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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-१ | Hindi | 251 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पडिमापडिवन्नस्स णंअनगारस्स कप्पंति चत्तारि भासाओ भासित्तए, तं जहा– जायणी, पुच्छणी, अणुन्नवणी, पुट्ठस्स वागरणी। Translated Sutra: प्रतिमाधारी अनगार को चार भाषाएं बोलना कल्पता है, यथा – याचनी, प्रच्छनी, अनुज्ञापनी, प्रश्नव्याकरणी | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-१ | Hindi | 269 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–आवातभद्दए नाममेगे नो संवासभद्दए, संवासभद्दए नाममेगे नो आवातभद्दए, एगे आवातभद्दएवि संवासभद्दएवि, एगे नो आवातभद्दए नो संवासभद्दए।
चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–अप्पणो नाममेगे वज्जं पासति नो परस्स, परस्स नाममेगे वज्जं पासति नो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्जं पासति परस्सवि, एगो नो अप्पणो वज्जं पासति नो परस्स।
चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–अप्पणो नाममेगे वज्जं उदीरेइ नो परस्स, परस्स नाममेगे वज्जं उदीरेइ नो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्जं उदीरेइ परस्सवि, एगे नो अप्पणो वज्जं उदीरेइ नो परस्स।
चत्तारि पुरिसजाया पन्नत्ता, तं जहा–अप्पणो Translated Sutra: चार प्रकार के पुरुष कहे गए हैं, यथा – कोई प्रथम मिलन में वार्तालाप से भद्र लगते हैं, परन्तु सहवास से अभद्र मालूम होते हैं, कोई सहवास से भद्र मालूम होते हैं पर प्रथम मिलन में अभद्र लगते हैं, कोई प्रथम मिलन में भी भद्र होते हैं और सहवास से भी भद्र मालूम होते हैं, कोई प्रथम मिलन में भी भद्र नहीं लगते और सहवास से भी भद्र | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-३ | Hindi | 360 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चउव्विहे नाते पन्नत्ते, तं जहा–आहरणे, आहरणतद्देसे, आहरणतद्दोसे, उवण्णासोवणए।
आहरणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अवाए, उवाए, ठवनाकम्मे, पडुप्पन्नविणासी।
आहरणतद्देसे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अनुसिट्ठी, उवालंभे, पुच्छा, णिस्सावयणे।
आहरणतद्दोसे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अधम्मजुत्ते, पडिलोमे, अत्तोवनीते, दुरुवनीते।
उवण्णासोवणए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–तव्वत्थुते, तदन्नवत्थुते, पडिनिभे, हेतू।
हेऊ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–जावए, थावए, वंसए, लूसए।
अहवा–हेऊ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पच्चक्खे, अनुमाने, ओवम्मे, आगमे।
अहवा–हेऊ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थित्तं Translated Sutra: ज्ञात (दृष्टान्त) चार प्रकार के हैं। यथा – जिस दृष्टान्त से अव्यक्त अर्थ व्यक्त किया जाए। जिस दृष्टान्त से वस्तु के एकदेश का प्रतिपादन किया जाए। जिस दृष्टान्त से सदोष सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जाए। जिस दृष्टान्त से वादी द्वारा स्थापित सिद्धान्त का निराकरण किया जाए। अव्यक्त अर्थ को व्यक्त करने वाले दृष्टान्त | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Hindi | 432 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा–अगिलाए आयरिय-वेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए उवज्झायवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए थेरवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए तवस्सिवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गिलाणवेयावच्चं करेमाणे।
पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा– अगिलाए सेहवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए कुलवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गणवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए संघवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए साहम्मियवेयावच्चं करेमाणे।
पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे साहम्मियं संभोइयं विसंभोइयं करेमाणे नातिक्कमति, तं जहा–१. सकिरियट्ठाणं पडि Translated Sutra: पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ साम्भोगिक साधर्मिक को विसंभोगी करे तो जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। यथा – अकृत्य करने वाले को। अकृत्य करके आलोचना न करने वाले को। आलोचना करके प्रायश्चित्त न करने वाले को। प्रायश्चित्त लेकर भी आचरण न करने वाले को। ‘‘अरे ! ये स्थविर ही बार – बार अकृत्य का सेवन करते हैं | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Hindi | 585 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहे पट्ठे पन्नत्ते, तं जहा–संसयपट्ठे, वुग्गहपट्ठे, अनुजोगी, अनुलोमे, तहनाणे, अतहनाणे। Translated Sutra: प्रश्न छः प्रकार के हैं, यथा – संशय प्रश्न – संशय होने पर किया जाने वाला प्रश्न। मिथ्याभिनिवेश प्रश्न – परपक्ष को दूषित करने के लिए किया गया प्रश्न। अनुयोगी प्रश्न – व्याख्या करने के लिए ग्रन्थकार द्वारा किया गया प्रश्न। अनुलोभ प्रश्न – कुशलप्रश्न। तथाज्ञानप्रश्न – गणधर गौतम के प्रश्न। अतथाज्ञान प्रश्न | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 672 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अध भंते! अदसि-कुसुम्भ-कोद्दव-कंगु-रालग-वरट्ट-कोद्दूसग-सण-सरिसव-मूलगबीयाणं–एतेसि णं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त संवच्छराइं। तेण पर जोणी पमिलायति, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते। Translated Sutra: प्रश्न – हे भगवन् ! अलसी, कुसुभ, कोद्रव, कांग, रल, सण, सरसों और मूले के बीज। इन धान्यों को कोठे में, पाले में यावत् ढाँककर रखे तो उन धान्यों की योनि कितने काल तक सचित्त रहती है ? हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट – सात संवत्सर। पश्चात् योनि म्लान हो जाती है – यावत् योनि नष्ट हो जाती है। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Hindi | 685 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तविहे वयणविकप्पे पन्नत्ते, तं० आलावे, अनालावे, उल्लावे, अणुल्लावे, संलावे, पलावे, विप्पलावे। Translated Sutra: वचन विकल्प सात प्रकार के – आलाप – अल्प भाषण, अनालाप – कुत्सित आलाप, उल्लाप – प्रश्न – गर्भित वचन, अनुल्लाप – निन्दित वचन, संलाप – परस्पर भाषण करना, प्रलाप – निरर्थक वचन, विप्रलाप – विरुद्ध वचन। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 967 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दस दसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– कम्मविवागदसाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अनुत्तरोव-वाइयदसाओ, आयारदसाओ, पण्हावागरणदसाओ, बंधदसाओ, दोगिद्धिदसाओ, दीहदसाओ, संखेवियदसाओ।
