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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 349 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? किं नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति? गोयमा! नेरइएसु वि उववज्जंति जाव देवेसु वि उववज्जंति। एवं निरंतरं सव्वेसु ठाणेसु पुच्छा। गोयमा! सव्वेसु ठाणेसु उववज्जंति, न कहिंचि पडिसेहो कायव्वो जाव सव्वट्ठगसिद्ध-देवेसु वि उववज्जंति। अत्थेगतिया सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। Translated Sutra: भगवन् ! मनुष्य अनन्तर उद्वर्त्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) नैरयिकों यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! क्या (मनुष्य) नैरयिक आदि सभी स्थानों में उत्पन्न होते हैं ? हा गौतम ! होते हैं, कहीं भी इनके उत्पन्न होने का निषेध नहीं करना, यावत् कईं मनुष्य सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होते हैं, परिनिर्वाण | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 351 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति? गोयमा! नियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा।
पुढविकाइया णं भंते! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति? गोयमा! पुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सोवक्कमाउया य निरुवक्कमाउया य। तत्थ णं जेते निरुवक्कम्माउया ते नियमा तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। तत्थ णं जेते सोवक्कमाउया ते सिय तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। आउ-तेउ-वाउ-वणस्सइकाइयाणं बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाण Translated Sutra: भगवन् ! आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर नैरयिक परभव का आयु बांधता है ? गौतम ! नियत से छह मास आयु शेष रहने पर। इसी प्रकार असुरकुमारों से स्तनितकुमारों तक कहना। भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव आयुष्य का कितना भाग शेष रहने पर परभव का आयु बांधते हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक दो प्रकार के हैं, सोपक्रम आयुवाले और निरुपक्रम आयुवाले। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Hindi | 352 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविधे णं भंते! आउयबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विधे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनाम-निहत्ताउए, गइनामनिहत्ताउए, ठितीनामनिहत्ताउए, ओगाहणाणामनिहत्ताउए, पदेसणामनिहत्ताउए, अनुभावनामनिहत्ताउए।
नेरइयाणं भंते! कतिविहे आउयबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनामनिहत्ताउए, गतिनामनिहत्ताउए, ठितीनामनिहत्ताउए, ओगाहणानामनिहत्ताउए, पदेसनाम-निहत्ताउए, अनुभावनामनिहत्ताउए। एवं जाव वेमानियाणं।
जीवा णं भंते! जातिणामणिहत्ताउयं कतिहिं आगरिसेहिं पकरेंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं अट्ठहिं।
नेरइया णं भंते! जाइनामनिहत्ताउयं Translated Sutra: भगवन् ! आयुष्य का बन्ध कितने प्रकार का है ? गौतम ! छह प्रकार का। जातिनामनिधत्तायु, गतिनाम – निधत्तायु, स्थितिनामनिधत्तायु, अवगाहनानामनिधत्तायु, प्रदेशनामनिधत्तायु और अनुभावनामनिधत्तायु। भगवन् ! नैरयिकों का आयुष्यबन्ध कितने प्रकार का कहा है ? पूर्ववत् जानना। इसी प्रकार वैमानिकों तक समझ लेना। भगवन् | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Hindi | 373 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गतिचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे।
नेरइए णं भंते! गतिचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए।
नेरइया णं भंते! गतिचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा? गोयमा! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमानिया।
नेरइए णं भंते! ठितीचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए।
नेरइया णं भंते! ठितीचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा? गोयमा! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमानिया।
नेरइए णं भंते! भवचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए।
नेरइया Translated Sutra: भगवन् ! जीव गतिचरम से चरम है अथवा अचरम ? गौतम ! कथंचित् चरम है, कथंचित् अचरम है। भगवन्! (एक) नैरयिक गतिचरम से चरम है या अचरम ? गौतम ! कथंचित् चरम और कथंचित् अचरम है। इसी प्रकार (एक) वैमानिक तक जानना। भगवन् ! (अनेक) नैरयिक गतिचरम से चरम हैं अथवा अचरम ? गौतम ! चरम भी हैं और अचरम भी। इसी प्रकार (अनेक) वैमानिक तक कहना। भगवन् | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Hindi | 374 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गति ठिति भवे य भासा, आनपानुचरिमे य बोधव्वे ।
आहार भावचरिमे वण्ण रस गंध फासे य ॥ Translated Sutra: गति, स्थिति, भव, भाषा, आनापान, आहार, भाव, वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से चरमादि जानना। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१३ परिणाम |
Hindi | 406 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–गतिपरिणामे इंदियपरिणामे कसायपरिणामे लेसापरिणामे जोगपरिणामे उवओगपरिणामे नाणपरिणामे दंसणपरिणामे चरित्त-परिणामे वेदपरिणामे। Translated Sutra: भगवन् ! जीवपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! दस प्रकार का – गतिपरिणाम, इन्द्रियपरिणाम, कषायपरिणाम, लेश्यापरिणाम, योगपरिणाम, उपयोगपरिणाम, ज्ञानपरिणाम, दर्शनपरिणाम, चारित्रपरिणाम और वेदपरिणाम। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१३ परिणाम |
Hindi | 407 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गतिपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–निरयगतिपरिणामे तिरियगतिपरिणामे मनुयगतिपरिणामे देवगतिपरिणामे।
इंदियपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदियपरिणामे चक्खिंदियपरिणामे घाणिंदियपरिणामे जिब्भिंदियपरिणामे फासिंदियपरिणामे।
कसायपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कोहकसाय-परिणामे मानकसायपरिणामे मायाकसायपरिणामे लोभकसायपरिणामे।
