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Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-३ Hindi 76 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] निग्गंथस्स णं नवडहरतरुणस्स आयरिय-उवज्झाए वीसंभेज्जा, नो से कप्पइ अनायरियउवज्झायस्स होत्तए। कप्पइ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ पच्छा उवज्झायं। से किमाहु भंते? दुसंगहिए समणे निग्गंथे, तं जहा–आयरिएणं उवज्झाएण य।

Translated Sutra: वो साधु जो दीक्षा में छोटे हैं। तरुण हैं। ऐसे साधु की आचार्य – उपाध्याय काल कर गए हो उनके बिना रहना न कल्पे, पहले आचार्य और फिर उपाध्याय की स्थापना करके रहना कल्पे। ऐसा क्यों कहा ? वो साधु नए हैं – तरुण हैं इसलिए उसे आचार्य – उपाध्याय आदि के संग बिना रहना न कल्पे, यदि साध्वी नवदीक्षित और तरुण हो तो उसे आचार्य –
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 95 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायस्स एगाणियस्स हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय को गर्मी या शीतकाल में अकेले विचरना न कल्पे, खुद के सहित दो के साथ विचरना कल्पे। सूत्र – ९५, ९६
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 97 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ गणावच्छेइयस्स अप्पबिइयस्स हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: गणावच्छेदक को खुद के सहित दो लोगों को गर्मी या शीतकाल में विचरना न कल्पे, खुद के सहित तीन को विचरना कल्पे। सूत्र – ९७, ९८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 103 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा रायहाणीए वा खेडंसि वा कब्बडंसि वा मडंबंसि वा पट्टणंसि वा दोणमुहंसि वा आसमंसि वा संवाहंसि वा सन्निवेसंसि वा बहूणं आयरिय-उवज्झायाणं अप्पबियाणं बहूणं गणावच्छेइयाणं अप्पतइयाणं कप्पइ हेमंतगिम्हासु चारए अन्नमन्ननिस्साए।

Translated Sutra: वे गाँव, नगर, निगम, राजधानी, खेड़ा, कसबो, मंड़प, पाटण, द्रोणमुख, आश्रम, संवाह सन्निवेश के लिए अनेक आचार्य, उपाध्याय खुद के साथ दो, अनेक गणावच्छेदक को खुद के साथ तीन को आपस में गर्मी या शीत काल में विचरना कल्पे और अनेक आचार्य – उपाध्याय को खुद के साथ तीन और अनेक गणावच्छेदक को खुद के साथ चार को अन्योन्य निश्रा में वर्षावास
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 105 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गामानुगामं दूइज्जमाणो भिक्खू य जं पुरओ कट्टु विहरइ से य आहच्च वीसंभेज्जा, अत्थियाइं त्थ अन्ने केइ उवसंपज्जणारिहे, से उवसंपज्जियव्वे। नत्थियाइं त्थ अन्ने केइ उवसंपज्जणारिहे, अप्पणो य से कप्पाए असमत्ते एवं से कप्पइ एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अन्ने साहम्मिया विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए। नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परो वएज्जा–वसाहि अज्जो! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा

Translated Sutra: एक गाँव से दूसरे गाँव विचरते, या चातुर्मास रहे साधु जो आचार्य आदि को आगे करके विचरते हो वो आचार्य आदि शायद काल करे तो अन्य किसी को अंगीकार करके उस पदवी पर स्थापित करके विचरना कल्पे। यदि किसी को कल्पाक – वडील रूप से स्थापन करने के उचित न हो और खुद आचार प्रकल्प – निसीह पढ़े हुए न हो तो उसको एक रात्रि की प्रतिज्ञा अंगीकार
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 107 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए गिलायमाणे अन्नयरं वएज्जा–अज्जो! ममंसि णं कालगयंसि समाणंसि अयं समुक्कसियव्वे। से य समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियव्वे। अत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से समुक्क-सियव्वे, नत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कसियव्वे। तंसि च णं समुक्किट्ठंसि परो वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जो! निक्खिवाहि। तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जे तं साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उट्ठाए विहरंति सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: आचार्य – उपाध्याय बीमारी उत्पन्न हो तब या वेश छोड़कर जाए तब दूसरों को ऐसा कहे कि हे आर्य ! मैं काल करु तब इसे आचार्य की पदवी देना। वे यदि आचार्य पदवी देने के योग्य हो तो उसे पदवी देना। योग्य न हो तो न देना। यदि कोई दूसरे वो पदवी देने के लिए योग्य हो तो उसे देना, यदि कोई वो पदवी के लिए योग्य न हो तो पहले कहा उसे ही पदवी
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 114 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरियापविट्ठे भिक्खू जाव चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा, सच्चेव आलोयणा सच्चेव पडिक्कमणा सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुण्णवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे।

