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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 69 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दिसिवए तिविहे पन्नत्ते– उड्ढदिसिवए अहोदिसिवए तिरियदिसिवए दिसिवयस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– उड्ढदिसिपमाणाइक्कमे अहोदिसिपमाणाइक्कमे तिरियदिसिपमाणाइक्कमे खित्तुवुड्ढी सइअंतरद्धा।

Translated Sutra: दिशाव्रत तीन तरह से जानना चाहिए। ऊर्ध्व – अधो – तिर्यक – दिशाव्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानना चाहिए। १. ऊर्ध्व, २. अधो, ३. तिर्यक्‌ दिशा के प्रमाण का अतिक्रमण। क्षेत्र, वृद्धि और स्मृति गलती से कितना अंतर हुआ उसका खयाल न रहे वो।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 70 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उवभोगपरिभोगवए दुविहे पन्नत्ते तं जहा–भोअणओ कम्मओ अ, भोअणओ समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सचित्ताहारे सचित्तपडिबद्धाहारे अप्पउलिओसहिभक्खणया तुच्छोसहिभक्खणया दुप्पउलि- ओसहिभक्खणया।

Translated Sutra: उपभोग – परिभोग व्रत दो प्रकार से – भोजनविषयक परिमाण और कर्मादानविषयक परिमाण, भोजन सम्बन्धी परिमाण करनेवाले श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। अचित्त आहार करे, सचित्त प्रतिबद्ध आहार करे, अपक्व दुष्पक्व आहार करे, तुच्छ वनस्पति का भक्षण करे। कर्मादान सम्बन्धी नियम करनेवाले को यह पंद्रह कर्मादान जानने
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 72 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनत्थदंडे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा– अवज्झाणारिए पमत्तायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे अनत्थदंडवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– कंदप्पे कुक्कुइए मोहरिए संजुत्ताहिगरणे उवभोगपरिभोगाइरेगे।

Translated Sutra: अनर्थदंड़ चार प्रकार से बताया है वो इस प्रकार – अपध्यान – प्रमादाचरण – हत्याप्रदान और पापकर्मोपदेश। अनर्थदंड़ विरमण व्रत धारक श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए वो इस प्रकार – काम विकार सम्बन्ध से हुआ अतिचार, कुत्सित चेष्टा, मौखर्य, वाचालता, हत्या अधिकरण का इस्तमाल, भोग का अतिरेक।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 73 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयं नामं सावज्जजोगपरिवज्जणं निरवज्जजोगपडिसेवणं च।

Translated Sutra: सामायिक यानि सावद्य योग का वर्जन और निरवद्य योग का सेवन ऐसे शिक्षा अध्ययन दो तरीके से बताया है। उपपातस्थिति, उपपात, गति, कषायसेवन, कर्मबंध और कर्मवेदन इन पाँच अतिक्रमण का वर्जन करना चाहिए – सभी जगह विरति की बात बताई गई है। वाकई सर्वत्र विरति नहीं होती। इसलिए सर्व विरति कहनेवाले ने सर्व से और देश से (सामायिक)
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 78 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दिसिव्वयगहियस्स दिसापरिमाणस्स पइदिनं परिमाणकरणं देसावगासियं देसावगासियस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– आणवणप्पओगे पेसवणप्पओगे सद्दाणुवाए रूवाणुवाए बहिया पुग्गलपक्खेवे।

Translated Sutra: दिक्‌व्रत ग्रहणकर्ता के, प्रतिदिन दिशा का परिमाण करना वो देशावकासिक व्रत। देशावकासिक व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। वो इस प्रकार – बाहर से किसी चीज लाना, बाहर किसी चीज भेजना, शब्द करके मोजूदगी बताना, रूप से मोजूदगी बताना और बाहर कंकर आदि फेंकना।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 79 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पोसहोववासे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा– आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे, पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए, अप्पडि-लेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमीओ, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमीओ, पोसहोववासस्स सम्मं अननुपालणया।

Translated Sutra: पौषधोपवास चार तरह से बताया है वो इस प्रकार – आहार पौषध, देह सत्कार पौषध, ब्रह्मचर्य पौषध और अव्यापार पौषध। पौषधोपवास, व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए, वो इस प्रकार – अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित, शय्या संथारो, अप्रमार्जित, दुष्प्रमार्जित मल – मूत्र त्याग भूमि, पौषधोपवास की सम्यक्‌ परिपालना
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 80 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अतिहिसंविभागो नाम नायागयाणं कप्पणिज्जाणं अन्नपाणाईणं दव्वाणं देसकालसद्धा-सक्कारकमजुअं पराए भत्तीए आयाणुग्गहबुद्धीए संजयाणं दानं, अतिहिंसविभागस्स समणोवसएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सच्चित्तनिक्खेवणया सचित्तपिहणया कालाइक्कमे परवएसे मच्छरिया य।

