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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 34 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेण य वनसंडेण सव्वओ समंता संपरिखित्ते। सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उड्ढं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाइं विक्खंभेणं, उवकारियलेणसमा परिक्खेवेणं।
तीसे णं पउमवरवेइयाए इमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–वइरामया नेमा रिट्ठामया पइट्ठाणा वेरुलियामया खंभा सुवण्णरुप्पामया फलगा लोहितक्खमईयो सूईओ वइरामया संधी नानामणिमया कलेवरा नानामणिमया कलेवरसंघाडगा नानामणिमया रूवा नानामणिमया रूव-संघाडगा अंकामया पक्खा पक्खबाहाओ, जोईरसमया वंसा वंसकवेल्लुयाओ रययामईओ पट्टियाओ जायरूवमईओ ओहाडणीओ, वइरामईओ उवरिपुंछणीओ सव्वसेयरययामए छायणे।
सा णं पउमवरवेइया Translated Sutra: वह उपकारिकालयन सभी दिशा – विदिशाओं में एक पद्मवरवेदिका और एक वनखण्ड से घिरा हुआ है। वह पद्मवरवेदिका ऊंचाई में आधे योजन ऊंची, पाँच सौ धनुष चौड़ी और उपकारिकालयन जितनी इसकी परिधि है। जैसे कि वज्ररत्नमय इसकी नेम है। रिष्टरत्नमय प्रतिष्ठान है। वैडूर्यरत्नमय स्तम्भ है। स्वर्ण और रजतमय फलक है। लोहिताक्ष रत्नों | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 35 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगे मूलपासायवडेंसए पन्नत्ते। से णं मूलपासायवडेंसते पंच जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाइं विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय वण्णओ भूमिभागो उल्लोओ सीहासनं सपरिवारं भाणियव्वं अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता।
से णं मूलपासायवडेंसगे अन्नेहिं चउहिं पासायवडेंसएहिं तयद्धुच्चत्तप्पमाणमेत्तेहिं सव्वओ समंता संपरिखित्ते। ते णं पासायवडेंसगा अड्ढाइज्जाइं जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पणवीसं जोयणसयं विक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसिय जाव वण्णओ भूमिभागो उल्लोओ सीहासनं सपरिवारं भाणियव्वं अट्ठट्ठ Translated Sutra: इस अतिसम रमणीय भूमिभाग के अतिमध्यदेश में एक विशाल मूल प्रासादावतंसक है। वह प्रासादाव – तंसक पाँच सौ योजन ऊंचा और अढ़ाई सौ योजन चौड़ा है तथा अपनी फैल रही प्रभा से हँसता हुआ प्रतीत होता है, उस प्रासाद के भीतर के भूमिभाग, उल्लोक, भद्रासनों, आठ मंगल, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों का यहाँ कथन करना। वह प्रधान प्रासादावतंसक | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 36 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं मूलपासायवडेंसयस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं सभा सुहम्मा पन्नत्ता–एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, बावत्तरिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसयसन्निविट्ठा जाव अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडियसद्दसंपणाइया अच्छा जाव पडिरूवा।
सभाए णं सुहम्माए तिदिसिं तओ दारा पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं उत्तरेणं। ते णं दारा सोलस जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, तावतियं चेव पवेसेणं, सेया वरकनग-थूभियागा जाव वणमालाओ।
तेसि णं दाराणं पुरओ पत्तेयं-पत्तेयं मुहमंडवे पन्नत्ते। ते णं मुहमंडवा एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं Translated Sutra: उस प्रधान प्रासाद के ईशान कोण में सौ योजन लम्बी, पचास योजन चौड़ी और बहत्तर योजन ऊंची सुधर्मा नामक सभा है। यह सभा अनेक सैकड़ों खम्भों पर सन्निविष्ट यावत् अप्सराओं से व्याप्त अतीव मनोहर हैं। इस सुधर्मा सभा की तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं। पूर्व दिशा में, दक्षिण दिशा में और उत्तर दिशा में। ये द्वार ऊंचाई में सोलह | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 37 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स मानवगस्स चेइयखंभस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–अट्ठ जोयणाइं आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं एत्थ णं महेगे सीहासणे पन्नत्ते–सीहासनवण्णतो सपरिवारो।
तस्स णं मानवगस्स चेइयखंभस्स पच्चत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–अट्ठ जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं, एत्थ णं महेगे देवसयणिज्जे पन्नत्ते। तस्स णं देवसयणिज्जस्स इमेयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते, तं जहा–नानामणिमया पडिपाया, सोवण्णिया Translated Sutra: माणवक चैत्यस्तम्भ के पूर्व दिग्भाग में विशाल मणिपीठिका बनी हुई है। जो आठ योजन लम्बी – चौड़ी, चार योजन मोटी और सर्वात्मना मणिमय निर्मल यावत् प्रतिरूप है। उस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल सिंहासन रखा है। भद्रासन आदि आसनों रूप परिवार सहित उस सिंहासन का वर्णन करना। उस माणवक चैत्य – स्तम्भ की पश्चिम दिशा में एक बड़ी | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 38 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं देवसयणिज्जस्स उत्तरपुरत्थिमेणं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–अट्ठ जोयणाइं आयाम-विक्खंभेणं, चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं मणिपेढियाए, उवरिं, एत्थ णं खुड्डए महिंदज्झए पन्नत्ते–सट्ठिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, वइरामयवट्टलट्ठसंठिय सुसिलिट्ठ परिघट्ठ मट्ठ सुपतिट्ठिए विसिट्ठे अनेगवरपंचवण्णकुडभीसहस्सपरिमंडियाभिरामे वाउद्धुयविजय वेजयंतीपडागच्छत्ताति-च्छत्तकलिए तुंगे गगनतलमनुलिहंतसिहरे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्स णं खुड्डामहिंदज्झयस्स उवरिं अट्ठट्ठ मंगलगा Translated Sutra: उस देवशय्या के ईशान – कोण में आठ योजन लम्बी – चौड़ी, चार योजन मोटी सर्वमणिमय यावत् प्रतिरूप एक बड़ी मणिपीठिका बनी है। उस मणिपीठिका के ऊपर साठ योजन ऊंचा, एक योजन चौड़ा, वज्ररत्नमय सुंदर गोल आकार वाला यावत् प्रतिरूप एक क्षुल्लक – छोटा माहेन्द्रध्वज लगा हुआ है। जो स्वस्तिक आदि मंगलों, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 39 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सभाए णं सुहम्माए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगे सिद्धायतणे पन्नत्ते–एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, बावत्तरिं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं सभागमएणं जाव गोमाणसियाओ, भूमिभागा उल्लोया तहेव।
तस्स णं सिद्धायतनस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–सोलस जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, अट्ठ जोयणाइं बाहल्लेणं।
तीसे णं मणिपेढियाए उवरिं, एत्थ णं महेगे देवच्छंदए पन्नत्ते–सोलस जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, साइरेगाइं सोलस जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे।
तत्थ णं अट्ठसयं जिनपडिमाणं जिनुस्सेहप्पमाणमित्ताणं संनिखित्तं Translated Sutra: सुधर्मा सभा के ईशान कोण में एक विशाल (जिनालय) सिद्धायतन है। वह सौ योजन लम्बा, पचास योजन चौड़ा और बहत्तर योजन ऊंचा है। तथा इस सिद्धायतन का गोमानसिकाओं पर्यन्त एवं भूमिभाग तथा चंदेवा का वर्णन सुधर्मासभा के समान जानना। उस सिद्धायतन (जिनालय) के ठीक मध्यप्रदेश में सोलह योजन लम्बी – चौड़ी, आठ योजन मोटी एक विशाल मणिपीठिका | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 40 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं सिद्धायतनस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगा उववायसभा पन्नत्ता जहा सभाए सुहम्माए तहेव जाव उल्लोओ य।
तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे, एत्थ णं महेगा मणिपेढिया पन्नत्ता–अट्ठजोयणाइं आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा। देवसयणिज्जं तहेव सयणिज्जवण्णओ। अट्ठट्ठ मंगलगा झया छत्तातिछत्ता।
तीसे णं उववायसभाए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महेगे हरए पन्नत्ते–एगं जोयणसयं आयामेणं, पन्नासं जोयणाइं विक्खंभेणं, दस जोयणाइं उव्वेहेणं तहेव।
से णं हरए एगाए पउमवरवेइयाए एगेण वनसंडेण सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। Translated Sutra: सिद्धायतन के ईशान कोने में एक विशाल श्रेष्ठ उपपात – सभा बनी हुई है। सुधर्मा – सभा के समान ही इस उपपात – सभा का वर्णन समझना। मणिपीठिका की लम्बाई – चौड़ाई आठ योजन की है और सुधर्मा – सभा में स्थित देवशैय्या के समान यहाँ की शैया का ऊपरी भाग आठ मंगलों, ध्वजाओं और छत्रातिछत्रों से शोभायमान हो रहा है। उस उपपातसभा के | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 41 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं से सूरियाभे देवे अहुणोववण्णमित्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आनपानपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे पुव्विं पि पच्छा वि हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसयाए आणुगामियत्ताए भविस्सइ? ।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामानियपरिसोववण्णगा देवा सूरियाभस्स Translated Sutra: उस काल और उस समय में तत्काल उत्पन्न होकर वह सूर्याभ देव आहार पर्याप्ति, शरीर – पर्याप्ति, इन्द्रिय – पर्याप्ति, श्वासोच्छ्वास – पर्याप्ति और भाषामनःपर्याप्ति – इन पाँच पर्याप्तियों से पर्याप्त अवस्था को प्राप्त हुआ। पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पर्याप्तभाव को प्राप्त होने के अनन्तर उस सूर्याभदेव को | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 42 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे तेसिं सामानियपरिसोववण्णगाणं देवाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए सयणिज्जाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता उववायसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, जेणेव हरए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता हरयं अनुपयाहिणीकरेमाणे-अनुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं तोरणेणं अनुप-विसइ, अनुपविसित्ता पुरत्थिमिल्लेणं तिसोवानपडिरूवएणं पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता जलावगाहं करेइ, करेत्ता जल-मज्जणं करेइ, करेत्ता जलकिड्डं करेइ, करेत्ता जलाभिसेयं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसूईभूए हरयाओ Translated Sutra: तत्पश्चात् वह सूर्याभदेव उन सामानिकपरिषदोपगत देवों से इस अर्थ को सूनकर और हृदय में अवधारित कर हर्षित, सन्तुष्ट यावत् हृदय होता हुआ शय्या से उठा और उठकर उपपात सभा के पूर्वदिग्वर्ती द्वार से नीकला, नीकलकर ह्रद पर आया, ह्रद की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशावर्ती तोरण से होकर उसमें प्रविष्ट हुआ। पुर्वदिशावर्ती | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 43 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सूरियाभे देवे केसालंकारेणं मल्लालंकारेणं आभरणालंकारेणं वत्थालंकारेणं–चउव्विहेणं अलंकारेणं अलंकियविभूसिए समाणे पडिपुण्णालंकारे सीहासनाओ अब्भुट्ठेति, अब्भुट्ठेत्ता अलंकारियसभाओ पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव ववसायसभा तेणेव उवागच्छति, ववसायसभं अनुपयाहिणीकरेमाणे-अनुपयाहिणीकरेमाणे पुरत्थिमिल्लेणं दारेणं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासनवरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसण्णे।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामानियपरिसोववण्णगा देवा पोत्थयरयणं उवणेंति।
तते णं से सूरियाभे Translated Sutra: तत्पश्चात् केशालंकारों, पुष्प – मालादि रूप माल्यालंकारों, हार आदि आभूषणालंकारों एवं देवदूष्यादि वस्त्रालंकारों धारण करके अलंकारसभा के पूर्वदिग्वर्ती से बाहर नीकला। व्यवसाय सभा में आया एवं बारंबार व्यवसायसभा की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशा के द्वार से प्रविष्ट हुआ। जहाँ सिंहासन था वहाँ आकर यावत् सिंहासन | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स चत्तारि सामानियसाहस्सीओ जाव सोलस आयरक्खदेवसाहस्सीओ अन्ने य बहवे सूरियाभविमानवासिणो वेमाणिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया उप्पलहत्थगया जाव सहस्सपत्तहत्थगया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स आभिओगिया देवा य देवीओ य अप्पेगतिया वंदनकलस-हत्थगया जाव अप्पेगतिया धूवकडुच्छुयहत्थगया हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिया पीइमणा परमसोमनस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया सूरियाभं देवं पिट्ठतो-पिट्ठतो समनुगच्छंति।
तए णं से सूरियाभे देवे चउहिं सामानियसाहस्सीहिं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहिं बहूहि य सूरियाभविमानवासीहिं Translated Sutra: तब उस सूर्याभदेव के चार हजार सामानिक देव यावत् सोलह हजार आत्मरक्षक देव तथा कितने ही अन्य बहुत से सूर्याभविमान वासी देव और देवी भी हाथों में उत्पल यावत् शतपथ – सहस्रपत्र कमलों कोल कर सूर्याभदेव के पीछे – पीछे चले। तत्पश्चात् उस सूर्याभदेव के बहुत – से अभियोगिक देव और देवियाँ हाथों में कलश यावत् धूप – दानों | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 45 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स अवरुत्तरेणं उत्तरेणं उत्तरपुरत्थिमिल्लेणं चत्तारि सामानिय-साहस्सीओ चउसु भद्दासनसाहस्सीसु निसीयंति।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पुरत्थिमेणं चत्तारि अग्गमहिसीओ चउसु भद्दासणेसु निसीयंति।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणपुरत्थिमेणं अब्भिंतरियाए परिसाए अट्ठ देवसाहस्सीओ अट्ठसु भद्दासनसाहस्सीसु निसीयंति।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणेणं मज्झिमाए परिसाए दस देवसाहस्सीओ दसहिं भद्दासनसाहस्सीहिं निसीयंति।
तए णं तस्स सूरियाभस्स देवस्स दाहिणपच्चत्थिमेणं बाहिरियाए परिसाए बारस देवसाहस्सीओ बारसहिं भद्दासनसाहस्सीहिं Translated Sutra: तदनन्तर उस सूर्याभदेव की पश्चिमोत्तर और उत्तरपूर्व दिशा में स्थापित चार हजार भद्रासनों पर चार हजार सामानिक देव बैठे। उसके बाद सूर्याभदेव की दिशा में चार भद्रासनों पर चार अग्रमहिषियाँ बैठीं। तत्पश्चात् सूर्याभ देव के दक्षिण – पूर्वदिक् कोण में अभ्यन्तर परिषद् के आठ हजार देव आठ हजार भद्रासनों पर बैठे। | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 46 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स सामानियपरिसोववण्णगाणं देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। एमहिड्ढीए एमहज्जुईए एमहब्बले एमहायसे एमहासोक्खे एमहानुभागे सूरियाभे देवे! अहो णं भंते सूरियाभे देवे महिड्ढीए महज्जुईए महब्बले महायसे महासोक्खे महानुभागे। Translated Sutra: सूर्याभदेव के समस्त चरित को सूनने के पश्चात् भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से निवेदन किया – भदन्त ! सूर्याभदेव की भवस्थिति कितने काल की है ? गौतम ! चार पल्योपम की है। भगवन् ! सूर्याभदेव की सामानिक परिषद् के देवों की स्थिति कितने काल की है ? गौतम ! चार पल्योपम की है। यह सूर्याभदेव महाऋद्धि, महाद्युति, महान् | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
सूर्याभदेव प्रकरण |
Hindi | 47 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सूरियाभेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुई से दिव्वे देवानुभागे–
किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमण्णागए?