Translated Sutra: आज्ञा बिना चलने के लिए प्रवृत्त साधु चार – पाँच रात्रि विचरकर स्थविर को देखे तब उनकी आज्ञा बिना जो विचरण किया उसकी आलोचना करे, प्रतिक्रमण करे, पूर्व की आज्ञा लेकर रहे लेकिन हाथ की रेखा सूख जाए उतना काल भी आज्ञा बिना न रहे।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Hindi 115 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चरियापविट्ठे भिक्खू परं चउरायाओ पंचरायाओ थेरे पासेज्जा पुणो आलोएज्जा पुणो पडिक्क-मेज्जा पुणो छेय-परिहारस्स उवट्ठाएज्जा। भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चं पि ओग्गहे अनुण्णवेयव्वे सिया–अनुजाणह भंते! मिओग्गहं अहालंदं धुवं नितियं वेउट्ठियं, तओ पच्छा कायसंफासं।

Translated Sutra: कोई साधु आज्ञा बिना अन्य गच्छ में जाने के लिए प्रवर्ते, चार या पाँच रात्रि के अलावा आज्ञा बिना रहे फिर स्थविर को देखकर फिर से आलोवे, फिर से प्रतिक्रमण करे, आज्ञा बिना जितने दिन रहे उतने दिन का छेद या परिहार तप प्रायश्चित्त आता है। साधु के संयम भाव को टिकाए रखने के लिए दूसरी बार स्थविर की आज्ञा माँगकर रहे। उस साधु
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 127 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ पवत्तिणीए अप्पबिइयाए हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: प्रवर्तिनी साध्वी को गर्मी और शीतकाल में खुद के साथ दो साध्वी का विचरना न कल्पे, तीन हो तो कल्पे। सूत्र – १२७, १२८
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 129 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ गणावच्छेइणीए अप्पतइयाए हेमंतगिम्हासु चारए।

Translated Sutra: गणावच्छेदणी साध्वी का शेष काल में खुद के साथ तीन को विचरना न कल्पे, चार को कल्पे। सूत्र – १२९, १३०
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 135 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा बहूणं पवत्तिणीणं अप्पतइयाणं बहूणं गणावच्छेइणीणं अप्पचउत्थाणं कप्पइ हेमंतगिम्हासु चारए अन्नमन्ननीसाए।

Translated Sutra: वो गाँव यावत्‌ संनिवेश के लिए कईं प्रवर्तिनी को खुद के सहित तीन को, कईं गणावच्छेदणी को खुद के सहित चार को शेषकाल में अन्योन्य एक एक की निश्रा में विचरना कल्पे, वर्षावास रहना हो तो कईं प्रवर्तिनी हो तो खुद के साथ चार को और कईं गणावच्छेदणी हो तो पाँच की अन्योन्य निश्रा में रहना कल्पे। सूत्र – १३५, १३६
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 137 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गामानुगामं दूइज्जमाणी निग्गंथी य जं पुरओ काउं विहरइ सा आहच्च वीसंभेज्जा अत्थियाइं त्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा सा उवसंपज्जियव्वा। नत्थियाइं त्थ काइ अण्णा उवसंपज्जणारिहा तीसे य अप्पणो कप्पाए असमत्ते कप्पइ से एगराइयाए पडिमाए जण्णं-जण्णं दिसं अन्नाओ साहम्मिणीओ विहरंति तण्णं-तण्णं दिसं उवलित्तए नो से कप्पइ तत्थ विहारवत्तियं वत्थए, कप्पइ से तत्थ कारणवत्तियं वत्थए। तंसि च णं कारणंसि निट्ठियंसि परावएज्जा–वसाहि अज्जे! एगरायं वा दुरायं वा। एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए। जं तत्थ परं एगरायाओ वा दुरायाओ वा वसइ