लेस्सापरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कण्हलेस्सा-परिणामे नीललेस्सापरिणामे काउलेस्सापरिणामे Translated Sutra: भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का – निरयगतिपरिणाम, तिर्यग्गति – परिणाम, मनुष्यगतिपरिणाम और देवगतिपरिणाम। इन्द्रियपरिणाम पाँच प्रकार का है – श्रोत्रेन्द्रियपरिणाम, चक्षुरि – न्द्रियपरिणाम, घ्राणेन्द्रियपरिणाम, जिह्वेन्द्रियपरिणाम और स्पर्शेन्द्रियपरिणाम। कषायपरिणाम चार प्रकार | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१३ परिणाम |
Hindi | 408 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अजीवपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–बंधनपरिणामे गतिपरिणामे संठाणपरिणामे भेदपरिणामे वण्णपरिणामे गंधपरिणामे रसपरिणामे फासपरिणामे अगरुयलहुयपरिणामे सद्दपरिणामे। Translated Sutra: भगवन् ! अजीवपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम! दस प्रकार का – बन्धनपरिणाम, गतिपरिणाम, संस्थान परिणाम, भेदपरिणाम, वर्णपरिणाम, गन्धपरिणाम, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम, अगुरुलघुपरिणाम और शब्दपरिणाम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१३ परिणाम |
Hindi | 412 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गतिपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–फुसमाणगतिपरिणामे य अफुसमाणगतिपरिणामे य, अहवा दीहगइपरिणामे य हस्सगइपरिणामे य।
संठाणपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–परिमंडलसंठाणपरिणामे जाव आययसंठाणपरिणामे।
भेयपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–खंडाभेदपरिणामे जाव उक्करियाभेदपरिणामे।
वण्णपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णपरिणामे जाव सुक्किलवण्णपरिणामे।
गंधपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधपरिणामे Translated Sutra: भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का – स्पृशद्गतिपरिणाम और अस्पृशद्गतिपरि – णाम, अथवा दीर्घगतिपरिणा और ह्रस्वगतिपरिणाम। संस्थानपरिणाम पाँच प्रकार का है – परिमण्डलसंस्थान – परिणाम, यावत् आयतसंस्थानपरिणाम। भेदपरिणाम पाँच प्रकार का है – खण्डभेदपरिणाम, यावत् उत्कटिका भेदपरिणाम। वर्णपरिणाम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१६ प्रयोग |
Hindi | 441 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! गइप्पवाए पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–पओगगती ततगती बंधणच्छेदनगती उववायगती विहायगती।
से किं तं पओगगती? पओगगती पन्नरसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती एवं जहा पओगे भणिओ तहा एसा वि भाणियव्वा जाव कम्मगसरीरकायप्पओगगती।
जीवाणं भंते! कतिविहा पओगगती पन्नत्ता? गोयमा! पन्नरसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती जाव कम्मासरीरकायप्पओगगती।
नेरइयाणं भंते! कतिविहा पओगगती पन्नत्ता? गोयमा! एक्कारसविहा पन्नत्ता, तं जहा–सच्चमणप्पओगगती एवं उवउज्जिऊण जस्स जतिविहा तस्स ततिविहा भाणितव्वा जाव वेमानियाणं।
जीवा णं भंते! किं सच्चमनप्पओगगती Translated Sutra: भगवन् ! गतिप्रपात कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच – प्रयोगगति, ततगति, बन्धनछेदनगति, उपपात – गति और विहायोगति। वह प्रयोगगति क्या है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार की, सत्यमनःप्रयोगगति यावत् कार्मणशरीरकायप्रयोगगति। प्रयोग के समान प्रयोगगति भी कहना। भगवन् ! जीवों की प्रयोगगति कितने प्रकार की है ? गौतम ! पन्द्रह प्रकार | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१७ लेश्या |
उद्देशक-४ | Hindi | 462 | Gatha | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] परिणाम १ वण्ण २ रस ३ गंध ४, सुद्ध ५ अपसत्थ ६ संकिलिट्ठुण्हा ७-८ ।
गति ९ परिणाम १० पदेसावगाह ११-१२ वग्गण १३ ठाणाणमप्पबहुं १४-१५ ॥ Translated Sutra: परिणाम, वर्ण, रस, गन्ध, शुद्ध, अप्रशस्त, संक्लिष्ट, उष्ण, गति, परिणाम, प्रदेश, अवगाह, वर्गणा, स्थान और अल्पबहुत्व, (ये पन्द्रह अधिकार चतुर्थ उद्देशक में हैं।) | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१७ लेश्या |
उद्देशक-४ | Hindi | 466 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ लेस्साओ दुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–किण्हलेस्सा नीललेस्सा काउलेस्सा।
कति णं भंते! लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! तओ लेस्साओ सुब्भिगंधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा –तेउलेस्सा पम्हलेस्सा सुक्कलेस्सा।
एवं तओ अविसुद्धाओ तओ विसुद्धाओ, तओ अप्पसत्थाओ तओ पसत्थाओ, तओ संकि-लिट्ठाओ तओ असंकिलिट्ठाओ, तओ सीयलुक्खाओ तओ निद्धण्हाओ, तओ दुग्गइगामिणीओ तओ सुगइगामिणीओ। Translated Sutra: भगवन् ! दुर्गन्धवाली कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! तीन, कृष्ण यावत् कापोत। भगवन् ! कितनी लेश्याएं सुगन्धवाली हैं ? गौतम ! तीन, तेजो यावत् शुक्ल। इसी प्रकार तीन – तीन अविशुद्ध और विशुद्ध हैं, अप्रशस्त, प्रशस्त हैं, संक्लिष्ट और असंक्लिष्ट हैं, शीत और रूक्ष हैं, उष्ण और स्निग्ध हैं, दुर्गतिगामिनी और तीन सुगतिगामिनी | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Hindi | 471 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १ जीव २-३ गतिंदिय ४ काए, ५ जोगे ६ वेदे कसाय ८ लेस्सा य ।
९ सम्मत्त १० णाण ११ दंसण १२ संजय १३ उवओग आहारे ॥ Translated Sutra: जीव, गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार, भाषक, परीत, पर्याप्त, सूक्ष्म, संज्ञी, भव (सिद्धिक), अस्ति (काय) और चरम, इन पदों की कायस्थिति जानना। भगवन् ! जीव कितने काल तक जीवपर्याय में रहता है ? गौतम ! सदाकाल। सूत्र – ४७१, ४७२ | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-१ | Hindi | 539 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स पुट्ठस्स बद्ध-फास-पुट्ठस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं निव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तदुभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गतिं पप्प ठितिं पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणामं पप्प कतिविहे अनुभावे पन्नत्ते?