पुव्वभवे के आसी? किंनामए वा? को वा गोत्तेणं?
कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आगरंसि वा आसमंसि वा संबाहंसि वा सन्निवेसंसि वा?
किं वा दच्चा? किं वा भोच्चा? किं वा किच्चा? किं वा समायरित्ता? कस्स वा तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अंतिए एगमवि आरियं धम्मियं सुवयणं सोच्चा निसम्म जण्णं सूरियाभेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुई से दिव्वे देवानुभागे Translated Sutra: भगवन् ! सूर्याभदेव को इस प्रकार की वह दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवद्युति और दिव्य देवप्रभाव कैसे मिला है ? उसने कैसे प्राप्त किया ? किस तरह से अधिगत किया है, स्वामी बना है ? वह सूर्याभदेव पूर्व भव में कौन था? उसका क्या नाम और गोत्र था ? वह किस ग्राम, नगर, निगम, राजधानी, खेट, कर्बट, मडंब, पत्तन, द्रोणमुख, आकर, आश्रम, संवाह, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 48 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] गोयमाति! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं आमंतेत्ता एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे केयइ–अद्धे नामं जणवए होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तत्थ णं केइयअद्धे जणवए सेयविया नामं नगरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा जाव पडिरूवा।
तीसे णं सेयवियाए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे एत्थ णं मिगवणे नामं उज्जानेहोत्था–रम्मे नंदनवनप्पगासे सव्वोउय-पुप्फ-फलसमिद्धे सुभसुरभिसीयलाए छायाए सव्वओ चेव समनुबद्धे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तत्थ णं सेयवियाए नगरीए पएसी नामं राया होत्था– Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने गौतमस्वामी से इस प्रकार कहा – हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरत क्षेत्र में केकयअर्ध नामक जनपद था। भवनादिक वैभव से युक्त, स्तिमित – स्वचक्र – परचक्र के भय से रहित और समृद्ध था। सर्व ऋतुओं के फल – फूलों से समृद्ध, रमणीय, नन्दनवन के समान मनोरम, प्रासादिक यावत् | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 49 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं पएसिस्स रन्नो सूरियकंता नामं देवी होत्था– सुकुमालपाणिपाया अहीनपडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा लक्खणवंजणगुणोववेया मानुम्मानप्पमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगी ससि-सोमाकारकंतपियदंसणा सुरूवा करयलपरिमियपसत्थतिवलीवलियमज्झा कुंडलुल्लिहियगंडलेहा कोमुइरयणियरविमलपडिपुण्णसोमवयणा सिंगारागार चारुवेसा संगय गय हसिय भणिय विहिय विलास सललिय संलाव निउणजुत्तोवयारकुसला पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, पएसिणा रन्ना सद्धिं अनुरत्ता अविरत्ता इट्ठे सद्द फरिस रस रूव गंधे पंचविहे मानुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणी विहरइ। Translated Sutra: उस प्रदेशी राजा की सूर्यकान्ता रानी थी, जो सुकुमाल हाथ पैर आदि अंगोपांग वाली थी, इत्यादि। वह प्रदेशी राजा के प्रति अनुरक्त थी, और इष्ट प्रिय – शब्द, स्पर्श, यावत् अनेक प्रकार के मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों को भोगती हुई रहती थी। | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 50 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं पएसिस्स रन्नो जेट्ठे पुत्ते सूरियकंताए देवीए अत्तए सूरियकंते नामं कुमारे होत्था–सुकुमालपाणिपाए अहीनपडिपुण्णपंचिंदियसरीरे लक्खणवंजणगुणोववेए मानुम्माणपमाणपडि-पुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगे ससिसोमाकारे कंते पियदंसणे सुरूवे पडिरूवे।
से णं सूरियकंते कुमारे जुवराया वि होत्था। पएसिस्स रन्नो रज्जं च रट्ठं च बलं च वाहनं च कोसं च कोट्ठारं च पुरं च अंतेउरं च सयमेव पच्चुवेक्खमाणे-पच्चुवेक्खमाणे विहरइ। Translated Sutra: उस प्रदेशी राजा का ज्येष्ठ पुत्र और सूर्यकान्ता रानी का आत्मज सूर्यकान्त नामक राजकुमार था। वह सुकोमल हाथ पैर वाला, अतीव मनोहर था। वह सूर्यकान्त कुमार युवराज भी था। वह प्रदेशी राजा के राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोश, कोठार, पुर और अंतःपुर की स्वयं देखभाल किया करता था। | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 51 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: Translated Sutra: उस प्रदेशी राजा का उम्र में बड़ा भाई एवं मित्र सरीखा चित्त नामक सारथी था। वह समृद्धिशाली यावत् बहुत से लोगों के द्वारा भी पराभव को प्राप्त नहीं करने वाला था। साम – दण्ड – भेद और उपप्रदान नीति, अर्थशास्त्र एवं विचार – विमर्श प्रधान बुद्धि में विशारद था। औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी तथा पारिणामिकी बुद्धियों | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 52 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नामं जणवए होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे पासादीए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तत्थ णं कुणालाए जणवए सावत्थी नामं नयरी होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धा जाव पडिरूवा।
तीसे णं सावत्थीए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए कोट्ठए नामं चेइए होत्था–पोराणे जाव पासादीए।
तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पएसिस्स रन्नो अंतेवासी जियसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ।
तए णं से पएसी राया कयाइ महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं सज्जावेइ, सज्जावेत्ता चित्तं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छ Translated Sutra: उस काल और उस समय में कुणाला नामक जनपद – देश था। वह देश वैभवसंपन्न, स्तिमित – स्वपरचक्र के भय से मुक्त और धन – धान्य से समृद्ध था। उस कुणाला जनपद में श्रावस्ती नाम की नगरी थी, जो ऋद्ध, स्तिमित, समृद्ध यावत् प्रतिरूप थी। उस श्रावस्ती नगरी के बाहर उत्तर – पूर्व दिशा में कोष्ठक नाम का चैत्य था। यह चैत्य अत्यन्त प्राचीन | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 53 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे केसी नाम कुमारसमणे जातिसंपन्ने कुलसंपन्ने बलसंपन्ने रूवसंपन्ने रूवसंपन्ने विनयसंपन्ने नाणसंपन्ने दंसणसंपन्ने चरित्तसंपन्ने लज्जासंपन्ने लाघवसंपन्ने ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाने जियमाए जियलोहे जियनिद्दे जितिंदिए जियपरीसहे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे वेयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे सोयप्पहाणे Translated Sutra: उस काल और उस समय में जातिसंपन्न, कुलसंपन्न, आत्मबल से युक्त, अधिक रूपवान्, विनयवान्, सम्यग् ज्ञान, दर्शन, चारित्र के धारक, लज्जावान्, लाघववान्, लज्जालाघवसंपन्न, ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, यशस्वी, क्रोध, मान, माया, और लोभ को जीतने वाले, जीवित रहने की आकांक्षा एवं मृत्यु के भय से विमुक्त, तपः प्रधान, गुणप्रधान, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 54 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सावत्थीए नयरीए सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्दे इ वा जनवूहे इ वा जनबोले इ वा जनकलकले इ वा जनउम्मी इ वा जनसन्निवाए इ वा बहुजनो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पण्णवेइ एवं परूवेइ–
एवं खलु देवानुप्पिया! पासावच्चिज्जे केसी नामं कुमारसमणे जातिसंपन्ने पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नगरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तं महप्फलं खलु भो! देवानुप्पिया! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रावस्ती नगरी के शृंगाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों और मार्गों में लोग आपस में चर्चा करने लगे, लोगों के झुंड इकट्ठे होने लगे, लोगों के बोलने की घोंघाट सूनाई पड़ने लगी, जन – कोलाहल होने लगा, भीड़ के कारण लोग आपस में टकराने लगे, एक के बाद एक लोगों के टोले आते दिखाई देने लगे, इधर | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 55 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चित्ते सारही समणोवासए जाए–अहिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसव संवर निज्जर किरियाहिगरणबंधप्पमोक्खकुसले असहिज्जे देवासुर नाग सुवण्ण जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस गरुल गंधव्व महीरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गं थाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निव्वितिगिच्छे लद्धट्ठे गहियट्ठे अभिगयट्ठे पुच्छियट्ठे विणिच्छियट्ठे अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ते अयमाउसो!
