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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Hindi | 296 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्धापिंडिओ जइ हविज्जा ।
नंतगुणवग्गुभइओ सव्वागासे न माएज्जा ॥ Translated Sutra: सिद्ध के समस्त सुख – राशि को समस्त काल से गुना करके उसका अनन्त वर्गमूल नीकालने से प्राप्त अंक समस्त आकाश में समा नहीं सकता। | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Gujarati | 296 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्धापिंडिओ जइ हविज्जा ।
नंतगुणवग्गुभइओ सव्वागासे न माएज्जा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯૪ | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 102 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सूणारंभपवत्तं गच्छं वेसुज्जलं न सेविज्जा ।
जं चारित्तगुणेहिं तु उज्जलं तं तु सेविज्जा ॥ Translated Sutra: खंड़ना आदि के आरम्भ में प्रवर्ते हुए और उज्ज्वल वेश धारण करनेवाले गच्छ की सेवा न करना लेकिन जो गच्छ चारित्र गुण से उज्ज्वल हो उसकी सेवा करनी चाहिए। | |||||||||
Gacchachar | ગચ્છાચાર | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Gujarati | 102 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सूणारंभपवत्तं गच्छं वेसुज्जलं न सेविज्जा ।
जं चारित्तगुणेहिं तु उज्जलं तं तु सेविज्जा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૧ | |||||||||
Ganividya | गणिविद्या | Ardha-Magadhi |
तृतीयंद्वारं नक्षत्र |
Hindi | 22 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सवणेण धनिट्ठाई पुनव्वसू न वि करेज्ज निक्खमणं ।
सयभिसय पूस बंभे विज्जारंभे पवत्तिज्जा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २१ | |||||||||
Ganividya | गणिविद्या | Ardha-Magadhi |
तृतीयंद्वारं नक्षत्र |
Hindi | 30 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विज्जाणं धारणं कुज्जा, बंभजोगे य साहए ।
सज्झायं च अणुन्नं च उद्देसे य समुद्दिसे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९ | |||||||||
Ganividya | गणिविद्या | Ardha-Magadhi |
तृतीयंद्वारं नक्षत्र |
Hindi | 40 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सज्झायकरणं कुज्जा, विज्जारंभे य कारए ।
वओवट्ठावणं कुज्जा, अणुन्नं गणि-वायए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३९ | |||||||||
Ganividya | ગણિવિદ્યા | Ardha-Magadhi |
तृतीयंद्वारं नक्षत्र |
Gujarati | 22 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सवणेण धनिट्ठाई पुनव्वसू न वि करेज्ज निक्खमणं ।
सयभिसय पूस बंभे विज्जारंभे पवत्तिज्जा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૧ | |||||||||
Ganividya | ગણિવિદ્યા | Ardha-Magadhi |
तृतीयंद्वारं नक्षत्र |
Gujarati | 30 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विज्जाणं धारणं कुज्जा, बंभजोगे य साहए ।
सज्झायं च अणुन्नं च उद्देसे य समुद्दिसे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૯ | |||||||||
Ganividya | ગણિવિદ્યા | Ardha-Magadhi |
तृतीयंद्वारं नक्षत्र |
Gujarati | 40 | Gatha | Painna-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सज्झायकरणं कुज्जा, विज्जारंभे य कारए ।
वओवट्ठावणं कुज्जा, अणुन्नं गणि-वायए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯ | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 4 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं थेरे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बल-रूव-विनय-नाण-दंसण-चरित्त-लाघव-संपण्णे ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जिइंदिए जियनद्दे जियपरीसहे जीविसाय-मरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे एवं–करण-चरण-निग्गह-निच्छय-अज्जव-मद्दव-लाघव -खंति-गुत्ति-मुत्ति-विज्जा-मंत-बंभ-वेय-नय-नियम-सच्च-सोय-नाण-दंसण-चरित्तप्पहाणे ओराले घोरे घोरव्वए घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल-तेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउ-नाणोवगए पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के शिष्य आर्य सुधर्मानामक स्थविर थे। वे जाति – सम्पन्न, बल से युक्त, विनयवान, ज्ञानवान, सम्यक्त्ववान, लाघववान, ओजस्वी, तेजस्वी, वचस्वी, यशस्वी, क्रोध को जीतने वाले, मान को जीतने वाले, माया को जीतने वाले, लोभ को जीतने वाले, इन्द्रियों को जीतने वाले, निद्रा को जीतने वाले, परीषहों | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 27 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे कुमारे बावत्तरि-कलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारस-विहिप्पगार-देसीभासाविसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था।
तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं बावत्तरि-कलापंडियं जाव वियालचारिं जायं पासंति, पासित्ता अट्ठ पासायवडिंसए कारेंति–अब्भुग्गयमूसिय पहसिए विव मणि-कनग-रयण-भत्तिचित्ते वाउद्धुय-विजय-वेजयंती-पडाग-छत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाण-सिहरे जालंतर-रयण पंजरुम्मिलिए व्व मणिकनगथूभियाए वियसिय-सयवत्त-पुंडरीए तिलय-रयणद्धचंदच्चिए नानामणिमयदामालंकिए Translated Sutra: तब मेघकुमार बहत्तर कलाओं में पंडित हो गया। उसके नौ अंग – जागृत से हो गए। अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो गया। वह गीति में प्रीति वाला, गीत और नृत्य में कुशल हो गया। वह अश्वयुद्ध रथयुद्ध और बाहुयुद्ध करने वाला बन गया। अपनी बाहुओं से विपक्षी का मर्दन करने में समर्थ हो गया। भोग भोगने का सामर्थ्य उसमें | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 30 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु-महया जणसद्दे इ वा जाव बहवे उग्गा भोगा० रायगिहस्स नगरस्स मज्झंमज्झेणं एगदिसिं एगाभिमुहा निग्गच्छंति। इमं च णं मेहे कुमारे उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव मानुस्सए कामभोगे भुंजमाणे रायमग्गं च ओलोएमाणे-ओलोएमाणे एवं च णं विहरइ।
