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Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 88 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं चुल्लहिमवंत-सिहरीसु वासहरपव्वएसु दो महद्दहा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नंणातिवट्टंति आयाम-विक्खंभ-उव्वेह-संठाण-परिणाहेणं, तं जहा–पउमद्दहे चेव, पोंडरीयद्दहे चेव। तत्थ णं दो देवयाओ महिड्ढियाओ जाव पलिओवमट्ठितीयाओ परिवसंति तं –सिरी चेव, लच्छी चेव। एवं–महाहिमवंत-रुप्पीसु वासहरपव्वएसु दो महद्दहा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला जाव तं जहा–महापउमद्दहे चेव, महापोंडरीयद्दहे चेव। तत्थ णं दो देवयाओ हिरिच्चेव, बुद्धिच्चेव। एवं–निसढ-नीलवंतेसु तिगिंछद्दहे चेव, केसरिद्दहे चेव। तत्थ णं दो देवताओ धिती

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में लघुहिमवान्‌ और शिखरी वर्षधर पर्वतों में दो महान्‌ द्रह हैं जो अति – सम, तुल्य, अविशेष, विचित्रतारहित और लम्बाई – चौड़ाई – गहराई, संस्थान एवं परिधि में एक दूसरे का अतिक्रमण नहीं करने वाले हैं, उनके नाम। पद्म द्रह और पुण्डरीक द्रह। वहाँ महाऋद्धि वाली – यावत्‌
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 89 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवम-कोडाकोडीओ काले होत्था। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवम-कोडाकोडीओ काले पन्नत्ते। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमदूसमाए समाए दो सागरोवम-कोडाकोडीओ काले भविस्सति। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए मनुया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था, दोन्नि य पलिओवमाइं परमाउं पालइत्था। एवमिमीसे ओसप्पिणीए जाव पालइत्था। एवमागमेस्साए उस्सप्पिणीए जाव पालयिस्संति। जंबुद्दीवे दीवे

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी के सुषमदुःषम नामक आरे का काल दो क्रोड़ा क्रोड़ी सागरोपम का था। इसी तरह इस अवसर्पिणी के लिए भी समझना चाहिए। इसी तरह आगामी उत्सर्पिणी के यावत्‌ – सुषमदुःषम आरे का काल दो क्रोड़ा क्रोड़ी सागरोपम होगा। जम्बूद्वीपवर्ती भरत – ऐरवत क्षेत्र में गत उत्सर्पिणी
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 90 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे–दो चंदा पभासिंसु वा पभासंति वा पभासिस्संति वा। दो सूरिआ तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा। दो कित्तियाओ, दो रोहिणीओ, दो मग्गसिराओ, दो अद्दाओ, दो पुणव्वसू, दो पूसा, दो अस्सलेसाओ, दो महाओ, दो पुव्वाफग्गुणीओ, दो उत्तराफग्गुणीओ, दो हत्था, दो चित्ताओ, दो साईओ, दो विसाहाओ, दो अनुराहा ओ, दो जेट्ठाओ, दो मूला, दो पुव्वासाढाओ, दो उत्तरासाढाओ, दो अभिईओ, दो सवना, दो धणिट्ठाओ, दो सयभिसया, दो पुव्वाभद्दवयाओ, दो उत्तराभद्दवयाओ, दो रेवतीओ दो अस्सिणीओ, दो भरणीओ [जोयं जोएंसु वा जोएंति वा जोइस्संति वा?] ।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा प्रकाशित होते थे, होते हैं और होते रहेंगे। दो सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपते रहेंगे। दो कृतिका, दो रोहिणी, दो मृगशिर, दो आर्द्रा इस प्रकार निम्न गाथाओं के अनुसार सब दो – दो जान लेने चाहिए।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 95 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स वेइया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। लवने णं समुद्दे दो जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते। लवणस्स णं समुद्दस्स वेइया दो गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला जाव तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव। एवं–जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव दोसु वासेसु मनुया छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव, नवरं–कूडसामली चेव, धायईरुक्खे चेव। देवा–गरुले चेव वेणुदेवे, सुदंसणे चेव।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप की वेदिका दो कोस ऊंची है। लवण समुद्र चक्रवाल विष्कम्भ से दो लाख योजन का है। लवण समुद्र की वेदिका दो कोस की ऊंची है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-२

