Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures
Search :
Frequently Searched: , aare , Moral story , Vitrag vigyan , अभीगम

Search Results (28178)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 543 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहप्पगारेहिं जणेहिं हीलिए, ससद्दफासा फरुसा उदीरिया । तितिक्खए णाणि अदुट्ठचेयसा, गिरिव्व वाएण ण संपवेवए ॥

Translated Sutra: असंस्कारी एवं असभ्य जनों द्वारा कथित आक्रोशयुक्त शब्दों तथा – प्रेरित शीतोष्णादि स्पर्शों से पीड़ित ज्ञानवान भिक्षु प्रशान्तचित्त से सहन करे। जिस प्रकार वायु के प्रबल वेग से भी पर्वत कम्पायमान नहीं होता, वैसे मुनि भी विचलित न हो।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 544 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवेहमाणे कुसलेहिं संवसे, अकंतदुक्खी तसथावरा दुही । अलूसए सव्वसहे महामुनी, तहा हि से सुस्समणे समाहिए ॥

Translated Sutra: माध्यमस्थभाव का अवलम्बन करता हुआ वह मुनि कुशल – गीतार्थ मुनियों के साथ रहे। त्रस एवं स्थावर सभी प्राणियों को दुःख अप्रिय लगता है। अतः उन्हें दुःखी देखकर, किसी प्रकार का परिताप न देता हुआ पृथ्वी की भाँति सब प्रकार के परीषहोपसर्गों को सहन करने वाला महामुनि त्रिजगत्‌ – स्वभाववेत्ता होता है। इसी कारण उसे सुश्रमण
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 545 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विदू णते धम्मपयं अणुत्तरं, विणीयतण्हस्स मुनिस्स ज्झायओ । समाहियस्सऽग्गिसिहा व तेयसा, तवो य पण्णा य जसो य वड्ढइ ॥

Translated Sutra: अनुत्तर श्रमणधर्मपद में प्रवृत्ति करने वाला जो विद्वान्‌ – कालज्ञ एवं विनीत मुनि होता है, उस तृष्णारहित, धर्मध्यान में संलग्न समाहित – मुनि के तप, प्रज्ञा और यश अग्निशिखा के तेज की भाँति निरंतर बढ़ते रहते हैं।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 546 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिसोदिसंऽणंतजिणेण ताइणा, महव्वया खेमपदा पवेदिता । महागुरू णिस्सयरा उदीरिया, तमं व तेजो तिदिसं पगासया ॥

Translated Sutra: षट्‌काय के त्राता, अनन्त ज्ञानादि से सम्पन्न राग – द्वेष विजेता, जिनेन्द्र भगवान से सभी एकेन्द्रियादि भाव – दिशाओं में रहने वाले जीवों के लिए क्षेम स्थान, कर्म – बन्धन से दूर करने में समर्थ महान गुरु – महाव्रतों का उनके लिए निरूपण किया है। जिस प्रकार तेज तीनों दिशाओं के अन्धकार को नष्ट करके प्रकाश कर देता है,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 547 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सितेहिं भिक्खू असिते परिव्वए, असज्जमित्थीसु चएज्ज पूअणं । अणिस्सिओ लोगमिणं तहा परं, ण मिज्जति कामगुणेहिं पंडिए ॥

Translated Sutra: भिक्षु कर्म या रागादि निबन्धनजनक गृहपाश से बंधे हुए गृहस्थों के साथ आबद्ध – होकर संयम में विचरण करे तथा स्त्रियों के संग का त्याग करके पूजा – सत्कार आदि लालसा छोड़े। इहलोक तथा परलोक में निःस्पृह होकर रहे। कामभोगों के कटुविपाक का देखने वाला पण्डित मुनि मनोज्ञ – शब्दादि कामगुणों को स्वीकार न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 548 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहा विमुक्कस्स परिण्णचारिणो, धिईमओ दुक्खमस्स भिक्खुनो । विसुज्झई जंसि मलं पुरेकडं, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा ।

Translated Sutra: तथा सर्वसंगविमुक्त, परिज्ञा आचरण करने वाले, धृतिमान – दुःखों को सम्यक्‌ प्रकार से सहन करने में समर्थ, भिक्षु के पूर्वकृत कर्ममल उसी प्रकार विशुद्ध हो जाते हैं, जिस प्रकार अग्नि द्वारा चाँदी का मैल अलग हो जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 549 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] से हु प्परिण्णा समयंमि वट्टइ, णिराससे उवरय-मेहुणे चरे । भुजंगमे जुण्णतयं जहा जहे, विमुच्चइ से दुहसेज्ज माहणे ॥

