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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 311 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] संसाररंगमज्झे धिइबलसन्नद्धबद्धकच्छाओ ।
हंतूण मोहमल्लं हराहि आराहणपडागं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 316 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] न य मनसा चिंतिज्जा, जीवामि चिरं, मरामि व लहुं ति ।
जइ इच्छसि तरिउं जे संसारमहोयहिमपारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 360 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जह सायरसे गिद्धा इत्थि-अहंकार-पावसुयमत्ता ।
ओसन्नबालमरणा भमंति संसारकंतारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 365 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] दिंति य सिं उवएसं गुरुणो नाणाविहेहिं हेऊहिं ।
जेण सुगइं भयंतो संसारभयद्दुओ होइ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 374 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] कोहाइकसाया खलु बीयं संसारभेरवदुहाणं ।
तेसु पसत्तेसु सया कत्तो सोक्खो य? मोक्खो वा? ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 399 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] वसियं दरीसु, वसियं गिरीसु, वसियं समुद्दमज्झेसु ।
रुक्खग्गेसु य वसियं संसारे संसरंतेणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 400 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] पीयं थणअच्छीरं सागरसलिलाओ बहुयरं होज्जा ।
संसारम्मि अनंते माईणं अन्नमन्नाणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 556 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जह बीहंति उ जीवा विविहाण बिहीसियाण एगागी ।
तह संसारगएहिं जीवेहिं बिहेसिया अन्ने ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 559 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] मत्तगइंदनिवाडियभिल्ल-पुलिंदावकुंडियवणासुं ।
वसिओ हं तिरियत्ते भीसणसंसारचारम्मि ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 565 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] पत्तं विचित्त-विरसं दुक्खं संसारसागरगतेणं ।
रसियं च असरणेणं कयंतदंतंतरगतेणं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 573 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] पढमं अनिच्चभावं १ असरणयं २ एगयं ३ च अन्नत्तं ४ ।
संसार५मसुभया ६ वि य विविहं लोगस्सहावं ७ च ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 593 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सग्गेसु य नरगेसु य मानुस्से तह तिरिक्खजोणीसुं ।
जायं मयं च बहुसो संसारे संसरंतेणं ५ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 605 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] किच्छाहि पाविउं जे पत्ता बहुभय-किलेस-दोसकरा ।
तक्खणसुहा बहुदुहा संसारविवद्धणा कामा ३ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 612 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] एरिसयदोसपुण्णे खुत्तो संसारसायरे जीवो ।
जं अइचिरं किलिस्सइ तं आसवहेउअं सव्वं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 629 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] नाणमयवायसहिओ सीलुज्जलिओ तवोमओ अग्गी ।
संसारकरणबीयं दहइ दवग्गी व तणरासिं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Maransamahim | Ardha-Magadhi |
मरणसमाहि |
Gujarati | 656 | Gatha | Painna-10A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जह निंबदुमुप्पन्नो कीडो कडुयं पि मन्नए महुरं ।
तह मोक्खसुहपरोक्खा संसारदुहं सुहं बिंति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 1 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जयइ जगजीवजोणी-वियाणओ जगगुरू जगानंदो ।
जगनाहो जगबंधू जयइ जगप्पियामहो भयवं ॥ Translated Sutra: संसार के तथा जीवोत्पत्तिस्थानों के ज्ञाता, जगद्गुरु, जीवों के लिए नन्दप्रदाता, प्राणियों के नाथ, विश्वबन्धु, लोक में पितामह स्वरूप अरिहन्त भगवान् सदा जयवन्त हैं। | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 149 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुयं?
