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Scripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 161 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथे आपुच्छित्ता निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १६० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 162 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीओ आपुच्छित्ता वा अनापुच्छित्ता वा निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तं च निग्गंथीओ नो इच्छेज्जा, सेहिमेव नियं ठाणं। Translated Sutra: देखो सूत्र १६० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 163 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए।
जत्थेव अन्नमन्नं पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा–अह णं अज्जो! तुमए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पच्चक्खं संभोगं विसंभोगं करेमि। से य पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए।
से य नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइयं विसंभोइयं करेत्तए। Translated Sutra: यदि कोई साधु – साध्वी समान सामाचारी वाले हैं उनमें से किसी साधु को परोक्ष तरह या दूसरे स्थानक में प्रत्यक्ष बताए बिना विसंभोगि यानि मांड़ली बाहर करना न कल्पे। उसी स्थानक में प्रत्यक्ष उनके सन्मुख कहकर विसंभोगि करना कल्पे। सन्मुख हो तब कहे कि हे आर्य ! इस कुछ कारण से अब तुम्हारे साथ सांभोगिक व्यवहार न करूँ। | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 164 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जाओ निग्गंथीओ वा निग्गंथा वा संभोइया सिया, नो ण्हं कप्पइ पच्चक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए, कप्पइ ण्हं पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए। जत्थेव ताओ अप्पणो आयरिय-उवज्झाए पासेज्जा, तत्थेव एवं वएज्जा–
अह णं भंते! अमुगीए अज्जाए सद्धिं इमम्मि कारणम्मि पारोक्खं पाडिएक्कं संभोगं विसंभोगं करेमि। सा य से पडितप्पेज्जा एवं से नो कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए।
सा य से नो पडितप्पेज्जा एवं से कप्पइ पारोक्खं पाडिएक्कं संभोइणिं विसंभोइणिं करेत्तए। Translated Sutra: यदि कोई साधु – साध्वी समान सामाचारी वाले हैं उनमें से किसी साध्वी को दूसरे साध्वी ने प्रत्यक्ष संभोगी – पन में से विसंभोगीपन यानि की मांड़ली व्यवहार बंध करना न कल्पे। परोक्ष तरह अन्य के द्वारा कहकर विसंभोगी पन करना कल्पे। अपने आचार्य – उपाध्याय को ऐसा कहे कि कुछ कारण से अमुक साध्वी के साथ मांड़ली व्यवहार बंध | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 165 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथिं अप्पणो अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: साधु या साध्वी को अपने खुद के हित के लिए किसी को दीक्षा देना, मुँड़ करना, आचार शीखलाना, शिष्यत्व देना, उपस्थापन करना, साथ रहना, आहार करना या थोड़े दिन या हंमेशा के लिए पदवी देना न कल्पे, दूसरों के लिए दीक्षा देना आदि सब काम करना कल्पे। सूत्र – १६५–१६८ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 166 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथिं अन्नेसिं अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १६५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 167 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथं अप्पणो अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १६५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 168 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथं अन्नेसिं अट्ठाए पव्वावेत्तए वा मुंडावेत्तए वा सेहावेत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संवसित्तए वा संभुंजित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १६५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 169 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथीणं विइगिट्ठं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: साध्वी को विकट दिशा में विहार करना या धारण करना न कल्पे, साधु को कल्पे। सूत्र – १६९, १७० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 170 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाणं विइगिट्ठं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: देखो सूत्र १६९ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 171 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाणं विइगिट्ठाइं पाहुडाइं विओसवेत्तए। Translated Sutra: साधु को विकट दिशा के लिए कठिन वचन आदि का प्रायश्चित्त लेकर वहाँ बैठे क्षमापना करना न कल्पे, साध्वी को कल्पे। सूत्र – १७१, १७२ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 