निग्गंथे पावयणे अट्ठे परमट्ठ सेसे अणट्ठे ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउरघरप्पवेसे चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अनुपालेमाणे, समणे निग्गंथे Translated Sutra: तब वह चित्त सारथी श्रमणोपासक हो गया। उसने जीव – अजीव पदार्थों का स्वरूप समझ लिया था, पुण्य – पाप के भेद जान लिया था, वह आश्रव, संवर, निर्जरा, क्रिया, अधिकरण, बंध, मोक्ष के स्वरूप को जाननेमें कुशल हो गया था, दूसरे की सहायता का अनिच्छुक था। देव, असुर, नाग, सुपर्ण, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, गरुड़, गंधर्व, महोरग आदि | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 56 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जियसत्तुराया अन्नया कयाइ महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं सज्जेइ, सज्जेत्ता चित्तं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छाहि णं तुमं चित्ता! सेयवियं नगरिं, पएसिस्स रन्नो इमं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेहि, मम पाउग्गं च णं जहाभणियं अवितहमसंदिद्धं वयणं विण्णवेहि त्ति कट्टु विसज्जिए।
तए णं से चित्ते सारही जियसत्तुणा रन्ना विसज्जिए समाणे तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गिण्हइ, गिण्हित्ता जियसत्तुस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सावत्थीनयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, जेणेव रायमग्गमोगाढे Translated Sutra: तत्पश्चात् जितशत्रु राजा ने किसी समय महाप्रयोजनसाधक यावत् प्राभृत तैयार किया और चित्त सारथी को बुलाया। उससे कहा – हे चित्त ! तुम वापस सेयविया नगरी जाओ और महाप्रयोजनसाधक यावत् इस उपहार को प्रदेशी राजा के सन्मुख भेंट करना तथा मेरी ओर से विनयपूर्वक उनसे निवेदन करना कि आपने मेरे लिये जो संदेश भिजवाया है, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 57 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चित्ते सारही केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–किं णं भंते! तुब्भं पएसिणा रन्ना कायव्वं? अत्थि णं भंते! सेयवियाए नगरीए अन्ने बहवे ईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाहपभितयो, जे णं देवाणुप्पियं वंदिस्संति नमंसिस्संति सक्कारिस्संति सम्माणिस्संति कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासिस्संति, विउलेणं असणपाणखाइमसाइ-मेणं पडिलाभिस्संति, पाडिहारिएण पीढ फलग सेज्जा संथारेणं उवनिमंतिस्संति।
तए णं से केसी कुमार-समणे चित्तं सारहिं एवं वयासी–अवियाइं चित्ता! समोसरिस्सामो।
तए णं से चित्ते सारही केसिं कुमारसमणं वंदइ नमंसइ, केसिस्स कुमारसमणस्स अंतियाओ Translated Sutra: चित्त सारथी ने केशी कुमारश्रमण से निवेदन किया – हे भदन्त ! आपको प्रदेशी राजा से क्या करना है ? भगवन् ! सेयविया नगरी में दूसरे राजा, ईश्वर, तलवर यावत् सार्थवाह आदि बहुत से जन हैं, जो आप देवानुप्रिय को वंदन करेंगे, नमस्कार करेंगे यावत् आपकी पर्युपासना करेंगे। विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य आहार से प्रतिलाभित | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 58 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चित्ते सारही जेणेव सेयविया नगरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सेयवियं नगरिं मज्झंमज्झेणं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता जेणेव पएसिस्स रन्नो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तुरए निगिण्हइ, रहं ठवेइ, रहाओ पच्चोरुहइ, तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं गेण्हइ, जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ, पएसिं रायं करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं उवणेइ।
तए णं से पएसी राया चित्तस्स सारहिस्स तं महत्थं महग्घं महरिहं विउलं रायारिहं पाहुडं पडिच्छइ, Translated Sutra: तत्पश्चात् चित्त सारथी सेयविया नगरी में आ पहुँचा। सेयविया नगरी के मध्य भाग में प्रविष्ट हुआ। जहाँ प्रदेशी राजा का भवन व बाह्य उपस्थानशाला थी, वहाँ आया। घोड़ों को रोका, रथ को खड़ा किया, रथ से नीच ऊतरा और उस महार्थक यावत् भेंट को लेकर जहाँ प्रदेशी राजा था, वहाँ पहुँचकर दोनों हाथ जोड़ यावत् जय – विजय शब्दों से | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 59 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से केसी कुमारसमणे अन्नया कयाइ पाडिहारियं पीढ फलग सेज्जा संथारगं पच्चप्पिणइ, सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठगाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव केयइ-अद्धे जनवए जेणेव सेयविया नगरी जेणेव मियवने उज्जानेतेणेव उवागच्छइ, अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति।
तए णं सेयवियाए नगरीए सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जणसद्दे इ वा जणवूहे इ वा जणबोले इ वा जणकलकले इ वा जणउम्मी इ वा जणसन्निवाए इ वा जाव परिसा निग्गच्छइ।
तए णं ते उज्जानपालगा Translated Sutra: तत्पश्चात् किसी समय प्रातिहारिक पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक आदि उन – उनके स्वामियों को सौंपकर केशी कुमारश्रमण श्रावस्ती नगरी और कोष्ठक चैत्य से बाहर नीकले। पाँच सौ अन्तेवासी अनगारों के साथ यावत् विहार करते हुए जहाँ केकयधर्म जनपद था, जहाँ सेयविया नगरी थी और उस नगरी का मृगवन नामक उद्यान था, वहाँ आए। यथाप्रतिरूप | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 60 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चित्ते सारही केसिस्स कुमारसमणस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठचित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता केसिं कुमार-समणं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
