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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Hindi | 438 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो पंच संगामिया अनिया, पंच संगामिया अनियाधिवती पन्नत्ता, तं जहा – पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए, रहाणिए।
दुमे पायत्तानियाधिवती, सोदामे आसराया पीढानियाधिवती, कुंथू हत्थिराया कुंजराणिया-धिवती, लोहितक्खे महिसानियाधिवती, किन्नरे रधानियाधिवती।
बलिस्स णं वइरोणिंदस्स वइरोयणरण्णो पंच संगामियाणिया, पंच संगामियानियाधिवती पन्नत्ता, तं जहा–पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए, रधाणिए।
महद्दुमे पायत्तानियाधिवती, महासोदामे आसराया पीढानियाधिवती, मालंकारे हत्थिराया कुंजरानियाधिवती, महालोहिअक्खे महिसानियाधिवती, Translated Sutra: चमर असुरेन्द्र की पाँच सेनाएं हैं और उनके पाँच सेनापति हैं। यथा – पैदल सेना, अश्व सेना, हस्ति सेना, महिष सेना, रथ सेना। पाँच सेनापति है। द्रुम – पैदल सेना का सेनापति। सौदामी अश्वराज – अश्व सेना का सेनापति। कुंथु हस्ती राज – हस्तिसेना का सेनापति। लोहिताक्षमहिषराज – महिष सेना का सेनापति। किन्नर – रथ सेना का | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Hindi | 764 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नंदुत्तरा य नंदा, आनंदा नंदिवद्धणा ।
विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७६३ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 974 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इसिदासे य धन्ने य, सुनक्खत्ते कातिए ति य संठाणे सालिभद्दे य ।
आनंदे तेतली ति य दसण्णभद्दे अतिमुत्ते, एमेते दस आहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९७३ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 329 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं जे से पुरत्थिमिल्ले अंजनगपव्वते, तस्स णं चउद्दिसिं चत्तारि नंदाओ पुक्खरिणीओ पन्नत्ताओ, तं जहा –णंदुत्तरा, नंदा, आनंदा, नंदिवद्धणा। ताओ णं नंदाओ पुक्खरिणीओ एगं जोयणसयसहस्सं आयामेणं, पण्णासं जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, दसजोयणसत्ताइं उव्वेहेणं।
तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पन्नत्ता।
तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरतो चत्तारि तोरणा पन्नत्ता, तं जहा– पुरत्थिमे णं, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं।
तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं चउद्दिसिं चत्तारि वनसंडा पन्नत्ता, तं जहा–पुरतो, दाहिणे णं, पच्चत्थिमे णं, Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૨૭ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 438 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो पंच संगामिया अनिया, पंच संगामिया अनियाधिवती पन्नत्ता, तं जहा – पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए, रहाणिए।
दुमे पायत्तानियाधिवती, सोदामे आसराया पीढानियाधिवती, कुंथू हत्थिराया कुंजराणिया-धिवती, लोहितक्खे महिसानियाधिवती, किन्नरे रधानियाधिवती।
बलिस्स णं वइरोणिंदस्स वइरोयणरण्णो पंच संगामियाणिया, पंच संगामियानियाधिवती पन्नत्ता, तं जहा–पायत्ताणिए, पीढाणिए, कुंजराणिए, महिसाणिए, रधाणिए।
महद्दुमे पायत्तानियाधिवती, महासोदामे आसराया पीढानियाधिवती, मालंकारे हत्थिराया कुंजरानियाधिवती, महालोहिअक्खे महिसानियाधिवती, Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૩૫ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Gujarati | 764 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नंदुत्तरा य नंदा, आनंदा नंदिवद्धणा ।
विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिया ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૪૭ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 974 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इसिदासे य धन्ने य, सुनक्खत्ते कातिए ति य संठाणे सालिभद्दे य ।
आनंदे तेतली ति य दसण्णभद्दे अतिमुत्ते, एमेते दस आहिया ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૬૬ | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१० |