172 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथीणं विइगिट्ठाइं पाहुडाइं विओसवेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र १७१ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 173 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा विइगिट्ठे काले सज्झायं उदिसित्तए करेत्तए। Translated Sutra: साधु – साध्वी को विकाल में स्वाध्याय करना न कल्पे, यदि साधु की निश्रा – आज्ञा हो तो साध्वी को विकाल में भी स्वाध्याय करना कल्पे। सूत्र – १७३, १७४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 174 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथीणं विइगिट्ठे काले सज्झायं करेत्तए निग्गंथनिस्साए। Translated Sutra: देखो सूत्र १७३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 175 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा असज्झाइए सज्झायं करेत्तए। Translated Sutra: साधु – साध्वी को असज्झाय में स्वाध्याय करना न कल्पे, सज्झाय में (स्वाध्यायकाले) स्वाध्याय करना कल्पे। सूत्र – १७५, १७६ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 176 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सज्झाइए सज्झायं करेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र १७५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 177 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अप्पणो असज्झाइए सज्झायं करेत्तए। कप्पइ ण्हं अन्नमन्नस्स वायणं दलइत्तए। Translated Sutra: साधु – साध्वीको अपनी शारीरिक असज्झाय में सज्झाय करना न कल्पे, अन्योन्य वांचना देना कल्पे। | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 178 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तिवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स तीसवासपरियायाए समणीए निग्गंथीए कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। Translated Sutra: तीन साल के दीक्षा पर्यायवाले साधु को तीस साल के दीक्षावाले साध्वी को उपाध्याय के रूप में अपनाना कल्पे, पाँच साल के पर्यायवाले साधु को ६० साल के पर्यायवाले साध्वी को उपाध्याय के रूप में अपनाना कल्पे। सूत्र – १७८, १७९ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 179 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचवासपरियायस्स समणस्स निग्गंथस्स सट्ठिवासपरियायाए समणीए निग्गंथीए कप्पइ आयरियत्ताए उद्दिसित्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र १७८ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 180 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गामानुगामं दूइज्जमाणे भिक्खू य आहच्च वीसंभेज्जा तं च सरीरगं केइ साहम्मिया पासेज्जा, कप्पइ से तं सरीरगं मा सागारियमिति कट्टु थंडिले बहुफासुए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिट्ठवेत्तए।
अत्थियाइं त्थ केइ साहम्मियसंतिए उवग-रणजाए परिहरणारिहे, कप्पइ से सागारकडं गहाय दोच्चं पि ओग्गहं अनुन्नवेत्ता परिहारं परिहरेत्तए। Translated Sutra: एक गाँव से दूसरे गाँव विहार करते साधु – साध्वी शायद काल करे, उनके शरीर को किसी साधर्मिक साधु देखे तो वो साधु उस मृतक को वस्त्र आदि से ढ़ँककर एकान्त, अचित्त, निर्दोष, स्थंड़िल भूमि देखकर, प्रमार्जना करके परठना कल्पे, यदि वहाँ कोई उपकरण हो तो वो आगार सहित ग्रहण करे, दूसरी बार आज्ञा लेकर वो उपकरण रखना या त्याग करने का | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 187 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गाहा उदू पज्जोसविए। ताए गाहाए ताए पएसाए ताए उवासंतराए जमिणं-जमिणं सेज्जासंथारगं लभेज्जा, तमिणं-तमिणं ममेव सिया। थेरा य से अनुजाणेज्जा, तस्सेव सिया।
थेरा य से नो अनुजाणेज्जा, एवं से कप्पइ अहाराइणियाए सेज्जासंथारगं पडिग्गाहेत्तए। Translated Sutra: जिस घर के लिए वर्षावास रहा उस घर में, बाहर के प्रदेश में या दूर के अन्तर में जो शय्या – संथारा मिला हो वो – वो मेरे हैं ऐसा शिष्य कहे लेकिन यदि स्थविर आज्ञा दे तो लेना कल्पे, यदि आज्ञा न दे तो लेना न कल्पे। उसी तरह आज्ञा मिले तो ही रात – दिन वो शय्या – संथारा लेना कल्पे। | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 191 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] थेराणं थेरभूमिपत्ताणं कप्पइ दंडए वा भंडए वा छत्तए वा मत्तए वा लट्ठिया वा चेले वा चेलचिलिमिलिया वा चम्मे वा चम्मकोसए वा चम्मपलिच्छेयणए वा अविरहिए ओवासे ठवेत्ता गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसित्तए वा निक्खमित्तए वा। कप्पइ ण्हं संनियट्टचारीणं दोच्चं पि ओग्गहं अनुन्नवेत्ता परिहरित्तए। Translated Sutra: जो स्थविर स्थिरवास रहे उसे दंड़ी, पात्रा, सर ढ़ँकने का वस्त्र, पात्रक, लकड़ी, वस्त्र, चर्मखंड़ रखना