एवं खलु भंते! अम्हं पएसी राया अधम्मिए जाव सयस्स वि जनवयस्स नो सम्मं करभरवित्तिं पवत्तेइ, तं जइ णं देवानुप्पिया! पएसिस्स रन्नो धम्ममाइक्खेज्जा। बहुगुणतरं खलु होज्जा पएसिस्स रन्नो, तेसिं च बहूणं दुपय चउप्पय मिय पसु पक्खी सिरीसवाणं, तेसिं च बहूणं समण माहण भिक्खुयाणं, तं जइ णं देवानुप्पिया! पएसिस्स रन्नो Translated Sutra: तत्पश्चात् धर्म श्रवण कर और हृदय में धारण कर हर्षित, सन्तुष्ट, चित्त में आनंदित, अनुरागी, परम सौम्य – भाव युक्त एवं हर्षातिरेक से विकसितहृदय होकर चित्त सारथी ने केशी कुमारश्रमण से निवेदन किया – हे भदन्त ! हमारा प्रदेशी राजा अधार्मिक है, यावत् राजकर लेकर भी समीचीन रूप से अपने जनपद का पालन एवं रक्षण नहीं करता | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 61 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं केसी कुमारसमणे चित्तं सारहिं एवं वयासी–एवं खलु चउहिं ठाणेहिं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्ज सवणयाए, तं जहा–
आरामगयं वा उज्जानगयं वा समणं वा माहणं वा नो अभिगच्छइ नो वंदइ नो नमंसइ नो सक्कारेइ नो सम्माणेइ नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता! जीवे केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभइ सवणयाए।
उवस्सयगयं समणं वा माहणं वा नो अभिगच्छइ नो वंदइ नो नमंसइ नो सक्कारेइ नो सम्माणेइ नो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेइ, नो अट्ठाइं हेऊइं पसिणाइं कारणाइं वागरणाइं पुच्छइ। एएण वि ठाणेणं चित्ता! Translated Sutra: केशी कुमारश्रमण ने चित्त सारथी को समझाया – हे चित्त ! जीव निश्चय ही इन चार कारणों से केवलि – भाषित धर्म को सूनने का लाभ प्राप्त नहीं कर पाता है। १. आराम में अथवा उद्यान में स्थित श्रमण या माहन के अभिमुख जो नहीं जाता है, स्तुति, नमस्कार, सत्कार एवं सम्मान नहीं करता है तथा कल्याण, मंगल, देव एवं विशिष्ट ज्ञान स्वरूप | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 62 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चित्ते सारही कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए कय नियमावस्सए सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते साओ गिहाओ निग्गच्छइ, जेणेव पएसिस्स रन्नो गिहे जेणेव पएसी राया तेणेव उवागच्छइ, पएसिं रायं करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पियाणं कंबोएहिं चत्तारि आसा उवायणं उवणीया, ते य मए देवानुप्पियाणं अन्नया चेव विणइया। तं एह णं सामी! ते आसे चिट्ठं पासह।
तए णं से पएसी राया चित्तं सारहिं एवं वयासी–गच्छाहि णं तुमं चित्ता! तेहिं चेव चउहिं आसेहिं चाउग्घंटं Translated Sutra: तत्पश्चात् कल रात्रि के प्रभात रूप में परिवर्तित हो जाने से जब कोमल उत्पल कमल विकसित हो चूके और धूप भी सुनहरी हो गई तब नियम एवं आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर जाज्वल्यमान तेज सहित सहस्ररश्मि दिनकर के चमकने के बाद चित्त सारथी अपने घर से नीकला। जहाँ प्रदेशी राजा था, वहाँ आया। दोनों हाथ जोड़ यावत् अंजलि करके | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 63 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया चित्तेण सारहिणा सद्धिं जेणेव केसी कुमारसमणे तेणेव उवागच्छइ, केसिस्स कुमारसमणस्स अदूरसामंते ठिच्चा एवं वयासी–तुब्भे णं भंते! अहोऽवहिया अन्नजीविया?
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–पएसी! से जहानामए अंकवाणिया इ वा संखवाणिया इ वा सुंकं भंसेउकामा नो सम्मं पंथं पुच्छंति। एवामेव पएसी! तुमं वि विणयं भंसेउकामो नो सम्मं पुच्छसि। से नूनं तव पएसी! ममं पासित्ता अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–
जड्डा खलु भो! जड्डं पज्जुवासंति। मुंडा खलु भो! मुंडं पज्जुवासंति। मूढा खलु भो! मूढं पज्जुवासंति। अपंडिया खलु भो! अपंडियं Translated Sutra: तत्पश्चात् चित्त सारथी के साथ प्रदेशी राजा, जहाँ केशी कुमारश्रमण बिराजमान थे, वहाँ आया और केशी कुमारश्रमण से कुछ दूर खड़े होकर बोला – हे भदन्त ! क्या आप आधोऽवधिज्ञानधारी हैं ? क्या आप अन्नजीवी हैं ? तब केशी कुमारश्रमण ने कहा – हे प्रदेशी ! जैसे कोई अंकवणिक् अथवा शंखवणिक्, दन्तवणिक्, राजकर न देने के विचार से | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 64 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–से केस णं भंते! तुज्झं नाणे वा दंसणे वा, जेणं तुब्भं मम एयारूवं अज्झत्थियं चिंतियं पत्थियं मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं जाणह पासह?
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–एवं खलु पएसी! अम्हं समणाणं निग्गंथाणं पंचविहे नाणे पन्नत्ते, तं जहा–आभिणिबोहियनाणे सुयनाणे ओहिनाणे मनपज्जवनाणे केवलनाणे।
से किं तं आभिणिबोहियनाणे? आभिणिबोहियनाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– उग्गहो ईहा अवाए धारणा।
से किं तं उग्गहे? उग्गहे दुविहे पन्नत्ते, जहा नंदीए जाव से तं धारणा। से तं आभिणिबोहियनाणे।
से किं तं सुयनाणं? सुयनाणं दुविहं पन्नत्तं, Translated Sutra: तत्पश्चात् प्रदेशी राजा ने कहा – भदन्त ! तुम्हें ऐसा कौन सा ज्ञान और दर्शन है कि जिसके द्वारा आपने मेरे इस प्रकार के आन्तरिक यावत् मनोगत संकल्प को जाना और देखा ? तब केशी कुमारश्रमण ने कहा – हे प्रदेशी ! निश्चय ही हम निर्ग्रन्थ श्रमणों के शास्त्रों में ज्ञान के पाँच प्रकार बतलाए हैं। आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुतज्ञान, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 65 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अह णं भंते! इहं उवविसामि? पएसी! साए उज्जानभूमीए तुमंसि चेव जाणए।
तए णं से पएसी राया चित्तेणं सारहिणा सद्धिं केसिस्स कुमारसमणस्स अदूरसामंते उवविसइ, केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–तुब्भं णं भंते! समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–अन्नो जीवो अन्नं सरीरं, नो तं जीवो तं सरीरं?