तए णं से मेहे कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव एगदिसाभिमुहे निग्गच्छमाणे पासइ, पासित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–किण्णं भो देवानुप्पिया! अज्ज रायगिहे नगरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा एवं–रुद्द-सिव-वेसमण-नाग-जक्ख-भूय-तलाय-रुक्ख-चेइय-पव्वयमहे Translated Sutra: तत्पश्चात् राजगृह नगर में शृंगाटक – सिंघाड़े के आकार के मार्ग, तिराहे, चौराहे, चत्वर, चतुर्मुख पथ, महापथ आदि में बहुत से लोगों का शोर होने लगा। यावत् बहुतेरे उग्रकुल के, भोगकुल के तथा अन्य सभी लोग यावत् राजगृहनगर के मध्यभागमें होकर एक ही दिशामें, एक ही ओर मुख कर नीकलने लगे उस समय मेघकुमार अपने प्रासाद पर था। | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 33 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति मेहं कुमारं बहूहिं विसयानुलोमाहिं आघवणाहिं य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउव्वेयकारियाहिं पन्नवणाहिं पन्नवेमाणा एवं वयासी–एस णं जाया! निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतदिट्ठिए, खुरो इव गंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो Translated Sutra: मेघकुमार के माता – पिता जब मेघकुमार को विषयों के अनुकूल आख्यापना से, प्रज्ञापना से, संज्ञापना से, विज्ञापना से समझाने, बुझाने, संबोधित करने और मनाने में समर्थ नहीं हुए, तब विषयों के प्रतिकूल तथा संयम के प्रति भय और उद्वेग उत्पन्न करने वाली प्रज्ञापना से कहने लगे – हे पुत्र ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है, अनुत्तर | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ संघाट |
Hindi | 49 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पंथए दासचेडए तओ मुहुत्तंतरस्स जेणेव देवदिन्ने दारए ठविए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ। देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुइं वा खुइं वा पउत्तिं वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धने सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धनं सत्थवाहं एवं वयासी–एवं खलु सामी! भद्दा सत्थवाही देवदिन्नं दारयं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं मम हत्थंसि दलयइ। तए णं अहं देवदिन्नं दारयं कडीए गिण्हामि, गिण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमामि, बहूहिं डिंभएहि य डिंभियाहि य Translated Sutra: तत्पश्चात् वह पंथक नामक दास चेटक थोड़ी देर बाद जहाँ बालक देवदत्त को बिठाया था, वहाँ पहुँचा। उसने बालक देवदत्त को उस स्थान पर न देखा। तब वह रोता, चिल्लाता, विलाप करता हुआ सब जगह उसकी ढूंढ – खोज करने लगा। मगर कहीं भी उसे बालक देवदत्त की खबर न लगी, छींक वगैरह का शब्द न सुनाई दिया, न पता चला। तब जहाँ धन्य सार्थवाह था, | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Hindi | 63 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवती नामं नयरी होत्था–पाईणपडीणायया उदीण-दाहिणवित्थिण्णा नवजोयणवित्थिण्णा दुवालसजोयणायामा धनवइ-मइ-निम्मिया चामीयर-पवर-पागारा नाणामणि-पंचवण्ण-कविसीसग-सोहिया अलकापुरि-संकासा पमुइय-पक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया।
तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए रेवतगे नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतल-मनुलिहंतसिहरे नानाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लि-परिगए हंस-मिग-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाय-मयणसाल-कोइलकुलोववेए Translated Sutra: भगवन् ! श्रमण भगवान महावीर ने पाँचवे ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में द्वारवती नगरी थी। वह पूर्व – पश्चिम में लम्बी और उत्तर – दक्षिण में चौड़ी थी। नौ योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी थी। वह कुबेर की मति से निर्मित हुई थी। सुवर्ण के श्रेष्ठ प्राकार से और पंचरंगी नान मणियों के बने | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Hindi | 64 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा नामं गाहावइणी परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन -जानवाहना बहुधन-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलग-प्पभूया बहुजनस्स अपरिभूया।
तीसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं सत्थवाहदारए होत्था–सुकुमालपाणिपाए अहीन-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए मानुम्मान-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे।
तए णं सा थावच्चा गाहावइणी तं दारगं साइरेगअट्ठवासजाययं जाणित्ता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि कलायरियस्स Translated Sutra: द्वारका नगरी में थावच्चा नामक एक गाथापत्नी निवास करती थी। वह समृद्धि वाली थी यावत् बहुत लोग मिलकर भी उसका पराभव नहीं कर सकते थे। उस थावच्चा गाथापत्नी का थावच्चपुत्र नामक सार्थवाह का बालक पुत्र था। उसके हाथ – पैर अत्यन्त सुकुमार थे। वह परिपूर्ण पाँचों इन्द्रियों से युक्त सुन्दर शरीर वाला, प्रमाणोपेत अंगोपांगों | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Hindi | 65 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थावच्चापुत्ते वि निग्गए। जहा मेहे तहेव धम्मं सोच्चा निसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ। जहा मेहस्स तहा चेव निवेयणा।
तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ विसयाणुलोमाहि य विसय-पडिकूलाहि य बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणमणुमन्नित्था।
तए णं सा थावच्चा गाहावइणी आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं Translated Sutra: मेघकुमार की तरह थावच्चापुत्र भी भगवान को वन्दना करने के लिए नीकला। उसी प्रकार धर्म को श्रवण करके और हृदय में धारण करके जहाँ थावच्चा गाथापत्नी थी, वहाँ आया। आकर माता के पैरों को ग्रहण किया। मेघकुमार समान थावच्चापुत्र का वैराग्य निवेदना समझनी। माता जब विषयों के अनुकूल और विषयों के प्रतिकूल बहुत – सी आघवणा, | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ माकंदी |
Hindi | 111 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तेसिं मागंदिय-दारगाणं लवणसमुद्दं अनेगाइं जोयणसयाइं ओगाढाणं समाणाणं अनेगाइं उप्पाइयसयाइं पाउब्भूयाइं, तं जहा–अकाले गज्जिए अकाले विज्जुए अकाले थणियसद्दे कालिय-वाए जाव समुट्ठिए।
तए णं सा नावा तेणं कालियवाएणं आहुणिज्जमाणी-आहुणिज्जमाणी संचालिज्जमाणी-संचालिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी-संखोभिज्जमाणी सलिल-तिक्ख-वेगेहिं अइअट्टिज्जमाणी-अइअट्टिज्जमाणी कोट्टिमंसि करतलाहते विव तिंदूसए तत्थेव-तत्थेव ओवयमाणी य उप्पयमाणी य, उप्पयमाणी विव वरणीयलाओ सिद्धविज्जा विज्जाहरकन्नगा, ओवयमाणी विव गगनतलाओ भट्ठविज्जा विज्जाहरकन्नगा, विपलायमाणी विव महागरुल-वेग-वित्तासिय Translated Sutra: तत्पश्चात् उन माकन्दीपुत्रों के अनेक सैकड़ों योजन तक अवगाहन कर जाने पर सैकड़ों उत्पात उत्पन्न हुए। वे उत्पात इस प्रकार थे – अकाल में गर्जना बिजली चमकना स्तनित शब्द होने लगे। प्रतिकूल तेज हवा चलने लगी। तत्पश्चात् वह नौका प्रतिकूल तूफानी वायु से बार – बार काँपने लगी, बार – बार एक जगह से दूसरी जगह चलायमान होने | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Hindi | 174 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धिं कल्लाकल्लिं वारंवारेणं उरालाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति।
तए णं से पंडू राया अन्नया कयाइं पंचहिं पंडवेहिं कोंतीए देवीए दोवईए य सद्धिं अंतोअंतेउरपरियालसद्धिं संपरिवुडे सीहासनवरगए यावि विहरइ।
इमं च णं कच्छुल्लनारए–दंसणेणं अइभद्दए विनीए अंतो-अंतो य कलुस हियए मज्झत्थ-उवत्थिए य अल्लीण -सोमपियदंसणे सुरूवे अमइल-सगल-परिहिए कालमियचम्म-उत्तरासंग-रइयवच्छे दंड-कमंडलु-हत्थे जडामउड-दित्तसिरए जन्नोव-इय-गणेत्तिय-मुंजमेहला-वागलधरे हत्थकय-कच्छभीए पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणि-ओवयणुप्पयणि-लेसणीसु य संकाणि-आभिओगि-पण्णत्ति-गमणि-थंभिणीसु Translated Sutra: तत्पश्चात् पाँच पाण्डव द्रौपदी देवी के साथ अन्तःपुर के परिवार सहित एक – एक दिन बारी – बारी के अनुसार उदार कामभोग भोगते हुए यावत् रहने लगे। पाण्डु राजा एक बार किसी समय पाँच पाण्डवों, कुन्ती देवी और द्रौपदी देवी के साथ तथा अन्तःपुर के अन्दर के परिवार के साथ परिवृत्त होकर श्रेष्ठ सिंहासन पर आसीन थे। इधर कच्छुल्ल | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Hindi | 175 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कच्छुल्लनारयस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहो णं दोवई देवी रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य पंचहिं पंडवेहिं अवत्थद्धा समाणी ममं नो आढाइ नो परियाणइ नो अब्भुट्ठेइ नो पज्जुवासइ। तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करेत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पंडुरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पयणिं विज्जं आवाहेइ, आवाहेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए विज्जाहरगईए लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं पुरत्थाभिमुहे वीईवइउं पयत्ते यावि होत्था।
तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्ध-दाहिणड्ढ-भरहवासे Translated Sutra: तब कच्छुल्ल नारद को इस प्रकार का अध्यवसाय चिन्तित प्रार्थित मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि – ‘अहो! यह द्रौपदी अपने रूप, यौवन, लावण्य और पाँच पाण्डवों के कारण अभिमानिनी हो गई है, अत एव मेरा आदर नहीं करती यावत् मेरी उपासना नहीं करती। अत एव द्रौपदी देवी का अनिष्ट करना मेरे लिए उचित है।’ इस प्रकार नारद ने विचार करके | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Hindi | 176 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जुहिट्ठिल्ले राया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धे समाणे दोवइं देविं पासे अपासमाणे सयणिज्जाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करेत्ता दोवईए देवीए कत्थइ सुइं वा खुइं वा पवत्तिं वा अलभमाणे जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडुं रायं एवं वयासी–एवं खलु ताओ! ममं आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेन वा दानवेन वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा अवक्खित्ता वा। तं इच्छामि णं ताओ! दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करित्तए।
तए णं से पंडू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, Translated Sutra: इधर द्रौपदी का हरण हो जाने के पश्चात् थोड़ी देर में युधिष्ठिर राजा जागे। वे द्रौपदी देवी को अपने पास न देखते हुए शय्या से उठे। सब तरफ द्रौपदी देवी की मार्गणा करने लगे। किन्तु द्रौपदी देवी की कहीं भी श्रुति, क्षुति या प्रवृत्ति न पाकर जहाँ पाण्डु राजा थे वहाँ पहुँचे। वहाँ पहुँचकर पाण्डु राजा से इस प्रकार बोले | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१८ सुंसमा |
Hindi | 209 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चिलाए दासचेडे साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाधरएसु य पाणधरएसु य सुहंसुहेणं परिवट्टइ।
