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Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-५ वस्त्रैषणा

उद्देशक-१ वस्त्र ग्रहण विधि Hindi 480 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयाइं आयतणाइं उवाइकम्म, अह भिक्खू जाणेज्जा चउहिं पडिमाहिं वत्थं एसित्तए। तत्थ खलु इमा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा उद्दिसिय-उद्दिसिय वत्थं जाएज्जा, तं जहा–जंगियं वा, भंगियं वा, साणयं वा, पोत्तयं वा, खोमियं वा, तूलकडं वा–तहप्पगारं वत्थं सयं वा णं जाएज्जा, परो वा से देज्जा–फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा–पढमा पडिमा। अहावरा दोच्चा पडिमा–से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पेहाए वत्थं जाएज्जा, तं जहा–गाहावइं वा, गाहावइ-भारियं वा, गाहावइ-भगिनिं वा, गाहावइ-पुत्तं वा, गाहावइ-धूयं वा, सुण्हं वा, धाइं वा, दासं वा, दासिं वा, कम्मकरं वा, कम्मकरिं वा। से पुव्वामेव

Translated Sutra: इन दोषों के आयतनों को छोड़कर चार प्रतिमाओं से वस्त्रैषणा करनी चाहिए। पहली प्रतिमा – वह साधु या साध्वी मन में पहले संकल्प किये हुए वस्त्र की याचना करे, जैसे कि – जांगमिक, भांगिक, सानज, पोत्रक, क्षौमिक या तूलनिर्मित वस्त्र, उस प्रकार के वस्त्र की स्वयं याचना करे अथवा गृहस्थ स्वयं दे तो प्रासुक और एषणीय होने पर ग्रहण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-६ पात्रैषणा

उद्देशक-१ Hindi 486 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अभिकंखेज्जा पायं एसित्तए, सेज्जं पुण पाय जाणेज्जा, तं जहा–अलाउपायं वा, दारुपायं वा, मट्टियापायं वा– तहप्पगारं पायं– जे निग्गंथे तरुणे जुगवं बलवं अप्पायंके थिरसंघयणे, से एगं पायं धारेज्जा, नो बीयं। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए पाय-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण पायं जाणेज्जा– अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएति। तं तहप्पगारं पायं पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया नीहडं

Translated Sutra: संयमशील साधु या साध्वी यदि पात्र ग्रहण करना चाहे तो जिन पात्रों को जाने वे इस प्रकार हैं – तुम्बे का पात्र, लकड़ी का पात्र और मिट्टी का पात्र। इन तीनों प्रकार के पात्रों को साधु ग्रहण कर सकता है। जो निर्ग्रन्थ तरुण बलिष्ठ स्वस्थ और स्थिर – सहन वाला है, वह इस प्रकार का एक ही पात्र रखे, दूसरा नहीं। वह साधु, साध्वी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-६ पात्रैषणा

उद्देशक-२ Hindi 487 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसमाणे पुव्वामेव पेहाए पडिग्गहगं, अवहट्टु पाणे, पमज्जिय रयं, ततो संजयामेव गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए निक्खमेज्ज वा, पविसेज्ज वा। केवली बूया आयाणमेयं– अंतो पडिग्गहगंसि पाणे वा, बीए वा, रए वा परियावज्जेज्जा। अह भिक्खूणं पुव्वोवदिट्ठा एस पइण्णा, एस हेऊ, एस कारणं, एस उवएसो जं पुव्वामेव पेहाए पडिग्गहं, अवहट्टु पाणे, पमज्जिय रयं तओ संजयामेव गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा, निक्खमेज्ज वा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में आहार – पानी के लिए प्रवेश करने से पूर्व ही साधु या साध्वी अपने पात्र को भलीभाँति देखे, उसमें कोई प्राणी हो तो उन्हें नीकालकर एकान्त में छोड़ दे और धूल को पोंछकर झाड़ दे। तत्पश्चात्‌ साधु अथवा साध्वी आहार – पानी के लिए उपाश्रय से बाहर नीकले या गृहस्थ के घर में प्रवेश करे। केवली भगवान कहते हैं –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-२

अध्ययन-१० [३] उच्चार प्रश्नवण विषयक

Hindi 500 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा, गाहावइ-पुत्ता वा कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा अंतातो वा बाहिं णीहरंति, बहियाओ वा अंतो साहरंति, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–खंधंसि वा, पीढंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, अट्टंसि वा, पासायंसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अनंतरहियाए पुढवीए, ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए

Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जान कि गृहपति या उसके पुत्र कन्द, मूल यावत्‌ हरी जिसके अंदर से बाहर ले जा रहे हैं, या बाहर से भीतर ले जा रहे हैं, अथवा उस प्रकार की किन्हीं सचित्त वस्तुओं को इधर – उधर कर रहे हैं, तो वहाँ साधु – साध्वी मल – मूत्र विसर्जन न करे। ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि स्कन्ध पर, चौकी पर, मचान पर,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 510 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए-सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीतिक्कंताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहु वीतिक्कंताए–पण्णहत्तरीए वासेहिं, मासेहिं य अद्धणवमेहिं सेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे–आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महावि-जय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु जबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने इस अवसर्पिणी काल के सुषम – सुषम नामक आरक, सुषम आरक और सुषम – दुषम आरक के व्यतीत होने पर तथा दुषम – सुषम नामक आरक के अधिकांश व्यतीत हो जाने पर और जब केवल ७५ वर्ष साढ़े आठ माह शेष रह गए थे, तब ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास, आठवे पक्ष, आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की रात्रि को; उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 514 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संवच्छरेण होहिति, अभिणिक्खमणं तु जिणवरिंदस्स । तो अत्थ-संपदाणं, पव्वत्तई पुव्वसूराओ ॥