Translated Sutra: अतिथि संविभाग यानि साधु – साध्वी को कल्पनीय अन्न – पानी देना, देश, काल, श्रद्धा, सत्कार युक्त श्रेष्ठ भक्तिपूर्वक अनुग्रह बुद्धि से संयतो को दान देना। वो अतिथि संविभाग व्रतयुक्त श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए। वो इस प्रकार – अचित्त निक्षेप, सचित्त के द्वारा ढूँढ़ना, भोजनकाल बीतने के बाद दान देना,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 81 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाइं तिन्नि गुणव्वयाइं आवकहियाइं चत्तारि सिक्खा-वयाइं इत्तरियाइं एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा– तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा। अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, काम-भोगासंसप्पओगे।

Translated Sutra: इस प्रकार श्रमणोपासक धर्म में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और यावत्कथिक या इत्वरकथिक यानि चिरकाल या अल्पकाल के चार शिक्षाव्रत बताए हैं। इन सबसे पहले श्रमणोपासक धर्म में मूल वस्तु सम्यक्त्व है। वो निसर्ग से और अभिमान से दो प्रकार से है। पाँच अतिचार रहित विशुद्ध अणुव्रत और गुणव्रत की प्रतिज्ञा के सिवा दूसरी
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 82 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं पच्चक्खाइ चउव्विहं पि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणा-भोगेणं सहसागारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्य नीकलने से आरम्भ होकर नमस्कार सहित अशन, पान, खादिम, स्वादिम से पच्चक्खाण करते हैं। सिवा कि अनाभोग, सहसाकार से (नियम का) त्याग करे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 83 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्योदय से पोरिसी (यानि एक प्रहर पर्यन्त) चार तरह का – अशन, पान, खादिम, स्वादिम का पच्चक्खाण करते हैं। सिवा कि अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल से, दिशा – मोह से, साधु वचन से, सर्व समाधि के हेतुरूप आगार से (पच्चक्खाण) छोड़े।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 84 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरे उग्गए पुरिमड्ढं पच्चक्खाइं चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्य ऊपर आए तब तक पुरिमड्ढ (सूर्य मध्याह्न में आए तब तक) अशन आदि चार आहार का पच्चक्खाण ( – नियम) करता है। सिवाय कि अनाभोग, सहसाकार, काल की प्रच्छन्नता, दिशामोह, साधुवचन, महत्तरवजह या सर्व समाधि के हेतुरूप आगार से नियम छोड़ दे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 85 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगासणं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं, आउंटणपसारणेणं गुरुअब्भुट्ठाणेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहि वत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: एकासणा का पच्चक्खाण करता है। (एक बार के अलावा) अशन आदि चार आहार का त्याग करता है। सिवा कि अनाभोग, सहसाकार, सागारिक कारण से, आकुंचन प्रसारण से, गुरु अभ्युत्थान पारिष्ठापनिका कारण से, महत्‌ कारण से या सर्व समाधि के हेतु रूप आगार से (पच्चक्खाण) छोड़ दे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 87 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयंबिलं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं लेवालेवेणं उक्खित्तविवेगेणं गिहत्थसंसट्ठेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: आयंबिल का पच्चक्खाण करता है। (उसमें आयंबिल के लिए एकबार बैठने के अलावा) अशन आदि चार आहार का त्याग करता है। सिवा कि अनाभोग से, सहसाकार से, लेपालेप से, उत्क्षिप्त विवेक से, गृहस्थ संसृष्ट से, पारिष्ठापन कारण से, महत्तर कारण से या सर्व समाधि के लिए (पच्चक्खाण) छोड़ दे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 88 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सूरे उग्गए अभत्तट्ठं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं- असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्य उगने तक भोजन न करने का पच्चक्खाण करता है (अशन आदि चार आहार का त्याग करता है।) सिवा कि अनाभोग सहसाकार, पारिष्ठापनिका और महत्तर कारण से, सर्व समाधि के लिए (पच्चक्खाण) छोड़ दे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 89 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दिवसचरिमं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं- असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसा-गारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइं।

