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Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 51 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भत्तपाणपडियाइक्खित्तं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 52 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठजायं भिक्खुं गिलायमाणं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स निज्जूहित्तए। अगिलाए तस्स करणिज्जं वेयावडियं जाव तओ रोगायंकाओ विप्पमुक्को, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नामं ववहारे पट्ठवियव्वे सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ४४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 53 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए।

Translated Sutra: अनवस्थाप्य या पारंचित प्रायश्चित्त को वहन कर रहे साधु को गृहस्थ वेश दिए बिना गणावच्छेदक को पुनः संयम में स्थापित करना न कल्पे, गृहस्थ का (या उसके जैसे) निशानीवाला करके स्थापित करना कल्पे, लेकिन यदि उसके गण को (गच्छ या श्रमणसंघ को) प्रतीति हो यानि कि योग्य लगे तो गणावच्छेदक को वो दोनों तरह के साधु को गृहस्थवेश
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 54 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 55 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पारंचियं भिक्खुं अगिहिभूयं नो कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 56 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पारंचियं भिक्खुं गिहिभूयं कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 57 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अणवट्ठप्पं भिक्खुं अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 58 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पारंचियं भिक्खुं अगिहिभूयं वा गिहिभूयं वा कप्पइ तस्स गणावच्छेइयस्स उवट्ठावेत्तए, जहा तस्स गणस्स पत्तियं सिया।

Translated Sutra: देखो सूत्र ५३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 61 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगपक्खियस्स भिक्खुस्स कप्पति इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा, जहा वा तस्स गणस्स पत्तियं सिया।

Translated Sutra: एकपक्षी यानि एक गच्छवर्ती साधु को आचार्य – उपाध्याय कालधर्म पाए तब गण की प्रतीति के लिए यदि पदवी के योग्य कोई न मिले तो ईत्वर यानि कि अल्पकाल के लिए दूसरों को उस पदवी के लिए स्थापन करना।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 63 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठियस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ असनं वा पानंवा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पदाउं वा। थेरा य णं वएज्जा–इमं ता अज्जो! तुमं एएसिं देहि वा अनुप्पदेहि वा? एवं से कप्पइ दाउं वा अनुप्पदाउं वा। कप्पइ से लेवं अनुजाणावेत्तए अनुजाणह भंते! लेवाए? एवं से कप्पइ लेवं समासेवित्तए।

Translated Sutra: परिहार कल्पस्थिति में रहे (यानि प्रायश्चित्त वहन करनेवाले) साधु को (अपने आप) अशन, पान, खादिम, स्वादिम देना या दिलाना न कल्पे। यदि स्थविर आज्ञा दे कि हे आर्य ! तुम यह आहार उस परिहारी को देना या दिलाना तो देना कल्पे यदि स्थविर की आज्ञा हो तो परिहारी साधु को विगई लेना कल्पे।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 64 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू सएणं पडिग्गहेणं बहिया अप्पणो वेयावडियाए गच्छेजा। थेरा य णं वएज्जा-पडिग्गाहेहि णं अज्जो! अहं पि भोक्खामि वा पाहामि वा। एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। तत्थ नो कप्पइ अपरिहारियस्स परिहारियस्स पडिग्गहंसि असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा भोत्तए वा पायए वा, कप्पइ से सयंसि वा पडिग्गहंसि सयंसि वा पलासगंसि सयंसि वा कमढगंसि सयंसि वा खुव्वगंसि पाणिंसि वा उद्धट्टु-उद्धट्टु भोत्तए वा पायए वा। एस कप्पो अपरिहारियस्स परिहारियाओ।

Translated Sutra: परिवार कल्पस्थित साधु स्थविर की वैयावच्च करते हो तब (अपने आहार अपने पात्र में और स्थविर का आहार स्थविर के पात्र में ऐसे अलग – अलग लाए) पड़िहारी अपना आहार लाकर बाहर स्थविर की वैयावच्च के लिए फिर से जाते हैं तब (यदि) स्थविर कहे कि हे आर्य ! तुम्हारे पात्र में हमारे आहार – पानी भी साथ लाना। हम वो आहार करेंगे, पानी पीएंगे
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-२ Hindi 65 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू थेराणं पडिग्गहेणं बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा। थेरा य णं वएज्जा–पडिग्गाहेहि णं अज्जो! तुमं पि भोक्खसि वा पाहिसि वा। एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। तत्थ नो कप्पइ परिहारियस्स अपरिहारियस्स पडिग्गहंसि असनं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा भोत्तए वा पायए वा, कप्पइ से सयंसि वा पडिग्गहंसि सयंसि वा पलासगंसि सयंसि वा कमढगंसि सयंसि वा खुव्वगंसि पाणिंसि वा उद्धट्टु-उद्धट्टु भोत्तए वा पायए वा। एस कप्पो परिहारियस्स अपरिहारियाओ।

