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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 656 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे अट्ठमे किरियट्ठाणे अज्झत्थिए त्ति आहिज्जइ– से जहानामए केइ पुरिसे–नत्थि णं केइ किंचि विसंवादेइ–सयमेव हीणे दीणे दुट्ठे दुम्मणे ओहयमणसंकप्पे चिंतासोगसागर-संपविट्ठे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए भूमिगयदिट्ठिए ज्झियाति, तस्स णं अज्झत्थिया असंसइया चत्तारि ठाणा एवमाहिज्जंति, तं जहा–कोहे माणे माया लोहे। एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जइ। अट्ठमे किरियाट्ठाणे अज्झत्थिए त्ति आहिए।

Translated Sutra: इसके बाद आठवा अध्यात्मप्रत्ययिक क्रियास्थान है। जैसे कोई ऐसा पुरुष है, किसी विसंवाद के कारण, दुःख उत्पन्न करने वाला कोई दूसरा नहीं है फिर भी वह स्वयमेव हीन भावनाग्रस्त, दीन, दुश्चिन्त दुर्मनस्क, उदास होकर मन में अस्वस्थ संकल्प करता रहता है, चिन्ता और शोक के सागर में डूबा रहता है, एवं हथेली पर मुँह रख कर पृथ्वी
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 664 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से एगइओ परिसामज्झाओ उट्ठेत्ता अहमेयं हणामि त्ति कट्टु तित्तिरं वा वट्टगं वा [चडगं वा?] लावगं वा कवोयगं वा [कविं वा?] कविंजलं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ–इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा गाहावइपुत्तान वा सयमेव अगनिकाएणं सस्साइं ज्झामेइ, अन्नेन वि अगनिकाएणं सस्साइं ज्झामावेइ, अगनिकाएणं सस्साइं ज्झामेंतं पि अन्नं समणुजाणइ–इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ केणइ आदाणेणं

Translated Sutra: (१) कोई व्यक्ति सभा में खड़ा होकर प्रतिज्ञा करता है – मैं इस प्राणी को मारूँगा।’ तत्पश्चात्‌ वह तीतर, बतख, लावक, कबूतर, कपिंजल या अन्य किसी त्रसजीव को मारता है, छेदन – भेदन करता है, यहाँ तक कि उसे प्राणरहित कर डालता है। अपने इस महान पापकर्म के कारण वह स्वयं को महापापी नाम से प्रख्यात कर देता है (२) कोई पुरुष किसी कारण
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 667 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति– महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया ‘अधम्माणुया अधम्मिट्ठा’ अधम्मक्खाई अधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइणो अधम्मपलज्जणा अधम्मसील-समुदाचारा अधम्मेन चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, ‘हण’ ‘छिंद’ ‘भिंद’ विगत्तगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कंचण-वंचण-माया-णियडि-कूड-कवड-साइ-संपओगबहुला दुस्सीला दुव्वया दुप्पडियाणंदा असाहू सव्वाओ पानाइवायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मुसावायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ प्रथम स्थान जो अधर्मपक्ष है, उसका विश्लेषणपूर्वक विचार किया जाता है – इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कईं मनुष्य ऐसे होते हैं, जो गृहस्थ होते हैं, जिनकी बड़ी – बड़ी इच्छाएं होती हैं, जो महारम्भी एवं महापरिग्रही होते हैं। वे अधार्मिक, अधर्म का अनुसरण करने या अधर्म की अनुज्ञा देने वाले, अधर्मिष्ठ,
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 670 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–जइ खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा–अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुगा धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्म-समुदायारा धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा सुसाहू सव्वाओ पानाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए,सव्वाओ अदिन्नादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ

Translated Sutra: पश्चात्‌ दूसरे धर्मपक्ष का विवरण है – इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कईं पुरुष ऐसे होते हैं, जो अनारम्भ, अपरिग्रह होते हैं, जो धार्मिक होते हैं, धर्मानुसार प्रवृत्ति करते हैं या धर्म की अनुज्ञा देते हैं, धर्म को ही अपना इष्ट मानते हैं, या धर्मप्रधान होते हैं, धर्म की ही चर्चा करते हैं, धर्ममयजीवी, धर्म
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Hindi 671 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे तच्चस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा–अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा सुसाहू, एगच्चाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जाव-ज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया।

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ तृतीय स्थान, जो मिश्रपक्ष है, उसका विभंग इस प्रकार है – इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कईं मनुष्य होते हैं, जैसे कि – वे अल्प ईच्छा वाले, अल्पारम्भी और अल्पपरिग्रही होते हैं। वे धर्माचरण करते हैं, धर्म के अनुसार प्रवृत्ति करते हैं, यहाँ तक कि धर्मपूर्वक अपनी जीविका चलाते हुए जीवनयापन करते
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-६ आर्द्रकीय

Hindi 789 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संवच्छरेणावि य एगमेगं बाणेन मारेउ महागयं तु । सेसाण जीवान दयट्ठयाए वासं वयं वित्तिं पकप्पयामो

Translated Sutra: अन्त में हस्तितापस आर्द्रकमुनि से कहते हैं – हम लोग शेष जीवों की दया के लिए वर्ष में एक बड़े हाथी को बाण से मारकर वर्षभर उसके माँस से अपना जीवनयापन करते हैं।
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-७ नालंदीय

