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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Gujarati 203 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रूवेसु य भद्दय-पावएसु चक्खुविसयमुवगएसु । तुट्ठेण व रुट्ठेण व, समणेण सया न होयव्वं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮૭
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Gujarati 204 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गंधेसु य भद्दय-पावएसु घाणविसयमुवगएसु । तुट्ठेण व रुट्ठेण व, समणेण सया न होयव्वं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮૭
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Gujarati 205 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] रसेसु य भद्दय-पावएसु जिब्भविसयमुवगएसु । तुट्ठेण व रुट्ठेण व, समणेण सया न होयव्वं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮૭
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१७ अश्व

Gujarati 206 Gatha Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] फासेसु य भद्दय-पावएसु कायविसयमुवगएसु । तुट्ठेण व रुट्ठेण व, समणेण सया न होयव्वं ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૮૭
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१८ सुंसमा

Gujarati 209 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चिलाए दासचेडे साओ गिहाओ निच्छूढे समाणे रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु देवकुलेसु य सभासु य पवासु य जूयखलएसु य वेसाधरएसु य पाणधरएसु य सुहंसुहेणं परिवट्टइ। तए णं से चिलाए दासचेडे अनोहट्टिए अनिवारिए सच्छंदमई सइरप्पयारी मज्जप्पसंगी चोज्जप्पसंगी जूयप्पसंगी वेसप्पसंगी परदारप्पसंगी जाए यावि होत्था। तए णं रायगिहस्स नयरस्स अदूरसामंते दाहिणपुरत्थिमे दिसीभाए सीहगुहा नामं चोरपल्ली होत्था–विसम-गिरिक-डग-कोलंब-सन्निविट्ठा वंसोकलंक-पागार-परिक्खित्ता छिन्नसेल-विसमप्प-वाय-फरिहोवगूढा एगदुवारा अनेगखंडी विदितजण-निग्गमप्पवेसा अब्भिंतरपाणिया

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૮
Gyatadharmakatha ધર્મકથાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कन्ध २

वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी

अध्ययन-२ थी ५

Gujarati 221 Sutra Ang-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं धम्मकहाणं पढमस्स वग्गस्स पढम-ज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, बिइयस्स णं भंते! अज्झयणस्स समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते? एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए। सामी समोसढे। परिसा निग्गया जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं राई देवी चमरचंचाए रायहाणीए एवं जहा काली तहेव आगया, नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता पुव्वभवपुच्छा। गोयमाति! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं

Translated Sutra: વર્ણન સંદર્ભ: ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ ભગવંતે ધર્મકથાના દશ વર્ગો કહ્યા છે, તો ભગવન્‌ ! પહેલા વર્ગનો ભગવંતે શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પહેલા વર્ગના પાંચ અધ્યયનો કહ્યા છે – કાલી, રાજી, રજની, વિદ્યુત, મેઘા. ભગવન્‌ ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પહેલા વર્ગના પાંચ અધ્યયનો કહ્યા છે, તો પહેલા અધ્યયનનો ભગવંતે શો
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

2. सम्यग्दर्शन की सर्वोपरि प्रधानता Hindi 45 View Detail
Mool Sutra: दंसणभट्ठो भट्ठो, दंसणभट्ठस्स णत्थि णिव्वाणं। सिज्झंति चरणरहिआ, दंसणरहिआ ण सिज्झंति ।।

Translated Sutra: सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट व्यक्ति ही वास्तव में भ्रष्ट है, क्योंकि दर्शनभ्रष्ट को तीन काल में भी निर्वाण सम्भव नहीं। चारित्रहीन तो कदाचित् सिद्ध हो भी जाते हैं, परन्तु दर्शनहीन कभी भी सिद्ध नहीं होते। १. (सम्यक्त्वविहीन व्यक्ति का शास्त्रज्ञान निरा शाब्दिक होता है। अर्थज्ञान-शून्य होने के कारण वह आराधना को
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

