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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 913 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कालगए समाणे किं गतिं गच्छति?
गोयमा! देवगतिं गच्छति।
देवगतिं गच्छमाणे किं भवनवासीसु उववज्जेज्जा? वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा? जोइसिएसु उववज्जेज्जा? वेमा-णिएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! नो भवनवासीसु, नो वाणमंतरेसु, नो जोइसिएसु, वेमाणिएसु उववज्जेज्जा। वेमाणिएसु उववज्जमाणे जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे उववज्जेज्जा।
बउसे णं एवं चेव, नवरं–उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे। पडिसेवणाकुसीले जहा बउसे। कसायकुसीले जहा पुलाए, नवरं–उक्कोसेणं अनुत्तरविमानेसु उववज्जेज्जा। नियंठे णं एवं चेव जाव वेमाणिएसु उववज्ज-माणे अजहन्नमणुक्कोसेनं अनुत्तरविमानेसु Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक मरकर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में। भगवन् ! यदि वह देवगति में जाता है तो क्या भवनपत्तियों में उत्पन्न होता है या वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह केवल वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है। वैमानिक देवों में उत्पन्न होता हुआ पुलाक जघन्य सौधर्मकल्प में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 914 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलागस्स णं भंते! केवतिया संजमट्ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा संजमट्ठाणा पन्नत्ता। एवं जाव कसायकुसीलस्स।
नियंठस्स णं भंते! केवतिया संजमट्ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! एगे अजहन्नमणुक्कोसए संजमट्ठाणे। एवं सिणायस्स वि।
एतेसि णं भंते! पुलाग-बउस-पडिसेवणा-कसायकुसील-नियंठ-सिणायाणं संजमट्ठाणाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा? बहुया वा? तुल्ला वा? विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवे नियंठस्स सिणायस्स य एगे अजहन्नमणुक्कोसए संजमट्ठाणे। पुलागस्स णं संजमट्ठाणा असंखेज्जगुणा। बउसस्स संजमट्ठाणा असंखेज्जगुणा। पडिसेवणाकुसीलस्स संजमट्ठाणा असंखेज्जगुणा। कसायकुसीलस्स संजमट्ठाणा Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक के संयमस्थान कितने कहे हैं ? गौतम ! असंख्यात हैं। इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक कहना। भगवन् ! निर्ग्रन्थ के संयमस्थान ? गौतम ! एक ही अजघन्य – अनुत्कृष्ट संयमस्थान है। इसी प्रकार स्नातक के विषय में समझना। भगवन् ! पुलाक, बकुश, प्रतिसेवनाकुशील, कषायकुशील, निर्ग्रन्थ और स्नातक, इनके संयमस्थानों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 915 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलागस्स णं भंते! केवतिया चरित्तपज्जवा पन्नत्ता?
गोयमा! अनंता चरित्तपज्जवा पन्नत्ता। एवं जाव सिणायस्स।
पुलाए णं भंते! पुलागस्स सट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं किं हीने? तुल्ले? अब्भहिए?
गोयमा! सिय हीने, सिय तुल्ले, सिय अब्भहिए।
जइ हीने अनंतभागहीने वा, असंखेज्जइभागहीने वा, संखेज्जइभागहीने वा, संखेज्जगुणहीने वा, असंखेज्जगुणहीने वा, अनंतगुणहीने वा। अह अब्भहिए अनंतभागमब्भहिए वा, असंखेज्जइ-भागमब्भहिए वा, संखेज्जभागमब्भहिए वा, संखेज्जगुणमब्भहिए वा, असंखेज्जगुणमब्भहिए वा, अनंतगुणमब्भहिए वा।
पुलाए णं भंते! बउसस्स परट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं किं हीने? Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक के चारित्र – पर्यव कितने होते हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। इसी प्रकार स्नातक तक कहना चाहिए भगवन् ! एक पुलाक, दूसरे पुलाक के स्वस्थान – सन्निकर्ष से चारित्र – पर्यायों से हीन है, तुल्य है या अधिक है ? गौतम ! वह कदाचित् हीन होता है, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है। यदि हीन हो तो अनन्त – भागहीन, असंख्यातभागहीन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 916 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं सजोगी होज्जा? अजोगी होज्जा?
गोयमा! सजोगी होज्जा, नो अजोगी होज्जा।
जइ सजोगी होज्जा किं मनजोगी होज्जा? वइजोगी होज्जा? कायजोगी होज्जा?
गोयमा! मणजोगी वा होज्जा, वइजोगी वा होज्जा, कायजोगी वा होज्जा। एवं जाव नियंठे।
सिणाए णं–पुच्छा।
गोयमा! सजोगी वा होज्जा, अजोगी वा होज्जा। जइ सजोगी होज्जा किं मनजोगी होज्जा–सेसं जहा पुलागस्स। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक सयोगी होता है या अयोगी होता है ? गौतम ! वह सयोगी होता है, अयोगी नहीं होता है। भगवन् ! यदि वह सयोगी होता है तो क्या वह मनोयोगी होता है, वचनयोगी होता है या काययोगी होता है ? गौतम! तीनो योग वाला होता है। इसी प्रकार यावत् निर्ग्रन्थ तक जानना चाहिए। भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह सयोगी भी होता है और अयोगी भी। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 917 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं सागारोवउत्ते होज्जा? अनागारोवउत्ते होज्जा?
गोयमा! सागारोवउत्ते वा होज्जा, अनागारोवउत्ते वा होज्जा। एवं जाव सिणाए। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक साकारोपयोगयुक्त होता है या अनाकारोपयोगयुक्त होता है ? गौतम ! वह साकारोपयो – गयुक्त भी होता है और अनाकारोपयोगयुक्त भी होता है। इसी प्रकार यावत् स्नातक तक कहना चाहिए। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 918 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! सकसायी होज्जा? अकसायी होज्जा?
गोयमा! सकसायी होज्जा, नो अकसायी होज्जा।
जइ सकसायी होज्जा, से णं भंते! कतिसु कसाएसु होज्जा?
गोयमा! चउसु कोह-मान-माया-लोभेसु होज्जा। एवं बउसे वि। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीले णं–पुच्छा।
गोयमा! सकसायी होज्जा, नो अकसायी होज्जा।
जइ सकसायी होज्जा, से णं भंते! कतिसु कसाएसु होज्जा?
