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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 384 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मीसापरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–एगिंदियमीसापरिणया जाव पंचिंदियमीसापरिणया। एगिंदियमीसापरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? एवं जहा पयोगपरिणएहिं नव दंडगा भणिया, एवं मीसापरिणएहिं वि नव दंडगा भाणियव्वा, तहेव सव्वं निरवसेसं, नवरं–अभिलावो मीसापरिणया भाणियव्वं, सेसं तं चेव जाव जे पज्जत्ता-सव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववाइय जाव आयतसंठाणपरिणया वि।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मिश्रपरिणत पुद्‌गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – एकेन्द्रिय – मिश्रपरिणत पुद्‌गल यावत्‌ पंचेन्द्रिय – मिश्रपरिणत पुद्‌गल। भगवन्‌ ! एकेन्द्रिय – मिश्रपुद्‌गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! प्रयोगपरिणत पुद्‌गलों के समान मिश्र – परिणत पुद्‌गलों के विषय में भी नौ दण्डक कहना। विशेषता यह
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 385 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वीससापरिणया णं भंते! पोग्गला कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–वण्णपरिणया, गंधपरिणया, रसपरिणया, फासपरिणया, संठाणपरिणया। जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा– कालवण्णपरिणया जाव सुक्किल-वण्णपरिणया। जे गंधपरिणया ते दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुब्भिगंधपरिणया, दुब्भिगंधपरिणया। जे रसपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–तित्तरसपरिणया जाव महुररसपरिणया। जे फासपरिणया ते अट्ठविहा पन्नत्ता, तं जहा–कक्खडफासपरिणया जाव लुक्खफास- परिणया। जे संठाणपरिणया ते पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–परिमंडलसंठाणपरिणया जाव आयतसंठाण परिणया। जे वण्णओ कालवण्णपरिणया ते

Translated Sutra: भगवन्‌ ! विस्रसा – परिणत पुद्‌गल कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के – वर्णपरिणत, गन्धपरिणत, रसपरिणत, स्पर्शपरिणत और संस्थानपरिणत। जो पुद्‌गल वर्णपरिणत हैं, वे पाँच प्रकार के कहे गए हैं, यथा – कृष्णवर्ण के रूप में परिणत यावत्‌ शुक्ल वर्ण के रूप में परिणत पुद्‌गल। जो गन्ध – परिणत – पुद्‌गल हैं, वे दो प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 386 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भंते! दव्वे किं पयोगपरिणए? मीसापरिणए? वीससापरिणए? गोयमा! पयोगपरिणए वा, मीसापरिणए वा, वीससापरिणए वा। जइ पयोगपरिणए किं मनपयोगपरिणए? वइपयोगपरिणए? कायपयोगपरिणए? गोयमा! मनपयोगपरिणए वा, वइपयोगपरिणए वा, कायपयोगपरिणए वा। जइ मनपयोगपरिणए किं सच्चमनपयोगपरिणए? मोसमनपयोगपरिणए? सच्चामोसमन-पयोग-परिणए? असच्चामोसमनपयोगपरिणए? गोयमा! सच्चमनपयोगपरिणए वा, मोसमनपयोगपरिणए वा, सच्चामोसमनपयोगपरिणए वा, असच्चामोसमनपयोगपरिणए वा। जइ सच्चमनपयोगपरिणए किं आरंभसच्चमनपयोगपरिणए? अनारंभसच्चमनपयोग-परिणए? सारंभसच्चमनपयोगपरिणए? असारंभसच्चमनपयोगपरिणए? समारंभसच्चमनपयोग-परिणए? असमारंभसच्चमनपयोगपरिणए? गोयमा!

Translated Sutra: गौतम ! एक द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होता है, मिश्रपरिणत होता है अथवा विस्रसापरिणत होता है ? गौतम ! एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, अथवा मिश्रपरिणत होता है, अथवा विस्रसापरिणत भी होता है। भगवन्‌ ! यदि एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह मनःप्रयोगपरिणत होता है, वचन – प्रयोग परिणत होता है, अथवा काय – प्रयोग – परिणत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-१ पुदगल Hindi 387 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दो भंते दव्वा! किं पयोगपरिणया? मीसापरिणया? वीससापरिणया? गोयमा! १. पयोगपरिणया वा २. मीसापरिणया वा ३. वीससापरिणया वा ४. अहवेगे पयोग-परिणए, एगे मीसापरिणए ५. अहवेगे पयोगपरिणए, एगे वीससापरिणए ६. अहवेगे मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए। जइ पयोगपरिणया किं मनपयोगपरिणया? वइपयोगपरिणया? कायपयोगपरिणया? गोयमा! १. मनपयोगपरिणया वा २. वइपयोगपरिणया वा ३. कायपयोगपरिणया वा ४. अहवेगे मनपयोगपरिणए, एगे वइपयोगपरिणए ५. अहवेगे मनपयोगपरिणए, एगे कायपयोगपरिणए ६. अहवेगे वइपयोगपरिणए, एगे कायपयोगपरिणए। जइ मनपयोगपरिणया किं सच्चमनपयोगपरिणया? असच्चमनपयोगपरिणया? सच्चमोसमनपयोगपरिणया? असच्चमोसमनपयोगपरिणया? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! दो द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं, मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं ? गौतम ! वे प्रयोगपरिणत होते हैं, या मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा एक द्रव्यप्रयोगपरिणत होते हैं और दूसरा मिश्रपरिणत होता है; या एक द्रव्यप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा द्रव्य विस्रसापरिणत होता
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 389 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! आसीविसा पन्नत्ता? गोयमा! दुविहा आसीविसा पन्नत्ता, तं जहा– जातिआसीविसा य, कम्मआसीविसा य। जातिआसीविसा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–विच्छुयजातिआसीविसे, मंडुक्कजातिआसीविसे, उरगजाति-आसीविसे, मनुस्सजातिआसीविसे। विच्छुयजातिआसीविसस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! पभू णं विच्छुयजातिआसीविसे अद्धभरहप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेनं विसपरिगयं विसट्टमाणं पकरेत्तए। विसए से विस ट्ठयाए, नो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा। मंडुक्कजातिआसीविसस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! पभू णं मंडुक्कजातिआसीविसे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आशीविष कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! दो प्रकार के हैं। जाति – आशीविष और कर्म – आशीविष भगवन्‌ ! जाति – आशीविष कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! चार प्रकार के जैसे – वृश्चिकजाति – आशीविष, मण्डूक – जाति – आशीविष, उरगजाति – आशीविष और मनुष्यजाति – आशीविष। भगवन्‌ ! वृश्चिकजाति – आशीविष का कितना विषय है ? गौतम ! वह अर्द्धभरतक्षेत्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 390 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दस ठाणाइं छउमत्थे सव्वभावेणं न जाणइ न पासइ, तं जहा–१. धम्मत्थिकायं २. अधम्मत्थिकायं ३. आगासत्थिकायं ४. जीवं असरीरपडिबद्धं ५. परमाणुपोग्गलं ६. सद्दं ७. गंधं ८. वातं ९. अयं जिने भविस्सइ वा न वा भविस्सइ १. अयं सव्वदुक्खाणं अंतं करेस्सइ वा न वा करेस्सइ। एयाणि चेव उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली सव्वभावेणं जाणइ-पासइ, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं, सद्दं, गंधं, वातं, अयं जिने भविस्सइ वा न वा भविस्सइ, अयं सव्वदु-क्खाणं अंतं करेस्सइ वा न वा करेस्सइ।