कम्मविवागदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: दशा दस हैं, यथा – कर्मविपाक दशा, उपासक दशा, अंतकृद् दशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, आचार दशा, प्रश्नव्याकरण दशा, बंध दशा, दोगृद्धि दशा, दीर्घ दशा, संक्षेपित दशा। कर्म विपाक दशा के दश अध्ययन हैं, यथा – मृगापुत्र, गोत्रास, अण्ड, शकट, ब्राह्मण, नंदिसेण, नैरयिक, सौरिक, उदुंबर, सहसोदाह – अमरक, लिच्छवी कुमार। सूत्र – ९६७, ९६८ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 975 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयारदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– वीसं असमाहिट्ठाणा, एगवीसं सबला, तेत्तीसं आसायणाओ, अट्ठ विहा गणिसंपया, दस चित्तसमाहिट्ठाणा, एगारस उवासगपडिमाओ, बारस भिक्खुपडिमाओ, पज्जोसवणाकप्पो, तीसं मोहनिज्जट्ठाणा, आजाइट्ठाणं।
पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– उवमा, संखा, इसिभासियाइं, आयरिय-भासियाइं, महावीरभासिआइं, खोमगपसिणाइं, ‘कोमलपसिणाइं, अद्दागपसिणाइं’, अंगुट्ठपसिणाइं, बाहुपसिणाइं।
बंधदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– बंधे य मोक्खे य देवड्ढि, दसारमंडलेवि य। आयरियविप्पडिवत्ती, उवज्झायविप्पडिवत्ती, भावना, विमुत्ती, सातो, कम्मे।
दोगेद्धिदसाणं दस Translated Sutra: आचारदशा (दशा श्रुतस्कंध) के दस अध्ययन हैं, यथा – बीस असमाधि स्थान, इक्कीस शबल दोष, तैंतीस आशातना, आठ गणिसम्पदा, दस चित्त समाधि स्थान, ग्यारह श्रावक प्रतिमा, बारह भिक्षु प्रतिमा, पर्युषण कल्प, तीस मोहनीय स्थान, आजाति स्थान। प्रश्न व्याकरण दशा के दस अध्ययन हैं, यथा – उपमा, संख्या, ऋषिभाषित, आचार्य भाषित, महावीर भाषित, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-४ | Gujarati | 362 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पसप्पगा पन्नत्ता, तं जहा–अनुप्पण्णाणं भोगाणं उप्पाएत्ता एगे पसप्पए, पुव्वुप्पण्णाणं भोगाणं अविप्पओगेणं एगे पसप्पए, अनुप्पण्णाणं सोक्खाणं उप्पाइत्ता एगे पसप्पए, पुव्वुप्पण्णाणं सोक्खाणं अविप्पओगेणं एगे पसप्पए। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૬૨. ચાર પ્રસર્પકો કહ્યા છે – ૧. અનુત્પન્ન ભોગોને મેળવવા સંચરે છે, ૨. પૂર્વોત્પન્ન ભોગોને રક્ષણ કરવા સંચરે છે. ૩. અનુત્પન્ન સુખોને પામવા સંચરે છે અને ૪. પૂર્વોત્પન્ન સુખોના રક્ષણાર્થે સંચરે છે. સૂત્ર– ૩૬૩. નૈરયિકોને ચાર ભેદે આહાર છે – અંગારા જેવો, મુર્મુર જેવો, શીતલ અને હિમશીતલ. તિર્યંચયોનિકને ચતુર્વિધ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 432 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा–अगिलाए आयरिय-वेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए उवज्झायवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए थेरवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए तवस्सिवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गिलाणवेयावच्चं करेमाणे।
पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे महानिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा– अगिलाए सेहवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए कुलवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए गणवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए संघवेयावच्चं करेमाणे, अगिलाए साहम्मियवेयावच्चं करेमाणे।
पंचहिं ठाणेहिं समणे निग्गंथे साहम्मियं संभोइयं विसंभोइयं करेमाणे नातिक्कमति, तं जहा–१. सकिरियट्ठाणं पडि Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૩૨. પાંચ સ્થાનોમાં શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ, સાધર્મિક સાંભોગિકને વિસંભોગિક કરતો જિનાજ્ઞા ઉલ્લંઘતો નથી. (૧) પાપકાર્યને સેવનાર હોય, (૨) સેવીને આલોચના ન કરે, (૩) આલોચીને પ્રાયશ્ચિત્ત ન કરે, (૪) પ્રાયશ્ચિત્ત લઈને તેને પરિપૂર્ણ ન કરે. (૫) જે આ સ્થવિરોનો સ્થિતિ કલ્પ છે તેને ઉલ્લંઘી – ઉલ્લંઘીને વિરુદ્ધ વર્તન કરે, ત્યારે | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 584 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहे भोयणपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा–मणुन्ने, रसिए, पीणणिज्जे, ‘बिंहणिज्जे, मयणिज्जे, दप्पणिज्जे’।
छव्विहे विसपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा– डक्के, भुत्ते, निवतिते, मंसानुसारी, सोणितानुसारी, अट्ठि-मिंजानुसारी। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૮૪. ભોજન પરિણામ છ ભેદે છે – મનોજ્ઞ, રસિક, પ્રીણનીય, બૃંહણીય, મદનીય, દર્પણીય. વિષ પરિણામ છ ભેદે છે – દૃષ્ટ, ભુક્ત, નિપતિત, માંસાનુસારી, શોણિતાનુસારી, અસ્થિમજ્જાનુસારી. સૂત્ર– ૫૮૫. પ્રશ્ન છ ભેદે કહ્યા – સંશયપ્રશ્ન, વ્યુદ્ગ્રહપ્રશ્ન, અનુયોગી, અનુલોમ, તથાજ્ઞાન, અતથાજ્ઞાન. સૂત્ર– ૫૮૬. ચમરચંચા રાજધાની ઉત્કૃષ્ટથી | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 966 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दस ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं न जाणति न पासति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं, वातं, ‘अयं जिने भविस्सति वा न वा भविस्सति’, अयं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सति वा न वा करेस्सति।
एताणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली सव्वभावेणं जाणइ पासइ, तं जहा–धम्म-त्थिकायं अधम्मत्थिकायं आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं, वातं, अयं जिने भविस्सति वा न वा भविस्सति, अयं सव्वदुक्खाणमंतं करेस्सति वा न वा करेस्सति। Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૬૬. દશ સ્થાનોને છદ્મસ્થ સર્વભાવથી જાણતો – જોતો નથી. તે આ – ધર્માસ્તિકાય યાવત્ વાયુ, (૯) આ જિન થશે કે નહીં, (૧૦) આ સર્વ દુઃખોનો અંત કરશે કે નહીં. આ દશેને ઉત્પન્ન જ્ઞાનદર્શનધર અરિહંત યાવત્ (જાણે છે કે) આ સર્વે દુઃખોનો અંત કરશે કે નહીં. સૂત્ર– ૯૬૭. દશ દશાઓ કહી છે – કર્મવિપાકદશા, ઉપાસકદશા, અંતકૃત્ દશા, અનુત્તરોપપાતિકદશા, | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१८ |
Hindi | 122 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ता जंबुद्दीवे णं दीवे कतरे नक्खत्ते सव्वब्भंतरिल्लं चारं चरति? कतरे नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरति? कतरे नक्खत्ते सव्वुपरिल्लं चारं चरति? कतरे नक्खत्ते सव्वहिट्ठिल्लं चारं चरति?
