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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 4 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पन्नत्ते–कुस विकुस विसुद्ध रुक्खमूले मूल मंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अणुपुव्व सुजाय रुइल वट्टभावपरिणए अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अग्गेज्झ घन विउल बद्ध वट्टखंधे अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते निद्धूय जरढ पंडुपत्ते नवहरियभिसंत पत्तभारंधयार गंभीरदरिसणिज्जे उवनिग्गय नव तरुण पत्त पल्लव कोमलउज्जल-चलंतकिसलय सुकुमालपवाल सोहियवरंकुरग्गसिहरे निच्चं कुसुमिए निच्चं माइए निच्चं लवइए निच्चं थवइए निच्चं गुलइए Translated Sutra: उस वन – खण्ड के ठीक बीच के भाग में एक विशाल एवं सुन्दर अशोक वृक्ष था। उसकी जड़ें डाभ तथा दूसरे प्रकार के तृणों से विशुद्ध थी। वह वृक्ष उत्तम मूल यावत् रमणीय, दर्शनीय, अभिरूप तथा प्रतिरूप था। वह उत्तम अशोक वृक्ष तिलक, लकुच, क्षत्रोप, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोघ्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कटुज, कदम्ब, सव्य, पनस, दाड़िम, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 5 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे अट्ठ अट्ठ मंगलगा पन्नत्ता, तं जहा–सोवत्थिय सिरिवच्छ नंदियावत्त वद्ध माणग भद्दासण कलस मच्छ दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा धट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पहा समीरिया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहिय-चामरज्झया हालिद्दचामरज्झया सुक्किलचामरज्झया अच्छा सण्हा रुप्पपट्टा वइरदंडा जलयामल-गंधिया सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे छत्ताइछत्ता पडागाइपडागा घंटाजुयला Translated Sutra: उस अशोक वृक्ष के नीचे, उसके तने के कुछ पास एक बड़ा पृथिवी – शिलापट्टक था। उसकी लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊंचाई समुचित प्रमाण में थी। वह काला था। वह अंजन, बादल, कृपाण, नीले कमल, बलराम के वस्त्र, आकाश, केश, काजल की कोठरी, खंजन पक्षी, भैंस के सींग, रिष्टक रत्न, जामुन के फल, बीयक, सन के फूल के डंठल, नील कमल के पत्तों की राशि तथा अलसी | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 6 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए कूणिए नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध दीह राय कुल वंस सुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण विराइयंगमंगे बहुजन बहुमान पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मनुस्सिंदे जनवयपिया जनवयपाले जनवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरिए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न विउल भवन सयनासन जाण वाहणाइण्णे बहुधन बहुजायरूवरयए आओग पओग संपउत्ते विच्छड्डिय पउरभत्तपाणे बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभूए Translated Sutra: चम्पा नगरी में कूणिक नामक राजा था, जो वहाँ निवास करता था। वह महाहिमवान् पर्वत के समान महत्ता तथा मलय, मेरु एवं महेन्द्र के सदृश प्रधानता या विशिष्टता लिये हुए था। वह अत्यन्त विशुद्ध चिरकालीन था। उसके अंग पूर्णतः राजोचित लक्षणों से सुशोभित थे। वह बहुत लोगों द्वारा अति सम्मानित और पूजित था, सर्वगुणसमृद्ध, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 7 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं कोणियस्स रन्नो धारिणी णामं देवी होत्था– सुकुमाल पाणिपाया अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरा लक्खण वंजण गुणोववेया मानुम्मानप्पमाण पडिपुण्ण सुजाय सव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार कंत पिय दंसणा सुरूवा करयल परिमिय पसत्थतिवली वलिय मज्झा कुंडलुल्लिहिय गंडलेहा कोमुइ रयणियर विमल पडिपुण्ण सोमवयणा सिंगारागार चारुवेसा संगय गय हसिय भणिय विहिय चिट्ठिय विलास सललिय संलाव णिउण जुत्तोवयार कुसला सुंदरथण जधन वयण कर चरण नयण लावण्णविलासकलिया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा कोणिएण रन्ना भिंभसारपुत्तेण सद्धिं अनुरत्ता अविरत्ता इट्ठे सद्द फरिस रस रूव गंधे पंचविहे मानुस्सए Translated Sutra: राजा कूणिक की रानी का नाम धारिणी था। उसके हाथ – पैर सुकोमल थे। शरीर की पाँचों इन्द्रियाँ अहीन – प्रतिपूर्ण, सम्पूर्ण थीं। उत्तम लक्षण, व्यंजन तथा गुणयुक्त थी। दैहिक फैलाव, वजन, ऊंचाई आदि की दृष्टि से वह परिपूर्ण, श्रेष्ठ तथा सर्वांगसुन्दरी थी। उसका स्वरूप चन्द्र के समान सौम्य तथा दर्शन कमनीय था। परम रूपवती | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 10 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे–
... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर आदिकर, तीर्थंकर, स्वयं – संबुद्ध, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषवर – पुंडरीक, पुरुषवर – गन्धहस्ती, अभयप्रदायक, चक्षु – प्रदायक, मार्ग – प्रदायक, शरणप्रद, जीवनप्रद, संसार – सागर में भटकते जनों के लिए द्वीप के समान आश्रयस्थान, गति एवं आधारभूत, चार अन्त युक्त पृथ्वी के अधिपति के समान चक्रवर्ती, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 11 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पवित्ति वाउए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठ तुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कय कोउय मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगलाइं वत्थाइं पवर परिहीए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव कोणियस्स रन्नो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी–
जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं कंखंति, जस्स णं देवानुप्पिया! Translated Sutra: प्रवृत्ति – निवेदन को जब यह बात मालूम हुई, वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उसने अपने मन में आनन्द तथा प्रीति का अनुभव किया। सौम्य मनोभाव व हर्षातिरेक से उसका हृदय खिल उठा। उसने स्नान किया, नित्य – नैमित्तिक कृत्य किये, कौतुक, तिलक, प्रायश्चित्त, मंगल – विधान किया, शुद्ध, प्रवेश्य – उत्तम वस्त्र भली भाँति पहने, थोड़े | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 12 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तस्स पवित्ति वाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए वियसिय वरकमल नयन वयणे पयलिय वरकडग तुडिय केऊर मउड कुंडल हार विरायंतरइयवच्छे पालंब पलंबमाण घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता पाय पीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाइं अनुगच्छइ, ...
...अनुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि Translated Sutra: भंभसार का पुत्र राजा कूणिक वार्तानिवेदक से यह सूनकर, उसे हृदयंगम कर हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उत्तम कमल के समान उसका मुख तथा नेत्र खिल उठे। हर्षातिरेक जनित संस्फूर्तिवश राजा के हाथों के उत्तम कड़े, बाहुरक्षिका, केयूर, मुकूट, कुण्डल तथा वक्षःस्थल पर शोभित हार सहसा कम्पित हो उठे – राजा के गले में लम्बी माला लटक | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 15 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो–अप्पेगइया आभिनिबोहियनाणी अप्पेगइया सुयनाणी अप्पेगइया ओहिनाणी अप्पेगइया मणपज्जवनाणी अप्पेगइया केवलनाणी अप्पेगइया मनबलिया अप्पेगइया वयबलिया अप्पेगइया कायबलिया अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया वएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया काएणं सावाणुग्गहसमत्था ...
