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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ५ जिन जन्माभिषेक |
Gujarati | 241 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अच्चुइंदे सपरिवारे सामिं तेणं महया-महया अभिसेएणं अभिसिंचइ, अभिसिंचित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता ताहिं इट्ठाहि कंताहिं पियाहिं मणुन्नाहिं मणामाहिं सिव्वाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हायणिज्जाहिं वग्गूहिं जयजयसद्दं पउंजइ, पउंजित्ता तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाइं लूहेइ, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदनेनं गाताइं अनुलिंपति, अनुलिंपित्ता नासा-नीसासवायवोज्झं चक्खुहरं वण्णफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलकनगखचियंतकम्मं आगास फलिहसमप्पभं Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૪૧. ત્યારે તે અચ્યુતેન્દ્ર સપરિવાર, તીર્થંકર ભગવંતને તે મહાન – મહાન અભિષેકનો અભિષેક કરે છે. અભિષેક કરીને બે હાથ જોડી યાવત્ મસ્તકે અંજલી કરીને જય અને વિજય વડે વધાવે છે. વધાવીને તેવી ઇષ્ટ વાણીથી યાવત્ જય – જય શબ્દ ઉચ્ચારે છે. ત્યારપછી યાવત્ રૂંવાટીવાળા સુકુમાલ સુરભિત ગંધકાષાયિક વસ્ત્રથી ગાત્રોને | |||||||||
Jambudwippragnapati | જંબુદ્વીપ પ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वक्षस्कार ७ ज्योतिष्क |
Gujarati | 351 | Sutra | Upang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदस्स णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरन्नो कइ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदप्पभा दोसिनाभा अच्चिमाली पभंकरा। तओ णं एगमेगाए देवीए चत्तारि-चत्तारि देवीसहस्साइं परिवारो पण्णत्तो। पभू णं ताओ एगमेगा देवी अन्नं देवीसहस्सं परिवारो विउव्वित्तए। एवामेव सपुव्वावरेणं सोलस देवी सहस्सा। सेत्तं तुडिए।
पभू णं भंते! चंदे जोइसिंदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाने चंदाए रायहानीए सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धिं महयाहयनट्ट गीय वाइय तंती तल ताल तुडिय घण मुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं Translated Sutra: સૂત્ર– ૩૫૧. ભગવન્ ! જ્યોતિષેન્દ્ર જ્યોતિષરાજ ચંદ્રની કેટલી અગ્રમહિષીઓ કહેલી છે ? ગૌતમ ! ચાર અગ્રમહિષીઓ કહેલી છે, તે આ પ્રમાણે – ચંદ્રપ્રભા, જ્યોત્સનાભા, અર્ચિમાલી, પ્રભંકરા. તેમાં એક – એક અગ્રમહિષીનો ચાર – ચાર હજાર દેવીનો પરિવાર બતાવાયેલ છે. એક – એક અગ્રમહિષી બીજી હજાર દેવીની વિકુર્વણા કરવાને સમર્થ હોય છે. | |||||||||
Jitakalpa | जीतकल्प सूत्र | Ardha-Magadhi |
तप प्रायश्चित्तं |
Hindi | 69 | Gatha | Chheda-05A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुरिसा गीयाऽगीया सहाऽसहा तह सढाऽसढा केई ।
परिणामाऽपरिणामा अइपरिणामा य वत्थूणं ॥ Translated Sutra: पुरुष में कोई गीतार्थ हो कोई अगीतार्थ हो, कोई सहनशील हो, कोई असहनशील हो, कोई ऋजु हो कोई मायावी हो, कुछ श्रद्धा परिणामी हो, कुछ अपरिणामी हो, और कुछ अपवाद का ही आचरण करनेवाले अति – परिणामी भी हो, कुछ धृति – संघयण और उभय से संपन्न हो, कुछ उससे हिन हो, कुछ तप शक्तिवाले हो, कुछ वैयावच्ची हो, कुछ दोनों ताकतवाले हो, कुछ में | |||||||||
Jitakalpa | जीतकल्प सूत्र | Ardha-Magadhi |
पाराश्चित प्रायश्चित्तं |
Hindi | 90 | Gatha | Chheda-05A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अप्पडिविरओ-सन्नो न भाव-लिंगारिहोऽनवट्ठप्पो ।
जो जत्थ जेण दूसइ पडिसिद्धो तत्थ सो खेत्ते ॥ Translated Sutra: स्वपक्ष – परपक्ष के घात में उद्यत ऐसे द्रव्य या भाव लिंगी को और ओसन्न आदि भावलिंग रहित को अनव – स्थाप्य प्रायश्चित्त। जिन – जिन क्षेत्र से दोष लगे उसे उसी क्षेत्र में अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त। | |||||||||
Jitakalpa | जीतकल्प सूत्र | Ardha-Magadhi |
पाराश्चित प्रायश्चित्तं |
Hindi | 91 | Gatha | Chheda-05A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्तियमित्तं कालं तवसा उ जहन्नएण छम्मासा ।
संवच्छरमुक्कोसं आसायइ जो जिनाईणं ॥ Translated Sutra: जो जितने काल के लिए दोष में रहे उसे उतने काल के लिए अनवस्थाप्य। अनवस्थाप्य दोष के दो भेद आशातना और पड़िसेवणा – निषिद्ध कार्य करना वो। उसमें आशातना अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त जघन्य से छ मास और उत्कृष्ट से एक साल, पड़िसेवण अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त जघन्य से एक साल उत्कृष्ट से बारह साल। | |||||||||
Jitakalpa | जीतकल्प सूत्र | Ardha-Magadhi |
पाराश्चित प्रायश्चित्तं |
Hindi | 101 | Gatha | Chheda-05A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगाणी खेत्त-बहिं कुणइ तवं सु-विउलं महासत्तो ।
अवलोयणमायरिओ पइ-दिनमेगो कुणइ तस्स ॥ Translated Sutra: पारंचित प्रायश्चित्त सेवन करके महासत्त्वशाली को अकेले जिनकल्पी की तरह और क्षेत्र के बाहर अर्ध योजन रखना और तप के लिए स्थापन करना, आचार्य प्रतिदिन उसका अवलोकन करे। | |||||||||
Jitakalpa | જીતકલ્પ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
पाराश्चित प्रायश्चित्तं |
Gujarati | 91 | Gatha | Chheda-05A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्तियमित्तं कालं तवसा उ जहन्नएण छम्मासा ।
संवच्छरमुक्कोसं आसायइ जो जिनाईणं ॥ Translated Sutra: જે જેટલા કાળ માટે દોષમાં રહે, તેને તેટલા કાળ માટે અનવસ્થાપ્ય પ્રાયશ્ચિત્ત આપવું. અનવસ્થાપ્યના બે ભેદ ૧. આશાતના, ૨. પડિસેવણા અર્થાત્ નિષિદ્ધ કાર્યનું કરવું તે. તેમાં આશાતના અનવસ્થાપ્ય પ્રાયશ્ચિત્ત જઘન્યથી છ માસ અને ઉત્કૃષ્ટથી એક વર્ષ હોય. પડિસેવણા અનવસ્થાપ્ય પ્રાયશ્ચિત્ત જઘન્યથી એક વર્ષ અને ઉત્કૃષ્ટથી | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Hindi | 145 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति...