कल्पे। यदि स्थविर अकेले हो तब यह सभी उपकरण कहीं रखकर गृहस्थ के घर आहार ग्रहण के लिए नीकले या प्रवेश करे। उसके बाद वापस आने पर जिसके वहाँ उपकरण रखे हों उसकी आज्ञा लेकर वो उपकरण भुगते या त्याग करे। | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 192 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं वा सागारिय संतिवं वा सेज्जासंथारगं दोच्चं पि ओग्गहं अणणुण्णवेत्ता बहिया नीहरित्तए। Translated Sutra: साधु – साध्वी को पाड़िहारिक – वापस करने के उचित या शय्यातर के पास से शय्या – संथारा पुनः लेकर अनुज्ञा लिए बिना बाहर जाना न कल्पे, आज्ञा लेकर जाना कल्पे। सूत्र – १९२–१९४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 193 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ अनुण्णवेत्ता।
नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पाडिहारियं वा सेज्जासंथारगं सव्वप्पणा अप्पिणित्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणणुन्नवेत्ता अहिट्ठित्तए, कप्पइ अनुन्नवेत्ता। Translated Sutra: देखो सूत्र १९२ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 194 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं दोच्चं पि ओग्गहं अनुण्णवेत्ता बहिया नीहरित्तए, कप्पइ अनुण्णवेत्ता। Translated Sutra: देखो सूत्र १९२ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 195 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं सव्वप्पणा अप्पिणित्ता दोच्चं पि ओग्गहं अणणुन्नवेत्ता अहिट्ठित्तए, कप्पइ अनुण्णवेत्ता। Translated Sutra: साधु – साध्वी को पाड़िहारिक या शय्यातर के पास से शय्या – संथारा पहले लिया हो वो उन्हें सौंपकर दूसरी दफा उनकी आज्ञा बिना रखना न कल्पे। आज्ञा लेकर रखना कल्पे, या पहले ग्रहण करके फिर आज्ञा लेना भी न कल्पे, पूर्व आज्ञा लेकर फिर ग्रहण करना कल्पे। यदि ऐसा माने कि यहाँ वाकई में प्रातिहारिक शय्या – संथारा सुलभ नहीं है, | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 196 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पुव्वामेव ओग्गहं ओगिण्हित्ता तओ पच्छा अनुण्णवेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र १९५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 197 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पुव्वामेव ओग्गहं अनुण्णवेत्ता तओ पच्छा ओगिण्हित्तए।
अह पुण एवं जाणेज्जा–इह खलु निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा नो सुलभे सेज्जासंथारए त्ति कट्टु एव ण्हं कप्पइ पुव्वामेव ओग्गहं ओगिण्हित्ता तओ पच्छा अनुण्णवेत्तए। मा दुहओ अज्जो! वइ-अनुलोमेणं, अनुलोमेयव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र १९५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 198 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अनुपविट्ठस्स अन्नयरे अहालहुसए उवगरणजाए परिब्भट्ठे सिया। तं च केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय जत्थेव अन्नमण्णे पासेज्जा तत्थेव एवं वएज्जा–
इमे भे अज्जो! किं परिण्णाए?
से य वएज्जा–परिण्णाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया। से य वएज्जा–नो परिण्णाए, तं नो अप्पणा परिभुंजेज्जा नो अन्नमन्नस्स दावए। एगंते बहुफासुए थंडिले परिट्ठवेयव्वे सिया। Translated Sutra: साधु गृहस्थ के घर आहार के लिए जाए, या बाहर स्थंड़िल या स्वाध्याय भूमि में जाए, या एक गाँव से दूसरे गाँव विचरते हो वहाँ अल्प उपकरण भी गिर जाए। उसे कोई साधर्मिक साधु देखे, गृहस्थ थकी वो चीज ग्रहण करना कल्पे। वो चीजें लेकर वो साधर्मिक आपसी साधु को कहे कि हे आर्य ! यह उपकरण किसका है तुम जानते हो ? साधु कहे कि हा, जानता | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 199 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स णं बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा निक्खंतस्स अन्नयरे अहालहुसए उवगरणजाए परिब्भट्ठे सिया तं च केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय पासेज्जा जत्थेव अन्नमन्नं तत्थेव एवं वएज्जा–
इमे भे अज्जो! किं परिण्णाए? से य वएज्जा–परिण्णाए, तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया। से य वएज्जा–नो परिण्णाए, तं नो अप्पणा परिभुंजेज्जा नो अन्नमन्नस्स दावए। एगंते बहुफासुए थंडिले परिट्ठवेयव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र १९८ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 200 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स णं गामानुगामं दूइज्जमाणस्स अन्नयरे उवगरणजाए परिब्भट्ठे सिया। केइ साहम्मिए पासेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय दूरमेव अद्धाणं परिवहित्तए। जत्थेव अन्नमन्नं पासेज्जा, तत्थेव एवं वएज्जा– इमे भे अज्जो! किं परिण्णाए?