Translated Sutra: श्री जिनवरेन्द्र तीर्थंकर भगवान का अभिनिष्क्रमण एक वर्ष पूर्ण होते ही होगा, अतः वे दीक्षा लेने से एक वर्ष पहले सांवत्सरिक – वर्षी दान प्रारम्भ कर देते हैं। प्रतिदिन सूर्योदय से लेकर एक प्रहर दिन चढ़ने तक उनके द्वारा अर्थ का दान होता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 517 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वेसमणकुंडलधरा, देवा लोगंतिया महिड्ढीया । बोहिंति य तित्थयरं, पण्णरससु कम्म-भूमिसु ॥

Translated Sutra: कुण्डलधारी वैश्रमणदेव और महान्‌ ऋद्धिसम्पन्न लोकान्तिक देव पंद्रह कर्मभूमियों में (होने वाले) तीर्थंकर भगवान को प्रतिबोधित करते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 519 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एए देवणिकाया, भगवं बोहिंति जिणवरं वीरं । सव्वजगजीवहियं, अरहं तित्थं पव्वत्तेहि ॥

Translated Sutra: ये सब देव निकाय (आकर) भगवान वीर – जिनेश्वर को बोधित (विज्ञप्त) करते हैं – हे अर्हन्‌ देव ! सर्व जगत के लिए हितकर धर्म – तीर्थ का प्रवर्तन करें।
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-१

अध्ययन-१ गौतम

Hindi 1 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नामं नयरी। पुन्नभद्दे चेइए–वन्नओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मे समोसरिए। परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिंपडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अंतेवासी अज्जजंबू जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी– जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं आदिकरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासग-दसाणं अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! अंगस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं अट्ठ वग्गा पन्नत्ता। जइ

Translated Sutra: उस काल और उस समय में चंपा नाम की नगरी थी। पूर्णभद्र चैत्य था। उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा स्वामी चंपा नगरी में पधारे। नगर – निवासी जन नीकले। यावत्‌ वापस लौटे। उस काल आउर उस समय में आर्य सुधर्मा स्वामी के आर्य जंबू पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले – ‘‘हे भगवन्‌ ! यदि श्रुतधर्म की आदि करने वाले तीर्थंकर,
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-३ अनीयश अदि

अध्ययन-९ थी १३

Hindi 14 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स तच्चस्स वग्गस्स अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते। नवमस्स णं भंते! अज्झयणस्स अंतगडदसाणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवईए नयरीए कण्हे नामं वासुदेवे राया जहा पढमए जाव विहरइ। तत्थ णं बारवईए बलदेवे नामं राया होत्था–वन्नओ। तस्स णं बलदेवस्स रन्नो धारिणी नामं देवी होत्था–वन्नओ। तए णं सा धारिणी देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसगंसि सयणिज्जंसि जाव नियगवयणमइवयंतं सीहं सुविणे पासित्ता णं पडिबुद्धा। जहा गोयमे, नवरं–सुमुहे कुमारे। पण्णासं कण्णाओ। पण्णासओ दाओ। चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जइ।

Translated Sutra: ‘‘हे जंबू ! उस काल उस समय में द्वारका नामक नगरी थी, एक दिन भगवान अरिष्टनेमि तीर्थंकर विचरते हुए उस नगरी में पधारे। वहाँ बलदेव राजा था। वर्णन समझ लेना। उसकी धारिणी रानी थी। (वर्णन), उस धारिणी रानी ने सिंह का स्वप्न देखा, तदनन्तर पुत्रजन्म आदि का वर्णन गौतमकुमार की तरह जान लेना। विशेषता यह कि वह बीस वर्ष की दीक्षापर्याय
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-५ पद्मावती आदि

अध्ययन-१ थी १०

Hindi 20 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पंचमस्स वग्गस्स दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नगरी। जहा पढमे जाव कण्हे वासुदेवे आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तस्स णं कण्हस्स वासुदेवस्स पउमावई नाम देवी होत्था–वन्नओ। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी समोसढे जाव संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। कण्हे वासुदेवे निग्गए जाव पज्जुवासइ। तए णं सा पउमावई देवी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणी हट्ठतुट्ठा जहा देवई देवी जाव पज्जुवासइ। तए णं अरहा अरिट्ठनेमी कण्हस्स वासुदेवस्स

Translated Sutra: जम्बूस्वामी ने पुनः पूछा – ‘‘भन्ते ! श्रमण भगवान महावीर ने पंचम वर्ग के दस अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’’ ‘‘हे जंबू ! उस काल उस समय में द्वारका नामक नगरी थी, यावत्‌ श्रीकृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य कर रहे थे। श्रीकृष्ण वासुदेव की पद्मावती नाम की महारानी थी। (राज्ञीवर्णन जान लेना)। उस काल उस
Antkruddashang अंतकृर्द्दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-६ मकाई आदि

अध्ययन-१ थी १४

Hindi 27 Sutra Ang-08 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। चेल्लणा देवी। तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुनए नामं मालागारे परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए। तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था–सूमालपाणिपाया। तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नयरस्स बहिया, एत्थ णं महं एगे पुप्फारामे होत्था–किण्हे जाव महामेहनिउरुंबभूए दसद्धवन्नकुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुनयस्स मालायारस्स अज्जय-पज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–पोराणे

Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नगर था। गुणशीलक उद्यान था। श्रेणिक राजा थे। चेलना रानी थी। ‘अर्जुन’ नाम का एक माली रहता था। उसकी पत्नी बन्धुमती थी, जो अत्यन्त सुन्दर एवं सुकुमार थी। अर्जुन माली का राजगृह नगर के बाहर एक बड़ा पुष्पाराम था। वह पुष्पोद्यान कहीं कृष्ण वर्ण का था, यावत्‌ समुदाय की तरह प्रतीत हो रहा था।
Anuttaropapatikdashang अनुत्तरोपपातिक दशांगसूत्र Ardha-Magadhi

वर्ग-३ धन्य, सुनक्षत्र, ऋषिदास, पेल्लक, रामपुत्र...