Translated Sutra: दिन के अन्त में अशन आदि चार प्रकार के आहार का पच्चक्खाण करता है। सिवा कि अनाभोग सहसाकार, महत्तर कारण, सर्व समाधि के हेतु से छोड़ दे।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 92 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निव्विगइयं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं- असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं लेवालेवेणं गिहत्थसंसट्ठेणं उक्खित्तविवेगेणं पडुच्चमक्खिएणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: विगई का पच्चक्खाण करता है। सिवा कि अनाभोग सहसाकार, लेपालेप, गृहस्थ संसृष्ट, उत्क्षिप्त विवेक, प्रतीत्यम्रक्षित, परिष्ठापन, महत्तर, सर्व समाधि हेतु। इतने कारण से पच्चक्खाण छोड़ दे।
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 17 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए निगामसिज्जाए संथारा उव्वट्टणाए परियट्टणाए आउंटण-पसारणाए छप्पइयसंघट्टणाए कूइए कक्कराइए छीए जंभाइए आमोसे ससरक्खामोसे आउल-माउलाए सोअणवत्तियाए इत्थीविप्परिआसियाए दिट्ठिविप्परिआसिआए मणविप्परिआ-सिआए पाणभोयणविप्परिआसिआए जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: હું પ્રતિક્રમણ કરવાને ઇચ્છું છું. (શેનું?) પ્રકામ શય્યાથી, નિકામ શય્યાથી, સંથારામાં પડખા ફેરવવાથી, પુનઃ તે જ પડખે ફરવાથી, આકુંચન – પ્રસારણ કરવાથી, જૂ વગેરે જીવોના સંઘટ્ટનથી, ખાંસતા – કચકચ કરતા – છીંક કે બગાસું ખાતા (મુહપત્તિ ન રાખવાથી), આમર્ષથી, સરજસ્ક વસ્તુને સ્પર્શવાથી, આકુળ – વ્યાકુળતાથી, સ્વપ્ન નિમિત્તે,
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 23 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि पंचहिं कामगुणेहिं- सद्देणं रूवेणं गंधेणं रसेणं फासेणं, पडिक्कमामि पंचहिं महव्वएहिं-पाणाइवायाओ वेरमणं मुसावायाओ वेरमणं अदिन्नादाणाओ वेरमणं मेहुणाओ वेरमणं परिग्गहाओ वेरमणं, पडिक्कमामि पंचहिं समईहिं- इरियासमिईए भासासमिईए एसणासमिईए आयाणभंड-मत्तनिक्खेवणासमिईए उच्चार-पासवण-खेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमिईए।

Translated Sutra: હું શબ્દ, રૂપ, રસ, ગંધ, સ્પર્શ એ પાંચ વડે લાગતા અતિચારોને પ્રતિક્રમું છું. હું પાંચ મહાવ્રતો – પ્રાણાતિપાત વિરમણ, મૃષાવાદ વિરમણ, અદત્તાદાન વિરમણ, મૈથુન વિરમણ અને પરિગ્રહ વિરમણને આચરતા લાગેલા અતિચારોને પ્રતિક્રમું છું. હું પાંચ સમિતિ – ઇર્યાસમિતિ, ભાષાસમિતિ, એષણાસમિતિ, આદાનભાંડ માત્ર નિક્ષેપણા સમિતિ અને ઉચ્ચાર
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 32 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं धम्मं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि फासेमि पालेमि अनुपालेमि तं धम्मं सद्दहंतो पत्तियंतो रोएंतो फासेंतो पालंतो अनुपालंतो तस्स धम्मस्स केवलि पन्नत्तस्स अब्भुट्ठिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए– असंजमं परियाणामि संजमं उवसंपज्जामि अबंभं परियाणामि बंभ उवसंपज्जामि अकप्पं परियाणामि कप्पं उवसंपज्जामि अन्नाणं परियाणामि नाणं उवसंपज्जामि अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि अबोहिं परियाणामि बोहिं उवसंपज्जामि अमग्गं परियाणामि मग्गं उवसंपज्जामि

