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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 243 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केइत्थऽसियविमाना अंजनधाऊसमा सभावेणं ।
अद्दयरिट्ठयवण्णा जत्थाऽऽवासा सुरगणाणं ॥ Translated Sutra: उसमें जो कृष्ण विमान है वो स्वभाव से अंजन धातु समान एवं मेघ और काक समान वर्णवाले होते हैं। जिसमें देवता बसते हैं। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Hindi | 249 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कल्लाणफलविवागा सच्छंदविउव्वियाभरणधारी ।
आभरण-वसनरहिया हवंति साभावियसरीरा ॥ Translated Sutra: शुभ कर्म के उदयवाले उन देव का शरीर स्वाभाविक तो आभूषण रहित होता है। लेकिन वो अपनी ईच्छा के मुताबिक विकुर्वित आभूषण धारण करते हैं। | |||||||||
Devendrastava | देवेन्द्रस्तव | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Hindi | 304 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भवनवइ वाणमंतर जोइसवासी विमानवासी य ।
सव्विड्ढीपरियारो अरहंते वंदया होंति ॥ Translated Sutra: सम्पूर्ण वैभव और ऋद्धि युक्त भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और विमानवासी देव भी अरहंतो को वंदन करनेवाले होते हैं। | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 85 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एगट्ठिभाग काऊण जोयणं तस्स भागछप्पन्नं ।
चंदपरिमंडलं खलु, अडयालीसा य सूरस्स ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૧ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 88 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अडयालीसं भागा विच्छिन्नं सूरमंडलं होइ ।
चउवीसं च कलाओ बाहल्लं तस्स बोद्धव्वं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૮૭ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 123 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अडयालसयसहस्सा बावीसं खलु भवे सहस्साइं ।
दो य सय पुक्खरद्धे तारागणकोडिकोडीणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૯ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 130 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छावट्ठिं पिडयाइं चंदाऽऽइच्चाण मनुयलोगम्मि ।
दो चंदा दो सूरा य होंति एक्केक्कए पिडए ॥ Translated Sutra: મનુષ્યલોકમાં ચંદ્રો અને સૂર્યોની ૬૬ પિટકો છે. એક – એક પિટકમાં બબ્બે ચંદ્ર અને સૂર્ય છે. નક્ષત્ર આદિની ૬૬ – પિટકો છે, એક – એક પિટકમાં ૫૬ – ૫૬ નક્ષત્રો છે. મહાગ્રહો ૧૭૬ છે. એ જ રીતે મનુષ્યલોકમાં ચંદ્ર – સૂર્યની ચાર – ચાર પંક્તિ છે, એક – એક પંક્તિમાં ૬૬ – ૬૬ નક્ષત્રો છે. ગ્રહોની પંક્તિ ૭૬ હોય છે. દરેકમાં ૬૬ – ૬૬ ગ્રહો | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 131 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छावट्ठिं पिडयाइं नक्खत्ताणं तु मनुयलोगम्मि ।
छप्पन्नं नक्खत्ता य होंति एक्केक्कए पिडए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૦ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
ज्योतिष्क अधिकार |
Gujarati | 132 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छावट्ठी पिडयाइं महग्गहाणं तु मनुयलोगम्मि ।
छावत्तरं गहसयं च होइ एक्केक्कए पिडए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૩૦ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Gujarati | 210 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वट्टं थ वलयगं पिव, तंसा सिंघाडयं पिव विमाना ।
चउरंसविमाना पुण अक्खाडयसंठिया भणिया ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૦૯ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Gujarati | 243 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केइत्थऽसियविमाना अंजनधाऊसमा सभावेणं ।
अद्दयरिट्ठयवण्णा जत्थाऽऽवासा सुरगणाणं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૪૧ | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
वैमानिक अधिकार |
Gujarati | 247 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अविउत्तमल्लदामा निम्मलगत्ता सुगंधनीसासा ।