से य वएज्जा–परिण्णाए तस्सेव पडिणिज्जाएयव्वे सिया। से य वएज्जा–नो परिण्णाए, तं नो अप्पणा परिभुंजेज्जा नो अन्नमन्नस्स दावए। एगंते बहुफासुए थंडिले परिट्ठवेयव्वे सिया। Translated Sutra: देखो सूत्र १९८ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-८ | Hindi | 201 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अइरेगपडिग्गहं अन्नमन्नस्स अट्ठाए धारेत्तए वा परिग्गहित्तए वा, सो वा णं धारेस्सइ अहं वा णं धारेस्सामि अण्णो वा णं धारेस्सइ। नो से कप्पइ ते अनापुच्छिय अनामंतिय अन्नमण्णेसिं दाउं वा अनुप्पदाउं वा। कप्पइ से ते आपुच्छिय आमंतिय अन्नमण्णेसिं दाउं वा अनुप्पदाउं वा। Translated Sutra: साधु – साध्वी को अधिक पात्र आपस में ग्रहण करना कल्पे। यदि वो पात्र मैं किसी को दूँगा, मैं खुद ही रखूँगा या दूसरे किसी को भी देंगे तो जिनके लिए उन्हें लिया हो उन्हें पूछे या न्यौता दिए बिना आपस में देना न कल्पे, लेकिन जिनके लिए लिया है उन्हें पूछकर, निमंत्रित करके देना कल्पे। | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 203 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स आएसे अंतो वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: सागारिक शय्यातर के वहाँ कोई अतिथि घर में भोजन कर रहा हो या बाहर खा रहा हो तो उनके लिए आहार – पानी किए हो वो आहार शय्यातर उसे दे, पाड़िहारिक वापस देने की शर्त से बचा हुआ आहार वो व्यक्ति शय्यातर को दे तो उसमें से साधु को दिया गया आहार साधु को लेना न कल्पे, लेकिन यदि वो आहार अपड़िहारिक हो तो साधु – साध्वी को लेना कल्पे। सूत्र | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 204 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स आएसे अंतो वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २०३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 205 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स आएसे बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २०३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 206 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स आएसे आएसे बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २०३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 207 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स दासे वा भयए वा अंतो वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: सागारिक – शय्यातर के दास, नौकर, चाकर, सेवक आदि किसी भी घर में या घर के बाहर खा रहे हो तो उनके लिए बनाया गया आहार बचे वो नौकर आदि वापस लेने की बुद्धि से शय्यातर को दे तो ऐसा आहार शय्यातर दे तब साधु – साध्वी का लेना न कल्पे, वापस लेने की बुद्धि रहित यानि अप्रतिहारिक हो तो कल्पे। सूत्र – २०७–२१० | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 208 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स दासे वा भयए वा अंतो वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २०७ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 209 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स दासे वा भयए वा बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे पाडिहारिए, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २०७ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 210 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स दासे वा भयए वा बाहिं वगडाए भुंजइ निट्ठिए निसट्ठे अपाडिहारिए, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २०७ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 211 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए अंतो सागारियस्स एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: शय्यातर के ज्ञातीजन हो, एक ही घर में, या घर के बाहर, एक ही या अलग चूल्हे का पानी आदि ले रहे हो लेकिन उसके सहारे जिन्दा हो तो उनका दिया गया आहार साधु को लेना न कल्पे। सूत्र – २११–२१४ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 212 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए अंतो अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २११ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 213 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए बाहिं सागारियस्स एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २११ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 214 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स एगवगडाए बाहिं अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २११ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 215 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: शय्यातर के ज्ञातीजन हो, एक दरवाजा हो, आने – जाने का एक ही मार्ग हो, घर अलग हो लेकिन घर में या घर के बाहर रसोई का मार्ग एक ही हो। अलग – अलग चूल्हे हो, या एक ही हो तो भी शय्यातर के आहार – पानी पर जिसकी रोजी चलती हो, उस आहार में से साधु को दे तो वो आहार लेना न कल्पे। सूत्र – २१५–२१८ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 216 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २१५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 217 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २१५ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-९ | Hindi | 218 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स नायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २१५ | |||||||||
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Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स चक्कियसाला साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: शय्यातर की १. तेल बेचने की, २. गुड़ की, ३. किराने की, ४. कपड़े की, ५. सूत की, ६. रुई और कपास की, ७. गंधीयाणा की, ८. मीठाई की दुकान है उसमें शय्यातर का हिस्सा है। उस दुकान पर बिक्री होती है तो उसमें से कोई भी चीज दे तो वो साधु को लेना न कल्पे, लेकिन यदि इस दुका में शय्यातर का हिस्सा न हो, उस दुकान पर बिक्री होती हो उसमें से किसी | |||||||||
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Mool Sutra: [सूत्र] सागारियस्स चक्कियसाला निस्साहारणवक्कयपउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए। Translated Sutra: देखो सूत्र २१९ |