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Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Gujarati 54 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कइसमए णं भंते! आवज्जीकरणे पन्नत्ते? गोयमा! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पन्नत्ते। केवलिसमुग्घाए णं भंते! कइसमइए पन्नत्ते? गोयमा! अट्ठसमइए पन्नत्ते, तं जहा–पढमे समए दंडं करेइ, बीए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथं करेइ, चउत्थे समए लोयं पूरेइ, पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ, छट्ठे समए मंथं पडिसा-हरइ, सत्तमे समए कबाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ, पडिसाहरित्ता सरीरत्थे भवइ। से णं भंते! तहा समुग्घायगए किं मनजोगं जुंजइ? वयजोगं जुंजइ? कायजोगं जुंजइ? गोयमा! नो मणजोगं जुंजइ, नो वयजोगं जुंजइ, कायजोगं जुंजइ। कायजोगं जुंजमाणे किं ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ? ओरालियमीसासरीरकायजोगं

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૨
Auppatik ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર Ardha-Magadhi

उपपात वर्णन

Gujarati 55 Sutra Upang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे। से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं

Translated Sutra: ભગવન્‌ ! તે તેવા સયોગી સિદ્ધ થાય યાવત્‌ અંત કરે ? એ અર્થ સંગત નથી. તે પૂર્વે પર્યાપ્ત પંચેન્દ્રિય સંજ્ઞીના જઘન્ય મનોયોગના નીચલા સ્તરે અસંખ્યાતગુણ પરિહીન પહેલા મનોયોગનું રુંધન કરે છે. ત્યારપછી પર્યાપ્ત બેઇન્દ્રિયના જઘન્યયોગના નીચે અસંખ્યાતગુણ પરિહીન બીજા વચનયોગનું રુંધન કરે છે. ત્યારપછી અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-९ प्रयोगबंध Hindi 424 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पयोगबंधे? पयोगबंधे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–अनादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा अपज्जवसिए, सादीए वा सपज्जवसिए। तत्थ णं जे से अनादीए अपज्जवसिए से णं अट्ठण्हं जीवमज्झपएसाणं, तत्थ वि णं तिण्हं-तिण्हं अनादीए अपज्जवसिए, सेसाणं सादीए। तत्थ णं जे से सादीए अपज्जवसिए से णं सिद्धाणं। तत्थ णं जे से सादीए सपज्जवसिए से णं चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–आलावणबंधे, अल्लियावणबंधे, सरीरबंधे, सरीरप्पयोगबंधे। से किं तं आलावणबंधे? आलावणबंधे–जण्णं तणभाराण वा, कट्ठभाराण वा, पत्तभाराण वा, पलालभाराण वा, वेत्तलता-वाग-वरत्त-रज्जु-वल्लि-कुस-दब्भमादीएहिं आलावणबंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! प्रयोगबंध किस प्रकार का है ? गौतम ! प्रयोगबंध तीन प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार – अनादिअपर्यवसित, सादि – अपर्यवसित अथाव सादि सपर्यवसित। इनमें से जो अनादि – अपर्यवसित है, जह जीव के आठ मध्यप्रदेशों का होता है। उन आठ प्रदेशों में भी तीन – तीन प्रदेशों का जो बंध होता है, वह अनादि – अपर्यवसित बंध है। शेष
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-८

उद्देशक-९ प्रयोगबंध Hindi 425 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य पंचेंदियवेउव्वियसरीर-प्पयोगबंधे य। जइ एगिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे किं वाउक्काइयएगिंदियसरीरप्पयोगबंधे? अवाउक्काइय-एगिंदियसरीरप्पयो-गबंधे? एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओगाहणसंठाणे वेउव्वियसरीरभेदो तहा भाणियव्वो जाव पज्जत्तासव्वट्ठसिद्धअनुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमानियदेवपंचिंदियवेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे य, अपज्जत्तासव्वट्ठसिद्ध अनुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमानियदेवपंचिंदियवेउव्वि-यसरीरप्पयोगबंधे य। वेउव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! वैक्रियशरीर – प्रयोगबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का है। एकेन्द्रियवैक्रियशरीर – प्रयोगबंध और पंचेन्द्रियवैक्रियशरीर – प्रयोगबंध। भगवन् ! यदि एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है, तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध है अथवा अवायुकायिक एकेन्द्रिय – वैक्रियशरीरप्रयोगबंध
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 134 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव संखित्तविपुलतेयलेस्से छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तए णं भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बीयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाइं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता भायणाइं पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाइं उग्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ,

Translated Sutra: उस काल, उस समय में राजगृह नामक नगर था। वहाँ (श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। परीषद्‌ वन्दना करने गई यावत्‌ धर्मोपदेश सूनकर) परीषद्‌ वापस लौट गई। उस काल, उस समय में श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार थे। यावत्‌ वे विपुल तेजोलेश्या को अपने शरीर में संक्षिप्त करके रखते थे। वे निरन्तर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-७ देव Hindi 139 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहा णं भंते! देवा पन्नत्ता? गोयमा! चउव्विहा देवा पन्नत्ता, तं जहा– भवनवइ-वाणमंतर-जोइस-वेमाणिया। कहि णं भंते! भवनवासीणं देवाणं ठाणा पन्नत्ता? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जहा ठाणपदे देवाणं वत्तव्वया सा भाणियव्वा। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे एवं सव्वं भाणियव्वं, जाव सिद्धगंडिया समत्ता। कप्पाण पइट्ठाणं, बाहुल्लुच्चत्त मेव संठाणं। जीवाभिगमे जो वेमाणिउद्देसो सो भाणियव्वो सव्वो।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! देव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! देव चार प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं – भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भगवन्‌ ! भवनवासी देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! भवनवासी देवों के स्थान इस रत्नप्रभा पृथ्वी के नीचे हैं; इत्यादि देवों की सारी वक्तव्यता प्रज्ञापनासूत्र के दूसरे स्थान
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३१ अशोच्चा Hindi 446 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं वाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहस्स आयावणभूमीए आयावेमाणस्स पगइभद्दयाए, पगइउवसंतयाए, पगइपयणुकोह-मान-माया-लोभयाए, मिउमद्दवसंपन्नयाए, अल्लीणयाए, विणीययाए, अन्नया कयावि सुभेणं अज्झवसाणेणं, सुभेणं परिणामेणं, लेस्साहिं विसुज्झमाणीहिं-विसुज्झमाणीहिं तयावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स विब्भंगे नामं अन्नाणे समुप्पज्जइ। से णं तेणं विब्भंगनाणेणं समुप्पन्नेणं जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं जाणइ-पासइ। से णं तेणं विब्भंगनाणेणं समुप्पन्नेणं

Translated Sutra: निरन्तर छठ – छठ का तपःकर्म करते हुए सूर्य के सम्मुख बाहें ऊंची करके आतापनाभूमि में आतापना लेते हुए उस जीव की प्रकृति – भद्रता से, प्रकृति की उपशान्तता से स्वाभाविक रूप से ही क्रोध, मान, माया और लाभ की अत्यन्त मन्दता होने से, अत्यन्त मृदुत्वसम्पन्नता से, कामभोगों में अनासक्ति से, भद्रता और विनीतता से तथा किसी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-९

