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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 15 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया पच्चूसकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! बाहिरियं उवट्ठाणसालं अज्ज सविसेसं परमरम्मं गंधोदगसित्त-सुइय-सम्मज्जिओवलित्तं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्क-पुप्फपुं-जोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झंत-सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवर गंधियं गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरि-सवस-विसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। तए णं से सेणिए राया कल्लं

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ श्रेणिक राजा ने प्रभात काल के समय कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रिय ! आज बाहर की उपस्थानशाला को शीघ्र ही विशेष रूप से परम रमणीय, गंधोदक से सिंचित, साफ – सूथरी, लीपी हुई, पाँच वर्णों के सरस सुगंधित एवं बिखरे हुए फूलों के समूह रूप उपचार से युक्त, कालागुरु, कुंदुरुक्क, तुरुष्क
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 17 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वासुदेवमायरो वा वासुदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अन्नयरे सत्त महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति। बलदेवमायरो वा बलदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति। मंडलियमायरो वा मंडलियंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अन्नयरं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुज्झंति। इमे य सामी! धारिणीए देवीए एगे महासुमिणे दिट्ठे, तं उराले णं सामी! धारिणीए देवीए सुमिणे दिट्ठे जाव आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउय-कल्लाण-मंगल्लकारए णं सामी! धारिणीए देवीए सुमिणे दिट्ठे। अत्थलाभो सामी!

Translated Sutra: जब वासुदेव गर्भ में आते हैं तो वासुदेव की माता इन चौदह महास्वप्नों में किन्हीं भी सात महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं। जब बलदेव गर्भ में आते हैं तो बलदेव की माता इन चौदह महास्वप्नों में से किन्हीं चार महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं। जब मांडलिक राजा गर्भ में आता है तो मांडलिक राजा की माता इन चौदह महास्वप्नों
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 18 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे धारिणीए देवीए दोसु मासेसु वीइक्कंतेसु तइए मासे वट्टमाणे तस्स गब्भस्स दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउब्भवित्था– धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासिं मानुस्सए जम्मजीवियफले, जाओ णं मेहेसु अब्भुग्गएसु अब्भुज्जएसु अब्भुण्णएसु अब्भुट्ठिएसु सगज्जिएसु सविज्जएसु सफुसिएसु सथणिएसु धंतधोय-रुप्पपट्ट-अंक-संख-चंद-कुंद-सालिपिट्ठरासिसमप्पभेसु चिकुर-हरियाल-भेय-चंपग-सण-कोरंट-सरिसव-पउमरयसमप्पभेसु लक्खा-रस-सरस- रत्त-किंसुय-

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ दो मास व्यतीत हो जाने पर जब तीसरा मास चल रहा था तब उस गर्भ के दोहदकाल के अवसर पर धारिणी देवी को इस प्रकार का अकाल – मेघ का दोहद उत्पन्न हुआ – जो माताएं अपने अकाल – मेघ के दोहद को पूर्ण करती हैं, वे माताएं धन्य हैं, वे पुण्यवती हैं, वे कृतार्थ हैं। उन्होंने पूर्वजन्म में पुण्य का उपार्जन किया है, वे कृतलक्षण
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 21 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अभए कुमारे सक्कारिए सम्मानिए पडिविसज्जिए समाणे सेणियस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सए भवणेने, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासने निसण्णे। तए णं तस्स अभयस्स कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु सक्का मानुस्सएणं उवाएणं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अकालदोहलमनोरहसंपत्तिं करित्तए, नन्नत्थ दिव्वेणं उवाएणं। अत्थि णं मज्झ सोहम्मकप्पवासी पुव्वसंगइए देवे महिड्ढीए महज्जुइए महापरक्कमे महाजसे महब्बले महानुभावे महासोक्खे। तं सेयं खलु ममं पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स उम्मुक्कमणिसुवण्णस्स

Translated Sutra: तब (श्रेणिक राजा द्वारा) सत्कारित एवं सन्मानित होकर बिदा किया हुआ अभयकुमार श्रेणिक राजा के पास से नीकलता है। नीकल कर जहाँ अपना भवन है, वहाँ आता है। आकर वह सिंहासन पर बैठ गया। तत्पश्चात्‌ अभयकुमार को इस प्रकार यह आध्यात्मिक विचार, चिन्तन, प्रार्थित या मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ – दिव्य अर्थात्‌ दैवी संबंधी उपाय
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 22 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे दसद्धवण्णाइं सखिंखिणियाइं पवर वत्थाइं परिहिए अभयं कुमारं एवं वयासी–अहं णं देवानुप्पिया! पुव्वसंगइए सोहम्मकप्पवासी महिड्ढीए जं णं तुमं पोसहसालाए अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं ममं मनसीकरेमाणे-मनसीकरेमाणे चिट्ठसि, तं एस णं देवानुप्पिया! अहं इहं हव्वमागए। संदिसाहि णं देवानुप्पिया! किं करेमि? किं दल-यामि? किं पयच्छामि? किं वा ते हियइच्छियं? तए णं से अभए कुमारे तं पुव्वसंगइयं देवं अंतलिक्खपडिवण्णं पासित्ता हट्ठतुट्ठे पोसहं पारेइ, पारेत्ता करयल परि-ग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मम चुल्ल-माउयाए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ दस के आधे अर्थात्‌ पाँच वर्ण वाले तथा घूँघरू वाले उत्तम वस्त्रों को धारण किये हुए वह देव आकाश में स्थित होकर बोला – ‘हे देवानुप्रिय ! मैं तुम्हारा पूर्वभव का मित्र सौधर्मकल्पवासी महान्‌ ऋद्धि का धारक देव हूँ।’ क्योंकि तुम पौषधशाला में अष्टमभक्त तप ग्रहण करके मुझे मन में रखकर स्थित हो अर्थात्‌
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 25 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं अद्धरत्तकालसमयंसि सुकुमालपाणिपायं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तए णं ताओ अंगपडियारियाओ धारिणिं देविं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयायं पासंति, पासित्ता सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तं णं अम्हे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ धारिणी देवी ने नौ मास परिपूर्ण होने पर और साढ़े सात रात्रि – दिवस बीत जाने पर, अर्धरात्रि के समय, अत्यन्त कोमल हाथ – पैर वाले यावत्‌ परिपूर्ण इन्द्रियों से युक्त शरीर वाले, लक्षणों और व्यंजनों से सम्पन्न, मान – उन्मान – प्रमाण से युक्त एवं सर्वांगसुन्दर शिशु का प्रसव किया। तत्पश्चात्‌ दासियों ने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 30 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु-महया जणसद्दे इ वा जाव बहवे उग्गा भोगा० रायगिहस्स नगरस्स मज्झंमज्झेणं एगदिसिं एगाभिमुहा निग्गच्छंति। इमं च णं मेहे कुमारे उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव मानुस्सए कामभोगे भुंजमाणे रायमग्गं च ओलोएमाणे-ओलोएमाणे एवं च णं विहरइ। तए णं से मेहे कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव एगदिसाभिमुहे निग्गच्छमाणे पासइ, पासित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–किण्णं भो देवानुप्पिया! अज्ज रायगिहे नगरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा एवं–रुद्द-सिव-वेसमण-नाग-जक्ख-भूय-तलाय-रुक्ख-चेइय-पव्वयमहे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ राजगृह नगर में शृंगाटक – सिंघाड़े के आकार के मार्ग, तिराहे, चौराहे, चत्वर, चतुर्मुख पथ, महापथ आदि में बहुत से लोगों का शोर होने लगा। यावत्‌ बहुतेरे उग्रकुल के, भोगकुल के तथा अन्य सभी लोग यावत्‌ राजगृहनगर के मध्यभागमें होकर एक ही दिशामें, एक ही ओर मुख कर नीकलने लगे उस समय मेघकुमार अपने प्रासाद पर था।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 33 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स अम्मापियरो जाहे नो संचाएंति मेहं कुमारं बहूहिं विसयानुलोमाहिं आघवणाहिं य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउव्वेयकारियाहिं पन्नवणाहिं पन्नवेमाणा एवं वयासी–एस णं जाया! निग्गंथे पावयणे सच्चे अनुत्तरे केवलिए पडिपुण्णे नेयाउए संसुद्धे सल्लगत्तणे सिद्धिमग्गे मुत्तिमग्गे निज्जाणमग्गे निव्वाणमग्गे सव्वदुक्खप्पहीणमग्गे, अहीव एगंतदिट्ठिए, खुरो इव गंतधाराए, लोहमया इव जवा चावेयव्वा, वालुयाकवले इव निरस्साए, गंगा इव महानई पडिसोयगमणाए, महासमुद्दो

