Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles
Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 118 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 119 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] जं भवे भत्तपानं तु कप्पाकप्पम्मि संकियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 121 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं च उब्भिंदिया देज्जा समणट्ठाए व दावए ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૦ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 123 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 125 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 127 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 129 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૨૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 133 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 135 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 137 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 139 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं भवे भत्तपानं तु संजयाण अकप्पियं ।
देंतिय पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૨ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 147 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] विक्कायमाणं पसढं रएण परिफासियं ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૪૫ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 149 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अप्पे सिया भोयणजाए बहु-उज्झिय-धम्मिए ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૪૫ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ पिंडैषणा |
उद्देशक-१ | Gujarati | 154 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तं च अच्चंबिलं पूइं नालं तण्हं विणित्तए ।
देंतियं पडियाइक्खे न मे कप्पइ तारिसं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૫૦ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Gujarati | 272 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पिंडं सेज्जं च वत्थं च चउत्थं पायमेव य ।
अकप्पियं न इच्छेज्जा पडिगाहेज्ज कप्पियं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭૧ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Gujarati | 277 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पच्छाकम्मं पुरेकम्मं सिया तत्थ न कप्पई ।
एयमट्ठं न भुंजंति निग्गंथा गिहिभायणे ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૭૫ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Gujarati | 281 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गोयरग्गपविट्ठस्स निसेज्जा जस्स कप्पई ।
इमेरिसमनायारं आवज्जइ अबोहियं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૮૧. ભિક્ષાર્થે પ્રવેશેલ સાધુને ગૃહસ્થને ઘેર. બેસવું સારું લાગે છે. તે આ પ્રકારના અનાચારને તથા અબોધિ રૂપ ફળને પ્રાપ્ત થાય છે. સૂત્ર– ૨૮૨. ત્યાં બેસવાથી બ્રહ્મચર્ય વ્રતનું પાલન કરવામાં વિપત્તિ, પ્રાણીના વધથી સંયમઘાત, ભિક્ષાચરોને અંતરાય અને ઘરનાને ક્રોધ ઉત્પન્ન થાય છે. સૂત્ર– ૨૮૩. વળી, બ્રહ્મચર્યની | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Gujarati | 284 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिण्हमन्नयरागस्स निसेज्जा जस्स कप्पई ।
जराए अभिभूयस्स वाहियस्स तवस्सिणो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૮૧ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चूलिका-१ रतिवाक्या |
Gujarati | 506 | Sutra | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु भो! पव्वइएणं, उप्पन्नदुक्खेणं, संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं, ओहानुप्पेहिणा अनो-हाइएणं चेव, हयरस्सि-गयंकुस-पोयपडागाभूयाइं इमाइं अट्ठारस ठाणाइं सम्मं संपडिलेहियव्वाइं भवंति, तं जहा–
१. हं भो! दुस्समाए दुप्पजीवी।
२. लहुस्सगा इत्तरिया गिहीणं कामभोगा।
३. भुज्जो य साइबहुला मणुस्सा।
४. इमे य मे दुक्खे न चिरकालोवट्ठाई भविस्सइ।
