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Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1000 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वाणमंतर-देवत्ता चइऊणं गोयमासडो। रासहत्ताए तेरिच्छेसुं नरिंद-घरमागओ॥

Translated Sutra: वाणमंतर देव में से च्यवकर हे गौतम ! वो आसड़ तिर्यंच गति में राजा के घर गधे के रूप में आएगा। वहाँ हंमेशा घोड़े के साथ संघट्टन करने के दोष से उसके वृषण में व्याधि पैदा हुआ और उसमें कृमि पैदा हुए। वृषण हिस्से में कृमि से खाए जानेवाले हे गौतम ! आहार न मिलने से दर्द से पीड़ित था और पृथ्वी चाटता था। इतने में दूर से साधु वापस
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1016 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भगवं जो बलविरियं पुरिसयार-परक्कमं। अनिगूहंतो तवं चरइ, पच्छित्तं तस्स किं भवे॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! जो कोई भी मानव अपने में जो कोई बल, वीर्य पुरुषकार पराक्रम हो उसे छिपाकर तप सेवन करे तो उसका क्या प्रायश्चित्त आए ? हे गौतम ! अशठ भाववाले उसे यह प्रायश्चित्त हो सकता है। क्योंकि वैरी का सामर्थ्य जानकर अपनी ताकत होने के बावजूद भी उसने उसकी अपेक्षा की है जो अपना बल वीर्य, सत्त्व पुरुषकार छिपाता है, वो शठ
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1020 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] से भगवं पावयं कम्मं परं वेइय समुद्धरे। अणणुभूएण नो मोक्खं, पायच्छित्तेण किं तहिं॥

Translated Sutra: हे भगवंत ! बड़ा पापकर्म वेदकर खपाया जा सकता है। क्योंकि कर्म भुगते बिना उसका छूटकारा नहीं किया जा सकता। तो वहाँ प्रायश्चित्त करने से क्या फायदा ? हे गौतम ! कईं क्रोड़ साल से इकट्ठे किए गए पापकर्म सुरज से जैसे तुषार – हीम पीगल जाए वैसे प्रायश्चित्त समान सूरज के स्पर्श से पीगल जाता है। घनघोर अंधकार वाली रात हो लेकिन
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1044 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जम्हा तीसु वि एएसु, अवरज्झंतो हु गोयमा । उम्मग्गमेव वद्धारे, मग्गं निट्ठवइ सव्वहा॥

Translated Sutra: इस तीन में अपराध करनेवाला हे गौतम ! उन्मार्ग का व्यवहार करते थे और सर्वथा मार्ग का विनाश करनेवाला होता है। हे भगवंत ! इस दृष्टांत से जो गृहस्थ उत्कट मदवाले होते हैं। और रात या दिन में स्त्री का त्याग नहीं करते उसकी क्या गति होगी ? वो अपने शरीर के अपने ही हस्त से छेदन करके तल जितने छोटे टुकड़े करके अग्नि में होम करे
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1050 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सावग-धम्मं जहुत्तं जो पाले पर-दारं चए। जावज्जीवं तिविहेणं तमनुभावेण सा गई॥

Translated Sutra: यदि किसी आत्मा कहा गया श्रावक धर्म पालन करता है और परस्त्री का जीवन पर्यन्त त्रिविध से त्याग करत हैं। उसके प्रभाव से वो मध्यम गति पाता है। यहाँ खास बात तो यह ध्यान में रखनी कि नियम रहित हो, परदारा गमन करनेवाला हो, उनको कर्मबंध होता है। और जो उसकी निवृत्ति करता है, पच्चक्खाण करता है, उन्हें महाफल की प्राप्ति होती
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1052 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुथेवाणं पि निवित्तिं, जो मनसा वि य विराहए। सो मओ दोग्गइं गच्छे मेघमाला जहज्जिया।

Translated Sutra: पाप की हुई निवृत्ति को यदि कोई अल्प प्रमाण में भी विराधना करे, केवल मन से ही विराधना करे तो जिस तरह से मेघमाला नामकी आर्या मरके दुर्गति में गई उस प्रकार मन से अल्प भी व्रत की विराधना करनेवाला दुर्गति पाता है। हे भुवन के बँधव ! मन से भी अल्प प्रत्याख्यान का खंड़न करके मेघमाला से जो कर्म उपार्जन किया और दुर्गति पाई,
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1077 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ता जे अविदिय-परमत्थे, गोयमा नो य जे मुणे। तम्हा ते विवज्जेज्जा, दोग्गई-पंथ-दायगे॥