उद्देशक-३ Hindi 96 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] धायइसंडे दीवे पच्चत्थिमद्धे णं मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर-दाहिणे णं दो वासा पन्नत्ता–बहुसमतुल्ला जाव तं जहा –भरहे चेव, एरवए चेव। एवं–जहा जंबुद्दीवे तहा एत्थवि भाणियव्वं जाव छव्विहंपि कालं पच्चणुभवमाणा विहरंति, तं जहा–भरहे चेव, एरवए चेव, नवरं–कूडसामली चेव, महाधायईरुक्खे चेव। देवा–गरुले चेव वेणुदेवे, पियदंसणे चेव। धायइसंडे णं दीवे दो भरहाइं, दो एरवयाइं, दो हेमवयाइं, दो हेरण्णवयाइं, दो हरिवासाइं, दो रम्मगवासाइं, दो पुव्वविदेहाइं, दो अवरविदेहाइं, दो देवकुराओ, दो देवकुरुमहद्दुमा, दो देवकुरुमहद्दुमवासी देवा, दो उत्तरकुराओ, दो उत्तरकुरुमह-द्दुमा, दो उत्तरकुरुमहद्दुमवासी

Translated Sutra: पूर्वार्ध धातकीखंडवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर और दक्षिण में दो क्षेत्र कहे गए हैं जो अति समान हैं – यावत्‌ उनके नाम – भरत और ऐरवत। पहले जम्बूद्वीप के अधिकार में कहा वैसे यहाँ भी कहना चाहिए यावत्‌ – दो क्षेत्र में मनुष्य छः प्रकार के काल का अनुभव करते हुए रहते हैं, उनके नाम – भरत और ऐरवत। विशेषता यह है कि वहाँ कूटशाल्मली
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-१ Hindi 150 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तओ तित्था पन्नत्ता, तं जहा–मागहे, वरदामे, पभासे। एवं–एरवएवि। जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे एगमेगे चक्कवट्टिविजये तओ तित्था पन्नत्ता, तं जहा–मागहे, वरदामे, पभासे। एवं–धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धेवि पच्चत्थिमद्धेवि। पुक्खरवरदीवद्धे पुरत्थिमद्धेवि, पच्चत्थिमद्धेवि।

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती भरतक्षेत्र में तीन तीर्थ कहे गए हैं, यथा – मागध, वरदाम और प्रभास। इसी तरह ऐरवत क्षेत्र में भी समझने चाहिए। जम्बूद्वीपवर्ती महाविदेह क्षेत्र में एक एक चक्रवर्ती विजय में तीन तीर्थ कहे गए हैं, यथा – मागध, वरदाम और प्रभास। इसी तरह धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में तथा अर्धपुष्करवरद्वीप
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-१ Hindi 151 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीओ काले होत्था। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमाए समाए तिन्नि सागरोवमकोडाकोडीओ काले पन्नत्ते। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमिस्साए उस्सप्पिणीए सुसमाए समाए तिन्नि सागरोवम-कोडाकोडीओ काले भविस्सति। एवं– धायइसंडे पुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धे वि। एवं– पुक्खरवरदीवद्धे पुरत्थिमद्धे पच्चत्थिमद्धेवि कालो भाणियव्वो। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए मनुया तिन्नि गाउयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था, तिन्नि

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी काल के सुषम नामक आरक का काल तीन क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था। इसी तरह इस अवसर्पिणी काल के सुरमआरक का काल इतना ही है। आगामी उत्स – र्पिणी के सुषम आरक का काल इतना ही होगा। इसी तरह धातकीखण्ड के पूर्वार्ध में और पश्चिमार्ध में भी इसी तरह अर्ध पुष्करवरद्वीप
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-१ Hindi 156 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ लोगे समा सपक्खिं सपडिदिसिं पन्नत्ता, तं जहा–अप्पइट्ठाणे नरए, जंबुद्दीवे दीवे, सव्वट्ठसिद्धे विमाने। [सूत्र] तओ लोगे समा सपक्खिं सपडिदिसिं पन्नत्ता, तं जहा– सीमंतए णं नरए, समयक्खेत्ते, ईसीपब्भारा पुढवी।

Translated Sutra:
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-३ Hindi 196 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे तओ कम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–भरहे, एरवए, महाविदेहे। एवं–धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धे जाव पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्धे।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में तीन कर्मभूमियाँ कही गई हैं, भरत, एरवत और महाविदेह। इसी प्रकार धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में यावत्‌ अर्धपुष्करवरद्वीप के पश्चिमार्द्ध में भी तीन तीन कर्मभूमियाँ कही गई हैं।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 211 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– हेमवते, हरिवासे, देवकुरा जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा– उत्तरकुरा, रम्मगवासे, हेरण्णवए। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ वासा पन्नत्ता, तं जहा– भरहे, हेमवए, हरिवासे। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ वासा पन्नत्ता, तं जहा– रम्मगवासे, हेरण्णवते, एरवए। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तओ वासहरपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, णिसढे। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तओ वासहरपव्वत्ता