Translated Sutra: परिहार कल्प स्थित साधु स्थविर के पात्र लेकर बाहर स्थविर की वैयावच्च के लिए जाते देखकर स्थविर उस साधु को ऐसा कहे कि हे आर्य ! तुम्हारा आहार भी साथ में उसी पात्र में लाना और तुम भी उसे खाना और पानी पीना तो इस प्रकार लाना कल्पे लेकिन वहाँ परिहारी को अपरिहारी स्थविर के पात्र में अशन आदि आहार खाना या पीना न कल्पे लेकिन
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 66 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य इच्छेज्जा गणं धारेत्तए, भगवं च से अपलिच्छन्ने एवं से नो कप्पइ गणं धारेत्तए। भगवं च से पलिच्छन्ने एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए।

Translated Sutra: साधु गच्छ नायकपन धारण करना चाहे तो हे भगवंत ! यदि वो साधु आयारो – निसीह आदि सूत्र संग्रह रहित है तो गच्छनायकपन धारण कर सके ? यदि ऐसा न हो तो गच्छ नायकपन धारण करना न कल्पे लेकिन यदि वो आयारो – निसीह आदि सूत्र संग्रह सहित और शिष्य आदि परिवारवाला हो तो गच्छ नायकपन धारण कर सके।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 67 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य इच्छेज्जा गणं धारेत्तए, नो से कप्पइ थेरे अनापुच्छित्ता गणं धारेत्तए, कप्पइ से थेरे आपुच्छित्ता गणं धारेत्तए। थेरा य से वियरेज्जा एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए, थेरा य से नो वियरेज्जा एवं से नो कप्पइ गणं धारेत्तए। जण्णं थेरेहिं अविइण्णं गणं धारेज्जा, से संतरा छेओ वा परिहारो वा।

Translated Sutra: जो कोई साधु गच्छ नायकपन धारण करना चाहे उसे स्थविर को पूछे बिना गच्छ नायकपन धारण करना न कल्पे स्थविर को पूछकर गच्छ नायकपन धारण करना कल्पे। स्थविर आज्ञा दे तो कल्पे और आज्ञा न दे तो न कल्पे। जितने दिन वो आज्ञा रहित गच्छ नायकपन धारे तो उतने दिन का छेद या तप का प्रायश्चित्त आता है।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 68 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं आयारपकप्पधरे कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: तीन साल का पर्याय हो ऐसे श्रमण – निर्ग्रन्थ हो और फिर आचार – संयम, प्रवचन – गच्छ की सारसंभाळादिक संग्रह और पाणेसणादि उपग्रह के लिए कुशल हो, जिसका आचार खंड़ित नहीं हुआ, भेदन नहीं हुआ, सबल दोष नहीं लगा, संक्लिष्ट आचार युक्त चित्तवाला नहीं, बहुश्रुत, कईं आगम के ज्ञाता, जघन्य से आचार प्रकल्प – निसीह सूत्रार्थ के धारक
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 69 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] स च्चेव णं से तिवासपरियाए समणे निग्गंथे नो आयारकुसले नो संजमकुसले नो पवयणकुसले नो पन्नत्तिकुसले नो संगहकुसले नो उवग्गहकुसले खयायारे सबलायारे भिन्नायारे संकिलिट्ठायारे अप्प-सुए अप्पागमे नो कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ६८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 70 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं दसा-कप्प-ववहारधरे कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: पाँच साल के पर्यायवाले श्रमण – निर्ग्रन्थ यदि आचार – संयम, प्रवचन – गच्छ की सर्व फिक्र की प्रज्ञा – उपधि आदि के उपग्रह में कुशल हो, जिसका आचार छेदन – भेदन न हो, क्रोधादिक से जिसका चारित्र मलिन नहीं और फिर जो बहुसूत्री आगमज्ञाता है और जघन्य से दसा – कप्प – व्यवहार सूत्र के धारक हैं उन्हें यह पद देना न कल्पे। सूत्र
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 71 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] स च्चेव णं से पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे नो आयारकुसले नो संजमकुसले नो पवयणकुसले नो पन्नत्तिकुसले नो संगहकुसले नो उवग्गहकुसले खयायारे सबलायारे भिन्नायारे संकिलिट्ठायारे अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ७०
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 72 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं ठाणसमवायधरे कप्पइ आयरियत्ताए उवज्झायत्ताए पवत्तित्ताए थेरत्ताए गणित्ताए गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: आठ साल के पर्यायवाले श्रमण – निर्ग्रन्थ में ऊपर के सर्व गुण और जघन्य से ठाण, समवाय ज्ञाता हो उसे आचार्य से गणावच्छेदक पर्यन्त की पदवी देना कल्पे, लेकिन जिनमें उक्त गुण नहीं है उसे पदवी देना न कल्पे। सूत्र – ७२, ७३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 73 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] स च्चेव णं से अट्ठवासपरियाए समणे निग्गंथे नो आयारकुसले नो संजमकुसले नो पवयणकुसले नो पन्नत्तिकुसले नो संगहकुसले नो उवग्गहकुसले खयायारे सबलायारे भिन्नायारे संकिलिट्ठायारे अप्प-सुए अप्पागमे नो कप्पइ आयरियत्ताए जाव गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ७२
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 74 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निरुद्धपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ तद्दिवसं आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से किमाहु भंते? अत्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाणि कडाणि पत्तियाणि थेज्जाणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अनुमयाणि बहुमयाणि भवंति, तेहिं कडेहिं तेहिं पत्तिएहिं तेहिं थेज्जेहिं तेहिं वेसासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुइकरेहिं जं से निद्धपरियाए समणे निग्गंथे, कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए तद्दिवसं।