गोयमा! नाणावरणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प दसविहे अनुभावे पन्नत्ते, तं जहा–सोयावरणे सोयाविण्णाणावरणे णेत्तावरणे णेत्तविण्णाणावरणे घाणावरणे घाणविण्णाणावरणे रसावरणे रसविण्णाणावरणे Translated Sutra: भगवन् ! जीव के द्वारा बद्ध, स्पृष्ट, बद्ध और स्पृष्ट किये हुए, सचित्त, चित्त और अपचित्त किये हुए, किञ्चित्विपाक को प्राप्त, विपाक को प्राप्त, फल को प्राप्त तथा उदयप्राप्त, जीव के द्वारा कृत, निष्पादित और परिणामित, स्वयं के द्वारा दूसरे के द्वारा या दोनों के द्वारा उदीरणा – प्राप्त, ज्ञानावरणीयकर्म का, गति को, | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 540 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं।
नाणावरणिज्जे णं भंते पन्नत्ते! कम्मे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणावरणिज्जे सुयनाणावरणिज्जे ओहिनाणावरणिज्जे मनपज्जवनाणावरणिज्जे केवलनाणावरणिज्जे।
दरिसणावरणिज्जे णं भंते! कम्मे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्दापंचए य दंसणचउक्कए य।
निद्दापंचए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्दा जाव थीणद्धी।
दंसणचउक्कए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–चक्खु-दंसणावरणिज्जे Translated Sutra: भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? गौतम ! आठ – ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – आभिनिबोधिक यावत् केवलज्ञानावरणीय। दर्शनावरणीयकर्म कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – निद्रा – पंचक और दर्शनचतुष्क। निद्रा – पंचक कितने प्रकार का है ? गौतम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 541 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो।
निद्दापंचयस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडा-कोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो।
दंसणचउक्कस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं Translated Sutra: भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त, उत्कृष्ट तीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम। उसका अबाधाकाल तीन हजार वर्ष का है। सम्पूर्ण कर्मस्थिति में से अबाधाकाल को कम करने पर कर्मनिषेक का काल है। निद्रापंचक की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम का असंख्या – तवाँ भाग कम, सागरोपम | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 542 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगिंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स तिन्नि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं निद्दापंचकस्स वि दंसणचउक्कस्स वि।
एगिंदिया णं भंते! जीवा सातावेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति।
असायावेयणिज्जस्स जहा नाणावरणिज्जस्स।
एगिंदिया णं भंते! जीवा सम्मत्तवेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! नत्थि किंचि बंधंति।
एगिंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स कम्मस्स Translated Sutra: भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म कितने काल का बाँधते हैं ? गौतम ! जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के तीन सप्तमांश और उत्कृष्ट पूरे सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का। इसी प्रकार निद्रापंचक और दर्शनचतुष्क का बन्ध भी जानना। एकेन्द्रिय जीव सातावेदनीयकर्म का जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Hindi | 543 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसाए तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं णिद्दापंचगस्स वि।
एवं जहा एगिंदियाणं भणियं तहा बेइंदियाण वि भाणियव्वं, नवरं–सागरोवमपणुवीसाए सह भाणियव्वा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणा, सेसं तं चेव, जत्थ एगिंदिया णं बंधंति तत्थ एते वि न बंधंति।
बेइंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति।
तिरिक्खजोणियाउअस्स जहन्नेण Translated Sutra: भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? गौतम ! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम पच्चीस सागरोपम के तीन सप्तमांश भाग का और उत्कृष्ट वही परिपूर्ण बाँधते हैं। इसी प्रकार निद्रापंचक की स्थिति जानना। इसी प्रकार एकेन्द्रिय जीवों की बन्धस्थिति के समान द्वीन्द्रिय जीवों की | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३६ समुद्घात |
Hindi | 617 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अगंतूणं समुग्घायं, अनंता केवली जिना ।
जर-मरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगतिं गता ॥ Translated Sutra: समुद्घात किये बिना ही अनन्त केवलज्ञानी जिनेन्द्र जरा और मरण से सर्वथा रहित हुए हैं तथा श्रेष्ठ सिद्धिगति को प्राप्त हुए हैं। | |||||||||
Pragnapana | प्रज्ञापना उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
पद-३६ समुद्घात |
Hindi | 621 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहासजोगी सिज्झति बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाति सव्वदुक्खाणं अंतं करेति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सण्णिस्स पंचेंदियस्स पज्जत्तयस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्ज-गुणपरिहीणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तओ अनंतरं च णं बेइंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं दोच्चं वइजोगं निरुंभति, तओ अनंतरं च णं सुहुमस्स पनगजीवस्स अपज्ज-त्तयस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तच्चं कायजोगं निरुंभति।