2. सम्यग्दर्शन की सर्वोपरि प्रधानता Hindi 47 View Detail
Mool Sutra: सेयासेयविदण्हू उद्धुददुस्सील सीलवंतो वि। सीलफलेणब्भुदयं तत्तो पुण लहइ णिव्वाणं ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ४६; संदर्भ ४६-४७
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2. रत्नत्रय अधिकार - (विवेक योग)

3. भेद-रत्नत्रय Hindi 26 View Detail
Mool Sutra: इय जीवमजीवे य, सोच्चा सद्दहिऊण य। सव्वनयाणमणुमए, रमेज्जा संजमे मुणी ।।

Translated Sutra: इस प्रकार जीव और अजीव आदि तत्त्वों के स्वरूप को सुनकर तथा परमार्थ तथा व्यवहार आदि सभी दृष्टियों के अनुसार उनकी हृदय से श्रद्धा करके भिक्षु संयम में रमण करे।
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

2. निश्चय-व्यवहार चारित्र समन्वय Hindi 32 View Detail
Mool Sutra: जीवोऽप्रविश्य व्यवहारमार्गं, न निश्चयं ज्ञातुमुपैति शक्तिम्। प्रभाविकाशेक्षणमन्तरेण, भानूदयं को वदते विवेकी ।।

Translated Sutra: व्यवहार मार्ग में प्रवेश किये बिना जीव निश्चय मार्ग (अर्थात् अभेद रत्नत्रयभूत शुद्ध आत्मा) को जानने या अनुभव करने में समर्थ नहीं हो सकता। प्रभात होने से पहले सूर्य का उदित होना कौन विवेकी कह सकता है?
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3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

3. ज्ञान-कर्म समन्वय Hindi 38 View Detail
Mool Sutra: संजोगसिद्धीइ फलं वयंति, न हु एगचक्केण रहो पयाइ। अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संपउत्ता नगरं पविट्ठा ।।

Translated Sutra: संयोग सिद्ध हो जाने पर ही फल प्राप्त होते हैं। एक चक्र से कभी रथ नहीं चलता। न दिखने के कारण तो अन्धा और न चलने के कारण पंगु दोनों ही उस समय तक वन से बाहर निकल नहीं पाये, जब तक कि परस्पर मिलकर पंगु अन्धे के कन्धे पर नहीं बैठ गया। पंगु ने मार्ग बताया और अन्धा चला। इस प्रकार दोनों वन से निकलकर नगर में प्रविष्ट हो गये।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

4. सम्यग्दर्शन के लिंग (ज्ञानयोग) Hindi 51 View Detail
Mool Sutra: संवेओ णिव्वेओ, णिंदा गरुहा व उवसमो भत्ती। वच्छल्लं अणुकंपां, गुणट्ठ सम्मत्तजुत्तस्स ।।

Translated Sutra: संवेग, निर्वेद (वैराग्य), अपने दोषों के लिए आत्मनिन्दन व गर्हण, कषायों की मन्दता, गुरु-भक्ति, वात्सल्य, व दया। (पूर्वोक्त आठ के अतिरिक्त) सम्यग्दृष्टि को ये आठ गुण भी स्वभाव से ही प्राप्त होते हैं।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

7. निर्विचिकित्सत्व (अस्पृश्यता-निवारण) Hindi 58 View Detail
Mool Sutra: जो ण करेदि जुगुप्पं, चेदा सव्वेसिमेव धम्माणं। सो खलु णिव्विदिगिंच्छो, सम्माद्दिट्ठी मुणेयव्वा ।।

Translated Sutra: जो जीव वस्तु के मनोज्ञामनोज्ञ धर्मों में अथवा व्यक्ति के कुल, जाति व सम्प्रदाय आदि रूप विविध धर्मों में ग्लानि नहीं करता, उसे विचिकित्साविहीन सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

12. वात्सल्यत्व (प्रेमयोग) Hindi 71 View Detail
Mool Sutra: सत्त्वेषु मैत्रीं गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्। माध्यस्थभावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव ।।

