहा मनुस्सपवेसणए वि भाणियव्वे जाव दस।
संखेज्जा भंते! Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्यप्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? गांगेय ! दो प्रकार का है, सम्मूर्च्छिममनुष्य – प्रवेशनक ओर गर्भजमनुष्य – प्रवेशनक। भगवन् ! दो मनुष्य, मनुष्य – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या सम्मूर्च्छिम मनुष्यो में उत्पन्न होते है ? इत्यादि (पूर्ववत) प्रश्न। गांगेय ! दो मनुष्य या तो सम्मूर्च्छिममनुष्य | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३२ गांगेय | Hindi | 456 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] देवपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गंगेया! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–भवनवासिदेवपवेसणए जाव वेमानियदेवपवेसणए।
एगे भंते! देवे देवपवेसणएणं पविसमाणे किं भवनवासीसु होज्जा? वाणमंतर जोइसिय वेमाणिएसु होज्जा?
गंगेया! भवनवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा होज्जा।
दो भंते! देवा देवपवेसणएणं–पुच्छा।
गंगेया! भवनवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा होज्जा। अहवा एगे भवनवासीसु एगे वाणमंतरेसु होज्जा, एवं जहा तिरिक्खजोणियपवेसणए तहा देवपवेसणए वि भाणियव्वे जाव असंखेज्ज त्ति।
उक्कोसा भंते! –पुच्छा।
गंगेया! सव्वे वि ताव जोइसिएसु होज्जा, अहवा जोइसिय-भवनवासीसु Translated Sutra: भगवन् ! देव – प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! चार प्रकार का – भावनवासीदेव – प्रवेशनक, वाणव्यन्तरदेव – प्रवेशनक, ज्योतिष्कदेव – प्रवेशनक और वैमानिकदेव – प्रवेशनक। भगवन् ! एक देव, देव – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या भवनवासी देवों में, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक देवों में होता है ? गांगेय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३४ पुरुषघातक | Hindi | 471 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–पुरिसे णं भंते! पुरिसं हणमाणे किं पुरिसं हणइ? नोपुरिसे हणइ?
गोयमा! पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ?
गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि, से णं एगं पुरिसं हणमाणे अनेगे जीवे हणइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ।
पुरिसे णं भंते! आसं हणमाणे किं आसं हणइ? नोआसे हणइ?
गोयमा! आसं पि हणइ, नोआसे वि हणइ। से केणट्ठेणं?
अट्ठो तहेव। एवं हत्थि, सीहं, वग्घं जाव चिल्ललगं।
पुरिसे णं भंते! इसिं हणमाणे किं इसिं हणइ? नोइसिं हणइ?
गोयमा! इसिं पि हणइ, Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। वहाँ भगवान् गौतम ने यावत् भगवान् से पूछा – भगवन् ! कोई पुरुष पुरुष की घात करता हुआ क्या पुरुष की ही घात करता है अथवा नोपुरुष की भी घात करता है ? गौतम ! वह पुरुष का भी घात करता है और नोपुरुष का। भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं एक ही | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१० |
उद्देशक-१ दिशा | Hindi | 475 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–किमियं भंते! पाईणा ति पवुच्चइ? गोयमा! जीवा चेव, अजीवा चेव।
किमियं भंते! पडीणा ति पवुच्चइ?
गोयमा! एवं चेव। एवं दाहिणा, एवं उदीणा, एवं उड्ढा, एवं अहो वि।
कति णं भंते! दिसाओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! दस दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–१. पुरत्थिमा २. पुरत्थिमदाहिणा ३. दाहिणा ४. दाहिणपच्चत्थिमा ५. पच्चत्थिमा ६. पच्चत्थिमुत्तरा ७. उत्तरा ८. उत्तरपुरत्थिमा ९. उड्ढा १. अहो।
एयासि णं भंते! दसण्हं दिसाणं कति नामधेज्जा पन्नत्ता?
गोयमा! दस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–
इंदा अग्गेयो जम्मा, य नेरई वारुणी य वायव्वा । सोमा ईसाणी या, विमला य तमा य बोद्धव्वा ॥
इंदा णं भंते! दिसा किं १. जीवा Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! यह पूर्वदिशा क्या कहलाती है ? गौतम! यह जीवरूप भी है और अजीवरूप भी है। भगवन् ! पश्चिमदिशा क्या कहलाती है ? गौतम ! यह भी पूर्वदिशा के समान जानना। इसी प्रकार दक्षिणदिशा, उत्तरदिशा, उर्ध्वदिशा और अधोदिशा के विषय में भी जानना चाहिए। भगवन् ! दिशाऍं कितनी कही | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-१ उत्पल | Hindi | 498 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–उप्पले णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे? अनेगजीवे?
गोयमा! एगजीवे, नो अनेगजीवे। तेण परं जे अन्ने जीवा उववज्जंति ते णं नो एगजीवा अनेगजीवा।
ते णं भंते! जीवा कतोहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ भाणियव्वो जहा वक्कंतीए वणस्सइकाइयाणं जाव ईसानेति।
ते णं भंते! जीवा एगसमए णं केवइया उववज्जंति?
गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! एक पत्र वाला उत्पल एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला ? गौतम ! एक जीव वाला है, अनेक जीव वाला नहीं। उसके उपरांत जब उस उत्पल में दूसरे जीव उत्पन्न होते हैं, तब वह एक जीव वाला नहीं रहकर अनेक जीव वाला बन जाता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-१० लोक | Hindi | 510 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कतिविहे णं भंते! लोए पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे लोए पन्नत्ते, तं जहा–दव्वलोए, खेत्तलोए, काललोए, भावलोए।
खेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अहेलोयखेत्तलोए, तिरियलोयखेत्तलोए, उड्ढलोयखेत्तलोए।
अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमापुढवि-अहेलोयखेत्तलोए।
तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! असंखेज्जविहे पन्नत्ते, तं जहा–जंबुद्दीवे दीवे तिरियलोयखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखेत्तलोए।
उड्ढलोयखेत्तलोए Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! लोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का है। यथा – द्रव्यलोक, क्षेत्रलोक, काललोक और भावलोक। भगवन् ! क्षेत्रलोक कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकार का। यथा – अधोलोक – क्षेत्रलोक, तिर्यग्लोक – क्षेत्रलोक और ऊर्ध्वलोक – क्षेत्रलोक। भगवन् ! अधोलोक – क्षेत्रलोक कितने प्रकार | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-४ पुदगल | Hindi | 538 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–दो भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, साहण्णित्ता किं भवइ?
गोयमा! दुप्पएसिए खंधे भवइ। से भिज्जमाणे दुहा कज्जइ–एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ परमाणुपोग्गले भवइ।
तिन्नि भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, साहणित्ता किं भवइ?
गोयमा! तिपएसिए खंधे भवइ। से भिज्जमाणे दुहा वि तिहा वि कज्जइ–दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए खंधे भवइ। तिहा कज्जमाणे तिन्नि परमाणुपोग्गला भवंति।
चत्तारि भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, साहणित्ता किं भवइ?
