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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 990 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अचरिमे णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगइए एवं जहेव पढमोद्देसए, पढम-बितिया भंगा भाणियव्वा सव्वत्थ जाव पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं।
अचरिमे णं भंते! मनुस्से पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ।
सलेस्से णं भंते! अचरिमे मनुस्से पावं कम्मं किं बंधी? एवं चेव तिन्नि भंगा चरमविहूणा भाणियव्वा एवं जहेव पढमुद्देसे, नवरं–जेसु तत्थ वीससु चत्तारि भंगा तेसु इह आदिल्ला तिन्नि भंगा भाणियव्वा चरिमभंगवज्जा। अलेस्से केवल-नाणी य अजोगी य–एए तिन्नि वि न पुच्छिज्जंति, Translated Sutra: भगवन् ! अचरम नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी ने पापकर्म बाँधा था, इत्यादि प्रथम उद्देशक समान सर्वत्र प्रथम और द्वीतिय भंग पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! क्या अचरम मनुष्य ने पापकर्म बाँधा था ? किसी मनुष्य ने बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा, किसी ने बाँधा था, बाँधता है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२७ जीव आदि जाव |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 991 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! पावं कम्मं किं करिंसु करेति करिस्सति? करिंसु करेति न करेस्सति? करिंसु न करेति करिस्सति? करिंसु न करेति न करेस्सति?
गोयमा! अत्थेगतिए करिंसु न करेति करिस्सति, अत्थेगतिए करिंसु करेति न करेस्सति, अत्थेगतिए करिंसु न करेति करेस्सति अत्थेगतिए करिंसु न करेति न करेस्सति।
सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं? एवं एएणं अभिलावेणं जच्चेव बंधिसए वत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भाणियव्वा, तहेव नवदंडगसंगहिया एक्कारस उद्देसगा भाणियव्वा। Translated Sutra: भगवन् ! क्या जीव ने पापकर्म किया था, करता है और करेगा ? अथवा किया था, करता है और नहीं करेगा? या किया था, नहीं करता और करेगा ? अथवा किया था, नहीं करता और नहीं करेगा ? गौतम ! किसी जीव ने पापकर्म किया था, करता है और करेगा। किसी जीव ने किया था, करता है और नहीं करेगा। किसी जीव ने किया था, नहीं करता है और करेगा। किसी जीव ने किया | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२८ जीव आदि जाव |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 992 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु?
गोयमा! १. सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा २. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य होज्जा ३. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ४. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य देवेसु य होज्जा ५. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य होज्जा ६. अहवा तिरिक्ख-जोणिएसु य नेरइएसु य देवेसु य होज्जा ७. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा ८. अहवा तिरिक्खजोणिएसु य नेरइएसु य मनुस्सेसु य देवेसु य होज्जा।
सलेस्सा णं भंते! जीवा पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु? एवं चेव। एवं कण्हलेस्सा जाव अलेस्सा। कण्हपक्खिया, Translated Sutra: भगवन् ! जीवों ने किस गति में पापकर्म का समर्जन किया था और किस गति में आचरण किया था ? गौतम! सभी जीव तिर्यंचयोनिकों में थे अथवा तिर्यंचयोनिकों और नैरयिकों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों और मनुष्यों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों और देवों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, नैरयिकों और मनुष्यों में थे, अथवा तिर्यंचयोनिकों, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२८ जीव आदि जाव |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 993 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया पावं कम्मं कहिं समज्जिणिंसु? कहिं समायरिंसु?
गोयमा! सव्वे वि ताव तिरिक्खजोणिएसु होज्जा, एवं एत्थ वि अट्ठ भंगा। एवं अनंतरोववन्नगाणं नेरइयाईणं जस्स जं अत्थि लेसादीयं अनागारोवओगपज्जवसाणं तं सव्वं एयाए भयणाए भाणियव्वं जाव वेमाणियाणं, नवरं–अनंतरेसु जे परिहरियव्वा ते जहा बंधिसए तहा इहं पि। एवं नाणावरणिज्जेण वि दंडओ। एवं जाव अंतराइएणं निरवसेसं। एसो वि नवदंडगसंगहिओ उद्देसओ भाणियव्वो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों ने किस गति में पापकर्मों का समार्जन किया था, कहाँ आचरण किया था। गौतम ! वे सभी तिर्यंचयोनिकों में थे, इत्यादि पूर्वोक्त आठों भंगों कहना। अनन्तरोपपन्नक नैरयिकों की अपेक्षा लेश्या आदि से लेकर यावत् अनाकारोपयोगपर्यन्त भंगों में से जिसमें जो भंग पाया जाता हो, वह सब विकल्प से वैमानिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२९ समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 995 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवा णं भंते! पावं कम्मं किं समायं पट्ठविंसु समाय निट्ठविंसु? समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु? विसमायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु? विसमायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु?
गोयमा! अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु जाव अत्थेगतिया विसमायं पट्ठविंसु विसमाय निट्ठविंसु।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु, तं चेव?
गोयमा! जीवा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अत्थेगतिया समाउया समोववन्नगा, अत्थेगतिया समाउया विसमोववन्नगा, अत्थे गतिया विसमाउया समोववन्नगा, अत्थेगतिया विसमाउया विसमोववन्नगा। तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा Translated Sutra: भगवन् ! जीव पापकर्म का वेदन एकसाथ प्रारम्भ करते हैं और एक साथ ही समाप्त करते हैं ? अथवा एक साथ प्रारम्भ करते हैं और भिन्न – भिन्न समय में समाप्त करते हैं ? या भिन्न – भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और एक साथ समाप्त करते हैं ? अथवा भिन्न – भिन्न समय में प्रारम्भ करते हैं और भिन्न – भिन्न समय में समाप्त करते हैं? गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२९ समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 996 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया पावं कम्मं किं समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु, अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अत्थेगतिया समायं पट्ठविंसु, तं चेव?