विवागसुए णं सुकड-दुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ। तत्थ णं दस दुहविवागा, दस सुहविवागा।
से किं तं दुहविवागा? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं, उज्जानाइं, वनसंडाइं, चेइयाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया रिद्धिविसेसा, निरयगमणाइं, संसारभवपवंचा, दुहपरंपराओ, दुक्कुलपच्चायाईओ, दुल्लहबोहियत्तं आघविज्जइ। से त्तं दुहविवागा।
से किं तं सुहविवागा? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराइं, उज्जानाइं, वनसंडाइं, चेइयाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, Translated Sutra: भगवन् ! विपाकश्रुत किस प्रकार का है ? विपाकश्रुत में शुभाशुभ कर्मों के फल – विपाक हैं। उस विपाकश्रुत में दस दुःखविपाक और दस सुखविपाक अध्ययन हैं। दुःखविपाक में दुःखरूप फल भोगनेवालों के नगर, उद्यान, वनखंड चैत्य, राजा, माता – पिता, धर्माचार्य, धर्मकथा, इह – परलौकिक ऋद्धि, नरकगमन, भवभ्रमण, दुःखपरम्परा, दुष्कुल | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 150 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए?
दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. परिकम्मे २. सुत्ताइं ३. पुव्वगए ४. अनुओगे ५. चूलिया।
से किं तं परिकम्मे?
परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे, ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाढसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे।
से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे?
सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउगापयाइं २. एगट्ठियपयाइं ३. अट्ठापयाइं ४. पाढो ५. आगासपयाइं ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं Translated Sutra: दृष्टिवाद क्या है ? दृष्टिवाद – सब नयदृष्टियों का कथन करने वाले श्रुत में समस्त भावों की प्ररूपणा है। संक्षेप में पाँच प्रकार का है। परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। परिकर्म सात प्रकार का है, सिद्ध – श्रेणिकापरिकर्म, मनुष्य – श्रेणिकापरिकर्म, पुष्ट – श्रेणिकापरिकर्म, अवगाढ – श्रेणिका – परिकर्म, | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 154 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं पुव्वगए।
से किं तं अनुओगे?
अनुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमानुओगे गंडियानुओगे य।
से किं तं मूलपढमानुओगे?
मूलपढमानुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमनाइं, आउं, चवणाइं, जम्म-णाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ, तित्थपवत्त-णाणि य, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिन-मन-पज्जव-ओहिनाणी, समत्तसुयनाणिणो य, वाई, अनुत्तरगई य, उत्तरवेउव्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा सिद्धिपहो जह देसिओ, जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे मुनिवरु-त्तमे तम-रओघ-विप्पमुक्के मुक्खसुहमनुत्तरं Translated Sutra: भगवन् ! अनुयोग कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का है, मूलप्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में अरिहन्त भगवंतों के पूर्व भवों, देवलोक में जाना, आयुष्य, च्यवनकर तीर्थंकर रूप में जन्म, जन्माभिषेक तथा राज्याभिषेक, राज्यलक्ष्मी, प्रव्रज्या, घोर तपश्चर्या, केवलज्ञान की उत्पत्ति, तीर्थ की प्रवृत्ति, शिष्य | |||||||||
Nandisutra | नन्दीसूत्र | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Hindi | 157 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टिंसु।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति।
इच्चेइयं संसारकंतारं अनुपरियट्टिस्संति।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइंसु।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पन्नकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसार-कंतारं वीईवयंति।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अनागए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसार कंतारं वीईवइस्संति।
इच्चेइयं Translated Sutra: इस द्वादशाङ्ग गणिपिटक की भूतकाल में अनन्त जीवों ने विराधना करके चार गतिरूप संसार कान्तार में भ्रमण किया। इसी प्रकार वर्तमानकाल में परिमित जीव आज्ञा से विराधना करके चार गतिरूप संसार में भ्रमण कर रहे हैं – इसी प्रकार द्वादशाङ्ग गणिपिटक की आगामी काल में अनन्त जीव आज्ञा से विराधना करके चार गतिरूप संसार कान्तार | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 1 | Gatha | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जयइ जगजीवजोणी-वियाणओ जगगुरू जगानंदो ।
जगनाहो जगबंधू जयइ जगप्पियामहो भयवं ॥ Translated Sutra: ધર્માસ્તિકાય આદિ છ દ્રવ્યરૂપ સંસારના તથા જીવોની ઉત્પત્તિ સ્થાનના જ્ઞાતા, જગદ્ગુરુ સન્માર્ગદાતા), ભવ્ય જીવોને આનંદ દેનારા, સ્થાવર અને જંગમ પ્રાણીઓના નાથ, વિશ્વબંધુ, ધર્મના ઉત્પાદક હોવાથી દરેક જીવોના ધર્મ પિતામહ સમાન અરિહંત ઋષભદેવ ભગવાનનો સદા જય હો, સદા જય હો. | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 146 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अंतगडदसाओ?
