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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३२ प्रमादस्थान |
Hindi | 1351 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तओ से जायंति पओयणाइं निमज्जिउं मोहमहण्णवंमि ।
सुहेसिणो दुक्खविणोयणट्ठा तप्पच्चयं उज्जमए य रागी ॥ Translated Sutra: विकारों के होने के बाद मोहरूपी महासागर में डुबाने के लिए विषयासेवन एवं हिंसादि अनेक प्रयोजन उपस्थित होते हैं। तब वह सुखाभिलाषी रागी व्यक्ति दुःख से मुक्त होने के लिए प्रयत्न करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३२ प्रमादस्थान |
Hindi | 1352 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विरज्जमाणस्स य इंदियत्था सद्दाइया तावइयप्पगारा ।
न तस्स सव्वे वि मणुन्नयं वा निव्वत्तयंती अमणुन्नयं वा ॥ Translated Sutra: इन्द्रियों के जितने भी शब्दादि विषय हैं, वे सभी विरक्त व्यक्ति के मन में मनोज्ञता अथवा अमनोज्ञता उत्पन्न नहीं करते हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३२ प्रमादस्थान |
Hindi | 1353 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं ससंकप्पविकप्पनासो संजायई समयमुवट्ठियस्स ।
अत्थे असंकप्पयतो तओ से पहीयए कामगुणेसु तण्हा ॥ Translated Sutra: ‘‘अपने ही संकल्प – विकल्प सब दोषों के कारण हैं, इन्द्रियों के विषय नहीं।’’ – ऐसा जो संकल्प करता है, उसके मन में समता जागृत होती है और उससे उसकी काम – गुणों की तुष्णा क्षीण होती है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३२ प्रमादस्थान |
Hindi | 1354 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] स वीयरागो कयसव्वकिच्चो खवेइ नाणावरणं खणेणं ।
तहेव जं दंसणमावरेइ जं चंतरायं पकरेइ कम्मं ॥ Translated Sutra: वह कृतकृत्य वीतराग आत्मा क्षणभर में ज्ञानावरण का क्षय करता है। दर्शन के आवरणों को हटाता है और अन्तराय कर्म को दूर करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३२ प्रमादस्थान |
Hindi | 1355 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वं तओ जाणइ पासए य अमोहणे होइ निरंतराए ।
अनासवे ज्झाणसमाहिजुत्ते आउक्खए मोक्खमुवेइ सुद्धे ॥ Translated Sutra: उसके बाद वह सब जानता है और देखता है, तथा मोह और अन्तराय से रहित होता है। निराश्रव और शुद्ध होता है। ध्यान – समाधि से सम्पन्न होता है। आयुष्य के क्षय होने पर मोक्ष को प्राप्त होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३२ प्रमादस्थान |
Hindi | 1356 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सो तस्स सव्वस्स दुहस्स मुक्को जं बाहई सययं जंतुमेयं ।
दीहामयविप्पमुक्को पसत्थो तो होइ अच्चंतसुही कयत्थो ॥ Translated Sutra: जो जीव को सदैव बाधा देते रहते हैं, उन समस्त दुःखों से तथा दीर्घकालीन कर्मों से मुक्त होता है। तब वह प्रशस्त, अत्यन्त सुखी तथा कृतार्थ होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३२ प्रमादस्थान |
Hindi | 1357 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनाइकालप्पभवस्स एसो सव्वस्स दुक्खस्स पमोक्खमग्गो ।
वियाहिओ जं समुविच्च सत्ता कमेण अच्चंतसुही भवंति ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: अनादि काल से उत्पन्न होते आए सर्व दुःखों से मुक्ति का यह मार्ग बताया है। उसे सम्यक् प्रकार से स्वीकार कर जीव क्रमशः अत्यन्त सुखी होते हैं। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३३ कर्मप्रकृति |
Hindi | 1358 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अट्ठ कम्माइं वोच्छामि आनुपुव्विं जहक्कमं ।
जेहिं बद्धो अयं जीवो संसारे परिवत्तए ॥ Translated Sutra: मैं अनुपूर्वी के क्रमानुसार आठ कर्मों का वर्णन करूँगा, जिनसे बँधा हुआ यह जीव संसार में परिवर्तन करता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1468 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रूविणो चेवरूवी य अजीवा दुविहा भवे ।