...अप्पेगइया खेलोसहिपत्ता अप्पेगइया जल्लोसहिपत्ता अप्पेगइया विप्पोसहिपत्ता अप्पेगइया आमोसहिपत्ता अप्पेगइया सव्वोसहिपत्ता अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी अप्पेगइया बीयबुद्धी अप्पेगइया पडबुद्धी अप्पेगइया पयाणुसारी Translated Sutra: उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से निर्ग्रन्थ संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। उनमें कईं मतिज्ञानी यावत् केवलज्ञानी थे। कईं मनोबली, वचनबली, तथा कायबली थे। कईं मन से, कईं वचन से, कईं शरीर द्वारा अपकार व उपकार करने में समर्थ थे। कईं खेलौषधिप्राप्त, कईं जल्लौषधिप्राप्त थे। कईं | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 16 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे थेरा भगवंतो–जाइसंपन्ना कुलसंपन्ना बलसंपन्ना रूवसंपन्ना विनयसंपन्ना नाणसंपन्ना दंसणसंपन्ना चरित्तसंपन्ना लज्जासंपन्ना लाघवसंपन्ना ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी, जियकोहा जियमाणा जियमाया जियलोभा जिइंदिया जियनिद्दा जियपरीसहा जीवियासमरणभय विप्पमुक्का, वयप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा निग्गहप्पहाणा निच्छयप्पहाणा अज्जवप्पहाणा मद्दवप्पहाणा लाघवप्पहाणा खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जप्पहाणा मंतप्पहाणा वेयप्पहाणा बंभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सच्चप्पहाणा सोयप्पहाणा, चारुवण्णा Translated Sutra: तब श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से स्थविर, भगवान, जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न, बल – सम्पन्न, रूप – सम्पन्न, विनय – सम्पन्न, ज्ञान – सम्पन्न, दर्शन – सम्पन्न, चारित्र – सम्पन्न, लज्जा – सम्पन्न, लाघव – सम्पन्न – ओजस्वी, तेजस्वी, वचस्वी – प्रशस्तभाषी। क्रोधजयी, मानजयी, मायाजयी, लोभजयी, इन्द्रियजयी, निद्राजयी, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 17 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे अनगारा भगवंतो इरियासमिया भासासमिया एसणासमिया आयाण भंड मत्त निक्खेवणा समिया उच्चार पासवण खेल सिंधाण जल्ल पारिट्ठावणियासमिया मनगुत्ता वयगुत्ता कायगुत्ता गुत्ता गुत्तिंदिया गुत्तबंभयारी अममा अकिंचणा निरुवलेवा कंसपाईव मुक्कतोया, संखो इव निरंगणा, जीवो विव अप्पडिहयगई, जच्चकणगं पिव जायरूवा, आदरिसफलगा इव पागडभावा, कुम्मो इव गुत्तिंदिया, पुक्खरपत्तं व निरुवलेवा, गगनमिव निरालंबणा, अनिलो इव निरालया, चंदो इव सोमलेसा, सूरो इव दित्ततेया, सागरो इव गंभीरा, विहग इव सव्वओ विप्पमुक्का, मंदरो इव अप्पकंपा, सारयसलिलं Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी बहुत से अनगार भगवान थे। वे ईर्या, भाषा, आहार आदि की गवेषणा, याचना, पात्र आदि के उठाने, इधर – उधर रखने आदि तथा मल, मूत्र, खंखार, नाक आदि का मैल त्यागने में समित थे। वे मनोगुप्त, वचोगुप्त, कायगुप्त, गुप्त, गुप्तेन्द्रिय, गुप्त ब्रह्मचारी, अमम, अकिञ्चन, छिन्नग्रन्थ, छिन्नस्रोत, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 19 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बाहिरए? बाहिरए छव्विहे, तं जहा–अनसने ओमोयरिया भिक्खायरिया रसपरिच्चाए कायकिलेसे पडिसंलीनया।
से किं तं अनसने? अनसने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य आवकहिए य।
से किं तं इत्तरिए? इत्तरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थभत्ते, छट्ठभत्ते, अट्ठमभत्ते, दसमभत्ते, बारसभत्ते, चउद्दसभत्ते, सोलसभत्ते, अद्धमासिए भत्ते मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते, चउमासिए भत्ते, पंचमासिए भत्ते, छम्मासिएभत्ते। से तं इत्तरिए।
से किं तं आवकहिए? आवकहिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य। से किं तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–वाघाइमे य Translated Sutra: बाह्य तप क्या है ? बाह्य तप छह प्रकार के हैं – अनशन, अवमोदरिका, भिक्षाचर्या, रस – परित्याग, काय – क्लेश और प्रतिसंलीनता। अनशन क्या है ? अनशन दो प्रकार का है – १. इत्वरिक एवं २. यावत्कथिक। इत्वरिक क्या है ? इत्वरिक अनेक प्रकार का बतलाया गया है, जैसे – चतुर्थ भक्त, षष्ठ भक्त, अष्टम भक्त, दशम भक्त – चार दिन के उपवास, द्वादश | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 20 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अब्भिंतरए तवे? अब्भिंतरए तवे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पायच्छित्तं विनओ वेयावच्चं सज्झाओ ज्झाणं विउस्सग्गो।
से किं तं पायच्छित्ते? पायच्छित्ते दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे तवारिहे छेदारिहे मूलारिहे अणवट्ठप्पारिहे पारंचियारिहे। से तं पायच्छित्ते।
से किं तं विनए? विनए सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणविनए दंसणविनए चरित्तविनए मनविनए वइविनए कायविनए लोगोवयारविनए।
से किं तं नाणविनए? नाणविनए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिणिबोहियनाणविनए सुयनाणविनए ओहिनाणविनए मनपज्जवनाणविनए केवलनाणविनए। Translated Sutra: आभ्यन्तर तप क्या है ? आभ्यन्तर तप छह प्रकार का कहा गया है – १. प्रायश्चित्त, २. विनय, ३. वैयावृत्य, ४. स्वाध्याय, ५. ध्यान तथा ६. व्युत्सर्ग। प्रायश्चित्त क्या है ? प्रायश्चित्त दस प्रकार का कहा गया है – १. आलोचनार्ह, २. प्रतिक्रमणार्ह, ३. तदुभयार्ह, ४. विवेकार्ह, ५. व्युत्सर्गार्ह, ६. तपोऽर्ह, ७. छेदार्ह, ८. मूलार्ह, ९. अनवस्थाप्यार्ह, | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 21 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अनगारा भगवंतो– अप्पेगइया आयारधरा अप्पेगइया सूयगडधरा अप्पेगइया ठाणधरा अप्पेगइया समवायधरा अप्पेगइया विवाहपन्नत्तिधरा अप्पेगइया नायाधम्मकहाधरा अप्पेगइया उवासगदसाधरा अप्पेगइया अंतगडदसा-धरा अप्पेगइया अनुत्तरोववाइयदसाधरा अप्पेगइया पण्हावागरणदसाधरा अप्पेगइया विवागसुयधरा, ...