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में तीन अकर्मभूमियाँ कही गई हैं, यथा – हेमवत, हरिवास और देवकुरु। जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में तीन अकर्मभूमियाँ कही गई हैं, यथा – उत्तरकुरु, रम्यक्‌वास और हिरण्यवत। जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में तीन क्षेत्र कहे गए हैं, यथा – भरत, हेमवत और हरिवास।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-३

उद्देशक-४ Hindi 219 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तओ महतिमहालया पन्नत्ता, तं जहा– जंबुद्दीवए मंदरे मंदरेसु, सयंभूरमणे समुद्दे समुद्देसु, बंभलोए कप्पे कप्पेसु।

Translated Sutra: तीन बड़े से बड़े कहे गए हैं, यथा – सब मेरु पर्वतों में जम्बूद्वीप का मेरु पर्वत, समुद्रों में स्वयंभूरमण समुद्र, कल्पों में ब्रह्मलोक कल्प।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-१ Hindi 291 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि पन्नत्तीओ अंगबाहिरियाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–चंदपन्नत्ती, सूरपन्नत्ती, जंबुद्दीवपन्नत्ती, दीवसागरपन्नत्ती।

Translated Sutra: चार प्रज्ञप्तियाँ अङ्गबाह्य हैं। उनके नाम ये हैं – चंद्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, द्वीपसारणप्रज्ञप्ति
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 320 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवम-कोडाकोडीओ कालो हुत्था। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवम-कोडाकोडीओ कालो पण्णत्तो। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवतेसु वासेसु आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए चत्तारि सागरोवमकोडाकोडीओ कालो भविस्सइ।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के भरत ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सर्पिणी का सुषमसुषमाकाल चार क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था। जम्बूद्वीप के भरत ऐरवत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी का सुषमसुषमा काल चार क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम था। जम्बूद्वीप के भरत ऐरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी का सुषमसुषमाकाल चार क्रोड़ाक्रोड़ी सागरोपम होगा।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 321 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरुवज्जाओ चत्तारि अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–हेमवते, हेरण्णवते, हरिवरिसे, रम्मगवरिसे। चत्तारि वट्टवेयड्ढपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–सद्दावाती, वियडावाती, गंधावाती, मालवंतपरिताते। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति, तं जहा– साती, पभासे, अरुणे, पउमे। जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पुव्वविदेहे, अवरविदेहे, देवकुरा, उत्तरकुरा। सव्वे वि णं निसढनीलवंतवासहरपव्वता चत्तारि जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउसयाइं उव्वेहेणं पन्नत्ता। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर चार अकर्मभूमियाँ हैं। यथा – हेमवंत, हैरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक्‌वर्ष। वृत्त वैताढ्य पर्वत चार हैं। यथा – शब्दापाति, विकटापाति, गंधापाति और माल्यवंत पर्याय। उन वृत्त वैताढ्य पर्वतों पर पल्योपम स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं। यथा – स्वाति, प्रभास, अरुण
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 322 Gatha Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जंबुद्दीवआवस्सगं तु कालाओ चूलिया जाव । धायइसंडे पुक्खरवरे य पुव्वावरे पासे ॥

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में शास्वत पदार्थकाल यावत्‌ – मेरुचूलिका तक जो कहे हैं वे धातकीखण्ड और पुष्करवरद्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में भी कहें।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 323 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चत्तारि दारा पन्नत्ता, तं जहा–विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते। ते णं दारा चत्तारि जोयणाइं विक्खंभेणं, तावइयं चेव पवेसेणं पन्नत्ता। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति, तं जहा–विजये, वेजयंते, जयंते, अपराजिते।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के चार द्वार हैं। विजय, वेजयंत, जयंत और अपराजित। जम्बूद्वीप के द्वार चार सौ योजन चौड़े हैं और उनका उतना ही प्रवेशमार्ग है। जम्बूद्वीप के उन द्वारों पर पल्योपम स्थिति वाले चार महर्द्धिक देव रहते हैं। उनके नाम ये हैं – विजय, विजयन्त, जयन्त और अपराजित।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 324 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स चउसु विदिसासु लवणसमुद्दं तिन्नि-तिन्नि जोयणसयाइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पन्नत्ता, तं जहा–एगरुयदीवे, आभासियदीवे, वेसाणियदीवे, णंगोलियदीवे। तेसु णं दीवेसु चउव्विहा मनुस्सा परिवसंति, तं जहा–एगूरुया, आभासिया, वेसाणिया, णंगोलिया। तेसि णं दीवाणं चउसु विदिसासु लवणसमुद्दं चत्तारि-चत्तारि जोयणसयाइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा पन्नत्ता, तं जहा–हयकण्णदीवे, गयकण्णदीवे, गोकण्णदीवे, सक्कुलिकण्णदीवे। तेसु णं दीवेसु चउव्विधा मनुस्सा परिवसंति, तं०–हयकण्णा, गयकण्णा, गोकण्णा, सक्कुलिकण्णा। तेसि