ता अभीई नक्खत्ते सव्वब्भंतरिल्लं चारं चरति, मूले नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरइ, साती नक्खत्ते सव्वुपरिल्लं चारं चरति, भरणी नक्खत्ते सव्वहेट्ठिल्लं चारं चरति। Translated Sutra: जंबूद्वीप के मंडल में नक्षत्र के सम्बन्ध में प्रश्न – अभिजीत नक्षत्र जंबूद्वीप के सर्वाभ्यन्तर मंडल में गमन करता है, मूल नक्षत्र सर्वबाह्य मंडल में, स्वाति नक्षत्र सर्वोपरी मंडल में और भरणी नक्षत्र सर्वाधस्तन मंडल में गमन करते हैं। | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१० |
प्राभृत-प्राभृत-१२ | Gujarati | 56 | Sutra | Upang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कहं ते देवयाणं अज्झयणा आहिताति वदेज्जा? ता एतेसि णं अट्ठावीसाए नक्खत्ताणं अभिई नक्खत्ते किंदेवयाए पन्नत्ते? ता बम्हदेवयाए पन्नत्ते।
ता सवणे नक्खत्ते किंदेवयाए पन्नत्ते? ता विण्हुदेवयाए पन्नत्ते।
ता धनिट्ठा नक्खत्ते किंदेवयाए पन्नत्ते? ता वसुदेवयाए पन्नत्ते।
ता सतभिसया नक्खत्ते किंदेवयाए पन्नत्ते? ता वरुणदेवयाए पन्नत्ते।
ता पुव्वापोट्ठवया नक्खत्ते किंदेवयाए पन्नत्ते? ता अयदेवयाए पन्नत्ते।
ता उत्तरापोट्ठवया नक्खत्ते किंदेवयाए पन्नत्ते? ता अभिवड्ढिदेवयाए पन्नत्ते।
एवं सव्वेवि पुच्छिज्जंति–रेवती पुस्सदेवयाए, अस्सिणी अस्सदेवयाए, भरणी जमदेवयाए, Translated Sutra: નક્ષત્રોના સ્વામીદેવ કોણ છે ? આ અઠ્ઠાવીશ નક્ષત્રોમાં અભિજિત નક્ષત્રના દેવતા કોણ કહ્યા છે ? બ્રહ્મદેવતા કહેલ છે. શ્રવણ નક્ષત્રના દેવતા કોણ કહ્યા છે ? વિષ્ણુ દેવતા કહ્યા છે. ઘનિષ્ઠા નક્ષત્રના દેવતા કોણ કહ્યા છે ? વસુ દેવતા કહેલ છે. શતભિષજ નક્ષત્રના દેવતા કોણ કહ્યા છે ? વરુણદેવતા કહેલ છે. પૂર્વા પ્રૌષ્ઠપદાના કોણ | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१८ |
Gujarati | 123 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ता चंदविमाने णं किंसंठिते पन्नत्ते? ता अद्धकविट्ठगसंठाणसंठिते सव्वफलिहामए अब्भुग्गयमूसिय-पहसिए विविहमणिरयणभत्तिचित्ते जाव पडिरूवे।
एवं सूरविमाने गहविमाने नक्खत्तविमाने ताराविमाने।
ता चंदविमाने णं केवतियं आयाम-विक्खंभेणं, केवतियं परिक्खेवेणं, केवतियं बाहल्लेणं पन्नत्ते? ता छप्पन्नं एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसेसं परिरएणं, अट्ठवीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं पन्नत्ते।
ता सूरविमाने णं केवतियं आयाम-विक्खंभेणं पुच्छा। ता अडयालीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स आयाम-विक्खंभेणं, तं तिगुणं सविसं परिरएणं, चउव्वीसं एगट्ठिभागे जोयणस्स बाहल्लेणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૨૩. ચંદ્ર વિમાન કયા આકારે છે? તે અર્દ્ધ કપિત્થક સંસ્થાન સંસ્થિત, સર્વ સ્ફટિકમય, અભ્યુદ્ગત ઉસિત પ્રહસિત વિવિધ મણિ – રત્ન વડે આશ્ચર્ય ચકિત યાવત્ પ્રતિરૂપ છે. એ પ્રમાણે સૂર્ય વિમાન, ગ્રહવિમાન, નક્ષત્ર વિમાન, તારાવિમાન જાણવા. *** તે ચંદ્રવિમાન કેટલા આયામ – વિષ્કંભથી અને કેટલા પરિક્ષેપથી, કેટલા બાહલ્યથી | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१९ |
Gujarati | 129 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ता कति णं चंदिमसूरिया सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति आहितेति वएज्जा? तत्थ खलु इमाओ दुवालस पडिवत्तीओ पन्नत्ताओ।
तत्थेगे एवमाहंसु–ता एगे चंदे सूरे सव्वलोयं ओभासति उज्जोएति तवेति पभासेति–एगे एवमा-हंसु १
एगे पुण एवमाहंसु–ता तिन्नि चंदा तिन्नि सूरा सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति–एगे एवमाहंसु २
एगे पुण एवमाहंसु–ता आहुट्ठिं चंदा आहुट्ठिं सूरा सव्वलोयं ओभासंति उज्जोएंति तवेंति पभासेंति–एगे एवमाहंसु ३
एगे पुण एवमाहंसु–एतेणं अभिलावेणं नेतव्वं–सत्त चंदा सत्त सूरा ४
दस चंदा दस सूरा ५ बारस चंदा बारस सूरा ६ बातालीसं चंदा बातालीसं सूरा Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૨૯. સર્વલોકમાં કેટલા ચંદ્રો અને સૂર્યો અવભાસે છે, ઉદ્યોત કરે છે, તપે છે, પ્રભાસે છે, તેમ કહેલ છે? તે વિષયમાં આ બાર પ્રતિપત્તિઓ (અન્યતીર્થિકોની માન્યતા)કહેલી છે. તેમાં – ૧. એક એમ કહે છે – એક સૂર્ય, એક ચંદ્ર સર્વલોકને અવભાસે છે, ઉદ્યોત કરે છે, તપે છે, પ્રભાસે છે. ૨. એક એમ કહે છે – ત્રણ ચંદ્રો, ત્રણ સૂર્યો સર્વલોકને | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१९ |
Gujarati | 193 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ता पुक्खरवरं णं दीवं पुक्खरोदे नामं समुद्दे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति।
ता पुक्खरोदे णं समुद्दे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? ता पुक्खरोदे समचक्कवालसंठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते।
ता पुक्खरोदे णं समुद्दे केवतियं चक्कवालविक्खंभेणं केवतियं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा? ता संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं आहितेति वदेज्जा।
ता पुक्खरवरोदे णं समुद्दे केवतिया चंदा पभासेंसु वा पुच्छा तहेव। ता पुक्खरोदे णं समुद्दे संखेज्जा चंदा पभासेंसु वा जाव संखेज्जाओ तारागणकोडिकोडीओ Translated Sutra: તે પુષ્કરવર દ્વીપને પુષ્કરોદ નામક વૃત્ત, વલયાકાર સંસ્થાન સંસ્થિત સમુદ્ર ચોતરફથી ઘેરીને રહેલ છે. તે પુષ્કરોદ સમુદ્ર શું સમચક્રવાલ સંસ્થિત છે યાવત્ તે વિષમ ચક્રવાલ સંસ્થિત નથી. તે પુષ્કરોદ સમુદ્ર કેટલા ચક્રવાલ વિષ્કંભથી અને કેટલા પરિક્ષેપથી કહેલ છે, તેમ કહેવું? તે સંખ્યાત લાખ યોજન આયામ – વિષ્કંભથી અને સંખ્યાત | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१ समय |
उद्देशक-१ | Hindi | 1 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] बुज्झेज्ज तिउट्टेज्जा बंधणं परिजाणिया ।
किमाह बंधणं वीरे? किं वा जाणं तिउट्टइ? ॥ Translated Sutra: बोध प्राप्त करो। बन्धन को जानकर उसे तोड़ डालो। (प्रश्न) महावीर ने बंधन किसे कहा है ? किसे जान लेने से उसे तोड़ा जा सकता है ? | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-२ वैतालिक |
उद्देशक-२ | Hindi | 138 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] नो काहिए होज्ज संजए पासणिए न य संपसारए ।