Translated Sutra: जैसे सर्प अपनी जीर्ण त्वचा – कांचली को त्याग कर उससे मुक्त हो जाता है, वैसा ही जो भिक्षु परिज्ञा – सिद्धान्त में प्रवृत्त रहता है, लोक सम्बन्धी आशंसा से रहित, मैथुनसेवन से उपरत तथा संयम में विचरण करना, वह नरकादि दुःखशय्या या कर्म बन्धनों से मुक्त हो जाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 550 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, महासमुद्दं व भुयाहि दुत्तरं । अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, से हु मुनी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥

Translated Sutra: कहा है – अपार सलिल – प्रवाह वाले समुद्र को भुजाओं से पार करना दुस्तर है, वैसे ही संसाररूपी महासमुद्र को भी पार करना दुस्तर है। अतः इस संसार समुद्र के स्वरूप को जानकर उसका परित्याग कर दे। इस प्रकार पण्डित मुनि कर्मों का अन्त करने वाला कहलाता है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 551 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा हि बद्धं इह ‘माणवेहि य’, जहा य तेसिं तु विमोक्ख आहिओ । अहा तहा बंधविमोक्ख जे विऊ, से हु मुनी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥

Translated Sutra: मनुष्यों ने इस संसार के द्वारा जिस रूप से – प्रकृति – स्थिति आदि रूप से कर्म बांधे हैं, उसी प्रकार उन कर्मों का विमोक्ष भी बताया गया है। इस प्रकार जो विज्ञाता मुनि बन्ध और विमोक्ष का स्वरूप यथातथ्य रूप से जानता है, वह मुनि अवश्य ही संसार का या कर्मों का अंत करने वाला कहा गया है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-४

अध्ययन-१६ विमुक्ति

Hindi 552 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इमंमि लोए ‘परए य दोसुवि’, ण विज्जइ बंधण जस्स किंचिवि । से हु निरालंबणे अप्पइट्ठिए, कलंकली भावपहं विमुच्चइ ॥

Translated Sutra: इस लोक, परलोक या दोनों लोकों में जिसका किंचिन्मात्र भी रागादि बन्धन नहीं है, तथा जो साधक निरालम्ब है, एवं जो कहीं भी प्रतिबद्ध नहीं है, वह साधु निश्चय ही संसार में गर्भादि के पर्यटन के प्रपंच से विमुक्त हो जाता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 1 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं– इहमेगेसिं नो सण्णा भवइ ।

Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્‌ ! મેં સાંભળેલ છે કે તે ભગવંત મહાવીરે આમ કહ્યું હતું. સંસારમાં કેટલાક જીવોને આ સંજ્ઞા અર્થાત્ એ જ્ઞાન હોતું નથી કે – ),
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 2 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं जहा – पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, ‘अहे वा दिसाओ’ आगओ अहमंसि, अन्नयरिओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अनुदिसाओ वा आगओ अहमंसि एवमेगेसिं नो णातं भवति –

Translated Sutra: તે આ પ્રમાણે – સંસારમાં દરેક જીવોને એ જ્ઞાન હોતું નથી અથવા – હું પૂર્વદિશામાંથી આવ્યો છું અથવા હું દક્ષિણ દિશામાંથી આવ્યો છું. અથવા હું પશ્ચિમ દિશાથી આવ્યો છું અથવા હું ઉત્તરદિશાથી આવ્યો છું અથવા હું ઊર્ધ્વ દિશાથી આવ્યો છું અથવા હું અધોદિશાથી આવ્યો છું અથવા કોઈ અન્ય દિશા કે વિદિશાથી આવેલ છું. એ જ પ્રમાણે
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 3 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि मे आया ओववाइए, नत्थि मे आया ओववाइए, के अहं आसी? के वा इओ चुओ इह पेच्चा भविस्सामि?

Translated Sutra: કેટલાક જીવોને એ જ્ઞાન હોતું નથી કે – મારો આત્મા પુનર્જન્મ ધારણ કરનાર છે? અથવા મારો આત્મા પુનર્જન્મ ધારણ કરનાર નથી ? પુનર્જન્મમાં હું કોણ હતો ? અથવા અહીંથી ચ્યવીને કે મૃત્યુ પામીને હું પરલોકમાં શું થઈશ ?
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 4 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जं पुण जाणेज्जा–सहसम्मुइयाए, परवागरणेणं, अन्नेसिं वा अंतिए सोच्चा तं जहा–पुरत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दक्खिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पच्चत्थिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहे वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अन्नयरीओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अनुदिसाओ वा आगओ अहमंसि। एवमेगेसिं जं णातं भवइ–अत्थि मे आया ओववाइए। जो इमाओ ‘दिसाओ अनुदिसाओ वा’ अनुसंचरइ सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ ‘जो आगओ अनुसंचरइ’ सोहं।