गोयमा! अनंतरोववन्नगा नेरइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–अत्थेगतिया समाउया समोववन्नगा, अत्थेगतिया समाउया विसमोववन्नगा। तत्थ णं जे ते समाउया समोववन्नगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्ठविंसु समायं निट्ठविंसु। तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववन्नगा ते णं पावं कम्मं समायं पट्ठविंसु विसमायं निट्ठविंसु। से तेणट्ठेणं तं Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनन्तरोपपन्नक नैरयिक एक काल में पापकर्म वेदन करते हैं तथा एक साथ ही उसका अन्त करते हैं ? गौतम ! कईं पापकर्म को एक साथ भोगते हैं ? एक साथ अन्त करते हैं तथा कितने ही एक साथ पापकर्म को भोगते हैं, किन्तु उसका अन्त विभिन्न समय में करते हैं। भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि कईं एक साथ भोगते हैं? इत्यादि प्रश्न। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३० समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 998 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! समोसरणा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि समोसरणा पन्नत्ता, तं० किरियावादी, अकिरियावादी, अन्नाणियवादी, वेणइयवादी
जीवा णं भंते! किं किरियावादी? अकिरियावादी? अन्नाणियवादी? वेणइयवादी?
गोयमा! जीवा किरियावादी वि, अकिरियावादी वि, अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।
सलेस्सा णं भंते! जीवा किं किरियावादी–पुच्छा।
गोयमा! किरियावादी वि, अकिरियावादी वि, अन्नाणियावादी वि, वेणइयवादी वि। एवं जाव सुक्कलेस्सा।
अलेस्सा णं भंते! जीवा–पुच्छा।
गोयमा! किरियावादी, नो अकिरियावादी, नो अन्नाणियवादी, नो वेणइयवादी।
कण्हपक्खिया णं भंते! जीवा किं किरियावादी–पुच्छा।
गोयमा! नो किरियावादी, Translated Sutra: भगवन् ! समवसरण कितने कहे हैं? गौतम! चार, यथा – क्रियावादी, अक्रियावादी, अज्ञानवादी, विनयवादी। भगवन् ! जीव क्रियावादी हैं, अक्रियावादी हैं, अज्ञानवादी हैं या विनयवादी हैं ? गौतम ! जीव क्रियावादी भी हैं, अक्रियावादी भी हैं, अज्ञानवादी भी हैं और विनयवादी भी हैं। भगवन् ! सलेश्य जीव क्रियावादी भी हैं? इत्यादि प्रश्न। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३० समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 999 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] किरियावादी णं भंते! नेरइया किं नेरइयाउयं–पुच्छा।
गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति, मनुस्साउयं पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति।
अकिरियावादी णं भंते! नेरइया–पुच्छा।
गोयमा! नो नेरइयाउयं, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मनुस्साउयं पि पकरेंति, नो देवाउयं पकरेंति। एवं अन्नाणियवादी वि, वेणइयवादी वि।
सलेस्सा णं भंते! नेरइया किरियावादी किं नेरइयाउयं? एवं सव्वे वि नेरइया जे किरियावादी जे मनुस्साउयं एगं पकरेंति, जे अकिरियावादी अन्नाणियवादी वेणइयवादी ते सव्वट्ठाणेसु वि नो नेरइयाउयं पकरेंति, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेंति, मनुस्साउयं पि पकरेंति, नो Translated Sutra: भगवन् ! क्या क्रियावादी नैरयिक जीव नैरयिकायुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नारक, तिर्यञ्च और देव का आयुष्य नहीं बाँधते, किन्तु मनुष्य का आयुष्य बाँधते हैं। भगवन् ! अक्रियावादी नैरयिक जीव नैरयिक का आयुष्य बाँधते हैं ? गौतम ! वे नैरयिक और देव का आयुष्य नहीं बाँधते, किन्तु तिर्यञ्च और मनुष्य का आयुष्य बाँधते हैं। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३० समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 1000 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोववन्नगा णं भंते! नेरइया किं किरियावादी–पुच्छा।
गोयमा! किरियावादी वि जाव वेणइयवादी वि।
सलेस्सा णं भंते! अनंतरोववन्नगा नेरइया किं किरियावादी? एवं चेव।
एवं जहेव पढमुद्देसे नेरइयाणं वत्तव्वया तहेव इह वि भाणियव्वा, नवरं–जं जं अत्थि अनंतरोववन्नगाणं नेरइयाणं तं तं भाणियव्वं। एवं सव्वजीवाणं जाव वेमाणियाणं, नवरं–अनंतरोववन्नगाणं जं जहिं अत्थि तं तहिं भाणियव्वं।
किरियावादी णं भंते! अनंतरोववन्नगा नेरइया किं नेरइयाउयं पकरेंति–पुच्छा।
गोयमा! नो नेरइयाउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजोणियाउयं, नो मनुस्साउयं, नो देवाउयं पकरेंति। एवं अकिरियावादी वि अन्नाणियवादी वि Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं ? गौतम ! वे क्रियावादी भी हैं, यावत् विनयवादी भी हैं। भगवन् ! क्या सलेश्य अनन्तरोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं ? गौतम ! पूर्ववत्। प्रथम उद्देशक में नैरयिकों की वक्तव्यता समान यहाँ भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि अनन्तरोपपन्न नैरयिकों में से जिसमें जो बोल सम्भव | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३० समवसरण लेश्यादि |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 1001 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परंपरोववन्नगा णं भंते! नेरइया किरियावादी? एवं जहेव ओहिओ उद्देसओ तहेव परंपरोववन्नएसु वि नेरइयादीओ तहेव निरवसेसं भाणियव्वं, तहेव तियदंडगसंगहिओ।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। Translated Sutra: भगवन् ! परम्परोपपन्नक नैरयिक क्रियावादी हैं ? इत्यादि। गौतम ! औघिक उद्देशकानुसार परम्परोप – पन्नक नैरयिक आदि (नारक से वैमानिक तक) हैं और उसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त समग्र उद्देशक तीन दण्डक सहित करना ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३१ युग्मं, नरक, उपपात आदि |
उद्देशक-१ | Hindi | 1003 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–कति णं भंते! खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे, तेयोए, दावरजुम्मे, कलियोगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–चत्तारि खुड्डा जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे?