नच्चा धम्मं अनुत्तरंकयकिरिए य न यावि मामए ॥ Translated Sutra: संयत – पुरुष कायिक, प्राश्निक और सम्प्रसारक न बने। अनुत्तर धर्म को जानकर कृत – कार्यों के प्रति ममत्व न करे। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-१ पुंडरीक |
Hindi | 646 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा–जे इमे तसा थावरा पाणा–ते सयं समारंभंति, अन्नेन वि समारंभावेंति, अन्नं पि समारंभंतं समणुजाणंति।
इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा–जे इमे कामभोगा सचित्ता वा अचित्ता वा–ते सयं परिगिण्हंति, अन्नेन वि परिगिण्हावेंति, अन्नं पि परिगिण्हंतं समणुजाणंति।
इह खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा, अहं खलु अणारंभे अपरिग्गहे। जे खलु गारत्था सारंभा सपरिग्गहा, संतेगइया समणा माहणा वि सारंभा सपरिग्गहा, एतेंसि चेव णिस्साए बंभचेरवासं Translated Sutra: इस लोक में गृहस्थ आरम्भ और परिग्रह से युक्त होते हैं, कईं श्रमण और ब्राह्मण भी आरम्भ और परिग्रह से युक्त होते हैं, वे गृहस्थ तथा श्रमण और ब्राह्मण इन त्रस और स्थावर प्राणियों का स्वयं आरम्भ करते हैं, दूसरे के द्वारा भी आरम्भ कराते हैं और आरम्भ करते हुए अन्य व्यक्ति को अच्छा मानते – अनुमोदन करते हैं। इस जगत में | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ प्रत्याख्यान |
Hindi | 702 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘नो इणट्ठे समट्ठे’–इह खलु बहवे पाणा, जे इमेणं सरीरसमुस्सएणं नो दिट्ठा वा सुया वा णाभिमया वा विण्णाया वा, जेसिं नो पत्तेयं-पत्तेयं ‘चित्तं समादाय’ दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढ-विओ-वाय-चित्तदंडे, तं जहा–‘पाणाइवाए जाव मिच्छादंसणसल्ले’। Translated Sutra: प्रेरक ने एक प्रतिप्रश्न उठाया – इस जगत में बहुत – से ऐसे प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व हैं, उनके शरीर के प्रमाण को न कभी देखा है, न ही सूना है, वे प्राणी न तो अपने अभिमत हैं, और न वे ज्ञात हैं। इस कारण ऐसे समस्त प्राणियों में से प्रत्येक प्राणी के प्रति हिंसामय चित्त रखते हुए दिन – रात, सोते या जागते उनका अमित्र (बना रहना, | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ प्रत्याख्यान |
Hindi | 703 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आचार्य आह–तत्थ खलु भगवया दुवे दिट्ठंता पण्णत्ता, तं जहा–सण्णिदिट्ठंते य असण्णिदिट्ठंते य।
से किं तं सण्णिदिट्ठंते?
सण्णिदिट्ठंते– जे इमे सण्णिपंचिंदिया पज्जत्तगा।एतेसि णं छज्जीवणिकाए पडुच्च, पइण्णं कुज्जा?
से एगइओ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं पुढविकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि। नो चेव णं से एवं भवइ–इमेन वा इमेन वा। से ‘य तेणं’ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। से य तओ पुढविकायाओ असंजय-अविरय-अप्पडिहयपच्चक्खाय-पावकम्मे यावि भवइ।
से एगइओ आउकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि। तस्स णं एवं भवइ–एवं खलु अहं आउकाएणं किच्चं Translated Sutra: आचार्य ने कहा – इस विषय में भगवान महावीर स्वामी ने दो दृष्टान्त कहे हैं, एक संज्ञिदृष्टान्त और दूसरा असंज्ञिदृष्टान्त। (प्रश्न – ) यह संज्ञी का दृष्टान्त क्या है ? (उत्तर – ) संज्ञी का दृष्टान्त इस प्रकार है – जो ये प्रत्यक्ष दृष्टि – गोचर संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीव हैं, इनमें पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-६ आर्द्रकीय |
Hindi | 752 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आगंतगारे आरामगारे समणे उ भीते न उवेइ वासं ।
दुक्खा हु संती बहवे मणुस्सा ऊनातिरित्ता य लवालवा य ॥ Translated Sutra: (गोशालक ने आर्द्रकमुनि से कहा – ) तुम्हारे श्रमण (महावीर) अत्यन्त भीरु हैं, इसीलिए पथिकागारों में तथा आरामगृहों में निवास नहीं करते, उक्त स्थानों में बहुत – से मनुष्य ठहरते हैं, जिनमें कोई कम या कोई अधिक वाचाल होता है, कोई मौनी होते हैं। कईं मेघावी, कईं शिक्षा प्राप्त, कईं बुद्धिमान औत्पात्तिकी आदि बुद्धियों | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-६ आर्द्रकीय |
Hindi | 754 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नाकामकिच्चा न य बालकिच्चा रायाभियोगेन कुओ भएणं? ।
वियागरेज्जा पसिणं न वा वि सकामकिच्चेणिह आरियाणं ॥ Translated Sutra: (आर्द्रक मुनि ने कहा) भगवान महावीर अकामकारी नहीं है और न ही वे बालकों की तरह कार्यकारी हैं। वे राजभय से भी धर्मोपदेश नहीं करते, फिर अन्य भय से करने की तो बात ही कहाँ ? भगवान प्रश्न का उत्तर देते हैं और नहीं भी देते। वे इस जगत में आर्य लोगों के लिए तथा अपने तीर्थंकर नामकर्म के क्षय के लिए धर्मोपदेश करते हैं। सर्वज्ञ | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 796 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्सिं च णं गिहपदेसंसि भगवं गोयमे विहरइ, भगवं च णं अहे आरामंसि।
अहे णं उदए पेढालपुत्ते भगवं पासावच्चिज्जे नियंठे मेदज्जे गोत्तेणं जेणेव भगवं गोयमे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भगवं गोयमं एवं वयासी–
आउसंतो! गोयमा! अत्थि खलु मे केइ पदेसे पुच्छियव्वे, तं च मे आउसो! अहासुयं अहादरिसियमेव वियागरेहि।
सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–अवियाइ आउसो! सोच्चा निसम्म जाणिस्सामो।
सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी– Translated Sutra: उसी वनखण्ड के गृहप्रवेश में भगवान गौतम गणधर ने निवास किया। (एक दिन) भगवान गौतम उस वनखण्ड के अधोभाग में स्थित आराम में विराजमान थे। इसी अवसर में मेदार्यगोत्रीय एवं भगवान पार्श्वनाथ स्वामी का शिष्य – संतान निर्ग्रन्थ उदक पेढ़ालपुत्र जहाँ भगवान गौतम विराजमान थे, वहाँ उनके समीप आए। उन्होंने भगवान गौतमस्वामी | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Hindi | 802 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी–आउसंतो! गोयमा! नत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणो-वासगस्स ‘एगपाणाए वि दंडे निक्खित्ते’। कस्स णं तं हेउं?