गोयमा! चउसु वा तिसु वा दोसु वा एगम्मि वा होज्जा।
चउसु होमाणे चउसु संजलणकोह-मान-माया-लोभेसु होज्जा,
तिसु होमाणे तिसु संजलणमान-माया-लोभेसु होज्जा,
दोसु होमाणे संजलणमाया-लोभेसु होज्जा, एगम्मि होमाणे संजलणलोभे होज्जा।
नियंठे णं–पुच्छा।
गोयमा! नो Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक सकषायी होता है या अकषायी होता है ? गौतम ! वह सकषायी होता है, अकषायी नहीं होता। भगवन् ! यदि वह सकषायी होता है, तो कितने कषायों में होता है ? गौतम ! वह चारों कषायों में होता है। इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवनाकुशील को भी जानना। भगवन् ! कषायकुशील ? गौतम ! वह सकषायी होता है। भगवन् ! यदि वह सकषायी होता है, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 919 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं सलेस्से होज्जा? अलेस्से होज्जा?
गोयमा! सलेस्से होज्जा, नो अलेस्से होज्जा।
जइ सलेस्से होज्जा, से णं भंते! कतिसु लेस्सासु होज्जा?
गोयमा! तिसु विसुद्धलेस्सासु होज्जा, तं जहा–तेउलेस्साए, पम्हलेस्साए, सुक्कलेस्साए। एवं बउसस्स वि। एवं पडिसेवणाकु-सीले वि।
कसायकुसीले–पुच्छा।
गोयमा! सलेस्से होज्जा, नो अलेस्से होज्जा।
जइ सलेस्से होज्जा, से णं भंते! कतिसु लेस्सासु होज्जा?
गोयमा! छसु लेस्सासु होज्जा, तं जहा–कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए।
नियंठे णं भंते! –पुच्छा।
गोयमा! सलेस्से होज्जा, नो अलेस्से होज्जा।
जइ सलेस्से होज्जा, से णं भंते! कतिसु लेस्सासु होज्जा?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक सलेश्य होता है या अलेश्य होता है ? गौतम ! वह सलेश्य होता है अलेश्य नहीं होता है। भगवन् ! यदि वह सलेश्य होता है तो कितनी लेश्याओं में होता है ? गौतम ! वह तीन विशुद्ध लेश्याओं में होता है, यथा – तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्या में। इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवना कुशील जानना। भगवन् ! कषायकुशील | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 920 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा? हायमाणपरिणामे होज्जा? अवट्ठियपरिणामे होज्जा?
गोयमा! वड्ढमाणपरिणामे वा होज्जा, हायमाणपरिणामे वा होज्जा, अवट्ठियपरिणामे वा होज्जा। एवं जाव कसायकुसीले।
नियंठे णं–पुच्छा।
गोयमा! वड्ढमाणपरिणामे होज्जा, नो हायमाणपरिणामे होज्जा, अवट्ठियपरिणामे वा होज्जा। एवं सिणाए वि।
पुलाए णं भंते! केवतियं कालं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
केवतियं कालं हायमाणपरिणामे होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
केवतियं कालं अवट्ठियपरिणामे होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक, वर्द्धमानपरिणामी होता है, हीयमानपरिणामी होता है अथवा अवस्थितपरिणामी होता है? तीनों में होता है। इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक जानना। भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! वह वर्द्धमान और अवस्थित परिणाम वाला होता है। इसी प्रकार स्नातक के। भगवन् ! पुलाक कितने काल तक वर्द्धमान – परिणाम में होता है ? गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 921 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ बंधति?
गोयमा! आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधति।
बउसे–पुच्छा।
गोयमा! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा। सत्त बंधमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधति, अट्ठ बंधमाणे पडि-पुण्णाओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ बंधति। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीले–पुच्छा।
गोयमा! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, छव्विहबंधए वा। सत्त बंधमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ बंधति, अट्ठ बंधमाणे पडिपुण्णाओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ बंधति, छ बंधमाणे आउय-मोहणिज्जवज्जाओ छक्कम्मप्पगडीओ बंधति।
नियंठे णं–पुच्छा। गोयमा! एगं वेयणिज्जं कम्मं बंधइ।
सिणाए–पुच्छा।
गोयमा! एगविहबंधए Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! वह आयुष्यकर्म को छोड़कर सात कर्मप्र – कृतियाँ बाँधता है। भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह सात अथवा आठ कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है। यदि सात कर्म – प्रकृतियाँ बाँधता है, तो आयुष्य को छोड़कर शेष सात और यदि आयुष्यकर्म बाँधता है तो सम्पूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों को बाँधता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 922 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ वेदेइ?
गोयमा! नियमं अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेइ। एवं जाव कसायकुसीले।
नियंठे णं–पुच्छा।
गोयमा! मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेइ।
सिणाए णं–पुच्छा।
गोयमा! वेयणिज्ज-आउय-नाम-गोयाओ चत्तारि कम्मप्पगडीओ वेदेइ। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है ? गौतम ! नियम से आठों कर्मप्रकृतियों का। इसी प्रकार कषायकुशील तक कहना। भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! मोहनीयकर्म को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र इन चार कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 923 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ उदीरेति?
गोयमा! आउय-वेयणिज्जवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ उदीरेति।
बउसे–पुच्छा।
गोयमा! सत्तविहउदीरए वा, अट्ठविहउदीरए वा, छव्विहउदीरए वा। सत्त उदीरेमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ उदीरेति, अट्ठ उदीरेमाणे पडिपुण्णाओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ उदीरेति, छ उदीरेमाणे आउय-वेयणिज्जवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ उदीरेति। पडिसेवणाकुसीले एवं चेव।
कसायकुसीले–पुच्छा।
गोयमा! सत्तविहउदीरए वा, अट्ठविहउदीरए वा, छव्विहउदीरए वा, पंचविहउदीरए वा। सत्त उदीरेमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ उदीरेति, अट्ठ उदीरेमाणे पडिपुण्णाओ अट्ठ कम्मप्पगडीओ उदीरेति, छ उदीरेमाणे आउयवेयणिज्जवज्जाओ Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक कितनी कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है ? गौतम ! वह आयुष्य और वेदनीय के सिवाय शेष छह कर्मप्रकृतियों की उदीरणा करता है। भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह सात, आठ या छह कर्म – प्रकृतियों की उदीरणा करता है। सात की उदीरणा करता हुआ आयुष्य को छोड़कर सात कर्मप्रकृतियों को, आठ की उदीरणा करता है तो परिपूर्ण आठ कर्मप्रकृतियों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 924 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! पुलायत्तं जहमाणे किं जहति? किं उवसंपज्जति?