Translated Sutra: छद्मस्थ पुरुष इन दस स्थानों को सर्वभाव से नहीं जानता और नहीं देखता। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्ति – काय, आकाशास्तिकाय, शरीर से रहित जीव, परमाणुपुद्‌गल, शब्द, गन्ध, वायु, यह जीव जिन होगा या नहीं ? तथा यह जीव सभी दुःखों का अन्त करेगा या नहीं ? इन्हीं दस स्थानों को उत्पन्न (केवल) ज्ञान – दर्शन के धारक अरिहन्त – जिनकेवली
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 391 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! नाणे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–आभिनिबोहियनाणे, सुयनाणे, ओहिनाणे, मनपज्जवनाणे, केवलनाणे। से किं तं आभिनिबोहियनाणे? आभिनिबोहियनाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। एवं जहा रायप्पसेणइज्जे नाणाणं भेदो तहेव इह भाणियव्वो जाव सेत्तं केवलनाणे। अन्नाणे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–मइअन्नाणे, सुयअन्नाणे, विभंगनाणे। से किं तं मइअन्नाणे? मइअन्नाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–ओग्गहो, ईहा, अवाओ, धारणा। से किं तं ओग्गहे? ओग्गहे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–अत्थोग्गहे य वंजणोग्गहे य। एवं जहेव आभिनिबोहियनाणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! पाँच प्रकार का – आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान। भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञान कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का। अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। राजप्रश्नीयसूत्र में ज्ञानों के भेद के कथनानुसार ‘यह है वह केवल – ज्ञान’; यहाँ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 393 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते लद्धी पन्नत्ता? गोयमा! दसविहा लद्धी पन्नत्ता, तं जहा–१. नाणलद्धी २. दंसणलद्धी ३. चरित्तलद्धी ४. चरित्ताचरित्तलद्धी ५. दानलद्धी ६. लाभलद्धी ७. भोगलद्धी ८. उवभोगलद्धी ९. वीरियलद्धी १. इंदियलद्धी। नाणलद्धी णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–आभिनिबोहियनाणलद्धी जाव केवलनाणलद्धी। अन्नाणलद्धी णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–मइअन्नाणलद्धी, सुयअन्नाणलद्धी, विभंगनाणलद्धी। दंसणलद्धी णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–सम्मदंसणलद्धी, मिच्छादंसणलद्धी, सम्मामिच्छा-दंसणलद्धी। चरित्तलद्धी

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लब्धि कितने प्रकार की कही है ? गौतम ! लब्धि दस प्रकार की कही गई है – ज्ञानलब्धि, दर्शनलब्धि, चारित्रलब्धि, चारित्राचारित्रलब्धि, दानलब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि, उपभोगलब्धि, वीर्यलब्धि और इन्द्रियलब्धि। भगवन्‌ ! ज्ञानलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! पाँच प्रकार की, यथा – आभिनिबोधिकज्ञान – लब्धि यावत्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 394 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सागारोवउत्ता णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? पंच नाणाइं, तिन्नि अन्नाणाइं–भयणाए। आभिनिबोहियनाणसागारोवउत्ता णं भंते? चत्तारि नाणाइं भयणाए। एवं सुयनाणसागारोवउत्ता वि। ओहिनाणसागारोवउत्ता जहा ओहिनाणलद्धिया। मनपज्जवनाणसागारोवउत्ता जहा मनपज्जवनाणलद्धीया। केवलनाण-सागारोवउत्ता जहा केवलनाणलद्धीया। मइअन्नाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए। एवं सुयअन्नाणसागारोवउत्ता वि। विभंगनाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाइं नियमा। अनगारोवउत्ता णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? पंच नाणाइं, तिन्नि अन्नाणाइं–भयणाए। एवं चक्खुदंसण-अचक्खुदंसणअनागारोवउत्ता वि,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! साकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी होते हैं, या अज्ञानी ? गौतम ! वे ज्ञानी भी होते हैं, अज्ञानी भी होते हैं, जो ज्ञानी होते हैं, उनमें पाँच ज्ञान भजना से पाए जाते हैं और जो अज्ञानी होते हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं। भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञान – साकारोपयोगयुक्त जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी ? गौतम !
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 395 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आभिनिबोहियनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं खेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वं कालं जाणइ-पासइ। भावओ णं आभिनिबोहियनाणी आएसेनं सव्वे भावे जाणइ-पासइ। सुयनाणस्स णं भंते! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा! से समासओ चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। खेत्तओ णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वखेत्तं जाणइ-पासइ। कालओ णं सुयनाणी उवउत्ते