...एगोरुयदीवे णं दीवे Translated Sutra: हे भगवन् ! एकोरुकद्वीप की भूमि आदि का स्वरूप किस प्रकार का है ? गौतम ! एकोरुकद्वीप का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है। मुरज के चर्मपुट समान समतल वहाँ का भूमिभाग है – आदि। इस प्रकार शय्या की मृदुता भी कहना यावत् पृथ्वीशिलापट्टक का भी वर्णन करना। उस शिलापट्टक पर बहुत से एको – रुकद्वीप के मनुष्य और स्त्रियाँ | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 175 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं मूलपासायवडेंसगस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स सभा सुधम्मा पन्नत्ता–अद्धत्तेरसजोयणाइं आयामेणं, छ सक्कोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, नव जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसतसंनिविट्ठा अब्भुग्गयसुकयवइरवेदियातोरनवररइयसालभंजिया सुसिलिट्ठ विसिट्ठ लट्ठ संठिय पसत्थवेरुलियविमलखंभा नानामणि-कनग-रयणखइय-उज्जलबहुसम-सुविभत्तभूमिभागा ईहामिय-उसभ-तुरगनरमगर-विहगवालग-किन्नररुरु-सरभचमर-कुंजरवनलय-पउमलय-भत्तिचित्ता खंभुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामा विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव अच्चिसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिब्भिसमाणा चक्खुलोयणलेसा Translated Sutra: उस मूल प्रासादावतंसक के उत्तर – पूर्व में विजयदेव की सुधर्मा सभा है जो साढ़े बारह योजन लम्बी, छह योजन और एक कोस की चौड़ी तथा नौ योजन की ऊंची है। वह सैकड़ों खंभों पर स्थित है, दर्शकों की नजरों में चढ़ी हुई और भलीभाँति बनाई हुई उसकी वज्रवेदिका है, श्रेष्ठ तोरण पर रति पैदा करने वाली शालभंजिकायें हैं, सुसंबद्ध, प्रधान | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 176 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पन्नत्ता। सा णं मणिपेढिया दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं मणिपेढियाए उप्पिं, एत्थ णं महं एगे मानवए णाम चेइयखंभे पन्नत्ते–अद्धट्ठमाइं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, छकोडीए छलंसे छविग्गहिते वइरामयवट्टलट्ठसंठियसुसिलिट्ठपरिघट्ठमट्ठसुपतिट्ठिते एवं जहा महिंदज्झयस्स वण्णओ जाव पडिरूवे।
तस्स णं मानवगस्स चेतियखंभस्स उवरिं छक्कोसे ओगाहित्ता, हेट्ठावि छक्कोसे वज्जेत्ता, मज्झे अद्धपंचमेसु जोयणेसु Translated Sutra: उस बहुसमरमणीय भूमिभाग के ठीक मध्यभाग में एक मणिपीठिका है। वह मणिपीठिका दो योजन लम्बी – चौड़ी, एक योजन मोटी और सर्वमणिमय है। उस के ऊपर माणवक चैत्यस्तम्भ है। वह साढ़े सात योजन ऊंचा, आधा कोस ऊंडा और आधा कोस चौड़ा है। उसकी छह कोटियाँ हैं, छह कोण हैं और छह भाग हैं, वह वज्र का है, गोल है और सुन्दर आकृतिवाला है, यावत् वह | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 177 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सभाए णं सुधम्माए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे सिद्धायतने पन्नत्ते–अद्धतेरस जोयणाइं आयामेणं, छ जोयणाइं सकोसाइं विक्खंभेणं, नव जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं जाव गोमानसिया वत्तव्वया जा चेव सहाए सुहम्माए वत्तव्वया सा चेव निरवसेसा भाणियव्वा तहेव दारा मुहमंडवा पेच्छाघरमंडवा झया थूभा चेइयरुक्खा महिंदज्झया नंदाओ पुक्खरिणीओ सुधम्मासरिसप्पमाणं मनगुलिया दामा गोमानसी धूवघडियाओ तहेव भूमिभागे उल्लोए य जाव मणिफासो।
तस्स णं सिद्धायतनस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पन्नत्ता–दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे Translated Sutra: सुधर्मासभा के उत्तरपूर्व में एक विशाल सिद्धायतन (जिनालय) है जो साढ़े बारह योजन का लम्बा, छह योजन एक कोस चौड़ा और नौ योजन ऊंचा है। द्वार, मुखमण्डप, प्रेक्षागृहमण्डप, ध्वजा, स्तूप, माहेन्द्रध्वज, नन्दा पुष्करिणियाँ, मनोगुलिकाओं का प्रमाण, गोमाणसी, धूपघटिकाएं, भूमिभाग, उल्लोक आदि का वर्णन सुधर्मासभा के समान कहना। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
प्रतिपत्ति भूमिका |
Hindi | 1 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहूणं, नमो उसभादियाणं चउवीसाए तित्थगराणं, इह खलु जिनमयं जिनानुमयं जिनानुलोमं जिनप्पणीतं जिनपरूवियं जिनक्खायं जिनानुचिण्णं जिनपन्नत्तं जिन देसियं जिनपसत्थं अनुवीइ तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा थेरा भगवंतो जीवाजीवाभिगमं नामज्झयणं पन्नवइंसु। Translated Sutra: अरिहंतों को नमस्कार हो। सिद्धों को नमस्कार हो। आचार्यों को नमस्कार हो। उपाध्याय को नमस्कार हो। सर्व साधुओं को नमस्कार हो। ऋषभ आदि चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार हो। इस जैन प्रवचन में द्वादशांग गणिपिटक अन्य सब तीर्थंकरों द्वारा अनुमत है, जिनानुकूल है, जिनप्रणीत है, जिनप्ररूपित है, जिनाख्यात है, जिनानुचीर्ण | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 14 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए।
तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जइ-भागं, उक्कोसेणवि अंगुलासंखेज्जइभागं।
तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संघयणा पन्नत्ता? गोयमा! छेवट्टसंघयणा पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संठिया पन्नत्ता? गोयमा! मसूरचंदसंठिया पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति कसाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसाए मानकसाए मायाकसाए लोहकसाए।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सण्णाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि सण्णाओ पन्नत्ताओ, Translated Sutra: हे भगवन् ! उन सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के कितने शरीर हैं ? गौतम ! तीन – औदारिक, तैजस और कार्मण। भगवन् ! उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी बड़ी है ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट से भी अंगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण है। भगवन् ! उन जीवों के शरीर के किस संहननवाले हैं ? गौतम ! सेवार्तसंहनन वाले। भगवन् ! उन जीवों के शरीर | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Hindi | 105 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया केरिसयं खुहप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति?