प्राभृत-प्राभृत-१३ | Hindi | 57 | Sutra | Upang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते मुहुत्ताणं नामधेज्जा आहिताति वदेज्जा? ता एगमेगस्स णं अहोरत्तस्स तीसं मुहुत्ता पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: हे भगवन् ! मुहूर्त्त के नाम किस प्रकार हैं ? एक अहोरात्र के तीस मुहूर्त्त बताये हैं – यथानुक्रम से – इस प्रकार से हैं। रौद्र, श्रेयान्, मित्रा, वायु, सुग्रीव, अभिचन्द्र, माहेन्द्र, बलवान्, ब्रह्मा, बहुसत्य, ईशान तथा – त्वष्ट्रा, भावितात्मा, वैश्रवण, वरुण, आनंद, विजया, विश्वसेन, प्रजापति, उपशम तथा – गंधर्व, अग्निवेश, | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१० |
प्राभृत-प्राभृत-१३ | Hindi | 59 | Gatha | Upang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तट्ठे य भावियप्पा, वेसमणे वारुणे य आनंदे ।
विजए य वीससेने, पायावच्चे चेव उवसमे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ५७ | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१० |
प्राभृत-प्राभृत-१३ | Gujarati | 59 | Gatha | Upang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तट्ठे य भावियप्पा, वेसमणे वारुणे य आनंदे ।
विजए य वीससेने, पायावच्चे चेव उवसमे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૭ | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-६ वीरस्तुति |
Hindi | 362 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुट्ठे णभे चिट्ठइ भूमिवट्ठिए जं सूरिया अणुपरिवट्टयंति ।
से हेमवण्णे बहुणंदणे य जंसी रइं वेययई महिंदा ॥ Translated Sutra: वह गगनचुम्बी सुमेरु पृथ्वी पर स्थित है। जिसकी सूर्य परिक्रमा करता है। वह हेमवर्णीय एवं बहु आनन्द दायी है। वहाँ महेन्द्र आनंदानुभव करते हैं। | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 1 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ।
पुण्णभद्दे चेइए–वण्णओ। Translated Sutra: उस काल, उस समय में, चम्पा नामक नगरी थी, पूर्णभद्र चैत्य था। (वर्णन औपपातिक सूत्र समान)। | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 2 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं थेरे जातिसंपन्ने कुलसंपन्ने बलसंपन्ने रूवसंपन्ने विनयसंपन्ने नाणसंपन्ने दंसणसंपन्ने चरित्तसंपन्ने लज्जासंपन्ने लाघवसंपन्ने ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाने जियमाए जियलोहे जियनिद्दे जिइंदिए जियपरीसहे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे वेयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे Translated Sutra: उस काल उस समय आर्यसुधर्मा समवसृत हुए। आर्य सुधर्मा के ज्येष्ठ अन्तेवासी आर्य जम्बू नामक अनगार ने – पूछा छठे अंग नायाधम्मकहाओ का जो अर्थ बतलाया, वह मैं सून चूका हूँ। भगवान ने सातवें अंग उपासकदशा का क्या अर्थ व्याख्यात किया ? जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने सातवे अंग उपासकदशा के दस अध्ययन प्रज्ञप्त किये। – आनन्द, | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 3 | Gatha | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आनंदे कामदेवे य, गाहावतिचुलनीपिता ।
सुरादेवे चुल्लसयए, गाहावइकुंडकोलिए ॥
सद्दालपुत्ते महासतए, नंदिणीपिया लेइयापिता ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २ | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 4 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? Translated Sutra: भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने सातवे अंग उपासकदशा के जो दस अध्ययन व्याख्यात किए, उनमें उन्होंने पहले अध्ययन का क्या अर्थ – कहा ? | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 5 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नयरे होत्था–वण्णओ।
तस्स वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं दूइपलासए नामं चेइए।
तत्थ णं वाणियगामे नयरे जियसत्तू राया होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं वाणियगामे नयरे आनंदे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न-विउलभवन-सयनासन-जाण-वाहने बहुधन-जायरूव-रयए आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डियपउर-भत्तपाणे बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए बहुजनस्स अपरिभूए।
