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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-३ | Hindi | 123 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] उववाएण व सायं, आभिनिओ देवकम्मुणा वावि ।
अज्झवसाणनिमित्तं, अहवा कम्माणुभावेणं ॥ Translated Sutra: नैरयिक जीवों में से कोई जीव उपपात के समय, पूर्व सांगतिक देव के निमित्त से कोई नैरयिक, कोई नैरयिक शुभ अध्यवसायों के कारण अथवा कर्मानुभाव से साता का वेदन करते हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Hindi | 131 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! जीवाणं कति लेसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–कण्हलेसा जाव सुक्कलेसा।
ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी? मिच्छदिट्ठी? सम्मामिच्छदिट्ठी? गोयमा! सम्मदिट्ठीवि मिच्छदिट्ठीवि सम्मामिच्छदिट्ठीवि।
ते णं भंते! जीवा किं नाणी? अन्नाणी? गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि–तिन्नि नाणाइं तिन्नि अन्नाणाइं भयणाए।
ते णं भंते! जीवा किं मनजोगी? वइजोगी? कायजोगी? गोयमा! तिविधावि।
ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता? अनागारोवउत्ता? गोयमा! सागारोवउत्तावि अनागारोवउत्तावि।
ते णं भंते! जीवा कओ उववज्जंति? –किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति? पुच्छा। Translated Sutra: हे भगवन् ! इन जीवों के कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! छह – कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या। हे भगवन् ! ये जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग् मिथ्यादृष्टि हैं। गौतम ! तीनों। भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? गौतम ! ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। जो ज्ञानी हैं वे दो या तीन ज्ञानवाले हैं और | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Hindi | 133 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! विमानाइं अच्चीणि अच्चियावत्ताइं अच्चिप्पभाइं अच्चिकंताइं अच्चिवण्णाइं अच्चि-लेस्साइं अच्चि ज्झयाइं अच्चिसिंगाइं अच्चिसिट्ठाइं अच्चिकूडाइं अच्चुत्तरवडिंसगाइं? हंता अत्थि।
ते णं भंते! विमाना केमहालता पन्नत्ता? गोयमा! जावतिए णं सूरिए उदेति जावइएणं च सूरिए अत्थमेति एवतियाइं तिन्नोवासंतराइं अत्थेगतियस्स देवस्स एगे विक्कमे सिता। से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतीवयमाणे-वीतीवयमाणे जहन्नेणं एकाहं वा दुयाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे बीतीवएज्जा–अत्थेगतियं विमाणं वीतीवएज्जा अत्थेगतियं Translated Sutra: हे भगवन् ! क्या स्वस्तिक नामवाले, स्वस्तिकावर्त नामवाले, स्वस्तिकप्रभ, स्वस्तिककान्त, स्वस्तिकवर्ण, स्वस्तिकलेश्य, स्वस्तिकध्वज, स्वस्तिकशृंगार, स्वस्तिककूट, स्वस्तिकशिष्ट और स्वस्तिकोत्तरावतंसक नामक विमान हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! वे विमान कितने बड़े हैं ? गौतम ! जितनी दूरी से सूर्य उदित होता दीखता | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 165 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामय-कूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुब्भ रययवालुयाओ वेरुलिय-मणिफालियपडलपच्चोयडाओ सुहोयारसुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पल कुमुद नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त फुल्ल केसरोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ Translated Sutra: उस वनखण्ड के मध्य में उस – उस भाग में उस उस स्थान पर बहुत – सी छोटी – छोटी चौकोनी वावडियाँ हैं, गोल – गोल अथवा कमलवाली पुष्करिणियाँ हैं, जगह – जगह नहरों वाली दीर्घिकाएं हैं, टेढ़ीमेढ़ी गुंजालिकाएं हैं, जगह – जगह सरोवर हैं, सरोवरों की पंक्तियाँ हैं, अनेक सरसर पंक्तियाँ और बहुत से कुओं की पंक्तियाँ हैं। वे स्वच्छ हैं, | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 179 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए विजयदेवत्ताए उववन्ने।
तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे Translated Sutra: उस काल और उस समय में विजयदेव विजया राजधानी की उपपातसभा में देवशयनीय में देवदूष्य के अन्दर अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण शरीर में विजयदेव के रूप में उत्पन्न हुआ। तब वह उत्पत्ति के अनन्तर पाँच प्रकार की पर्याप्तियों से पूर्ण हुआ। वे पाँच पर्याप्तियाँ इस प्रकार हैं – आहारपर्याप्ति, शरीरपर्याप्ति, इन्द्रिय | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 180 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से विजए देवे महयामहया इंदाभिसेएणं अभिसित्ते समाणे सीहासनाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता अभिसेयसभाओ पुरत्थिमेणं दारेणं पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता अलंकारियसभं अनुप्पयाहिणीकरेमाणे अनुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरत्थि-मेणं दारेणं अनुपविसति, अनुपविसित्ता जेणेव सीहासने तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता सीहासन वरगते पुरत्थाभिमुहे सन्निसन्ने।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स आभिओगिया देवा आलंकारियं भंडं उवणेंति।
तए णं से विजए देवे तप्पढमयाए पम्हलसूमालाए दिव्वाए सुरभीए गंधकासाईए गाताइं लूहेति, लूहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदनेणं Translated Sutra: तब वह विजयदेव शानदार इन्द्राभिषेक से अभिषिक्त हो जाने पर सिंहासन से उठकर अभिषेकसभा के पूर्व दिशा के द्वार से बाहर नीकलता है और अलंकारसभा की प्रदक्षिणा करके पूर्वदिशा के द्वार से उसमें प्रवेश करता है। फिर उस श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व की ओर मुख करके बैठा। तदनन्तर उस विजयदेव की सामानिकपर्षदा के देवों ने आभियोगिक | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Hindi | 184 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं जंबुद्दीवे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! ते जंबुद्दीवे दीवे, नो खलु ते लवणे समुद्दे।
लवणस्स णं भंते! समुद्दस्स पदेसा जंबुद्दीवं दीवं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं लवणे समुद्दे जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! लवणे णं ते समुद्दे, नो खलु ते जंबुद्दीवे दीवे।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति।
लवणे णं भंते! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता जंबुद्दीवे दीवे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप के प्रदेश लवणसमुद्र से स्पृष्ट हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! वे स्पृष्ट प्रदेश जम्बूद्वीप रूप हैं या लवणसमुद्र रूप ? गौतम ! वे जम्बूद्वीप रूप हैं। हे भगवन् ! लवणसमुद्र के प्रदेश जम्बूद्वीप को स्पृष्ट हुए हैं क्या ? हाँ, गौतम ! हैं। हे भगवन् ! वे स्पृष्ट प्रदेश लवणसमुद्र रूप हैं या जम्बूद्वीप | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Hindi | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: हे भगवन् ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? हे गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत के उत्तर में, नीलवंत पर्वत के दक्षिणमें, मालवंतवक्षस्कार पर्वत के पश्चिममें एवं गन्धमादन वक्षस्कारपर्वत के पूर्वमें उत्तरकुरा क्षेत्र। वह पूर्व पश्चिम लम्बा और उत्तर – दक्षिण चौड़ा है, अष्टमी के चाँद की तरह अर्ध | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Hindi | 200 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणस्स णं भंते! समुद्दस्स पएसा धायइसंडं दीवं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं लवणे समुद्दे? धायइसंडे दीवे? गोयमा! ते लवणे समुद्दे, नो खलु ते धायइसंडे दीवे।
धायइसंडस्स णं भंते! दीवस्स पदेसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं धायइसंडे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! धायइसंडे णं ते दीवे, नो खलु ते लवणे समुद्दे।
लवणे णं भंते समुद्दे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता धायइसंडे दीवे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थे गतिया नो पच्चायंति।
धायइसंडे णं भंते! जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति।
से Translated Sutra: हे भगवन् ! लवणसमुद्र के प्रदेश धातकीखण्डद्वीप से छुए हुए हैं क्या ? हाँ, गौतम ! धातकीखण्ड के प्रदेश लवणसमुद्र से स्पृष्ट हैं, आदि। लवणसमुद्र से मरकर जीव धातकीखण्ड में पैदा होते हैं क्या ? आदि पूर्ववत्। धातकीखण्ड से मरकर लवणसमुद्र में पैदा होने के विषय में भी पूर्ववत् कहना। हे भगवन् ! लवणसमुद्र, लवण – समुद्र | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 223 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! लवणसमुद्दे दो जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, पन्नरस जोयणसतसहस्साइं एकासीतिं च सहस्साइं सतं च एगुणयालं किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सोलस जोयणसहस्साइं उस्सेधेणं, सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते, कम्हा णं भंते! लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति? नो उप्पीलेति? नो चेव णं एक्कोदगं करेति?
गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे भरहेरवएसु वासेसु अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा चारणा विज्जाधरा समणा समणीओ सावया सावियाओ मनुया पगतिभद्दया पगतिविणीया पगतिउवसंता पगतिपयणुकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा भद्दगा विनीता, Translated Sutra: भगवन् ! यदि लवणसमुद्र चक्रवाल – विष्कम्भ से दो लाख योजन का है, इत्यादि पूर्ववत्, तो वह जम्बूद्वीप को जल से आप्लावित, प्रबलता के साथ उत्पीड़ित और जलमग्न क्यों नहीं कर देता ? गौतम ! जम्बूद्वीप में भरत – ऐरवत क्षेत्रों में अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, जंघाचारण आदि विद्याधर मुनि, श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक और | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 224 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणसमुद्दं धायइसंडे नामं दीवे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिते सव्वतो समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठति।
धायइसंडे णं भंते! दीवे किं समचक्कवालसंठिते? विसमचक्कवालसंठिते? गोयमा! समचक्कवाल-संठिते, नो विसमचक्कवालसंठिते।
धायइसंडे णं भंते! दीवे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं? केवइयं परिक्खेवेणं पन्नत्ते? गोयमा! चत्तारि जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, इगयालीसं जोयणसतसहस्साइं दसजोयण-सहस्साइं नव य एगट्ठे जोयणसते किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं पन्नत्ते। से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं वनसंडेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते, दोण्हवि वण्णओ।
धायइसंडस्स णं भंते! दीवस्स कति दारा पन्नत्ता? Translated Sutra: धातकीखण्ड नाम का द्वीप, जो गोल वलयाकार संस्थान से संस्थित है, लवणसमुद्र को सब ओर से घेरे हुए है। भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप समचक्रवाल संस्थित है या विषमचक्रवाल ? गौतम ! वह समचक्रवाल संस्थान – संस्थित है। भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप का चक्रवाल – विष्कम्भ और परिधि कितनी है ? गौतम ! वह चार लाख योजन चक्रवाल – विष्कम्भ वाला | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 245 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–अब्भिंतरपुक्खरद्धे? अब्भिंतरपुक्खरद्धे? गोयमा! अब्भिंतरपुक्ख-रद्धेणं मानुसुत्तरेणं पव्वतेणं सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते। से एएणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–अब्भिंतरपुक्खरद्धे।
अदुत्तरं च णं जाव निच्चे।
अब्भिंतरपुक्खरद्धे णं भंते! केवतिया चंदा पभासिंसु वा पुच्छा सा चेव पुच्छा, जाव तारागणकोडकोडीओ गोयमा Translated Sutra: भगवन् ! आभ्यन्तर पुष्करार्ध, आभ्यन्तर पुष्करार्ध क्यों कहलाता है ? गौतम ! आभ्यन्तर पुष्करार्ध सब ओर से मानुषोत्तरपर्वत से घिरा हुआ है। इसलिए यावत् वह नित्य है। गौतम ! ७२ चन्द्र और ७२ सूर्य प्रभासित होते हुए पुष्करवरद्वीपार्ध में विचरण करते हैं। ६३३६ महाग्रह गति करते हैं और २०१६ नक्षत्र चन्द्रादि से योग | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 256 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] एवइयं तारग्गं, जं भणियं माणुसंमि लोगंमि ।
चारं कलंबुयापुप्फसंठियं जोइसं चरइ ॥ Translated Sutra: मनुष्यलोक में जो पूर्वोक्त तारागणों का प्रमाण है वे ज्योतिष्क देवविमानरूप हैं, वे कदम्ब के फूल के आकार के हैं तथाविध जगत् – स्वभाव से गतिशील हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 264 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] ते मेरुमनुचरंता, पयाहिणावत्तमंडला सव्वे ।
अनवट्ठितेहिं जोगेहिं, चंदा सूरा गहगणा य ॥ Translated Sutra: ये चन्द्र – सूर्यादि सब ज्योतिष्क मण्डल मेरुपर्वत के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं। प्रदक्षिणा करते हुए इन चन्द्रादि के दक्षिणमें ही मेरु होता है, अत एव इन्हें प्रदक्षिणावर्तमण्डल कहा है। चन्द्र, सूर्य और ग्रहों के मण्डल अनवस्थित हैं। नक्षत्र और ताराओं के मण्डल अवस्थित हैं। ये भी मेरुपर्वत के चारों ओर | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 267 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] रयणियरदिनयराणं, नक्खत्ताणं महग्गहाणं च ।
चारविसेसेण भवे, सुहदुक्खविही मनुस्साणं ॥ Translated Sutra: चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र, महाग्रह और ताराओं की गतिविशेष से मनुष्यों के सुख – दुःख प्रभावित होते हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 275 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अंतो मनुस्सखेत्ते, हवंति चारोवगा य उववन्ना ।
पंचविहा जोइसिया, चंदा सूरा गहगणा य ॥ Translated Sutra: मनुष्यक्षेत्र के भीतर चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र एवं तारा – ये पाँच प्रकार के ज्योतिष्क गतिशील हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 276 | Gatha | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] तेण परं जे सेसा, चंदाइच्चगहतारनक्खत्ता ।
नत्थि गई नवि चारो, अवट्ठिया ते मुणेयव्वा ॥ Translated Sutra: अढ़ाई द्वीप से आगे जो पाँच प्रकार के चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा हैं वे गति नहीं करते, विचरण नहीं करते, अत एव स्थित हैं। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 287 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] मानुसुत्तरे णं भंते! पव्वते केवतियं उड्ढं उच्चत्तेणं? केवतियं उव्वेहेणं? केवतियं मूले विक्खंभेणं? केवतियं मज्झे विक्खंभेणं? केवतियं उवरिं विक्खंभेणं? केवतियं अंतो गिरिपरिरएणं? केवतियं बाहिं गिरिपरिरएणं? केवतियं मज्झे गिरि परिरएणं? केवतियं उवरिं गिरिपरिरएणं?
