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Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 958 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संरंभसमारंभे आरंभे य तहेव य । वयं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९५७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 959 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ठाणे निसीयणे चेव तहेव य तुयट्टणे । उल्लंघणपल्लंघणे इंदियाण य जुंजणे ॥

Translated Sutra: खड़े होने में, बैठने में, त्वग्‌वर्तन में, उल्लंघन में, प्रलंघन में, शब्दादि विषयों में, इन्द्रियों के प्रयोग में – संरम्भ में, समारम्भ में और आरम्भ में प्रवृत्त काया का निवर्तन करे। सूत्र – ९५९, ९६०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 960 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संरंभसमारंभे आरंभम्मि तहेव य । कायं पवत्तमाणं तु नियत्तेज्ज जयं जई ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९५९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 961 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयाओ पंच समिईओ चरणस्स य पवत्तणे । गुत्ती नियत्तणे वुत्ता असुभत्थेसु सव्वसो ॥

Translated Sutra: ये पाँच समितियाँ चारित्र की प्रवृत्ति के लिए हैं। और तीन गुप्तियाँ सभी अशुभ विषयों से निवृत्ति के लिए हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२४ प्रवचनमाता

Hindi 962 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एया पवयणमाया जे सम्मं आयरे मुनी । से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चइ पंडिए ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: जो पण्डित मुनि इन प्रवचनमाताओं का सम्यक्‌ आचरण करता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से मुक्त हो जाता है। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 963 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] माहणकुलसंभूओ आसि विप्पो महायसो । जायाई जमजण्णंमि जयघोसे त्ति नामओ ॥

Translated Sutra: ब्राह्मण कुल में उत्पन्न, महान्‌ यशस्वी जयघोष ब्राह्मण था, जो हिंसक यमरूप यज्ञ में अनुरक्त यायाजी था। वह इन्द्रिय – समूह का निग्रह करने वाला, मार्गगामी महामुनि हो गए थे। एक दिन ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वाराणसी पहुँच गए। वाराणसी के बाहर मनोरम उद्यान में प्रासुक शय्या और संस्तारक लेकर ठहर गए। सूत्र –
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 964 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इंदियग्गामनिग्गाही मग्गगामी महामुनी । गामानुगामं रीयंते पत्ते वाणारसि पुरिं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९६३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 965 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वाणारसीए बहिया उज्जानंमि मनोरमे । फासुए सेज्जसंथारे तत्थ वासमुवागए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९६३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 966 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह तेनेव कालेणं पुरीए तत्थ माहणे । विजयघोसे त्ति नामेण जण्णं जयइ वेयवी ॥

Translated Sutra: उसी समय पुरी में वेदों का ज्ञाता, विजयघोष नाम का ब्राह्मण यज्ञ कर रहा था। एक मास की तपश्चर्या के पारणा के समय भिक्षा के लिए वह जयघोष मुनि विजयघोष के यज्ञ में उपस्थित हुआ। सूत्र – ९६६, ९६७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 967 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह से तत्थ अनगारे मासक्खमणपारणे । विजयघोसस्स जण्णंमि भिक्खमट्ठा उवट्ठिए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९६६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 977 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जे समत्था समुद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य । एयं मे संसयं सव्वं साहू कहय पुच्छिओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९७५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 978 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अग्गिहोत्तमुहा वेया जण्णट्ठी वेयसा मुहं । नक्खत्ताण मुहं चंदो धम्माणं कासवो मुहं ॥

Translated Sutra: जयघोष मुनि – वेदों का मुख अग्नि – होत्र है, यज्ञों का मुख यज्ञार्थी है, नक्षत्रों का मुख चन्द्र है और धर्मों का मुख काश्यप (ऋषभदेव) है।जैसे उत्तम एवं मनोहारी ग्रह आदि हाथ जोड़कर चन्द्र की वन्दना तथा नमस्कार करते हुए स्थित है, वैसे ही भगवान्‌ ऋषभदेव हैं। सूत्र – ९७८, ९७९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 979 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा चंद गहाईया चिट्ठंती पंजलीउडा । वंदमाणा नमंसंता उत्तमं मनहारिणो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९७८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 980 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अजाणगा जण्णवाई विज्जामाहणसंपया । गूढा सज्झायतवसा भासच्छन्ना इवग्गिणो ॥

Translated Sutra: विद्या ब्राह्मण की सम्पदा है, यज्ञवादी इस से अनभिज्ञ हैं, वे बाहरमें स्वाध्याय और तप से वैसे ही आच्छादित हैं, जैसे कि अग्नि राख से ढँकी हुई होती है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 981 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो लोए बंभणो वुत्तो अग्गी वा महिओ जहा । सया कुसलसंदिट्ठं तं वयं बूम माहणं ॥

