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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 855 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मालवंतवक्खारपव्वते नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जम्बूद्वीप के माल्यवंत वक्षस्कार पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा – | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 857 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे कच्छे दीहवेयड्ढे नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जम्बूद्वीप के कच्छ विजय में दीर्घ वेताढ्यपर्वत पर नौ कूट हैं, यथा – | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 859 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे सुकच्छे दीहवेयड्ढे नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जम्बूद्वीप के सुकच्छ विजय में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं। यथा – | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 861 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं जाव पोक्खलावइम्मि दीहवेयड्ढे।
एवं वच्छे दीहवेयड्ढे।
एवं जाव मंगलावतिम्मि दीहवेयड्ढे।
जंबुद्दीवे दीवे विज्जुप्पभे वक्खारपव्वते नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: इसी प्रकार पुष्कलावती विजय में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं। इसी प्रकार वच्छ विजय में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं यावत् – मंगलावती विजय में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं। जम्बूद्वीप के विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा – | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 863 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे पम्हे दीहवेयड्ढे नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा–
सिद्धे पम्हे खंडग, माणी वेयड्ढं पुण्ण तिमिसगुहा, पम्हे वेसमणे या, पम्हे कूडाण नामाइं ।
एवं चेव जाव सलिलावतिम्मि दीहवेयड्ढे।
एवं वप्पे दीहवेयड्ढे।
एवं जाव गंधिलावतिम्मि दीहवेयड्ढे नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जम्बूद्वीप के पक्ष्मविजय में दीर्घ वैताढ्यपर्वत पर नौ कूट हैं, यथा – सिद्ध कूट, पक्ष्मकूट, खण्डप्रपात, माणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, तिमिश्रगुहा, पक्ष्मकूट, वैश्रमण कूट। इसी प्रकार यावत् सलिलावती विजय में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं। इसी प्रकार वप्रविजय में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं। इसी | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 865 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं– सव्वेसु दीहवेयड्ढेसु दो कूडा सरिसनामगा, सेसा ते चेव।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं नेलवंते वासहरपव्वते नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: इस प्रकार सभी दीर्घ वैताढ्य पर्वतों पर दूसरा और नवमा कूट समान नाम वाले हैं शेष कूटों के समान पूर्ववत् हैं। जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत की उत्तरदिशा में नीलवान वर्षधर पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा – | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 867 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं एरवते दीहवेतड्ढे नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत पर उत्तर दिशा में ऐरवत क्षेत्र में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा – सिद्ध, रत्न, खण्डप्रपात, माणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, तिमिश्रगुहा, ऐरवत और वैश्रमण। सूत्र – ८६७, ८६८ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Hindi | 872 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं अज्जो! सेणिए राया भिंभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सीमंतए नरए चउरासीतिवाससहस्सट्ठितीयंसि णिरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं तत्थ नेरइए भविस्सति– काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे वण्णेणं। से णं तत्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं तिउलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं दिव्वं दुरहियासं।
से णं ततो नरयाओ उव्वट्टेत्ता आगमेसाए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले पुंडेसु जनवएसु सतदुवारे णगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुमत्ताए पच्चायाहिति।
तए णं सा भद्दा भारिया नवण्हं Translated Sutra: हे आर्य ! यह श्रेणिक राजा मरकर इस रत्नप्रभा पृथ्वी के सीमंतक नरकावास में चौरासी हजार वर्ष की नारकीय स्थिति वाले नैरयिक के रूप में उत्पन्न होगा और अति तीव्र यावत् – असह्य वेदना भोगेगा। यह उस नरक से नीकलकर आगामी उत्सर्पिणी में इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में वैताढ्यपर्वत के समीप पुण्ड्र जनपद के शतद्वार | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 904 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्ता-रत्तवतीओ महानदीओ दस महानदीओ समप्पेंति, तं जहा–किण्हा, महाकिण्हा, निला, महानिला, महातीरा, इंदा, इंदसेणा, सुसेणा, वारिसेणा, महाभोगा। Translated Sutra: जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा में गंगा और सिन्धु महानदी में