Translated Sutra: सब जीवों में मेरी मैत्री हो, गुणीजनों में प्रमोद हो, दुःखी जीवों के प्रति दया हो और धर्म-विमुख विपरीत वृत्तिवालों में माध्यस्थ भाव। हे प्रभो! मेरी आत्मा सदा (प्रेम व वात्सल्य के अंगभूत) इन चारों भावों को धारण करे।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

14. आस्तिक्य भाव Hindi 74 View Detail
Mool Sutra: अर्थोऽयमपरोऽनर्थ, इति निर्द्धारणं हृदि। आस्तिक्यं परमं चिह्नं, सम्यक्त्वस्य जगुर्जिनाः ।।

Translated Sutra: `यह अर्थ है और यह अनर्थ है', हृदय में इस प्रकार दृढ़ निर्धारण करना, सम्यग्दर्शन का आस्तिक्य नामक परम चिह्न है।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

15. प्रभावनाकरणत्व Hindi 75 View Detail
Mool Sutra: धम्मकहाकहणेण य, बाहिरजोगेहिं चाविं णवज्जेहिं। धम्मो पहाविदव्वो, जीवेसु दयाणुकंपाए ।।

Translated Sutra: धर्मोपदेश के द्वारा, अथवा स्व-परोपकारी शुभ क्रियाओं के द्वारा, अथवा जीवों में दया व अनुकम्पा के द्वारा (उपलक्षण से प्रेम, दान व सेवा आदि के द्वारा) धर्म की प्रभावना करना कर्तव्य है।
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

10. अनित्य व अशरण संसार Hindi 101 View Detail
Mool Sutra: अम्भोबुद्बुदसंनिभा तनुरियं, श्रीरिन्द्रजालोपमा। दुर्वाताहतवारिवाहसदृशाः, कान्तार्थपुत्रादयः ।।

Translated Sutra: यह शरीर जलबुद्बुद के समान अनित्य है तथा लक्ष्मी इन्द्रजाल के समान चंचल। स्त्री, धन व पुत्रादि आँधी से आहत जल-प्रवाहवत् अति वेग से नाश की ओर दौड़े जा रहे हैं। वैषयिक सुख काम से मत्त स्त्री की भाँति तरल हैं अर्थात् विश्वास के योग्य नहीं हैं। इसलिए समस्त उपद्रवों के स्थानभूत इनके विषय में शोक करने से क्या लाभ है?
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

14. लोक-स्वरूप चिन्तन Hindi 110 View Detail
Mool Sutra: जीवादी पयत्थाणं, समवाओ सो णिरुच्चए लोगो। तिविहो हवेइ लोगो, अहमज्झिमउड्ढभेएण ।।

Translated Sutra: जीवादि छह द्रव्यों के समुदाय को लोक कहते हैं। यह त्रिधा विभक्त है-अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक। (अधोलोक में नारकीयों का वास है, मध्यलोक में मनुष्य व तिर्योंचों का और ऊर्ध्वलोक में देवों का।)
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6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग)

2. महारोग रागद्वेष Hindi 120 View Detail
Mool Sutra: परमाणुमित्तयं पि हु, रागादीणं तु विज्जदे जस्स। णवि सो जाणदि अप्पाणयं तु सव्वागमधरो वि ।।

Translated Sutra: जिस व्यक्ति के हृदय में परमाणु मात्र भी राग व द्वेष का वास है, वह सर्व शास्त्रों का ज्ञाता भी क्यों न हो, आत्मा को नहीं जानता है।
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6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग)

4. कषाय-निग्रह Hindi 122 View Detail
Mool Sutra: उवसमदयादमाउहकरेण, रक्खा कसायचोरेहिं। सक्का काउं आउहकरेण, रक्खा वा चोराणं ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार सशस्त्र पुरुष चोरों से अपनी रक्षा करता है, उसी प्रकार उपशम दया और निग्रहरूप तीन शस्त्रों को धारण करनेवाला कषायरूपी चोरों से अपनी रक्षा करता है।
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6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग)