से णं एतेणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वइजोगं निरुंभति, निरुंभित्ता काय-जोगं निरुंभति, निरुंभित्ता जोगनिरोहं Translated Sutra: भगवन् ! वह तथारूप सयोगी सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! वह वैसा करने में समर्थ नहीं होते। वह सर्वप्रथम संज्ञीपंचेन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का पहले निरोध करते हैं, तदनन्तर द्वीन्द्रियपर्याप्तक जघन्ययोग वाले से असंख्यातगुणहीन | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Gujarati | 257 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. दिसि २. गति ३. इंदिय ४. काए, ५. जोगे ६. वेदे ७. कसाय ८. लेसा य ।
९. सम्मत्त १०. नाण ११. दंसण, १२. संजय १३. उवओग १४. आहारे ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૫૭. દિશા, ગતિ, ઇન્દ્રિય, કાય, યોગ, વેદ, કષાય, લેશ્યા, સમ્યક્ત્વ, જ્ઞાન, દર્શન, સંયત, ઉપયોગ, આહાર, સૂત્ર– ૨૫૮. ભાષક, પરિત્ત, પર્યાપ્ત, સૂક્ષ્મ, સંજ્ઞી, ભવ, અસ્તિકાય, જીવ, ક્ષેત્ર, બંધ, પુદ્ગલ અને મહાદંડક એમ ત્રીજા પદના ૨૭ – દ્વારો છે.. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૫૭, ૨૫૮ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-३ अल्पबहुत्त्व |
Gujarati | 261 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं मनुस्साणं देवाणं सिद्धाण य पंचगतिसमासेणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा मनुस्सा, नेरइया असंखेज्जगुणा, देवा असंखेज्जगुणा, सिद्धा अनंतगुणा, तिरिक्खजोणिया अनंतगुणा।
एतेसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीणं मनुस्साणं मनुस्सीणं देवाणं देवीणं सिद्धाण य अट्ठगतिसमासेणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवाओ मनुस्सीओ, मनुस्सा असंखेज्जगुणा, नेरइया असंखेज्ज-गुणा, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेज्जगुणाओ, देवा असंखेज्जगुणा, देवीओ संखेज्जगुणाओ, Translated Sutra: ભગવન્ ! આ નૈરયિક, તિર્યંચયોનિક, મનુષ્ય, દેવ અને સિદ્ધોમાં પાંચ ગતિના સંક્ષેપથી કોણ કોનાથી અલ્પ, બહુ, તુલ્ય કે વિશેષાધિક છે ? ગૌતમ ! સૌથી થોડા મનુષ્યો છે, નૈરયિકો તેનાથી અસંખ્યાતગણા, દેવો તેનાથી અસંખ્યાતગણા, સિદ્ધો તેનાથી અનંત – ગણા, તેનાથી તિર્યંચો અનંતગણા છે. ભગવન્ ! આ નૈરયિક, તિર્યંચયોનિક, તિર્યંચયોનિક સ્ત્રી, | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Gujarati | 349 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सा णं भंते! अनंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति? कहिं उववज्जंति? किं नेरइएसु उववज्जंति जाव देवेसु उववज्जंति? गोयमा! नेरइएसु वि उववज्जंति जाव देवेसु वि उववज्जंति। एवं निरंतरं सव्वेसु ठाणेसु पुच्छा। गोयमा! सव्वेसु ठाणेसु उववज्जंति, न कहिंचि पडिसेहो कायव्वो जाव सव्वट्ठगसिद्ध-देवेसु वि उववज्जंति। अत्थेगतिया सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिनिव्वायंति सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૪૫ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Gujarati | 351 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नेरइया णं भंते! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति? गोयमा! नियमा छम्मासावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। एवं असुरकुमारा वि जाव थणियकुमारा।
पुढविकाइया णं भंते! कतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति? गोयमा! पुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सोवक्कमाउया य निरुवक्कमाउया य। तत्थ णं जेते निरुवक्कम्माउया ते नियमा तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। तत्थ णं जेते सोवक्कमाउया ते सिय तिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति, सिय तिभागतिभागतिभागावसेसाउया परभवियाउयं पकरेंति। आउ-तेउ-वाउ-वणस्सइकाइयाणं बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिंदियाण Translated Sutra: ભગવન્ ! નૈરયિકો, પોતાના આયુષ્યનો કેટલો ભાગ બાકી હોય ત્યારે પરભવાયુ બાંધે ? ગૌતમ ! છ માસ બાકી હોય ત્યારે અવશ્ય બાંધે. એ પ્રમાણે અસુરકુમારો યાવત્ સ્તનિતકુમારો જાણવા. ભગવન્! પૃથ્વીકાયિકો કેટલો ભાગ બાકી રહે ત્યારે પરભવાયુ બાંધે ? પૃથ્વીકાયિકો બે ભેદે છે – સોપક્રમાયુ અને નિરપક્રમાયુ. તેમાં જે નિરુપક્રમાયુષ્ક | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-६ व्युत्क्रान्ति |
Gujarati | 352 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविधे णं भंते! आउयबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विधे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनाम-निहत्ताउए, गइनामनिहत्ताउए, ठितीनामनिहत्ताउए, ओगाहणाणामनिहत्ताउए, पदेसणामनिहत्ताउए, अनुभावनामनिहत्ताउए।
नेरइयाणं भंते! कतिविहे आउयबंधे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे आउयबंधे पन्नत्ते, तं जहा–जातिनामनिहत्ताउए, गतिनामनिहत्ताउए, ठितीनामनिहत्ताउए, ओगाहणानामनिहत्ताउए, पदेसनाम-निहत्ताउए, अनुभावनामनिहत्ताउए। एवं जाव वेमानियाणं।
जीवा णं भंते! जातिणामणिहत्ताउयं कतिहिं आगरिसेहिं पकरेंति? गोयमा! जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं अट्ठहिं।
नेरइया णं भंते! जाइनामनिहत्ताउयं Translated Sutra: ભગવન્ ! આયુષ્ બંધ કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! આયુષ્ બંધ છ ભેદે છે, તે આ પ્રમાણે – જાતિનામ નિધત્તાયુ, ગતિનામનિધત્તાયુ, સ્થિતિનામનિધત્તાયુ, અવગાહનાનામનિધત્તાયુ, પ્રદેશનામનિધત્તાયુ, અનુભાવનામનિધત્તાયુ. ભગવન્ ! નૈરયિકને કેટલા ભેદે આયુષ્ બંધ છે? ગૌતમ ! છ ભેદે – જાતિનામનિધત્તાયુ યાવત્ અનુભાવનામ નિધત્તાયુ. એ પ્રમાણે | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Gujarati | 373 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गतिचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे।
नेरइए णं भंते! गतिचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए।
नेरइया णं भंते! गतिचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा? गोयमा! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमानिया।
नेरइए णं भंते! ठितीचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए।