गोयमा! चउपएसिए खंधे भवइ। से भिज्जमाणे दुहा वि तिहा वि चउहा वि कज्जइ–दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, Translated Sutra: राजगृह नगर में, यावत् गौतमस्वामी ने पूछा – भगवन् ! दो परमाणु जब संयुक्त होकर एकत्र होते हैं, तब उनका क्या होता है ? गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध बन जाता है। यदि उसका भेदन हो तो दो विभाग होने पर एक ओर एक परमाणु – पुद्गल और दूसरी ओर भी एक परमाणु – पुद्गल हो जाता है। भगवन् ! जब तीन परमाणु एक रूप में इकट्ठे होते हैं, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-८ लोक | Hindi | 683 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केमहालए णं भंते! लोए पन्नत्ते?
गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्ते, जहा बारसमसए तहेव जाव असंखेज्जाओ जोयण-कोडाकोडीओ परिक्खेवेणं।
लोयस्स णं भंते! पुरत्थिमिल्ले चरिमंते किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपदेसा?
गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं एगिंदियदेसा य, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियस्स य देसे–एवं जहा दसमसए अग्गेयी दिसा तहेव, नवरं–देसेसु अनिंदियाण आ-इल्लविरहिओ। जे अरूवी अजीवा ते छव्विहा, अद्धासमयो नत्थि। सेसं तं चेव निरवसेसं।
लोगस्स णं भंते! दाहिणिल्ले चरिमंते किं जीवा? एवं चेव। एवं पच्चत्थिमिल्ले Translated Sutra: भगवन् ! लोक कितना विशाल कहा गया है ? गौतम ! लोक अत्यन्त विशाल कहा गया है। इसकी समस्त वक्तव्यता बारहवें शतक अनुसार कहना। भगवन् ! क्या लोक के पूर्वीय चरमान्त में जीव हैं, जीवदेश हैं, जीवप्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं और अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, परन्तु जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 906 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कतिसु नाणेसु होज्जा?
गोयमा! दोसु वा तिसु वा होज्जा। दोसु होमाणे दोसु आभिनिबोहियनाणसुयनाणेसु होज्जा, तिसु होमाणे तिसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा। एवं बउसे वि। एवं पडिसेवणा-कुसीले वि।
कसायकुसले णं–पुच्छा।
गोयमा! दोसु वा तिसु वा चउसु वा होज्जा। दोसु होमाणे दोसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाणेसु होज्जा, तिसु होमाणे तिसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा, अहवा तिसु होमाणे आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-मनपज्जवनाणेसु होज्जा, चउसु होमाणे चउसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाण-मनपज्जवनाणेसु होज्जा। एवं नियंठे वि।
सिणाए णं–पुच्छा।
गोयमा! एगम्मि केवलनाणे Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक में कितने ज्ञान होते हैं ? गौतम ! पुलाक में दो या तीन ज्ञान होते हैं। यदि दो ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान होते हैं। यदि तीन ज्ञान हों तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होता है। इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवनाकुशील के विषय में जानना चाहिए। भगवन् ! कषायकुशील में कितने ज्ञान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२८ जीव आदि जाव |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 992 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु?
गोयमा! १. सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा २. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य होज्जा ३. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ४. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य देवेसु य होज्जा ५. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ६. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य नेरइएसु य देवेसु य होज्जा ७. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा ८. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा।
सलेस्सा णं भंते! जीवा पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु? एवं चेव। एवं कण्हलेस्सा जाव अलेस्सा। कण्हपक्खिया, Translated Sutra: भगवन् ! जीवों ने किस गति में पापकर्म का समर्जन किया था और किस गति में आचरण किया था ? गौतम! सभी जीव तिर्यंचयोनिकों में थे अथवा तिर्यंचयोनिकों और नैरयिकों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों और देवों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, नैरयिकों और मनुष्यों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Gujarati | 63 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि समयाहियाए जहन्नट्ठितीए वट्ठमाणा नेरइया किं– कोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता?
गोयमा! कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ते य, मायोवउत्ते य, लोभोवउत्ते य। कोहोवउत्ता य, मानोवउत्ता य, मायोवउत्ता य, लोभोवउत्ता य। अहवा कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ते य। अहवा कोहोवउत्ते य, मानोवउत्ता य। एवं असीतिभंगा नेयव्वा।
एवं जाव संखेज्जसमयाहियाए ठितीए, असंखेज्जसमयाहियाए ठितीए तप्पाउग्गुक्को-सियाए ठितीए सत्तावीसं भंगा भाणियव्वा
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि Translated Sutra: ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં ૩૦ લાખ નરકાવાસોમાં એક – એક નરકાવાસમાં નૈરયિકોના અવગાહના સ્થાન કેટલા છે ? ગૌતમ ! અસંખ્યાત અવગાહના સ્થાનો છે. તે આ – જઘન્ય અવગાહના, પ્રદેશાધિક જઘન્ય અવગાહના, દ્વિપ્રદેશાધિક જઘન્ય અવગાહના યાવત્ અસંખ્યાત પ્રદેશાધિક જઘન્યાવગાહના, તેને પ્રાયોગ્ય ઉત્કૃષ્ટ અવગાહના. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Gujarati | 66 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउसट्ठीए णं भंते! असुरकुमारावाससयसहस्सेसु एवमेगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकुमाराणं केवइया ठिति-ट्ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पन्नत्ता। जहन्निया ठिई जहा नेरइया तहा, नवरं–पडिलोमा भंगा भाणियव्वा।
सव्वे वि ताव होज्ज लोभोवउत्ता।
अहवा लोभोवउत्ता य, मायोवउत्ते य। अहवा लोभोवउत्ता य, मायोवउत्ता य। एएणं गमेणं नेयव्वं जाव थणियकुमारा, नवरं–नाणत्तं जाणियव्वं। Translated Sutra: ભગવન્ ! ૬૪ લાખ અસુરકુમારાવાસોમાંના એક એક અસુરકુમારાવાસમાં વસતા અસુરકુમારોના કેટલા સ્થિતિ સ્થાન કહ્યા છે ? ગૌતમ ! અસંખ્ય. જઘન્યસ્થિતિ આદિ સર્વ વર્ણન નૈરયિક મુજબ જાણવું. વિશેષ એ – ભાંગા ઊલટા ક્રમે કહેવા. દેવોમાં લોભનું બાહુલ્ય હોવાથી લોભ પહેલા કહેવો. જેમ કે – તેઓ બધા લોભોપયુક્ત હોય અથવા ઘણા લોભી, એક માયી હોય | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-७ नैरयिक | Gujarati | 81 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! किं विग्गहगइसमावण्णए? अविग्गहगइसमावण्णए?
गोयमा! सिय विग्गहगइसमावण्णए, सिय अविग्गहगइसमावण्णए।
एवं जाव वेमाणिए।
जीवा णं भंते! किं विग्गहगइसमावण्णया? अविग्गहगइसमावण्णया?