गोयमा! एगमेगस्स णं रयणप्पभापुढविनेरइयस्स असब्भावपट्ठवणाए सव्वोदधी वा सव्व-पोग्गले वा आसगंसि पक्खिवेज्जा नो चेव णं से रयणप्पभाए पुढवीए नेरइए तित्ते वा सिता वितण्हे वा सिता, एरिसया णं गोयमा! रयणप्पभाए नेरइया खुधप्पिवासं पच्चणुब्भवमाणा विहरंति। एवं जाव अधेसत्तमाए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइया किं एकत्तं पभू विउव्वित्तए? पुहुत्तंपि पभू विउव्वित्तए? गोयमा! एगत्तंपि पभू विउव्वित्तए। एगत्तं विउव्वेमाणा एगं महं मोग्गररूवं वा मुसुंढिरूवं वा, एवं– मोग्गरमुसुंढिकरवतअसिसत्तीहलगतामुसलचक्का।
नारायकुंततोमरसूललउडभिंडमाला Translated Sutra: हे भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक भूख और प्यास की कैसी वेदना का अनुभव करते हैं ? गौतम! असत् कल्पना के अनुसार यदि किसी एक रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक के मुख में सब समुद्रों का जल तथा सब खाद्य पुद्गलों को डाल दिया जाय तो भी उस रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक की भूख तृप्त नहीं हो सकती और न उसकी प्यास ही शान्त हो | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Hindi | 132 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! गंधंगा? कइ णं भंते! गंधंगसया पन्नत्ता? गोयमा! सत्त गंधंगा सत्त गंधंगसया पन्नत्ता।
कइ णं भंते! पुप्फजातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पन्नत्ता? गोयमा! सोलस पुप्फ-जातीकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा पन्नत्ता, तं जहा– चत्तारि जलजा णं चत्तारि थलजाणं चत्तारि महारुक्खाणं चत्तारि महागुम्मियाणं।
कति णं भंते! वल्लीओ? कति वल्लिसता पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि वल्लीओ चत्तारि वल्लीसता पन्नत्ता।
कति णं भंते! लताओ? कति लतासता पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठ लताओ अट्ठ लतासता पन्नत्ता।
कति णं भंते! हरियकाया? कति हरियकायसया पन्नत्ता? गोयमा! तओ हरियकाया तओ हरियकायसया पन्नत्ता। फलसहस्सं Translated Sutra: हे भगवन् ! गंध कितने हैं ? गन्धशत कितने हैं ? गौतम ! सात गंध हैं और सात ही गन्धशत हैं। हे भगवन्! फूलों की कितनी लाख जातिकुलकोडी हैं ? गौतम ! सोलह लाख, यथा – चार लाख जलज पुष्पों की, चार लाख स्थलज पुष्पों की, चार लाख महावृक्षों के फूलों की और चार लाख महागुल्मिक फूलों की। हे भगवन् ! वल्लियाँ और वल्लिशत कितने प्रकार के | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 164 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं जगतीए उप्पिं पउमवरवेइयाए बाहिं, एत्थ णं महेगे वनसंडे पन्नत्ते–देसूणाइं दो जोयणाइं चक्कवालविक्खंभेणं, जगतीसमए परिक्खेवेणं, किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घनकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
ते णं पायवा मूलमंतो कंदमंतो खंधमंतो तयामंतो सालमंतो पवालमंतो पत्तमंतो पुप्फमंतो फलमंतो बीयमंतो अनुपुव्वसुजायरुइलवट्टभावपरिणया एक्कखंधी अनेगसाहप्पसाहविडिमा अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ Translated Sutra: उस जगती के ऊपर और पद्मवरवेदिका के बाहर एक बड़ा विशाल वनखण्ड है। वह वनखण्ड कुछ कम दो योजन गोल विस्तार वाला है और उसकी परिधि जगती की परिधि के समान ही है। वह वनखण्ड काला है और काला ही दिखाई देता है। यावत् उस वनखण्ड के वृक्षों के मूल बहुत दूर तक जमीन के भीतर गहरे गये हुए हैं, वे प्रशस्त किशलय वाले, प्रशस्त पत्रवाले | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 165 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामय-कूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुब्भ रययवालुयाओ वेरुलिय-मणिफालियपडलपच्चोयडाओ सुहोयारसुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पल कुमुद नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त फुल्ल केसरोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ Translated Sutra: उस वनखण्ड के मध्य में उस – उस भाग में उस उस स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी चौकोनी वावडियाँ हैं, गोल – गोल अथवा कमलवाली पुष्करिणियाँ हैं, जगह – जगह नहरों वाली दीर्घिकाएं हैं, टेढ़ीमेढ़ी गुंजालिकाएं हैं, जगह – जगह सरोवर हैं, सरोवरों की पंक्तियाँ हैं, अनेक सरसर पंक्तियाँ और बहुत से कुओं की पंक्तियाँ हैं। वे स्वच्छ हैं, | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 168 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] विजयस्स णं दारस्स उभओ पासिं दुहओ निसीहियाए दोदो पगंठगा पन्नत्ता। ते णं पगंठगा चत्तारि जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, दो जोयणाइं बाहल्लेणं, सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसि णं पगंठगाणं उवरिं पत्तेयंपत्तेयं पासायवडेंसगा पन्नत्ता।
ते णं पासायवडेंसगा चत्तारि जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, अब्भुग्गयमूसितपहसिताविव विविहमनिरयणभत्तिचित्ता वाउद्धुयविजयवेजयंतीपडागच्छत्तातिछत्त कलिया तुंगा गगनतलमनुलिहंतसिहरा जालंतररयण पंजरुम्मिलितव्व मणिकनगथूभियागा वियसिय सयवत्तपोंडरीयतिलकरयणद्धचंदचित्ता अंतो बाहिं च सण्हा तवणिज्जवालुयापत्थडा Translated Sutra: उस विजयद्वार के दोनों तरफ दोनों नैषेधिकाओं में दो प्रकण्ठक हैं। ये चार योजन के लम्बे – चौड़े और दो योजन की मोटाईवाले हैं। ये सर्व वज्ररत्न के हैं, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं। इन के ऊपर अलग – अलग प्रासादा – वतंसक हैं। ये प्रासादावतंसक चार योजन के ऊंचे और दो योजन के लम्बे – चौड़े हैं। चारों तरफ से नीकलती हुई | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 179 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए विजयदेवत्ताए उववन्ने।
तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे Translated Sutra: उस काल और उस समय में विजयदेव विजया राजधानी की उपपातसभा में देवशयनीय में देवदूष्य के अन्दर अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण शरीर में विजयदेव के रूप में उत्पन्न हुआ। तब वह उत्पत्ति के अनन्तर पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पूर्ण हुआ। वे पाँच पर्याप्तियाँ इस प्रकार हैं – आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रिय | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 180 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से विजए देवे महयामहया इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरत्थि-मेणं दारेणं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासन वरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स आभिओगिया देवा आलंकारियं भंडं उवणेंति।
तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताइं लूहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदनेणं Translated Sutra: तब वह विजयदेव शानदार इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त हो जाने पर सिंहासन से उठकर अभिषेकसभा के पूर्व दिशा के द्वार से बाहर नीकलता है और अलंकारसभा की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशा के द्वार से उसमें प्रवेश करता है। फिर उस श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व की ओर मुख करके बैठा। तदनन्तर उस विजयदेव की सामानिकपर्षदा के देवों ने आभियोगिक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 191 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूए णं सुदंसणाए चउद्दिसिं चत्तारि साला पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दक्खिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं।
तत्थ णं जेसे पुरत्थिमिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे भवणे पन्नत्ते–एगं कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूणं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसतसंनिविट्ठं, वण्णओ जाव भवनस्स दारं तं चेव, पमाणं पंचधनुसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं विक्खंभेणं जाव वनमालाओ भूमिभागा उल्लोया मणिपेढिया पंचधनुसतिया देवसयणिज्जं भाणियव्वं।
तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पन्नत्ते–कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं आयामविक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसियपहसिया, Translated Sutra: सुदर्शना अपर नाम जम्बू की चारों दिशाओं में चार – चार शाखाएं हैं, उनमें से पूर्व की शाखा पर एक विशाल भवन है जो एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा, देशोन एक कोस ऊंचा है, अनेक सैकड़ों खंभों पर आधारित है आदि। वे द्वार पाँच सौ धनुष के ऊंचे, ढ़ाई सौ धनुष के चौड़े हैं। उस जम्बू की दक्षिणी शाखा पर एक विशाल प्रासादावतंसक है, जो एक कोस | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 205 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! वेलंधरणागरायाणो पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि वेलंधरणागरायाणो पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे सिवए संखे मणोसिलए।
एतेसि णं भंते! चउण्हं वेलंधरणागरायाणं कति आवासपव्वत्ता पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि आवासपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे दओभासे संखे दगसीमे।
कहि णं भंते! गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं लवणसमुद्दं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं गोथूभस्स वेलंधरणागरायस्स गोथूभे नामं आवासपव्वते पन्नत्ते। सत्तरसएक्कवीसाइं जोयणसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारिं तीसे जोयणसते Translated Sutra: हे भगवन् ! वेलंधर नागराज कितने हैं ? गौतम ! चार – गोस्तूप, शिवक, शंख और मनःशिलाक। हे भगवन् ! इन चार वेलंधर नागराजों के कितने आवासपर्वत कहे गये हैं ? गौतम ! चार – गोस्तूप, उदकभास, शंख और दकसीम। हे भगवन् ! गोस्तूप वेलंधर नागराज का गोस्तूप नामक आवासपर्वत कहाँ है ? हे गौतम ! जम्बू – द्वीप के मेरुपर्वत के पूर्वमें लवणसमुद्र | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 255 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एसो तारापिंडो, सव्वसमासेण मनुयलोगंमि ।
बहिया पुण ताराओ, जिणेहिं भणिया असंखेज्जा ॥ Translated Sutra: इस प्रकार मनुष्यलोक में तारापिण्ड पूर्वोक्त संख्याप्रमाण हैं। मनुष्यलोक में बाहर तारापिण्डों का प्रमाण जिनेश्वर देवों ने असंख्यात कहा है। | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 277 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] दो चंदा इह दीवे, चत्तारि य सागरे लवणतोए ।
धायइसंडे दीवे, बारस चंदा य सूरा य ॥ Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप में दो चन्द्र और दो सूर्य हैं। लवणसमुद्र में चार चन्द्र और चार सूर्य हैं। धातकीखण्ड में बारह चन्द्र और बारह सूर्य हैं। जम्बूद्वीप में दो चन्द्र और दो सूर्य हैं। इनसे दुगुने लवणसमुद्र में हैं और लवणसमुद्र के चन्द्रसूर्यों के तिगुने धातकीखण्ड में हैं। धातकीखण्ड के आगे के समुद्र और द्वीपों | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 294 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] खोदोदण्णं समुद्दं नंदिस्सरवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। पुव्वक्कमेणं जाव जीवोववातो।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नंदिस्सरवरे दीवे? नंदिस्सरवरे दीवे? गोयमा! नंदिस्सरवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ जाव विहरंति, नवरं–खोदोदग-पडिहत्थाओ पव्वतगादी पुव्वभणिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा।
अदुत्तरं च णं गोयमा! नंदिस्सरवरे दीवे चउद्दिसिं चक्कवालविक्खंभेणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि अंजनगपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं। ते णं अंजनग-पव्वता Translated Sutra: क्षोदोदकसमुद्र को नंदीश्वर नाम का द्वीप चारों ओर से घेर कर स्थित है। यह गोल और वलयाकार है। यह नन्दीश्वरद्वीप समचक्रवाल विष्कम्भ से युक्त है। परिधि से लेकर जीवोपपाद तक पूर्ववत्। भगवन् ! नंदीश्वरद्वीप के नाम का क्या कारण है ? गौतम ! नंदीश्वरद्वीप में स्थान – स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी बावड़ियाँ यावत् | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 315 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते कति देवसाहस्सीओ परिवहंति गोयमा चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभ-गाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउवट्टपीवर-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबितमुहाणं रत्तुप्पलपत्त-मउयसुमालालु-जीहाणं मधुगुलियपिंग-लक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुन्नविउलखंधाणं मिउविसय पसत्थसुहुमलक्खण-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं चंकमितललिय-पुलितथवलगव्वित-गतीणं उस्सियसुणिम्मि-यसुजायअप्फोडियणंगूलाणं वइरामयनक्खाणं वइरामयदंताणं पीतिगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं मनोहराणं अमीयगतीणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव वहन करते हैं ? गौतम ! १६००० देव, उनमें से ४००० देव सिंह का रूप धारण कर पूर्वदिशा से उठाते हैं। वे सिंह श्वेत हैं, सुन्दर हैं, श्रेष्ठ कांति वाले हैं, शंख के तल के समान विमल और निर्मल तथा जमे हुए दहीं, गाय का दूध, फेन चाँदी के नीकर के समान श्वेत प्रभावाले हैं, उनकी आँखें शहद की गोली | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 320 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासनंसि तुडिएण सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? नो तिणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासनंसि तुडिएणं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए?