गोयमा! पुलायत्तं जहति। कसायकुसीलं वा अस्संजमं वा उवसंपज्जति।
बउसे णं भंते! बउसत्तं जहमाणे किं जहति? किं उवसंपज्जति?
गोयमा! बउसत्तं जहति। पडिसेवणाकुसीलं वा कसायकुसीलं वा अस्संजमं वा संजमासंजमं वा उवसंपज्जति।
पडिसेवणाकुसीले णं–पुच्छा।
गोयमा! पडिसेवणाकुसीलत्तं जहति। बउसं वा कसायकुसीलं वा अस्संजमं वा संजमासंजमं वा उवसंपज्जति।
कसायकुसीले णं–पुच्छा।
गोयमा! कसायकुसीलत्तं जहति। पुलायं वा बउसं वा पडिसेवणाकुसीलं वा नियंठं वा अस्संजमं वा संजमासंजमं वा उवसंपज्जति।
नियंठे–पुच्छा।
गोयमा! नियंठत्तं जहति। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक, पुलाकपन को छोड़ता हुआ क्या छोड़ता है और क्या प्राप्त करता है ? गौतम ! वह पुलाकपन का त्याग करता है और कषायकुशीलपन या असंयम को प्राप्त करता है। भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह बकुशत्व का त्याग करता है और प्रतिसेवनाकुशीलत्व, कषायकुशीलत्व, असंयम या संयमासंयम को प्राप्त करता है। भगवन् ! प्रतिसेवनाकुशील ? गौतम | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 925 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं सण्णोवउत्ते होज्जा? नोसण्णोवउत्ते होज्जा?
गोयमा! नोसण्णोवउत्ते होज्जा।
बउसे णं भंते! – पुच्छा।
गोयमा! सण्णोवउत्ते वा होज्जा, नो सण्णोवउत्ते वा होज्जा। एवं पडिसेवणाकुसीले वि। एवं कसायकुसीले वि। नियंठे सिणाए य जहा पुलाए। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक संज्ञोपयुक्त होता है अथवा नोसंज्ञोपयुक्त होता है ? गौतम ! वह संज्ञोपयुक्त नहीं होता, नोसंज्ञोपयुक्त होता है। भगवन् ! बकुश ? गौतम ! वह संज्ञोपयुक्त भी होता है और नोसंज्ञोपयुक्त भी होता है। इसी प्रकार प्रतिसेवना और कषाय भी जानना कुशील। कषायकुशील के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। निर्ग्रन्थ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 926 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! किं आहारए होज्जा? अनाहारए होज्जा?
गोयमा! आहारए होज्जा, नो अनाहारए होज्जा। एवं जाव नियंठे।
सिणाए–पुच्छा।
गोयमा! आहारए वा होज्जा, अनाहारए वा होज्जा। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक आहारक होता है अथवा अनाहारक होता है ? गौतम ! वह आहारक होता है, अनाहारक नहीं होता है। इसी प्रकार निर्ग्रन्थ तक कहना चाहिए। भगवन् ! स्नातक ? गौतम ! वह आहारक भी होता है और अनाहारक भी होता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 927 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कति भवग्गहणाइं होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं, उक्कोसेणं तिन्नि।
बउसे–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं, उक्कोसेणं अट्ठ। एवं पडिसेवणाकुसीले वि। एवं कसायकुसीले वि। नियंठे जहा पुलाए।
सिणाए–पुच्छा। गोयमा! एक्कं। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक कितने भव ग्रहण करता है ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन भव। भगवन् ! बकुश ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट आठ। इसी प्रकार प्रतिसेवन और कषाय कुशील है। कषायकुशील भी इसी प्रकार है। निर्ग्रन्थ पुलाक के समान है। भगवन् ! स्नातक ? वह एक भव ग्रहण करता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 928 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलागस्स णं भंते! एगभवग्गहणीया केवतिया आगरिसा पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं तिन्नि।
बउसस्स णं–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं सतग्गसो। एवं पडिसेवणाकुसीले वि, कसायकुसीले वि।
नियंठस्स णं–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं दोण्णि।
सिणायस्स णं–पुच्छा।
गोयमा! एक्को।
पुलागस्स णं भंते! नाणाभवग्गहणीया केवतिया आगरिसा पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं दोण्णि, उक्कोसेणं सत्त।
बउसस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं दोण्णि, उक्कोसेणं सहस्सग्गसो। एवं जाव कसायकुसीलस्स।
नियंठस्स णं–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं दोण्णि, उक्कोसेणं पंच।
सिणायस्स–पुच्छा।
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक के एकभव – ग्रहण – सम्बन्धी आकर्ष कितने कहे हैं ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन आकर्ष। भगवन् ! बकुश ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट सैकड़ों आकर्ष होते हैं। इसी प्रकार प्रतिसेवना और कषायकुशील को भी जानना। भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट दो आकर्ष होते हैं। भगवन् ! स्नातक के ? गौतम ! उसको | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 929 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं।
बउसे–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी। एवं पडिसेवणाकुसीले वि, कसाय-कुसीले वि।
नियंठे–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
सिणाए–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।
पुलाया णं भंते! कालओ केवच्चिरं होंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
बउसा णं–पुच्छा।
गोयमा! सव्वद्धं। एवं जाव कसायकुसीला। नियंठा जहा पुलागा। सिणाया जहा बउसा। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाकत्व काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त। भगवन् ! बकुशत्व ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटिवर्ष तक रहता है। इसी प्रकार प्रति – सेवना और कषायकुशील को समझना। भगवन् ! निर्ग्रन्थत्व ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 930 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलागस्स णं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं अनंतं कालं–अनंताओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अवड्ढं पोग्गल-परियट्टं देसूणं। एवं जाव नियंठस्स।
सिणायस्स–पुच्छा।
गोयमा! नत्थि अंतरं।
पुलायाणं भंते! केवतियं कालं अंतरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वासाइं।
बउसाणं भंते! –पुच्छा।
गोयमा! नत्थि अंतरं। एवं जाव कसायकुसीलाणं।
नियंठाणं–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा। सिणायाणं जहा बउसाणं। Translated Sutra: भगवन् ! (एक) पुलाक का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का होता है। (अर्थात्) अनन्त अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल का और क्षेत्र की अपेक्षा देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्तन का। इसी प्रकार निर्ग्रन्थ तक जानना। भगवन् ! स्नातक का ? गौतम ! उसका अन्तर नहीं होता। भगवन् ! (अनेक) | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 931 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलागस्स णं भंते! कति समुग्घाया पन्नत्ता?