५. ओमजनपुरक्कारे।
६. वंतस्स य पडियाइयणं।
७. अहरगइवासोवसंपया।
८. दुल्लभे खलु भो! गिहीणं धम्मे गिहिवासमज्झे वसंताणं।
९. आयंके से वहाय होइ।
१०. संकप्पे से वहाय होइ।
११. सोवक्केसे गिहवासे। निरुवक्केसे परियाए।
१२. बंधे गिहवासे। मोक्खे परियाए।
१३. Translated Sutra: હે સાધકો ! આ નિર્ગ્રન્થ પ્રવચનમાં જે પ્રવ્રજિત થયેલ છે, પણ કદાચિત દુઃખ ઉત્પન્ન થતા સંયમમાં તેમનું ચિત્ત અરતિયુક્ત થઈ જાય, તેથી તે સંયમનો પરિત્યાગ કરવા ઇચ્છે છે, પણ સંયમ તજ્યો નથી તેને પહેલાં આ અઢાર સ્થાનોનું સમ્યક્ પ્રકારે આલોચન કરવું જોઈએ. આ અઢાર સ્થાનો અશ્વ માટે લગામ, હાથી માટે અંકુશ, જહાજ માટે પતાકા સમાન | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चूलिका-२ विविक्तचर्या |
Gujarati | 530 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आइण्णओमाणविवज्जणा य ओसन्नदिट्ठाहडभत्तपाणे ।
संसट्ठकप्पेण चरेज्ज भिक्खू तज्जायसंसट्ठ जई जएज्जा ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૨૯ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 235 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आणय-पाणयकप्पे देवा पासंति पंचमिं पुढविं ।
तं चेव आरण-ऽच्चुय ओहिन्नाणेण पासंति ॥ Translated Sutra: आनत से अच्युत तक के देवों को पाँचवे नरक तक। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 238 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तेण परमसंखेज्जा तिरियं दीवा य सागरा चेव ।
बहुययरं उवरिमया, उड्ढं तु सकप्पथूभाई ॥ Translated Sutra: उससे ज्यादा आयुवाले देव तिर्छा असंख्यात द्वीप – समुद्र तक जानते हैं। ऊपर सभी अपने कल्प की ऊंचाई तक जानते हैं। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 162 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भवनवइ-वाणमंतर-जोइसवासीठिई मए कहिया ।
कप्पवई वि य वोच्छं बारस इंदे महिड्ढीए ॥ Translated Sutra: मैंने भवनपति, बाणव्यंतर और ज्योतिष्क देव की दशा कही है। अब महान ऋद्धिवाले १२ कल्पपति इन्द्र का विवरण करूँगा। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 166 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एए बारस इंदा कप्पवई कप्पसामिया भणिया ।
आणाईसरियं वा तेण परं नत्थि देवाणं ॥ Translated Sutra: इस तरह से यह बारह कल्पपति इन्द्र कल्प के स्वामी कहलाए उनके अलावा देव को आज्ञा देनेवाला दूसरा कोई नहीं है। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 169 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इत्थ किर विमानाणं बत्तीसं वण्णिया सयसहस्सा ।
सोहम्मकप्पवइणो सक्कस्स महानुभागस्स १ ॥ Translated Sutra: यहाँ सौधर्म कल्पपति शक्र महानुभव के ३२ लाख विमान हैं। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 170 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ईसानकप्पवइणो अट्ठावीसं भवे सयसहस्सा २ ।
बारस य सयसहस्सा कप्पम्मि सणंकुमारम्मि ३ ॥ Translated Sutra: ईशानेन्द्र के २८ लाख, सनत्कुमार के १२ लाख। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 171 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठेव सयसहस्सा माहिंदम्मि उ भवंति कप्पम्मि ४ ।
चत्तारि सयसहस्सा कप्पम्मि उ बंभलोगम्मि ५ ॥ Translated Sutra: माहेन्द्र में ८ लाख, ब्रह्मलोक में ४ लाख। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 173 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आणय-पाणयकप्पे चत्तारि सयाऽऽरणऽच्चुए तिन्नि ११-१२ ।
सत्त विमानसयाइं चउसु वि एएसु कप्पेसु ॥ Translated Sutra: आणत – प्राणत में ४००, आरण अच्युण में ३०० विमान कहा है। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 174 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयाइं विमानाइं कहियाइं जाइं जत्थ कप्पम्मि ।
कप्पवईण वि सुंदरि! ठिईविसेसे निसामेहि ॥ Translated Sutra: इस तरह से हे सुंदरी ! जिस कल्प में जितने विमान कहे हैं उस कल्पपति की दशा विशेष से सुन। शुक्र महानुभाग की दो सागरोपम, ईशानेन्द्र की साधिक दो सागरोपम, सनत्कुमारेन्द्र की सात सागरोपम। माहेन्द्र की साधिक सात सागरोपम, ब्रह्मलोकेन्द्र की दश सागरोपम, लांतकेन्द्र की १४ सागरोपम, महाशुक्रेन्द्र की १७ सागरोपम। सहस्रारेन्द्र | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 176 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] माहिंदे साहियाइं सत्त य ४ दस चेव बंभलोगम्मि ५ ।