Translated Sutra: इसलिए जो परमार्थ को नहीं जानते और हे गौतम ! जो अज्ञानी हैं, वो दुर्गति के पंथ को देनेवाले ऐसे पृथ्वीकाय आदि कि विराधना गीतार्थ गुरु निश्रा में रहकर संयम आराधना करनी। गीतार्थ के वचन से हलाहल झहर का पान करना। किसी भी विकल्प किए बिना उनके वचन के मुताबिक तत्काल झहर का भी भक्षण कर लेना। परमार्थ से सोचा जाए तो वो विष
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1512 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सा उण रायकुल वालिया नरिंद समणी गोयमा तेण माया सल्ल भाव दोसेणं उववण्णा विज्जुकुमारीणं वाहणत्ताए णउली-रूवेणं किंकरीदेवेसुं। ततो चुया समाणी पुणो पुणो उववज्जंती वावज्जंती अहिंडिया मानुस तिरिच्छेसुं सयल दोहग्ग दुक्ख दारिद्द परिगया सव्वलोय परिभूया सकम्मफलमनुभवमाणी गोयमा जाव णं कह कह वि कम्माणं खओवसमेणं बहु भवंतरेसुं तं आय-रिय पयं पाविऊण निरइयार सामन्न परिपालणेणं सव्वत्थामेसुं च सव्वपमायालंबण विप्पमुक्केणं तु उज्जमिऊणं निद्दड्ढावसेसी कय भवंकुरे तहा वि गोयमा जा सा सरागा चक्खुणालोइया तया तक्कम्मदोसेणं माहणित्थित्ताए परिनिव्वुडे णं से रायकुलवालियानरिंद

Translated Sutra: हे गौतम ! वो राजकुलबालिका नरेन्द्र श्रमणी उस माया शल्य के भावदोष से विद्युत्कुमार देवलोक में सेवक देव में स्त्री नेवले के रूप में उत्पन्न हुई। वहाँ से च्यवकर फिर उत्पन्न होती और मर जाती मानव और तिर्यंच गति में समग्र दौर्भाग्य दुःख दारिद्र पानेवाली समग्र लोक से पराभव – अपमान, नफरत पाते हुए अपने कर्म के फल को
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1124 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहं सुहेण जं धम्मं सव्वो वि अणुट्ठए जणो। न कालं कडयडस्सऽज्जं धम्मस्सिति जा विचिंतइ॥

Translated Sutra: या उनको एक ओर रख दो। मैं खुद ही सुख से हो सके और सब लोग कर सके ऐसा धर्म बताऊंगा। यह जो कड़कड़ – कठिन धर्म करने का समय नहीं है। ऐसा जितने में चिन्तवन करते हैं उतने में तो उन धड़धड़ आवाज करनेवाली बिजली गिर पड़ी। हे गौतम ! वो वहाँ मरकर सातवीं नरक पृथ्वी में पैदा हुआ। शासन श्रमणपन श्रुतज्ञान के संसर्ग के प्रत्यनीकपन की
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1139 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सारासारमयाणित्ता, अगीयत्थत्त-दोसओ। वय-मेत्तेणा वि रज्जाए पावगं जं समज्जियं॥

Translated Sutra: सारासार को पहचाने बिना अगीतार्थपन के दोष से रज्जुआर्या ने केवल एक वचन से जो पाप का उपार्जन किया, उस पाप से उस बेचारी को नारकी – तिर्यंच गति में और अधम मानवपन में जिस तरह की नियंत्रण की हैरान गति भुगतनी पड़ेगी, वो सुनकर किसे धृति प्राप्त होगी ? सूत्र – ११३९, ११४०
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1233 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं सो लक्खणज्जाए जीवो गोयमा चिरं। घन-घोर-दुक्ख-संतत्तो, चउगइ-संसार-सागरे॥

Translated Sutra: उस प्रकार लक्ष्मणा साध्वी का जीव हे गौतम ! लम्बे अरसे तक कठिन घोर दुःख भुगतते हुए चार गति रूप संसार में नारकी तिर्यंच और कुमानवपन में भ्रमण करके फिर से यहाँ श्रेणीक राजा का जीव जो आनेवाली चौबीसी में पद्मनाभ के पहले तीर्थंकर होंगे उनके तीर्थ में कुब्जिका के रूप में पैदा होगा। शरीरसीबी की खाण समान गाँव में या
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1298 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तित्थंकराण नो भूयं नो भवेज्जा उ गोयमा । मुसावायं न भासंते गोयमा तित्थंकरे॥

Translated Sutra: दूसरा तीर्थंकर भगवंत को भी राग, द्वेष, मोह, भय, स्वच्छंद व्यवहार भूतकाल में नहीं था, और भावि में होगा भी नहीं। हे गौतम ! तीर्थंकर भगवंत कभी भी मृषावाद नहीं बोलते। क्योंकि उन्हें प्रत्यक्ष केवलज्ञान है, पूरा जगत साक्षात्‌ देखता है। भूत भावि, वर्तमान, पुण्य – पाप और तीन लोक में जो कुछ है वो सब उनको प्रकट है, शायद
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1303 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भाणेंति जइ वि भुवणस्स पलयं हवइ तक्खणे। जं हिय सव्व-जग-जीव-पाण-भूयाण केवलं। तं अणुकंपाए तित्थयरा धम्मं भासिंति अवितहं॥