Translated Sutra: एक गाँव से दूसरे गाँव विचरते हुए या वर्षावास में रहे साध्वी जिन्हें आगे करके विचरते हो तो बड़े साध्वी शायद काल करे तो उस समुदाय में रहे दूसरे किसी उचित साध्वी को वडील स्थापित करके उसकी आज्ञा में रहे, यदि वडील की तरह वैसे कोई उचित न मिले और अन्य साध्वी आचार – प्रकल्प से अज्ञान हो तो एक रात का अभिग्रह लेकर, जिन दिशा
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Hindi 139 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पवत्तिणी य गिलायमाणी अन्नयरं वएज्जा–मए णं अज्जे! कालगयाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा। सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसणारिहा नो समुक्क-सियव्वा। अत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा समु-क्कसियव्वा, नत्थियाइं त्थ अन्ना काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए व णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जे! निक्खिवाहि? तीसे णं निक्खिवमाणीए नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जाओ तं साहम्मिणीओ अहाकप्पे णं नो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: प्रवर्तिनी साध्वी बीमारी आदि कारण से या मोह के उदय से चारित्र छोड़कर (मैथुन अर्थे) देशान्तर जाए तब अन्य को ऐसा कहे कि मैं काल करूँ तब या मेरे बाद मेरी पदवी इस साध्वी को देना। यदि वो उचित लगे तो पदवी दे, उचित न लगे तो न दे। उसे समुदाय में अन्य कोई योग्य लगे तो उसे पदवी दे, यदि कोई उचित न लगे तो पहले कहे गए अनुसार पदवी
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 153 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा अभिनिव्वगडाए अभिनिदुवाराए अभिनिक्खमण-पवेसाए नो कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए, किमंग पुणं अप्पागमस्स अप्पसुयस्स?

Translated Sutra: वो गाँव यावत्‌ संनिवेश के लिए कईं वाड़ – दरवाजा आने – जाने का मार्ग हो वहाँ बहुश्रुत या कईं आगम के ज्ञाता का अकेले रहना न कल्पे, यदि उन्हें न कल्पे तो अल्पश्रुतधर या अल्प आगमज्ञाता को किस तरह कल्पे ? यानि न कल्पे, लेकिन एक ही वाड़, एक दरवाजा, आने – जाने का एक ही मार्ग हो वहाँ बहुश्रुत – आगमज्ञाता साधु एकाकीपन से रहना
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 154 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमण-पवेसाए कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए उभओ कालं भिक्खुभावं पडिजागरमाणस्स।

Translated Sutra: देखो सूत्र १५३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Hindi 155 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जत्थ एए बहवे इत्थीओ य पुरिसा य पण्हावेंति तत्थ से समणे निग्गंथे अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुक्कपोग्गले निग्घाएमाणे हत्थकम्मपडिसेवणपत्ते आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं। जत्थ एए बहवे इत्थीओ य पुरिसा य पण्हावेंति तत्थ से समणे निग्गंथे अन्नयरंसि अचित्तंसि सोयंसि सुक्कपोग्गले निग्घाएमाणे मेहुणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अनुग्घाइयं।

Translated Sutra: जिस जगह कईं स्त्री – पुरुष मोह के उदय से मैथुन कर्म प्रारम्भ कर रहे हो वो देखकर श्रमण – दूसरे किसी अचित्त छिद्र में शुक्र पुद्‌गल नीकाले या हस्तकर्म भाव से सेवन करे तो एक मास का गुरु प्रायश्चित्त आता है। लेकिन यदि हस्तकर्म की बजाय मैथुन भाव से सेवन करे तो गुरु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 173 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा विइगिट्ठे काले सज्झायं उदिसित्तए करेत्तए।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को विकाल में स्वाध्याय करना न कल्पे, यदि साधु की निश्रा – आज्ञा हो तो साध्वी को विकाल में भी स्वाध्याय करना कल्पे। सूत्र – १७३, १७४
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 174 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथीणं विइगिट्ठे काले सज्झायं करेत्तए निग्गंथनिस्साए।

Translated Sutra: देखो सूत्र १७३
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 175 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा असज्झाइए सज्झायं करेत्तए।