गोयमा! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए सेत्तं खुड्डागकड-जुम्मे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे तिपज्जवसिए सेत्तं खुड्डागतेयोगे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे दुपज्जवसिए सेत्तं खुड्डगदावरजुम्मे। जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे एगपज्जवसिए सेत्तं खुड्डगाकलियोगे से तेणट्ठेणं जाव Translated Sutra: राजगृह नगर में गौतमस्वामी ने यावत् इस प्रकार पूछा – भगवन् ! क्षुद्रयुग्म कितने कहे हैं ? गौतम ! चार। यथा – कृतयुग्म, त्र्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज। भगवन् ! यह क्यों कहा जाता है कि क्षुद्रयुग्म चार हैं ? गौतम ! जिस राशि में से चार – चार का अपहार करते हुए अन्त में चार रहें, उसे क्षुद्रकृतयुग्म कहते हैं। जिस राशि | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३१ युग्मं, नरक, उपपात आदि |
उद्देशक-२ थी २८ | Hindi | 1004 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति?
एवं चेव जहा ओहियगमो जाव नो परप्पयोगेणं उववज्जंति, नवरं–उववाओ जहा वक्कंतीए धूमप्पभापुढविनेरइयाणं, सेसं तं चेव।
धूमप्पभापुढविकण्हलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं चेव निरवसेसं। एवं तमाए वि, अहेसत्तमाए वि, नवरं–उववाओ सव्वत्थ जहा वक्कंतीए।
कण्हलेस्सखुड्डागतेओगनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं चेव, नवरं–तिन्नि वा सत्त वा एक्कारस वा पन्नरस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा, सेसं तं चेव।
एवं जाव अहेसत्तमाए वि।
कण्हलेस्सखुड्डागदावरजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं चेव, नवरं–दो वा छ वा दस Translated Sutra: भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म – राशिप्रमाण कृष्णलेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औघिक – गम अनुसार समझना यावत् वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते। विशेष यह है कि धूमप्रभापृथ्वी के नैरयिकों का उपपात व्युत्क्रान्तिपद अनुसार कहना। शेष पूर्ववत् ! भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म – राशिप्रमाण | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३१ युग्मं, नरक, उपपात आदि |
उद्देशक-२ थी २८ | Hindi | 1005 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नीललेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं जहेव कण्हलेस्साखुड्डागकड-जुम्मा, नवरं–उववाओ जो वालुयप्पभाए, सेसं तं चेव। वालुयप्पभापुढविनीललेस्सखुड्डागकड-जुम्मनेरइया एवं चेव। एवं पंकप्पभाए वि, एवं धूमप्पभाए वि। एवं चउसु वि जुम्मेसु, नवरं–परिमाणं जाणियव्वं। परिमाणं जहा कण्हलेस्सउद्देसए। सेसं तहेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म – राशि – प्रमाण नीललेश्यी नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! कृष्ण – लेश्यी क्षुद्रकृतयुग्म नैरयिक के समान। किन्तु इनका उपपात बालुकाप्रभापृथ्वी के समान है। शेष पूर्ववत्। भगवन्! नीललेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म – राशिप्रमाण बालुकाप्रभापृथ्वी के नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३१ युग्मं, नरक, उपपात आदि |
उद्देशक-२ थी २८ | Hindi | 1006 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] काउलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं जहेव कण्हलेस्सखुड्डाग-कडजुम्ममनेरइया, नवरं–उववाओ जो रयणप्पभाए, सेसं तं चेव।
रयणप्पभापुढविकाउलेस्सखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति?
