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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-२

अध्ययन-१३ [६] परक्रिया विषयक

Hindi 507 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से से परो सुद्धेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे, से से परो असुद्धेणं वा वइ-बलेणं तेइच्छं आउट्टे, से से परो गिलाणस्स सचित्ताणि कंदाणि वा, मूलाणि वा, तयाणि वा, हरियाणि वा खणित्तु वा, कड्ढेत्तु वा, कड्ढावेत्तु वा तेइच्छं आउट्टेज्जा–नो तं साइए, नो तं नियमे। कडुवेयणा कट्टुवेयणा पाण-भूय-जीव-सत्ता वेदणं वेदेंति। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिते सहिते सदा जए, सेयमिणं मण्णेज्जासि।

Translated Sutra: यदि कोई शुद्ध वाग्बल से अथवा अशुद्ध मंत्रबल से साधु की व्याधि उपशान्त करना चाहे, अथवा किसी रोगी साधु की चिकित्सा सचित्त कंद, मूल, छाल या हरी को खोदकर या खींचकर बाहर नीकाल कर या नीकलवा कर चिकित्सा करना चाहे, तो साधु उसे मन से पसंद न करे, न ही वचन से या काया से कराए। यदि साधु के शरीर में कठोर वेदना हो तो समस्त प्राणी,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-२

अध्ययन-१४ [७] अन्योन्य क्रिया

Hindi 508 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नमन्नकिरियं अज्झत्थियं संसेसियं– नो तं साइए, नो तं नियमे। से अन्नमन्नं पादाइं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे। से अन्नमन्नं पादाइं संवाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे। से अन्नमन्नं पादाइं फूमेज्ज वा, रएज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे। से अन्नमन्नं पादाइं तेल्लेण वा, घएण वा, वसाए वा मक्खेज्ज वा, भिलिंगेज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे। से अन्नमन्नं पादाइं लोद्धेण वा, कक्केण वा, चुण्णेण वा, वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा, उव्वलेज्ज वा– नो तं साइए, नो तं नियमे। से अन्नमन्नं पादाइं सीओदग-वियडेण वा, उसिणोदग-वियडेण वा उच्छोलेज्ज वा, पधोएज्ज

Translated Sutra: साधु या साध्वी की अन्योन्यक्रिया जो कि परस्पर में सम्बन्धित है, कर्मसंश्लेषजननी है, इसलिए साधु या साध्वी इसको मन से न चाहे न वचन एवं काया से करने के लिए प्रेरित करे। साधु या साध्वी परस्पर एक दूसरे के चरणों को पोंछकर एक बार या बार – बार अच्छी तरह साफ करे तो मन से भी इसे न चाहे, न वचन और काया से करने की प्रेरणा करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 509 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे यावि होत्था – १. हत्थुत्तराहिं चुए चइत्ता गब्भं वक्कंते, २. हत्थुत्तराहिं गब्भाओ गब्भं साहरिए, ३. हत्थुत्तराहिं जाए, ४. हत्थुत्तराहिं सव्वओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए, ५. हत्थुत्तराहिं कसिणे पडिपुण्णे अव्वाघाए निरावरणे अणंते अनुत्तरे केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे। साइणा भगवं परिनिव्वुए।

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के पाँच कल्याणक उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हुए। भगवान का उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में देवलोक से च्यवन हुआ, च्यवकर वे गर्भ में उत्पन्न हुए। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में गर्भ से गर्भान्तर में संहरण किये गए। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में भगवान का जन्म हुआ। उत्तराफाल्गुनी
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 510 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए-सुसमसुसमाए समाए वीइक्कंताए, सुसमाए समाए वीतिक्कंताए, सुसमदुसमाए समाए वीतिक्कंताए, दुसमसुसमाए समाए बहु वीतिक्कंताए–पण्णहत्तरीए वासेहिं, मासेहिं य अद्धणवमेहिं सेसेहिं, जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे, अट्ठमे पक्खे–आसाढसुद्धे, तस्सणं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं, महावि-जय-सिद्धत्थ-पुप्फुत्तर-पवर-पुंडरीय-दिसासोवत्थिय-वद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाइं आउयं पालइत्ता आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता इह खलु जबुद्दीवे दीवे, भारहे वासे, दाहिणड्ढभरहे दाहिणमाहणकुंडपुर-सन्निवेसंसि

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने इस अवसर्पिणी काल के सुषम – सुषम नामक आरक, सुषम आरक और सुषम – दुषम आरक के व्यतीत होने पर तथा दुषम – सुषम नामक आरक के अधिकांश व्यतीत हो जाने पर और जब केवल ७५ वर्ष साढ़े आठ माह शेष रह गए थे, तब ग्रीष्म ऋतु के चौथे मास, आठवे पक्ष, आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की रात्रि को; उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 511 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे कासवगोत्ते। तस्स णं इमे नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा – १. अम्मापिउसंतिए ‘वद्धमाणे’ २. सह-सम्मुइए ‘समणे’ ३. ‘भीमं भयभेरवं उरालं अचेलयं परिसहं सहइ’ त्ति कट्टु देवेहिं से नामं कयं ‘समणे भगवं महावीरे’। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पिआ कासवगोत्तेणं। तस्स णं तिण्णि नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा–१. सिद्धत्थे ति वा २. सेज्जंसे ति वा ३. जसंसे ति वा। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मा वासिट्ठ-सगोत्ता। तीसेणं तिण्णि नामधेज्जा एवमाहिज्जंति, तं जहा–१. तिसला ति वा २. विदेहदिण्णा ति वा ३. पियकारिणी ति वा। समणस्स णं भगवओ महावीरस्स पित्तियए ‘सुपासे’ कासवगोत्तेणं। समणस्स