गोयमा! तिन्नि समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए।
बउसस्स णं भंते! –पुच्छा।
गोयमा! पंच समुग्घाया पन्नत्ता, तं० वेयणासमुग्घाए जाव तेयासमुग्घाए। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीलस्स–पुच्छा।
गोयमा! छ समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेयणासमुग्घाए जाव आहारसमुग्घाए।
नियंठस्स णं–पुच्छा। गोयमा! नत्थि एक्को वि।
सिणायस्स–पुच्छा।
गोयमा! एगे केवलिसमुग्घाए पन्नत्ते। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक के कितने समुद्घात कहे हैं ? गौतम ! तीन समुद्घात – वेदनासमुद्घात, कषायसमुद्घात और मारणान्तिकसमुद्घात। भगवन् ! बकुश के ? गौतम ! पाँच समुद्घात कहे हैं, वेदनासमुद्घात से लेकर तैजस समुद्घात तक। इसी प्रकार प्रतिसेवनाकुशील को समझना। भगवन् ! कषायकुशील के ? गौतम ! छह समुद्घात हैं, वेदनासमुद्घात | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 932 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! लोगस्स किं संखेज्जइभागे होज्जा? असंखेज्जइभागे होज्जा? संखेज्जेसु भागेसु होज्जा? असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा? सव्वलोए होज्जा?
गोयमा! नो संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, नो सव्वलोए होज्जा। एवं जाव नियंठे।
सिणाए णं–पुच्छा।
गोयमा! नो संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु भागेसु होज्जा, असंखेज्जेसु भागेसु होज्जा, सव्वलोए वा होज्जा। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक लोक के संख्यातवे भाग में होते हैं, असंख्यातवे भाग में होते हैं, संख्यातभागों में होते हैं, असंख्यातभागों में होते हैं या सम्पूर्ण लोक में होते हैं ? गौतम ! वह लोक के संख्यातवे भाग में नहीं होते, किन्तु असंख्यातवे भाग में होते हैं, संख्यातभागों में असंख्यातभागों में या सम्पूर्ण लोक में नहीं होते | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 934 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कतरम्मि भावे होज्जा?
गोयमा! खओवसमिए भावे होज्जा। एवं जाव कसायकुसीले।
नियंठे–पुच्छा।
गोयमा! ओवसमिए वा खइए वा भावे होज्जा।
सिणाए–पुच्छा।
गोयमा! खइए भावे होज्जा। Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक किस भाव में होता है ? गौतम ! वह क्षायोपशमिक भाव में होता है। इसी प्रकार यावत् कषायकुशील तक जानना। भगवन् ! निर्ग्रन्थ ? गौतम ! औपशमिक या क्षायिक भाव में। भगवन् ! स्नातक ? वह क्षायिक भाव में होता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 935 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाया णं भंते! एगसमएणं केवतिया होज्जा?
गोयमा! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अत्थि, सिय नत्थि। जइ अत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं।
पुव्वपडिवण्णए पडुच्च सिय अत्थि, सिय नत्थि। जइ अत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सहस्सपुहत्तं।
बउसा णं भंते! एगसमएणं–पुच्छा।
गोयमा! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अत्थि, सिय नत्थि। जइ अत्थि जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं सयपुहत्तं पुव्वपडिवण्णए पडुच्च जहन्नेणं कोडिसयपुहत्तं, उक्कोसेण वि कोडिसयपुहत्तं। एवं पडिसेवणाकुसीले वि।
कसायकुसीलाणं–पुच्छा।
गोयमा! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अत्थि, Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक एक समय में कितने होते हैं ? गौतम ! प्रतिपद्यमान पूर्व प्रतिपन्न दोनों अपेक्षा पुलाक कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं। पूर्वप्रतिपन्न की अपेक्षा भी पुलाक कदाचित् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 936 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! संजया पन्नत्ता?
गोयमा! पंच संजया पन्नत्ता, तं जहा–सामाइयसंजए, छेदोवट्ठावणियसंजए, परिहारविसुद्धियसंजए, सुहुमसंपरायसंजए, अहक्खायसंजए।
सामाइयसंजए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य, आवकहिए य।
छेदोवट्ठावणियसंजए णं–पुच्छा।
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सातियारे य, निरतियारे य।
परिहारविसुद्धियसंजए–पुच्छा।
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–निव्विसमाणए य, निव्विट्ठकाइए य।
सुहुमसंपरायसंजए–पुच्छा।
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–संकिलिस्समाणए य, विसुज्झमाणए य।
अहक्खायसंजए–पुच्छा।
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–छउमत्थे Translated Sutra: भगवन् ! संयत कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच, सामायिक – संयत, छेदोपस्थापनिक – संयत, परिहार – विशुद्धि – संयत, सूक्ष्मसम्पराय – संयत और यथाख्यात – संयत। भगवन् ! सामायिक – संयत कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो, इत्वरिक और यावत्कथिक। भगवन् ! छेदोपस्थापनिक – संयत ? गौतम ! दो, सातिचार और निरतिचार भगवन् ! परिहारविशुद्धिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 942 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं सवेदए होज्जा? अवेदए होज्जा?
गोयमा! सवेदए वा होज्जा, अवेदए वा होज्जा। जइ सवेदए–एवं जहा कसायकुसीले तहेव निरवसेसं। एवं छेदोवट्ठावणियसंजए वि। परिहारविसुद्धियसंजओ जहा पुलाओ। सुहुमसंपराय-संजओ अहक्खायसंजओ य तहा नियंठो।
सामाइयसंजए णं भंते! किं सरागे होज्जा? वीयरागे होज्जा?
गोयमा! सरागे होज्जा, नो वीयरागे होज्जा। एवं जाव सुहुमसंपरायसंजए। अहक्खायसंजए। जहा नियंठे।
सामाइयसंजए णं भंते! किं ठियकप्पे होज्जा? अट्ठियकप्पे होज्जा?