गोयमा! मानुसुत्तरे णं पव्वते सत्तरस एक्कवीसाइं जोयणसयाइं उड्ढं उच्चत्तेणं, चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं, मूले दसबावीसे जोयणसते विक्खंभेणं, मज्झे सत्ततेवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, उवरि चत्तारिचउवीसे जोयणसते विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साइं तीसं च सहस्साइं दोन्नि य अउणापण्णे Translated Sutra: हे भगवन् ! मानुषोत्तरपर्वत की ऊंचाई कितनी है ? उसकी जमीन में गहराई कितनी है ? इत्यादि प्रश्न। गौतम ! मानुषोत्तरपर्वत १७२१ योजन पृथ्वी से ऊंचा है। ४३० योजन और एक कोस पृथ्वी में गहरा है। यह मूल में १०२२ योजन चौड़ा है, मध्य में ७२३ योजन चौड़ा और ऊपर ४२४ योजन चौड़ा है। पृथ्वी के भीतर की इसकी परिधि १,४२,३०,२४९ योजन है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 288 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अंतो णं भंते! मानुसुत्तरस्स पव्वतस्स जे चंदिमसूरियगहगणनक्खत्ततारारूवा ते णं भंते! देवा किं उड्ढोववन्नगा? कप्पोववन्नगा? विमाणोववन्नगा? चारोववन्नगा? चारट्ठितीया? गतिरतिया? गति-समावन्नगा? गोयमा! ते णं देवा नो उड्ढोववन्नगा, नो कप्पोववन्नगा, विमाणोववन्नगा, चारोववन्नगा, नो चारट्ठितीया, गतिरतिया गतिसमावन्नगा, उड्ढीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठितेहिं जोयण-साहस्सि-तेहिं तावखेत्तेहिं, साहस्सियाहिं बाहिरियाहिं वेउव्वियाहिं परिसाहिं महयाहयनट्ट गीत वादित तंती तल ताल तुडिय घन मुइंग पडुप्पवादितरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहनाय-वोलकलकलरवेणं Translated Sutra: भदन्त ! मनुष्यक्षेत्र के अन्दर जो चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारागण हैं, वे ज्योतिष्क देव क्या ऊर्ध्व विमानों में उत्पन्न हुए हैं या सौधर्म आदि कल्पों में उत्पन्न हुए हैं या (ज्योतिष्क) विमानों में उत्पन्न हुए हैं ? वे गतिशील हैं या गतिरहित हैं ? गतिशील और गति को प्राप्त हुए हैं ? गौतम ! वे देव ज्योतिष्क विमानों | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Hindi | 290 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुक्खरोदण्णं समुद्दं वरुनवरे नामं दीवे वट्टे जधेव पुक्खरोदसमुद्दस्स तधा सव्वं।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–वरुनवरे दीवे? वरुनवरे दीवे? गोयमा! वरुनवरे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ जाव बिलपंतियाओ अच्छाओ जाव सद्दुण्णइय-महुरसरनाइयाओ वारुणिवरोदगपडिहत्थाओ पत्तेयंपत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ताओ पत्तेयंपत्तेयं वनसंडपरिक्खित्ताओ वण्णओ पासादीयाओ दरिसणिज्जाओ अभिरूवाओ पडिरूवाओ। तिसोमाणतोरणा।
तासु णं खुड्डाखुड्डियासु जाव बिलपंतियासु बहवे उप्पातपव्वया जाव पक्खंदोलगा सव्व-फालियामया अच्छा जाव पडिरूवा। तेसु णं उप्पायपव्वएसु Translated Sutra: गोल और वलयाकार पुष्करोद नाम का समुद्र वरुणवरद्वीप से चारों ओर से घिरा हुआ स्थित है। यावत् वह समचक्रवाल संस्थान से संस्थित है। वरुणवरद्वीप का विष्कम्भ संख्यात लाख योजन का है और वही उसकी परिधि है। उसके सब ओर एक पद्मवरवेदिका और वनखण्ड हैं। द्वार, द्वारों का अन्तर, प्रदेश – स्पर्शना, जीवोत्पत्ति आदि सब पूर्ववत् | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
देवाधिकार | Hindi | 307 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अनुपरियट्टित्ताणं गिण्हित्तए? हंता पभू।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अनुपरियट्टित्ताणं गिण्हित्तए? गोयमा! पोग्गले णं खित्ते समाणे पुव्वामेव सिग्घगती भवित्ता तओ पच्छा मंदगती भवति, देवे णं पुव्वंपि पच्छावि सीहे सीहगती चेव तुरिए तुरियगती चेव। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चति–देवे णं महिड्ढीए जाव महानुभागे पुव्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अनुपरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए।
देवे णं भंते! महिड्ढीए जाव महानुभागे बाहिरए Translated Sutra: भगवन् ! कोई महर्द्धिक यावत् महाप्रभावशाली देव पहले किसी वस्तु को फेंके और फिर वह गति करता हुआ उस वस्तु को बीच में ही पकड़ना चाहे तो वह ऐसा करने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! है। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! फेंकी गई वस्तु पहले शीघ्रगतिवाली होती है और बाद में उसकी गति मन्द हो जाती है, जब कि उस देव की गति | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 312 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूदीवे णं भंते! दीवे मंदरस्स पव्वयस्स केवतियं अबाहाए जोतिसं चारं चरति?
गोयमा! एक्कारस एक्कवीसे जोयणसते अबाहाए जोतिसं चारं चरति।
लोगंताओ भंते! केवतियं अबाहाए जोतिसे पन्नत्ते?
गोयमा! एक्कारस एक्कारे जोयणसते अबाहाए जोतिसे पन्नत्ते।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ केवतियं अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति? केवतियं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति? केवतिए अबाहाए चंदविमाणे चारं चरति? केवतियं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरति?
गोयमा! सत्त नउते जोयणसते अबाहाए हेट्ठिल्ले तारारूवे चारं चरति, अट्ठं जोयणसताइं अबाहाए सूरविमाणे चारं चरति, Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में मेरुपर्वत के पूर्व चरमान्त से ज्योतिष्कदेव कितनी दूर रहकर उसकी प्रदक्षिणा करते हैं ? गौतम ! ११२१ योजन की दूरी से प्रदक्षिणा करते हैं। इसी तरह दक्षिण, पश्चिम और उत्तर चरमान्त से भी समझना। भगवन् ! लोकान्त से कितनी दूरी पर ज्योतिष्कचक्र हैं ? गौतम ! ११११ योजन पर ज्योतिष्कचक्र है। इस रत्नप्रभापृथ्वी | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 313 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबूदीवे णं भंते! दीवे कयरे नक्खत्ते सव्वब्भिंतरिल्लं चारं चरति? कयरे नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरति? कयरे नक्खत्ते सव्वउवरिल्लं चारं चरति? कयरे नक्खत्ते सव्वहेट्ठिल्लं चारं चरति?