उद्देशक-३१ अशोच्चा Hindi 450 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सोच्चा णं भंते! केवलिस्स वा, केवलिसावगस्स वा, केवलिसावियाए वा, केवलिउवासगस्स वा, केवलिउवासियाए वा, तप्पक्खियस्स वा, तप्पक्खियसावगस्सवा, तप्पक्खियसावियाए वा, तप्पक्खियउवासगस्स वा, तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए? गोयमा! सोच्चा णं केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्ज सवणयाए, अत्थेगतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्ज सवणयाए। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सोच्चा णं जाव नो लभेज्ज सवणयाए? गोयमा! जस्स णं नाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ से णं सोच्चा केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए वा केवलिपन्नत्तं

Translated Sutra: भगवन् ! केवली यावत् केवलि – पाक्षिक की उपासिका से श्रवण कर क्या कोई जीव केवलिप्ररूपित धर्म – बोध प्राप्त करता है ? गौतम ! कोई जीव प्राप्त करता है और कोई जीव प्राप्त नहीं करता। इस विषय में असोच्चा के समान ‘सोच्चा’ की वक्तव्यता कहना। विशेष यह कि सर्वत्र ‘सोच्चा’ ऐसा पाठ कहना। शेष पूर्ववत् यावत् जिसने मनःपर्यवज्ञानावरणीय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-२ आकाश Hindi 781 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! आगासे पन्नत्ते? गोयमा! दुविहे आगासे पन्नत्ते, तं जहा–लोयागासे य, अलोयागासे य। लोयागासे णं भंते! किं जीवा? जीवदेसा? –एवं जहा बितियसए अत्थिउद्देसे तहेव इह वि भाणियव्वं, नवरं–अभिलावो जाव धम्मत्थिकाए णं भंते! केमहालए पन्नत्ते। गोयमा! लोए लोयमेत्ते लोयप्पमाणे लोयफुडे लोयं चेव ओगाहित्ता णं चिट्ठति। एवं जाव पोग्गलत्थिकाए। अहेलोए णं भंते! धम्मत्थिकायस्स केवतियं ओगाढे? गोयमा! सातिरेगं अद्धं ओगाढे। एवं एएणं अभिलावेणं जहा बितियसए जाव– ईसिपब्भारा णं भंते! पुढवी लोयागासस्स किं संखेज्जइभागं ओगाढा–पुच्छा। गोयमा! नो संखेज्जइभागं ओगाढा, असंखेज्जइभागं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! आकाश कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का – लोकाकाश और अलोकाकाश। भगवन्‌ ! क्या लोकाकाश जीवरूप है, अथवा जीवदेश – रूप है ? गौतम ! द्वीतिय शतक के अस्ति – उद्देशक अनुसार कहना चाहिए। विशेष में धर्मास्तिकाय से लेकर पुद्‌गलास्तिकाय तक यहाँ कहना चाहिए – भगवन्‌ ! धर्मास्तिकाय कितना बड़ा है ? गौतम ! धर्मास्तिकाय
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-२ आकाश Hindi 782 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] धम्मत्थिकायस्स णं भंते! केवतिया अभिवयणा पन्नत्ता? गोयमा! अनेगा अभिवयणा पन्नत्ता, तं जहा–धम्मे इ वा, धम्मत्थिकाये इ वा, पाणाइवाय-वेरमणे इ वा, मुसावायवेरमणे इ वा, एवं जाव परिग्गहवेरमणे इ वा, कोहविवेगे इ वा जाव मिच्छादंसण-सल्लविवेगे इ वा, रियासमिती इ वा, भासासमिती इ वा, एसणासमिती इ वा, आयाणभंडमत्तनिक्खेव समिती इ वा, उच्चारपासवणखेलसिंघाणजल्लपारिट्ठावणियासमिती इ वा, मणगुत्ती इ वा, वइगुत्ती इ वा, कायगुत्ती इ वा, जे यावण्णे तहप्पगारा सव्वे ते धम्मत्थिकायस्स अभिवयणा। अधम्मत्थिकायस्स णं भंते! केवतिया अभिवयणा पन्नत्ता? गोयमा! अनेगा अभिवयणा पन्नत्ता, तं जहा–अधम्मे इ वा,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! धर्मास्तिकाय के कितने अभिवचन हैं ? गौतम ! अनेक। यथा – धर्म, धर्मास्तिकाय, प्राणातिपात – विरमण, यावत्‌ परिग्रहविरमण, अथवा क्रोध – विवेक, यावत्‌ – मिथ्यादर्शन – शल्य – विवेक, अथवा ईर्यासमिति, यावत्‌ उच्चार – प्रस्रवण – खेल – जल्ल – सिंघाण – परिष्ठापनिकासमिति, अथवा मनोगुप्ति, वचनगुप्ति या कायगुप्ति; ये
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-५ परमाणु Hindi 786 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] परमाणुपोग्गले णं भंते! कतिवण्णे, कतिगंधे, कतिरसे, कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! एगवण्णे, एगगंधे, एगरसे, दुफासे पन्नत्ते। जइ एगवण्णे? सिय कालए, सिय नीलए, सिय लोहियए, सिय हालिद्दए, सिय सुक्किलए। जइ एगगंधे? सिय सुब्भिगंधे, सिय दुब्भिगंधे। जइ एगरसे? सिय तित्ते, सिय कडुए, सिय कसाए, सिय अंबिले, सिय महुरे। जइ दुफासे? १. सिय सीए य निद्धे य, २. सिय सीए य लुक्खे य, ३. सिय उसिणे य निद्धे य, ४. सिय उसिणे य लुक्खे य। दुप्पएसिए णं भंते! खंधे कतिवण्णे जाव कतिफासे पन्नत्ते? गोयमा! सिय एगवण्णे, सिय दुवण्णे, सिय एगगंधे, सिय दुगंधे, सिय एगरसे, सिय दुरसे, सिय दुफासे, सिय तिफासे, सिय चउफासे पन्नत्ते। जइ एगवण्णे?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परमाणु – पुद्‌गल कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला कहा गया है ? गौतम ! (वह) एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श वाला कहा गया है। यदि एक वर्ण वाला हो तो कदाचित्‌ काला, कदाचित्‌ नीला, कदाचित्‌ लाल, कदाचित्‌ पीला और कदाचित्‌ श्वेत होता है। यदि एक गन्ध वाला होता है तो कदाचित्‌ सुरभिगन्ध और कदाचित्‌ दुरभिगन्ध
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२०

उद्देशक-५ परमाणु Hindi 788 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! परमाणू पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे परमाणू पन्नत्ते, तं० दव्वपरमाणू, खेत्तपरमाणू, कालपरमाणू, भावपरमाणू। दव्वपरमाणू णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अच्छेज्जे, अभेज्जे, अडज्झे, अगेज्झे। खेत्तपरमाणू णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अणद्धे, अमज्झे, अपदेसे, अविभाइमे। कालपरमाणू णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे। भावपरमाणू णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–वण्णमंते, गंधमंते, रसमंते, फासमंते। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति जाव

Translated Sutra: भगवन्‌ ! परमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा – द्रव्यपरमाणु, क्षेत्रपरमाणु, काल – परमाणु और भावपरमाणु। भगवन्‌ ! द्रव्यपरमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा – अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य। भगवन्‌ ! क्षेत्रपरमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा – अनर्द्ध, अमध्य,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

Hindi 6 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगनाहे लोगपदीवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खु- दए मग्गदए सरणदए धम्मदेसए धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिने जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुयमणंतमक्खय- मव्वाबाहं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामे… …जाव पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव रायगिहे नगरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं

Translated Sutra: उस काल में, उस समय में (वहाँ) श्रमण भगवान महावीर स्वामी विचरण कर रहे थे, जो आदि – कर, तीर्थंकर, स्वयं तत्त्व के ज्ञाता, पुरुषोत्तम, पुरुषों में सिंह की तरह पराक्रमी, पुरुषों में श्रेष्ठ पुण्डरीक – श्वेत कमल रूप, पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोकहितकर, लोक – प्रदीप, लोकप्रद्योतकर, अभयदाता,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 12 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ठिइ उस्सासाहारे, किं वाऽऽहारेंति सव्वओ वावि? कतिभागं सव्वाणि व? कीस व भुज्जो परिणमंति? ॥

Translated Sutra: नारक जीवों की स्थिति, उच्छ्‌वास तथा आहार – सम्बन्धी कथन करना चाहिए। क्या वे आहार करते हैं ? वे समस्त आत्मप्रदेशों से आहार करते हैं ? वे कितने भाग का आहार करते हैं या वे सर्व – आहारक द्रव्यों का आहार करते हैं ? और वे आहारक द्रव्यों को किस रूप में बार – बार परिणमाते हैं ?
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-१ चलन Hindi 21 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] एवं ठिई आहारो य भाणियव्वो। ठिती जहा– ठितिपदे तहा भाणियव्वा सव्वजीवाणं। आहारो वि जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए तहा भाणियव्वो, एत्तो आढत्तो–नेरइया णं भंते! आहारट्ठी? जाव दुक्खत्ताए भुज्जो-भुज्जो परिणमंति। असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आणमंति वा ४? गोयमा! जहन्नेणं सत्तण्हं थोवाणं, उक्कोसेणं साइरेगस्स पक्खस्स आणमंति वा ४ | असुरकुमारा णं भंते! आहारट्ठी? हंता, आहारट्ठी । [असुरकुमारा णं भंते! केवइकालस्स आहारट्ठे समुप्पज्जइ? गोयमा! असुरकुमाराणं दुविहे आहारे पन्नत्ते। तंजहा-आभोगनिव्वत्तिए य, अनाभोगनिव्वत्तिए य। तत्थ णं जे से अनाभोग निव्वत्तिए

Translated Sutra: इसी तरह स्थिति और आहार के विषय में भी समझ लेना। जिस तरह स्थिति पद में कहा गया है उसी तरह स्थिति विषय में कहना चाहिए। सर्व जीव संबंधी आहार भी पन्नवणा सूत्र के प्रथम उद्देशक में कहा गया है उसी तरह कहना चाहिए। भगवन्‌ ! असुरकुमारों की स्थिति कितने काल की है ? हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट एक सागरोपम से
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-२ दुःख Hindi 33 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! असण्णिआउए पन्नत्ते? गोयमा! चउव्विहे असण्णिआउए पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयअसण्णिआउए, तिरिक्खजोणिय-असण्णि- आउए, मनुस्सअसण्णिआउए, देवअसण्णिआउए। असण्णी णं भंते! जीवे किं नेरइयाउयं पकरेइ? तिरिक्खजोणियाउयं पकरेइ? मनुस्साउयं पकरेइ? देवाउयं पकरेइ? हंता गोयमा! नेरइयाउयं पि पकरेइ, तिरिक्खजोणियाउयं पि पकरेइ, मनुस्साउयं पि पकरेइ, देवाउयं पि पकरेइ। नेरइयाउयं पकरेमाणे जहन्नेणं दस वाससहस्साइं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेइ। तिरिक्खजोणियाउयं पकरेमाणे जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पकरेइ। मनुस्साउयं पकरेमाणे जहन्नेणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असंज्ञी का आयुष्य कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! असंज्ञी का आयुष्य चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है – नैरयिक – असंज्ञी आयुष्य, तिर्यंच – असंज्ञी आयुष्य, मनुष्य – असंज्ञी आयुष्य और देव – असंज्ञी आयुष्य। भगवन्‌ ! असंज्ञी जीव क्या नरक का आयुष्य उपार्जन करता है, तिर्यंचयोनिक का आयुष्य उपार्जन
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-३ कांक्षा प्रदोष Hindi 45 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: अत्थि णं भंते! समणा वि निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेएंति? हंता अत्थि। कहन्नं भंते! समणा निग्गंथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेंति? गोयमा! तेहिं तेहिं नाणंतरेहिं, दंसणंतरेहिं, चरित्तंतरेहिं, लिंगंतरेहिं, पवयणंतरेहिं, पावयणंतरेहिं, कप्पंतरेहिं, मग्गंतरेहिं, मतंतरेहिं, भगंतरेहिं, नयतरेहिं, नियमंतरेहिं, पमाणंतरेहिं संकिता कंखिता वितिकिच्छता भेदसमावन्ना कलुससमावन्ना– एवं खलु समणा निग्गंथा कंखा-मोहणिज्जं कम्मं वेदेंति। से नूनं भंते! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं? हंता गोयमा! तमेव सच्चं नीसंकं, जं जिणेहिं पवेदितं। एवं जाव अत्थि उट्ठाणेइ वा, कम्मेइ वा, बलेइ वा, वीरिएइ

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या श्रमणनिर्ग्रन्थ भी कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? हाँ, गौतम ! करते हैं। भगवन्‌ ! श्रमणनिर्ग्रन्थ कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन किस प्रकार करते हैं ? गौतम ! उन – उन कारणों से ज्ञानान्तर, दर्शनान्तर, चारित्रान्तर, लिंगान्तर, प्रवचनान्तर, प्रावचनिकान्तर, कल्पान्तर, मार्गान्तर, मतान्तर, भंगान्तर,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-४ कर्मप्रकृत्ति Hindi 49 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! नेरइयस्स वा, तिरिक्खजोणियस्स वा, मनुस्सस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो? हंता गोयमा! नेरइयस्स वा, तिरिक्खजोणियस्स वा, मनुस्सस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ नेरइयस्स वा तिरिक्खजोणियस्स वा, मनुस्सस्स वा, देवस्स वा जे कडे पावे कम्मे, नत्थि णं तस्स अवेदइत्ता मोक्खो? एवं खलु मए गोयमा! दुविहे कम्मे पन्नत्ते, तं जहा– पदेसकम्मे य, अनुभागकम्मे य। तत्थ णं जं णं पदेसकम्मं तं नियमा वेदेइ। तत्थ णं जं णं अनुभागकम्मं तं अत्थेगइयं वेदेइ, अत्थेगइयं नो वेदेइ। नायमेयं अरहया,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! नारक तिर्यंचयोनिक, मनुष्य या देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे बिना क्या मोक्ष नहीं होता? हाँ, गौतम ! नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव ने जो पापकर्म किये हैं, उन्हें भोगे बिना मोक्ष नहीं होता। भगवन्‌ ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! मैंने कर्म के दो भेद बताए हैं। प्रदेशकर्म और अनुभाग – कर्म। इनमें
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-६ यावंत Hindi 76 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव एवं वयासी– कतिविहा णं भंते! लोयट्ठिती पन्नत्ता? गोयमा! अट्ठविहा लोयट्ठिति पन्नत्ता, तं जहा–१. आगासपइट्ठिए वाए। २. वायपइट्ठिए उदही। ३. उदहिपइट्ठिया पुढवी। ४. पुढविपइट्ठिया तसथावरा पाणा। ५. अजीवा जीवपइट्ठिया। ६. जीवा कम्मपइट्ठिया। ७. अजीवा जीवसंगहिया। ८. जीवा कम्मसंगहीया। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अट्ठविहा लोयट्ठिती जाव जीवा कम्मसंगहिया? गोयमा! से जहानामए केइ पुरिसे वत्थिमाडोवेइ, वत्थिमाडोवेत्ता उप्पिं सितं बंधइ, बंधित्ता मज्झे गंठिं बंधइ, बंधित्ता उवरिल्लं गंठिं मुयइ, मुइत्ता उवरिल्लं देसं वामेइ, वामेत्ता उवरिल्लं