गोयमा! ठियकप्पे वा होज्जा, अट्ठियकप्पे वा होज्जा।
छेदोवट्ठावणियसंजए–पुच्छा।
गोयमा! ठियकप्पे होज्जा, नो अट्ठियकप्पे Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत सवेदी होता है या अवेदी ? गौतम ! वह सवेदी भी होता है और अवेदी भी। यदि वह सवेदी होता है, आदि सभी कथन कषायकुशील के अनुसार कहना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत में भी जानना। परिहारविशुद्धिकसंयत का कथन पुलाक समान। सूक्ष्मसम्परायसंयत और यथाख्यातसंयत का कथन निर्ग्रन्थ समान है। भगवन् ! सामायिकसंयत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 943 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं पुलाए होज्जा? बउसे जाव सिणाए होज्जा?
गोयमा! पुलाए वा होज्जा, बउसे जाव कसायकुसीले वा होज्जा, नो नियंठे होज्जा, नो सिणाए होज्जा। एवं छेदोवट्ठावणिए वि।
परिहारविसुद्धियसंजए णं–पुच्छा।
गोयमा! नो पुलाए, नो बउसे, नो पडिसेवणाकुसीले होज्जा; कसायकुसीले होज्जा, नो नियंठे होज्जा, नो सिणाए होज्जा। एवं सुहुमसंपराए वि।
अहक्खायसंजए–पुच्छा।
गोयमा! नो पुलाए होज्जा जाव नो कसायकुसीले होज्जा, नियंठे वा होज्जा, सिणाए वा होज्जा।
सामाइयसंजए णं भंते! किं पडिसेवए होज्जा? अपडिसेवए होज्जा?
गोयमा! पडिसेवए वा होज्जा, अपडिसेवए वा होज्जा। जइ पडिसेवए होज्जा–किं मूलगुणपडिसेवए Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत पुलाक होता है, अथवा बकुश, यावत् स्नातक होता है ? गौतम ! वह पुलाक, बकुश यावत् कषायकुशील होता है, किन्तु ‘निर्ग्रन्थ’ और स्नातक नहीं होता है। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय जानना। भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत ? गौतम ! वह केवल कषायकुशील होता हे। इसी प्रकार सूक्ष्मसम्पराय संयत में भी समझना। भगवन् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 944 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं ओसप्पिणिकाले होज्जा? उस्सप्पिणिकाले होज्जा? नोओसप्पिणि-नोउस्सप्पिणि-काले होज्जा?
गोयमा! ओसप्पिणिकाले जहा बउसे। एवं छेदोवट्ठावणिए वि, नवरं–जम्मण-संतिभावं पडुच्च चउसु वि पलिभागेसु नत्थि, साहरणं पडुच्च अन्नयरेसु पडिभागे होज्जा, सेसं तं चेव।
परिहारविसुद्धिए–पुच्छा।
गोयमा! ओसप्पिणिकाले वा होज्जा, उस्सप्पिणिकाले वा होज्जा, नोओसप्पिणि-नोउस्सप्पिणि-काले नो होज्जा। जइ ओसप्पिणिकाले होज्जा–जहा पुलाओ। उस्सप्पिणिकाले वि जहा पुलाओ। सुहुमसंपराइओ जहा नियंठो। एवं अहक्खाओ वि। Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत अवसर्पिणीकाल में होता है, उत्सर्पिणीकाल में होता है, या नोअवसर्पिणी – नोउत्सर्पिणीकाल में होता है ? गौतम ! वह अवसर्पिणीकाल में होता है, इत्यादि सब कथन बकुश के समान है। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत के विषय में भी समझना। विशेष यह कि जन्म और सद्भाव की अपेक्षा चारों पलिभागों में नहीं होता, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 945 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कालगए समाणे कं गतिं गच्छति?
गोयमा! देवगतिं गच्छति।
देवगतिं गच्छमाणे किं भवनवासीसु उववज्जेज्जा? वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा? जोइसिएसु उववज्जेज्जा? वेमाणिएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! नो भवनवासीसु उववज्जेज्जा– जहा कसायकुसीले। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए। सुहुमसंपराए जहा नियंठे।
अहक्खाए–पुच्छा।
गोयमा! एवं अहक्खायसंजए वि जाव अजहन्नमणुक्कोसेनं अनुत्तरविमानेसु उववज्जेज्जा; अत्थेगतिए सिज्झति जाव सव्व दुक्खाणं अंत करेति।
सामाइयसंजए णं भंते! देवलोगेसु उववज्जमाणे किं इंदत्ताए उववज्जति–पुच्छा।
गोयमा! अविराहणं पडुच्च एवं जहा Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत काल कर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में। भगवन् ! वह देवगति में जाता हुआ भवनवासी यावत् वैमानिकों में से किन देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह कषायकुशील के समान भवनपति में उत्पन्न नहीं होता, इत्यादि सब कहना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी समझना। परिहार – विशुद्धिकसंयत की गति | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 946 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजयस्स णं भंते! देवलोगेसु उववज्जमाणस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं दो पलिओवमाइं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। एवं छेदोवट्ठावणिए वि।
परिहारविसुद्धियस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं दो पलिओवमाइं, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाइं, सेसाणं जहा नियंठस्स।
सामाइयसंजयस्स णं भंते! केवतिया संजमट्ठाणा पन्नत्ता?
गोयमा! असंखेज्जा संजमट्ठाणा पन्नत्ता। एवं जाव परिहारविसुद्धियस्स।
सुहुमसंपरायसंजयस्स–पुच्छा।
गोयमा! असंखेज्जा अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाणा पन्नत्ता।
अहक्खायसंजयस्स–पुच्छा।
गोयमा! एगे अजहन्नमणुक्कोसए संजमट्ठाणे पन्नत्ते।
एएसि णं Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत के कितने संयमस्थान कहे हैं ? गौतम ! असंख्येय संयमस्थान हैं। इसी प्रकार यावत् परिहारविशुद्धिकसंयत के संयमस्थान होते हैं। भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयम के कितने संयमस्थान कहे हैं ? गौतम ! असंख्येय अन्तर्मुहूर्त्त के समय बराबर। भगवन् ! यथाख्यातसंयत के ? गौतम ! अजघन्य – अनुत्कृष्ट एक ही संयमस्थान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 947 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजयस्स णं भंते! केवइया चरित्तपज्जवा पन्नत्ता?