Hindi 803 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु संतेगइया मणुस्सा भवंति। तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–जे इमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्ता, एएसिं णं आमरणंताए दंडे निक्खित्ते। जे इमे अगारमावसंति, एएसिं णं आमरणंताए दंडे नो निक्खित्ते। ‘केई च णं समणे’ जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाइं अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जित्ता ‘अगारं वएज्जा’? हंता वएज्जा। तस्स णं तमगारत्थं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे भग्गे भवइ? णेति। एवमेव समणोवासगस्स वि तसेहिं पाणेहिं दंडे निक्खित्ते, थावरेहिं पाणेहिं दंडे नो निक्खित्ते। तस्स णं तं थावरकायं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे

Translated Sutra: भगवान गौतम कहते हैं कि मुझे निर्ग्रन्थों से पूछना है – आयुष्मन्‌ निर्ग्रन्थों ! इस जगत में कईं मनुष्य ऐसे होते हैं; वे इस प्रकार वचनबद्ध होते हैं कि ‘ये जो मुण्डित हो कर, गृह त्याग कर अनगार धर्म में प्रव्रजित हैं, इनको आमरणान्त दण्ड देने का मैं त्याग करता हूँ; परन्तु जो ये लोग गृहवास करते हैं, उनको मरणपर्यन्त
Sutrakrutang सूत्रकृतांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-७ नालंदीय

Hindi 804 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु परिव्वायया वा परिव्वाइयाओ वा अन्नयरेहिंतो तित्थायतणेहिंतो आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा? हंता उवसंकमेज्जा। ‘किं तेसिं’ तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे? हंता आइक्खियव्वे। किं ते तहप्पगारं धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वएज्जा–इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरंकेवलियं पडिपुण्णं णेयाउयं संसुद्धं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहं असंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं। एत्थ ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। इमाणाए

Translated Sutra: भगवान श्री गौतमस्वामी ने (पुनः) कहा – मुझे निर्ग्रन्थों से पूछना है – आयुष्मन्‌ निर्ग्रन्थो ! इस लोक में परिव्राजक अथवा परिव्राजिकाएं किन्हीं दूसरे तीर्थस्थानों से चलकर धर्मश्रवण के लिए क्या निर्ग्रन्थ साधुओं के पास आ सकती हैं ? निर्ग्रन्थ – हाँ, आ सकती हैं। श्री गौतमस्वामी – क्या उन व्यक्तियों को धर्मोपदेश
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१ समय

उद्देशक-३ Gujarati 75 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंवुडा अणादीयं भमिहिंति पुणो-पुणो । कप्पकालमुवज्जंति ठाणा आसुरकिब्बिसिय ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૪
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-२ वैतालिक

उद्देशक-३ Gujarati 160 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वे सयकम्मकप्पिया अवियत्तेन दुहेन पाणिणो । हिंडंति भयाउला सढा जाइजरामरणेहिऽभिद्दुया ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૫૯
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-११ मार्ग

Gujarati 511 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पूतिकम्मं न सेवेज्जा एस धम्मे वुसीमतो । जं किंचि अभिसंकेज्जा सव्वसो तं न कप्पते

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૦૯
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-७ नालंदीय

Gujarati 803 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु संतेगइया मणुस्सा भवंति। तेसिं च णं एवं वुत्तपुव्वं भवइ–जे इमे मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्ता, एएसिं णं आमरणंताए दंडे निक्खित्ते। जे इमे अगारमावसंति, एएसिं णं आमरणंताए दंडे नो निक्खित्ते। ‘केई च णं समणे’ जाव वासाइं चउपंचमाइं छद्दसमाइं अप्पयरो वा भुज्जयरो वा देसं दूइज्जित्ता ‘अगारं वएज्जा’? हंता वएज्जा। तस्स णं तमगारत्थं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे भग्गे भवइ? णेति। एवमेव समणोवासगस्स वि तसेहिं पाणेहिं दंडे निक्खित्ते, थावरेहिं पाणेहिं दंडे नो निक्खित्ते। तस्स णं तं थावरकायं वहमाणस्स से पच्चक्खाणे

Translated Sutra: ભગવાન ગૌતમ કહે છે કે મારે નિર્ગ્રન્થોને પૂછવું છે કે – હે આયુષ્યમાન્‌ નિર્ગ્રન્થો ! આ જગતમાં એવા કેટલાક મનુષ્યો છે, જેઓ આવી પ્રતિજ્ઞા કરે છે કે – જેઓ આ મુંડ થઈને, ઘર છોડી અનગારિક પ્રવ્રજ્યા લે છે, તેમને આમરણ દંડ દેવાનો હું ત્યાગ કરું છું. જે આ ગૃહવાસે રહ્યા છે, તેમને આમરણ દંડ દેવાનો હું ત્યાગ કરતો નથી. હું પૂછું
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा

उद्देशक-३ परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख Gujarati 206 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं तु समणा एगे अबलं नच्चान अप्पगं । अणागयं भयं दिस्स अवकप्पंति मं सुयं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૪
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा

उद्देशक-३ परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख Gujarati 207 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ‘को जाणइ’ वियोवातं इत्थीओ उदगाओवा? । चोइज्जंता पवक्खामो न णे अत्थि पकप्पियं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૪
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा

उद्देशक-३ परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख Gujarati 212 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संबद्धसमकप्पा हु ‘अन्नमण्णेसु मुच्छिया’ । पिंडवायं गिलाणस्स जं सारेह दलाह य ॥