सव्वे अवट्ठियवया सयंपभा अनिमिसऽच्छा य ॥ Translated Sutra: આ દેવતાઓ કદી ન મુરઝાનારી માળાવાળા, નિર્મળ દેહવાળા, સુગંધિત શ્વાસવાળા, અવ્યવસ્થિત વયવાળા, સ્વયં પ્રકાશમાન અને અનિમેષ આંખવાળા હોય છે. બધા દેવતા ૭૨ – કળામાં પંડિત હોય છે. ભવસંક્રમણની પ્રક્રિયામાં તેઓ પ્રતિપાત હોય છે. શુભ કર્મોના ઉદયવાળા તે દેવોનું શરીર સ્વાભાવિક તો આભૂષણ રહિત હોય છે, પણ પોતાની ઇચ્છાનુસાર વિકુર્વેલા | |||||||||
Devendrastava | દેવેન્દ્રસ્તવ | Ardha-Magadhi |
इसिप्रभापृथ्वि एवं सिद्धाधिकार |
Gujarati | 304 | Gatha | Painna-09 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भवनवइ वाणमंतर जोइसवासी विमानवासी य ।
सव्विड्ढीपरियारो अरहंते वंदया होंति ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦૩ | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं आदि |
Hindi | 1 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नमिऊण महावीरं तियसिंदनमंसियं महाभागं ।
गच्छायारं किंची उद्धरिमो सुयसमुद्दाओ ॥ Translated Sutra: देवेन्द्र से नमित महा ऐश्वर्यशाली, श्री महावीर देव को नमस्कार करके, श्रुतरूप समुद्र में से सुविहित मुनि समुदाय ने आचरण किए हुए गच्छाचार संक्षेप से उद्धरकर मैं कहूँगा। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
आचार्यस्वरूपं |
Hindi | 10 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सच्छंदयारिं दुस्सीलं, आरंभेसु पवत्तयं ।
पीढयाइपडीबद्धं, आउक्कायविहिंसगं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ९ | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
आचार्यस्वरूपं |
Hindi | 12 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छत्तीसगुणसमन्नागएण तेण वि अवस्स दायव्वा ।
परसक्खिया विसोही सुट्ठु वि ववहारकुसलेणं ॥ Translated Sutra: ३६ गुणयुक्त और अति व्यवहारकुशल आचार्य को भी परसाक्षीमें आलोचना रूप विशुद्धि करनी चाहिए। जैसे अति कुशल वैद्य अपनी व्याधि दूसरे वैद्य को बताते हैं, और उस वैद्य का कहा मानकर व्याधि के प्रतिकार समान कर्म का आचरण करते हैं, वैसे आलोचक सूरि भी अन्य के पास अपना पाप प्रकट करें और उन्होंने दिया हुआ तप विधिवत् अंगीकार | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
आचार्यस्वरूपं |
Hindi | 25 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विहिणा जो उ चोएइ, सुत्तं अत्थं च गाहए ।
सो धन्नो, सो य पुण्णो य, स बंधू मोक्खदायगो ॥ Translated Sutra: जो आचार्य शिष्यसमूह को करने लायक कार्य में प्रेरणा करते हैं और सूत्र एवं अर्थ पढ़ाते हैं, वह आचार्य धन्य है, पवित्र है, बन्धु है और मोक्षदायक है। वही आचार्य भव्यजीव के लिए चक्षु समान कहे हैं कि जो जिनेश्वर के बताए हुए अनुष्ठान यथार्थ रूप से बताते हैं। सूत्र – २५, २६ | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 43 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे अनहियपरमत्थे गोयमा! संजए भवे ।
तम्हा ते विवज्जेज्जा दोग्गईपंथदायगे ॥ Translated Sutra: संयम में व्यवहार करने के बाद भी परमार्थ को न जाननेवाले और दुर्गति के मार्ग को देनेवाले ऐसे अगीतार्थ को दूर से ही त्याग करे। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 76 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खज्जूरिपत्तमुंजेण जो पमज्जे उवस्सयं ।
नो दया तस्स जीवेसु, सम्मं जाणाहि गोयमा! ॥ Translated Sutra: खजुरी और मुँज के झाडु से जो साधु उपाश्रय को प्रमार्जते हैं, उस साधु को जीव पर बीलकुल दया नहीं है, ऐसा हे गौतम ! तू अच्छी तरह से समझ ले। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 78 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इच्छिज्जइ जत्थ सया बीयपएणावि फासुयं उदयं ।
आगमविहिणा निउणं, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥ Translated Sutra: और फिर जिस गच्छ में अपवाद मार्ग से भी हंमेशा प्राशुक – निर्जीव पानी सम्यक् तरह से आगम विधि से इच्छित होता है हे गौतम ! उसे गच्छ जानो। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 94 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] दढचारित्तं मुत्तं आइज्जं मयहरं च गुणरासिं ।