दस महानदियाँ मिलती हैं। यथा – गंगा नदी में मिलने वाली पाँच नदियाँ – यमुना, सरयू, आवी, कोशी, मही। सिन्धु नदी में मिलने वाली पाँच नदियाँ – शतद्रु, विवत्सा, विभासा, एरावती, चन्द्रभागा। जम्बूद्वीप के मेरु से उत्तर दिशा में रक्ता और रक्तवती महानदी | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 905 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे दस रायहाणीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– Translated Sutra: जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में दस राजधानियाँ हैं, यथा – चम्पा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, हस्तिनापुर, कांपिल्यपुर, मिथिला, कोशाम्बी, राजगृह। सूत्र – ९०५, ९०६ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 908 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए दस जोयणसयाइं उव्वेहेणं, धरणितले दस जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, उवरिं दसजोयणसयाइं विक्खंभेणं, दसदसाइं जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते। Translated Sutra: जम्बूद्वीप का मेरु पर्वत भूमि में दस सौ (एक हजार) योजन गहरा है। भूमि पर दस हजार योजन चौड़ा है। ऊपर से दस सौ (एक हजार) योजन चौड़ा है। दस – दस हजार (एक लाख) योजन के सम्पूर्ण मेरु पर्वत हैं। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 909 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स बहुमज्झदेसभागे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिम-हेट्ठिल्लेसु खुड्डगपतरेसु, एत्थ णं अट्ठपएसिए रुयगे पन्नत्ते, जओ णं इमाओ दस दिसाओ पवहंति, तं जहा–पुरत्थिमा, पुरत्थिमदाहिणा, दाहिणा, दाहिण-पच्चत्थिमा, पच्चत्थिमा, पच्चत्थिमुत्तरा, उत्तरा, उत्तरपुरत्थिमा, उड्ढा, अहा।
एतासि णं दसण्हं दिसाणं दस नामधेज्जा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के मध्यभाग में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर और नीचे के लघु प्रतर में आठ प्रदेश वाला रुचक है वहाँ से इन दश दिशाओं का उद्गम होता है। यथा – पूर्व, पूर्वदक्षिण, दक्षिण, दक्षिणपश्चिम, पश्चिम, पश्चिमोत्तर, उत्तर, उत्तरपूर्व, उर्ध्व, अधो। इन दस दिशाओं के दस नाम हैं, यथा – | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 914 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे दस खेत्ता पन्नत्ता, तं जहा– भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, हरिवस्से, रम्मगवस्से, पुव्वविदेहे, अवरविदेहे, देवकुरा, उत्तरकुरा। Translated Sutra: जम्बूद्वीप में दश क्षेत्र हैं, यथा – भरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक्वर्ष, पूर्वविदेह, अपरविदेह, देवकुरु, उत्तरकुरु। | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 984 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समयखेत्ते णं दस कुराओ पन्नत्ताओ, तं जहा– पंच देवकुराओ पंच उत्तरकुराओ।
तत्थ णं दस महतिमहालया महादुमा पन्नत्ता, तं जहा– जम्बू सुदंसणा, धायइरुक्खे, महाधायइरुक्खे, पउमरुक्खे, महापउमरुक्खे, पंच कूडसामलीओ।
तत्थ णं दस देवा महिड्ढिया जाव परिवसंति, तं जहा– अनाढिते जंबुद्दीवाधिपती, सुदंसणे, पियदंसणे, पोंडरीए, महापोंडरीए, पंच गरुला वेणुदेवा। Translated Sutra: समय क्षेत्र में दश कुरुक्षेत्र हैं, यथा – पाँच देव कुरु, पाँच उत्तर कुरु। इन दश कुरुक्षेत्रों में दश महावृक्ष हैं। यथा – जम्बू सुदर्शन, घातकी वृक्ष, महाघातकी वृक्ष, पद्मवृक्ष, महापद्म वृक्ष, पाँच कूटशाल्मली वृक्ष। इन दश कुरुक्षेत्रों में दश महर्द्धिक देव रहते हैं, यथा – १. जम्बूद्वीप का अधिपति देव अनाहत, २. सुदर्शन, | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 988 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दीहदसाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी में दश कुलकर थे, यथा – शतंजल, शतायु, अनन्तसेन, अमितसेन, तर्कसेन, भीमसेन, महाभीमसेन, दढ़धनु, दशधनु, शतधनु। सूत्र – ९८८, ९८९ | |||||||||
Sthanang | स्थानांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Hindi | 991 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महानईए उभओकूले दस वक्खारपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– मालवंते, चित्तकूडे, पम्हकूडे, नलिनकूडे, एगसेले, तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे, सोमनसे।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओदाए महानईए उभओकूले दस वक्खारपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– विज्जुप्पभे, अंकावती, पम्हावती, आसीविसे, सुहावहे, चंदपव्वते, सूरपव्वते, नागपव्वते, देवपव्वते, गंधमायणे।
एवं धायइसंडपुरत्थिमद्धेवि वक्खारा भाणियव्वा जाव पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्धे। Translated Sutra: जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पूर्व में शीता महानदी के दोनों किनारों पर दश वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा – माल्य – वन्त, चित्रकूट, विचित्रकूट, ब्रह्मकूट यावत् सोमनस। जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पश्चिम में शीतोदा महानदी के दोनों किनारों पर दश वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा – विद्युत्प्रभ यावत् गंधमादन। इसी प्रकार धातकी | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 849 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे दीहवेतड्ढे नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा– Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૪૯. જંબૂદ્વીપના મેરુની દક્ષિણે ભરતમાં દીર્ઘ વૈતાઢ્ય ઉપર નવ કૂટો કહ્યા છે, તે આ – સૂત્ર– ૮૫૦. સિદ્ધ, ભરત, ખંડપ્રપાત, માણિભદ્ર, વૈતાઢ્ય, પૂર્ણભદ્ર, તિમિસ્રગુફા, ભરત, વૈશ્રમણ – કૂટ. સૂત્ર– ૮૫૧. જંબૂદ્વીપના મેરુની દક્ષિણે નિષધ વર્ષધર પર્વતે નવ કૂટો કહ્યા છે, તે આ – સૂત્ર– ૮૫૨. સિદ્ધ, નિષધ, હરિવર્ષ, વિદેહ, હ્રી, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१ |