अरूवी दसहा वुत्ता रूविणो वि चउव्विहा ॥ Translated Sutra: अजीव के दो प्रकार हैं – रूपी और अरूपी। अरूपी दस प्रकार का है, और रूपी चार प्रकार का। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1469 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धम्मत्थिकाए तद्देसे तप्पएसे य आहिए ।
अहम्मे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए ॥ Translated Sutra: धर्मास्तिकाय और उसका देश तथा प्रदेश। अधर्मास्तिकाय और उसका देश तथा प्रदेश। आकाशा – स्तिकाय और उसका देश तथा प्रदेश। और एक अद्धा समय ये दस भेद अरूपी अजीव के हैं। सूत्र – १४६९, १४७० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1470 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आगासे तस्स देसे य तप्पएसे य आहिए ।
अद्धासमए चेव अरूवी दसहा भवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४६९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1471 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धम्माधम्मे य दोवेए लोगमित्ता वियाहिया ।
लोगालोगे य आगासे समए समयखेत्तिए ॥ Translated Sutra: धर्म और अधर्म लोक – प्रमाण हैं। आकाश लोक और अलोक में व्याप्त है। काल केवल समय – क्षेत्र में नहीं है। धर्म, अधर्म, आकाश – ये तीनों द्रव्य अनादि, अपर्यवसित और सर्वकाल हैं। सूत्र – १४७१, १४७२ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1472 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धम्माधम्मागासा तिन्नि वि एए अणाइया ।
अपज्जवसिया चेव सव्वद्धं तु वियाहिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४७१ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1473 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] समए वि संतइ पप्प एवमेव वियाहिए ।
आएसं पप्प साईए सपज्जवसिए वि य ॥ Translated Sutra: प्रवाह की अपेक्षा से समय भी अनादि अनन्त है। प्रतिनियत व्यक्ति रूप एक – एक क्षण की अपेक्षा से सादि सान्त है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1474 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खंधा य खंधदेसा य तप्पएसा तहेव य ।
परमाणुणो य बोद्धव्वा रूविणो य चउव्विहा ॥ Translated Sutra: रूपी द्रव्य के चार भेद हैं – स्कन्ध, स्कन्ध – देश, स्कन्ध – प्रदेश और परमाणु। परमाणुओं के एकत्व होने से स्कन्ध होते हैं। स्कन्ध के पृथक् होने से परमाणु होते हैं। यह द्रव्य की अपेक्षा से है। क्षेत्र की अपेक्षा से वे स्कन्ध आदि लोक के एक देश से लेकर सम्पूर्ण लोक तक में भाज्य हैं – यहाँ से आगे स्कन्ध और परमाणु के | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1475 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगत्तेण पुहत्तेण खंधा य परमाणुणो ।
लोएगदेसे लोए य भइयव्वा ते उ खेत्तओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४७४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति |
Hindi | 1476 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्प तेणाई अपज्जवसिया वि य ।
ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १४७४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 996 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं गुणसमाउत्ता जे भवंति दिउत्तमा ।
ते समत्था उ उद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य ॥ Translated Sutra: इस प्रकार जो गुण – सम्पन्न द्विजोत्तम होते हैं, वे ही अपना और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 997 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं तु संसए छिन्ने विजयघोसे य माहणे ।
समुदाय तयं तं तु जयघोसं महामुनिं ॥ Translated Sutra: इस प्रकार संशय मिट जाने पर विजयघोष ब्राह्मण ने महामुनि जयघोष की वाणी को सम्यक्रूप से स्वीकार किया। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 998 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तुट्ठे य विजयघोसे इणमुदाहु कयंजली ।