Translated Sutra: साधु – साध्वी को असज्झाय में स्वाध्याय करना न कल्पे, सज्झाय में (स्वाध्यायकाले) स्वाध्याय करना कल्पे। सूत्र – १७५, १७६
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Hindi 180 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] गामानुगामं दूइज्जमाणे भिक्खू य आहच्च वीसंभेज्जा तं च सरीरगं केइ साहम्मिया पासेज्जा, कप्पइ से तं सरीरगं मा सागारियमिति कट्टु थंडिले बहुफासुए पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिट्ठवेत्तए। अत्थियाइं त्थ केइ साहम्मियसंतिए उवग-रणजाए परिहरणारिहे, कप्पइ से सागारकडं गहाय दोच्चं पि ओग्गहं अनुन्नवेत्ता परिहारं परिहरेत्तए।

Translated Sutra: एक गाँव से दूसरे गाँव विहार करते साधु – साध्वी शायद काल करे, उनके शरीर को किसी साधर्मिक साधु देखे तो वो साधु उस मृतक को वस्त्र आदि से ढ़ँककर एकान्त, अचित्त, निर्दोष, स्थंड़िल भूमि देखकर, प्रमार्जना करके परठना कल्पे, यदि वहाँ कोई उपकरण हो तो वो आगार सहित ग्रहण करे, दूसरी बार आज्ञा लेकर वो उपकरण रखना या त्याग करने का
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 242 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खुड्डियण्णं मोयपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स कप्पइ से पढमसरदकालसमयंसि वा चरिमनिदाह-कालसमयंसि वा बहिया गामस्स वा जाव सन्निवेसस्स वा वनंसि वा वनविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा। भोच्चा आरुभइ चोदसमेणं पारेइ। अभोच्चा आरुभइ सोलसमेणं पारेइ। जाए मोए आईयव्वे, दिया आगच्छइ आईयव्वे, राइं आगच्छइ नो आईयव्वे, सपाणे आगच्छइ नो आईयव्वे, अप्पाणे आगच्छइ आईयव्वे, सबीए आगच्छइ नो आईयव्वे, अबीए आगच्छइ आई-यव्वे, ससणिद्धे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससणिद्धे आगच्छइ आईयव्वे, ससरक्खे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससरक्खे आगच्छइ आईयव्वे। जाए मोए आईयव्वे तं जहा–अप्पे वा बहुए वा। एवं खलु एसा

Translated Sutra: छोटी पेशाब प्रतिमा वहनेवाले साधु को पहले शरद काल में (मागसर मास में) और अन्तिम उष्ण काल में (आषाढ़ मास में) गाँव के बाहर यावत्‌ सन्निवेश, वन, वनदूर्ग, पर्वत, पर्वतदूर्ग में यह प्रतिमा धारण करना कल्पे, भोजन करके प्रतिमा ग्रहण करे तो १४ भक्त से पूरी हो यानि छ उपवास के बाद पारणा करे, खाए बिना पड़िमा कने से १६ भक्त से यानि
Vyavaharsutra व्यवहारसूत्र Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Hindi 243 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] महल्लियण्णं मोयपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पइ से पढमसरदकालसमयंसि वा चरिम-निदाहकालसमयंसि वा बहिया गामस्स वा जाव सन्निवेसस्स वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा। भोच्चा आरुभइ सोलसमेणं पारेइ। अभोच्चा आरुभइ अट्ठारसमेणं पारेइ। जाए मोए आईयव्वे, दिया आगच्छइ आईयव्वे, राइं आगच्छइ नो आईयव्वे, सपाणे आगच्छइ नो आईयव्वे, अप्पाणे आगच्छइ आईयव्वे, सबीए आगच्छइ नो आईयव्वे, अबीए आगच्छई आईयव्वे, ससणिद्धे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससणिद्धे आगच्छइ आईयव्वे, ससरक्खे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससरक्खे आगच्छइ आईयव्वे, जाए मोए आईयव्वे, तं जहा–अप्पे वा बहुए वा। एवं खलु

Translated Sutra: बड़ी पिशाब प्रतिमा (अभिग्रह) अपनानेवाले साधु को ऊपर बताए अनुसार विधि से प्रतिमा वहन करनी हो। फर्क इतना कि भोजन करके प्रतिमा वहे तो, ७ – उपवास और भोजन किए बिना ८ – उपवास, बाकी सभी विधि छोटी प्रतिमा अनुसार मानना।
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Gujarati 173 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा विइगिट्ठे काले सज्झायं उदिसित्तए करेत्तए।

