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Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 783 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जहित्तु संगं च महाकिलेसं महंतमोहं कसिणं भयावहं । परियायधम्मं चभिरोयएज्जा वयाणि सीलाणि परीसहे य ॥

Translated Sutra: दीक्षित होने पर मुनि महा क्लेशकारी, महामोह और पूर्ण भयकारी संग का परित्याग करके पर्यायधर्म में, व्रत में, शील में और परीषहों में अभिरुचि रखे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 784 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहिंस सच्चं च अतेनगं च तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च । पडिवज्जिया पंच महव्वयाणि चरिज्ज धम्मं जिनदेसियं विऊ ॥

Translated Sutra: विद्वान्‌ मुनि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह – इन पाँच महाव्रतों को स्वीकार करके जिनोपदिष्ट धर्म का आचरण करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 785 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वेहिं भूएहिं दयानुकंपो खंतिक्खमे संजयबंभयारी । सावज्जजोगं परिवज्जयंतो चरिज्ज भिक्खू सुसमाहिइंदिए ॥

Translated Sutra: इन्द्रियों का सम्यक्‌ संवरण करने वाला भिक्षु सब जीवों के प्रति करुणाशील रहे, क्षमा से दुर्वचनादि को सहे, संयत हो, ब्रह्मचारी हो। सदैव सावद्ययोग का परित्याग करता हुआ विचरे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 786 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कालेण कालं विहरेज्ज रट्ठे बलाबलं जाणिय अप्पणो य । सीहो व सद्देण न संतसेज्जा वयजोग सुच्चा न असब्भमाहु ॥

Translated Sutra: साधु समयानुसार अपने बलाबल को जानकर राष्ट्रों में विचरण करे। सिंह की भाँति भयोत्पादक शब्द सुनकर भी संत्रस्त न हो। असभ्य वचन सुनकर भी बदले में असभ्य वचन न कहे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 787 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवेहमाणो उ परिव्वएज्जा पियमप्पियं सव्व तितिक्खएज्जा । न सव्व सव्वत्थभिरोयएज्जा न यावि पूयं गरहं च संजए ॥

Translated Sutra: संयमी प्रतिकूलताओं की उपेक्षा करता हुआ विचरण करे। प्रिय – अप्रिय परीषहों को सहन करे। सर्वत्र सबकी अभिलाषा न करे, पूजा और गर्हा भी न चाहे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 788 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनेगछंदा इह मानवेहिं जे भावओ संपगरेइ भिक्खू । भयभेरवा तत्थ उइंति भीमा दिव्वा मनुस्सा अदुवा तिरिच्छा ॥

Translated Sutra: यहाँ संसार में मनुष्यों के अनेक प्रकार के अभिप्राय होते हैं। भिक्षु उन्हें अपने में भी भाव से जानता है। अतः वह देवकृत, मनुष्यकृत तथा तिर्यंचकृत भयोत्पादक भीषण उपसर्गों को सहन करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 789 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परीसहा दुव्विसहा अनेगे सीयंति जत्था बहुकायरा नरा । से तत्थ पत्ते न वहिज्ज भिक्खू संगामसीसे इव नागराया ॥

Translated Sutra: अनेक असह्य परीषह प्राप्त होने पर बहुत से कायर लोग खेद का अनुभव करते हैं। किन्तु भिक्षु परीषह होने पर संग्राम में आगे रहने वाले हाथी की तरह व्यथित न हो। शीत, उष्ण, डाँस, मच्छर, तृण – स्पर्श तथा अन्य विविध प्रकार के आतंक जब भिक्षु को स्पर्श करें, तब वह कुत्सित शब्द न करते हुए उन्हें समभाव से सहे। पूर्वकृत कर्मों
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 790 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सीओसिणा दंसमसा य फासा आयंका विविहा फुसंति देहं । अकुक्कुओ तत्थहियासएज्जा रयाइं खेवेज्ज पुरेकडाइं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ७८९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 791 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पहाय रागं च तहेव दोसं मोहं च भिक्खू सययं वियक्खणो । मेरु व्व वाएण अकंपमाणो परीसहे आयगुत्ते सहेज्जा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ७८९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 792 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अणुन्नए नावणए महेसी न यावि पूयं गरहं च संजए । स उज्जुभावं पडिवज्ज संजए निव्वाणमग्गं विरए उवेइ ॥

Translated Sutra: पूजा – प्रतिष्ठा में उन्नत और गर्हा में अवनत न होने वाला महर्षि पूजा और गर्हा में लिप्त न हो। वह समभावी विरत संयमी सरलता को स्वीकार करके निर्वाण – मार्ग को प्राप्त होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 793 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अरइरइसहे पहीणसंथवे विरए आयहिए पहाणवं । परमट्ठपएहिं चिट्ठई छिन्नसोए अममे अकिंचने ॥