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में और चुल्ल (लघु) हिमवंत वर्षधर पर्वत के चार विदिशाओं में लवण समुद्र तीन सौ तीन सौ योजन जाने पर चार – चार अन्तरद्वीप हैं। यथा – एकोरुक द्वीप, आभाषिक द्वीप, वेषाणिक द्वीप और लांगोलिक द्वीप। उन द्वीपों में चार प्रकार के मनुष्य रहते हैं। यथा – एकोरुक, आभाषिक, वैषाणिक और लाँगुलिक। उन
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 325 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउदिसिं लवणसमुद्दं पंचानउइं जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं महतिमहालता महालंजरसंठाणसंठिता चत्तारि महापायाला पन्नत्ता, तं जहा–वलयामुहे, केउए, जूवए, ईसरे। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया परिवसंति, तं जहा–काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे। जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ चउद्दिसि लवणसमुद्दं बायालीसं-बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहेत्ता, एत्थ णं चउण्हं वेलंधरणागराईणं चत्तारि आवासपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–गोथूभे, उदओभासे, संखे, दगसीमे। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्ठितीया

Translated Sutra: जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिकाओं से (पूर्वादि) चार दिशाओं में लवण समुद्र में ९५००० योजन जाने पर महा – घटाकार चार महापातालकलश हैं। यथा – वलयामुख, केतुक, यूपक और ईश्वर। इन चार महापाताल कलशों में पल्योपम स्थिति वाले चार महर्धिक देव रहते हैं। यथा – काल, महाकाल, वेलम्ब और प्रभंजन। जम्बूद्वीप की बाह्य वेदिकाओं से (पूर्वादि)
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-२ Hindi 326 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] धायइसंडे णं दीवे चत्तारि जोयणसयसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं पन्नत्ते। जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बहिया चत्तारि भरहाइं, चत्तारि एरवयाइं। एवं जहा सद्दुद्देसए तहेव नीरवसेसं भाणियव्वं जाव चत्तारि मंदरा चत्तारि मंदरचूलियाओ।

Translated Sutra: धातकीखण्ड द्वीप का वलयाकार विष्कम्भ चार लाख योजन का है। जम्बूद्वीप के बाहर चार भरत क्षेत्र और चार ऐरवत क्षेत्र है। इसी प्रकार पुष्करार्धद्वीप के पूर्वार्ध पर्यन्त द्वीतिय स्थान उद्देशक तीन में उक्त मेरुचूलिका तक के पाठ की पुनरावृत्ति करें, और उसमें सर्वत्र चार की संख्या कहें।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-३ Hindi 350 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि लोगे समा पन्नत्ता, तं जहा–अपइट्ठाणे नरए, जंबुद्दीवे दीवे, पालए जाणविमाने, सव्वट्ठसिद्धे महाविमाने। चत्तारि लोगे समा सपक्खिं सपडिदिसिं पन्नत्ता, तं जहा– सीमंतए नरए, समयक्खेत्ते, उडुविमाने, इसीपब्भारा पुढवी।

Translated Sutra: लोक में समान स्थान चार हैं। यथा – अप्रतिष्ठान नरकावास, जम्बूद्वीप, पालकयान विमान, सर्वार्थसिद्ध महाविमान। लोक में सर्वथा समान स्थान चार हैं। सीमंतकनरकावास, समयक्षेत्र, उडुनामकविमान, इषत्प्राग्भारा पृथ्वी।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-४

उद्देशक-४ Hindi 364 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि जातिआसीविसा पन्नत्ता, तं जहा–विच्छुयजातिआसीविसे, मंडुक्कजातिआसीविसे, उरग-जातिआसीविसे, मनुस्सजातिआसीविसे। विच्छुयजातिआसीविसस्स णं भंते! केवइए विसए पन्नत्ते? पभू णं विच्छुयजातिआसीविसे अद्धभरहप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेणं विसपरिणयं विसट्टमाणिं करित्तए विसए से विसट्ठताए, नो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा। मंडुक्कजातिआसीविसस्स णं भंते! केवइए विसए पन्नत्ते? पभू णं मंडुक्कजातिआसीविसे भरहप्पमाणमेत्तं बोदिं विसेणं विसपरिणयं विसट्टमाणिं करित्तए। विसए से विसट्ठताए, नो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा। उरगजाति आसीविसस्स