...अप्पेगइया वायंति अप्पेगइया पडिपुच्छंति अप्पेगइया परियट्टंति अप्पेगइया अनुप्पेहंति, अप्पेगइया अक्खेवणीओ विक्खेवणीओ संवेयणीओ निव्वेयणीओ चउव्विहाओ कहाओ कहंति, अप्पेगइया उड्ढंजाणू अहोसिरा झाणकोट्ठोवगया–संजमेणं तवसा अप्पाणं Translated Sutra: उस काल, उस समय – जब भगवान महावीर चम्पा में पधारे, उनके साथ उनके अनेक अन्तेवासी अनगार थे। उनके कईं एक आचार यावत् विपाकश्रुत के धारक थे। वे वहीं भिन्न – भिन्न स्थानों पर एक – एक समूह के रूप में, समूह के एक – एक भाग के रूप में तथा फूटकर रूप में विभक्त होकर अवस्थित थे। उनमें कईं आगमों की वाचना देते थे। कईं प्रतिपृच्छा | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 22 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउब्भवित्थाकालमहानीलसरिस नीलगुलिय गवल अयसिकुसुमप्पगासा वियसिय सयवत्तमिव पत्तल निम्मल ईसीसियरत्ततंबनयणा गरुलायत उज्जुतुंगणासा ओयविय सिल प्पवाल बिंबफलसन्निभाहरोट्ठा पंडुर ससिसयल विमल निम्मल संख गोखीर फेण दगरय मुणालिया धव-लदंतसेढी हुयवह निद्धंत धोय तत्त तवणिज्ज रत्ततलतालुजीहा अंजण घण कसिण रुयग रमणिज्ज निद्धकेसा वामेगकुंडलधरा अद्द चंदनानुलित्तगत्ता ईसीसिलिंध पुप्फप्पगासाइं असंकिलिट्ठाइं सुहुमाइं वत्थाइं पवरपरिहिया वयं च पढमं समइक्कंता बिइयं च असंपत्ता भद्दे जोव्वणे Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के पास अनेक असुरकुमार देव प्रादुर्भुत हुए। काले महा – नीलमणि, नीलमणि, नील की गुटका, भैंसे के सींग तथा अलसी के पुष्प जैसा उसका काला वर्ण तथा दीप्ति थी। उनके नेत्र खिले हुए कमल सदृश थे। नेत्रों की भौहें निर्मल थीं। उनके नेत्रों का वर्ण कुछ – कुछ सफेद, लाल तथा ताम्र जैसा था। उनकी | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 24 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउब्भवित्था–पिसायभूया य जक्ख रक्खस किण्णर किंपुरिस भुयग पइणो य महाकाया गंधव्वनिकायगणा निउणगंधव्वगीयरइणो अणवन्निय पणवन्निय इसिवादिय भूयवादिय कंदिय महाकंदिया य कुहंड पययदेवा चंचल चवल चित्त कीलण दवप्पिया गंभीर हसिय भणिय पिय गीय नच्चणरई वनमालामेल मउड कुंडल सच्छंदविउव्वियाहरण चारुविभूसणधरा सव्वोउयसुरभि कुसुम सुरइयपलंब सोभंत कंत वियसंत चित्तवणमाल रइय वच्छा कामगमा कामरूवधारी नानाविहवण्णराग वरवत्थ चित्तचिल्लय नियंसणा विविहदेसीनेवच्छ गहियवेसा पमुइय कंदप्प कलह केली कोलाहलप्पिया Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के समीप पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महाकाय भुजगपति, गन्धर्व गण, अणपन्निक, पणपन्निक, ऋषिवादिक, भूतवादिक, क्रन्दित, महाक्रन्दित, कूष्मांड, प्रयत – ये व्यन्तर जाति के देव प्रकट हुए। वे देव अत्यन्त चपल चित्तयुक्त, क्रीडाप्रिय तथा परिहासप्रिय थे। उन्हें गंभीर हास्य | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 26 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वेमाणिया देवा अंतियं पाउब्भवित्था–सोहम्मीसाण सणंकुमार माहिंद बंभ लंतग महासुक्क सहस्साराणय पाणयारण अच्चुयवई पहिट्ठा देवा जिनदंसणुस्सुयागमण जणियहासा पालग पुप्फग सोमणस सिरिवच्छ नंदियावत्त कामगम पीइगम मनोगम विमल सव्वओभद्द णामधेज्जेहिं विमानेहिं ओइण्णा वंदनकामा जिणाणं मिग महिस वराह छगल दद्दुर हय गयवइ भूयग खग्ग उसभंक विडिम पागडिय चिंधमउडा पसिढिल वर-मउड तिरीडधारी कुंडलुज्जोवियाणणा मउड दित्त सिरया रत्ताभा पउम पम्हगोरा सेया सुभवण्णगंधफासा उत्तमवेउव्विणो विविहवत्थगंधमल्लधारी महिड्ढिया जाव पज्जुव Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर समक्ष सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण तथा अच्युत देवलोकों के अधिपति – इन्द्र अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक प्रादुर्भूत हुए। जिनेश्वरदेव के दर्शन पाने की उत्सुकता और तदर्थ अपने वहाँ पहुँचने से उत्पन्न हर्ष से वे प्रफुल्लित | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 27 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्देइ वा, जनवूहइ वा जनबोलेइ वा जनकलकलेइ वा जनुम्मीइ वा जनुक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तं महप्फलं खलु भो देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं Translated Sutra: उस समय चम्पा नगरी के सिंघाटकों, त्रिकों, चतुष्कों, चत्वरों, चतुर्मुखों, राजमार्गों, गलियों में मनुष्यों की बहुत आवाज आ रही थी, बहुत लोग शब्द कर रहे थे, आपस में कह रहे थे, फुसफुसाहट कर रहे थे। लोगों का बड़ा जमघट था। वे बोल रहे थे। उनकी बातचीत की कलकल सुनाई देती थी। लोगों की मानो एक लहर सी उमड़ी आ रही थी। छोटी – छोटी | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 28 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पवित्ति वाउए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कय कोउय मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगलाइं वत्थाइं पवरपरिहिए अप्पमहग्घाभरणालं-कियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपं णयरिं मज्झंमज्झेणं जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी–
जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं कंखंति, जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं पीहंति, जस्स णं देवानुप्पिया! Translated Sutra: प्रवृत्ति – निवेदक को जब यह बात मालूम हुई, वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ। उसने स्नान किया, यावत् संख्या में कम पर बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। अपने घर से नीकला। नीकलकर वह चम्पा नगरी के बीच, जहाँ राजा कूणिक का महल था, जहाँ बहिर्वर्त्ती राजसभा – भवन था वहाँ आया। राजा सिंहासन पर बैठा। साढ़े बारह लाख रजत | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 29 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी– खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय गय रह पवरजोहकलियं च चाउरंगिणिं सेनं सन्नाहेहि, सुभद्दापमुहाण य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडियक्क-पाडियक्काइं जत्ताभि-मुहाइं जुत्ताइं जाणाइं उवट्ठवेहि, चंपं नयरिं सब्भिंतर बाहिरियं आसित्त सम्मज्जिओवलित्तं सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु आसित्त सित्त सुइ सम्मट्ठ रत्थंतरावणं वीहियं मंचाइमंचकलियं नानाविहराग ऊसिय ज्झय पडागाइपडाग मंडियं लाउल्लोइय महियं गोसीस सरसरत्तचंदन दद्दर दिन्नपंचंगुलितलं उवचियवं-दणकलसं Translated Sutra: तब भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने बलव्यापृत को बुलाकर उससे कहा – देवानुप्रिय ! आभिषेक्य, प्रधान पद पर अधिष्ठित हस्ति – रत्न को सुसज्ज कराओ। घोड़े, हाथी, रथ तथा श्रेष्ठ योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना को तैयार करो। सुभद्रा आदि देवियों के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए यात्राभिमुख, जोते हुए यानों को बाहरी सभाभवन | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 30 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से बलवाउए कूणिएणं रन्नाएवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमने परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं सामि! त्ति आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता हत्थिवाउयं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी–