Translated Sutra: जो अरति और रति को सहता है, संसारी जनों के परिचय से दूर रहता है, विरक्त है, आत्म – हित का साधक है, संयमशील है, शोक रहित है, ममत्त्व रहित है, अकिंचन है, वह परमार्थ पदों में स्थित होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 794 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विवित्तलयणाइ भएज्ज ताई निरोवलेवाइ असंथडाइं । इसीहि चिण्णाइ महायसेहिं काएण फासेज्ज परीसहाइं ॥

Translated Sutra: त्रायी, महान्‌ यशस्वी ऋषियों द्वारा स्वीकृत, लेपादि कर्म से रहित, असंसृत से एकान्त स्थानों का सेवन करे और परीषहों को सहन करे।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 795 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सन्नाणनाणोवगए महेसी अनुत्तरं चरिउं धम्मसंचयं । अनुत्तरे नाणधरे जसंसो ओभासई सूरिए वंतलिक्खे ॥

Translated Sutra: अनुत्तर धर्म – संचय का आचरण करके सद्‌ज्ञान से ज्ञान को प्राप्त करनेवाला, अनुत्तर ज्ञानधारी, यशस्वी महर्षि, अन्तरिक्ष में सूर्य की भाँति धर्म – संघ में प्रकाशमान होता है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२१ समुद्रपालीय

Hindi 796 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दुविहं खवेऊण य पुण्णपावं निरंगणे सव्वओ विप्पमुक्के । तरित्ता समुद्दं य महाभवोघं समुद्दपाले अपुणागमं गए ॥ –त्ति बेमि ॥

Translated Sutra: समुद्रपाल मुनि पुण्य – पाप दोनों ही कर्मों का क्षय करके संयम से निश्चल और सब प्रकार से मुक्त होकर समुद्र की भाँति विशाल संसार – प्रवाह को तैर कर मोक्ष में गए। – ऐसा मैं कहता हूँ।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 797 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोरियपुरंमि नयरे आसि राया महिड्ढिए । वसुदेवे त्ति नामेणं रायलक्खणसंजुए ॥

Translated Sutra: सोरियपुर नगर में राज – लक्षणों से युक्त, महान्‌ ऋद्धि से संपन्न ‘वसुदेव’ राजा था। उसकी रोहिणी और देवकी दो पत्नियाँ थीं। उन दोनों के राम (बलदेव) और केशव (कृष्ण) – दो प्रिय पुत्र थे। सूत्र – ७९७, ७९८
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 798 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तस्स भज्जा दुवे आसी रोहिणी देवई तहा । तासिं दोण्हं पि दो पुत्ता इट्ठा रामकेसवा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ७९७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 799 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोरियपुरंमि नयरे आसि राया महिड्ढिए । समुद्दविजए नामं रायलक्खणसंजुए ॥

Translated Sutra: सोरियपुर नगर में राज – लक्षणों से युक्त, महान्‌ ऋद्धि से संपन्न ‘समुद्रविजय’ राजा भी था। उसकी शिवा पत्नी थी, जिसका पुत्र महान्‌ यशस्वी, जितेन्द्रियों में श्रेष्ठ, लोकनाथ, भगवान्‌ अरिष्टनेमि था। सूत्र – ७९९, ८००
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 800 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तस्स भज्जा सिवा नाम तीसे पुत्तो महायसो । भगवं अरिट्ठनेमि त्ति लोगनाहे दमीसरे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ७९९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 801 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोरिट्ठनेमिनामो उ लक्खणस्सरसंजुओ । अट्ठसहस्सलक्खणधरो गोयमो कालगच्छवी ॥

Translated Sutra: वह अरिष्टनेमि सुस्वरत्व एवं लक्षणों से युक्त था। १००८ शुभ लक्षणों का धारक भी था। उसका गोत्र गौतम था और वह वर्ण से श्याम था। वह वज्रऋषभ नाराच संहनन और समचतुरस्र संस्थानवाला था। उसका उदर मछली के उदर जैसा कोमल था। राजमती कन्या उसकी भार्या बने, यह याचना केशव ने की। यह महान राजा की कन्या सुशील, सुन्दर, सर्वलक्षण
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 802 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वज्जरिसहसंघयणो समचउरंसो ज्झसोयरो । तस्स राईमइं कन्नं भज्जं जायइ केसवो ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 803 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सा रायवरकन्ना सुसीला चारुपेहिणो । सव्वलक्खणसंपुन्ना विज्जुसोयामणिप्पभा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 804 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अहाह जणओ तीसे वासुदेवं महिड्ढियं । इहागच्छऊ कुमारो जा से कन्नं दलाम हं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 805 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सव्वोसहीहि ण्हविओ कयकोउयमंगलो । दिव्वजुयलपरिहिओ आभरणेहिं विभूसिओ ॥