Translated Sutra: તે ધર્મની હું શ્રદ્ધા કરું છું. પ્રીતિ કરું છું. રૂચિ કરું છું. પાલન – સ્પર્શના કરું છું. અનુપાલન કરું છું. તે ધર્મની શ્રદ્ધા કરતો, પ્રીતિ કરતો, રૂચિ કરતો, સ્પર્શના કરતો, અનુપાલન કરતો હું – તે ધર્મની આરાધનામાં ઉદ્યત થયો છું, વિરાધનાથી અટકેલો છું (તેના જ માટે) અસંયમને જાણીને તજુ છું અને સંયમનો સ્વીકારું છું. અબ્રહ્મને
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 38 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि ठाइउं काउस्सग्गं जो मे देवसिओ अइयारो कओ काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उप्पग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडसेणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहेसमणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: હું કાયોત્સર્ગમાં સ્થિર રહેવાને ઇચ્છું છું. મેં જે કોઈ દૈવસિક અતિચાર સેવેલ હોય૦ (સૂત્ર – ૧૫ મુજબ આખું સૂત્ર કહેવું.)
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 56 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उज्जिंतसेल सिहरे दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स । तं धम्मचक्कवट्टीं अरिट्ठनेमिं नमंसामि ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૩
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 62 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो अहमपुव्वाइं कयाइं च मे किइ कम्माइं आयरमंतरे विणयमंतरे सेहिए सेहाविओ संगहिओ उवग्गहिओ सारिओ वारिओ चोइओ पडिचोइओ चिअत्ता मे पडिचोयणा उव्वट्ठिओहं तुब्भण्हं तवतेयसिरीए इमाओ चाउरंतसंसार-कंताराओ साहट्टु नित्थरिस्सामि त्तिकट्टु सिरसामणसा मत्थएण वंदामि –नित्थारगपारगाहोह।

Translated Sutra: હે ક્ષમાશ્રમણ ! હું ભાવિકાળમાં કૃતિકર્મ – વંદન કરવાને ઇચ્છું છું. ભૂતકાળમાં તે આચાર વિના કર્યા, વિનય વિના કર્યા, આપે મને જે આચાર આદિ શીખવ્યા, કુશળ બનાવ્યો, સંગ્રહિત અને ઉપગ્રહિત કર્યો, સારણા – વારણા – ચોયણા – પ્રતિ ચોયણા કરી. હવે હું તે ભૂલો સુધારવા ઉદ્યત થયેલો છું. આપના તપ અને તેજરૂપી લક્ષ્મી વડે આ ચાતુરંત સંસાર
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 63 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ समणोवासओ पुव्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मत्तं उवसंपज्जइ नो से कप्पइ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुव्वि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पयाउं वा नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं से य सम्मत्ते पसत्थ-समत्त-मोहणिय-कम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते सम्मत्तस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं

Translated Sutra: તેમાં – શ્રમણોપાસકો પૂર્વે જ અર્થાત શ્રાવક બનતા પહેલા જ મિથ્યાત્વને પ્રતિક્રમે (છોડે)છે અને સમ્યક્‌ત્વને અંગીકાર કરે. તેઓને કલ્પે નહીં – (શું ન કલ્પે ?) આજથી અન્યતીર્થિક કે અન્યતીર્થિકના દેવો કે અન્યતીર્થિકે પરિગૃહિત અરહંત પ્રતિમાને વંદન કરવા કે નમસ્કાર કરવો. (ન કલ્પે.) પૂર્વે ભલે ગ્રહણ ન કરી હોય, પણ હાલ અન્યતીર્થિક
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 64 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगपाणाइवायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से पाणाइवाए दुविहे पन्नत्तं तं जहा–संकप्पओ अ आरंभओ अ तत्थ समणोवासओ संकप्पओ जावज्जीवाए पच्चक्खाइ नो आरंभओ थूलगपाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– बंधे वहे छविच्छेए अइभारे भत्तपाणवुच्छेए।

Translated Sutra:
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 65 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगमुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाइ से य मुसावाए पंचविहे पन्नत्ते तं जहा–कन्नालीए गवालीए भोमालीए नासावहारे कूडसक्खिज्जे, थूलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सहस्सब्भक्खाणे रहस्सब्भक्खाणे सदारमंतभेए मोसुवएसे कूडलेहकरणे।

Translated Sutra: શ્રાવકો સ્થૂલ મૃષાવાદનું પચ્ચક્‌ખાણ કરે. તે મૃષાવાદ પાંચ ભેદે કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – કન્યાલીક, ગવાલિક, ભૌમાલિક, ન્યાસાપહાર, કૂટસાક્ષિક. સ્થૂલમૃષાવાદ વિરમણ કરેલ શ્રાવકોને આ પાંચ અતિચારો છે, તે જાણવા જોઈએ – સહસાભ્યાખ્યાન, રહસ્યાભ્યાખ્યાન, સ્વદારા મંત્રભેદ, મૃષા ઉપદેશ અને ખોટા લેખ કરવા.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 66 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थूलगअदत्तादानं समणोवासओ पच्चक्खाइ से अदिन्नादाणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तादत्तादाने अचित्तादत्तादाने अ, थूलादत्तादानवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– तेनाहडे तक्करपओगे विरुद्धज्जाइंक्कमणे कूडतुल-कूडमाणे तप्पडिरूवगववहारे।