8. परीषह-जय (तितिक्षा सूत्र) Hindi 138 View Detail
Mool Sutra: तहागहं भिक्खु मणंत संजयं, अणोलिसं विन्नु चरंतमेसणं। तुदंति वायाहि आभद्दयं णरा, सरेहि संगामगयं व कुंजरं ।।

Translated Sutra: जीवदया व विरागपरायण ज्ञानी भिक्षु को चर्या के समय जब ये लोग विविध प्रकार से, मर्मभेदी वाग्वाणों के द्वारा अथवा मुक्का व लाठी आदि के प्रहारों के द्वारा पीड़ा देते हैं, तो वह उसे उसी प्रकार सहन कर जाय, जिस प्रकार संग्राम में हाथी।
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8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग)

4. सत्य-सूत्र Hindi 169 View Detail
Mool Sutra: पत्थं हिदयाणिट्ठं पि, भण्णमाणस्स सगणवासिस्स। कडुगं व ओसहं तं, महुरविवायं हवइ तस्स ।।

Translated Sutra: हे मुनियो! तुम अपने संघवालों के साथ हितकर वचन बोलो। यदि कदाचित् वे हृदय को अप्रिय भी लगें, तो भी कोई हर्ज नहीं। क्योंकि कटुक औषधि भी परिणाम में मधुर व कल्याणकर ही होती है।
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8. आत्मसंयम अधिकार - (विकर्म योग)

9. सामायिक-सूत्र Hindi 189 View Detail
Mool Sutra: विना समत्वं प्रसरन्ममत्वं, सामायिकं मायिकमेव मन्ये।

Translated Sutra: हृदय में ममत्व भाव का प्रसार रखकर, समता के बिना की गयी सामायिक वास्तव में मायिक अर्थात् दम्भ है। समतायुक्त साधु-जनों के समान सद्गुणों का लाभ हो जाने पर ही सामायिक शुद्ध कही जाती है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

9. तप व ध्यान अधिकार - (राज योग)

6. विनय तप Hindi 216 View Detail
Mool Sutra: अब्भुट्ठाणं अंजलिकरणं, तहेवासणदायणं। गुरुभत्ति भावसुस्सूसा, विणओ एस वियाहिओ ।।

Translated Sutra: गुरुजनों के आने पर खड़े हो जाना, हाथ जोड़ना, उन्हें बैठने के लिए उच्चासन देना, उनकी भक्ति तथा भावसहित सेवा-सुश्रूषा करना, ये सब विनय नामक आभ्यन्तर तप के लिंग हैं।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

1. धर्मसूत्र Hindi 243 View Detail
Mool Sutra: अन्तस्तत्त्व विशुद्धात्मा, बहिस्तत्त्वं दयांगिषु। द्वयोः सन्मीलने मोक्षस्तस्माद्द्वितीयमाश्रयेत् ।।

Translated Sutra: अन्तस्तत्त्व रूप समतास्वभावी विशुद्धात्मा तो साध्य है और प्राणियों की दया आदि बहिस्तत्त्व उसके साधन हैं। दोनों के मिलने पर ही मोक्ष होता है। इसलिए अपरम भावी को धर्म के इन विविध अंगों का आश्रय अवश्य लेना चाहिए।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

4. पूजा-भक्ति सूत्र Hindi 255 View Detail
Mool Sutra: सम्मत्तणाणचरणे, जो भत्तिं कुणइ सावगो समणो। तस्स दु णिव्वुदि भत्ती, होदि त्ति जिणेहि पण्णत्तं ।।

Translated Sutra: जो श्रावक (गृहस्थ) अथवा श्रमण (साधु) सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र की भक्ति करता है, अर्थात् हृदय में इन गुणों के प्रति अत्यन्त बहुमान धारण करता है, उस ही परमार्थतः निर्वाण या मोक्ष की भक्ति होती है।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