Gujarati | 52 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगे जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए, वट्टे तेल्लापूयसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, वट्टे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिए, वट्टे पडिपुण्णचंदसंठाणसंठिए, एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिन्नि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोन्नि य सत्तावीसे जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धनुसयं तेरस अंगुलाइं अद्धंगुलगं च किंचि-विसेसाहिए परिक्खेवेणं। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨. બધાં દ્વીપ – સમુદ્રો મધ્યે જંબૂદ્વીપ દ્વીપ એક છે, યાવત્ પરિક્ષેપથી ૩,૧૬,૨૨૭ યોજન, ૩ – ગાઉ, ૨૨૮ – ધનુષ અને ૧૩|| અંગુલથી કંઈક અધિક છે. સૂત્ર– ૫૩. શ્રમણ ભગવંત મહાવીર આ અવસર્પિણીમાં ૨૪ તીર્થંકરોમાં છેલ્લા તીર્થંકર એકલા સિદ્ધ, બુદ્ધ, મુક્ત યાવત્ સર્વ દુઃખથી રહિત થયા. સૂત્ર– ૫૪. અનુત્તર વિમાનના દેવોની કાયા | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 86 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पन्नत्ता– बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नंनातिवट्टंति आयाम-विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव।
एवमेएणमभिलावेण–हेमवते चेव, हेरन्नवए चेव। हरिवासे चेव, रम्मयवासे चेव।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिम-पच्चत्थिमे णं दो खेत्ता पन्नत्ता– बहुसमतुल्ला अविसेस मणाणत्ता अन्नमन्नं नातिवट्टंति आयाम-विक्खंभ-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा–पुव्वविदेहे चेव, अवरविदेहे चेव।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो कुराओ पन्नत्ताओ– बहुसमतुल्लाओ जाव देवकुरा चेव, उत्तरकुरा Translated Sutra: જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં મેરુપર્વતની ઉત્તર અને દક્ષિણમાં બે વર્ષક્ષેત્રો કહ્યા છે, તે અતિ સમતુલ્ય, અવિશેષ, નાના પ્રકારપણાથી રહિત, અન્યોન્યને ન ઉલ્લંઘતા, લંબાઈ – પહોળાઈ – આકાર – પરિધિ વડે સમાન છે તે ભરત અને ઐરવત. એ રીતે આ અભિલાપ વડે હૈમવત, હૈરણ્યવત, હરિવર્ષ રમ્યક્વર્ષ છે. જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપ મધ્યે મેરુપર્વતની | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 87 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासहरपव्वया पन्नत्ता– बहुसमतुल्ला अविसेस-मणाणत्ता अन्नमन्नंनातिवट्टंति आयाम-विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा–चुल्लहिमवंते चेव, सिहरिच्चेव।
एवं–महाहिमवंते चेव, रूप्पिच्चेव। एवं–निसढे चेव, नीलवंते चेव।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं हेमवत-हेरण्णवतेसु वासेसु दो वट्टवेयड्ढपव्वता पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नंणातिवट्टंति आयाम-विक्खंभुच्चत्तोव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा– सद्दावाती चेव, वियडावाती चेव। तत्थ णं दो देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया Translated Sutra: જંબૂદ્વીપના મેરુપર્વતની ઉત્તર અને દક્ષિણ દિશાએ બે વર્ષધર પર્વતો કહ્યા છે – તે બહુ સમતુલ્ય, અવિશેષ, નાનાત્વરહિત, અન્યોન્ય ન ઉલ્લંઘતા તેમજ લંબાઈ – પહોળાઈ – ઊંચાઈ – ઊંડાઈ – સંસ્થાન – પરિધિ વડે સમાન છે. તે આ – લઘુ હિમવંત અને શિખરી, એ રીતે મહા હિમવંત અને રુકમી, એમ જ નિષધ અને નિલવાન પર્વત કહેવા. જંબૂદ્વીપના મેરુ પર્વતની | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 88 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं चुल्लहिमवंत-सिहरीसु वासहरपव्वएसु दो महद्दहा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नंणातिवट्टंति आयाम-विक्खंभ-उव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा–पउमद्दहे चेव, पोंडरीयद्दहे चेव।
तत्थ णं दो देवयाओ महिड्ढियाओ जाव पलिओवमट्ठितीयाओ परिवसंति तं –सिरी चेव, लच्छी चेव।
एवं–महाहिमवंत-रुप्पीसु वासहरपव्वएसु दो महद्दहा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला जाव तं जहा–महापउमद्दहे चेव, महापोंडरीयद्दहे चेव।
तत्थ णं दो देवयाओ हिरिच्चेव, बुद्धिच्चेव।
एवं–निसढ-नीलवंतेसु तिगिंछद्दहे चेव, केसरिद्दहे चेव। तत्थ णं दो देवताओ धिती Translated Sutra: જંબૂદ્વીપના મેરુ પર્વતની ઉત્તર અને દક્ષિણમાં લઘુ હિમવંત અને શિખરી વર્ષધર પર્વતમાં બે મહાદ્રહો કહ્યા છે – બહુસમતુલ્ય, અવિશેષ, નાનાત્વરહિત, અન્યોન્ય ન ઉલ્લંઘતા એવા, લંબાઈ – પહોળાઈ – ઊંડાઈ – સંસ્થાન અને પરિધિ વડે સમાન છે. તે – પદ્મદ્રહ, પુંડરીક દ્રહ. ત્યાં બે દેવીઓ મહર્દ્ધિક યાવત્ પલ્યોપમ સ્થિતિક વસે છે. તે | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 89 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवम-कोडाकोडीओ काले होत्था।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवम-कोडाकोडीओ काले पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवम-कोडाकोडीओ काले भविस्सति।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए मनुया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था, दोन्नि य पलिओवमाइं परमाउं पालइत्था।