Translated Sutra: अरिष्टनेमि को सर्व औषधियों के जल से स्नान कराया गया। यथाविधि कौतुक एवं मंगल किए गए। दिव्य वस्त्र – युगल पहनाया गया और उसे आभरणों से विभूषित किया गया। वासुदेव के सबसे बड़े मत्त गन्धहस्ती पर अरिष्टनेमि आरूढ हुए तो सिर पर चूडामणि की भाँति बहुत अधिक सुशोभित हुए। अरिष्टनेमि ऊंचे छत्र से तथा चामरों से सुशोभित
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 806 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मत्तं च गंधहत्थिं वासुदेवस्स जेट्ठगं । आरूढो सोहए अहियं सिरे चूडामणी जहा ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 807 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह ऊसिएण छत्तेण चामराहि य सोहिए । दसारचक्केण य सो सव्वओ परिवारिओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 808 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चउरंगिणीए सेनाए रइयाए जहक्कमं । तुरियाण सन्निनाएण दिव्वेण गगनं फुसे ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 809 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयारिसीए इड्ढीए जुईए उत्तिमाए य । नियगाओ भवणाओ निज्जाओ वण्हिपुंगवो ॥

Translated Sutra: ऐसी उत्तम ऋद्धि और द्युति के साथ वह वृष्णि – पुंगव अपने भवन से निकला। तदनन्तर उसने बाड़ों और पिंजरों में बन्द किए गए भयत्रस्त एवं अति दुःखित प्राणियों को देखा। वे जीवन की अन्तिम स्थिति के सम्मुख थे। मांस के लिए खाये जाने वाले थे। उन्हें देखकर महाप्राज्ञ अरिष्टनेमि ने सारथि को कहा – ये सब सुखार्थी प्राणी किस
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 810 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सो तत्थ निज्जंतो दिस्स पाणे भयद्दुए । वाडेहिं पंजरेहिं च सन्निरुद्धे सुदुक्खिए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 811 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जीवियंतं तु संपत्ते मंसट्ठा भक्खियव्वए । पासेत्ता से महापन्ने सारहिं इणमब्बवी ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 812 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कस्स अट्ठा इमे पाणा एए सव्वे सुहेसिणो । वाडेहिं पंजरेहिं च सन्निरुद्धा य अच्छहिं? ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 813 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सारही तओ भणइ एए भद्दा उ पाणिणो । तुज्झं विवाहकज्जंमि भोयावेउं बहुं जनं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८०९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 814 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोऊण तस्स वयणं बहुपाणिविनासनं । चिंतेइ से महापन्ने सानुक्कोसे जिएहि उ ॥

Translated Sutra: अनेक प्राणियों के विनाश से सम्बन्धित वचन को सुनकर जीवों के प्रति करुणाशील, महाप्राज्ञ अरिष्टनेमि चिन्तन करते हैं – ‘‘यदि मेरे निमित्त से इन बहुत से प्राणियों का वध होता है, तो यह परलोक में मेरे लिए श्रेयस्कर नहीं होगा।’’ उस महान्‌ यशस्वी ने कुण्डल – युगल, सूत्रक और अन्य सब आभूषण उतार कर सारथि को दे दिए। सूत्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 815 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जइ मज्झ कारणा एए हम्मिहिंति बहू जिया । न मे एयं तु निस्सेसं परलोगे भविस्सई ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८१४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 816 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सो कुंडलाण जुयलं सुत्तगं च महायसो । आभरणाणि य सव्वाणि सारहिस्स पणामए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८१४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 817 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मनपरिणामे य कए देवा य जहोइयं समोइण्णा । सव्वड्ढीए सपरिसा निक्खमणं तस्स काउं जे ॥

Translated Sutra: मन में ये परिणाम होते ही उनके यथोचित अभिनिष्क्रमण के लिए देवता अपनी ऋद्धि और परिषद्‌ के साथ आए। देव और मनुष्यों से परिवृत्त भगवान्‌ अरिष्टनेमि शिबिकारत्न में आरूढ़ हुए। द्वारका से चलकर रैवतक पर्वत पर स्थित हुए। उद्यान में पहुँचकर, उत्तम शिबिका से उतरकर, एक हजार व्यक्तियों के साथ, भगवान ने चित्रा नक्षत्र
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 818 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] देवमनुस्सपरिवुडो सीयारयणं तओ समारूढो । निक्खमिय बारगाओ रेवययंमि ट्ठिओ भगवं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८१७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 819 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उज्जाणं संपत्तो ओइन्नो उत्तिमाओ सीयाओ । साहस्सीए परिवुडो अह निक्खमई उ चित्ताहि ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८१७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 820 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह से सुगंधगंधिए तुरियं मउयकुंचिए । सयमेव लुंचई केसे पंचमुट्ठीहिं समाहिओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८१७
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 821 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइंदियं । इच्छियमनोरहे तुरियं पावेसू तं दमीसरा! ॥

