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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 512 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा?
इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा, तं जहा–
विवित्ताइं सयनासनाइं सेविज्जा, से निग्गंथे।
नो इत्थी पसुपंडगसंसत्ताइं सयनासनाइं सेवित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइं सयनासनाइं सेवमाणस्स बंभयारिस्स Translated Sutra: स्थविर भगवन्तों ने ब्रह्मचर्य – समाधि के वे कौनसे स्थान बतलाए हैं ? स्थविर भगवन्तों ने ब्रह्मचर्य – समाधि के ये दस स्थान बतलाए हैं – जो विविक्त शयन और आसन का सेवन करता है, वह निर्ग्रन्थ है। जो स्त्री, पशु और नपुंसक से संसक्त शयन और आसन का सेवन नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? आचार्य कहते हैं – जो स्त्री, | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 513 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो इत्थीणं कहं कहित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स, बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा नो इत्थीणं कहं कहेज्जा। Translated Sutra: जो स्त्रियों की कथा नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? आचार्य कहते हैं – जो स्त्रियों की कथा करता है, उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, यावत् केवलीप्ररूपित धर्म से भ्रष्ट होता है। अतः निर्ग्रन्थ स्त्रियों की कथा न करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 514 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागयस्स, बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरेज्जा। Translated Sutra: जो स्त्रियों के साथ एक आसन पर नहीं बैठता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? – जो स्त्रियों के साथ एक आसन पर बैठता है, उस ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका होती है, यावत् केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट होता है। अतः निर्ग्रन्थ स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 515 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो इत्थीणं इंदियाइं मणोहराइं मणोरमाइं आलोइत्ता, निज्झाइत्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीणं इंदियाइं मणोहराइं, मणोरमाइं आलोएमाणस्स, निज्झायमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु निग्गंथे नो इत्थीणं इंदियाइं मणोहराइं, मणोरमाइं आलोएज्जा, निज्झाएज्जा। Translated Sutra: जो स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को नहीं देखता है और उनके विषय में चिन्तन नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? – जो स्त्रियों की मनोहर एवं मनोरम इन्द्रियों को देखता है और उनके विषय में चिन्तन करता हे, उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका होती है, यावत् धर्म से भ्रष्ट हो जाता | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 516 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो इत्थीणं कुड्डंतरंसि वा, दूसंतरंसि वा, भित्तंतरंसि वा, कुइयसद्दं वा, रुइयसद्दं वा, गीयसद्दं वा, हसियसद्दं वा, थणियसद्दं वा, कंदियसद्दं वा, विलवियसद्दं वा, सुणेत्ता हवइ से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कुडुंतरंसि वा, दूसतरंसि वा, भित्तंतरंसि वा, कुइयसद्दं वा, रुइयसद्दं वा, गीयसद्दं वा, हसियसद्दं वा, थणियसद्दं वा, कंदियसद्दं वा, विलवियसद्दं वा, सुणे-माणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु Translated Sutra: जो मिट्टी की दीवार के अन्तर से, परदे के अन्तर से अथवा पक्की दीवार के अन्तर से स्त्रियों के कूजन, रोदन, गीत, हास्य, स्तनित, आक्रन्दन या विलाप के शब्दों को नहीं सुनता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, यावत् धर्म से भ्रष्ट | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 517 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो निग्गंथे पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अणुसरित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अनुसरमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे पुव्वरयं पुव्वकीलियं अनुसरेज्जा। Translated Sutra: जो संयमग्रहण से पूर्व को रति और क्रीड़ा का अनुस्मरण नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, यावत् केवली – प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अतः निर्ग्रन्थ संयम ग्रहण से पूर्व की रति और क्रीड़ा का अनुस्मरण न | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 518 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो पणीयं आहारं आहारित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु पणीयं पाणभोयणं आहारेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे पणीयं आहारं आहारेज्जा। Translated Sutra: जो प्रणीत अर्थात् रसयुक्त पौष्टिक आहार नहीं करता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, यावत् केवली – प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अतः निर्ग्रन्थ प्रणीत आहार न करे। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 519 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो अइमायाए पाणभोयणं आहारेत्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे अइमायाए पानभोयणं भुंजिज्जा। Translated Sutra: जो परिमाण से अधिक नहीं खाता – पीता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? उस ब्रह्मचारी निर्ग्रन्थ को ब्रह्मचर्य के विषय में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, यावत् वह केवली प्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अतः निर्ग्रन्थ परिमाण से अधिक न खाए, न पीए। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 520 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो विभूसाणुवाई हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–विभूसावत्तिए, विभूसियसरीरे इत्थिजणस्स अभिलसणिज्जे हवइ। तओ णं तस्स इत्थिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे विभूसाणुवाई सिया। Translated Sutra: | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Hindi | 521 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु सद्दरूवरसगंधफासाणुवाइस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्प-ज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हविज्जा।
दसमे बंभचेरसमाहिठाणे हवइ।
[भवंति इत्थ सिलोगा, तं जहा] Translated Sutra: जो शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श में आसक्त नहीं होता है, वह निर्ग्रन्थ है। ऐसा क्यों ? उस ब्रह्मचारी को ब्रह्मचर्य में शंका, कांक्षा या विचिकित्सा उत्पन्न होती है, यावत् केवलीप्ररूपित धर्म से भ्रष्ट हो जाता है। अतः निर्ग्रन्थ शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श में आसक्त न बने। यह ब्रह्मचर्य समाधि का दसवाँ स्थान है। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Hindi | 750 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इमा हु अन्ना वि अनाहया निवा! तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि ।
नियंठधम्मं लहियाण वी जहा सोयंति एगे बहुकायरा नरा ॥ Translated Sutra: राजन् ! यह एक और भी अनाथता है। शान्त एवं एकाग्रचित्त होकर उसे सुनो ! बहुत से ऐसे कायर व्यक्ति होते हैं, जो निर्ग्रन्थ धर्म को पाकर भी खिन्न हो जाते हैं। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Hindi | 763 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोच्चाण मेहावि सुभासियं इमं अनुसासनं नानुगुणोववेयं ।
मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं महानियंठाण वए पहेणं ॥ Translated Sutra: मेधावी साधक इस सुभाषित को एवं ज्ञान – गुण से युक्त अनुशासन को सुनकर कुशील व्यक्तियों के सब मार्गों को छोड़कर, महान् निर्ग्रन्थों के पथ पर चले। चारित्राचार और ज्ञानादि गुणों से संपन्न निर्ग्रन्थ निराश्रव होता है। अनुत्तर शुद्ध संयम का पालन कर वह निराश्रव साधक कर्मों का क्षय कर विपुल, उत्तम एवं शाश्वत मोक्ष | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Hindi | 765 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवुग्गदंते वि महातवोधणे महामुनी महापइन्ने महायसे ।
महानियंठिज्जमिणं महासुयं से काहए महया वित्थरेणं ॥ Translated Sutra: इस प्रकार उग्र – दान्त, महान् तपोधन, महा – प्रतिज्ञ, महान् – यशस्वी उस महामुनि ने इस महा – निर्ग्रन्थीय महाश्रुत को महान् विस्तार से कहा। | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२१ समुद्रपालीय |
Hindi | 773 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चंपाए पालिए नाम सावए आसि वाणिए ।
महावीरस्स भगवओ सीसे सो उ महप्पणो ॥ Translated Sutra: चम्पा नगरी में ‘पालित’ नामक एक वणिक् श्रावक था। वह विराट पुरुष भगवान् महावीर का शिष्य था। वह निर्ग्रन्थ प्रवचन का विद्वान था। एक बार पोत से व्यापार करता हुआ वह पिहुण्ड नगर आया। वहाँ व्यापार करते समय उसे एक व्यापारी ने विवाह के रूप में अपनी पुत्री दी। कुछ समय के बाद गर्भवती पत्नी को लेकर उसने स्वदेश की ओर | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Hindi | 1007 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सामायारिं पवक्खामि सव्वदुक्खविमोक्खणिं ।
जं चरित्ताण निग्गंथा तिन्ना संसारसागरं ॥ Translated Sutra: सामाचारी सब दुःखों से मुक्त कराने वाली है, जिसका आचरण करके निर्ग्रन्थ संसार सागर को तैर गए हैं। उस सामाचारी का मैं प्रतिपादन करता हूँ – | |||||||||
Uttaradhyayan | उत्तराध्ययन सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Hindi | 1101 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनभिग्गहियकुदिट्ठी संखेवरुइ त्ति होइ नायव्वो ।
अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिओ य सेसेसु ॥ Translated Sutra: जो निर्ग्रन्थ – प्रवचन में अकुशल है, साथ ही मिथ्या प्रवचनों से भी अनभिज्ञ है, किन्तु कुदृष्टि का आग्रह न होने के कारण अल्प – बोध से ही जो तत्त्व श्रद्धा वाला है, वह ‘संक्षेपरुचि’ है। | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१५ सभिक्षुक |
Gujarati | 505 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सयनासनपानभोयणं विविहं खाइमसाइमं परेसिं ।
अदए पडिसेहिए नियंठे जे तत्थ न पउस्सई स भिक्खू ॥ Translated Sutra: શયન, આસન, પાન, ભોજન અને વિવિધ પ્રકારના ખાદ્ય અને સ્વાદ્ય કોઈ સ્વયં ન આપે, માંગવા છતા પણ ના પાડી દે, તો જે નિર્ગ્રન્થ તેમના પ્રત્યે દ્વેષ ન કરે, તે ભિક્ષુ છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 512 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा?
इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा, तं जहा–
विवित्ताइं सयनासनाइं सेविज्जा, से निग्गंथे।
नो इत्थी पसुपंडगसंसत्ताइं सयनासनाइं सेवित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइं सयनासनाइं सेवमाणस्स बंभयारिस्स Translated Sutra: સ્થવિર ભગવંતોએ બ્રહ્મચર્ય સમાધિના કયા સ્થાન બતાવેલ છે, જેને સાંભળી, જેના અર્થનો નિર્ણય કરી ભિક્ષુ સંયમ, સંવર અને સમાધિથી અધિકાધિક સંપન્ન થાય, ગુપ્ત, ગુપ્તેન્દ્રિય, ગુપ્ત બ્રહ્મચારી થઈ સદા અપ્રમત્ત ભાવે વિચરણ કરે ? તે સ્થાનો આ છે – જે વિવિક્ત શયન, આસનને સેવે છે. તે નિર્ગ્રન્થ છે. જે સ્ત્રી, પશુ અને નપુંસક સંસક્ત | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 513 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो इत्थीणं कहं कहित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स, बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा नो इत्थीणं कहं कहेज्जा। Translated Sutra: જે સ્ત્રીઓની કથા નથી કરતા, તે નિર્ગ્રન્થ છે. એમ કેમ ? આચાર્ય કહે છે – જે સ્ત્રીની કથા કરે છે, તે બ્રહ્મચારી નિર્ગ્રન્થને બ્રહ્મચર્ય વિષયમાં શંકા, કાંક્ષા, વિચિકિત્સા ઉત્પન્ન થાય છે. ભેદ પ્રાપ્ત થાય છે. ઉન્માદને પામે છે, દીર્ઘ – કાલિક રોગાંતક થાય છે અથવા કેવલી પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મથી ભ્રષ્ટ થાય છે. તે સ્ત્રી કથા ન કહેવી | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 514 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागयस्स, बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरेज्जा। Translated Sutra: જે સ્ત્રીઓની સાથે એક આસને બેસતા નથી, તે નિર્ગ્રન્થ છે. એમ કેમ ? જે સ્ત્રીઓ સાથે એક આસને બેસે છે, તે બ્રહ્મચારીને બ્રહ્મચર્યના વિષયમાં શંકા, કાંક્ષા, વિચિકિત્સા ઉત્પન્ન થાય, ભેદ પામે, ઉન્માદને પ્રાપ્ત કરે, દીર્ઘકાલિક રોગ કે આતંક થાય અથવા કેવલી પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મથી ભ્રષ્ટ થાય, તેથી નિર્ગ્રન્થને સ્ત્રીની સાથે એક | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 515 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो इत्थीणं इंदियाइं मणोहराइं मणोरमाइं आलोइत्ता, निज्झाइत्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीणं इंदियाइं मणोहराइं, मणोरमाइं आलोएमाणस्स, निज्झायमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु निग्गंथे नो इत्थीणं इंदियाइं मणोहराइं, मणोरमाइं आलोएज्जा, निज्झाएज्जा। Translated Sutra: જે સ્ત્રીઓની મનોહર અને મનોરમ ઇન્દ્રિયોને જોતો નથી. તેના વિષયમાં ચિંતન કરતો નથી, તે નિર્ગ્રન્થ છે. એમ કેમ ? જે નિર્ગ્રન્થ સ્ત્રીઓની મનોહર અને મનોરમ ઇન્દ્રિયોને યાવત્ ધ્યાન કરતો રહે છે, તેના બ્રહ્મચર્યમાં શંકા, કાંક્ષા, વિચિકિત્સા ઉત્પન્ન થાય છે. ભેદ પ્રાપ્ત થાય છે. તે ઉન્માદને પામે છે, રોગાંતક થાય છે, કેવલીપ્રજ્ઞપ્ત | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 516 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो इत्थीणं कुड्डंतरंसि वा, दूसंतरंसि वा, भित्तंतरंसि वा, कुइयसद्दं वा, रुइयसद्दं वा, गीयसद्दं वा, हसियसद्दं वा, थणियसद्दं वा, कंदियसद्दं वा, विलवियसद्दं वा, सुणेत्ता हवइ से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कुडुंतरंसि वा, दूसतरंसि वा, भित्तंतरंसि वा, कुइयसद्दं वा, रुइयसद्दं वा, गीयसद्दं वा, हसियसद्दं वा, थणियसद्दं वा, कंदियसद्दं वा, विलवियसद्दं वा, सुणे-माणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु Translated Sutra: માટીના દીવાલના અંતરથી, વસ્ત્રના અંતરથી કે પાકી દીવાલના અંતરથી સ્ત્રીઓના કૂજન, રૂદન, હાસ્ય, ગર્જન, આક્રંદન કે વિલાપના શબ્દો સાંભળતા નથી, તે નિર્ગ્રન્થ છે. એમ કેમ ? આચાર્યએ કહ્યું – સ્ત્રીઓને માટીની ભીંત કે વસ્ત્રના કે પાકી ભીંતના અંતરેથી જુએ છે યાવત્ વિલપિત શબ્દોને સાંભળતા બ્રહ્મચારીના બ્રહ્મચર્યમાં શંકા, | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१२ हरिकेशीय |
Gujarati | 375 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अज्झावयाणं पडिकूलभासी पभाससे किं तु सगासि अम्हं ।