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–पएसी! अम्हं समणाणं णिग्गंथाणं एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–अन्नो Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने केशी कुमारश्रमण से निवेदन किया – भदन्त ! क्या मैं यहाँ बैठ जाऊं ? हे प्रदेशी ! यह उद्यानभूमि तुम्हारी अपनी है, अत एव बैठने के विषय में तुम स्वयं समझ लो। तत्पश्चात् चित्त सारथी के साथ प्रदेशी राजा केशी कुमारश्रमण के समीप बैठ गया और पूछा – भदन्त ! क्या आप श्रमण निर्ग्रन्थों की ऐसी संज्ञा है, प्रतिज्ञा | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 66 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेण पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–एवं खलु भंते! मम अज्जिया होत्था, इहेव सेयवियाए नगरीए धम्मिया धम्मिट्ठा धम्मक्खाई धम्माणुया धम्मपलोई धम्मपलज्जणी धम्मसीलसमुयाचारा धम्मेण चेव वित्तिं कप्पेमाणी समणोवासिया अभिगयजीवा जीवा उवलद्धपुण्णपावा आसव संवर निज्जर किरिया-हिगरण बंधप्पमोक्खकुसला असहिज्जा देवासुर णाग सुवण्ण जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस गरुल गंधव्व महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जा, निग्गंथे पावयणे निस्संकिया निक्कंखिया निव्वितिगिच्छा लद्धट्ठा गहियट्ठा अभिगयट्ठा Translated Sutra: पश्चात् प्रदेशी राजा ने कहा – हे भदन्त ! मेरी दादी थीं। वह इसी सेयविया नगरी में धर्मपरायण यावत् धार्मिक आचार – विचार पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने वाली, जीव – अजीव आदि तत्त्वों की ज्ञाता श्रमणोपासिक यावत् तप से आत्मा को भावित करती हुई अपना समय व्यतीत करती थी इत्यादि और आपके कथनानुसार वे पुण्य का उपार्जन | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 67 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छति–
एवं खलु भंते! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अनेगगनणायक दंडणायग राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह मंति महामंति गणगदोवारिय अमच्च चेड पीढमद्द नगर निगम दूय संधिवालेहिं सद्धिं संपरिवुडे विहरामि।
तए णं मम णगरगुत्तिया ससक्खं सहोढं सलोद्दं सगेवेज्जं अवउडगबंधणबद्धं चोरं उवणेंति। तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतं चेव अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि, अएण य तउएण य कायावेमि, आयपच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि।
तए णं अहं अन्नया Translated Sutra: राजा प्रदेशी ने कहा – हे भदन्त ! जीव और शरीर की भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए अपने देवों के नहीं आने के कारण रूप में जो उपमा दी, वह तु बुद्धि से कल्पित एक दृष्टान्त मात्र है। परन्तु भदन्त ! किसी एक दिन मैं अपने अनेक गणनायक, दंड़नायक, राजा, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इब्भ, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, मंत्री, महामंत्री, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 68 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–एवं खलु भंते! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अनेगगनणायक दंडणायग राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह मंति महामंति गणग दोवारिय अमच्च चेड पीढमद्द नगर निगम दूय संधिवालेहिं सद्धिं संपरिवुडे विहरामि। तए णं ममं णगरगुत्तिया ससक्खं सहोढं सलोद्दं सगेवेज्जं अवउडगबंधणबद्धं चोरं उवणेंति। तए णं अहं तं पुरिसं जीवियाओ ववरोवेमि, ववरोवेत्ता अओकुंभीए पक्खिवावेमि, अओमएणं पिहाणएणं पिहावेमि, अएण य तउएण य कायावेमि, आयपच्चइएहिं पुरिसेहिं रक्खावेमि।
तए Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने केशीकुमारश्रमण से कहा – बुद्धि – विशेषजन्य होने से आपकी उपमा वास्तविक नहीं है। किन्तु जो कारण मैं बता रहा हूँ, उससे जीव और शरीर की भिन्नता सिद्ध नहीं होती है। हे भदन्त ! जैसे कोई एक तरुण यावत् और अपना कार्य सिद्ध करने में निपुण पुरुष क्या एक साथ पाँच बाणों को नीकालने में समर्थ है ? केशी कुमारश्रमण | |||||||||
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प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 69 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पन्नओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ– भंते! से जहानामए–केइ पुरिसे तरुणे बलवं जुगवं जुवाणे अप्पायंके थिरग्गहत्थे दढपाणि पाय पिट्ठंतरोरुपरिणए घन निचिय वट्ट बलियखंधे चम्मेट्ठग दुघण मुट्ठिय समाहय निचियगत्ते उरस्सबलसमण्णागए तलजमलजुयलबाहू लंघण पवण जइण पमद्दणसमत्थे छेए दक्खे पत्तट्ठे कुसले मेधावी निउण सिप्पोवगए पभू पंचकंडगं निसिरित्तए?
हंता पभू। जति णं भंते! सच्चेव पुरिसे बाले अदक्खे अपत्तट्ठे अकुसले अमेहावी मंदविण्णाणे पभू होज्जा पंचकंडगं निसिरित्तए, तो णं अहं सद्दहेज्जा पत्तिए-ज्जा रोएज्जा Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने कहा – हे भदन्त ! यह तो प्रज्ञाजन्य उपमा है। किन्तु मेरे द्वारा प्रस्तुत हेतु से तो यही सिद्ध होता है कि जीव और शरीर में भेद नहीं है। भदन्त ! कोई एक तरुण यावत् कार्यक्षम पुरुष एक विशाल वजनदार लोहे के भार की, सीसे के भार को या रांगे के भार को उठाने में समर्थ है ? केशी कुमारश्रमण – हाँ, समर्थ है। लेकिन | |||||||||
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प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 70 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–भंते! से जहानामए–केइ पुरिसे तरुणे जाव निउणसिप्पोवगते पभू एगं महं अयभारगं वा तउयभारगं वा सीसग-भारगं वा परिवहित्तए? हंता पभू! सो चेव णं भंते! पुरिसे जुण्णे जराजज्जरियदेहे सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंतसेढी आउरे किसिए पिवासिए दुब्बले परिकिलंते नो पभू एगं महं अयभारगं वा तउयभारगं वा सीसगभारगं वा परिवहित्तए।
जति णं भंते! सच्चेव पुरिसे जराजज्जरियदेहे सिढिलवलियावणद्धगत्ते दंडपरिग्गहियग्गहत्थे पविरलपरिसडियदंत-सेढी आउरे किसिए Translated Sutra: हे भदन्त ! आपकी यह उपमा वास्तविक नहीं है, इससे जीव और शरीर की भिन्नता नहीं मानी जा सकती है। लेकिन जो प्रत्यक्ष कारण मैं बताता हूँ, उससे यही सिद्ध होता है कि जीव और शरीर एक ही हैं। हे भदन्त ! किसी एक दिन मैं गणनायक आदि के साथ बाहरी उपस्थानशाला में बैठा था। उसी समय मेरे नगररक्षक चोर पकड़ कर लाये। तब मैंने उस पुरुष | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 71 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–अत्थि णं भंते! एस पण्णओ उवमा, इमेणं पुण कारणेणं नो उवागच्छइ–एवं खलु भंते! अहं अन्नया कयाइ बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए अनेग गणणायक दंडणायग राईसर तलवर माडंबिय कोडुंबिय इब्भ सेट्ठि सेनावइ सत्थवाह मंति महामंति गणग दोवारिय अमच्च चेड पीढमद्द नगर निगम दूय संधिवालेहिं सद्धिं संपरिवुडे विहरामि। तए णं मम णगरगुत्तिया चोरं उवणेंति।
तए णं अहं तं पुरिसं जीवंतगं चेव तुलेमि, तुलेत्ता छविच्छेयं अकुव्वमाणे जीवियाओ ववरोवेमि, मयं तुलेमि नो चेव णं तस्स पुरिसस्स जीवंतस्स वा तुलियस्स, मुयस्स वा तुलियस्स केइ अण्णत्ते वा नाणत्ते वा ओमत्ते Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने पुनः कहा – हे भदन्त ! आपकी यह उपमा बुद्धिप्रेरित होने से वास्तविक नहीं है। इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि जीव और शरीर पृथक् – पृथक् हैं। क्योंकि भदन्त ! बात यह है कि किसी समय मैं अपने गणनायकों आदि के साथ बाह्य उपस्थानशाला में बैठा था। यावत् नगररक्षक एक चोर पकड़ कर लाये। तब मैंने उस पुरुष को सभी | |||||||||
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प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 72 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–जुत्तए णं भंते! तुब्भं इय छेयाणं दक्खाणं पत्तट्ठाणं कुसलाणं महामईणं विणीयाणं विण्णाणपत्ताणं उवएसलद्धाणं अहं इमीसे महालियाए महच्चपरिसाए मज्झे उच्चावएहिं आओसेहिं आओसित्तए, उच्चावयाहिं उद्धंसणाहिं उद्धंसित्तए, उच्चावयाहिं निब्भंछणाहिं निब्भंछित्तए, उच्चावयाहिं निच्छोडणाहिं निच्छोडित्तए?