अध्ययन-२ थी १०

Hindi 13 Sutra Ang-09 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं तच्चस्स वग्गस्स पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं काकंदी नयरी। जियसत्तू राया। तत्थ णं काकंदीए नयरीए भद्दा नामं सत्थवाही परिवसइ–अड्ढा। तीसे णं भद्दाए सत्थवाहीए पुत्ते सुनक्खत्ते नामं दारए होत्था–अहीन-पडिपुण्ण-पंचेंदियसरीरे जाव सुरूवे पंचधाइपरिक्खित्ते जहा धन्नो तहेव। बत्तीसओ दाओ जाव उप्पिं पासायवडेंसए विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समोसरणं। जहा धन्ने तहा सुनक्खत्ते वि निग्गए। जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अनगारे जाए–इरियासमिए

Translated Sutra: हे जम्बू ! उस काल और उस समय में काकन्दी नगरी थी। उसमें भद्रा नाम की सार्थवाहिनी थी। वह धन – धान्य – सम्पन्ना थी। उस भद्रा सार्थवाहिनी का पुत्र सुनक्षत्र था। वह सर्वाङ्ग – सम्पन्न और सुरूपा था। पाँच धाईयाँ उसके लालन पालन के लिए नीत थीं। जिस प्रकार धन्य कुमार के लिए बत्तीस दहेज आये उसी प्रकार सुनक्षत्र कुमार
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 249 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दंदे? दंदे–दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्‌, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्‌, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्‌, अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम्‌, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम्‌। से तं दंदे। से किं तं बहुव्वीही? बहुव्वीही–फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुडय-कयंबो। से तं बहुव्वीही। से किं तं कम्मधारए? कम्मधारए–धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो। से तं कम्मधारए। से किं तं दिगू? दिगू–तिन्नि कडुयाणि तिकडुयं, तिन्नि महुराणि तिमहुरं, तिन्नि गुणा तिगुणं, तिन्नि पुराणि तिपुरं, तिन्नि सराणि तिसरं, तिन्नि पुक्खराणि

Translated Sutra: द्वन्द्वसमास क्या है ? ‘दंताश्च ओष्ठौ च इति दंतोष्ठम्‌’, ‘स्तनौ च उदरं च इति स्तनोदरम्‌’, ‘वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्‌’ ये सभी शब्द द्वन्द्वसमास रूप हैं। बहुव्रीहिसमास का लक्षण यह है – इस पर्वत पर पुष्पित कुटज और कदंब वृक्ष होने से यह पर्वत फुल्लकुटजकदंब है। यहाँ ‘फुल्लकुटजकदंब’ पर बहुव्रीहिसमास
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 251 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं कम्मनामे? कम्मनामे–दोसिए सोत्तिए कप्पासिए भंडवेयालिए कोलालिए। से तं कम्मनामे। से किं तं सिप्पनामे? सिप्पनामे–वत्थिए तंतिए तुन्नाए तंतुवाए पट्टकारे देअडे वरुडे मुंजकारे कट्ठकारे छत्तकारे वज्झकारे पोत्थकारे चित्तकारे दंतकारे लेप्पकारे कोट्टिमकारे। से तं सिप्पनामे। से किं तं सिलोगनामे? सिलोगनामे–समणे माहणे सव्वातिही। से तं सिलोगनामे। से किं तं संजोगनामे? संजोगनामे–रण्णो ससुरए, रण्णो जामाउए, रण्णो साले, रण्णो भाउए, रण्णो भगिणीवई से तं संजोगनामे। से किं तं समीवनामे? समीवनामे–गिरिस्स समीवे नगरं गिरिनगरं, विदिसाए समीवे नगरं वेदिसं, वेन्नाए समीवे

Translated Sutra: कर्मनाम क्या है ? दौष्यिक, सौत्रिक, कार्पासिक, सूत्रवैचारिक, भांडवैचारि, कौलालिक, ये सब कर्म – निमित्तज नाम हैं। तौन्निक तान्तुवायिक, पाट्टकारिक, औद्‌वृत्तिक, वारुंटिक मौञ्जकारिक, काष्ठकारिक छात्रकारिक वाह्यकारिक, पौस्तकारिक चैत्रकारिक दान्तकारिक लैप्यकारिक शैलकारिक कौटिटमकारिक। यह शिल्पनाम हैं। सभी
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 309 Sutra Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे। से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य। से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे। से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे। से किं तं पायसाहम्मे?

Translated Sutra: आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है। उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे – साधर्म्योपनीत और वैधर्म्योपनीत। जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्योपनीत कहते
Anuyogdwar अनुयोगद्वारासूत्र Ardha-Magadhi

अनुयोगद्वारासूत्र

Hindi 312 Gatha Chulika-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुरवर-कवाड-वच्छा, फलिहभुया दुंदुहि-त्थणियघोसा । सिरिवच्छंकियवच्छा, सव्वे वि जिणा चउव्वीसं ॥

Translated Sutra: सभी चौबीस जिन – तीर्थंकर प्रधान – उत्तम नगर के कपाटों के समान वक्षःस्थल, अर्गला के समान भुजाओं, देवदुन्दुभि या स्तनित के समान स्वर और श्रीवत्स से अंकित वक्षःस्थल वाले होते हैं।
Aturpratyakhyan आतुर प्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

प्रतिक्रमणादि आलोचना

Hindi 12 Gatha Painna-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस करेमि पणामं जिनवरवसहस्स वद्धमाणस्स । सेसाणं च जिनाणं सगणहराणं च सव्वेसिं ॥

Translated Sutra: जिनो में वृषभ समान वर्द्धमानस्वामी को और गणधर सहित बाकी सभी तीर्थंकर को मैं नमस्कार करता हूँ
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 10 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे– ... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम

Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर आदिकर, तीर्थंकर, स्वयं – संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर – पुंडरीक, पुरुषवर – गन्धहस्ती, अभयप्रदायक, चक्षु – प्रदायक, मार्ग – प्रदायक, शरणप्रद, जीवनप्रद, संसार – सागर में भटकते जनों के लिए द्वीप के समान आश्रयस्थान, गति एवं आधारभूत, चार अन्त युक्त पृथ्वी के अधिपति के समान चक्रवर्ती,
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 12 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तस्स पवित्ति वाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए वियसिय वरकमल नयन वयणे पयलिय वरकडग तुडिय केऊर मउड कुंडल हार विरायंतरइयवच्छे पालंब पलंबमाण घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता पाय पीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाइं अनुगच्छइ, ... ...अनुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि

Translated Sutra: भंभसार का पुत्र राजा कूणिक वार्तानिवेदक से यह सूनकर, उसे हृदयंगम कर हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उत्तम कमल के समान उसका मुख तथा नेत्र खिल उठे। हर्षातिरेक जनित संस्फूर्तिवश राजा के हाथों के उत्तम कड़े, बाहुरक्षिका, केयूर, मुकूट, कुण्डल तथा वक्षःस्थल पर शोभित हार सहसा कम्पित हो उठे – राजा के गले में लम्बी माला लटक
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 27 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्देइ वा, जनवूहइ वा जनबोलेइ वा जनकलकलेइ वा जनुम्मीइ वा जनुक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं

Translated Sutra: उस समय चम्पा नगरी के सिंघाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों, गलियों में मनुष्यों की बहुत आवाज आ रही थी, बहुत लोग शब्द कर रहे थे, आपस में कह रहे थे, फुसफुसाहट कर रहे थे। लोगों का बड़ा जमघट था। वे बोल रहे थे। उनकी बातचीत की कलकल सुनाई देती थी। लोगों की मानो एक लहर सी उमड़ी आ रही थी। छोटी – छोटी
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 32 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कूणियस्स रन्नो चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छमाणस्स बहवे अत्थत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किव्विसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणाभिरामाहिं हिययमणिज्जाहिं वग्गूहिं जयविजयमंगलसएहिं अणवरयं अभि-णंदंता य अभित्थुणंता य एवं वयासी–जयजय णंदा! जयजय भद्दा! भद्दं ते, अजियं जिणाहि जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि। इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं बहूइं वासाइं बहूइं वाससयाइं बहूइं वाससहस्साइं

Translated Sutra: जब राजा कूणिक चम्पा नगरी के बीच से गुजर रहा था, बहुत से अभ्यर्थी, कामार्थी, भोगार्थी, लाभार्थी, किल्बिषिक, कापालिक, करबाधित, शांखिक, चाक्रिक, लांगलिक, मुखमांगलिक, वर्धमान, पूष्यमानव, खंडिक – गण, इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनाम, मनोभिराम, हृदय में आनन्द उत्पन्न करने वाली वाणी से एवं जय विजय आदि सैकड़ों मांगलिक शब्दों
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

समवसरण वर्णन

Hindi 33 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ताओ सुभद्दप्पमुहाओ देवीओ अंतोअंतेउरंसि ण्हायाओ कयबलिकम्माओ कय कोउय मंगल पायच्छित्ताओ सव्वालंकारविभूसियाओ बहूहिं खुज्जाहिं चिलाईहि वामणीहिं वडभीहिं बब्बरीहिं पउसियाहिं जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं थारुइणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं सिंहलीहिं दमिलीहिं आरबीहिं पुलिंदीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मरुंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं णाणादेसीहिं विदेसपरिमंडियाहिं इंगिय चिंतिय पत्थिय वियाणियाहिं सदेसणेवत्थ गहियवेसाहिं चेडियाचक्कवाल वरिसधर कंचुइज्ज महत्तरवंदपरिक्खित्ताओ अंतेउराओ निग्गच्छंति, ... ...निग्गच्छित्ता जेणेव पाडियक्कजाणाइं तेणेव उवागच्छंति,

Translated Sutra: तब सुभद्रा आदि रानियों ने अन्तःपुर में स्नान किया, नित्य कार्य किये। कौतुक की दृष्टि से आँखों में काजल आंजा, लालट पर तिलक लगाया, प्रायश्चित्त हेतु चन्दन, कुंकुम, दधि, अक्षत आदि से मंगल – विधान किया। वे सभी अलंकारों से विभूषित हुईं। फिर बहुत सी देश – विदेश की दासियों, जिनमें से अनेक कुबड़ी थीं; अनेक किरात देश की
Auppatik औपपातिक उपांग सूत्र Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Hindi 48 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ते णं परिव्वाया रिउवेद यजुव्वेद सामवेद अहव्वणवेद इतिहासपंचमाणं निघंटु छट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा धारगा सडंगवी सट्ठितंतविसारया संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठया यावि होत्था। ते णं परिव्वाया दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणा पन्नवेमाणा परूवेमाणा विहरंति। जं णं अम्हं किं चि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए य पक्खालियं समाणं सुई भवइ। एवं खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलपूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गमिस्सामो। तेसि णं परिव्वायाणं

Translated Sutra: वे परिव्राजक ऋक्‌, यजु, साम, अथर्वण – इन चारों वेदों, पाँचवे इतिहास, छठे निघण्टु के अध्येता थे। उन्हें वेदों का सांगोपांग रहस्य बोधपूर्वक ज्ञान था। वे चारों वेदों के सारक, पारग, धारक, तथा वेदों के छहों अंगों के ज्ञाता थे। वे षष्टितन्त्र – में विशारद या निपुण थे। संख्यान, शिक्षा, वेद मन्त्रों के उच्चारण के विशिष्ट
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 132 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तुंगियाए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु जाव एगदिसाभिमुहा निज्जायंति। तए णं ते समणोवासया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना जाव अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता णं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। तं महाफलं खलु देवानुप्पिया! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन-वंदन-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स