चोद्दस लंतयकप्पे ६ सत्तरस भवे महासुक्के ७ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७४ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 177 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पम्मि सहस्सारे अट्ठारस सागरोवमाइं ठिइ ८ ।
आणय एगुणवीसा ९ वीसा पुण पाणए कप्पे १० ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७४ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 178 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुण्णा य एक्कवीसा उदहिसनामाण आरणे कप्पे ११ ।
अह अच्चुयम्मि कप्पे बावीसं सागराण ठिई १२ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १७४ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 179 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एसा कप्पवईणं कप्पठिई वण्णिया समासेणं ।
गेवेज्जऽनुत्तराणं सुण अनुभागं विमानाणं ॥ Translated Sutra: इस तरह कल्पपति के कल्प में आयु दशा कही अब अनुत्तर और ग्रैवेयक विमान के विभागों को सुनो। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 189 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] घनउदहिपइट्ठाणा सुरभवना दोसु होंति कप्पेसुं ।
तिसु वाउपइट्ठाणा, तदुभयसुपइट्ठिया तिन्नि ॥ Translated Sutra: सौधर्म और ईशान इन दोनों कल्प में देव – विमान धनोदधि पर प्रतिष्ठित हैं। सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्म उन तीन कल्प में वायु के ऊपर प्रतिष्ठित है और लांतक, महाशुक्र और सहस्रार ये तीन घनोदधि, घनवात दोनों के आधार पर प्रतिष्ठित है। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 192 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पे सणंकुमारे माहिंदे चेव बंभलोगे य ।
एएसु पम्हलेसा, तेण परं सुक्कलेसा उ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९१ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 193 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कनगत्तयरत्ताभा सुरवसभा दोसु होंति कप्पेसु ।
तिसु होंति पम्हगोरा, तेण परं सुक्किला देवा ॥ Translated Sutra: सौधर्म और ईशान दो कल्पवाले देव का वर्ण तपे हुए सोने जैसा, सनत्कुमार, माहेन्द्र और ब्रह्मलोक के देव का वर्ण पद्म जैसा श्वेत और उसके ऊपर के देव का वर्ण शुक्ल होता है। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 194 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिया होंति सत्तरयणीया ।
कप्पवईण य सुंदरि! सुण उच्चत्तं सुरवराणं ॥ Translated Sutra: भवनपति, वाणव्यंतर और ज्योतिष्क देव की ऊंचाई सात हाथ जितनी होती है। हे सुंदरी ! अब ऊपर के कल्पपति देव की ऊंचाई सुन। सौधर्म और ईशान की सात हाथ प्रमाण – उसके ऊपर के दो – दो कल्प समान होते हैं और एक – एक हाथ प्रमाण नाप कम होता जाता है। ग्रैवेयक के दो हाथ प्रमाण और अनुत्तर विमानवासी की ऊंचाई एक हाथ प्रमाण होती है। सूत्र | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 195 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोहम्मे ईसाने य सुरवरा होंति सत्तरयणीया ।
दो दो कप्पा तुल्ला दोसु वि परिहायए रयणी ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९४ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 197 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कप्पाओ कप्पम्मि उ जस्स ठिई सागरोवमऽब्भहिया ।
उस्सेहो तस्स भवे इक्कारसभागपरिहीनो ॥ Translated Sutra: एक कल्प से दूसरे कल्प के देव की स्थिति एक सागरोपम से अधिक होती है और उसकी ऊंचाई उससे ११ भाग कम होती है। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 199 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिया हुंति कायपवियारा ।