Translated Sutra: વર્ણન સૂત્ર સંદર્ભ: સાધુના નિંદકો શું બોલે છે તે બતાવે છે – અનુવાદ: સૂત્ર– ૨૧૨. તમારો વ્યવહાર ગૃહસ્થ સમાન છે, જેમ ગૃહસ્થ માતા – પિતાદિમાં આસક્ત રહે છે તેમ તમે પણ પરસ્પર આસક્ત છો, બીમાર સાધુ માટે આહાર લાવીને આપો છો. સૂત્ર– ૨૧૩. આ પ્રમાણે તમે સરાગી છો, પરસ્પર એક બીજાને આધીન છો, તેથી તમે સદ્ભાવ અને સન્માર્ગથી રહિત
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा

उद्देशक-३ परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख Gujarati 222 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बहुगुणप्पकप्पाइं कुज्जा अत्तसमाहिए । जेणण्णे न विरुज्झेज्जा तेणं तं तं समायरे ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૨૨. અન્યદર્શનીઓ સાથે વાદ કરતી વખતે મુનિ પોતાની ચિત્તવૃત્તિને પ્રસન્ન રાખે અને બીજા મનુષ્યો તેના વિરોધી ન બને તેવા આચરણ પૂર્વક પોતાનો પક્ષ રજૂ કરે. સૂત્ર– ૨૨૩. કાશ્યપગોત્રીય ભગવાન મહાવીર સ્વામીએ કહેલ આ ધર્મને ગ્રહણ કરીને પ્રસન્નચિત્તે, મુનિ ગ્લાનિ – રહિત બની રોગી સાધુની સેવા કરે. સૂત્ર– ૨૨૪. સમ્યગ્‌
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-४ स्त्री परिज्ञा

उद्देशक-१ Gujarati 256 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सेऽणुतप्पई पच्छा भोच्चा पायसं व विसमिस्सं । एवं विवागमायाए संवासो न कप्पई दविए ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૫૩
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-७ कुशील परिभाषित

Gujarati 393 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पाओसिनानाइसु नत्थि मोक्खो खारस्स लोणस्स अणासणेणं । ते मज्जमंसं लसुणं ‘चऽभोच्चा’ अन्नत्थ वासं परिकप्पयंति

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૯૧
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-११ मार्ग

Gujarati 515 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जेसिं तं उवकप्पेंति ‘अन्नं पाणं’ तहाविहं । तेसिं लाभंतरायं ति तम्हा नत्थि त्ति नो वए ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૧૨
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध १

अध्ययन-१५ आदान

Gujarati 609 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहिं तहिं सुयक्खायं से य सच्चे सुआहिए । सदा सच्चेन संपण्णे मेत्तिं भूतेसु कप्पए

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૦૭
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Gujarati 652 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे चउत्थे दंडसमादाणे अकस्मादंडवत्तिए त्ति आहिज्जइ– से जहानामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा दहंसि वा उदगंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा णूमंसि वा गहणंसि वा गहणविदुग्गंसि वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा मियवत्तिए मियसंकप्पे मिययपणिहाणे मियवहाए गंता ‘एते मिय’ त्ति काउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए उसुं आयामेत्ता णं निसिरेज्जा, से ‘मियं वहिस्सामि’ त्ति कट्टु तित्तिरं वा वट्टगं वा ‘चडगं वा’ लावगं वा कवोयगं वा कविं वा कविजलं वा विंधित्ता भवति–इति खलु से अन्नस्स अट्ठाए अन्नं फुसइ–अकस्मादंडे। से जहानामए केइ पुरिसे सालीणि वा वीहीणि वा कोद्दवाणि

Translated Sutra: હવે ચોથા ક્રિયાસ્થાન અકસ્માત દંડ પ્રત્યયિક કહે છે. જેમ કે કોઈ પુરુષ નદીના તટ યાવત્‌ ઘોર દુર્ગમ જંગલમાં જઈને મૃગને મારવાની ઇચ્છાથી, મૃગને મારવાનો સંકલ્પ કરે, મૃગનું ધ્યાન કરે, મૃગના વધને માટે જઈને આ મૃગ છે – એમ વિચારીને મૃગના વધને માટે બાણ ચડાવીને છોડે, તે મૃગને બદલે તે બાણ તીતર, બટેર, ચકલી, લાવક, કબૂતર, વાંદરો
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Gujarati 656 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे अट्ठमे किरियट्ठाणे अज्झत्थिए त्ति आहिज्जइ– से जहानामए केइ पुरिसे–नत्थि णं केइ किंचि विसंवादेइ–सयमेव हीणे दीणे दुट्ठे दुम्मणे ओहयमणसंकप्पे चिंतासोगसागर-संपविट्ठे करतलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए भूमिगयदिट्ठिए ज्झियाति, तस्स णं अज्झत्थिया असंसइया चत्तारि ठाणा एवमाहिज्जंति, तं जहा–कोहे माणे माया लोहे। एवं खलु तस्स तप्पत्तियं सावज्जं ति आहिज्जइ। अट्ठमे किरियाट्ठाणे अज्झत्थिए त्ति आहिए।