Translated Sutra: मेघकुमार के माता – पिता जब मेघकुमार को विषयों के अनुकूल आख्यापना से, प्रज्ञापना से, संज्ञापना से, विज्ञापना से समझाने, बुझाने, संबोधित करने और मनाने में समर्थ नहीं हुए, तब विषयों के प्रतिकूल तथा संयम के प्रति भय और उद्वेग उत्पन्न करने वाली प्रज्ञापना से कहने लगे – हे पुत्र ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य है, अनुत्तर
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 37 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं मेहा! इ समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं एवं वयासी–से नूनं तुमं मेहा! राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि समणेहिं निग्गंथेहिं वायणाए पुच्छणाए परियट्टणाए धम्माणुजोगचिंताए य उच्चारस्स वा पासवणस्स वा अइगच्छमाणेहि य निग्गच्छमाणेहि य अप्पेगइएहिं हत्थेहिं संघट्टिए अप्पेगइएहिं पाएहिं संघट्टिए अप्पेगइएहिं सीसे संघट्टिए अप्पेगइएहिं पोट्टे संघट्टिए अप्पेगइएहिं कायंसि संघट्टिए अप्पेगइएहिं ओलंडिए अप्पेगइएहिं पोलंडिए अप्पेगइएहिं पाय-रय-रेणु-गुंडिए कए। एमहालियं च णं राइं तुमं नो संचाएसि मुहुत्तमवि अच्छिं निमिल्लावेत्तए। तए णं तुज्ज मेहा! इमेयारूवे अज्झत्थिए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ ‘हे मेघ’ इस प्रकार सम्बोधन करके श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने मेघकुमार से कहा – ‘हे मेघ! तुम रात्रि के पहले और पीछले काल के अवसर पर, श्रमण निर्ग्रन्थों के वाचना पृच्छना आदि के लिए आवागमन करने के कारण, लम्बी रात्रि पर्यन्त थोड़ी देर के लिए भी आँख नहीं मींच सके। मेघ ! तब तुम्हारे मन में इस प्रकार का विचार
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Hindi 38 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तुमं मेहा! आनुपुव्वेणं गब्भवासाओ निक्खंते समाणे उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमनुप्पत्ते मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए। तं जइ ताव तुमे मेहा! तिरिक्ख-जोणियभावमुवगएणं अपडिलद्ध-सम्मत्तरयण-लंभेणं से पाए पाणाणुकंपयाए भूयाणुकंपयाए जीवाणुकंपयाए सत्ताणुकंपयाए अंतरा चेव संघारिए, नो चेव णं निक्खित्ते। किमंग पुण तुमं मेहा! इयाणिं विपुलकुलसमुब्भवे णं निरुवहयसरीर-दंतलद्धपंचिंदिए णं एवं उट्ठाण-बल-वीरिय-पुरिसगार-परक्कमसंजुत्ते णं मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइए समाणे समणाणं निग्गंथाणं राओ पुव्वरत्तावरत्तकालसयंसि वायणाए पुच्छणाए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ हे मेघ ! तुम अनुक्रम से गर्भवास से बाहर आए – तुम्हारा जन्म हुआ। बाल्यावस्था से मुक्त हुए और युवावस्था को प्राप्त हुए। तब मेरे निकट मुण्डित होकर गृहवास से अनगार हुए। तो हे मेघ ! जब तुम तिर्यंच योनिरूप पर्याय को प्राप्त थे और जब तुम्हें सम्यक्त्व – रत्न का लाभ भी नहीं हुआ था, उस समय भी तुमने प्राणियों
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 43 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं रायगिहे नयरे धने नामं सत्थवाहे–अड्ढे दित्ते वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन-जान-वाहणाइण्णे बहु-दासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए बहुधन-बहुजायरूवरयए आओग-पओग-संपउत्ते विच्छड्डिय-विउल-भत्तपाणे। तस्स णं धनस्स सत्थवाहस्स भद्दा नामं भारिया होत्था–सुकुमालपाणिपाया अहीनपडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया मानुम्मान-प्पमाण-पडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगी ससि-सोमागार-कंत-पियदंसणा सुरूवा करयल-परिमिय-तिवलिय-वलियमज्झा कुंडलुल्लिहिय-गंडलेहा कोमुइ-रयणियर-पडिपुण्ण-सोमवयणा सिंगारागार-चारुवेसा संगय-गय-हसिय-भणिय-विहिय-विलास-सललिय-संलाव-निउण-जुत्तोवयार-कुसला

Translated Sutra: राजगृह नगर में धन्य नामक सार्थवाह था। वह समृद्धिशाली था, तेजस्वी था, घर में बहुत – सा भोजन – पानी तैयार होता था। उस धन्य सार्थवाह की पत्नी का नाम भद्रा था। उसके हाथ पैर सुकुमार थे। पाँचों इन्द्रियाँ हीनता से रहित परिपूर्ण थीं। वह स्वस्तिक आदि लक्षणों तथा तिल मसा आदि व्यंजनों के गुणों से युक्त थीं। मान, उन्मान
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 50 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते नगरगुत्तिया विजयस्स तक्करस्स पयमग्गमणुगच्छमाणा जेणेव मालुयाकच्छए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता मालुयाकच्छगं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता विजयं तक्करं ससक्खं सहोढं सगेवेज्जं जीवग्गाहं गेण्हंति, गेण्हित्ता अट्ठि-मुट्ठि-जाणुकोप्पर-पहार-संभग्ग-महिय-गत्तं करेंति, करेत्ता अवउडा बंधनं करेंति, करेत्ता देवदिन्नस्स दारगस्स आभरणं गेण्हंति, गेण्हित्ता विजयस्स तक्करस्स गीवाए बंधंति, बंधित्ता मालुयाकच्छगाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिहं नयरं अनुप्पविसंति, अनुप्पविसित्ता रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उन नगररक्षकों ने धन्य सार्थवाह के ऐसा कहने पर कवच तैयार किया, उसे कसों से बाँधा और शरीर पर धारण किया। धनुष रूपी पट्टिका पर प्रत्यंचा चढ़ाई। आयुध और प्रहरण ग्रहण किये। फिर धन्य सार्थवाह के साथ राजगृह नगर के बहुत – से नीकलने के मार्गों यावत्‌ दरवों, पीछे खिड़कियों, छेड़ियों, किले की छोटी खिड़कियों, मोरियों,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ संघाट