Translated Sutra: आशि – विष चार प्रकार का है। यथा – वृश्चिक जाति का आशिविष, मंडूक जाति का आशिविष, सर्प जाति का आशिविष, मनुष्य जाति का आशिविष। हे भगवन्‌ ! बिच्छु जाति का आशिविष कितना प्रभावशाली है ? आधे भरत क्षेत्र जितने बड़े शरीर को एक बिच्छु का विष प्रभावित कर देता है। यह केवल विष का प्रभावमात्र बताया है। अब तक न इतने बड़े शरीर को
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-२ Hindi 472 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीयाए महानदीए उत्तरे णं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता, तं जहा–मालवंते, चित्तकूडे, ‘पम्हकूडे, नलिनकूडे’, एगसेले। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीयाए महानदीए दाहिणे णं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे, सोमनसे। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महानदीए दाहिणे णं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– विज्जुप्पभे, अंकावती, पम्हावती, आसीविसे, सुहावहे। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महानदीए उत्तरे णं पंच वक्खारपव्वता पन्नत्ता,

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के उत्तर में पाँच वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा – माल्यवंत, चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट, एक शैल। जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के दक्षिण में पाँच वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा – त्रिकूट, वैश्रमणकूट, अंजन, मातंजन, सोमनस। जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-५

उद्देशक-३ Hindi 513 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं गंगं महानदिं पंच महानदीओ समप्पेंति, तं जहा–जउणा, सरऊ, आवी, कोसी, मही। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं सिंधुं महानदिं पंच महानदीओ समप्पेंति, तं जहा–सतद्दू, वितत्था, विभासा, एरावती, चंदभागा। [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्तं महाणदिं पंच महानदीओ समप्पेंति, तं जहा–किण्हा, महाकिण्हा, निला, महानिला, महातीरा। [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रत्तावति महाणदिं पंच महानदीओ समप्पेंति, तं जहा–इंदा, इंदसेणा, सुसेणा, वारिसेणा, महाभोगा।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिण में गंगा महानदी में पाँच महानदियाँ मिलती हैं, यथा – यमुना, सरयू, आदि, कोसी, मही। जम्बूद्वीपवर्ती मेरु के दक्षिण में सिन्धु महानदी में पाँच महानदियाँ मिलती हैं। यथा – शतद्रू, विभाषा, वित्रस्ता, एरावती, चंद्रभागा। जम्बूद्वीप वर्ती मेरु के उत्तर में रक्ता महानदी में पाँच महानदियाँ
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-६

Hindi 533 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] छव्विहा मनुस्सा पन्नत्ता, तं जहा–जंबूदीवगा, घायइसंडदीवपुरत्थिमद्धगा, धायइसंडदीवपच्चत्थि-मद्धगा, पुक्खरवरदीवड्ढपुरत्थिमद्धगा, पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्धगा, अंतरदीवगा। अहवा– छव्विहा मनुस्सा पन्नत्ता, तं जहा– संमुच्छिममनुस्सा– कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा, अंतरदीवगा, गब्भवक्कंतिअमणुस्सा– कम्मभूमगा, अकम्मभूमगा, अंतरदीवगा।

Translated Sutra: मनुष्य छः प्रकार के हैं, यथा – जम्बूद्वीप में उत्पन्न। धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में उत्पन्न। धातकी खण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में उत्पन्न। पुष्करवरद्वीपार्ध के पूर्वार्ध में उत्पन्न। पुष्करवरद्वीपार्ध के पश्चिमार्ध में उत्पन्न। अन्तर द्वीपों में उत्पन्न। अथवा मनुष्य छः प्रकार के हैं, यथा – सम्मूर्च्छिम
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-६

Hindi 536 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु तीताए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए मनुया छ धनुसहस्साइं उड्ढमुच्चत्तेणं हुत्था, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालयित्था। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु इमीसे ओसप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए मनुसा छ धनुसहस्साइं उड्ढमुच्चत्तेणं पन्नत्ता, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालयित्था। जंबुद्दीवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु आगमेस्साए उस्सप्पिणीए सुसम-सुसमाए समाए मनुया छ धनुसहस्साइं उड्ढमुच्चत्तेणं भविस्संति, छच्च अद्धपलिओवमाइं परमाउं पालइस्संति। जंबुद्दीवे दीवे देवकुरु-उत्तरकुरुकुरासु मनुया छ धणुस्सहस्साइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता,