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञान का विषय कितना व्यापक है ? गौतम ! संक्षेप में चार प्रकार का है। यथा – द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से आभिनिबोधिकज्ञानी आदेश (सामान्य) से सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है, क्षेत्र से सामान्य से सभी क्षेत्र को जानता और देखता है, इसी प्रकार काल से भी और भाव से भी जानना। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आशिविष Hindi 396 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणी णं भंते! नाणी ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! नाणी दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–१. सादीए वा अपज्जवसिए २. सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जे से सादीए सप-ज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं छावट्ठिं सागरोवमाइं सातिरेगाइं। आभिनिबोहियनाणी णं भंते! आभिनिबोहिय नाणी ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! एवं चेव। एवं सुयनाणी वि। ओहिनाणी वि एवं चेव, नवरं–जहन्नेणं एक्कं समयं। मनपज्जवनाणी णं भंते! मनपज्जवनाणी ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं देसूणं पुव्वकोडिं। केवलनाणी णं भंते! केवलनाणी ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! सादीए अपज्जवसिए। अन्नाणी, मइअन्नाणी,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ज्ञानी ’ज्ञानी’ के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! ज्ञानी दो प्रकार के हैं। – सादि – अपर्यवसित और सादि – सपर्यवसित। इनमें से जो सादि – सपर्यवसित ज्ञानी हैं, वे जघन्यतः अन्तमुहूर्त्त तक और उत्कृष्टतः कुछ अधिक छियासठ सागरोपम तक ज्ञानीरूप में रहते हैं। भगवन्‌ ! आभिनिबोधिकज्ञानी आभिनिबो – धिकज्ञानी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-५ आजीविक Hindi 402 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं भंते! तेहिं सीलव्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं सा जाया अजाया भवइ? हंता भवइ। से केणं खाइ णं अट्ठेणं भंते एवं वुच्चइ–जायं चरइ? नो अजायं चरइ? गोयमा! तस्स णं एवं भवइ–नो मे माता, नो मे पिता, नो मे भाया, नो मे भगिनी, नो मे भज्जा, नो मे पुत्ता, नो मे धूया, नो मे सुण्हा; पेज्जबंधने पुण से अव्वोच्छिन्ने भवइ। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जायं चरइ, नो अजायं चरइ। समणोवासगस्स णं भंते! पुव्वामेव थूलए पाणाइवाए अपच्चक्खाए भवइ, से णं भंते! पच्छा पच्चाइक्खमाणे किं करेइ? गोयमा! तीयं पडिक्कमति, पडुप्पन्नं संवरेति, अनागयं पच्चक्खाति। तीयं पडिक्कममाणे किं १. तिविहं तिविहेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उन शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान और पोषधोपवास को स्वीकार किये हुए श्रावक का वह अपहृत भाण्ड उसके लिए तो अभाण्ड हो जाता है ? हाँ, गौतम ! वह भाण्ड उसके लिए अभाण्ड हो जाता है। भगवन्‌ ! तब आप ऐसा क्यों कहते हैं कि वह श्रावक अपने भाण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरे के भाण्ड का नहीं ? गौतम ! सामायिक आदि करने
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-५ आजीविक Hindi 403 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आजीवियसमयस्स णं अयमट्ठे–अक्खीणपडिभोइणो सव्वे सत्ता; से हंता, छेत्ता, भेत्ता, लुंपित्ता, विलुंपित्ता, उद्दवइत्ता आहारमाहारेंति। तत्थ खलु इमे दुवालस आजीवियोवासगा भवंति, तं जहा–१. ताले २. तालपलंबे ३. उव्विहे ४. संविहे ५. अवविहे ६. उदए ७. नामुदए ८. णम्मुदए ९. अणुवालए १. संखवालए ११. अयंपुले १२. कायरए – इच्चेते दुवालस आजीविओवासगा अरहंतदेवतागा, अम्मापिउसुस्सूसगा, पंचफल-पडिक्कंता, तं जहा–उंबरेहिं, वडेहिं, बोरेहिं, सतरेहिं, पिलक्खूहिं पलंडु-ल्हसुणकंदमूलविवज्जगा, अनिल्लंछिएहिं अनक्कभिन्नेहिं गोणेहि तसपाणविवज्जिएहिं छेत्तेहिं वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। एए वि ताव एवं