तए णं से चिलाए दासचेडे अनोहट्टिए अनिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारी मज्जप्पसंगी चोज्जप्पसंगी जूयप्पसंगी वेसप्पसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था।
तए णं रायगिहस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरत्थिमे दिसीभाए सीहगुहा नामं चोरपल्ली होत्था–विसम-गिरिक-डग-कोलंब-सन्निविट्ठा वंसोकलंक-पागार-परिक्खित्ता छिन्नसेल-विसमप्प-वाय-फरिहोवगूढा एगदुवारा अनेगखंडी विदितजण-निग्गमप्पवेसा अब्भिंतरपाणिया Translated Sutra: धन्य सार्थवाह द्वारा अपने घर से नीकाला हुआ यह चिलात दासचेटक राजगृह नगर में शृंगाटकों यावत् पथों में अर्थात् गली – कूचों में, देवालयों में, सभाओं में, प्याउओं में, जुआरियों में, अड्डो में, वेश्याओं के घरों में तथा मद्यपानगृहों में मजे से भटकने लगा। उस समय उस दास – चेटक चिलात को कोई हाथ पड़ककर रोकने वाला तथा वचन | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Gujarati | 27 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे कुमारे बावत्तरि-कलापंडिए नवंगसुत्तपडिबोहिए अट्ठारस-विहिप्पगार-देसीभासाविसारए गीयरई गंधव्वनट्टकुसले हयजोही गयजोही रहजोही बाहुजोही बाहुप्पमद्दी अलंभोगसमत्थे साहसिए वियालचारी जाए यावि होत्था।
तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो मेहं कुमारं बावत्तरि-कलापंडियं जाव वियालचारिं जायं पासंति, पासित्ता अट्ठ पासायवडिंसए कारेंति–अब्भुग्गयमूसिय पहसिए विव मणि-कनग-रयण-भत्तिचित्ते वाउद्धुय-विजय-वेजयंती-पडाग-छत्ताइच्छत्तकलिए तुंगे गगणतलमभिलंघमाण-सिहरे जालंतर-रयण पंजरुम्मिलिए व्व मणिकनगथूभियाए वियसिय-सयवत्त-पुंडरीए तिलय-रयणद्धचंदच्चिए नानामणिमयदामालंकिए Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Gujarati | 63 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवती नामं नयरी होत्था–पाईणपडीणायया उदीण-दाहिणवित्थिण्णा नवजोयणवित्थिण्णा दुवालसजोयणायामा धनवइ-मइ-निम्मिया चामीयर-पवर-पागारा नाणामणि-पंचवण्ण-कविसीसग-सोहिया अलकापुरि-संकासा पमुइय-पक्कीलिया पच्चक्खं देवलोगभूया।
तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए रेवतगे नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतल-मनुलिहंतसिहरे नानाविहगुच्छ-गुम्म-लया-वल्लि-परिगए हंस-मिग-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाय-मयणसाल-कोइलकुलोववेए Translated Sutra: ભગવન્ ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે ચોથા જ્ઞાતાધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો છે, તો હે ભગવન્ ! પાંચમાં જ્ઞાતનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી. તે પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબી નવ યોજન અને ઉત્તર – દક્ષિણ બાર યોજન પહોળી હતી, કુબેરની મતિથી નિર્મિત, સુવર્ણના શ્રેષ્ઠ પ્રાકાર, પંચવર્ણી વિવિધ મણિના બનેલ કાંગરાથી | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Gujarati | 64 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा नामं गाहावइणी परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन -जानवाहना बहुधन-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलग-प्पभूया बहुजनस्स अपरिभूया।
तीसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं सत्थवाहदारए होत्था–सुकुमालपाणिपाए अहीन-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए मानुम्मान-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे।
तए णं सा थावच्चा गाहावइणी तं दारगं साइरेगअट्ठवासजाययं जाणित्ता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि कलायरियस्स Translated Sutra: તે દ્વારવતી નગરીમાં થાવચ્ચા નામે ગૃહપત્ની રહેતી હતી, તે ધનાઢ્યા યાવત્ અપરિભૂતા હતી. તે થાવચ્ચા ગૃહપત્નીનો પુત્ર થાવચ્ચાપુત્ર નામે સાર્થવાહપુત્ર હતો, જે સુકુમાલ યાવત્ સુરૂપ હતો. ત્યારે તે થાવચ્ચા ગૃહપત્ની, તે પુત્રને સાતિરેક આઠ વર્ષનો થયેલો જાણીને શોભન તિથિ – કરણ – નક્ષત્ર – મુહૂર્ત્તમાં કલાચાર્ય પાસે | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Gujarati | 65 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थावच्चापुत्ते वि निग्गए। जहा मेहे तहेव धम्मं सोच्चा निसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ। जहा मेहस्स तहा चेव निवेयणा।
तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ विसयाणुलोमाहि य विसय-पडिकूलाहि य बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणमणुमन्नित्था।
तए णं सा थावच्चा गाहावइणी आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं Translated Sutra: થાવચ્ચા પુત્ર, મેઘકુમારની માફક નીકળ્યો. તેની જેમજ ધર્મ સાંભળ્યો, અવધાર્યો, પછી થાવચ્ચા ગાથાપત્ની પાસે આવ્યો. આવીને માતાના પગે પડ્યો. મેઘકુમારની માફક નિવેદના કરી, માતા જ્યારે વિષયને અનુકૂળ અને પ્રતિકૂળ ઘણી જ આઘવણા, પન્નવણા, સંજ્ઞાપના અને વિજ્ઞાપના વડે સામાન્ય કથન કરતા કે યાવત્ આજીજી કરતા પણ તેને મનાવવામાં | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Gujarati | 4 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं थेरे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे बल-रूव-विनय-नाण-दंसण-चरित्त-लाघव-संपण्णे ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जिइंदिए जियनद्दे जियपरीसहे जीविसाय-मरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे एवं–करण-चरण-निग्गह-निच्छय-अज्जव-मद्दव-लाघव -खंति-गुत्ति-मुत्ति-विज्जा-मंत-बंभ-वेय-नय-नियम-सच्च-सोय-नाण-दंसण-चरित्तप्पहाणे ओराले घोरे घोरव्वए घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल-तेयलेस्से चोद्दसपुव्वी चउ-नाणोवगए पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના શિષ્ય આર્ય સુધર્મા નામે સ્થવિર હતા, જે જાતિ – કુલ – બળ – રૂપ – વિનય તથા જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્ર – લાઘવ સંપન્ન હતા. તેઓ ઓજસ્વી, તેજસ્વી, વર્ચસ્વી, યશસ્વી હતા. તેઓ ક્રોધ – માન – માયા – લોભ – ઇન્દ્રિય – નિદ્રા – પરીષહને જિતનાર, જીવિતની આશા અને મરણના ભયથી મુક્ત, તપ અને ગુણ પ્રધાન, એમજ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Gujarati | 30 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु-महया जणसद्दे इ वा जाव बहवे उग्गा भोगा० रायगिहस्स नगरस्स मज्झंमज्झेणं एगदिसिं एगाभिमुहा निग्गच्छंति। इमं च णं मेहे कुमारे उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव मानुस्सए कामभोगे भुंजमाणे रायमग्गं च ओलोएमाणे-ओलोएमाणे एवं च णं विहरइ।