Translated Sutra: शायद तत्काल इस भुवन का प्रलय हो तो भी वो सभी जगत के जीव, प्राणी, भूत का एकत्व हित हो उस प्रकार अनुकंपा से यथार्थ धर्म को तीर्थंकर कहते हैं। जिस धर्म को अच्छी तरह से आचरण किया जाए उसे दुर्भगता का दुःख दारिद्र रोग शोक दुर्गति का भय नहीं होता। और संताप उद्वेग भी नहीं होते। सूत्र – १३०३, १३०४
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1311 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एत्थ जम्मे नरो कोइ, कसिणुग्गं संजमं तवं। जइ नो सक्कइ काउं जे तह वि सोग्गइ-पिवासिओ॥

Translated Sutra: किसी मानव इस जन्म में समग्र उग्र संयम तप करने के लिए समर्थ न हो सके तो भी सद्‌गति पाने की अभिलाषावाला है। पंछी के दूध का, एक केश ऊखेड़ने का, रजोहरण की एक दशी धारण करना, वैसे नियम धारण करना, लेकिन इतने नियम भी जावज्जीव तक पालन के लिए समर्थ नहीं, तो हे गौतम ! उस के लिए तुम्हारी बुद्धि से सिद्धि का क्षेत्र इस के अलावा
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1314 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मंडवियाए भवेयव्वं दुक्कर-कारि भणित्तु णं। नवरं एयारिसं भविया, किमत्थं गोयमा एयं पुणो तं पपुच्छसी॥

Translated Sutra: फिर से तुम्हें यह पूछे गए सवाल का प्रत्युत्तर देता हूँ कि चार ज्ञान के स्वामी, देव – असुर और जगत के जीव से पूजनीय निश्चित उस भव में ही मुक्ति पानेवाले हैं। आगे दूसरा भव नहीं होगा। तो भी अपना बल, वीर्य, पुरुषकार पराक्रम छिपाए बिना उग्र कष्टमय घोर दुष्कर तप का वो सेवन करते हैं। तो फिर चार गति स्वरूप संसार के जन्म
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1328 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुन कच्छभो जाओ तहा वि तं रिद्धिं न पेच्छए। एवं चउगई-भव-गहणे दुलभे मानुसत्तणे॥

Translated Sutra:
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1330 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दियहाइं दो व तिन्नि व अद्धाणं होइ जं तुलग्गेण। सव्वायरेण तस्स वि संवलयं लेइ पवसंतो॥

Translated Sutra: दो, तीन दिन की बाहर गाँव की सफर करनी होती है, तो सर्वादर से मार्ग की जरुरते, खाने का भाथा आदि लेकर फिर प्रयाण करते हैं तो फिर चोराशी लाख योनिवाले संसार की चार गति की लम्बी सफर के प्रवास के लिए तपशील – स्वरूप धर्म के भाथा का चिन्तवन क्यों नहीं करता ? जैसे जैसे प्रहर, दिन, मास, साल, स्वरूप समय पसार होता है, वैसे वैसे महा
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1342 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पत्ते य काम-भोगे कालं अनंतं इहं सउवभोगे। अपुव्वं चिय मन्नए जीवो तह वि य विसय-सोक्खं॥

Translated Sutra: इस जीव ने अनन्तकाल तक हर – एक कामभोग यहाँ भुगते हैं। फिर भी हरएक वक्त विषय सुख अपूर्ण लगते हैं। लू – खस, खुजली के दर्दवाला शरीर को खुजलाते हुए दुःख को सुख मानता है वैसे मोह में बेचैन मानव काम के दुःख का सुख रूप मानते हैं। जन्म, जरा, मरण से होनेवाले दुःख को पहचानते हैं, अहेसास करते हैं। वो भी हे गौतम ! दुर्गति में
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अध्ययन-६ गीतार्थ विहार

Hindi 1344 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जाणंति अणुहवंति य जम्म-जरा-मरण-संभवे दुक्खे। न य विसएसु विरज्जंति गोयमा दोग्गई-गमण-पत्थिए जीवे॥

Translated Sutra:
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1364 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाऊण सुवीसत्थो सामायारिं किया-कलावं च। आलोइय-नीसल्लो, आगब्भा परम-संविग्गो॥