Translated Sutra: કોઈ જીવ પોતાના જાતિસ્મરણ જ્ઞાનથી, તીર્થંકર આદિના વચનથી કે અન્ય વિશિષ્ટજ્ઞાનીની પાસેથી સાંભળી જાણી શકે છે કે, હું પૂર્વદિશાથી આવ્યો છું – યાવત્‌ – અન્ય દિશા કે વિદિશાથી આવેલો છું. એ જ રીતે કેટલાક જીવોને એવું જ્ઞાન હોય છે કે મારો આત્મા પુનર્ભવ કરવાવાળો છે, જે આ દિશા – વિદિશામાં વારંવાર આવાગમન કરે છે. જે સર્વે
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 5 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से आयावाई, लोगावाई, कम्मावाई, किरियावाई।

Translated Sutra: પૂર્વાદિ દિશામાં જે ગમનાગમન કરે છે, તે આત્મા હું જ છું એવું જે જ્ઞાન કે એવો નિશ્ચય જેને થઇ જાય છે તે પોતાને નિત્ય અને અમૂર્ત લક્ષણવાળો જાણે છે, આ સોऽહં) ‘તે હું જ છું’ એવું જ્ઞાન જેને છે તે જ જીવ આત્મ – વાદી છે. જે આત્મવાદી છે તે લોક અર્થાત્ પ્રાણીગણનો પણ સ્વીકાર કરે છે તેથી તે લોકવાદી છે. લોક – પરિભ્રમણ દ્વારા તે
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 6 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अकरिस्सं चहं, कारवेसुं चहं, करओ यावि समणुण्णे भविस्सामि।

Translated Sutra: કે મેં આ ક્રિયા કરી છે, હું કરાવું છું અને અન્ય કરનારને અનુમોદન આપીશ. એમ કહી ત્રણે કાળની ક્રિયાનો ઉલ્લેખ કરે છે, અને આ ક્રિયાનો કરનાર તે હું અર્થાત્ આત્મા છું, એમ કહી જીવનું અસ્તિત્વ જણાવે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 8 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अपरिण्णाय-कम्मे खलु अयं पुरिसे, जो इमाओ दिसाओ वा अनुदिसाओ वा अनुसंचरइ, सव्वाओ दिसाओ सव्वाओ अनुदिसाओ सहेति।

Translated Sutra: કર્મ અને કર્મબંધના સ્વરૂપને નહીં જાણનાર પુરૂષ અર્થાત્ આત્મા જ કર્મબંધના કારણે આ દિશા – વિદિશામાં વારંવાર આવાગમન કરે છે. અને પોતાનાં કર્મો અનુસાર સર્વે દિશા અને વિદિશામાં જાય છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 9 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनेगरूवाओ जोणीओ संधेइ, विरूवरूवे फासे य पडिसंवेदेइ।

Translated Sutra: તે આત્મા અનેક પ્રકારની યોનિઓ અર્થાત્ જીવ – ઉત્પત્તિ સ્થાન સાથે પોતાનો સંબંધ જોડે છે અને વિરૂપ એવો સ્પર્શો અર્થાત્ સુખ અને દુઃખનું વેદન કરે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 11 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं।

Translated Sutra: આ જીવનના માટે, વંદન – સન્માન અને પૂજનને માટે તથા જન્મ અને મરણથી છૂટવાને માટે અને દુઃખોના વિનાશને માટે અનેક મનુષ્યો કર્મ સમારંભ અર્થાત્ હિંસાના કારણભૂત ક્રિયાઓમાં પ્રવર્તે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-१ जीव अस्तित्व Gujarati 13 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जस्सेते लोगंसि कम्म-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे।

Translated Sutra: લોકમાં જેણે આ કર્મ સમારંભોને જાણ્યા છે, તે નિશ્ચયથી પરિજ્ઞાતકર્મા છે એટલે કે કર્મબંધના હેતુઓને જાણનાર અને તેનો ત્યાગ કરનાર વિવેકી મુનિ છે – તેમ ભગવંત પાસેથી સાંભળીને હું તમને કહું છું.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Gujarati 14 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अट्टे लोए परिजुण्णे, दुस्संबोहे अविजाणए। अस्सिं लोए पव्वहिए। तत्थ तत्थ पुढो पास, आतुरा परितावेंति।