एवं चेव। एवं सक्करप्पभाए वि, एवं वालुयप्पभाए वि। एवं चउसु वि जुम्मेसु, नवरं–परिमाणं जाणियव्वं जहा कण्हलेस्स-उद्देसए, सेसं तं चेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! कापोतलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म – राशिप्रमित नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! कृष्णलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म – राशिप्रमाण नैरयिकों के समान जानना। विशेष यह है कि इनका उपपात रत्नप्रभा में होता है। शेष पूर्ववत्। भगवन् ! कापोतलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म – राशिप्रमाण रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३१ युग्मं, नरक, उपपात आदि |
उद्देशक-२ थी २८ | Hindi | 1007 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भवसिद्धीयखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो? एवं जहेव ओहिओ गमओ तहेव निरवसेसं जाव नो परप्पयोगेणं उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविभवसिद्धीयखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते!? एवं चेव निरवसेसं। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं भवसिद्धीयखुड्डागतेयोगनेरइया वि। एवं जाव कलियोगत्ति, नवरं–परिमाणं जाणियव्वं, परिमाणं पुव्वभणियं जहा पढमुद्देसए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म – राशिप्रमित भवसिद्धिक नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! औघिक गमक के समान जानना यावत् ये परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते। भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म – राशि – प्रमित भवसिद्धिक नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका समग्र कथन पूर्ववत् जानना। इसी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३१ युग्मं, नरक, उपपात आदि |
उद्देशक-२ थी २८ | Hindi | 1008 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हलेस्सभवसिद्धीयखुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं जहेव ओहिओ कण्हलेस्सद्देसओ तहेव निरवसेसं चउसु वि जुम्मेसु भाणियव्वो जाव–
अहेसत्तमपुढविकण्हलेस्सखुड्डागकलियोगनेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति? तहेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक क्षुद्रकृतयुग्म – प्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! औघिक कृष्णलेश्या उद्देशक समान जानना। चारों युग्मों में इसका कथन करना चाहिए। भगवन् ! अधः – सप्तमपृथ्वी के कृष्णलेश्यी क्षुद्रकल्योज – राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? पूर्ववत्। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३१ युग्मं, नरक, उपपात आदि |
उद्देशक-२ थी २८ | Hindi | 1015 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सुक्कपक्खिएहिं एवं चेव चत्तारि उद्देसगा भाणियव्वा जाव वालुयप्पभपुढविकाउलेस्ससुक्क-पक्खियखुड्डागकलिओग-नेरइया णं भंते! कओ उववज्जंति?
तहेव जाव नो परप्पयोगेणं उववज्जंति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। सव्वे वि एए अट्ठावीसं उद्देसगा। Translated Sutra: इसी प्रकार शुक्लपाक्षिक के भी लेश्या – सहित चार उद्देशक कहने चाहिए। यावत् भगवन् ! बालुकाप्रभा – पृथ्वी के कापोतलेश्या वाले शुक्लपाक्षिक क्षुद्रकल्योज – राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! पूर्ववत्। यावत् वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं होते। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ ये सब मिलाकर | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३२ नरकस्य उद्वर्तनं, उपपात लेश्या आदि |
उद्देशक-१ थी २८ | Hindi | 1016 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] खुड्डागकडजुम्मनेरइया णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति–किं नेरइएसु उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएसु उववज्जंति? उव्वट्टणा जहा वक्कंतीए।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवइया उव्वट्टंति?
गोयमा! चत्तारि वा अट्ठ वा बारस वा सोलस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उव्वट्टंति।
ते णं भंते! जीवा कहं उव्वट्टंति?
गोयमा! से जहानामए पवए, एवं तहेव। एवं सो चेव गमओ जाव आयप्पयोगेणं उव्वट्टंति, नो परप्पयोगेणं उव्वट्टंति।
रयणप्पभापुढविखुड्डागकडजुम्म? एवं रयणप्पभाए वि। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं खुड्डागतेयोग-खुड्डागदावरजुम्मखुड्डागकलियोगा, नवरं–परिमाणं जाणियव्वं, सेसं Translated Sutra: भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म – राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से उद्वर्तित होकर (मरकर) तुरन्त कहाँ जाते हैं और कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उद्वर्त्तन व्युत्क्रान्तिक पद अनुसार जानना। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उद्वर्त्तित होते हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 1018 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया।
पुढविक्काइया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविक्काइया य, बादरपुढविक्काइया य।
सुहुमपुढविक्काइया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तासुहुमपुढविक्काइया य, अप्पज्जत्तासुहुमपुढविक्काइया य।
बादरपुढविक्काइया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? एवं चेव। एवं आउक्काइया वि चउक्कएणं भेदेणं भाणियव्वा, एवं जाव वणस्सइकाइया।
अपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ Translated Sutra: भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पति – कायिक। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक। भगवन् ! सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – पर्याप्त | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 1019 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया।
अनंतरोववन्नगा णं भंते! पुढविक्काइया कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविक्काइया य, बादरपुढविक्काइया य। एवं दुपएणं भेदेणं जाव वणस्सइकाइया।
अनंतरोववन्नगसुहुमपुढविकाइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं।
अनंतरोववन्नगबादरपुढविक्काइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! अट्ठ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं Translated Sutra: भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! दो प्रकार के – सूक्ष्म अनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक और बादर अनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक। इसी प्रकार दो – दो भेद वनस्पतिकायिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ थी ११ | Hindi | 1020 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया एवं चउक्कओ भेदो जहा ओहिउद्देसए।
परंपरोववन्नगअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिउद्देसए तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव चोद्दस वेदेंति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – पृथ्वी – कायिक इत्यादि और औघिक उद्देशक के अनुसार इनके चार – चार भेद कहने चाहिए। भगवन् ! परम्परोपपन्नक – अपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही गई हैं ? गौतम ! से औघिक उद्देशक अनुसार यावत् चौदह | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1022 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया।
कण्हलेस्सा णं भंते! पुढविक्काइया कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविक्काइया य, बादरपुढविक्काइया य।
कण्हलेस्सा णं भंते! सुहुमपुढविक्काइया कतिविहा पन्नत्ता?