गोयमा! विग्गहगइसमावन्नगा वि, अविग्गहगइसमावन्नगा वि।
नेरइया णं भंते! किं विग्गहगइसमावन्नगा? अविग्गहगइसमावन्नगा?
गोयमा! सव्वे वि ताव होज्ज अविग्गहगइसमावन्नगा। अहवा अविग्गहगइसमावन्नगा, विग्गहगइ-समावन्नगे य। अहवा अविग्गहगइसमावन्नगा य, विग्गहगइसमावन्नगा य। एवं जीव–एगिंदिय-वज्जो तियभंगो। Translated Sutra: ભગવન્ ! શું જીવ વિગ્રહગતિને પ્રાપ્ત છે કે અવિગ્રહ ગતિને ? ગૌતમ ! થોડો વિગ્રહ ગતિને અને થોડો અવિગ્રહ ગતિને પ્રાપ્ત છે. એ પ્રમાણે વૈમાનિક સુધી જાણવું. ભગવન્ ! જીવો વિગ્રહ ગતિને પ્રાપ્ત છે કે અવિગ્રહ ગતિને? ગૌતમ ! બંને. ભગવન્ ! નૈરયિકો વિગ્રહગતિને પ્રાપ્ત છે કે અવિગ્રહ ગતિને ? ગૌતમ ! તે બધા અવિગ્રહ ગતિને પ્રાપ્ત | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Gujarati | 62 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि नेरइयाणं केवइया ठितिट्ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा ठितिट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–जहन्निया ठिती, समयाहिया जहन्निया ठिती, दुसमयाहिया जहन्निया ठिती जाव असंखेज्जसमयाहिया जहन्निया ठिती। तप्पाउग्गुक्कोसिया ठिती।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु एगमेगंसि निरयावासंसि जहन्नियाए ठितीए वट्टमाणा नेरइया किं–कोहोवउत्ता? मानोवउत्ता? मायोवउत्ता? लोभोवउत्ता?
गोयमा! सव्वे वि ताव होज्जा १. कोहोवउत्ता। २. अहवा कोहोवउत्ता य, मानोवउत्ते य। ३.
अहवा कोहोवउत्ता य, मानोवउत्ता Translated Sutra: ભગવન્ ! રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ૩૦ લાખ નરકાવાસોમાં એક – એક નરકાવાસમાં નૈરયિકોના કેટલા સ્થિતિ સ્થાન કહ્યા છે ? ગૌતમ ! અસંખ્ય સ્થિતિ સ્થાનો છે. તે આ – જઘન્ય સ્થિતિ દશ હજાર વર્ષ છે, તે એક સમયાધિક, બે સમયાધિક યાવત્ અસંખ્યેય સમયાધિક તથા તેને ઉચિત ઉત્કૃષ્ટ સ્થિતિ પણ એ પ્રમાણે છે. ભગવન્ ! રત્નપ્રભા પૃથ્વીના ૩૦ લાખ નરકાવાસોમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-६ |
उद्देशक-४ सप्रदेशक | Gujarati | 286 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे?
गोयमा! नियमा सपदेसे।
नेरइए णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसे? अपदेसे?
गोयमा! सिय सपदेसे, सिय अपदेसे।
एवं जाव सिद्धे।
जीवा णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! नियमा सपदेसा।
नेरइया णं भंते! कालादेसेणं किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! १. सव्वे वि ताव होज्जा सपदेसा २. अहवा सपदेसा य अपदेसे य ३. अहवा सपदेसा य अपदेसा य।
एवं जाव थणियकुमारा।
पुढविकाइया णं भंते! किं सपदेसा? अपदेसा?
गोयमा! सपदेसा वि, अपदेसा वि।
एवं जाव वणप्फइकाइया।
सेसा जहा नेरइया तहा जाव सिद्धा।
आहारगाणं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो। अनाहारगाणं जीवेगिंदियवज्जा छब्भंगा Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: / ૨૮૭ અનુવાદ: ભગવન્ ! શું જીવ કાલાદેશથી સપ્રદેશ કે અપ્રદેશ ? ગૌતમ ! કાલાદેશથી નિયમા સપ્રદેશ છે. ભગવન્ ! શું નૈરયિક, કાલાદેશથી સપ્રદેશ છે કે અપ્રદેશ? ગૌતમ ! નૈરયિક, કાલાદેશથી કદાચ સપ્રદેશ છે. કદાચ અપ્રદેશ છે. એ જ રીતે સિદ્ધ જીવ પર્યન્ત કહેવું જોઈએ. ભગવન્ ! અનેક જીવો કાલાદેશથી સપ્રદેશ છે કે અપ્રદેશ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-८ प्रत्यनीक | Gujarati | 414 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–इरियावहियबंधे य, संपराइयबंधे य।
इरियावहियं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? तिरिक्खजोणिणी बंधइ? मनुस्सो बंधइ? मनुस्सी बंधइ? देवो बंधइ? देवी बंधइ?
गोयमा! नो नेरइओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, नो देवो बंधइ, नो देवी बंधइ। पुव्व पडिवन्नए पडुच्च मनुस्सा य मनुस्सीओ य बंधंति, पडिवज्जमाणए पडुच्च १. मनुस्सो वा बंधइ २. मनुस्सी वा बंधइ ३. मनुस्सा वा बंधंति ४. मनुस्सीओ वा बंधंति ५. अहवा मनुस्सो य मनुस्सी य बंधइ ६. अहवा मनुस्सो य मनुस्सीओ य बंधंति ७. अहवा मनुस्सा य मनुस्सी य बंधंति Translated Sutra: ભગવન્ ! બંધ કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! બે ભેદે. ઐર્યાપથિકબંધ, સાંપરાયિક બંધ. ભગવન્ ! ઐર્યાપથિક કર્મ, શું નૈરયિક બાંધે, તિર્યંચ બાંધે, તિર્યંચિણી બાંધે, મનુષ્ય બાંધે – માનુષી સ્ત્રી બાંધે, દેવો બાંધે, કે દેવી બાંધે ? ગૌતમ ! નૈરયિક, તિર્યંચ, તિર્યંચિણી, દેવ કે દેવીમાં કોઈ ન બાંધે, પણ પૂર્વ પ્રતિપન્નક(પૂર્વે વિતરાગી થયેલા)ની | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-८ प्रत्यनीक | Gujarati | 415 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] संपराइयं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? जाव देवी बंधइ?
गोयमा! नेरइओ वि बंधइ, तिरिक्खजोणिओ वि बंधइ, तिरिक्खजोणिणी वि बंधइ, मनुस्सो वि बंधइ, मनुस्सी वि बंधइ, देवो वि बंधइ, देवी वि बंधइ।
तं भंते! किं इत्थी बंधइ? पुरिसो बंधइ? तहेव जाव नोइत्थी नोपुरिसो नोनपुंसगो बंधइ?