Hindi 52 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा भद्दा सत्थवाही पंथगस्स दासचेडगस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा आसुरुत्ता रुट्ठा कुविया चंडिक्किया मिसि मिसेमाणी धनस्स सत्थवाहस्स पओसमावज्जइ। तए णं से धने सत्थवाहे अन्नया कयाइं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सएण य अत्थसारेणं रायकज्जाओ अप्पाणं मोयावेइ, मोयावेत्ता चारगसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अलंकारियकम्मं कारवेइ जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहधोयमट्टियं गेण्हइ, गेण्हित्ता पोक्ख-रिणीं ओगाहइ, ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ, करेत्ता ण्हाए कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिए

Translated Sutra: तब भद्रा सार्थवाही दास चेटक पंथक के मुख से यह अर्थ सूनकर तत्काल लाल हो गई, रुष्ट हुई यावत्‌ मिसमिसाती हुई धन्य सार्थवाह पर प्रद्वेष करने लगी। तत्पश्चात्‌ धन्य सार्थवाह को किसी समय मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी और परिवार के लोगों ने अपने साभूत अर्थ से – राजदण्ड से मुक्त कराया। मुक्त होकर वह कारागार से
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 64 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा नामं गाहावइणी परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन -जानवाहना बहुधन-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलग-प्पभूया बहुजनस्स अपरिभूया। तीसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं सत्थवाहदारए होत्था–सुकुमालपाणिपाए अहीन-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए मानुम्मान-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी तं दारगं साइरेगअट्ठवासजाययं जाणित्ता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि कलायरियस्स

Translated Sutra: द्वारका नगरी में थावच्चा नामक एक गाथापत्नी निवास करती थी। वह समृद्धि वाली थी यावत्‌ बहुत लोग मिलकर भी उसका पराभव नहीं कर सकते थे। उस थावच्चा गाथापत्नी का थावच्चपुत्र नामक सार्थवाह का बालक पुत्र था। उसके हाथ – पैर अत्यन्त सुकुमार थे। वह परिपूर्ण पाँचों इन्द्रियों से युक्त सुन्दर शरीर वाला, प्रमाणोपेत अंगोपांगों
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 65 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थावच्चापुत्ते वि निग्गए। जहा मेहे तहेव धम्मं सोच्चा निसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ। जहा मेहस्स तहा चेव निवेयणा। तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ विसयाणुलोमाहि य विसय-पडिकूलाहि य बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणमणुमन्नित्था। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं

Translated Sutra: मेघकुमार की तरह थावच्चापुत्र भी भगवान को वन्दना करने के लिए नीकला। उसी प्रकार धर्म को श्रवण करके और हृदय में धारण करके जहाँ थावच्चा गाथापत्नी थी, वहाँ आया। आकर माता के पैरों को ग्रहण किया। मेघकुमार समान थावच्चापुत्र का वैराग्य निवेदना समझनी। माता जब विषयों के अनुकूल और विषयों के प्रतिकूल बहुत – सी आघवणा,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 71 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पंथए सेलगस्स सेज्जा-संथारय-उच्चार-पासवण-खेल्ल-सिंघाणमत्त-ओसह-भेसज्ज-भत्तपाणएणं अगिलाए विनएणं वेयावडियं करेइ। तए णं से सेलए अन्नया कयाइ कत्तिय-चाउम्मासियंसि विउलं असन-पान-खाइम-साइमं आहारमाहारिए सुबहुं च मज्जपाणयं पीए पच्चावरण्हकालसमयंसि सुहप्पसुत्ते। तए णं से पंथए कत्तिय-चाउम्मासियंसि कयकाउस्सग्गे देवसियं पडिक्कमणं पडिक्कंते, चाउम्मासियं पडिक्कमिउ-कामे सेलगं रायरिसिं खामणट्ठयाए सीसेणं पाएसु संघट्टेइ। तए णं से सेलए पंथएणं सीसेणं पाएसु संघट्टिए समाणे आसुरुत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे उट्ठेइ, उट्ठेत्ता एवं वयासी–से केस णं भो!

Translated Sutra: तब वह पंथक अनगार शैलक राजर्षि की शय्या, संस्तारक, उच्चार, प्रस्रवण, श्लेष्म, संघाण के पात्र, औषध, भेषज, आहार, पानी आदि से बिना ग्लानि, विनयपूर्वक वैयावृत्य करने लगे। उस समय पंथक मुनि ने कार्तिक की चौमासी के दिन कायोत्सर्ग करके दैवसिक प्रतिक्रमण करके, चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करने की ईच्छा से शैलक राजर्षि को खमाने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Hindi 73 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा पंच अनगारसया जेणेव पुंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति, उवाग-च्छित्ता पुंडरीयं पव्वयं सणियं-सणियं दुरुहंति, दुरुहित्ता मेघघनसन्निगासं देवसन्निवायं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहंति, पडिलेहित्ता जाव संलेहणा-ज्झूसणा-ज्झूसिया भत्तपाण-पडियाइक्खिया पाओवगमणंणुवन्ना। तए णं से सेलए रायरिसी पंथगपामोक्खा पंच अनगारसया बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसणाए छेदित्ता जाव केवलवरनाणदंसणं समुप्पाडेत्ता तओ पच्छा सिद्धा बुद्धा मुत्ता अंतगडा परिनिव्वुडा सव्व-दुक्खप्पहीणा। एवामेव

Translated Sutra: इसी प्रकार हे आयुष्मन्‌ श्रमणों ! जो साधु या साध्वी इस तरह विचरेगा वह इस लोक में बहुसंख्यक साधुओं, साध्वीयों, श्रावकों और श्राविकाओं के द्वारा अर्चनीय, वन्दनीय, नमनीय, पूजनीय, सत्कारणीय और सम्माननीय होगा। कल्याण, मंगल, देव और चैत्य स्वरूप होगा। विनयपूर्वक उपासनीय होगा। परलोक में उसे हाथ, कान एवं नासिका के
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-६ तुंब

Hindi 74 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं पंचमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे समोसरणं। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते जाव सुक्कज्झाणोवगए विहरइ। तए णं से इंदभूई नामं अनगारे जायसड्ढे जाव एवं वयासी–कहण्णं भंते! जीवा गरुयत्तं वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छंति? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्कतुंब निच्छिद्दं निरुवहयं दब्भेहि य कुसेहि य वेढेइ, वेढेत्ता मट्टियालेवेणं लिंपइ,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! श्रमण यावत्‌ सिद्धि को प्राप्त भगवान महावीर ने छठे ज्ञाताध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था। उस राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में गुणशील नामक चैत्य था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर अनुक्रम से विचरते हुए, यावत्‌ जहाँ
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-७ रोहिणी

Hindi 75 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं छट्ठस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था। सुभूमिभागे उज्जाणे। तत्थ णं रायगिहे नयरे धने नामं सत्थवाहे परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए। भद्दा भारिया–अहीनपंचिंदियसरीरा जाव सुरूवा। तस्स णं धनस्स सत्थवाहस्स पुत्ता भद्दाए भारियाए अत्तया चत्तारि सत्थवाहदारगा होत्था, तं जहा–धणपाले धणदेवे धणगोवे धणरक्खिए। तस्स णं धनस्स सत्थवाहस्स चउण्हं पुत्ताणं भारियाओ चत्तारि सुण्हाओ होत्था, तं जहा–उज्झिया भोगवइया रक्खिया रोहिणिया। तए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि श्रमण यावत्‌ निर्वाणप्राप्त भगवान महावीर ने छठे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है तो भगवन्‌ ! सातवें ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक राजा था। राजगृह नगर के बाहर ईशानकोण में सुभूमिभाग उद्यान था। उस राजगृह नगर में धन्य नामक
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 76 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अठमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणु इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पन्नत्ते। तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नामं रायहाणी–नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोग-भूया। तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे