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर के पिता काश्यप गोत्र के थे। उनके तीन नाम कहे जाते हैं, सिद्धार्थ, श्रेयांस और यशस्वी। श्रमण भगवान महावीर की माता वाशिष्ठ गोत्रीया थीं। उनके तीन नाम कहे जाते हैं – त्रिशला, विदेहदत्ता और प्रियकारिणी। चाचा ‘सुपार्श्व’ थे, जो काश्यप गौत्र के थे। ज्येष्ठ भ्राता नन्दीवर्द्धन थे, जो काश्यप
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 512 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि होत्था। ते णं बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पालइत्ता, छण्हं जीवनिकायाणं संरक्खणनिमित्तं आलोइत्ता निंदित्ता गरहित्ता पडिक्कमित्ता, अहारिहं उत्तरगुणं पायच्छित्तं पडिवज्जित्ता, कुससंथारं दुरुहित्ता भत्तं पच्चक्खाइंति, भत्तं पच्चक्खाइत्ता अपच्छिमाए मारणंतियाए सरीर-संलेहणाए सोसियसरीरा कालमासे कालं किच्चा तं सरीरं विप्पजहित्ता अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववण्णा। तओ णं आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं चुए चइत्ता महाविदेहवासे चरिमेणं उस्सासेणं सिज्झिस्संति बुज्झिस्संति मुच्चिस्संति परिणिव्वाइस्संति

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर के माता पिता पार्श्वनाथ भगवान के अनुयायी थे, दोनों श्रावक – धर्म का पालन करने वाले थे। उन्होंने बहुत वर्षों तक श्रावक – धर्म का पालन करके षड्‌जीवनिकाय के संरक्षण के निमित्त आलोचना, आत्मनिन्दा, आत्मगर्हा एवं पाप दोषों का प्रतिक्रमण करके, मूल और उत्तर गुणों के यथायोग्य प्रायश्चित्त स्वीकार
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 513 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे नाते नायपुत्ते नायकुल-विणिव्वत्ते विदेहे विदेहदिण्णे विदेहजच्चे विदेहसुमाले तीसं वासाइं विदेहत्ति कट्टु अगारमज्झे वसित्ता अम्मापिऊहिं कालगएहिं देवलोगमणुपत्तेहिं समत्तपइण्णे चिच्चा हिरण्णं, चिच्चा सुवण्णं, चिच्चा बलं, चिच्चा वाहणं, चिच्चा धण-धण्ण-कणय-रयण-संत-सार-सावदेज्जं, विच्छड्डेत्ता विगोवित्ता विस्साणित्ता, दायारे सु णं ‘दायं पज्जभाएत्ता’, संवच्छरं दलइत्ता जे से हेमंताणं पढमेमासे पढमे पक्खे–मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिर बहुलस्स दसमीपक्खेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगोवगएणं अभिणिक्खमनाभिप्पाए यावि

Translated Sutra: उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर, जो कि ज्ञातपुत्र के नाम से प्रसिद्ध हो चूके थे, ज्ञात कुल से विनिवृत्त थे, देहासक्ति रहित थे, विदेहजनों द्वारा अर्चनीय थे, विदेहदत्ता के पुत्र थे, सुकुमार थे। भगवान महावीर तीस वर्ष तक विदेह रूप में गृह में निवास करके माता – पिता के आयुष्य पूर्ण करके देवलोक को प्राप्त हो
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 514 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संवच्छरेण होहिति, अभिणिक्खमणं तु जिणवरिंदस्स । तो अत्थ-संपदाणं, पव्वत्तई पुव्वसूराओ ॥

Translated Sutra: श्री जिनवरेन्द्र तीर्थंकर भगवान का अभिनिष्क्रमण एक वर्ष पूर्ण होते ही होगा, अतः वे दीक्षा लेने से एक वर्ष पहले सांवत्सरिक – वर्षी दान प्रारम्भ कर देते हैं। प्रतिदिन सूर्योदय से लेकर एक प्रहर दिन चढ़ने तक उनके द्वारा अर्थ का दान होता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 515 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगा हिरण्णकोडी, अट्ठेव अणूणया सयसहस्सा । सुरोदयमाईयं, दिज्जइ जा पायरासो त्ति ॥