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्रों में अतीत उत्सर्पिणी के सुषम – सुषमा काल में मनुष्य छः हजार धनुष के ऊंचे थे, और उनका परमायु तीन पल्योपमों का था। जम्बूद्वीपवर्ती भरत और ऐरवत क्षेत्रों में इस उत्सर्पिणी के सुषम – सुषमा काल में मनुष्यों की ऊंचाई और उनका परमायु पूर्ववत्‌ ही था। जम्बूद्वीपवर्ती भरत और
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-६

Hindi 566 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंतमहानिरया पन्नत्ता, तं जहा–लोले, लोलुए, उद्दड्ढे, णिद्दड्ढे, जरए, पज्जरए। चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए छ अवक्कंतमहानिरया पन्नत्ता, तं जहा–आरे, वारे, मारे, रोरे, रोरुए, खाडखडे।

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में – इस रत्नप्रभा पृथ्वी में छह अपक्रान्त (अत्यन्त धृणित) महा नरका वास हैं, लोल, लोलुप, उद्दग्ध, निर्दग्ध, जरक, प्रजरक। चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में छह अपक्रान्त (अत्यन्त धृणित) महा नरकावास हैं, यथा – आर, वार, मार, रोर, रोरुक, खडाखड़।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-६

Hindi 573 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे छ अकम्मभूमीओ पन्नत्ताओ, तं जहा–हेमवते, हेरण्णवते, हरिवस्से, रम्मगवासे, देवकुरा, उत्तरकुरा जंबुद्दीवे दीवे छव्वासा पन्नत्ता, तं जहा–भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवए, हरिवासे, रम्मगवासे। जंबुद्दीवे दीवे छ वासहरपव्वता पन्नत्ता, तं जहा– चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, निसढे, नीलवंते, रुप्पी, सिहरी। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं छ कूडा पन्नत्ता, तं जहा–चुल्लहिमवंतकूडे, वेसमणकूडे, महाहिमवंतकूडे, वेरुलियकूडे, निसढकूडे, रुयगकूडे। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं छ कूडा पन्नत्ता, तं जहा– नीलवंतकूडे, उवदंसण-कूडे, रुप्पिकूडे, मणिकंचणकूडे,

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में छह अकर्मभूमियाँ हैं, यथा – हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष, रम्यक्‌वर्ष, देवकुरु, उत्तरकुरु। जम्बूद्वीप में छह वर्ष (क्षेत्र) हैं, यथा – भरत, ऐरवत, हैमवत, हैरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक्‌वर्ष। जम्बूद्वीप में छह वर्षधर पर्वत हैं, यथा – चुल्ल (लघु) हिमवंत, महा हिमवंत, निषध, नीलवंत, रुक्मि, शिखरी जम्बूद्वीपवर्ती
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-७

Hindi 680 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नंदिस्सरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्त दीवा पन्नत्ता, तं जहा– जंबुद्दीवे, धायइसंडे, पोक्खरवरे, वरुणवरे, खीरवरे, घयवरे, खोयवरे। नंदीसरवरस्स णं दीवस्स अंतो सत्त समुद्दा पन्नत्ता, तं जहा– लवणे, कालोदे, पुक्खरोदे, वरुणोदे, खीरोदे, घओदे, खोओदे।

Translated Sutra: नन्दीश्वर द्वीप में सात द्वीप है। यथा – जम्बूद्वीप, धातकीखण्डद्वीप, पुष्करवरद्वीप, वरुणवरद्वीप, क्षीरवर – द्वीप, धृतवरद्वीप और क्षोदवरद्वीप। नन्दीश्वर द्वीप में सात समुद्र हैं। यथा – लवण समुद्र, कालोद समुद्र, पुष्करोद समुद्र, करुणोद समुद्र, खीरोद समुद्र, धृतोद समुद्र और क्षोदोद समुद्र।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-७

Hindi 692 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे सोमणसे वक्खारपव्वते सत्त कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में सोमनस वक्षस्कार पर्वत पर सात कूट हैं, यथा –
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-७

Hindi 694 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे गंधमायणे वक्खारपव्वते सत्त कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में गंधमादन वक्षस्कार पर्वत पर सात कूट हैं, यथा –
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 747 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, सातिरेगाइं अट्ठ जोयणाइं सव्वग्गेणं पन्नत्ता। कूडसामली णं अट्ठ जोयणाइं एवं चेव।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में सुदर्शन वृक्ष आठ योजन का ऊंचा है, मध्य भाग में आठ योजन का चौड़ा है, और सर्व परिमाण कुछ अधिक आठ योजन का है। कूट शाल्मली वृक्ष का परिमाण भी इसी प्रकार है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 749 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महानदीए उभतो कूले अट्ठ वक्खारपव्वया पन्नत्ता, तं जहा –चित्तकूडे, पम्हकूडे, नलिनकूडे, एगसेले, तिकूडे, वेसमणकूडे, अंजणे, मायंजणे। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं सीतोयाए महानदीए उभतो कूले अट्ठ वक्खार-पव्वता पन्नत्ता, तं जहा–अंकावती, पम्हावती, आसीविसे, सुहावहे, चंदपव्वते, सूरपव्वते, ‘नाग-पव्वते, देवपव्वते’। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महानदीए उत्तरे णं अट्ठ चक्कवट्टिविजया पन्नत्ता, तं० कच्छे, सुकच्छे, महाकच्छे, कच्छगावती, आवत्ते, मंगलावत्ते, पुक्खले, पुक्खलावती। जंबुद्दीवे

