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Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र Hindi 290 View Detail
Mool Sutra: तस्यैष मार्गो गुरुवृद्धसेवा, विवर्जना बालजनस्य दूरात्। स्वाध्यायैकान्तनिवेशना च, सूत्रार्थसंचिन्तनता धृतिश्च।।३।।

Translated Sutra: गुरु तथा वृद्ध-जनों की सेवा करना, अज्ञानी लोगों के सम्पर्क से दूर रहना, स्वाध्याय करना, एकान्तवास करना, सूत्र और अर्थ का सम्यक् चिन्तन करना तथा धैर्य रखना--ये (दुःखों से मुक्ति के) उपाय हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र Hindi 291 View Detail
Mool Sutra: आहारमिच्छेद् मितमेषणीयं, सखायमिच्छेद् निपुणार्थबुद्धिम्। निकेतमिच्छेद् विवेकयोग्यं, समाधिकामः श्रमणस्तपस्वी।।४।।

Translated Sutra: समाधि का अभिलाषी तपस्वी श्रमण परिमित तथा एषणीय आहार की ही इच्छा करे, तत्त्वार्थ में निपुण (प्राज्ञ) साथी को ही चाहे तथा विवेकयुक्त अर्थात् विविक्त (एकान्त) स्थान में ही निवास करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र Hindi 293 View Detail
Mool Sutra: रसाः प्रकामं न निषेवितव्याः, प्रायो रसा दीप्तिकरा नराणाम्। दीप्तं च कामाः समभिद्रवन्ति, द्रुमं यथा स्वादुफलमिव पक्षिणः।।६।।

Translated Sutra: रसों का अत्यधिक सेवन नहीं करना चाहिए। रस प्रायः उन्मादवर्धक होते हैं--पुष्टिवर्धक होते हैं। मदाविष्ट या विषयासक्त मनुष्य को काम वैसे ही सताता या उत्पीड़ित करता है जैसे स्वादिष्ट फलवाले वृक्ष को पक्षी।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२१. साधनासूत्र Hindi 294 View Detail
Mool Sutra: विविक्तशय्याऽसनयन्त्रितानाम्, अवमोऽशनानां दमितेन्द्रियाणाम्। न रागशत्रुर्धर्षयति चित्तं, पराजितो व्याधिरिवौषधैः।।७।।

Translated Sutra: जो विविक्त (स्त्री आदि से रहित) शय्यासन से नियंत्रित (युक्त) है, अल्प-आहारी है और दमितेन्द्रिय है, उसके चित्त को राग-द्वेषरूपी विकार पराजित नहीं कर सकते, जैसे औषधि से पराजित या विनष्ट व्याधि पुनः नहीं सताती।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२२. द्विविध धर्मसूत्र Hindi 298 View Detail
Mool Sutra: सन्त्येकेभ्यो भिक्षुभ्यः, अगारस्थाः संयमोत्तराः। अगारस्थेभ्यश्च सर्वेभ्यः, साधवः संयमोत्तराः।।३।।

Translated Sutra: यद्यपि शुद्धाचारी साधुजन सभी गृहस्थों से संयम में श्रेष्ठ होते हैं, तथापि कुछ (शिथिलाचारी) भिक्षुओं की अपेक्षा गृहस्थ संयम में श्रेष्ठ होते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 340 View Detail
Mool Sutra: नाऽपि मुण्डितेन श्रमणः, न ओंकारेण ब्राह्मणः। न मुनिररण्यवासेन, कुशचीरेण न तापसः।।५।।

Translated Sutra: केवल सिर मुँड़ाने से कोई श्रमण नहीं होता, ओम् का जप करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता, अरण्य में रहने से कोई मुनि नहीं होता, कुश-चीवर धारण करने से कोई तपस्वी नहीं होता।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 341 View Detail
Mool Sutra: समतया श्रमणो भवति, ब्रह्मचर्येण ब्राह्मणः। ज्ञानेन च मुनिर्भवति, तपसा भवति तापसः।।६।।