Translated Sutra: निरुद्धवास पर्याय – (एक बार दीक्षा लेने के बाद जिसका पर्याय छेद हुआ है ऐसे) श्रमण निर्ग्रन्थ को उसी दिन आचार्य – उपाध्याय पदवी देना कल्पे, हे भगवंत ! ऐसा क्यों कहा ? उस स्थविर साधु को पूर्व के तथारूप कुल हैं। जैसे कि प्रतीतिकारक, दान देने में धीर, भरोसेमंद, गुणवंत, साधु बार – बार वहोरने पधारे उसमें खुशी हो और दान
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 75 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निरुद्धवासपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए समुच्छेयकप्पंसि। तस्स णं आयारपकप्पस्स देसे अहिज्जिए देसे नो अहिज्जिए, से य अहिज्जिस्सामि त्ति अहिज्जइ, एवं से कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से य अहिज्जिस्सामि त्ति नो अहिज्जइ, एवं से नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।

Translated Sutra: निरुद्ध वास पर्याय – पहले दीक्षा ली हो उसे छोड़कर पुनः दीक्षा लिए कुछ साल हुए हो ऐसे श्रमण – निर्ग्रन्थ को आचार्य – उपाध्याय कालधर्म पाए तब पदवी देना कल्पे। यदि वो बहुसूत्री न हो तो भी समुचयरूप से वो आचार प्रकल्प – निसीह के कुछ अध्ययन पढ़े हैं और बाकी के पढूँगा ऐसा चिन्तवन करते हैं वो यदि पढ़े तो उसे आचार्य – उपाध्याय
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 76 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स णं नवडहरतरुणस्स आयरिय-उवज्झाए वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ अनायरियउवज्झायस्स होत्तए। कप्पइ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं। से किमाहु भंते? दुसंगहिए समणे निग्गंथे, तं जहा–आयरिएणं उवज्झाएण य।

Translated Sutra: वो साधु जो दीक्षा में छोटे हैं। तरुण हैं। ऐसे साधु की आचार्य – उपाध्याय काल कर गए हो उनके बिना रहना न कल्पे, पहले आचार्य और फिर उपाध्याय की स्थापना करके रहना कल्पे। ऐसा क्यों कहा ? वो साधु नए हैं – तरुण हैं इसलिए उसे आचार्य – उपाध्याय आदि के संग बिना रहना न कल्पे, यदि साध्वी नवदीक्षित और तरुण हो तो उसे आचार्य –
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 77 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथीए णं नवडहरतरुणीए आयरिय-उवज्झाए पवत्तणी य वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ, अनायरियउवज्झाइयाए अपवत्तणीए य होत्तए। कप्पइ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं तओ पच्छा पवत्तिणिं। से किमाहु भंते? तिसंगहिया समणी निग्गंथी, तं जहा–आयरिएणं उवज्झाएणं पवत्तिणीए य