6. दया-सूत्र Hindi 263 View Detail
Mool Sutra: जह ते न पियं दुक्खं, जाणिअ एमेव सव्वजीवाणं। सव्वायरमुवउत्तो, अत्तोवम्मेण कुणसु दयं ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार तुम्हें दुःख प्रिय नहीं है, उसी प्रकार सभी जीवों को नहीं है, ऐसा जानकर अत्यन्त आदरभाव से सब जीवों को अपने समान समझकर उनपर दया करो।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

7. दान-सूत्र Hindi 264 View Detail
Mool Sutra: ता भुंजिज्जउ लच्छी, दिज्जउ दाणं दयापहाणेण। जा जलतरंगचवला, दोतिण्णिदिणाणि चिट्ठेइ ।।

Translated Sutra: यह लक्ष्मी जल की तरंगों की भाँति अति चंचल है। दो तीन दिन मात्र ठहरने वाली है। इसलिए जब तक यह आपके पास है, तब तक इसे आवश्यकतानुसार भोगो और साथ-साथ दयाभाव सहित दान में भी खर्च करो।
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

9. उत्तम क्षमा (अक्रोध) Hindi 269 View Detail
Mool Sutra: खामेमि सव्वजीवे, सव्वे जीवा खमंतु मे। मित्ती मे सव्वभूएसु, वेरं मज्झं न केणइ ।।

Translated Sutra: मैं समस्त जीवों को क्षमा करता हूँ। सब जीव भी मुझे क्षमा करें। सबके प्रति मेरा मैत्रीभाव है। आजसे मेरा किसी के साथ कोई वैर-विरोध नहीं है। (इत्याकारक हृदय की जागृति उत्तम क्षमा है।)
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11. धर्म अधिकार - (मोक्ष संन्यास योग)

14. उत्तम आकिंचन्य (कस्य स्विद्धनम्) Hindi 283 View Detail
Mool Sutra: होऊण य णिस्संगो, णियभावं णिग्गहित्तु सुहदुहदं। णिद्दंदेण दु वट्टदि, अणयारो तस्स किंचण्हं ।।

Translated Sutra: जो मुनि सभी प्रकार के परिग्रह या मूर्च्छा से रहित होकर और सुख व दुःख दायक कर्म-जनित निज भावों को रोककर निश्चिन्तता पूर्वक आचरण करता है, उसके आकिंचन्य धर्म होता है।
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12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

1. लोक सूत्र Hindi 287 View Detail
Mool Sutra: धम्मो अहम्मो आगासं, कालो पुग्गलजंतवो। एस लोगो त्ति पन्नत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं ।।

Translated Sutra: धर्म, अधर्म आकाश, काल, अनन्त पुद्गल और अनन्त जीव, ये छह प्रकार के स्वतः सिद्ध द्रव्य हैं। उत्तम दृष्टि सम्पन्न जिनेन्द्र भगवान ने इनके समुदाय को ही लोक कहा है।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Prakrit

12. द्रव्याधिकार - (विश्व-दर्शन योग)

5. धर्म तथा अधर्म द्रव्य Hindi 303 View Detail
Mool Sutra: उदयं जह मच्छाणं, गमणाणुग्गहयरं हवदि लोए। तह जीवपुग्गलाणं, धम्मं दव्वं वियाणेहिं ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार मछली के लिए जल उदासीन रूप से सहकारी है, उसी प्रकार जीव तथा पुद्गल दोनों द्रव्यों को धर्म द्रव्य गमन में उदासीन रूप से सहकारी है।
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13. तत्त्वार्थ अधिकार

1. तत्त्व-निर्देश Hindi 311 View Detail
Mool Sutra: जीवाजीवौ हि धर्मिणौ, तद्धर्मास्त्वास्रवादय इति। धर्मिधर्मात्मकं तत्त्वं, सप्तविधमुक्तम् ।।