Translated Sutra: (प्रत्युत) वह समता से श्रमण होता है, ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है, ज्ञान से मुनि होता है और तप से तपस्वी होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 346 View Detail
Mool Sutra: निर्ममो निरहंकारः, निःसंगस्त्यक्तगौरवः। समश्च सर्वभूतेषु, त्रसेषु स्थावरेषु च।।११।।

Translated Sutra: साधु ममत्वरहित, निरहंकारी, निस्संग, गौरव का त्यागी तथा त्रस और स्थावर जीवों के प्रति समदृष्टि रखता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 347 View Detail
Mool Sutra: लाभालाभे सुखे दुःखे, जीविते मरणे तथा। समो निन्दाप्रशंसयोः, तथा मानापमानयोः।।१२।।

Translated Sutra: वह लाभ और अलाभ में, सुख और दुःख में, जीवन और मरण में, निंदा और प्रशंसा में तथा मान और अपमान में समभाव रखता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 348 View Detail
Mool Sutra: गौरवेभ्यः कषायेभ्यः, दण्डशल्यभयेभ्यश्च। निवृत्तो हासशोकात्, अनिदानो अबन्धनः।।१३।।

Translated Sutra: वह गौरव, कषाय, दण्ड, शल्य, भय, हास्य और शोक से निवृत्त अनिदानी और बन्धन से रहित होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 349 View Detail
Mool Sutra: अनिश्रित इहलोके, परलोकेऽनिश्रितः। वासीचन्दनकल्पश्च, अशनेऽनशने तथा।।१४।।

Translated Sutra: वह इस लोक व परलोक में अनासक्त, बसूले से छीलने या चन्दन का लेप करने पर तथा आहार के मिलने या न मिलने पर भी सम रहता है-- हर्ष-विषाद नहीं करता।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 350 View Detail
Mool Sutra: अप्रशस्तेभ्यो द्वारेभ्यः, सर्वतः पिहितास्रवः। अध्यात्मध्यानयोगैः, प्रशस्तदमशासनः।।१५।।

Translated Sutra: ऐसा श्रमण अप्रशस्त द्वारों (हेतुओं) से आनेवाले आस्रवों का सर्वतोभावेन निरोध कर अध्यात्म-सम्बन्धी ध्यान-योगों से प्रशस्त संयम-शासन में लीन हो जाता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 354 View Detail
Mool Sutra: बुद्धः परिनिर्वृतश्चरेः, ग्रामे गतो नगरे वा संयतः। शान्तिमार्गं च बृंहयेः, समयं गौतम ! मा प्रमादीः।।१९।।

Translated Sutra: प्रबुद्ध और उपशान्त होकर संयतभाव से ग्राम और नगर में विचरण कर। शान्ति का मार्ग बढ़ा। हे गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 355 View Detail
Mool Sutra: न खलु जिनोऽद्य दृश्यते, बहुमतो दृश्यते मार्गदर्शितः। सम्प्रति नैवायिके पथि, समयं गौतम ! मा प्रमादीः।।२०।।

Translated Sutra: भविष्य में लोग कहेंगे, आज `जिन' दिखाई नहीं देते और जो मार्गदर्शक हैं वे भी एकमत के नहीं हैं। किन्तु आज तुझे न्यायपूर्ण मार्ग उपलब्ध है। अतः गौतम ! क्षणमात्र भी प्रमाद मत कर।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 357 View Detail
Mool Sutra: प्रत्ययार्थं च लोकस्य, नानाविधविकल्पनम्। यात्रार्थं ग्रहणार्थं च, लोके लिङ्गप्रयोजनम्।।२२।।

Translated Sutra: (फिर भी) लोक-प्रतीति के लिए नाना तरह के विकल्पों की वेश आदि की-परिकल्पना की गयी है। संयम-यात्रा के निर्वाह के लिए और `मैं साधु हूँ' इसका बोध रहने के लिए ही लोक में लिंग का प्रयोजन है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२४. श्रमणधर्मसूत्र Hindi 359 View Detail
Mool Sutra: शुषिरा इव मुष्टिर्यथा स असारः, अयन्त्रितः कूटकार्षापणो वा। राढामणिर्वैडूर्यप्रकाशः अमहार्घको भवति च ज्ञायकेषु ज्ञेषु।।२४।।