तस्स णं आनंदस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ वड्ढिपउत्ताओ चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि Translated Sutra: जम्बू ! उस काल, उस समय, वाणिज्यग्राम नगर था। उस के बाहर – ईशान कोण में दूतीपलाश चैत्य था। जितशत्रु वहाँ का राजा था। वहाँ वाणिज्यग्राम में आनन्द नामक गाथापति था जो धनाढ्य यावत् अपरिभूत था। आनन्द गाथापति का चार करोड़ स्वर्ण खजाने में, चार करोड़ स्वर्ण व्यापार में, चार करोड़ स्वर्ण – धन, धान्य आदि में लगा था। उसके | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 6 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे आनंदस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्मं परिकहेइ।
परिसा पडिगया, राया य गए। Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर ने आनन्द गाथापति तथा महती परीषद् को धर्मोपदेश किया। पर्षदा वापस लौटी और राजा भी नीकला। | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 7 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं। एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! असंदिद्ध मेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते! जहेयं तुब्भे वदह।
जहा णं देवानुप्पियाणं Translated Sutra: तब आनन्द गाथापति श्रमण भगवान महावीर से धर्म का श्रवण कर हर्षित व परितुष्ट होता हुआ यों बोला – भगवन् ! मुझे निर्ग्रन्थ प्रवचन में श्रद्धा है, विश्वास है। निर्ग्रन्थ – प्रवचन मुझे रुचिकर है। वह ऐसा ही है, तथ्य है, सत्य है, इच्छित है, प्रतीच्छित है, इच्छित – प्रतिच्छित है। यह वैसा ही है, जैसा आपने कहा। देवानुप्रिय | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 8 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए तप्पढमयाए थूलयं पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा।
तयानंतरं च णं थूलयं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा।
तयानंतरं च णं थूलयं अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा।
तयानंतरं च णं सदारसंतोसीए परिमाणं करेइ–नन्नत्थ एक्काए सिवनंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खाइ।
तयानंतरं च णं इच्छापरिमाणं करेमाणे–
(१) हिरण्ण-सुवण्णविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ चउहिं हिरण्णकोडीहिं Translated Sutra: तब आनन्द गाथापति ने श्रमण भगवान महावीर के पास प्रथम स्थूल प्राणातिपात – परित्याग किया। मैं जीवन पर्यन्त दो करण – करना, कराना तथा तीन योग – मन, वचन एवं काया से स्थूल हिंसा का परित्याग करता हूँ, तदनन्तर उसने स्थूल मृषावाद – का परित्याग किया, मैं जीवन भर के लिए दो कारण और तीन योग से स्थूल मृषावाद का परित्याग किया, | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 9 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इहखलु आनंदाइ! समणे भगवं महावीरे आनंदं समणोवासगं एवं वयासी–एवं खलु आनंदा! समणोवासएणं अभिगयजीवाजीवेणं उवलद्धपुण्णपावेणं आसव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्खकुसलेणं असहेज्जेणं, देवासुर-नाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अनइक्कमणिज्जेणं सम्मत्तस्स पंच अति-यारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. संका, २. कंखा, ३. वितिगिच्छा, ४. परपासंडपसंसा, ५. परपासंडसंथवो।
तयानंतरं च णं थूलयस्स पाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अतियारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. बंधे २. वहे ३. छविच्छेदे ४. अतिभारे Translated Sutra: भगवान महावीर ने श्रमणोपासक आनन्द से कहा – आनन्द ! जिसने जीव, अजीव आदि पदार्थों के स्वरूप को यथावत् रूप में जाना है, उसको सम्यक्त्व के पाँच प्रधान अतिचार जानने चाहिए और उनका आचरण नहीं करना चाहिए। यथा – शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, पर – पाषंड – प्रशंसा तथा पर – पाषंड – संस्तव। इसके बाद श्रमणोपासक को स्थूल – प्राणातिपातविरमण | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 10 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं–दुवालसविहं सावयधम्मं पडिवज्जति, पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–नो खलु मे भंते! कप्पइ अज्जप्पभिइं अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिय-देवयाणि वा अन्नउत्थिय-परिग्गहियाणि वा अरहंतचेइयाइं वंदित्तए वा नमंसित्तए वा, पुव्विं अणालत्तेणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा, तेसिं असणं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पदाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तिकंतारेणं।