Translated Sutra: ’भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने सातवे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो आठवे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ ‘हे जम्बू ! उस काल और उस समय में, इसी जम्बूद्वीप में महाविदेह नामक वर्ष में, मेरु पर्वत से पश्चिम में, निषध नामक वर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावह नामक वक्षार पर्वत से पश्चिम
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 85 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा मल्ली विदेहरायवरकन्ना उम्मुक्कबालभावा विण्णय-परिणयमेत्ता जोव्वणगमणुपत्ता रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य अईव-अईव उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था। तए णं सा मल्ली देसूणवाससयजाया ते छप्पि य रायाणो विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी-आभोएमाणी विहरइ, तं जहा-पडिबुद्धिं इक्खागरायं, चंदच्छायं अंगरायं, संखं कासिरायं, रुप्पिं कुणालाहिवइं, अदीनसत्तुं कुरुरायं जियसत्तु पंचालाहिवइं। तए णं सा मल्ली कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! असोगवणियाए एगं महं मोहणघरं करेह–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं। तस्स णं मोहणघरस्स बहुमज्झदेसभाए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ विदेहराज की वह श्रेष्ठ कन्या बाल्यावस्था से मुक्त हुई यावत्‌ तथा रूप, यौवन और लावण्य से अतीव – अतीव उत्कृष्ट और उत्कृष्ट शरीर वाली हो गई। तत्पश्चात्‌ विदेहराज की वह उत्तम कन्या मल्ली कुछ कम सौ वर्ष की हो गई, तब वह उन छहों राजाओं को अपने विपुल अवधिज्ञान से जानती – देखती हुई रहने लगी। वे इस प्रकार
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 98 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता वेसमणं देवं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे मिहि-लाए रायहाणीए कुंभगस्स रयणी धूया पभावईए देवीए अत्तया मल्ली अरहा निक्खमिस्सामित्ति मणं पहारेइ जाव इंदा दलयंति अरहाणं। तं गच्छह णं देवानुप्पिया! जंबुद्दीवं दीवं भारहं वासं मिहिलं रायहाणिं कुंभगस्स रन्नो भवणंसि इमेयारूवं अत्थसंपयाणं साहराहि, साहरित्ता खिप्पामेव मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। तए णं से वेसमणे देवे सक्केणं देविंदेणं देवरन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे करयल परिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं देवो! तहत्ति

Translated Sutra: शक्रेन्द्र ने ऐसा विचार किया। विचार करके उसने वैश्रमण देव को बुलाकर कहा – ‘देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में, यावत्‌ तीन सौ अट्ठासी करोड़ और अस्सी लाख स्वर्ण मोहरें देना उचित है। सो हे देवानुप्रिय ! तुम जाओ और जम्बूद्वीप में, भारतवर्ष में कुम्भ राजा के भवन में इतने द्रव्य का संहरण करो – इतना
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 101 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं लोगंतिया देवा बंभलोए कप्पे रिट्ठे विमाणपत्थडे सएहिं-सएहिं विमाणेहिं सएहिं-सएहिं पासायवडिंसएहिं पत्तेयं-पत्तेयं चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोल-सहि आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहिं य बहूहिं लोगतिएहिं देवेहिं सद्धिं संपरिवुडा महयाऽहय-नट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-धन-मुइंग-पडुप्पवाइय रवेण विउलाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति, तं जहा–

Translated Sutra: उस काल और उस समय में लौकान्तिक देव ब्रह्मलोक नामक पाँचवे देवलोक में, अरिष्ट नामक विमान के प्रस्तट में, अपने – अपने विमान से, अपने – अपने उत्तम प्रासादों से, प्रत्येक – प्रत्येक चार – चार हजार सामानिक देवों से, तीन – तीन परिषदों से सात – सात अनीकों से, सात – सात अनीकाधिपतियों से, सोलह – सोलह हजार आत्मरक्षक देवों
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 103 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तेसिं लोगंतियाणं देवाणं पत्तेयं-पत्तेयं आसणाइं चलंति तहेव जाव तं जीयमेयं लोगंतियाणं देवाणं अरहंताणं भगवंताणं निक्खममाणाणं संबोहणं करित्तए त्ति। तं गच्छामो णं अम्हे वि मल्लिस्स अरहओ संबोहणं करेमो त्ति कट्टु एवं संपेहेंति, संपेहेत्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमंति, अवक्कमित्ता वेउव्वियसमुग्घाएणं समोहण्णंति, समोहणित्ता संखेज्जाइं जोयणाइं दंडं निसिरंति, एवं जहा जंभगा जाव जेणेव मिहिला रायहाणी जेणेव कुंभगस्स रन्नो भवणे जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अंतलिक्खपडिवण्णा सखिंखिणियाइं दसद्धवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिया करयल-परिग्गहियं

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उन लौकान्तिक देवों में से प्रत्येक के आसन चलायमान हुए – इत्यादि उसी प्रकार जानना दीक्षा लेने की ईच्छा करने वाले तीर्थंकरो को सम्बोधन करना हमारा आचार है; अतः हम जाएं और अरहन्त मल्ली को सम्बोधन करें, ऐसा लौकान्तिक देवों ने विचार किया। उन्होंने ईशान दिशा में जाकर वैक्रियसमुद्‌घात से विक्रिया की।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 106 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं मल्लिस्स अरहओ मनोरमं सीयं दुरुढस्स समाणस्स इमे अट्ठट्ठमंगला पुरओ अहाणुपुव्वीए संपत्थिया–एवं निग्गमी जहा जमालिस्स। तए णं मल्लिस्स अरहओ निक्खममाणस्स अप्पेगइया देवा मिहिलं रायहाणिं अब्भिंतरबाहिरं आसिय-संमज्जिय-संमट्ठ-सुइ-रत्थंतरावणवीहियं करेंति जाव परिधावंति। तए णं मल्ली अरहा जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे जेणेव असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीयाओ पच्चोरुहइ, आभरणालंकारं ओमुयइ। तए णं पभावई हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरणालंकारं पडिच्छइ। तए णं मल्ली अरहा सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ। तए णं सक्के देविंदे देवराया मल्लिस्स केसे पडिच्छइ, पडिच्छित्ता

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ मल्ली अरहंत जब मनोरमा शिबिका पर आरूढ़ हुए, उस समय उनके आगे आठ – आठ मंगल अनुक्रम से चले। जमालि के निर्गमन की तरह यहाँ मल्ली अरहंत का वर्णन समझ लेना। तत्पश्चात्‌ मल्ली अरहंत जब दीक्षा धारण करने के लिए नीकले तो किन्हीं – किन्हीं देवों ने मिथिला राजधानी में पानी सींच दिया, उसे साफ कर दिया और भीतर तथा
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Hindi 109 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सव्वदेवाणं आसणाइं चलेंति, समोसढा धम्मं सुणेंति, सुणेत्ता जेणेव नंदीसरे दीवे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अट्ठाहियं महिमं करेंति, करेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। कुंभए वि निग्गच्छइ। तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो जेट्ठपुत्ते रज्जे ठावेत्ता पुरिससहस्सवाहिणीयाओ सीयाओ दुरूढा समाणा सव्विड्ढीए जेणेव मल्ली अरहा तेणेव उवागच्छंति जाव पज्जुवासंति। तए णं मल्ली अरहा तीसे महइमहालियाए परिसाए, कुंभगस्स रन्नो, तेसिं च जियसत्तु-पामोक्खाणं छण्हं राईणं धम्मं परिकहेइ। परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में सब देवों के आसन चलायमान हुए। तब वे सब देव वहाँ आए, सबने धर्मोपदेश श्रवण किया। नन्दीश्वर द्वीप में जाकर अष्टाह्निका महोत्सव किया। फिर जिस दिशा में प्रकट हुए थे, उसी दिशा में लौट गए। कुम्भ राजा भी वन्दना करने के लिए नीकला। तत्पश्चात्‌ वे जितशत्रु वगैरह छहों राजा अपने – अपने ज्येष्ठ पुत्रों
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ माकंदी