Translated Sutra: प्रतिदिन सूर्योदय से एक प्रहर पर्यन्त, जब तक वे प्रातराश नहीं कर लेते, तब तक, एक करोड़ आठ लाख से अन्यून स्वर्णमुद्राओं का दान दिया जाता है। इस प्रकार वर्ष में कुल तीन अरब, ८८ करोड़, ८० लाख स्वर्णमुद्राओं का दान भगवान ने दिया। सूत्र – ५१५, ५१६
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 516 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तिण्णेव य कोडिसया, अट्ठासीति च होंति कोडीओ । असिंति च सयसहस्सा, एयं संवच्छरे दिण्णं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ५१५
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 517 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वेसमणकुंडलधरा, देवा लोगंतिया महिड्ढीया । बोहिंति य तित्थयरं, पण्णरससु कम्म-भूमिसु ॥

Translated Sutra: कुण्डलधारी वैश्रमणदेव और महान्‌ ऋद्धिसम्पन्न लोकान्तिक देव पंद्रह कर्मभूमियों में (होने वाले) तीर्थंकर भगवान को प्रतिबोधित करते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 518 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] बंभंमि य कप्पंमि य, बोद्धव्वा कण्हराइनो मज्झे । लोगंतिया विमाणा, अट्ठसु वत्था असंखेज्जा ॥

Translated Sutra: ब्रह्म (लोक) कल्प में आठ कृष्णराजियों के मध्य आठ प्रकार के लोकान्तिक विमान असंख्यात विस्तार वाले समझने चाहिए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 519 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एए देवणिकाया, भगवं बोहिंति जिणवरं वीरं । सव्वजगजीवहियं, अरहं तित्थं पव्वत्तेहि ॥

Translated Sutra: ये सब देव निकाय (आकर) भगवान वीर – जिनेश्वर को बोधित (विज्ञप्त) करते हैं – हे अर्हन्‌ देव ! सर्व जगत के लिए हितकर धर्म – तीर्थ का प्रवर्तन करें।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 520 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स अभिणिक्खमनाभिप्पायं जानेत्ता भवनवइ-वाणमंतर-जोइसिय-विमाणवासिणो देवा य देवीओ य सएहि-सएहिं रूवेहिं, सएहिं-सएहिं नेवत्थेहिं, सएहिं-सएहिं चिंधेहिं, सव्विड्ढीए सव्वजुतीए सव्वबल-समुदएणं सयाइं-सयाइं जाण विमाणाइं दुरुहंति, सयाइं-सयाइं जाणविमाणाइं दुरुहित्ता अहाबादराइं पोग्गलाइं परिसाडेति, अहा-बादराइं पोग्गलाइं परिसाडेत्ता अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइंति, अहासुहुमाइं पोग्गलाइं परियाइत्ता उड्ढं उप्पयंति, उड्ढं उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए सिग्घाए चवलाए तुरियाए दिव्वाए देवगईए अहेणं ओवयमाणा-ओवयमाणा तिरिएणं असंखेज्जाइं दीवसमुद्दाइं

Translated Sutra: तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर के अभिनिष्क्रमण के अभिप्राय को जानकर भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव एवं देवियाँ अपने – अपने रूप से, अपने – अपने वस्त्रों में और अपने – अपने चिह्नों से युक्त होकर तथा अपनी – अपनी समस्त ऋद्धि, द्युति और समस्त बल – समुदाय सहित अपने – अपने यान – विमानों पर चढ़ते हैं फिर सब
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 521 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सीया उवणीया, जिणवरस्स जरमरणविप्पमुक्कस्स । ओसत्तमल्लदामा, जलथलयदिव्वकुसुमेहिं ॥

Translated Sutra: जरा – मरण से विमुक्त जिनवर महावीर के लिए शिबिका लाई गई, जो जल और स्थल पर उत्पन्न होने वाले दिव्यपुष्पों और देव निर्मित पुष्पमालाओं से युक्त थी।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 522 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिवियाए मज्झयारे, दिव्वं वररयणरूवचेवइयं । सीहासणं महरिहं, सपादपीढं जिणवरस्स ॥

Translated Sutra: उस शिबिका के मध्य में दिव्य तथा जिनवर के लिए श्रेष्ठ रत्नों की रूपराशि से चर्चित तथा पादपीठ से युक्त महामूल्यवान्‌ सिंहासन बनाया गया था।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 523 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आलइयमालमउडो, भासुरबोंदी वराभरणधारी । खोमयवत्थणियत्थो, जस्स य मोल्लं सयसहस्सं ॥

Translated Sutra: उस समय भगवान महावीर श्रेष्ठ आभूषण धारण किये हुए थे, यथास्थान दिव्य माला और मुकुट पहने हुए थे, उन्हें क्षौम वस्त्र पहनाए थे, जिसका मूल्य एक लक्ष स्वर्णमुद्रा था। इन सबसे भगवान का शरीर देदीप्यमान हो रहा था।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 524 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छट्ठेण उ भत्तेणं, अज्झवसाणेण सोहणेण जिनो । लेसाहिं विसुज्झंतो, आरुहइ उत्तमं सीयं ॥

Translated Sutra: उस समय प्रशस्त अध्यवसाय से, षष्ठ भक्त प्रत्याख्यान की तपश्चर्या से युक्त शुभ लेश्याओं से विशुद्ध भगवान उत्तम शिबिका में बिराजमान हुए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 525 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सीहासणे णिविट्ठो, सक्कीसाणा य दोहिं पासेहिं । वीयंति चामराहिं, मणिरयणविचित्तदंडाहिं ॥