Translated Sutra: ‘हे भगवन्‌ !’ ऐसा कहकर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर से यावत्‌ कहा – भगवन्‌ ! लोक की स्थिति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! आठ प्रकार की। वह इस प्रकार है – आकाश के आधार पर वायु (तनुवात) टिका हुआ है; वायु के आधार पर उदधि है; उदधि के आधार पर पृथ्वी है, त्रस और स्थावर जीव पृथ्वी के आधार पर हैं; अजीव जीवों के आधार पर
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-७ नैरयिक Hindi 84 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे किं आहारमाहारेइ? गोयमा! जं से माया नाणाविहाओ रसविगतीओ आहारमाहारेइ, तदेकदेसेणं ओयमाहारेइ। जीवस्स णं भंते! गब्भगयस्स समाणस्स अत्थि उच्चारे इ वा पासवने इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा? नो इणट्ठे समट्ठे। से केणट्ठेणं? गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे जमाहारेइ तं चिणाइ, तं जहा–सोइंदियत्ताए, चक्खिंदियत्ताए, घाणिंदियत्ताए, रसिंदियत्ताए फासिंदियत्ताए, अट्ठि-अट्ठिमिंज-केस-मंसु-रोम-नहत्ताए। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवस्स णं गब्भगयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारे इ वा पासवने इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा। जीवे णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! गर्भ में रहा हुआ जीव क्या नारकों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! कोई उत्पन्न होता है और कोई नहीं उत्पन्न होता। भगवन्‌ ! इसका क्या कारण है ? गौतम ! गर्भ में रहा हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय और समस्त पर्याप्तियों से पर्याप्त (परिपूर्ण) जीव, वीर्यलब्धि द्वारा, वैक्रियलब्धि द्वारा शत्रुसेना का आगमन सूनकर, अवधारण (विचार)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 87 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा दहंसि वा उदगंसि वा दवियंसि वा वलयंसि वा नमंसि वा गहणंसि वा गहणविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मिय त्ति काउं अन्नयरस्स मियस्स वहाए कूडपासं उद्दाति, ततो णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए? गोयमा! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–सिय तिकिरिए? सिय चउकिरिए? सिय पंचकिरिए? गोयमा! जे भविए उद्दवणयाए–नो बंधनयाए, नो मारणयाए–तावं च णं से पुरिसे काइयाए, अहिगरणियाए, पाओसियाए –तिहिं किरियाहिं पुट्ठे। जे भविए उद्दवणताए वि, बंधनताए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगों का शिकारी, मृगों के शिकार में तल्लीन कोई पुरुष मृगवध के लिए नीकला हुआ कच्छ में, द्रह में, जलाशय में, घास आदि के समूह में, वलय में, अन्धकारयुक्त प्रदेश में, गहन में, पर्वत के एक भागवर्ती वन में, पर्वत पर पर्वतीय दुर्गम प्रदेश में, वन में, बहुत – से वृक्षों से दुर्गम वन में,
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-८ बाल Hindi 90 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिसे णं भंते! कच्छंसि वा जाव वणविदुग्गंसि वा? मियवित्तीए मियसंकप्पे मियपणिहाणे मियवहाए गंता एते मिय त्ति काउं अन्नतरस्स मियस्स वहाए आयत-कण्णायतं उसुं आयामेत्ता चिट्ठेज्जा, अन्नयरे पुरिसे मग्गतो आगम्म सयपाणिणा असिणा सीसं छिंदेज्जा, से य उसू ताए चेव पुव्वायामणयाए तं मियं चिंधेज्जा, से णं भंते! पुरिसे किं मियवेरेणं पुट्ठे? पुरिसवेरेणं पुट्ठे? गोयमा! जे मियं मारेइ, से मियवेरेणं पुट्ठे। जे पुरिसं मारेइ, से पुरिसवेरेणं पुट्ठे। [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–जे मियं मारेइ, से मियवेरेणं पुट्ठे? जे पुरिसं मारेइ, से पुरिसवेरेणं पुट्ठे? से नूनं गोयमा! कज्जमाणे

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कोई पुरुष कच्छ में यावत्‌ किसी मृग का वध करने के लिए कान तक ताने हुए बाण को प्रयत्न – पूर्वक खींच कर खड़ा हो और दूसरा कोई पुरुष पीछे से आकर उस खड़े हुए पुरुष का मस्तक अपने हाथ से तलवार द्वारा काट डाले। वह बाण पहले के खिंचाव से उछलकर उस मृग को बींध डाले, तो हे भगवन्‌ ! वह पुरुष मृग के वैर से स्पृष्ट है या (उक्त)
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 95 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए। सत्तमे णं भंते! तनुवाए किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए? गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए, नो अगरुयलहुए। एवं सत्तमे घनवाए, सत्तमे घनोदही, सत्तमा पुढवी। ओवासंतराइं सव्वाइं जहा सत्तमे ओवासंतरे। जहा तनुवाए एवं–ओवास-वाय-घनउदही, पुढवी दीवा य सागरा वासा। नेरइया णं भंते! किं गरुया? लहुया? गरुयलहुया? अगरुयलहुया? गोयमा! नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया वि, अगरुयलहुया वि। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया नो गरुया? नो लहुया? गरुयलहुया वि? अगरुयलहुया वि? गोयमा! विउव्विय-तेयाइं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या सातवाँ अवकाशान्तर गुरु है, अथवा वह लघु है, या गुरुलघु है, अथवा अगुरुलघु है ? गौतम! वह गुरु नहीं है, लघु नहीं है, गुरु – लघु नहीं है, किन्तु अगुरुलघु है। भगवन्‌ ! सप्तम तनुवात क्या गुरु है, लघु है या गुरुलघु है अथवा अगुरुलघु है ? गौतम ! वह गुरु नहीं है, लघु नहीं है, किन्तु गुरु – लघु है; अगुरुलघु नहीं है। इस
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-१

उद्देशक-९ गुरुत्त्व Hindi 98 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे कालासवेसियपुत्ते नामं अनगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता थेरे भगवंते एवं वयासी– थेरा सामाइयं न याणंति, थेरा सामाइयस्स अट्ठं न याणंति। थेरा पच्चक्खाणं न याणंति, थेरा पच्चक्खाणस्स अट्ठं न याणंति। थेरा संजमं न याणंति, थेरा संजमस्स अट्ठं न याणंति। थेरा संवरं न याणंति, थेरा संवरस्स अट्ठं न याणंति। थेरा विवेगं न याणंति, थेरा विवेगस्स अट्ठं ण याणंति। थेरा विउस्सग्गं न याणंति, थेरा विउस्सगस्स अट्ठं न याणंति। तए णं थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अनगारं एवं वदासी– जाणामो णं अज्जो! सामाइयं, जाणामो णं अज्जो! सामाइयस्स

