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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 512 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचवण्णा पन्नत्ता, तं जहा–किण्हा, निला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला।
सोहम्मीसानेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचजोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
बंभलोगलंतएसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जसरीरगा उक्कोसेणं पंचरयणी उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
नेरइया णं पंचवण्णे पंचरसे पोग्गले बंधेंसु वा बंधंति वा बंधिस्संति वा, तं जहा–किण्हे, नीले, लोहिते, हालिद्दे सुक्किल्ले। तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, मधुरे।
एवं जाव वेमाणिया। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૧૨. સૌધર્મ – ઈશાન કલ્પોમાં પંચવર્ણી વિમાનો કહ્યા છે – કૃષ્ણ યાવત્ શ્વેત. સૌધર્મ – ઇશાન કલ્પોમાં વિમાનો ૫૦૦ યોજન ઉર્ધ્વ ઊંચપણે કહ્યા છે. બ્રહ્મલોક – લાંતક કલ્પમાં દેવોનું ભવધારણીય શરીર ઉત્કૃષ્ટથી પાંચ હાથ ઊર્ધ્વ ઊંચપણે કહ્યું છે. નૈરયિકો પાંચ વર્ણ, પાંચ રસવાળા પુદ્ગલોને બાંધ્યા છે, બાંધે છે અને | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 566 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंतमहानिरया पन्नत्ता, तं जहा–लोले, लोलुए, उद्दड्ढे, णिद्दड्ढे, जरए, पज्जरए।
चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंतमहानिरया पन्नत्ता, तं जहा–आरे, वारे, मारे, रोरे, रोरुए, खाडखडे। Translated Sutra: જંબૂદ્વીપે મેરુ પર્વતની દક્ષિણે આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં છ અપકાંત – મહાનરકો કહ્યા – લોલ, લોલુપ, ઉદ્દગ્ધ, નિર્દગ્ધ, જરક, પ્રજરક. ચોથી પંકપ્રભા પૃથ્વીમાં છ અપક્રાંતત મહાનરકો કહ્યા છે – આર, વાર, માર, રૌર, રોરુત, ખાડખડ. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 567 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बंभलोगे णं कप्पे छ विमाण-पत्थडा पन्नत्ता, तं जहा–अरए, विरए, नीरए, निम्मले, वितिमिरे, विसुद्धे। Translated Sutra: બ્રહ્મલોક કલ્પમાં છ વિમાન પ્રસ્તટો કહેલા છે, તે આ – અરજ, વિરજ, નિરજ, નિર્મલ, વિમિતર, વિશુદ્ધ. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 578 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाइं छ अवयणाइं वदित्तए, तं जहा–अलियवयणे, हीलियवयणे, खिंसितवयणे, फरुसवयणे, गारत्थियवयणे, विउसवितं वा पुणो उदीरित्तए। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૭૬ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 579 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छ कप्पस्स पत्थारा पन्नत्ता, तं जहा– पाणातिवायस्स वायं वयमाणे, मुसावायस्स वायं वयमाणे, अदिन्नादानस्स वायं वयमाणे, अविरतिवायं वयमाणे, अपुरिसवायं वयमाणे, दासवायं वयमाणे–इच्चेते छ कप्पस्स पत्थारे पत्थारेत्ता सम्ममपडिपूरेमाने तट्ठाणपत्ते। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૭૯. કલ્પ (સાધુ આચાર)ના છ પ્રસ્તારો – મોટા પ્રાયશ્ચીત્ત કહ્યા છે – (૧) પ્રાણાતિપાતની વાણીને બોલતો, (૨) મૃષાવાદની વાણીને બોલતો, (૩) અદત્તાદાનની વાણીને બોલતો, (૪) અવિરતિની વાણીને બોલતો, (૫) અપુરુષવાદને બોલતો, (૬) દાસવાદને બોલતો, આ છ આચારના પ્રસ્તાર પ્રસ્તારીને સમ્યક્ પરિપૂર્ણ ન કરતો, તે સ્થાનને પ્રાપ્ત થાય. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 580 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छ कप्पस्स पलिमंथू पन्नत्ता, तं जहा–कोकुइते संजमस्स पलिमंथू, मोहरिए सच्चवयणस्स पलिमंथू, चक्खुलोलुए ईरियावहियाए पलिमंथू, तितिणिए एसणागोयरस्स पलिमंथू, इच्छालोभिते मोत्तिम-ग्गस्स पलिमंथू, भिज्जानिदानकरणे मोक्खमग्गस्स पलिमंथू, सव्वत्थ भगवता अनिदानता पसत्था। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૭૯ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 581 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा कप्पट्ठिती पन्नत्ता, तं जहा– सामाइयकप्पट्ठिती, छेओवट्ठावणियकप्पट्ठिती, नीव्विसमाण-कप्पट्ठिती, नीव्विट्ठकप्पट्ठिती, जिनकप्पट्ठिती, थेरकप्पट्ठिती। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૭૯ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 583 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सणंकुमार-माहिंदेसु णं कप्पेसु विमाणा छ जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