कप्पइ मे समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं Translated Sutra: फिर आनन्द गाथापति ने श्रमण भगवान महावीर के पास पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रतरूप बारह प्रकार का श्रावक – धर्म स्वीकार किया। भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार कर वह भगवान से यों बोला – भगवन् आज से अन्य यूथिक – उनके देव, उन द्वारा परिगृहीत – चैत्य – उन्हें वन्दना करना, नमस्कार करना, उनके पहले बोले बिना उनसे | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 11 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा सिवानंदा भारिया आनंदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति आनंदस्स समणोवासगस्स एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेइ।
तए णं से आनंदे समणोवासए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो! देवानुप्पिया! लहुकरणजुत्त-जोइयं समखुरवालिहाण-समलिहियसिंगएहिं जंबूणयामयकलावजुत्त-पइविसिट्ठएहिं रययामयघंट-सुत्तरज्जुगवरकंचण-खचियनत्थपग्गहोग्गहियएहिं नीलुप्पलकया-मेलएहिं पवरगोणजुवाणएहिं नानामणिकनग-घंटियाजालपरिगयं सुजायजुगजुत्त-उज्जुग Translated Sutra: श्रमणोपासक आनन्द ने जब अपनी पत्नी शिवानन्दा से ऐसा कहा तो उसने हृष्ट – तुष्ट – अत्यन्त प्रसन्न होते हुए हाथ जोड़े, ‘स्वामी ऐसा है।’ तब श्रमणोपासक आनन्द ने अपने सेवकों को बुलाया और कहा – तेज चलने वाले, यावत् श्रेष्ठ रथ शीघ्र ही उपस्थित करो, उपस्थित करके मेरी यह आज्ञा वापिस करो। तब शिवनन्दा वह धार्मिक उत्तम रथ | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 12 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–पहू णं भंते! आनंदे समणोवासए देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए?
नो इणट्ठे समट्ठे।
गोयमा! आनंदे णं समणोवासए बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं आनंदस्स वि Translated Sutra: गौतम ने भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और पूछा – भन्ते ! क्या श्रमणोपासक आनन्द देवानुप्रिय के – आपके पास मुण्डित एवं परिव्रजित होने में समर्थ है ? गौतम ! ऐसा संभव नहीं है। श्रमणोपासक आनन्द बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक – पर्याय – का पालन करेगा वह सौधर्म – कल्प – में – सौधर्मनामक देवलोक में अरुणाभ नामक विमान | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 13 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए जाए–अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्खकुसले असहेज्जे, देवासुर-नाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्खंखिए निव्वितिगिच्छे लद्धट्ठे गहियट्ठे पुच्छियट्ठे अभिगयट्ठे विनिच्छियट्ठे अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ते, अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठे ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चिय-तंतेउर-परघरदार-प्पवेसे चाउद्दसट्ठमुद्दट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अनुपालेत्ता समणे निग्गंथे Translated Sutra: तब आनन्द श्रमणोपासक हो गया। जीव – अजीव का ज्ञाता हो गया यावत् श्रमणनिर्ग्रन्थों का अशन आदि से सत्कार करता हुआ विचरण करने लगा। उसकी भार्या शिवानंदा भी श्रमणोपासिका होकर श्रमणनिर्ग्रन्थों का सत्कार करती हुई विचरण करने लगी। | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 14 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वीइक्कंताइं। पन्नरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं वाणियगामे नयरे बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी पमाणं Translated Sutra: तदनन्तर श्रमणोपासक आनन्द को अनेकविध शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान – पोषधोपवास आदि द्वारा आत्म – भावित होते हुए – चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। जब पन्द्रहवां वर्ष आधा व्यतीत हो चूका था, एक दिन आधी रात के बाद धर्म – जागरण करते हुए आनन्द के मन में ऐसा अन्तर्भाव – चिन्तन, आन्तरिक मांग, मनोभाव या संकल्प उत्पन्न | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 15 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