Translated Sutra: હવે આઠમું ક્રિયાસ્થાન અધ્યાત્મ પ્રત્યયિક કહે છે. જેમ કે કોઈ પુરુષ વિષાદનું કોઈ બાહ્ય કારણ ન હોવા છતાં સ્વયં હીન, દીન, દુઃખી, દુર્મનસ્‌ બની મનમાં જ ન કરવા યોગ્ય વિચારો કરે, ચિંતા અને શોકના સાગરમાં ડૂબી જાય, હથેળી પર મુખ રાખી, ભૂમિ પર દૃષ્ટિ રાખી, આર્ત્તધ્યાન કરતો રહે છે. નિશ્ચયથી તેના હૃદયમાં ચાર સ્થાનો સ્થિત
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Gujarati 664 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से एगइओ परिसामज्झाओ उट्ठेत्ता अहमेयं हणामि त्ति कट्टु तित्तिरं वा वट्टगं वा [चडगं वा?] लावगं वा कवोयगं वा [कविं वा?] कविंजलं वा अन्नयरं वा तसं पाणं हंता छेत्ता भेत्ता लुंपइत्ता विलुंपइत्ता उद्दवइत्ता आहारं आहारेइ–इति से महया पावेहिं कम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ केणइ आदाणेणं विरुद्धे समाणे, अदुवा खलदाणेणं, अदुवा सुराथालएणं गाहावईण वा गाहावइपुत्तान वा सयमेव अगनिकाएणं सस्साइं ज्झामेइ, अन्नेन वि अगनिकाएणं सस्साइं ज्झामावेइ, अगनिकाएणं सस्साइं ज्झामेंतं पि अन्नं समणुजाणइ–इति से महया पावकम्मेहिं अत्ताणं उवक्खाइत्ता भवति। से एगइओ केणइ आदाणेणं

Translated Sutra: ૧ – કોઈ પર્ષદામાં ઊભો થઈ પ્રતિજ્ઞા કરે, ‘‘હું આ પ્રાણીને મારીશ.’’ પછી તે તીતર, બતક, લાવક, કબૂતર, કપિંજલ કે અન્ય કોઈ ત્રસ જીવને હણીને યાવત્‌ મહાપાપી રૂપે પ્રસિદ્ધ થાય છે. ૨ – કોઈ પુરુષ સડેલું અન્ન મળવાથી કે બીજી કોઈ અભિષ્ટ અર્થની સિદ્ધિ ન થવાથી વિરુદ્ધ થઈને તે ગૃહપતિના કે તેના પુત્રોના ખળામાં રહેલ ધાન્યાદિને,
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Gujarati 667 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे पढमस्स ठाणस्स अधम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति– महिच्छा महारंभा महापरिग्गहा अधम्मिया ‘अधम्माणुया अधम्मिट्ठा’ अधम्मक्खाई अधम्मपायजीविणो अधम्मपलोइणो अधम्मपलज्जणा अधम्मसील-समुदाचारा अधम्मेन चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, ‘हण’ ‘छिंद’ ‘भिंद’ विगत्तगा लोहियपाणी चंडा रुद्दा खुद्दा साहस्सिया उक्कंचण-वंचण-माया-णियडि-कूड-कवड-साइ-संपओगबहुला दुस्सीला दुव्वया दुप्पडियाणंदा असाहू सव्वाओ पानाइवायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मुसावायाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ अदिण्णादाणाओ

Translated Sutra: હવે પ્રથમ સ્થાન અધર્મપક્ષનો વિચાર કરીએ છીએ – આ લોકમાં પૂર્વાદિ ચારે દિશામાં કેટલાયે મનુષ્યો રહે છે. જેઓ ગૃહસ્થ છે, મહાઇચ્છા, મહાઆરંભ, મહા – પરિગ્રહયુક્ત છે, અધાર્મિક, અધર્માનુજ્ઞા, અધર્મિષ્ઠ, અધર્મ કહેનારા, અધર્મપ્રાયઃ જીવિકાવાળા, અધર્મપ્રલોકી, અધર્મ પાછળ જનારા, અધર્મશીલ – સમુદાય – ચારી, અધર્મથી જ આજીવિકા
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Gujarati 670 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे दोच्चस्स ठाणस्स धम्मपक्खस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–जइ खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा–अणारंभा अपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुगा धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्म-समुदायारा धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा सुसाहू सव्वाओ पानाइवायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए,सव्वाओ अदिन्नादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावज्जीवाए, सव्वाओ कोहाओ माणाओ मायाओ लोभाओ पेज्जाओ दोसाओ कलहाओ अब्भक्खाणाओ

Translated Sutra: હવે બીજું ધર્મપક્ષ સ્થાનને કહે છે. આ મનુષ્યલોકમાં પૂર્વાદિ દિશાઓમાં કેટલાક મનુષ્યો રહે છે. જેમ કે – અનારંભી, અપરિગ્રહી, ધાર્મિક, ધર્માનુગ, ધર્મિષ્ઠ યાવત્‌ ધર્મ વડે જ પોતાનું જીવન વીતાવે છે તેઓ સુશીલ, સુવ્રતી, સુપ્રત્યાનંદી, સુસાધુ, જાવજ્જીવ સર્વથા પ્રાણાતિપાતથી વિરમેલા યાવત્‌ તેવા પ્રકારના સાવદ્ય – અબોધિક
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-२ क्रियास्थान

Gujarati 671 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे तच्चस्स ठाणस्स मीसगस्स विभंगे एवमाहिज्जइ–इह खलु पाईणं वा पडीणं वा उदीणं वा दाहिणं वा संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा–अप्पिच्छा अप्पारंभा अप्पपरिग्गहा धम्मिया धम्माणुया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्मप्पलोई धम्मपलज्जणा धम्मसमुदायारा धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति, सुसीला सुव्वया सुप्पडियाणंदा सुसाहू, एगच्चाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जाव-ज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मुसावायाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया। एगच्चाओ मेहुणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अप्पडिविरया।