गोयमा! अभिइनक्खत्ते सव्वब्भिंतरिल्लं चारं चरति, मूले नक्खत्ते सव्वबाहिरिल्लं चारं चरति, साती नक्खत्ते सव्वोवरिल्लं चारं चरति, भरणी नक्खत्ते सव्वहेट्ठिल्लं चारं चरति। Translated Sutra: भगवन् ! जम्बूद्वीप में कौन – सा नक्षत्र सब नक्षत्रों के भीतर, बाहर मण्डलगति से तथा ऊपर, नीचे विचरण करता है ? गौतम ! अभिजित नक्षत्र सबसे भीतर रहकर, मूल नक्षत्र सब नक्षत्रों से बाहर रहकर, स्वाति नक्षत्र सब नक्षत्रों से ऊपर रहकर और भरणी नक्षत्र सबसे नीचे मण्डलगति से विचरण करता है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 315 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चंदविमाने णं भंते कति देवसाहस्सीओ परिवहंति गोयमा चंदविमाणस्स णं पुरच्छिमेणं सेयाणं सुभ-गाणं सुप्पभाणं संखतलविमलनिम्मलदधिघणगोखीरफेणरययणिगरप्पगासाणं थिरलट्ठपउवट्टपीवर-सुसिलिट्ठविसिट्ठ-तिक्खदाढा-विडंबितमुहाणं रत्तुप्पलपत्त-मउयसुमालालु-जीहाणं मधुगुलियपिंग-लक्खाणं पसत्थसत्थवेरुलियभिसंतकक्कडनहाणं विसालपीवरोरुपडिपुन्नविउलखंधाणं मिउविसय पसत्थसुहुमलक्खण-विच्छिण्णकेसरसडोवसोभिताणं चंकमितललिय-पुलितथवलगव्वित-गतीणं उस्सियसुणिम्मि-यसुजायअप्फोडियणंगूलाणं वइरामयनक्खाणं वइरामयदंताणं पीतिगमाणं मनोगमाणं मनोरमाणं मनोहराणं अमीयगतीणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं Translated Sutra: भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव वहन करते हैं ? गौतम ! १६००० देव, उनमें से ४००० देव सिंह का रूप धारण कर पूर्वदिशा से उठाते हैं। वे सिंह श्वेत हैं, सुन्दर हैं, श्रेष्ठ कांति वाले हैं, शंख के तल के समान विमल और निर्मल तथा जमे हुए दहीं, गाय का दूध, फेन चाँदी के नीकर के समान श्वेत प्रभावाले हैं, उनकी आँखें शहद की गोली | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
ज्योतिष्क उद्देशक | Hindi | 316 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं भंते! चंदिमसूरियगहगणनक्खत्ततारारूवाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पगती वा? सिग्घगती वा? गोयमा! चंदेहिंतो सूरा सिग्घगती, सूरेहिंतो गहा सिग्घगती, गहेहिंतो नक्खत्ता सिग्घगती, णक्खत्तेहिंतो तारा सिग्घगती, सव्वप्पगती चंदा, सव्वसिग्घगती तारारूवा। Translated Sutra: भगवन् ! इन चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं में कौन किससे शीघ्रगति वाले हैं और कौन मंदगति वाले हैं ? गौतम ! चन्द्र से सूर्य, सूर्य से ग्रह, ग्रह से नक्षत्र और नक्षत्रों से तारा शीघ्रगति वाले हैं। सबसे मन्दगति चन्द्रों की है और सबसे तीव्रगति ताराओं की है। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 330 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु विमाना केवतियं आयामविक्खंभेणं? केवतियं परिक्खेवेणं पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडा य असंखेज्जवित्थडा य। तत्थ णं जेते संखेज्जवित्थडा ते णं संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, संखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। तत्थ णं जेते असंखेज्जवित्थडा ते णं असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाइं जोयणसहस्साइं परिक्खेवेणं। एवं जाव गेवेज्जविमाना।
अनुत्तरविमाना पुच्छा। गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संखेज्जवित्थडे य असंखेज्ज-वित्थडा य। तत्थ णं जेसे संखेज्जवित्थडे से एगं जोयणसयसहस्सं Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशानकल्प में विमानों की लम्बाई – चौड़ाई कितनी है ? उनकी परिधि कितनी है ? गौतम! वे विमान दो तरह के हैं – संख्यात योजन विस्तारवाले और असंख्यात योजन विस्तारवाले। नरकों के कथन समान यहाँ कहना; यावत् अनुत्तरोपपातिक विमान दो प्रकार के हैं – संख्यात योजन विस्तार वाले और असंख्यात योजन विस्तार वाले। | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
वैमानिक उद्देशक-२ | Hindi | 338 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवा केरिसया विभूसाए पन्नत्ता?
गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जेते भवधारणिज्जा ते णं आभरनवसणरहिता पगतित्था विभूसाए पन्नत्ता। तत्थ णं जेते उत्तरवेउव्विया ते णं हारविराइयवच्छा जाव दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा विभूसाए पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु णं भंते! कप्पेसु देवीओ केरिसियाओ विभूसाए पन्नत्ताओ?
गोयमा! दुविधाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–भवधारणिज्जाओ य उत्तरवेउव्वियाओ य। तत्थ णं जाओ भवधारणिज्जाओ ताओ णं आभरनवसणरहिताओ पगतित्थाओ विभूसाए पन्नत्ताओ।
तत्थ णं Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्म – ईशान कल्प के देव विभूषा की दृष्टि से कैसे हैं ? गौतम ! वे देव दो प्रकार के हैं – वैक्रिय – शरीर वाले और अवैक्रियशरीर वाले। उनमें जो वैक्रियशरीर वाले हैं वे हारों से सुशोभित वक्षस्थल वाले यावत् दसों दिशाओं को उद्योतित करनेवाले, यावत् प्रतिरूप हैं। जो अवैक्रियशरीर वाले हैं वे आभरण और वस्त्रों | |||||||||
Jivajivabhigam | जीवाभिगम उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
षडविध जीव प्रतिपत्ति |
Hindi | 357 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बायरे णं भंते! बायरेत्ति कालओ केवचिरं होति? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं–असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अंगुलस्स असंखेज्जतिभागो। बायरपुढविकाइयाआउतेउ वाउपत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइयस्स बायरनिओयस्स एतेसिं जहन्नेणं अंतोमुहूत्तं उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ संखातीयाओ समाओ अंगुलभागे तहा असंखेज्जा ओहे य वायरतरु अनुबंधो सेसओ वोच्छं, बादरपुढविसंचिट्ठणा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ जाव बादरवाऊ।
बादरवणस्सतिकाइयस्स जहा ओहिओ।