गोयमा! चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए मानवगंसि चेतियखंभंसि वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओ जिनसकहाओ सन्निखित्ताओ चिट्ठंति, जाओ णं चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो अन्नेसिं च बहूणं जोतिसियाणं देवाण Translated Sutra: भगवन् ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मासभा में चन्द्र नामक सिंहासन पर अपने अन्तःपुर के साथ दिव्य भोगोपभोग भोगने में समर्थ हैं क्या ? गौतम ! नहीं है। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिषराज चन्द्र के चन्द्रावतंसक विमान में सुधर्मासभा में माणवक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 330 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु विमाना केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य। तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। एवं जाव गेवेज्जविमाना।
अनुत्तरविमाना पुच्छा। गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडे य असंखेज्ज-वित्थडा य। तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से एगं जोयणसयसहस्सं Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्प में विमानों की लम्बाई – चौड़ाई कितनी है ? उनकी परिधि कितनी है ? गौतम! वे विमान दो तरह के हैं – संख्यात योजन विस्तारवाले और असंख्यात योजन विस्तारवाले। नरकों के कथन समान यहाँ कहना; यावत् अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं – संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले। | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 175 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं मूलपासायवडेंसगस्स उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं विजयस्स देवस्स सभा सुधम्मा पन्नत्ता–अद्धत्तेरसजोयणाइं आयामेणं, छ सक्कोसाइं जोयणाइं विक्खंभेणं, नव जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसतसंनिविट्ठा अब्भुग्गयसुकयवइरवेदियातोरनवररइयसालभंजिया सुसिलिट्ठ विसिट्ठ लट्ठ संठिय पसत्थवेरुलियविमलखंभा नानामणि-कनग-रयणखइय-उज्जलबहुसम-सुविभत्तभूमिभागा ईहामिय-उसभ-तुरगनरमगर-विहगवालग-किन्नररुरु-सरभचमर-कुंजरवनलय-पउमलय-भत्तिचित्ता खंभुग्गयवइरवेइयापरिगयाभिरामा विज्जाहरजमलजुयलजंतजुत्ताविव अच्चिसहस्समालणीया रूवगसहस्सकलिया भिसमाणा भिब्भिसमाणा चक्खुलोयणलेसा Translated Sutra: તે મૂલ પ્રાસાદાવતંસકની ઉત્તરપૂર્વમાં અહીં વિજયદેવની સુધર્માસભા કહી છે. તે ૧૨|| યોજન લાંબી, ૬| યોજન પહોળી અને નવ યોજન ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી છે. અનેકશત સ્તંભ સંનિવિષ્ટ છે. અભ્યુદ્ગત સુકૃત વજ્રવેદિકા, શ્રેષ્ઠ તોરણ ઉપર રતિદાયી શાલભંજિકા, સુશ્લિષ્ટ – વિશિષ્ટ – લષ્ટ – સંસ્થિત – પ્રશસ્ત – વૈડૂર્ય – વિમલ સ્તંભ છે. વિવિધ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 176 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पन्नत्ता। सा णं मणिपेढिया दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे णं मणिपेढियाए उप्पिं, एत्थ णं महं एगे मानवए णाम चेइयखंभे पन्नत्ते–अद्धट्ठमाइं जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, छकोडीए छलंसे छविग्गहिते वइरामयवट्टलट्ठसंठियसुसिलिट्ठपरिघट्ठमट्ठसुपतिट्ठिते एवं जहा महिंदज्झयस्स वण्णओ जाव पडिरूवे।
तस्स णं मानवगस्स चेतियखंभस्स उवरिं छक्कोसे ओगाहित्ता, हेट्ठावि छक्कोसे वज्जेत्ता, मज्झे अद्धपंचमेसु जोयणेसु Translated Sutra: તે બહુસમ રમણીય ભૂમિભાગના બહુમધ્ય દેશભાગમાં એક મોટી મણિપીઠિકા કહી છે. તે મણિપીઠિકા બે યોજન લાંબી – પહોળી, એક યોજન જાડી અને સંપૂર્ણ મણિમય છે. તે મણિપીઠિકાની ઉપર અહીં માણવક નામે ચૈત્યસ્તંભ કહેલ છે. તે સાડા સાત યોજન ઊંચો, અર્દ્ધ કોશ ઉદ્વેધથી – જમીનમાં, અર્દ્ધ કોશ વિષ્કંભથી છે. તેની છ કોટી, છ કોણ, છ ભાગ છે. તે વજ્રમય, | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 177 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सभाए णं सुधम्माए उत्तरपुरत्थिमेणं, एत्थ णं महं एगे सिद्धायतने पन्नत्ते–अद्धतेरस जोयणाइं आयामेणं, छ जोयणाइं सकोसाइं विक्खंभेणं, नव जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं जाव गोमानसिया वत्तव्वया जा चेव सहाए सुहम्माए वत्तव्वया सा चेव निरवसेसा भाणियव्वा तहेव दारा मुहमंडवा पेच्छाघरमंडवा झया थूभा चेइयरुक्खा महिंदज्झया नंदाओ पुक्खरिणीओ सुधम्मासरिसप्पमाणं मनगुलिया दामा गोमानसी धूवघडियाओ तहेव भूमिभागे उल्लोए य जाव मणिफासो।
तस्स णं सिद्धायतनस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एगा मणिपेढिया पन्नत्ता–दो जोयणाइं आयामविक्खंभेणं, जोयणं बाहल्लेणं सव्वमणिमई अच्छा जाव पडिरूवा।
तीसे Translated Sutra: સુધર્માસભાની ઉત્તરપૂર્વમાં એક મોટું સિદ્ધાયતન (જિનાલય) કહેલ છે. તે સાડા બાર યોજન લાંબી, સવા છ યોજન પહોળી, નવ યોજન ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી છે યાવત્ ગોમાનસિકની વક્તવ્યતા કહેવી. જે સુધર્માસભાની વક્તવ્યતા છે, તે સંપૂર્ણ પૂર્વવત્. દ્વાર, મુખમંડપ, પ્રેક્ષાધર મંડપ, ધ્વજ, સ્તૂપ, ચૈત્યવૃક્ષ, માહેન્દ્ર ધ્વજ, નંદા પુષ્કરિણી, | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
प्रतिपत्ति भूमिका |