माहणत्तं जहाभूयं सुट्ठु मे उवदंसियं ॥ Translated Sutra: संतुष्ट हुए विजयघोष ने हाथ जोड़कर कहा – तुमने मुझे यथार्थ ब्राह्मणत्व का बहुत ही अच्छा उपदेश दिया है। तुम यज्ञों के यष्टा हो, वेदों को जाननेवाले विद्वान् हो, ज्योतिष के अंगों के ज्ञाता हो, धर्मों के पारगामी हो। अपना और दूसरों का उद्धार करने में समर्थ हो। अतः भिक्षुश्रेष्ठ ! भिक्षा स्वीकार कर हम पर अनुग्रह | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 999 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तुब्भे जइया जण्णाणं तुब्भे वेयविऊ विऊ ।
जोइसंगविऊ तुब्भे तुब्भे धम्माण पारगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९९८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 1000 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तुब्भे समत्था उद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य ।
तमनुग्गहं करेहम्हं भिक्खेणं भिक्खउत्तमा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९९८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 1001 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न कज्जं मज्झ भिक्खेण खिप्पं निक्खमसू दिया! ।
मा भमिहिसि भयावट्टे घोरे संसारसागरे ॥ Translated Sutra: मुझे भिक्षा से कोई प्रयोजन नहीं है। हे द्विज ! शीघ्र ही अभिनिष्क्रमण कर। ताकि भय के आवर्तों वाले संसार सागर में तुझे भ्रमण न करना पड़े। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 1002 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवलेवो होइ भोगेसु अभोगी नोवलिप्पई ।
भोगी भमइ संसारे अभोगी विप्पमुच्चई ॥ Translated Sutra: भोगों में कर्म का उपलेप होता है। अभोगी कर्मों से लिप्त नहीं होता है। भोगी संसार में भ्रमण करता है। अभोगी उससे विप्रमुक्त हो जाता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 1003 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उल्लो सुक्को य दो छूढा गोलया मट्टियामया ।
दो वि आवडिया कुड्डे जो उल्लो सोतत्थ लग्गई ॥ Translated Sutra: एक गीला और एक सूखा, ऐसे दो मिट्टी के गोले फेंके गये। वे दोनों दिवार पर गिरे। जो गीला था, वह वहीं चिपक गया। इसी प्रकार जो मनुष्य दुर्बुद्धि और काम – भोगों में आसक्त है, वे विषयों में चिपक जाते हैं। विरक्त साधु सूखे गोले की भाँति नहीं चिपकते हैं।’’ सूत्र – १००३, १००४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 1004 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं लग्गंति दुम्मेहा जे नरा कामलालसा ।
विरत्ता उ न लग्गंति जहा सुक्को उ गोलओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १००३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 1005 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं से विजयघोसे जयघोसस्स अंतिए ।
अनगारस्स निक्खंतो धम्मं सोच्चा अनुत्तरं ॥ Translated Sutra: इस प्रकार विजयघोष, जयघोष अनगार के समीप, अनुत्तर धर्म को सुनकर दीक्षित हो गया। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२५ यज्ञीय |
Hindi | 1006 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खवित्ता पुव्वकम्माइं संजमेण तवेण य ।
जयघोसविजयघोसा सिद्धिं पत्ता अनुत्तरं ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: जयघोष और विजयघोषने संयम और तप के द्वारा पूर्वसंचित कर्मों को क्षीण कर अनुत्तर सिद्धि प्राप्त की। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1007 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सामायारिं पवक्खामि सव्वदुक्खविमोक्खणिं ।
जं चरित्ताण निग्गंथा तिन्ना संसारसागरं ॥ Translated Sutra: सामाचारी सब दुःखों से मुक्त कराने वाली है, जिसका आचरण करके निर्ग्रन्थ संसार सागर को तैर गए हैं। उस सामाचारी का मैं प्रतिपादन करता हूँ – | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1008 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पढमा आवस्सिया नाम बिइया य निसीहिया ।