एक्को अज्झावेई, तमनायारं, न तं गच्छं ॥ Translated Sutra: दृढ़ चारित्रवाली, निर्लोभी, ग्राह्यवचना, गुण समुदायवाली ऐसी लेकिन महत्तरा साध्वी को जिस गच्छ में अकेला साधु पढ़ाता है, वो अनाचार है, गच्छ नहीं। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 95 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] घनगज्जिय-हयकुहियं-विज्जूदुग्गेज्झगूढहिययाओ ।
अज्जा अवारियाओ, इत्थीरज्जं, न तं गच्छं ॥ Translated Sutra: मेघ की गर्जना – अश्व हृदयगत वायु और विद्युत की तरह जैसे दुग्राह्य गूढ़ हृदयवाली आर्याएं जिस गच्छ में अटकाव रहित अकार्य करते हैं – | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 99 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कारणमकारणेणं अह कह वि मुनीण उट्ठहि कसाए ।
उदिए वि जत्थ रुंभहि खामिज्जहि जत्थ, तं गच्छं ॥ Translated Sutra: शायद किसी कारण से या बिना कारण मुनिओं के कषाय का उदय हो और उदय को रोके और तदनन्तर खमाए, उसे हे गौतम ! गच्छ मान। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
गुरुस्वरूपं |
Hindi | 104 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आरंभेसु पसत्ता सिद्धंतपरम्मुहा विसयगिद्धा ।
मोत्तुं मुनिणो गोयम! वसेज्ज मज्झे सुविहियाणं ॥ Translated Sutra: आरम्भ में आसक्त, सिद्धांत में कहे अनुष्ठान करने में पराङ्गमुख और विषय में लंपट ऐसे मुनिओं का संग छोड़कर हे गौतम ! सुविहित मुनि के समुदाय में वास करना चाहिए। | |||||||||
Gacchachar | गच्छाचार | Ardha-Magadhi |
आर्यास्वरूपं |
Hindi | 121 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गइ-विब्भमाइएहिं आगार विगार तह पगासिंति ।
जह वुड्ढाण वि मोहो समुईरइ, किं नु तरुणाणं? ॥ Translated Sutra: गति – विभ्रम आदि द्वारा स्वाभाविक आकार का विकार इस तरह प्रकट करे कि जिससे जवान को तो क्या लेकिन बुढ़ों को भी मोहोदय हो। | |||||||||
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मङ्गलं आदि |
Gujarati | 1 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नमिऊण महावीरं तियसिंदनमंसियं महाभागं ।
गच्छायारं किंची उद्धरिमो सुयसमुद्दाओ ॥ Translated Sutra: દેવેન્દ્રોથી નમિત, મહાભાગ, શ્રી મહાવીરને નમસ્કાર કરીને હું શ્રુતસમુદાયથી કંઈક ઉદ્ધરી ગચ્છાચાર કહીશ. | |||||||||
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आचार्यस्वरूपं |
Gujarati | 10 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सच्छंदयारिं दुस्सीलं, आरंभेसु पवत्तयं ।
पीढयाइपडीबद्धं, आउक्कायविहिंसगं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૯ | |||||||||
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आचार्यस्वरूपं |
Gujarati | 12 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] छत्तीसगुणसमन्नागएण तेण वि अवस्स दायव्वा ।
परसक्खिया विसोही सुट्ठु वि ववहारकुसलेणं ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૨. છત્રીશ ગુણયુક્ત, અતિશય વ્યવહારકુશલ આચાર્યએ પણ બીજાની સાક્ષીએ અવશ્ય આલોચનારૂપી વિશુદ્ધિ કરવી. સૂત્ર– ૧૩. જેમ અતિ કુશળ વૈદ્ય, બીજાને પોતાની વ્યાધિ કહે છે, અને વૈદ્યે કહેલું સાંભળીને તે કર્મ આચરે છે. સૂત્ર સંદર્ભ– ૧૨, ૧૩ | |||||||||
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आचार्यस्वरूपं |
Gujarati | 25 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विहिणा जो उ चोएइ, सुत्तं अत्थं च गाहए ।
सो धन्नो, सो य पुण्णो य, स बंधू मोक्खदायगो ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૨૫. જે આચાર્ય વિધિપૂર્વક પ્રેરણા કરે, સૂત્ર અને અર્થ ભણાવે તે ધન્ય છે, તે પવિત્ર છે, બંધુ છે, તેમજ મોક્ષદાયક છે, સૂત્ર– ૨૬. તે જ આચાર્ય ભવ્ય જીવોને ચક્ષુભૂત કહેલ છે, તે જિનેશ્વરે બતાવેલ અનુષ્ઠાન પણ યથાર્થ બતાવે છે. સૂત્ર– ૨૭. જે આચાર્ય સમ્યક્ જિનમત પ્રકાશે છે, તે તીર્થંકર સમાન છે, જે આજ્ઞાનું ઉલ્લંઘન કરે | |||||||||
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गुरुस्वरूपं |