एवं एएणं अभिलावेणं चउक्कओ भेदो जहेव ओहि-उद्देसए।
कण्हलेस्सअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइयाणं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसए तहेव पन्नत्ताओ, तहेव बंधंति, तहेव वेदेंति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
कतिविहा णं भंते! अनंतरोववन्नगकण्हलेस्सएगिंदिया Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के यथा – पृथ्वी – कायिक यावत् वनस्पतिकायिक। भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा – सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक। भगवन् ! कृष्णलेश्यी सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितने | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1025 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया, भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति।
भवसिद्धीयअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइयाणं भंते! कति कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ?
एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमिल्लगं एगिंदियसयं तहेव भवसिद्धीयसयं पि भाणियव्वं। उद्देसगपरिवाडी तहेव जाव अचरिमो त्ति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! भवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक।इनके चार – चार भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त पूर्ववत् कहना। भगवन् ! भवसिद्धिक अपर्याप्त सूक्ष्म – पृथ्वीकायिक जीव के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम ! प्रथम एकेन्द्रियशतक के समान भव – सिद्धिकशतक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1026 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! कण्हलेस्सा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा भवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया।
कण्हलेस्सभवसिद्धीयपुढविक्काइया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमपुढविक्काइया य, बादरपुढविक्काइया य।
कण्हलेस्सभवसिद्धीयसुहुमपुढविक्काइया णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तमा य, अपज्जत्तमा य। एवं बादरा वि। एएणं अभिलावेणं तहेव चउक्कओ भेदो भाणियव्वो।
कण्हलेस्सभवसिद्धीयअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइयाणं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ पन्नत्ताओ? एवं एएणं Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक पृथ्वीकायिक कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा – सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक। भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक सूक्ष्म | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३३ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1029 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! अभवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा अभवसिद्धीया एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया। एवं जहेव भवसिद्धीयसतं भणियं, नवरं–नव उद्देसगा चरिमअचरिमउद्देसगवज्जं, सेसं तहेव। Translated Sutra: भगवन् ! अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वी – कायिक यावत् वनस्पतिकायिक। भवसिद्धिकशतक समान अभवसिद्धिकशतक भी कहना; किन्तु ‘चरम’ और ‘अचरम’ को छोड़कर शेष नौ उद्देशक कहने चाहिए। शेष पूर्ववत्। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1033 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया जाव वणस्सइकाइया। एवमेते चउक्कएणं भेदेणं भाणियव्वा जाव वणस्सइकाइया।
अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्ता-सुहुम-पुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! एगसमइएण वा दुसमइएण वा तिसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एगसमइएण वा दुसमइएण वा जाव उववज्जेज्जा?
एवं खलु गोयमा! मए सत्त सेढीओ Translated Sutra: भगवन् ! एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। इनके भी प्रत्येक के चार – चार भेद वनस्पतिकायिक – पर्यन्त कहने चाहिए। भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वदिशा के चरमान्त में मरणसमुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1034 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! कइसमइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–तिसमइएण वा चउसमइएण वा विग्गहेणं उववज्जेज्जा?
गोयमा! अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं अहेलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते समोहए, समोहणित्ता जे भविए उड्ढलोयखेत्तनालीए बाहिरिल्ले खेत्ते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए एयपयरंसि अणुसेढिं उववज्जित्तए, से Translated Sutra: भगवन् ! अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव अधोलोक क्षेत्र की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में मरण – समुद्घात करके ऊर्ध्वलोक की त्रसनाडी के बाहर के क्षेत्र में अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक – रूप से उत्पन्न होने योग्य है तो हे भगवन् ! वह कितने समय की विग्रहगति से उत्पन्न होता है ? गौतम ! तीन समय या चार समय की। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1035 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा अनंतरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया, दुयाभेदो जहा एगिंदियसएसु जाव बादरवणस्सइकाइया य।
कहि णं भंते! अनंतरोववन्नगाणं बादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु, तं जहा–रयणप्पभाए जहा ठाणपदे जाव दीवेसु समुद्देसु, एत्थ णं अनंतरोववन्नगाणं बादरपुढविकाइयाणं ठाणा पन्नत्ता, उववाएणं सव्वलोए, समुग्घाएणं सव्वलोए, सट्ठाणेणं लोगस्स असंखेज्जइभागे। अनंतरोववन्नगसुहुमपुढविक्काइया एगविहा अविसेसमणाणत्ता सव्वलोए परियावन्ना पन्नत्ता समणाउसो!