Gujarati | 1 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नमो अरिहंताणं नमो सिद्धाणं नमो आयरियाणं नमो उवज्झायाणं नमो लोए सव्वसाहूणं, नमो उसभादियाणं चउवीसाए तित्थगराणं, इह खलु जिनमयं जिनानुमयं जिनानुलोमं जिनप्पणीतं जिनपरूवियं जिनक्खायं जिनानुचिण्णं जिनपन्नत्तं जिन देसियं जिनपसत्थं अनुवीइ तं सद्दहमाणा तं पत्तियमाणा तं रोएमाणा थेरा भगवंतो जीवाजीवाभिगमं नामज्झयणं पन्नवइंसु। Translated Sutra: અહીં જૈન પ્રવચન નિશ્ચે જિનમત(અરિહંત અને કેવ્લીનો મત), જિનાનુમત(સર્વે જિનેશ્વરોને સંમત), જિનાનુલોમ(અવધિ આદિ જિનોને અનુકુળ) , જિનપ્રણિત(જિનેશ્વરો દ્વારા કહેવાયેલ), જિનપ્રરૂપિત(જિનેશ્વરો દ્વારા પ્રરુપણા કરાયેલ), જિનાખ્યાત, જિનાનુચિર્ણ(જીન અર્થાત ગણધર દ્વારાઅનુસરણ કરાયેલ), જિન પ્રજ્ઞપ્ત, જિનદેશિત, જિનપ્રશસ્ત | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 179 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए विजयदेवत्ताए उववन्ने।
तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે વિજયદેવ, વિજયા રાજધાનીમાં ઉપપાતસભામાં દેવશયનીયમાં દેવદૂષ્યથી ઢંકાયેલી અંગુલના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ શરીરમાં વિજયદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થયો. ત્યારે તે વિજયદેવ ઉત્પત્તિ પછી પાંચ પ્રકારની પર્યાપ્તિથી પૂર્ણ થયો. તે આ રીતે – આહાર પર્યાપ્તિ, શરીર પર્યાપ્તિ, ઇન્દ્રિય પર્યાપ્તિ, આનપ્રાણ પર્યાપ્તિ, | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 180 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से विजए देवे महयामहया इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरत्थि-मेणं दारेणं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासन वरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स आभिओगिया देवा आलंकारियं भंडं उवणेंति।
तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताइं लूहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदनेणं Translated Sutra: ત્યારપછી તે વિજયદેવ મહાન ઇન્દ્રાભિષેકથી અભિષિક્ત થયેલો હતો તે સિંહાસનથી ઊભો થાય છે. સિંહાસન થકી ઊભો થઈને અભિષેક સભાના પૂર્વ દિશાના દ્વારથી નીકળે છે, નીકળીને જ્યાં અલંકારિક સભા છે ત્યાં આવે છે, આવીને તે અલંકારિક સભામાં અનુપ્રદક્ષિણા કરતા – કરતા પૂર્વ દ્વારેથી અનુપ્રવેશે છે. પૂર્વના દ્વારેથી પ્રવેશીને | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Gujarati | 191 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूए णं सुदंसणाए चउद्दिसिं चत्तारि साला पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दक्खिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं।
तत्थ णं जेसे पुरत्थिमिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे भवणे पन्नत्ते–एगं कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं देसूणं कोसं उड्ढं उच्चत्तेणं, अनेगखंभसतसंनिविट्ठं, वण्णओ जाव भवनस्स दारं तं चेव, पमाणं पंचधनुसताइं उड्ढं उच्चत्तेणं, अड्ढाइज्जाइं विक्खंभेणं जाव वनमालाओ भूमिभागा उल्लोया मणिपेढिया पंचधनुसतिया देवसयणिज्जं भाणियव्वं।
तत्थ णं जेसे दाहिणिल्ले साले, एत्थ णं महं एगे पासायवडेंसए पन्नत्ते–कोसं च उड्ढं उच्चत्तेणं, अद्धकोसं आयामविक्खंभेणं अब्भुग्गयमूसियपहसिया, Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૯૧. જંબૂ, – સુદર્શનાની ચારે દિશામાં ચાર શાખા કહી છે. તે આ – પૂર્વમાં, દક્ષિણમાં, પશ્ચિમમાં, ઉત્તરમાં. તેમાં જે પૂર્વની શાખા છે, ત્યાં એક મોટું ભવન કહેલ છે. તે એક કોશ લાંબુ, અર્દ્ધકોશ પહોળું, દેશોન કોશ ઉર્ધ્વ ઉચ્ચત્વથી, અનેક સ્તંભ ઉપર રહેલું ઇત્યાદિ વર્ણન ભવનના દ્વાર સુધી પૂર્વવત્ કહેવું. દ્વાર – ૫૦૦ ધનુષ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 294 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] खोदोदण्णं समुद्दं नंदिस्सरवरे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति। पुव्वक्कमेणं जाव जीवोववातो।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नंदिस्सरवरे दीवे? नंदिस्सरवरे दीवे? गोयमा! नंदिस्सरवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ जाव विहरंति, नवरं–खोदोदग-पडिहत्थाओ पव्वतगादी पुव्वभणिता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा।
अदुत्तरं च णं गोयमा! नंदिस्सरवरे दीवे चउद्दिसिं चक्कवालविक्खंभेणं बहुमज्झदेसभागे चत्तारि अंजनगपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–पुरत्थिमेणं दाहिणेणं पच्चत्थिमेणं उत्तरेणं। ते णं अंजनग-पव्वता Translated Sutra: નંદીશ્વર નામક દ્વીપ વૃત્ત – વલયાકાર સંસ્થિત છે. આદિ પૂર્વવત્, તે ક્ષોદોદ સમુદ્રને ચોતરફથી ઘેરીને રહેલ છે. પરિધિ, પદ્મવરવેદિકા, વનખંડ, દ્વાર, દ્વારાંતર, પ્રદેશ, જીવ પૂર્વવત્. ભગવન્ ! નંદીશ્વરદ્વીપના નામનું કારણ શું છે ? ગૌતમ! સ્થાને સ્થાને ઘણી નાની – નની વાવડી યાવત્ બિલપંક્તિઓ છે, જેમાં ઇક્ષુરસ જેવું જળ ભરેલું | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Gujarati | 320 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासनंसि तुडिएण सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए? नो तिणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–नो पभू चंदे जोतिसिंदे जोतिसराया चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए चंदंसि सीहासनंसि तुडिएणं सद्धिं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरित्तए?