खिप्पामेव भो देवानुप्पिया! कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि, हय गय रह पवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सन्नाहेहि, सन्नाहेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि।
तए णं से हत्थिवाउए बलवाउयस्स एयमट्ठं सोच्चा आणाए विनएणं वयणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता छेयायरिय उवएस मइ कप्पणा विकप्पेहिं सुनिउणेहिं Translated Sutra: राजा कूणिक द्वारा यों कहे जाने पर उस सेनानायक ने हर्ष एवं प्रसन्नतापूर्वक हाथ जोड़े, अंजलि को मस्तक से लगाया तथा विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार करते हुए निवेदन किया – महाराज की जैसी आज्ञा। सेनानायक ने यों राजाज्ञा स्वीकार कर हस्ति – व्यापृत को बुलाया। उससे कहा – देवानुप्रिय ! भंभसार के पुत्र महाराज कूणिक | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 31 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अनुपविसइ, अनुपविसित्ता अनेगवायाम जोग्ग वग्गण वामद्दण मल्लजुद्ध-करणेहिं संते परिस्संते सयपाग सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाईहिं पीणणिज्जेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपल्हायणिज्जेहिं अब्भिंगेहिं अब्भिंगिए समाणे तेल्ल-चम्मंसि पडिपुण्ण पाणि पाय सुउमाल कोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं दक्खेहिं पत्तट्ठेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं Translated Sutra: भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने सेनानायक से यह सूना। वह प्रसन्न एवं परितुष्ट हुआ। जहाँ व्यायाम – शाला थी, वहाँ आया। व्यायामशाला में प्रवेश किया। अनेक प्रकार से व्यायाम किया। अंगों को खींचना, उछलना – कूदना, अंगों को मोड़ना, कुश्ती लड़ना, व्यायाम के उपकरण आदि घुमाना – इत्यादि द्वारा अपने को श्रान्त, परि – श्रान्त | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 32 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कूणियस्स रन्नो चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं निग्गच्छमाणस्स बहवे अत्थत्थिया कामत्थिया भोगत्थिया लाभत्थिया किव्विसिया कारोडिया कारवाहिया संखिया चक्किया नंगलिया मुहमंगलिया वद्धमाणा पूसमाणया खंडियगणा ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहिं मणाभिरामाहिं हिययमणिज्जाहिं वग्गूहिं जयविजयमंगलसएहिं अणवरयं अभि-णंदंता य अभित्थुणंता य एवं वयासी–जयजय णंदा! जयजय भद्दा! भद्दं ते, अजियं जिणाहि जियं पालयाहि, जियमज्झे वसाहि।
इंदो इव देवाणं चमरो इव असुराणं धरणो इव नागाणं चंदो इव ताराणं भरहो इव मणुयाणं बहूइं वासाइं बहूइं वाससयाइं बहूइं वाससहस्साइं Translated Sutra: जब राजा कूणिक चम्पा नगरी के बीच से गुजर रहा था, बहुत से अभ्यर्थी, कामार्थी, भोगार्थी, लाभार्थी, किल्बिषिक, कापालिक, करबाधित, शांखिक, चाक्रिक, लांगलिक, मुखमांगलिक, वर्धमान, पूष्यमानव, खंडिक – गण, इष्ट, कान्त, प्रिय, मनोज्ञ, मनाम, मनोभिराम, हृदय में आनन्द उत्पन्न करने वाली वाणी से एवं जय विजय आदि सैकड़ों मांगलिक शब्दों | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 33 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ताओ सुभद्दप्पमुहाओ देवीओ अंतोअंतेउरंसि ण्हायाओ कयबलिकम्माओ कय कोउय मंगल पायच्छित्ताओ सव्वालंकारविभूसियाओ बहूहिं खुज्जाहिं चिलाईहि वामणीहिं वडभीहिं बब्बरीहिं पउसियाहिं जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं थारुइणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं सिंहलीहिं दमिलीहिं आरबीहिं पुलिंदीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मरुंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं णाणादेसीहिं विदेसपरिमंडियाहिं इंगिय चिंतिय पत्थिय वियाणियाहिं सदेसणेवत्थ गहियवेसाहिं चेडियाचक्कवाल वरिसधर कंचुइज्ज महत्तरवंदपरिक्खित्ताओ अंतेउराओ निग्गच्छंति, ...
...निग्गच्छित्ता जेणेव पाडियक्कजाणाइं तेणेव उवागच्छंति, Translated Sutra: तब सुभद्रा आदि रानियों ने अन्तःपुर में स्नान किया, नित्य कार्य किये। कौतुक की दृष्टि से आँखों में काजल आंजा, लालट पर तिलक लगाया, प्रायश्चित्त हेतु चन्दन, कुंकुम, दधि, अक्षत आदि से मंगल – विधान किया। वे सभी अलंकारों से विभूषित हुईं। फिर बहुत सी देश – विदेश की दासियों, जिनमें से अनेक कुबड़ी थीं; अनेक किरात देश की | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 34 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं समणे भगवं महावीरे कूणियस्स रन्नो भिंभसारपुत्तस्स सुभद्दापमुहाण य देवीणं तीसे य महतिमहालियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए देवपरिसाए अनेगसयाए अनेगसयवंदाए अनेगसयवंदपरियालाए ओहवले अइवले महब्बले अपरिमिय बल वीरिय तेय माहप्प कंतिजुत्ते सारय णवणत्थणिय महुरगंभीर कोंचणिग्घोस दुंदुभिस्सरे उरे वित्थडाए कंठे वट्टियाए सिरे समाइण्णाए अगरलाए अमम्मणाए सुव्वत्तक्खर सन्निवाइयाए पुण्णरत्ताए सव्वभासानुगामिणीए सरस्सईए जोयणनीहारिणा सरेणं अद्धमागहाए भासाए भासइ– अरिहा धम्मं परिकहेइ।
तेसिं सव्वेसिं आरियमणारियाणं अगिलाए धम्मं आइक्खइ। सावि य णं अद्धमाहगा Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रमण भगवान महावीर ने भंभसारपुत्र राजा कूणिक, सुभद्रा आदि रानियों तथा महती परिषद् को धर्मोपदेश किया। भगवान महावीर की धर्मदेशना सूनने को उपस्थित परिषद् में, अतिशय ज्ञानी साधु, मुनि, यति, देवगण तथा सैकड़ों – सैकड़ों श्रोताओं के समूह उपस्थित थे। ओघबली, अतिबली, महाबली, अपरिमित बल, तेज, महत्ता तथा | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 44 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले Translated Sutra: उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान संस्थित थे – जो वज्र – ऋषभ – नाराच – संहनन थे, कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा की आभा लिए हुए कमल के समान जो गौर वर्ण थे, जो उग्र तपस्वी थे, दीप्त तपस्वी थे, तप्त तपस्वी, जो कठोर | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 48 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] ते णं परिव्वाया रिउवेद यजुव्वेद सामवेद अहव्वणवेद इतिहासपंचमाणं निघंटु छट्ठाणं संगोवंगाणं सरहस्साणं चउण्हं वेदाणं सारगा पारगा धारगा सडंगवी सट्ठितंतविसारया संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंदे निरुत्ते जोइसामयणे अन्नेसु य बहूसु बंभण्णएसु य सत्थेसु सुपरिणिट्ठया यावि होत्था।
ते णं परिव्वाया दाणधम्मं च सोयधम्मं च तित्थाभिसेयं च आघवेमाणा पन्नवेमाणा परूवेमाणा विहरंति। जं णं अम्हं किं चि असुई भवइ तं णं उदएण य मट्टियाए य पक्खालियं समाणं सुई भवइ।
एवं खलु अम्हे चोक्खा चोक्खायारा सुई सुइसमायारा भवित्ता अभिसेयजलपूयप्पाणो अविग्घेणं सग्गं गमिस्सामो।