एवं एएणं कमेणं सव्वे Translated Sutra: भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक। फिर प्रत्येक के दो – दो भेद एकेन्द्रिय शतक के अनुसार वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक बादर पृथ्वीकायिक जीवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? गौतम ! वे स्वस्थान की अपेक्षा आठ पृथ्वीयों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1036 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिंदिया पन्नत्ता, तं जहा–पुढविक्काइया, भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति।
परंपरोववन्नगअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले चरिमंते समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तासुहुमपुढविकाइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमो उद्देसओ जाव लोगचरिमंतो त्ति।
कहि णं भंते! परंपरोववन्नगबादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु।
एवं एएणं अभिलावेणं जहा पढमे उद्देसए जाव Translated Sutra: भगवन् ! परम्परोपपन्नक एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के, यथा – पृथ्वीकायिक इत्यादि। उनके चार – चार भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त कहना। भगवन् ! परम्परोपपन्नक सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्व – चरमान्त में मरणसमुद्घात करके रत्नप्रभापृथ्वी के यावत् पश्चिम – चरमान्त | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1038 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा कण्हलेस्सा एगिंदिया पन्नत्ता, भेदो चउक्कओ जहा कण्हलेस्सएगिंदियसए जाव वणस्सइकाइयत्ति।
कण्हलेस्सअपज्जत्तासुहुमपुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरत्थिमिल्ले? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिउद्देसओ जाव लोगचरिमंते त्ति। सव्वत्थ कण्हलेस्सु चेव उववाएयव्वो।
कहिं णं भंते! कण्हलेस्सअपज्जत्ताबादरपुढविक्काइयाणं ठाणा पन्नत्ता? एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहिउद्देसओ जाव तुल्लट्ठिइय त्ति।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमं सेढिसयं तहेव एक्कारस उद्देसगा भाणियव्वा। Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार। उनके चार – चार भेद एकेन्द्रियशतक के अनुसार वनस्पतिकायिक पर्यन्त जानना। भगवन् ! कृष्णलेश्यी अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्व – चरमान्त में यावत् उत्पन्न होता है ? गौतम ! औघिक उद्देशक के अनुसार लोक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३४ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1042 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइविहा णं भंते! कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया पन्नत्ता? जहेव ओहिउद्देसओ।
कइविहा णं भंते! अनंतरोववन्नगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया पन्नत्ता? जहेव अनंतरोव-वन्नाउद्देसओ ओहिओ तहेव।
कइविहा णं भंते! परंपरोववन्नगा कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया पन्नत्ता?
गोयमा! पंचविहा परंपरोववन्ना कण्हलेस्सा भवसिद्धिया एगिंदिया पन्नत्ता, भेदो चउक्कओ जाव वणस्सइकाइयत्ति।
परंपरोववन्नाकण्हलेस्सभवसिद्धियअपज्जत्तासुहुमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए? एवं एएणं अभिलावेणं जहेव ओहिओ उद्देसओ जाव लोयचरिमंते त्ति। सव्वत्थ कण्हलेस्सेसु भवसिद्धिएसु उववाएयव्वो।
कहि Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! औघिक उद्देशकानुसार जानना। भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक भवसिद्धिक – कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! औघिक उद्देशक के अनुसार जानना। भगवन् ! परम्परोपपन्नक कृष्णलेश्यी – भवसिद्धिक कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1044 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! महाजुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! सोलस महाजुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–१. कडजुम्मकडजुम्मे, २. कडजुम्मतेओगे, ३. कडजुम्मदावरजुम्मे, ४. कडजुम्मकलियोगे, ५. तेओगकडजुम्मे, ६. तेओगतेओगे, ७. तेओगदावरजुम्मे, ८. तेओगकलिओगे, ९. दावरजुम्मकडजुम्मे, १. दावरजुम्मतेओगे, ११. दावरजुम्मदावरजुम्मे, १२. दावरजुम्मकलियोगे, १३. कलिओगकडजुम्मे, १४. कलियोगतेओगे, १५. कलियोगदावरजुम्मे, १६. कलियोगकलिओगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सोलस महाजुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्म-कडजुम्मे जाव कलियोगकलियोगे?
गोयमा! जे णं रासी चउक्कएणं अवहारेणं अवहीरमाणे चउपज्जवसिए, जे णं तस्स रासिस्स अवहारसमया ते वि Translated Sutra: भगवन् ! महायुग्म कितने बताए गए हैं ? गौतम ! सोलह, यथा – कृतयुग्मकृतयुग्म, कृतयुग्मत्र्योज, कृत – युग्मद्वापरयुग्म, कृतयुग्मकल्योज, त्र्योजकृतयुग्म, त्र्योजत्र्योज, त्र्योजद्वापरयुग्म, त्र्योजकल्योज, द्वापरयुग्मकृत – युग्म, द्वापरयुग्मत्र्योज, द्वापरयुग्मद्वापरयुग्म, द्वापरयुग्मकल्योज, कल्योजकृतयुग्म, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-१ | Hindi | 1045 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो? जहा उप्पलुद्देसए तहा उववाओ
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवइया उववज्जंति?
गोयमा! सोलस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा उववज्जंति।
ते णं भंते! जीवा समए समए–पुच्छा।
गोयमा! ते णं अनंता समए समए अवहीरमाणा-अवहीरमाणा अनंताहिं ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहिं अवहीरंति, नो चेव णं अवहिया सिया। उच्चत्तं जहा उप्पलुद्देसए।
ते णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधगा? अबंधगा?
गोयमा! बंधगा, नो अबंधगा। एवं सव्वेसिं आउयवज्जाणं। आउयस्स बंधगा वा अबंधगा वा।
ते णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स–पुच्छा।
गोयमा! वेदगा, नो अवेदगा। Translated Sutra: भगवन् ! कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! उत्पलोद्देशक के उपपात समान उपपात कहना चाहिए। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे सोलह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त। भगवन् ! वे अनन्त जीव समय – समय में एक – एक अपहृत किये जाएं तो कितने काल में अपहृत होते | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1046 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति?