सणंकुमार-माहिंदेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जगा सरीरगा उक्कोसेणं छ रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૭૯ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 593 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तविहे विभंगनाणे पन्नत्ते, तं जहा–एगदिसिं लोगाभिगमे, पंचदिसिं लोगाभिगमे, किरियावरणे जीवे, मुदग्गे जीवे, अमुदग्गे जीवे, रूवी जीवे, सव्वमिणं जीवा।
तत्थ खलु इमे पढमे विभंगनाणे– जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा विभंगनाणे समुप्पज्जति। से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासति पाईणं वा पडिणं वा दाहिणं वा उदीणं वा उड्ढं वा जाव सोहम्मे कप्पे। तस्स णं एवं भवति–अत्थि णं मम अतिसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने–एगदिसिं लोगाभिगमे। संतेगइया समणा वा माहणा वा एवमाहंसु–पंचदिसिं लोगाभिगमे। जे ते एवमाहंसु– पढमे विभंगनाणे।
अहावरे दोच्चे विभंगनाणे– जया णं तहारूवस्स समणस्स Translated Sutra: વિભંગજ્ઞાન સાત ભેદે કહ્યું – (૧) એક દિશામાં સર્વ લોકને જાણે, (૨) પાંચ દિશામાં સર્વ લોકને જાણે, (૩) જીવને ક્રિયાનું આવરણ છે, કર્મનું નહિ તેમ જાણે, (૪) જીવ પુદ્ગલ નિર્મિતજ છે તેમ જાણે, (૫) જીવ પુદ્ગલ નિર્મિત નથી તેમ જાણે, (૬) જીવ રૂપી છે તેમ જાણે, (૭) સર્વે દૃશ્યમાન જગત જીવ છે તેમ જાણે. તેમાં – (૧) પ્રથમ વિભંગજ્ઞાન આ છે – કોઈ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 596 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्त पिंडेसणाओ पन्नत्ताओ।
सत्त पानेसणाओ पन्नत्ताओ।
सत्त उग्गहपडिमाओ पन्नत्ताओ।
सत्तसतिक्कया पन्नत्ता।
सत्त महज्झयणा पन्नत्ता।
सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिमा एकूणपन्नत्ताए राइंदिएहिं एगेण य छन्नउएणं भिक्खासतेणं अहासुत्तं अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं काएणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया यावि भवति। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૯૪ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 597 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहेलोगे णं सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ।
सत्त घनोदधीओ पन्नत्ताओ।
सत्त घनवाता पन्नत्ता।
सत्त तनुवाता पन्नत्ता।
सत्त ओवासंतरा पन्नत्ता।
एतेसु णं सत्तसु ओवासंतरेसु सत्त तणुवाया पइट्ठिया।
एतेसु णं सत्तसु तनुवातेसु सत्त घनवाता पइट्ठिया।
एतेसु णं सत्तसु घनवातेसु सत्त घनोदधी पतिट्ठिया।
एतेसु णं सत्तसु घनोदधीसु ‘पिंडलग-पिहुल-संठाण-संठियाओ’ सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–पढमा जाव सत्तमा।
एतासि णं सत्तण्हं पुढवीणं सत्त नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मा, वंसा, सेला, अंजना, रिट्ठा, मघा, माघवती।
एतासि णं सत्तण्हं पुढवीणं सत्त गोत्ता पन्नत्ता, तं जहा–रयणप्पभा, सक्करप्पभा, Translated Sutra: અધોલોકમાં સાત પૃથ્વીઓ કહી છે, સાત ઘનોદધિ, સાત ઘનવાત, સાત તનુવાતો, સાત આકાશાંતરો કહ્યા છે. આ સાત આકાશાંતરોમાં સાત તનુવાતો સ્થિત છે. સાત તનુવાતોમાં સાત ઘનવાતો સ્થિત છે. સાત ઘનવાતોમાં સાત ઘનોદધિ સ્થિત છે. સાત ઘનોદધિમાં પિંડલક, પુષ્પ ભાજન સંસ્થાન સંસ્થિત સાત પૃથ્વીઓ કહી છે. તે આ – પહેલી યાવત્ સાતમી. આ સાતે પૃથ્વીના | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 655 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] मतंगया य भिंगा, चित्तंगा चेव होंति चित्तरसा ।
मणियंगा य अणियणा, सत्तमगा कप्परुक्खा य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૪૪ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 673 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बायरआउकाइयाणं उक्कोसेणं सत्त वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता।