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–जाणासि णं तुमं पएसी! कति परिसाओ पन्नत्ताओ? भंते! जाणामि चत्तारि परिसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–खत्तियपरिसा, गाहावइपरिसा, माहणपरिसा, इसिपरिसा।
जाणासि णं तुमं पएसी! एयासिं चउण्हं परिसाणं कस्स Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने कहा – भन्ते ! आप जैसे छेक, दक्ष, बुद्ध, कुशल, बुद्धिमान्, विनीत, विशिष्ट ज्ञानी, विवेक संपन्न, उपदेशलब्ध पुरुष का इस अति विशाल परिषद् के बीच मेरे लिए इस प्रकार के निष्ठुर शब्दों का प्रयोग करना, मेरी भर्त्सना करना, मुझे प्रताड़ित करना, धमकाना क्या उचित है ? केशी कुमारश्रमण ने कहा – हे प्रदेशी ! जानते | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 73 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमार-समणं एवं वयासी–तुब्भे णं भंते! इय छेया दक्खा पत्तट्ठा कुसला महामई विणीया विन्नाणपत्ता उवएसलद्धा, समत्था णं भंते! ममं करयलंसि वा आमलयं जीवं सरीराओ अभिणिवट्टित्ताणं उवदंसित्तए?
तेणं कालेणं तेणं समएणं पएसिस्स रन्नो अदूरसामंते वाउयाए संवुत्ते। तणवणस्सइकाए एयइ वेयइ चलइ फंदइ घट्टइ उदीरइ, तं तं भावं परिणमइ।
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–पाससि णं तुमं पएसी राया! एयं तणवणस्सइकायं एयंतं वेयंतं चलंतं फंदंतं घट्टंतं उदीरंतं तं तं भावं परिणमंतं? हंता पासामि। जाणासि णं तुमं पएसी! एयं तणवणस्सइकायं किं देवो चालेइ? असुरो वा चालेइ? णागो Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने कहा – हे भदन्त ! आप अवसर को जानने में निपुण हैं, कार्यकुशल हैं यावत् आपने गुरु से शिक्षा प्राप्त की है तो भदन्त ! क्या आप मुझे हथेली में स्थित आँबले की तरह शरीर से बाहर जीव को नीकालकर दिखाने में समर्थ हैं ? प्रदेशी राजा ने यह कहा, उसी काल और उसी समय प्रदेशी राजा से अति दूर नहीं अर्थात् निकट ही हवा | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 74 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–से णूणं भंते! हत्थिस्स कुंथुस्स य समे चेव जीवे? हंता पएसी! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे। से णूणं भंते! हत्थीओ कूंथू अप्पकम्मतराए चेव अप्पकिरियतराए चेव अप्पासवतराए चेव अप्पाहारतराए चेव अप्पनीहारतराए चेव अप्पुस्सासतराए चेव अप्पनीसासतराए चेव अप्पिड्ढितराए चेव अप्पमहतराए चेव अप्पज्जुइतराए चेव? कुंथुओ हत्थी महाकम्मतराए चेव महाकिरियतराए चेव महासवतराए चेव महाहारतराए चेव महानी-हारतराए चेव महाउस्सासतराए चेव महानीसासतराए चेव महिड्ढितराए चेव महामहतराए चेव महज्जुइतराए चेव?
हंता पएसी! हत्थीओ कूंथू अप्पकम्मतराए Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने कहा – भन्ते ! क्या हाथी और कुंथु का जीव एक – जैसा है ? हाँ, प्रदेशी ! हाथी और कुंथु का जीव एक – जैसा है, प्रदेशी – हे भदन्त ! हाथी से कुंथु अल्पकर्म, अल्पक्रिया, अल्प प्राणातिपात आदि आश्रव वाला है, और इसी प्रकार कुंथु का आहार, निहार, श्वासोच्छ्वास, ऋद्धि, द्युति आदि भी अल्प है और कुंथु से हाथी अधिक कर्म | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 75 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं पएसी राया केसिं कुमारसमणं एवं वयासी–एवं खलु भंते! मम अज्जगस्स एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–तज्जीवो तं सरीरं, नो अन्नो जीवो अन्नं सरीरं।
तयानंतरं च णं ममं पिउणो वि एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–तज्जीवो तं सरीरं, नो अन्नो जीवो अन्नं सरीरं।
तयानंतरं मम वि एस सण्णा एस पइण्णा एस दिट्ठी एस रुई एस हेऊ एस उवएसे एस संकप्पे एस तुला एस माणे एस पमाणे एस समोसरणे, जहा–तज्जीवो तं सरीरं, नो अन्नो जीवो अन्नं सरीरं।
तं नो खलु बहुपुरिसपरंपरागयं Translated Sutra: प्रदेशी राजा ने कहा – भदन्त ! आपने बताया सो ठीक, किन्तु मेरे पितामह की यही ज्ञानरूप संज्ञा थी यावत् समवसरण था कि जो जीव है वही शरीर है, जो शरीर है वही जीव है। जीव शरीर से भिन्न नहीं और शरीर जीव से भिन्न नहीं है। तत्पश्चात् मेरे पिता की भी ऐसी ही संज्ञा यावत् ऐसा ही समवसरण था और उनके बाद मेरी भी यही संज्ञा यावत् | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 76 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ णं से पएसी राया संबुद्धे केसिं कुमारसमणं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–नो खलु भंते! अहं पच्छानुताविए भविस्सामि, जहा व से पुरिसे अयभारए, तं इच्छामि णं देवानुप्पियाणं अंतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं निसामित्तए अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं करेहि। धम्मकहा जहा चित्तस्स गिहिधम्मं पडिवज्जइ, जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए। Translated Sutra: इस प्रकार समझाये जाने पर प्रदेशी राजा ने केशी कुमारश्रमण को वन्दना की यावत् निवेदन किया – भदन्त! मैं वैसा कुछ नहीं करूँगा जिससे उस लोहभारवाहक पुरुष की तरह मुझे पश्चात्ताप करना पड़े। आप देवानुप्रिय से केवलिप्रज्ञप्त धर्म सूनना चाहता हूँ। देवानुप्रिय ! जैसे तुम्हें सुख उपजे वैसा करो, परन्तु विलंब मत करो। | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 77 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–जाणासि णं तुमं पएसी! कइ आयरिया पन्नत्ता? हंता जाणामि, तओ आयरिआ पन्नत्ता, तं जहा–कलायरिए, सिप्पायरिए, धम्मायरिए।
जाणासि णं तुमं पएसी! तेसिं तिण्हं आयरियाणं कस्स का विणयपडिवत्ती पउंजियव्वा? हंता जाणामि–कलायरियस्स सिप्पायरियस्स उवलेवणं संमज्जणं वा करेज्जा, पुप्फाणि वा आणवेज्जा, मज्जावेज्जा, मंडावेज्जा, भोयावेज्जा वा, विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलएज्जा, पुत्ताणुपुत्तियं बित्तिं कप्पेज्जा।
जत्थेव धम्मायरियं पासिज्जा तत्थेव वंदेज्जा नमंसेज्जा सक्कारेज्जा सम्माणेज्जा, कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जा, फासुएसणिज्जेणं Translated Sutra: तब केशी कुमारश्रमण ने कहा – प्रदेशी ! जानते हो कितने प्रकार के आचार्य होते हैं ? प्रदेशी – हाँ भदन्त ! तीन आचार्य होते हैं – कलाचार्य, शिल्पाचार्य, धर्माचार्य। प्रदेशी ! जानते हो कि इन तीन आचार्यों में से किसकी कैसी विनयप्रतिपत्ति करनी चाहिए ? हाँ, भदन्त ! जानता हूँ। कलाचार्य और शिल्पाचार्य के शरीर पर चन्दनादि | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 78 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं केसी कुमारसमणे पएसिस्स रन्नो सूरियकंतप्पमुहाणं देवीणं तीसे य महतिमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेइ।
तए णं से पएसी राया धम्मं सोच्चा निसम्म उट्ठाए उट्ठेति, केसिं कुमार-समणं वंदइ नमंसइ, जेणेव सेयविया नगरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए।
तए णं केसी कुमारसमणे पएसिं रायं एवं वयासी–मा णं तुमं पएसी! पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भविज्जासि, जहा–से वनसंडेइ वा, नट्टसालाइ वा, इक्खुवाडेइ वा, खलवाडेइ वा