अवि एयं विणस्सउ अन्नपाणं न य णं दाहामु तुमं नियंठा! ॥ Translated Sutra: અમારી સામે અધ્યાપકો સામે પ્રતિકૂળ બોલનારા હે નિર્ગ્રન્થ ! તું શું બકવાસ કરે છે ? આ અન્ન – જળ ભલે સડીને નષ્ટ થઈ જાય, પણ અમે તને નહીં આપીએ. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१२ हरिकेशीय |
Gujarati | 377 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] के एत्थ खत्ता उवजोइया वा अज्झावया वा सह खंडिएहिं ।
एयं दंडेण फलेण हंता कंठम्मि घेत्तूण खेलज्ज जो णं? ॥ Translated Sutra: અહીં કોઈ ક્ષત્રિય ઉપજ્યોતિષ, રસોઈયા, અધ્યાપક કે છાત્ર છે. જે આ નિર્ગ્રન્થને ડંડાથી કે પાટીયાથી મારીને અને કંઠેથી પકડીને અહીંથી બહાર કાઢી મૂકે ? | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 517 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो निग्गंथे पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अणुसरित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु पुव्वरयं, पुव्वकीलियं अनुसरमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे पुव्वरयं पुव्वकीलियं अनुसरेज्जा। Translated Sutra: જે સંયમગ્રહણની પૂર્વેની રતિ અને ક્રીડાનું અનુસ્મરણ કરતો નથી, તે નિર્ગ્રન્થ છે. એમ કેમ ? આચાર્ય કહે છે – જે સંયમ ગ્રહણની પૂર્વેની રતિક્રીડાનું અનુસ્મરણ કરે છે, તે બ્રહ્મચારી નિર્ગ્રન્થને બ્રહ્મચર્ય વિષયમાં શંકા, કાંક્ષા કે વિચિકિત્સા ઉત્પન્ન થાય છે, ભેદ પામે છે. ઉન્માદને પ્રાપ્ત કરે છે, દીર્ઘકાલિક રોગાંતક | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 518 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो पणीयं आहारं आहारित्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु पणीयं पाणभोयणं आहारेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे पणीयं आहारं आहारेज्जा। Translated Sutra: જે પ્રણિત અથવા રસયુક્ત પૌષ્ટિક આહાર કરતો નથી, તે નિર્ગ્રન્થ છે. એમ કેમ ? આચાર્ય કહે છે – જે રસ યુક્ત પૌષ્ટિક ભોજન, પાન કરે છે, તે બ્રહ્મચારી નિર્ગ્રન્થને બ્રહ્મચર્યના વિષયમાં શંકા, કાંક્ષા કે વિચિકિત્સા ઉત્પન્ન થાય છે, બ્રહ્મચર્યનો વિનાશ થાય છે, ઉન્માદ ઉત્પન્ન થાય છે, દીર્ઘકાલીક રોગાંતક થાય છે અથવા તે કેવલી | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 519 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो अइमायाए पाणभोयणं आहारेत्ता हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु अइमायाए पाणभोयणं आहारेमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे अइमायाए पानभोयणं भुंजिज्जा। Translated Sutra: જે અતિ માત્રાથી પાન ભોજન કરે છે, તે નિર્ગ્રન્થ છે. એમ કેમ ? આચાર્ય કહે છે – જે અતિ માત્રાથી ખાય – પીએ છે, તે બ્રહ્મચારી નિર્ગ્રન્થને બ્રહ્મચર્યના વિષયમાં શંકા, કાંક્ષા, વિચિકિત્સા ઉત્પન્ન થાય છે અથવા બ્રહ્મચર્યનો વિનાશ થાય છે, ઉન્માદ ઉત્પન્ન થાય છે, દીર્ઘકાલીક રોગાંતક થાય છે અથવા તે કેવલી પ્રરૂપિત ધર્મથી ભ્રષ્ટ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 520 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो विभूसाणुवाई हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–विभूसावत्तिए, विभूसियसरीरे इत्थिजणस्स अभिलसणिज्जे हवइ। तओ णं तस्स इत्थिजणेणं अभिलसिज्जमाणस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे विभूसाणुवाई सिया। Translated Sutra: જે શરીરની વિભૂષા કરતો નથી, તે નિર્ગ્રન્થ છે. એમ કેમ ? આચાર્ય કહે છે – જે વિભૂષા નિમિત્તે શરીરની વિભૂષા કરે છે, તેથી તે સ્ત્રીજનોને અભિલષણીય થાય છે. તેથી સ્ત્રીઓ દ્વારા ઇચ્છાતા તે બ્રહ્મચારીના બ્રહ્મચર્યમાં શંકા, કાંક્ષા, વિચિકિત્સા થાય છે. તેના બ્રહ્મચર્યનો વિનાશ થાય છે, ઉન્માદને પામે છે, દીર્ઘકાલીક રોગાંતક | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान |
Gujarati | 521 | Sutra | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नो सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हवइ, से निग्गंथे।
तं कहमिति चे?