आपुच्छणा य तइया चउत्थी पडिपुच्छणा ॥ Translated Sutra: पहली आवश्यकी, दूसरी नैषेधिकी, तीसरी आपृच्छना, चौथी प्रतिपृच्छना, पाँचवी छन्दना, छट्ठी इच्छाकार, सातवीं मिथ्याकार, आठवीं तथाकार नौवीं अभ्युत्थान और दसवीं उपसंपदा है। इस प्रकार ये दस अंगो वाली साधुओं की सामाचारी प्रतिपादन की गई है। सूत्र – १००८–१०१० | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1009 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंचमा छंदणा नाम इच्छाकारो य छट्ठओ ।
सत्तमो मिच्छकारो य तहक्कारो य अट्ठमो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १००८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1010 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अब्भुट्ठाणं नवमं, दसमा उवसंपदा ।
एसा दसंगा साहूणं सामायारी पवेइया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १००८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1011 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गमने आवस्सियं कुज्जा ठाणे कुज्जा निसीहियं ।
आपुच्छणा सयंकरणे परकरणे पडिपुच्छणा ॥ Translated Sutra: (१) बाहर निकलते समय ‘‘आवस्सई’’ कहना, ‘आवश्यकी’ सामाचारी है। (२) प्रवेश करते समय ‘’निस्सिहियं’’ कहना ‘नैषेधिकी’ सामाचारी है। (३) अपने कार्य के लिए गुरु से अनुमति लेना, ‘आपृच्छना’ सामाचारी है। (४) दूसरों के कार्य के लिए गुरु से अनुमति लेना ‘प्रतिपृच्छना’ सामाचारी है। (५) पूर्वगृहीत द्रव्यों के लिए आमन्त्रित | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1012 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छंदणा दव्वजाएणं इच्छाकारो य सारणे ।
मिच्छाकारो य निंदाए तहक्कारो य पडिस्सुए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०११ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1013 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अब्भुट्ठाणं गुरुपूया अच्छणे उवसंपदा ।
एवं दुपंचसंजुत्ता सामायारी पवेइया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०११ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1014 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विल्लंमि चउब्भाए आइच्चंमि समुट्ठिए ।
भंडयं पडिलेहित्ता वंदित्ता य तओ गुरु ॥ Translated Sutra: सूर्योदय होने पर दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में उपकरणों का प्रतिलेखन कर गुरु को वन्दना कर हाथ जोड़कर पूछें कि – अब मुझे क्या करना चाहिए ? भन्ते ! मैं चाहता हूँ, मुझे आप आज स्वाध्याय में नियुक्त करते हैं, अथवा वैयावृत्य मैं। वैयावृत्य में नियुक्त किए जाने पर ग्लानि से रहित होकर सेवा करे। अथवा सभी दुःखों | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1015 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुच्छेज्जा पंजलिउडो किं कायव्वं मए इहं? ।
इच्छं निओइउं भंते! वेयावच्चे य सज्झाए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०१४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1016 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वेयावच्चे निउत्तेणं कायव्वं अगिलायओ ।
सज्झाए वा निउत्तेणं सव्वदुक्खविमोक्खणे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०१४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1017 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दिवसस्स चउरो भागे कुज्जा भिक्खू वियक्खणो ।
तओ उत्तरगुणे कुज्जा दिनभागेसु चउसु वि ॥ Translated Sutra: विचक्षण भिक्षु दिन के चार भाग करे। उन चारों भागों में स्वाध्याय आदि गुणों की आराधना करे। प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में भिक्षाचरी और चौथे में पुनः स्वाध्याय करे। सूत्र – १०१७, १०१८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1018 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं ज्झाणं ज्झियायई ।
तइयाए भिक्खायरियं पुणो चउत्थीए सज्झायं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०१७ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1019 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आसाढे मासे दुपया पोसे मासे चउप्पया ।