एवमिमीसे ओसप्पिणीए जाव पालइत्था।
एवमागमेस्साए उस्सप्पिणीए जाव पालयिस्संति।
जंबुद्दीवे दीवे Translated Sutra: (૧) જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં ભરત અને ઐરવત ક્ષેત્રમાં અતીત ઉત્સર્પિણીમાં સુષમદૂષમકાળે બે કોડાકોડી સાગરોપમનો કાળ હતો...(૨) એ રીતે આ અવસર્પિણીમાં યાવત્ બે કોડાકોડી સાગરોપમ પ્રમાણ કહ્યો છે. (૩) એ રીતે આગામી ઉત્સર્પિણીકાળે પણ યાવત્ બે કોડાકોડી સાગરોપમ પ્રમાણ કાળ થશે. (૪) જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં ભરત, ઐરવત ક્ષેત્રમાં | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 90 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे–दो चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा।
दो सूरिआ तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा।
दो कित्तियाओ, दो रोहिणीओ, दो मग्गसिराओ, दो अद्दाओ, दो पुणव्वसू, दो पूसा, दो अस्सलेसाओ, दो महाओ, दो पुव्वाफग्गुणीओ, दो उत्तराफग्गुणीओ, दो हत्था, दो चित्ताओ, दो साईओ, दो विसाहाओ, दो अनुराहा ओ, दो जेट्ठाओ, दो मूला, दो पुव्वासाढाओ, दो उत्तरासाढाओ, दो अभिईओ, दो सवना, दो धणिट्ठाओ, दो सयभिसया, दो पुव्वाभद्दवयाओ, दो उत्तराभद्दवयाओ, दो रेवतीओ दो अस्सिणीओ, दो भरणीओ [जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा?] । Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૦. જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં બે ચંદ્રો પ્રકાશતા હતા – પ્રકાશે છે – પ્રકાશશે. બે સૂર્યો તપતા હતા – તપે છે – તપશે. જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં બે કૃતિકા નક્ષત્ર છે. એ પ્રમાણે બે રોહિણી, બે મૃગશિર્ષ, બે આર્દ્રા વગેરે બે ભરણી સુધી ૨૮ – ૨૮ નક્ષત્રો જાણવા. આ નક્ષત્રોએ ચંદ્ર સાથે યોગ કર્યો હતો, કરે છે અને કરશે. તે નક્ષત્રો | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-२ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 95 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
लवने णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते।
लवणस्स णं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला जाव तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव।
एवं–जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव दोसु वासेसु मनुया छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव, नवरं–कूडसामली चेव, धायईरुक्खे चेव। देवा–गरुले चेव वेणुदेवे, सुदंसणे चेव। Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૫. જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપની વેદિકા ઊંચાઈથી બે ગાઉ ઊર્ધ્વ કહેલી છે. લવણ સમુદ્ર ચક્રવાલ વિષ્કંભથી બે લાખ યોજન છે, તેની વેદિકા બે ગાઉ ઊંચી કહી છે. સૂત્ર– ૯૬. ધાતકીખંડદ્વીપના પૂર્વાર્દ્ધ મેરુપર્વતની ઉત્તર અને દક્ષિણે બે વર્ષક્ષેત્રો કહ્યા છે. તે બહુ સમતુલ્ય છે. યાવત્ તે ભરત અને ઐરવત છે. જેમ જંબૂદ્વીપના | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 150 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तओ तित्था पन्नत्ता, तं जहा–मागहे, वरदामे, पभासे। एवं–एरवएवि।
जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे एगमेगे चक्कवट्टिविजये तओ तित्था पन्नत्ता, तं जहा–मागहे, वरदामे, पभासे।
एवं–धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धेवि पच्चत्थिमद्धेवि। पुक्खरवरदीवद्धे पुरत्थिमद्धेवि, पच्चत्थिमद्धेवि। Translated Sutra: જંબૂદ્વીપનામક દ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રને વિશે ત્રણ તીર્થો કહેલ છે – માગધ, વરદામ અને પ્રભાસ. એ રીતે ઐરવતમાં પણ (ત્રણ તીર્થો) છે. જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં એક – એક ચક્રવર્તી વિજયમાં ત્રણ તીર્થો કહેલા છે – માગધ, વરદામ અને પ્રભાસ. એ પ્રમાણે ધાતકી ખંડ દ્વીપમાં પૂર્વાર્દ્ધમાં પણ છે. પશ્ચિમાર્દ્ધમાં | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 151 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीओ काले होत्था।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीओ काले पन्नत्ते।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिन्नि सागरोवम-कोडाकोडीओ काले भविस्सति।
एवं– धायइसंडे पुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि। एवं– पुक्खरवरदीवद्धे पुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धेवि कालो भाणियव्वो।
जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए मनुया तिन्नि गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था, तिन्नि Translated Sutra: ૧. જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં ભરત અને ઐરવત ક્ષેત્રમાં અતીત ઉત્સર્પિણીમાં સુષમા આરામાં ત્રણ કોડાકોડી સાગરોપમ કાળ હતો. ૨. એ રીતે અવસર્પિણીમાં પણ કહેલ છે. ૩. આગામી ઉત્સર્પિણીમાં પણ એ પ્રમાણે જ કાલમાન થશે. ૪ થી ૯. એ રીતે ધાતકી ખંડના પૂર્વાર્દ્ધમાં અને પશ્ચિમાર્દ્ધમાં પણ કહેવું. ૧૦ થી ૧૫. એ રીતે પુષ્કરવરદ્વીપાર્દ્ધના | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 155 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए तिन्नि निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता।