Translated Sutra: आजीविक के सिद्धान्त का यह अर्थ है कि समस्त जीव अक्षीणपरिभोजी होते हैं। इसलिए वे हनन करके, काटकर, भेदन करके, कतर कर, उतार कर और विनष्ट करके खाते हैं। ऐसी स्थिति (संसार के समस्त जीव असंयत और हिंसादिदोषपरायण हैं) में आजीविक मत में ये बारह आजीविकोपासक हैं – ताल, तालप्रलम्ब, उद्विध, संविध, अवविध, उदय, नामोदय, नर्मोदय,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-६ प्रासुक आहारादि Hindi 405 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणोवासगस्स णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिला-भेमाणस्स किं कज्जइ? गोयमा! एगंतसो से निज्जरा कज्जइ, नत्थि य से पावे कम्मे कज्जइ। समणोवासगस्स णं भंते! तहारूवं समणं वा माहणं वा अफासुएणं अणेसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं पडिलाभेमाणस्स किं कज्जइ? गोयमा! बहुतरिया से निज्जरा कज्जइ, अप्पतराए से पावे कम्मे कज्जइ। समणोवासगस्स णं भंते! तहारूवं अस्संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मं फासुएण वा, अफासुएण वा, एसणिज्जेण वा, अनेसणिज्जेण वा असनपान-खाइम-साइमेणं पडिलाभे-माणस्स किं कज्जइ? गोयमा! एगंतसो से पावे कम्मे कज्जइ, नत्थि से काइ निज्जरा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण अथवा माहन को प्रासुक एवं एषणीय अशन, पान, खादिम और स्वादिम आहार द्वारा प्रतिलाभित करने वाले श्रमणोपासक को किस फल की प्राप्ति होती है ? गौतम ! वह एकान्त रूप से निर्जरा करता है; उसके पापकर्म नहीं होता। भगवन्‌ ! तथारूप श्रमण या माहन को अप्रासुक एवं अनेषणीय आहार द्वारा प्रतिलाभित करते हुए श्रमणोपासक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-७ अदत्तादान Hindi 410 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे–वण्णओ, गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढवि-सिलावट्टओ। तस्स णं गुणसिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना विनयसंपन्ना नाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चारित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघव-संपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जियनिद्दा जिइंदिया जियपरीसहा जीवियासमरणभयविप्पमुक्का समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। वहाँ गुणशीलक चैत्य था। यावत्‌ पृथ्वी शिलापट्टक था। उस गुणशीलक चैत्य के आसपास बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे। उस काल और उस समय धर्मतीर्थ की आदि करने वाले श्रमण भगवान महावीर यावत्‌ समवसृत हुए यावत्‌ धर्मोपदेश सूनकर परीषद्‌ वापिस चली गई। उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 414 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! बंधे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे बंधे पन्नत्ते, तं जहा–इरियावहियबंधे य, संपराइयबंधे य। इरियावहियं णं भंते! कम्मं किं नेरइओ बंधइ? तिरिक्खजोणिओ बंधइ? तिरिक्खजोणिणी बंधइ? मनुस्सो बंधइ? मनुस्सी बंधइ? देवो बंधइ? देवी बंधइ? गोयमा! नो नेरइओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिओ बंधइ, नो तिरिक्खजोणिणी बंधइ, नो देवो बंधइ, नो देवी बंधइ। पुव्व पडिवन्नए पडुच्च मनुस्सा य मनुस्सीओ य बंधंति, पडिवज्जमाणए पडुच्च १. मनुस्सो वा बंधइ २. मनुस्सी वा बंधइ ३. मनुस्सा वा बंधंति ४. मनुस्सीओ वा बंधंति ५. अहवा मनुस्सो य मनुस्सी य बंधइ ६. अहवा मनुस्सो य मनुस्सीओ य बंधंति ७. अहवा मनुस्सा य मनुस्सी य बंधंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! बंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! बंध दो प्रकार का – ईर्यापथिकबंध और साम्परायिकबंध। भगवन्‌ ! ईर्यापथिककर्म क्या नैरयिक बाँधता है, या तिर्यंचयोनिक या तिर्यंचयोनिक स्त्री बाँधती है, अथवा मनुष्य, या मनुष्य – स्त्री बाँधती है, अथवा देव या देवी बाँधती है ? गौतम ! ईर्यापथिककर्म न नैरयिक बाँधता है, न तिर्यंच –
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-८ प्रत्यनीक Hindi 421 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति? अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति, मज्झंतियमुहुत्तंसि मूले य दूरे य दीसंति, अत्थमणमुहुत्तंसि दूरे य मूले य दीसंति। जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे सूरिया उग्गमणमुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समा उच्चत्तेणं? हंता गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिया उग्गमण मुहुत्तंसि, मज्झंतियमुहुत्तंसि य, अत्थमणमुहुत्तंसि य सव्वत्थ समाउच्चत्तेणं। जइ णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में क्या दो सूर्य, उदय और अस्त के मुहूर्त्त में दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, मध्याह्न के मुहूर्त्तमें निकट में होते हुए दूर दिखाई देते हैं? हाँ, गौतम ! जम्बूद्वीपमें दो सूर्य, उदय के समय दूर होते हुए भी निकट दिखाई देते हैं, इत्यादि। भगवन्‌ ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य, उदय के समय में, मध्याह्न
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 431 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! आराहणा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा आराहणा पन्नत्ता, तं जहा–नाणाराहणा, दंसणाराहणा, चरित्ताराहणा। नाणाराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना। दंसणाराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना। चरित्ताराहणा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा–उक्कोसिया, मज्झिमा, जहन्ना। जस्स णं भंते! उक्कोसिया नाणाराहणा तस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा? जस्स उक्कोसिया दंसणाराहणा तस्स उक्कोसिया नाणाराहणा? गोयमा! जस्स उक्कोसिया नाणाराहणा तस्स दंसणाराहणा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की – ज्ञानधारना, दर्शनाराधना, चारित्राराधना। भगवन् ! ज्ञानाराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीन प्रकार की उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य। भगवन् ! दर्शनाराधना कितने प्रकार की है ? गौतम ! तीनप्रकार की। इसी प्रकार चारित्राराधना भी तीनप्रकार की है। भगवन् ! जिस जीव के
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 432 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! पोग्गलपरिणामे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पोग्गलपरिणामे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णपरिणामे, गंधपरिणामे, रसपरिणामे, फासपरिणामे, संठाणपरिणामे। वण्णपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–कालवण्णपरिणामे जाव सुक्किलवण्णपरिणामे। एवं एएणं अभिलावेणं गंधपरिणामे दुविहे, रसपरिणामे पंचविहे, फासपरिणामे अट्ठविहे। संठाणपरिणामे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–परिमंडलसंठाणपरिणामे जाव आयतसंठाणपरिणामे।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का – वर्णपरिणाम, गन्धपरिणाभ, रसपरिणाम, स्पर्शपरिणाम और संस्थानपरिणाम। भगवन् ! वर्णपरिणाम कितने प्रकार का है ? गौतम ! पांच प्रकार का – कृष्ण वर्णपरिणाम यावत् शुक्ल वर्णपरिणाम। इसी प्रकार गन्धपरिणाम दो प्रकार का, रसपरिणाम पांच प्रकार का और स्पर्शपरिणाम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-२ आराधना Hindi 435 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं। नेरइयाणं भंते! कति कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! अट्ठ। एवं सव्वजीवाणं अट्ठ कम्मपगडीओ ठावेयव्वाओ जाव वेमाणियाणं। नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स केवतिया अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता। नेरइयाणं भंते! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवतिया अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता? गोयमा! अनंता अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता। एवं सव्वजीवाणं जाव वेमाणियाणं–पुच्छा। गोयमा! अनंता अविभागपलिच्छेदा पन्नत्ता। एवं जहा नाणावरणिज्जस्स अविभाग-पलिच्छेदा भणिया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कर्मप्रकृतियां कितनी हैं ? गौतम् ! कर्मप्रकृतियां आठ – ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। भगवन् ! नैरयिकों के कितनी कर्मप्रकृतियां हैं ? गौतम ! आठ। इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त सभी जीवो के आठ कर्मप्रकृतियों कहनी चाहिए। भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म के कितने अविभाग – परिच्छेद हैं ? गौतम ! अनन्त अविभाग – परिच्छेद हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-२ Hindi 440 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] रायगिहे जाव एवं वयासी–जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे केवइया चंदा पभासिंसु वा? पभासेंति वा? पभासिस्संति वा? एवं जहा जीवाभिगमे जाव–

Translated Sutra: राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने पूछा – भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने चन्द्रों ने प्रकाश किया, करते हैं, और करेंगे ? जीवाभिगमसूत्रानुसार कहेना।
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शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 453 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! पवेसणए पन्नत्ते? गंगेया! चउव्विहे पवेसणए पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयपवेसणए, तिरिक्खजोणियपवेसणए, मनुस्स-पवेसणए, देवपवेसणए। नेरइयपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा– रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए जाव अहेसत्तमापुढवि-नेरइयपवेसणए। एगे भंते! नेरइए नेरइयपवेसणएणं पविसमाणे किं रयणप्पभाए होज्जा, सक्करप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा? गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा। दो भंते! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए होज्जा? गंगेया! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा। अहवा