चित्तासोएसु मासेसु तिपया हवइ पोरिसी ॥ Translated Sutra: आषाढ़ महीने में द्विपदा पौरुषी होती है। पौष महीने में चतुष्पदा और चैत्र एवं आश्वीन महीने में त्रिपदा पौरुषी होती है। सात रात में एक अंगुल, पक्ष में दो अंगुल और एक मास में चार अंगुल की वृद्धि और हानि होती है। आषाढ़, भाद्रपद, कार्तिक, पौष, फाल्गुन और वैशाख के कृष्ण पक्ष में एक – एक अहोरात्रि का क्षय होता है। सूत्र | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1020 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अंगुलं सत्तरत्तेणं पक्खेण य दुअंगुलं ।
वड्ढए हायए वावि मासेणं चउरंगुलं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०१९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1021 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आसाढबहुलपक्खे भद्दवए कत्तिए य पोसे य ।
फग्गुणवइसाहेसु य नायव्वा ओमरत्ताओ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०१९ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1022 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जेट्ठामूले आसाढसावणे छहिं अंगुलेहिं पडिलेहा ।
अट्ठहिं बीयतियंमी तइए दस अट्ठहिं चउत्थे ॥ Translated Sutra: जेष्ठ, आषाढ़ और श्रावण में छह अंगुल, भाद्रपद, आश्वीन और कार्तिक में आठ अंगुल तथा मृगशिर, पौष और माघ – में दस अंगुल और फाल्गुन, चैत्र, वैसाख में आठ अंगुल की वृद्धि करने से प्रतिलेखन का पौरुषी समय होता है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1023 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] रत्तिं पि चउरो भागे भिक्खू कुज्जा वियक्खणो ।
तओ उत्तरगुणे कुज्जा राइभाएसु चउसु वि ॥ Translated Sutra: विचक्षण भिक्षु रात्रि के भी चार भाग करे। उन चारों भागों में उत्तर – गुणों की आराधना करे। प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरे में ध्यान, तीसरे में नींद और चौथे में पुनः स्वाध्याय करे। सूत्र – १०२३, १०२४ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1024 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पढमं पोरिसिं सज्झायं बीयं ज्झाणं ज्झियायई ।
तइयाए निद्दमोक्खं तु चउत्थी भुज्जो वि सज्झायं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०२३ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1025 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं नेइ जया रत्तिं नक्खत्तं तंमि नहचउब्भाए ।
संपत्ते विरमेज्जा सज्झायं पओसकालम्मि ॥ Translated Sutra: जो नक्षत्र जिस रात्रि की पूर्ति करता हो, वह जब आकाश के प्रथम चतुर्थ भाग में आ जाता है, तब वह ‘प्रदोषकाल’ होता है, उस काल में स्वाध्याय से निवृत्त हो जाना चाहिए। वही नक्षत्र जब आकाश के अन्तिम चतुर्थ भाग में आता है, तब उसे ‘वैरात्रिक काल’ समझकर मुनि स्वाध्याय में प्रवृत्त हो। सूत्र – १०२५, १०२६ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1026 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्मेव य नक्खत्ते गयणचउब्भागसावसेसंमि ।
वेरत्तियं पि कालं पडिलेहित्ता मुनी कुज्जा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०२५ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1027 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्वल्लंमि चउब्भाए पडिलेहित्ताणं भंडय ।
गुरुं वंदित्तु सज्झायं कुज्जा दुक्खविमोक्खणं ॥ Translated Sutra: दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम चतुर्थ भाग में पात्रादि उपकरणों का प्रतिलेखन कर, गुरु को वन्दना कर, दुःख से मुक्त करने वाला स्वाध्याय करे। पौन पौरुषी बीत जाने पर गुरु को वन्दना कर, काल का प्रतिक्रमण किए बिना ही भाजन का प्रतिलेखन करे। सूत्र – १०२७, १०२८ | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1028 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पोरिसीए चउब्भाए वंदित्ताण तओ गुरुं ।
अपडिक्कमित्ता कालस्स भायणं पडिलेहए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र १०२७ |