Translated Sutra: जो पोली मुट्ठी की तरह निस्सार है, खोटे सिक्के की तरह अप्रमाणित है, वैडूर्य की तरह चमकनेवाली काँचमणि है उसका जानकारों की दृष्टि में कोई मूल्य नहीं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 364 View Detail
Mool Sutra: अहिंसा सत्यं चास्तेनकं च, ततश्चाब्रह्मापरिग्रहं च। प्रतिपद्य पञ्चमहाव्रतानि, चरति धर्मं जिनदेशितं विदः।।१।।

Translated Sutra: अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँच महाव्रतों का स्वीकार करके विद्वान् मुनि जिनोपदिष्ट धर्म का आचरण करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२५. व्रतसूत्र Hindi 380 View Detail
Mool Sutra: सन्निधिं च न कुर्वीत, लेपमात्रया संयतः। पक्षी पत्रं समादाय, निरपेक्षः परिव्रजेत्।।१७।।

Translated Sutra: साधु लेशमात्र भी आहार का संग्रह न करे। पक्षी की तरह संग्रह से निरपेक्ष रहते हुए केवल संयमोपकरण के साथ विचरण करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 384 View Detail
Mool Sutra: ईर्याभाषैषणाऽऽदाने-उच्चारे समितय इति। मनोगुप्तिर्वचोगुप्तिः, कायगुप्तिश्चाष्टमी।।१।।

Translated Sutra: ईर्या, भाषा, एषणा, आदान-निक्षेपण और उच्चार (मलमूत्रादि विसर्जन)--ये पाँच समितियाँ हैं। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति--ये तीन गुप्तियाँ हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 386 View Detail
Mool Sutra: एताः पञ्च समितयः, चरणस्य च प्रवर्तने। गुप्तयो निवर्तने उक्ताः, अशुभार्थेभ्यः सर्वशः।।३।।

Translated Sutra: ये पाँच समितियाँ चारित्र की प्रवृत्ति के लिए हैं। और तीन गुप्तियाँ सभी अशुभ विषयों से निवृत्ति के लिए हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 397 View Detail
Mool Sutra: इन्द्रियार्थान् विवर्ज्य, स्वाध्यायं चैव पञ्चधा। तन्मूर्तिः (सन्) तत्पुरस्कारः, उपयुक्त ईर्यां रीयेत।।१४।।

Translated Sutra: इन्द्रियों के विषय तथा पाँच प्रकार के स्वाध्याय का कार्य छोड़कर केवल गमन-क्रिया में ही तन्मय हो, उसीको प्रमुख महत्त्व देकर उपयोगपूर्वक (जागृतिपूर्वक) चलना चाहिए।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 399 View Detail
Mool Sutra: न लपेत् पृष्टः सावद्यं, न निरर्थं न मर्मगम्। आत्मार्थं परार्थं वा, उभयस्यान्तरेण वा।।१६।।

Translated Sutra: (भाषा-समिति-परायण साधु) किसीके पूछने पर भी अपने लिए, अन्य के लिए अथवा दोनों के लिए न तो सावद्य अर्थात् पाप-वचन बोले, न निरर्थक वचन बोले और न मर्मभेदी वचन का प्रयोग करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 410 View Detail
Mool Sutra: चक्षुषा प्रतिलिख्य, प्रमार्जयेत् यतं यतिः। आददीत निक्षिपेद् वा, द्विधाऽपि समितः सदा।।२७।।

Translated Sutra: यतना (विवेक-) पूर्वक प्रवृत्ति करनेवाला मुनि अपने दोनों प्रकार के उपकरणों को आँखों से देखकर तथा प्रमार्जन करके उठाये और रखे। यही आदान-निक्षेपण समिति है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 412 View Detail
Mool Sutra: संरम्भे समारम्भे, आरम्भे, च तथैव च। मनः प्रवर्तमानं तु, निवर्त्तयेद् यतं यतिः।।२९।।

Translated Sutra: यतनासम्पन्न (जागरूक) यति संरम्भ, समारम्भ व आरम्भ में प्रवर्त्तमान मन को रोके--उसका गोपन करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 413 View Detail
Mool Sutra: संरम्भे समारम्भे, आरम्भे च तथैव च। वचः प्रवर्तमानं तु, निवर्त्तयेद् यतं यतिः।।३०।।