गोयमा! चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो चंदवडेंसए विमाणे सभाए सुधम्माए मानवगंसि चेतियखंभंसि वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहुयाओ जिनसकहाओ सन्निखित्ताओ चिट्ठंति, जाओ णं चंदस्स जोतिसिंदस्स जोतिसरन्नो अन्नेसिं च बहूणं जोतिसियाणं देवाण Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૧૮ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Hindi | 43 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सल्लमुद्धरिउ-कामेणं, सुपसत्थे सोहणे दिने।
तिहि-करण-मुहुत्त नक्खत्ते, जोगे लग्गे ससी-बले॥ Translated Sutra: शल्य यानि अतिचार आदि दोष उद्धरने की ईच्छावाली भव्यात्मा सुप्रशस्त – अच्छे योगवाले शुभ दिन, अच्छी तिथि – करण – मुहूर्त्त और अच्छे नक्षत्र और बलवान चन्द्र का योग हो तब उपवास या आयंबिल तप दश दिन तक करके आठसो पंचमंगल (महाश्रुतस्कंध) का जप करना चाहिए। उस पर अठ्ठम – तीन उपवास करके पारणे आयंबिल करना चाहिए। पारणे | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Hindi | 58 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खामेत्ता पाव-सल्लस्स, निम्मूलुद्धरणं पुणो।
करेज्जा विहि-पुव्वेणं, रंजेंतो ससुरासुरं जगं॥ Translated Sutra: पापशल्य को खमाकर फिर से विधिवत् देव – असूर सहित जगत को आनन्द देते हुए निर्मूलपन से शल्य का उद्धार करते हैं। उस मुताबिक शल्यरहित होकर सर्व भाव से फिर से विधि सहित चैत्य को वांदे और साधर्मिक को खमाए। खास करके जिसके साथ एक उपाश्रय वसति में वास किया है। जिसके साथ गाँव – गाँव विचरण किया हो, कठिन वचन से जिन्होंने | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Hindi | 67 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खमावेत्तु गुरुं सम्मं ताण-महिमं स-सत्तिओ।
काऊणं, वंदिऊणं च विहि-पुव्वेण पुणो वि य॥ Translated Sutra: सम्यक् तरह से गुरु भगवंत को खमाकर अपनी शक्ति अनुसार ज्ञान की महिमा करे। फिर से वंदन विधि सहित वंदन करे। परमार्थ, तत्त्वभूत और सार समान यह शल्योद्धारण किस तरह करना वो गुरु मुख से सूने। सूनकर उस मुताबिक आलोचना करे, कि जिसकी आलोचना करने से केवलज्ञान उत्पन्न हो। ऐसे सुन्दर भाव में रहे हो और निःशल्य आलोचना की | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Hindi | 84 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न सुद्धी वि न पच्छित्ता, ता वरं खिप्प केवली।
एगं काऊण पच्छित्तं बीयं न भवे जह चेव केवली॥ Translated Sutra: ‘‘शुद्धि और प्रायश्चित्त बिना जल्द केवली बने तो कितना अच्छा’’ ऐसी भावना करने से केवली बने। ‘‘अब ऐसा प्रायश्चित्त करूँ कि मुझे तप आचरण न करने पड़े’’ ऐसा विचरने से केवली बने। ‘‘प्राण के परित्याग से भी मैं जिनेश्वर परमात्मा की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूँगा उस तरह से केवली बने। यह मेरा शरीर भिन्न है और आत्मा भिन्न | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Hindi | 152 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कासिंचि गोयमा नामे साहिमो, तं निबोधय।
जाओ आलोयमाणाओ भाव-दोसेण॥ Translated Sutra: कुछ साध्वी के नाम कहता हूँ उसे समझ – मान कि जिन्होंने आलोचना की है। लेकिन (माया – कपट समान) भाव – दोष का सेवन करने से विशिष्ट तरह से पापकर्ममल से उसका संयम और शील के अंग खरड़ाये हुए हैं। उस निःशल्यपन की प्रशंसा की है जो पलभर भी परमभाव विशुद्धि रहित न हो। सूत्र – १५२, १५३ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ शल्यउद्धरण |
Hindi | 202 | Gatha | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवसमेण हणे कोहं मानं मद्दवया जिने।
मायं चज्जव-भावेणं लोहं संतुट्ठिए जिने॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २०१ | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 834 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भयवं अत्थि केई जेणमिणमो परम गुरूणं पी अलंघणिज्जं परमसरन्नं फुडं पयडं पयड पयडं परम कल्लाणं कसिण कम्मट्ठ दुक्ख निट्ठवणं पवयणं अइक्कमेज्ज वा, वइक्कमेज्ज वा लंघेज्ज वा, खंडेज्ज वा, विराहेज्ज वा, आसाएज्ज वा, से मनसा वा, वयसा वा, कायसा वा, जाव णं वयासी गोयमा णं अनंतेणं कालेणं परिवत्तमाणेणं सययं दस अच्छग्गे भविंसु। तत्थ णं असंखेज्जे अभव्वे असंखेज्जे मिच्छादिट्ठि असंखेज्जे सासायणे दव्व लिंगमासीय सढत्ताए डंभेणं सक्करिज्जंते एत्थए धम्मिग त्ति काऊणं बहवे अदिट्ठ कल्लाणे जइणं पवयणमब्भुवगमंति। तमब्भुवगामिय रसलोलत्ताए विसयलोलत्ताए दुद्दंत्तिंदिय दोसेणं अनुदियहं Translated Sutra: हे भगवंत ! ऐसा कोई (आत्मा) होगा कि जो इस परम गुरु का अलंघनीय परम शरण करने के लायक स्फुट – प्रकट, अति प्रकट, परम कल्याण रूप, समग्र आँठ कर्म और दुःख का अन्त करनेवाला जो प्रवचन – द्वादशांगी रूप श्रुतज्ञान