Translated Sutra: जिसे लोकमें कुशलपुरुषोने ब्राह्मण कहा है, जो अग्नि के समान सदा पूजनीय है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 982 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो न सज्जइ आगंतुं पव्वयतो न सोयई । रमए अज्जवयणंमि तं वयं बूम माहणं ॥

Translated Sutra: जो प्रिय स्वजनादि के आने पर आसक्त नहीं होता और जाने पर शोक नहीं करता है। जो आर्य – वचन में रमण करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 983 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जायरूवं जहामट्ठं निद्धंतमलपावगं । रागद्दोसभयाईयं तं वयं बूम माहणं ॥

Translated Sutra: कसौटी पर कसे हुए और अग्नि के द्वारा दग्धमल हुए जातरूप – सोने की तरह जो विशुद्ध है, जो राग से, द्वेष से और भय से मुक्त है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 984 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तवस्सियं किसं दंतं अवचियमंससोणियं । सुव्वयं पत्तनिव्वाणं तं वय बूम माहणं ॥

Translated Sutra: जो तपस्वी है, कृश है, दान्त है, जिसका मांस और रक्त अपचित हो गया है। जो सुव्रत है, शांत है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 985 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तसपाणे वियाणेत्ता संगहेण य थावरे । जो न हिंसइ तिविहेणं तं वयं बूम माहणं ॥

Translated Sutra: जो त्रस और स्थावर जीवों को सम्यक्‌ प्रकार से जानकर उनकी मन, वचन और काया से हिंसा नहीं करता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 986 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कोहा वा जइ वा हासा लोहा वा जइ वा भया । मुसं न वयई जो उ तं वयं बूम माहणं ॥

Translated Sutra: जो क्रोध, हास्य, लोभ अथवा भय से झूठ नहीं बोलता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 987 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चित्तमंतमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं । न गेण्हइ अदत्तं जो तं वयं बूम माहणं ॥

Translated Sutra: जो सचित्त या अचित्त, थोड़ा या अधिक अदत्त नहीं लेता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 988 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दिव्वमानुसतेरिच्छं जो न सेवइ मेहुणं । मनसा कायवक्केणं तं वयं बूम माहणं ॥

Translated Sutra: जो देव, मनुष्य और तिर्यञ्च – सम्बन्धी मैथुन का मन, वचन और शरीर से सेवन नहीं करता है, जिस प्रकार जल में उत्पन्न हुआ कमल जल से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार जो कामभोगों से अलिप्त रहता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं। सूत्र – ९८८, ९८९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 989 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पइ वारिणा । एवं अलित्तो कामेहिं तं वयं बूम माहणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९८८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 990 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अलोलुयं मुहाजीवी अनगारं अकिंचनं । असंसत्तं गिहत्थेसु तं वयं बूम माहणं ॥

Translated Sutra: जो रसादि में लोलुप नहीं है, निर्दोष भिक्षा से जीवन का निर्वाह करता है, गृह – त्यागी है, अकिंचन है, गृहस्थों में अनासक्त है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 991 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पसुबंधा सव्ववेया जट्ठं च पावकम्मुणा । न तं तायंति दुस्सीलं कम्माणि बलवंति ह ॥

Translated Sutra: उस दुःशील को पशुबंध के हेतु सर्व वेद और पाप – कर्मों से किए गए यज्ञ बचा नहीं सकते, क्योंकि कर्म बलवान्‌ है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 992 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] न वि मुंडिएण समणो न ओंकारेण बंभणो । न मुनी रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो ॥

Translated Sutra: केवल सिर मुँडाने से कोई श्रमण नहीं होता है, ओम्‌ का जप करने से ब्राह्मण नहीं होता है, अरण्य में रहने से मुनि नहीं होता है, कुश का बना जीवर पहनने मात्र से कोई तपस्वी नहीं होता है। समभाव से श्रमण होता है। ब्रह्मचर्य से ब्राह्मण होता है। ज्ञान से मुनि होता है। तप से तपस्वी होता है। कर्म से ब्राह्मण होता है। कर्म
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 993 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समयाए समणो होइ बंभचेरेण बंभणो । नाणेण य मुनी होइ तवेणं होइ तावसो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९९२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 994 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कम्मुणा बंभणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ । वइस्सो कम्मुणा होइ सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ९९२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२५ यज्ञीय

Hindi 995 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एए पाउकरे बुद्धे जेहिं होइ सिणायओ । सव्वकम्मविनिम्मुक्कं तं वयं बूम माहणं ॥