Translated Sutra: શ્રમણોપાસકે સ્થૂળ અદત્તાદાનનું પચ્ચક્‌ખાણ કરવું. તે અદત્તાદાન બે ભેદે કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – સચિત્ત અદત્તાદાન અને અચિત્ત અદત્તાદાન. સ્થૂળ અદત્તાદાનથી વિરમેલ શ્રાવકને આ પાંચ અતિચારો જાણવા જોઈએ, તે આ પ્રમાણે – સ્તેનાહૃત, તસ્કર પ્રયોગ, વિરુદ્ધ રાજ્યાતિક્રમ, કૂડતુલ કૂડમાન અને તત્પ્રતિરૂપક વ્યવહાર.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 67 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परदारगमणं समणोवासओ पच्चक्खाइ सदारसंतोसं वा पडिवज्जइ से य परदारगमणे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–ओरालियपरदारगमणे वेउव्वियपरदारगमणे सदारसंतोस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– अपरिगहियागमणे इत्तरियपरिगहियागमणे अनंगकीडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे

Translated Sutra: શ્રમણોપાસકે પરદારાગમનના પચ્ચક્‌ખાણ કરવા અથવા સ્વપત્નીમાં સંતોષ રાખવો. (તે ચોથું વ્રત). તે પરદારાગમન બે ભેદે છે, તે આ પ્રમાણે – (૧) ઔદારિક પરદારાગમન, (૨) વૈક્રિય પરદારાગમન. સ્વદારા સંતોષ વ્રત લેનાર શ્રમણોપાસકે આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ. તે આ પ્રમાણે – (૧) અપરિગૃહિતા ગમન, (૨) ઇત્વરિક પરિગૃહિતાગમન, (૩) અનંગક્રીડા, (૪)
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 68 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिमियपरिग्गहं समणोवासओ पच्चक्खाइ इच्छापरिणामं उवसंपज्जइ से परिग्गहे दुविहे पन्नत्ते तं जहा–सचित्तपरिग्गहे अचित्तपरिग्गहे य इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– धणधन्नपमाणाइक्कमे खित्तवत्थुपमाणाइक्कमे हिरन्नसुवन्नपमाणाइक्कमे दुपयचउप्पय-पमाणाइक्कमे कुवियपमाणाइक्कमे।

Translated Sutra: શ્રમણોપાસક અપરિમિત પરિગ્રહના પચ્ચક્‌ખાણ કરે. ઇચ્છાનું પરિમાણ સ્વીકાર કરે, એ પાંચમું અણુવ્રત. તે પરિગ્રહ બે ભેદે છે. તે આ પ્રમાણે – સચિત્તનો પરિગ્રહ અને અચિત્તનો પરિગ્રહ. ઇચ્છા પરિમાણ કરેલા શ્રાવકને આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ પરંતુ તે દોષોનું આચરણ ન કરવુંજોઈએ. તે આ પ્રમાણે – ૧) ધન – ધાન્ય પ્રમાણાતિક્રમ, ૨) ક્ષેત્ર
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 72 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनत्थदंडे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा– अवज्झाणारिए पमत्तायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे अनत्थदंडवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– कंदप्पे कुक्कुइए मोहरिए संजुत्ताहिगरणे उवभोगपरिभोगाइरेगे।

Translated Sutra: અનર્થ દંડ ચાર ભેદે કહેલ છે – અપધ્યાનાચરિત, પ્રમત્તાચરિત, હિંસાપ્રદાન, પાપકર્મોપદેશ. અનર્થદંડ વિરમણ વ્રતી શ્રાવકને આ પાંચ અતિચાર જાણવા જોઈએ – કંદર્પ, કૌકુત્ચ્ય, મૌખરિક, સંયુક્તાધિકરણ, ઉપભોગ પરિભોગાતિરિક્ત.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 73 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयं नामं सावज्जजोगपरिवज्जणं निरवज्जजोगपडिसेवणं च।