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! चार प्रकार का – नैरयिक प्रवेशनक, तिर्यग्योनिक – प्रवेशनक, मनुष्य – प्रवेशनक और देव – प्रवेशनक। भगवन् ! नैरयिक – प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! सात प्रकार का – रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमपत्रथ्वीनैरयिक – प्रवेशनक। भंते ! क्या एक नैरयिक जीव नैरयिक – प्रवेशनक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 454 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए जाव पंचिंदियतिरिक्ख-जोणियपवेसणए। एगे भंते! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणियपवेसणएणं पविसमाणे किं एगिंदिएसु होज्जा जाव पंचिंदिएसु होज्जा? गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। दो भंते! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं–पुच्छा। गंगेया! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। अहवा एगे एगिंदिएसु होज्जा एगे बेइंदिएसु होज्जा, एवं जहा नेरइयपवेसणए तहा तिरिक्खजोणियपवेसणए वि भाणियव्वे जाव असंखेज्जा। उक्कोसा भंते! तिरिक्खजोणिया तिरिक्खजोणियपवेसणएणं–पुच्छा। गंगेया!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? पांच प्रकार का – एकेन्द्रियतिर्यञ्चयो – निकप्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक – प्रवेशनक। भगवन् ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय जीवो में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 455 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मनुस्सपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–समुच्छिममनुस्सपवेसणए, गब्भवक्कंतियमनुस्सपवेसणए य। एगे भंते! मनुस्से मनुस्सपवेसणएणं पविसमाणे किं संमुच्छिममनुस्सेसु होज्जा? गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु होज्जा? गंगेया! संमुच्छिममनुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु वा होज्जा। दो भंते! मनुस्सा–पुच्छा। गंगेया! संमुच्छिममनुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमनुस्सेसु वा होज्जा। अहवा एगे संमुच्छिममनुस्सेसु होज्जा एगे गब्भव-क्कंतियमनुस्सेसु होज्जा, एवं एएणं कमेणं जहा नेरइयपवेसणए तहा मनुस्सपवेसणए वि भाणियव्वे जाव दस। संखेज्जा भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मनुष्यप्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ? गांगेय ! दो प्रकार का है, सम्मूर्च्छिममनुष्य – प्रवेशनक ओर गर्भजमनुष्य – प्रवेशनक। भगवन् ! दो मनुष्य, मनुष्य – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या सम्मूर्च्छिम मनुष्यो में उत्पन्न होते है ? इत्यादि (पूर्ववत) प्रश्न। गांगेय ! दो मनुष्य या तो सम्मूर्च्छिममनुष्य
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 456 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] देवपवेसणए णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गंगेया! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–भवनवासिदेवपवेसणए जाव वेमानियदेवपवेसणए। एगे भंते! देवे देवपवेसणएणं पविसमाणे किं भवनवासीसु होज्जा? वाणमंतर जोइसिय वेमाणिएसु होज्जा? गंगेया! भवनवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा होज्जा। दो भंते! देवा देवपवेसणएणं–पुच्छा। गंगेया! भवनवासीसु वा होज्जा, वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिएसु वा होज्जा। अहवा एगे भवनवासीसु एगे वाणमंतरेसु होज्जा, एवं जहा तिरिक्खजोणियपवेसणए तहा देवपवेसणए वि भाणियव्वे जाव असंखेज्ज त्ति। उक्कोसा भंते! –पुच्छा। गंगेया! सव्वे वि ताव जोइसिएसु होज्जा, अहवा जोइसिय-भवनवासीसु

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देव – प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? गांगेय ! चार प्रकार का – भावनवासीदेव – प्रवेशनक, वाणव्यन्तरदेव – प्रवेशनक, ज्योतिष्कदेव – प्रवेशनक और वैमानिकदेव – प्रवेशनक। भगवन् ! एक देव, देव – प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या भवनवासी देवों में, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क अथवा वैमानिक देवों में होता है ? गांगेय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 458 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] संतरं भंते! नेरइया उववज्जंति निरंतरं नेरइया उववज्जंति संतरं असुरकुमारा उववज्जंति निरंतरं असुरकुमारा उव-वज्जंति जाव संतरं वेमाणिया उववज्जंति निरंतरं वेमाणिया उववज्जंति? संतरं नेरइया उव्वट्टंति निरंतरं नेरइया उव्वट्टंति जाव संतरं वाणमंतरा उव्वट्टंति निरंतरं वाणमंतरा उव्वट्टंति? संतरं जोइसिया चयंति निरंतरं जोइसिया चयंति संतरं वेमाणिया चयंति निरंतरं वेमाणिया चयंति? गंगेया! संतरं पि नेरइया उववज्जंति निरंतरं पि नेरइया उववज्जंति जाव संतरं पि थणियकुमारा उववज्जंति निरंतरं पि थणि-यकुमारा उववज्जंति, नो संतरं पुढविक्काइया उववज्जंति निरंतरं पुढविक्काइया

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नैरयिक सान्तर उत्पन्न होते है या निरन्तर उत्पन्न होते है ? असुरकुमार सान्तर उत्पन्न होते है अथवा निरन्तर ? यावत् वैमानिक देव सान्तर उत्पन्न होते है या निरन्तर उत्पन्न होते है ? (इसी तरह) नैरयिक का उद्वर्तन सान्तर होता है अथवा निरन्तर ? यावत् वाणव्यन्तर देवो का उद्वर्त्तन सान्तर होता है या निरन्तर ? ज्योतिष्क
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३२ गांगेय Hindi 459 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तप्पभितिं च णं से गंगेये अनगारे समणं भगवं महावीरं पच्चभिजाणइ सव्वण्णुं सव्वदरिसिं। तए णं से गंगेये अनगारे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भं अंतियं चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं। तए णं से गंगेये अनगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमह-व्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरति। तए णं से गंगेये अनगारे बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता

Translated Sutra: तब से गांगेय अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को सर्वज्ञ और सर्वदर्शी के रूप में पहचाना। गांगेय अनगार ने श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की, वन्दन नमस्कार किया। उसके बाद कहा – भगवन् ! मैं आपके पास चातुर्यामरूप धर्म के बदले पंचमहाव्रतरूप धर्म को अंगीकार करना चाहता हूं। इस प्रकार सारा वर्णन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 460 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकुंडग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। बहुसालए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्ते नामं माहणे परिवसइ–अड्ढे दित्ते वित्ते जाव वहुजणस्स अपरिभूए रिव्वेद-जजुव्वेद-सामवेद-अथव्वणवेद-इतिहासपंचमाणं निघंटुछट्ठाणं–चउण्हं वेदाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं सारए धारए पारए सडंगवी सट्ठितंतविसारए, संखाणे सिक्खा कप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोतिसामयणे, अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु नयेसु सुपरिनिट्ठिए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे जाव अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तस्स णं उसभदत्तस्स माहणस्स देवानंदा नामं

Translated Sutra: उस काल और समय में ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर था। वहाँ बहुशाल नामक चैत्य था। उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर में ऋषभदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था। वह आढ्‌य, दीप्त, प्रसिद्ध, यावत् अपरिभूत था। वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वणवेद में निपुण था। स्कन्दक तपास की तरह वह भी ब्राह्मणों के अन्य बहुत से नयों में निष्णात
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 461 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा देवानंदा माहणी धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहति, पच्चोरुहित्ता बहूहिं खुज्जाहिं जाव चेडियाचक्कवाल-वरिसधर-थेरकंचुइज्ज-महत्तरग-वंदपरिक्खित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा–१. सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए २. अचित्ताणं दव्वाणं अविमोयणयाए ३. विणयोणयाए गायलट्ठीए ४. चक्खुप्फासे अंजलिपग्ग-हेणं ५. मणस्स एगत्तीभावकरणेणं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता उसभदत्तं माहणं पुरओ कट्टु ठिया चेव सपरिवारा सुस्सूसमाणी नमंसमाणी