अंतगडदसासु णं अंतगडाणं नगराइं, उज्जानाइं, चेइयाइं, वनसंडाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पव्व-ज्जाओ परिआया, सुयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाइं, अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अंतगडदसाणं परित्ता वायणा, संखेज्जा अनुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ।
से णं अंगट्ठयाए अट्ठमे अंगे, एगे सुयक्खंधे, अट्ठवग्गा, अट्ठ उद्देसनकाला, अट्ठ समुद्देसन-काला, संखेज्जाइं पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जा Translated Sutra: અંતકૃત્દશાંગ શ્રુતમાં કોનું વર્ણન છે ? અંતકૃત્દશાંગ સૂત્રમાં કર્મનો અથવા જન્મ – મરણરૂપ સંસારનો અંત કરનારા મહાપુરુષોના નગર, ઉદ્યાન, વ્યંતરાયતન, વનખંડ, સમવસરણ, રાજા, માતાપિતા, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, આ લોક અને પરલોકની ઋદ્ધિ વિશેષ, ભોગ – પરિત્યાગ, દીક્ષા, સંયમની પર્યાય, શ્રુતનું અધ્યયન, શ્રુતનું ઉપધાન તપ, સંલેખના, | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 149 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं विवागसुयं?
विवागसुए णं सुकड-दुक्कडाणं कम्माणं फलविवागे आघविज्जइ। तत्थ णं दस दुहविवागा, दस सुहविवागा।
से किं तं दुहविवागा? दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराइं, उज्जानाइं, वनसंडाइं, चेइयाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया रिद्धिविसेसा, निरयगमणाइं, संसारभवपवंचा, दुहपरंपराओ, दुक्कुलपच्चायाईओ, दुल्लहबोहियत्तं आघविज्जइ। से त्तं दुहविवागा।
से किं तं सुहविवागा? सुहविवागेसु णं सुहविवागाणं नगराइं, उज्जानाइं, वनसंडाइं, चेइयाइं, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, Translated Sutra: વિપાકશ્રુતમાં કોનો અધિકાર છે ? વિપાકશ્રુતમાં સુકૃત – દુષ્કૃત અર્થાત્ શુભાશુભ કર્મોના ફળનું કથન છે. વિપાકસૂત્રમાં દસ અધ્યયન દુઃખ વિપાકના અને દસ અધ્યયન સુખવિપાકના છે. દુઃખવિપાકમાં શું બતાવ્યું છે ? દુઃખવિપાકમાં દુઃખરૂપ ફળ ભોગવનારના નગર, ઉદ્યાન, વનખંડ, ચૈત્ય, રાજા, માતાપિતા, ધર્માચાર્ય, ધર્મકથા, આ લોક તથા | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 150 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दिट्ठिवाए?
दिट्ठिवाए णं सव्वभावपरूवणा आघविज्जइ। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. परिकम्मे २. सुत्ताइं ३. पुव्वगए ४. अनुओगे ५. चूलिया।
से किं तं परिकम्मे?
परिकम्मे सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सिद्धसेणियापरिकम्मे २. मनुस्ससेणियापरिकम्मे, ३. पुट्ठसेणियापरिकम्मे ४. ओगाढसेणियापरिकम्मे ५. उवसंपज्जसेणियापरिकम्मे ६. विप्पजहण-सेणियापरिकम्मे ७. चुयाचुयसेणियापरिकम्मे।
से किं तं सिद्धसेणियापरिकम्मे?