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के दोनों किनारों पर आठ वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा – चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनीकूट, एकशेलकूट, त्रिकूट, वैश्रमणकूट, अंजनकूट, मातंजन कूट। जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पश्चिम में शीतोदा महानदी के किनारों पर आठ वक्षस्कार पर्वत हैं। यथा – अंकावती, पद्मावती, आशीविष,
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 750 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महानदीए उत्तरे णं उक्कोसपए अट्ठ अरहंता, अट्ठ चक्कवट्टी, अट्ठ बलदेवा, अट्ठ वासुदेवा उप्पज्जिंसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महानदीए दाहिणे णं उक्कोसपए एवं चेव। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीओयाए महानदीए दाहिणे णं उक्कोसपए एवं चेव। एवं उत्तरेणवि।

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व में शीता महानदी के उत्तर में, उत्कृष्ट आठ अर्हन्त, आठ चक्रवर्ती, आठ बलदेव और आठ वासुदेव उत्पन्न हुए, होते हैं और होंगे। जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व में शीता महानदी के दक्षिण में इतने ही अरिहंत आदि हुए हैं, होते हैं और होंगे। जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पश्चिम
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 751 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महानईए उत्तरे णं अट्ठ दीहवेयड्ढा, अट्ठ तिमिसगुहाओ, अट्ठ खंडगप्पवातगुहाओ, अट्ठ कयमालगा देवा, अट्ठ नट्टमालगा देवा, अट्ठ गंगाकुंडा, अट्ठ सिंधुकुंडा, अट्ठ गंगाओ, अट्ठ सिंधूओ, अट्ठ उसभकूडा पव्वता, अट्ठ उसभकूडा देवा पन्नत्ता। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं सीताए महानदीए दाहिणे णं अट्ठ दीहवेअड्ढा एवं चेव जाव अट्ठ उसभकूडा देवा पन्नत्ता, नवरमेत्थ रत्त-रत्तावती, तासिं चेव कुंडा। जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं सीतोयाए महानदीए दाहिणे णं अट्ठ दीहवेयड्ढा जाव अट्ठ नट्टमालगा देवा, अट्ठ

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत से पूर्व में शीता महानदी के उत्तर में आठ दीर्घ वैताढ्य, आठ तमिस्रगुफा, आठ खंडप्रपातगुफा, आठ कृतमालक देव, आठ नृत्यमालक देव, आठ गंगाकुण्ड, आठ सिन्धुकुण्ड, आठ गंगा, आठ सिन्धु, आठ ऋषभकूट पर्वत और आठ ऋषभकूट देव हैं। जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व में शीता महानदी के दक्षिण में आठ दीर्घवैताढ्य
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 753 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] धायइसंडदीवपुरत्थिमद्धे णं धायइरुक्खे अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं, साइरेगाइं अट्ठ जोयणाइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते। एवं धायइरुक्खाओ आढवेत्ता सच्चेव जंबूदीववत्तव्वता भाणियव्वा जाव मंदरचूलियत्ति। एवं पच्चत्थिमद्धेवि महाघातइरुक्खातो आढवेत्ता जाव मंदरचूलियत्ति। एवं पुक्खरवरदीवड्ढपुरत्थिमद्धेवि पउमरुक्खाओ आढवेत्ता जाव मंदरचूलियत्ति। एवं पुक्खरवरदीवड्ढपच्चत्थिमद्धेवि महापउमरुक्खातो जाव मंदरचूलियत्ति।