नेरइया णं भंते! ठितीचरिमेणं किं चरिमा अचरिमा? गोयमा! चरिमा वि अचरिमा वि। एवं निरंतरं जाव वेमानिया।
नेरइए णं भंते! भवचरिमेणं किं चरिमे अचरिमे? गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे। एवं निरंतरं जाव वेमाणिए।
नेरइया Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૭૩. ભગવન્ ! જીવ, ગતિ ચરમ વડે ચરમ છે કે અચરમ ? ગૌતમ ! કદાચિત્ ચરમ, કદાચિત્ અચરમ હોય. ભગવન્ ! નૈરયિક ગતિ ચરમ વડે ચરમ છે કે અચરમ ? કદાચ ચરમ, કદાચ અચરમ. એ રીતે નિરંતર યાવત્ વૈમાનિક સુધી જાણવું. ભગવન્ ! નૈરયિકો વિશે પૃચ્છા – ચરમ પણ હોય, અચરમ પણ હોય. એ પ્રમાણે નિરંતર યાવત્ વૈમાનિકો સુધી જાણવું. ભગવન્ ! નૈરયિક | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१० चरिम |
Gujarati | 374 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गति ठिति भवे य भासा, आनपानुचरिमे य बोधव्वे ।
आहार भावचरिमे वण्ण रस गंध फासे य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૭૩ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१३ परिणाम |
Gujarati | 406 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–गतिपरिणामे इंदियपरिणामे कसायपरिणामे लेसापरिणामे जोगपरिणामे उवओगपरिणामे नाणपरिणामे दंसणपरिणामे चरित्त-परिणामे वेदपरिणामे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૦૫ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१३ परिणाम |
Gujarati | 407 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गतिपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–निरयगतिपरिणामे तिरियगतिपरिणामे मनुयगतिपरिणामे देवगतिपरिणामे।
इंदियपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–सोइंदियपरिणामे चक्खिंदियपरिणामे घाणिंदियपरिणामे जिब्भिंदियपरिणामे फासिंदियपरिणामे।
कसायपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कोहकसाय-परिणामे मानकसायपरिणामे मायाकसायपरिणामे लोभकसायपरिणामे।
लेस्सापरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–कण्हलेस्सा-परिणामे नीललेस्सापरिणामे काउलेस्सापरिणामे Translated Sutra: ભગવન્ ! ગતિ પરિણામ કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! ચાર ભેદે છે – નરકગતિ પરિણામ, તિર્યંચગતિ પરિણામ – મનુષ્યગતિ પરિણામ – દેવ ગતિ પરિણામ. ભગવન્ ! ઇન્દ્રિય પરિણામ કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! પાંચ ભેદે – શ્રોત્રેન્દ્રિય પરિણામ, ચક્ષુરિન્દ્રિય પરિણામ, ઘ્રાણેન્દ્રિય પરિણામ, જિહ્વેન્દ્રિય પરિણામ અને સ્પર્શનેન્દ્રિય પરિણામ. ભગવન્ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१३ परिणाम |
Gujarati | 408 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अजीवपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–बंधनपरिणामे गतिपरिणामे संठाणपरिणामे भेदपरिणामे वण्णपरिणामे गंधपरिणामे रसपरिणामे फासपरिणामे अगरुयलहुयपरिणामे सद्दपरिणामे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૦૮. ભગવન્! અજીવ પરિણામ કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! દશ ભેદે છે – બંધન પરિણામ, ગતિ પરિણામ, સંસ્થાન પરિણામ, ભેદ પરિણામ, વર્ણ પરિણામ, ગંધ પરિણામ, રસ પરિણામ, સ્પર્શ પરિણામ, અગુરુ લઘુ પરિણામ અને શબ્દ પરિણામ. સૂત્ર– ૪૦૯. ભગવન્ ! બંધન પરિણામ કેટલા ભેદે છે ? ગૌતમ ! બે ભેદે છે – સ્નિગ્ધ બંધન પરિણામ, રૂક્ષ બંધન પરિણામ. સૂત્ર– | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१३ परिणाम |
Gujarati | 412 | Sutra | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गतिपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–फुसमाणगतिपरिणामे य अफुसमाणगतिपरिणामे य, अहवा दीहगइपरिणामे य हस्सगइपरिणामे य।
संठाणपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–परिमंडलसंठाणपरिणामे जाव आययसंठाणपरिणामे।
भेयपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–खंडाभेदपरिणामे जाव उक्करियाभेदपरिणामे।
वण्णपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णपरिणामे जाव सुक्किलवण्णपरिणामे।
गंधपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सुब्भिगंधपरिणामे Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૦૮ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१७ लेश्या |
उद्देशक-४ | Gujarati | 462 | Gatha | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] परिणाम १ वण्ण २ रस ३ गंध ४, सुद्ध ५ अपसत्थ ६ संकिलिट्ठुण्हा ७-८ ।
गति ९ परिणाम १० पदेसावगाह ११-१२ वग्गण १३ ठाणाणमप्पबहुं १४-१५ ॥ Translated Sutra: પરિણામ, વર્ણ, રસ, ગંધ, શુદ્ધ, અપ્રશસ્ત, સંક્લિષ્ટ ઉષ્ણ, ગતિ, પરિણામ, પ્રદેશ, અવગાઢ, વર્ગણા, સ્થાન અને અલ્પબહુત્વ આ ૧૫ અધિકારોનું વર્ણન આ ચોથા ઉદ્દેશામાં છે. | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-१८ कायस्थिति |
Gujarati | 471 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १ जीव २-३ गतिंदिय ४ काए, ५ जोगे ६ वेदे कसाय ८ लेस्सा य ।
९ सम्मत्त १० णाण ११ दंसण १२ संजय १३ उवओग आहारे ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૭૧. ૧.જીવ, ૨.ગતિ, ૩.ઇન્દ્રિય, ૪.કાય, ૫.યોગ, ૬.વેદ, ૭.કષાય, ૮.લેશ્યા, ૯.સમ્યક્ત્વ, ૧૦.જ્ઞાન, ૧૧.દર્શન, ૧૨.સંયત, ૧૩.ઉપયોગ, ૧૪.આહાર, સૂત્ર– ૪૭૨. ૧૫.ભાષક, ૧૬.પરિત્ત, ૧૭.પર્યાપ્ત, ૧૮.સૂક્ષ્મ, ૧૯.સંજ્ઞી, ૨૦.ભવસિદ્ધિક, ૨૧.અસ્તિકાય, ૨૨.ચરમ. એ બાવીશ પદોની કાયસ્થિતિ જાણવા યોગ્ય છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૪૭૧, ૪૭૨ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-१ | Gujarati | 539 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स पुट्ठस्स बद्ध-फास-पुट्ठस्स संचियस्स चियस्स उवचियस्स आवागपत्तस्स विवागपत्तस्स फलपत्तस्स उदयपत्तस्स जीवेणं कडस्स जीवेणं निव्वत्तियस्स जीवेणं परिणामियस्स सयं वा उदिण्णस्स परेण वा उदीरियस्स तदुभएण वा उदीरिज्जमाणस्स गतिं पप्प ठितिं पप्प भवं पप्प पोग्गलं पप्प पोग्गलपरिणामं पप्प कतिविहे अनुभावे पन्नत्ते?