Translated Sutra: સામાયિક એટલે સાવદ્યયોગનું પરિવર્જન અને નિરવદ્ય યોગનું પ્રતિસેવન. એમ શિક્ષા અધ્યયન બે પ્રકારે કહ્યું છે ઉપપાત – સ્થિતિ, ગતિ, કષાય, કર્મબંધ અને કર્મવેદન આ પાંચ અતિક્રમણ વર્જવા. સામાયિક કરેલ હોય ત્યારે શ્રાવક શ્રમણ જેવો થાય છે. આ કારણે વારંવાર સામાયિક કરવી જોઈએ. બધે જ ‘વિરતિ’ કહેવાઈ છે, ખરેખર બધે ‘વિરતિ’ હોતી
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 79 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पोसहोववासे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा– आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे, पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए, अप्पडि-लेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमीओ, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमीओ, पोसहोववासस्स सम्मं अननुपालणया।

Translated Sutra: પૌષધોપવાસ ચાર ભેદે કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – આહાર પૌષધ, શરીર સત્કાર પૌષધ, બ્રહ્મચર્ય પૌષધ, અવ્યાપાર પૌષધ. પૌષધોપવાસ વ્રતધારી શ્રાવકે આ પાંચ અતિચારો જાણવા જોઈએ. તે આ પ્રમાણે – અપ્રતિલેખિત – દુષ્પ્રતિલેખિત શય્યા સંસ્તારક, અપ્રમાર્જિત – દુષ્પ્રમાર્જિત શય્યા સંસ્તારક. અપ્રતિલેખિત દુષ્પ્રતિલેખિત ઉચ્ચાર પ્રશ્રવણ
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 80 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अतिहिसंविभागो नाम नायागयाणं कप्पणिज्जाणं अन्नपाणाईणं दव्वाणं देसकालसद्धा-सक्कारकमजुअं पराए भत्तीए आयाणुग्गहबुद्धीए संजयाणं दानं, अतिहिंसविभागस्स समणोवसएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– सच्चित्तनिक्खेवणया सचित्तपिहणया कालाइक्कमे परवएसे मच्छरिया य।

Translated Sutra: અતિથિ સંવિભાગ એટલે સાધુ – સાધ્વીને કલ્પનીય અન્ન – પાણી આપવા. દેશ, કાળ, શ્રદ્ધા, સત્કારયુક્ત શ્રેષ્ઠ ભક્તિપૂર્વક અનુગ્રહ બુદ્ધિથી સંયતોને દ્રવ્યોનું દાન આપવું. આ અતિથિ સંવિભાગ વ્રતયુક્ત શ્રમણોપાસકે આ પાંચ અતિચારો જાણવા – સચિત્ત નિક્ષેપણા, સચિત્ત પિધાનતા, કાલાતિક્રમ, પરવ્યપદેશ, મત્સરતા.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 81 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाइं तिन्नि गुणव्वयाइं आवकहियाइं चत्तारि सिक्खा-वयाइं इत्तरियाइं एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा– तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा। अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, काम-भोगासंसप्पओगे।

Translated Sutra: આ પ્રમાણે શ્રાવકધર્મમાં પાંચ અણુવ્રત, ત્રણ ગુણવ્રત અને યાવત્કથિત કે ઇત્વરકથિત અર્થાત ચિરકાળ કે અલ્પકાળ માટે ચાર શિક્ષાવ્રત કહ્યા છે. આ બધાની પૂર્વે શ્રાવકધર્મની મૂલ વસ્તુ સમ્યક્‌ત્વ છે તે આ – તે નિસર્ગથી કે અભિગમથી બે ભેદે અથવા પાંચ અતિચાર રહિત વિશુદ્ધ અણુવ્રત અને ગુણવ્રતની પ્રતિજ્ઞા સિવાય બીજી પણ પ્રતિમા
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 1 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इहमेगेसिं नो सण्णा भवइ ।

Translated Sutra: आयुष्मन्‌ ! मैंने सूना है। उन भगवान (महावीर स्वामी) ने यह कहा है – संसारमें कुछ प्राणियों को यह संज्ञा (ज्ञान) नहीं होती। जैसे – ‘‘मैं पूर्व दिशा से आया हूँ, दक्षिण दिशा से आया हूँ, पश्चिम दिशा से आया हूँ, उत्तर दिशा से आया हूँ, ऊर्ध्व दिशा से आया हूँ, अधो दिशा से आया हूँ अथवा विदिशा से आया हूँ। सूत्र – १, २
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 3 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि मे आया ओववाइए, नत्थि मे आया ओववाइए, के अहं आसी? के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि?