Translated Sutra: तदनन्तर तुंगिकानगरी के शृंगाटक मार्गमें, त्रिक रास्तोंमें, चतुष्क पथोंमें तथा अनेक मार्ग मिलते हैं, ऐसे मार्गों में, राजमार्गों में एवं सामान्य मार्गों में यह बात फैल गई। परीषद्‌ एक ही दिशामें उन्हें वन्दन करने के लिए जाने लगी। जब यह बात तुंगिकानगरी के श्रमणोपासकों को ज्ञात हुई तो वे अत्यन्त हर्षित और सन्तुष्ट
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 133 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं तीसे महइमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेंति, तं जहा– सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादानाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं। तए णं ते समणोवासया थेराणं भगवंताणं अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता एवं वयासी– संजमेणं भंते! किंफले? तवे किंफले? तए णं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वयासी–संजमे णं अज्जो! अणण्हयफले, तवे वोदाणफले। तए णं ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वयासी–जइ णं भंते! संजमे अणण्हयफले, तवे वोदाणफले।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उन स्थविर भगवंतों ने उन श्रमणोपासकों तथा उस महती परीषद्‌ (धर्मसभा) को केशीश्रमण की तरह चातुर्याम – धर्म का उपदेश दिया। यावत्‌ वे श्रमणोपासक अपनी श्रमणोपासकता द्वारा आज्ञा के आराधक हुए। यावत्‌ धर्म – कथा पूर्ण हुई। तदनन्तर वे श्रमणोपासक स्थविर भगवंतों से धर्मोपदेश सूनकर एवं हृदयंगम करके बड़े
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 134 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव संखित्तविपुलतेयलेस्से छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाइं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणाइं पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाइं उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ,

Translated Sutra: उस काल, उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ (श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। परीषद्‌ वन्दना करने गई यावत्‌ धर्मोपदेश सूनकर) परीषद्‌ वापस लौट गई। उस काल, उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार थे। यावत्‌ वे विपुल तेजोलेश्या को अपने शरीर में संक्षिप्त करके रखते थे। वे निरन्तर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 135 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहारूवं णं भंते! समणं वा माहणं वा पज्जुवासमाणस्स किंफला पज्जुवासणा? गोयमा! सवणफला। से णं भंते! सवणे किंफले? नाणफले। से णं भंते! नाणे किंफले? विन्नाणफले। से णं भंते! विण्णाणे किंफले? पच्चक्खाणफले। से णं भंते! पच्चक्खाणे किंफले? संजमफले। से णं भंते! संजमे किंफले? अणण्हयफले। से णं भंते! अणण्हए किंफले? तवफले। से णं भंते! तवे किंफले? वोदाणफले। से णं भंते! वोदाणे किंफले? अकिरियाफले। सा णं भंते! अकिरिया किंफला? सिद्धिपज्जवसाणफला–पन्नत्ता गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण या माहन की पर्युपासना करने वाले मनुष्य को उसकी पर्युपासना का क्या फल मिलता है ? गौतम ! तथारूप श्रमण या माहन के पर्युपासक को उसकी पर्युपासना का फल होता है – श्रवण। भगवन्‌ ! उस श्रवण का क्या फल होता है ? गौतम ! श्रवण का फल ज्ञान है। भगवन्‌ ! उन ज्ञान का क्या फल है ? गौतम ! ज्ञान का फल विज्ञान है। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 136 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सवणे नाणे य विन्नाणे, पच्चक्खाणे य संजमे । अणण्हए तवे चेव, वोदाने अकिरिया सिद्धी ॥

Translated Sutra: (पर्युपासना का प्रथम फल) श्रवण, (श्रवण का फल) ज्ञान, (ज्ञान का फल) विज्ञान, (विज्ञान का फल) प्रत्याख्यान, (प्रत्याख्यान का फल) संयम, (संयम का फल) अनाश्रवत्व, (अनाश्रवत्व का फल) तप, (तप का फल) व्यवदान, (व्यवदान का फल) अक्रिया और (अक्रिया का फल) सिद्धि है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 137 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति, भासंति, पन्नवेंति, परूवेंति–एवं खलु रायगिहस्स नयरस्स बहिया वेभारस्स पव्वयस्स अहे, एत्थ णं महं एगे हरए अघे पन्नत्ते– अनेगाइं जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, नाणादुमसंडमंडिउद्देसे, सस्सिरीए पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं बहवे ओराला बलाहया संसेयंति संमुच्छंति वासंति। तव्वइरित्ते य णं सया समियं उसिणे-उसिणे आउकाए अभिनिस्सवइ। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव जे ते एवमाइक्खंति, मिच्छं ते एवमाइक्खंति। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि, भासामि, पन्नवेमि, परूवेमि– एवं खलु रायगिहस्स नयरस्स बहिया वेभारस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि ‘राजगृह नगर के बाहर वैभारगिरि के नीचे एक महान (बड़ा भारी) पानी का ह्रद है। उसकी लम्बाई – चौड़ाई अनेक योजन है। उसका अगला भाग अनेक प्रकार के वृक्षसमूह से सुशोभित है, वह सुन्दर है, यावत्‌ प्रतिरूप है। उस ह्रद में अनेक उदार मेघ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

Hindi 6 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगनाहे लोगपदीवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खु- दए मग्गदए सरणदए धम्मदेसए धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिने जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुयमणंतमक्खय- मव्वाबाहं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामे… …जाव पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव रायगिहे नगरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं

Translated Sutra: उस काल में, उस समय में (वहाँ) श्रमण भगवान महावीर स्वामी विचरण कर रहे थे, जो आदि – कर, तीर्थंकर, स्वयं तत्त्व के ज्ञाता, पुरुषोत्तम, पुरुषों में सिंह की तरह पराक्रमी, पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक – श्वेत कमल रूप, पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहितकर, लोक – प्रदीप, लोकप्रद्योतकर, अभयदाता,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 97 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पन्नवेंति, एवं परूवेंति–एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पकरेति, तं जहा–इहभवियाउयं च, परभवियाउयं च। जं समयं इहभवियाउयं पकरेति, तं समयं परभवियाउयं पकरेति। जं समयं परभवियाउयं पकरेति, तं समयं इहभवियाउयं पकरेति। इहभवियाउयस्स पकरणयाए परभवियाउयं पकरेति, परभवियाउयस्स पकरणयाए इहभवियाउयं पकरेति। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पकरेति, तं जहा–इहभवियाउयं च, परभवियाउयं च। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पकरेति, तं जहा–इहभ-वियाउयं च, परभवियाउयं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, इस प्रकार विशेषरूप से कहते हैं, इस प्रकार बताते हैं, और इस प्रकार की प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो आयुष्य करता (बाँधता) है। वह इस प्रकार – इस भव का आयुष्य और परभव का आयुष्य। जिस समय इस भव का आयुष्य करता है, उस समय परभव का आयुष्य करता है और जिस समय परभव का आयुष्य करता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१० चलन Hindi 102 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पन्नवेंति, एवं परूवेंति – एवं खलु चलमाणे अचलिए। उदीरिज्जमाणे अनुदीरिए। वेदिज्जमाणे अवेदिए। पहिज्जमाणे अपहीने। छिज्जमाणे अच्छिन्ने भिज्जमाणे अभिन्ने। दज्झमाणे अदड्ढे। भिज्जमाणे अमए। निज्जरिज्जमाणे अनिज्जिण्णे। दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति, कम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति? दोण्हं परमाणुपोग्गलाणं नत्थि सिनेहकाए, तम्हा दो परमाणुपोग्गला एगयओ न साहण्णंति। तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति, कम्हा तिन्नि परमाणुपोग्गला एगयओ साहण्णंति? तिण्हं परमाणुपोग्गलाणं अत्थि सिनेहकाए, तम्हा तिन्नि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि – जो चल रहा है, वह अचलित है – चला नहीं कहलाता और यावत्‌ – जो निर्जीर्ण हो रहा है, वह निर्जीर्ण नहीं कहलाता। दो परमाणुपुद्‌गल एक साथ नहीं चिपकते। दो परमाणुपुद्‌गल एक साथ क्यों नहीं चिपकते ? इसका कारण यह है कि दो परमाणु – पुद्‌गलों में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१० चलन Hindi 103 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पन्नवेंति, एवं परूवेंति–एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, तं जहा–इरियावहियं च, संपराइयं च। जं समयं इरियावहियं पकरेइ, तं समयं संपराइयं पकरेइ। जं समयं संपराइयं पकरेइ, तं समयं इरियावहियं पकरेइ। इरियावहियाए पकरणयाए संपराइयं पकरेइ। संपराइयाए पकरणयाए इरियावहियं पकरेइ। एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, तं जहा–इरियावहियं च, संपराइयं च। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पन्नवेंति, एवं परूवेंति–एवं खलु एगे जीवे एगेणं समएणं दो किरियाओ पकरेति, जाव इरियावहियं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं – यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करता है। वह इस प्रकार – ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी। जस समय (जीव) एर्यापथिकी क्रिया करता है, उस समय साम्परायिकी क्रिया करता है और जिस समय साम्परायिकी क्रिया करता है, उस समय ऐर्यापथिकी क्रिया करता है। ऐर्यापथिकी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Hindi 115 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे समोसरणं जाव परिसा पडिगया। तए णं तस्स खंदयस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्ठामि, भासं भासित्ता वि गिलामि, भासं भासमाणे गिलामि,

Translated Sutra: उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। समवसरण की रचना हुई। यावत्‌ जनता धर्मोपदेश सूनकर वापिस लौट गई। तदनन्तर किसी एक दिन रात्रि के पीछले प्रहर में धर्म – जागरणा करते हुए स्कन्दक अनगार के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय, चिन्तन यावत्‌ संकल्प उत्पन्न हुआ कि मैं इस प्रकार के उदार यावत्‌ महाप्रभावशाली
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 123 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति भासंति पण्णवंति परूवेंति– १. एवं खलु नियंठे कालगए समाणे देवब्भूएणं अप्पाणेणं से णं तत्थ नो अन्ने देवे, नो अन्नेसिं देवाणं देवीओ आभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेइ, नो अप्पणिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेइ, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउ-व्विय परियारेइ। २. एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो वेदे वेदेइ, तं जहा–इत्थिवेदं च, पुरिसवेदं च। जं समयं इत्थिवेयं वेएइ तं समयं पुरिसवेयं वेएइ। इत्थिवेयस्स वेयणाए पुरिसवेयं वेएइ, पुरिसवेयस्स वेयणाए इत्थिवेयं वेएइ। एवं खलु एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो वेदे वेदेइ, तं जहा– इत्थिवेदं च,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बताते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि कोई भी निर्ग्रन्थ मरने पर देव होता है और वह देव, वहाँ दूसरे देवों के साथ, या दूसरे देवों की देवियों के साथ, उन्हें वश में करके या उनका आलिंगन करके, परिचारणा नहीं करता, तथा अपनी देवियों को वशमें करके या आलिंगन करके उनके साथ भी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 124 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उदगब्भे णं भंते! उदगब्भे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एकं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा। तिरिक्खजोणियगब्भे णं भंते! तिरिक्खजोणियगब्भे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अट्ठ संवच्छराइं। मनुस्सीगब्भे णं भंते! मनुस्सीगब्भे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उदकगर्भ, उदकगर्भ के रूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट छह मास तक उदकगर्भ, उदकगर्भरूप में रहता है। भगवन्‌ ! तिर्यग्योनिकगर्भ कितने समय तक तिर्यग्योनिकगर्भरूप में रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट आठ वर्ष। भगवन्‌ ! मानुषीगर्भ, कितने समय तक मानुषीगर्भरूप में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 125 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कायभवत्थे णं भंते! कायभवत्थे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चउवीसं संवच्छराइं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! काय – भवस्थ कितने समय तक काय – भवस्थरूप में रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट चौबीस वर्ष तक रहता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 126 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्स-पंचेंदियतिरिक्खजोणियबीए णं भंते! जोणिब्भूए केवतियं कालं संचिट्ठइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मानुषी और पंचेन्द्रियतिर्यंची योनिगत बीज योनिभूतरूप में कितने समय तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त्त।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 127 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगजीवे णं भंते! एगभवग्गहणेणं केवइयाणं पुत्तत्ताए हव्वामागच्छइ? गोयमा! जहन्नेणं इक्कस्स वा दोण्ह वा तिण्ह वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तस्स जीवा णं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक जीव, एक भव की अपेक्षा कितने जीवों का पुत्र हो सकता है ? गौतम ! एक जीव, एक भव में जघन्य एक जीव का, दो जीवों का अथवा तीन जीवों का, और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व जीवों का पुत्र हो सकता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 128 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगजीवस्स णं भंते! एगभवग्गहणेणं केवइया जीवा पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवा णं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवा णं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति? गोयमा! इत्थीए पुरिसस्स य कम्मकडाए जोणीए मेहुणवत्तिए नामं संजोए समुप्पज्जइ। ते दुहओ सिणेहं चिणंति, चिणित्ता तत्थ णं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सयसहस्सपुहत्तं जीवा णं पुत्तत्ताए हव्वमागच्छंति। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जहन्नेणं एक्को वा दो