तच्चाए णं वालुयप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं नेरइयाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए जहन्नेणं नेरइयाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૭૨ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 675 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ईसानस्स णं देविंदस्स देवरन्नो अब्भिंतरपरिसाए देवाणं सत्त पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता।
सक्कस्स णं देविंदस्स देवरन्नो अग्गमहिसीणं देवीणं सत्त पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता।
सोहम्मे कप्पे परिग्गहियाणं देवीणं उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૭૨ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 677 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सनंकुमारे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
माहिंदे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं सातिरेगाइं सत्त सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૭૨ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 678 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बंभलोगे कप्पे जहन्नेणं देवाणं सत्त सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
बंभलोय-लंतएसु णं कप्पेसु विमाणा सत्त जोयणसत्ताइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૭૨ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 679 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भवनवासीणं देवाणं भवधारणिज्जा सरीरगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
वाणमंतराणं देवाणं भवधारणिज्जा सरीरगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
जोइसियाणं देवाणं भवधारणिज्जा सरीरगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु देवाणं ‘भवधारणिज्जा सरीरगा’ उक्कोसेणं सत्त रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૬૭૨ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 685 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तविहे वयणविकप्पे पन्नत्ते, तं० आलावे, अनालावे, उल्लावे, अणुल्लावे, संलावे, पलावे, विप्पलावे। Translated Sutra: વચન વિકલ્પ સાત ભેદે કહ્યા છે, તે આ પ્રમાણે – આલાપ, અનાલાપ, ઉલ્લાપ, અનુલ્લાપ, સંલાપ, પ્રલાપ અને વિપ્રલાપ. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Gujarati | 734 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] उप्पिं सणंकुमार-माहिंदाणं कप्पाणं हेट्ठिं बंभलोगे कप्पे रिट्ठविमाण-पत्थडे, एत्थ णं अक्खाडग-समचउरंस-संठाण-संठिताओ अट्ठ कण्हराईओ पन्नत्ताओ, तं जहा– पुरत्थिमे णं दो कण्हराईओ, दाहिणे णं दो कण्हराईओ, पच्चत्थिमे णं दो कण्ह-राईओ, उत्तरे णं दो कण्हराईओ। पुरत्थिमा अब्भंतरा कण्हराई दाहिणं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। दाहिणा अब्भंतरा कण्हराई पच्चत्थिमं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। पच्चत्थिमा अब्भंतरा कण्हराई उत्तरं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। उत्तरा अब्भंतरा कण्हराई पुरत्थिमं बाहिरं कण्हराइं पुट्ठा। पुरत्थिमपच्चत्थिमिल्लाओ बाहिराओ दो कण्हराईओ छलंसाओ। उत्तरदाहिणाओ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૩૩ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Gujarati | 787 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु विमाणा अट्ठ जोयणसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૮૬ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 840 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ईसानस्स णं देविंदस्स देवरन्नो वरुणस्स महारन्नो नव अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ।
ईसानस्स णं देविंदस्स देवरन्नो अग्गमहिसीणं नव पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता।