गोयमा! इत्थी वि बंधइ, पुरिसो वि बंधइ जाव नपुंसगा वि बंधंति, अहवा एते य अवगयवेदो य बंधइ, अहवा एते य अवगयवेदा य बंधंति।
जइ भंते! अवगयवेदो य बंधइ, अवगयवेदा य बंधंति तं भंते! किं इत्थीपच्छाकडो बंधइ? पुरिसपच्छाकडो बंधइ? एवं जहेव इरियावहियबंधगस्स तहेव निरवसेसं जाव अहवा इत्थीपच्छाकडा य पुरिसपच्छाकडा Translated Sutra: ભગવન્ ! સાંપરાયિક કર્મ શું નૈરયિક બાંધે, તિર્યંચયોનિક બાંધે યાવત્ દેવી બાંધે? ગૌતમ! સાંપરાયિક કર્મ, નૈરયિક પણ બાંધે, તિર્યંચ, તિર્યંચ સ્ત્રી પણ બાંધે, મનુષ્ય – મનુષ્ય સ્ત્રી પણ બાંધે. દેવ – દેવી પણ બાંધે. ભગવન્ ! જો વેદરહિત એક જીવ અને વેદ રહિત અનેક જીવ, સાંપરાયિક કર્મ બાંધે છે, તો શું સ્ત્રી પશ્ચાત્કૃત બાંધે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१२ |
उद्देशक-४ पुदगल | Gujarati | 538 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–दो भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, साहण्णित्ता किं भवइ?
गोयमा! दुप्पएसिए खंधे भवइ। से भिज्जमाणे दुहा कज्जइ–एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ परमाणुपोग्गले भवइ।
तिन्नि भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, साहणित्ता किं भवइ?
गोयमा! तिपएसिए खंधे भवइ। से भिज्जमाणे दुहा वि तिहा वि कज्जइ–दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, एगयओ दुपएसिए खंधे भवइ। तिहा कज्जमाणे तिन्नि परमाणुपोग्गला भवंति।
चत्तारि भंते! परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, साहणित्ता किं भवइ?
गोयमा! चउपएसिए खंधे भवइ। से भिज्जमाणे दुहा वि तिहा वि चउहा वि कज्जइ–दुहा कज्जमाणे एगयओ परमाणुपोग्गले, Translated Sutra: રાજગૃહ નગરમાં ગૌતમસ્વામીએ યાવત્ આ પ્રમાણે કહ્યું – ભગવન્ ! બે પરમાણુ પુદ્ગલ જ્યારે સંયુક્ત થઈને એકત્ર થાય છે, ત્યારે તેનું શું થાય છે ? ગૌતમ ! દ્વિપ્રદેશિક સ્કંધ થાય છે. તેના બે વિભાગ કરાતા એક પરમાણુ પુદ્ગલ અને બીજું એક પરમાણુ પુદ્ગલ થાય છે. ભગવન્ ! ત્રણ પરમાણુ પુદ્ગલો એકરૂપે એકઠા થાય તો શું થાય ? ગૌતમ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-१ पुदगल | Gujarati | 387 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते दव्वा! किं पयोगपरिणया? मीसापरिणया? वीससापरिणया?
गोयमा! १. पयोगपरिणया वा २. मीसापरिणया वा ३. वीससापरिणया वा ४. अहवेगे पयोग-परिणए, एगे मीसापरिणए ५. अहवेगे पयोगपरिणए, एगे वीससापरिणए ६. अहवेगे मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए।
जइ पयोगपरिणया किं मनपयोगपरिणया? वइपयोगपरिणया? कायपयोगपरिणया?
गोयमा! १. मनपयोगपरिणया वा २. वइपयोगपरिणया वा ३. कायपयोगपरिणया वा ४. अहवेगे मनपयोगपरिणए, एगे वइपयोगपरिणए ५. अहवेगे मनपयोगपरिणए, एगे कायपयोगपरिणए ६. अहवेगे वइपयोगपरिणए, एगे कायपयोगपरिणए।
जइ मनपयोगपरिणया किं सच्चमनपयोगपरिणया? असच्चमनपयोगपरिणया? सच्चमोसमनपयोगपरिणया? असच्चमोसमनपयोगपरिणया?
गोयमा! Translated Sutra: ભગવન્ ! બે દ્રવ્યો(અનંત પ્રદેશી બે સ્કંધો) શું પ્રયોગ પરિણત હોય, મિશ્રપરિણત હોય કે વિસ્રસા પરિણત હોય ?ગૌતમ ! તે બંને દ્રવ્યો – ૧. પ્રયોગ પરિણત હોય કે ૨. મિશ્રપરિણત કે ૩. વીસ્રસા પરિણત કે ૪. એક પ્રયોગ પરિણત, એક મિશ્ર પરિણત કે ૫. એક પ્રયોગ પરિણત, એક વિસ્રસા પરિણત કે ૬. એક મિશ્ર પરિણત, એક વીસ્રસા પરિણત હોય. ભગવન્ !જે બે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-२ आशिविष | Gujarati | 391 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! नाणे पन्नत्ते?
गोयमा! पंचविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, मनपज्जवनाणे, केवलनाणे।
से किं तं आभिनिबोहियनाणे?
आभिनिबोहियनाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। एवं जहा रायप्पसेणइज्जे नाणाणं भेदो तहेव इह भाणियव्वो जाव सेत्तं केवलनाणे।
अन्नाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–मइअन्नाणे, सुयअन्नाणे, विभंगनाणे।
से किं तं मइअन्नाणे?
मइअन्नाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा।
से किं तं ओग्गहे?
ओग्गहे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। एवं जहेव आभिनिबोहियनाणं Translated Sutra: ભગવન્ ! જ્ઞાન કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! પાંચ ભેદે – આભિનિબોધિક જ્ઞાન, શ્રુતજ્ઞાન, અવધિજ્ઞાન, મનઃપર્યવજ્ઞાન, કેવળ જ્ઞાન. ભગવન્ ! તે આભિનિબોધિક જ્ઞાન શું છે ? તે ચાર ભેદે છે – અવગ્રહ, ઈહા, અપાય, ધારણા. એ રીતે જેમ રાયપ્પસેણઈયમાં જ્ઞાનના ભેદો કહ્યા છે, તેમ અહીં પણ કહેવા. તે કેવલજ્ઞાન સુધી કથન કરવું. ભગવન્ ! અજ્ઞાન કેટલા | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-५ आजीविक | Gujarati | 402 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं भंते! तेहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं सा जाया अजाया भवइ?
हंता भवइ।
से केणं खाइ णं अट्ठेणं भंते एवं वुच्चइ–जायं चरइ? नो अजायं चरइ?
गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–नो मे माता, नो मे पिता, नो मे भाया, नो मे भगिनी, नो मे भज्जा, नो मे पुत्ता, नो मे धूया, नो मे सुण्हा; पेज्जबंधने पुण से अव्वोच्छिन्ने भवइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जायं चरइ, नो अजायं चरइ।
समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव थूलए पाणाइवाए अपच्चक्खाए भवइ, से णं भंते! पच्छा पच्चाइक्खमाणे किं करेइ?