Translated Sutra: વિષયકષાયથી ‘પીડિત’, જ્ઞાનાદિ ભાવોથી ‘હીન’, મુશ્કેલીથી ‘બોધ’ પ્રાપ્ત કરનાર અજ્ઞાની જીવ આ લોકમાં ઘણા જ વ્યથિત છે. કામ, ભોગાદિ માટે આતુર થયેલા તેઓ ઘર બનાવવા આદિ ભિન્ન ભિન્ન કાર્યોને માટે સ્થાને સ્થાને પૃથ્વીકાયિક જીવોને પરિતાપ કે કષ્ટ આપે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Gujarati 16 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव पुढवि-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा पुढवि-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा पुढवि-सत्थं समारंभंते समणुजाणइ।

Translated Sutra: પૃથ્વીકાયના આરંભ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા એટલે કે શુદ્ધ સમજ બતાવી છે કે – આ જીવિતનો વંદન – માનન અને પૂજનને માટે, જન્મ – મરણથી છૂટવા માટે, દુઃખોનો નાશ કરવાને માટે તેઓ સ્વયં જ પૃથ્વીશસ્ત્રોનો સમારંભ કરે છે, બીજા પાસે પૃથ્વીશસ્ત્રનો સમારંભ કરાવે છે, પૃથ્વી – શસ્ત્રનો આરંભ કરનારની અનુમોદના કરે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Gujarati 17 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णातं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं ‘विरूवरूवेहिं सत्थेहिं’ पुढवि-कम्म-समारंभेणं पुढवि-सत्थं समारंभेमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसइ। से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे, अप्पेगे गुप्फमब्भे, अप्पेगे गुप्फमच्छे, अप्पेगे जंघमब्भे, अप्पेगे जंघमच्छे, अप्पेगे जाणुमब्भे, अप्पेगे जाणुमच्छे, अप्पेगे ऊरुमब्भे, अप्पेगे ऊरुमच्छे, अप्पेगे कडिमब्भे, अप्पेगे कडिमच्छे,

Translated Sutra: પૃથ્વીકાયનો સમારંભ અર્થાત્ હિંસા, તે હિંસા કરનાર જીવોને અહિતને માટે થાય છે, અબોધી અર્થાત્ બોધી બીજના નાશને માટે થાય છે. જે સાધુ આ વાતને સારી રીતે સમજે છે, તે સંયમ – સાધનામાં તત્પર થઈ જાય છે. ભગવંત અને શ્રમણના મુખેથી ધર્મશ્રવણ કરીને કેટલાક મનુષ્યો એવું જાણે છે કે – આ પૃથ્વીકાયની હિંસા ગ્રંથિ અર્થાત્ કર્મબંધનું
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-२ पृथ्वीकाय Gujarati 18 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाता भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाता भवंति। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं पुढवि-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं पुढवि-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवण्णे पुढवि-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेते पुढवि-कम्म-समारंभा परिण्णाता भवंति, से हु मुनी परिण्णात-कम्मे।

Translated Sutra: જે પૃથ્વીકાય જીવો પર શસ્ત્રનો સમારંભ કરતા નથી, તે જ આ આરંભોનો પરિજ્ઞાતા – વિવેકી છે. આ પૃથ્વીકાયનો સમારંભ જાણીને બુદ્ધિમાન મનુષ્ય સાધુ) સ્વયં પૃથ્વીકાય શસ્ત્રનો સમારંભ હિંસા) કરે નહીં, બીજા દ્વારા પૃથ્વીકાય શસ્ત્રનો સમારંભ કરાવે નહીં અને પૃથ્વીકાય શસ્ત્રનો સમારંભ કરનારની અનુમોદના કરે નહીં. જેણે આ પૃથ્વીકર્મ
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Gujarati 19 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–से जहावि अनगारे उज्जुकडे, णियागपडिवण्णे, अमायं कुव्वमाणे वियाहिए।

Translated Sutra: મુનિના સ્વરૂપને વિશેષથી દર્શાવતા જણાવે છે – ભગવંત પાસેથી સાંભળીને હું તમને કહું છું. – જે સરળ આચરણવાળા છે, મોક્ષમાર્ગને પ્રાપ્ત કરેલ છે અને જેઓ કપટરહિત હોય છે તેને અણગાર અર્થાત્‌ સાધુ કહે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Gujarati 20 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जाए सद्धाए णिक्खंतो, तमेवअणुपालिया। विजहित्तु विसोत्तियं।