सिद्धसेणियापरिकम्मे चउद्दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. माउगापयाइं २. एगट्ठियपयाइं ३. अट्ठापयाइं ४. पाढो ५. आगासपयाइं ६. केउभूयं ७. रासिबद्धं ८. एगगुणं ९. दुगुणं Translated Sutra: [૧] દૃષ્ટિવાદમાં કોનું કથન છે ? દૃષ્ટિવાદમાં સમસ્ત ભાવોની પ્રરૂપણા કરી છે. તે સંક્ષેપમાં પાંચ પ્રકારે છે, જેમ કે – ૧. પરિકર્મ, ૨. સૂત્ર, ૩. પૂર્વગત, ૪. અનુયોગ, ૫. ચૂલિકા. [૨] પરિકર્મના કેટલા પ્રકાર છે ? પરિકર્મ સાત પ્રકારના છે. જેમ કે – ૧. સિદ્ધશ્રેણિકા પરિકર્મ, ૨. મનુષ્ય શ્રેણિકા પરિકર્મ, ૩. પૃષ્ટશ્રેણિકા પરિકર્મ, ૪. અવગાઢ | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 154 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं पुव्वगए।
से किं तं अनुओगे?
अनुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमानुओगे गंडियानुओगे य।
से किं तं मूलपढमानुओगे?
मूलपढमानुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमनाइं, आउं, चवणाइं, जम्म-णाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ, तित्थपवत्त-णाणि य, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिन-मन-पज्जव-ओहिनाणी, समत्तसुयनाणिणो य, वाई, अनुत्तरगई य, उत्तरवेउव्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा सिद्धिपहो जह देसिओ, जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे मुनिवरु-त्तमे तम-रओघ-विप्पमुक्के मुक्खसुहमनुत्तरं Translated Sutra: [૧]. અનુયોગ કેટલા પ્રકારનો છે ? અનુયોગ બે પ્રકારનો છે, જેમ કે – ૧) મૂલપ્રથમાનુયોગ અને ગંડિકાનુયોગ. મૂલપ્રથમાનુયોગમાં કોનું વર્ણન છે? મૂલપ્રથમાનુયોગમાં અરિહંત ભગવંતના પૂર્વભવોનું વર્ણન છે. તેમનું દેવલોકમાં જવું, દેવલોકનું આયુષ્ય, દેવલોકથી ચ્યવીને તીર્થંકર રૂપે જન્મ, દેવાદિકૃત જન્માભિષેક, રાજ્યાભિષેક, પ્રધાન | |||||||||
Nandisutra | નન્દીસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
नन्दीसूत्र |
Gujarati | 157 | Sutra | Chulika-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टिंसु।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति।
इच्चेइयं संसारकंतारं अनुपरियट्टिस्संति।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइंसु।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पन्नकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसार-कंतारं वीईवयंति।
इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अनागए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसार कंतारं वीईवइस्संति।
इच्चेइयं Translated Sutra: [૧] આવા આ દ્વાદશાંગ ગણિપિટકમાં વર્ણવેલ પ્રભુ આજ્ઞાની ભૂતકાળમાં અનંત જીવોએ વિરાધના કરીને ચાર ગતિ રૂપ સંસાર કંતારમાં ભ્રમણ કર્યું. આવા આ દ્વાદશાંગ ગણિપિટકમાં વર્ણવેલ પ્રભુ આજ્ઞાની વર્તમાનકાળમાં પરિમિત જીવો વિરાધના કરીને ચાર ગતિરૂપ સંસારમાં પરિભ્રમણ કરે છે. આવા આ દ્વાદશાંગ ગણિપિટકમાં વર્ણવેલ પ્રભુ આજ્ઞાની | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 192 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] संजमआयविराहण नाणे तह दंसणे चरित्ते य ।
आणालोव जिणाणं कुव्वइ दीहं तु संसारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Hindi | 705 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जो जह व तह व लद्ध गिण्हइ आहारउवहिमाईयं ।
समणगुणमुक्कजोगी संसारपवड्ढओ भणिओ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Gujarati | 192 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] संजमआयविराहण नाणे तह दंसणे चरित्ते य ।
आणालोव जिणाणं कुव्वइ दीहं तु संसारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Ogha Nijjutti | Ardha-Magadhi |
ओहनिज्जुत्ति |
Gujarati | 705 | Gatha | Mool-02A | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जो जह व तह व लद्ध गिण्हइ आहारउवहिमाईयं ।
समणगुणमुक्कजोगी संसारपवड्ढओ भणिओ ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 194 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] संसार भउव्विग्गो संविग्गो सो तु होति नायव्वो ।