Gujarati | 43 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे अनहियपरमत्थे गोयमा! संजए भवे ।
तम्हा ते विवज्जेज्जा दोग्गईपंथदायगे ॥ Translated Sutra: સંયત હોવા છતાં હે ગૌતમ ! પરમાર્થને ન જાણનાર અને દુર્ગતિપંથદાયક એવા અગીતાર્થને દૂરથી જ તજવા. | |||||||||
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गुरुस्वरूपं |
Gujarati | 76 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खज्जूरिपत्तमुंजेण जो पमज्जे उवस्सयं ।
नो दया तस्स जीवेसु, सम्मं जाणाहि गोयमा! ॥ Translated Sutra: ખજૂરીપત્ર અને મુંજથી (સાવરણીથી) જે ઉપાશ્રયને સાફ કરે છે, તેને જીવોની કોઈ દયા નથી તેમ હે ગૌતમ ! તે તું સારી રીતે જાણ. | |||||||||
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गुरुस्वरूपं |
Gujarati | 78 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इच्छिज्जइ जत्थ सया बीयपएणावि फासुयं उदयं ।
आगमविहिणा निउणं, गोयम! गच्छं तयं भणियं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૭ | |||||||||
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गुरुस्वरूपं |
Gujarati | 97 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जत्थ मुनीण कसाए जगडिज्जंता वि परकसाएहिं ।
निच्छंति समुट्ठेउं सुनिविट्ठो पंगुलो चेव ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૯૭. સુખે બેઠેલા પંગુ માણસની જેમ જે મુનિના કષાયો બીજાના કષાયો વડે પણ ઉદ્દીપન ન થાય તેને ગચ્છ જાણવો. સૂત્ર– ૯૮. ધર્મના અંતરાયથી ભય પામેલા અને સંસારમાં રહેવાથી ભય પામેલા મુનિઓ, મુનિના ક્રોધાદિ કષાય ન ઉદીરે તે ગચ્છ જાણવો. સૂત્ર– ૯૯. કારણો કે કારણ વિના મુનિને કષાયનો ઉદય થાય, તે ઉદયને રોકે અને પછી ખમાવે, હે ગૌતમ | |||||||||
Gacchachar | ગચ્છાચાર | Ardha-Magadhi |
आर्यास्वरूपं |
Gujarati | 118 | Gatha | Painna-07A | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जो जत्तो वा जाओ नाऽऽलोयइ दिवस पक्खियं वा वि ।
सच्छंदा समणीओ मयहरियाए न ठायंति ॥ Translated Sutra: જે જેટલા થયા હોય તેટલા દૈવસિક કે પાક્ષિક અતિચાર ન આલોચે, મહત્તરિકાની આજ્ઞામાં ન રહે. નિમિત્તાદિનો પ્રયોગ કરે, ગ્લાન – શૈક્ષાદિને વસ્ત્રાદિથી પ્રસન્ન કરે, અનાગાઢને આગાઢ કરે, આગાઢને અનાગાઢ કરે. અજયણાથી ગમન કરે, (તેમજ) પ્રાહુણા સાધ્વીનું વાત્સલ્ય ન કરે, વિવિધ રંગી વસ્ત્રો વાપરે, વિચિત્ર એવા રજોહરણ વાપરે. ગતિ | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 89 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नाम जनवए होत्था। तत्थ णं सावत्थी नाम नयरी होत्था। तत्थ णं रुप्पी कुणालाहिवई नाम राया होत्था। तस्स णं रुप्पिस्स धूया धारिणीए देवीए अत्तया सुबाहू नाम दारिया होत्था–सुकुमालपाणिपाया रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था।
तीसे णं सुबाहूए दारियाए अन्नया चाउम्मासिय-मज्जणए जाए यावि होत्था।
तए णं ते रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहूए दारियाए चाउम्मासिय-मज्जणयं उवट्ठियं जाणइ, जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! सुबाहूए दारियाए कल्लं चाउम्मासिय-मज्जणए भविस्सइ, Translated Sutra: उस काल और उस समय में कुणाल नामक जनपद था। उस जनपद में श्रावस्ती नामक नगरी थी। उसमें कुणाल देश का अधिपति रुक्मि नामक राजा था। रुक्मि राजा की पुत्री और धारिणी – देवी की कूंख से जन्मी सुबाहु नामक कन्या थी। उसके हाथ – पैर आदि सब अवयव सुन्दर थे। वय, रूप, यौवन में और लावण्य में उत्कृष्ट थी और उत्कृष्ट शरीर वाली थी। | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 90 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कासी नामं जनवए होत्था। तत्थ णं वाणारसी नामं नयरी होत्था। तत्थ णं संखे नामं कासीराया होत्था।
तए णं तीसे मल्लीए विदेहवररायकन्नाए अन्नया कयाइं तस्स दिव्वस्स कुंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए यावि होत्था।
तए णं से कुंभए राया सुवण्णगारसेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–तुब्भे णं देवानुप्पिया! इमस्स दिव्वस्स कुंडजुयलस्स संधिं संघाडेह, [संघाडेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह?] ।