Translated Sutra: ગૃહ – ત્યાગ કરી જે શ્રદ્ધાથી સંયમ અંગીકાર કરેલ છે. તે સંયમમાં કોઈ પણ પ્રકારની શંકા નહીં કરતા યાવજ્જીવન તેટલી જ શ્રદ્ધાથી સંયમનું પાલન કરે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Gujarati 22 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लोगं च आणाए अभिसमेच्चा अकुतोभयं।

Translated Sutra: ભગવંતની આજ્ઞાથી અપ્‌કાયના જીવોને જાણીને તેઓને ભયરહિત કરે અર્થાત્ તે જીવોને કોઈ પ્રકારે પીડા ન પહોંચાડે, તેમના પ્રત્યે સંયમી રહે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Gujarati 23 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि– नेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, नेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा। जे लोयं अब्भाइक्खइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ। जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोयं अब्भाइक्खइ।

Translated Sutra: અપ્કાય સંબંધે વિશેષથી હું તને કહું છું કે – મુનિ સ્વયં અપ્‌કાય જીવોના અસ્તિત્વનો નિષેધ ન કરે એ રીતે આત્માના અસ્તિત્વનો પણ નિષેધ ન કરે. જે અપ્‌કાય આદિ પ્રાણીઓના ચૈતન્યનો નિષેધ કરે છે, તે આત્માના ચૈતન્યનો નિષેધ કરે છે, જે આત્માનો ચૈતન્યનો નિષેધ કરે છે તે અપ્‌કાયના ચૈતન્યનો નિષેધ કરે છે
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Gujarati 24 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं उदय-कम्म-समारंभेणं उदय-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव उदय-सत्थं समारंभति, अन्नेहिं वा उदय-सत्थं समारंभावेति, अन्ने वा उदय-सत्थं समारंभंते समणुजाणति। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं सुबंज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं ‘विरूवरूवेहिं

Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અપ્‌કાયના જીવોની અનેક પ્રકારના શસ્ત્રો દ્વારા સમારંભ કરતા બીજા જીવોની પણ હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક કહેલ છે. અજ્ઞાની જીવ આ ક્ષણિક જીવિતના
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Gujarati 25 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह च खलु भो! अनगाराणं उदय-जीवा वियाहिया। सत्थं चेत्थ अणुवीइ पासा।

Translated Sutra: અહીં જિનપ્રવચનમાં નિશ્ચયથી હે શિષ્ય! સાધુઓને અપ્‌કાયને ‘જીવ’ રુપે જ ઓળખાવાયેલ છે. અપ્‌કાયના જે શસ્ત્રો છે, તેના વિશે ચિંતન કરીને જો.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Gujarati 28 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ णे, कप्पइ णे पाउं, अदुवा विभूसाए।

Translated Sutra: અન્ય મતવાદીઓ કહે છે – અમને લોકોને પીવા માટે અથવા વિભૂષા માટે પાણી વાપરવામાં કોઈ દોષ નથી.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-३ अप्काय Gujarati 31 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं उदय-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं उदय-सत्थं समारंभावेज्जा, उदय-सत्थं समारंभंतेवि अन्ने न समणुजाणेज्जा। जस्सेते उदय-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णात-कम्मे।

Translated Sutra: જલકાય શસ્ત્રના સમારંભકર્તા મનુષ્ય પૂર્વોક્ત આરંભના ફળથી અજ્ઞાત છે. જેઓ જલકાય શસ્ત્રનો સમારંભ નથી કરતા એવા મુનિ આરંભોના ફળના જ્ઞાતા છે. આ જાણીને મેધાવી મુનિ અપ્‌કાય શસ્ત્રનો સમારંભ અર્થાત્ હિંસા જાતે કરતા નથી, બીજા પાસે કરાવતા નથી કે કરનારની અનુમોદના કરતા નથી. જે મુનિએ આ બધાં અપ્‌કાય શસ્ત્ર સમારંભને જાણેલા
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Gujarati 32 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] ‘से बेमि’–नेव सयं लोगं अब्भाइक्खेज्जा, नेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा। जे लोगं अब्भाइक्खवइ, से अत्ताणं अब्भाइक्खइ। जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ, से लोगं अब्भाइक्खइ।

Translated Sutra: અગ્નિકાય સંબંધે વિશેષથી હું તને કહું છું કે – સ્વયં કદી લોક અર્થાત્ અગ્નિકાયના સચેતનપણાનો નિષેધ ન કરે અને આત્માનો પણ અપ્‌લાપ ન કરે. જે અગ્નિકાયની સજીવતાનો નિષેધ કરે છે, તે આત્માનો નિષેધ કરે છે. જે આત્માનો નિષેધ કરે છે તે લોક અર્થાત્ અગ્નિકાયની સજીવતાનો નિષેધ કરે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Gujarati 33 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे दीहलोग-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे। जे असत्थस्स खेयण्णे, से दीहलोग-सत्थस्स खेयण्णे।