Hindi 113 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा रयणदीवदेवया सक्कवयण-संदेसेण सुट्ठिएणं लवणाहिवइणा लवणसमुद्दे तिसत्तखुत्तो अनुपरियट्टेयव्वे त्ति जं किंचि तत्थ तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा कयवरं वा असुइ पूइयं दुरभिगंधमचोक्खं, तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय तिसत्तखुत्तो एगंते एडेयव्वं ति कट्टु निउत्ता। तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए एवं वयासी–एवं खलु अहं देवानुप्पिया! सक्कवयण-संदेसेणं सुट्ठिएणं लवणाहिवइणा तं चेव जाव निउत्ता। तं जाव अहं देवानुप्पिया! लवणसमुद्दे तिसत्तखुत्तो अनुपरियट्टित्ता जं किंचि तत्थ तणं वा पत्तं वा कट्ठं वा कयवरं वा असुइ पूइयं दुरभिगंधमचोक्खं, तं सव्वं आहुणिय-आहुणिय तिसत्तखुत्तो

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उस रत्नद्वीप की देवी ने उस माकन्दीपुत्रों को अवधिज्ञान से देखा। उसने हाथ में ढाल और तलवार ली। सात – आठ ताड़ जितनी ऊंचाई पर आकाश में उड़ी। उत्कृष्ट यावत्‌ देवगति से चलती – चलती जहाँ माकन्दीपुत्र थे, वहाँ आई। आकर एकदम कुपित हुई और माकन्दीपुत्रों को तीखे, कठोर और निष्ठुर वचनों से कहने लगी – ‘अरे माकन्दी
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१२ उदक

Hindi 144 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जियसत्तू राया अन्नया कयाइ ण्हाए कयवलिकम्मे जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे बहूहिं ईसर जाव सत्थवाहपभिईहिं सद्धिं भोयणमंडवंसि भोयणवेलाए सुहासणवरगए विउलं असनं पानं खाइमं साइमं आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे एवं च णं विहरइ। जिमिय-भुत्तुत्तरागए वि य णं समाणे आयंते चोक्खे परम सुइभूए तंसि विपुलंसि असन-पान-खाइम-साइमंसि जायविम्हए ते बहवे ईसर जाव सत्थवाहपभिइओ एवं वयासी–अहो णं देवानुप्पिया! इमे मणुण्णे असन-पान-खाइम-साइमे वण्णेणं उववेए गंधेणं उववेए रसेणं उववेए फासेणं उववेए अस्सायणिज्जे विसायणिज्जे पीणणिज्जे दीवणिज्जे दप्पणिज्जे मयणिज्जे

Translated Sutra: वह जितशत्रु राजा एक बार – किसी समय स्नान करके, बलिकर्म करके, यावत्‌ अल्प किन्तु बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत करके, अनेक राजा, ईश्वर यावत्‌ सार्थवाह आदि के साथ भोजन के समय पर सुखद आसन पर बैठ कर, विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन जीम रहा था। यावत्‌ जीमने के अनन्तर, हाथ – मुँह धोकर, परम शुचि होकर उस विपुल अशन,
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१३ मंडुक

Hindi 145 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं बारसमस्स नायज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तेरसमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। समोसरणं। परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सोहम्मे कप्पे दद्दुरवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए दद्दुरंसि सीहासनंसि दद्दुरे देवे चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं अग्गमहिसीहिं सपरिसाहिं एवं जहा सूरियाभे जाव दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणे जाव नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगए, जहा–सूरियाभे। भंतेति! भगवं गोयमे समणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने बारहवें ज्ञात – अध्ययन का अर्थ यह कहा है तो तेरहवे ज्ञात – अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था। राजगृह के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में गुणशील नामक चैत्य था। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर चौदह
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१३ मंडुक

Hindi 147 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से नंदे मणियारसेट्ठी सोलसहिं रोयायंकेहिं अभिभूए समाणे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे देवानुप्पिया! रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु महया-महया सद्देणं उग्घोसेमाणा-उग्घोसेमाणा एवं वयह–एवं खलु देवानुप्पिया! नंदस्स मणियारस्स सरीरगंसि सोलस रोयायंका पाउब्भूया। [तं जहा–सासे जाव कोढे] । तं जो णं इच्छइ देवानुप्पिया! विज्जो वा विज्जपुत्तो वा जाणओ वा जाणुयपुत्तो वा कुसलो वा कुसलपुत्तो वा नंदस्स मणियारस्स तेसिं च णं सोलसण्हं रोगायंकाणं एगमवि रोगायंकं उवसामित्तए, तस्स णं नंदे मणियारसेट्ठी विउलं अत्थसंपयाणं

Translated Sutra: नन्द मणिकार इन सोलह रोगांतकों से पीड़ित हुआ। तब उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – देवानुप्रियो ! तुम जाओ और राजगृह नगर में शृंगाटक यावत्‌ छोटे – छोटे मार्गों में ऊंची आवाज से घोषणा करते हुए कहो – ‘हे देवानुप्रियो ! नन्द मणिकार श्रेष्ठी के शरीरमें सोलह रोगांतक उत्पन्न हुए हैं, यथा – श्वास से कोढ़। तो हे
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Hindi 149 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कनगरहे राया रज्जे य रट्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे य पुरे य अंतेउरे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववण्णे जाए, जाए पुत्ते वियंगेइ–अप्पेगइयाणं हत्थंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं हत्थंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुलियाओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं पायंगुट्ठए छिंदइ, अप्पेगइयाणं कण्णसक्कुलीओ छिंदइ, अप्पेगइयाणं नासापुडाइं फालेइ, अप्पेगइयाणं अंगोवंगाइं वियत्तेइ। तए णं तीसे पउमावईए देवीए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु कनगरहे राया रज्जे य रट्ठे य बले य वाहणे य कोसे य कोट्ठागारे

Translated Sutra: कनकरथ राजा राज्य में, राष्ट्र में, बल में, वाहनों में, कोष में, कोठार में तथा अन्तःपुर में अत्यन्त आसक्त था, लोलुप – गृद्ध और लालसामय था। अत एव वह जो – जो पुत्र उत्पन्न होते उन्हें विकलांग कर देता था। किन्हीं के हाथ की अंगुलियाँ काट देता, किन्हीं के हाथ का अंगूठा काट देता, इसी प्रकार किसी के पैर की अंगुलियाँ, पैर
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Hindi 151 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सुव्वयाओ नामं अज्जाओ इरियासमियाओ भासासमियाओ एसणासमियाओ आयाण-भंड-मत्त-णिक्खेवणासमियाओ उच्चार-पासवण-खेल-सिंधाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमियाओ मणसमियाओ वइसमियाओ काय-समियाओ मणगुत्ताओ वइगुत्ताओ कायगुत्ताओ गुत्ताओ गुत्तिंदियाओ गुत्तबंभचारिणीओ बहुस्सुयाओ बहुपरिवाराओ पुव्वाणुपुव्विं चरमाणीओ जेणामेव तेयलिपुरे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हंति, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणीओ विहरंति। तए णं तासिं सुव्वयाणं अज्जाणं एगे संघाडए पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए

Translated Sutra: उस काल और उस समय में ईर्या – समिति से युक्त यावत्‌ गुप्त ब्रह्मचारिणी, बहुश्रुत, बहुत परिवार वाली सुव्रता नामक आर्या अनुक्रम से विहार करती – करती तेतलिपुर नगर में आई। आकर यथोचित उपाश्रय ग्रहण करके संयम और तप से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी। तत्पश्चात्‌ उन सुव्रता आर्या के एक संघाड़े ने प्रथम प्रहर में
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Hindi 152 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे पोट्टिलाए अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबजागरियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झ-त्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं तेयलि-पुत्तस्स पुव्विं इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा आसि, इयाणिं अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणुण्णा अमणामा जाया। नेच्छइ णं तेयलीपुत्ते मम नामगोयमवि सवणयाए किं पुण दंसणं वा परिभोगं वा? तं सेयं खलु ममं सुव्वयाणं अज्जाणं अंतिए पव्वइत्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठि यम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते जेणेव तेयलिपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल-परिग्गहियं

Translated Sutra: एक बार किसी समय, मध्य रात्रि में जब वह कुटुम्ब के विषय में चिन्ता करती जाग रही थी, तब उसे विचार उत्पन्न हुआ – ‘मैं पहले तेतलिपुत्र को इष्ट थी, अब अनिष्ट हो गई हूँ; यावत्‌ दर्शन और परिभोग का तो कहना ही क्या है ? अत एव मेरे लिए सुव्रता आर्या के निकट दीक्षा ग्रहण करना ही श्रेयस्कर है।’ पोट्टिला दूसरे दिन प्रभात होने
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१४ तेतलीपुत्र

Hindi 154 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पोट्टिले देवे तेयलिपुत्तं अभिक्खणं-अभिक्खणं केवलिपन्नत्ते धम्मे संबोहेइ, नो चेव णं से तेयलिपुत्तं संबुज्झइ। तए णं तस्स पोट्टिलदेवस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु कनगज्झए राया तेयलिपुत्तं आढाइ जाव भोगं च से अनुवड्ढेइ, तए णं से तेयलिपुत्ते अभिक्खणं-अभिक्खणं संबोहिज्जमाणे वि धम्मे नो संबुज्झइ। तं सेयं खलु ममं कनगज्झयं तेयलिपुत्ताओ विप्परिणामित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कनगज्झयं तेयलिपुत्तओ विप्परिणामेइ। तए णं तेयलिपुत्ते कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे

Translated Sutra: उधर पोट्टिल देव ने तेतलिपुत्र को बार – बार केवलिप्ररूपित धर्म का प्रतिबोध दिया परन्तु तेतलिपुत्र को प्रतिबोध हुआ ही नहीं। तब पोट्टिल देव को इस प्रकार का विचार उत्पन्न हुआ – ‘कनकध्वज राजा तेतलिपुत्र का आदर करता है, यावत्‌ उसका भोग बढ़ा दिया है, इस कारण तेतलिपुत्र बार – बार प्रतिबोध देने पर भी धर्म में प्रतिबुद्ध
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 172 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तं दोवइं रायवरकण्णं अंतेउरियाओ सव्वालंकारविभूसियं करेंति। किं ते? वरपायपत्तनेउरा जाव चेडिया-चक्कवाल-महयरग-विंद-परिक्खित्ता अंतेउराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं चाउग्घंटं आसरहं दुरूहइ। तए णं से धट्ठज्जुणे कुमारे दोवईए रायवरकन्नाए सारत्थं करेइ। तए णं सा दोवई रायवरकन्ना कंपिल्लपुरं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सयंवरामंडवे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता किड्डावियाए लेहियाए सद्धिं सयंवरामडबं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ अन्तःपुर की स्त्रियों ने राजवरकन्या द्रौपदी को सब अलंकारों से विभूषित किया। किस प्रकार ? पैरों में श्रेष्ठ नूपुर पहनाए यावत्‌ वह दासियों के समूह से परिवृत्त होकर अन्तःपुर से बाहर नीकलकर जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी और जहाँ चार घंटाओं वाला अश्वरथ था, वहाँ आई। आकर क्रीड़ा करने वाली धाय और लेखिका
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 175 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कच्छुल्लनारयस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अहो णं दोवई देवी रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य पंचहिं पंडवेहिं अवत्थद्धा समाणी ममं नो आढाइ नो परियाणइ नो अब्भुट्ठेइ नो पज्जुवासइ। तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करेत्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पंडुरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पयणिं विज्जं आवाहेइ, आवाहेत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए विज्जाहरगईए लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं पुरत्थाभिमुहे वीईवइउं पयत्ते यावि होत्था। तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्ध-दाहिणड्ढ-भरहवासे

Translated Sutra: तब कच्छुल्ल नारद को इस प्रकार का अध्यवसाय चिन्तित प्रार्थित मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि – ‘अहो! यह द्रौपदी अपने रूप, यौवन, लावण्य और पाँच पाण्डवों के कारण अभिमानिनी हो गई है, अत एव मेरा आदर नहीं करती यावत्‌ मेरी उपासना नहीं करती। अत एव द्रौपदी देवी का अनिष्ट करना मेरे लिए उचित है।’ इस प्रकार नारद ने विचार करके
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 176 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जुहिट्ठिल्ले राया तओ मुहुत्तंतरस्स पडिबुद्धे समाणे दोवइं देविं पासे अपासमाणे सयणिज्जाओ उट्ठेइ, उट्ठेत्ता दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करेत्ता दोवईए देवीए कत्थइ सुइं वा खुइं वा पवत्तिं वा अलभमाणे जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पंडुं रायं एवं वयासी–एवं खलु ताओ! ममं आगासतलगंसि सुहपसुत्तस्स पासाओ दोवई देवी न नज्जइ केणइ देवेन वा दानवेन वा किण्णरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा हिया वा निया वा अवक्खित्ता वा। तं इच्छामि णं ताओ! दोवईए देवीए सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करित्तए। तए णं से पंडू राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ,

Translated Sutra: इधर द्रौपदी का हरण हो जाने के पश्चात्‌ थोड़ी देर में युधिष्ठिर राजा जागे। वे द्रौपदी देवी को अपने पास न देखते हुए शय्या से उठे। सब तरफ द्रौपदी देवी की मार्गणा करने लगे। किन्तु द्रौपदी देवी की कहीं भी श्रुति, क्षुति या प्रवृत्ति न पाकर जहाँ पाण्डु राजा थे वहाँ पहुँचे। वहाँ पहुँचकर पाण्डु राजा से इस प्रकार बोले
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१६ अवरकंका

Hindi 182 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो अन्नया कयाइ पंडुमहुराओ नयरीओ सहस्संबवणाओ उज्जाणाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी जेणेव सुरट्ठाजनवए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरट्ठाजनवयंसि संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ, भासइ पन्नवेइ परूवेइ–एवं खलु देवानुप्पिया! अरहा अरिट्ठनेमी सुरट्ठाजनवए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अनगारा बहुजनस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! अरहा

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ किसी समय स्थविर भगवंत पाण्डुमथुरा नगरी के सहस्राम्रवन नामक उद्यान से नीकले। नीकल कर बाहर जनपदों में विचरण करने लगे। उस काल और उस समय में अरिहंत अरिष्टनेमि जहाँ सुराष्ट्र जनपद था, वहाँ पधारे। सुराष्ट्र जनपद में संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। उस समय बहुत जन परस्पर इस प्रकार
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 185 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ते संजत्ता-नावावाणियगे एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! गामागर-नगर-खेड-कब्बड-दोणमुह-मडंब-पट्टण-आसम-निगम-संबाह-सण्णिवेसाइं० आहिंडह, लवणसमुद्दं च अभिक्खणं-अभिक्खणं पोयवहणेणं ओगाहेह। तं अत्थियाइं च केइ भे कहिंचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे? तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा कनगकेऊ एवं वयासी–एवं खलु अम्हे देवानुप्पिया! इहेव हत्थिसीसे नयरे परिवसामो तं चेव जाव कालियदीवंतेणं संछूढा। तत्थ णं बहवे हिरन्नागरे य सुवण्णागरे य रयणागरे य वइरागरे य, बहवे तत्थ आसे पासामो। किं ते? हरिरेणु जाव अम्हं गंधं आघायंति, आघाइत्ता भीया तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा तओ अनेगाइं जोयणाइं उब्भमंति।