Translated Sutra: હવે ત્રીજા મિત્રપક્ષ સ્થાનનો વિભાગ કહે છે. આ મનુષ્યલોકમાં પૂર્વાદિ દિશામાં કેટલાક મનુષ્યો રહે છે. જેવા કે – અલ્પેચ્છાવાળા, અલ્પારંભી, અલ્પ પરિગ્રહી, ધાર્મિક, ધર્માનુગ યાવત્‌ ધર્મ વડે જ જીવન ગુજારનારા હોય છે. તેઓ સુશીલ, સુવ્રતી, સુપ્રત્યાનંદી, સાધુ હોય છે. એક તરફ તેઓ જાવજ્જીવ પ્રાણાતિપાતથી વિરત, બીજી તરફ અવિરત
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-६ आर्द्रकीय

Gujarati 765 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुरिसं च विद्धून कुमारगं वा सूलंमि केइ पए जायतेए । पिण्णागपिंडिं सइमारुहेत्ता बुद्धान तं कप्पइ पारणाए ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૬૩
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-६ आर्द्रकीय

Gujarati 789 Gatha Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संवच्छरेणावि य एगमेगं बाणेन मारेउ महागयं तु । सेसाण जीवान दयट्ठयाए वासं वयं वित्तिं पकप्पयामो

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૮૮
Sutrakrutang સૂત્રકૃતાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

अध्ययन-७ नालंदीय

Gujarati 804 Sutra Ang-02 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भगवं च णं उदाहु नियंठा खलु पुच्छियव्वा–आउसंतो! नियंठा! इह खलु परिव्वायया वा परिव्वाइयाओ वा अन्नयरेहिंतो तित्थायतणेहिंतो आगम्म धम्मस्सवणवत्तियं उवसंकमेज्जा? हंता उवसंकमेज्जा। ‘किं तेसिं’ तहप्पगाराणं धम्मे आइक्खियव्वे? हंता आइक्खियव्वे। किं ते तहप्पगारं धम्मं सोच्चा निसम्म एवं वएज्जा–इणमेव निग्गंथं पावयणं सच्चं अनुत्तरंकेवलियं पडिपुण्णं णेयाउयं संसुद्धं सल्लकत्तणं सिद्धिमग्गं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहं असंदिद्धं सव्वदुक्खप्पहीणमग्गं। एत्थ ठिया जीवा सिज्झंति बुज्झंति मुच्चंति परिणिव्वंति सव्वदुक्खाणमंतं करेंति। इमाणाए

Translated Sutra: ભગવાન ગૌતમસ્વામી કહે છે – કેટલાક એવા શ્રાવકો હોય છે કે, જેઓ પૂર્વે એવું કહે છે કે અમે મુંડ થઈને, ઘર છોડીને અણગારિકપણે પ્રવ્રજિત થવા અસમર્થ છીએ. અમે ચૌદશ, આઠમ, પૂર્ણિમા, અમાસના દિને પ્રતિપૂર્ણ પૌષધને સમ્યક્‌ પ્રકારે અનુપાલન કરતા વિચરીશું. તથા અમે સ્થૂલ પ્રાણાતિપાત, સ્થૂલ મૃષાવાદ, સ્થૂલ અદત્તાદાન, સ્થૂલ મૈથુન
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

जीवस्यदशदशा

Hindi 19 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तो पढमे मासे करिसूणं पलं जायइ १। बीए मासे पेसी संजायए घना २। तईए मासे माऊए डोहलं जणइ ३। चउत्थे मासे माऊए अंगाइं पीणेइ ४। पंचमे मासे पंच पिंडियाओ पाणिं पायं सिरं चेव निव्वत्तेइ ५। छट्ठे मासे पित्तसोणियं उवचिणेइ – अंगोवंगं च नव्वत्तेइ – ६। सत्तमे मासे सत्त सिरासयाइं पंच पेसीसयाइं नव धमणीओ नवनउयं च रोमकूवसयसहस्साइं ९९००००० निव्वत्तेइ विणा केस-मंसुणा, सह केस-मंसुणा अद्धुट्ठाओ रोमकूवकोडीओ निव्वत्तेइ ३५००००००, ७। अट्ठमे मासे वित्तीकप्पो हवइ ८।

Translated Sutra: उस के बाद पहले मास में वो फूले हुए माँस जैसा, दूसरे महिनेमें माँसपिंड़ जैसा घनीभूत होता है। तीसरे महिनेमें वो माता को ईच्छा उत्पन्न करवाता है। चौथे महिनेमें माता के स्तन को पुष्ट करता है। पाँचवे महिनेमें हाथ, पाँव, सर यह पाँच अंग तैयार होते हैं। छठ्ठे महिनेमें पित्त और लहू का निर्माण होता है। और फिर बाकी अंग
Tandulvaicharika तंदुल वैचारिक Ardha-Magadhi

देहसंहननं आहारादि

Hindi 71 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आउसो! से जहानामए केइ पुरिसे ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल पायच्छित्ते सिरंसिण्हाए कंठेमालकडे आविद्धमणि-सुवण्णे अहय सुमहग्घवत्थपरिहिए चंदनोक्किण्णगायसरीरे सरससुरहि-गंधगोसीसचंदनानुलित्तगत्ते सुइमालावन्नगविलेवणे कप्पियहारऽद्धहार-तिसरय-पालंबपलंबमाण-कडिसुत्तयसुकयसोहे पिणद्धगेविज्जे अंगुलेज्जगललियंगयललियकयाभरणे नाना-मणि कनग रयणकडग तुडियथंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलुज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारुच्छय सुकय रइयवच्छे पालंब-पलंबमाण सुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलिए नानामणि कनग रयणविमल महरिह निउणोविय मिसिमिसिंत विरइय सुसिलिट्ठ विसिट्ठ