आयरियाह–निग्गंथस्स खलु सद्दरूवरसगंधफासाणुवाइस्स बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्प-ज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा।
तम्हा खलु नो निग्गंथे सद्दरूवरसगंधफासाणुवाई हविज्जा।
दसमे बंभचेरसमाहिठाणे हवइ।
[भवंति इत्थ सिलोगा, तं जहा] Translated Sutra: જે શબ્દ, રૂપ, રસ, ગંધ અને સ્પર્શમાં આસક્ત થતો નથી તે નિર્ગ્રન્થ છે, એમ કેમ ? આચાર્ય કહે છે – જે શબ્દાદિમાં આસક્ત રહે છે, તે બ્રહ્મચારીના બ્રહ્મચર્યમાં શંકા, કાંક્ષા કે વિચિકિત્સા થાય છે અથવા બ્રહ્મચર્યનો વિનાશ થાય છે, ઉન્માદ ઉત્પન્ન થાય છે, દીર્ઘકાલીક રોગાંતક થાય છે અથવા તે કેવલી પ્રરૂપિત ધર્મથી ભ્રષ્ટ થાય છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१७ पापश्रमण |
Gujarati | 539 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे के इमे पव्वइए नियंठे धम्म सुणित्ता विनओववन्ने ।
सुदुल्लहं लहिउं बोहिलाभं विहरेज्ज पच्छा य जहासुहं तु ॥ Translated Sutra: જે કોઈ ધર્મને સાંભળીને અત્યંત દુર્લભ બોધિલાભને પામીને, પહેલાં વિનય સંપન્ન થઈ જાય છે, નિર્ગ્રન્થ રૂપે પ્રવ્રજિત થાય છે. પછી સુખની સ્પૃહાને કારણે સ્વચ્છંદ વિહારી થઈ જાય છે. રહેવા માટે સારું સ્થાન મળી રહે છે, મારી પાસે વસ્ત્રો છે, મને ખાવા – પીવા મળી રહ્યું છે અને જે થઈ રહ્યું છે, તેને હું જાણુ છું. હે ભગવન્ ! શાસ્ત્રોના | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Gujarati | 750 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इमा हु अन्ना वि अनाहया निवा! तमेगचित्तो निहुओ सुणेहि ।
नियंठधम्मं लहियाण वी जहा सोयंति एगे बहुकायरा नरा ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૫૦. હે રાજન્ ! એક બીજી પણ અનાથતા છે, શાંત અને એકાગ્ર ચિત્ત થઈને મારી પાસેથી સાંભળો. એવા ઘણા કાયરો હોય છે, જે નિર્ગ્રન્થ ધર્મ પામીને પણ સીદાય છે. સૂત્ર– ૭૫૧. જે મહાવ્રતોને સ્વીકારીને પ્રમાદના કારણે તેનું સમ્યક્ પાલન કરતા નથી, આત્માનો નિગ્રહ કરતા નથી, રસોમાં આસક્ત છે, તે મૂળથી રાગદ્વેષ રૂપ બંધનોનો ઉચ્છેદ | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Gujarati | 763 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सोच्चाण मेहावि सुभासियं इमं अनुसासनं नानुगुणोववेयं ।
मग्गं कुसीलाण जहाय सव्वं महानियंठाण वए पहेणं ॥ Translated Sutra: મેધાવી આ સુભાષિત અને જ્ઞાનગુણ યુક્ત અનુશાસનને સાંભળીને કુશીલ વ્યક્તિઓના બધા માર્ગોને છોડીને, મહાનિર્ગ્રન્થોના માર્ગે ચાલે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Gujarati | 764 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चरित्तमायारगुणन्निए तओ अनुत्तरं संजम पालियाणं ।
निरासवे संखवियाण कम्मं उवेइ ठाणं विउलुत्तमं धुवं ॥ Translated Sutra: ચારિત્રાચાર અને જ્ઞાનાદિ ગુણોથી સંપન્ન નિર્ગ્રન્થ નિરાશ્રય હોય છે. અનુત્તર શુદ્ધ સંયમનું પાલન કરીને તે કર્મોનો ક્ષય કરીને વિપુલ, ઉત્તમ તથા શાશ્વત મોક્ષને પ્રાપ્ત કરે છે. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२० महानिर्ग्रंथीय |
Gujarati | 765 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवुग्गदंते वि महातवोधणे महामुनी महापइन्ने महायसे ।
महानियंठिज्जमिणं महासुयं से काहए महया वित्थरेणं ॥ Translated Sutra: એ પ્રમાણે ઉગ્ર, દાંત, મહા તપોધન, મહાપ્રતિજ્ઞ, મહાયશસ્વી તે મહામુનિએ આ મહાનિર્ગ્રન્થીય મહાશ્રુતને મહા વિસ્તારથી કહ્યું. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२१ समुद्रपालीय |
Gujarati | 773 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चंपाए पालिए नाम सावए आसि वाणिए ।
महावीरस्स भगवओ सीसे सो उ महप्पणो ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૭૩. ચંપા નગરીમાં ‘પાલિત’ નામે એક વણિક શ્રાવક હતો. તે મહાત્મા ભગવંત મહાવીરનો શિષ્ય હતો. સૂત્ર– ૭૭૪. તે શ્રાવક નિર્ગ્રન્થ પ્રવચનનો વિશિષ્ટ વિદ્વાન હતો. એક વખત પોતાના જહાજથી વ્યાપાર કરતો તે પિહુંડ નગરમાં આવ્યો. સૂત્ર– ૭૭૫. પિહુંડ નગરમાં વ્યાપાર કરતી વખતે તેને એક વેપારીએ પોતાની પુત્રી પરણાવી. થોડા સમય | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२६ सामाचारी |