तए णं से आनंदे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ।
तए णं से आनंदे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। Translated Sutra: तदनन्तर श्रमणोपासक आनन्द ने उपासक – प्रतिमाएं स्वीकार की। पहली उपासक – प्रतिमा उसने यथाश्रुत – यथाकल्प – यथामार्ग, यथातत्त्व – सहज रूप में ग्रहण की, उसका पालन किया, उसे शोधित किया तीर्ण किया – कीर्तित किया – आराधित किया। | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 16 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए।
तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्म-जागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–
एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धम्मणिसंतए जाए।
तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता Translated Sutra: श्रमणोपासक आनन्द ने तत्पश्चात् दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवी, छठी, सातवी, आठवी, नौवी, दसवी तथा ग्यारहवीं प्रतिमा की आराधना की। इस प्रकार श्रावक – प्रतिमा आदि के रूप में स्वीकृत उत्कृष्ट, विपुल प्रयत्न तथा तपश्चरण से श्रमणोपासक आनन्द का शरीर सूख गया, शरीर की यावत् उसके नाड़ियाँ दीखने लगीं। एक दिन आधी रात के बाद | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 17 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे समोसरिए।
परिसा निग्गया जाव पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमसगोत्ते णं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कनगपुलगनिघस- पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते Translated Sutra: उस काल वर्तमान – अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, उस समय भगवान महावीर समवसृत हुए। परिषद् जुड़ी, धर्म सूनकर वापिस लौट गई। उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान – संस्थित थे – कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 18 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अत्थि णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ?
हंता अत्थि।
जइ णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहि नाणे समुप्पण्णे–पुरत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि। उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं Translated Sutra: श्रमणोपासक आनन्त ने भगवान् गौतम को आते हुए देखा। देखकर वह (यावत्) अत्यन्त प्रसन्न हुआ, भगवान गौतम को वन्दन – नमस्कार कर बोला – भगवन् ! मैं घोर तपश्चर्या से इतना क्षीण हो गया हूँ कि नाड़ियाँ दीखने लगी हैं। इसलिए देवानुप्रिय के – आपके पास आने तथा चरणों में वन्दना करने में असमर्थ हूँ। अत एव प्रभो ! आप ही स्वेच्छापूर्वक, | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 19 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता, बीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसगस्स महाविमानस्स उत्तरपुरत्थिमे णं अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं आनंदस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
आनंदे णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं Translated Sutra: यों श्रमणोपासक आनन्द ने अनेकविध शीलव्रत यावत् आत्मा को भावित किया। बीस वर्ष तक श्रमणो – पासक पर्याय – पालन किया, ग्यारह उपासक – प्रतिमाओं का अनुसरण किया, एक मास की संलेखना और एक मास का अनशन संपन्न कर, आलोचना, प्रतिक्रमण कर मरण – काल आने पर समाधिपूर्वक देह – त्याग किया। वह सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० लेइयापिता |
Hindi | 69 | Gatha | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भक्खोयण सूय घए सागे माहुर जेमणऽण्ण पाणे य ।
तम्बोले इगवीसं आनंदाईण अभिग्गहा ॥ Translated Sutra: भक्ष्य – मिठाई, ओदन, सूप, घृत, शाक, व्यंजन, पीने का पानी, मुखवास। | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० लेइयापिता |
Hindi | 70 | Gatha | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उड्ढं सोहम्म पुरे लोलुए अहे उत्तरे हिमवंते ।