बादरपत्तेयवणस्सतिकाइयस्स जहा बादरपुढवी। निओते जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! बादर जीव, बादर के रूप में कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट से असंख्यातकाल – असंख्यात उत्सर्पिणी – अवसर्पिणियाँ हैं तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्र के आकाशप्रदेशों का प्रतिसमय एक – एक के मान से अपहार करने पर जितने समय में वे निर्लेप हो जाएं, उतने | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 165 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स तत्थतत्थ देसे तहिंतहिं बहुईओ खुड्डाखुड्डियाओ वावीओ पुक्खरिणीओ दीहियाओ गुंजालियाओ सरसीओ सरपंतियाओ सरसरपंतियाओ बिलपंतियाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामयकूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ अच्छाओ सण्हाओ रययामय-कूलाओ समतीराओ वइरामयपासाणाओ तवणिज्जतलाओ सुवण्ण सुब्भ रययवालुयाओ वेरुलिय-मणिफालियपडलपच्चोयडाओ सुहोयारसुउत्ताराओ नानामणितित्थ सुबद्धाओ चाउक्कोणाओ आनुपुव्वसुजायवप्पगंभीरसीयलजलाओ संछण्णपत्तभिसमुणालाओ बहुउप्पल कुमुद नलिन सुभग सोगंधिय पोंडरीय सयपत्त सहस्सपत्त फुल्ल केसरोवचियाओ छप्पयपरिभुज्जमाणकमलाओ अच्छविमलसलिलपुण्णाओ Translated Sutra: તે વનખંડના મધ્યમાં તે – તે દેશમાં, ત્યાં – ત્યાં ઘણી જ નાની – નાની ચોખૂણી વાવડીઓ છે. ગોળ – ગોળ કે કમળયુક્ત પુષ્કરિણીઓ છે. સ્થાને – સ્થાને નહેરોવાળી દીર્ઘિકાઓ છે. વાંકી – ચૂંકી ગુંજાલિકાઓ છે. સ્થાને – સ્થાને સરોવર છે, સરોવરની પંક્તિઓ છે. અનેક સરસર પંક્તિઓ અને ઘણા જ કૂવાની પંક્તિઓ છે. તે સ્વચ્છ છે અને મૃદુ પુદ્ગલોથી | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 14 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए।
तेसि णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जइ-भागं, उक्कोसेणवि अंगुलासंखेज्जइभागं।
तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संघयणा पन्नत्ता? गोयमा! छेवट्टसंघयणा पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरा किं संठिया पन्नत्ता? गोयमा! मसूरचंदसंठिया पन्नत्ता।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति कसाया पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि कसाया पन्नत्ता, तं जहा–कोहकसाए मानकसाए मायाकसाए लोहकसाए।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सण्णाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! चत्तारि सण्णाओ पन्नत्ताओ, Translated Sutra: ભગવન્ ! તે સૂક્ષ્મપૃથ્વીકાયિક જીવોના કેટલા શરીરો છે ? ગૌતમ ! ત્રણ. ઔદારિક, તૈજસ, કાર્મણ. ભગવન્! તે જીવોની શરીર અવગાહના કેટલી મોટી છે ? ગૌતમ ! જઘન્યથી અંગુલનો અસંખ્યાતભાગ, ઉત્કૃષ્ટથી પણ અંગુલનો અસંખ્યાત ભાગ. ભગવન ! તે જીવોના શરીર કયા સંઘયણવાળા છે ? ગૌતમ ! સેવાર્ત્ત સંઘયણી છે. ભગવન્ ! તે જીવોના શરીરનું સંસ્થાન શું | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 16 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सण्हबायरपुढविकाइया? सण्हबायरपुढविकाइया सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा–कण्हमत्तिया, भेओ जहा पन्नवणाए जाव–ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा, एतेसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाइं, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसतसहस्साइं। पज्जत्तग-निस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति–जत्थ एगो तत्थ नियमा असंखेज्जा। से त्तं खरबादरपुढविकाइया।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए तं चेव सव्वं, नवरं– चत्तारि Translated Sutra: તે શ્લક્ષ્ણ બાદર પૃથ્વીકાયિક શું છે ? તે સાત ભેદે છે – કાળી માટી વગેરે, તેના પ્રકારો પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર મુજબ જાણવા. યાવત તે સંક્ષેપથી બે ભેદે છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. ભગવન્! તે જીવોને કેટલા શરીરો છે ? ગૌતમ ! ત્રણ – ઔદારિક, તૈજસ, કાર્મણ. બધું કથન પૂર્વવત્ જાણવું. વિશેષ એ કે લેશ્યા ચાર છે, બાકી સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિકવત્ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 17 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आउक्काइया? आउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–सुहुमआउक्काइया य बायर-आउक्काइया य। सुहुमआउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्ता य अपज्जत्ता य।
तेसि णं भंते! जीवाणं कइ सरीरया पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरया पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए जहेव सुहुमपुढविकाइयाणं, नवरं–थिबुगसंठिया पन्नत्ता, सेसं तं चेव जाव दुगइया दुआगतिया, परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता। से त्तं सुहुमआउक्काइया। Translated Sutra: તે અપ્કાયિકો કેટલાં ભેદે છે ? ગૌતમ ! અપ્કાયિક જીવો બે ભેદે છે – સૂક્ષ્મ અને બાદર. સૂક્ષ્મ અપ્કાયિક જીવો બે ભેદે છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. ભગવન્ ! તે જીવોને કેટલા શરીરો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ત્રણ. ઔદારિક, તૈજસ, કાર્મણ. સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિકવત્ બધું કહેવું. વિશેષ આ – સ્તિબુક સંસ્થિત છે. બાકી પૂર્વવત્ યાવત્ દ્વિગતિ, | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 18 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बायरआउक्काइया? बायरआउक्काइया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–ओसा हिमे महिया करए हरतनुए सुद्धोदए सीतोदए उसिणोदए खारोदए खट्टोदए अंबिलोदए लवणोदए वरुणोदए खीरोदए घओदए खोतोदए रसोदए...
...जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्ता य अपज्जत्ता य, तं चेव सव्वं, नवरं– थिबुगसंठिया, चत्तारि लेसाओ, आहरो नियमा छद्दिसिं, उववाओ तिरिक्खजोणिय मनुस्स देवेहिंतो, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं सत्तवाससहस्साइं, सेसं तं चेव जहा बायर-पुढविकाइया जाव दुगतिया तिआगतिआ, परित्ता असंखेज्जा पन्नत्ता समणाउसो! सेत्तं बायरआउ-क्काइया। सेत्तं आउक्काइया। Translated Sutra: તે બાદર અપ્કાયિક શું છે ? બાદર અપ્કાયિક અનેક ભેદે કહ્યા છે, તે આ – ઓસ, હીમ યાવત્ આવા પ્રકારના અન્ય પાણી. તે સંક્ષેપથી બે ભેદે છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. બધું કથન પૂર્વવત્ કરવું. વિશેષ એ – સ્તિબુક સંસ્થાન છે. ચાર લેશ્યા છે, આહાર નિયમા છ દિશાથી કરે છે, ઉપપાત – તિર્યંચ, મનુષ્ય, દેવોથી. સ્થિતિ – જઘન્ય અંતર્મુહૂર્ત્ત, | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 20 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सुहुमवणस्सइकाइया? सुहुमवणस्सइकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य तहेव, नवरं– अनित्थंथसंठिया, दुगतिया दुआगतिया, अपरित्ता अनंता, अवसेसं जहा पुढविक्काइयाणं। से तं सुहुमवणस्सइकाइया। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 33 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बादरतेउक्काइया? बादरतेउक्काइया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–इंगाले जाला मुम्मुरे अच्ची अलाए सुद्धागणी उक्का विज्जू असणी निग्घाए संघरिससमुट्ठिए सूरकंतमणिनिस्सिए।
जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते अपज्जत्तगा ते णं असंपत्ता। तत्थ णं जेते पज्जत्तगा, एएसि णं वण्णादेसेणं गंधादेसेणं रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाइं, संखेज्जाइं जोणिप्पमुहसयसहस्साइं। पज्जत्तग-निस्साए अपज्जत्तगा वक्कमंति– जत्थ एगो तत्थ नियमा असंखेज्जा।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरगा पन्नत्ता, Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૧ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 34 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वाउक्काइया? वाउक्काइया दुविहा पन्नत्ता, तंजहा–सुहुमवाउक्काइया य बायरवाउक्काइया य। सुहुमवाउक्काइया जहा तेउक्काइया, नवरं–सरीरगा पडागसंठिया। एगगतिया दुआगतिया, परित्ता असंखिज्जा। सेत्तं सुहुमवाउक्काइया।
से किं तं बादरवाउक्काइया? बादरवाउक्काइया अनेगविहा पन्नत्ता, तं जहा–पाईणवाते पडीणवाते दाहिणवाए उदीणवाए उड्ढवाए अहोवाए तिरियवाए विदिसीवाए वाउब्भामे वाउक्कलिया वायमंडलिया उक्कलियावाए मंडलियावाए गुंजावाए झंझावाए संवट्टगवाए घनवाए तनुवाए सुद्धवाए
जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासतो दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जेते Translated Sutra: ભગવન્ ! તે વાયુકાયિકો શું છે ? તે બે ભેદે છે – સૂક્ષ્મ વાયુકાયિકો અને બાદર વાયુકાયિકો. સૂક્ષ્મ વાયુકાયિકોને તેઉકાયિકવત્ કહેવા. વિશેષ એ કે શરીર પતાકા સંસ્થિત છે, એક ગતિક, બે આગતિક છે, તે પ્રત્યેક શરીરી અને અસંખ્યાત લોકાકાશ પ્રદેશ પ્રમાણ છે. આ સૂક્ષ્મ વાયુકાયિકનું વર્ણન પૂરું થયું. ભગવન્ ! તે બાદર વાયુકાયિકો | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 44 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं थलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? थलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा– चउप्पयथलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया परिसप्पसंमुच्छिम-पंचेंदियतिरिक्खजोणिया।
से किं तं चउप्पयथलयरसंमुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणिया? चउप्पयथलयरसंमुच्छिम-पंचेंदियतिरिक्खजोणिया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– एगखुरा दुखुरा गंडीपया सणप्फया जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। तओ सरीरगा, ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं गाउयपुहत्तं, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं Translated Sutra: ભગવન્ ! તે સ્થલચર સંમૂર્ચ્છિમ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચયોનિક શું છે ? તેઓ બે ભેદે છે – ચતુષ્પદ સ્થલચર સંમૂર્ચ્છિમ તિર્યંચ પંચેન્દ્રિય અને પરિસર્પ સંમૂર્ચ્છિમ તિર્યંચ પંચેન્દ્રિય. તે સ્થલચર ચતુષ્પદ સંમૂર્ચ્છિમ તિર્યંચ પંચેન્દ્રિય શું છે ? તેઓ ચાર ભેદે છે. તે આ – એકખુર, દ્વિખુર, ગંડીપદ, સનખપદ યાવત્ આવા પ્રકારના | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 46 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं जलयरा? जलयरा पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा–मच्छा कच्छभा मगरा गाहा सुंसुमारा। सव्वेसिं भेदो भाणियव्वो तहेव जहा पन्नवणाए जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसिं णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए तेयए कम्मए। सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, छव्विहसंघयणी पन्नत्ता, तं जहा–वइरोसभनारायसंघयणी उसभनारायसंघयणी नारायसंघयणी अद्धनारायसंघयणी कीलियासंघयणी छेवट्टसंघयणी।
छव्विहसंठिया पन्नत्ता, तं जहा–समचउरंससंठिया Translated Sutra: ભગવન્ ! તે જલચરો શું છે ? ગૌતમ ! તે પાંચ ભેદે છે – મત્સ્ય, કચ્છપ, મગર, ગ્રાહ, સુંસુમાર. પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર મુજબ, તે બધા ભેદો કહેવા. યાવત્ આવા પ્રકારના જે ગર્ભજ જલચર છે, તે સંક્ષેપથી બે ભેદે કહ્યા છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. ભગવન્ ! તે જીવોના કેટલા શરીરો છે ? ગૌતમ ! ચાર શરીરો કહ્યા છે – ઔદારિક, વૈક્રિય, તૈજસ, કાર્મણ. તે | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 47 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं थलयरा? थलयरा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–चउप्पया य परिसप्पा य।
से किं तं चउप्पया? चउप्पया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–एगखुरा सो चेव भेदो जाव जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। चत्तारि सरीरा, ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं छ गाउयाइं, ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं, नवरं–उव्वट्टित्ता नेरइएसु चउत्थपुढविं ताव गच्छंति, सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया चउआगतिया, परित्ता असंखिज्जा पन्नत्ता। से तं चउप्पया।
से किं तं परिसप्पा? परिसप्पा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–उरपरिसप्पा य Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૭. ભગવન્ ! તે સ્થલચરો શું છે ? સ્થલચરો બે ભેદે છે – ચતુષ્પદો અને પરિસર્પો. ભગવન્ ! તે ચતુષ્પદો શું છે ? તે ચાર ભેદે છે – એક ખુરવાળા આદિ ભેદો પ્રજ્ઞાપના સૂત્રાનુસારકહેવા યાવત્ જે આવા પ્રકારના બીજા પણજીવો છે, તે સંક્ષેપથી બે ભેદે કહ્યા છે – પર્યાપ્તા અને અપર્યાપ્તા. તે જીવોને ચાર શરીરો હોય, તેમની અવગાહના | |||||||||
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द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 49 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मनुस्सा? मनुस्सा दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–संमुच्छिममनुस्सा य गब्भवक्कंतियमनुस्सा य।
कहि णं भंते! संमुच्छिममनुस्सा संमुच्छंति? गोयमा! अंतो मनुस्सखेत्ते जाव अंतोमुहुत्ताउया चेव कालं करेंति।