तए णं सा सुवण्णगारसेणी एयमट्ठं तहत्ति पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तं दिव्वं कुंडलजुयलं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सुवण्णगारभिसियाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुवण्णगारभिसियासु Translated Sutra: उस काल और उस समय में काशी नामक जनपद था। उस जनपद में वाराणसी नामक नगरी थी। उसमें काशीराज शंख नामक राजा था। एक बार किसी समय विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली के उस दिव्य कुण्डल – युगल का जोड़ खुल गया। तब कुम्भ राजा ने सुवर्णकार की श्रेणी को बुलाया और कहा – ‘देवानुप्रियो ! इस दिव्य कुण्डलयुगल के जोड़ को साँध दो।’ तत्पश्चात् | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 91 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुरु नामं जनवए होत्था। तत्थ णं हत्थिणाउरे नामं नयरे होत्था। तत्थ णं अदीनसत्तू नामं राया होत्था जाव रज्जं पसासेमाणे विहरइ।
तत्थ णं मिहिलाए तस्स णं कुंभगस्स रन्नो पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए मल्लीए अनुमग्गजायए मल्लदिन्ने नामं कुमारे सुकुमालपाणिपाए जाव जुवराया यावि होत्था।
तए णं मल्लदिन्ने कुमारे अन्नया कयाइ कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–गच्छह णं तुब्भे मम पमदवणंसि एगं महं चित्तसभं करेह–अनेगखंभसयसन्निविट्ठं एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। तेवि तहेव पच्चप्पिणंति।
तए णं से मल्लदिन्ने कुमारे चित्तगर-सेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता Translated Sutra: उस काल और उस समय में कुरु नामक जनपद था। उसमें हस्तिनापुर नगर था। अदीनशत्रु नामक वहाँ राजा था। यावत् वह विचरता था। उस मिथिला नगरी में कुम्भ राजा का पुत्र, प्रभावती महारानी का आत्मज और मल्ली कुमारी का अनुज मल्लदिन्न नामक कुमार था। वह युवराज था। किसी समय एक बार मल्लदिन्न कुमार ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 92 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पंचाले जनवए। कंपिल्लपुरे नयरे। जियसत्तू नामं राया पंचालाहिवई। तस्स णं जियसत्तुस्स धारिणीपामोक्खं देवीसहस्सं ओरोहे होत्था।
तत्थ णं मिहिलाए चोक्खा नामं परिव्वाइया–रिउव्वेय-यज्जुव्वेद-सामवेद-अहव्वणवेद-इतिहास-पंचमाणं निघंटुछट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा जाव बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठिया यावि होत्था।
तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया मिहिलाए बहूणं राईसर जाव सत्थवाहपभिईणं पुरओ दानधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणी पण्णवेमाणी परूवेमाणी उवदंसेमाणी विहरइ।
तए णं सा चोक्खा अन्नया कयाइं तिदंडं च कुंडियं च Translated Sutra: उस काल और उस समय में पंचाल नामक जनपद में काम्पिल्यपुर नामक नगर था। वहाँ जितशत्रु नामक राजा था, वही पंचाल देश का अधिपति था। उस जितशत्रु राजा के अन्तःपुर में एक हजार रानियाँ थीं। मिथिला नगरी में चोक्खा नामक परिव्राजिका रहती थी। मिथिला नगरी में बहुत – से राजा, ईश्वर यावत् सार्थवाह आदि के सामने दानधर्म, शौचधर्म, | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कन्ध २ वर्ग-१ चमरेन्द्र अग्रमहिषी अध्ययन-१ काली |
Hindi | 220 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था–वण्णओ।
तस्स णं रायगिहस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं गुणसिलए नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मा नामं थेरा भगवंतो जाइसंपण्णा कुलसंपण्णा जाव चोद्दसपुव्वी चउनाणोवगया पंचहिं अनगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडा पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइज्ज-माणा सुहंसुहेणं विहरमाणा जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति। परिसा निग्गया। धम्मो Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर था। (वर्णन) उस राजगृह के बाहर ईशान कोण में गुणशील नामक चैत्य था। (वर्णन समझ लेना) उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्मा नामक स्थविर उच्चजाति से सम्पन्न, कुल से सम्पन्न यावत् चौदह पूर्वों के वेत्ता और