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक जनीव के एक भव में कितने जीव पुत्ररूप में (उत्पन्न) हो सकते हैं ? गौतम ! जघन्य एक, दो अथवा तीन जीव और उत्कृष्ट लक्षपृथक्त्व जीव पुत्ररूप में (उत्पन्न) हो सकते हैं। भगवन्‌ ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? हे गौतम ! कर्मकृत योनि में स्त्री और पुरुष का जब मैथुनवृत्तिक संयोग निष्पन्न होता है, तब उन दोनों के स्नेह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 129 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मेहुणण्णं भंते! सेवमाणस्स केरिसए असंजमे कज्जई? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे रूयनालियं वा बूरनालियं वा तत्तेणं कनएणं समभिद्धंसेज्जा, एरिसएणं गोयमा! मेहुणं सेवमाणस्स असंजमे कज्जइ। सेवं भंते! सेवं भंते! जाव विहरइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मैथुनसेवन करते हुए जीव के किस प्रकार का असंयम होता है ? गौतम ! जैसे कोई पुरुष तपी हुई सोने की (या लोहे की) सलाई (डालकर, उस) से बाँस की रूई से भरी हुई नली या बूर नामक वनस्पतिसे भरी नली को जला डालता है, हे गौतम ! ऐसा ही असंयम मैथुन सेवन करते हुए जीव के होता है। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 130 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनि-क्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगिया नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं तुंगियाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे पुप्फवतिए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तत्थ णं तुंगियाए नयरीए बहवे समणोवासया परिवसंति– अड्ढा दित्ता वित्थिण्णविपुलभवन-सयनासन-जानवाहणाइण्णा बहुधन-बहुजायरूव-रयया आयोगपयोगसंपउत्ता विच्छड्डियविपुल-भत्तपाना बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलयप्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा उवलद्ध-पुण्ण-पावा-आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिकरणबंधपमोक्खकुसला असहेज्जा

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ (एकदा) श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर के गुणशील उद्यान से नीकलकर बाहर जनपदों में विहार करने लगे। उस काल उस समय में तुंगिका नामकी नगरी थी। उस तुंगिका नगरी के बाहर ईशान कोण में पुष्पवतिक नामका चैत्य था। उस तुंगिकानगरी में बहुत – से श्रमणोपासक रहते थे। वे आढ्य और दीप्त थे। उनके विस्तीर्ण निपुल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 131 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना रूवसंपन्ना विनयसंपन्ना नाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघवसंपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जियनिद्दा जिइंदिया जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का तवप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा निग्गहप्पहाणा निच्छयप्पहाणा मद्दवप्पहाणा अज्जवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जा-प्पहाणा मंतप्पहाणा वेयप्पहाणा बंभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सच्चप्पहाणा सोयप्पहाणा चारुपण्णा सोही अणियाणा