Translated Sutra: उस काल और उस समय (भगवान महावीर के शासनकाल) में पार्श्वापत्यीय कालास्यवेषिपुत्र नामक अनगार जहाँ (भगवान महावीर के) स्थविर भगवान बिराजमान थे, वहाँ गए। स्थविर भगवंतों से उन्होंने कहा – ‘हे स्थविरो ! आप सामयिक को नहीं जानते, सामयिक के अर्थ को नहीं जानते, आप प्रत्याख्यान को नहीं जानते और प्रत्याख्यान के अर्थ को नहीं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Hindi 107 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] किण्णं भंते! एते जीवा आणमंति वा? पाणमंति वा? ऊससंति वा? नीससंति वा? गोयमा! दव्वओ अनंतपएसियाइं दव्वाइं, खेत्तओ असंखेज्जपएसोगाढाइं, कालओ अन्नयर-ठितियाइं, भावओ वण्णमंताइं गंधमंताइं रसमंताइं फासमंताइं आणमंति वा, पाणमंति वा, ऊससंति वा, नीससंति वा। जाइं भावओ वण्णमंताइं आणमंति वा, पाणमंति वा ऊससंति वा, नीससंति वा ताइं किं एगवण्णाइं जाव किं पंच-वण्णाइं आणमंति वा? पाणमंति वा? ऊससंति वा? नीससंति वा? गोयमा! ठाणमग्गणं पडुच्च एगवण्णाइं पि जाव पंचवण्णाइं पि आणमंति वा, पाणमंति वा, ऊससंति वा, नीससंति वा। विहाणमग्गणं पडुच्च कालवण्णाइं पि जाव सुक्किलाइं पि आणमंति वा, पणमंति वा, ऊससंति

Translated Sutra: भगवन्‌ ! ये पृथ्वीकायादि एकेन्द्रिय जीव, किस प्रकार के द्रव्यों को बाह्य और आभ्यन्तर उच्छ्‌वास के रूप में ग्रहण करते हैं, तथा निःश्वास के रूप में छोड़ते हैं ? गौतम ! द्रव्य की अपेक्षा अनन्तप्रदेश वाले द्रव्यों को, क्षेत्र की अपेक्षा असंख्येयप्रदेशों में रहे हुए द्रव्यों को, काल की अपेक्षा किसी भी प्रकार की स्थिति
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Hindi 112 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइआओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नामं नगरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं कयंगलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए छत्तपलासए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ जाव समोसरणं। परिसा निग्गच्छइ। तीसे णं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तत्थ

Translated Sutra: उस काल उस समय में कृतंगला नामकी नगरी थी। उस कृतंगला नगरी के बाहर ईशानकोण में छत्रपला – शक नामका चैत्य था। वहाँ किसी समय उत्पन्न हुए केवलज्ञान – केवलदर्शन के धारक श्रमण भगवान महावीर स्वामी पधारे। यावत्‌ – भगवान का समवसरण हुआ। परीषद्‌ धर्मोपदेश सूनने के लिए नीकली। उस कृतंगला नगरी के निकट श्रावस्ती नगरी थी।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Hindi 115 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे समोसरणं जाव परिसा पडिगया। तए णं तस्स खंदयस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्ठामि, भासं भासित्ता वि गिलामि, भासं भासमाणे गिलामि,

Translated Sutra: उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर में पधारे। समवसरण की रचना हुई। यावत्‌ जनता धर्मोपदेश सूनकर वापिस लौट गई। तदनन्तर किसी एक दिन रात्रि के पीछले प्रहर में धर्म – जागरणा करते हुए स्कन्दक अनगार के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय, चिन्तन यावत्‌ संकल्प उत्पन्न हुआ कि मैं इस प्रकार के उदार यावत्‌ महाप्रभावशाली
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Hindi 116 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से खंदए अनगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सयमेव पंच महाव्वयाइं आरुहेइ, आरुहेत्ता समणा य समणीओ य खामेइ, खामेत्ता तहारूवेहि थेरेहिं कडाईहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं द्रुहइ, द्रुहित्ता मेहघणसन्निगासं देवसन्निवातं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे

Translated Sutra: तदनन्तर श्री स्कन्दक अनगार श्रमण भगवान महावीर की आज्ञा प्राप्त हो जाने पर अत्यन्त हर्षित, सन्तुष्ट यावत्‌ प्रफुल्लहृदय हुए। फिर खड़े होकर श्रमण भगवान महावीर को तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की और वन्दना – नमस्कार करके स्वयमेव पाँच महाव्रतों का आरोपण किया। फिर श्रमण – श्रमणियों से क्षमायाचना की, और तथारूप
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक Hindi 117 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो खंदयं अनगारं कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेंति, करेत्ता पत्तचीवराणि गेण्हंति, गेण्हित्ता विपुलाओ पव्वयाओ सणियं-सणियं पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए। से णं देवानुप्पिएहिं अब्भ णुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाणि आरुहेत्ता, समणा य समणीओ य खामेत्ता, अम्हेहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ उन स्थविर भगवंतों ने स्कन्दक अनगार को कालधर्म प्राप्त हुआ जानकर उनके परिनिर्वाण सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया। फिर उनके पात्र, वस्त्र आदि उपकरणों को लेकर वे विपुलगिरि से शनैः शनैः नीचे ऊतरे। ऊतरकर जहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी विराजमान थे, वहाँ आए। भगवान को वन्दना – नमस्कार करके उन स्थविर मुनियों
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 123 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अन्नउत्थिया णं भंते! एवमाइक्खंति भासंति पण्णवंति परूवेंति– १. एवं खलु नियंठे कालगए समाणे देवब्भूएणं अप्पाणेणं से णं तत्थ नो अन्ने देवे, नो अन्नेसिं देवाणं देवीओ आभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेइ, नो अप्पणिच्चियाओ देवीओ अभिजुंजिय-अभिजुंजिय परियारेइ, अप्पणामेव अप्पाणं विउव्विय-विउ-व्विय परियारेइ। २. एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो वेदे वेदेइ, तं जहा–इत्थिवेदं च, पुरिसवेदं च। जं समयं इत्थिवेयं वेएइ तं समयं पुरिसवेयं वेएइ। इत्थिवेयस्स वेयणाए पुरिसवेयं वेएइ, पुरिसवेयस्स वेयणाए इत्थिवेयं वेएइ। एवं खलु एगे वि य णं जीवे एगेणं समएणं दो वेदे वेदेइ, तं जहा– इत्थिवेदं च,

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अन्यतीर्थिक इस प्रकार कहते हैं, भाषण करते हैं, बताते हैं और प्ररूपणा करते हैं कि कोई भी निर्ग्रन्थ मरने पर देव होता है और वह देव, वहाँ दूसरे देवों के साथ, या दूसरे देवों की देवियों के साथ, उन्हें वश में करके या उनका आलिंगन करके, परिचारणा नहीं करता, तथा अपनी देवियों को वशमें करके या आलिंगन करके उनके साथ भी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक Hindi 130 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनि-क्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं तुंगिया नामं नयरी होत्था–वण्णओ। तीसे णं तुंगियाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभागे पुप्फवतिए नामं चेइए होत्था–वण्णओ। तत्थ णं तुंगियाए नयरीए बहवे समणोवासया परिवसंति– अड्ढा दित्ता वित्थिण्णविपुलभवन-सयनासन-जानवाहणाइण्णा बहुधन-बहुजायरूव-रयया आयोगपयोगसंपउत्ता विच्छड्डियविपुल-भत्तपाना बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलयप्पभूया बहुजणस्स अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा उवलद्ध-पुण्ण-पावा-आसव-संवर-निज्जर-किरियाहिकरणबंधपमोक्खकुसला असहेज्जा