Translated Sutra: જે દીર્ઘલોક એટલે વનસ્પતિ અને શસ્ત્ર અર્થાત્‌ અગ્નિનાં સ્વરૂપને જાણે છે, તે અશસ્ત્ર અર્થાત્ સંયમના સ્વરૂપને પણ જાણે છે. જે સંયમને જાણે છે તે દીર્ઘલોકશસ્ત્ર અર્થાત્ વનસ્પતિના શસ્ત્રરૂપ અગ્નિકાયને પણ જાણે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Gujarati 34 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वीरेहिं एयं अभिभूय दिट्ठं, संजतेहिं सया जतेहिं सया अप्पमत्तेहिं।

Translated Sutra: સદા સંયત, સદા અપ્રમત્ત અને સદા યતનાવાન્ એવા વીરપુરૂષોએ પરિષહ આદિ જીતી, ઘનઘાતિકર્મોનો ક્ષય કરીને કેવળજ્ઞાન દ્વારા આ સંયમનું સ્વરૂપ જોયું છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Gujarati 35 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे पमत्ते गुणट्ठिए, से हु दंडे पवुच्चति।

Translated Sutra: જે પ્રમાદી છે, રાંધવું – પકાવવું આદિ ગુણના અથવા ઇન્દ્રિય સુખોના અર્થી છે, તે જ દંડદેનાર અથવા હિંસક કહેવાય છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Gujarati 37 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं अगणि-कम्म-समारंभेणं अगणि-सत्थं समारंभमाणे, अन्ने वणेगरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाई-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव अगणि-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा अगणि-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा अगणि-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा खलु भगवओ अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेहिं नायं भवति– एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं विरूवरूवेहिं

Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અનેક પ્રકારના શસ્ત્રોથી અગ્નિકાયના સમારંભ દ્વારા અગ્નિકાય જીવોની તથા અન્ય અનેક પ્રકારના જીવોની હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક કહેલ છે કે
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Gujarati 38 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि– अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे।(जाव) अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए। से बेमि– संति पाणा पुढवि- निस्सिया, तण- निस्सिया, पत्त- निस्सिया, कट्ठ- निस्सिया, गोमय- निस्सिया, कयवर- निस्सिया। संति संपातिमा पाणा, आहच्च संपयंति य। अगणिं च खलु पुट्ठा, एगे संघायमावज्जंति। जे तत्थ संघायमावज्जंति, ते तत्थ परियावज्जंति। जे तत्थ परियावज्जंति, ते तत्थ उद्दायंति।

Translated Sutra: તે હું તમને કહું છું કે – પૃથ્વી, તૃણ, પત્ર, લાકડું, છાણ અને કચરો એ સર્વેને આશ્રીને ત્રસ જીવો હોય છે, ઉડનારા જીવો પણ અગ્નિમાં પડે છે, આ જીવો અગ્નિના સ્પર્શથી સંકોચ પામે છે. અગ્નિમાં પડતા જ આ જીવો મૂર્ચ્છા પામે છે. મૂર્ચ્છા પામેલા તે મૃત્યુ પામે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-४ अग्निकाय Gujarati 39 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं अगणि-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं अगणि-सत्थे समारंभावेज्जा, अगणि-सत्थं समारंभमाणे अन्ने न समणुजाणेज्जा। जस्सेते अगणि-कम्म-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे।

Translated Sutra: અગ્નિકાયમાં શસ્ત્રનો સમારંભ ન કરનાર અર્થાત્ હિંસા ન કરનાર આ બધા આરંભનો અર્થાત્ હિંસાના પરિણામનો જ્ઞાતા હોય છે. આ આરંભને જાણીને મેઘાવી સાધુ અગ્નિશસ્ત્ર સમારંભ જાતે કરે નહીં, બીજા પાસે કરાવે નહીં, કરનારની અનુમોદના કરે નહીં. જેણે આ બધા અગ્નિકર્મ સમારંભના અશુભ પરિણામને જાણ્યા છે અને જાણીને તેનો ત્યાગ કર્યો
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 40 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं नो करिस्सामि समुट्ठाए । मंता मइमं अभयं विदित्ता। तं जे नो करए एसोवरए, एत्थोवरए एस अनगारेत्ति पवुच्चइ।