Translated Sutra: देवानन्दा ब्राह्मणी भी धार्मिक उत्तम रथ से नीचे उतरी और अपनी बहुत – सी दासियों आदि यावत् महत्तरिका – वृन्द से परिवृत्त हो कर श्रमण भगवान् महावीर के सम्मुख पंचविध अभिगमपूर्वक गमन किया। वे पाँच अभिगम है – सचित द्रव्यों का त्याग करना, अचित द्रव्यों का त्याग न करता, विनय से शरीर को अवनत करना, भगवान् के दृष्टिगोचर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 463 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स पच्चत्थिमे णं एत्थ णं खत्तियकुंडग्गामे नामं नयरे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं खत्तियकुंडग्गामे नयरे जमाली नामं खत्तियकुमारे परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूते, उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसतिबद्धेहिं णाडएहिं वरतरुणीसंपउत्तेहिं उवनच्चिज्जमाणे-उवनच्चिज्जमाणे, उवगिज्जमाणे-उवगिज्जमाणे, उव-लालिज्जमाणे-उवलालिज्जमाणे, पाउस-वासारत्त-सरद-हेमंत-वसंत-गिम्ह-पज्जंते छप्पि उऊ जहाविभवेणं माणेमाणे, कालं गाले-माणे, इट्ठे सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुब्भवमाणे विहरइ। तए णं खत्तियकुण्डग्गामे

Translated Sutra: उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर से पश्चिम दिशा में क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर था। (वर्णन) उस क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर में जमालि नाम का क्षत्रियकुमार रहता था। वह आढ्‌य, दीप्त यावत् अपरिभूत था। वह जिसमें मृदंग वाद्य की स्पष्ट ध्वनि हो रही थी, बत्तीस प्रकार के नाटको के अभिनय और नृत्य हो रहे थे, अनेक प्रकार
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 464 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महयाभडचडगर पहकरवंदपरिक्खित्ते, जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गेहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं

Translated Sutra: श्रमण भगवान् महावीर के पास से धमृ सुन कर और उसे हृदयंगम करके हर्षित और सन्तुष्ट क्षत्रियकुमार जमालि यावत् उठा और खड़े होकर उसने श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार आदक्षिण प्रदक्षिणा की यावत् वन्दन – नमन किया और कहा – ‘‘भगवन् ! मैं र्निग्रन्थ – प्रवचन पर श्रद्धा करता हूं। भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ – प्रवचन पर प्रतीत
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 465 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! खत्तियकुंडग्गामं नयरं सब्भिंतरबाहिरियं आसिय-सम्मज्जिओवलित्तं जहा ओववाइए जाव सुगंधवरगंधगंधियं गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य, करेत्ता य कारवेत्ता य एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ते वि तहेव पच्चप्पिणंति। तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया दोच्चं पि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! जमालिस्स खत्तियकुमारस्स महत्थं महग्घ महरिहं विपुलं निक्खमणाभिसेयं उवट्ठवेह। तए णं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव उवट्ठवेंति। तए

Translated Sutra: तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा – शीघ्र ही क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के अन्दर और बाहर पानी का छिड़काव करो, झाड़ कर जमीन की सफाई करके उसे लिपाओ, इत्यादि औपपातिक सूत्र अनुसार यावत् कार्य करके उन कौटुम्बिक पुरुषों ने आज्ञा वापस सौंपी। क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने दुबारा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 466 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली अनगारे अन्नया कयाइ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अनगारस्स एयमट्ठं नो आढाइ, नो परिजाणइ, तुसिणीए संचिट्ठइ। तए णं से जमाली अनगारे समणं भगवं महावीरं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं बहिया जनवयविहारं विहरित्तए। तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अनगारस्स दोच्चं पि, तच्चं

Translated Sutra: तदनन्तर एक दिन जमालि अनगार श्रमण भगवान् महावीर के पास आए और भगवान् महावीर को वन्दना – नमस्कार करके इस प्रकार बोले – भगवन् ! आपकी आज्ञा प्राप्त होने पर मैं पांच सौ अनगारों के साथ इस जनपद से बाहर विहार करना चाहता हूँ। यह सुनकर श्रमण भगवान् महावीर ने जमालि अनगार की इस बात को आदर नहीं दिया, न स्वीकार किया। वे मौन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 467 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली अनगारे अन्नया कयाइ ताओ रोगायंकाओ विप्पमुक्के हट्ठे जाए, अरोए वलियसरीरे साव-त्थीओ नयरीओ कोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुव्वानुपुव्विं चरमाणे, गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी–जहा णं देवानुप्पियाणं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्थावक्कमणेणं अव-क्कंता, नो खलु अहं तहा छउमत्थावक्कमणेणं अवक्कंते, अहं णं उप्पन्ननाण-दंसणधरे अरहा जिने केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवक्कंते। तए

Translated Sutra: तदन्तर किसी समय जमालि – अनगार उक रोगातंक से मुक्त और हृष्ट हो गया तथा नीरोग और बलवान् शीर वाला हुआ; तब श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान से निकला और अनुक्रम से विचरण करता हुआ एवं ग्रामनुग्राम विहार करता हुआ, जहाँ चम्पा नगरी थी और जहाँ पूर्णभद्र चैत्य था, जिसमें कि श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, उनके पास आया।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 468 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं भगवं गोयमे जमालिं अनगारं कालगयं जाणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासि कुसिस्से जमाली नामं अनगारे से णं भंते! जमाली अनगारे कालमासे कालं किच्चा कहिं गए? कहिं उववन्ने? गोयमादी! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी– एवं खलु गोयमा! ममं अंतेवासी कुसिस्से जमाली नामं अनगारे, से णं तदा ममं एवमाइक्खमाणस्स एवं भासमाणस्स एवं पण्णवेमाणस्स एवं परूवेमाणस्स एतमट्ठं नो सद्दहइ नो पत्तियइ नो रोएइ, एतमट्ठं असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे, दोच्चं पि ममं

Translated Sutra: जमालि अनगार को कालधर्म प्राप्त हुआ जान कर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर के पास आए और वन्दना नमस्कार करके पूछा – भगवन् ! यह निश्चित है कि जमालि अनगार आप देवानुप्रिय का अन्तेवासी कुशिष्य था भगवन् ! वह जमालि अनगार काल के समय काल करके कहाँ उत्पन्न हुआ है ? श्रमण भगवानम् महावीर ने भगवान् गौतमस्वामी से कहा – गौतम
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३३ कुंडग्राम Hindi 469 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: कतिविहा णं भंते! देवकिव्विसिया पन्नत्ता? गोयमा! तिविहा देवकिव्विसिया पन्नत्ता, तं जहा–तिपलिओवमट्ठिइया, तिसागरोवमट्ठिइया, तेरससागरोवमट्ठिइया। कहिं णं भंते! तिपलिओवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति? गोयमा! उप्पिं जोइसियाणं, हिट्ठिं सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिपलिओवमट्ठिइया देव-किव्विसिया परिवसंति। कहिं णं भंते! तिसागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति? गोयमा! उप्पिं सोहम्मीसानाणं कप्पाणं, हिट्ठिं सणंकुमार-माहिंदेसु कप्पेसु, एत्थ णं तिसागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति। कहिं णं भंते! तेरससागरोवमट्ठिइया देवकिव्विसिया परिवसंति? गोयमा! उप्पिं बंभलोगस्स