ईसाने कप्पे उक्कोसेणं देवीणं नव पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૩૯ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 872 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं अज्जो! सेणिए राया भिंभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सीमंतए नरए चउरासीतिवाससहस्सट्ठितीयंसि णिरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं तत्थ नेरइए भविस्सति– काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे वण्णेणं। से णं तत्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं तिउलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं दिव्वं दुरहियासं।
से णं ततो नरयाओ उव्वट्टेत्ता आगमेसाए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले पुंडेसु जनवएसु सतदुवारे णगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुमत्ताए पच्चायाहिति।
तए णं सा भद्दा भारिया नवण्हं Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૭૨. હે આર્યો ! ભિંભિસાર શ્રેણિક રાજા કાળ માસે કાળ કરીને રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં સીમંતક નરકવાસમાં ૮૪,૦૦૦ વર્ષની સ્થિતિમાં નારકોને વિશે નૈરયિકપણે ઉત્પન્ન થશે. તે ત્યાં નૈરયિક થશે, સ્વરૂપથી કાળો, કાળો દેખાતો યાવત્ વર્ણથી પરમકૃષ્ણ થશે. તે ત્યાં એકાંત દુઃખમય યાવત્ વેદનાને ભોગવશે. તે નરકમાંથી નીકળીને આવતી | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 879 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आणत-पाणत-आरणच्चुतेसु कप्पेसु विमाणा नव जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૭૭ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 919 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिंछिकूडे उप्पातपव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पन्नत्ते
चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारन्नो सोमप्पभे उप्पातपव्वते दस जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दस गाउयसताइं उव्वेहेणं, मूले दस जोयणसयाइं विक्खंभेणं पन्नत्ते।
चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो जमस्स महारन्नो जमप्पभे उप्पातपव्वते एवं चेव।
एवं वरुणस्सवि। एवं वेसमणस्सवि।
बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो रुयगिंदे उप्पातपव्वते मूले दस बावीसे जोयणसते विक्खंभेणं पन्नत्ते।
बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स Translated Sutra: અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરનો તિગિચ્છિકૂટ ઉત્પાતપર્વત મૂલમાં ૧૦૨૨ યોજન વિષ્કંભ છે. અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરના સોમ લોકપાલનો સોમપ્રભ ઉત્પાતપર્વત ૧૦૦૦ યોજન ઊંચો, ૧૦૦૦ ગાઉ ભૂમિમાં, મૂલમાં ૧૦૦૦ યોજન વિષ્કંભથી છે. અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરના યમ લોકપાલનો યમપ્રભ ઉત્પાતપર્વત એમ જ છે. એ રીતે વરુણ અને વૈશ્રમણનો છે. વૈરોચનરાજ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 956 | Gatha | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] परिकम्मं ववहारो, रज्जू रासी कलासवण्णे य ।
जावंतावति वग्गो, घण्णो य तह वग्गवग्गोवि कप्पो य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૫૧ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 975 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयारदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– वीसं असमाहिट्ठाणा, एगवीसं सबला, तेत्तीसं आसायणाओ, अट्ठ विहा गणिसंपया, दस चित्तसमाहिट्ठाणा, एगारस उवासगपडिमाओ, बारस भिक्खुपडिमाओ, पज्जोसवणाकप्पो, तीसं मोहनिज्जट्ठाणा, आजाइट्ठाणं।
पण्हावागरणदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– उवमा, संखा, इसिभासियाइं, आयरिय-भासियाइं, महावीरभासिआइं, खोमगपसिणाइं, ‘कोमलपसिणाइं, अद्दागपसिणाइं’, अंगुट्ठपसिणाइं, बाहुपसिणाइं।
बंधदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– बंधे य मोक्खे य देवड्ढि, दसारमंडलेवि य। आयरियविप्पडिवत्ती, उवज्झायविप्पडिवत्ती, भावना, विमुत्ती, सातो, कम्मे।
दोगेद्धिदसाणं दस Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૬૬ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 977 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविधा नेरइया पन्नत्ता, तं जहा–अनंतरोववण्णा, परंपरोववण्णा, अनंतरावगाढा, परंपरावगाढा, अनंतराहारगा, परंपराहारगा, अनंतरपज्जत्ता, परंपरपज्जत्ता, चरिमा, अचरिमा।