Translated Sutra: चैत्यवंदन, प्रतिक्रमण, जीवादिक तत्त्व के सद्‌भाव की श्रद्धा, पाँच समिति, पाँच इन्द्रिय का दमन, तीन गुप्ति, चार कषाय का निग्रह उन सब में सावध रहना, साधुपन की सामाचारी और क्रिया – कलाप जानकर विश्वस्त होनेवाले, लगे हुए दोष की आलोचना करके शल्यरहित, गर्भावास आदि के दुःख की वजह से, काफी संवेग पानेवाला, जन्म, जरा, मरण
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1374 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो चंदनेन बाहुं आलिंपइ वासिणा व जो तच्छे। संथुणइ जो अ निंदइ सम-भावो हुज्ज दुण्हं पि॥

Translated Sutra: जो कोइ बावन चंदन के रस से शरीर और और बाहूँ पर विलेपन करे, या किसी बाँस से शरीर छिले, कोई उसके गुण की स्तुति करे या अवगुण की नींदा करे तो दोनो पर समान भाव रखनेवाला उस प्रकार बल, वीर्य, पुरुषार्थ पराक्रम को न छिपाते हुए, तृण और मणि, ढ़ेफा और कंचन की ओर समान मनवाला, व्रत, नियम, ज्ञान, चारित्र, तप आदि समग्र भुवन में अद्वितीय,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1379 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं तं बितियं पायच्छित्तस्सणं पयं गोयमा बीयं तइयं चउत्थं पंचमं जाव णं संखाइयाइं पच्छित्तस्स णं पयाइं ताव णं एत्थं च एव पढम पच्छित्त पए अंतरोवगायाइं समनुविंदा। से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ गोयमा जओ णं सव्वावस्सग्ग-कालाणुपेही भिक्खू णं रोद्दट्टज्झाण राग दोस कसाय गारव ममाकाराइसुं णं अनेग पमायालंबणेसु सव्व भाव भावतरंतरेहि णं अच्चंत विप्पमुक्को भवेज्जा। केवलं तु नाण दंसण चारित्त तवोकम्म सज्झायज्झाण सद्धम्मावस्सगेसु अच्चंतं अनिगूहिय बल वीरिय परक्कमे सम्मं अभिरमेज्जा। जाव णं सद्धम्मावस्सगेसुं अभिरमेज्जा, ताव णं सुसंवुडासवदारे हवेज्जा। जाव

Translated Sutra: हे भगवंत ! प्रायश्चित्त का दूसरा पद क्या है ? हे गौतम ! दूसरा, तीसरा, चौथा, पाँचवा यावत्‌ संख्यातीत प्रायश्चित्त पद स्थान को यहाँ प्रथम प्रायश्चित्त पद के भीतर अंतर्गत्‌ रहे समझना। हे भगवंत ! ऐसा किस कारण से आप कहते हो ? हे गौतम ! सर्व आवश्यक के समय का सावधानी से उपयोग रखनेवाले भिक्षु रौद्र – आर्तध्यान, राग, द्वेष,
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1390 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं जया णं से सीसे जहुत्त संजम किरियाए पवट्टंति तहाविहे य केई कुगुरू तेसिं दिक्खं परूवेज्जा, तया णं सीसा किं समनुट्ठेज्जा गोयमा घोर वीर तव संजमे से भयवं कहं गोयमा अन्न गच्छे पविसित्ताणं। से भयवं जया णं तस्स संतिएणं सिरिगारेणं विम्हिए समाणे अन्नगच्छेसुं पवेसमेव न लभेज्जा, तया णं किं कुव्विज्जा गोयमा सव्व-पयारेहिं णं तं तस्स संतियं सिरियारं फुसावेज्जा। से भयवं केणं पयारेणं तं तस्स संतियं सिरियारं सव्व पयारेहि णं फुसियं हवेज्जा गोयमा अक्खरेसुं से भयवं किं णामे ते अक्खरे गोयमा जहा णं अप्पडिग्गाही कालकालंतरेसुं पि अहं इमस्स सीसाणं वा सीसिणीगाणं वा। से भयवं

Translated Sutra: हे भगवंत ! जब शिष्य यथोक्त संयमक्रिया में व्यवहार करता हो तब कुछ कुगुरु उस अच्छे शिष्य के पास उनकी दीक्षा प्ररूपे तब शिष्य का कौन – सा कर्तव्य उचित माना जाता है ? हे गौतम ! घोर वीर तप का संयम करना। हे भगवंत ! किस तरह ? हे गौतम ! अन्य गच्छ में प्रवेश करके। हे भगवंत ! उसके सम्बन्धी स्वामीत्व की फारगति दिए बिना दूसरे गच्छ
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1397 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुसुमिण-दुन्निमित्ते गह-पीडुवसग्ग-मारि-रिट्ठ-भए, वासासणिविज्जूए वायारी महाजन-विरोहे॥