Translated Sutra: इसी प्रकार कुछ प्राणियों को यह ज्ञान नहीं होता कि मेरी आत्मा औपपातिक है अथवा नहीं ? मैं पूर्व जन्म में कौन था ? मैं यहाँ से च्युत होकर अगले जन्म में क्या होऊंगा ?
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 4 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जं पुण जाणेज्जा–सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं, अन्नेसिं वा अंतिए सोच्चा तं जहा–पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दक्खिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहे वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अन्नयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अनुदिसाओ वा आगओ अहमंसि। एवमेगेसिं जं णातं भवइ–अत्थि मे आया ओववाइए। जो इमाओ ‘दिसाओ अनुदिसाओ वा’ अनुसंचरइ सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ ‘जो आगओ अनुसंचरइ’ सोहं।

Translated Sutra: कोई प्राणी अपनी स्वमति, स्वबुद्धि से अथवा प्रत्यक्ष ज्ञानियों के वचन से, अथवा उपदेश सूनकर यह जान लेता है, कि मैं पूर्वदिशा, या दक्षिण, पश्चिम, उत्तर, ऊर्ध्व अथवा अन्य किसी दिशा या विदिशा से आया हूँ। कुछ प्राणियों को यह भी ज्ञात होता है – मेरी आत्मा भवान्तर में अनुसंचरण करने वाली है, जो इन दिशाओं, अनुदिशाओं में
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 5 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई।

Translated Sutra: (जो उस गमनागमन करनेवाली परिणामी नित्य आत्मा जान लेता है) वही आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी एवं क्रियावादी है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 8 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिण्णाय-कम्मे खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसाओ वा अनुदिसाओ वा अनुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ सहेति।

Translated Sutra: यह पुरुष, जो अपरिज्ञातकर्मा है वह इन दिशाओं व अनुदिशाओं में अनुसंचरण करता है। अपने कृत – कर्मों के साथ सब दिशाओं/अनुदिशाओं में जाता है। अनेक प्रकार की जीव – योनियों को प्राप्त होता है। वहाँ विविध प्रकार के स्पर्शों का अनुभव करता है। इस सम्बन्धमें भगवान्‌ ने परिज्ञा विवेक का उपदेश किया है। सूत्र – ८–१०
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 9 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनेगरूवाओ जोणीओ संधेइ, विरूवरूवे फासे य पडिसंवेदेइ।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 11 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं।

Translated Sutra: अपने इस जीवन के लिए, प्रशंसा व यश के लिए, सम्मान की प्राप्ति के लिए, पूजा आदि पाने के लिए, जन्म – सन्तान आदि के जन्म पर, अथवा स्वयं के जन्म निमित्त से, मरण – सम्बन्धी कारणों व प्रसंगों पर, मुक्ति के प्रेरणा या लालसा से, दुःख के प्रतीकार हेतु – रोग, आतंक, उपद्रव आदि मिटाने के लिए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 12 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एयावंति सव्वावंति लोगंसि कम्म-समारंभा परिजाणियव्वा भवंति।

Translated Sutra: लोक में (उक्त हेतुओं से होने वाले) ये सब कर्मसमारंभ के हेतु जानने योग्य और त्यागने योग्य होते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Hindi 13 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्सेते लोगंसि कम्म-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे।

Translated Sutra: लोक में ये जो कर्मसमारंभ के हेतु हैं, इन्हें जो जान लेता है वही परिज्ञातकर्मा मुनि होता है। ऐसा मैं कहता हूँ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Hindi 14 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्टे लोए परिजुण्णे, दुस्संबोहे अविजाणए। अस्सिं लोए पव्वहिए। तत्थ तत्थ पुढो पास, आतुरा परितावेंति।

Translated Sutra: जो मनुष्य आतै है, वह ज्ञान दर्शन से परिजीर्ण रहता है। क्योंकि वह अज्ञानी जो है। अज्ञानी मनुष्य इस लोक में व्यथा – पीड़ा का अनुभव करता है। काम, भोग व सुख के लिए आतुर बने प्राणी स्थान – स्थान पर पृथ्वीकाय आदि प्राणियों को परिताप देते रहते हैं। यह तू देख ! समझ !
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Hindi 15 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संति पाणा पुढो सिया। लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति।