एवं–निरंतरं जाव वेमाणिया।
चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए दस निरयावाससतसहस्सा पन्नत्ता।
रयणप्पभाए पुढवीए जहन्नेणं नेरइयाणं दसवाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता।
चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं नेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए जहन्नेणं नेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं जहन्नेणं दस वाससहस्साइं ठिती पन्नत्ता। एवं जाव थणियकुमाराणं।
बायरवणस्स तिकाइयाणं Translated Sutra: નૈરયિક દશ ભેદે કહ્યા – અનંતરોપપન્નક, પરંપરોપપન્નક, અનંતરાવગાઢ, પરંપરાવગાઢ, અનંતરાહારક, પરંપરાહારક, અનંતરપર્યાપ્તા, પરંપરપર્યાપ્તા, ચરિમા, અચરિમા. એ રીતે વૈમાનિક પર્યન્ત કહેવું. ચોથી પંકપ્રભા પૃથ્વીમાં દશ લાખ નરકાવાસો કહેલા છે. રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં જઘન્યથી નૈરયિકોની સ્થિતિ ૧૦,૦૦૦ વર્ષ છે. ચોથી પંકપ્રભામાં | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 992 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दस कप्पा इंदाहिट्ठिया पन्नत्ता, तं जहा– सोहम्मे, ईसाने, सनंकुमारे, माहिंदे, बंभलोए, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे, पाणते, अच्चुते।
एतेसु णं दससु कप्पेसु दस इंदा पन्नत्ता, तं जहा– सक्के, ईसाने, सनंकुमारे, माहिंदे, बंभे, लंतए, महासुक्के, सहस्सारे, पाणते, अच्चुते।
एतेसि णं दसण्हं इंदाणं दस परिजाणिया विमाना पन्नत्ता, तं जहा–पालए, पुप्फए, सोमनसे, सिरिवच्छे, नंदियावत्ते, कामकमे, पीतिमने, मनोरमे, विमलवरे, सव्वतोभद्दे। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯૮૮ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 993 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेण रातिंदियसतेणं अद्धछट्ठेहि य भिक्खासतेहिं अहासुत्तं अहाअत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं काएणं फासिया पालिया सोहिया तीरिया किट्टिया आराहिया यावि भवति। Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૯૩. દશ દશમિકા ભિક્ષુપ્રતિમા ૧૦૦ રાત્રિ દિવસ વડે અને ૫૫૦ ભિક્ષા વડે યથાસૂત્ર યાવત્ આરાધેલી હોય છે. સૂત્ર– ૯૯૪. સંસાર સમાપન્નક જીવો દશ ભેદે હોય છે – પ્રથમ સમય એકેન્દ્રિય, અપ્રથમ સમય એકેન્દ્રિય એ રીતે યાવત્ અપ્રથમ સમય પંચેન્દ્રિય. સંસાર સમાપન્નક જીવો દશ ભેદે કહ્યા છે – પૃથ્વીકાયિક યાવત્ વનસ્પતિકાયિક. | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१२ |
Hindi | 106 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमे दसविधे जोए पन्नत्ते, तं जहा–वसभाणुजाते वेणुयाणुजाते मंचे मंचातिमंचे छत्ते छत्तातिछत्ते जुयणद्धे घनसमंद्दे पीणिते मंडूकप्पुत्ते नामं दसमे।
ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं छत्तातिच्छत्तं जोयं चंदे कंसि देसंसि जोएति? ता जंबुद्दीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सत्तेणं छेत्ता दाहिण-पुरत्थिमिल्लंसि चउभागमंडलंसि सत्तावीसं भागे उवाइणावेत्ता अट्ठावीसतिभागं वीसधा छेत्ता अट्ठारसभागे उवाइणावेत्ता तिहिं भागेहिं दोहिं कलाहिं दाहिणपुरत्थिमिल्लं चउब्भागमंडलं असंपत्ते, एत्थ णं से चंदे छत्तातिच्छत्तं जोयं जोएति, Translated Sutra: निश्चय से योग दस प्रकार के हैं – वृषभानुजात, वेणुकानुजात, मंच, मंचातिमंच, छत्र, छत्रातिछत्र, युगनद्ध, धनसंमर्द, प्रीणित और मंडुकप्लुत। इसमें छत्रातिछत्र नामक योग चंद्र किस देश में करता है ? जंबूद्वीप की पूर्व – पश्चिम तथा उत्तर – दक्षिण लम्बी जीवा के १२४ भाग करके नैऋत्य कोने के चतुर्थांश प्रदेश में सत्ताईस | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१९ |
Hindi | 192 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ता अंतो मनुस्सखेत्ते जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा चारट्ठितिया गतिरतिया गतिसमावन्नगा? ता ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठितिया गतिरतिया गति-समावन्नगा उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहिं बाहिराहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महताहतनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्प-वाइयरवेणं महता उक्कुट्ठिसीहणाद-बोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं मेरुं अनुपरियट्टंति।