तए णं से मेहे कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव एगदिसाभिमुहे निग्गच्छमाणे पासइ, पासित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–किण्णं भो देवानुप्पिया! अज्ज रायगिहे नगरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा एवं–रुद्द-सिव-वेसमण-नाग-जक्ख-भूय-तलाय-रुक्ख-चेइय-पव्वयमहे Translated Sutra: ત્યારે તે મેઘકુમાર કંચૂકી પુરુષની પાસે આ કથન સાંભળી, સમજી, હૃષ્ટ – તુષ્ટ થઈને કૌટુંબિક પુરુષોને બોલાવે છે, બોલાવીને આમ કહ્યું કે – હે દેવાનુપ્રિયો ! જલદી ચાતુર્ઘંટ અશ્વરથ જોડીને ઉપસ્થિત કરો, તેઓ પણ ‘તહત્તિ’ કહીને રથ લાવે છે. ત્યારે તે મેઘ સ્નાન કરી યાવત્ સર્વાલંકારથી વિભૂષિત થઈને ચતુર્ઘંટ અશ્વરથમાં આરૂઢ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Gujarati | 33 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति मेहं कुमारं बहूहिं विसयानुलोमाहिं आघवणाहिं य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउव्वेयकारियाहिं पन्नवणाहिं पन्नवेमाणा एवं वयासी–एस णं जाया! निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतदिट्ठिए, खुरो इव गंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो Translated Sutra: ત્યારપછી મેઘકુમારને તેના માતાપિતા જ્યારે વિષયને અનુકૂળ અને પ્રતિકૂળ ઘણી આખ્યાપના, પ્રજ્ઞાપના, સંજ્ઞાપના, વિજ્ઞાપનાથી સમજાવવા, બૂઝાવવા, સંબોધન અને વિજ્ઞપ્તિ કરવામાં સમર્થ ન થયા, ત્યારે ઇચ્છા વિના મેઘકુમારને આમ કહ્યું – હે પુત્ર! એક દિવસને માટે પણ તારી રાજ્યશ્રીને જોવા ઇચ્છીએ છીએ. ત્યારે તે મેઘકુમાર, માતા | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ संघाट |
Gujarati | 49 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पंथए दासचेडए तओ मुहुत्तंतरस्स जेणेव देवदिन्ने दारए ठविए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारगं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गण-गवेसणं करेइ। देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुइं वा खुइं वा पउत्तिं वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे जेणेव धने सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धनं सत्थवाहं एवं वयासी–एवं खलु सामी! भद्दा सत्थवाही देवदिन्नं दारयं ण्हायं जाव सव्वालंकारविभूसियं मम हत्थंसि दलयइ। तए णं अहं देवदिन्नं दारयं कडीए गिण्हामि, गिण्हित्ता सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमामि, बहूहिं डिंभएहि य डिंभियाहि य Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૮ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ माकंदी |
Gujarati | 111 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तेसिं मागंदिय-दारगाणं लवणसमुद्दं अनेगाइं जोयणसयाइं ओगाढाणं समाणाणं अनेगाइं उप्पाइयसयाइं पाउब्भूयाइं, तं जहा–अकाले गज्जिए अकाले विज्जुए अकाले थणियसद्दे कालिय-वाए जाव समुट्ठिए।
तए णं सा नावा तेणं कालियवाएणं आहुणिज्जमाणी-आहुणिज्जमाणी संचालिज्जमाणी-संचालिज्जमाणी संखोभिज्जमाणी-संखोभिज्जमाणी सलिल-तिक्ख-वेगेहिं अइअट्टिज्जमाणी-अइअट्टिज्जमाणी कोट्टिमंसि करतलाहते विव तिंदूसए तत्थेव-तत्थेव ओवयमाणी य उप्पयमाणी य, उप्पयमाणी विव वरणीयलाओ सिद्धविज्जा विज्जाहरकन्नगा, ओवयमाणी विव गगनतलाओ भट्ठविज्जा विज्जाहरकन्नगा, विपलायमाणी विव महागरुल-वेग-वित्तासिय Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૦ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Gujarati | 174 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते पंच पंडवा दोवईए देवीए सद्धिं कल्लाकल्लिं वारंवारेणं उरालाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति।
तए णं से पंडू राया अन्नया कयाइं पंचहिं पंडवेहिं कोंतीए देवीए दोवईए य सद्धिं अंतोअंतेउरपरियालसद्धिं संपरिवुडे सीहासनवरगए यावि विहरइ।
इमं च णं कच्छुल्लनारए–दंसणेणं अइभद्दए विनीए अंतो-अंतो य कलुस हियए मज्झत्थ-उवत्थिए य अल्लीण -सोमपियदंसणे सुरूवे अमइल-सगल-परिहिए कालमियचम्म-उत्तरासंग-रइयवच्छे दंड-कमंडलु-हत्थे जडामउड-दित्तसिरए जन्नोव-इय-गणेत्तिय-मुंजमेहला-वागलधरे हत्थकय-कच्छभीए पियगंधव्वे धरणिगोयरप्पहाणे संवरणावरणि-ओवयणुप्पयणि-लेसणीसु य संकाणि-आभिओगि-पण्णत्ति-गमणि-थंभिणीसु Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૨ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Gujarati | 175 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कच्छुल्लनारयस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहो णं दोवई देवी रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य पंचहिं पंडवेहिं अवत्थद्धा समाणी ममं नो आढाइ नो परियाणइ नो अब्भुट्ठेइ नो पज्जुवासइ। तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करेत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पंडुरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पयणिं विज्जं आवाहेइ, आवाहेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए विज्जाहरगईए लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं पुरत्थाभिमुहे वीईवइउं पयत्ते यावि होत्था।
तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्ध-दाहिणड्ढ-भरहवासे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૨ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१६ अवरकंका |
Gujarati | 176 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जुहिट्ठिल्ले राया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धे समाणे दोवइं देविं पासे अपासमाणे सयणिज्जाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करेत्ता दोवईए देवीए कत्थइ सुइं वा खुइं वा पवत्तिं वा अलभमाणे जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडुं रायं एवं वयासी–एवं खलु ताओ! ममं आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेन वा दानवेन वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा अवक्खित्ता वा। तं इच्छामि णं ताओ! दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करित्तए।
तए णं से पंडू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૨ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१८ सुंसमा |
Gujarati | 209 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चिलाए दासचेडे साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाधरएसु य पाणधरएसु य सुहंसुहेणं परिवट्टइ।
तए णं से चिलाए दासचेडे अनोहट्टिए अनिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारी मज्जप्पसंगी चोज्जप्पसंगी जूयप्पसंगी वेसप्पसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था।
तए णं रायगिहस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरत्थिमे दिसीभाए सीहगुहा नामं चोरपल्ली होत्था–विसम-गिरिक-डग-कोलंब-सन्निविट्ठा वंसोकलंक-पागार-परिक्खित्ता छिन्नसेल-विसमप्प-वाय-फरिहोवगूढा एगदुवारा अनेगखंडी विदितजण-निग्गमप्पवेसा अब्भिंतरपाणिया Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૮ | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Hindi | 13 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! उत्तरद्धभरहवासस्स दाहिणेणं, दाहिणड्ढभरहवासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पणवीसं जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं उव्वेहेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्य पर्वत कहाँ है ? गौतम ! उत्तरार्ध भरतक्षेत्र के दक्षिण में, दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के उत्तर में, पूर्व – लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिम – लवणसमुद्र के पूर्व में है। यह पूर्व – पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर – दक्षिण में चौड़ा है। अपने पूर्वी किनारे से पूर्व – लवणसमुद्र | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 101 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणं दिसिं वेयड्ढपव्वयाभिमुह पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए जाव जेणेव वेयड्ढपव्वए जेणेव वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले नितंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले नितंबे दुवालस जोयणायामं नवजोयणविच्छिण्णं वरनगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ जाव पोसहसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता नमिविनमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे Translated Sutra: राजा भरत ने उस दिव्य चक्ररत्न को दक्षिण दिशा में वैताढ्य पर्वत की ओर जाते हुए देखा। वह वैताढ्य पर्वत की उत्तर दिशावर्ती तलहटो में आया। वहाँ सैन्यशिबिर स्थापित किया। पौषधशाला में प्रविष्ट हुआ। श्रीऋषभस्वामी के कच्छ तथा महाकच्छ नामक प्रधान सामन्तों के पुत्र नमि एवं विनमि नामक विद्याधर राजाओं को उद्दिष्ट | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 103 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समसरीरं भरहे वासंमि सव्वमहिलप्पहाणं सुंदरथण जघन वरकर चरण नयन सिरसिजदसण जननहिदयरमण मनहरिं सिंगारागार चारुवेसं संगयगय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास संलाव निउण जुत्तोवयारकुसलं अमरबहूणं, सुरूवं रूवेणं अनुहरंति सुभद्दं भद्दंमि जोव्वणे वट्टमाणिं इत्थीरयणं, नमी य रयणाणि य कडगाणि य तुडियाणिय गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए विज्जाहरगईए जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणीयाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं Translated Sutra: वह समचौरस दैहिक संस्थानयुक्त थी। भरतक्षेत्र में समग्र महिलाओं में वह प्रधान – थी। उसके स्तन, जघन, हाथ, पैर, नेत्र, केश, दाँत – सभी सुन्दर थे, देखने वाले पुरुष के चित्त को आह्लादित करनेवाले थे, आकृष्ट करनेवाले थे। वह मानो शृंगार – रस का आगार थी। लोक – व्यवहार में वह कुशल थी। वह रूप में देवांगनाओं के सौन्दर्य का | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Hindi | 123 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भरहस्स रन्नो चक्करयणे छत्तरयणे दंडरयणे असिरयणे – एते णं चत्तारि एगिंदियरयणा आउहघर-सालाए समुप्पण्णा। चम्मरयणे मनिरयणे कागनिरयणे, नव य महानिहिओ–एए णं सिरिघरंसि समुप्पन्ना। सेनावइरयणे गाहावइरयणे वड्ढइरयणे पुरोहियरयणे– एए णं चत्तारि मनुयरयणा विनीयाए रायहानीए समुप्पण्णा। आसरयणे हत्थिरयणे– एए णं दुवे पंचिंदियरयणा वेयड्ढगिरिपायमूले समुप्पन्ना। इत्थीरयणे उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए समुप्पन्ने। Translated Sutra: चक्ररत्न, दण्डरत्न, असिरत्न तथा छत्ररत्न – ये चार एकेन्द्रिय रत्न आयुधगृहशाला में – उत्पन्न हुए। चर्म – रत्न, मणिरत्न, काकणीरत्न तथा नौ महानिधियाँ, श्रीगृह में, सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरत्न तथा पुरोहित – रत्न, ये चार मनुष्यरत्न, विनीता राजधानी में, अश्वरत्न तथा हस्तिरत्न, ये दो पञ्चेन्द्रियरत्न | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 129 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं पउमद्दहस्स पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महानई पवूढा समाणी पुरत्थाभिमुही पंच जोयणसयाइं पव्वएणं गंता गंगावत्तणकूडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिन्नि य एगून-वीसइभाए जोयणस्स दाहिनाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ।