तेसि णं परिव्वायाणं Translated Sutra: वे परिव्राजक ऋक्, यजु, साम, अथर्वण – इन चारों वेदों, पाँचवे इतिहास, छठे निघण्टु के अध्येता थे। उन्हें वेदों का सांगोपांग रहस्य बोधपूर्वक ज्ञान था। वे चारों वेदों के सारक, पारग, धारक, तथा वेदों के छहों अंगों के ज्ञाता थे। वे षष्टितन्त्र – में विशारद या निपुण थे। संख्यान, शिक्षा, वेद मन्त्रों के उच्चारण के विशिष्ट | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 49 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं अम्मडस्स परिव्वायगस्स सत्त अंतेवासिसया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलमासंमि गंगाए महानईए उभओकूलेणं कंपिल्लपुराओ णयराओ पुरिमतालं नयरं संपट्ठिया विहाराए।
तए णं तेसिं परिव्वायगाणं तीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमणुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए उदए अणुपुव्वे णं परिभुंजमाणे झीणे।
तए णं ते परिव्वाया झीणोदगा समाणा तण्हाए पारब्भमाणा-पारब्भमाणा उदगदातारम-पस्समाणा अण्णमण्णं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी– एवं खलु देवानुप्पिया! अम्हं इमीसे अगामियाए छिण्णावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसंतरमनुपत्ताणं से पुव्वग्गहिए Translated Sutra: उस काल, उस समय, एक बार जब ग्रीष्म ऋतु का समय था, जेठ का महीना था, अम्बड़ परिव्राजक के सात सौ अन्तेवासी गंगा महानदी के दो किनारों से काम्पिल्यपुर नामक नगर से पुरिमताल नामक नगर को रवाना हुए। वे परिव्राजक चलते – चलते एक ऐसे जंगल में पहुँच गये, जहाँ कोई गाँव नहीं था, न जहाँ व्यापारियों के काफिले, गोकुल, उनकी निगरानी करने | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 50 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: भगवन् ! बहुत से लोग एक दूसरे से आख्यात करते हैं, भाषित करते हैं तथा प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर नगर में सौ घरों में आहार करता है, सौ घरों में निवास करता है। भगवन् ! यह कैसे है ? बहुत से लोग आपस में एक दूसरे से जो ऐसा कहते हैं, प्ररूपित करते हैं कि अम्बड परिव्राजक काम्पिल्यपुर में सौ घरों में | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 51 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सेज्जे इमे गामागर नयर निगम रायहाणि खेड कब्बड दोणमुह मडंब पट्टणासम संबाह सन्निवेसेसु पव्वइया समणा भवंति, तं जहा–आयरियपडिनीया उवज्झायपडिनीया तदुभयपडिनीया कुलपडिनीया गणपडिनीया आयरिय उवज्झायाणं अयसकारगा अवण्णकारगा अकित्तिकारगा बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहिं य अप्पाणं च परं च तदुभयं च वुग्गाहेमाणा वुप्पाएमाणा विहरित्ता बहूइं वासाइं सामण्णपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अनालोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिब्बिसिएसु देवकिब्बिसियत्ताए उववत्तारो भवंति। तहिं तेसिं गई, तहिं तेसिं ठिई, तहिं तेसिं उववाए Translated Sutra: जो ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में प्रव्रजित श्रमण होते हैं, जैसे – आचार्यप्रत्यनीक, उपाध्याय – प्रत्यनीक, कुल – प्रत्यनीक, गण – प्रत्यनीक, आचार्य और उपाध्याय के अयशस्कर, अवर्णकारक, अकीर्तिकारक, असद्भाव, आरोपण तथा मिथ्यात्व के अभिनिवेश द्वारा अपने को, औरों को – दोनों को दुराग्रह में डालते हुए, दृढ़ करते हुए बहुत | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 52 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अनगारे णं भंते! भावियप्पा केवलिसमुग्घाएणं समोहए केवलकप्पं लोयं फुसित्ता णं चिट्ठइ? हंता चिट्ठइ। से नूनं भंते! केवलकप्पे लोए तेहिं निज्जरापोग्गलेहिं फुडे? हंता फुडे।
छउमत्थे णं भंते! मणुस्से तेसिंनिज्जरापोग्गलाणं किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ? गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–छउमत्थे णं मनुस्से तेसिं निज्जरापोग्गलाणं नो किंचि वण्णेणं वण्णं गंधेणं गंधं रसेणं रसं फासेणं फासं जाणइ पासइ?
गोयमा! अयं णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वब्भंतराए सव्वखुड्डाए वट्टे तेल्लापू-यसंठाणसंठिए, वट्टे रहचक्कवालसंठाणसंठिए, Translated Sutra: भगवन् ! भावितात्मा अनगार केवलि – समुद्घात द्वारा आत्मप्रदेशों को देह से बाहर निकाल कर, क्या समग्र लोक का स्पर्श कर स्थित होते हैं ? हाँ, गौतम ! स्थित होते हैं। भगवन् ! क्या उन निर्जरा – प्रधान पुद्गलों से समग्र लोक स्पृष्ट होता है ? हाँ, गौतम ! होता है। भगवन् ! छद्मस्थ, विशिष्ट ज्ञानरहित मनुष्य क्या उन निर्जरा | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 53 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अकिया णं समुग्घायं, अनंता केवली जिना ।
जरमरणविप्पमुक्का, सिद्धिं वरगइं गया ॥ Translated Sutra: भगवन् ! क्या सभी केवली समुद्घात करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। समुद्घात किये बिना ही अनन्त केवली, जिन (जन्म), वृद्धावस्था तथा मृत्यु से विप्रमुक्त होकर सिद्धि गति को प्राप्त हुए हैं। | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 55 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं भंते! तहा सजोगी सिज्झइ बुज्झइ मुच्चइ परिणिव्वाइ सव्वदुक्खाणमंतं करेइ? नो इणट्ठे समट्ठे।
से णं पुव्वामेव सन्निस्स पंचिंदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीनं पढमं मनजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं विदियस्स पज्जत्तगस्स जहन्नजोगिस्स हेट्ठा, असंखेज्ज-गुणपरिहीणं विइयं वइजोगं निरुंभइ, तयानंतरं च णं सुहुमस्स पणगजीवस्स अपज्जत्तगस्स जहन्न-जोगिस्स हेट्ठा असंखेज्जगुणपरिहीणं तइयं कायजोगं णिरुंभइ। से णं एएणं उवाएणं पढमं मनजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता वयजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता कायजोगं निरुंभइ, निरुंभित्ता जोगनिरोहं करेइ, करेत्ता अजोगत्तं Translated Sutra: भगवन् ! क्या सयोगी सिद्ध होते हैं ? यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे सबसे पहले पर्याप्त, संज्ञी, पंचेन्द्रिय जीव के जघन्य मनोयोग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन मनोयोग का निरोध करते हैं। उसके बाद पर्याप्त बेइन्द्रिय जीव के जघन्य वचन – योग के नीचे के स्तर से असंख्यातगुणहीन वचन – योग | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Hindi | 67 | Gatha | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] केवलनाणुवउत्ता, जाणंती सव्वभावगुणभावे ।
पासंति सव्वओ खलु, केवलदिट्ठीहि नंताहिं ॥ Translated Sutra: वे केवल ज्ञानोपयोग द्वारा सभी पदार्थों के गुणों एवं पर्यायों को जानते हैं तथा अनन्त केवलदर्शन द्वारा सर्वतः समस्त भावों को देखते हैं। | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 1 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–रिद्धत्थिमिय समिद्धा पमुइय-जनजानवया आइण्ण जन मनूसा हल सयसहस्स संकिट्ठ विकिट्ठ-लट्ठ पन्नत्त सेउसीमा कुक्कुड संडेय गाम पउरा उच्छु जव सालिकलिया गो महिस गवेलगप्पभूया आयारवंत चेइय जुवइविविहसन्निविट्ठबहुला उक्कोडिय गायगंठिभेय भड तक्कर खंडरक्खरहिया खेमा निरुवद्दवा सुभिक्खा वीसत्थसुहावासा अनेगकोडि कोडुंबियाइण्ण निव्वुयसुहा.....