एतेसिं तु पदाणं चउभंगा होंति एक्केक्के ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 677 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जं तणभारेण तुमं विससि पलित्तं ततो लवे देवो ।
एव तुमं जाणंतो जरमरणपलित्तसंसारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1309 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जम्हा विनयति कम्मं अट्ठविहं चाउरंत मुक्खाए ।
तम्हा उ वयंति विउ विनउत्ति विलीन संसारा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1358 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] उस्सुत्तं ववहरंतो कम्मं बंधति चिक्कणं ।
संसारं च पवड्ढेति मोहनिज्जं च कुव्वति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 1367 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] वइरोसभसंघयणा ।दारं। सुत्तस्सत्थो तु होति परमत्थो ।
संसारसभावो वा णाओ तो मुणितपरमत्थो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 2153 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] नाणादिसु सीदंतो न सुद्धमग्गं तु जो परूवेइ ।
एसो मग्गच्छेदो वड्ढयती दीहसंसारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 2348 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सीसो पडिच्छओ वा आयरिओ वा न सोग्गतिं णेति ।
जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 2349 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सीसो पडिच्छओ वा आयरिओ वावि ते इहं लोगं ।
जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 2350 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सीसो पडिच्छओ वा कुलगणसंघा न सोग्गतिं णेंति ।
जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 2351 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सीसो पडिच्छओ वा कुलगणसंघो व एति इहलोए ।
जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 2355 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] नाणचरणसंघातं रागद्दोसेहिं जो वि संघाए ।
सो भमिही संसारं चतुरंतं तं अनवयग्गं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Hindi | 2378 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सो अभिमुहेति लुद्धो संसारकडिल्लगंमि अप्पाणं ।
उम्मग्गदेसणाए तित्थगरासायणाए य ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 194 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] संसार भउव्विग्गो संविग्गो सो तु होति नायव्वो ।
एतेसिं तु पदाणं चउभंगा होंति एक्केक्के ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 677 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जं तणभारेण तुमं विससि पलित्तं ततो लवे देवो ।
एव तुमं जाणंतो जरमरणपलित्तसंसारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 1309 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] जम्हा विनयति कम्मं अट्ठविहं चाउरंत मुक्खाए ।
तम्हा उ वयंति विउ विनउत्ति विलीन संसारा ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 1358 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] उस्सुत्तं ववहरंतो कम्मं बंधति चिक्कणं ।
संसारं च पवड्ढेति मोहनिज्जं च कुव्वति ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 1367 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] वइरोसभसंघयणा ।दारं। सुत्तस्सत्थो तु होति परमत्थो ।
संसारसभावो वा णाओ तो मुणितपरमत्थो ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2153 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] नाणादिसु सीदंतो न सुद्धमग्गं तु जो परूवेइ ।
एसो मग्गच्छेदो वड्ढयती दीहसंसारं ॥ Translated Sutra: Not Available | |||||||||
Panchkappo Bhaasam | Ardha-Magadhi |
मपंचकप्प.भासं |
Gujarati | 2348 | Gatha | Chheda-05B | View Detail | ||
Mool Sutra: [गाथा] सीसो पडिच्छओ वा आयरिओ वा न सोग्गतिं णेति ।
जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति ॥ Translated Sutra: Not Available |