गोयमा! तीयं पडिक्कमति, पडुप्पन्नं संवरेति, अनागयं पच्चक्खाति।
तीयं पडिक्कममाणे किं १. तिविहं तिविहेणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૦૨. ભગવન્ ! જે શ્રાવકે પૂર્વે સ્થૂલ પ્રાણાતિપાતનું પચ્ચક્ખાણ કરેલ નથી, હે ભગવન્ ! તે પછી તેનું પચ્ચક્ખાણ કરતા શું કરે ? ગૌતમ ! તે અતીતનું પ્રતિક્રમણ, વર્તમાનનો સંવર, ભાવિનું પચ્ચક્ખાણ કરે. ભગવન્ ! અતીતનું પ્રતિક્રમણ કરતા શું તે ૧. ત્રિવિધ – ત્રિવિધે(ત્રણ કરણ અને ત્રણ યોગથી) પ્રતિક્રમે ? ૨. ત્રિવિધ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३२ गांगेय | Gujarati | 453 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! पवेसणए पन्नत्ते?
गंगेया! चउव्विहे पवेसणए पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयपवेसणए, तिरिक्खजोणियपवेसणए, मनुस्स-पवेसणए, देवपवेसणए।
नेरइयपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गंगेया! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा– रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढवि-नेरइयपवेसणए।
एगे भंते! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होज्जा, सक्करप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा?
गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा।
दो भंते! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा?
गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा।
अहवा Translated Sutra: ભગવન્ ! પ્રવેશનક(ઉત્પત્તિ) કેટલા ભેદે છે ? ગાંગેય ! પ્રવેશનકના ચાર ભેદ છે. તે આ – નૈરયિક પ્રવેશનક, તિર્યંચયોનિક પ્રવેશનક, મનુષ્ય પ્રવેશનક અને દેવ – પ્રવેશનક. ભગવન્ ! નૈરયિક પ્રવેશનક કેટલા ભેદે છે ? ગાંગેય ! સાત ભેદે. તે આ – રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિક પ્રવેશનક યાવત્ અધઃસપ્તમી પૃથ્વી નૈરયિક – પ્રવેશનક. ભગવન્ ! એક | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३२ गांगेय | Gujarati | 454 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गंगेया! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए जाव पंचिंदियतिरिक्ख-जोणियपवेसणए।
एगे भंते! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणियपवेसणएणं पविसमाणे किं एगिंदिएसु होज्जा जाव पंचिंदिएसु होज्जा?
गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा।
दो भंते! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं–पुच्छा।
गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। अहवा एगे एगिंदिएसु होज्जा एगे बेइंदिएसु होज्जा, एवं जहा नेरइयपवेसणए तहा तिरिक्खजोणियपवेसणए वि भाणियव्वे जाव असंखेज्जा।
उक्कोसा भंते! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं–पुच्छा।
गंगेया! Translated Sutra: ભગવન્ ! તિર્યંચયોનિક પ્રવેશનક (ઉત્પત્તિ)કેટલા ભેદે છે ? ગાંગેય ! પાંચ ભેદે છે. તે આ – એકેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક પ્રવેશનક યાવત્ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક પ્રવેશનક. ભગવન્ ! એક તિર્યંચયોનિક, તિર્યંચ પ્રવેશનકથી પ્રવેશતા શું એકેન્દ્રિયમાં ઉત્પન્ન થાય કે યાવત્ પંચેન્દ્રિય માં ઉત્પન્ન થાય ? ગાંગેય ! એકેન્દ્રિયમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३२ गांगेय | Gujarati | 455 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गंगेया! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–समुच्छिममनुस्सपवेसणए, गब्भवक्कंतियमनुस्सपवेसणए य।
एगे भंते! मनुस्से मनुस्सपवेसणएणं पविसमाणे किं संमुच्छिममनुस्सेसु होज्जा? गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु होज्जा?
गंगेया! संमुच्छिममनुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु वा होज्जा।
दो भंते! मनुस्सा–पुच्छा।
गंगेया! संमुच्छिममनुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु वा होज्जा। अहवा एगे संमुच्छिममनुस्सेसु होज्जा एगे गब्भव-क्कंतियमनुस्सेसु होज्जा, एवं एएणं कमेणं जहा नेरइयपवेसणए तहा मनुस्सपवेसणए वि भाणियव्वे जाव दस।
संखेज्जा भंते! Translated Sutra: ભગવન્ ! મનુષ્ય પ્રવેશનક (ઉત્પતિ)કેટલા ભેદે છે ? ગાંગેય ! બે ભેદે છે – સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્ય પ્રવેશનક, ગર્ભવ્યુત્ક્રાંતિક મનુષ્ય પ્રવેશનક ભગવન્ ! એક મનુષ્ય, મનુષ્ય પ્રવેશનકથી પ્રવેશતો શું સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યમાં હોય, ગર્ભવ્યુત્ક્રાંતિકમાં મનુષ્યમાં હોય ? ગાંગેય! સંમૂર્ચ્છિમમાં હોય કે ગર્ભવ્યુત્ક્રાંતિકમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३२ गांगेय | Gujarati | 456 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] देवपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गंगेया! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–भवनवासिदेवपवेसणए जाव वेमानियदेवपवेसणए।
एगे भंते! देवे देवपवेसणएणं पविसमाणे किं भवनवासीसु होज्जा? वाणमंतर जोइसिय वेमाणिएसु होज्जा?
गंगेया! भवनवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा होज्जा।
दो भंते! देवा देवपवेसणएणं–पुच्छा।
गंगेया! भवनवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा होज्जा। अहवा एगे भवनवासीसु एगे वाणमंतरेसु होज्जा, एवं जहा तिरिक्खजोणियपवेसणए तहा देवपवेसणए वि भाणियव्वे जाव असंखेज्ज त्ति।
उक्कोसा भंते! –पुच्छा।
गंगेया! सव्वे वि ताव जोइसिएसु होज्जा, अहवा जोइसिय-भवनवासीसु Translated Sutra: ભગવન્ ! દેવ પ્રવેશનક(ઉત્પત્તિ) કેટલા ભેદે છે ? ગાંગેય! ચાર ભેદે છે – ભવનવાસી દેવ પ્રવેશનક, વ્યંતર દેવ પ્રવેશનક, જ્યોતિષ્ક દેવ પ્રવેશનક, વૈમાનિક દેવ પ્રવેશનક. ભગવન્ ! એક જીવ દેવ પ્રવેશનકથી પ્રવેશતા શું ભવનવાસી દેવોમાં ઉત્પન્ન થાય,, વ્યંતર દેવોમાં ઉત્પન્ન થાય, જ્યોતિષ્ક દેવોમાં ઉત્પન્ન થાય કે વૈમાનિક દેવોમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३४ पुरुषघातक | Gujarati | 471 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–पुरिसे णं भंते! पुरिसं हणमाणे किं पुरिसं हणइ? नोपुरिसे हणइ?
गोयमा! पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ?
गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि, से णं एगं पुरिसं हणमाणे अनेगे जीवे हणइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ।
पुरिसे णं भंते! आसं हणमाणे किं आसं हणइ? नोआसे हणइ?
गोयमा! आसं पि हणइ, नोआसे वि हणइ। से केणट्ठेणं?
अट्ठो तहेव। एवं हत्थि, सीहं, वग्घं जाव चिल्ललगं।
पुरिसे णं भंते! इसिं हणमाणे किं इसिं हणइ? नोइसिं हणइ?
गोयमा! इसिं पि हणइ, Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું યાવત્ ત્યાં ગૌતમસ્વામીએ આ પ્રમાણે કહ્યું – ભગવન્ ! કોઈ પુરુષ, પુરુષને હણતા, શું પુરુષને હણે છે કે નોપુરુષને ? ગૌતમ ! પુરુષને પણ હણે, નોપુરુષને પણ હણે છે. ભગવન્ ! એમ કેમ કહો છો ? ગૌતમ ! જો તેને એમ થાય કે નિશ્ચે હું એક પુરુષને હણુ છું, પણ. તે એક પુરુષને મારતા, તે પુરુષને આશ્રીને રહેલા | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१० |
उद्देशक-१ दिशा | Gujarati | 475 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–किमियं भंते! पाईणा ति पवुच्चइ? गोयमा! जीवा चेव, अजीवा चेव।
किमियं भंते! पडीणा ति पवुच्चइ?
गोयमा! एवं चेव। एवं दाहिणा, एवं उदीणा, एवं उड्ढा, एवं अहो वि।
कति णं भंते! दिसाओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! दस दिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–१. पुरत्थिमा २. पुरत्थिमदाहिणा ३. दाहिणा ४. दाहिणपच्चत्थिमा ५. पच्चत्थिमा ६. पच्चत्थिमुत्तरा ७. उत्तरा ८. उत्तरपुरत्थिमा ९. उड्ढा १. अहो।
एयासि णं भंते! दसण्हं दिसाणं कति नामधेज्जा पन्नत्ता?
गोयमा! दस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–
इंदा अग्गेयो जम्मा, य नेरई वारुणी य वायव्वा । सोमा ईसाणी या, विमला य तमा य बोद्धव्वा ॥
इंदा णं भंते! दिसा किं १. जीवा Translated Sutra: રાજગૃહ નગરમાં ગૌતમસ્વામીએ યાવત્ આ પ્રમાણે કહ્યું – ભગવન્ ! આ પૂર્વદિશા શું કહેવાય છે ? ગૌતમ ! તે જીવરૂપ પણ છે, અજીવરૂપ પણ છે. ભગવન્ ! આ પશ્ચિમ દિશા શું કહેવાય છે ? ગૌતમ ! પૂર્વ દિશા સમાન જાણવું.. આ જ પ્રમાણે દક્ષિણદિશા, ઉત્તરદિશા, ઉર્ધ્વદિશા અને અધોદિશાના વિષયમાં કથન કરવું. ભગવન્ ! દિશાઓ કેટલી કહી છે ? ગૌતમ ! દશ દિશાઓ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-१ उत्पल | Gujarati | 498 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–उप्पले णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे? अनेगजीवे?
गोयमा! एगजीवे, नो अनेगजीवे। तेण परं जे अन्ने जीवा उववज्जंति ते णं नो एगजीवा अनेगजीवा।
ते णं भंते! जीवा कतोहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ भाणियव्वो जहा वक्कंतीए वणस्सइकाइयाणं जाव ईसानेति।
ते णं भंते! जीवा एगसमए णं केवइया उववज्जंति?
गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૯૫ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-११ |
उद्देशक-१० लोक | Gujarati | 510 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कतिविहे णं भंते! लोए पन्नत्ते?
गोयमा! चउव्विहे लोए पन्नत्ते, तं जहा–दव्वलोए, खेत्तलोए, काललोए, भावलोए।
खेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अहेलोयखेत्तलोए, तिरियलोयखेत्तलोए, उड्ढलोयखेत्तलोए।
अहेलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–रयणप्पभापुढविअहेलोयखेत्तलोए जाव अहेसत्तमापुढवि-अहेलोयखेत्तलोए।
तिरियलोयखेत्तलोए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! असंखेज्जविहे पन्नत्ते, तं जहा–जंबुद्दीवे दीवे तिरियलोयखेत्तलोए जाव सयंभूरमणसमुद्दे तिरियलोयखेत्तलोए।
उड्ढलोयखेत्तलोए Translated Sutra: રાજગૃહનગરમાં ગૌતમસ્વામીએ યાવત્ આ પ્રમાણે કહ્યું – ભગવન્ ! લોક કેટલા ભેદ છે ? ગૌતમ ! લોકના ચાર ભેદછે – દ્રવ્યલોક, ક્ષેત્રલોક, કાળલોક, ભાવલોક. ભગવન્ ! ક્ષેત્રલોક કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! ક્ષેત્રલોક ત્રણ ભેદે છે. અધોલોક ક્ષેત્રલોક, તિર્છાલોક ક્ષેત્રલોક, ઉર્ધ્વલોક ક્ષેત્રલોક. ભગવન્ ! અધોલોક ક્ષેત્રલોક કેટલા ભેદે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-८ लोक | Gujarati | 683 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केमहालए णं भंते! लोए पन्नत्ते?
गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्ते, जहा बारसमसए तहेव जाव असंखेज्जाओ जोयण-कोडाकोडीओ परिक्खेवेणं।
लोयस्स णं भंते! पुरत्थिमिल्ले चरिमंते किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपदेसा?
गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं एगिंदियदेसा य, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियस्स य देसे–एवं जहा दसमसए अग्गेयी दिसा तहेव, नवरं–देसेसु अनिंदियाण आ-इल्लविरहिओ। जे अरूवी अजीवा ते छव्विहा, अद्धासमयो नत्थि। सेसं तं चेव निरवसेसं।
लोगस्स णं भंते! दाहिणिल्ले चरिमंते किं जीवा? एवं चेव। एवं पच्चत्थिमिल्ले Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૮૩. ભગવન્ ! લોક કેટલો મોટો છે ? ગૌતમ ! ઘણો મોટો છે. જેમ શતક – ૧૨માં કહ્યું, તેમ અસંખ્ય કોડાકોડી યોજન પરીક્ષેપથી લોક છે, ત્યાં સુધી કહેવું. ભગવન્ ! લોકના પૂર્વીય ચરમાંતમાં શું જીવ, જીવદેશ, જીવપ્રદેશ, અજીવ, અજીવદેશ, અજીવપ્રદેશ છે ? ગૌતમ ! ત્યાં જીવ નથી, જીવદેશથી અજીવ પ્રદેશ સુધી પાંચે પણ છે. જે જીવ દેશો છે, તે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Gujarati | 906 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कतिसु नाणेसु होज्जा?