Translated Sutra: अर्हत्‌ ने इन तत्त्वों का प्ररूपण किया है। इनके द्वारा जो साधक स्नातक होता है, सब कर्मों से मुक्त होता है, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1086 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा । वीरियं उवओगो य एयं जीवस्स लक्खणं ॥

Translated Sutra: ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग – ये जीव के लक्षण हैं। शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप, वर्ण, रस, गन्ध और स्पर्श – ये पुद्‌गल के लक्षण हैं। एकत्व, पृथक्त्व, संख्या, संस्थान, संयोग और विभाग – ये पर्यायों के लक्षण हैं। सूत्र – १०८६–१०८८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1087 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सद्दंधयारउज्जोओ पहा छायातवे इ वा । वण्णरसगंधफासा पुग्गलाणं तु लक्खणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०८६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1088 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगत्तं च पुहत्तं च संखा संठाणमेव य । संजोगा य विभागा य पज्जवाणं तु लक्खणं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०८६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1089 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जीवाजीवा य बंधो य पुण्णं पावासवो तहा । संवरो निज्जरा मोक्खो संतेए तहिया नव ॥

Translated Sutra: जीव, अजीव, बन्ध, पुण्य, पाप आश्रव, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये नौ तत्त्व हैं। इन तथ्यस्वरूप भावों के सद्‌भाव के निरूपण में जो भावपूर्वक श्रद्धा है, उसे सम्यक्त्व कहते हैं। सूत्र – १०८९, १०९०
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1090 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तहियाणं तु भावाणं सब्भावे उवएसणं । भावेणं सद्दहंतस्स सम्मत्तं तं वियाहियं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०८९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1091 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निसग्गुवएसरुई आणारुइ सुत्तबीयरुइमेव । अभिगमवित्थाररुई किरियासंखेवधम्मरुई ॥

Translated Sutra: सम्यक्त्व के दस प्रकार हैं – निसर्ग – रुचि, उपदेश – रुचि, आज्ञा – रुचि, सूत्र – रुचि, बीज – रुचि, अभिगम – रुचि, विस्तार – रुचि, क्रिया – रुचि, संक्षेप – रुचि और धर्म – रुचि।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1092 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भूयत्थेणाहिगया जीवाजीवा य पुण्णपावं च । सहसम्मुइयासवसंवरो य रोएइ उ निसग्गो ॥

Translated Sutra: परोपदेश के बिना स्वयं के ही यथार्थ बोध से अवगत जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव और संवर आदि तत्त्वों की जो रुचि है, वह ‘निसर्ग रुचि’ है। जिन दृष्ट भावों में, तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से विशिष्ट पदार्थों के विषय में – ‘यह ऐसा ही है, अन्यथा नहीं है’ – ऐसी जो स्वतः स्फूर्त श्रद्धा है, वह ‘निसर्गरुचि’ है। सूत्र – १०९२,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1093 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जो जिनदिट्ठे भावे चउव्विहे सद्दहाइ सयमेव । एमेव नन्नह त्ति य निसग्गरुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १०९२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति

Hindi 1094 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एए चेव उ भावे उवइट्ठे जो परेण सद्दहई । छउमत्थेण जिनेण व उवएसरुइ त्ति नायव्वो ॥

Translated Sutra: जो अन्य छद्मस्थ अथवा अर्हत्‌ के उपदेश से जीवादि भावों में श्रद्धान्‌ करता है, वह ‘उपदेशरुचि’ जानना
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1165 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जोगसच्चेणं भंते! जीवे किं जणयइ? जोगसच्चेणं जोगं विसोहेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! योग – सत्य से जीव को क्या प्राप्त होता है ? योग सत्य से जीव योग को विशुद्ध करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1166 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मनगुत्तयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? मनगुत्तयाए णं जीवे एगग्गं जणयइ। एगग्गचित्ते णं जीवे मनगुत्ते संजमाराहए भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! मनोगुप्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मनोगुप्ति से जीव एकाग्रता को प्राप्त होता है। एकाग्र चित्त वाला जीव अशुभ विकल्पों से मन की रक्षा करता है, और संयम का आराधक होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1167 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वइगुत्तयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? वइगुत्तयाए णं निव्वियारं जणयइ। निव्वियारेणं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगज्झाणगुत्ते यावि विहरइ।