[सूत्र] तिसु णं पुढवीसु नेरइयाणं उसिणवेयणा पन्नत्ता, तं जहा–पढमाए, दोच्चाए, तच्चाए।
[सूत्र] तिसु णं पुढवीसु नेरइया उसिणवेयणं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा–पढमाए, दोच्चाए, तच्चाए। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૫૫. પાંચમી ધૂમપ્રભા પૃથ્વીમાં ત્રણ લાખ નરકાવાસો છે. ત્રણ પૃથ્વીમાં નૈરયિકોને ઉષ્ણવેદના કહી છે – પહેલી, બીજી, ત્રીજી નરકમાં. ત્રણે પૃથ્વીમાં નૈરયિકો ઉષ્ણ વેદના અનુભવતા વિચરે છે – પહેલી, બીજી, ત્રીજીમાં. સૂત્ર– ૧૫૬. લોકમાં ત્રણ સમાન પ્રમાણવાળા, સમાન પાર્શ્વવાળા, દિશા – વિદિશા વડે સમાન છે – અપ્રતિષ્ઠાન | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 196 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे तओ कम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–भरहे, एरवए, महाविदेहे।
एवं–धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे जाव पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्धे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯૬. જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં ત્રણ કર્મભૂમિઓ કહી છે – ભરત, ઐરવત, મહાવિદેહ. એ રીતે ધાતકી – ખંડના પૂર્વાર્દ્ધમાં યાવત્ પુષ્કરવરદ્વીપાર્દ્ધના પશ્ચિમાર્દ્ધમાં ત્રણ કર્મભૂમિઓ કહેલી છે. સૂત્ર– ૧૯૭. ત્રણ પ્રકારે દર્શન કહેલ છે – સમ્યગ્દર્શન, મિથ્યાદર્શન, મિશ્રદર્શન. રુચિ ત્રણ ભેદે છે – સમ્યગ્રુચિ, મિથ્યારુચિ, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-४ | Gujarati | 211 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– हेमवते, हरिवासे, देवकुरा
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– उत्तरकुरा, रम्मगवासे, हेरण्णवए।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ वासा पन्नत्ता, तं जहा– भरहे, हेमवए, हरिवासे।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ वासा पन्नत्ता, तं जहा– रम्मगवासे, हेरण्णवते, एरवए।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ वासहरपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ वासहरपव्वत्ता Translated Sutra: જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં મેરુ પર્વતની દક્ષિણે ત્રણ અકર્મભૂમિઓ કહી છે – હૈમવત, હરિવર્ષ, દેવકુરુ. જંબૂદ્વીપના મેરુની ઉત્તરે ત્રણ અકર્મભૂમિ કહી છે – ઉત્તરકુરુ, રમ્યક્વર્ષ અને ઐરણ્યવત. જંબૂદ્વીપના મેરુની દક્ષિણે ત્રણ વર્ષક્ષેત્રો કહ્યા છે – ભરત, હૈમવત, હરિવર્ષ. જંબૂદ્વીપની ઉત્તરે ત્રણ વર્ષક્ષેત્રો કહ્યા | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-३ |
उद्देशक-४ | Gujarati | 218 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तओ मंडलिया पव्वता पन्नत्ता, तं जहा– मानुसुत्तरे, कुंडलवरे, रुयगवरे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૧૮. ત્રણ માંડલિક પર્વતો છે – માનુષોત્તર, કુંડલવર, રૂચકવર. સૂત્ર– ૨૧૯. ત્રણને સૌથી મોટા કહ્યા – બધા મેરુમાં જંબૂદ્વીપનો મેરુ, સમુદ્રોને વિશે સ્વયંભૂરમણ સમુદ્ર, દેવલોકોમાં બ્રહ્મલોક કલ્પ. સૂત્ર સંદર્ભ– ૨૧૮, ૨૧૯ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-१ | Gujarati | 287 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कणगा, कणगलता, चित्तगुत्ता, वसुंधरा। एवं–जमस्स वरुणस्स वेसमणस्स।
बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरण्णो सोमस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–मित्तगा सुभद्दा, विज्जुता, असनी। एवं–जमस्स वेसमणस्स वरुणस्स।
धरणस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो कालवालस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा –असोगा, विमला, सुप्पभा, सुदंसणा। एवं जाव संखवालस्स।
भूतानंदस्स णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररण्णो कालवालस्स महारन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૮૭. અસુરેન્દ્ર અસુરકુમારરાજ ચમરના સોમ મહારાજા (લોકપાલ)ની ચાર અગ્રમહિષીઓ કહી છે – કનકા, કનકલતા, ચિત્રગુપ્તા, વસુંધરા. એ જ રીતે યમ, વરુણ, વૈશ્રમણ (લોકપાલ)ની અગ્રમહિષી જાણવી. વૈરોચનેન્દ્ર વૈરોચન રાજાના સોમ (લોકપાલ)ની ચાર અગ્રમહિષી છે – મિત્રકા, સુભદ્રા, વિદ્યુતા, અશની, એ જ રીતે યમ, વૈશ્રમણ, વરુણની અગ્રમહિષીઓ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 319 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मानुसुत्तरस्स णं पव्वयस्स चउदिसिं चत्तारि कूडा पन्नत्ता, तं जहा–रयणे, रतणुच्चए, सव्वरयणे, रतणसंचए। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૧૯. માનુષોત્તર પર્વતની ચારે દિશામાં ચાર કૂટો કહ્યા છે. તે આ – રત્નકૂટ, રત્નોચ્ચયકૂટ, સર્વરત્નકૂટ, રત્નસંચયકૂટ. સૂત્ર– ૩૨૦. જંબૂદ્વીપના ભરત અને ઐરવત ક્ષેત્રમાં ગત ઉત્સર્પિણીમાં સુષમસુષમા નામક છઠ્ઠા આરામાં ચાર કોડાકોડી સાગરોપમ કાળ હતો. જંબૂદ્વીપમાં ભરત – ઐરવતમાં આ અવસર્પિણીમાં સુષમસુષમા નામક પહેલા | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 323 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा–विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते। ते णं दारा चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं पन्नत्ता।
तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति, तं जहा–विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૨૩. જંબૂદ્વીપના ચાર દ્વારો કહ્યા છે – વિજય, વૈજયંત, જયંત, અપરાજિત. તે દરવાજા ચાર યોજન પહોળા અને પ્રવેશ માર્ગ ચાર યોજન છે. ત્યાં ચાર મહર્દ્ધિક યાવત્ પલ્યોપમસ્થિતિક દેવ વસે છે – વિજય, વૈજયંત, જયંત અને અપરાજિત નામે છે. સૂત્ર– ૩૨૪. જંબૂદ્વીપના મેરુ પર્વતની દક્ષિણે ચુલ્લહિમવંત વર્ષધર પર્વતની ચારે વિદિશામાં | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 327 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] नंदीसरवरस्स णं दीवस्स चक्कवाल-विक्खंभस्स बहुमज्झदेसभागे चउद्दिसिं चत्तारि अंजनगपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– पुरत्थिमिल्ले अंजनगपव्वते, दाहिणिल्ले अंजनगपव्वते, पच्चत्थिमिल्ले अंजनगपव्वते, उत्तरिल्ले अंजनगपव्वते। ते णं अंजनगपव्वता चउरासीति जोयणसहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दस-जोयणसहस्साइं विक्खंभेणं, तदणंतरं च णं मायाए-मायाए परिहायमाणा-परिहायमाणा उवरिमेगं जोयणसहस्सं विक्खंभेणं पन्नत्ता मूले इक्कतीसं जोयणसहस्साइं छच्च तेवीसे जोयणसते परिक्खेवेणं, उवरिं तिन्नि-तिन्नि जोयणसहस्साइं एगं च बावट्ठं Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૨૭. ચક્રવાલ વિષ્કમ્ભવાળા નંદીશ્વરદ્વીપના મધ્યમાં ચારે દિશામાં ચાર અંજનક પર્વત છે – પૂર્વમાં – દક્ષિણમાં – પશ્ચિમ – ઉત્તરનો અંજનક પર્વત. તે અંજનકપર્વત ૮૪,૦૦૦ યોજન ઊંચો છે, ૧૦૦૦ યોજન ભૂમિમાં છે. વિષ્કમ્ભ પણ ૧૦,૦૦૦ યોજન છે. પછી ક્રમશઃ ઘટતા – ઘટતા ઉપર તેનો વિષ્કમ્ભ ૧૦૦૦ યોજનનો છે. તે પર્વતોની પરિધિ મૂલમાં | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 350 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि लोगे समा पन्नत्ता, तं जहा–अपइट्ठाणे नरए, जंबुद्दीवे दीवे, पालए जाणविमाने, सव्वट्ठसिद्धे महाविमाने।
चत्तारि लोगे समा सपक्खिं सपडिदिसिं पन्नत्ता, तं जहा– सीमंतए नरए, समयक्खेत्ते, उडुविमाने, इसीपब्भारा पुढवी। Translated Sutra: લોકમાં ચાર સ્થાન સમાન છે, તે આ – અપ્રતિષ્ઠાન નરક, જંબૂદ્વીપ દ્વીપ, પાલક યાન વિમાન, સર્વાર્થ સિદ્ધ લોકમાં ચાર વસ્તુ દિશા અને વિદિશાએ સમાન કહી છે – સીમંતક નરક, સમયક્ષેત્ર, ઊંડુ વિમાન, ઇષત્ પ્રાગ્ભારા પૃથ્વી. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-४ |
उद्देशक-४ | Gujarati | 362 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पसप्पगा पन्नत्ता, तं जहा–अनुप्पण्णाणं भोगाणं उप्पाएत्ता एगे पसप्पए, पुव्वुप्पण्णाणं भोगाणं अविप्पओगेणं एगे पसप्पए, अनुप्पण्णाणं सोक्खाणं उप्पाइत्ता एगे पसप्पए, पुव्वुप्पण्णाणं सोक्खाणं अविप्पओगेणं एगे पसप्पए। Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૬૨. ચાર પ્રસર્પકો કહ્યા છે – ૧. અનુત્પન્ન ભોગોને મેળવવા સંચરે છે, ૨. પૂર્વોત્પન્ન ભોગોને રક્ષણ કરવા સંચરે છે. ૩. અનુત્પન્ન સુખોને પામવા સંચરે છે અને ૪. પૂર્વોત્પન્ન સુખોના રક્ષણાર્થે સંચરે છે. સૂત્ર– ૩૬૩. નૈરયિકોને ચાર ભેદે આહાર છે – અંગારા જેવો, મુર્મુર જેવો, શીતલ અને હિમશીતલ. તિર્યંચયોનિકને ચતુર્વિધ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-२ | Gujarati | 472 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीयाए महानदीए उत्तरे णं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–मालवंते, चित्तकूडे, ‘पम्हकूडे, नलिनकूडे’, एगसेले।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीयाए महानदीए दाहिणे णं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे, सोमनसे।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महानदीए दाहिणे णं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– विज्जुप्पभे, अंकावती, पम्हावती, आसीविसे, सुहावहे।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महानदीए उत्तरे णं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता, Translated Sutra: (૧) જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપના મેરુ પર્વતની પૂર્વ દિશામાં સીતા નામક મહાનદીની ઉત્તર દિશામાં પાંચ વક્ષસ્કાર પર્વતો કહેલા છે. તે આ પ્રમાણે – માલ્યવંત, ચિત્રકૂટ, પદ્મકૂટ, નલિનીકૂટ, એકશૈલ. (૨) જંબૂદ્વીપ નામક દ્વીપના મેરુ પર્વતની પૂર્વ દિશામાં સીતા મહાનદીની દક્ષિણ દિશામાં પાંચ વક્ષસ્કાર પર્વતો કહેલા છે. તે આ પ્રમાણે | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-५ |
उद्देशक-३ | Gujarati | 512 | Sutra | Ang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचवण्णा पन्नत्ता, तं जहा–किण्हा, निला, लोहिता, हालिद्दा, सुक्किल्ला।
सोहम्मीसानेसु णं कप्पेसु विमाणा पंचजोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
बंभलोगलंतएसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जसरीरगा उक्कोसेणं पंचरयणी उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
नेरइया णं पंचवण्णे पंचरसे पोग्गले बंधेंसु वा बंधंति वा बंधिस्संति वा, तं जहा–किण्हे, नीले, लोहिते, हालिद्दे सुक्किल्ले। तित्ते, कडुए, कसाए, अंबिले, मधुरे।
एवं जाव वेमाणिया। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૧૨. સૌધર્મ – ઈશાન કલ્પોમાં પંચવર્ણી વિમાનો કહ્યા છે – કૃષ્ણ યાવત્ શ્વેત. સૌધર્મ – ઇશાન કલ્પોમાં વિમાનો ૫૦૦ યોજન ઉર્ધ્વ ઊંચપણે કહ્યા છે. બ્રહ્મલોક – લાંતક કલ્પમાં દેવોનું ભવધારણીય શરીર ઉત્કૃષ્ટથી પાંચ હાથ ઊર્ધ્વ ઊંચપણે કહ્યું છે. નૈરયિકો પાંચ વર્ણ, પાંચ રસવાળા પુદ્ગલોને બાંધ્યા છે, બાંધે છે અને | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 533 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा मनुस्सा पन्नत्ता, तं जहा–जंबूदीवगा, घायइसंडदीवपुरत्थिमद्धगा, धायइसंडदीवपच्चत्थि-मद्धगा, पुक्खरवरदीवड्ढपुरत्थिमद्धगा, पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्धगा, अंतरदीवगा।