..... नड नट्टग जल्ल मल्ल मुट्ठिय वेलंबग कहग पवग लासग आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल तुंबवीणिय अनेगतालायराणुचरिया आरामुज्जाण अगड तलाग दीहिय वप्पिणि गुणोववेया उव्विद्ध विउल गंभीर खायफलिहा चक्क गय Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે (આ અવસર્પિણીકાળના ચોથા આરામાં ભગવંત મહાવીર વિચરતા હતા ત્યારે) ચંપા નામે નગરી હતી. તે ઋદ્ધિવાળી, નિર્ભય અને સમૃદ્ધ હતી. ત્યાંના લોકો – જાનપદો પ્રમુદિત હતા. જન – મનુષ્યો વડે તે આકીર્ણ હતી. સેંકડો હજારો હળો વડે ખેડાયેલ, સહજપણે સુંદર માર્ગ જેવી લાગતી હતી. ત્યાં કૂકડા અને સાંઢના ઘણા સમૂહો હતા, ઇક્ષુ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 2 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तीसे णं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था–चिराईए पुव्वपुरिस पन्नत्ते पोराणे सद्दिए कित्तिए नाए सच्छत्ते सज्झए सघंटे सपडागाइपडागमंडिए सलोमहत्थे कयवेयद्दिए लाउल्लोइय महिए गोसीससरसरत्तचंदन दद्दर दिन्नपंचुंलितले उवचिय-वंदनकलसे वंदनघड सुकय तोरण पडिदुवारदेसभाए आसत्तोसत्त विउल वट्ट वग्घारिय मल्लदाम-कलावे पंचवण्ण सरससुरभिमुक्क पुप्फपुंजोवयारकलिए कालागुरु पवरकुंदुरुक्क तुरक्क धूव मघमघेंत गंधुद्धुयाभिरामे सुगंधवरगंधगंधिए गंधवट्टिभूए नड नट्टग जल्ल मल्ल मुट्ठिय वेलंबग पवग कहग लासग आइक्खग लंख मंख तूणइल्ल तुंबवीणिय Translated Sutra: તે ચંપાનગરીની બહાર ઉત્તર – પૂર્વ દિશામાં પૂર્ણભદ્ર નામક ચૈત્ય(મંદિર) હતું. તે ઘણું પ્રાચીન હતું. તે પૂર્વ પુરુષ પ્રશંસિત, પ્રાચીન, શબ્દિત, કીર્તિત અને ખ્યાતી પામેલ હતું, તે ચૈત્ય, છત્ર – ધ્વજ – ઘંટ પતાકા સહિત, પતાકાતિપતાકાથી સુશોભિત હતું. ત્યાં સફાઈ માટે મોરપીંછી હતી. ત્યાં ઓટલો હતો. તે ચૈત્યની ભૂમિ ગોબરાદિથી | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 3 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं पुण्णभद्दे चेइए एक्केणं महया वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते।
से णं वनसंडे किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वो भासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
से णं पायवे मूलमंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अनुपुव्व-सुजाय-रुइल-वट्टभावपरिणए एक्कखंधी अनेगसाला अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ घन विउल बद्ध वट्ट खंधे अच्छिद्दपत्ते Translated Sutra: [૧] તે પૂર્ણભદ્ર ચૈત્ય, એક મોટા વનખંડથી ચોતરફથી ઘેરાયેલ હતું. તે વનખંડ કૃષ્ણવર્ણ અને – કૃષ્ણકાંતિવાળુ, નીલવર્ણ – નીલકાંતિવાળુ, હરિતવર્ણ – હરિતકાંતિવાળુ હતું., શીતળ – શીતળછાયા, સ્નિગ્ધ – સ્નિગ્ધછાયા, તીવ્ર – તીવ્રાવભાસ, કૃષ્ણ – કૃષ્ણછાય, નીલ – નીલછાય, હરિત – હરિતછાય, શીત – શીતછાય, સ્નિગ્ધ – સ્નિગ્ધછાય, તીવ્ર – | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 4 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं वनसंडस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं महं एक्के असोगवरपायवे पन्नत्ते–कुस विकुस विसुद्ध रुक्खमूले मूल मंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अणुपुव्व सुजाय रुइल वट्टभावपरिणए अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अग्गेज्झ घन विउल बद्ध वट्टखंधे अच्छिद्दपत्ते अविरलपत्ते अवाईणपत्ते अणईइपत्ते निद्धूय जरढ पंडुपत्ते नवहरियभिसंत पत्तभारंधयार गंभीरदरिसणिज्जे उवनिग्गय नव तरुण पत्त पल्लव कोमलउज्जल-चलंतकिसलय सुकुमालपवाल सोहियवरंकुरग्गसिहरे निच्चं कुसुमिए निच्चं माइए निच्चं लवइए निच्चं थवइए निच्चं गुलइए Translated Sutra: [૧] તે વનખંડના બહુમધ્ય દેશભાગમાં એક મોટું ઉત્તમ એવું અશોકવૃક્ષ હતું. તેનું મૂળ ડાભ અને તૃણોથી રહિત હતું. તે વૃક્ષ ઉત્તમ મૂળ, કંદ યાવત્ પર્યાપ્ત સ્થાનવાળું, સુરમ્ય – પ્રાસાદીય – દર્શનીય – અભિરૂપ અને પ્રતિરૂપ હતું. [૨] તે ઉત્તમ અશોકવૃક્ષ, બીજા પણ ઘણા તિલક, લકુચ, ક્ષત્રોપ, શિરીષ, સપ્તવર્ણ, દધિપર્ણ, લોઘ્ર, ધવ, ચંદન, | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 5 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे अट्ठ अट्ठ मंगलगा पन्नत्ता, तं जहा–सोवत्थिय सिरिवच्छ नंदियावत्त वद्ध माणग भद्दासण कलस मच्छ दप्पणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा धट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पहा समीरिया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे किण्हचामरज्झया नीलचामरज्झया लोहिय-चामरज्झया हालिद्दचामरज्झया सुक्किलचामरज्झया अच्छा सण्हा रुप्पपट्टा वइरदंडा जलयामल-गंधिया सुरम्मा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा।
तस्स णं असोगवरपायवस्स उवरिं बहवे छत्ताइछत्ता पडागाइपडागा घंटाजुयला Translated Sutra: તે ઉત્તમ અશોકવૃક્ષની નીચે, તેના તળની કંઈક નજીક, એક મોટો પૃથ્વીશિલાપટ્ટક હતો. તેની લંબાઈ – પહોળાઈ – ઊંચાઈ સપ્રમાણ હતી. તે કાળો, અંજન, ઘન વાદળા, તલવાર, નીલકમલ, બલરામના વસ્ત્ર, આકાશ, કેશ, કાજળની ડબ્બી, ખંજન, શીંગડુ, રિષ્ટકરત્ન, જાંબુના ફળ, બીયક વૃક્ષ, શણ પુષ્પના ડીંટિયા, નીલકમલના પાનની રાશિ, અલસીના ફૂલ સદૃશ પ્રભાવાળો | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 6 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ णं चंपाए नयरीए कूणिए नामं राया परिवसइ–महयाहिमवंत महंत मलय मंदर महिंदसारे अच्चंतविसुद्ध दीह राय कुल वंस सुप्पसूए निरंतरं रायलक्खण विराइयंगमंगे बहुजन बहुमान पूइए सव्वगुण समिद्धे खत्तिए मुइए मुद्धाहिसित्ते माउपिउ सुजाए दयपत्ते सीमंकरे सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे मनुस्सिंदे जनवयपिया जनवयपाले जनवयपुरोहिए सेउकरे केउकरे नरपवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरिसासीविसे पुरिसपुंडरिए पुरिसवरगंधहत्थी अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न विउल भवन सयनासन जाण वाहणाइण्णे बहुधन बहुजायरूवरयए आओग पओग संपउत्ते विच्छड्डिय पउरभत्तपाणे बहुदासी दास गो महिस गवेलगप्पभूए Translated Sutra: તે ચંપાનગરીમાં કૂણિક નામે રાજા વસતો હતો. તે મહાહિમવંત પર્વતની સમાન મહંત, મલય – મેરુ અને મહેન્દ્ર પર્વત સદૃશ પ્રધાન હતો. અત્યંત વિશુદ્ધ દીર્ઘ રાજકુલ વંશમાં જન્મેલો હતો. નિરંતર રાજલક્ષણ વિરાજિત અંગોપાંગ – યુક્ત હતો. ઘણા લોકો દ્વારા બહુમાન્ય અને પૂજિત હતો. સર્વગુણ સમૃદ્ધ હતો. તે શુદ્ધ ક્ષત્રિયવંશમાં જન્મેલ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 7 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्स णं कोणियस्स रन्नो धारिणी णामं देवी होत्था– सुकुमाल पाणिपाया अहीन पडिपुण्ण पंचिंदियसरीरा लक्खण वंजण गुणोववेया मानुम्मानप्पमाण पडिपुण्ण सुजाय सव्वंगसुंदरंगी ससिसोमाकार कंत पिय दंसणा सुरूवा करयल परिमिय पसत्थतिवली वलिय मज्झा कुंडलुल्लिहिय गंडलेहा कोमुइ रयणियर विमल पडिपुण्ण सोमवयणा सिंगारागार चारुवेसा संगय गय हसिय भणिय विहिय चिट्ठिय विलास सललिय संलाव णिउण जुत्तोवयार कुसला सुंदरथण जधन वयण कर चरण नयण लावण्णविलासकलिया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा कोणिएण रन्ना भिंभसारपुत्तेण सद्धिं अनुरत्ता अविरत्ता इट्ठे सद्द फरिस रस रूव गंधे पंचविहे मानुस्सए Translated Sutra: તે કૂણિક રાજાને ધારિણી નામે રાણી (પત્ની) હતી. તે સુકુમાલ હાથપગવાળી, તે સર્વ લક્ષણોથી સંપન્ન, અહીન – પ્રતિપૂર્ણ – પંચેન્દ્રિયશરીરી હતી, તે હસ્તરેખા આદિ લક્ષણ, તલ, મસા આદિ વ્યંજન ગુણથી યુક્ત, માન – ઉન્માન – પ્રમાણથી પ્રતિપૂર્ણ, સુજાત – સર્વાંગ – સુંદર અંગવાળી, શશિવત્ સૌમ્યાકાર, કાંત અને પ્રિયદર્શનવાળી, સુરૂપ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 10 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी अभयदए चक्खुदए अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिणे जाणए तिण्णे तारए मुत्ते मोयए बुद्धे बोहए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुय-मणंतमक्खयमव्वाबाहमपुनरावत्तगं सिद्धिगइनामधेज्जं ठाणं संपाविउकामे–