चार ज्ञानों से युक्त थे। वे पाँच सौ अनगारों से परिवृत्त | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 12 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी अन्नदा कदाइ तंसि तारिसगंसि–छक्कट्ठग-लट्ठमट्ठ-संठिय-खंभुग्गय-पवरवर-सालभंजिय-उज्जलमणिकनगरयणथूभियविडंकजालद्ध चंदनिज्जूहंतरकणयालिचंदसालियावि-भत्तिकलिए सरसच्छधाऊबलवण्णरइए बाहिरओ दूमिय-घट्ठ-मट्ठे अब्भिंतरओ पसत्त-सुविलिहिय-चित्तकम्मे नानाविह-पंचवण्ण-मणिरयण-कोट्ठिमतले पउमलया-फुल्लवल्लि-वरपुप्फजाइ-उल्लोय-चित्तिय-तले वंदन-वरकनगकलससुणिम्मिय-पडिपूजिय-सरसपउम-सोहंतदारभाए पयरग-लंबंत-मणिमुत्त-दाम-सुविरइयदारसोहे सुगंध-वरकुसुम-मउय-पम्हलसयणोवयार-मणहिययनिव्वुइयरे कप्पूर-लवंग- मलय-चंदन- कालागरु-पवर- कुंदुरुक्क-तुरुक्क- धूव-डज्झंत- सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धुयाभिरामे Translated Sutra: वह धारिणी देवी किसी समय अपने उत्तम भवन में शय्या पर सो रही थी। वह भवन कैसा था ? उसके बाह्य आलन्दक या द्वार पर तथा मनोज्ञ, चिकने, सुंदर आकार वाले और ऊंचे खंभों पर अतीव उत्तम पुतलियाँ बनी हुई थीं। उज्ज्वल मणियों, कनक और कर्केतन आदि रत्नों के शिखर, कपोच – पारी, गवाक्ष, अर्ध – चंद्राकार सोपान, निर्यूहक करकाली तथा चन्द्रमालिका | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 13 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया धारिणीए देवीए अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण-हियए धाराहयनीवसुरभिकुसुम-चुंचुमालइयतणू ऊसविय-रोमकूवे तं सुमिणं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता ईहं पविसइ, पविसित्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुव्वएणं बुद्धिविण्णाणेणं तस्स सुमिणस्स अत्थोग्गहं करेइ, करेत्ता धारिणिं देविं ताहिं जाव हिययपल्हायणिज्जाहिं मिय-महुर-रिभिय-गंभीर-सस्सिरीयाहिं वग्गूहिं अनुवूहमाणे-अनुवूहमाणे एवं वयासी–उराले णं तुमे देवानुप्पिए! सुमिणे दिट्ठे। कल्लाणे णं तुमे देवानुप्पिए! सुमिणे दिट्ठे। सिवे धन्ने मंगल्ले सस्सिरीए Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रेणिक राजा धारिणी देवी से इस अर्थ को सूनकर तथा हृदय में धारण करके हर्षित हुआ, मेघ की धाराओं से आहत कदम्बवृक्ष के सुगंधित पुष्प के समान उसका शरीर पुलकित हो उठा – उसने स्वप्न का अवग्रहण किया। विशेष अर्थ के विचार रूप ईहा में प्रवेश किया। अपने स्वाभाविक मतिपूर्वक बुद्धिविज्ञान से उस स्वप्न के फल | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 14 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणी हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयल-परिग्गहियं-सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी– एवमेयं देवानुप्पिया! तहमेयं देवानुप्पिया! अवितहमेयं देवानुप्पिया! असंदिद्धमेयं देवानुप्पिया! इच्छियमेयं देवानुप्पिया! पडिच्छियमेयं देवानुप्पिया! इच्छियपडिच्छियमेयं देवानुप्पिया! सच्चे णं एसमट्ठे जं तुब्भे वयह त्ति कट्टु तं सुमिणं सम्मं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता सेणिएणं रन्ना अब्भणुण्णाया समाणी नाना-मणिकनगरयण-भत्तिचित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ, Translated Sutra: तत्पश्चात् वह धारिणी देवी श्रेणिक राजा के इस प्रकार कहने पर हर्षित एवं सन्तुष्ट हुई। उसका हृदय आनन्दित हो गया। वह दोनों हाथ जोड़कर आवर्त करके और मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार बोली – देवानु – प्रिय ! आपने जो कहा है सो ऐसा ही है। आपका कथन सत्य है। संशय रहित है। देवानुप्रिय ! मुझे इष्ट है, अत्यन्त इष्ट है, और इष्ट | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 15 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया पच्चूसकालसमयंसि कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! बाहिरियं उवट्ठाणसालं अज्ज सविसेसं परमरम्मं गंधोदगसित्त-सुइय-सम्मज्जिओवलित्तं पंचवण्ण-सरससुरभि-मुक्क-पुप्फपुं-जोवयारकलियं कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्क-धूव-डज्झंत-सुरभि-मघमघेंत-गंधुद्धयाभिरामं सुगंधवर गंधियं गंधवट्टिभूयं करेह, कारवेह य, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।