Translated Sutra: यतनासम्पन्न यति संरम्भ, समारम्भ व आरम्भ में प्रवर्त्तमान वचन को रोके--उसका गोपन करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 414 View Detail
Mool Sutra: संरम्भे समारम्भे, आरम्भे तथैव च। कायं प्रवर्तमानं तु, निवर्त्तयेद् यतं यतिः।।३१।।

Translated Sutra: यतनासम्पन्न यति संरम्भ, समारम्भ व आरम्भ में प्रवर्त्तमान काया को रोके--उसका गोपन करे।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२६. समिति-गुप्तिसूत्र Hindi 416 View Detail
Mool Sutra: एताः प्रवचनमातॄः, यः सम्यगाचरेन्मुनिः। स क्षिप्रं सर्वसंसारात्, विप्रमुच्यते पण्डितः।।३३।।

Translated Sutra: जो मुनि इन आठ प्रवचन-माताओं का सम्यक् आचरण करता है, वह ज्ञानी शीघ्र संसार से मुक्त हो जाता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 440 View Detail
Mool Sutra: तत् तपो द्विविधं उक्तं, बाह्यमाभ्यन्तरं तथा। बाह्यं षड्‌विधं उक्तं, एवमाभ्यन्तरं तपः।।२।।

Translated Sutra: तप दो प्रकार का है--बाह्य और आभ्यन्तर। बाह्य तप छह प्रकार का है। इसी तरह आभ्यन्तर तप भी छह प्रकार का कहा गया है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 441 View Detail
Mool Sutra: अनशनमूनोदरिका, भिक्षाचर्या च रसपरित्यागः। कायक्लेशः संलीनता च, बाह्यं तपो भवति।।३।।

Translated Sutra: अनशन, अवमोदर्य (ऊनोदरिका), भिक्षाचर्या, रस-परित्याग, कायक्लेश और संलीनता-इस तरह बाह्यतप छह प्रकार का है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 448 View Detail
Mool Sutra: यो यस्य त्वाहारः, ततोऽवमं तु यः कुर्यात्। जघन्येनैकसिक्थादि, एवं द्रव्येण तु भवेत्।।१०।।

Translated Sutra: जो जितना भोजन कर सकता है, उसमें से कम से कम एक सिक्थ अर्थात् एक कण अथवा एक ग्रास आदि के रूप में कम भोजन करना द्रव्यरूपेण ऊनोदरी तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 450 View Detail
Mool Sutra: क्षीरदधिसर्पिरादि, प्रणीतं पानभोजनम्। परिवर्जनं रसानां तु, भणितं रसविवर्जनम्।।१२।।

Translated Sutra: दूध, दही, घी आदि पौष्टिक भोजन-पान आदि के रसों के त्याग को रस-परित्याग नामक तप कहा गया है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 451 View Detail
Mool Sutra: एकान्तेऽनापाते, स्त्रीपशुविवर्जिते। शयनासनसेवनता,विविक्तशयनासनम्।।१३।।

Translated Sutra: एकान्त, अनापात (जहाँ कोई आता-जाता न हो) तथा स्त्री-पुरुषादि से रहित स्थान में शयन एवं आसन ग्रहण करना, विविक्त-शयनासन (प्रतिसंलीनता) नामक तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 452 View Detail
Mool Sutra: स्थानानि वीरासनादीनि, जीवस्य तु सुखावहानि। उग्राणि यथा धार्यन्ते, कायक्लेशः स आख्यातः।।१४।।

Translated Sutra: गिरा, कन्दरा आदि भयंकर स्थानों में, आत्मा के लिए सुखावह, वीरासन आदि उग्र आसनों का अभ्यास करना या धारण करना कायक्लेश नामक तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 456 View Detail
Mool Sutra: प्रायश्चित्तं विनयः, वैयावृत्य तथैव स्वाध्यायः। ध्यानं च व्युत्सर्गः, एतदाभ्यन्तरं तपः।।१८।।