गोयमा! दोसु वा तिसु वा होज्जा। दोसु होमाणे दोसु आभिनिबोहियनाणसुयनाणेसु होज्जा, तिसु होमाणे तिसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा। एवं बउसे वि। एवं पडिसेवणा-कुसीले वि।
कसायकुसले णं–पुच्छा।
गोयमा! दोसु वा तिसु वा चउसु वा होज्जा। दोसु होमाणे दोसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाणेसु होज्जा, तिसु होमाणे तिसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा, अहवा तिसु होमाणे आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-मनपज्जवनाणेसु होज्जा, चउसु होमाणे चउसु आभिनिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाण-मनपज्जवनाणेसु होज्जा। एवं नियंठे वि।
सिणाए णं–पुच्छा।
गोयमा! एगम्मि केवलनाणे Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૦૬. ભગવન્ ! પુલાક કેટલા જ્ઞાનમાં હોય? ગૌતમ! બે કે ત્રણમાં હોય. બેમાં હોય તો આભિનિબોધિક અને શ્રુતજ્ઞાનમાં હોય. ત્રણમાં હોય તો આભિનિબોધિક, શ્રુત અને અવધિજ્ઞાનમાં હોય. એ રીતે બકુશ પણ છે. પ્રતિસેવના કુશીલ પણ છે. કષાયકુશીલની પૃચ્છા. ગૌતમ ! બે – ત્રણ કે ચારમાં હોય. બેમાં હોય તો આભિનિબોધિક – શ્રુતમાં હોય. ત્રણમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२८ जीव आदि जाव |
उद्देशक-१ थी ११ | Gujarati | 992 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु?
गोयमा! १. सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा २. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य होज्जा ३. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ४. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य देवेसु य होज्जा ५. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ६. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य नेरइएसु य देवेसु य होज्जा ७. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा ८. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा।
सलेस्सा णं भंते! जीवा पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु? एवं चेव। एवं कण्हलेस्सा जाव अलेस्सा। कण्हपक्खिया, Translated Sutra: ભગવન્ ! જીવોએ ક્યાં પાપકર્મનું સમર્જન કર્યુ? અને ક્યાં આચરણ કર્યું? ગૌતમ! બધા જીવો તિર્યંચયોનિકો માં હતા.અથવા તિર્યંચયોનિ અને નૈરયિકોમાં હતા.અથવા તિર્યંચયોનિક અને મનુષ્યોમાં હતા. અથવા તિર્યંચયોનિક અને દેવોમાં હતા.અથવા તિર્યંચયોનિક, મનુષ્ય અને દેવોમાં હતા.અથવા તિર્યંચ, મનુષ્ય અને નારકમાં હતા.અથવા તિર્યંચ, | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Hindi | 156 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जइ कह वि असुहकम्मोदएण देहम्मि संभवे वियणा ।
अहवा तण्हाईया परीसहा से उदीरिज्जा ॥ Translated Sutra: यदि किसी दिन (इस अवसर में) अशुभ कर्म के उदय से शरीर में वेदना या तृषा आदि परिषह उसे उत्पन्न हो। | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Hindi | 46 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा समाहिहेउं सागारं चयइ तिविहमाहारं ।
तो पाणयं पि पच्छा वोसिरियव्वं जहाकालं ॥ Translated Sutra: या फिर समाधि के लिए तीन प्रकार के आहार को आगार सहित पच्चक्खाण कराए। उस के बाद पानी भी अवसर देखकर त्याग करावें। | |||||||||
Bhaktaparigna | भक्तपरिज्ञा | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Hindi | 88 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा चिलाइपुत्तो पत्तो नाणं तहाऽमरत्तं च ।
उवसम-विवेग-संवरपयसुमरणमेत्तसुयनाणो ॥ Translated Sutra: या उपशम, विवेक, संवर उन पद को केवल सूनने को (स्मरण मात्र से) (उतने ही) श्रुतज्ञानवाले चिलाती – पुत्र ने ज्ञान और देवत्व पाया। | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Gujarati | 46 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा समाहिहेउं सागारं चयइ तिविहमाहारं ।
तो पाणयं पि पच्छा वोसिरियव्वं जहाकालं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૩ | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Gujarati | 88 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा चिलाइपुत्तो पत्तो नाणं तहाऽमरत्तं च ।
उवसम-विवेग-संवरपयसुमरणमेत्तसुयनाणो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૭ | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Gujarati | 156 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जइ कह वि असुहकम्मोदएण देहम्मि संभवे वियणा ।
अहवा तण्हाईया परीसहा से उदीरिज्जा ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૬. જો ક્યારેય અશુભ કર્મોદયથી શરીરમાં વેદના કે તૃષાદિ પરીષહો ઉપજે, સૂત્ર– ૧૫૭. તો નિર્યામક ક્ષપકને સ્નિગ્ધ, મધુર, હર્ષદાયી, હૃદયંગમ, સત્ય વચન કહેતા શીખામણ આપે. સૂત્ર– ૧૫૮. હે સત્પુરુષ ! ચતુર્વિધ સંઘ મધ્યે મોટી પ્રતિજ્ઞા કરેલી કે હું સમ્યક્ આરાધના કરીશ, તેનું સ્મરણ કર. સૂત્ર– ૧૫૯. અરિહંત – સિદ્ધ – કેવલી | |||||||||
Chandrapragnapati | चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Hindi | 74 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते भोयणा आहिताहि वदेज्जा?
ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं कत्तियाहिं दधिणा भोच्चा कज्जं साधेति।
रोहिणीहिं वसभमंसं भोच्चा कज्जं साधेति।संठाणाहिं मिगमंसं भोच्चा कज्जं साधेति।
अद्दाहिं नवनीतेण भोच्चा कज्जं साधेति। पुनव्वसुणा घतेण भोच्चा कज्जं साधेति।
पुस्सेण खीरेण भोच्चा कज्जं साधेति। अस्सेसाहिं दीवगमंसं भोच्चा कज्जं साधेति।
महाहिं कसरिं भोच्चा कज्जं साधेति। पुव्वाहिं फग्गुणीहिं मेंढकमंसं भोच्चा कज्जं साधेति।
उत्तराहिं फग्गुणीहिं णखीमंसं भोच्चा कज्जं साधेति।
हत्थेणं वच्छाणीएणं भोच्चा कज्जं साधेति। चित्ताहिं मुग्गसूवेणं भोच्चा कज्जं Translated Sutra: हे भगवन् ! नक्षत्र के गोत्र किस प्रकार से कहे हैं ? इन २८ नक्षत्रोंमें अभिजीत नक्षत्र का गोत्र मुद्गलायन है, इसी तरह श्रवण का शंखायन, घनिष्ठा का अग्रतापस, शतभिषा का कर्णलोचन, पूर्वाभाद्रपद का जातु – कर्णिय, उत्तराभाद्रपद का धनंजय, रेवती का पौष्यायन, अश्विनी का आश्वायन, भरणी का भार्गवेश, कृतिका का अग्निवेश, | |||||||||
Chandrapragnapati | ચંદ્રપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१ |
प्राभृत-प्राभृत-१ | Gujarati | 74 | Sutra | Upang-06 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते भोयणा आहिताहि वदेज्जा?
ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं कत्तियाहिं दधिणा भोच्चा कज्जं साधेति।
रोहिणीहिं वसभमंसं भोच्चा कज्जं साधेति।संठाणाहिं मिगमंसं भोच्चा कज्जं साधेति।
अद्दाहिं नवनीतेण भोच्चा कज्जं साधेति। पुनव्वसुणा घतेण भोच्चा कज्जं साधेति।
पुस्सेण खीरेण भोच्चा कज्जं साधेति। अस्सेसाहिं दीवगमंसं भोच्चा कज्जं साधेति।
महाहिं कसरिं भोच्चा कज्जं साधेति। पुव्वाहिं फग्गुणीहिं मेंढकमंसं भोच्चा कज्जं साधेति।
उत्तराहिं फग्गुणीहिं णखीमंसं भोच्चा कज्जं साधेति।
हत्थेणं वच्छाणीएणं भोच्चा कज्जं साधेति। चित्ताहिं मुग्गसूवेणं भोच्चा कज्जं Translated Sutra: તે નક્ષત્રોનું ભોજન શું કહેલ છે ? આ અઠ્ઠાવીશ નક્ષત્રોમાં – કૃતિકામાં દહીં – ભાત ખાઈને કાર્ય સાધવું. રોહિણીમાં ધતૂરાનું ચૂર્ણ ખાઈને કાર્ય સાધવું. મૃગશીર્ષમાં ઇન્દ્રાવારુણી ચૂર્ણ ખાઈને કાર્ય સાધવું. આર્દ્રામાં માખણ ખાઈને કાર્ય સાધવું. પુનર્વસુમાં ઘી ખાઈને કાર્ય સાધવું. પુષ્યમાં ખીર ખાઈને કાર્ય સાધવું. આશ્લેષામાં | |||||||||
Chatusharan | चतुश्शरण | Ardha-Magadhi |
सुकृत अनुमोदना |
Hindi | 58 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा सव्वं चिय वीयरायवयणानुसारि जं सुकडं ।
कालत्तए वि तिविहं अणुमोएमो तयं सव्वं ॥ Translated Sutra: या फिर वीतराग के वचन के अनुसार जो सर्व सुकृत तीन काल में किया हो वो तीन प्रकार से (मन, वचन और काया से) हम अनुमोदन करते हैं। | |||||||||
Chatusharan | ચતુશ્શરણ | Ardha-Magadhi |
सुकृत अनुमोदना |
Gujarati | 58 | Gatha | Painna-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहवा सव्वं चिय वीयरायवयणानुसारि जं सुकडं ।
कालत्तए वि तिविहं अणुमोएमो तयं सव्वं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૫ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए।
जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ।
तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए Translated Sutra: कौशलिक अर्हत् ऋषभ कुछ अधिक एक वर्ष पर्यन्त वस्त्रधारी रहे, तत्पश्चात् निर्वस्त्र। जब से वे प्रव्रजित हुए, वे कायिक परिकर्म रहित, दैहिक ममता से अतीत, देवकृत् यावत् जो उपसर्ग आते, उन्हें वे सम्यक् भाव से सहते, प्रतिकूल अथवा अनुकूल परिषह को भी अनासक्त भाव से सहते, क्षमाशील रहते, अविचल रहते। भगवान् ऐसे उत्तम | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार २ काळ |
Gujarati | 44 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उसभे णं अरहा कोसलिए संवच्छरं साहियं चीवरधारी होत्था, तेण परं अचेलए।
जप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए, तप्पभिइं च णं उसभे अरहा कोसलिए निच्चं वोसट्ठकाए चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा मानुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा पडिलोमा वा अनुलोमा वा। तत्थ पडिलोमा–वेत्तेण वा तयाए वा छियाए वा लयाए वा कसेण वा काए आउट्टेज्जा, अनुलोमा–वंदेज्ज वा नमंसेज्ज वा सक्कारेज्ज वा सम्मानेज्ज वा कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्ज वा ते सव्वे सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ।
तए णं से भगवं समणे जाए ईरियासमिए भासासमिए एसणासमिए Translated Sutra: કૌશલિક ઋષભ અરહંત સાધિક એક વર્ષ વસ્ત્રધારી રહ્યા. ત્યારપછી અચેલક થયા. જ્યારથી કૌશલિક ઋષભ અરહંત મુંડ થઈને ગૃહવાસત્યાગી નિર્ગ્રન્થ પ્રવ્રજ્યા લીધી, ત્યારથી કૌશલિક ઋષભ અરહંત નિત્ય કાયાને વોસિરાવીને, દેહ મમત્ત્વ ત્યજીને, જે કોઈ ઉપસર્ગો ઉપજે છે, તે આ પ્રમાણે – દેવે કરેલ યાવત્ પ્રતિકૂળ કે અનુકૂળ ઉપસર્ગોને સહે | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 145 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति...
...एगोरुयदीवे णं दीवे Translated Sutra: हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है। मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है – आदि। इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत् पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना। उस शिलापट्टक पर बहुत से एको – रुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 49 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मनुस्सा? मनुस्सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संमुच्छिममनुस्सा य गब्भवक्कंतियमनुस्सा य।
कहि णं भंते! संमुच्छिममनुस्सा संमुच्छंति? गोयमा! अंतो मनुस्सखेत्ते जाव अंतोमुहुत्ताउया चेव कालं करेंति।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। संघयण संठाण कसाय सण्णा लेसा जहा बेइंदियाणं, इंदिया पंच, समुग्घाया तिन्नि, असन्नी, नपुंसगा, अपज्जत्तीओ पंच, दिट्ठिदंसण अन्नाण जोग उवओगा जहा पुढविकाइयाणं, आधारो जहा बेइंदियाणं, उववातो नेरइय देव तेउ वाउ असंखाउवज्जो, अंतोमुहुत्तं ठिती, समोहतावि असमोहतावि मरंति, कहिं Translated Sutra: मनुष्य का क्या स्वरूप है ? मनुष्य दो प्रकार के हैं, यथा – सम्मूर्च्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य। भगवन् ! सम्मूर्च्छिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर होते हैं, यावत् अन्तमुहूर्त्त की आयु में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। भन्ते ! उन जीवों के कितने शरीर होते हैं ? गौतम | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-३ | Hindi | 123 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] उववाएण व सायं, आभिनिओ देवकम्मुणा वावि ।
अज्झवसाणनिमित्तं, अहवा कम्माणुभावेणं ॥ Translated Sutra: नैरयिक जीवों में से कोई जीव उपपात के समय, पूर्व सांगतिक देव के निमित्त से कोई नैरयिक, कोई नैरयिक शुभ अध्यवसायों के कारण अथवा कर्मानुभाव से साता का वेदन करते हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिणमें, मालवंतवक्षस्कार पर्वत के पश्चिममें एवं गन्धमादन वक्षस्कारपर्वत के पूर्वमें उत्तरकुरा क्षेत्र। वह पूर्व पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की तरह अर्ध |