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Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 392 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (४) जे णं तु से उत्तमुत्तमे, से णं जइ कहवि तुडी-तिहाएणं मनसा समयमेक्कं अभिलसे, तहा वि बीय समये मणं सन्निरुंभिय अत्ताणं निंदेज्जा गरहेज्जा, न पुणो बीएणं तज्जम्मे इत्थीयं मनसा वि उ अभिलसेज्जा, (५) जे णं से उत्तमे, से णं जइ कह वि खणं मुहुत्तं वा इत्थियं कामिज्जमाणिं पेक्खेज्जा, तओ मनसा अभिलसेज्जा। जाव णं जामद्धजामं वा, नो णं इत्थीए समं विकम्मं समायरेज्जा।

Translated Sutra: और फिर जो उत्तमोत्तम तरह के पुरुष हो वो अभिलाषा करनेवाली स्त्री को देखकर पलभर या मुहूर्त्त तक देखकर मन से उसकी अभिलाषा करे, लेकिन पहोर या अर्ध पहोर तक उस स्त्री के साथ अनुचित कर्मसेवन न करे।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 393 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं बंभयारी कयपच्चक्खाणाभिग्गहे (६) अहा णं नो बंभयारी नो कयपच्चक्खाणाभिग्गहे, तो णं निय-कलत्तेभयणा न तु णं तिव्वेसु कामेसु अभिलासी भवेज्जा (७) तस्स एयस्स णं गोयमा अत्थि बंधो, किंतु अनंत-संसारियत्तणं नो निबंधेज्जा।

Translated Sutra: यदि वो पुरुष ब्रह्मचारी या अभिग्रह प्रत्याख्यान किया हो। या ब्रह्मचारी न हो या अभिग्रह प्रत्याख्यान किए न हो तो अपनी पत्नी के विषय में भजना – विकल्प समझने के कामभोग में तीव्र अभिलाषावाला न हो। हे गौतम ! इस पुरुष को कर्म का बंध हो लेकिन वो अनन्त संसार में घूमने के उचित कर्म न बाँधे।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 394 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (८) जे णं से विमज्झिमे, से णं निय-कलत्तेण सद्धिं विकम्मं समायरेज्जा, नो णं पर-कलत्तेणं, (९) एसे य णं जइ पच्छा उग्ग-बंभयारी नो भवेज्जा, तो णं अज्झवसाय-विसेसं तं तारिसमंगीकाऊणं अनंत-संसारियत्तणे भयणा, (१०) जओ णं जे केइ अभिगय-जीवाइ-पयत्थे सव्व-सत्ते आगमाणुसारेणं सुसाहूणं धम्मोवट्ठंभ-दानाइ-दान-सील-तव-भावनामइए चउव्विहे धम्म-खंधे समनुट्ठेज्जा। से णं जइ कहवि नियम-वयभंगं न करेज्जा (११) तओ णं साय-परंपरएणं सुमानुसत्त-सुदेवत्ताए। जाव णं अपरिवडिय-सम्मत्ते, निसग्गेण वा अभिगमेण वा जाव अट्ठारससीलंग-सहस्सधारी भवित्ताणं निरुद्धासवदारे, विहूय-रयमले, पावयं कम्मं खवित्ताणं सिज्

Translated Sutra: और फिर जो विमध्यम तरह के पुरुष हो वो अपनी पत्नी के साथ इस प्रकार कर्म का सेवन करे लेकिन पराई स्त्री के साथ वैसे अनुचित कर्म का सेवन न करे। लेकिन पराई स्त्री के साथ ऐसा पुरुष यदि पीछे से उग्र ब्रह्मचारी न हो तो अध्यवसाय विशेष अनन्त संसारी बने या न बने। अनन्त संसारी कौन न बने ? तो कहते हैं कि उस तरह क भव्य आत्मा जीवादिक
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 395 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१२) जे य णं से अहमे, से णं स-पर-दारासत्त-मानसे नुसमयं कूरज्झवसायज्झवसिय-चित्ते हिंसारंभ-परिग्गहाइसु अभिरए भवेज्जा, (१३) तहा णं जे य से अहमाहमे, से णं महा-पाव-कम्मे सव्वाओ इत्थीओ वाया मनसा य कम्मुणा तिविहं तिविहेणं नुसमयं अभिलसेज्जा, (१४) तहा अच्चंतकूरज्झवसाय-अज्झवसिएहिं चित्ते हिंसारंभ-परिग्गहासत्ते कालं गमेज्जा (१५) एएसिं दोण्हं पि णं गोयमा अनंत-संसारियत्तणं नेयं॥

Translated Sutra: जो अधम पुरुष हो वो अपनी या पराई स्त्री में आसक्त मनवाला हो। हरएक वक्त में क्रूर परिणाम जिसके चित्त में चलता हो आरम्भ और परिग्रहादिक के लिए तल्लीन मनवाला हो। और फिर जो अधमाधम पुरुष हो वो महापाप कर्म करनेवाले सर्व स्त्री की मन, वचन, काया से त्रिविध त्रिविध से प्रत्येक समय अभिलाषा करे। और अति क्रूर अध्यवसाय से
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अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 396 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) भयवं जे णं से अहमे जे वि णं से अहमाहमे पुरिसे तेसिं च दोण्हं पि अनंत-संसारियत्तणं समक्खायं, तो णं एगे अहमे एगे अहमाहमे (२) एतेसिं दोण्हं पि पुरिसावत्थाणं के पइ-विसेसे (३) गोयमा जे णं से अहम-पुरिसे, से णं जइ वि उ स-पर-दारासत्त-माणसे कूरज्झवसाय-ज्झवसिएहिं चित्ते हिंसारंभ-परिग्गहासत्त-चित्ते, तहा वि णं दिक्खियाहिं साहुणीहिं अन्नयरासुं च। सील-संरक्खण-पोसहोववास-निरयाहिं दिक्खियाहिं गारत्थीहिं वा सद्धिं आवडिय-पेल्लियामंतिए वि समाणे नो वियम्मं समायरेज्जा, (४) जे य णं से अहमाहमे पुरिसे, से णं निय-जणणि-पभिईए जाव णं दिक्खियाईहिं साहुणीहिं पि समं वियम्मं समायरेज्जा (५)

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो अधम और अधमाधम पुरुष दोनों का एक समान अनन्त संसारी इस तरह बताया तो एक अधम और अधमाधम उसमें फर्क कौन – सा समझे ? हे गौतम ! जो अधम पुरुष अपनी या पराई स्त्री में आसक्त मनवाला क्रूर – परिणामवाले चित्तवाला आरम्भ परिग्रह में लीन होने के बावजूद भी दीक्षित साध्वी और शील संरक्षण करने की ईच्छावाली हो। पौषध, उपवास,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 397 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तत्थ णं जे से सव्वुत्तमे, से णं छउमत्थ-वीयरागे नेए (२) जेणं तु से उत्तमुत्तमे, से णं अनिड्ढि-पत्त-पभितीए जाव णं उवसामग-खवए ताव णं निओयणीए, (३) जेणं च से उत्तमे, से णं अप्पमत्तसंजए नेए, (४) एवमेएसिं निरूवणा कुज्जा