Translated Sutra: देखो सूत्र ७६
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 78 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरित्तं वा उवज्झायत्तं वा पवत्तित्तं वा थेरत्तं वा गणित्तं वा गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेतए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: जो साधु गच्छ छोड़कर जाए, फिर मैथुन सेवन करे, सेवन करके फिर दीक्षा ले तो उसे दीक्षा लेने के बाद तीन साल तक आचार्य से गणावच्छेदक तक का पदवी देना या धारण करना न कल्पे। तीन साल बीतने के बाद चौथे साल स्थिर हो, उपशान्त हो, क्लेष से निवर्ते, विषय से निवर्ते ऐसे साधु को आचार्य से गणावच्छेदक तक की छह पदवी देना या धारण करना
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 79 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ७८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 80 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ७८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 81 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए आयरिय-उवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय उनका पद छोड़े बिना मैथुन सेवन करे तो जावज्जीव के लिए उसे आचार्य यावत्‌ गणावच्छेदक के छह पदवी देना या धारण करना न कल्पे, लेकिन यदि वो पदवी छोड़कर जाए, फिर मैथुन धर्म सेवन करे तो उसे तीन साल तक आचार्य पदवी देना या धारण करना न कल्पे लेकिन चौथा साल बैठे तब यदि वो स्थिर, उपशान्त, कषाय – विषय रहित हुआ
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 82 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए आयरिय-उवज्झायत्तं निक्खिवित्ता मेहुणधम्मं पडिसेवेज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८१
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 83 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म ओहायइ तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: यदि कोई साधु गच्छ में से नीकलकर विषय सेवन के लिए द्रव्यलिंग छोड़ देने के लिए देशान्तर जाए, मैथुन सेवन करके फिर से दीक्षा ले। तीन साल तक उसे आचार्य आदि छ पदवी देना या धारण करना न कल्पे, तीन साल पूरे होने से चौथा साल बैठे तब यदि वो साधु स्थिर – उपशान्त – विषय – कषाय से निवर्तित हो तो उन्हें पदवी देना – धारण करना कल्पे,
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 84 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता ओहाएज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 85 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता ओहाएज्जा तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिवियरस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 86 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता ओहाएज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 87 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए आयरियउवज्झायत्तं निक्खिवित्ता ओहाएज्जा, तिन्नि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहिं संवच्छरेहिं वीइक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्विगारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८३
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उद्देशक-३ Hindi 88 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: साधु जो किसी एक या ज्यादा, गणावच्छेदक, आचार्य, उपाध्याय या सभी बहुश्रुत हो, कईं आगम के ज्ञाता हो, कईं गाढ़ – आगाढ़ के कारण से माया – कपट सहित झूठ बोले, असत्य भाखे उस पापी जीव को जावज्जीव के लिए आचार्य – उपाध्याय – प्रवर्तक, स्थविर, गणि या गणावच्छेदक की पदवी देना या धारण करना न कल्पे। सूत्र – ८८–९४
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उद्देशक-३ Hindi 89 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गणावच्छेइए बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 90 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए बहुस्सुए बब्भागमे बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 91 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे भिक्खुणो बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पई आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 92 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे गणावच्छेइया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 93 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे आयरिय-उवज्झाया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 94 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] बहवे भिक्खुणो बहवे गणावच्छेइया बहवे आयरिय-उवज्झाया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहुआगाढागाढेसु कारणेसु माई मुसावाई असुई पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा।

Translated Sutra: देखो सूत्र ८८
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उद्देशक-४ Hindi 95 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स एगाणियस्स हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय को गर्मी या शीतकाल में अकेले विचरना न कल्पे, खुद के सहित दो के साथ विचरना कल्पे। सूत्र – ९५, ९६
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उद्देशक-४ Hindi 96 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ९५
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उद्देशक-४ Hindi 97 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: गणावच्छेदक को खुद के सहित दो लोगों को गर्मी या शीतकाल में विचरना न कल्पे, खुद के सहित तीन को विचरना कल्पे। सूत्र – ९७, ९८
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उद्देशक-४ Hindi 98 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ९७
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उद्देशक-४ Hindi 99 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स अप्पबिइयस्स वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय को खुद के सहित दो को वर्षावास रहना न कल्पे, तीन को कल्पे। सूत्र – ९९, १००
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उद्देशक-४ Hindi 100 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: देखो सूत्र ९९
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 101 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पतइयस्स वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: गणावच्छेदक को खुद के सहित तीन को वर्षावास रहना न कल्पे, चार को कल्पे। सूत्र – १०१, १०२
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 102 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पचउत्थस्स वासावासं वत्थए।

Translated Sutra: देखो सूत्र १०१
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उद्देशक-४ Hindi 103 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा सन्निवेसंसि वा बहूणं आयरिय-उवज्झायाणं अप्पबियाणं बहूणं गणावच्छेइयाणं अप्पतइयाणं कप्पइ हेमंतगिम्हासु चारए अन्नमन्ननिस्साए।

Translated Sutra: वे गाँव, नगर, निगम, राजधानी, खेड़ा, कसबो, मंड़प, पाटण, द्रोणमुख, आश्रम, संवाह सन्निवेश के लिए अनेक आचार्य, उपाध्याय खुद के साथ दो, अनेक गणावच्छेदक को खुद के साथ तीन को आपस में गर्मी या शीत काल में विचरना कल्पे और अनेक आचार्य – उपाध्याय को खुद के साथ तीन और अनेक गणावच्छेदक को खुद के साथ चार को अन्योन्य निश्रा में वर्षावास
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