Translated Sutra: दुःस्वप्न, दुर्निमित्त, ग्रहपीड़ा, उपसर्ग, शत्रु या अनिष्ट के भय में, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बीजली, उल्कापात, बूरा पवन, अग्नि, महाजन का विरोध आदि जो कुछ भी इस लोक में होनेवाले भय हो वो सब इस विद्या के प्रभाव से नष्ट होते हैं। मंगल करनेवाला, पाप हरण करनेवाला, दूसरे सभी अक्षय सुख देनेवाला ऐसा प्रायश्चित्त करने की ईच्छावाले
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1408 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मरिऊणं नरय-तिरिएसुं कुंभीपाएसु कत्थई। कत्थइ करवत्त-जंतेहिं कत्थइ भिन्नो हु सूलिए॥

Translated Sutra: प्रायश्चित्त किए बिना आत्मा भवान्तर में मरकर नरक, तिर्यंच गति में कहीं कुम्भीपाक में, कहीं करवत से दोनों ओर कटता है। कहीं शूली से बींधाता है। कहीं पाँव में रस्सी बाँधकर जमीं पर काँटे – कंकर में घसिट जाता है। कहीं खड़ा जाता है। कहीं शरीर का छेदन – भेदन किया जाता है। और फिर रस्सी – साँकल – बेड़ी से जकड़ा जाता है।
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-७ प्रायश्चित् सूत्रं

चूलिका-१ एकांत निर्जरा

Hindi 1439 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं आया संक्खेयव्वो उयाहु छज्जीव-निकायमाइ संजमं संरक्खेव्वं गोयमा जे णं छक्कायाइ-संजमं संरक्खे से णं अनंतदुक्ख पयागयाओ दोग्गइ गमणाओ अत्ताणं संरक्खे, तम्हा उ छक्कायाइ संजममेव रक्खेयव्वं होइ।

Translated Sutra: हे भगवंत ! क्या आत्मा को रक्षित रखे कि छ जीवनिकाय के संयम की रक्षा करे ? हे गौतम ! जो कोई छ जीवनिकाय के संयम का रक्षण करनेवाला होता है वो अनन्त दुःख देनेवाला दुर्गति गमन अटकने से आत्मा की रक्षा करनेवाला होता है। इसलिए छ जीवनिकाय की रक्षा करना ही आत्मा की रक्षा माना जाता है। हे भगवंत ! वो जीव असंयम स्थान कितने बताए
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अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1484 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं केणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ ते णं काले णं ते णं समएणं सुसढणामधेज्जे अनगारे हभूयवं। तेणं च एगेगस्स णं पक्खस्संतो पभूय-ट्ठाणिओ आलोयणाओ विदिन्नाओ सुमहंताइं च। अच्चंत घोर सुदुक्कराइं पायच्छित्ताइं समनुचिन्नाइं। तहा वि तेणं विरएणं विसोहिपयं न समुवलद्धं ति एतेणं अट्ठेणं एवं वुच्चइ। से भयवं केरिसा उ णं तस्स सुसढस्स वत्तव्वया गोयमा अत्थि इहं चेव भारहेवासे, अवंती नाम जनवओ। तत्थ य संबुक्के नामं खेडगे। तम्मि य जम्मदरिद्दे निम्मेरे निक्किवे किविणे निरणुकंपे अइकूरे निक्कलुणे णित्तिंसे रोद्दे चंडरोद्दे पयंडदंडे पावे अभिग्गहिय मिच्छादिट्ठी अणुच्चरिय नामधेज्जे

Translated Sutra: हे भगवंत ! किस कारण से ऐसा कहा ? उस समय में उस समय यहाँ सुसढ़ नाम का एक अनगार था। उसने एक – एक पक्ष के भीतर कईं असंयम स्थानक की आलोचना दी और काफी महान घोर दुष्कर प्रायश्चित्त का सेवन किया। तो भी उस बेचारे को विशुद्धि प्राप्त नहीं हुई। इस कारण से ऐसा कहा। हे भगवंत ! उस सुसढ़ की वक्तव्यता किस तरह की है ? हे गौतम ! इस भारत
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1497 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जाव णं पुव्व जाइ सरण पच्चएणं सा माहणी इयं वागरेइ ताव णं गोयमा पडिबुद्धमसेसं पि बंधुयणं बहु णागर जणो य। एयावसरम्मि उ गोयमा भणियं सुविदिय सोग्गइ पहेणं तेणं गोविंदमाहणेणं जहा णं– धि द्धिद्धि वंचिए एयावंतं कालं, जतो वयं मूढे अहो णु कट्ठमण्णाणं दुव्विन्नेयमभागधिज्जेहिं खुद्द-सत्तेहिं अदिट्ठ घोरुग्ग परलोग पच्चवाएहिं अतत्ताभिणिविट्ठ दिट्ठीहिं पक्खवाय मोह संधुक्किय माणसेहिं राग दोसो वहयबुद्धिहिं परं तत्तधम्मं अहो सज्जीवेणेव परिमुसिए एवइयं काल-समयं अहो किमेस णं परमप्पा भारिया छलेणासि उ मज्झ गेहे, उदाहु णं जो सो निच्छिओ मीमंसएहिं सव्वण्णू सोच्चि, एस सूरिए