Translated Sutra: पृथ्वीकायिक प्राणी पृथक्‌ – पृथक्‌ शरीर में आश्रित रहते हैं। तू देख ! आत्मसाधक, लज्जमान है – (हिंसा से स्वयं को संकोच करता हुआ संयममय जीवन जीता है।) कुछ साधु वेषधारी ‘हम गृहत्यागी हैं’ ऐसा कथन करते हुए भी वे नाना प्रकार के शस्त्रों से पृथ्वीसम्बन्धी हिंसा – क्रिया में लगकर पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करते हैं
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Hindi 16 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव पुढवि-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा पुढवि-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा पुढवि-सत्थं समारंभंते समणुजाणइ।

Translated Sutra: इस विषय में भगवान महावीर स्वामी ने परिज्ञा/विवेक का उपदेश किया है। कोई व्यक्ति इस जीवन के लिए, प्रशंसा – सम्मान और पूजा के लिए, जन्म – मरण और मुक्ति के लिए, दुःख का प्रतीकार करने के लिए, स्वयं पृथ्वीकायिक जीवों की हिंसा करता है, दूसरों से हिंसा करवाता है, तथा हिंसा करने वालों का अनुमोदन करता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Hindi 17 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णातं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं ‘विरूवरूवेहिं सत्थेहिं’ पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसइ। से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे, अप्पेगे गुप्फमब्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे जंघमब्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे, अप्पेगे जाणुमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे,

Translated Sutra: वह (हिंसावृत्ति) उसके अहित के लिए होती है। उसकी अबोधि के लिए होती है। वह साधक हिंसा के उक्त दुष्परिणामों को अच्छी तरह समझता हुआ, संयम – साधना में तत्पर हो जाता है। कुछ मनुष्यों के या अनगार मुनियों के समीप धर्म सूनकर यह ज्ञात होता है कि, ‘यह जीव हिंसा ग्रन्थि है, यह मोह है, यह मृत्यु है और यही नरक है।’ (फिर भी) जो मनुष्य
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Hindi 18 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवंति। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं पुढवि-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं पुढवि-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवण्णे पुढवि-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेते पुढवि-कम्म-समारंभा परिण्णाता भवंति, से हु मुनी परिण्णात-कम्मे।

Translated Sutra: जो पृथ्वीकायिक जीवों पर शस्त्र का समारंभ नहीं करता, वह वास्तव में इन आरंभों का ज्ञाता है। यह (पृथ्वीकायिक जीवों की अव्यक्त वेदना) जानकर बुद्धिमान मनुष्य न स्वयं पृथ्वीकाय का समारंभ करे, न दूसरों से पृथ्वीकाय का समारंभ करवाए और न उसका समारंभ करने वाले का अनुमोदन करे। जिसने पृथ्वीकाय सम्बन्धी समारंभ को जान
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Hindi 19 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–से जहावि अनगारे उज्जुकडे, णियागपडिवण्णे, अमायं कुव्वमाणे वियाहिए।

Translated Sutra: मैं कहता हूँ – जिस आचरण से अनगार होता है। जो ऋजुकृत्‌ हो, नियाग – प्रतिपन्न – मोक्ष मार्ग के प्रति एकनिष्ठ होकर चलता हो, कपट रहित हो। जिस श्रद्धा के साथ संयम – पथ पर कदम बढ़ाया है, उसी श्रद्धा के साथ संयम का पालन करे। विस्रोत – सिका – अर्थात्‌ लक्ष्य के प्रति शंका व चित्त की चंचलता के प्रवाहमें न बहें, शंका का त्याग
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Hindi 41 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे गुणे से आवट्टे, जे आवट्टे से गुणे।

Translated Sutra: जो गुण (विषय) है, वह आवर्त/संसार है। जो आवर्त है वह गुण है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Hindi 42 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अड्ढं अहं तिरियं पाईणं ‘पासमाणे रूवाइं पासति’, ‘सुणमाणे सद्दाइं सुणेति’।

Translated Sutra: ऊंचे, नीचे, तीरछे, सामने देखने वाला रूपों को देखता है। सूनने वाला शब्दों को सूनता है। ऊंचे, नीचे, तीरछे, विद्यमान वस्तुओं में आसक्ति करने वाला, रूपों में मूर्च्छित होता है, शब्दों में मूर्च्छित होता है। यह (आसक्ति) ही संसार है। जो पुरुष यहाँ (विषयों में) अगुप्त है। इन्द्रिय एवं मन से असंयत है, वह आज्ञा – धर्म –
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