Translated Sutra: उस काल और उस समय में पार्श्वापत्यीय स्थविर भगवान पाँच सौ अनगारों के साथ यथाक्रम से चर्या करते हुए, ग्रामानुग्राम जाते हुए, सुखपूर्वक विहार करते हुए तुंगिका नगरी के पुष्पवतिकचैत्य पधारे। यथारूप अवग्रह लेकर संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए वहाँ विहरण करने लगे। वे स्थविर भगवंत जाति – सम्पन्न, कुलसम्पन्न,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-३ जालग्रंथिका Hindi 223 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति भासंति पन्नवेंति परूवेंति–से जहानामए जालगंठिया सिया–आनुपुव्विगढिया अनंतरगढिया परंपरगढिया अन्नमन्नगढिया, अन्नमन्नगरुयत्ताए अन्नमन्नभारियत्ताए अन्नमन्नगरुय संभारियत्ताए अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठइ, एवामेव बहूणं जीवाणं बहूसु आजातिसहस्सेसु बहूइं आउयसहस्साइं आनुपुव्विगढियाइं जाव चिट्ठंति। एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो आउयाइं पडिसंवेदेइ, तं जहा –इहभवियाउयं च, परभवियाउयं च। जं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ, तं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ। जं समयं परभवियाउयं पडिसंवेदेइ, तं समयं इहभवियाउयं पडिसंवेदेइ । इहभवियाउयस्स पडिसंवेदणयाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं, भाषण करते हैं, बतलाते हैं, प्ररूपणा करते हैं कि जैसे कोई (एक) जालग्रन्थि हो, जिसमें क्रम से गाँठें दी हुई हों, एक के बाद दूसरी अन्तररहित गाँठें लगाई हुई हों, परम्परा से गूँथी हुईं हों, परस्पर गूँथी हुई हों, ऐसी वह जालग्रन्थि परस्पर विस्तार रूप से, परस्पर भाररूप से तथा परस्पर विस्तार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-५ छद्मस्थ Hindi 242 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति–सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता एवं भूयं वेदनं वेदेंति। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव सव्वे सत्ता एवंभूयं वेदनं वेदेंति। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि–अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदेणं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदनं वेदेंति। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता एवंभूयं वेदनं वेदेंति, अत्थेगइया पाणा भूया जीवा सत्ता अनेवंभूयं वेदनं वेदेंति? गोयमा! जे णं पाणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक ऐसा कहते हैं यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि समस्त प्राण, समस्त भूत, समस्त जीव और समस्त सत्त्व, एवंभूत (जिस प्रकार कर्म बाँधा है, उसी प्रकार) वेदना वेदते हैं, भगवन्‌ ! यह ऐसा कैसे है ? गौतम ! वे अन्यतीर्थिक जो इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्व एवंभूत वेदना
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-५ छद्मस्थ Hindi 243 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते इह भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए समाए कइ कुलगरा होत्था, गोयमा! सत्त एव तित्थयरमायरो पियरो पढमा सिस्सिणीओ चक्कवट्टिमायरो इत्थिरयणं बलदेवा वासुदेवा वासुदेव मायरो लदेव वासुदेव पियरो एएसिं पडिसत्तु जहा समवाए परिवाडी तहा नेयव्वा सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ॥

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में, इस भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणी काल में कितने कुलकर हुए हैं ? गौतम ! सात। इसी तरह तीर्थंकरों की माता, पिता, प्रथम शिष्याएं, चक्रवर्तियों की माताएं, स्त्रीरत्न, बलदेव, वासुदेव, वासुदेवों के माता – पिता, प्रतिवासुदेव आदि का कथन जिस प्रकार ‘समवायांगसूत्र’ अनुसार यहाँ भी कहना। ‘हे भगवन्‌ ! यह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-५

उद्देशक-६ आयु Hindi 248 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमातिक्खंति जाव परूवेंति– से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं बहुसमाइण्णे मनुयलोए मनुस्सेहिं। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमातिक्खंति जाव बहुसमाइण्णे मनुयलोए मनुस्सेहिं। जे ते एवमाहंसु, मिच्छं ते एवमाहंसु। अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि– से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एमामेव जाव चत्तारि पंच जोयणसयाइं बहुसमाइण्णे निरयलोए नेरइएहिं।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि जैसे कोई युवक अपने हाथ से युवती का हाथ पकड़े हुए हो, अथवा जैसे आरों से एकदम सटी (जकड़ी) हुई चक्र की नाभि हो, इसी प्रकार यावत्‌ चार सौ – पाँच सौ योजन तक यह मनुष्यलोक मनुष्यों से ठसाठस भरा हुआ है। भगवन्‌ ! यह सिद्धान्त प्ररूपण कैसे है ? हे गौतम ! अन्यतीर्थियों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 320 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति जावतिया रायगिहे नयरे जीवा, एवइयाणं जीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मासमायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए। से कहमेयं भंते! एवं? गोयमा! जं णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव मिच्छं ते एवमाहंसु, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि सव्वलोए वि य णं सव्वजीवाणं नो चक्किया केइ सुहं वा दुहं वा जाव कोलट्ठिगमायमवि, निप्फावमायमवि, कलमायमवि, मास-मायमवि, मुग्गमायमवि, जूयामायमवि, लिक्खामायमवि अभिनिवट्टेत्ता उवदंसेत्तए। से केणट्ठेणं?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक कहते हैं, यावत्‌ प्ररूपणा करते हैं कि राजगृह नगर में जितने जीव हैं, उन सबके दुःख या सुख को बेर की गुठली जितना भी, बाल (एक धान्य) जितना भी, कलाय जितना भी, उड़द जितना भी, मूँग – प्रमाण, यूका प्रमाण, लिक्षा प्रमाण भी बाहर नीकाल कर नहीं दिखा सकता। भगवन्‌ ! यह बात यों कैसे हो सकती है ? गौतम ! जो अन्यतीर्थिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-६

उद्देशक-१० अन्यतीर्थिक Hindi 321 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! जीवे? जीवे जीवे? गोयमा! जीवे ताव नियमा जीवे, जीवे वि नियमा जीवे। जीवे णं भंते! नेरइए? नेरइए जीवे? गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय नेरइए, सिय अनेरइए। जीवे णं भंते! असुरकुमारे? असुरकुमारे जीवे? गोयमा! असुरकुमारे ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय नोअसुरकुमारे। एवं दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं। जीवति भंते! जीवे? जीवे जीवति? गोयमा! जीवति ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय जीवति, सिय नो जीवति। जीवति भंते! नेरइए? नेरइए जीवति? गोयमा! नेरइए ताव नियमा जीवति, जीवति पुण सिय नेरइए, सिय अनेरइए। एवं दंडओ नेयव्वो जाव वेमाणियाणं। भवसिद्धिए णं भंते! नेरइए? नेरइए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या जीव चैतन्य है या चैतन्य जीव है ? गौतम ! जीव तो नियमतः चैतन्य स्वरूप है और चैतन्य भी निश्चितरूप से जीवरूप है। भगवन्‌ ! क्या जीव नैरयिक है या नैरयिक जीव है ? गौतम ! नैरयिक तो नियमतः जीव है और जीव तो कदाचित्‌ नैरयिक भी हो सकता है, कदाचित्‌ नैरयिक से भिन्न भी हो सकता है। भगवन्‌ ! क्या जीव, असुरकुमार है या असुरकुमार
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