अहवा– छव्विहा मनुस्सा पन्नत्ता, तं जहा– संमुच्छिममनुस्सा– कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा, अंतरदीवगा, गब्भवक्कंतिअमणुस्सा– कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा, अंतरदीवगा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૩૩. છ પ્રકારે મનુષ્યો કહ્યા – જંબૂદ્વીપજ, ધાતકીખંડદ્વીપ પૂર્વાર્ધજ, ધાતકીખંડદ્વીપ પશ્ચિમાર્દ્ધજ, પુષ્કરવરદ્વીપાર્દ્ધ પૂર્વાર્ધજ, પુષ્કરવરદ્વીપાર્દ્ધ પશ્ચિમાર્દ્ધજ, અંતર્દ્વિપજ. અથવા મનુષ્યો છ ભેદે છે – સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યો ત્રણ ભેદે – કર્મભૂમિજ, અકર્મભૂમિજ, અંતર્દ્વિપજ. ગર્ભજ મનુષ્યો ત્રણ | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 566 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंतमहानिरया पन्नत्ता, तं जहा–लोले, लोलुए, उद्दड्ढे, णिद्दड्ढे, जरए, पज्जरए।
चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंतमहानिरया पन्नत्ता, तं जहा–आरे, वारे, मारे, रोरे, रोरुए, खाडखडे। Translated Sutra: જંબૂદ્વીપે મેરુ પર્વતની દક્ષિણે આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં છ અપકાંત – મહાનરકો કહ્યા – લોલ, લોલુપ, ઉદ્દગ્ધ, નિર્દગ્ધ, જરક, પ્રજરક. ચોથી પંકપ્રભા પૃથ્વીમાં છ અપક્રાંતત મહાનરકો કહ્યા છે – આર, વાર, માર, રૌર, રોરુત, ખાડખડ. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-६ |
Gujarati | 573 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे छ अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–हेमवते, हेरण्णवते, हरिवस्से, रम्मगवासे, देवकुरा, उत्तरकुरा
जंबुद्दीवे दीवे छव्वासा पन्नत्ता, तं जहा–भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवए, हरिवासे, रम्मगवासे।
जंबुद्दीवे दीवे छ वासहरपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, निसढे, नीलवंते, रुप्पी, सिहरी।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं छ कूडा पन्नत्ता, तं जहा–चुल्लहिमवंतकूडे, वेसमणकूडे, महाहिमवंतकूडे, वेरुलियकूडे, निसढकूडे, रुयगकूडे।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं छ कूडा पन्नत्ता, तं जहा– नीलवंतकूडे, उवदंसण-कूडे, रुप्पिकूडे, मणिकंचणकूडे, Translated Sutra: (૧) જંબૂદ્વીપમાં છ અકર્મભૂમિ કહી છે, તે આ – હૈમવત, હૈરણ્યવત, હરિવર્ષ, રમ્યક્વર્ષ, દેવકુરુ, ઉત્તરકુરુ. (૨) જંબૂદ્વીપમાં છ વર્ષક્ષેત્ર કહ્યા છે – ભરત, ઐરવત, હૈમવત, હૈરણ્યવત, હરિવર્ષ, રમ્યક્વર્ષ. (૩) જંબૂદ્વીપમાં છ વર્ષધર પર્વતો કહ્યા છે – લઘુહિમવત, મહાહિમવત, નિષધ, નીલવંત, રુકિમ, શિખરી. (૪) જંબૂદ્વીપમાં મેરુ – દક્ષિણે | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 644 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तविधे कायकिलेसे पन्नत्ते, तं जहा– ठाणातिए, उक्कुडुयासणिए, पडिमठाई, वीरासणिए, नेसज्जिए, दंडायतिए, लगंडसाई। Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૪૪. સાત પ્રકારે કાયક્લેશ તપ કહ્યો છે. તે આ – સ્થાનાતિગ – ઉભા રહેવું, ઉત્કુટુકાસનિક – ઉક્ડું આસને બેસવું, પ્રતિમાસ્થાયી – સમય મર્યાદા નિશ્ચિત કરી કાયોત્સર્ગ કરવો, વીરાસનિક – વિરાસને બેસવું,, નૈષધિક – પલાંઠીવાળી બેસવું,, દંડાયતિક – દંડ સમાન સીધા સુવું,, લંગડશાયી – વાંકી લાકડીની જેમ શયન કરવું. સૂત્ર– ૬૪૫. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 672 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अध भंते! अदसि-कुसुम्भ-कोद्दव-कंगु-रालग-वरट्ट-कोद्दूसग-सण-सरिसव-मूलगबीयाणं–एतेसि णं धन्नाणं कोट्ठाउत्ताणं पल्लाउत्ताणं मंचाउत्ताणं मालाउत्ताणं ओलित्ताणं लित्ताणं लंछियाणं मुद्दियाणं पिहियाणं केवइयं कालं जोणी संचिट्ठति?
गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्त संवच्छराइं। तेण पर जोणी पमिलायति, तेण परं जोणी पविद्धंसति, तेण परं जोणी विद्धंसति, तेण परं बीए अबीए भवति, तेण परं जोणीवोच्छेदे पन्नत्ते। Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૭૨. હે ભગવન્ ! અળસી, કુસુંભ, કોદ્રવ, કાંગ, રાળ, સણ, સરસવ અને મૂળાના બીજ, આ ધાન્યોના કોઠારમાં કે પાલામાં ઘાલીને યાવત્ ઢાંકીને રાખ્યા હોય તો કેટલો કાળ તેની યોનિ સચિત્ત રહે ? – હે ગૌતમ ! જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્ત્ત અને ઉત્કૃષ્ટથી સાત વર્ષ પર્યન્ત, ત્યારપછી તેની યોનિ મ્લાન થાય છે યાવત્ યોનિનો નાશ થાય છે તેમ કહ્યું | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-७ |
Gujarati | 690 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सातावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तविधे अनुभावे पन्नत्ते, तं जहा–मणुन्ना सद्दा, मणुन्ना रूवा, मणुन्ना गंधा, मणुन्ना रसा, मणुन्ना फासा, मणोसुहता, वइसुहता।