पज्जसए तह तिदिसिं ओहिनाणं तु दसगस्स ॥ Translated Sutra: इन दस श्रमणोपासकों में आनन्द तथा महाशतक को अवधि – ज्ञान प्राप्त हुआ, आनंद का अवधिज्ञान इस प्रकार है – पूर्व, पश्चिम तथा दक्षिण दिशा में लवणसमुद्र में पाँच – पाँच सौ योजन तक, उत्तर दिशा में चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत तक, ऊर्ध्व – दिशा में सौधर्म देवलोक तक, अधोदिशा में प्रथम नारक भूमि रत्नप्रभा में लोलुपाच्युत | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 1 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ।
पुण्णभद्दे चेइए–वण्णओ। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧. તે કાળે, તે સમયે ચંપાનગરી હતી, પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય હતુ.(નગરી અને ચૈત્યનું વર્ણન ઉવવાઈ સૂત્રથી જાણવું) સૂત્ર– ૨. તે કાળે, તે સમયે આર્યસુધર્મા પધાર્યા. સુધર્માસ્વામીના જ્યેષ્ઠ અંતેવાસી જંબૂએ પર્યુપાસના કરતા કહ્યું – હે ભંતે ! જ્યારે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર યાવત્ સિદ્ધિ ગતિ સંપ્રાપ્તે છઠ્ઠા અંગ જ્ઞાતાધર્મકથાનો | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 2 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं थेरे जातिसंपन्ने कुलसंपन्ने बलसंपन्ने रूवसंपन्ने विनयसंपन्ने नाणसंपन्ने दंसणसंपन्ने चरित्तसंपन्ने लज्जासंपन्ने लाघवसंपन्ने ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाने जियमाए जियलोहे जियनिद्दे जिइंदिए जियपरीसहे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे वेयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧ | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 3 | Gatha | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आनंदे कामदेवे य, गाहावतिचुलनीपिता ।
सुरादेवे चुल्लसयए, गाहावइकुंडकोलिए ॥
सद्दालपुत्ते महासतए, नंदिणीपिया लेइयापिता ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧ | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 4 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧ | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 5 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नयरे होत्था–वण्णओ।
तस्स वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं दूइपलासए नामं चेइए।
तत्थ णं वाणियगामे नयरे जियसत्तू राया होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं वाणियगामे नयरे आनंदे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न-विउलभवन-सयनासन-जाण-वाहने बहुधन-जायरूव-रयए आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डियपउर-भत्तपाणे बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए बहुजनस्स अपरिभूए।
तस्स णं आनंदस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ वड्ढिपउत्ताओ चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि Translated Sutra: સૂત્ર– ૫. હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે વાણિજ્યગ્રામ નામે નગર હતું, તેની બહાર ઈશાન ખૂણામાં દૂતિપલાશક ચૈત્ય હતું, તે વાણિજ્યગ્રામ નગરમાં જિતશત્રુ રાજા હતો. તે ગામે આનંદ નામે ધનાઢ્ય યાવત્ અપરિભૂત ગાથાપતિ રહેતો હતો. તે આનંદનું ચાર કરોડ હિરણ્ય નિધાનમાં, ચાર કરોડ હિરણ્ય વ્યાપારમાં, ચાર કરોડ હિરણ્ય ધન – ધાન્યાદિમાં | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 6 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे आनंदस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्मं परिकहेइ।
परिसा पडिगया, राया य गए। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫ | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 7 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं। एवमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! असंदिद्ध मेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते! जहेयं तुब्भे वदह।
जहा णं देवानुप्पियाणं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫ | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 8 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए तप्पढमयाए थूलयं पाणाइवायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा।
तयानंतरं च णं थूलयं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा।
तयानंतरं च णं थूलयं अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं–न करेमि न कारवेमि, मनसा वयसा कायसा।