कप्पवईण वि सुंदरि! वोच्छं पवियारणविही उ ॥ Translated Sutra: भवनपति, वाणव्यंतर और ज्योतिष्क देव की कामक्रीड़ा शारीरिक होती है। हे सुंदरी ! अब तू कल्पपति की कामक्रीड़ा विधि सुन। सौधर्म और ईशान कल्प में जो देव हैं उसकी कामक्रीड़ा शारीरिक होती है। सनत्कुमार और माहेन्द्र की स्पर्श के द्वारा होती है। ब्रह्म और लांतक के देव की चक्षु द्वारा होती है। महाशुक्र और सहस्रार देव | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 201 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बंभे लंतयकप्पे य सुरवरा होंति रूवपवियारा ।
महसुक्क-सहस्सारेसु सद्दपवियारया देवा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९९ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 202 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आणय-पाणयकप्पे आरण तह अच्चुएसु कप्पम्मि ।
देवा मनपवियारा परओ पवियारणा नत्थि ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९९ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 220 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पत्तेयविमानाणं देवीणं छब्भवे सयसहस्सा ।
सोहम्म कप्पम्मि उ, ईसाने होंति चत्तारि ॥ Translated Sutra: सौधर्म देवलोक में देवीओं के अलग विमान की गिनती छ लाख होती है। और ईशान कल्प में चार लाख होती है। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 251 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किण्हा नीला लोहिय हालिद्दा सुक्किला विरायंति ।
पंचसए उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु ॥ Translated Sutra: इस कल्प में हरे, पीले, लाल, श्वेत और काले वर्णवाले पाँचसौ ऊंचे प्रासाद शोभायमान हैं। वहाँ सेंकड़ों मणि जड़ित कईं तरह के आसन, शय्या, सुशोभित विस्तृत वस्त्र रत्नमय हार और अलंकार होते हैं। सूत्र – २५१, २५२ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 254 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तत्थ य नीला लोहिय हालिद्दा सुक्किला विरायंति ।
छ च्च सए उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु ॥ Translated Sutra: वहाँ हरे, पीले, लाल, श्वेत और काले ऐसे ६०० ऊंचे प्रासाद शोभायमान हैं। सेंकड़ों मणिजड़ित, कईं तरह के आसन – शय्या, सुशोभित विस्तृतवस्त्र, रत्नमय हार और अलंकार होते हैं। सूत्र – २५४, २५५ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 256 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पन्नावीसं जोयणसयाइं पुढवीण होइ बाहल्लं ।
बंभय-लंतयकप्पे रयणविचित्ता य सा पुढवी ॥ Translated Sutra: ब्रह्म और लांतक कल्प में पृथ्वी की चौड़ाई २४०० योजन है जो पृथ्वी रत्न से चित्रित होती है। सुन्दर मणि और वेदिका, वैडुर्य मणि की स्तुपिका, रत्नमय हार और अलंकार युक्त कईं तरह के प्रासाद इस विमान में होते हैं। सूत्र – २५६, २५७ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 258 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] लोहिय हालिद्दा पुण सुक्किलवण्णा य ते विरायंति ।
सत्तसए उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु ॥ Translated Sutra: वहाँ लाल, पीले और श्वेत वर्णवाले ७०० ऊंचे प्रासाद शोभायमान हैं। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 261 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] हालिद्दभेयवण्णा सुक्किलवण्णा य ते विरायंति ।
अट्ठसते उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु ॥ Translated Sutra: पीले और श्वेत वर्णवाले ५०० ऊंचे प्रासाद शोभायमान हैं। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 263 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तेवीस जोयणसयाइं पुढवीणं तासि होइ बाहल्लं ।
आणय-पाणयकप्पे आरण-ऽच्चुए रयणविचित्ता उ सा पुढवी ॥ Translated Sutra: आणत – प्राणत कल्प में पृथ्वी की मोटाई २३०० योजन होती है। वो पृथ्वी रत्न से चित्रित होती है। सुन्दर मणि की वेदिका, वैडुर्य मणि की स्तुपिका, रत्नमय हार और अलंकार युक्त कईं तरह के वहाँ प्रासाद हैं। और शंख और हिम जैसे श्वेत वर्णवाले ९०० ऊंचे प्रासाद से शोभायमान हैं। सूत्र – २६३–२६५ | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 265 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संखंकसन्निकासा सव्वे दगरय-तुसारसरिवण्णा ।
नव य सते उव्विद्धा पासाया तेसु कप्पेसु ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६३ |