Translated Sutra: इन छ पुरुष में सर्वोत्तम पुरुष उसे मानो कि जो छद्मस्थ वीतरागपन पाया हो जिसे उत्तमोत्तम पुरुष बताए हैं वो उन्हें जानना कि जो ऋद्धि रहित इत्यादि से लेकर उपशामक और क्षपक मुनिवर हो। और फिर उत्तम उन्हें मानो कि जो अप्रमत्त मुनिवर हो इस प्रकार इन पुरुष की निरुपणा करना।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 399 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (८) जे य णं से विमज्झिमे, से णं तं तारिसमज्झवसायमंगीकिच्चाणं विरयाविरए दट्ठव्वे,

Translated Sutra: विमध्यम पुरुष उसे कहते हैं कि जो उस तरह का अध्यवसाय अंगीकार करके श्रावक के व्रत अपनाए हो।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 400 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (९) तहा णं जे से अहमे। जे य णं से अहमाहमे, तेसिं तु णं एगंतेणं जहा इत्थीसुं तहा णं नेए। जाव णं कम्म-ट्ठिइं समज्जेज्जा, (१०) नवरं पुरिसस्स णं संचिक्खणगेसुं वच्छरुहोवरतल-पक्खएसुं लिंगे य अहिययरं रागमुप्पज्जे (११) एवं एते चेव छप्पुरिसविभागे॥

Translated Sutra: और जो अधम और अधमाधम वो जिस तरह एकान्तमें स्त्रीयों के लिए कहा उस तरह कर्मस्थिति उपार्जन करे। केवल पुरुष के लिए इतना विशेष समझो कि पुरुष को स्त्री के राग उत्पन्न करवानेवाले स्तन – मुख ऊपर के हिस्से के अवयव योनि आदि अंग पर अधिकतर राग उत्पन्न होता है। इस प्रकार पुरुष के छ तरीके बताए।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 401 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) कासिं चि इत्थीणं गोयमा भव्वत्तं सम्मत्त-दढत्तं च अंगी-काऊणं जाव णं सव्वुत्तमे पुरिसविभागे ताव णं चिंतणिज्जे। नो णं सव्वेसिमित्थीणं

Translated Sutra: हे गौतम ! कुछ स्त्री भव्य और दृढ़ सम्यक्‌त्ववाली होती है। उनकी उत्तमता सोचे तो सर्वोत्तम ऐसे पुरुष की कक्षा में आ सकते हैं। लेकिन सभी स्त्री वैसी नहीं होती।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 402 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (२) एवं तु गोयमा जीए इत्थीए-ति कालं पुरिससंजोग-संपत्ती न संजाया। अहा णं पुरिस-संजोग-संपत्तीए वि साहीणाए जाव णं तेरसमे चोद्दसमे पन्नरसमे णं च समएणं पुरिसेणं सद्धिं न संजुत्ता नो वियम्मं समायरियं, (३) से णं, जहा घन-कट्ठ-तण-दारु-समिद्धे केई गामे इ वा नगरे इ वा, रन्ने इ वा, संपलित्ते चंडानिल-संधुक्किए पयलित्ताणं पय-लित्ताणं णिडज्झिय निडज्झिय चिरेणं उवसमेज्जा (४) एवं तु णं गोयमा से इत्थी कामग्गी संपलित्ता समाणी णिडज्झिय-निडज्झिय समय-चउक्केणं उवसमेज्जा (५) एवं इगवीसमे वावीसमे जाव णं सत्ततीसइमे समए जहा णं पदीव-सिहा वावण्णा पुन-रवि सयं वा तहाविहेणं चुन्न-जोगेणं वा पयलिज्जा

Translated Sutra: हे गौतम ! उसी तरह जिस स्त्री को तीन काल पुरुष संयोग की प्राप्ति नहीं हुई। पुरुष संयोग संप्राप्ति स्वाधीन होने के बावजूद भी तेरहवे – चौदहवे, पंद्रहवे समय में भी पुरुष के साथ मिलाप न हुआ। यानि संभोग कार्य आचरण न किया। तो जिस तरह कईं काष्ठ लकड़े, ईंधण से भरे किसी गाँव, नगर या अरण्य में अग्नि फैल उठा और उस वक्त प्रचंड़
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 404 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (४) जामत्थियं तं वेयणं नो अहियासेज्जा वियम्मं वा समायरेज्जा से णं अधन्ना, से णं अपुन्ना, से णं अवंदा, से णं अपुज्जा, से णं अदट्ठव्वा, से णं अलक्खणा, से णं भग्ग-लक्खणा, से णं सव्व अमंगल-अकल्लाण-भायणा। (५) से णं भट्ठ-सीला, से णं भट्ठायारा से णं परिभट्ठ-चारित्ता, से णं निंदणीया, से णं गरहणीया, से खिंसणिज्जा, से णं कुच्छणिज्जा, से णं पावा, से णं पाव-पावा, से णं महापाव-पावा, से णं अपवित्ति त्ति॥ (१) एवं तु गोयमा चडुलत्ताए भीरुत्ताए कायरत्ताए लोलत्ताए, उम्मायओ वा दप्पओ वा कंदप्पओ वा अणप्प-वसओ वा आउट्टियाए वा, (२) जमित्थियं संजमाओ परिभस्सिय, दूरद्धाणे वा गामे वा नगरे वा रायहाणीए वा,

Translated Sutra: यदि वो स्त्री वेदना न सहे और अकार्याचरण करे तो वो स्त्री, अधन्या, अपुण्यवंती, अवंदनीय, अपूज्य, न देखने लायक, बिना लक्षण के तूटे हुए भाग्यवाली, सर्व अमंगल और अकल्याण के कारणवाली, शीलभ्रष्टा, भ्रष्टाचारवाली, नफरतवाली, धृणा करनेलायक, पापी, पापी में भी महा पापीणी, अपवित्रा है। हे गौतम ! स्त्री होंशियारी से, भय से, कायरता
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 405 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किं पच्छित्तेणं सुज्झेज्जा (२) गोयमा अत्थेगे जे णं सुज्झेज्जा। अत्थेगे जे णं नो सुज्झेज्जा (३) से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ । जहा णं गोयमा अत्थेगे जे णं सुज्झेज्जा, अत्थेगे जे णं नो सुज्झेज्जा। (४) गोयमा अत्थेगे जे णं नियडी-पहाणे सढ-सीले वंक-समायारे। से णं ससल्ले आलोइत्ताणं ससल्ले चेव पायच्छित्तमनुचरेज्जा। से णं अवि-सुद्ध-सकलुसासए नो सुज्झेज्जा (५) अत्थेगे जे णं उज्जू पद्धर-सरल-सहावे, जहा-वत्तं नीसल्लं नीसंकं सुपरिफुडं आलोइ-त्ताणं जहोवइट्ठं चेव पायच्छित्तमनुचिट्ठेज्जा। से णं निम्मल-निक्कलुस-विसुद्धासए वि सुज्झेज्जा। (६) एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या प्रायश्चित्त से शुद्धि होती है ? हे गौतम ! कुछ लोगों की शुद्धि होती है और कुछ लोगों की नहीं होती। हे भगवन्‌ ! ऐसा किस कारण से कहते हो कि एक की होती है और एक की नहीं होती ? हे गौतम ! यदि कोई पुरुष माया, दंभ, छल, ठगाई के स्वभाववाले हो, वक्र आचारवाला हो, वह आत्मा शल्यवाले रहकर, प्रायश्चित्त का सेवन करते हैं।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 406 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तहा णं गोयमा इत्थीयं नाम पुरिसाणं अहमाणं सव्व-पाव-कम्माणं वसुहारा, तम-रय-पंक-खाणी सोग्गइ-मग्गस्स णं अग्गला, नरयावयारस्स णं समोयरण-वत्तणी (२) अभूमयं विसकंदलिं, अणग्गियं चडुलिं अभोयणं विसूइयं अणामियं वाहिं, अवेयणं मुच्छं, अणोवसग्गं मारिं अनियलिं गुत्तिं, अरज्जुए पासे, अहेउए मच्चू, (३) तहा य णं गोयमा इत्थि-संभोगे पुरिसाणं मनसा वि णं अचिंतणिज्जे, अणज्झव-सणिज्जे, अपत्थणिज्जे, अणीहणिज्जे, अवियप्पणिज्जे, असंकप्पणिज्जे, अणभिलसणिज्जे, असंभरणिज्जे तिविहं तिविहेणं ति। (४) जओ णं इत्थियं नाम पुरिसस्स णं, गोयमा सव्वप्पगारेसुं पि दुस्साहिय-विज्जं पि व दोसुप्पपायणिं, सारंभ