तयानंतरं च णं सदारसंतोसीए परिमाणं करेइ–नन्नत्थ एक्काए सिवनंदाए भारियाए, अवसेसं सव्वं मेहुणविहिं पच्चक्खाइ।
तयानंतरं च णं इच्छापरिमाणं करेमाणे–
(१) हिरण्ण-सुवण्णविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ चउहिं हिरण्णकोडीहिं Translated Sutra: ત્યારે આનંદ ગાથાપતિ શ્રમણ ભગવંત મહાવીર પાસે – ૧. પહેલા સ્થૂલ પ્રાણાતિપાતનું પ્રત્યાખ્યાન કરે છે. યાવજ્જીવન માટે, (દ્વિવિધ – ત્રિવિધે) મન, વચન, કાયા વડે સ્થૂળ હિંસા કરીશ નહીં, કરાવીશ નહીં. ૨. ત્યારપછી સ્થૂલ મૃષાવાદનું પ્રત્યાખ્યાન કરે છે. યાવજ્જીવન માટે (દ્વિવિધ, ત્રિવિધે) – મન, વચન, કાયાથી જાવજ્જીવને માટે સ્થૂળ | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 9 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इहखलु आनंदाइ! समणे भगवं महावीरे आनंदं समणोवासगं एवं वयासी–एवं खलु आनंदा! समणोवासएणं अभिगयजीवाजीवेणं उवलद्धपुण्णपावेणं आसव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्खकुसलेणं असहेज्जेणं, देवासुर-नाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अनइक्कमणिज्जेणं सम्मत्तस्स पंच अति-यारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. संका, २. कंखा, ३. वितिगिच्छा, ४. परपासंडपसंसा, ५. परपासंडसंथवो।
तयानंतरं च णं थूलयस्स पाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अतियारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. बंधे २. वहे ३. छविच्छेदे ४. अतिभारे Translated Sutra: અહીં, હે આનંદ ! એમ સંબોધીને શ્રમણ ભગવન્ મહાવીરે આનંદ શ્રાવકને આમ કહ્યું – હે આનંદ ! જેણે જીવા – જીવને જાણ્યા છે યાવત્ અનતિક્રમણીય(દેવ આદિથી ચલિત થઇ શકતા નથી) એવા શ્રાવકે સમ્યક્ત્વના પ્રધાન પાંચ અતિચાર જાણવા, પણ તે દોષોનું આચરણ કરવું નહીં, તે આ – શંકા, કાંક્ષા, વિચિકિત્સા, પરપાખંડ પ્રશંસા, પરપાખંડ સંસ્તવ. પછી | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 10 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं–दुवालसविहं सावयधम्मं पडिवज्जति, पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–नो खलु मे भंते! कप्पइ अज्जप्पभिइं अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिय-देवयाणि वा अन्नउत्थिय-परिग्गहियाणि वा अरहंतचेइयाइं वंदित्तए वा नमंसित्तए वा, पुव्विं अणालत्तेणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा, तेसिं असणं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पदाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तिकंतारेणं।
कप्पइ मे समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं Translated Sutra: ત્યારપછી આનંદ ગાથાપતિએ ભગવંત મહાવીર પાસે પાંચ અણુવ્રત, સાત શિક્ષાવ્રતાદિ બાર ભેદે શ્રાવક ધર્મ સ્વીકારીને ભગવંતને વાંદી – નમીને, તેમને કહ્યું – ભગવન્ ! આજથી મારે અન્યતીર્થિક, અન્યતીર્થિકદેવ, અન્યતીર્થિક પરિગૃહીત અરહંત ચૈત્યને વાંદવુ – નમવું ન કલ્પે. તેઓના બોલાવ્યા સિવાય તેઓની સાથે આલાપ – સંલાપ કરવો ન કલ્પે, | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 11 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा सिवानंदा भारिया आनंदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति आनंदस्स समणोवासगस्स एयमट्ठं विनएणं पडिसुणेइ।
तए णं से आनंदे समणोवासए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो! देवानुप्पिया! लहुकरणजुत्त-जोइयं समखुरवालिहाण-समलिहियसिंगएहिं जंबूणयामयकलावजुत्त-पइविसिट्ठएहिं रययामयघंट-सुत्तरज्जुगवरकंचण-खचियनत्थपग्गहोग्गहियएहिं नीलुप्पलकया-मेलएहिं पवरगोणजुवाणएहिं नानामणिकनग-घंटियाजालपरिगयं सुजायजुगजुत्त-उज्जुग Translated Sutra: ત્યારે આનંદ શ્રાવકને આમ કહેતા સાંભળી શિવાનંદા, હર્ષિત – સંતુષ્ટ થઈ, કૌટુંબિક પુરુષોને બોલાવીને કહ્યું – જલદીથી ધાર્મિક કાર્યો માટે ઉપયોગી રથ તૈયાર કરો યાવત્ ભગવંત પાસે પહોંચીને તેમને પર્યુપાસે છે, ત્યારે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે, શિવાનંદા અને તે મોટી પર્ષદાને ધર્મ કહ્યો. ત્યારે શિવાનંદા ભગવંત પાસે ધર્મ સાંભળી, | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 12 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–पहू णं भंते! आनंदे समणोवासए देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए?