Translated Sutra: સંયમના સ્વરૂપને સમજીને અને પ્રત્યેક જીવ અભય ઇચ્છે છે એ જાણીને જે બુદ્ધિમાન સાધુ એવો નિર્ણય કરે કે હું સંયમ અંગીકાર કરીને હું કોઈને પણ પીડા આપીશ નહી, તેઓ વનસ્પતિની હિંસા ન કરે. તે જ હિંસાથી નિવૃત્ત થવાથી વિરત કહેવાય છે અને જિનમતમાં જે પરમાર્થથી વિરત છે, તે જ અણગાર કહેવાય છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 41 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे गुणे से आवट्टे, जे आवट्टे से गुणे।

Translated Sutra: જે શબ્દાદિ ગુણ અર્થાત્ શબ્દ આદિ વિષય છે તે જ આવર્ત અર્થાત્ સંસારના કારણો છે અને જે આવર્ત એટલે કે સંસારના કારણો છે તે જ ગુણ એટલે શબ્દ આદિ વિષયો છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 42 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अड्ढं अहं तिरियं पाईणं ‘पासमाणे रूवाइं पासति’, ‘सुणमाणे सद्दाइं सुणेति’।

Translated Sutra: આ જીવ ઉર્ધ્વ, અધો, તિર્છુ અને પૂર્વ આદિ દિશામાં અનેક પદાર્થોના સંપર્કમાં આવતા વિવિધ રૂપોને જુએ છે, સાંભળતો એવો તે શબ્દોને સાંભળે છે. ઉર્ધ્વ, અધો, તિર્છુ અને પૂર્વ આદિ દિશામાં જોયેલ રૂપમાં અને સાંભળેલ શબ્દમાં આસક્ત થાય છે. આ આસક્તિ એ સંસાર કહેવાય છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 43 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उड्ढं अहं तिरियं पाईणं मुच्छमाणे रूवेसु मुच्छति, सद्देसु आवि। एस लोए वियाहिए। एत्थ अगुत्ते अणाणाए।

Translated Sutra: આ પ્રમાણે શબ્દ આદિ વિષયરૂપ ‘લોક’ કહ્યો. જે આ શબ્દાદિ વિષયોમાં પોતાની ચિત્ત – વૃત્તિનું ગોપન કરતા નથી, તે ભગવંતની આજ્ઞાથી બહાર છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 44 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुणो-पुनो गुणासाए, वंकसमायारे।

Translated Sutra: વારંવાર શબ્દાદિ વિષયોમાં ઈચ્છા રાખતા તે અસંયમનું આચરણ કરે છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 45 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: पमत्ते गारमावसे।

Translated Sutra: ઉપર કહેલ અસંયમી, પ્રમાદી બની ગૃહત્યાગી હોવા છતાં ગૃહસ્થભાવને લીધે જેમ ગૃહવાસી જ છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 46 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] लज्जमाणा पुढो पास। अनगारा मोत्ति एगे पवयमाणा। जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्म-समारंभेणं वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे अन्ने वगेणरूवे पाणे विहिंसति। तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेदिता। इमस्स चेव जीवियस्स, परिवंदण-माणण-पूयणाए, जाती-मरण-मोयणाए, दुक्खपडिघायहेउं। से सयमेव वणस्सइ-सत्थं समारंभइ, अन्नेहिं वा वणस्सइ-सत्थं समारंभावेइ, अन्ने वा वणस्सइ-सत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ। तं से अहियाए, तं से अबोहीए। से तं संबुज्झमाणे, आयाणीयं समुट्ठाए। सोच्चा भगवओ, अनगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं नायं भवति–एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णिरए। इच्चत्थं गढिए लोए। जमिणं