Translated Sutra: हे आयुष्मान्‌ ! जो किसी भी नाम का पुरुष स्नान कर के, देवपूजा कर के, कौतुक मंगल और प्रायश्चित्त करके, सिर पर स्नान कर के, गलेमें माला पहनकर, मणी और सोने के आभूषण धारण करके, नए और कींमती वस्त्र पहनकर, चन्दन के लेपवाले शरीर से, शुद्ध माला और विलेपन युक्त, सुन्दर हार, अर्द्धहार – त्रिसरोहार, कन्दोरे से शोभायमान होकर,
Tandulvaicharika તંદુલ વૈચારિક Ardha-Magadhi

जीवस्यदशदशा

Gujarati 19 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तो पढमे मासे करिसूणं पलं जायइ १। बीए मासे पेसी संजायए घना २। तईए मासे माऊए डोहलं जणइ ३। चउत्थे मासे माऊए अंगाइं पीणेइ ४। पंचमे मासे पंच पिंडियाओ पाणिं पायं सिरं चेव निव्वत्तेइ ५। छट्ठे मासे पित्तसोणियं उवचिणेइ – अंगोवंगं च नव्वत्तेइ – ६। सत्तमे मासे सत्त सिरासयाइं पंच पेसीसयाइं नव धमणीओ नवनउयं च रोमकूवसयसहस्साइं ९९००००० निव्वत्तेइ विणा केस-मंसुणा, सह केस-मंसुणा अद्धुट्ठाओ रोमकूवकोडीओ निव्वत्तेइ ३५००००००, ७। अट्ठमे मासे वित्तीकप्पो हवइ ८।

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭
Tandulvaicharika તંદુલ વૈચારિક Ardha-Magadhi

देहसंहननं आहारादि

Gujarati 71 Sutra Painna-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आउसो! से जहानामए केइ पुरिसे ण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगल पायच्छित्ते सिरंसिण्हाए कंठेमालकडे आविद्धमणि-सुवण्णे अहय सुमहग्घवत्थपरिहिए चंदनोक्किण्णगायसरीरे सरससुरहि-गंधगोसीसचंदनानुलित्तगत्ते सुइमालावन्नगविलेवणे कप्पियहारऽद्धहार-तिसरय-पालंबपलंबमाण-कडिसुत्तयसुकयसोहे पिणद्धगेविज्जे अंगुलेज्जगललियंगयललियकयाभरणे नाना-मणि कनग रयणकडग तुडियथंभियभुए अहियरूवसस्सिरीए कुंडलुज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए हारुच्छय सुकय रइयवच्छे पालंब-पलंबमाण सुकयपडउत्तरिज्जे मुद्दियापिंगलंगुलिए नानामणि कनग रयणविमल महरिह निउणोविय मिसिमिसिंत विरइय सुसिलिट्ठ विसिट्ठ

Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૧. હે આયુષ્યમાન્‌ ! જેમ કોઈ પુરુષ સ્નાન કરી, બલિકર્મ કરી, કૌતુક – મંગલ – પ્રાયશ્ચિત્ત કરી, મસ્તકે ન્હાઈ, કંઠમાં માલા પહેરી, મણિ – સુવર્ણ પહેરી, અહત – સુમહાર્ધ વસ્ત્ર પહેરી, ચંદન વડે ઉત્કીર્ણ ગાત્ર શરીરી થઈ, સરસ સુરભિ ગંધ ગોશીર્ષ ચંદન વડે અનુલિપ્ત ગાત્રથી, શુચિમાલા વર્ણક વિલેપન, હાર – અર્ધહાર – ત્રિસરોહાર
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 10 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं–दुवालसविहं सावयधम्मं पडिवज्जति, पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–नो खलु मे भंते! कप्पइ अज्जप्पभिइं अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिय-देवयाणि वा अन्नउत्थिय-परिग्गहियाणि वा अरहंतचेइयाइं वंदित्तए वा नमंसित्तए वा, पुव्विं अणालत्तेणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा, तेसिं असणं वा पानं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पदाउं वा, नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तिकंतारेणं। कप्पइ मे समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं

Translated Sutra: फिर आनन्द गाथापति ने श्रमण भगवान महावीर के पास पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाव्रतरूप बारह प्रकार का श्रावक – धर्म स्वीकार किया। भगवान महावीर को वन्दना – नमस्कार कर वह भगवान से यों बोला – भगवन्‌ आज से अन्य यूथिक – उनके देव, उन द्वारा परिगृहीत – चैत्य – उन्हें वन्दना करना, नमस्कार करना, उनके पहले बोले बिना उनसे
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 12 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–पहू णं भंते! आनंदे समणोवासए देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। गोयमा! आनंदे णं समणोवासए बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं आनंदस्स वि

Translated Sutra: गौतम ने भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और पूछा – भन्ते ! क्या श्रमणोपासक आनन्द देवानुप्रिय के – आपके पास मुण्डित एवं परिव्रजित होने में समर्थ है ? गौतम ! ऐसा संभव नहीं है। श्रमणोपासक आनन्द बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक – पर्याय – का पालन करेगा वह सौधर्म – कल्प – में – सौधर्मनामक देवलोक में अरुणाभ नामक विमान
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 14 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वीइक्कंताइं। पन्नरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं वाणियगामे नयरे बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी पमाणं