Translated Sutra: पूर्वभव के जातिस्मरण होने से ब्राह्मणी से जब यह सुना तब हे गौतम ! समग्र बन्धुवर्ग और दूसरे कईं नगरजन को प्रतिबोध हुआ। हे गौतम ! उस अवसर पर सद्‌गति का मार्ग अच्छी तरह से मिला है। वैसे गोविंद ब्राह्मण ने कहा कि धिक्कार है मुझे, इतने अरसे तक हम बनते रहे, मूढ़ बने रहे, वाकई अज्ञान महाकष्ट है। निर्भागी – तुच्छ आत्मा
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1498 Sutra Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं किं पुन काऊणं एरिसा सुलहबोही जाया सा सुगहियनामधेज्जा माहणी जीए एयावइयाणं भव्व-सत्ताणं अनंत संसार घोर दुक्ख संतत्ताणं सद्धम्म देसणाईहिं तु सासय सुह पयाणपुव्वगमब्भुद्धरणं कयं ति। गोयमा जं पुव्विं सव्व भाव भावंतरंतरेहिं णं नीसल्ले आजम्मा-लोयणं दाऊणं सुद्धभावाए जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं। पायच्छित्तसमत्तीए य समाहिए य कालं काऊणं सोहम्मे कप्पे सुरिंदग्गमहिसी जाया तमनुभावेणं। से भयवं किं से णं माहणी जीवे तब्भवंतरम्मि समणी निग्गंथी अहेसि जे णं नीसल्लमालोएत्ता णं जहोवइट्ठं पायच्छित्तं कयं ति। गोयमा जे णं से माहणी जीवे से णं तज्जम्मे बहुलद्धिसिद्धी

Translated Sutra: हे भगवंत ! उस ब्राह्मणीने ऐसा तो क्या किया कि जिससे इस प्रकार सुलभ बोधि पाकर सुबह में नाम ग्रहण करने के लायक बनी और फिर उसके उपदेश से कईं भव्य जीव नर – नारी कि जो अनन्त संसार के घोर दुःख में सड़ रहे थे उन्हें सुन्दर धर्मदेश आदि के द्वारा शाश्वत सुख देकर उद्धार किया। हे गौतम ! उसने पूर्वभव में कईं सुन्दर भावना सहित
Mahanishith महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-८

चूलिका-२ सुषाढ अनगारकथा

Hindi 1525 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आलोइय निंदियगरहिए णं कय पायच्छित्ते वि भवित्ताणं। जयणं अयाणमाणे भमिही सुइरं तु संसारे॥

Translated Sutra: आलोचना, निन्दा, गर्हा, प्रायश्चित्त करने के बावजूद भी जयणा का अनजान होने से दीर्घकाल तक संसार में भ्रमण करेगा। हे भगवंत ! कौन – सी जयणा उसने न पहचानी कि जिससे उस प्रकार के दुष्कर काय – क्लेश करके भी उस प्रकार के लम्बे अरसे तक संसार में भ्रमण करेगा ? हे गौतम ! जयणा उसे कहते हैं कि अठ्ठारह हजार शील के सम्पूर्ण अंग
Mahanishith મહાનિશીય શ્રુતસ્કંધ સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन

उद्देशक-३ Gujarati 333 Gatha Chheda-06 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं लद्धामवि बोहिं जइ णं नो भवइ निम्मला। ता संवुडासव-द्दारे पगति-ट्ठिइ-पएसानुभावियबंधो, नो हासो नो य निज्जरे॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૩૨
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

मङ्गलं

Hindi 1 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस करेमि पणामं तित्थयराणं अनुत्तरगईणं । सव्वेसिं च जिणाणं सिद्धाणं संजयाणं च ॥

Translated Sutra: अब मैं उत्कृष्ट गतिवाले तीर्थंकर को, सर्व जिन को, सिद्ध को और संयत (साधु) को नमस्कार करता हूँ।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 44 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एक्को करेइ कम्मं एक्को अनुहवइ दुक्कयविवागं । एक्को संसरइ जिओ जर-मरण-चउग्गईगुविलं ॥