तए णं ते कोडुंबियपुरिसा सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणा हट्ठतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरि-सवस-विसप्पमाणहियया तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति।
तए णं से सेणिए राया कल्लं Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने प्रभात काल के समय कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और इस प्रकार कहा – हे देवानुप्रिय ! आज बाहर की उपस्थानशाला को शीघ्र ही विशेष रूप से परम रमणीय, गंधोदक से सिंचित, साफ – सूथरी, लीपी हुई, पाँच वर्णों के सरस सुगंधित एवं बिखरे हुए फूलों के समूह रूप उपचार से युक्त, कालागुरु, कुंदुरुक्क, तुरुष्क | |||||||||
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श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 17 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] वासुदेवमायरो वा वासुदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अन्नयरे सत्त महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति। बलदेवमायरो वा बलदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अन्नयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता णं पडिबुज्झंति। मंडलियमायरो वा मंडलियंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोद्दसण्हं महासुमिणाणं अन्नयरं महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुज्झंति।
इमे य सामी! धारिणीए देवीए एगे महासुमिणे दिट्ठे, तं उराले णं सामी! धारिणीए देवीए सुमिणे दिट्ठे जाव आरोग्ग-तुट्ठि-दीहाउय-कल्लाण-मंगल्लकारए णं सामी! धारिणीए देवीए सुमिणे दिट्ठे। अत्थलाभो सामी! Translated Sutra: जब वासुदेव गर्भ में आते हैं तो वासुदेव की माता इन चौदह महास्वप्नों में किन्हीं भी सात महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं। जब बलदेव गर्भ में आते हैं तो बलदेव की माता इन चौदह महास्वप्नों में से किन्हीं चार महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं। जब मांडलिक राजा गर्भ में आता है तो मांडलिक राजा की माता इन चौदह महास्वप्नों | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 18 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे धारिणीए देवीए दोसु मासेसु वीइक्कंतेसु तइए मासे वट्टमाणे तस्स गब्भस्स दोहलकालसमयंसि अयमेयारूवे अकालमेहेसु दोहले पाउब्भवित्था– धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासिं मानुस्सए जम्मजीवियफले, जाओ णं मेहेसु अब्भुग्गएसु अब्भुज्जएसु अब्भुण्णएसु अब्भुट्ठिएसु सगज्जिएसु सविज्जएसु सफुसिएसु सथणिएसु धंतधोय-रुप्पपट्ट-अंक-संख-चंद-कुंद-सालिपिट्ठरासिसमप्पभेसु चिकुर-हरियाल-भेय-चंपग-सण-कोरंट-सरिसव-पउमरयसमप्पभेसु लक्खा-रस-सरस- रत्त-किंसुय- Translated Sutra: तत्पश्चात् दो मास व्यतीत हो जाने पर जब तीसरा मास चल रहा था तब उस गर्भ के दोहदकाल के अवसर पर धारिणी देवी को इस प्रकार का अकाल – मेघ का दोहद उत्पन्न हुआ – जो माताएं अपने अकाल – मेघ के दोहद को पूर्ण करती हैं, वे माताएं धन्य हैं, वे पुण्यवती हैं, वे कृतार्थ हैं। उन्होंने पूर्वजन्म में पुण्य का उपार्जन किया है, वे कृतलक्षण | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 20 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सेणिए राया तासिं अंगपडिचारियाणं अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म तहेव संभंते समाणे सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धारिणिं देविं ओलुग्गं ओलुग्गसरीरं जाव अट्टज्झाणोवगयं ज्झि-यायमाणिं पासइ, पासित्ता एवं वयासी–किण्णं तुमं देवानुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा जाव अट्टज्झाणोवगया ज्झियायसि?
तए णं सा धारिणी देवी सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ता समाणी नो आढाइ नो परियाणइ जाव तुसिणीया संचिट्ठइ।
तए णं से सेणिए राया धारिणिं देविं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–किण्णं तुमं देवानुप्पिए! ओलुग्गा ओलुग्ग-सरीरा जाव अट्टज्झाणोवगया ज्झियायसि?