Translated Sutra: तदनन्तर श्रमणोपासक आनन्द को अनेकविध शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान – पोषधोपवास आदि द्वारा आत्म – भावित होते हुए – चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। जब पन्द्रहवां वर्ष आधा व्यतीत हो चूका था, एक दिन आधी रात के बाद धर्म – जागरण करते हुए आनन्द के मन में ऐसा अन्तर्भाव – चिन्तन, आन्तरिक मांग, मनोभाव या संकल्प उत्पन्न
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 15 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं से आनंदे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से आनंदे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ।

Translated Sutra: तदनन्तर श्रमणोपासक आनन्द ने उपासक – प्रतिमाएं स्वीकार की। पहली उपासक – प्रतिमा उसने यथाश्रुत – यथाकल्प – यथामार्ग, यथातत्त्व – सहज रूप में ग्रहण की, उसका पालन किया, उसे शोधित किया तीर्ण किया – कीर्तित किया – आराधित किया।
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 16 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्म-जागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धम्मणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता

Translated Sutra: श्रमणोपासक आनन्द ने तत्पश्चात्‌ दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवी, छठी, सातवी, आठवी, नौवी, दसवी तथा ग्यारहवीं प्रतिमा की आराधना की। इस प्रकार श्रावक – प्रतिमा आदि के रूप में स्वीकृत उत्कृष्ट, विपुल प्रयत्न तथा तपश्चरण से श्रमणोपासक आनन्द का शरीर सूख गया, शरीर की यावत्‌ उसके नाड़ियाँ दीखने लगीं। एक दिन आधी रात के बाद
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 17 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे समोसरिए। परिसा निग्गया जाव पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमसगोत्ते णं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कनगपुलगनिघस- पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते

Translated Sutra: उस काल वर्तमान – अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, उस समय भगवान महावीर समवसृत हुए। परिषद्‌ जुड़ी, धर्म सूनकर वापिस लौट गई। उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान – संस्थित थे – कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 18 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अत्थि णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ? हंता अत्थि। जइ णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहि नाणे समुप्पण्णे–पुरत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि। उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं

Translated Sutra: श्रमणोपासक आनन्त ने भगवान्‌ गौतम को आते हुए देखा। देखकर वह (यावत्‌) अत्यन्त प्रसन्न हुआ, भगवान गौतम को वन्दन – नमस्कार कर बोला – भगवन्‌ ! मैं घोर तपश्चर्या से इतना क्षीण हो गया हूँ कि नाड़ियाँ दीखने लगी हैं। इसलिए देवानुप्रिय के – आपके पास आने तथा चरणों में वन्दना करने में असमर्थ हूँ। अत एव प्रभो ! आप ही स्वेच्छापूर्वक,
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ आनंद

Hindi 19 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता, बीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसगस्स महाविमानस्स उत्तरपुरत्थिमे णं अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं आनंदस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। आनंदे णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं

Translated Sutra: यों श्रमणोपासक आनन्द ने अनेकविध शीलव्रत यावत्‌ आत्मा को भावित किया। बीस वर्ष तक श्रमणो – पासक पर्याय – पालन किया, ग्यारह उपासक – प्रतिमाओं का अनुसरण किया, एक मास की संलेखना और एक मास का अनशन संपन्न कर, आलोचना, प्रतिक्रमण कर मरण – काल आने पर समाधिपूर्वक देह – त्याग किया। वह सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 20 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी। पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं चंपाए नयरीए कामदेवे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं कामदेवस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, छ हिरण्ण-कोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। से णं कामदेवे गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी

Translated Sutra: हे भगवन्‌ ! यावत्‌ सिद्धि – प्राप्त भगवान महावीर ने सातवे अंग उपासकदशा के प्रथम अध्ययन का यदि यह अर्थ – आशय प्रतिपादित किया तो भगवन्‌ ! उन्होंने दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ बतलाया है ? जम्बू ! उस काल – उस समय – चम्पा नगरी थी। पूर्णभद्र नामक चैत्य था। राजा जितशत्रु था। कामदेव गाथापति था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा
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अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 21 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे मायी मिच्छदिट्ठी अंतियं आउब्भूए। तए णं से देवे एगं महं पिसायरूवं विउव्वइ। तस्स णं दिव्वस्स पिसायरूवस्स इमे एयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते–सीसं से गोकिलंज-संठाण-संठियं, सालिभसेल्ल-सरिसा से केसा कविलतेएणं दिप्पमाणा, उट्टिया-कभल्ल-संठाण-संठियं निडालं मुगुंसपुच्छं व तस्स भुमकाओ फुग्गफुग्गाओ विगय-बीभत्स-दंसणाओ, सीसघडिविणिग्गयाइं अच्छीणि विगय-बीभत्स-दंसणाइं, कण्णा जह सुप्प-कत्तरं चेव विगय-बीभत्स-दंसणिज्जा, उरब्भपुडसंनिभा से नासा, ज्झुसिरा जमल-चुल्ली-संठाण-संठिया दो वि तस्स नासापुडया, घोडयपुच्छं

Translated Sutra: (तत्पश्चात्‌ किसी समय) आधी रात के समय श्रमणोपासक कामदेव के समक्ष एक मिथ्यादृष्टि, मायावी देव प्रकट हुआ। उस देव ने एक विशालकाय पिशाच का रूप धारण किया। उसका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है – उस पिशाच का सिर गाय को चारा देने की बाँस की टोकरी जैसा था। बाल – चावल की मंजरी के तन्तुओं के समान रूखे और मोटे थे, भूरे रंग के थे,
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अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 23 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्ग अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्ख-मित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ–सत्तंगपइट्ठियं सम्मं संठियं सुजातं पुरतो उदग्गं पिट्ठतो वराहं अयाकुच्छिं अलंबकुच्छिं पलंब-लंबोदराधरकरं अब्भुग्गय- मउल- मल्लिया- विमल- धवलदंतं