Translated Sutra: इन उपर्युक्त नौ तत्त्वों में जीव व अजीव ये प्रथम दो तत्त्व तो धर्मी हैं, और आस्रव आदि शेष उन दोनों के ही धर्म हैं। इस प्रकार ये सात या नौ तत्त्व वास्तव में दो ही हैं-धर्मी व धर्म अथवा जीव तथा अजीव।
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16. एकान्त व नय अधिकार - (पक्षपात-निरसन)

1. नयवाद Hindi 381 View Detail
Mool Sutra: जावंतो वयणपहा, तावंतो वा नया विसद्दाओ। ते चेव य परसमया, सम्मत्तं समुदया सव्वे ।।

Translated Sutra: जगत् में जो कुछ भी बोलने में आता है वह सब वास्तव में किसी न किसी नय में गर्भित है। पृथक् पृथक् रहे हुए ये सभी पर-समय अर्थात् मिथ्यादृष्टि हैं, और परस्पर में समुदित हो जाने पर सभी सम्यग्दृष्टि हैं। (कारण अगली गाथा में बताया गया है।)
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17. स्याद्वाद अधिकार - (सर्वधर्म-समभाव)

2. स्याद्वाद-न्याय Hindi 403 View Detail
Mool Sutra: सिद्धयंत्रो यथा लोके, एकोऽनेकार्थदायकः। स्याच्छब्दोऽपि तथा ज्ञेय, एकोऽनेकार्थसाधकः ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार लोक में सिद्ध किया गया मंत्र एक व अनेक इच्छित पदार्थों को देने वाला होता है, उसी प्रकार `स्यात्' यह शब्द एक तथा अनेक अभिप्रेत अर्थों का साधक है।
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2. रत्नत्रय अधिकार - (विवेक योग)

3. भेद-रत्नत्रय Hindi 26 View Detail
Mool Sutra: इति जीवान् अजीवाँश्च, श्रुत्वा श्रद्धाय च। सर्वनयानामनुमते, रमते संयमे मुनिः ।।

Translated Sutra: इस प्रकार जीव और अजीव आदि तत्त्वों के स्वरूप को सुनकर तथा परमार्थ तथा व्यवहार आदि सभी दृष्टियों के अनुसार उनकी हृदय से श्रद्धा करके भिक्षु संयम में रमण करे।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

2. निश्चय-व्यवहार चारित्र समन्वय Hindi 32 View Detail
Mool Sutra: जीवोऽप्रविश्य व्यवहारमार्गं, न निश्चयं ज्ञातुमुपैति शक्तिम्। प्रभाविकाशेक्षणमन्तरेण, भानूदयं को वदते विवेकी ।।

Translated Sutra: व्यवहार मार्ग में प्रवेश किये बिना जीव निश्चय मार्ग (अर्थात् अभेद रत्नत्रयभूत शुद्ध आत्मा) को जानने या अनुभव करने में समर्थ नहीं हो सकता। प्रभात होने से पहले सूर्य का उदित होना कौन विवेकी कह सकता है?
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

3. समन्वय अधिकार - (समन्वय योग)

3. ज्ञान-कर्म समन्वय Hindi 38 View Detail
Mool Sutra: संयोगसिद्धौ फलं वदन्ति, न खल्वेकचक्रेण रथः प्रयाति। अन्धश्च पंगुश्च वने समेत्य, तौ संप्रयुक्तौ नगरं प्रविष्टौ ।।

Translated Sutra: संयोग सिद्ध हो जाने पर ही फल प्राप्त होते हैं। एक चक्र से कभी रथ नहीं चलता। न दिखने के कारण तो अन्धा और न चलने के कारण पंगु दोनों ही उस समय तक वन से बाहर निकल नहीं पाये, जब तक कि परस्पर मिलकर पंगु अन्धे के कन्धे पर नहीं बैठ गया। पंगु ने मार्ग बताया और अन्धा चला। इस प्रकार दोनों वन से निकलकर नगर में प्रविष्ट हो गये।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