... भुयमोयग भिंग नेल कज्जल पहट्ठभमरगण निद्ध निकुरुंब निचिय कुंचिय पयाहिणावत्त मुद्धसिरए दालिमपुप्फप्पगास तवणिज्जसरिस निम्मल सुनिद्ध केसंत केसभूमी घन निचिय सुबद्ध लक्खणुन्नय कूडागारनिभ पिंडियग्गसिरए छत्तागारुत्तिमंगदेसे निव्वण सम Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર, જે શ્રુત અને ચારિત્ર ધર્મના – આદિકર, તીર્થની સ્થાપના કરનાર – તીર્થકર, સ્વયં બોધ પામેલા – સ્વયંસંબુદ્ધ, જ્ઞાનાદિ અનંત ગુણોથી – પુરુષોત્તમ, કર્મ શત્રુ નાશ કર્તા હોવાથી – પુરુષસિંહ, શ્વેત કમળ સમ નિર્મલ અને નિર્લેપ – પુરુષવરપુંડરિક, ઉત્તમ હાથીની જેમ બીજા ઉપર વિજય મેળવનાર | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 11 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से पवित्ति वाउए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे हट्ठ तुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए ण्हाए कयबलिकम्मे कय कोउय मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगलाइं वत्थाइं पवर परिहीए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता चंपाए नयरीए मज्झंमज्झेणं जेणेव कोणियस्स रन्नो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु जएणं विजएणं बद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी–
जस्स णं देवानुप्पिया! दंसणं कंखंति, जस्स णं देवानुप्पिया! Translated Sutra: ત્યારે ભગવાનના સમાચાર જણાવવા નિમાયેલ પ્રવૃત્તિ નિવેદકને આ વૃત્તાંત જાણવા મળતા હર્ષિત, સંતુષ્ટ, આનંદિત ચિત્ત, પ્રીતિયુક્ત મનવાળો થયો. પરમ સૌમનસ્યથી અને હર્ષને વશ થઈ તેનું હૃદય વિકસિત થયું. તેણે સ્નાન – બલિકર્મ – કૌતુક મંગલ પ્રાયશ્ચિત્ત કર્યા. શુદ્ધ, પ્રાવેશ્ય, મંગલ, ઉત્તમ વસ્ત્રો પહેર્યા. અલ્પ પણ મહાર્ધ આભરણથી | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 12 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कूणिए राया भिंभसारपुत्ते तस्स पवित्ति वाउयस्स अंतिए एयमट्ठं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाणहियए वियसिय वरकमल नयन वयणे पयलिय वरकडग तुडिय केऊर मउड कुंडल हार विरायंतरइयवच्छे पालंब पलंबमाण घोलंत-भूसणधरे ससंभमं तुरियं चवलं नरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्ठेइ, अब्भुट्ठेत्ता पाय पीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए अंजलिमउलियहत्थे तित्थगराभिमुहे सत्तट्ठपयाइं अनुगच्छइ, ...
...अनुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचेत्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि Translated Sutra: [૧] ત્યારે તે ભંભસારપુત્ર કોણિકરાજાએ તે પ્રવૃત્તિ નિવેદક પાસે આ વૃત્તાંત સાંભળી, સમજીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ યાવત્ આનંદિત હૃદયી થયો. ઉત્તમ કમળ સમાન નયન વદન વિકસિત થયા. હર્ષાતિરેકથી રાજાના હાથના ઉત્તમ કડા, બાહુરક્ષિકા, કેયુર, મુગટ, કુંડલ, વક્ષઃસ્થળ ઉપર શોભિત હાર કંપિત થયા. ગળામાં લટકતી લાંબી માળા, આભૂષણ ધર રાજા, સંભ્રમ | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 15 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी बहवे निग्गंथा भगवंतो–अप्पेगइया आभिनिबोहियनाणी अप्पेगइया सुयनाणी अप्पेगइया ओहिनाणी अप्पेगइया मणपज्जवनाणी अप्पेगइया केवलनाणी अप्पेगइया मनबलिया अप्पेगइया वयबलिया अप्पेगइया कायबलिया अप्पेगइया मणेणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया वएणं सावाणुग्गहसमत्था अप्पेगइया काएणं सावाणुग्गहसमत्था ...
...अप्पेगइया खेलोसहिपत्ता अप्पेगइया जल्लोसहिपत्ता अप्पेगइया विप्पोसहिपत्ता अप्पेगइया आमोसहिपत्ता अप्पेगइया सव्वोसहिपत्ता अप्पेगइया कोट्ठबुद्धी अप्पेगइया बीयबुद्धी अप्पेगइया पडबुद्धी अप्पेगइया पयाणुसारी Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના અંતેવાસી – શિષ્ય એવા ઘણા નિર્ગ્રન્થો હતા, જેવા કે – કેટલાક આભિનિબોધિકજ્ઞાની, શ્રુતજ્ઞાની, અવધિજ્ઞાની, મન:પર્યવજ્ઞાની, કેવળજ્ઞાની હતા, કેટલાક મનોબલિ, વચનબલિ અને કાયબલિ હતા. કેટલાક મન – વચન કે કાયાથી શાપ દેવામાં કે અનુગ્રહ કરવામાં સમર્થ હતા, કેટલાક ખેલૌષધિ લબ્ધિ પ્રાપ્ત | |||||||||
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समवसरण वर्णन |
Gujarati | 19 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं बाहिरए? बाहिरए छव्विहे, तं जहा–अनसने ओमोयरिया भिक्खायरिया रसपरिच्चाए कायकिलेसे पडिसंलीनया।
से किं तं अनसने? अनसने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य आवकहिए य।
से किं तं इत्तरिए? इत्तरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थभत्ते, छट्ठभत्ते, अट्ठमभत्ते, दसमभत्ते, बारसभत्ते, चउद्दसभत्ते, सोलसभत्ते, अद्धमासिए भत्ते मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते, चउमासिए भत्ते, पंचमासिए भत्ते, छम्मासिएभत्ते। से तं इत्तरिए।
से किं तं आवकहिए? आवकहिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य। से किं तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–वाघाइमे य Translated Sutra: [૧] તે બાહ્યતપ શું છે? બાહ્યતપ છ ભેદે છે. તે આ રીતે – અનશન, ઊનોદરિકા, ભિક્ષાચર્યા, રસપરિત્યાગ, કાયક્લેશ પ્રતિસંલિનતા. તે અનશન શું છે ? અનશન બે ભેદે છે – ઇત્વરિક, યાવત્કથિત. તે ઇત્વરિક શું છે ? અનેકવિધ છે – ચતુર્થભક્ત, છઠ્ઠભક્ત, અઠ્ઠમભક્ત, દશમભક્ત, બારસભક્ત, ચૌદશભક્ત, સોલશભક્ત, અર્ધમાસિકભક્ત, માસિકભક્ત, બેમાસિક – ભક્ત | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 20 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अब्भिंतरए तवे? अब्भिंतरए तवे छव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–पायच्छित्तं विनओ वेयावच्चं सज्झाओ ज्झाणं विउस्सग्गो।
से किं तं पायच्छित्ते? पायच्छित्ते दसविहे पन्नत्ते, तं जहा–आलोयणारिहे पडिक्कमणारिहे तदुभयारिहे विवेगारिहे विउस्सग्गारिहे तवारिहे छेदारिहे मूलारिहे अणवट्ठप्पारिहे पारंचियारिहे। से तं पायच्छित्ते।
से किं तं विनए? विनए सत्तविहे पन्नत्ते, तं जहा–नाणविनए दंसणविनए चरित्तविनए मनविनए वइविनए कायविनए लोगोवयारविनए।
से किं तं नाणविनए? नाणविनए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–आभिणिबोहियनाणविनए सुयनाणविनए ओहिनाणविनए मनपज्जवनाणविनए केवलनाणविनए। Translated Sutra: [૧] તે અભ્યંતર તપ શું છે ? તે છ ભેદે છે – પ્રાયશ્ચિત્ત, વિનય, વૈયાવચ્ચ, સ્વાધ્યાય, ધ્યાન અને ઉત્સર્ગ. તે પ્રાયશ્ચિત્ત શું છે ? તે દશ ભેદે છે – આલોચના યોગ્ય, પ્રતિક્રમણ યોગ્ય, તદુભય યોગ્ય, વિવેક યોગ્ય, વ્યુત્સર્ગ યોગ્ય, તપ યોગ્ય, છેદ યોગ્ય, મૂલ યોગ્ય, અનવસ્થાપ્યાર્હ, પારંચિત યોગ્ય. તે વિનય શું છે ? તે સાત ભેદે છે – જ્ઞાન | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 21 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अनगारा भगवंतो– अप्पेगइया आयारधरा अप्पेगइया सूयगडधरा अप्पेगइया ठाणधरा अप्पेगइया समवायधरा अप्पेगइया विवाहपन्नत्तिधरा अप्पेगइया नायाधम्मकहाधरा अप्पेगइया उवासगदसाधरा अप्पेगइया अंतगडदसा-धरा अप्पेगइया अनुत्तरोववाइयदसाधरा अप्पेगइया पण्हावागरणदसाधरा अप्पेगइया विवागसुयधरा, ...