गोयमा! तहेव, एवं जहेव पढमो उद्देसओ तहेव सोलसखुत्तो बितिओ भाणियव्वो, तहेव सव्वं, नवरं–इमाणि दस नाणत्ताणि –१. ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं। २. आउयकम्मस्स नो बंधगा, अबं-धगा। ३. आउयस्स नो उदीरगा, अनुदीरगा। ४. नो उस्सासगा, नो निस्सासगा, नो उस्सासनिस्सासगा। ५. सत्तविहबंधगा, नो अट्ठविहबंधगा।
ते णं भंते! पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदियत्ति कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! ६. एक्कं समयं। ७. एवं ठिती वि। ८. समुग्घाया आदिल्ला दोन्नि। ९. समोहया न पुच्छि-ज्जंति। १०. उव्वट्टणा न पुच्छिज्जइ, Translated Sutra: भगवन् ! प्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! पूर्ववत्। इसी प्रकार प्रथम उद्देशक अनुसार द्वीतिय उद्देशक में भी उत्पाद – परिमाण सोलह बार कहना चाहिए। अन्य सब पूर्ववत्। किन्तु इन दस बातों में भिन्नता है, यथा – अवगाहना – जघन्य अंगुल के असंख्यातवें | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1047 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अपढमसमयकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? एसो जहा पढमुद्देसो सोलसहिं वि जुम्मेसु तहेव नेयव्वो जाव कलियोगकलियोगत्ताए जाव अनंतखुत्तो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! अप्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथम उद्देशक अनुसार इस उद्देशक में भी सोलह महायुग्मों के पाठ द्वारा यावत् अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं, तक। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1048 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं जहेव पढमसमयउद्देसओ, नवरं–देवा न उववज्जंति, तेउलेस्सा न पुच्छिज्जंति, सेसं तहेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! चरमसमयोत्पन्न कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथमसमय उद्देशक अनुसार कहना चाहिए। किन्तु इनमें देव उत्पन्न नहीं होते तथा तेजोलेश्या के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए। शेष पूर्ववत्। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1049 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा अपढमसमयउद्देसो तहेव निरवसेसो भाणियव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! अचरमसमय के कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! अप्रथमसमय उद्देशक के अनुसार कहना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1050 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव निरवसेसं।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। Translated Sutra: भगवन् ! प्रथमप्रथमसमय के कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथमसमय के उद्देशक अनुसार समग्र कथन करना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1051 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमअपढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा पढमसमयउद्देसो तहेव भाणियव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! प्रथम – अप्रथमसमय के कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं? गौतम ! प्रथमसमय के उद्देशकानुसार कहना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1052 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा चरिमुद्देसओ तहेव निरवसेसं।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! प्रथम – चरमसमय के कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चरमउद्देशक अनुसार जानना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1053 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमअचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा बीओ उद्देसओ तहेव निरवसेसं।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। Translated Sutra: भगवन् ! प्रथम – अचरमसमय के कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! दूसरे उद्देशक के अनुसार जानना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1054 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चरिमचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा चउत्थो उद्देसओ तहेव निरवसेसं
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! चरम – चरमसमय के कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चौथे उद्देशक के अनुसार जानना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-१ |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 1055 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चरिमअचरिमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव निरवसेसं।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरति। Translated Sutra: भगवन् ! चरम – अचरमसमय के कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथमसमयउद्देशक के अनुसार जानना। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३५ एकेन्द्रिय शतक-शतक-२ थी १२ |
Hindi | 1057 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति?
गोयमा! उववाओ तहेव, एवं जहा ओहिउद्देसए, नवरं इमं नाणत्तं।
ते णं भंते! जीवा कण्हलेस्सा?
हंता कण्हलेस्सा।
ते णं भंते! कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मएगिंदियत्ति कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं। एवं ठिती वि।
सेसं तहेव जाव अनंतखुत्तो।
एवं सोलस वि जुम्मा भाणियव्वा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
पढमसमयकण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा पढमसमय-उद्देसओ, नवरं–
ते णं भंते! जीवा कण्हलेस्सा?
हंता कण्हलेस्सा, सेसं तहेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
एवं जहा ओहियसए Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्यी – कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उपपात औघिक उद्देशक अनुसार समझना। किन्तु इन बातों में भिन्नता है। भगवन् ! क्या वे जीव कृष्ण – लेश्या वाले हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! वे कृष्णलेश्यी कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कितने | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३६ द्विइन्द्रिय शतक-शतक-१ थी १२ उद्देशको सहित |