Translated Sutra: भगवन् ! किल्विषिक देव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! तीन प्रकार के – तीन पल्योपम की स्थिति वाले, तीन सागरोपम की स्थिति वाले और तेरह सागरोपम की स्थिति वाले ! भगवन् ! तीन पल्योपम की स्थिति वाले किल्विषिक देव कहाँ रहते हैं ? गौतम ! ज्योतिष्क देवों के ऊपर और सौधर्म – ईशान कल्पों के नीचे तीन पल्योपम की स्थिति वाले देव रहते
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१०

उद्देशक-२ संवृत्त अणगार Hindi 481 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भिक्खू य अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता से णं तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा। भिक्खू य अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता तस्स णं एवं भवइ–पच्छा वि णं अहं चरिमकालसमयंसि एयस्स ठाणस्स आलोएस्सामि, पडिक्कमिस्सामि, निंदिस्सामि, गरिहिस्सामि, विउट्टिस्सामि, विसोहिस्सामि, अकरणयाए अब्भुट्ठिस्सामि, अहारियं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जिस्सामि, से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयं पडिक्कंते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा, से णं तस्स ठाणस्स आलोइय-पडिक्कंते कालं करेइ अत्थि तस्स आराहणा। भिक्खू

Translated Sutra: कोई भिक्षु किसी अकृत्य का सेवन करके यदि उस अकृत्यस्थान की आलोचना तथा प्रतिक्रमण किये बिना ही काल कर जाता है तो उसके आराधना नहीं होती। यदि वह भिक्षु उस सेवित अकृत्यस्थान की आलोचना और प्रतिक्रमण करके काल करता है, तो उसके आराधना होती है। कदाचित् किसी भिक्षु ने किसी अकृत्यस्थान का सेवन कर लिया, किन्तु बाद में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१०

उद्देशक-३ आत्मऋद्धि Hindi 484 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! आसइस्सामो, सइस्सामो, चिट्ठिस्सामो, निसिइस्सामो, तुयट्टिस्सामो–पन्नवणी णं एस भाया? न एसा भासा मोसा? हंता गोयमा! आसइस्सामो, सइस्सामो, चिट्ठिस्सामो, निसिइस्सामो, तुयट्टिस्सामो–पन्नवणी णं एसा भासा, न एसा भासा मोसा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: इन बारह प्रकार की भाषाओं में ‘हम आश्रय करेंगे, शयन करेगें, खड़े रहेंगे, बैठेंगे और लेटेंगे’ इत्यादि भाषण करना क्या प्रज्ञापनी भाषा कहलाती है और ऐसा भाषा मृषा नहीं कहलाती है ? हॉं, गौतम ! यह आश्रय करेंगे, इत्यादि भाषा प्रज्ञापनी भाषा है, यह भाषा मृषा नहीं है। हे, भगवान् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है! आमंत्रणी,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१०

उद्देशक-३ आत्मऋद्धि Hindi 486 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: अणभिग्गहिया भासा भासा य अभिग्गहम्मि बोधव्वा। संसयकरणी भासा वोयड मव्वोयडा चेव ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ४८४
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१०

उद्देशक-४ श्यामहस्ती Hindi 487 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं से सामहत्थी अनगारे जायसड्ढे जाव उट्ठाए

Translated Sutra: उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था (वर्णन) वहाँ द्युतिपलाश नामक उद्यान था। वहाँ श्रमण भगवान महावीर का समवसरण हुआ यावत्‌ परीषद्‌ आई और वापस लौट गई। उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीरस्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार थे। वे ऊर्ध्वजानु यावत्‌ विचरण करते थे। उस काल और उस समय में
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१०

उद्देशक-५ देव Hindi 489 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमस्स महारन्नो कति अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कनगा, कनगलता, चित्तगुत्ता, वसुंधरा। तत्थ णं एगमेगाए देवीए एगमेगं देवीसहस्सं परिवारे पन्नत्ते। पभू णं ताओ एगामेगा देवी अन्नं एगमेगं देवीसहस्सं परियारं विउव्वित्तए? एवामेव सपुव्वावरेणं चत्तारि देवीसहस्सा। सेत्तं तुडिए। पभू णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सोमे महाराया सोमाए रायहानीए, सभाए सुहम्माए, सोमंसि सीहासणंसि तुडिएणं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? अवसेसं जहा चमरस्स, नवरं–परियारो जहा सूरियाभस्स।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असुरेन्द्र असुरकुमारराज चमर के लोकपाल सोम महाराज की कितनी अग्रमहिषियाँ हैं ? आर्यो! चार यथा – कनका, कनकलता, चित्रगुप्ता और वसुन्दधरा। इनमें से प्रत्येक देवी का एक – एक हजार देवियों का परिवार है। इनमें से प्रत्येक देवी एक – एक हजार देवियों के परिवार की विकुर्वणा कर सकती है। इस प्रकार पूर्वापर सब मिलकर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१०

उद्देशक-६ सभा Hindi 491 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं जह सूरियाभे, तहेव मानं तहेव उववाओ । सक्कस्स य अभिसेओ, तहेव जह सूरियाभस्स ॥

Translated Sutra: सूर्याभविमान के समान विमान – प्रमाण तथा उपपात अभिषेक, अलंकार तथा अर्चनिका, यावत्‌ आत्म – रक्षक इत्यादि सारा वर्णन सूर्याभदेव के समान जानना चाहिए। उसकी स्थिति (आयु) दो सागरोपम की है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१०

उद्देशक-७ अन्तर्द्वीप Hindi 493 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं एगूरुयमनुस्साणं एगूरुयदीवे नामं दीवे पन्नत्ते? एवं जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं जाव सुद्धदंतदीवो त्ति। एए अट्ठावीसं उद्देसगा भाणियव्वा। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! उत्तरदिशा में रहने वाले एकोरुक मनुष्यों का एकोरुकद्वीप नामक द्वीप कहाँ है ? गौतम ! एको – रुकद्वीप से लेकर यावत्‌ शुद्धदन्तद्वीप तक का समस्त वर्णन जीवाभिगमसूत्र अनुसार जानना चाहिए। इस प्रकार अट्ठाईस द्वीपों के ये अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए। हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है। भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-१ उत्पल Hindi 494 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उप्पल सालु पलासे कुंभी नालीय पउम कण्णीय । नलिन सिव लोग कालाऽऽलभिय दस दो य एक्कारे ॥