Translated Sutra: प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग (कायोत्सर्ग) -- इस तरह छह प्रकार का आभ्यन्तर तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 466 View Detail
Mool Sutra: अभ्युत्थानमञ्जलिकरणं, तथैवासनदानम्। गुरुभक्तिभावशुश्रूषा, विनय एष व्याख्यातः।।२८।।

Translated Sutra: गुरु तथा वृद्धजनों के समक्ष आने पर खड़े होना, हाथ जोड़ना, उन्हें उच्च आसन देना, गुरुजनों की भावपूर्वक भक्ति तथा सेवा करना विनय तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२८. तपसूत्र Hindi 480 View Detail
Mool Sutra: शयनासनस्थाने वा, यस्तु भिक्षुर्न व्याप्रियते। कायस्य व्युत्सर्गः, षष्ठः स परिकीर्तितः।।४२।।

Translated Sutra: भिक्षु का शयन, आसन और खड़े होने में व्यर्थ का कायिक व्यापार न करना, काष्ठवत् रहना, छठा कायोत्सर्ग तप है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

२९. ध्यानसूत्र Hindi 492 View Detail
Mool Sutra: य इन्द्रियाणां विषया मनोज्ञाः, न तेषु भावं निसृजेत् कदापि। न चामनोज्ञेषु मनोऽपि कुर्यात्, समाधिकामः श्रमणस्तपस्वी।।९।।

Translated Sutra: समाधि की भावनावाला तपस्वी श्रमण इन्द्रियों के अनुकूल विषयों (शब्द-रूपादि) में कभी रागभाव न करे और प्रतिकूल विषयों में मन से भी द्वेषभाव न करे। -- यह अर्थ समुचित नहीं लगता ।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 525 View Detail
Mool Sutra: जरामरणवेगेन,डह्यमानानां प्राणिनाम्। धर्मो द्वीपः प्रतिष्ठा च, गतिः शरणमुत्तमम्।।२१।।

Translated Sutra: जरा और मरण के तेज प्रवाह में बहते-डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप है, प्रतिष्ठा है, गति है तथा उत्तम शरण है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 526 View Detail
Mool Sutra: मानुष्यं विग्रहं लब्ध्वा, श्रुतिर्धर्मस्य दुर्लभा। यं श्रुत्वा प्रतिपद्यन्ते, तपः क्षान्तिमहिंस्रताम्।।२२।।

Translated Sutra: (प्रथम तो चतुर्गतियों में भ्रमण करनेवाले जीव को मनुष्य-शरीर ही मिलना दुर्लभ है, फिर) मनुष्य-शरीर प्राप्त होने पर भी ऐसे धर्म का श्रवण तो और भी कठिन है, जिसे सुनकर तप, क्षमा और अहिंसा को प्राप्त किया जाय।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 527 View Detail
Mool Sutra: आहत्य श्रवणं लब्ध्वा, श्रद्धा परमदुर्लभा। श्रुत्वा नैयायिकं मार्गं बहवः परिभ्रश्यन्ति।।२३।।

Translated Sutra: कदाचित् धर्म का श्रवण हो भी जाय, तो उस पर श्रद्धा होना महा कठिन है। क्योंकि बहुत-से लोग न्यायसंगत मोक्षमार्ग का श्रवण करके भी उससे विचलित हो जाते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३०. अनुप्रेक्षासूत्र Hindi 528 View Detail
Mool Sutra: श्रुतिं च लब्ध्वा श्रद्धां च, वीर्यं पुनर्दुर्लभम्। बहवो रोचमाना अपि, नो च तत् प्रतिपद्यन्ते।।२४।।

Translated Sutra: धर्म-श्रवण तथा (उसके प्रति) श्रद्धा हो जाने पर भी संयम में पुरुषार्थ होना अत्यन्त दुर्लभ है। बहुत-से लोग संयम में अभिरुचि रखते हुए भी उसे सम्यक्‌रूपेण स्वीकार नहीं कर पाते।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३१. लेश्यासूत्र Hindi 534 View Detail
Mool Sutra: कृष्णा नीला कापोता, तिस्रोऽप्येता अधर्मलेश्याः। एताभिस्तिसृभिरपि जीवो, दुर्गतिमुपपद्यते बहुशः।।४।।