Translated Sutra: धातकीखण्डद्वीप के पूर्वार्ध में धातकी वृक्ष आठ योजन का ऊंचा है, मध्य भाग में आठ योजन का चौड़ा है, और इसका सर्व परिमाण कुछ अधिक आठ योजन का है। धातकी वृक्ष से मेरु चूलिका पर्यन्त सारा कथन जम्बूद्वीप के वर्णन के समान कहना चाहिए। धातकीखण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में भी महाधातकी वृक्ष से मेरु चूलिका पर्यन्त का कथन
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 754 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पव्वते भद्दसालवने अट्ठ दिसाहत्थिकूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत पर भद्रशालवन में आठ दिशाहस्तिकूट हैं। यथा – पद्मोत्तर, नीलवंत, सुहस्ती, अंजनागिरी, कुमुद, पलाश, अवतंसक, रोचनागिरी। सूत्र – ७५४, ७५५
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 756 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूदीवस्स णं दीवस्स जगतो अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए अट्ठ जोयणाइं विक्खंभेणं पन्नत्ता।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप की जगति आठ योजन की ऊंची है और मध्य में आठ योजन की चौड़ी है।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 757 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं महाहिमवंते वासहरपव्वते अट्ठ कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के दक्षिण में महाहिमवंत वर्षधर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा – सिद्ध, महाहिमवंत, हिमवंत, रोहित, हरीकूट, हरिकान्त, हरिवास, वैडूर्य। सूत्र – ७५७, ७५८
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 759 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रुप्पिंमि वासहरपव्वते अट्ठ कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में रुक्मी पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा – सिद्ध, रुक्मी, रम्यक्‌, नरकान्त, बुद्धि, रुक्मकूट, हिरण्यवत, मणिकंचन। सूत्र – ७५९, ७६०
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 761 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे णं रुयगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पूर्व में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा – रिष्ट, तपनीय, कंचन, रजत, दिशास्वस्तिक, प्रलम्ब, अंजन, अंजनपुलक। सूत्र – ७६१, ७६२
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 765 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं रुयगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra:
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 769 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमे णं रुयगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के पश्चिम में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा – स्वस्तिक, अमोघ, हिमवत्‌, मंदर, रुचक, चक्रोतम, चन्द्र, सुदर्शन। सूत्र – ७६९, ७७०
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 773 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं रुयगवरे पव्वते अट्ठ कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीपवर्ती मेरु पर्वत के उत्तर में रुचकवर पर्वत पर आठ कूट हैं, यथा – रत्न, रत्नोच्चय, सर्वरत्न, रत्नसंचय, विजय, वैजयंत, जयन्त, अपराजित। सूत्र – ७७३, ७७४
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-८

Hindi 796 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स दारा अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता। सव्वेसिंपि णं दीवसमुद्दाणं दारा अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के द्वार आठ योजन ऊंचे हैं। सभी द्वीप समुद्रों के द्वार आठ योजन ऊंचे हैं।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 810 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे नवजोयणिआ मच्छा पविसिंसु वा पविसंति वा पविसिस्संति वा।

Translated Sutra: जम्बूद्वीप में नौ योजन के मच्छ प्रवेश करते थे, करते हैं और करेंगे।
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 811 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए नव बलदेव-वासुदेव पियरो हुत्था, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में, इस अवसर्पिणी में ये नौ बलदेव और नौ वासुदेव के पिता थे। यथा – प्रजापती, ब्रह्म, रुद्र, सोम, शिव, महासिंह, अग्निसिंह, दशरथ और वासुदेव। सूत्र – ८११, ८१२
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 813 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्तो आढत्तं जघा समवाये नीरवसेसं जाव एगा से गब्भवसही, सिज्झिहिति आगमेसेणं ॥ जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे आगमेसाए उस्सप्पिणीए नव बलदेव-वासुदेवपितरो भविस्संति, नव बलदेव-वासुदेव-मायरो भविस्संति। एवं जधा समवाए नीरवसेसं जाव महाभीमसेने, सुग्गीवे य अपच्छिमे।

Translated Sutra:
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 849 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं भरहे दीहवेतड्ढे नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के मेरु से दक्षिण दिशा के भरत में दीर्घवैताढ्य पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा – सिद्ध, भरत, खण्डप्रपातकूट, मणिभद्र, वैताढ्य, पूर्णभद्र, तिमिश्रगुहा, भरत और वैश्रमण। सूत्र – ८४९, ८५०
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 851 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं निसहे वासहरपव्वते नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण दिशा में निषध वर्षधर पर्वत पर नौ कूट हैं, यथा – सिद्ध, निषध, हरिवर्ष, विदेह, हरि, धृति, शीतोदा, अपरविदेह, रुचक। सूत्र – ८५१, ८५२
Sthanang स्थानांग सूत्र Ardha-Magadhi

स्थान-९

Hindi 853 Sutra Ang-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्वते नंदनवने नव कूडा पन्नत्ता, तं जहा–

Translated Sutra: जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत पर नन्दनवन में नौ कूट हैं, यथा –
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