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ (एकदा) श्रमण भगवान महावीर राजगृह नगर के गुणशील उद्यान से नीकलकर बाहर जनपदों में विहार करने लगे। उस काल उस समय में तुंगिका नामकी नगरी थी। उस तुंगिका नगरी के बाहर ईशान कोण में पुष्पवतिक नामका चैत्य था। उस तुंगिकानगरी में बहुत – से श्रमणोपासक रहते थे। वे आढ्य और दीप्त थे। उनके विस्तीर्ण निपुल
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१० अस्तिकाय Hindi 142 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! अत्थिकाया पन्नत्ता? गोयमा! पंच अत्थिकाया पन्नत्ता, तं जहा–धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए। धम्मत्थिकाए णं भंते! कतिवण्णे? कतिगंधे? कतिरसे? कतिफासे? गोयमा! अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे; अरूवी, अजीवे, सासए, अवट्ठिए लोगदव्वे। से समासओ पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। दव्वओ णं धम्मत्थिकाए एगे दव्वे, खेत्तओ लोगप्पमाणमेत्ते, कालओ न कयाइ न आसि, न कयाइ नत्थि, न कयाइ न भविस्सइ–भविंसु य, भवति य, भविस्सइ य–धुवे, नियए, सासए, अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए निच्चे। भावओ अवण्णे, अगंधे, अरसे, अफासे। गुणओ गमणगुणे। अधम्मत्थिकाए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! अस्तिकाय कितने कहे गए हैं ? गौतम ! पाँच हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्ति – काय, जीवास्तिकाय और पुद्‌गलास्तिकाय। भगवन्‌ ! धर्मास्तिकाय में कितने वर्ण, कितने गन्ध, कितने रस और कितने स्पर्श हैं ? गौतम ! धर्मास्ति – काय वर्णरहित, गन्धरहित, रसरहित और स्पर्शरहित है, अर्थात्‌ – धर्मास्तिकाय अरूपी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१० अस्तिकाय Hindi 148 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अहोलोए णं भंते! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसति? गोयमा! सातिरेगं अद्धं फुसति। तिरियलोए णं भंते! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसति? गोयमा! असंखेज्जइभागं फुसति। उड्ढलोए णं भंते! धम्मत्थिकायस्स केवइयं फुसति? गोयमा! देसूणं अद्धं फुसति।

Translated Sutra: भगवन्‌ ! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को अधोलोक स्पर्श करता है ? गौतम ! अधोलोक धर्मास्तिकाय के आधे से कुछ अधिक भाग को स्पर्श करता है। भगवन्‌ ! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को तिर्यग्‌लोक स्पर्श करता है? पृच्छा०। गौतम ! तिर्यग्लोक धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग को स्पर्श करता है। भगवन्‌ ! धर्मास्तिकाय के कितने भाग को
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१० अस्तिकाय Hindi 149 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इमा णं भंते! रयणप्पभापुढवी धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? संखेज्जे भागे फुसति? असंखेज्जे भागे फुसति? सव्वं फुसति? गोयमा! नो संखेज्जइभागं फुसति, असंखेज्जइभागं फुसति, नो संखेज्जे भागे फुसति, नो असंखेज्जे भागे फुसति, नो सव्वं फुसति। इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए घनोदही धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति? संखेज्जे भागे फुसति? असंखेज्जे भागे फुसति? सव्वं फुसति? जहा रयणप्पभा तहा घनोदहि-घनवाय-तणुवाया वि। इमी से णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए ओवासंतरे धम्मत्थिकायस्स किं संखेज्जइभागं फुसति? असंखेज्जइभागं फुसति?

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यह रत्नप्रभापृथ्वी, क्या धर्मास्तिकाय के संख्यातभाग को स्पर्श करती है या असंख्यातभाग को स्पर्श करती है, अथवा संख्यातभागों को स्पर्श करती है या असंख्यात भागों को स्पर्श करती है अथवा समग्र को स्पर्श करती है? गौतम! यह रत्नप्रभापृथ्वी, धर्मास्तिकाय के संख्यातभाग को स्पर्श नहीं करती, अपितु असंख्यात भाग
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-२

उद्देशक-१० अस्तिकाय Hindi 150 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुढवोदही घण-तणू, कप्पा गेवेज्जणुत्तरा सिद्धी । संखेज्जइभागं अंतरेसु सेसा असंखेज्जा ॥

Translated Sutra: पृथ्वी, घनोदधि, घनवात, तनुवात, कल्प, ग्रैवेयक, अनुत्तर, सिद्धि (ईषत्‌प्राग्भारा पृथ्वी) तथा सात अव – काशान्तर, इनमें से अवकाशान्तर तो धर्मास्तिकाय के संख्येय भाग का स्पर्श करते हैं और शेष सब धर्मास्तिकाय के असंख्येय भाग का स्पर्श करते हैं।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Hindi 156 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! सक्के देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासि तीसए नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडि-पुण्णाइं अट्ठ संवच्छराइं सामण्णपरियागं पाउणित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेत्ता, सट्ठिं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए ओगाहणाए सक्कस्स देविंदस्स

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि देवेन्द्र देवराज शक्र ऐसी महान ऋद्धि वाला है, यावत्‌ इतनी विकुर्वणा करने मे समर्थ है, तो आप देवानुप्रिय का शिष्य ‘तिष्यक’ नामक अनगार, जो प्रकृति से भद्र, यावत्‌ विनीत था निरन्तर छठ – छठ की तपस्या से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ, पूरे आठ वर्ष तक श्रामण्यपर्याय का पालन करके, एक मास की संलेखना से अपनी
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Hindi 158 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया एमहिड्ढीए जाव एवतियं च णं पभू विकुव्वित्तए, एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी कुरुदत्तपुत्ते नामं अनगारे पगतिभद्दए जाव विनीए अट्ठमंअट्ठमेणं अनिक्खित्तेणं, पारणए आयंबिलपरिग्गहिएणं तवोक-म्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय-पगिज्झिय सूराभिमुहे आयावणभूमीए आयावेमाणे बहुपडिपुण्णे छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणित्ता, अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसेत्ता, तीसं भत्ताइं अनसनाए छेदेत्ता आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा ईसाने कप्पे सयंसि विमाणंसि उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइभागमेत्तीए

Translated Sutra: भगवन्‌ ! यदि देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र इतनी बड़ी ऋद्धि से युक्त है, यावत्‌ वह इतनी विकुर्वणाशक्ति रखता है, तो प्रकृति से भद्र यावत्‌ विनीत, तथा निरन्तर अट्ठम की तपस्या और पारणे में आयंबिल, ऐसी कठोर तपश्चर्या से आत्मा को भावित करता हुआ, दोनों हाथ ऊंचे रखकर सूर्य की ओर मुख करके आतापना – भूमि में आतापना लेने वाला
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Hindi 160 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था–वण्णओ जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाने देविंदे देवराया ईसाने कप्पे ईसानवडेंसए विमाने जहेव रायप्पसेणइज्जे जाव दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुतिं दिव्वं देवाणुभागं दिव्वं बत्तीसइबद्धं नट्टविहिं उवदंसित्ता जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए, तामेव दिसिं पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता। एवं वदासी–अहो णं भंते! ईसाने देविंदे देवराया महिड्ढीए जाव महानुभागे। ईसानस्स णं भंते! सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे कहिं गते? कहिं अनुपविट्ठे? गोयमा!

Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था। यावत्‌ परीषद्‌ भगवान की पर्युपासना करने लगी। उस काल उस समय में देवेन्द्र देवराज, शूलपाणि वृषभ – वाहन लोक के उत्तरार्द्ध का स्वामी, अट्ठाईस लाख विमानों का अधिपति, आकाश के समान रजरहित निर्मल वस्त्रधारक, सिर पर माला से सुशोभित मुकुटधारी, नवीनस्वर्ण निर्मित सुन्दर, विचित्र
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Hindi 161 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचा रायहानी अणिंदा अपुरोहिया या वि होत्था। तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवा य देवीओ य तामलिं बालतवस्सिं ओहिणा आभोएंति, आभोएत्ता अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासि– एवं खलु देवानुप्पिया! बलिचंचा रायहानी अणिंदा अपुरोहिया, अम्हे य णं देवानुप्पिया! इंदाहीणा इंदाहिट्ठिया इंदाहीणकज्जा, अयं च णं देवानुप्पिया! तामली बालतवस्सी तामलित्तीए नगरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसिभागे नियत्तणियमंडलं आलिहित्ता संलेहणाज्झूसणाज्झूसिए भत्तपाणपडियाइक्खिए पाओवगमणं निवण्णे, तं सेयं खलु देवानुप्पिया! अम्हं तामलिं

Translated Sutra: उस काल उस समय में बलिचंचा राजधानी इन्द्रविहीन और पुरोहित से विहीन थी। उन बलिचंचा राजधानी निवासी बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों ने तामली बालतपस्वी को अवधिज्ञान से देखा। देखकर उन्होंने एक दूसरे को बुलाया, और कहा – देवानुप्रियो ! बलिचंचा राजधानी इन्द्र से विहीन और पुरोहित से भी रहित है। हे देवानुप्रियो
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Hindi 162 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं ईसाने कप्पे अणिंदे अपुरोहिए या वि होत्था। तए णं से तामली बालतवस्सी बहुपडिपुण्णाइं सट्ठिं वाससहस्साइं परियागं पाउणित्ता, दोमासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सवीसं भत्तसयं अनसनाए छेदित्ता कालकासे कालं किच्चा ईसाने कप्पे ईसानवडेंसए विमाने उववायसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिए अंगुलस्स असंखेज्जइ-भागमेत्तीए ओगाहणाए ईसानदेविंदविरहियकालसमयंसि ईसानदेविंदत्ताए उववन्ने। तए णं से ईसाने देविंदे देवराया अहुणोववण्णे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ, [तं जहा–आहारपज्जत्तीए जाव भासा-मणपज्जत्तीए] । तए णं ते बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया

Translated Sutra: उस काल और उस समय में ईशान देवलोक इन्द्रविहीन और पुरोहितरहित भी था। उस समय ऋषि तामली बालतपस्वी, पूरे साठ हजार वर्ष तक तापस पर्याय का पालन करके, दो महीने की संलेखना से अपनी आत्मा को सेवित करके, एक सौ बीस भक्त अनशन में काटकर काल के अवसर पर काल करके ईशान देवलोक के ईशावतंसक विमान में उपपातसभा की देवदूष्य – वस्त्र
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शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Hindi 163 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते ईसानकप्पवासी बहवे वेमाणिया देवा य देवीओ य बलिचंचारायहाणिवत्थव्वएहिं बहूहिं असुरकुमारेहिं देवेहिं देवीहि य तामलिस्स बालतवस्सिस्स सरीरयं हीलिज्जमाणं निंदिज्जमाणं खिंसिज्जमाणं गरहिज्जमाणं अवमण्णिज्जमाणं तज्जिज्जमाणं तालेज्जमाणं परिवहिज्जमाणं पव्वहिज्जमाणं आकड्ढ-विकड्ढिं कीरमाणं पासंति, पासित्ता आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणा जेणेव ईसाने देविंदे देवराया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे

Translated Sutra: तत्पश्चात्‌ ईशानकल्पवासी बहुत – से वैमानिक देवों और देवियों ने (इस प्रकार) देखा कि बलिचंचा – निवासी बहुत – से असुरकुमार देवों और देवियों द्वारा तामली बालतपस्वी के मृत शरीर की हीलना, निन्दा और आक्रोशना की जा रही है, यावत्‌ उस शब को मनचाहे ढंग से इधर – उधर घसीटा या खींचा जा रहा है। अतः इस प्रकार देखकर वे वैमानिक
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-१ चमर विकुर्वणा Hindi 169 Gatha Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उच्चत्त विमानाणं, पाउब्भव पेच्छणा य संलावे । किच्च विवादुप्पत्ती, सणंकुमारे य भवियत्तं ॥

Translated Sutra: इसके अतिरिक्त दो इन्द्रों के विमानो की ऊंचाई, एक इन्द्र का दूसरे के पास आगमन, परस्पर प्रेक्षण, उनका आलाप – संलाप, उनका कार्य, उनमें विवादोत्पत्ति तथा उनका निपटारा, तथा सनत्कुमारेन्द्र की भवसिद्धि – कता आदि विषयों का निरूपण इस उद्देशक में है।
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 170 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे होत्था जाव परिसा पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहानीए, सभाए सुहम्माए, चमरंसि सीहासनंसि, चउसट्ठीए सामानियसाहसहिं जाव नट्टविहिं उवदंसेत्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी– अत्थि णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए अहे असुरकुमारा देवा परिवसंति? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। एवं जाव अहेसत्तमाए पुढवीए, सोहम्मस्स कप्पस्स अहे जाव अत्थि णं भंते! ईसिप्पब्भाराए पुढवीए अहे असुर-कुमारा देवा परिवसंति? नो इणट्ठे

Translated Sutra: उस काल, उस समय में राजगृह नामका नगर था। यावत्‌ भगवान वहाँ पधारे और परीषद्‌ पर्युपासना करने लगी। उस काल, उस समय में चौंसठ हजार सामानिक देवों से परिवृत्त और चमरचंचा नामक राजधानी में, सुधर्मासभा में चमर नामक सिंहासन पर बैठे असुरेन्द्र असुरराज चमर ने (राजगृह में विराजमान भगवान को अवधिज्ञान से देखा); यावत्‌ नाट्यविधि
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 171 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] केवइयकालस्स णं भंते! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मं कप्पं गया य गमिस्संति य? गोयमा! अनंताहिं ओसप्पिणीहिं, अनंताहिं उस्सप्पिणीहिं समतिक्कंताहिं अत्थि णं एस भावे लोयच्छेरयभूए समुप्पज्जइ, जं णं असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो। किं निस्साए णं भंते! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव साहम्मो कप्पो? गोयमा! से जहानामए इहं सबरा इ वा बब्बरा इ वा टंकणा इ वा चुचुया इ वा पल्हा इ वा पुलिंदा इ वा एगं महं रण्णं वा गड्ढं वा दुग्गं वा दरिं वा विसमं वा पव्वयं वा नीसाए सुमहल्लमवि आसबलं वा हत्थिबलं वा जोहबलं वा धणुबलं वा आगलेंति, एवामेव असुरकुमारा वि