गोयमा! नाणावरणिज्जस्स णं कम्मस्स जीवेणं बद्धस्स जाव पोग्गलपरिणामं पप्प दसविहे अनुभावे पन्नत्ते, तं जहा–सोयावरणे सोयाविण्णाणावरणे णेत्तावरणे णेत्तविण्णाणावरणे घाणावरणे घाणविण्णाणावरणे रसावरणे रसविण्णाणावरणे Translated Sutra: ભગવન્ ! જીવે બાંધેલ, સ્પર્શેલ, ગાઢ સ્પર્શથી સ્પૃષ્ટ, સંચિત, ચિત, ઉપચિત આપાક પ્રાપ્ત, વિપાક પ્રાપ્ત, ફળ પ્રાપ્ત, ઉદય પ્રાપ્ત, જીવે કરેલ, જીવે નિર્વર્તિત, જીવે પરિણમાવેલ, સ્વયં ઉદય પ્રાપ્ત, પરનિમિત્તે ઉદય પ્રાપ્ત, તદુભય ઉદય પ્રાપ્ત, જ્ઞાનાવરણીય કર્મની ગતિને – સ્થિતિને – ભવને – પુદ્ગલના પરિણામને પામીને કેટલા | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Gujarati | 540 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं।
नाणावरणिज्जे णं भंते पन्नत्ते! कम्मे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणावरणिज्जे सुयनाणावरणिज्जे ओहिनाणावरणिज्जे मनपज्जवनाणावरणिज्जे केवलनाणावरणिज्जे।
दरिसणावरणिज्जे णं भंते! कम्मे कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्दापंचए य दंसणचउक्कए य।
निद्दापंचए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–निद्दा जाव थीणद्धी।
दंसणचउक्कए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–चक्खु-दंसणावरणिज्जे Translated Sutra: ભગવન્ ! કેટલી કર્મ પ્રકૃતિઓ છે ? ગૌતમ ! આઠ છે – જ્ઞાનાવરણીય યાવત્ અંતરાય. જ્ઞાનાવરણીય કર્મ કેટલા ભેદે છે ? પાંચ – આભિનિબોધિક જ્ઞાનાવરણીય યાવત્ કેવળ જ્ઞાનાવરણીય. ભગવન્ ! દર્શનાવરણીય કર્મ કેટલા ભેદે છે ? બે ભેદે – નિદ્રા પંચક, દર્શન ચતુષ્ક. નિદ્રાપંચક કેટલા ભેદે છે? પાંચ – નિદ્રા યાવત્ સ્ત્યાનર્દ્ધિ. દર્શન | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Gujarati | 541 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो।
निद्दापंचयस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडा-कोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं अबाहा, अबाहूणिया कम्मठिती–कम्मनिसेगो।
दंसणचउक्कस्स णं भंते! कम्मस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ; तिन्नि य वाससहस्साइं Translated Sutra: જ્ઞાનાવરણીય કર્મની કેટલા કાળની સ્થિતિ છે ? ગૌતમ ! જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, ઉત્કૃષ્ટ ૩૦ કોડાકોડી સાગરોપમ, અબાધા કાળ ૩૦૦ વર્ષ, અબાધાકાળ હીન કર્મની સ્થિતિ તે કર્મનિષેક છે. નિદ્રા પંચક કર્મની કેટલા કાળની સ્થિતિ છે ? જઘન્ય પલ્યોપમનો અસંખ્યાત ભાગ ન્યૂન ૩/૭ સાગરોપમ અને ઉત્કૃષ્ટ ૩૦ કોડાકોડી સાગરોપમ છે. ૩૦૦૦ વર્ષ અબાધાકાળ, | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Gujarati | 542 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगिंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स तिन्नि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं निद्दापंचकस्स वि दंसणचउक्कस्स वि।
एगिंदिया णं भंते! जीवा सातावेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति।
असायावेयणिज्जस्स जहा नाणावरणिज्जस्स।
एगिंदिया णं भंते! जीवा सम्मत्तवेयणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! नत्थि किंचि बंधंति।
एगिंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स कम्मस्स Translated Sutra: ભગવન્ ! એકેન્દ્રિય જીવો જ્ઞાનાવરણીય કર્મની કેટલી સ્થિતિ બાંધે ? ગૌતમ ! જઘન્ય પલ્યોપમના અસંખ્યાત ભાગ ન્યૂન – ૩/૭ સાગરોપમ અને ઉત્કૃષ્ટ પરિપૂર્ણ ૩/૭ સાગરોપમ બાંધે. એ પ્રમાણે નિદ્રા પંચક અને દર્શન ચતુષ્કની પણ સ્થિતિ જાણવી. ભગવન્ ! એકેન્દ્રિયો સાતા વેદનીયની કેટલી સ્થિતિ બાંધે? જઘન્ય પલ્યો૦નો અસં૦ ન્યૂન દોઢ સપ્તમાંશ | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-२३ कर्मप्रकृति |
उद्देशक-२ | Gujarati | 543 | Sutra | Upang-04 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] बेइंदिया णं भंते! जीवा नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसाए तिन्नि सत्तभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधंति। एवं णिद्दापंचगस्स वि।
एवं जहा एगिंदियाणं भणियं तहा बेइंदियाण वि भाणियव्वं, नवरं–सागरोवमपणुवीसाए सह भाणियव्वा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणा, सेसं तं चेव, जत्थ एगिंदिया णं बंधंति तत्थ एते वि न बंधंति।
बेइंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिज्जस्स किं बंधंति? गोयमा! जहन्नेणं सागरोवम-पणुवीसं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति।
तिरिक्खजोणियाउअस्स जहन्नेण Translated Sutra: ભગવન્! બેઇન્દ્રિય જીવો જ્ઞાનાવરણીય કર્મનો કેટલો બંધ કરે છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી પલ્યોપમનો અસંખ્યાત ભાગ ન્યૂન સાગરોપમના પચ્ચીશ ૩/૭ ભાગ અને ઉત્કૃષ્ટથી તેટલો જ પૂર્ણ બંધ કરે. એમ નિદ્રાપંચકનો બંધ પણ જાણવો. એમ એકેન્દ્રિયોવત્ બેઇન્દ્રિયો પણ કહેવા. પરંતુ પલ્યોપમના અસં૦ ન્યૂન પચ્ચીશ ગણા સાગરોપમનો બંધ કહેવો. બાકી બધું | |||||||||
Pragnapana | પ્રજ્ઞાપના ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पद-३६ समुद्घात |
Gujarati | 617 | Gatha | Upang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अगंतूणं समुग्घायं, अनंता केवली जिना ।
जर-मरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगतिं गता ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૧૫ | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Hindi | 19 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण निसेवंति सुरगणा सअच्छरा मोह मोहिय मती, असुर भयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिस पवण थणिया। अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवादिय भूयवादियकंदिय महाकंदिय कूहंड पतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्व तिरिय जोइस विमाणवासि मणुयगणा, जलयर थलयर खहयराय मोहपडिबद्धचित्ता अवितण्हा कामभोग-तिसिया, तण्हाए बलवईए महईए समभिभूया गढिया य अतिमुच्छिया य, अबंभे ओसण्णा, तामसेन भावेण अणुम्मुक्का, दंसण-चरित्तमोहस्स पंजरं पिव करेंतिअन्नोन्नं सेवमाणा।
भुज्जो असुर सुर तिरिय मणुय भोगरत्ति विहार संपउत्ता य चक्कवट्टी सुरनरवतिसक्कया सुरवरव्व देवलोए भरह नग नगर नियम Translated Sutra: उस अब्रह्म नामक पापास्रव को अप्सराओं के साथ सुरगण सेवन करते हैं। कौन – से देव सेवन करते हैं ? जिनकी मति मोह के उदय से मूढ़ बन गई है तथा असुरकुमार, भुजगकुमार, गरुड़कुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार तथा स्तनितकुमार, ये भवनवासी, अणपन्निक, पणपण्णिक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-४ अब्रह्म |