Translated Sutra: हे गौतम ! यह स्त्री, पुरुष के लिए सर्व पापकर्म की सर्व अधर्म की धनवृष्टि समान वसुधारा समान है। मोह और कर्मरज के कीचड़ की खान समान सद्‌गति के मार्ग की अर्गला – विघ्न करनेवाली, नरक में उतरने के लिए सीड़ी समान, बिना भूमि के विषवेलड़ी, अग्नि रहित उंबाडक – भोजन बिना विसूचिकांत बीमारी समान, नाम रहित व्याधि, चेतना बिना मूर्छा,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 408 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तहा य इत्थीओ नाम गोयमा पलय-काल-रयणी-मिव सव्व-कालं तमोवलित्ताओ भवंति। (२) विज्जु इव खणदिट्ठ-नट्ठ-पेम्माओ भवंति। (३) सरणागय-घायगो इव एक्क-जम्मियाओ तक्खण-पसूय-जीवंत-मुद्ध-निय-सिसु-भक्खीओ इव महा-पाव-कम्माओ भवंति। (४) खर-पवणुच्चालिय-लवणोवहि-वेलाइव बहु-विह-विकप्प-कल्लोलमालाहिं णं। खणं पि एगत्थ हि असंठिय-माणसाओ भवंति। (५) सयंभुरमणोवहिममिव दुरवगाह-कइतवाओ भवंति। (६) पवणो इव चडुल-सहावाओ भवंति (७) अग्गी इव सव्व-भक्खाओ, वाऊ इव सव्व-फरिसाओ, तक्करो इव परत्थलोलाओ, साणो इव दानमेत्तमेत्तीओ, मच्छो इव हव्व-परिचत्त-नेहाओ, (१) एवमाइ-अनेग-दोस-लक्ख-पडिपुन्न-सव्वंगोवंग-सब्भिंतर-बाहिराणं

Translated Sutra: हे गौतम ! यह स्त्री प्रलयकाल की रात की तरह जिस तरह हंमेशा अज्ञान अंधकार से लिपीत है। बीजली की तरह पलभर में दिखते ही नष्ट होने के स्नेह स्वभाववाली होती है। शरण में आनेवाले का घात करनेवाले लोगों की तरह तत्काल जन्म दिए बच्चे के जीव का ही भक्षण करनेवाले समान महापाप करनेवाली स्त्री होती है, सज्जक पवन के योग से घूंघवाते
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Hindi 409 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (४) जासिं च णं अभिलसिउकामे पुरिसे तज्जोणिं समुच्छिम-पंचिंदियाणं एक्क-पसंगेणं चेव नवण्हं सय-सहस्साणं नियमाओ उद्दवगे भवेज्जा। (५) ते य अच्चंत-सुहुमत्ताओ मंसचक्खुणो न पासिया

Translated Sutra: जिसकी अभिलाषा पुरुष करता है, उस स्त्री की योनि में पुरुष के एक संयोग के समय नौ लाख पंचेन्द्रिय संमूर्च्छिम जीव नष्ट होते हैं। वो जीव अति सूक्ष्म स्वरूप होने से चर्मचक्षु से नहीं देख सकते। इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि स्त्री के साथ एक बार या बार बार बोलचाल न करना। और फिर उसके अंग या उपांग रागपूर्वक निरीक्षण
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 488 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१०) तत्थ जे ते अपसत्थ-नाण-कुसीले ते एगूणतीसइविहे दट्ठव्वे, तं जहा– सावज्ज-वाय-विज्जा-मंत-तंत-पउंजण-कुसीले १, विज्जा-मंत-तंताहिज्जण-कुसीले २, वत्थु-विज्जा पउंजणाहिज्जण-कुसीले ३-४, गह-रिक्ख-चार-जोइस -सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ५-६, निमित्त-लक्खण-पउंजणाहिज्जण कुसीले ७-८, सउण-लक्खण-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ९-१०, हत्थि-सिक्खा-पउंजणाहिज्जण-कुसीले ११-१२, धणुव्वेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १३-१४, गंधव्ववेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १५-१६, पुरिस-इत्थी-लक्खण-पउंजणज्झावण-कुसीले १७-१८, काम-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले १९-२०, कुहुगिंद जाल-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले २१-२२, आलेक्ख-विज्जाहिज्जण-कुसीले

Translated Sutra: उसमें जो अप्रशस्त ज्ञान कुशील है वो २९ प्रकार के हैं। वो इस तरह – १. सावद्यवाद विषयक मंत्र, तंत्र का प्रयोग करने समान कुशील। २. विद्या – मंत्र – तंत्र पढ़ाना – पढ़ना यानि वस्तुविद्या कुशील। ३. ग्रह – नक्षत्र चार ज्योतिष शास्त्र देखना, कहना, पढ़ाना समान लक्षण कुशील। ४. निमित्त कहना। शरीर के लक्षण देखकर कहना, उसके
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 492 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं जइ एवं ता किं पंच-मंगलस्स णं उवहाणं कायव्वं (२) गोयमा पढमं नाणं तओ दया, दयाए य सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अत्तसम-दरिसित्तं (३) सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं-अत्तसम-दंसणाओ य तेसिं चेव संघट्टण-परियावण-किलावणोद्दावणाइ-दुक्खु-पायण-भय-विवज्जणं, (४) तओ अणासवो, अणासवाओ य संवुडासवदारत्तं, संवुडासव-दारत्तेणं च दमो पसमो (५) तओ य सम-सत्तु-मित्त-पक्खया, सम-सत्तु-मित्त-पक्खयाए य अराग-दोसत्तं, तओ य अकोहया अमाणया अमायया अलोभया, अकोह-माण-माया-लोभयाए य अकसायत्तं (६) तओ य सम्मत्तं, समत्ताओ य जीवाइ-पयत्थ-परिन्नाणं, तओ य सव्वत्थ-अपडिबद्धत्तं, सव्वत्थापडिबद्धत्तेण य अन्नाण-मोह-मिच्छत्तक्खयं (७)