तए Translated Sutra: तब श्रेणिक राजा उन अंगपरिचारिकाओं से यह सूनकर, मन में धारण करके, उसी प्रकार व्याकुल होता हुआ, त्वरा के साथ एवं अत्यन्त शीघ्रता से जहाँ धारिणी देवी थी, वहाँ आता है। आकर धारिणी देवी को जीर्ण – जैसी, जीर्ण शरीर वाली यावत् आर्त्तध्यान से युक्त – देखता है। इस प्रकार कहता है – ‘देवानुप्रिय ! तुम जीर्ण जैसी, जीर्ण शरीर | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 21 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से अभए कुमारे सक्कारिए सम्मानिए पडिविसज्जिए समाणे सेणियस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सए भवणेने, तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासने निसण्णे।
तए णं तस्स अभयस्स कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–नो खलु सक्का मानुस्सएणं उवाएणं मम चुल्लमाउयाए धारिणीए देवीए अकालदोहलमनोरहसंपत्तिं करित्तए, नन्नत्थ दिव्वेणं उवाएणं। अत्थि णं मज्झ सोहम्मकप्पवासी पुव्वसंगइए देवे महिड्ढीए महज्जुइए महापरक्कमे महाजसे महब्बले महानुभावे महासोक्खे।
तं सेयं खलु ममं पोसहसालाए पोसहियस्स बंभचारिस्स उम्मुक्कमणिसुवण्णस्स Translated Sutra: तब (श्रेणिक राजा द्वारा) सत्कारित एवं सन्मानित होकर बिदा किया हुआ अभयकुमार श्रेणिक राजा के पास से नीकलता है। नीकल कर जहाँ अपना भवन है, वहाँ आता है। आकर वह सिंहासन पर बैठ गया। तत्पश्चात् अभयकुमार को इस प्रकार यह आध्यात्मिक विचार, चिन्तन, प्रार्थित या मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ – दिव्य अर्थात् दैवी संबंधी उपाय | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 22 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे दसद्धवण्णाइं सखिंखिणियाइं पवर वत्थाइं परिहिए अभयं कुमारं एवं वयासी–अहं णं देवानुप्पिया! पुव्वसंगइए सोहम्मकप्पवासी महिड्ढीए जं णं तुमं पोसहसालाए अट्ठमभत्तं पगिण्हित्ता णं ममं मनसीकरेमाणे-मनसीकरेमाणे चिट्ठसि, तं एस णं देवानुप्पिया! अहं इहं हव्वमागए। संदिसाहि णं देवानुप्पिया! किं करेमि? किं दल-यामि? किं पयच्छामि? किं वा ते हियइच्छियं?
तए णं से अभए कुमारे तं पुव्वसंगइयं देवं अंतलिक्खपडिवण्णं पासित्ता हट्ठतुट्ठे पोसहं पारेइ, पारेत्ता करयल परि-ग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! मम चुल्ल-माउयाए Translated Sutra: तत्पश्चात् दस के आधे अर्थात् पाँच वर्ण वाले तथा घूँघरू वाले उत्तम वस्त्रों को धारण किये हुए वह देव आकाश में स्थित होकर बोला – ‘हे देवानुप्रिय ! मैं तुम्हारा पूर्वभव का मित्र सौधर्मकल्पवासी महान् ऋद्धि का धारक देव हूँ।’ क्योंकि तुम पौषधशाला में अष्टमभक्त तप ग्रहण करके मुझे मन में रखकर स्थित हो अर्थात् | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 25 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाण य राइंदियाणं वीइक्कंताणं अद्धरत्तकालसमयंसि सुकुमालपाणिपायं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया।
तए णं ताओ अंगपडियारियाओ धारिणिं देविं नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयायं पासंति, पासित्ता सिग्घं तुरियं चवलं वेइयं जेणेव सेणिए राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावेत्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! धारिणी देवी नवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सव्वंगसुंदरं दारगं पयाया। तं णं अम्हे Translated Sutra: तत्पश्चात् धारिणी देवी ने नौ मास परिपूर्ण होने पर और साढ़े सात रात्रि – दिवस बीत जाने पर, अर्धरात्रि के समय, अत्यन्त कोमल हाथ – पैर वाले यावत् परिपूर्ण इन्द्रियों से युक्त शरीर वाले, लक्षणों और व्यंजनों से सम्पन्न, मान – उन्मान – प्रमाण से युक्त एवं सर्वांगसुन्दर शिशु का प्रसव किया। तत्पश्चात् दासियों ने | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Hindi | 30 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु-महया जणसद्दे इ वा जाव बहवे उग्गा भोगा० रायगिहस्स नगरस्स मज्झंमज्झेणं एगदिसिं एगाभिमुहा निग्गच्छंति। इमं च णं मेहे कुमारे उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं जाव मानुस्सए कामभोगे भुंजमाणे रायमग्गं च ओलोएमाणे-ओलोएमाणे एवं च णं विहरइ।
तए णं से मेहे कुमारे ते बहवे उग्गे भोगे जाव एगदिसाभिमुहे निग्गच्छमाणे पासइ, पासित्ता कंचुइज्जपुरिसं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–किण्णं भो देवानुप्पिया! अज्ज रायगिहे नगरे इंदमहे इ वा खंदमहे इ वा एवं–रुद्द-सिव-वेसमण-नाग-जक्ख-भूय-तलाय-रुक्ख-चेइय-पव्वयमहे Translated Sutra: तत्पश्चात् राजगृह नगर में शृंगाटक – सिंघाड़े के आकार के मार्ग, तिराहे, चौराहे, चत्वर, चतुर्मुख पथ, महापथ आदि में बहुत से लोगों का शोर होने लगा। यावत् बहुतेरे उग्रकुल के, भोगकुल के तथा अन्य सभी लोग यावत् राजगृहनगर के मध्यभागमें होकर एक ही दिशामें, एक ही ओर मुख कर नीकलने लगे उस समय मेघकुमार अपने प्रासाद पर था। |