गंगा महानई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पन्नत्ता। सा णं जिब्भिया अद्धजोयणं आयामेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा।
गंगा महानई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते–सट्ठिं Translated Sutra: उस पद्मद्रह के पूर्वी तोरण – द्वार से गंगा महानदी निकलती है। वह पर्वत पर पाँच ५०० बहती है, गंगावर्त कूट के पास से वापस मुड़ती है, ५२३ – ३/१९ योजन दक्षिण की ओर बहती है। घड़े के मुँह से निकलते हुए पानी की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक, मोतियों के बने हार के सदृश आकार में वह प्रपात – कुण्ड में गिरती है। उस समय | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 167 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे नामं विजए पन्नत्ते? गोयमा! सीयाए महानईए उत्तरेणं, निलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, चित्तकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे कच्छे नामं विजए पन्नत्ते–उत्तरदाहिणायए पाईणपडीण विच्छिन्नेपलियंकसंठाणसंठिए गंगासिंधूहिं महानईहिं वेयड्ढेण य पव्वएणं छब्भागपविभत्ते सोलस जोयणसहस्साइं पंच य बाणउए जोयणसए दोन्नि य एगूनवीसइभाए जोयणस्स आयामेणं, दो जोयणसहस्साइं दोन्नि य तेरसुत्तरे जोयणसए किंचिविसेसूने विक्खंभेणं।
कच्छस्स णं विजयस्स Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप के महाविदेहक्षेत्रमें कच्छविजय कहाँ है ? गौतम ! शीता महानदी के उत्तर में, नीलवान वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिममें, माल्यवान वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में है। वह उत्तर – दक्षिण लम्बी एवं पूर्व – पश्चिम चौड़ी है, पलंग के आकारमें अवस्थित है। गंगा महानदी, सिन्धु | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Hindi | 173 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सोलस विज्जाहरसेढीओ? तावइयाओ आभियोगसेढीओ, सव्वाओ इमाओ ईसानस्स। सव्वेसु विजएसु कच्छवत्तव्वया जाव अट्ठो, रायाणो सरिसणामगा विजएसु, सोलसण्हं वक्खारपव्वयाणं चित्तकूडवत्तव्वया जाव कूडा चत्तारि-चत्तारि बारसण्हं णईणं गाहावइवत्तव्वया जाव उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं वनसंडेहिं य वण्णओ। Translated Sutra: कच्छ आदि पूर्वोक्त विजयों में सोलह विद्याधर – श्रेणियाँ तथा उतनी ही – आभियोग्यश्रेणियाँ हैं। ये आभि – योग्यश्रेणियाँ ईशानेन्द्र की हैं। सब विजयों की वक्तव्यता कच्छविजय समान है। उन विजयों के जो जो नाम हैं, उन्हीं नामों के चक्रवर्ती राजा वहाँ होते हैं। विजयों में जो सोलह पर्वत हैं, प्रत्येक वक्षस्कार पर्वत | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Hindi | 227 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के नामं देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मघवं पागसासने दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवई एरावणवाहने सुरिंदे अरयंबर-वत्थधरे आलइयमालमउडे णवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगल्ले भासुरबोंदी पलंबवन-माले महिड्ढीए महज्जुईए महाबले महायसे महानुभागे महासोक्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसए विमाने समाए सुहम्माए सक्कंसि सीहासनंसि निसन्ने।
से णं तत्थ बत्तीसाए विमानावाससयसाहस्सीणं, चउरासीए सामानियसाहस्सीणं, तायत्ती-साए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अट्ठण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, Translated Sutra: उस काल, उस समय शक्र नामक देवेन्द्र, देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर, शतक्रतु, सहस्राक्ष, मघवा, पाक – शासन, दक्षिणार्धलोकाधिपति, बत्तीस लाख विमानों के स्वामी, ऐरावत हाथी पर सवारी करनेवाले, सुरेन्द्र, निर्मल वस्त्रधारी, मालायुक्त मुकुट धारण किये हुए, उज्ज्वल स्वर्ण के सुन्दर, चित्रित चंचल – कुण्डलों से जिसके कपोल सुशोभित | |||||||||
Jambudwippragnapati | जंबुद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ६ जंबुद्वीपगत पदार्थ |
Hindi | 249 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे कइ वासा पन्नत्ता? गोयमा! सत्त वासा पन्नत्ता, तं जहा–भरहे एरवए हेमवए हेरण्णवए हरिवासे रम्मगवासे महाविदेहे।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया वासहरा पन्नत्ता? केवइया मंदरा पव्वया? केवइया चित्तकूडा? केवइया विचित्तकूडा? केवइया जमगपव्वया? केवइया कंचनगपव्वया? केवइया वक्खारा? केवइया दीहवेयड्ढा? केवइया वट्ठवेयड्ढा पन्नत्ता? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे छ वासहरपव्वया, एगे मंदर पव्वए, एगे चित्तकूडे, एगे विचित्तकूडे, दो जमगपव्वया, दो कंचनगपव्वय-सया, वीसं वक्खारपव्वया, चोत्तीसं दीहवेयड्ढा, चत्तारि वट्टवेयड्ढा–एवामेव सपुव्वावरेणं जंबुद्दीवे दीवे दुन्नि Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने वर्ष – क्षेत्र हैं ? गौतम ! सात, – भरत, ऐरावत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यकवर्ष तथा महाविदेह। जम्बूद्वीप के अन्तर्गत छह वर्षधर पर्वत, एक मन्दर पर्वत, एक चित्रकूट पर्वत, एक विचित्रकूट पर्वत, दो यमक पर्वत, दो सौ काञ्चन पर्वत, बीस वक्षस्कार पर्वत, चौतीस दीर्घ वैताढ्य पर्वत तथा चार वृत्त | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार १ भरतक्षेत्र |