उसे अतिक्रम या प्रकर्षपन से अतिक्रमण करे, लंघन करे, खंड़ित करे, विराधना करे, आशातना करे, मन से, वचन से या काया से अतिक्रमण | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 839 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं गोयमा तेसिं अनायार पवत्ताणं बहूणं आयरिय मयहरादीणं एगे मरगयच्छवी कुवलयप्पहा-भिहाणे नाम अनगारे महा तवस्सी अहेसि। तस्स णं महा महंते जीवाइ पयत्थेसु तत्त परिण्णाणे सुमहंतं चेव संसार सागरे तासुं तासुं जोणीसुं संसरण भयं सव्वहा सव्व पयारेहिं णं अच्चंतं आसायणा भीरुयत्तणं तक्कालं तारिसे वी असमंजसे अनायारे बहु साहम्मिय पवत्तिए तहा वी सो तित्थयरा-णमाणं णाइक्कमेइ। अहन्नया सो अनिगूहिय बल वीरिय पुरिसक्कार परक्कमे सुसीस गण परियरिओ सव्वण्णु-पणीयागम सुत्तत्थो भयाणुसारेणं ववगय राग दोस मोह मिच्छत्तममकाराहंकारो सव्वत्थापडिबद्धो किं बहुना सव्वगुणगणा हिट्ठिय सरीरो Translated Sutra: उसी तरह हे गौतम ! इस तरह अनाचारमे प्रवर्तनेवाले कईं आचार्य एवं गच्छनायक के भीतर एक मरकत रत्न समान कान्तिवाले कुवलयप्रभ नाम के महा तपस्वी अणगार थे। उन्हें काफी महान जीवादिक चीज विषयक सूत्र और अर्थ सम्बन्धी विस्तारवाला ज्ञान था। इस संसार समुद्र में उन योनि में भटकने के भयवाले थे। उस समय उस तरह का असंयम प्रवर्तने | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ नवनीतसार |
Hindi | 840 | Sutra | Chheda-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अहन्नया तेसिं दुरायाराणं सद्धम्म परंमुहाणं अगार धम्माणगार धम्मोभयभट्ठाणं लिंग मेत्त णाम पव्वइयाणं कालक्कमेणं संजाओ परोप्परं आगम वियारो। जहा णं सड्ढगाणमसई संजया चेव मढदेउले पडिजागरेंति खण्ड पडिए य समारावयंति। अन्नं च जाव करणिज्जं तं पइ समारंभे कज्ज-माणे जइस्सावि णं नत्थि दोस संभवं। एवं च केई भणंति संजम मोक्ख नेयारं, अन्ने भणंति जहा णं पासायवडिंसए पूया सक्कार बलि विहाणाईसु णं तित्थुच्छप्पणा चेव मोक्खगमणं।
एवं तेसिं अविइय परमत्थाणं पावकम्माणं जं जेण सिट्ठं सो तं चेवुद्दामुस्सिंखलेणं मुहेणं पलवति। ताहे समुट्ठियं वाद संघट्टं। नत्थि य कोई तत्थ आगम कुसलो Translated Sutra: अब किसी समय दुराचारी अच्छे धर्म से पराङ्मुख होनेवाले साधुधर्म और श्रावक धर्म दोनों से भ्रष्ट होनेवाला केवल भेष धारण करनेवाले हम प्रव्रज्या अंगीकार की है – ऐसा प्रलाप करनेवाले ऐसे उनको कुछ समय गुजरने के बाद भी वो आपस में आगम सम्बन्धी सोचने लगे कि – श्रावक की गैरमोजुदगी में संयत ऐसे साधु ही देवकुल मठ उपाश्रय | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 303 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एवमादी-दुक्खमभिभूए। लज्जणिज्जे खिंसणिज्जे निंदणिज्जे गरहणिज्जे।
उव्वेवणिज्जे अपरिभोगे निय-सुहि-सयण-बंधवाणं पि भवंती ते दुरप्पने॥ Translated Sutra: मानव जन्म मिलने के बावजूद वह कोढ़ – क्षय आदि व्याधिवाला बने, जिन्दा होने के बावजूद भी शरीर में कृमि हो। कईं मक्खियाँ शरीर पर बैठे, बणबणकर उड़े, हंमेशा शरीर के सभी अंग सड़ जाए, हड्डियाँ कमझोर बने आदि ऐसे दुःख से पराभव पानेवाला अति शर्मीला, बूरा, गर्हणीय कईं लोगों को उद्वेग करवानेवाला बने, नजदीकी रिश्तेदारों को और | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 433 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा जे समज्जेज्जा अनंत-संसारियत्तणं।
पच्छित्तेणं धुवं तं पि छिंदे, किं पुणो नरयाउयं॥ Translated Sutra: हे गौतम ! जिन्होंने अनन्त संसार उपार्जन किया है ऐसे आत्मा यकीनन प्रायश्चित्त से उसे नष्ट करते हैं, तो फिर वो नरक की आयु क्यों न तोडे ? इस भुवन में प्रायश्चित्त से छ भी असाध्य नहीं है। एक बोधिलाभ सिवा जीव को प्रायश्चित्त से कुछ भी असाध्य नहीं है। एक बार पाया हुआ बोधिलाभ हार जाए तो फिर से मिलना मुश्किल है सूत्र | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 438 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] गोयमा दुविहे पहे अक्खाए सुस्समणे य सुसावए।
महव्वय-धरे पढमे, बीएऽनुव्वय-धारए॥ Translated Sutra: हे गौतम ! मोक्ष मार्ग दो तरह का बताया है। एक उत्तम श्रमण का और दूसरा उत्तम श्रावक का। प्रथम महाव्रतधारी का और दूसरा अणुव्रतधारी का। साधुओं ने त्रिविध त्रिविध से सर्व पाप व्यापार का जीवन पर्यन्त त्याग किया है। मोक्ष के साधनभूत घोर महाव्रत का श्रमण ने स्वीकार किया है। गृहस्थ ने परिमित काल के लिए द्विविध, एकविध | |||||||||
Mahanishith | महानिशीय श्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कर्मविपाक प्रतिपादन |
उद्देशक-३ | Hindi | 441 | Gatha | Chheda-06 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव तिविहं तिविहेणं इच्छारंभं-परिग्गहं।
वोसिरंति अनगारे जिनलिंगं तु धरेंति ते॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४३८ |