Hindi | 1058 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कडजुम्मकडजुम्मबेंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? उववाओ जहा वक्कंतीए। परिमाणं सोलस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा उववज्जंति। अवहारो जहा उप्पलुद्देसए। ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं बारस जोयणाइं। एवं जहा एगिंदियमहाजुम्माणं पढमुद्देसए तहेव, नवरं–तिन्नि लेस्साओ, देवा न उववज्जंति। सम्मदिट्ठी वा मिच्छदिट्ठी वा, नो सम्ममिच्छादिट्ठी। नाणी वा अन्नाणी वा। नो मनजोगी, वइजोगी वा कायजोगी वा।
ते णं भंते! कडजुम्मकडजुम्मबेंदिया कालओ केवच्चिरं होंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। ठिती जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं बारस संवच्छराइं। Translated Sutra: भगवन् ! कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिप्रमाण द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उपपात व्युत्क्रान्तिपद अनुसार जानना। परिमाण – एक समय में सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। इनका अपहार उत्पलोद्देशक अनुसार जानना। इनकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट बारह योजन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३६ द्विइन्द्रिय शतक-शतक-१ थी १२ उद्देशको सहित |
Hindi | 1059 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मबेंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं जहा एगिंदियमहाजुम्माणं पढमसमयउद्देसए। दस नाणत्ताइं ताइं चेव दस इह वि। एक्कारसमं इमं नाणत्तं–नो मनजोगी, नो वइजोगी, कायजोगी। सेसं जहा बेंदियाणं चेव पढ-मुद्देसए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
एवं एए वि जहा एगिंदियमहाजुम्मेसु एक्कारस उद्देसगा तहेव भाणियव्वा, नवरं–चउत्थ-अट्ठम-दसमेसु सम्मत्तनाणाणि न भण्णंति। जहेव एगिंदिएसु पढमो तइओ पंचमो य एक्कगमा, सेसा अट्ठ एक्कगमा। Translated Sutra: भगवन् ! प्रथमसमयोत्पन्न कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिप्रमाण द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! एकेन्द्रियमहायुग्मों के प्रथमसमय – सम्बन्धी उद्देशक अनुसार जानना। यहाँ दस बातों का जो अन्तर बताया है, वही अन्तर समझना। ग्यारहवीं विशेषता यह है कि ये सिर्फ काययोगी होते हैं। शेष सब बातें एकेन्द्रियमहा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३६ द्विइन्द्रिय शतक-शतक-१ थी १२ उद्देशको सहित |
Hindi | 1060 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कण्हलेस्सकडजुम्मकडजुम्मबेंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं चेव। कण्हलेस्सेसु वि एक्कारसउद्देसगसंजुत्तं सतं, नवरं–लेस्सा, संचिट्ठणा जहा एगिंदियकण्हलेस्साणं।
एवं नीललेस्सेहिं वि सतं।
एवं काउलेस्सेहिं वि।
भवसिद्धियकडजुम्मकडजुम्मबेंदिया णं भंते? एवं भवसिद्धियसता वि चत्तारि तेणेव पुव्वगमएणं नेयव्वा, नवरं–सव्वे पाणा? नो तिणट्ठे समट्ठे। सेसं तहेव ओहियसताणि चत्तारि।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
जहा भवसिद्धियसताणि चत्तारि एवं अभवसिद्धियसताणि चत्तारि भाणियव्वाणि, नवरं–सम्मत्त-नाणाणि सव्वेहिं नत्थि, सेसं तं चेव। एवं एयाणि बारस बेंदियमहाजुम्मसताणि भवंति।
सेवं Translated Sutra: भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिप्रमाण द्वीन्द्रिय से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् जानना। कृष्णलेश्यी जीवों का भी शतक ग्यारह उद्देशक – युक्त जानना चाहिए। विशेष यह है कि इनकी लेश्या और कायस्थति तथा भवस्थिति कृष्णलेश्यी एकेन्द्रिय जीवों के समान होती है। इसी प्रकार नीललेश्यी | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३७ त्रिइन्द्रिय |
Hindi | 1061 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कडजुम्मकडजुम्मतेंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? एवं तेंदिएसु वि बारस सता कायव्वा बेंदियसतसरिसा, नवरं –ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं तिन्नि गाउयाइं। ठिती जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं एकूणवण्णं राइंदियाइं, सेसं तहेव।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! कृतयुग्मराशि वाले त्रीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! द्वीन्द्रियशतक के समान त्रीन्द्रिय जीवों के भी बारह शतक कहना विशेष यह है कि इनकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट तीन गाऊ की है तथा स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट उनचास अहोरात्रि की है। शेष पूर्ववत्। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३९ असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय |
Hindi | 1063 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कडजुम्मकडजुम्मअसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? जहा बेंदियाणं तहेव असण्णिसु वि बारस सता कायव्वा, नवरं–ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयण-सहस्सं। संचिट्ठणा जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुव्वकोडीपुहत्तं। ठिती जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी, सेसं जहा बेंदियाणं।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! कृतयुग्म – कृतयुग्मराशिप्रमाण असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! द्वीन्द्रियशतक के समान असंज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों के भी बारह शतक कहने चाहिए। विशेष यह है कि इनकी अवगा – हना जघन्य अंगुल के असंख्यातवे भाग की और उत्कृष्ट एक हजार योजन की है तथा कायस्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-४० संज्ञीपञ्चेन्द्रिय शतक-शतक-१ थी २१ उद्देशको सहित |
Hindi | 1064 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कडजुम्मकडजुम्मसण्णिपंचिंदिया णं भंते! कओ उववज्जंति? उववाओ वा चउसु वि गईसु। संखेज्जवासाउय-असंखेज्जवासाउय-पज्जत्ता-अपज्जत्तएसु य न कओ वि पडिसेहो जाव अनुत्तरविमानत्ति। परिमाणं अवहारो ओगाहणा य जहा असण्णिपंचिंदियाणं। वेयणिज्जवज्जाणं सत्तण्हं पगडीणं बंधगा वा अबंधगा वा, वेयणिज्जस्स बंधगा, नो अबंधगा। मोहणिज्जस्स वेदगा वा अवेदगा वा, सेसाणं सत्तण्ह वि वेदगा, नो अवेदगा। सायावेदगा वा असायावेदगा वा। मोहणिज्जस्स उदई वा अणुदई वा, सेसाणं सत्तण्ह वि उदई, नो अणुदई। नामस्स गोयस्स य उदीरगा, नो अनुदीरगा, सेसाणं छण्ह वि उदीरगा वा अनुदीरगा वा। कण्हलेस्सा वा जाव सुक्कलेस्सा Translated Sutra: भगवन् ! कृतयुग्म – कृतयुग्मराशि रूप संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उपपात चारों गतियों से होता है। ये संख्यात वर्ष और असंख्यात वर्ष की आयु वाले पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों से आते हैं। यावत् अनुत्तरविमान तक किसी भी गति से आने का निषेध नहीं है। इनका परिमाण, अपहार और अवगाहना |