2. सम्यग्दर्शन की सर्वोपरि प्रधानता Hindi 45 View Detail
Mool Sutra: दर्शनभ्रष्टो भ्रष्टः, भ्रष्टदर्शनस्य नास्ति निर्वाणम्। सिद्ध्यन्ति चरणरहिता, दर्शनरहिता न सिद्ध्यन्ति ।।

Translated Sutra: सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट व्यक्ति ही वास्तव में भ्रष्ट है, क्योंकि दर्शनभ्रष्ट को तीन काल में भी निर्वाण सम्भव नहीं। चारित्रहीन तो कदाचित् सिद्ध हो भी जाते हैं, परन्तु दर्शनहीन कभी भी सिद्ध नहीं होते। १. (सम्यक्त्वविहीन व्यक्ति का शास्त्रज्ञान निरा शाब्दिक होता है। अर्थज्ञान-शून्य होने के कारण वह आराधना को
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

2. सम्यग्दर्शन की सर्वोपरि प्रधानता Hindi 47 View Detail
Mool Sutra: श्रेयाऽश्रेयवेत्ता उद्धृतदुःशीलः शीलवानपि। शीलफलेनाभ्युदयं ततः पुनः लभते निर्वाणम् ।।

Translated Sutra: कृपया देखें ४६; संदर्भ ४६-४७
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

4. सम्यग्दर्शन के लिंग (ज्ञानयोग) Hindi 51 View Detail
Mool Sutra: संवेगो निर्वेदो, निन्दा गर्हा च उपशमो भक्तिः। वात्सल्यं अनुकम्पा, अष्ट गुणाः सम्यक्त्वयुक्तस्य ।।

Translated Sutra: संवेग, निर्वेद (वैराग्य), अपने दोषों के लिए आत्मनिन्दन व गर्हण, कषायों की मन्दता, गुरु-भक्ति, वात्सल्य, व दया। (पूर्वोक्त आठ के अतिरिक्त) सम्यग्दृष्टि को ये आठ गुण भी स्वभाव से ही प्राप्त होते हैं।
Jain Dharma Sar जैन धर्म सार Sanskrit

4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

7. निर्विचिकित्सत्व (अस्पृश्यता-निवारण) Hindi 58 View Detail
Mool Sutra: जो न करोति जुगुप्सं, चेतयिता सर्वेषामेव धर्माणां। स खलु निर्विचित्सः, सम्यग्दृष्टिर्ज्ञातव्यः ।।

Translated Sutra: जो जीव वस्तु के मनोज्ञामनोज्ञ धर्मों में अथवा व्यक्ति के कुल, जाति व सम्प्रदाय आदि रूप विविध धर्मों में ग्लानि नहीं करता, उसे विचिकित्साविहीन सम्यग्दृष्टि जानना चाहिए।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

12. वात्सल्यत्व (प्रेमयोग) Hindi 71 View Detail
Mool Sutra: सत्त्वेषु मैत्रीं गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम्। माध्यस्थभावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव ।।

Translated Sutra: सब जीवों में मेरी मैत्री हो, गुणीजनों में प्रमोद हो, दुःखी जीवों के प्रति दया हो और धर्म-विमुख विपरीत वृत्तिवालों में माध्यस्थ भाव। हे प्रभो! मेरी आत्मा सदा (प्रेम व वात्सल्य के अंगभूत) इन चारों भावों को धारण करे।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

14. आस्तिक्य भाव Hindi 74 View Detail
Mool Sutra: अर्थोऽयमपरोऽनर्थ, इति निर्द्धारणं हृदि। आस्तिक्यं परमं चिह्नं, सम्यक्त्वस्य जगुर्जिनाः ।।

Translated Sutra: `यह अर्थ है और यह अनर्थ है', हृदय में इस प्रकार दृढ़ निर्धारण करना, सम्यग्दर्शन का आस्तिक्य नामक परम चिह्न है।
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4. सम्यग्दर्शन अधिकार - (जागृति योग)