Translated Sutra: हे भगवंत ! यदि ऐसा है तो क्या पंच मंगल के उपधान करने चाहिए ? हे गौतम ! प्रथम ज्ञान और उसके बाद दया यानि संयम यानि ज्ञान से चारित्र – दया पालन होता है। दया से सर्व जगत के सारे जीव – प्राणी – भूत – सत्त्व को अपनी तरह देखनेवाला होता है। जगत के सर्व जीव, प्राणी, भूत सत्त्व को अपनी तरह सुख – दुःख होता है, ऐसा देखनेवाला होने
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 494 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) से भयवं किमेयस्स अचिंत-चिंतामणि-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स सुत्तत्थं पन्नत्तं गोयमा (२) इयं एयस्स अचिंत-चिंतामणी-कप्प-भूयस्स णं पंचमंगल-महासुयक्खंधस्स णं सुत्तत्थं-पन्नत्तं (३) तं जहा–जे णं एस पंचमं-गल-महासुयक्खंधे से णं सयलागमंतरो ववत्ती तिल-तेल-कमल-मयरंदव्व सव्वलोए पंचत्थिकायमिव, (४) जहत्थ किरियाणुगय-सब्भूय-गुणुक्कित्तणे, जहिच्छिय-फल-पसाहगे चेव परम-थुइवाए (५) से य परमथुई केसिं कायव्वा सव्व-जगुत्तमाणं। (६) सव्व-जगुत्तमुत्तमे य जे केई भूए, जे केई भविंसु, जे केई भविस्संति, ते सव्वे चेव अरहंतादओ चेव नो नमन्ने ति। (७) ते य पंचहा १ अरहंते, २ सिद्धे, ३ आयरिए,

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या यह चिन्तामणी कल्पवृक्ष समान पंच मंगल महाश्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ को प्ररूपे हैं ? हे गौतम ! यह अचिंत्य चिंतामणी कल्पवृक्ष समान मनोवांछित पूर्ण करनेवाला पंचमंगल महा श्रुतस्कंध के सूत्र और अर्थ प्ररूपेल हैं। वो इस प्रकार – जिस कारण के लिए तल में तैल, कमल में मकरन्द, सर्वलोक में पंचास्तिकाय
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 504 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सयल-नरामर-तियसिंद-सुंदरी-रूव-कंति-लावन्नं। सव्वं पि होज्ज जइ एगरासि-सपिंडियं कह वि॥

Translated Sutra: समग्र मानव, देव, इन्द्र और देवांगना के रूप, कान्ति, लावण्य वो सब इकट्ठे करके उसका ढ़ग शायद एक और किया जाए और उसकी दूसरी ओर जिनेश्वर के चरण के अँगूठे के अग्र हिस्से का करोड़ या लाख हिस्से की उसके साथ तुलना की जाए तो वो देव – देवी के रूप का पिंड़ सुवर्ण के मेरू पर्वत के पास रखे गए ढ़ग की तरह शोभारहित दिखता है। या इस जगत
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 528 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भव-भीओ गमागम-जंतु-फरिसणाइ-पमद्दणं जत्थ। स-पर-हिओवरयाणं न मणं पि पवत्तए तत्थ॥

Translated Sutra: भव से भयभीत ऐसे उनको जहाँ – जहाँ आना, जन्तु को स्पर्श आदि प्रपुरुषन – विनाशकारण प्रवर्तता हो, स्व – पर हित से विरमे हुए हो उनका मन वैसे सावद्य कार्य में नहीं प्रवर्तता। इसलिए स्व – पर अहित से विरमे हुए संयत को सर्व तरह से सविशेष परम सारभूत ज्यादा लाभप्रद ऐसे अनुष्ठान का सेवन करना चाहिए। मोक्ष – मार्ग का परम सारभूत
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 543 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संसारिय-सोक्खाणं सुमहंताणं पि गोयमा नेगे। मज्झे दुक्ख-सहस्से घोर-पयंडेणुभुंजंति॥

Translated Sutra: हे गौतम ! अति महान ऐसे संसार के सुख की भीतर कईं हजार घोर प्रचंड़ दुःख छिपे हैं। लेकिन मंद बुद्धिवाले शाता वेदनीय कर्म के उदय में उसे पहचान नहीं सकता। मणि सुवर्ण के पर्वत में भीतर छिपकर रहे लोह रोड़ा की तरह या वणिक पुत्री की तरह (यह किसी अवसर का पात्र है। वहाँ ऐसा अर्थ नीकल सकता है कि जिस तरह कुलवान, लज्जावाली और
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 596 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (३) तओ परम-सद्धा-संवेगपरं नाऊणं आजम्माभिग्गहं च दायव्वं। जहा णं (४) सहली-कयसुलद्ध-मनुय भव, भो भो देवानुप्पिया (५) तए अज्जप्पभितीए जावज्जीवं ति-कालियं अनुदिणं अनुत्तावलेगग्गचित्तेणं चेइए वंदेयव्वे। (६) इणमेव भो मनुयत्ताओ असुइ-असासय-खणभंगुराओ सारं ति। (७) तत्थ पुव्वण्हे ताव उदग-पाणं न कायव्वं, जाव चेइए साहू य न वंदिए। (८) तहा मज्झण्हे ताव असण-किरियं न कायव्वं, जाव चेइए न वंदिए। (९) तहा अवरण्हे चेव तहा कायव्वं, जहा अवंदिएहिं चेइएहिं नो संझायालमइक्कमेज्जा।

Translated Sutra: उसके बाद परम श्रद्धा संवेग तत्पर बना जानकर जीवन पर्यन्त के कुछ अभिग्रह देना। जैसे कि हे देवानुप्रिय ! तुने वाकई ऐसा सुन्दर मानवभव पाया उसे सफल किया। तुझे आज से लेकर जावज्जीव हंमेशा तीन काल जल्दबाझी किए बिना शान्त और एकाग्र चित्त से चैत्य का दर्शन, वंदन करना, अशुचि अशाश्वत क्षणभंगुर ऐसी मानवता का यही सार है।
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 598 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] (१) तहा साहु-साहुणि-समणोवासग-सड्ढिगाऽसेसा-सन्न-साहम्मियजण-चउव्विहेणं पि समण-संघेणं नित्थारग-पारगो भवेज्जा धन्नो संपुन्न-सलक्खणो सि तुमं। ति उच्चारेमाणेणं गंध-मुट्ठीओ घेतव्वाओ। (२) तओ जग-गुरूणं जिणिंदाणं पूएग-देसाओ गंधड्ढाऽमिलाण-सियमल्लदामं गहाय स-हत्थेणोभय-खं धेसुमारोवयमाणेणं गुरुणा नीसंदेहमेवं भाणियव्वं, जहा। (३) भो भो जम्मंतर-संचिय-गुरुय-पुन्न-पब्भार सुलद्ध-सुविढत्त-सुसहल-मनुयजम्मं देवानुप्पिया ठइयं च नरय-तिरिय-गइ-दारं तुज्झं ति। (४) अबंधगो य अयस-अकित्ती-णीया-गोत्त-कम्म-विसेसाणं तुमं ति, भवंतर-गयस्सा वि उ न दुलहो तुज्झ पंच नमोक्कारो, । (५) भावि-जम्मंतरेसु