...अप्पेगइया वायंति अप्पेगइया पडिपुच्छंति अप्पेगइया परियट्टंति अप्पेगइया अनुप्पेहंति, अप्पेगइया अक्खेवणीओ विक्खेवणीओ संवेयणीओ निव्वेयणीओ चउव्विहाओ कहाओ कहंति, अप्पेगइया उड्ढंजाणू अहोसिरा झाणकोट्ठोवगया–संजमेणं तवसा अप्पाणं Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવન્ મહાવીરના ઘણા અણગાર ભગવંતો હતા, તેમાના કેટલાક ‘આચાર’ધર હતા, કેટલાક ‘સૂત્રકૃત’ધર હતા યાવત્ ‘વિપાકશ્રુત’ધર હતા. તેઓ ત્યાં – ત્યાં તે – તે સ્થાને એક – એક સમૂહના રૂપમાં, સમૂહના એક – એક ભાગના રૂપમાં તથા કૂટકર રૂપમાં વિભક્ત થઈને રહેલા હતા. કેટલાક વાચના આપતા હતા, કેટલાક પ્રતિપૃચ્છા | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 22 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे असुरकुमारा देवा अंतियं पाउब्भवित्थाकालमहानीलसरिस नीलगुलिय गवल अयसिकुसुमप्पगासा वियसिय सयवत्तमिव पत्तल निम्मल ईसीसियरत्ततंबनयणा गरुलायत उज्जुतुंगणासा ओयविय सिल प्पवाल बिंबफलसन्निभाहरोट्ठा पंडुर ससिसयल विमल निम्मल संख गोखीर फेण दगरय मुणालिया धव-लदंतसेढी हुयवह निद्धंत धोय तत्त तवणिज्ज रत्ततलतालुजीहा अंजण घण कसिण रुयग रमणिज्ज निद्धकेसा वामेगकुंडलधरा अद्द चंदनानुलित्तगत्ता ईसीसिलिंध पुप्फप्पगासाइं असंकिलिट्ठाइं सुहुमाइं वत्थाइं पवरपरिहिया वयं च पढमं समइक्कंता बिइयं च असंपत्ता भद्दे जोव्वणे Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર સમીપે ઘણા અસુરકુમાર દેવો પ્રગટ થયા. કાળા મહાનીલમણિ, નીલમણિ, નીલગુટિકા, ભેંસના શીંગડા તથા અળસીના પુષ્પ જેવા કાળા વર્ણ તથા દીપ્તિ હતા. તેમના નેત્ર ખીલેલા કમળ સદૃશ હતા, નેત્રોની ભંવર નિર્મળ હતી. તેમના નેત્રોનો વર્ણ કંઈક સફેદ – લાલ – તામ્ર જેવો હતો. તેની નાસિકા ગરુડ સદૃશ લાંબી, | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 24 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंतियं पाउब्भवित्था–पिसायभूया य जक्ख रक्खस किण्णर किंपुरिस भुयग पइणो य महाकाया गंधव्वनिकायगणा निउणगंधव्वगीयरइणो अणवन्निय पणवन्निय इसिवादिय भूयवादिय कंदिय महाकंदिया य कुहंड पययदेवा चंचल चवल चित्त कीलण दवप्पिया गंभीर हसिय भणिय पिय गीय नच्चणरई वनमालामेल मउड कुंडल सच्छंदविउव्वियाहरण चारुविभूसणधरा सव्वोउयसुरभि कुसुम सुरइयपलंब सोभंत कंत वियसंत चित्तवणमाल रइय वच्छा कामगमा कामरूवधारी नानाविहवण्णराग वरवत्थ चित्तचिल्लय नियंसणा विविहदेसीनेवच्छ गहियवेसा पमुइय कंदप्प कलह केली कोलाहलप्पिया Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરની સમીપે ઘણા વ્યંતરદેવો પ્રગટ થયા. તે પિશાચ, ભૂત, યક્ષ, રાક્ષસ, કિંનર, કિંપુરુષ, ભુજગપતિ અને મહાકાય તથા ગંધર્વનિકાયગણ નિપુણ ગીતરતિક એવા અણપન્ની, પણપન્ની, ઋષિવાદિક, ક્રંદિત, મહાક્રંદિત, કુહંડ, પતક વ્યંતર દેવો પ્રગટ થયા. તેઓ ચંચળ – ચપળ ચિત્તવાળા, ક્રીડા – પરિહાસ પ્રિય, ગંભીર હસિત | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 27 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं चंपाए नयरीए सिंघाडग तिग चउक्क चच्चर चउम्मुह महापहपहेसु महया जनसद्देइ वा, जनवूहइ वा जनबोलेइ वा जनकलकलेइ वा जनुम्मीइ वा जनुक्कलियाइ वा जनसन्निवाएइ वा बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु देवानुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसोत्तमे जाव संपाविउकामे, पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तं महप्फलं खलु भो देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं Translated Sutra: [૧] ત્યારે ચંપાનગરીના શૃંગાટક, ત્રિક, ચતુષ્ક, ચત્વર, ચતુર્મુખ, મહાપથ, પથમાં મોટા જનશબ્દ, જનવ્યૂહ, જનબોલ, જનકલકલ, જન – ઉર્મિ, જનઉત્કલિકા, જન – સન્નિપાતમાં ઘણા લોકો પરસ્પર આમ કહેતા – બોલતા – પ્રજ્ઞાપના કરતા – પ્રરૂપણા કરતા હતા કે હે દેવાનુપ્રિયો ! શ્રમણ ભગવંત મહાવીર આદિકર તીર્થંકર, સ્વયંસંબુદ્ધ, પુરુષોત્તમ યાવત્ |