Translated Sutra: जब भगवान शिबिका में स्थापित सिंहासन पर बिराजमान हो गए, तब शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र उसके दोनों ओर खड़े होकर मणि – रत्नादि से चित्र – विचित्र हत्थे – डंडे वाले चामर भगवान पर ढुलाने लगे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 526 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं उक्खित्ता, माणुसेहिं साहट्ठरोमपुलएहिं । पच्छा वहंति देवा, सुरअसुरगरुलणागिंदा ॥

Translated Sutra: पहले उन मनुष्यों ने उल्लासवश वह शिबिका उठाई, जिनके रोमकूप हर्ष से विकसित हो रहे थे। तत्पश्चात्‌ सूर, असुर, गरुड़ और नागेन्द्र आदि देव उसे उठाकर ले चले।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 527 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुरओ सुरा वहंती, असुरा पुण दाहिणंमि पासंमि । अवरे वहंति गरुला, णागा पुण उत्तरे पासे ॥

Translated Sutra: उस शिबिका को पूर्वदिशा की ओर से सुर (वैमानिक देव) उठाकर ले चलते हैं, जबकि असुर दक्षिण दिशा की ओर से, गरुड़ देव पश्चिम दिशा की ओर से और नागकुमार देव उत्तर दिशा की ओर से उठाकर ले चलते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 528 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वनसंडं व कुसुमियं, पउमसरो वा जहा सरयकाले । सोहइ कुसुमभरेणं, इय गयणयलं सुरगणेहिं ॥

Translated Sutra: उस समय देवों के आगमन से आकाशमण्डल वैसा ही सुशोभित हो रहा था, जैसे खिले हुए पुष्पों से वनखण्ड, या शरत्काल में कमलों के समूह से पद्म सरोवर।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 529 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सिद्धत्थवणं व जहा, कणियारवणं व चंपगवणं वा । सोहइ कुसुमभरेणं, इय गयणयलं सुरगणेहिं ॥

Translated Sutra: उस समय देवों के आगमन से गगनतल भी वैसा ही सुहावना लग रहा था, जैसे सरसों, कचनार या कनेर या चम्पकवन फूलों के झुण्ड से सुहावना प्रतीत होता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 530 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वरपडहभेरिज्झल्लरि-संखसयसहस्सिएहिं तूरेहिं । गयणतले धरणितले, तूर-णिणाओ परमरम्मो ॥

Translated Sutra: उस समय उत्तम ढोल, भेरी, झांझ, शंख आदि लाखों वाद्यों का स्वर – निनाद गगनतल और भूतल पर परम – रमणीय प्रतीत हो रहा था।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 531 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ततविततं घणझुसिरं, आउज्जं चउविहं बहुविहीयं । वायंति तत्थ देवा, बहूहिं आणट्टगसएहिं ॥

Translated Sutra: वहीं पर देवगण बहुत से – शताधिक नृत्यों और नाट्यों के साथ अनेक तरह के तत, वितत, घन और शुषिर, यों चार प्रकार के बाजे बजा रहे थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 532 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं जे से हेमंताणं पढमे मासे पढमे पक्खे–मग्गसिरबहुले, तस्स णं मग्गसिर बहुलस्स दसमीपक्खेणं, सुव्वएणं दिवसेणं, विजएणं मुहुत्तेणं, ‘हत्थुत्तराहिं नक्खत्तेणं’ जोगोवगएणं, पाईणगामिणीए छायाए, वियत्ताए पोरिसीए, छट्ठेण भत्तेणं अपाणएणं, एगसाडगमायाए, चंदप्पहाए सिवियाए सहस्सवाहिणीए, सदेवमणुयासुराए परिसाए समण्णिज्जमाणे-समण्णिज्जमाणे उत्तरखत्तिय कुंडपुर-संणिवेसस्स मज्झंमज्झेणं णिगच्छइ, णिगच्छित्ता जेणेव नायसंडे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ईसिंरयणिप्पमाणं अच्छुप्पेणं भूमिभागेणं सणियं-सणियं चंदप्पभं सिवियं सहस्सवाहिणिं ठवेइ,

Translated Sutra: उस काल और उस समय में, जबकि हेमन्त ऋतु का प्रथम मास, प्रथम पक्ष अर्थात्‌ मार्गशीर्ष मास का कृष्णपक्ष की दशमी तिथि के सुव्रत के विजय मुहूर्त्त में, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, पूर्व गामिनी छाया होने पर, द्वीतिय पौरुषी प्रहर के बीतने पर, निर्जल षष्ठभक्त – प्रत्याख्यान के साथ एकमात्र
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 533 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिव्वो मणुस्सघोसो, तुरियणिणाओ य सक्कवयणेण । खिप्पामेव णिलुक्को, जाहे पडिवज्जइ चरित्तं ॥