Gujarati | 1007 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सामायारिं पवक्खामि सव्वदुक्खविमोक्खणिं ।
जं चरित्ताण निग्गंथा तिन्ना संसारसागरं ॥ Translated Sutra: સામાચારી બધા દુઃખોથી મુક્ત કરાવનારી છે, જેનું આચરણ કરીને નિર્ગ્રન્થ સંસાર સમુદ્રને તરી જાય છે, તે સામાચારી હું કહીશ. | |||||||||
Uttaradhyayan | ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२८ मोक्षमार्गगति |
Gujarati | 1092 | Gatha | Mool-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भूयत्थेणाहिगया जीवाजीवा य पुण्णपावं च ।
सहसम्मुइयासवसंवरो य रोएइ उ निसग्गो ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૦૯૨. પરોપદેશ વિના, સ્વયંના જ યથાર્થ બોધથી અવગત જીવ, અજીવ, પુન્ય, પાપ, આશ્રવ અને સંવરાદિ તત્ત્વોની જે રૂચિ છે તે નિસર્ગ રૂચિ છે. સૂત્ર– ૧૦૯૩. જિનેશ્વર દ્વારા દૃષ્ટ ભાવોમાં તથા દ્રવ્યાદિ ચારથી વિશિષ્ટ પદાર્થોના વિષયમાં ‘આ આમ જ છે, અન્યથા નથી.’ એવી જે સ્વતઃ થયેલ શ્રદ્ધા છે, તે નિસર્ગ રૂચિ છે. સૂત્ર– ૧૦૯૪. | |||||||||
Vanhidasha | वह्निदशा | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ निषध |
Hindi | 3 | Sutra | Upang-12 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था–दुवालसजोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं रेवतए नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतलमनुलिहंत-सिहरे नानाविहरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लया-वल्ली-परिगयाभिरामे हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाग-मदनसाला-कोइलकुलोववेए Translated Sutra: हे भदन्त ! श्रमण यावत् संप्राप्त भगवान ने प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल और उस समय में द्वारवती – नगरी थी। वह पूर्व – पश्चिम में बारह योजन लम्बी और उत्तर – दक्षिण में नौ योजन चौड़ी थी, उसका निर्माण स्वयं धनपति ने अपने मतिकौशल से किया था। स्वर्णनिर्मित श्रेष्ठ प्राकार और पंचरंगी मणियों के | |||||||||
Vanhidasha | વહ્નિદશા | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ निषध |
Gujarati | 3 | Sutra | Upang-12 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवंगाणं पंचमस्स वग्गस्स वण्हिदसाणं दुवालस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स वण्हिदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था–दुवालसजोयणायामा नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोयभूया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तीसे णं बारवईए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं रेवतए नामं पव्वए होत्था–तुंगे गगनतलमनुलिहंत-सिहरे नानाविहरुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लया-वल्ली-परिगयाभिरामे हंस-मिय-मयूर-कोंच-सारस-चक्कवाग-मदनसाला-कोइलकुलोववेए Translated Sutra: ભગવન્ ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે પાંચમાં વર્ગ ‘વૃષ્ણિદશા’ના પહેલાં અધ્યયનનો શો અર્થ કહેલ છે ? હે જંબૂ ! તે કાળે તે સમયે દ્વારવતી નગરી હતી. બાર યોજન લાંબી અને નવ યોજન પહોળી યાવત્ પ્રત્યક્ષ દેવલોકરૂપ, પ્રાસાદીય – દર્શનીય – અભિરૂપ – પ્રતિરૂપ હતી. તે દ્વારવતી બહાર ઇશાન દિશામાં રૈવત નામે પર્વત હતો. ઊંચો, ગગનતલને સ્પર્શતા | |||||||||
Vipakasutra | विपाकश्रुतांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-१ सुबाहुकुमार |
Hindi | 37 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे जंबू–अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे ।
तस्स णं हत्थिसीसस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं पुप्फकरंडए नामं उज्जाने होत्था–सव्वोउय–पुप्फ–समिद्धे।
तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–दिव्वे ।
तत्थ णं हत्थिसोसे नयरे अदोणसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमंवत–महंत–मलय–मंदर–महिंदसारे।