Translated Sutra: कृष्ण, नील और कापोत ये तीनों अधर्म या अशुभ लेश्याएँ हैं। इनके कारण जीव विविध दुर्गतियों में उत्पन्न होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३१. लेश्यासूत्र Hindi 535 View Detail
Mool Sutra: तेजः पद्मा शुक्ला, तिस्रोऽप्येता धर्मलेश्याः। एताभिस्तिसृभिरपि जीवः, सुगतिमुपपद्यते बहुशः।।५।।

Translated Sutra: पीत (तेज), पद्म और शुक्ल ये तीनों धर्म या शुभ लेश्याएँ हैं। इनके कारण जीव विविध सुगतियों में उत्पन्न होता है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग

३३. संलेखनासूत्र Hindi 567 View Detail
Mool Sutra: शरीरमाहुर्नौरिति, जीव उच्यते नाविकः। संसारोऽर्णव उक्तः, यं तरन्ति महर्षयः।।१।।

Translated Sutra: शरीर को नाव कहा गया है और जीव को नाविक। यह संसार समुद्र है, जिसे महर्षिजन तैर जाते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Hindi 588 View Detail
Mool Sutra: यावन्तोऽविद्यापुरुषाः, सर्वे ते दुःखसम्भवाः। लुप्यन्ते बहुशो मूढाः, संसारेऽनन्तके।।१।।

Translated Sutra: समस्त अविद्यावान् (अज्ञानी पुरुष) दुःखी हैं-दुःख के उत्पादक हैं। वे विवेकमूढ़ अनन्त संसार में बार-बार लुप्त होते हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Hindi 589 View Detail
Mool Sutra: समीक्ष्य पण्डितस्तस्मात्, पाशजातिपथान् बहून्। आत्मना सत्यमेषयेत्, मैत्रीं भूतेषु कल्पयेत्।।२।।

Translated Sutra: इसलिए पण्डितपुरुष अनेकविध पाश या बन्धनरूप स्त्री-पुत्रादि के सम्बन्धों की, जो कि जन्म-मरण के कारण हैं, समीक्षा करके स्वयं सत्य की खोज करे और सब प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव रखे।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Hindi 591 View Detail
Mool Sutra: जीवा अजीवाश्च बन्धश्च, पुण्यं पापास्रवः तथा। संवरो निर्जरा मोक्षः, सन्त्येते तथ्या नव।।४।।

Translated Sutra: जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष--ये नौ तत्त्व या पदार्थ हैं।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Hindi 595 View Detail
Mool Sutra: नो इन्द्रियग्राह्योऽमूर्तभावात्, अमूर्त्तभावादपि च भवति नित्यः। अध्यात्महेतुर्नियतः अस्य बन्धः, संसारहेतुं च वदन्ति बन्धम्।।८।।

Translated Sutra: आत्मा (जीव) अमूर्त है, अतः वह इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है। तथा अमूर्त पदार्थ नित्य होता है। आत्मा के आन्तरिक रागादि भाव ही निश्चयतः बन्ध के कारण हैं और बन्ध को संसार का हेतु कहा गया है।
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Hindi 609 View Detail
Mool Sutra: यथा महातडागस्य, सन्निरुद्धे जलागमे। उत्सिञ्चनया तपनया, क्रमेण शोषणा भवेत्।।२२।।

Translated Sutra: जैसे किसी बड़े तालाब का जल, जल के मार्ग को बन्द करने से, पहले के जल को उलीचने से तथा सूर्य के ताप से क्रमशः सूख जाता है, वैसे ही संयमी का करोड़ों भवों में संचित कर्म पापकर्म के प्रवेश-मार्ग को रोक देने पर तथा तप से निर्जरा को प्राप्त होता है--नष्ट होता है। संदर्भ ६०९-६१०
Saman Suttam समणसुत्तं Sanskrit

तृतीय खण्ड - तत्त्व-दर्शन

३४. तत्त्वसूत्र Hindi 610 View Detail
Mool Sutra: एवं तु संयतस्यापि, पापकर्मनिरास्रवे। भवकोटिसंचितं कर्म, तपसा निर्जीर्यते।।२३।।

Translated Sutra: कृपया देखें ६०९; संदर्भ ६०९-६१०
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