Translated Sutra: जिस समय भगवान चारित्र ग्रहण कर रहे थे, उस समय शक्रेन्द्र के आदेश से शीघ्र ही देवों के दिव्य स्वर, वाद्य के निनाद और मनुष्यों के शब्द स्थगित कर दिये।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 534 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पडिवज्जित्तु चरित्तं, अहोणिसिं सव्वपाणभूतहितं । साहट्ठलोमपुलया, पयया देवा निसामिंति ॥

Translated Sutra: भगवान चारित्र अंगीकार करके अहर्निश समस्त प्राणियों और भूतों के हित में संलग्न हो गए। सभी देवों ने यह सूना तो हर्ष से पुलकित हो उठे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 535 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सामाइयं खाओवसमियं चरित्तं पडिवन्नस्स मणपज्जवनाणे नामं नाणे समुप्पन्ने–अड्ढाइज्जेहिं दीवेहिं दोहि य समुद्देहिं सण्णीणं पंचेंदियाणं पज्जत्ताणं वियत्तमणसाणं मणोगयाइं भावाइं जाणेइ। तओ णं समणे भगवं महावीरे पव्वइते समाणे मित्त-नाति-सयण-संबंधिवग्गं पडिविसज्जेति, पडिविसज्जेत्ता इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ– ‘बारसवासाइं वोसट्ठकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं जहा–दिव्वा वा, माणुसा वा, तेरिच्छिया वा, ते सव्वे उवसग्गे समुप्पण्णे समाणे ‘अनाइले अव्वहिते अद्दीणमाणसे तिविहमणवयणकायगुत्ते’ सम्मं सहिस्सामि खमिस्सामि

Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर को क्षायोपशमिक सामायिकचारित्र ग्रहण करते ही मनःपर्यवज्ञान समुत्पन्न हुआ; वे अढ़ाई द्वीप और दो समुद्रों में स्थित पर्याप्त संज्ञीपंचेन्द्रिय, व्यक्त मन वाले जीवों के मनोगत भावों को स्पष्ट जानने लगे। उधर श्रमण भगवान महावीर ने प्रव्रजित होते ही अपने मित्र, ज्ञाति, स्वजन – सम्बन्धी वर्ग
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 536 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं पढमं भंते! महव्वयं–पच्चक्खामि सव्वं पाणाइवायं–से सुहुमं वा बायरं वा, तसं वा थावरं वा– नेव सयं पाणाइवायं करेज्जा, नेवन्नेहिं पाणाइवायं कारवेज्जा, नेवण्णं पाणाइवायं करंतं समणु-जाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा–इरियासमिए से निग्गंथे, नो इरियाअसमिए त्ति। केवली बूया– इरियाअसमिए से निग्गंथे, पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं अभिहणेज्ज वा, वत्तेज्ज वा, परियावेज्ज वा, लेसेज्ज वा, उद्दवेज्ज वा। इरियासमिए से निग्गंथे, नो इरियाअसमिए त्ति

Translated Sutra: ‘भन्ते ! मैं प्रथम महाव्रत में सम्पूर्ण प्राणातिपात का प्रत्याख्यान – करता हूँ। मैं सूक्ष्म – स्थूल और त्रस – स्थावर समस्त जीवों का न तो स्वयं प्राणातिपात करूँगा, न दूसरों से कराऊंगा और न प्राणातिपात करने वालों का अनुमोदन – करूँगा; मैं यावज्जीवन तीन करण से एवं मन – वचन – काया से इस पाप से निवृत्त होता हूँ। हे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 537 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं दोच्चं भंते! महव्वयं–पच्चक्खामि सव्वं मुसावायं वइदोसं–से कोहा वा, लोहा वा, भया वा, हासा वा, नेव सयं मुसं भासेज्जा, नेवन्नेणं मुसं भासावेज्जा, अन्नं पि मुसं भासंतं ण समणुजाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं– मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा– अणुवीइभासी से निग्गंथे, नो अणणुवीइभासी। केवली बूया– अणणुवीइभासी से निग्गंथे समावदेज्जा मोसं वयणाए। अणुवीइभासी से निग्गंथे, नो अणणुवीइभासित्ति पढमा भावणा। अहावरा दोच्चा भावणा–कोहं परिजाणइ से निग्गंथे, णोकोहणे सिया। केवली बूया–कोहपत्ते

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ भगवन्‌ ! मैं द्वीतिय महाव्रत स्वीकार करता हूँ। आज मैं इस प्रकार से मृषावाद और सदोष – वचन का सर्वथा प्रत्याख्यान करता हूँ। साधु क्रोध से, लोभ से, भय से या हास्य से न तो स्वयं मृषा बोले, न ही अन्य व्यक्ति से असत्य भाषण करो और जो व्यक्ति असत्य बोलता है, उसका अनुमोदन भी न करे। इस प्रकार तीन करणों से तथा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 538 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं तच्चं भंते! महव्वयं–पच्चक्खामि सव्वं अदिन्नादानं–से गामे वा, नगरे वा, अरण्णे वा, अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा नेव सयं अदिन्नं गेण्हिज्जा, नेवन्नेहिं अदिन्नं गेण्हावेज्जा, अन्नंपि अदिन्नं गेण्हंतं न समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा–अणुवीइमिओग्गहजाई से निग्गंथे, णोअणणुवीइ-मिओग्गहजाई। केवली बूया–अणणुवीइमिओग्गहजाई से निग्गंथे, अदिन्नं गेण्हेज्जा। अणुवीइमिओग्गहजाई से निग्गंथे, णोअणणुवीइमिओग्गहजाई