तस्स Translated Sutra: हे भदन्त ! यावत् मोक्षसम्प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने यदि सुखविपाक के सुबाहुकुमार आदि दस अध्ययन प्रतिपादित किए हैं तो हे भगवन् ! सुख – विपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कथन किया है ? श्रीसुधर्मा स्वामी ने श्रीजम्बू अनगार के प्रति इस प्रकार कहा – हे जम्बू ! उस काल तथा उस समय में हस्तिशीर्ष नामका एक बड़ा ऋद्ध | |||||||||
Vipakasutra | વિપાકશ્રુતાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक अध्ययन-१ सुबाहुकुमार |
Gujarati | 37 | Sutra | Ang-11 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सुहविवागाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स सुहविवागाणं समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
तए णं से सुहम्मे जंबू–अनगारं एवं वयासी–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिसीसे नामं नयरे होत्था–रिद्धत्थिमियसमिद्धे ।
तस्स णं हत्थिसीसस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं पुप्फकरंडए नामं उज्जाने होत्था–सव्वोउय–पुप्फ–समिद्धे।
तत्थ णं कयवणमालपियस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–दिव्वे ।
तत्थ णं हत्थिसोसे नयरे अदोणसत्तू नामं राया होत्था–महयाहिमंवत–महंत–मलय–मंदर–महिंदसारे।
तस्स Translated Sutra: ભંતે ! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે સુખવિપાકના દશ અધ્યયનો કહ્યા છે, તો ભંતે ! તેના પહેલા અધ્યયનનો શો અર્થ છે ? ત્યારે સુધર્માસ્વામીએ જંબૂ અણગારને કહ્યું – હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે હસ્તશીર્ષ નામે ઋદ્ધ – સમૃદ્ધ નગર હતું. તે હસ્તશીર્ષ નગરની બહાર ઈશાનકોણમાં પુષ્પકરંડક નામે ઉદ્યાન હતું, તે સર્વઋતુક ફળ – ફૂલ આદિથી યુક્ત | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-३ | Hindi | 68 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तिवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं आयारपकप्पधरे कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। Translated Sutra: तीन साल का पर्याय हो ऐसे श्रमण – निर्ग्रन्थ हो और फिर आचार – संयम, प्रवचन – गच्छ की सारसंभाळादिक संग्रह और पाणेसणादि उपग्रह के लिए कुशल हो, जिसका आचार खंड़ित नहीं हुआ, भेदन नहीं हुआ, सबल दोष नहीं लगा, संक्लिष्ट आचार युक्त चित्तवाला नहीं, बहुश्रुत, कईं आगम के ज्ञाता, जघन्य से आचार प्रकल्प – निसीह सूत्रार्थ के धारक | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-३ | Hindi | 70 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं दसा-कप्प-ववहारधरे कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। Translated Sutra: पाँच साल के पर्यायवाले श्रमण – निर्ग्रन्थ यदि आचार – संयम, प्रवचन – गच्छ की सर्व फिक्र की प्रज्ञा – उपधि आदि के उपग्रह में कुशल हो, जिसका आचार छेदन – भेदन न हो, क्रोधादिक से जिसका चारित्र मलिन नहीं और फिर जो बहुसूत्री आगमज्ञाता है और जघन्य से दसा – कप्प – व्यवहार सूत्र के धारक हैं उन्हें यह पद देना न कल्पे। सूत्र | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-३ | Hindi | 72 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठवासपरियाए समणे निग्गंथे आयारकुसले संजमकुसले पवयणकुसले पन्नत्तिकुसले संगहकुसले उवग्गहकुसले अक्खयायारे असबलायारे अभिन्नायारे असंकिलिट्ठायारे बहुस्सुए बब्भागमे जहन्नेणं ठाणसमवायधरे कप्पइ आयरियत्ताए उवज्झायत्ताए पवत्तित्ताए थेरत्ताए गणित्ताए गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए। Translated Sutra: आठ साल के पर्यायवाले श्रमण – निर्ग्रन्थ में ऊपर के सर्व गुण और जघन्य से ठाण, समवाय ज्ञाता हो उसे आचार्य से गणावच्छेदक पर्यन्त की पदवी देना कल्पे, लेकिन जिनमें उक्त गुण नहीं है उसे पदवी देना न कल्पे। सूत्र – ७२, ७३ | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-३ | Hindi | 74 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निरुद्धपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ तद्दिवसं आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से किमाहु भंते?