Translated Sutra: और फिर साधु – साध्वी श्रावक – श्राविका समग्र नजदीकी साधर्मिक भाई, चार तरह के श्रमण संघ के विघ्न उपशान्त होते हैं और धर्मकार्य में सफलता पाते हैं। और फिर उस महानुभाव को ऐसा कहना कि वाकई तुम धन्य हो, पुण्यवंत हो, ऐसा बोलते – बोलते वासक्षेप मंत्र करके ग्रहण करना चाहिए। उसके बाद जगद्‌गुरु जिनेन्द्र की आगे के स्थान
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अध्ययन-३ कुशील लक्षण

Hindi 625 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तहा सरीर-कुसीले दुविहे चेट्ठा-कुसीले विभूसा-कुसीले य। तत्थ जे भिक्खू एयं किमि-कुल-निलयं सउण-साणाइ -भत्तं सडण-पडण-विद्धंसण-धम्मं असुइं असासयं असारं सरीरगं आहरादीहिं निच्चं चेट्ठेजा, नो णं इणमो भव-सय-सुलद्ध-णाण-दंसणाइ-समण्णिएणं सरीरेणं अच्चंत-घोर-वीरुग्ग-कट्ठ-घोर-तव-संजम-मनुट्ठेज्जा, से णं चेट्ठा कुसीले। तहा जे णं विभूसा कुसीले से वि अनेगहा, तं जहा–तेलाब्भंगण-विमद्दण संबाहण-सिणानुव्वट्टण-परिहसण-तंबोल-धूवण-वासन-दसणुग्घसन-समालहण-पुप्फोमालण-केस-समारण -सोवाहण-दुवियड्ढगइ-भणिर-हसिर-उवविट्ठुट्ठिय-सन्निवन्नेक्खिय-विभूसावत्ति-सविगार-नियंस-नुत्तरीय-पाउ-रण-दंडग-गहणमाई

Translated Sutra: और शरीर कुशील दो तरह के जानना, कुशील चेष्टा और विभूषा – कुशील, उसमें जो भिक्षु इस कृमि समूह के आवास समान, पंछी और श्वान के लिए भोजन समान। सड़ना, गिरना, नष्ट होना, ऐसे स्वभाववाला, अशुचि, अशाश्वत, असार ऐसे शरीर को हंमेशा आहारादिक से पोषे और वैसे शरीर की चेष्टा करे, लेकिन सेंकड़ों भव में दुर्लभ ऐसे ज्ञान – दर्शन आदि सहित
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अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Hindi 655 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह अन्नया अचलंतेसुं अतिहि-सक्कारेसुं अपूरिज्जमाणेसुं पणइयण-मनोरहेसुं, विहडंतेसु य सुहि-सयणमित्त बंधव-कलत्त-पुत्त-नत्तुयगणेसुं, विसायमुवगएहिं गोयमा चिंतियं तेहिं सड्ढगेहिं तं जहा–

Translated Sutra: अब किसी समय घर में महमान आते तो उसका सत्कार नहीं किया जा सकता। स्नेहीवर्ग के मनोरथ पूरे नहीं कर सकते, अपने मित्र, स्वजन, परिवार – जन, बन्धु, स्त्री, पुत्र, भतीजे, रिश्ते भूलकर दूर हट गए तब विषाद पानेवाले उस श्रावकों ने हे गौतम ! सोचा की, ‘‘पुरुष के पास वैभव होता है तो वो लोग उसकी आज्ञा स्वीकारते हैं। जल रहित मेघ को
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अध्ययन-४ कुशील संसर्ग

Hindi 678 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं भव्वे परमाहम्मियासुरेसुं समुप्पज्जइ गोयमा जे केई घन-राग-दोस-मोह-मिच्छत्तो-दएणं सुववसियं पि परम-हिओवएसं अवमन्नेत्ताणं दुवालसंगं च सुय-नाणमप्पमाणी करीअ अयाणित्ता य समय-सब्भावं अनायारं पसं-सिया णं तमेव उच्छप्पेज्जा जहा सुमइणा उच्छप्पियं। न भवंति एए कुसीले साहुणो, अहा णं एए वि कुसीले ता एत्थं जगे न कोई सुसीलो अत्थि, निच्छियं मए एतेहिं समं पव्वज्जा कायव्वा तहा जारिसो तं निबुद्धीओ तारिसो सो वि तित्थयरो त्ति एवं उच्चारेमाणेणं से णं गोयमा महंतंपि तवमनुट्ठेमाणे परमाहम्मियासुरेसुं उववज्जेज्जा। से भयवं परमाहम्मिया सुरदेवाणं उव्वट्टे समाणे से सुमती

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! भव्य जीव परमाधार्मिक असुर में पैदा होते हैं क्या ? हे गौतम ! जो किसी सज्जड़ राग, द्वेष, मोह और मिथ्यात्व के उदय से अच्छी तरह से कहने के बावजूद भी उत्तम हितोपदेश की अवगणना करते हैं। बारह तरह के अंग और श्रुतज्ञान को अप्रमाण करते हैं और शास्त्र के सद्‌भाव और भेद को नहीं जानते, अनाचार की प्रशंसा करते हैं,
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 692 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं कयरे णं से गच्छे जे णं वासेज्जा एवं तु गच्छस्स पुच्छा जाव णं वयासी। गोयमा जत्थ णं सम सत्तु मित्त पक्खे अच्चंत सुनिम्मल विसुद्धंत करणे आसायणा भीरु सपरोवयारमब्भुज्जए अच्चंत छज्जीव निकाय वच्छले, सव्वालंबण विप्पमुक्के, अच्चंतमप्पमादी, सविसेस बितिय समय सब्भावे रोद्दट्ट ज्झाण विप्पमुक्के, सव्वत्थ अनिगूहिय बल वीरिय पुरिसक्कार परक्कमे, एगंतेणं संजती कप्प परिभोग विरए एगंतेणं धम्मंतराय भीरू, एगंतेणं तत्त रुई एगंतेणं इत्थिकहा भत्तकहा तेणकहा राय-कहा जनवयकहा परिभट्ठायारकहा, एवं तिन्नि तिय अट्ठारस बत्तीसं विचित्त सप्पभेय सव्व विगहा विप्पमुक्के, एगंतेणं

Translated Sutra: हे भगवंत ! ऐसे कौन – से गच्छ हैं, जिसमें वास कर सकते हैं ? हे गौतम ! जिसमें शत्रु और मित्र पक्ष की तरफ समान भाव वर्तता हो। अति सुनिर्मल विशुद्ध अंतःकरणवाले साधु हो, आशातना करने में भय रखनेवाले हो, खुद के और दूसरों के आत्मा का अहेसान करने में उद्यमवाले हों, छ जीव निकाय के जीव पर अति वात्सल्य करनेवाले हो, सर्व प्रमाद
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 773 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अइदुलहं भेसज्जं बल-बुद्धि-विवद्धणं पि पुट्ठिकरं। अज्जा लद्धं भुज्जइ, का मेरा तत्थ गच्छम्मि॥