Translated Sutra: भगवन्‌ ! इसके पश्चात्‌ अब मैं तृतीय महाव्रत स्वीकार करता हूँ, इसके सन्दर्भ में मैं सब प्रकार से अदत्ता – दान का प्रत्याख्यान करता हूँ। वह इस प्रकार – वह (ग्राह्य पदार्थ) चाहे गाँव में हो, नगर में हो या अरण्य में हो, थोड़ा हो या बहुत, सूक्ष्म हो या स्थूल, सचेतन हो या अचेतन; उसे उसके स्वामी के बिना दिये न तो स्वयं ग्रहण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 539 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं चउत्थं भंते! महव्वयं–पच्चक्खामि सव्वं मेहुणं–से दिव्वं वा, माणुसं वा, तिरिक्खजोणियं वा, नेव सयं मेहुणं गच्छेज्जा, नेवन्नेहिं मेहुणं गच्छावेज्जा, अन्नंपि मेहुणं गच्छंतं न समणुज्जाणेज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा–नो निग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहइत्तए सिया। केवली बूया–निग्गंथे णं अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं कहं कहमाणे, संतिभेदा संतिविभंगा संतिकेवली-पण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा। नो निग्गंथे अभिक्खणं-अभिक्खणं इत्थीणं

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ भगवन्‌ ! मैं चतुर्थ महाव्रत स्वीकार करता हूँ, समस्त प्रकार के मैथुन – विषय सेवन का प्रत्या – ख्यान करता हूँ। देव – सम्बन्धी, मनुष्य – सम्बन्धी और तिर्यंच – सम्बन्धी मैथुन का स्वयं सेवन नहीं करूँगा, न दूसरे से मैथुन – सेवन कराऊंगा और न ही मैथुनसेवन करने वाले का अनुमोदन करूँगा। शेष समस्त वर्णन अदत्तादान
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-३

अध्ययन-१५ भावना

Hindi 540 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहावरं पंचमं भंते! महव्वयं–सव्वं परिग्गहं पच्चक्खामि–से अप्पं वा, बहुं वा, अणुं वा, थूलं वा, चित्तमंतं वा, अचित्तमंतं वा नेव सयं परिग्गहं गिण्हेज्जा, नेवन्नेहिं परिग्गहं गिण्हावेज्जा, अन्नंपि परिग्गहं गिण्हंतं ण समणुजाणिज्जा जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं–मणसा वयसा कायसा, तस्स भंते! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति। तत्थिमा पढमा भावणा–सोयओ जीवे मणुण्णामणुण्णाइं सद्दाइं सुणेइ। मणुण्णामणुण्णेहिं सद्देहिं नो सज्जेज्जा, नो रज्जेज्जा, नो गिज्झेज्जा, नो मुज्झेज्जा, नो अज्झोववज्जेज्जा, नो विणिग्घाय-मावज्जेज्जा। केवली बूया–

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ हे भगवन्‌ ! मैं पाँचवे महाव्रत को स्वीकार करता हूँ। पंचम महाव्रत के संदर्भ में मैं सब प्रकार के परिग्रह का त्याग करता हूँ। आज से मैं थोड़ा या बहुत, सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त या अचित्त किसी भी प्रकार के परिग्रह को स्वयं ग्रहण नहीं करूँगा, न दूसरों से ग्रहण कराऊंगा, और न परिग्रहण करने वालों का अनुमोदन
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 541 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अणिच्चमावासमुवेंति जंतुणो, पलोयए सोच्चमिदं अणुत्तरं । विऊसिरे विण्णु अगारबंधणं, अभीरु आरंभपरिग्गहं चए ॥

Translated Sutra: संसार के समस्त प्राणी जिन शरीर आदि में आत्माएं आवास प्राप्त करती हैं, वे सब स्थान अनित्य हैं। सर्वश्रेष्ठ मौनीन्द्र प्रवचन में कथित यह वचन सूनकर गहराई से पर्यालोचन करे तथा समस्त भयों से मुक्त बना हुआ विवेकी पुरुष आगारिक बंधनों का व्युत्सर्ग कर दे, एवं आरम्भ और परिग्रह का त्याग कर दे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 542 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहागअं भिक्खुमणंतसंजयं, अणेलिसं विण्णु चरंतमेसणं । तुदंति वायाहिं अभिद्दवं णरा, सरेहिं संगामगयं व कुंजरं ॥

Translated Sutra: उस तथाभूत अनन्त (एकेन्द्रियादि जीवों) के प्रति सम्यक्‌ यतनावान अनुपसंयमी आगमज्ञ विद्वान एवं आगमानुसार एषणा करने वाले भिक्षु को देखकर मिथ्यादृष्टि असभ्य वचनों के तथा पथ्थर आदि प्रहार से उसी तरह व्यथित कर देते हैं, जिस तरह संग्राम में वीर योद्धा, शत्रु के हाथी को बाणों की वर्षा से व्यथित कर देता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 543 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहप्पगारेहिं जणेहिं हीलिए, ससद्दफासा फरुसा उदीरिया । तितिक्खए णाणि अदुट्ठचेयसा, गिरिव्व वाएण ण संपवेवए ॥