Translated Sutra: वासुदेव कृष्ण ने लुप्तकेश एवं जितेन्द्रिय भगवान्‌ को कहा – हे दमीश्वर ! आप अपने अभीष्ट मनोरथ को शीघ्र प्राप्त करो। आप ज्ञान, दर्शन, चारित्र, क्षान्ति और मुक्ति के द्वारा आगे बढ़ो।इस प्रकार बलराम, केशव, दशार्ह यादव और अन्य बहुत से लोग अरिष्टनेमि को वन्दना कर द्वारकापुरी को लौट आए। सूत्र – ८२१–८२३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 822 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाणेणं दंसणेणं च चरित्तेण तहेव य । खंतीए मुत्तीए वड्ढमाणो भवाहि य ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८२१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 823 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं ते रामकेसवा दसारा य बहू जना । अरिट्ठणेमिं वंदित्ता अइगया बारगापुरिं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८२१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 824 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सोऊण रायकन्ना पव्वज्जं सा जिनस्स उ । नीहासा य निरानंदा सोगेण उ समुत्थया ॥

Translated Sutra: भगवान्‌ अरिष्टनेमि की प्रव्रज्या सुनकर राजकन्या राजीमती के हास्य और आनन्द सब समाप्त हो गए। और वह शोकसे मूर्च्छित हो गई। राजीमती ने सोचा – धिक्कार है मेरे जीवन को। चूँकि मैं अरिष्टनेमि के द्वारा परित्यक्ता हूँ, अतः मेरा प्रव्रजित होना ही श्रेय है। धीर तथा कृतसंकल्प राजीमती ने कूर्च और कंधी से सँवारे हुए
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 825 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] राईमई विचिंतेइ धिरत्थु मम जीवियं । जा हं तेण परिच्चत्ता सेयं पव्वइउं मम ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८२४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 826 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सा भमरसन्निभे कुच्चफणगपसाहिए । सयमेव लुंचई केसे धिइमंता ववस्सिया ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८२४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 827 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वासुदेवो य णं भणइ लुत्तकेसं जिइंदियं । संसारसागरं घोरं तर कन्ने! लहुं लहुं ॥

Translated Sutra: वासुदेव ने लुप्त – केशा एवं जितेन्द्रिय राजीमती को कहा – कन्ये ! तू इस घोर संसार – सागर को अति शीघ्र पार कर।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 828 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सा पव्वइया संती पव्वावेसी तहिं बहुं । सयणं परियणं चेव सीलवंता बहुस्सुया ॥

Translated Sutra: शीलवती एवं बहुश्रुत राजीमती ने प्रव्रजित होकर अपने साथ बहुत से स्वजनों तथा परिजनों को भी प्रव्रजित कराया।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 829 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गिरिं रेवययं जंती वासेणुल्ला उ अंतरा । वासंते अंधयारम्मि अंतो लयणस्स सा ठिया ॥

Translated Sutra: वह रैवतक पर्वत पर जा रही थी कि बीच में ही वर्षा से भीग गई। जोर की वर्षा हो रही थी, अन्धकार छाया हुआ था। इस स्थिति में वह गुफा के अन्दर पहुँची। सुखाने के लिए अपने वस्त्रों को फैलाती हुई राजीमती को यथाजात रूप में रथनेमि ने देखा। उसका मन विचलित हो गया। पश्चात्‌ राजीमती ने भी उसको देखा। वहाँ एकान्त में उस संयत को
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 830 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] चीवराइं विसारंती जहा जाय त्ति पासिया । रहनेमी भग्गचित्तो पच्छा दिट्ठो य तीइ वि ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८२९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 831 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] भीया य सा तहिं दट्ठुं एगंते संजयं तयं । बाहाहिं काउं संगोफं वेवमाणी निसीयई ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ८२९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-२२ रथनेमीय

Hindi 832 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह सो वि रायपुत्तो समुद्दविजयंगओ । भीयं पवेवियं दट्ठुं इमं वक्कं उदाहरे ॥

Translated Sutra: तब समुद्रविजय के अंगजात उस राजपुत्र ने राजीमती को भयभीत और काँपती हुई देखकर वचन कहा – भद्रे ! मैं रथनेमि हूँ। हे सुन्दरी ! हे चारुभाषिणी ! तू मुझे स्वीकार कर। हे सुतनु ! तुझे कोई पीड़ा नहीं होगी। निश्चित ही मनुष्य – जन्म अत्यन्त दुर्लभ है। आओ, हम भोगों को भोगे। बाद में भुक्तभोगी हम जिन – मार्ग में दीक्षत होंगे। सूत्र
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