ता Translated Sutra: मनुष्य क्षेत्र के अन्तर्गत् जो चंद्र – सूर्य – ग्रह – नक्षत्र और तारागण हैं, वह क्या ऊर्ध्वोपपन्न हैं ? कल्पोपपन्न ? विमानोपपन्न है ? अथवा चारोपपन्न है ? वे देव विमानोपपन्न एवं चारोपपन्न है, वे चारस्थितिक नहीं होते किन्तु गतिरतिक – गतिसमापन्नक – ऊर्ध्वमुखीकलंबपुष्प संस्थानवाले हजारो योजन तापक्षेत्रवाले, | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-२० |
Hindi | 198 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमे अट्ठासीतिं महग्गहा पन्नत्ता, तं जहा–इंगालए वियालए लोहितक्खे सनिच्छरे आहुणिए पाहुणिए कणे कणए कणकणए कणविताए कणसंताणए सोमे सहिते आसासणे कज्जोवए कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखे संखणाभे संखवण्णाभे कंसे कंसणाभे कंसवण्णाभे नीले नीलोभासे रुप्पे रुप्पोभासे भासे भासरासी तिले तिलपुप्फवण्णे दगे दगवण्णे काए काकंधे इंदग्गी धुमकेतू हरी पिंगलए बुधे सुक्के बहस्सई राहू अगत्थी मानवगे कासे फासे धुरे पमुहे वियडे विसंधीकप्पे नियल्ले पयल्ले जडियायलए अरुणे अग्गिल्लए काले महाकाले सोत्थिए सोवत्थिए वद्धमाणगे पलंबे निच्चालोए निच्चुज्जोते सयंपभे ओभासे सेयंकरे खेमंकरे Translated Sutra: निश्चय से यह अठ्ठासी महाग्रह कहे हैं – अंगारक, विकालक, लोहिताक्ष, शनैश्चर, आधुनिक, प्राधूणिक, कण, कणक, कणकणक, कणवितानक, कणसंताणक, सोम, सहित, आश्वासन, कायोपग, कर्बटक, अजकरक, दुन्दुभक, शंख, शंखनाभ, कंस, कंसनाभ, कंसवर्णाभ, नील, नीलावभास, रूप्य, रूप्यभास, भस्म, भस्मराशी, तिल, तिलपुष्प – वर्ण, दक, दकवर्ण, काक, काकन्ध, इन्द्राग्नि, | |||||||||
Suryapragnapti | सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-२० |
Hindi | 203 | Gatha | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धुरए पमुहे वियडे, विसंधिकप्पे पयल्ले ।
जडियाइल्लए अरुणे, अग्गिल काले महाकाले ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १९९ | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१२ |
Gujarati | 106 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमे दसविधे जोए पन्नत्ते, तं जहा–वसभाणुजाते वेणुयाणुजाते मंचे मंचातिमंचे छत्ते छत्तातिछत्ते जुयणद्धे घनसमंद्दे पीणिते मंडूकप्पुत्ते नामं दसमे।
ता एतेसि णं पंचण्हं संवच्छराणं छत्तातिच्छत्तं जोयं चंदे कंसि देसंसि जोएति? ता जंबुद्दीवस्स दीवस्स पाईणपडीणायताए उदीणदाहिणायताए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सत्तेणं छेत्ता दाहिण-पुरत्थिमिल्लंसि चउभागमंडलंसि सत्तावीसं भागे उवाइणावेत्ता अट्ठावीसतिभागं वीसधा छेत्ता अट्ठारसभागे उवाइणावेत्ता तिहिं भागेहिं दोहिं कलाहिं दाहिणपुरत्थिमिल्लं चउब्भागमंडलं असंपत्ते, एत्थ णं से चंदे छत्तातिच्छत्तं जोयं जोएति, Translated Sutra: તેમાં નિશ્ચે આ દશ ભેદે યોગ કહેલ છે, તે આ રીતે – વૃષભાનુયોગ, વેણુકાનુયોગ, મંચયોગ, મંચાતિમંચયોગ, છત્રયોગ, છત્રાતિછત્રયોગ, યુગનદ્ધયોગ, ઘનસંમર્દયોગ, પ્રીણિતયોગ, મંડકપ્લુતયોગ. આ પાંચ સંવત્સરોમાં છત્રાતિછત્ર યોગને ચંદ્ર કયા દેશમાં જોડે છે ? તે જંબૂદ્વીપ દ્વીપના પૂર્વ – પશ્ચિમ તથા ઉત્તર – દક્ષિણ લાંબી જીવા વડે ૧૨૪ | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-१९ |
Gujarati | 192 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ता अंतो मनुस्सखेत्ते जे चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवा ते णं देवा किं उड्ढोववन्नगा कप्पोववन्नगा विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा चारट्ठितिया गतिरतिया गतिसमावन्नगा? ता ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा चारोववन्नगा, नो चारट्ठितिया गतिरतिया गति-समावन्नगा उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयणसाहस्सिएहिं तावक्खेत्तेहिं साहस्सियाहिं बाहिराहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महताहतनट्ट-गीय-वाइय-तंती-तल-ताल-तुडिय-घन-मुइंग-पडुप्प-वाइयरवेणं महता उक्कुट्ठिसीहणाद-बोलकलकलरवेणं अच्छं पव्वतरायं पदाहिणावत्तमंडलचारं मेरुं अनुपरियट्टंति।