Translated Sutra: હે શિષ્ય! સંયમી સાધુ હિંસાથી લજ્જા પામતા હોવાથી જીવ – હિંસા કરતા નથી તેને તું જો અને આ શાક્ય આદિ સાધુઓને તું જો ! કે જેઓ ‘‘અમે અણગાર છીએ’’ એમ કહીને અનેક પ્રકારના શસ્ત્રોથી વનસ્પતિ કર્મ સમારંભથી વનસ્પતિ જીવોની હિંસા કરતા બીજા પણ અનેક જીવોની હિંસા કરે છે. આ વિષયમાં ભગવંતે પરિજ્ઞા અર્થાત્ વિવેક કહ્યો છે. આ જીવનને
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 47 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–अप्पेगे अंधमब्भे, अप्पेगे अंधमच्छे। अप्पेगे पायमब्भे, अप्पेगे पायमच्छे। (जाव) अप्पेगे संपमारए, अप्पेगे उद्दवए। से बेमि–इमंपि जाइधम्मयं, एयंपि जाइधम्मयं। इमंपि बुड्ढिधम्मयं, एयंपि बुड्ढिधम्मयं। इमंपि चित्तमंतयं, एयंपि चित्तमंतयं। इमंपि छिन्नं मिलाति, एयंपि छिन्नं मिलाति। इमंपि आहारगं, एयंपि आहारगं। इमंपि अनिच्चयं, एयंपि अनिच्चयं। इमंपि असासयं, एयंपि असासयं। इमंपि चयावचइयं, एयंपि चयावचइयं। इमंपि विपरिनामधम्मयं, एयंपि विपरिनामधम्मयं।

Translated Sutra: તે હું તમને કહું છું – માનવ શરીર સાથે વનસ્પતિકાયની સમાનતા દર્શાવતા કહે છે) જે રીતે માનવ શરીર જન્મ લે છે, વૃદ્ધિ પામે છે, ચેતનવંત છે, છેદાતા કરમાય છે, આહાર લે છે, અનિત્ય છે, અશાશ્વત છે, વધે – ઘટે છે અને વિકારને પામે છે એ જ રીતે વનસ્પતિ પણ ઉત્પન્ન થાય છે, વૃદ્ધિ પામે છે, ચેતનાયુક્ત છે, છેદાતા કરમાય છે, આહાર લે છે, અનિત્ય
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-५ वनस्पतिकाय Gujarati 48 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा अपरिण्णाया भवंति। एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति। तं परिण्णाय मेहावी– नेव सयं वणस्सइ-सत्थं समारंभेज्जा, नेवन्नेहिं वणस्सइ-सत्थं समारंभावेज्जा, नेवन्नेवणस्सइ-सत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा। जस्सेते वणस्सइ-सत्थ-समारंभा परिण्णाया भवंति, से हु मुनी परिण्णाय-कम्मे।

Translated Sutra: વનસ્પતિકાયનો સમારંભ કરનાર તેના આરંભના પરિણામોથી અજાણ હોય છે અને વનસ્પતિશસ્ત્રનો સમારંભ ન કરનાર આ હિંસાજન્ય વિપાકોનો પરિજ્ઞાતા હોય છે અર્થાત્ ઉપર કહેલ હિંસા આદિ ક્રિયાઓ કર્મબંધનું કારણ છે એવો વિવેક તેને હોય છે. આવું જાણી મેઘાવી પુરુષ વનસ્પતિકાયની હિંસા સ્વયં ન કરે, બીજા પાસે ન કરાવે, કરનારને અનુમોદે નહીં.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-६ त्रसकाय Gujarati 49 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से बेमि–संतिमे तसा पाणा, तं जहा–अंडया पोयया जराउया रसया संसेयया संमुच्छिमा उब्भिया ओव-वाइया। एस संसारेत्ति पवुच्चति।

Translated Sutra: હું કહું છું કે – આ બધા ત્રસ પ્રાણી છે. તે આ પ્રમાણે – અંડજ, પોતજ, જરાયુજ, રસજ, સંસ્વેદજ, સંમૂર્ચ્છિમ, ઉદ્ભિજ્જ અને ઔપપાતિક. આ આઠ પ્રકારના ત્રસજીવોનો સમુદાય જ સંસાર કહેવાય છે.
Acharang આચારાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-१ शस्त्र परिज्ञा

उद्देशक-६ त्रसकाय Gujarati 51 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निज्झाइत्ता पडिलेहित्ता पत्तेयं परिणिव्वाणं। सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूयाणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं अस्सायं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं ति बेमि। तसंति पाणा पदिसोदिसासु य।

Translated Sutra: હું સારી રીતે ચિંતવીને અને જોઈને કહું છું – પ્રત્યેક પ્રાણી પોત – પોતાનું સુખ ભોગવે છે. બધાં પ્રાણી અર્થાત્ વિકલેન્દ્રિય, બધાં ભૂત અર્થાત્ વનસ્પતિ, બધાં જીવ અર્થાત્ પંચેન્દ્રિય, બધાં સત્ત્વ અર્થાત્ એકેન્દ્રિયને અશાતા અને અશાંતિ મહાભયંકર અને દુઃખદાયી છે. તેમ હું કહું છું. આ પ્રાણી દિશા – વિદિશાથી ભયભીત બની
Showing 651 to 700 of 28178 Results