Translated Sutra: ग्यारहवें शतक के बारह उद्देशक इस प्रकार हैं – (१) उत्पल, (२) शालूक, (३) पलाश, (४) कुम्भी, (५) नाडीक, (६) पद्म, (७) कर्णिका, (८) नलिन, (९) शिवराजर्षि, (१०) लोक, (११) काल और (१२) आलभिक।
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शतक-११

उद्देशक-१ उत्पल Hindi 495 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उववाओ परिमाणं अवहारुच्चत्त बंध वेदे य। उदए उदीरणाए लेसा दिट्ठी य नाणे य ॥

Translated Sutra: १. उपपात, २. परिमाण, ३. अपहार, ४. ऊंचाई (अवगाहना), ५. बन्धक, ६. वेद, ७. उदय, ८. उदीरणा, ९. लेश्या, १०. दृष्टि, ११. ज्ञान। तथा – १२. योग, १३. उपयोग, १४. वर्ण – रसादि, १५. उच्छ्‌वास, १६. आहार, १७. विरति, १८. क्रिया, १९. बन्धक, २०. संज्ञा, २१. कषाय, २२. स्त्रीवेदादि, २३. बन्ध। २४. संज्ञी, २५. इन्द्रिय, २६. अनुबन्ध, २७. संवेध, २८. आहार, २९. स्थिति,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-१ उत्पल Hindi 498 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव पज्जुवासमाणे एवं वयासी–उप्पले णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे? अनेगजीवे? गोयमा! एगजीवे, नो अनेगजीवे। तेण परं जे अन्ने जीवा उववज्जंति ते णं नो एगजीवा अनेगजीवा। ते णं भंते! जीवा कतोहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो उववज्जंति? देवेहिंतो उववज्जंति? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, मनुस्सेहिंतो उववज्जंति देवेहिंतो वि उववज्जंति। एवं उववाओ भाणियव्वो जहा वक्कंतीए वणस्सइकाइयाणं जाव ईसानेति। ते णं भंते! जीवा एगसमए णं केवइया उववज्जंति? गोयमा! जहन्नेणं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ पर्युपासना करते हुए गौतम स्वामी ने यावत्‌ इस प्रकार पूछा – भगवन्‌ ! एक पत्र वाला उत्पल एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला ? गौतम ! एक जीव वाला है, अनेक जीव वाला नहीं। उसके उपरांत जब उस उत्पल में दूसरे जीव उत्पन्न होते हैं, तब वह एक जीव वाला नहीं रहकर अनेक जीव वाला बन जाता है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-२ थी ८ शालूक आदि Hindi 505 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नलिने णं भंते! एगपत्तए किं एगजीवे? अनेगजीवे? एवं चेव निरवसेसं जाव अनंतखुत्तो। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! एक पत्ते वाला नलिन एक जीव वाला होता है, या अनेक जीव वाला ? गौतम ! इसका समग्र वर्णन उत्पल उद्देशक के समान करना चाहिए और सभी जीव अनन्त बार उत्पन्न हो चूके हैं, यहाँ तक कहना। ‘हे भगवन्‌ ! यह इसी प्रकार है।’
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-९ शिवराजर्षि Hindi 506 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। तस्स णं हत्थिणापुरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे, एत्थ णं सहसंबवने नामं उज्जाणे होत्था–सव्वोउय-पुप्फ-फलसमिद्धे रम्मे नंदनवनसन्निभप्पगासे सुहसीतलच्छाए मनोरमे सादुप्फले अकंटए, पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे। तत्थ णं हत्थिणापुरे नगरे सिवे नामं राया होत्था–महयाहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे–वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रन्नो धारिणी नामं देवी होत्था–सुकुमालपाणिपाया–वण्णओ। तस्स णं सिवस्स रन्नो पुत्ते धारिणीए अत्तए सिवभद्दे नामं कुमारे होत्था–सुकुमालपाणिपाए, जहा सूरियकंते जाव रज्जं

Translated Sutra: उस काल और उस समय में हस्तिनापुर नाम का नगर था। उस हस्तिनापुर नगर के बाहर ईशानकोण में सहस्राम्रवन नामक उद्यान था। वह सभी ऋतुओं के पुष्पों और फलों से समृद्ध था। रम्य था, नन्दनवन के समान सुशोभित था। उसकी छाया सुखद और शीतल थी। वह मनोरम, स्वादिष्ट फलयुक्त, कण्टकरहित प्रसन्नता उत्पन्न करने वाला यावत्‌ प्रतिरूप
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-९ शिवराजर्षि Hindi 508 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता किढिण-संकाइयगं गिण्हइ, गिण्हित्ता दाहिणगं दिसं पोक्खेइ, दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं, सेसं तं चेव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ। तए णं से सिवे रायरिसी तच्चं छट्ठक्खमणं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ। तए णं से सिवे रायरिसि तच्चे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव

Translated Sutra: फिर मधु, घी और चावलों का अग्नि में हवन किया और चरु (बलिपात्र) में बलिद्रव्य लेकर बलिवैश्वदेव को अर्पण किया और तब अतिथि की पूजा की और उसके बाद शिवराजर्षि ने स्वयं आहार किया। तत्पश्चात्‌ उन शिवराजर्षि ने दूसरी बेला अंगीकार किया और दूसरे बेले के पारणे के दिन शिवराजर्षि आतापनाभूमि से नीचे ऊतरे, वल्कल के वस्त्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-११

उद्देशक-१० लोक Hindi 511 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोए णं भंते! केमहालए पन्नत्ते? गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव-समुद्दाणं सव्वब्भंतराए जाव एगं जोयणसयसहस्सं आयाम-विक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलससहस्साइं दोन्निय सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस अंगुलाइं अद्धंगुलगं च किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं। तेणं कालेणं तेणं समएणं छ देवा महिड्ढीया जाव महासोक्खा जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए मंदरचलियं सव्वओ समंता संपरि-क्खित्ताणं चिट्ठेज्जा। अहे णं चत्तारि दिसाकुमारीओ महत्तरियाओ चत्तारि बलिपिंडे गहाय जंबुद्दीवस्स दीवस्स चउसु वि दिसासु बहियाभिमुहीओ ठिच्चा ते चत्तारि बलिपिंडे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! लोक कितना बड़ा कहा गया है ? गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप, समस्त द्वीप – समुद्रों के मध्य में है; यावत्‌ इसकी परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। किसी काल और किसी समय महर्द्धिक यावत्‌ महासुख – सम्पन्न छह देव, मन्दर पर्वत पर मन्दर की चूलिका
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