Hindi | 20 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहिं हणंति एक्कमेक्कं विसयविसउदीरएसु। अवरे परदारेहिं हम्मंति विसुणिया घननासं सयणविप्पनासं च पाउणंति। परस्स दाराओ जे अविरया मेहुण-सण्णसंपगिद्धा य मोहभरिया अस्सा हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्कं, मनुयगणा वानरा य पक्खी य विरुज्झंति, मित्ताणि खिप्पं भवंति सत्तू, समये धम्मे गणे य भिंदंति पारदारी। धम्मगुणरया य बंभयारी खणेण उल्लोट्टए चरित्तओ, जसमंतो सुव्वया य पावंति अयसकित्तिं, रोगत्ता वाहिया य वड्ढेंति रोय-वाही, दुवे य लोया दुआराहगा भवंति–इहलोए चेव परलोए–परस्स दाराओ जे अविरया।
तहेव केइ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया Translated Sutra: जो मनुष्य मैथुनसंज्ञा में अत्यन्त आसक्त है और मूढता अथवा से भरे हुए हैं, वे आपस में एक दूसरे का शस्त्रों से घात करते हैं। कोई – कोई विषयरूपी विष की उदीरणा करने वाली परकीय स्त्रियों में प्रवृत्त होकर दूसरों के द्वारा मारे जाते हैं। जब उनकी परस्त्रीलम्पटता प्रकट हो जाती है तब धन का विनाश और स्वजनों का सर्वथा | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Hindi | 23 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण परिग्गहं ममायंति लोभघत्था भवनवरविमाणवासिणो परिग्गहरुयी परिग्गहे विविहकरण-बुद्धी, देवनिकाया य–असुर भुयग गरुल विज्जु जलण दीव उदहि दिसि पवण थणिय अणवण्णिय पणवण्णिय इसिवासिय भूतवा-इय कंदिय महाकंदिय कुहंडपतगदेवा, पिसाय भूय जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस महोरग गंधव्वा य तिरियवासी।
पंचविहा जोइसिया य देवा, –बहस्सती चंद सूर सुक्क सनिच्छरा, राहु धूमकेउ बुधा य अंगारका य तत्ततवणिज्जकनगवण्णा, जे य गहा जोइसम्मि चारं चरंति, केऊ य गतिरतीया, अट्ठावीसतिविहा य नक्खत्तदेवगणा, नानासंठाणसंठियाओ य तारगाओ, ठियलेस्सा चारिणो य अविस्साम मंडलगती उवरिचरा।
उड्ढलोगवासी दुविहा Translated Sutra: उस परिग्रह को लोभ से ग्रस्त परिग्रह के प्रति रुचि रखने वाले, उत्तम भवनों में और विमानों में निवास करने वाले ममत्वपूर्वक ग्रहण करते हैं। नाना प्रकार से परिग्रह को संचित करने की बुद्धि वाले देवों के निकाय यथा – असुरकुमार यावत् स्तनितकुमार तथा अणपन्निक, यावत् पतंग और पिशाच, यावत् गन्धर्व, ये महर्द्धिक व्यन्तर | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Hindi | 24 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] परलोगम्मि य नट्ठा तमं पविट्ठा, महया मोहमोहियमती, तिमिसंधकारे, तसथावर-सुहुमबादरेसु, पज्जत्तमपज्जत्तग-साहारणसरीर पत्तेयसरीरेसु य, अंडज पोतज जराउय रसज संसेइम संमुच्छिम उब्भिय उववाइएसु य, नरग तिरिय देव मानुसेसु, जरा मरण रोग सोग बहुले, पलिओवम सागरोवमाइं अनादीयं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति जीवा मोहवस-सन्निविट्ठा।
एसो सो परिग्गहस्स फलविवाओ इहलोइओ पारलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चई, न य अवेदयित्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति–एवमाहंसु नायकुलनंदनो महप्पा जिनो उ वीरवरनामधेज्जो, कहेसी य परिग्गहस्स Translated Sutra: परिग्रह में आसक्त प्राणी परलोक में और इस लोक में नष्ट – भ्रष्ट होते हैं। अज्ञानान्धकार में प्रविष्ट होते हैं। तीव्र मोहनीयकर्म के उदय से मोहित मति वाले, लोभ के वश में पड़े हुए जीव त्रस, स्थावर, सूक्ष्म और बादर पर्यायों में तथा पर्याप्तक और अपर्याप्तक अवस्थाओं में यावत् चार गति वाले संसार – कानन में परिभ्रमण | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Hindi | 25 | Gatha | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएहिं पंचहिं असंवरेहिं रयमादिणित्तु अनुसमयं ।
चउव्विहगतिपेरंतं, अनुपरियट्टंति संसारं ॥ Translated Sutra: इन पूर्वोक्त पाँच आस्रवद्वारों के निमित्त से जीव प्रतिसमय कर्मरूपी रज का संचय करके चार गतिरूप संसार में परिभ्रमण करते रहते हैं। | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ परिग्रह |
Hindi | 26 | Gatha | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वगई-पक्खंदे, काहेंति अनंतए अकयपुण्णा ।
जे य न सुणंति धम्मं, सोऊण य जे पमायंति ॥ Translated Sutra: जो पुण्यहीन प्राणी धर्म को श्रवण नहीं करते अथवा श्रवण करके भी उसका आचरण करने में प्रमाद करते हैं, वे अनन्त काल तक चार गतियों में गमनागमन करते रहेंगे। | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ हिंसा |
Hindi | 6 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स य नामाणि इमाणि गोण्णाणि होंति तीसं, तं जहा–
१-२. पाणवहुम्मूलणा सरीराओ ३. अवीसंभो ४. हिंसविहिंसा तहा ५. अकिच्चं च ६. घायणा
७. मारणा य ८. वहणा ९. उद्दवणा १०. तिवायणा य ११. आरंभ-समारंभो १२. आउय-कम्मस्स उवद्दवो [भेय-निट्ठवण-गालणा य संवट्टग-संखेवो] १३. मच्चू १४. असंजमो १५. कडग-मद्दणं
१६. वीरमणं १७. परभव संकामकारओ १८. दुग्गतिप्पवाओ १९. पावकोवो य २०. पावलोभो
२१. छविच्छेओ २२. जीवियंतकरणो २३. भयंकरो २४. अणकरो २५. वज्जो २६. परितावण-अण्हओ २७. विनासो २८. निज्जवणा २९. लुंपणा ३०. गुणाणं विराहणत्ति।
अवि य तस्स एवमादीणि नामधेज्जाणि होंति तीसं पाणवहस्स कलुसस्स कडुयफल-देसगाइं। Translated Sutra: प्राणवधरूप हिंसा के गुणवाचक तीस नाम हैं। यथा – प्राणवध, शरीर से (प्राणों का) उन्मूलन, अविश्वास, हिंस्यविहिंसा, अकृत्य, घात, मारण, वधना, उपद्रव, अतिपातना, आरम्भ – समारंभ, आयुकर्म का उपद्रव – भेद – निष्ठापन – गालना – संवर्तक और संक्षेप, मृत्यु, असंयम, कटकमर्दन, व्युपरमण, परभवसंक्रामणकारक, दुर्गतिप्रपात, पापकोप, पापलोभ, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ हिंसा |
Hindi | 8 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे? जे ते सोयरिया मच्छबंधा साउणिया वाहा कूरकम्मादीवित बंधप्पओग तप्प गल जाल वीरल्लग आयसीदब्भवग्गुरा कूडछेलिहत्था हरिएसा ऊणिया य वीदंसग पासहत्था वनचरगा लुद्धगा य महुघात-पोतघाया एणीयारा पएणीयारा सर दह दीहिअ तलाग पल्लल परिगालण मलण सोत्तबंधण सलिलासयसोसगा विसगरलस्स य दायगा उत्तण वल्लर दवग्गिणिद्दय पलीवका।
कूरकम्मकारी इमे य बहवे मिलक्खुया, के ते?