Translated Sutra: जीव अकेले कर्म करता है, और अकेले ही बूरे किए हुए पापकर्म के फल को भुगतता है, तथा अकेले ही इस जरा मरणवाले चतुर्गति समान गहन वनमें भ्रमण करता है।
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 45 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उव्वेयणयं जम्मण-मरणं नरएसु वेयणाओ वा । एयाइं संभरंतो पंडियमरणं मरीहामि ॥

Translated Sutra: नरक में जन्म और मरण ये दोनों ही उद्वेग करवानेवाले हैं, तथा नरक में कईं वेदनाएं हैं; तिर्यंच की गतिमें भी उद्वेग को करनेवाले जन्म और मरण है, या फिर कईं वेदनाएं होती हैं; मानव की गति में जन्म और मरण है या फिर वेदनाएं हैं; देवलोक में जन्म, मरण उद्वेग करनेवाले हैं और देवलोक से च्यवन होता है इन सबको याद करते हुए मैं
Mahapratyakhyan महाप्रत्याख्यान Ardha-Magadhi

विविधं धर्मोपदेशादि

Hindi 61 Gatha Painna-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खइएण व पीएण व न य एसो ताइओ हवइ अप्पा । जइ दुग्गइं न वच्चइ तो नूणं ताइओ होइ ॥

Translated Sutra: खाने या पीने के द्वारा यह आत्मा बचाया नहीं जा सकता; यदि दुर्गति में न जाए तो निश्चय से बचाया हुआ कहा जाता है।
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 154 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से त्तं पुव्वगए। से किं तं अनुओगे? अनुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमानुओगे गंडियानुओगे य। से किं तं मूलपढमानुओगे? मूलपढमानुओगे णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमनाइं, आउं, चवणाइं, जम्म-णाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, पव्वज्जाओ, तवा य उग्गा, केवलनाणुप्पयाओ, तित्थपवत्त-णाणि य, सीसा, गणा, गणहरा, अज्जा, पवत्तिणीओ, संघस्स चउव्विहस्स जं च परिमाणं, जिन-मन-पज्जव-ओहिनाणी, समत्तसुयनाणिणो य, वाई, अनुत्तरगई य, उत्तरवेउव्विणो य मुणिणो, जत्तिया सिद्धा सिद्धिपहो जह देसिओ, जच्चिरं च कालं पाओवगया, जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेइत्ता अंतगडे मुनिवरु-त्तमे तम-रओघ-विप्पमुक्के मुक्खसुहमनुत्तरं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अनुयोग कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का है, मूलप्रथमानुयोग और गण्डिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में अरिहन्त भगवंतों के पूर्व भवों, देवलोक में जाना, आयुष्य, च्यवनकर तीर्थंकर रूप में जन्म, जन्माभिषेक तथा राज्याभिषेक, राज्यलक्ष्मी, प्रव्रज्या, घोर तपश्चर्या, केवलज्ञान की उत्पत्ति, तीर्थ की प्रवृत्ति, शिष्य
Nandisutra नन्दीसूत्र Ardha-Magadhi

नन्दीसूत्र

Hindi 157 Sutra Chulika-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टिंसु। इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टंति। इच्चेइयं संसारकंतारं अनुपरियट्टिस्संति। इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइंसु। इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पन्नकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसार-कंतारं वीईवयंति। इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अनागए काले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसार कंतारं वीईवइस्संति। इच्चेइयं

Translated Sutra: इस द्वादशाङ्ग गणिपिटक की भूतकाल में अनन्त जीवों ने विराधना करके चार गतिरूप संसार कान्तार में भ्रमण किया। इसी प्रकार वर्तमानकाल में परिमित जीव आज्ञा से विराधना करके चार गतिरूप संसार में भ्रमण कर रहे हैं – इसी प्रकार द्वादशाङ्ग गणिपिटक की आगामी काल में अनन्त जीव आज्ञा से विराधना करके चार गतिरूप संसार कान्तार
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 216 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू आयरिय-उवज्झाएहिं अविदिण्णं विगतिं आहारेति, आहारेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी आचार्य – उपाध्याय (किसी भी रत्नाधिक) को मालूम किए बिना (आज्ञा लिए सिवा) दहीं, दूध आदि विगइ खुद खाए, खिलाए या खानेवाले की अनुमोदना करे तो प्रायश्चित्त।
Nishithasutra निशीथसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-११ Hindi 746 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू गिरिपडणाणि वा भरुपडणाणि वा भिगुपडणाणि वा तरुपडणाणि वा, गिरिपक्खंदणाणि वा मरुपक्खंदणाणि वा भिगुपक्खंदणाणि वा तरुपक्खंदणाणि वा, जलपवेसाणि वा जलणपवेसाणि वा, जलपक्खंदणाणि वा जलणपक्खंदणाणि वा विसभक्खणाणि वा सत्थोपाडणाणि वा, वलय-मरणाणि वा वसट्टमरणाणि वा तब्भवमरणाणि वा अंतोसल्लमरणाणि वा वेहाणसमरणाणि वा, गिद्धपट्ठाणि वा अन्नयराणि वा तहप्पगाराणि बालमरणाणि पसंसति, पसंसंतं वा सातिज्जति– तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घातियं।