Translated Sutra: अति दुर्लभ बल – बुद्धि वृद्धि करनेवाले शरीर की पुष्टि करनेवाले औषध साध्वी ने पाए हो और साधु उसका इस्तमाल करे तो उस गच्छ में कैसे मर्यादा रहे ? शशक, भसक ही बहन सुकुमालिका की गति सुनकर श्रेयार्थी धार्मिक पुरुष को सहज भी (मोहनीयकर्म का) भरोसा मत करना। सूत्र – ७७३, ७७४
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 785 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ मुनीण कसाए चमढिज्जंतेहिं पर-कसाएहिं। णेच्छेज्ज समुट्ठेउं सुणिविट्ठो पंगुलो व्व तयं गच्छं॥

Translated Sutra: जहाँ मुनिओं को बड़े कषाय से धिक्कार – परेशान किया जाए तो भी जैसे अच्छी तरह से बैठा हुआ लंगड़ा पुरुष हो तो वो उठता नहीं। उसी तरह जीसके कषाय खड़े नहीं होते उसे गच्छ कहते हैं।
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 791 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तित्थयरसमे सूरी दुज्जय-कम्मट्ठ-मल्ल-पडिमल्ले। आणं अइक्कमंते ते का पुरिसे न सप्पुरिसे॥

Translated Sutra: दुर्जय आँठ कर्मरूपी मल्ल को जीतनेवाला प्रतिमल्ल और तीर्थंकर समान आचार्य की आज्ञा का जो उल्लंघन करते हैं वो कापुरुष है, लेकिन सत्पुरुष नहीं है।
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 794 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्कं पि जो दुहत्तं सत्तं परिबोहिउं ठवे मग्गे। ससुरासुरम्मि वि जगे तेणेहं घोसियं अमाघायं॥

Translated Sutra: इस संसार में दुःख भुगतनेवाले एक जीव को प्रतिबोध करके उसे मार्ग के लिए स्थापन करते हैं, उसने देव और असुरवाले जगत में अमारी पड़ह की उद्‌घोषणा करवाई है ऐसा समझना। भूत, वर्तमान और भावि में ऐसे कुछ महापुरुष थे, है और होंगे कि जिनके चरणयुगल जगत के जीव को वंदन करने के लायक हैं, और परहित करने के लिए एकान्त कोशीष करने में
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 823 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं उड्ढं पुच्छा। गोयमा तओ परेण उड्ढं हायमाणे कालसमए तत्थ णं जे केई छक्काय समारंभ विवज्जी से णं धन्ने पुन्ने वंदे पूए नमंसणिज्जे। सुजीवियं जीवियं तेसिं।

Translated Sutra: हे भगवंत ! उसके बाद के काल में क्या हुआ ? हे गौतम ! उसके बाद के काल समय में जो कोई आत्मा छ काय जीव के समारम्भ का त्याग करनेवाला हो, वो धन्य, पूज्य, वंदनीय, नमस्करणीय, सुंदर जीवन जीनेवाले माने जाते हैं। हे भगवंत ! सामान्य पृच्छा में इस प्रकार यावत्‌ क्या कहना ? हे गौतम ! अपेक्षा से कैसी आत्मा उचित है। और (प्रव्रज्या के
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 826 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केह परिक्खा गोयमा जे केइ पुरिसे इ वा, इत्थियाओ वा, सामन्नं पडिवज्जिउकामे कंपेज्ज वा, थरहरेज्ज वा, निसीएज्ज वा, छड्डिं वा, पकरेज्ज वा, सगेण वा, परगेण वा, आसंतिए इ वा, संतिए इ वा तदहुत्तं गच्छेज्ज वा, अवलोइज्ज वा, पलोएज्ज वा वेसग्गहणे ढोइज्जमाणे कोई उप्पाए इ वा असुहे दोन्निमित्ते इ वा भवेज्जा, से णं गीयत्थे गणी अन्नयरे इ वा मयहरादी महया नेउन्नेणं निरूवेज्जा। जस्स णं एयाइं परतक्केज्जा से णं नो पव्वावेज्जा, से णं गुरुपडिनीए भवेज्जा, से णं निद्धम्म सबले भवेज्जा, से णं सव्वहा सव्वपयारेसु णं केवलं एगंतेणं अयज्ज करणुज्जए भवेज्जा। से णं जेणं वा तेणं, वा सुएण वा, विण्णाणेण

Translated Sutra: हे भगवंत ! उसकी परीक्षा किस तरह करे ? हे गौतम ! जो कोई पुरुष या स्त्री श्रमणपन अंगीकार करने की अभिलाषावाले (इस दीक्षा के कष्ट से) कंपन या ध्रुजने लगे, बैठने लगे, वमन करे, खुद के या दूसरों के समुदाय की आशातना करे, अवर्णवाद बोले, सम्बन्ध करे, उसकी ओर चलने लगे या अवलोकन करे, उनके सामने देखा करे, वेश खींच लेने के लिए हाजिर
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 833 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जे णं केइ अमुणिय समय सब्भावे होत्था विहिए, इ वा अविहिए, इ वा कस्स य गच्छायारस्स य मंडलिधम्मस्स वा छत्तीसइविहस्स णं सप्पभेय नाण दंसण चरित्त तव वीरियायारस्स वा, मनसा वा, वायाए वा, कहिं चि अन्नयरे ठाणे केई गच्छाहिवई आयरिए, इ वा अंतो विसुद्ध, परिणामे वि होत्था णं असई चुक्केज्ज वा, खलेज्ज वा, परूवेमाणे वा अणुट्ठे-माणे वा, से णं आराहगे उयाहु अनाराहगे गोयमा अनाराहगे। से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ जहा णं गोयमा अनाराहगे गोयमा णं इमे दुवालसंगे सुयनाणे अणप्पवसिए अनाइ निहणे सब्भूयत्थ पसाहगे अनाइ संसिद्धे से णं देविंद वंद वंदाणं अतुल बल वीरिएसरिय सत्त परक्कम महापुरिसायार

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो कोई न जाने हुए शास्त्र के सद्‌भाववाले हो, वह विधि से या अविधि से किसी गच्छ के आचार या मंड़ली धर्म के मूल या छत्तीस तरह के भेदवाले ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य के आचार को मन से वचन से या काया से किसी भी तरह कोई भी आचार स्थान में किसी गच्छाधिपति या आचार्य के जितने अंतःकरण में विशुद्ध परिणाम होने के
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अध्ययन-५ नवनीतसार

Hindi 842 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ गोयमा अप्प संकिएणं चेव चिंतियं तेण सावज्जायरिएणं जहा णं– जइ इह एयं जहट्ठियं पन्नवेमि तओ जं मम वंदनगं दाउमाणीए तीए अज्जाए उत्तिमंगेण चलणग्गे पुट्ठे तं सव्वेहिं पि दिट्ठमेएहिं ति। ता जहा मम सावज्जायरियाहिहाणं कयं तहा अन्नमवि किंचि एत्थ मुद्दंकं काहिंति। अहन्नहा सुत्तत्थं पन्नवेमि ता णं महती आसायणा। ता किं करियव्वमेत्थं ति। किं एयं गाहं पओवयामि किं वा णं अन्नहा पन्नवेमि अहवा हा हा न जुत्तमिणं उभयहा वि। अच्चंतगरहियं आयहियट्ठीणमेयं, जओ न मेस समयाभिप्पाओ जहा णं जे भिक्खू दुवालसंगस्स णं सुयनाणस्स असई चुक्कखलियपमायासंकादी सभयत्तेणं पयक्खरमत्ता बिंदुमवि