संसारिया खलु पाणा–थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति। तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति। थावरकायाओ विप्पमुच्च-माणा सव्वे तसकायंसि उववज्जंति। तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जंति। तेसिं च णं थावरकायंसि उवव-ण्णाणं ठाणमेयं धत्तं।
सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–नो खलु आउसो! अस्माकं वत्तव्वएणं तुब्भं चेव अणुप्पवाएणं अत्थि णं से परियाए जे णं समणोवासगस्स सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं Translated Sutra: (पुनः) उदक पेढ़ालपुत्र ने वादपूर्वक भगवान गौतम स्वामी से इस प्रकार कहा – आयुष्मन् गौतम ! (मेरी समझ में) जीव की कोई भी पर्याय ऐसी नहीं है जिसे दण्ड न देकर श्रावक अपने एक भी प्राणी के प्राणातिपात से विरतिरूप प्रत्याख्यान को सफल कर सके ! उसका कारण क्या है ? (सूनिए) समस्त प्राणी परिवर्तनशील हैं, (इस कारण) कभी स्थावर प्राणी | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-२ वैतालिक |
उद्देशक-२ | Gujarati | 137 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] मा पेह पुरा पनामए अभिकंखे उवहिं धुणित्तए ।
जे ‘दूवन न ते हि’ नो नया ते जाणंति समाहिमाहियं ॥ Translated Sutra: પહેલાં ભોગવેલાં શબ્દાદિ વિષયોનું સ્મરણ ન કરવું જોઈએ, કર્મોને નીવારવાની ઇચ્છા રાખવી જોઈએ. મનને દૂષિત કરનાર શબ્દાદિ વિષયોમાં જે આસક્ત નથી, તે પુરુષ રાગ – દ્વેષ ત્યાગરુપ આત્મસમાધિને જાણે છે. સંયત પુરુષ ગૌચરી આદિને માટે જાય ત્યારે કથા – વાર્તા ન કરે, કોઈ પ્રશ્ન કરે તો નિમિત્ત આડી ન બતાવે, વૃષ્ટિ તથા ધનોપાર્જનના | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१४ ग्रंथ |
Gujarati | 596 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] निसम्म से भिक्खु समीहमट्ठं पडिभाणवं होति ‘विसारदे य’ ।
आदाणमट्ठी वोदाण-मोनं उवेच्च ‘सुद्धेन उवेइ मोक्खं’ ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૯૬. ગુરુકુળવાસી તે મુનિ, સાધુના આચારને સાંભળીને તથા મોક્ષરૂપ ઇષ્ટ અર્થને જાણીને પ્રતિભાવાન અને વિશારદ થઈ જાય છે, તે આદાનાર્થી મુનિ તપ અને સંયમ પામીને, શુદ્ધ નિર્વાહથી મોક્ષ મેળવે છે. ... સૂત્ર– ૫૯૭. ગુરુકુળવાસી સાધુ સમ્યક્ પ્રકારે ધર્મ જાણીને તેની પ્રરૂપણા કરે છે, તે જ્ઞાની કર્મોનો અંત કરે છે, તે પૂછેલા | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Gujarati | 795 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं लेवस्स गाहावइस्स नालंदाए बाहिरियाए उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं सेसदविया नाम उदगसाला होत्था–अणेगखंभसयसण्णिविट्ठा पासादीया दरिसनिया अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं सेसदवियाए उदगसालाए उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं हत्थिजामे नामं वनसंडे होत्था–किण्हे वण्णओ वणसंडस्स। Translated Sutra: તે લેપ ગાથાપતિને નાલંદા બાહિરિકાના ઇશાન ખૂણામાં શેષદ્રવ્યા નામક ઉદકશાળા હતી. તે અનેક શત સ્તંભો પર રહેલી હતી. પ્રાસાદીય યાવત્ પ્રતિરૂપ હતી. તે શેષદ્રવ્યા ઉદકશાળાના ઇશાન ખૂણામાં હસ્તિયામ નામે એક વનખંડ હતું. તે વનખંડ કૃષ્ણવર્ણીય હતું. તે વનખંડના ગૃહપ્રવેશમાં ભગવંત ગૌતમ વિચરતા હતા. તેઓ ત્યાં નીચે બગીચામાં | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-७ नालंदीय |
Gujarati | 802 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सवायं उदए पेढालपुत्ते भगवं गोयमं एवं वयासी–आउसंतो! गोयमा! नत्थि णं से केइ परियाए जंसि समणो-वासगस्स ‘एगपाणाए वि दंडे निक्खित्ते’। कस्स णं तं हेउं?