Translated Sutra: असंस्कारी एवं असभ्य जनों द्वारा कथित आक्रोशयुक्त शब्दों तथा – प्रेरित शीतोष्णादि स्पर्शों से पीड़ित ज्ञानवान भिक्षु प्रशान्तचित्त से सहन करे। जिस प्रकार वायु के प्रबल वेग से भी पर्वत कम्पायमान नहीं होता, वैसे मुनि भी विचलित न हो।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 544 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवेहमाणे कुसलेहिं संवसे, अकंतदुक्खी तसथावरा दुही । अलूसए सव्वसहे महामुनी, तहा हि से सुस्समणे समाहिए ॥

Translated Sutra: माध्यमस्थभाव का अवलम्बन करता हुआ वह मुनि कुशल – गीतार्थ मुनियों के साथ रहे। त्रस एवं स्थावर सभी प्राणियों को दुःख अप्रिय लगता है। अतः उन्हें दुःखी देखकर, किसी प्रकार का परिताप न देता हुआ पृथ्वी की भाँति सब प्रकार के परीषहोपसर्गों को सहन करने वाला महामुनि त्रिजगत्‌ – स्वभाववेत्ता होता है। इसी कारण उसे सुश्रमण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 545 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विदू णते धम्मपयं अणुत्तरं, विणीयतण्हस्स मुनिस्स ज्झायओ । समाहियस्सऽग्गिसिहा व तेयसा, तवो य पण्णा य जसो य वड्ढइ ॥

Translated Sutra: अनुत्तर श्रमणधर्मपद में प्रवृत्ति करने वाला जो विद्वान्‌ – कालज्ञ एवं विनीत मुनि होता है, उस तृष्णारहित, धर्मध्यान में संलग्न समाहित – मुनि के तप, प्रज्ञा और यश अग्निशिखा के तेज की भाँति निरंतर बढ़ते रहते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 546 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिसोदिसंऽणंतजिणेण ताइणा, महव्वया खेमपदा पवेदिता । महागुरू णिस्सयरा उदीरिया, तमं व तेजो तिदिसं पगासया ॥

Translated Sutra: षट्‌काय के त्राता, अनन्त ज्ञानादि से सम्पन्न राग – द्वेष विजेता, जिनेन्द्र भगवान से सभी एकेन्द्रियादि भाव – दिशाओं में रहने वाले जीवों के लिए क्षेम स्थान, कर्म – बन्धन से दूर करने में समर्थ महान गुरु – महाव्रतों का उनके लिए निरूपण किया है। जिस प्रकार तेज तीनों दिशाओं के अन्धकार को नष्ट करके प्रकाश कर देता है,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 547 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सितेहिं भिक्खू असिते परिव्वए, असज्जमित्थीसु चएज्ज पूअणं । अणिस्सिओ लोगमिणं तहा परं, ण मिज्जति कामगुणेहिं पंडिए ॥

Translated Sutra: भिक्षु कर्म या रागादि निबन्धनजनक गृहपाश से बंधे हुए गृहस्थों के साथ आबद्ध – होकर संयम में विचरण करे तथा स्त्रियों के संग का त्याग करके पूजा – सत्कार आदि लालसा छोड़े। इहलोक तथा परलोक में निःस्पृह होकर रहे। कामभोगों के कटुविपाक का देखने वाला पण्डित मुनि मनोज्ञ – शब्दादि कामगुणों को स्वीकार न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 548 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहा विमुक्कस्स परिण्णचारिणो, धिईमओ दुक्खमस्स भिक्खुनो । विसुज्झई जंसि मलं पुरेकडं, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा ।

Translated Sutra: तथा सर्वसंगविमुक्त, परिज्ञा आचरण करने वाले, धृतिमान – दुःखों को सम्यक्‌ प्रकार से सहन करने में समर्थ, भिक्षु के पूर्वकृत कर्ममल उसी प्रकार विशुद्ध हो जाते हैं, जिस प्रकार अग्नि द्वारा चाँदी का मैल अलग हो जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 549 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] से हु प्परिण्णा समयंमि वट्टइ, णिराससे उवरय-मेहुणे चरे । भुजंगमे जुण्णतयं जहा जहे, विमुच्चइ से दुहसेज्ज माहणे ॥

Translated Sutra: जैसे सर्प अपनी जीर्ण त्वचा – कांचली को त्याग कर उससे मुक्त हो जाता है, वैसा ही जो भिक्षु परिज्ञा – सिद्धान्त में प्रवृत्त रहता है, लोक सम्बन्धी आशंसा से रहित, मैथुनसेवन से उपरत तथा संयम में विचरण करना, वह नरकादि दुःखशय्या या कर्म बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 550 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, महासमुद्दं व भुयाहि दुत्तरं । अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, से हु मुनी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥

Translated Sutra: कहा है – अपार सलिल – प्रवाह वाले समुद्र को भुजाओं से पार करना दुस्तर है, वैसे ही संसाररूपी महासमुद्र को भी पार करना दुस्तर है। अतः इस संसार समुद्र के स्वरूप को जानकर उसका परित्याग कर दे। इस प्रकार पण्डित मुनि कर्मों का अन्त करने वाला कहलाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 551 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा हि बद्धं इह ‘माणवेहि य’, जहा य तेसिं तु विमोक्ख आहिओ । अहा तहा बंधविमोक्ख जे विऊ, से हु मुनी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥

Translated Sutra: मनुष्यों ने इस संसार के द्वारा जिस रूप से – प्रकृति – स्थिति आदि रूप से कर्म बांधे हैं, उसी प्रकार उन कर्मों का विमोक्ष भी बताया गया है। इस प्रकार जो विज्ञाता मुनि बन्ध और विमोक्ष का स्वरूप यथातथ्य रूप से जानता है, वह मुनि अवश्य ही संसार का या कर्मों का अंत करने वाला कहा गया है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 552 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इमंमि लोए ‘परए य दोसुवि’, ण विज्जइ बंधण जस्स किंचिवि । से हु निरालंबणे अप्पइट्ठिए, कलंकली भावपहं विमुच्चइ ॥

Translated Sutra: इस लोक, परलोक या दोनों लोकों में जिसका किंचिन्मात्र भी रागादि बन्धन नहीं है, तथा जो साधक निरालम्ब है, एवं जो कहीं भी प्रतिबद्ध नहीं है, वह साधु निश्चय ही संसार में गर्भादि के पर्यटन के प्रपंच से विमुक्त हो जाता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 2 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं जहा – पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, ‘अहे वा दिसाओ’ आगओ अहमंसि, अन्नयरिओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अनुदिसाओ वा आगओ अहमंसि एवमेगेसिं नो णातं भवति –

Translated Sutra: તે આ પ્રમાણે – સંસારમાં દરેક જીવોને એ જ્ઞાન હોતું નથી અથવા – હું પૂર્વદિશામાંથી આવ્યો છું અથવા હું દક્ષિણ દિશામાંથી આવ્યો છું. અથવા હું પશ્ચિમ દિશાથી આવ્યો છું અથવા હું ઉત્તરદિશાથી આવ્યો છું અથવા હું ઊર્ધ્વ દિશાથી આવ્યો છું અથવા હું અધોદિશાથી આવ્યો છું અથવા કોઈ અન્ય દિશા કે વિદિશાથી આવેલ છું. એ જ પ્રમાણે
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 3 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि मे आया ओववाइए, नत्थि मे आया ओववाइए, के अहं आसी? के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि?

Translated Sutra: કેટલાક જીવોને એ જ્ઞાન હોતું નથી કે – મારો આત્મા પુનર્જન્મ ધારણ કરનાર છે? અથવા મારો આત્મા પુનર્જન્મ ધારણ કરનાર નથી ? પુનર્જન્મમાં હું કોણ હતો ? અથવા અહીંથી ચ્યવીને કે મૃત્યુ પામીને હું પરલોકમાં શું થઈશ ?
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 4 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जं पुण जाणेज्जा–सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं, अन्नेसिं वा अंतिए सोच्चा तं जहा–पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दक्खिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहे वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अन्नयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अनुदिसाओ वा आगओ अहमंसि। एवमेगेसिं जं णातं भवइ–अत्थि मे आया ओववाइए। जो इमाओ ‘दिसाओ अनुदिसाओ वा’ अनुसंचरइ सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ ‘जो आगओ अनुसंचरइ’ सोहं।

Translated Sutra: કોઈ જીવ પોતાના જાતિસ્મરણ જ્ઞાનથી, તીર્થંકર આદિના વચનથી કે અન્ય વિશિષ્ટજ્ઞાનીની પાસેથી સાંભળી જાણી શકે છે કે, હું પૂર્વદિશાથી આવ્યો છું – યાવત્‌ – અન્ય દિશા કે વિદિશાથી આવેલો છું. એ જ રીતે કેટલાક જીવોને એવું જ્ઞાન હોય છે કે મારો આત્મા પુનર્ભવ કરવાવાળો છે, જે આ દિશા – વિદિશામાં વારંવાર આવાગમન કરે છે. જે સર્વે
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 5 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई।

Translated Sutra: પૂર્વાદિ દિશામાં જે ગમનાગમન કરે છે, તે આત્મા હું જ છું એવું જે જ્ઞાન કે એવો નિશ્ચય જેને થઇ જાય છે તે પોતાને નિત્ય અને અમૂર્ત લક્ષણવાળો જાણે છે, આ સોऽહં) ‘તે હું જ છું’ એવું જ્ઞાન જેને છે તે જ જીવ આત્મ – વાદી છે. જે આત્મવાદી છે તે લોક અર્થાત્ પ્રાણીગણનો પણ સ્વીકાર કરે છે તેથી તે લોકવાદી છે. લોક – પરિભ્રમણ દ્વારા તે
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