Translated Sutra: સાધુને વ્યતિકૃષ્ટ કાળમાં ઉત્કાલિક આગમના સ્વાધ્યાયકાળમાં કાલિક આગમનો સ્વાધ્યાય ન કલ્પે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-७ Gujarati 174 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कप्पइ निग्गंथीणं विइगिट्ठे काले सज्झायं करेत्तए निग्गंथनिस्साए।

Translated Sutra: સાધુની નિશ્રામાં સાધ્વીને વ્યતિકૃષ્ટ કાળમાં પણ સ્વાધ્યાય કરવો કલ્પે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-४ Gujarati 107 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिय-उवज्झाए गिलायमाणे अन्नयरं वएज्जा–अज्जो! ममंसि णं कालगयंसि समाणंसि अयं समुक्कसियव्वे। से य समुक्कसणारिहे समुक्कसियव्वे, से य नो समुक्कसणारिहे नो समुक्कसियव्वे। अत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से समुक्क-सियव्वे, नत्थियाइं त्थ अन्ने केइ समुक्कसणारिहे से चेव समुक्कसियव्वे। तंसि च णं समुक्किट्ठंसि परो वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जो! निक्खिवाहि। तस्स णं निक्खिवमाणस्स नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जे तं साहम्मिया अहाकप्पेणं नो उट्ठाए विहरंति सव्वेसिं तेसिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: રોગગ્રસ્ત આચાર્ય કે ઉપાધ્યાય કોઈ મુખ્ય સાધુને કહે કે, ‘હે આર્ય ! મારા કાળધર્મ પછી અમુક સાધુને મારા પદ ઉપર સ્થાપિત કરજો.’ જો આચાર્ય દ્વારા નિર્દિષ્ટ તે સાધુને પદ ઉપર સ્થાપન કરવાને યોગ્ય હોય તો તેને સ્થાપિત કરવો જોઈએ. જો તે એક પદ ઉપર સ્થાપન કરવાને યોગ્ય ન હોય તો તેને સ્થાપિત કરવા ન જોઈએ. જો સંઘમાં અન્ય કોઈ સાધુને
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-५ Gujarati 139 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पवत्तिणी य गिलायमाणी अन्नयरं वएज्जा–मए णं अज्जे! कालगयाए समाणीए इयं समुक्कसियव्वा। सा य समुक्कसणारिहा समुक्कसियव्वा, सा य नो समुक्कसणारिहा नो समुक्क-सियव्वा। अत्थियाइं त्थ अण्णा काइ समुक्कसणारिहा सा समु-क्कसियव्वा, नत्थियाइं त्थ अन्ना काइ समुक्कसणारिहा सा चेव समुक्कसियव्वा। ताए व णं समुक्किट्ठाए परा वएज्जा–दुस्समुक्किट्ठं ते अज्जे! निक्खिवाहि? तीसे णं निक्खिवमाणीए नत्थि केइ छेए वा परिहारे वा। जाओ तं साहम्मिणीओ अहाकप्पे णं नो उट्ठाए विहरंति सव्वासिं तासिं तप्पत्तियं छेए वा परिहारे वा।

Translated Sutra: બીમાર પ્રવર્તિની કોઈ પ્રમુખ સાધ્વીને કહે હે આર્ય! મારા કાળધર્મ બાદ અમુક સાધ્વીને મારા પદ ઉપર સ્થાપિત કરવી. જો પ્રવર્તિનીએ કહેલ તે સાધ્વી તે પદે સ્થાપના માટે યોગ્ય હોય તો તેને સ્થાપિત કરવી જોઈએ. જો તે એ પદે સ્થાપન કરવાને યોગ્ય ન હોય તો તેને સ્થાપિત ન કરવી. જો સમુદાયમાં બીજા કોઈ સાધ્વી તે પદને યોગ્ય હોય તો સ્થાપિત
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-६ Gujarati 154 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से गामंसि वा जाव सन्निवेसंसि वा एगवगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमण-पवेसाए कप्पइ बहुसुयस्स बब्भागमस्स एगाणियस्स भिक्खुस्स वत्थए उभओ कालं भिक्खुभावं पडिजागरमाणस्स।