संसारिया खलु पाणा–थावरा वि पाणा तसत्ताए पच्चायंति। तसा वि पाणा थावरत्ताए पच्चायंति। थावरकायाओ विप्पमुच्च-माणा सव्वे तसकायंसि उववज्जंति। तसकायाओ विप्पमुच्चमाणा सव्वे थावरकायंसि उववज्जंति। तेसिं च णं थावरकायंसि उवव-ण्णाणं ठाणमेयं धत्तं।
सवायं भगवं गोयमे उदयं पेढालपुत्तं एवं वयासी–नो खलु आउसो! अस्माकं वत्तव्वएणं तुब्भं चेव अणुप्पवाएणं अत्थि णं से परियाए जे णं समणोवासगस्स सव्वपाणेहिं सव्वभूएहिं सव्वजीवेहिं Translated Sutra: ઉદક પેઢાલપુત્રએ વાદ સહિત ભગવાન ગૌતમને આ પ્રમાણે કહ્યું – હે આયુષ્યમાન્ ગૌતમ ! આવો એક પણ પર્યાય નથી કે જેને ન મારીને શ્રાવક એક જીવની પણ હિંસા વિરતિ રાખી શકે. તેનું શું કારણ છે ? પ્રાણીઓ સંસરણ – શીલ છે. સ્થાવર પ્રાણી ત્રસપણે ઉપજે છે, ત્રસ પ્રાણી પણ સ્થાવરપણે ઉપજે છે. સ્થાવરકાય છોડીને બધા ત્રસકાયમાં ઉપજે છે, ત્રસકાયપણુ | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-८ वीर्य |
Gujarati | 411 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दुहा वेयं सुयक्खायं वीरियं ति पवुच्चई ।
किण्ण वीरस्स वीरितं? ‘केन वीरो त्ति वुच्चति’? ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૧૧. તીર્થંકરે વીર્ય બે પ્રકારે કહેલું છે. અહી શિષ્ય પ્રશ્ન કરે છે કે – વીરપુરુષનું વીરત્વ શું છે ? તેને વીર શા માટે કહે છે ?. ... સૂત્ર– ૪૧૨. શિષ્યને ઉત્તર આપતા કહે છે કે – હે સુવ્રતો ! કોઈ કર્મને વીર્ય કહે છે, કોઈ અકર્મને વીર્ય કહે છે. મર્ત્યલોકના માનવીઓ આ બે ભેદમાં જ સમાવેશ પામે છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૧૧, ૪૧૨ | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-९ धर्म |
Gujarati | 437 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कयरे धम्मे अक्खाए माहणेन मईमता? ।
अंजुं धम्मं जहातच्चं ‘जिनाणं तं सुणेह मे’ ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૩૭. શિષ્ય પ્રશ્ન કરે છે – મતિમાન ભગવંતે કેવા ધર્મનું કથન કરેલ છે ? તેનો ઉત્તર આપતા કહે છે – જિનવરોએ મને સરળ ધર્મ કહ્યો છે. તે ધર્મને તમે મારી પાસેથી સાંભળો – સૂત્ર– ૪૩૮. બ્રાહ્મણ, ક્ષત્રિય, વૈશ્ય, ચંડાલ, બુક્કસ, ઐષિક અર્થાત હસ્તિતાપસ કે કંદ અને મૂળ ખાનારા, વૈષિક અર્થાત માયા પ્રધાન કે શુદ્ર કે જે કોઈ આરંભમાં | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-९ धर्म |
Gujarati | 450 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उद्देसियं कीयगडं पामिच्चं चेव आहडं ।
‘पूतिं अणेसणिज्जं’ च तं विज्जं! परिजाणिया ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૫૦. સાધુને ઉદ્દેશી બનાવેલ, સાધુ માટે ખરીદેલ કે ઉધાર લાવેલ, સામે લાવેલ, પૂતિનિર્મિત,અનેષણીય કે કોઇપણ રીતે દોષિત આહારને જાણીને મુની તેનો ત્યાગ કરે. સૂત્ર– ૪૫૧. શક્તિવર્ધક ઔષધ આદિ, આંખોનું આંજણ, શબ્દાદિ વિષયોમાં આસક્તિ, પ્રાણી ઉપઘાત્ક કર્મ, હાથ – પગ ધોવા અને માલીશ – ક્રીમ વગેરે લગાડવા આદિને સંસારનું કારણ | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ प्रत्याख्यान |
Gujarati | 701 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ चोयए पण्णवगं एवं वयासी–असंतएणं मणेणं पावएणं, असंतियाए वईए पावियाए, असंतएणं काएणं पावएणं, अहणंतस्स अमणक्खस्स अवियार-मण-वयण-काय-वक्कस्स सुविणमवि अपस्सओ पावे कम्मेनो कज्जइ। कस्स णं तं हेउं?
चोयए एवं ब्रवीति–अन्नयरेणं मणेणं पावएणं मणवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, अन्नयरीए वईए पावियाए वइवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, अन्नयरेणं काएणं पावएणं कायवत्तिए पावे कम्मे कज्जइ, हणंतस्स समणक्खस्स सवियार-मण-वयण-काय-वक्कस्स सुवि-णमवि पासओ–एवंगुणजातीयस्स पावे कम्मे कज्जइ।
पुणरवि चोयए एवं ब्रवीति–तत्थणं जेते एवमाहंसु–असंतएणं मणेणं पावएणं, असंतियाए वईए पावियाए, असंतएणं काएणं Translated Sutra: આ વિષયમાં પ્રેરકે પ્રરૂપકને આમ કહ્યું – પાપયુક્ત મન, પાપયુક્ત વચન, પાપયુક્ત કાયા ન હોય અને જે પ્રાણીઓને ન હણે, હિંસાના વિચારરહિત મન, વચન, કાયા અને વાક્ય બોલવામાં પણ હિંસાથી રહિત છે, જે પાપકર્મ કરવાનું સ્વપ્ને પણ વિચારતું નથી. એવા જીવને પાપકર્મનો બંધ થતો નથી. પ્રરૂપકે તેને પૂછ્યું – તેને પાપકર્મ બંધ કેમ ન થાય? પ્રેરક | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ प्रत्याख्यान |
Gujarati | 702 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ‘नो इणट्ठे समट्ठे’–इह खलु बहवे पाणा, जे इमेणं सरीरसमुस्सएणं नो दिट्ठा वा सुया वा णाभिमया वा विण्णाया वा, जेसिं नो पत्तेयं-पत्तेयं ‘चित्तं समादाय’ दिया वा राओ वा सुत्ते वा जागरमाणे वा अमित्तभूए मिच्छासंठिए निच्चं पसढ-विओ-वाय-चित्तदंडे, तं जहा–‘पाणाइवाए जाव मिच्छादंसणसल्ले’। Translated Sutra: પ્રશ્નકર્તા (પ્રેરક) કહે છે – આ અર્થ બરાબર નથી. આ જગતમાં એવા ઘણા પ્રાણી છે, તેમના શરીરનું પ્રમાણ કદી જોયું કે સાંભળેલુ ન હોય. તે જીવો આપણને ઇષ્ટ કે જ્ઞાત ન હોય. તેથી આવા પ્રાણી પ્રત્યે હિંસામય ચિત્ત રાખી દિન – રાત, સૂતા – જાગતા અમિત્ર થઈ, મિથ્યાત્વ સ્થિત રહી, નિત્ય પ્રશઠ વ્યતિપાત ચિત્તદંડ – પ્રાણાતિપાતાદિ કઈ રીતે | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-४ प्रत्याख्यान |
Gujarati | 704 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चोयगः–से किं कुव्वं? किं कारवं? कहं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकम्मे भवइ?