Translated Sutra: जब पिशाच रूपधारी उस देव ने श्रमणोपासक को निर्भय भाव से उपासना – रत देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ, उसके ललाट में त्रिबलिक – चढ़ी भृकुटि तन गई। उसने तलवार से कामदेव पर वार किया और उसके टुकड़े – टुकड़े कर डाले। श्रमणोपासक कामदेव ने उस तीव्र तथा दुःसह वेदना को सहनशीलता पूर्वक झेला। जब पिशाच रूपधारी देव ने देखा, श्रमणोपासक
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अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 24 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडि-निक्खमित्ता दिव्वं हत्थिरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं सप्परूवं विउव्वइ–उग्गविसं चंडविसं घोरविसं महाकायं मसी-मूसाकालगं नयणविसरोसपुण्णं अंजणपुंज-निगरप्पगासं रत्तच्छं लोहियलोयणं जमलजुयल-चंचलचलंतजीहं धरणीयलवेणिभूयं

Translated Sutra: हस्तीरूपधारी देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भीकता से अपनी उपासना में निरत देखा, तो उसने दूसरी बार, तीसरी बार फिर श्रमणोपासक कामदेव को वैसा ही कहा, जैसा पहले कहा था। पर, श्रमणोपासक कामदेव पूर्ववत्‌ निर्भीकता से अपनी उपासना में निरत रहा। हस्ती रूपधारी उस देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भीकता से उपासना
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अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 25 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभि त्तए वा विपरिणामेत्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनि-क्खमित्ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउव्वइ–हार-विराइय-वच्छं कडग-तुडिय-थंभियभुयं अंगय-कुंडल-मट्ठ-गंड-कण्णपीढधारिं विचित्तहत्थाभरणं विचित्त-माला-मउलि-मउडं कल्लाणग-पवरवत्थपरिहियं कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणं

Translated Sutra: सर्प रूपधारी देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भय देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर सर्राटे के साथ उसके शरीर पर चढ़ गया। पीछले भाग से उसके गले में तीन लपेट लगा दिए। लपेट लगाकर अपने तीखे, झहरीले दाँतों से उसकी छाती पर डंक मारा। श्रमणोपासक कामदेव ने उस तीव्र वेदना को सहनशीलता के साथ झेला। सर्प रूपधारी देव ने जब
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अध्ययन-२ कामदेव

Hindi 28 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कामदेवे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से कामदेवे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ श्रमणोपासक कामदेव ने पहली उपासकप्रतिमा की आराधना स्वीकार की। श्रमणोपासक कामदेव ने अणुव्रत द्वारा आत्मा को भावित किया। बीस वर्ष तक श्रमणोपासकपर्याय – पालन किया। ग्यारह उपासक – प्रतिमाओं का भली – भाँति अनुसरण किया। एक मास की संलेखना और एक मास का अनशन सम्पन्न कर आलोचना, प्रतिक्रमण कर मरण – काल
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चुलनीपिता

Hindi 29 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया। तत्थ णं वाणारसीए नयरीए चुलनीपिता नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए। तस्स णं चुलणीपियस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्सि-एणं वएणं होत्था। से णं चुलनीपिता गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे सयस्स

Translated Sutra: उपोद्‌घातपूर्वक तृतीय अध्ययन का प्रारम्भ यों है – जम्बू ! उस काल – उस समय, वाराणसी नगरी थी। कोष्ठक नामक चैत्य था, राजा जितशत्रु था। वाराणसी नगरी में चुलनीपिता नामक गाथापति था। वह अत्यन्त समृद्ध एवं प्रभावशाली था। उसकी पत्नी का नाम श्यामा था। आठ करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में, आठ करोड़ स्वर्ण
Upasakdashang उपासक दशांग सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ चुलनीपिता

Hindi 30 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी– हंभो! चुलनीपिता! समणोवासया! अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीनपुण्णचाउद्दसिया! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया! पुण्णकंखिया! सग्गकखिया! मोक्खकखिया! धम्मपिवासिया! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवाणु-प्पिया! सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं चालित्तए वा

Translated Sutra: उस देव ने जब दूसरी बार, तीसरी बार ऐसा कहा, तब श्रमणोपासक चुलनीपिता के मन में विचार आया – यह पुरुष बड़ा अधम है, नीच – बुद्धि है, नीचतापूर्ण पाप – कार्य करने वाला है, जिसने मेरे बड़े पुत्र को घर से लाकर मेरे आगे मार डाला। उसके मांस और रक्त से मेरे शरीर सींचा – छींटा, जो मेरे मंझले पुत्र को घर से ले आया, जो मेरे छोटे पुत्र
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अध्ययन-३ चुलनीपिता

Hindi 31 Sutra Ang-07 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चुलनीपिता समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। तए णं से चुलनीपिता समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ। तए णं से चुलनीपिता समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ तए णं से चुलनीपिता समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ श्रमणोपासक चुलनीपिता ने आनन्द की तरह क्रमशः पहली, यावत्‌ ग्यारहवीं उपासक – प्रतिमा की यथाविधि आराधना की। श्रमणोपासक चुलनीपिता सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान कोण में स्थित अरुणप्रभ विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी आयु – स्थिति चार पल्योपम की बतलाई गई है। महाविदेह
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