तेसि णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पन्नत्ता? गोयमा! तिन्नि सरीरगा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए। संघयण संठाण कसाय सण्णा लेसा जहा बेइंदियाणं, इंदिया पंच, समुग्घाया तिन्नि, असन्नी, नपुंसगा, अपज्जत्तीओ पंच, दिट्ठिदंसण अन्नाण जोग उवओगा जहा पुढविकाइयाणं, आधारो जहा बेइंदियाणं, उववातो नेरइय देव तेउ वाउ असंखाउवज्जो, अंतोमुहुत्तं ठिती, समोहतावि असमोहतावि मरंति, कहिं Translated Sutra: ભગવન્ ! તે મનુષ્યો શું છે ? મનુષ્યો બે ભેદે કહ્યા છે. સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યો અને ગર્ભવ્યુત્ક્રાંતિક મનુષ્યો. ભગવન્ ! સંમૂર્ચ્છિમ મનુષ્યો ક્યાં સંમૂર્છે છે ? ગૌતમ ! મનુષ્ય ક્ષેત્રની અંદર ઉત્પન્ન થાય છે યાવત્ અંતર્મુહુર્તનું આયુષ્ય પૂર્ણ કરીને મૃત્યુ પામે છે. ભગવન્ ! તે જીવોને કેટલા શરીરો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ત્રણ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
द्विविध जीव प्रतिपत्ति |
Gujarati | 50 | Sutra | Upang-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं देवा? देवा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–भवनवासी वाणमंतरा जोइसिया वेमाणिया। एवं भेदो भाणियव्वो जहा पन्नवणाए। ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य।
तेसि णं तओ सरीरगा–वेउव्विए तेयए कम्मए। ओगाहणा दुविहा–भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जासा भवधारणिज्जा सा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं सत्त रयणीओ। तत्थ णं जासा उत्तरवेउव्विया सा जहन्नेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं, सरीरगा छण्हं संघयणाणं असंघयणी–नेवट्ठी नेव छिरा नेव ण्हारू। जे पोग्गला इट्ठा कंता पिया सुभा मणुन्ना मणामा ते तेसिं सरीरसंघायत्ताए Translated Sutra: ભગવન્ ! તે દેવો શું છે ? દેવો ચાર ભેદે કહ્યા છે, તે આ રીતે – ભવનવાસી, વ્યંતર, જ્યોતિષ્ક, વૈમાનિક. ભગવન્ ! તે ભવનવાસી શું છે ? તે ભવનવાસી દશ ભેદે કહ્યા છે. તે આ પ્રમાણે – અસુરકુમારો યાવત્ સ્તનિતકુમાર. તે ભવનવાસી કહ્યા. ભગવન્ ! તે વ્યંતરો શું છે ? અહી સર્વે દેવોના ભેદો કહેવા. યાવત્ તે સંક્ષેપથી બે ભેદે કહ્યા છે. તે | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Gujarati | 98 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नरका केरिसया गंधेणं पन्नत्ता? गोयमा! से जहानामए अहिमडेति वा गोमडेति वा सुनमडेति वा मज्जारमडेति वा मनुस्समडेति वा महिसमडेति वा मूसगमडेति वा आसमडेति वा हत्थिमडेति वा सीहमडेति वा वग्घमडेति वा विगमडेति वा दीविय-मडेति वा मयकुहियविणट्ठकुणिमवावण्णदुरभिगंधे असुइविलीणविगय बीभच्छदरिसणिज्जे किमि-जालाउलसंसत्ते भवेयारूवे सिया? नो इणट्ठे समट्ठे। गोयमा! इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए नरगा एत्तो अनिट्ठतरका चेव अकंततरका चेव अप्पियतरका चेव अमणुन्नतरका चेव अमनामतरका चेव गंधेणं पन्नत्ता। एवं जाव अधेसत्तमाए पुढवीए।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए Translated Sutra: [૧] ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નરકાવાસ વર્ણથી કેવા છે ? ગૌતમ ! કાળા – કાળી આભાવાળા, ગંભીર, રુંવાડા ઊભા કરી દે તેવા, ભયાનક, ત્રાસદાયી, પરમકૃષ્ણ વર્ણથી કહ્યા છે. એ રીતે યાવત્ અધઃસપ્તમી કહેવું. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નરકાવાસો કેવી ગંધવાળા છે ? ગૌતમ ! જેમ કોઈ સર્પ – ગાય – કૂતરા – બિલાડા – મનુષ્ય – ભેંસ – ઉંદર | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
नैरयिक उद्देशक-२ | Gujarati | 104 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं केरिसया पोग्गला ऊसासत्ताए परिणमंति? गोयमा! जे पोग्गला अनिट्ठा जाव अमणामा, ते तेसिं ऊसासत्ताए परिणमंति। एवं जाव अहेसत्तमाए। एवं आहारस्सवि सत्तसुवि।
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए नेरइयाणं कति लेसाओ पन्नत्ताओ? गोयमा! एक्का काउलेसा पन्नत्ता। एवं सक्करप्पभाएवि।
वालुयप्पभाए पुच्छा। दो लेसाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–नीललेसा काउलेसा य। ते बहुतरगा जे काउलेसा, ते थोवतरगा जे णीललेस्सा।
पंकप्पभाए पुच्छा। एक्का नीललेसा पन्नत्ता।
धूमप्पभाए पुच्छा। गोयमा! दो लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा–किण्हलेस्सा य नीललेस्सा य। ते बहुतरका जे नीललेस्सा, Translated Sutra: ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વી નૈરયિકોના શ્વાસોચ્છ્વાસ રૂપે કેવા પુદ્ગલો પરિણમે છે ? ગૌતમ ! જે પુદ્ગલો અનિષ્ટ યાવત્ અમણામ છે, તે તેમને શ્વાસોચ્છ્વાસ રૂપે પરિણમે છે. આ પ્રમાણે યાવત્ અધઃસપ્તમી કહેવું. સાતે નારકીમાં આહારકથન કરવું. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભાના નૈરયિકોને કેટલી લેશ્યા કહી છે ? ગૌતમ ! એક જ કાપોતલેશ્યા. | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
तिर्यंच उद्देशक-१ | Gujarati | 133 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! विमानाइं अच्चीणि अच्चियावत्ताइं अच्चिप्पभाइं अच्चिकंताइं अच्चिवण्णाइं अच्चि-लेस्साइं अच्चि ज्झयाइं अच्चिसिंगाइं अच्चिसिट्ठाइं अच्चिकूडाइं अच्चुत्तरवडिंसगाइं? हंता अत्थि।
ते णं भंते! विमाना केमहालता पन्नत्ता? गोयमा! जावतिए णं सूरिए उदेति जावइएणं च सूरिए अत्थमेति एवतियाइं तिन्नोवासंतराइं अत्थेगतियस्स देवस्स एगे विक्कमे सिता। से णं देवे ताए उक्किट्ठाए तुरियाए चवलाए चंडाए सिग्घाए उद्धुयाए जइणाए छेयाए दिव्वाए देवगतीए वीतीवयमाणे-वीतीवयमाणे जहन्नेणं एकाहं वा दुयाहं वा, उक्कोसेणं छम्मासे बीतीवएज्जा–अत्थेगतियं विमाणं वीतीवएज्जा अत्थेगतियं Translated Sutra: ભગવન્ ! શું સ્વસ્તિક, સ્વસ્તિકાવર્ત્ત, સ્વસ્તિકપ્રભ, સ્વસ્તિકકાંત, સ્વસ્તિકવર્ણ, સ્વસ્તિકલેશ્ય, સ્વસ્તિક – ધ્વજ, સ્વસ્તિકશૃંગાર, સ્વસ્તિકકૂટ, સ્વસ્તિકશિષ્ટ, સ્વસ્તિકોત્તરાવતંસક નામક વિમાન છે ? હા, ગૌતમ ! છે. ભગવન્ ! તે વિમાનો કેટલા મોટા છે ? ગૌતમ ! જેટલે દૂર સૂર્ય ઉદિત થાય છે, જેટલે દૂર સૂર્ય અસ્ત થાય છે. એવા | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
मनुष्य उद्देशक | Gujarati | 145 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगोरुयदीवस्स णं भंते! केरिसए आगार भावपडोयारे पन्नत्ते?
गोयमा! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पन्नत्ते। से जहानामए–आलिंगपुक्खरेति वा, एवं सवणिज्जे भाणितव्वे जाव पुढविसिलापट्टगंसि तत्थ णं बहवे एगोरुयदीवया मनुस्सा य मनुस्सीओ य आसयंति जाव विहरंति एगोरुयदीवे णं दीवे तत्थतत्थ देसे तहिं तहिं बहवे उद्दालका मोद्दालका रोद्दालका कतमाला नट्टमाला सिंगमाला संखमाला दंतमाला सेलमालगा नाम दुमगणा पन्नत्ता समणाउसो कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला मूलमंता कंदमंतो जाव बीयमंतो पत्तेहिं य पुप्फेहि य अच्छणपडिच्छन्ना सिरीए अतीवअतीव सोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठंति...