अत्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाणि कडाणि पत्तियाणि थेज्जाणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अनुमयाणि बहुमयाणि भवंति, तेहिं कडेहिं तेहिं पत्तिएहिं तेहिं थेज्जेहिं तेहिं वेसासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुइकरेहिं जं से निद्धपरियाए समणे निग्गंथे, कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए तद्दिवसं। Translated Sutra: निरुद्धवास पर्याय – (एक बार दीक्षा लेने के बाद जिसका पर्याय छेद हुआ है ऐसे) श्रमण निर्ग्रन्थ को उसी दिन आचार्य – उपाध्याय पदवी देना कल्पे, हे भगवंत ! ऐसा क्यों कहा ? उस स्थविर साधु को पूर्व के तथारूप कुल हैं। जैसे कि प्रतीतिकारक, दान देने में धीर, भरोसेमंद, गुणवंत, साधु बार – बार वहोरने पधारे उसमें खुशी हो और दान | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-३ | Hindi | 75 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] निरुद्धवासपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए समुच्छेयकप्पंसि।
तस्स णं आयारपकप्पस्स देसे अहिज्जिए देसे नो अहिज्जिए, से य अहिज्जिस्सामि त्ति अहिज्जइ, एवं से कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए।
से य अहिज्जिस्सामि त्ति नो अहिज्जइ, एवं से नो कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। Translated Sutra: निरुद्ध वास पर्याय – पहले दीक्षा ली हो उसे छोड़कर पुनः दीक्षा लिए कुछ साल हुए हो ऐसे श्रमण – निर्ग्रन्थ को आचार्य – उपाध्याय कालधर्म पाए तब पदवी देना कल्पे। यदि वो बहुसूत्री न हो तो भी समुचयरूप से वो आचार प्रकल्प – निसीह के कुछ अध्ययन पढ़े हैं और बाकी के पढूँगा ऐसा चिन्तवन करते हैं वो यदि पढ़े तो उसे आचार्य – उपाध्याय | |||||||||
Vyavaharsutra | व्यवहारसूत्र | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Hindi | 181 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारिए उवस्सयं वक्कएणं पउंजेज्जा, से य वक्कइयं वएज्जा–इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परि-वसंति, से सागारिए पारिहारिए।
से य नो वएज्जा, वक्कइए वएज्जा–इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंतु, से सागारिए पारिहारिए।
दो वि ते वएज्जा, दो वि सागारिया पारिहारिया। Translated Sutra: सज्जातर उपाश्रय किराये पे दे या बेच दे लेकिन लेनेवाले को बोले कि इस जगह में कुछ स्थान पर निर्ग्रन्थ साधु बसते हैं। उस के अलावा जो जगह है वो किराये पे या बिक्री में देंगे तो वो सज्जातर के आहार – पानी वहोरना न कल्पे। यदि देनेवाले ने कुछ न कहा हो लेकिन लेनेवाला ऐसा कहे कि इतनी जगह में साधु भले विचरण करे तो लेनेवाले | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 182 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सागारिए उवस्सयं विक्किणेज्जा, से य कइयं वएज्जा–इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंति, से सागारिए पारिहारिए। से य नो वएज्जा, कइए वएज्जा–
इमम्मि य इमम्मि य ओवासे समणा निग्गंथा परिवसंतु से सागारिए, पारिहारिए। दो वि ते वएज्जा, दो वि सागारिया पारिहारिया। Translated Sutra: શય્યાતર જો ઉપાશ્રય વેચે અને ખરીદનારને એમ કહે કે ‘આટલા – આટલા સ્થાનમાં શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ રહે છે’ તો તે શય્યાતર પરિહાર્ય છે. વેચનાર ન કહે અને ખરીદનાર કહે તો તે શય્યાતર છે. વેચનાર – ખરીદનાર બંને કહે તો બંને શય્યાતર છે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 161 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथे आपुच्छित्ता निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Translated Sutra: નિર્ગ્રન્થની પાસે જો કોઈ અન્યગણથી ખંડિત યાવત્ સંક્લિષ્ટ આચારવાળી સાધ્વી આવે તો સાધુને પૂછીને સેવિત દોષની આલોચના યાવત્ દોષ અનુરૂપ પ્રાયશ્ચિત્ત સ્વીકારવી તેને પ્રશ્ન પૂછવા યાવત્ સાથે રાખવાનું કલ્પે છે. તથા થોડા દિવસ માટે તેના આચાર્યાદિની નિશ્રાનો નિર્દેશ કરવો કે ધારણ કરવો કલ્પે છે. | |||||||||
Vyavaharsutra | વ્યવહારસૂત્ર | Ardha-Magadhi | उद्देशक-७ | Gujarati | 162 | Sutra | Chheda-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जे निग्गंथा य निग्गंथीओ य संभोइया सिया, कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथीओ आपुच्छित्ता वा अनापुच्छित्ता वा निग्गंथिं अन्नगणाओ आगयं खुयायारं सबलायारं भिन्नायारं संकिलिट्ठायारं तस्स ठाणस्स आलोयावेत्ता पडिक्कमावेत्ता अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जावेत्ता पुच्छित्तए वा वाएत्तए वा उवट्ठावेत्तए वा संभुंजित्तए वा संवसित्तए वा तीसे इत्तरियं दिसं वा अनुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तं च निग्गंथीओ नो इच्छेज्जा, सेहिमेव नियं ठाणं। Translated Sutra: નિર્ગ્રન્થની પાસે જો કોઈ અન્યગણથી ખંડિત યાવત્ સંક્લિષ્ટ આચારવાળી સાધ્વી આવે તો સાધ્વીઓને પૂછીને કે પૂછ્યા સિવાય પણ તેણીએ સેવિત દોષની આલોચના યાવત્ દોષ અનુરૂપ પ્રાયશ્ચિત્ત સ્વીકારવી તેને પ્રશ્ન પૂછવા યાવત્ સાથે રાખવાનું કલ્પે છે. પરંતુ જો સાધ્વીઓ તેને રાખવા ન ઇચ્છે તો તેણીને તેના ગણમાં ફરી ચાલ્યા જવું |