15. प्रभावनाकरणत्व Hindi 75 View Detail
Mool Sutra: धर्मकथाकथनेन च, बाह्ययोगैश्चापि अनवद्यैः। धर्मः प्रभावयितव्यः जीवेषु दयानुकम्पया ।।

Translated Sutra: धर्मोपदेश के द्वारा, अथवा स्व-परोपकारी शुभ क्रियाओं के द्वारा, अथवा जीवों में दया व अनुकम्पा के द्वारा (उपलक्षण से प्रेम, दान व सेवा आदि के द्वारा) धर्म की प्रभावना करना कर्तव्य है।
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

10. अनित्य व अशरण संसार Hindi 101 View Detail
Mool Sutra: अम्भोबुद्बुदसंनिभा तनुरियं, श्रीरिन्द्रजालोपमा। दुर्वाताहतवारिवाहसदृशाः, कान्तार्थपुत्रादयः ।।

Translated Sutra: यह शरीर जलबुद्बुद के समान अनित्य है तथा लक्ष्मी इन्द्रजाल के समान चंचल। स्त्री, धन व पुत्रादि आँधी से आहत जल-प्रवाहवत् अति वेग से नाश की ओर दौड़े जा रहे हैं। वैषयिक सुख काम से मत्त स्त्री की भाँति तरल हैं अर्थात् विश्वास के योग्य नहीं हैं। इसलिए समस्त उपद्रवों के स्थानभूत इनके विषय में शोक करने से क्या लाभ है?
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5. सम्यग्ज्ञान अधिकार - (सांख्य योग)

14. लोक-स्वरूप चिन्तन Hindi 110 View Detail
Mool Sutra: जीवादिपदार्थानां, समवायः स निरुच्यते लोकः। त्रिविधः भवेत् लोकः, अधोमध्यमोर्ध्वभेदेन ।।

Translated Sutra: जीवादि छह द्रव्यों के समुदाय को लोक कहते हैं। यह त्रिधा विभक्त है-अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक। (अधोलोक में नारकीयों का वास है, मध्यलोक में मनुष्य व तिर्योंचों का और ऊर्ध्वलोक में देवों का।)
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6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग)

2. महारोग रागद्वेष Hindi 120 View Detail
Mool Sutra: परमाणुमात्रमपि खलु, रागादीनां तु विद्यते यस्य। नापि स जानात्यात्मानं, सर्वागमधरोऽपि ।।

Translated Sutra: जिस व्यक्ति के हृदय में परमाणु मात्र भी राग व द्वेष का वास है, वह सर्व शास्त्रों का ज्ञाता भी क्यों न हो, आत्मा को नहीं जानता है।
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6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग)

4. कषाय-निग्रह Hindi 122 View Detail
Mool Sutra: उपशमदयादमायुधकरणेन, रक्षा कषायचौरैः। शक्या कर्तुं आयुधकरणेन, रक्षा इव चौरेभ्यः ।।

Translated Sutra: जिस प्रकार सशस्त्र पुरुष चोरों से अपनी रक्षा करता है, उसी प्रकार उपशम दया और निग्रहरूप तीन शस्त्रों को धारण करनेवाला कषायरूपी चोरों से अपनी रक्षा करता है।
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6. निश्चय-चारित्र अधिकार - (बुद्धि-योग)

8. परीषह-जय (तितिक्षा सूत्र) Hindi 138 View Detail
Mool Sutra: तथागतं भिक्षुमनन्तसंयतं, अनीदृशं विज्ञः चरंतमेषणाम्। तदन्ति वाग्भिः अभिद्रवन्तो नराः, शरैः संग्रामगतमिव कुंजरम् ।।

Translated Sutra: जीवदया व विरागपरायण ज्ञानी भिक्षु को चर्या के समय जब ये लोग विविध प्रकार से, मर्मभेदी वाग्वाणों के द्वारा अथवा मुक्का व लाठी आदि के प्रहारों के द्वारा पीड़ा देते हैं, तो वह उसे उसी प्रकार सहन कर जाय, जिस प्रकार संग्राम में हाथी।
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