Translated Sutra: भगवन्‌ ! कितने काल में असुरकुमार देव ऊर्ध्व – गमन करते हैं, तथा सौधर्मकल्प तक ऊपर गए हैं, जाते हैं और जाएंगे ? गौतम ! अनन्त उत्सर्पिणी – काल और अनन्त अवसर्पिणीकाल व्यतीत होने के पश्चात्‌ लोक में आश्चर्यभूत यह भाव समुत्पन्न होता है कि असुरकुमार देव ऊर्ध्वगमन करते हैं, यावत्‌ सौधर्मकल्प तक जाते हैं। भगवन्‌ ! किसका
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 172 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चमरे णं भंते! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? पत्ते? अभिसमन्नागए? एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ। तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए या वि होत्था। तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! असुरेन्द्र असुरराज चमर को वह दिव्य देवऋद्धि और यावत्‌ वह सब, किस प्रकार उपलब्ध हुई, प्राप्त हुई और अभिसमन्वागत हुई ? हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारत वर्ष (क्षेत्र) में, विन्ध्याचल की तलहटी में ‘बेभेल’ नामक सन्निवेश था। वहाँ ‘पूरण’ नामक एक गृहपति रहता था। वह आढ्य और दीप्त
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 174 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सक्के देविंदे देवराया वज्जं पडिसाहरित्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासि–एवं खलु भंते! अहं तुब्भं नीसाए चमरेणं असुरिंदेणं असुररण्णा सयमेव अच्चासाइए। तए णं मए परिकुविएणं समाणेणं चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो बहाए वज्जे निसट्ठे। तए णं ममं इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था– नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया, नो खलु समत्थे चमरे असुरिंदे असुरराया, नो खलु विसए चमरस्स असुरिंदस्स असुररन्नो अप्पणो निस्साए उड्ढं उप्पइत्ता जाव सोहम्मो कप्पो, नन्नत्थ अरहंते वा, अरहंतचेइयाणि

Translated Sutra: हे गौतम ! (जिस समय शक्रेन्द्र ने वज्र को पकड़ा, उस समय उसने अपनी मुट्ठी इतनी जोर से बन्द की कि) उस मुट्ठी की हवा से मेरे केशाग्र हिलने लगे। तदनन्तर देवेन्द्र देवराज शक्र ने वज्र को लेकर दाहिनी ओर से मेरी तीन बार प्रदक्षिणा की और मुझे वन्दन – नमस्कार किया। वन्दन – नमस्कार करके कहा – भगवन्‌ ! आपका ही आश्रय लेकर स्वयं
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 175 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वदासी–देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेवं अनुपरियट्टित्ता णं गेण्हित्तए? हंता पभू। से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अनुपरियट्टित्ता णं गेण्हित्तए? गोयमा! पोग्गले णं खित्ते समाणे पुव्वामेव सिग्घगई भवित्ता ततो पच्छा मंदगती भवति, देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्विं पि पच्छा वि सीहे सीहगती चेव तुरिए तुरियगती चेव। से तेणट्ठेणं जाव पभू गेण्हित्तए। जइ णं भंते! देवे महिड्ढीए जाव पभू तमेव

Translated Sutra: ‘हे भगवन्‌ !’ यों कहकर भगवान्‌ गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन – नमस्कार किया। वन्दन – नमस्कार करके इस प्रकार कहा (पूछा) भगवन्‌ ! महाऋद्धिसम्पन्न, महाद्युतियुक्त यावत्‌ महाप्रभाव – शाली देव क्या पहले पुद्‌गल को फैंक कर, फिर उसके पीछे जाकर उसे पकड़ लेने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! वह समर्थ है। भगवन्‌
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-२ चमरोत्पात Hindi 176 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चमरे असुरिंदे असुरराया वज्जभयविप्पमुक्के, सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा महया अवमाणेणं अवमाणिए समाणे चमरचंचाए रायहानीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासणंसि ओहयमणसंकप्पे चिंतासोयसागरसंपविट्ठे करयलपल्हत्थमुहे अट्टज्झाणोवगए भूमिगयदिट्ठीए ज्झियाति। तए णं चमरं असुरिंदं असुररायं सामानियपरिसोववण्णया देवा ओहयमणसंकप्पं जाव ज्झियायमाणं पासंति, पासित्ता करयलपरिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता एवं वयासी– किं णं देवानुप्पिया! ओहयमणसंकप्पा चिंतासोयसागर-संपविट्ठा करयलपल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया

Translated Sutra: इसके पश्चात्‌ वज्र – (प्रहार) के भय से विमुक्त बना हुआ, देवेन्द्र देवराज शक्र के द्वारा महान्‌ अपमान से अपमानित हुआ, चिन्ता और शोक के समुद्र में प्रविष्ट असुरेन्द्र असुरराज चमर, मानसिक संकल्प नष्ट हो जाने से मुख को हथेली पर रखे, दृष्टि को भूमि में गड़ाए हुए आर्तध्यान करता हुआ, चमरचंचा नामक राजधानी में सुधर्मा
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-४ यान Hindi 185 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पभू णं भंते! वाउकाए एगं महं इत्थिरूवं वा पुरिसरूवं वा [आसरूवं वा?] हत्थिरूवं वा जाणरूवं वा जुग्गरूवं वा गिल्लिरूवं वा थिल्लिरूवं वा सीयरूवं वा संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे। वाउकाए णं विकुव्वमाणे एगं महं पडागासंठियं रूवं विकुव्वइ। पभू णं भंते! वाउकाए एगं महं पडागासंठियं रूवं विउव्वित्ता अनेगाइं जोयणाइं गमित्तए? हंता पभू। से भंते! किं आइड्ढीए गच्छइ? परिड्ढीए गच्छइ? गोयमा! आइड्ढीए गच्छइ, नो परिड्ढीए गच्छइ। से भंते! किं आयकम्मुणा गच्छइ? परकम्मुणा गच्छइ? गोयमा! आयकम्मुणा गच्छइ, नो परकम्मुणा गच्छइ। से भंते! किं आयप्पयोगेण गच्छइ? परप्पयोगेण गच्छइ? गोयमा!

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या वायुकाय एक बड़ा स्त्रीरूप, पुरुषरूप, हस्तिरूप, यानरूप, तथा युग्य, गिल्ली, थिल्ली, शिविका, स्यन्दमानिका, इन सबके रूपों की विकुर्वणा कर सकता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। किन्तु वायुकाय एक बड़ी पताका के आकार के रूप की विकुर्वणा कर सकता है। भगवन्‌ ! क्या वायुकाय एक बड़ी पताका के आकार की विकुर्वणा करके
Bhagavati भगवती सूत्र Ardha-Magadhi

शतक-३

उद्देशक-५ स्त्री Hindi 189 Sutra Ang-05 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले अपरियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए? नो इणट्ठे समट्ठे। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा बाहिरए पोग्गले परियाइत्ता पभू एगं महं इत्थीरूवं वा जाव संदमाणियरूवं वा विउव्वित्तए? हंता पभू। अनगारे णं भंते! भाविअप्पा केवइआइं पभू इत्थिरूवाइं विउव्वित्तए? गोयमा! से जहानामए–जुवइं जुवाणे हत्थेणं हत्थंसि गेण्हेज्जा, चक्कस्स वा नाभी अरगाउत्ता सिया, एवामेव अणवारे वि भाविअप्पा वेउव्वियससमुग्घाएणं समोहण्णइ जाव पभू णं गोयमा! अनगारे णं भाविअप्पा केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं बहूहिं इत्थि-रूवेहिं आइण्णं वितिकिण्णं

Translated Sutra: भगवन्‌ ! क्या भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण किए बिना एक बड़े स्त्रीरूप यावत्‌ स्यन्द – मानिका रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है ? भगवन्‌ ! भावितात्मा अनगार, बाहर के पुद्‌गलों को ग्रहण करके क्या एक बड़े स्त्रीरूप की यावत्‌ स्यन्दमानिका रूप की विकुर्वणा कर सकता है ? हाँ, गौतम ! वह वैसा कर सकता है। भगवन्‌
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