Translated Sutra: तब अपनी शंकावाला उन्होंने सोचा कि यदि यहाँ मैं यथार्थ प्ररूपणा करूँगा तो उस समय वंदना करती उस आर्या ने अपने मस्तक से मेरे चरणाग्र का स्पर्श किया था, वो सब इस चैत्यवासी ने मुझे देखा था। तो जिस तरह मेरा सावद्याचार्य नाम बना है, उस प्रकार दूसरा भी वैसा कुछ अवहेलना करनेवाला नाम रख देंगे जिससे सर्व लोक में मै अपूज्य
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1016 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भगवं जो बलविरियं पुरिसयार-परक्कमं। अनिगूहंतो तवं चरइ, पच्छित्तं तस्स किं भवे॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो कोई भी मानव अपने में जो कोई बल, वीर्य पुरुषकार पराक्रम हो उसे छिपाकर तप सेवन करे तो उसका क्या प्रायश्चित्त आए ? हे गौतम ! अशठ भाववाले उसे यह प्रायश्चित्त हो सकता है। क्योंकि वैरी का सामर्थ्य जानकर अपनी ताकत होने के बावजूद भी उसने उसकी अपेक्षा की है जो अपना बल वीर्य, सत्त्व पुरुषकार छिपाता है, वो शठ
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1020 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] से भगवं पावयं कम्मं परं वेइय समुद्धरे। अणणुभूएण नो मोक्खं, पायच्छित्तेण किं तहिं॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! बड़ा पापकर्म वेदकर खपाया जा सकता है। क्योंकि कर्म भुगते बिना उसका छूटकारा नहीं किया जा सकता। तो वहाँ प्रायश्चित्त करने से क्या फायदा ? हे गौतम ! कईं क्रोड़ साल से इकट्ठे किए गए पापकर्म सुरज से जैसे तुषार – हीम पीगल जाए वैसे प्रायश्चित्त समान सूरज के स्पर्श से पीगल जाता है। घनघोर अंधकार वाली रात हो लेकिन
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1036 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ते पुरिसं संघट्टेंती, कोल्हुगम्मि तिले जहा। सव्वे मुम्मुरावेइ रत्तुम्मत्ता अहन्निया॥

Translated Sutra: वो साध्वी या कोई भी स्त्री – पुरुष के संसर्ग में आ जाए तो (संभोग करे तो) घाणी में जैसे तल पीसते हैं उस तरह उस योनि में रहे सर्व जीव रतिक्रीड़ा में मदोन्मत्त हुए तब योनि में रहे पंचेन्द्रिय जीव का मंथन हुआ है। भस्मीभूत होता है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1044 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जम्हा तीसु वि एएसु, अवरज्झंतो हु गोयमा । उम्मग्गमेव वद्धारे, मग्गं निट्ठवइ सव्वहा॥

Translated Sutra: इस तीन में अपराध करनेवाला हे गौतम ! उन्मार्ग का व्यवहार करते थे और सर्वथा मार्ग का विनाश करनेवाला होता है। हे भगवंत ! इस दृष्टांत से जो गृहस्थ उत्कट मदवाले होते हैं। और रात या दिन में स्त्री का त्याग नहीं करते उसकी क्या गति होगी ? वो अपने शरीर के अपने ही हस्त से छेदन करके तल जितने छोटे टुकड़े करके अग्नि में होम करे
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1507 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] त्ति भाणिऊणं अद्दंसणं गया देवया इति ते छइल्ल पुरिसे लहुं च गंतूण साहियं तेहिं नरवइणो। तओ आगओ बहु विकप्प कल्लोल मालाहि णं आऊरिज्जमाण हियय सागरो हरिस विसाय वसेहिं भीऊड्डपाया-तत्थ चकिर-हियओ सणियं गुज्झ सुरंग खडक्किया दारेणं कंपंत सव्वगत्तो महया कोऊहल्लेणं कुमार दंसणुक्कंठिओ य तमुद्देसं। दिट्ठो य तेणं सो सुगहियणामधेज्जो महायसो महासत्तो महानुभावो कुमार महरिसी, अपडिवाइ महोही पच्चएणं साहेमाणो संखाइयाइ भवाणुहूयं दुक्खसुहं सम्मत्ताइलंभं संसार सहावं कम्मबंध ट्ठिती विमोक्खमहिंसा लक्खणमणगारे वयरबंधं नरादीणं सुहनिसन्नो सोहम्माहिवई धरिओवरिपंडुरायवत्तो। ताहे

Translated Sutra: यह अवसर देखकर उस चतुर राजपुरुषने जल्द राजा के पास पहुँचकर देखा हुआ वृत्तान्त निवेदन किया। उसे सुनकर कईं विकल्प रूप तरंगमाला से पूरे होनेवाले हृदयसागरवाला हर्ष और विषाद पाने से भय सहित खड़ा हो गया। त्रास और विस्मययुक्त हृदयवाला राजा धीरे – धीरे गुप्त सुरंग के छोटे द्वार से कंपते सर्वगात्रवाले महाकौतुक से
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1144 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अगीयत्थत्त-दोसेणं, भाव सुद्धिं न पावए। विना भावविसुद्धीए, सकलुस-मणसो मुनी भवे॥

Translated Sutra: अगीतार्थपन के दोष से भावशुद्धि प्राप्त नहीं होती, भावविशुद्धि बिना मुनि कलुषता युक्त मनवाला होता है। दिल में काफी कम छोटे प्रमाण में भी यदि कलुषता, मलीनता, शल्य, माया रहे हों तो अगीतार्थपन के दोष से जैसे लक्ष्मणा देवी साध्वी ने दुःख की परम्परा खड़ी की, वैसे अगीतार्थपन के दोष से भव की और दुःख की परम्परा खड़ी की,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1164 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहो तित्थंकरेणम्हं किमट्ठं चक्खु-दरिसणं। पुरिसित्थी रमंताणं, सव्वहा वि णिवारियं॥

Translated Sutra: यहाँ तीर्थंकर भगवंत ने पुरुष और स्त्री रतिक्रीड़ा करते हैं तो उनको देखना हमने क्यों मना किया होगा ? वो वेदना दुःख रहित होने से दूसरों का सुख नहीं पहचान सकते। अग्नि जलाने के स्वभाववाला होने के बावजूद भी आँख से उसे देखे तो देखनेवाले को नहीं जलाता। या तो ना, ना, ना, ना भगवंत ने जो आज्ञा की है वो यथार्थ ही है। वो विपरीत
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1284 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] साम-भेय-पयाणाइं अह सो सहसा पउंजिउं। तस्स साहस-तुलणट्ठा गूढ-चरिएण वच्चइ॥