Translated Sutra: फिर राजा ने उन सांयात्रिक नौकावणिकों से कहा – ‘देवानुप्रिय ! तुम लोग ग्रामों में यावत्‌ आकरों में घूमते हो और बार – बार पोतवहन द्वारा लवणसमुद्र में अवगाहन करते हो, तुमने कहीं कोई आश्चर्यजनक – अद्‌भुत – अनोखी वस्तु देखी है ?’ तब सांयात्रिक नौकावणिकों ने राजा कनककेतु से कहा – ‘देवानुप्रिय ! हम लोग इसी हस्तिशीर्ष
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Hindi 186 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं अत्थेगइया आसा जेणेव उक्किट्ठा सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधा तेणेव उवागच्छंति। तेसु उक्किट्ठेसु सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधेसु मुच्छिया गढिया गिद्धा अज्झोववण्णा पयत्ता यावि होत्था। तए णं ते आसा ते उक्किट्ठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे आसेवमाणा तेहिं बहूहिं कूडेहि य पासेहि य गलएसु य पाएसु य बज्झंति। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा ते आसे गिण्हंति, गिण्हित्ता एगट्ठियाहिं पोयवहणे संचारेंति, कट्ठस्स य तणस्स य पाणियस्स य तंदुलाण य समियस्स य गोरसस्स य जाव अन्नेसिं च बहूणं पोयवहण-पाउग्गाणं पोयवहणं भरेंति। तए णं ते संजत्ता-नावावाणियगा दक्खिणाणुकूलेणं वाएणं जेणेव गंभीरए पोयपट्टणे तेणेव

Translated Sutra: उन घोड़ों में से कितनेक घोड़े जहाँ वे उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध थे, वहाँ पहुँचे। वे उन उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध में मूर्च्छित हुए, अति आसक्त हो गए और उनका सेवन करने में प्रवृत्त हो गए। उस उत्कृष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध का सेवन करने वाले वे अश्व कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बहुत से कूट पाशों
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Hindi 210 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चिलाए चोरसेनावई अन्नया कयाइ विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं उवक्खडावेत्ता ते पंच चोरसए आमंतेइ तओ पच्छा ण्हाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहि पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असन-पान-खाइम-साइमं सुरं च मज्जं च मंसं च सीधुं च पसन्नं च आसाएमाणे विसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ, जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव-पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ सम्मानेइ, सक्कारेत्ता सम्मानेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! रायगिहे नयरे धने नामं सत्थवाहे सड्ढे। तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अनुमग्गजाइया सुंसुमा नामं दारिया–अहीना जाव सुरूवा।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ चिलात चोरसेनापति ने एक बार किसी समय विपुल अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य तैयार करवा कर पाँच सौ चोरों को आमंत्रित किया। फिर स्नान तथा बलिकर्म करके भोजन – मंडप में उन पाँच सौ चोरों के साथ विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम का तथा सूरा प्रसन्ना नामक मदिराओं का आस्वादन, विस्वादन, वितरण एवं परिभोग करने लगा।
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 215 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कंडरीयस्स अनगारस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लूहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कंतेहि य पमाणाइक्कंतेहि य निच्चं पानभोयणेहि य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया–उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। पित्तज्जर-परिगयसरीरे दाहवक्कंतीए यावि विहरइ। तए णं थेरा अन्नया कयाइ जेणेव पोंडरीगिणी नयरी तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता नलिनीवने समोसढा। पुंडरीए निग्गए। धम्मं सुणेइ। तए णं पुंडरीए राया धम्मं सोच्चा जेणेव कंडरीए अनगारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कंडरीयं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ कंडरीक अनगार के शरीर में अन्त – प्रान्त अर्थात्‌ रूखे – सूखे आहार के कारण शैलक मुनि के समान यावत्‌ दाह – ज्वर उत्पन्न हो गया। वे रुग्ण होकर रहने लगे। तत्पश्चात्‌ एक बार किसी समय स्थविर भगवंत पुण्डरीकिणी नगरी में पधारे और नलिनीवन उद्यान में ठहरे। तब पुंडरीक राजमहल से नीकला और उसने धर्म – देशना
Gyatadharmakatha धर्मकथांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१९ पुंडरीक

Hindi 216 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पुंडरीए सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, सयमेव चाउज्जामं धम्मं पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता कंडरीयस्स संतियं नायाधम्मकहाओभंडगं गेण्हइ, गेण्हित्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ–कप्पइ मे थेरे वंदित्ता नमंसित्ता थेराणं अंतिए चाउज्जामं धम्मं उवसंपज्जित्ता णं तओ पच्छा आहारं आहारित्तए त्ति कट्टु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता णं पुंडरीगिणीए पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामे दूइज्जमाणे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव पहारेत्थ गमणाए।

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ पुण्डरीक ने स्वयं पंचमुष्टिक लोच किया और स्वयं ही चातुर्याम धर्म अंगीकार किया। कंडरीक के आचारभाण्ड ग्रहण किए और इस प्रकार का अभिग्रह ग्रहण किया। ‘स्थविर भगवान को वन्दन – नमस्कार करने और उनके पास से चातुर्याम धर्म अंगीकार करने के पश्चात्‌ ही मुझे आहार करना कल्पता है।’ इस प्रकार का अभिग्रह धारण
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-८ मल्ली

Gujarati 82 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीमहयरियाओ जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जम्मणुस्सवं, नवरं–मिहिलाए कुंभस्स पभावईए अभिलाओ संजोएयव्वो जाव नंदीसरवरदीवे महिमा। तया णं कुंभए राया बहूहिं भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिएहिं देवेहिं तित्थयरजम्मणा-भिसेयमहिमाए कयाए समाणीए पच्चूसकालसमयंसि नगरगुत्तिए सद्दावेइ जायकम्मं जाव नाम-करणं–जम्हा णं अम्हं इमीसे दारियाए माऊए मल्लसय-णिज्जंसि डोहले विणीए, तं होउ णं अम्हं दारिया नामेणं मल्ली। तए णं सा मल्ली पंचधाईपरिक्खित्ता जाव सुहंसुहेणं परिवड्ढई०।

Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૨. તે કાળે, તે સમયે અધોલોકમાં વસનારી આઠ મહત્તરિકા દિશાકુમારીઓ, જેમ જંબૂદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિમાં જન્મ – વર્ણન છે, તે સર્વે કહેવું. વિશેષ આ – મિથિલામાં કુંભના ભવનમાં, પ્રભાવતીનો આલાવો કહેવો. યાવત્‌ નંદીશ્વર દ્વીપમાં મહોત્સવ કર્યો. ત્યારપછી કુંભરાજા તથા ઘણા ભવનપતિ આદિ ચારે દેવોએ તીર્થંકરનો જન્માભિષેક યાવત્‌
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 25 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं अद्धरत्तकालसमयंसि सुकुमालपाणिपायं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तए णं ताओ अंगपडियारियाओ धारिणिं देविं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयायं पासंति, पासित्ता सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तं णं अम्हे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૫. ત્યારપછી તે ધારિણીદેવી નવ માસ બહુ પ્રતિપૂર્ણ થયા પછી સાડા સાત રાત્રિદિવસ વીત્યા પછી, અર્ધ રાત્રિકાળ સમયમાં સુકુમાલ હાથ પગવાળા યાવત્‌ સર્વાંગ સુંદર બાળકને જન્મ આપ્યો. ત્યારે તે અંગપ્રતિચારિકાઓ, ધારિણી દેવીને નવ માસ પ્રતીપૂર્ણ થતા યાવત્‌ બાળકને જન્મ આપેલ જોઈને, શીઘ્ર, ત્વરિત, ચપળ, વેગવાળી ગતિથી
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Gujarati 64 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं बारवईए नयरीए थावच्चा नामं गाहावइणी परिवसइ–अड्ढा दित्ता वित्ता वित्थिण्ण-विउल-भवन-सयनासन -जानवाहना बहुधन-जायरूव-रयया आओग-पओग-संपउत्ता विच्छड्डिय-पउर-भत्तपाणा बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलग-प्पभूया बहुजनस्स अपरिभूया। तीसे णं थावच्चाए गाहावइणीए पुत्ते थावच्चापुत्ते नामं सत्थवाहदारए होत्था–सुकुमालपाणिपाए अहीन-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरे लक्खण-वंजण-गुणोववेए मानुम्मान-प्पमाणपडिपुण्ण-सुजाय-सव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी तं दारगं साइरेगअट्ठवासजाययं जाणित्ता सोहणंसि तिहि-करण-नक्खत्त-मुहुत्तंसि कलायरियस्स

Translated Sutra: તે દ્વારવતી નગરીમાં થાવચ્ચા નામે ગૃહપત્ની રહેતી હતી, તે ધનાઢ્યા યાવત્‌ અપરિભૂતા હતી. તે થાવચ્ચા ગૃહપત્નીનો પુત્ર થાવચ્ચાપુત્ર નામે સાર્થવાહપુત્ર હતો, જે સુકુમાલ યાવત્‌ સુરૂપ હતો. ત્યારે તે થાવચ્ચા ગૃહપત્ની, તે પુત્રને સાતિરેક આઠ વર્ષનો થયેલો જાણીને શોભન તિથિ – કરણ – નક્ષત્ર – મુહૂર્ત્તમાં કલાચાર્ય પાસે
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Gujarati 65 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] थावच्चापुत्ते वि निग्गए। जहा मेहे तहेव धम्मं सोच्चा निसम्म जेणेव थावच्चा गाहावइणी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पायग्गहणं करेइ। जहा मेहस्स तहा चेव निवेयणा। तए णं तं थावच्चापुत्तं थावच्चा गाहावइणी जाहे नो संचाएइ विसयाणुलोमाहि य विसय-पडिकूलाहि य बहूहिं आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विन्नवणाहि य आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा ताहे अकामिया चेव थावच्चापुत्तस्स दारगस्स निक्खमणमणुमन्नित्था। तए णं सा थावच्चा गाहावइणी आसणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता महत्थं महग्घं महरिहं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणेणं

Translated Sutra: થાવચ્ચા પુત્ર, મેઘકુમારની માફક નીકળ્યો. તેની જેમજ ધર્મ સાંભળ્યો, અવધાર્યો, પછી થાવચ્ચા ગાથાપત્ની પાસે આવ્યો. આવીને માતાના પગે પડ્યો. મેઘકુમારની માફક નિવેદના કરી, માતા જ્યારે વિષયને અનુકૂળ અને પ્રતિકૂળ ઘણી જ આઘવણા, પન્નવણા, સંજ્ઞાપના અને વિજ્ઞાપના વડે સામાન્ય કથન કરતા કે યાવત્‌ આજીજી કરતા પણ તેને મનાવવામાં
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ शेलक

Gujarati 69 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सेलगस्स रायरिसिस्स तेहिं अंतेहि य पंतेहि य तुच्छेहि य लूहेहि य अरसेहि य विरसेहि य सीएहि य उण्हेहि य कालाइक्कंतेहि य पमाणाइक्कंतेहि य निच्चं पाणभोयणेहि य पयइ-सुकुमालस्स सुहोचियस्स सरीरगंसि वेयणा पाउब्भूया –उज्जला विउला कक्खडा पगाढा चंडा दुक्खा दुरहियासा। कंडु-दाह-पित्तज्जर-परिगयसरीरे यावि विहरइ। तए णं से सेलए तेणं रोयायंकेणं सुक्के भुक्खे जाए यावि होत्था। तए णं से सेलए अन्नया कयाइ पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव सेल-गपुरे नयरे जेणेव सुभूमिभागे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं

Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૯. ત્યારપછી તે પ્રકૃતિ સુકુમાર અને સુખોચિત શૈલકરાજર્ષિને તેવા અંત, પ્રાંત, તુચ્છ, રૂક્ષ, અરસ, વિરસ, શીત, ઉષ્ણ, કાલાતિક્રાંત, પ્રમાણાતિક્રાંત નિત્ય ભોજનપાન વડે શરીરમાં ઉત્કટ યાવત્‌ દુઃસહ્ય વેદના ઉત્પન્ન થઈ, ખુજલી – દાહ – પિત્તજ્વર વ્યાપ્ત શરીરી થઈ યાવત્‌ વિચરતા હતા. ત્યારે શૈલકરાજર્ષિ તે રોગાંતકથી
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 5 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया, तामेव दिसिं पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स अनगारस्स जेट्ठे अंतेवासी अज्जजंबू नामं अनगारे कासवगोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंस-संठाण-संठिए वइररिसह-नाराय-संघयणे कनग-पलग-निघस-पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे उराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्त-विउल-तेयलेस्से अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से अज्जजंबूनामे अनगारे जायसड्ढे जायसंसए जायकोउहल्ले संजायसड्ढे

Translated Sutra: સૂત્ર– ૫. ત્યારે ચંપાનગરીથી પર્ષદા – જનસમૂહ નીકળ્યો. રાજા કોણિક નીકળ્યો. સુધર્માસ્વામીએ ધર્મ કહ્યો. ધર્મ સાંભળીને પર્ષદા જે દિશાથી આવેલી, તે દિશામાં પાછી ગઈ. તે કાળે, તે સમયે આર્ય સુધર્મા અણગારના મોટા શિષ્ય આર્ય જંબૂ નામે અણગાર, જે કાશ્યપ ગોત્રના હતા, સાત હાથ ઉંચા હતા યાવત્‌ આર્ય સુધર્મા સ્થવિરની દૂર નહીં
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान

Gujarati 12 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी अन्नदा कदाइ तंसि तारिसगंसि–छक्कट्ठग-लट्ठमट्ठ-संठिय-खंभुग्गय-पवरवर-सालभंजिय-उज्जलमणिकनगरयणथूभियविडंकजालद्ध चंदनिज्जूहंतरकणयालिचंदसालियावि-भत्तिकलिए सरसच्छधाऊबलवण्णरइए बाहिरओ दूमिय-घट्ठ-मट्ठे अब्भिंतरओ पसत्त-सुविलिहिय-चित्तकम्मे नानाविह-पंचवण्ण-मणिरयण-कोट्ठिमतले पउमलया-फुल्लवल्लि-वरपुप्फजाइ-उल्लोय-चित्तिय-तले वंदन-वरकनगकलससुणिम्मिय-पडिपूजिय-सरसपउम-सोहंतदारभाए पयरग-लंबंत-मणिमुत्त-दाम-सुविरइयदारसोहे सुगंध-वरकुसुम-मउय-पम्हलसयणोवयार-मणहिययनिव्वुइयरे कप्पूर-लवंग- मलय-चंदन- कालागरु-पवर- कुंदुरुक्क-तुरुक्क- धूव-डज्झंत- सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धुयाभिरामे

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૧
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