गोयमा! अनंता चरित्तपज्जवा पन्नत्ता। एवं जाव अहक्खायसंजयस्स।
सामाइयसंजए णं भंते! सामाइयसंजयस्स सट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं किं हीने? तुल्ले? अब्भहिए?
गोयमा! सिय हीने–छट्ठाणवडिए।
सामाइयसंजए णं भंते! छेदोवट्ठावणियसंजयस्स परट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं–पुच्छा।
गोयमा! सिय हीने–छट्ठाणवडिए। एवं परिहारविसुद्धियस्स वि।
सामाइयसंजए णं भंते! सुहुमसंपरागसंजयस्स परट्ठाणसण्णिगासेनं चरित्तपज्जवेहिं–पुच्छा।
गोयमा! हीने, नो तुल्ले, नो अब्भहिए, अनंतगुणहीने। एवं अहक्खायसंजयस्स वि। एवं छेदोवट्ठावणिए Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत के चारित्रपर्यव कितने कहे हैं ? गौतम ! अनन्त हैं। इसी प्रकार यथाख्यातसंयत तक के चारित्रपर्यव के विषय में जानना चाहिए। भगवन् ! एक सामायिकसंयत, दूसरे सामायिकसंयत के स्वस्थानसन्निकर्ष की अपेक्षा क्या हीन होता है, तुल्य होता है अथवा अधिक होता है ? गौतम ! वह कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 948 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा? हायमाणपरिणामे? अवट्ठियपरिणामे?
गोयमा! वड्ढमाणपरिणामे जहा पुलाए। एवं जाव परिहारविसुद्धिए।
सुहुमसंपराए–पुच्छा।
गोयमा! वड्ढमाणपरिणामे वा होज्जा, हायमाणपरिणामे वा होज्जा, नो अवट्ठियपरिणामे होज्जा। अहक्खाए जहा नियंठे।
सामाइयसंजए णं भंते! केवइयं कालं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं जहा पुलाए। एवं जाव परिहारविसुद्धिए।
सुहुमसंपरागसंजए णं भंते! केवतियं कालं वड्ढमाणपरिणामे होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं।
केवतियं कालं हायमाणपरिणामे होज्जा? एवं चेव।
अहक्खायसंजए णं Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत वर्द्धमान परिणाम वाला होता है, हीयमान परिणाम वाला होता है, अथवा अवस्थित परिणाम वाला होता है ? गौतम ! वह वर्द्धमान परिणाम वाला होता है; इत्यादि पुलाक के समान जानना। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त कहना। भगवन् ! सूक्ष्मसम्पराय संयत ? गौतम ! वह वर्द्धमान परिणाम वाला होता है या हीयमान | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 949 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ बंधइ?
गोयमा! सत्तविहबंधए वा, अट्ठविहबंधए वा, एवं जहा बउसे। एवं जाव परिहारविसुद्धिए।
सुहुमसंपरागसंजए–पुच्छा।
गोयमा! आउय-मोहणिज्जवज्जाओ छ कम्मप्पगडीओ बंधति। अहक्खायसंजए जहा सिणाए।
सामाइयसंजए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ वेदेति?
गोयमा! नियमं अट्ठ कम्मप्पगडीओ वेदेति। एवं जाव सुहुमसंपराए।
अहक्खाए–पुच्छा।
गोयमा! सत्तविहवेदए वा, चउव्विहवेदए वा। सत्त वेदेमाणे मोहणिज्जवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ वेदेति, चत्तारि वेदेमाणे वेयणिज्जाउय-नामगोयाओ चत्तारि कम्मप्पगडीओ वेदेति।
सामाइयसंजए णं भंते! कति कम्मप्पगडीओ उदीरेति?
गोयमा! सत्तविहउदीरए Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! सात या आठ; इत्यादि बकुश के समान जानना। इसी प्रकार परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त कहना। भगवन् ! सूक्ष्मसम्परायसंयत कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? गौतम ! आयुष्य और मोहनय कर्म को छोड़कर शेष छह। यथाख्यातसंयत स्नातक के समान हैं। भगवन् ! सामायिकसंयत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 950 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! सामाइयसंजयत्तं जहमाणे किं जहति? किं उवसंपज्जति?
गोयमा! सामाइयसंजयत्तं जहति। छेदोवट्ठावणियसंजयं वा, सुहुमसंपरागसंजयं वा, असंजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंप-ज्जति।
छेओवट्ठावणिए–पुच्छा।
गोयमा! छेओवट्ठावणियसंजयत्तं जहति। सामाइयसंजयं वा, परिहारविसुद्धियसंजयं वा, सुहुम-संपरागसंजयं वा असंजमं वा, संजमासंजमं वा उवसंपज्जति।
परिहारविसुद्धिए–पुच्छा।
गोयमा! परिहारविसुद्धियसंजयत्तं जहति। छेदोवट्ठावणियसंजयं वा असंजमं वा उवसंपज्जति।
सुहुमसंपराए–पुच्छा।
गोयमा! सुहुमसंपरायसंजयत्तं जहति। सामाइयसंजयं वा, छेओवट्ठावणिय-संजयं वा, अहक्खायसंजयं वा, Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत, सामायिकसंयतत्व त्यागते हुए किसको छोड़ता है और किसे ग्रहण करता है ? गौतम ! वह सामायिकसंयतत्व को छोड़ता है और छेदोपस्थापनीयसंयम, सूक्ष्मसम्परायसंयम, असंयम अथवा संयमासंयम को ग्रहण करता है। भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत ? गौतम ! वह छेदोपस्थापनीयसंयतत्व का त्याग करता है और सामायिकसंयम, परिहारविशुद्धिकसंयम, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 951 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! किं सण्णोवउत्ते होज्जा? नो सण्णोवउत्ते होज्जा?
गोयमा! सण्णोवउत्ते जहा बउसो। एवं जाव परिहारविसुद्धिए। सुहुमसंपराए अहक्खाए य जहा पुलाए।
सामाइयसंजए णं भंते! किं आहारए होज्जा? अनाहारए होज्जा? जहा पुलाए। एवं जाव सुहुम-संपराए। अहक्खायसंजए जहा सिणाए।
सामाइयसंजए णं भंते! कति भवग्गहणाइं होज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं, उक्कोसेणं अट्ठ। एवं छेदोवट्ठावणिए वि।
परिहारविसुद्धिए–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं, उक्कोसेणं तिन्नि। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत संज्ञोपयुक्त होता है या नोसंज्ञोपयुक्त होता है ? गौतम ! वह संज्ञोपयुक्त होता है, इत्यादि बकुश के समान जानना। इसी प्रकार का कथन परिहारविशुद्धिकसंयत पर्यन्त जानना। सूक्ष्मसम्पराय – संयत और यथाख्यातसंयत का कथन पुलाक के समान जानना। भगवन् ! सामायिकसंयत आहारक होता है या अनाहारक होता है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 952 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजयस्स णं भंते! एगभवग्गहणिया केवतिया आगरिसा पन्नत्ता?