Translated Sutra: सीधी तरह आज्ञा न माने तो साम, भेद, दाम, दंड आदि नीति के प्रयोग करके भी आज्ञा मनवाना। उसके पास सैन्यादिक कितनी चीजे हैं। उसका साहस मालूम करने के लिए गुप्तचर – जासूस पुरुष के झरिये जांच – पड़ताल करवाए। या गुप्त चरित्र से खुद पहने हुए कपड़े से अकेला जाए। बड़े पर्वत, कील्ले, अरण्य, नदी उल्लंघन करके लम्बे अरसे के बाद
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1314 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मंडवियाए भवेयव्वं दुक्कर-कारि भणित्तु णं। नवरं एयारिसं भविया, किमत्थं गोयमा एयं पुणो तं पपुच्छसी॥

Translated Sutra: फिर से तुम्हें यह पूछे गए सवाल का प्रत्युत्तर देता हूँ कि चार ज्ञान के स्वामी, देव – असुर और जगत के जीव से पूजनीय निश्चित उस भव में ही मुक्ति पानेवाले हैं। आगे दूसरा भव नहीं होगा। तो भी अपना बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम छिपाए बिना उग्र कष्टमय घोर दुष्कर तप का वो सेवन करते हैं। तो फिर चार गति स्वरूप संसार के जन्म
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1374 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो चंदनेन बाहुं आलिंपइ वासिणा व जो तच्छे। संथुणइ जो अ निंदइ सम-भावो हुज्ज दुण्हं पि॥

Translated Sutra: जो कोइ बावन चंदन के रस से शरीर और और बाहूँ पर विलेपन करे, या किसी बाँस से शरीर छिले, कोई उसके गुण की स्तुति करे या अवगुण की नींदा करे तो दोनो पर समान भाव रखनेवाला उस प्रकार बल, वीर्य, पुरुषार्थ पराक्रम को न छिपाते हुए, तृण और मणि, ढ़ेफा और कंचन की ओर समान मनवाला, व्रत, नियम, ज्ञान, चारित्र, तप आदि समग्र भुवन में अद्वितीय,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1382 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे णं पडिक्कमणं न पडिक्कमेज्जा, से णं तस्सोट्ठावणं निद्दिसेज्जा। बइट्ठ-पडिक्कमणे खमणं। सुन्नासुन्नीए अणोवउत्तपमत्तो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। पडिक्कमण-कालस्स चुक्कइ, चउत्थं। अकाले पडिक्कमणं करेज्जा, चउत्थं। कालेण वा पडिक्कमणं नो करेज्जा, चउत्थं। संथारगओ वा संथारगोवविट्ठो वा पडिक्कमणं करेज्जा, दुवालसं। मंडलीए न पडिक्क-मेज्जा, उवट्ठावणं। कुसीलेहिं समं पडि-क्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। परिब्भट्ठ बंभचेर वएहिं समं पडिक्कमेज्जा, पारंचियं। सव्वस्स समणसंघस्स तिविहं तिविहेण खमण-मरि सामणं अकाऊणं पडिक्कमणं करेज्जा, उवट्ठावणं। पयं पएणाविच्चामेलिय पडिक्कमण

Translated Sutra: जो प्रतिक्रमण न करे उसे उपस्थापना का प्रायश्चित्त देना। बैठे – बैठे प्रतिक्रमण करनेवाले को खमण (उपवास), शून्याशून्यरूप से यानि कि यह सूत्र बोला गया है या नहीं वैसे उपयोगरहित अनुपयोग से प्रमत्तरूप से प्रतिक्रमण किया जाए तो पाँच उपवास, मांड़ली में प्रतिक्रमण न करे तो उपस्थापना; कुशील के साथ प्रतिक्रमण करे तो
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1383 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वज्जेंतो बीय-हरीयाइं, पाणे य दग-मट्टियं। उववायं विसमं खाणुं रन्नो गिहवईणं च॥

Translated Sutra: ऐसे करते हुए भिक्षा का समय आ पहुँचा। हे गौतम ! इस अवसर पर पिंड़ेसणा – शास्त्र में बताए विधि से दीनता रहित मनवाला भिक्षु बीज और वनस्पतिकाय, पानी, कीचड़, पृथ्वीकाय को वर्जते, राजा और गृहस्थ की ओर से होनेवाले विषम उपद्रव – कदाग्रही को छोड़नेवाला, शंकास्थान का त्याग करनेवाला, पाँच समिति, तीन गुप्ति में उपयोगवाला, गोचरचर्या
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1441 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुढवि-दगागणि-वाऊ-वणप्फती तह तसाण विविहाणं। हत्थेण वि फरिसणयं वज्जेज्जा जावजीवं पि॥

Translated Sutra: पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, वनस्पति और अलग – अलग तरह के त्रस जीव को हाथ से छूना यावज्जीवन पर्यन्त वर्जन करना, पृथ्वीकाय के जीव को ठंड़े, गर्म, खट्टे चीजों के साथ मिलाना, पृथ्वी खुदना, अग्नि, लोह, झाकल, खट्टे, चीकने तेलवाली चीजें पृथ्वीकाय आदि जीव का आपस में क्षय करनेवाले, वध करनेवाले शस्त्र समझना। स्नान करने में शरीर
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1484 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ। से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा ? उस समय में उस समय यहाँ सुसढ़ नाम का एक अनगार था। उसने एक – एक पक्ष के भीतर कईं असंयम स्थानक की आलोचना दी और काफी महान घोर दुष्कर प्रायश्चित्त का सेवन किया। तो भी उस बेचारे को विशुद्धि प्राप्त नहीं हुई। इस कारण से ऐसा कहा। हे भगवंत ! उस सुसढ़ की वक्तव्यता किस तरह की है ? हे गौतम ! इस भारत
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1497 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जाव णं पुव्व जाइ सरण पच्चएणं सा माहणी इयं वागरेइ ताव णं गोयमा पडिबुद्धमसेसं पि बंधुयणं बहु णागर जणो य। एयावसरम्मि उ गोयमा भणियं सुविदिय सोग्गइ पहेणं तेणं गोविंदमाहणेणं जहा णं– धि द्धिद्धि वंचिए एयावंतं कालं, जतो वयं मूढे अहो णु कट्ठमण्णाणं दुव्विन्नेयमभागधिज्जेहिं खुद्द-सत्तेहिं अदिट्ठ घोरुग्ग परलोग पच्चवाएहिं अतत्ताभिणिविट्ठ दिट्ठीहिं पक्खवाय मोह संधुक्किय माणसेहिं राग दोसो वहयबुद्धिहिं परं तत्तधम्मं अहो सज्जीवेणेव परिमुसिए एवइयं काल-समयं अहो किमेस णं परमप्पा भारिया छलेणासि उ मज्झ गेहे, उदाहु णं जो सो निच्छिओ मीमंसएहिं सव्वण्णू सोच्चि, एस सूरिए

Translated Sutra: पूर्वभव के जातिस्मरण होने से ब्राह्मणी से जब यह सुना तब हे गौतम ! समग्र बन्धुवर्ग और दूसरे कईं नगरजन को प्रतिबोध हुआ। हे गौतम ! उस अवसर पर सद्‌गति का मार्ग अच्छी तरह से मिला है। वैसे गोविंद ब्राह्मण ने कहा कि धिक्कार है मुझे, इतने अरसे तक हम बनते रहे, मूढ़ बने रहे, वाकई अज्ञान महाकष्ट है। निर्भागी – तुच्छ आत्मा
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