सक जवण सवर बब्बर कायमुरुंड उड्ड भडग निण्णग पक्काणिय कुलक्ख गोड सीहल पारस कोंच अंध दविल चिल्लल पुलिंद आरोस डोंब पोक्कण गंधहारग बहलीय जल्ल रोम मास बउस मलया य चुंचुया य चूलिय कोंकणगा मेद पल्हव मालव मग्गर आभासिया अणक्क Translated Sutra: वे हिंसक प्राणी कौन हैं ? शौकरिक, मत्स्यबन्धक, मृगों, हिरणों को फँसाकर मारने वाले, क्रूरकर्मा वागुरिक, चीता, बन्धनप्रयोग, छोटी नौका, गल, जाल, बाज पक्षी, लोहे का जाल, दर्भ, कूटपाश, इन सब साधनों को हाथ में लेकर फिरने वाले, चाण्डाल, चिड़ीमार, बाज पक्षी तथा जाल को रखने वाले, वनचर, मधु – मक्खियों का घात करने वाले, पोतघातक, | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ मृषा |
Hindi | 9 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू! बितियं च अलियवयणं–लहुसगलहु चवल भणियं भयंकर दुहकर अयसकर वेरकरगं अरतिरति रागदोस मणसंकिलेस वियरणं अलिय नियडिसाति जोयबहुलं नीयजण निसेवियं निसंसं अप्पच्चयकारकं परमसाहु गरहणिज्जं परपीलाका-रकं परमकण्हलेस्ससहियं दुग्गइविणिवायवड्ढणं भवपुणब्भवकरं चिरपरिचियमणुगतं दुरंतं। बितियं अधम्मदारं। Translated Sutra: जम्बू ! दूसरा (आस्रवद्वार) अलीकवचन है। यह गुण – गौरव से रहित, हल्के, उतावले और चंचल लोगों द्वारा बोला जाता है, भय उत्पन्न करने वाला, दुःखोत्पादक, अपयशकारी एवं वैर उत्पन्न करने वाला है। यह अरति, रति, राग, द्वेष और मानसिक संक्लेश को देने वाला है। शुभ फल से रहित है। धूर्त्तता एवं अविश्वसनीय वचनों की प्रचुरता वाला | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ मृषा |
Hindi | 11 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तं च पुण वदंति केई अलियं पावा अस्संजया अविरया कवडकुडिल कडुय चडुलभावा कुद्धा लुद्धाभया य हस्सट्ठिया य सक्खी चोरा चारभडा खंडरक्खा जियजूईकरा य गहिय-गहणा कक्कगुरुग कारगा कुलिंगी उवहिया वाणियगा य कूडतुला कूडमाणी कूडकाहावणोवजीवी पडकार कलाय कारुइज्जा वंचनपरा चारिय चडुयार नगरगुत्तिय परिचारग दुट्ठवायि सूयक अनवलभणिया य पुव्वकालियवयणदच्छा साहसिका लहुस्सगा असच्चा गारविया असच्चट्ठावणाहिचित्ता उच्चच्छंदा अनिग्गहा अनियता छंदेण मुक्कवायी भवंति अलियाहिं जे अविरया।
अवरे नत्थिकवादिणो वामलोकवादी भणंति–सुण्णंति। नत्थि जीवो। न जाइ इहपरे वा लोए। न य किंचिवि फुसति Translated Sutra: यह असत्य कितनेक पापी, असंयत, अविरत, कपट के कारण कुटिल, कटुक और चंचल चित्तवाले, क्रुद्ध, लुब्ध, भय उत्पन्न करने वाले, हँसी करने वाले, झूठी गवाही देने वाले, चोर, गुप्तचर, खण्डरक्ष, जुआरी, गिरवी रखने वाले, कपट से किसी बात को बढ़ा – चढ़ा कर कहनेवाले, कुलिंगी – वेषधारी, छल करनेवाले, वणिक्, खोटा नापने – तोलनेवाले, नकली सिक्कों | |||||||||
Prashnavyakaran | प्रश्नव्यापकरणांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
आस्रवद्वार श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ मृषा |
Hindi | 12 | Sutra | Ang-10 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स य अलियस्स फलविवागं अयाणमाणा वड्ढेंति महब्भयं अविस्सामवेयणं दीहकालं बहुदुक्ख-संकडं नरय-तिरिय-जोणिं। तेण य अलिएण समनुबद्धा आइद्धा पुनब्भवंधकारे भमंति भीमे दुग्गति-वसहिमुवगया।
तेय दीसंतिह दुग्गगा दुरंता परव्वसा अत्थभोगपरिवज्जिया असुहिताफुडियच्छवी बीभच्छा विवन्ना खरफरुस विरत्त ज्झाम ज्झुसिरा निच्छाया लल्ल विफल वाया असक्कतमसक्कया अगंधा अचेयणा दुभगा अकंता काकस्सरा हीनभिन्नघोसा विहिंसा जडबहिरंधया य मम्मणा अकंत विकय करणा नीया नीयजन निसेविणो लोग गरहणिज्जा भिच्चा असरिसजणस्स पेस्सा दुम्मेहा लोक वेद अज्झप्प समयसुतिवज्जिया नरा धम्मबुद्धि वियला।
अलिएण Translated Sutra: पूर्वोक्त मिथ्याभाषण के फल – विपाक से अनजान वे मृषावादी जन नरक और तिर्यञ्च योनि की वृद्धि करते हैं, जो अत्यन्त भयंकर है, जिनमें विश्रामरहित वेदना भुगतनी पड़ती है और जो दीर्घकाल तक बहुत दुःखों से परिपूर्ण हैं। वे मृषावाद में निरत नर भयंकर पुनर्भव के अन्धकार में भटकते हैं। उस पुनर्भव में भी दुर्गति प्राप्त |