आचार्य आह–तत्थ खलु भगवया छज्जीवणिकायाहेऊ पण्णत्ता, तं जहा–पुढवीकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया वणस्सइकाइया तसकाइया। से जहानामए मम अस्सातं दंडेन वा अट्ठीन वा मुट्ठीन वा लेलुणा वा कवालेन वा आतोडिज्जमा-णस्स वा हम्ममाणस्स वा तज्जिज्जमाणस्स वा ताडिज्जमाणस्स वा परिताविज्जमाणस्स वा किलामिज्जमाणस्स वा उद्दविज्जमाणस्स वा जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि–इच्चेवं जाण।
सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता दंडेन वा अट्ठीन वा मुट्ठीन वा लेलुणा वा कवालेण Translated Sutra: પ્રેરક (પ્રશ્નકર્તા) કહે છે – મનુષ્ય શું કરતા – કરાવતા સંયત, વિરત, પાપકર્મનો પ્રતિઘાત અને પ્રત્યાખ્યાન કરનારા થાય છે ? આચાર્યએ કહ્યું કે – તે માટે ભગવંતે પૃથ્વીકાયથી ત્રસકાય પર્યન્ત છ જીવનિકાયને કારણરૂપ કહ્યા છે. જેમ કોઈ વ્યક્તિ દ્વારા દંડ – અસ્થિ – મુષ્ટિ – ઢેફા – ઠીકરા આદિથી મને કોઈ તાડન કરે યાવત્ પીડિત | |||||||||
Sutrakrutang | સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-६ आर्द्रकीय |
Gujarati | 752 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आगंतगारे आरामगारे समणे उ भीते न उवेइ वासं ।
दुक्खा हु संती बहवे मणुस्सा ऊनातिरित्ता य लवालवा य ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૫૨. ગોશાલકે કહ્યું – તમારા શ્રમણ ડરપોક છે, તેથી પથિકગૃહ, આરામગૃહમાં વસતા નથી. ત્યાં ઘણા મનુષ્યો ન્યૂનાધિક વાચાળ કે મૌની હોય છે. ... સૂત્ર– ૭૫૩. કોઈ મેઘાવી, શિક્ષિત, બુદ્ધિમાન, સૂત્ર – અર્થ વડે નિશ્ચયજ્ઞ હોય છે, તેઓ મને કંઈ પૂછશે એવી શંકાથી ત્યાં જતા નથી. ... સૂત્ર– ૭૫૪. આર્દ્રકમુનિએ કહ્યું – તેઓ અકામકારી નથી | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 10 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं–दुवालसविहं सावयधम्मं पडिवज्जति, पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–नो खलु मे भंते! कप्पइ अज्जप्पभिइं अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिय-देवयाणि वा अन्नउत्थिय-परिग्गहियाणि वा अरहंतचेइयाइं वंदित्तए वा नमंसित्तए वा, पुव्विं अणालत्तेणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा, तेसिं असणं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पदाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तिकंतारेणं।
कप्पइ मे समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं Translated Sutra: फिर आनन्द गाथापति ने श्रमण भगवान महावीर के पास पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रतरूप बारह प्रकार का श्रावक – धर्म स्वीकार किया। भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार कर वह भगवान से यों बोला – भगवन् आज से अन्य यूथिक – उनके देव, उन द्वारा परिगृहीत – चैत्य – उन्हें वन्दना करना, नमस्कार करना, उनके पहले बोले बिना उनसे | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कामदेव |
Hindi | 27 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कामदेवाइ! समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी–से नूनं कामदेवा! तुब्भं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसि-कुसुमप्पगासं खुरधारं, असिं गहाय तुमं एवं वयासी–हंभो! कामदेवा! समणोवासया! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवानुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने कामदेव से कहा – कामदेव ! आधी रात के समय एक देव तुम्हारे सामने प्रकट हुआ था। उस देव ने एक विकराल पिशाच का रूप धारण किया। वैसा कर, अत्यन्त क्रुद्ध हो, उसने तलवार नीकालकर तुमसे कहा – कामदेव ! यदि तुम अपने शील आदि व्रत भग्न नहीं करोगे तो जीवन से पृथक् कर दिए जाओगे। उस देव द्वारा यों कहे जाने पर | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३ चुलनीपिता |
Hindi | 29 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया।
तत्थ णं वाणारसीए नयरीए चुलनीपिता नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए।
तस्स णं चुलणीपियस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्सि-एणं वएणं होत्था।
से णं चुलनीपिता गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे सयस्स Translated Sutra: उपोद्घातपूर्वक तृतीय अध्ययन का प्रारम्भ यों है – जम्बू ! उस काल – उस समय, वाराणसी नगरी थी। कोष्ठक नामक चैत्य था, राजा जितशत्रु था। वाराणसी नगरी में चुलनीपिता नामक गाथापति था। वह अत्यन्त समृद्ध एवं प्रभावशाली था। उसकी पत्नी का नाम श्यामा था। आठ करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में, आठ करोड़ स्वर्ण | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ कुंडकोलिक |
Hindi | 39 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कुंडकोलियाइ! समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी–से नूणं कुंडकोलिया! कल्लं तुब्भं पच्चावरण्हकालसमयंसि असोगवणियाए एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था।
तए णं से देवे नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्ख-पडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए तुमं एवं वयासी–हंभो! कुंडकोलिया! समणोवासया! सुंदरी णं देवानुप्पिया! गोसालस्स मंखलिपु-त्तस्स धम्मपन्नत्ती–नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नत्ती–अत्थि उट्ठाणे इ Translated Sutra: भगवान महावीर ने श्रमणोपासक कुंडकोलिक से कहा – कुंडकोलिक ! कल दोपहर के समय अशोक – वाटिका में एक देव तुम्हारे समक्ष प्रकट हुआ। वह तुम्हारी नामांकित अंगूठी और दुपट्टा लेकर आकाश में चला गया। यावत् हे कुंडकोलिक ! क्या यह ठीक है ? भगवन् ! ऐसा ही हुआ। तब भगवान ने जैसा कामदेव से कहा था, उसी प्रकार उससे कहा – कुंडकोलिक | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Gujarati | 10 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं–दुवालसविहं सावयधम्मं पडिवज्जति, पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–नो खलु मे भंते! कप्पइ अज्जप्पभिइं अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिय-देवयाणि वा अन्नउत्थिय-परिग्गहियाणि वा अरहंतचेइयाइं वंदित्तए वा नमंसित्तए वा, पुव्विं अणालत्तेणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा, तेसिं असणं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पदाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तिकंतारेणं।