ता Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૭૫ | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-२० |
Gujarati | 198 | Sutra | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु इमे अट्ठासीतिं महग्गहा पन्नत्ता, तं जहा–इंगालए वियालए लोहितक्खे सनिच्छरे आहुणिए पाहुणिए कणे कणए कणकणए कणविताए कणसंताणए सोमे सहिते आसासणे कज्जोवए कब्बडए अयकरए दुंदुभए संखे संखणाभे संखवण्णाभे कंसे कंसणाभे कंसवण्णाभे नीले नीलोभासे रुप्पे रुप्पोभासे भासे भासरासी तिले तिलपुप्फवण्णे दगे दगवण्णे काए काकंधे इंदग्गी धुमकेतू हरी पिंगलए बुधे सुक्के बहस्सई राहू अगत्थी मानवगे कासे फासे धुरे पमुहे वियडे विसंधीकप्पे नियल्ले पयल्ले जडियायलए अरुणे अग्गिल्लए काले महाकाले सोत्थिए सोवत्थिए वद्धमाणगे पलंबे निच्चालोए निच्चुज्जोते सयंपभे ओभासे सेयंकरे खेमंकरे Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯૮. તેમાં નિશ્ચે આ૮૮ – મહાગ્રહો કહેલા છે. તે આ રીતે – ૧. અંગારક, ૨. વિકાલક, ૩. લોહિતાક્ષ, ૪. શનૈશ્ચર, ૫. આધુનિક, ૬. પ્રાધુનિક, ૭. કણ,૮. કનક,૯. કણકનક. ૧૦. કણવિતાનક, ૧૧. કણ સંતાનક, ૧૨. સોમ, ૧૩. સહિત, ૧૪. આશ્વાસન, ૧૫. કાયોપગ, ૧૬. કર્બટક, ૧૭. અજકરક, ૧૮. દુંદુભક, ૧૯. શંખ, ૨૦. શંખનાભ. ૨૧. શંખવર્ણાભ, ૨૨. કંસ, ૨૩. કંસનાભ, ૨૪. કંસવર્ણાભ, ૨૫. | |||||||||
Suryapragnapti | સૂર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्राभृत-२० |
Gujarati | 203 | Gatha | Upang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धुरए पमुहे वियडे, विसंधिकप्पे पयल्ले ।
जडियाइल्लए अरुणे, अग्गिल काले महाकाले ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૮ | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा |
उद्देशक-३ परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख | Hindi | 206 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एवं तु समणा एगे अबलं नच्चान अप्पगं ।
अणागयं भयं दिस्स अवकप्पंति मं सुयं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २०५ | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा |
उद्देशक-३ परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख | Hindi | 207 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ‘को जाणइ’ वियोवातं इत्थीओ उदगाओवा? ।
चोइज्जंता पवक्खामो न णे अत्थि पकप्पियं ॥ Translated Sutra: कौन जाने पतन स्त्री से होता है या जल से। पूछे जाने पर कहूँगा कि हम इस कार्य में प्रकल्पित नहीं हैं। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा |
उद्देशक-३ परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख | Hindi | 212 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] संबद्धसमकप्पा हु ‘अन्नमण्णेसु मुच्छिया’ ।
पिंडवायं गिलाणस्स जं सारेह दलाह य ॥ Translated Sutra: समकल्प – सम्बद्ध/गृहस्थ लोग एक दूसरे में मूर्च्छित रहते हैं। ग्लान को आहार लाकर देते हैं, सम्हालते हैं | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१ समय |
उद्देशक-३ | Hindi | 75 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] असंवुडा अणादीयं भमिहिंति पुणो-पुणो ।
कप्पकालमुवज्जंति ठाणा आसुरकिब्बिसिय ॥ Translated Sutra: वे असंवृत मनुष्य इस अनादि संसार में बार – बार भ्रमण करेंगे। वे कल्प परिमित काल तक आसुर एवं किल्बिषिक स्थानों में उत्पन्न होते हैं। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-२ वैतालिक |
उद्देशक-३ | Hindi | 160 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वे सयकम्मकप्पिया अवियत्तेन दुहेन पाणिणो ।
हिंडंति भयाउला सढा जाइजरामरणेहिऽभिद्दुया ॥ Translated Sutra: सभी प्राणी स्वयंकृत् कर्म से कल्पित हैं। अव्यक्त दुःख से भयाकुल शठपुरुष जाति – मरण के दुःखों से पीड़ित होता हुआ परिभ्रमण करता है। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-३ उपसर्ग परिज्ञा |