Translated Sutra: भन्ते ! वचनगुप्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वचनगुप्ति से जीव निर्विकार भाव को प्राप्त होता है। निर्विकार जीव सर्वथा वागगुप्त तथा अध्यात्मयोग के साधनभूत ध्यान से युक्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1168 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कायगुत्तयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? कायगुत्तयाए णं संवरं जणयइ। संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोहं करेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! कायगुप्ति से जीव को क्या प्राप्त होता है ? कायगुप्ति से जीव संवर को प्राप्त होता है। संवर से काय गुप्त होकर फिर से होनेवाले पापाश्रव का निरोध करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1169 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] मनसमाहारणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? मनसमाहारणयाए णं एगग्गं जणयइ, जणइत्ता नाणपज्जवे जणयइ, जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ मिच्छत्तं च निज्जरेइ।

Translated Sutra:
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1170 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वइसमाहारणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? वइसमाहारणयाए णं वइसाहारणददंसणपज्जवे विसोहेइ, विसोहेत्ता सुलहबोहियत्तं निव्वत्तेइ दुल्लहबोहियत्तं निज्जरेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! वाक्‌ समाधारणा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वाक्‌ समाधारणा से जीव वाणी के विषयभूत दर्शन के पर्यवों को विशुद्ध करता है। वाणी के विषयभूत दर्शन के पर्यवों को विशुद्ध करके सुलभता से बोधि को प्राप्त करता है। बोधि की दुर्लभता को क्षीण करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1171 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कायसमाहारणयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? कायसमाहारणयाए णं चरित्तपज्जवे विसोहेइ, विसोहेत्ता अहक्खायचरित्तं विसोहेइ, विसोहेत्ता चत्तारि केवलिकम्मंसे खवेइ। तओ पच्छा सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिनिव्वाएइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ।

Translated Sutra: भन्ते ! काय समाधारणा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? काय समाधारणा से जीव चारित्र के पर्यवों को विशुद्ध करता है। चारित्र के पर्यवों को विशुद्ध करके यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करता है। यथाख्यात चारित्र को विशुद्ध करके केवलिसत्क वेदनीय आदि चार कर्मों का क्षय करता है। उसके बाद सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1172 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नाणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? नाणसंपन्नयाए णं जीवे सव्वभावाहिगमं जणयइ। नाणसंपन्ने णं जीवे चाउरंते संसारकंतारे न विणस्सइ। नाणविनयतवचरित्तजोगे संपाउणइ, ससमयपरसमयसंघायणिज्जे भवइ।

Translated Sutra: भन्ते ! ज्ञान – सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? ज्ञानसम्पन्नता से जीव सब भावों को जानता है। ज्ञान – सम्पन्न जीव चार गतिरूप अन्तों वाले संसार वन में नष्ट नहीं होता है। जिस प्रकार ससूत्र सुई कहीं गिर जाने पर भी विनष्ट नहीं होती, उसी प्रकार ससूत्र जीव भी संसार में विनष्ट नहीं होता। ज्ञान, विनय, तप और चारित्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1173 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहा सूई ससुत्ता पडिया वि न विनस्सइ । तहा जीवे ससुत्ते संसारे न विनस्सइ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ११७२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२९ सम्यकत्व पराक्रम

Hindi 1174 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] दंसणसंपन्नयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ? दंसणसंपन्नयाए णं भवमिच्छत्तछेयणं करेइ, परं न विज्झायइ। परं अविज्झाएमाणे अनुत्तरेणं नाणदंसणेणं अप्पाणं संजोएमाणे सम्मं भावेमाणे विरहइ।

Translated Sutra: भन्ते ! दर्शन – सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? दर्शन सम्पन्नता से संसार के हेतु मिथ्यात्व का छेदन करता है, उसके बाद सम्यक्त्व का प्रकाश बुझता नहीं है। श्रेष्ठ ज्ञान – दर्शन से आत्मा को संयोजित कर उन्हें सम्यक्‌ प्रकार से आत्मसात्‌ करता हुआ विचरण करता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1349 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आवज्जई एवमनेगरूवे एवंविहे कामगुणेसु सत्तो । अन्ने य एयप्पभवे विसेसे कारुण्णदीणे हिरिमे वइस्से ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १३४८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३२ प्रमादस्थान

Hindi 1350 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कप्पं न इच्छिज्ज सहायलिच्छू पच्छानुतावेय तवप्पभावं । एवं वियारे अमियप्पयारे आवज्जई इंदियचोरवस्से ॥

Translated Sutra: शरीर की सेवारूप सहायता आदि की लिप्सा से कल्पयोग्य शिष्य की भी इच्छा न करे। दीक्षित होने के बाद अनुतप्त होकर तप के प्रभाव की इच्छा न करे। इन्द्रियरूपी चोरों के वशीभूत जीव अनेक प्रकार के अपरिमित विकारों को प्राप्त करता है।
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