असातावेयणिज्जस्स णं कम्मस्स सत्तविधे अणुभावे पन्नत्ते, तं जहा–अमणुन्ना सद्दा, अमणुन्ना रूवा, अमणुन्ना गंधा, अमणुन्ना रसा, अमणुन्ना फासा, मनोदुहता, वइदुहता। Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૯૦. સાતા વેદનીય કર્મનો અનુભાવ સાત ભેદે કહ્યો છે – મનોજ્ઞ શબ્દ, મનોજ્ઞ રૂપ યાવત્ મનોજ્ઞ સ્પર્શ, મનસુખતા, વચનસુખતા. અસાતા વેદનીય કર્મનો કર્મનો અનુભાવ સાત ભેદે કહેલ છે – અમનોજ્ઞ શબ્દો યાવત્ વચનદુઃખતા. સૂત્ર– ૬૯૧. મઘા નક્ષત્ર, સાત તારાવાળા કહ્યા છે. અભિજિત આદિ સાત નક્ષત્રો પૂર્વ દિશાના દ્વારવાળા કહ્યા | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Gujarati | 747 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, सातिरेगाइं अट्ठ जोयणाइं सव्वग्गेणं पन्नत्ता। कूडसामली णं अट्ठ जोयणाइं एवं चेव। Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૪૭. સુદર્શના જંબૂવૃક્ષ આઠ યોજન ઊર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી, બહુમધ્ય દેશભાગમાં આઠ યોજન વિષ્કંભ વડે અને સાધિક આઠ યોજન સર્વાગ્રથી કહ્યું છે. કૂટ શાલ્મલી વૃક્ષ આઠ યોજન પ્રમાણ એ રીતે જ કહ્યું છે. સૂત્ર– ૭૪૮. તિમિસ્ર ગુફા આઠ યોજન ઊર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી કહી છે. ખંડપ્રપાત ગુફા પણ એ જ રીતે આઠ યોજન ઊર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી કહી છે. સૂત્ર– | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-८ |
Gujarati | 790 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणस्स णं भगवतो महावीरस्स अट्ठ सया अनुत्तरोववाइयाणं गतिकल्लाणाणं ठितिकल्लाणाणं आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिया अनुत्तरोववाइयसंपया हुत्था। Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૯૦. શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને અનુત્તરોપપાતિક, ગતિકલ્યાણક યાવત્ આગમેષિભદ્રક ૮૦૦ સાધુની ઉત્કૃષ્ટ અનુત્તરોપપાતિક સંપત થઈ. સૂત્ર– ૭૯૧. આઠ ભેદે વાણવ્યંતર દેવો કહ્યા છે – પિશાચ, ભૂત, યક્ષ, રાક્ષસ, કિંનર, કિંપુરિષ, મહોરગ, ગાંધર્વ. આ આઠ વાણવ્યંતર દેવોના આઠ ચૈત્યવૃક્ષો કહ્યા છે. તે આ – સૂત્ર– ૭૯૨. પિશાચોનું કલંબ, | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 807 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नवविधे दरिसणावरणिज्जे कम्मे पन्नत्ते, तं जहा–
निद्दा, निद्दानिद्दा, पयला, पयलापयला, थीणगिद्धी, चक्खुदंसणावरणे, अचक्खुदंसणावरणे, ओहिदंसणावरणे, केवलदंसणावरणे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૦૭. દર્શનાવરણીય કર્મ નવ ભેદે કહ્યું છે, તે આ – નિદ્રા, નિદ્રાનિદ્રા, પ્રચલા, પ્રચલાપ્રચલા, સ્ત્યાનગૃદ્ધિ, ચક્ષુર્દર્શનાવરણ, અચક્ષુર્દર્શનાવરણ, અવધિ દર્શનાવરણ, કેવલદર્શનાવરણ. સૂત્ર– ૮૦૮. અભિજિત્ નક્ષત્ર સાતિરેગ નવ મુહૂર્ત્ત ચંદ્ર સાથે યોગ કરે છે, અભિજિત આદિ નવ નક્ષત્રો ચંદ્રને ઉત્તરથી યોગ કરે છે. | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-९ |
Gujarati | 872 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एस णं अज्जो! सेणिए राया भिंभिसारे कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सीमंतए नरए चउरासीतिवाससहस्सट्ठितीयंसि णिरयंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। से णं तत्थ नेरइए भविस्सति– काले कालोभासे गंभीरलोमहरिसे भीमे उत्तासणए परमकिण्हे वण्णेणं। से णं तत्थ वेयणं वेदिहिती उज्जलं तिउलं पगाढं कडुयं कक्कसं चंडं दुक्खं दुग्गं दिव्वं दुरहियासं।
से णं ततो नरयाओ उव्वट्टेत्ता आगमेसाए उस्सप्पिणीए इहेव जंबुद्दीवे दीवे भरहे वासे वेयड्ढगिरिपायमूले पुंडेसु जनवएसु सतदुवारे णगरे संमुइस्स कुलकरस्स भद्दाए भारियाए कुच्छिंसि पुमत्ताए पच्चायाहिति।
तए णं सा भद्दा भारिया नवण्हं Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૭૨. હે આર્યો ! ભિંભિસાર શ્રેણિક રાજા કાળ માસે કાળ કરીને રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં સીમંતક નરકવાસમાં ૮૪,૦૦૦ વર્ષની સ્થિતિમાં નારકોને વિશે નૈરયિકપણે ઉત્પન્ન થશે. તે ત્યાં નૈરયિક થશે, સ્વરૂપથી કાળો, કાળો દેખાતો યાવત્ વર્ણથી પરમકૃષ્ણ થશે. તે ત્યાં એકાંત દુઃખમય યાવત્ વેદનાને ભોગવશે. તે નરકમાંથી નીકળીને આવતી | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 903 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दस सुहुमा पन्नत्ता, तं जहा–पाणसुहुमे, पनगसुहुमे, बीयसुहुमे, हरितसुहुमे, पुप्फसुहुमे, अंडसुहुमे, लेणसुहुमे सिनेहसुहुमे, गणियसुहुमे, भंगसुहुमे।
जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं गंगा-सिंधु-महानदीओ दस महानदीओ समप्पेंति, तं जहा–जउणा, सरऊ, आवी, कोसी, मही, सतद्दू, वितत्था, विभासा, एरावती, चंदभागा। Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૦૩. દશ સૂક્ષ્મો કહેલા છે – પ્રાણ સૂક્ષ્મ, પનક સૂક્ષ્મ યાવત્ સ્નેહ સૂક્ષ્મ, ગણિત સૂક્ષ્મ, ભંગ સૂક્ષ્મ. સૂત્ર– ૯૦૪. જંબૂદ્વીપના મેરુની દક્ષિણે ગંગા, સિંધુ મહાનદીઓમાં દશ મહાનદીઓ મળે છે. તે આ – યમૂના, સરયૂ, આવી, કોશી, મહી, શતદ્રૂ, વિવત્સા, વિભાષા, ઐરાવતી, ચંદ્રભાગા. જંબૂદ્વીપના મેરુની ઉત્તરે રક્તા, રક્તવતી | |||||||||
Sthanang | સ્થાનાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
स्थान-१० |
Gujarati | 983 | Sutra | Ang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] केवलिस्स णं दस अनुत्तरा पन्नत्ता, तं जहा–अनुत्तरे नाणे, अनुत्तरे दंसणे, अनुत्तरे चरित्ते, अनुत्तरे तवे, अणुत्तरे वीरिए, अनुत्तरा खंती, अनुत्तरा मुत्ती, अनुत्तरे अज्जवे, अनुत्तरे मद्दवे, अनुत्तरे लाघवे। Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૮૩. કેવલીએ દશ અનુત્તર કહ્યા છે – અનુત્તર જ્ઞાન, અનુત્તર દર્શન, અનુત્તર ચારિત્ર, અનુત્તર તપ, અનુત્તર વીર્ય, અનુત્તર ક્ષાંતિ, અનુત્તર મુક્તિ, અનુત્તર આર્જવ, અનુત્તર માર્દવ અને અનુત્તર લાઘવ. સૂત્ર– ૯૮૪. સમય ક્ષેત્રમાં દશ કુરુક્ષેત્રો કહ્યા છે – પાંચ દેવકુરુ, પાંચ ઉત્તરકુરુ. તેમાં દશ અતિશય મોટા દશ મહાદ્રુમો |