गोयमा! जहन्नेणं जहा बउसस्स।
छेदोवट्ठावणियस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं वीसपुहत्तं।
परिहारविसुद्धियस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं तिन्नि।
सुहुमसंपरायस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं चत्तारि।
अहक्खायस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं एक्को, उक्कोसेणं दोण्णि।
सामाइयसंजयस्स णं भंते! नाणाभवग्गहणिया केवतिया आगरिसा पन्नत्ता?
गोयमा! जहा बउसे।
छेदोवट्ठावणियस्स–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं दोण्णि, उक्कोसेणं उवरिं नवण्हं सयाणं अंतो सहस्सस्स। परिहारविसुद्धियस्स Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत के एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट शतपृथ – क्त्व। भगवन् ! छेदोपस्थापनीयसंयत का एक भव में कितने आकर्ष होते हैं ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट बीस – पृथक्त्व। भगवन् ! परिहारविशुद्धिकसंयत के ? गौतम ! जघन्य एक और उत्कृष्ट तीन। भगवन् ! सूक्ष्म – सम्परायसंयत के ? गौतम ! जघन्य | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 953 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं नवहिं वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी। एवं छेदोवट्ठावणिए वि।
परिहारविसुद्धिए जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणएहिं एकूणतीसाए वासेहिं ऊणिया पुव्वकोडी। सुहुमसंपराए जहा नियंठे। अहक्खाए जहा सामाइयसंजए।
सामाइयसंजया णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! सव्वद्धं।
छेदोवट्ठावणियसंजया–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं अड्ढाइज्जाइं वाससयाइं, उक्कोसेणं पण्णासं सागरोवमकोडिसयसहस्साइं।
परिहारविसुद्धीयसंजया–पुच्छा।
गोयमा! जहन्नेणं देसूणाइं दो वाससयाइं, उक्कोसेणं देसूणाओ दो पुव्वकोडीओ।
सुहुमसंपरागसंजया–पुच्छा।
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन नौ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी कहना। परिहारविशुद्धिसंयत जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन २९ वर्ष कम पूर्वकोटिवर्ष पर्यन्त रहता है। सूक्ष्मसम्परायसंयत निर्ग्रन्थ के अनुसार कहना। यथाख्यातसंयत | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 963 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] दुविहे तवे पन्नत्ते, तं जहा–बाहिरए य, अब्भिंतरए य।
से किं तं बाहिरए तवे?
बाहिरए तवे छविहे पन्नत्ते, तं जहा– Translated Sutra: तप दो प्रकार का कहा गया है। यथा – बाह्य और आभ्यन्तर। (भगवन !) वह बाह्य तप किस प्रकार का है? (गौतम !) छह प्रकार का है। अनशन, अवमौदर्य, भिक्षाचर्या, रसपरित्याग, कायक्लेश और प्रतिसंलीनता। सूत्र – ९६३, ९६४ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 965 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनसने? अनसने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य, आवकहिए य।
से किं तं इत्तरिए? इत्तरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थे भत्ते, छट्ठे भत्ते, अट्ठमे भत्ते, दसमे भत्ते, दुवाल-समे भत्ते, चोद्दसमे भत्ते, अद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते जाव छम्मासिए भत्ते। सेत्तं इत्तरिए।
से किं तं आवकहिए? आवकहिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य, भत्तपच्चक्खाणे य।
से किं तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे य, अणीहारिमे य। नियमं अपडिकम्मे सेत्तं पाओवगमणे।
से किं तं भत्तपच्चक्खाणे? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे Translated Sutra: भगवन् ! अनशन कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – इत्वरिक और यावत्कथिक। भगवन् ! इत्वरिक अनशन कितने प्रकार का कहा है ? अनेक प्रकार का यथा – चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टम – भक्त, दशम – भक्त, द्वादशभक्त, चतुर्दशभक्त, अर्द्धमासिक, मासिकभक्त, द्विमासिकभक्त, त्रिमासिकभक्त यावत् षाण्मासिक – भक्त। यह इत्वरिक अनशन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 967 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सज्झाए? सज्झाए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वायणा, पडिपुच्छणा, परियट्टणा, अणुप्पेहा, धम्मकहा। से त्तं सज्झाए। Translated Sutra: (भगवन् !) स्वाध्याय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) पाँच प्रकार का – वाचना, प्रतिपृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 968 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ज्झाणे? ज्झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– अट्टे ज्झाणे, रोद्दे ज्झाणे, धम्मे ज्झाणे, सुक्के ज्झाणे।
अट्टे ज्झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अमणुन्नसंपयोगसंपउत्ते तस्स विप्पयोगसतिसमन्नागए यावि भवइ, मणुन्नसंपयोगसंपउत्ते तस्स अविप्पयोगसतिसमन्नागए यावि भवइ, आयंकसंपयोग-संपउत्ते तस्स विप्पयोगसतिसमन्नागए यावि भवइ, परिज्झुसियकामभोगसंपयोग-संपउत्ते तस्स अविप्पयोग-सतिसमन्नागए यावि भवइ।
अट्टस्स णं ज्झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा–कंदणया, सोयणया, तिप्पणया, परिदेवणया।
रोद्देज्झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–हिंसानुबंधी, मोसानुबंधी, तेयानुबंधी, Translated Sutra: (भगवन् !) ध्यान कितने प्रकार का ? (गौतम !) चार प्रकार का – आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान। आर्त्तध्यान चार प्रकार का कहा गया है। यथा – अमनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके वियोग की चिन्ता करना, मनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके अवियोग की चिन्ता करना, आतंक प्राप्त होने पर उसके वियोग की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 969 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विउसग्गे? विउसग्गे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वविउसग्गे य, भावविउसग्गे य।
से किं तं दव्वविउसग्गे? दव्वविउसग्गे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–गणविउसग्गे, सरीरविउसग्गे, उवहिविउसग्गे भत्तपाणविउसग्गे। सेत्तं दव्वविउसग्गे।
से किं तं भावविउसग्गे? भावविउसग्गे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–कसायविउसग्गे, संसारविउसग्गे, कम्मविउसग्गे।
से किं तं कसायविउसग्गे? कसायविउसग्गे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कोहविउसग्गे, माणविउसग्गे, मायाविउसग्गे, लोभविउसग्गे। सेत्तं कसायविउसग्गे।
से किं तं संसारविउसग्गे? संसारविउसग्गे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– नेरइयसंसारविउसग्गे Translated Sutra: (भन्ते !) व्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) दो प्रकार का – द्रव्यव्युत्सर्ग और भावव्युत्सर्ग। (भगवन् !) द्रव्यव्युत्सर्ग कितने प्रकार का है ? (गौतम !) चार प्रकार का – गणव्युत्सर्ग, शरीरव्युत्सर्ग, उपधिव्युत्सर्ग और भक्तपानव्युत्सर्ग। (भगवन् !) भावव्युत्सर्ग कितने प्रकार का कहा है ? तीन प्रकार का – कषायव्युत्सर्ग, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-८ ओघ | Hindi | 970 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–नेरइया णं भंते! कहं उववज्जंति?
गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं ठाणं विप्पजहित्ता पुरिमं ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, एवामेव एए वि जीवा पवओ विव पवमाणा अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं भवं विप्पजहित्ता पुरिमं भवं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति।
तेसि णं भंते! जीवाणं कहं सीहा गती, कहं सीहे गतिविसए पन्नत्ते?
गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे बलवं एवं जहा चोद्दसमसए पढमुद्देसए जाव तिसमएण वा विग्गहेणं उववज्जंति। तेसि णं जीवाणं तहा सीहा गई, तहा सीहे गतिविसए पन्नत्ते।
ते णं भंते! जीवा कहं परभवियाउयं Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! नैरयिक जीव किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ अध्यवसायनिर्वर्तित क्रियासाधन द्वारा उस स्थान को छोड़कर भविष्यत्काल में अगले स्थान को प्राप्त होता है, वैसे ही जीव भी अध्यवसायनिर्वर्तित क्रियासाधन द्वारा अर्थात् कर्मों द्वारा पूर्वभव | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-९ भवसिद्धिक | Hindi | 971 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भवसिद्धियनेरइया णं भंते! कहं उववज्जंति?
गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे, अवसेसं तं चेव जाव वेमाणिए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! भवसिद्धिक नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ इत्यादि पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त (कहना)। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-१० अभवसिद्धिक | Hindi | 972 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अभवसिद्धियनेरइया णं भंते! कहं उववज्जंति?
गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे, अवसेसं तं चेव। एवं जाव वेमाणिए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! अभवसिद्धिक नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ, इत्यादि पूर्ववत् यावत् वैमानिक पर्यन्त (कहना)। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-११,१२ सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि | Hindi | 973 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सम्मदिट्ठिनेरइया णं भंते! कहं उववज्जंति?
गोयमा! से जहानामए पवए पवमाणे, अवसेसं तं चेव। एवं एगिंदियवज्जं जाव वेमाणिए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! सम्यग्दृष्टि नैरयिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला पुरुष कूदता हुआ इत्यादि, एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-१ | Hindi | 976 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं वयासी–जीवा णं भंते! पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? बंधी बंधइ न बंधिस्सइ? बंधी न बंधइ बंधिस्सइ? बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ?
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ।
सलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी बंधइ बंधिस्सइ? बंधी बंधइ न बंधिस्सइ–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए एवं चउभंगो।
कण्हलेस्से णं भंते! जीवे पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए बंधी बंधइ बंधिस्सइ, अत्थेगतिए बंधी बंधइ न बंधिस्सइ। एवं Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर में यावत् पूछा – भगवन् ! क्या जीवने पापकर्म बाँधा था, बाँधता है और बाँधेगा ? (अथवा क्या जीवने पापकर्म) बाँधा था, बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? (या जीवने पापकर्म) बाँधा था, नहीं बाँधता है और बाँधेगा ? अथवा बाँधा था, नहीं बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? गौतम ! किसी जीव ने पापकर्म बाँधा था, बाँधता | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 983 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतरोगाढए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! अत्थेगतिए एवं जहेव अनंतरोववन्नएहिं नवदंडगसंगहिओ उद्देसो भणिओ तहेव अनंतरो-गाढएहिं वि अहीणमतिरित्तो भाणियव्वो नेरइयादीए जाव वेमाणिए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनन्तरावगाढ़ नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! किसी ने पापकर्म बाँधा था, इत्यादि क्रम से अनन्तरोपपन्नक के नौ दण्डकों सहित के उद्देशक समान अनन्तरावगाढ़ नैरयिक आदि वैमानिक तक अन्यूनाधिकरूप से कहना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 984 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परंपरोगाढए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी? जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो सो चेव निरवसेसो भाणियव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या परम्परावगाढ़ नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! परम्परोपपन्नक के विषय में उद्देशक समान परम्परावगाढ़ (नैरयिकादि) के विषय में यह अन्यूनाधिक रूप से कहना चाहिए। ‘हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।’ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 985 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अनंतराहारए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा। एवं जहेव अनंतरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसं।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या अनन्तरावगाढ़ नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! अनन्तरोपपन्नक उद्देशक समान यह समग्र अनन्तराहारक उद्देशक भी कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 986 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परंपराहारए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसो भाणियव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! क्या परम्पराहारक नैरयिक ने पापकर्म का बन्ध किया था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! परम्परोप – पन्नक नैरयिकादि – सम्बन्धी उद्देशक समान परम्पराहारक उद्देशक कहना। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२६ जीव, लंश्या, पक्खियं, दृष्टि, अज्ञान |
उद्देशक-२ थी ११ | Hindi | 988 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] परंपरपज्जत्तए णं भंते! नेरइए पावं कम्मं किं बंधी–पुच्छा।
गोयमा! एवं जहेव परंपरोववन्नएहिं उद्देसो तहेव निरवसेसो भाणियव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव विहरइ। Translated Sutra: भगवन् ! क्या परम्परपर्याप्तक नैरयिक ने पापकर्म बाँधा था ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! परम्परोपपन्नक उद्देशक समान परम्परपर्याप्तक नैरयिकादि उद्देशक समग्ररूप से कहना। |