कहं णं भंते! वनसंडे पुव्विं रमणिज्जे भवित्ता पच्छा अरमणिज्जे भवति? पएसी! जया णं वनसंडे पत्तिए पुप्फिए फलिए हरियगरेरिज्जमाणे सिरीए अईव-अईव उवसोभेमाणे Translated Sutra: तत्पश्चात् केशी कुमारश्रमण ने प्रदेशी राजा, सूर्यकान्ता आदि रानियों और उस अति विशाल परिषद् को यावत् धर्मकथा सूनाई। इसके बाद प्रदेशी राजा धर्मदेशना सून कर और उसे हृदय में धारण करके अपने आसन से उठा एवं केशी कुमारश्रमण को वन्दन – नमस्कार किया। सेयविया नगरी की ओर चलने के लिए उद्यत हुआ। केशी कुमारश्रमण ने | |||||||||
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प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 79 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल कमल कोमलुम्मिलियम्मि अहापंडुरे पभाए रत्ता सोग पगास किंसुय सुयमुह गुंजद्धरागसरिसे कमलागर णलिणिसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते सेयवियापामोक्खाइं सत्तगामसहस्साइं चत्तारिभाए करेइ–एगं भागं बलवाहणस्स दलयइ, एगं भागं कोट्ठागारे छुभइ, एगं भागं अंतेउरस्स दलयइ, एगेणं भागेणं महतिमहालियं कूडागारसालं करेइ।
तत्थ णं बहूहिं पुरिसेहिं दिन्नभइ भत्त वेयणेहिं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता बहूणं समण माहण भिक्खुयाणं पंथिय-पहियाणं परिभाएमाणे विहरइ। Translated Sutra: तत्पश्चात् प्रदेशी राजा ने अगले दिन यावत् जाज्वल्यमान तेजसहित सूर्य के प्रकाशित होने पर सेयविया प्रभृति सात हजार ग्रामों के चार भाग किये। उनमें से एक भाग बल – वाहनों को दिया यावत् कूटाकारशाला का निर्माण कराया। उसमें बहुत से पुरुषों को नियुक्त कर यावत् भोजन बनवाकर बहुत से श्रमणों यावत् पथिकों को देते | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 80 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पएसी राया समणोवासए अभिगयजीवाजीवे उवलद्धपुण्णपावे आसव संवर निज्जर किरियाहिगरण बंधप्पमोक्ख कुसले असहिज्जे देवासुर णाग सुवण्ण जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिस गरुल गंधव्व महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे, निग्गंथे पावयणे निस्संकिए निक्कंखिए निव्वितिगिच्छे लद्धट्ठे गहियट्ठे अभिगयट्ठे पुच्छियट्ठे विणिच्छियट्ठे अट्ठिमिंज-पेमाणुरागरत्ते अयमाउसो निग्गंथे पावयणे अट्ठे परमट्ठे सेसे अणट्ठे, ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्तंतेउर-घरप्पवेसे चाउद्दसट्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणे, समणे णिग्गंथे फासुएसणिज्जेणं Translated Sutra: प्रदेशी राजा अब श्रमणोपासक हो गया और जीव – अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता होता हुआ धार्मिक आचार – विचारपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। जबसे वह प्रदेशी राजा श्रमणोपासक हुआ तब से राज्य, राष्ट्र, बल, वाहन, कोठार, पुर, अन्तःपुर और जनपद के प्रति भी उदासीन रहने लगा। राजा प्रदेशी को राज्य आदि के प्रति उदासीन देखकर सूर्यकान्ता | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 81 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे सूरियकंताए देवीए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था –जप्पभिइं च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिइं च णं रज्जं च रट्ठं च बलं च बाहणं च कोट्ठागारं च पुरं च अंतेउरं च ममं जनवयं च अनाढायमाणे विहरइ, तं सेयं खलु मे पएसिं रायं केणवि सत्थप्पओगेण वा अग्गिप्पओगेण वा मंतप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा उद्दवेत्ता सूरियकंतं कुमारं रज्जे ठवित्ता सयमेव रज्जसिरिं कारेमाणीए पालेमाणीए विहरित्तए त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता सूरियकंतं कुमारं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–
जप्पभिइं च णं पएसी राया समणोवासए जाए तप्पभिइं च णं रज्जं च Translated Sutra: तब सूर्यकान्ता रानी को इस प्रकार का आन्तरिक यावत् विचार उत्पन्न हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि सूर्यकान्त कुमार प्रदेशी राजा के सामने मेरे इस रहस्य को प्रकाशित कर दे। ऐसा सोचकर सूर्यकान्ता रानी प्रदेशी राजा को मारने के लिए उसके दोष रूप छिद्रों को, कुकृत्य रूप आन्तरिक मर्मों को, एकान्त में सेवित निषिद्ध आचरण रूप | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 82 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सूरियाभस्स णं भंते! देवस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि पलिओवमाइं ठिती पन्नत्ता।
से णं सूरियाभे देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिति?
गोयमा! महाविदेहे वासे जाणि इमाणि कुलाणि भवंति–अड्ढाइं दित्ताइं विउलाइं वित्थिण्ण विपुल भवन सयनासन जाण वाहनाइं बहुधन बहुजातरूव रययाइं आओग पओग संपउत्ताइं विच्छड्डियपउरभत्तपाणाइं बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभू-याइं बहुजणस्स अपरिभूयाइं तत्थ अन्नयरेसु कुलेसु पुमत्ताए पच्चाइस्सइ।
तए णं तंसि दारगंसि गब्भगयंसि चेव समाणंसि अम्मापिऊणं धम्मे दढा पइण्णा भविस्सइ।
तए णं तस्स Translated Sutra: गौतम – भदन्त ! उस सूर्याभदेव की आयुष्यमर्यादा कितने काल की है ? गौतम ! चार पल्योपम की है। भगवन् ! आयुष्य पूर्ण होने, भवक्षय और स्थितिक्षय होने के अनन्तर सूर्याभदेव उस देवलोक से च्यवन करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में जो कुल आढ्य, दीप्त, विपुल बड़े कुटुम्ब परिवार वाले, बहुत से भवनों, | |||||||||
Rajprashniya | राजप्रश्नीय उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रदेशीराजान प्रकरण |
Hindi | 83 | Sutra | Upang-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं दढपतिण्णे दारगे पंचधाईपरिक्खित्ते–खीरधाईए मज्जणधाईए मंडणधाईए अंकधाईए कीलावणधाईए, अन्नाहि बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं वामणियाहिं वडभियाहिं बब्बरियाहिं बउसि-याहिं जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं थारु-इणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं दमिलाहिं सिंहलीहिं पुलिंदीहिं आरबीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मुरंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं नानादेसीहिं विदेस-परिमंडियाहिं इंगिय चिंतिय पत्थिय वियाणयाहिं सदेश नेवत्थ गहिय देसाहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं, चेडिया-चक्कवाल वरतरुणिवंद परियाल संपरिवुडे वरिसधर कंचुइमहयरवंदपरिक्खित्ते हत्थाओ हत्थं साहरिज्जमाणे-साहरिज्जमाणे Translated Sutra: उसके बाद वह दृढ़प्रतिज्ञ शिशु, क्षीरधात्री, मंडनधात्री, मज्जनधात्री, अंकधात्री और क्रीडापनधात्री – इन पाँच धायमाताओं की देखरेख में तथा इनके अतिरिक्त इंगित, चिन्तित, प्रार्थित को जानने वाली, अपने – अपने देश के वेष को पहनने वाली, निपुण, कुशल – प्रवीण एवं प्रशिक्षित ऐसी कुब्जा, चिलातिका, वामनी, वडभी, बर्बरी, बकुशी, |