Translated Sutra: जो साधु – साध्वी पर्वत, उषरभूमि, नदी, गिरि आदि के शिखर या पेड़ की टोच पर गिरनेवाला पानी, आग में सीधे या कूदनेवाले, विषभक्षण, शस्त्रपात, फाँसी, विषयवश दुःख के तद्‌भव – उसी गति को पाने के मतलब से अन्तःशल्य, पेड़ की डाली से लटककर (गीधड़ आदि से भक्षण ऐसा) गृद्धस्पृष्ट मरण पानेवाले या ऐसे तरह के अन्य किसी भी बालमरण प्राप्त
Nishithasutra નિશીથસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Gujarati 216 Sutra Chheda-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे भिक्खू आयरिय-उवज्झाएहिं अविदिण्णं विगतिं आहारेति, आहारेंतं वा सातिज्जति।

Translated Sutra: જે સાધુ – સાધ્વી આચાર્ય કે ઉપાધ્યાયની વિશેષ આજ્ઞા સિવાય કોઈ પણ વિગઈનો આહાર કરે કે કરનારને અનુમોદે તો પ્રાયશ્ચિત્ત.
Ogha Nijjutti Ardha-Magadhi

ओहनिज्जुत्ति

Hindi 477 Gatha Mool-02A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जोगतिगं पुव्वभणिअं समत्तपडिलेहणाए सज्झाओ । चरिमाए पोरिसीए पडिलेह तआ उ पाय दुगं ॥

Translated Sutra: Not Available
Ogha Nijjutti Ardha-Magadhi

ओहनिज्जुत्ति

Hindi 517 Gatha Mool-02A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगदुगतिगचउक्कगपंचछसत्तट्ठणवगदसगेहिं । संजोगा कायव्वा मंगसहस्सा चउव्वीसं ॥

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Ogha Nijjutti Ardha-Magadhi

ओहनिज्जुत्ति

Hindi 556 Gatha Mool-02A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खीरदुमहेट्ठ पंथे कट्ठोल्ला इंधणे य मीसो य । पोरिसि एगदुगतिगं बहुइंधणमज्झयोवे अ ॥

Translated Sutra: Not Available
Ogha Nijjutti Ardha-Magadhi

ओहनिज्जुत्ति

Hindi 889 Gatha Mool-02A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एमेव य भंगतिअं जोएयव्वं तु सार नाणाई । तेण सहिओ ससारो समुद्दवणिएण दिट्ठंतो ॥

Translated Sutra: Not Available
Ogha Nijjutti Ardha-Magadhi

ओहनिज्जुत्ति

Gujarati 477 Gatha Mool-02A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जोगतिगं पुव्वभणिअं समत्तपडिलेहणाए सज्झाओ । चरिमाए पोरिसीए पडिलेह तआ उ पाय दुगं ॥

Translated Sutra: Not Available
Ogha Nijjutti Ardha-Magadhi

ओहनिज्जुत्ति

Gujarati 517 Gatha Mool-02A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगदुगतिगचउक्कगपंचछसत्तट्ठणवगदसगेहिं । संजोगा कायव्वा मंगसहस्सा चउव्वीसं ॥

Translated Sutra: Not Available
Ogha Nijjutti Ardha-Magadhi

ओहनिज्जुत्ति

Gujarati 556 Gatha Mool-02A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खीरदुमहेट्ठ पंथे कट्ठोल्ला इंधणे य मीसो य । पोरिसि एगदुगतिगं बहुइंधणमज्झयोवे अ ॥

Translated Sutra: Not Available
Ogha Nijjutti Ardha-Magadhi

ओहनिज्जुत्ति

Gujarati 889 Gatha Mool-02A View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एमेव य भंगतिअं जोएयव्वं तु सार नाणाई । तेण सहिओ ससारो समुद्दवणिएण दिट्ठंतो ॥

Translated Sutra: Not Available
Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Hindi 111 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवसंपज्जति तत्तो सिद्धिगतिं सो पहीणकम्मंसो । एसो तु निगंठाणं समोयारो संजयाणेत्तो ॥

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Panchkappo Bhaasam Ardha-Magadhi

मपंचकप्प.भासं

Hindi 119 Gatha Chheda-05B View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहति अहक्खायत्तं उवसंपज्जे तु सो चुतो तत्तो । सुहुमं च संपरायं अस्संजमसिद्धिगतिमहवा

Translated Sutra: Not Available
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