नो इणट्ठे समट्ठे।
गोयमा! आनंदे णं समणोवासए बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं आनंदस्स वि Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૨. ભંતે ! એમ કહી, ગૌતમસ્વામીએ શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને વાંદી, નમીને કહ્યું – હે ભગવન્ ! આનંદ શ્રાવક આપની પાસે મુંડ યાવત્ દીક્ષિત થવા સમર્થ છે ? ગૌતમ ! તે અર્થ સમર્થ નથી. આનંદ શ્રાવક ઘણા વર્ષ શ્રાવક પર્યાય પાળીને સૌધર્મકલ્પે અરુણ વિમાનમાં દેવપણે ઉપજશે. ત્યાં કેટલાક દેવોની સ્થિતિ ચાર પલ્યોપમની છે, ત્યાં આનંદ | |||||||||
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अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 13 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए जाए–अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्खकुसले असहेज्जे, देवासुर-नाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्खंखिए निव्वितिगिच्छे लद्धट्ठे गहियट्ठे पुच्छियट्ठे अभिगयट्ठे विनिच्छियट्ठे अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ते, अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठे ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चिय-तंतेउर-परघरदार-प्पवेसे चाउद्दसट्ठमुद्दट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अनुपालेत्ता समणे निग्गंथे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨ | |||||||||
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Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वीइक्कंताइं। पन्नरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं वाणियगामे नयरे बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी पमाणं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨ | |||||||||
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Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
तए णं से आनंदे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ।
तए णं से आनंदे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। Translated Sutra: ત્યારપછી આનંદ શ્રાવક ઉપાસક પ્રતિમા સ્વીકારીને વિચરે છે, પહેલી શ્રાવકપ્રતિજ્ઞા સૂત્રોક્ત વિધિથી, આચાર અનેમાર્ગ અનુસાર, તથ્યથી સમ્યક્ કાયા વડે સ્પર્શે છે, પાળે છે, શોભે છે, પૂર્ણ કરે છે, કીર્તન – આરાધન કરે છે. પછી તે બીજી – ત્રીજી – ચોથી – પાંચમી – છઠ્ઠી યાવત્ અગિયારમી પ્રતિમા યાવત્ આરાધે છે. | |||||||||
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Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए।
तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्म-जागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–
एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धम्मणिसंतए जाए।
तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૬. ત્યારપછી આનંદ શ્રાવક આ આવા ઉદાર, વિપુલ, પ્રયત્નરૂપ, પ્રગૃહીત તપોકર્મથી શુષ્ક યાવત્ કૃશ અને ધમની વ્યાપ્ત થયો. ત્યારપછી આનંદ શ્રાવકને અન્ય કોઈ દિને મધ્યરાત્રે ધર્મ જાગરિકા કરતા આવો સંકલ્પ થયો કે – હું યાવત્ ધમની વ્યાપ્ત થયો છું. હજી મારામાં ઉત્થાન, કર્મ, બલ, વીર્ય, પુરુષકાર પરાક્રમ, શ્રદ્ધા – ધૈર્ય | |||||||||
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Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे समोसरिए।
परिसा निग्गया जाव पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमसगोत्ते णं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कनगपुलगनिघस- पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬ | |||||||||
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Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अत्थि णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ?
हंता अत्थि।
जइ णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहि नाणे समुप्पण्णे–पुरत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि। उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૬ |