Gujarati | 13 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते? गोयमा! उत्तरद्धभरहवासस्स दाहिणेणं, दाहिणड्ढभरहवासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुद्दस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवण-समुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढे नामं पव्वए पन्नत्ते–पाईणपडीणायए उदीणदाहिणविच्छिन्नेदुहा लवणसमुद्दं पुट्ठे–पुरत्थिमिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं लवणसमुद्दं पुट्ठे, पणवीसं जोयणाइं उद्धं उच्चत्तेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं उव्वेहेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं। तस्स बाहा पुरत्थिम-पच्चत्थिमेणं Translated Sutra: જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં વૈતાઢ્ય નામે પર્વત ક્યાં કહેલો છે ? ગૌતમ ! ઉત્તરાર્દ્ધ ભરતક્ષેત્રની દક્ષિણે દક્ષિણ અર્દ્ધ ભરતક્ષેત્રની ઉત્તરે, પૂર્વી લવણસમુદ્રની પશ્ચિમે, પશ્ચિમ લવણસમુદ્રની પૂર્વે, આ જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં વૈતાઢ્ય નામનો પર્વત કહેલો છે. તે વૈતાઢ્ય પર્વત પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબો, | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Gujarati | 101 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं दाहिणं दिसिं वेयड्ढपव्वयाभिमुह पयातं चावि पासइ, पासित्ता हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए जाव जेणेव वेयड्ढपव्वए जेणेव वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले नितंबे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेयड्ढस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले नितंबे दुवालस जोयणायामं नवजोयणविच्छिण्णं वरनगरसरिच्छं विजयखंधावारनिवेसं करेइ जाव पोसहसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता दब्भसंथारगं दुरुहइ, दुरुहित्ता नमिविनमीणं विज्जाहरराईणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ, पगिण्हित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૦૧. ત્યારે તે ભરતરાજા તે દિવ્ય ચક્રરત્નને યાવત્ વૈતાઢ્ય પર્વતના ઉત્તરીય નિતંબે જાય છે, જઈને વૈતાઢ્ય પર્વતના ઉત્તરીય નિતંબમાં બાર યોજન લાંબી યાવત્ પૌષધશાળામાં પ્રવેશે છે યાવત્ નમિ અને વિનમી વિદ્યાધર રાજાના નિમિત્તે અઠ્ઠમભક્ત ગ્રહણ કરે છે. કરીને પૌષધશાળામાં યાવત્ નમિ – વિનમી વિદ્યાધર રાજાને | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Gujarati | 103 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समसरीरं भरहे वासंमि सव्वमहिलप्पहाणं सुंदरथण जघन वरकर चरण नयन सिरसिजदसण जननहिदयरमण मनहरिं सिंगारागार चारुवेसं संगयगय हसिय भणिय चिट्ठिय विलास संलाव निउण जुत्तोवयारकुसलं अमरबहूणं, सुरूवं रूवेणं अनुहरंति सुभद्दं भद्दंमि जोव्वणे वट्टमाणिं इत्थीरयणं, नमी य रयणाणि य कडगाणि य तुडियाणिय गेण्हइ, गेण्हित्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए जइणाए सीहाए सिग्घाए उद्धुयाए विज्जाहरगईए जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणीयाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिया करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु भरहं रायं जएणं विजएणं Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૧ | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ३ भरतचक्री |
Gujarati | 123 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भरहस्स रन्नो चक्करयणे छत्तरयणे दंडरयणे असिरयणे – एते णं चत्तारि एगिंदियरयणा आउहघर-सालाए समुप्पण्णा। चम्मरयणे मनिरयणे कागनिरयणे, नव य महानिहिओ–एए णं सिरिघरंसि समुप्पन्ना। सेनावइरयणे गाहावइरयणे वड्ढइरयणे पुरोहियरयणे– एए णं चत्तारि मनुयरयणा विनीयाए रायहानीए समुप्पण्णा। आसरयणे हत्थिरयणे– एए णं दुवे पंचिंदियरयणा वेयड्ढगिरिपायमूले समुप्पन्ना। इत्थीरयणे उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए समुप्पन्ने। Translated Sutra: ભરત રાજાના ચક્રરત્ન, દંડરત્ન, અસિરત્ન, છત્રરત્ન આ ચાર એકેન્દ્રિય રત્નો આયુધગૃહશાળામાં ઉત્પન્ન થયા. ચર્મરત્ન, મણિરત્ન, કાકણિરત્ન અને નવ મહાનિધિઓ એ બધા શ્રીગૃહમાં ઉત્પન્ન થયા. સેનાપતિ રત્ન, ગૃહપતિ રત્ન, વર્ધકીરત્ન, પુરોહિતરત્ન આ ચાર મનુષ્યરત્નો વિનીતા રાજધાનીમાં ઉત્પન્ન થયા. અશ્વરત્ન અને હસ્તિરત્ન, એ બંને | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ४ क्षुद्र हिमवंत |
Gujarati | 129 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं पउमद्दहस्स पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महानई पवूढा समाणी पुरत्थाभिमुही पंच जोयणसयाइं पव्वएणं गंता गंगावत्तणकूडे आवत्ता समाणी पंच तेवीसे जोयणसए तिन्नि य एगून-वीसइभाए जोयणस्स दाहिनाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएणं साइरेगजोयणसइएणं पवाएणं पवडइ।
गंगा महानई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पन्नत्ता। सा णं जिब्भिया अद्धजोयणं आयामेणं, छस्सकोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, मगरमुहविउट्टसंठाणसंठिया सव्ववइरामई अच्छा सण्हा।
गंगा महानई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवायकुंडे नामं कुंडे पन्नत्ते–सट्ठिं Translated Sutra: તે પદ્મદ્રહના પૂર્વના તોરણથી ગંગા મહાનદી નીકળી પૂર્વ અભિમુખ ૫૦૦ યોજન પર્વતમાં વહીને ગંગાવર્તકૂટે આવર્ત્ત કરીને ૫૨૩ યોજન અને યોજનના ૩/૧૯ ભાગ દાક્ષિણાભિમુખી પર્વતમાં ગંગા મોટા ઘટમુખથી નીકળતી, મુક્તાવલી હાર સંસ્થિત, સાતિરેક સો યોજનના પ્રપાતથી પડે છે. ગંગા મહાનદી જ્યાંથી પ્રવર્તે છે, ત્યાં એક મોટી જીહ્વિકા |