उद्देशक-३ परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख | Hindi | 222 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] बहुगुणप्पकप्पाइं कुज्जा अत्तसमाहिए ।
जेणण्णे न विरुज्झेज्जा तेणं तं तं समायरे ॥ Translated Sutra: आत्मगुण समाहित पुरुष बहुगुण निष्पन्न चर्चा करे। वह वैसा आचरण करे जिससे कोई विरोधी न हो। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-४ स्त्री परिज्ञा |
उद्देशक-१ | Hindi | 256 | Gatha | Ang-02 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अह सेऽणुतप्पई पच्छा भोच्चा पायसं व विसमिस्सं ।
एवं विवागमायाए संवासो न कप्पई दविए ॥ Translated Sutra: बाद में वह वैसे ही अनुतप्त होता है। जैसे विषमिश्रित खीर खाकर मनुष्य। इस तरह विवेक प्राप्त कर भिक्षु स्त्री के साथ सहवास न करे। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-६ आर्द्रकीय |
Hindi | 765 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुरिसं च विद्धून कुमारगं वा सूलंमि केइ पए जायतेए ।
पिण्णागपिंडिं सइमारुहेत्ता बुद्धान तं कप्पइ पारणाए ॥ Translated Sutra: कोई पुरुष मनुष्य को या बालक को खली का पिण्ड मानकर उसे शूल में बींधकर आग में पकाए तो वह पवित्र है, बुद्धों के पारणे के योग्य है। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-७ कुशील परिभाषित |
Hindi | 393 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पाओसिनानाइसु नत्थि मोक्खो खारस्स लोणस्स अणासणेणं ।
ते मज्जमंसं लसुणं ‘चऽभोच्चा’ अन्नत्थ वासं परिकप्पयंति ॥ Translated Sutra: प्रातः स्नानादि से मोक्ष नहीं है, न ही क्षार – लवण के अनशन से है। वे मात्र मद्य, माँस और लहसून न खाकर अन्यत्र निवास (अमोक्ष) की कल्पना करते हैं। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-११ मार्ग |
Hindi | 511 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पूतिकम्मं न सेवेज्जा एस धम्मे वुसीमतो ।
जं किंचि अभिसंकेज्जा सव्वसो तं न कप्पते ॥ Translated Sutra: पूतिकर्म का सेवन न करे यही वृषीमत धर्म है। जहाँ किञ्चित् भी आशंका हो वह सर्वथा अकल्पनीय है। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-११ मार्ग |
Hindi | 515 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जेसिं तं उवकप्पेंति ‘अन्नं पाणं’ तहाविहं ।
तेसिं लाभंतरायं ति तम्हा नत्थि त्ति नो वए ॥ Translated Sutra: जिनको देने के लिए पूर्वोक्त अन्नपान बताया जाता है उसमें लाभान्तराय है अतः पुण्य नहीं है – यह न कहे। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध १ अध्ययन-१५ आदान |
Hindi | 609 | Gatha | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहिं तहिं सुयक्खायं से य सच्चे सुआहिए ।
सदा सच्चेन संपण्णे मेत्तिं भूतेसु कप्पए ॥ Translated Sutra: जो स्वाख्यात है वही सत्य और भाषित है। सत्य – सम्पन्न व्यक्ति के लिए जीवों से सदैव मैत्री ही उचित है। | |||||||||
Sutrakrutang | सूत्रकृतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ अध्ययन-२ क्रियास्थान |
Hindi | 652 | Sutra | Ang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरे चउत्थे दंडसमादाणे अकस्मादंडवत्तिए त्ति आहिज्जइ–
से जहानामए केइ पुरिसे कच्छंसि वा दहंसि वा उदगंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा णूमंसि वा गहणंसि वा गहणविदुग्गंसि वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा मियवत्तिए मियसंकप्पे मिययपणिहाणे मियवहाए गंता ‘एते मिय’ त्ति काउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए उसुं आयामेत्ता णं निसिरेज्जा, से ‘मियं वहिस्सामि’ त्ति कट्टु तित्तिरं वा वट्टगं वा ‘चडगं वा’ लावगं वा कवोयगं वा कविं वा कविजलं वा विंधित्ता भवति–इति खलु से अन्नस्स अट्ठाए अन्नं फुसइ–अकस्मादंडे।
से जहानामए केइ पुरिसे सालीणि वा वीहीणि वा कोद्दवाणि Translated Sutra: इसके बाद चौथा क्रियास्थान अकस्माद् दण्डप्रत्ययिक है। जैसे कि कोई व्यक्ति नदी के तट पर अथवा द्रह पर यावत् किसी घोर दुर्गम जंगल में जाकर मृग को मारने की प्रवृत्ति करता है, मृग को मारने का संकल्प करता है, मृग का ही ध्यान रखता है, मृग का वध करने के लिए जल पड़ता है; ‘यह मृग है’ यों जानकर किसी एक मृग को मारने के लिए वह |