कप्पइ मे समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं Translated Sutra: ત્યારપછી આનંદ ગાથાપતિએ ભગવંત મહાવીર પાસે પાંચ અણુવ્રત, સાત શિક્ષાવ્રતાદિ બાર ભેદે શ્રાવક ધર્મ સ્વીકારીને ભગવંતને વાંદી – નમીને, તેમને કહ્યું – ભગવન્ ! આજથી મારે અન્યતીર્થિક, અન્યતીર્થિકદેવ, અન્યતીર્થિક પરિગૃહીત અરહંત ચૈત્યને વાંદવુ – નમવું ન કલ્પે. તેઓના બોલાવ્યા સિવાય તેઓની સાથે આલાપ – સંલાપ કરવો ન કલ્પે, | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कामदेव |
Gujarati | 27 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कामदेवाइ! समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी–से नूनं कामदेवा! तुब्भं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसि-कुसुमप्पगासं खुरधारं, असिं गहाय तुमं एवं वयासी–हंभो! कामदेवा! समणोवासया! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवानुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे Translated Sutra: કામદેવને આમંત્રીને શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે કામદેવ શ્રાવકને આમ કહ્યું – હે કામદેવ ! મધ્યરાત્રિ સમયે તારી પાસે એક દેવ આવ્યો, તે દેવે એક મોટા દિવ્ય પિશાચરૂપને વિકુર્વ્યુ યાવત્ તને એમ કહ્યું કે – ઓ કામદેવ ! જો તું આ ધર્મપ્રજ્ઞપ્તિ નહી છોડે તો તું જીવિતથી રહિત થઈ જઈશ, ત્યારે તું નિર્ભય થઈ યાવત્ વિચર્યો. આ પ્રમાણે | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ कुंडकोलिक |
Gujarati | 39 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कुंडकोलियाइ! समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी–से नूणं कुंडकोलिया! कल्लं तुब्भं पच्चावरण्हकालसमयंसि असोगवणियाए एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था।
तए णं से देवे नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्ख-पडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए तुमं एवं वयासी–हंभो! कुंडकोलिया! समणोवासया! सुंदरी णं देवानुप्पिया! गोसालस्स मंखलिपु-त्तस्स धम्मपन्नत्ती–नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नत्ती–अत्थि उट्ठाणे इ Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૯. ભગવંત મહાવીરે કુંડકોલિક શ્રાવકને કહ્યું – હે કુંડકોલિક ! કાલે મધ્યાહ્ને અશોકવાટિકામાં એક દેવ તારી પાસે આવ્યો ઇત્યાદિ૦ શું આ અર્થ યોગ્ય છે ? હા, ભગવંત તે યોગ્ય છે. હે કુંડકોલિક! તું ધન્ય છે, આદિ કામદેવવત્ કહેવું. ભગવંતે સાધુ – સાધ્વીને આમંત્રીને કહ્યું – હે આર્યો ! જો ઘરમધ્યે વસતો ગૃહસ્થ અર્થ, હેતુ, | |||||||||
Upasakdashang | ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ सद्दालपुत्र |
Gujarati | 41 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरं नामं नयरं। सहस्संबवणं उज्जाणं। जियसत्तू राया।
तत्थ णं पोलासपुरे नयरे सद्दालपुत्ते नामं कुंभकारे आजीविओवासए परिवसइ। आजीविय-समयंसि लद्धट्ठे गहियट्ठे पुच्छियट्ठे विणिच्छियट्ठे अभिगयट्ठे अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ते। अयमाउसो! आजीवियसमए अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठेत्ति आजी-वियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का Translated Sutra: છટ્ઠા અધ્યયનનો ઉપોદ્ઘાત પહેલા અધ્યયન માફક કહેવો. પોલાસપુર નામે નગર હતું, સહસ્રામ્રવન ઉદ્યાન હતું, ત્યાં જિતશત્રુ રાજા હતો. તે પોલાસપુર નગરમાં સદ્દાલપુત્ર નામે કુંભાર આજીવિકોપાસક(ગોશાલક મતનો અનુયાયી) રહેતો હતો. તે આજીવિક સિદ્ધાંતમાં લબ્ધાર્થ(શ્રવણ આદિ દ્વારા યથાર્થ તત્ત્વને પ્રાપ્ત કરેલ) , ગૃહીતાર્થ(તે | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Hindi | 590 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पडिक्कमामि पसिणाणं परमंतेहिं वा पुणो ।
अहो उट्ठिए अहोरायं इइ विज्जा तवं चरे ॥ Translated Sutra: मैं शुभाशुभसूचक प्रश्नो से और गृहस्थों की मन्त्रणाओं से दूर रहता हूँ। अहो ! मैं दिन – रात धर्माचरण के लिए उद्यत रहता हूँ। यह जानकर तुम भी तप का आचरण करो।जो तुम मुझे सम्यक् शुद्ध चित्त से काल के विषय में पूछ रहे हो, उसे सर्वज्ञ ने प्रकट किया है। अतः वह ज्ञान जिनशासन में विद्यमान है। सूत्र – ५९०, ५९१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Hindi | 768 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तं सि नाहो अनाहाणं सव्वभूयाण संजया! ।
खामेमि ते महाभाग! इच्छामि अनुसासिउं ॥ Translated Sutra: हे संयत ! तुम अनाथों के नाथ हो, सब जीवों के नाथ हो। मैं तुमसे क्षमा चाहता हूँ। मैं तुम से अनुशासित होने की इच्छा रखता हूँ। मैंने तुमसे प्रश्न कर जो ध्यान में विघ्न किया और भोगों के लिए निमन्त्रण दिया, उन सब के लिए मुझे क्षमा करें।’’ सूत्र – ७६८, ७६९ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१८ संजयीय |
Gujarati | 590 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पडिक्कमामि पसिणाणं परमंतेहिं वा पुणो ।
अहो उट्ठिए अहोरायं इइ विज्जा तवं चरे ॥ Translated Sutra: હું શુભાશુભસૂચક પ્રશ્નોથી અને ગૃહસ્થોની મંત્રણાથી દૂર રહું છું. દિવસરાત ધર્માચરણમાં ઉદ્યત રહુ છું. આ જાણીને તમે પણ તપ આચરણ કરો. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Gujarati | 766 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तुट्ठो य सेणिओ राया इणमुदाहु कयंजली ।
अनाहत्तं जहाभूयं सुट्ठु मे उवदंसियं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૬૬. રાજા શ્રેણિક સંતુષ્ટ થયો અને હાથ જોડીને બોલ્યો – ભગવન્ ! અનાથનું યથાર્થ સ્વરૂપ આપે મને સારી રીતે સમજાવ્યું. સૂત્ર– ૭૬૭. હે મહર્ષિ ! તમારો મનુષ્ય જન્મ સફળ છે, ઉપલબ્ધિઓ સફળ છે. તમે સનાથ અને સબાંધવ છો, કેમ કે તમે જિનેશ્વરના માર્ગે સ્થિત છો. સૂત્ર– ૭૬૮. હે સંયત ! તમે અનાથોના નાથ છો, બધા જીવોના નાથ છો. હે મહાભાગ |