Translated Sutra: ગામ યાવત્‌ રાજધાનીમાં એક વાડવાળા એક દ્વારવાળા, એક નિષ્ક્રમણ પ્રવેશવાળા ઉપાશ્રયમાં બહુશ્રુત અને બહુ આગમજ્ઞ સાધુને, બંને સમય જો તેઓ સંયમ ભાવની જાગૃતિ રાખવાપૂર્વક રહે તો તેઓને એકલું રહેવું કલ્પે છે.
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Gujarati 242 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] खुड्डियण्णं मोयपडिमं पडिवन्नस्स अनगारस्स कप्पइ से पढमसरदकालसमयंसि वा चरिमनिदाह-कालसमयंसि वा बहिया गामस्स वा जाव सन्निवेसस्स वा वनंसि वा वनविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा। भोच्चा आरुभइ चोदसमेणं पारेइ। अभोच्चा आरुभइ सोलसमेणं पारेइ। जाए मोए आईयव्वे, दिया आगच्छइ आईयव्वे, राइं आगच्छइ नो आईयव्वे, सपाणे आगच्छइ नो आईयव्वे, अप्पाणे आगच्छइ आईयव्वे, सबीए आगच्छइ नो आईयव्वे, अबीए आगच्छइ आई-यव्वे, ससणिद्धे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससणिद्धे आगच्छइ आईयव्वे, ससरक्खे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससरक्खे आगच्छइ आईयव्वे। जाए मोए आईयव्वे तं जहा–अप्पे वा बहुए वा। एवं खलु एसा

Translated Sutra: લઘુમોક – નાની પ્રસ્રવણ પ્રતિમા શરત્‌કાળના પ્રારંભે અથવા ગ્રીષ્મકાળના અંતમાં ગામ યાવત્‌ રાજધાની બહાર વનમાં કે વનકાળમાં, પર્વત – પર્વતદૂર્ગમાં સાધુએ ધારણ કરવી કલ્પે. જો તે ભોજન કરી તે દિવસે આ પ્રતિમાને ધારણ કરે, તો છ ઉપકરણથી પૂર્ણ કરે, ભોજન કર્યા વિના પ્રતિમા સ્વીકારે તો સાત ઉપવાસથી પૂર્ણ કરે છે. આ પ્રતિમામા
Vyavaharsutra વ્યવહારસૂત્ર Ardha-Magadhi

उद्देशक-९ Gujarati 243 Sutra Chheda-03 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] महल्लियण्णं मोयपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पइ से पढमसरदकालसमयंसि वा चरिम-निदाहकालसमयंसि वा बहिया गामस्स वा जाव सन्निवेसस्स वा वणंसि वा वणविदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयविदुग्गंसि वा। भोच्चा आरुभइ सोलसमेणं पारेइ। अभोच्चा आरुभइ अट्ठारसमेणं पारेइ। जाए मोए आईयव्वे, दिया आगच्छइ आईयव्वे, राइं आगच्छइ नो आईयव्वे, सपाणे आगच्छइ नो आईयव्वे, अप्पाणे आगच्छइ आईयव्वे, सबीए आगच्छइ नो आईयव्वे, अबीए आगच्छई आईयव्वे, ससणिद्धे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससणिद्धे आगच्छइ आईयव्वे, ससरक्खे आगच्छइ नो आईयव्वे, अससरक्खे आगच्छइ आईयव्वे, जाए मोए आईयव्वे, तं जहा–अप्पे वा बहुए वा। एवं खलु

Translated Sutra: મોટી પ્રસ્રવણ પ્રતિમા શરતકાળના પ્રારંભે કે ગ્રીષ્મકાળના અંતમાં ગામ યાવત્‌ રાજધાની બહાર વન યાવત્‌ પર્વતદૂર્ગમાં સાધુએ ધારણ કરવી કલ્પે. ભોજનદિને પ્રતિમા ધારણ કરે તો સાત ઉપવાસથી અને ઉપવાસને દિવસે ધારણ કરે તો આઠ ઉપવાસથી આ પ્રતિમા પૂર્ણ કરવી જોઈએ. શેષ સર્વ કથન નાની મોક પ્રતિમા અનુસાર સમજી લેવું.
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