...एगोरुयदीवे णं दीवे Translated Sutra: એકોરુકદ્વીપ દ્વીપનો અંદરનો ભૂમિભાગ ચર્મમઢિત મૃદંગ સમાનબહુસમ રમણીય કહેલ છે. એ રીતે શયનીય કહેવું યાવત્ પૃથ્વીશિલાપટ્ટકનું પણ વર્ણન કરવું જોઈએ. ત્યાં ઘણા એકોરુકદ્વીપક મનુષ્યો અને સ્ત્રીઓ બેસે છે સુવે છે, યાવત્ વિચરે છે. હે આયુષ્યમાન્ શ્રમણ ! એકોરુક દ્વીપમાં તે – તે દેશમાં, ત્યાં – ત્યાં ઘણા ઉદ્દાલક, કોદ્દાલક, | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 179 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विजए देवे विजयाए रायहाणीए उववातसभाए देवसयणिज्जंसि देवदूसंतरिते अंगुलस्स असंखेज्जतिभागमेत्तीए ओगाहणाए विजयदेवत्ताए उववन्ने।
तए णं से विजए देवे अहुणोववण्णमेत्तए चेव समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छति तं जहा–आहारपज्जत्तीए सरीरपज्जत्तीए इंदियपज्जत्तीए आणापाणुपज्जत्तीए भासमनपज्जत्तीए।
तए णं तस्स विजयस्स देवस्स पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति भावं गयस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–किं मे पुव्विं करणिज्जं? किं मे पच्छा करणिज्जं? किं मे पुव्विं सेयं? किं मे पच्छा सेयं? किं मे Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે વિજયદેવ, વિજયા રાજધાનીમાં ઉપપાતસભામાં દેવશયનીયમાં દેવદૂષ્યથી ઢંકાયેલી અંગુલના અસંખ્યાતમાં ભાગ પ્રમાણ શરીરમાં વિજયદેવ રૂપે ઉત્પન્ન થયો. ત્યારે તે વિજયદેવ ઉત્પત્તિ પછી પાંચ પ્રકારની પર્યાપ્તિથી પૂર્ણ થયો. તે આ રીતે – આહાર પર્યાપ્તિ, શરીર પર્યાપ્તિ, ઇન્દ્રિય પર્યાપ્તિ, આનપ્રાણ પર્યાપ્તિ, | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
द्वीप समुद्र | Gujarati | 184 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवस्स णं भंते! दीवस्स पएसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं जंबुद्दीवे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! ते जंबुद्दीवे दीवे, नो खलु ते लवणे समुद्दे।
लवणस्स णं भंते! समुद्दस्स पदेसा जंबुद्दीवं दीवं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं लवणे समुद्दे जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! लवणे णं ते समुद्दे, नो खलु ते जंबुद्दीवे दीवे।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति।
लवणे णं भंते! समुद्दे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता जंबुद्दीवे दीवे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, Translated Sutra: ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના પ્રદેશો લવણસમુદ્રને સ્પૃષ્ટ છે ? હા, સ્પૃષ્ટ છે. ભગવન્ ! તે શું જંબૂદ્વીપ રૂપ છે કે લવણસમુદ્ર રૂપ છે ? ગૌતમ ! નિશ્ચે તે જંબૂદ્વીપ રૂપ છે પણ લવણસમુદ્ર રૂપ નથી. ભગવન્ ! લવણસમુદ્રના પ્રદેશો જંબૂદ્વીપને સ્પૃષ્ટ છે ? હા, સ્પૃષ્ટ છે. ભગવન્ ! તે શું લવણસમુદ્ર રૂપ છે કે જંબૂદ્વીપ રૂપ છે ? ગૌતમ! | |||||||||
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चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
जंबुद्वीप वर्णन | Gujarati | 185 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति–जंबुद्दीवे दीवे? गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरेणं नीलवंतस्स दाहिणेणं मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं गंधमायणस्स वक्खारपव्वयस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं उत्तरकुरा नाम कुरा पन्नत्ता–पाईणपडिणायता उदीणदाहिणवित्थिण्णा अद्ध-चंदसंठाणसंठिता एक्कारस जोयणसहस्साइं अट्ठ य बायाले जोयणसते दोन्नि य एक्कोनवीसतिभागे जोयणस्स विक्खंभेणं। तीसे जीवा उत्तरेणं पाईणपडिणायता दुहओ वक्खारपव्वयं पुट्ठा, पुरत्थि-मिल्लाए कोडीए पुरत्थिमिल्लं वक्खारपव्वतं पुट्ठा, पच्चत्थिमिल्लाए कोडीए पच्चत्थिमिल्लं वक्खारपव्वयं पुट्ठा, Translated Sutra: હે ભગવન્ ! જંબૂદ્વીપ, જંબૂદ્વીપ કેમ કહેવાય છે ? ગૌતમ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપમાં મેરુ પર્વતની ઉત્તરે, નીલવંતની દક્ષિણે માલ્યવંત વક્ષસ્કાર પર્વતની પશ્ચિમે, ગંધમાદન વક્ષસ્કાર પર્વતની પૂર્વે ઉત્તરકુરા નામે કુરા ક્ષેત્ર છે. તે પૂર્વ – પશ્ચિમ લાંબું અને ઉત્તર – દક્ષિણ પહોળું, અર્દ્ધ ચંદ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વિષ્કંભથી | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
लवण समुद्र वर्णन | Gujarati | 200 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] लवणस्स णं भंते! समुद्दस्स पएसा धायइसंडं दीवं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं लवणे समुद्दे? धायइसंडे दीवे? गोयमा! ते लवणे समुद्दे, नो खलु ते धायइसंडे दीवे।
धायइसंडस्स णं भंते! दीवस्स पदेसा लवणं समुद्दं पुट्ठा? हंता पुट्ठा।
ते णं भंते! किं धायइसंडे दीवे? लवणे समुद्दे? गोयमा! धायइसंडे णं ते दीवे, नो खलु ते लवणे समुद्दे।
लवणे णं भंते समुद्दे जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता धायइसंडे दीवे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थे गतिया नो पच्चायंति।
धायइसंडे णं भंते! जीवा उद्दाइत्ताउद्दाइत्ता लवणे समुद्दे पच्चायंति? गोयमा! अत्थेगतिया पच्चायंति, अत्थेगतिया नो पच्चायंति।
से Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૯૮ | |||||||||
Jivajivabhigam | જીવાભિગમ ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
चतुर्विध जीव प्रतिपत्ति |
चंद्र सूर्य अने तेना द्वीप | Gujarati | 223 | Sutra | Upang-03 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! लवणसमुद्दे दो जोयणसतसहस्साइं चक्कवालविक्खंभेणं, पन्नरस जोयणसतसहस्साइं एकासीतिं च सहस्साइं सतं च एगुणयालं किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं, एगं जोयणसहस्सं उव्वेहेणं, सोलस जोयणसहस्साइं उस्सेधेणं, सत्तरस जोयणसहस्साइं सव्वग्गेणं पन्नत्ते, कम्हा णं भंते! लवणसमुद्दे जंबुद्दीवं दीवं नो ओवीलेति? नो उप्पीलेति? नो चेव णं एक्कोदगं करेति?
गोयमा! जंबुद्दीवे णं दीवे भरहेरवएसु वासेसु अरहंता चक्कवट्टी बलदेवा वासुदेवा चारणा विज्जाधरा समणा समणीओ सावया सावियाओ मनुया पगतिभद्दया पगतिविणीया पगतिउवसंता पगतिपयणुकोहमाणमायालोभा मिउमद्दवसंपन्ना अल्लीणा भद्दगा विनीता, Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૨૨૨ |