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Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1477 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं एगं समयं जहन्निया । अजीवाण य रूवीणं ठिई एसा वियाहिया ॥

Translated Sutra: रूपी अजीवों – पुद्‌गल द्रव्यों की स्थिति जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल की बताई गई है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1478 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं एगं समयं जहन्नयं । अजीवाण य रूवीण अंतरेयं वियाहियं ॥

Translated Sutra: रूपी अजीवों का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्त काल है।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1542 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर पृथ्वीकाय के जीवलोक के एक देश में व्याप्त हैं। अब चार प्रकार से पृथ्वीकायिक जीवों के काल – विभाग का कथन करूँगा।
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1543 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: पृथ्वीकायिक जीव प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। उनकी २२०० वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य स्थिति है। उनकी असंख्यात कालकी उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य काय – स्थिति है। पृथ्वी के शरीर को न छोड़कर निरन्तर पृथ्वीकाय में ही पैदा होते रहना, काय
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1545 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पुढवीणं तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५४३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1546 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए पुढवीजीवाण अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५४३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1551 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: अप्कायिक जीव प्रवाह की अपेक्षा से अनादि – अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि – सान्त हैं। उनकी ७००० वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य आयुस्थिति है। उनकी असंख्यात काल की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य कायस्थिति है। अप्काय को छोड़कर निरन्तर अप्काय में ही पैदा होना, काय स्थिति है। अप्काय
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1553 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्निया । कायट्ठिई आऊणं तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५५१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1554 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए आऊजीवाण अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५५१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1564 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एगविहमणाणत्ता सुहुमा तत्थ वियाहिया । सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा ॥

Translated Sutra: सूक्ष्म वनस्पति काय के जीव एक ही प्रकार के हैं, उनके भेद नहीं हैं। सूक्ष्म वनस्पतिकाय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर वनस्पति काय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। उनकी दस हजार वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त्त की जघन्य आयु
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1567 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायठिई पणगाणं तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५६४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1568 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए पणगजीवाण अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५६४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1575 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: सूक्ष्म तेजस्काय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर तेजस्काय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से तेजस्काय जीवों के काल – विभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाही की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। तेजस्काय की आयु – स्थिति उत्कृष्ट तीन अहोरात्र की है और
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1578 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायट्ठिई तेऊणं तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1579 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए तेउजीवाण अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५७५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1584 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सुहुमा सव्वलोगम्मि लोगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: सूक्ष्म वायुकाय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर वायुकाय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से वायुकायिक जीवों के काल – विभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से आदि सान्त हैं। उनकी आयु – स्थिति उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1587 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] असंखकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । कायट्ठिई वाऊणं तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५८४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1588 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए वाउजीवाण अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५८४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1595 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। उनकी आयु – स्थिति उत्कृष्ट बारह वर्ष की और जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की है। उनकी काय – स्थिति उत्कृष्ट संख्यात काल की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। द्वीन्द्रिय के शरीर को न छोड़कर निरंतर द्वीन्द्रिय शरीर में ही पैदा होना,
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1597 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संखिज्जकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइंदियकायट्ठिई तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५९५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1598 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइंदियजीवाणं अंतरेयं वियाहियं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १५९५
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1604 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। उनकी आयु – स्थिति उत्कृष्ट उन पचास दिनों की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। उनकी काय – स्थिति उत्कृष्ट संख्यात काल की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। त्रीन्द्रिय शरीर को न छोड़कर, निरंतर त्रीन्द्रिय शरीर में ही पैदा होना कायस्थिति
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1606 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संखिज्जकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइंदियकायठिई तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६०४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1607 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । तेइंदियजीवाणं अंतरेयं वियाहियं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६०४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1614 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि – अनंत और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। उनकी आयु – स्थिति उत्कृष्ट छह मास की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। उनकी काय – स्थिति उत्कृष्ट संख्यातकाल की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। चतु – रिन्द्रिय के शरीर को न छोड़कर निरंतर चतुरिन्द्रिय के शरीर में ही पैदा होते रहना, काय
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1616 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संखिज्जकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । चउरिंदियकायठिई तं कायं तु अमुंचओ ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६१४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1617 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए अंतरेयं वियाहियं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६१४
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1622 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे उ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से नैरयिक जीवों के काल – विभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं। और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त है। सूत्र – १६२२, १६२३
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1631 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जा चेव उ आउठिई नेरइयाणं वियाहिया । सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे ॥

Translated Sutra: नैरयिक जीवों की जो आयु – स्थिति है, वही उनकी जघन्य और उत्कृष्ट कायस्थिति है। नैरयिक शरीर को छोड़कर पुनः नैरयिक शरीर में उत्पन्न होने में अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। सूत्र – १६३१, १६३२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1632 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए नेरइयाणं तु अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६३१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1636 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मच्छा य कच्छभा य गाहा य मगरा तहा । सुंसुमारा य बोद्धव्वा पंचहा जलयराहिया ॥

Translated Sutra: जलचर पाँच प्रकार के हैं – मत्स्य, कच्छप, ग्राह, मकर और सुंसुमार। वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से उनके कालविभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि – अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। जलचरों की आयु – स्थिति उत्कृष्ट एक करोड़ पूर्व
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1637 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६३६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1641 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए जलयराणं तु अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६३६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1646 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से स्थलचर जीवों के काल – विभाग का कथन करूँगा। प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि अनन्त हैं। स्थिति की अपेक्षा से सादि – सान्त हैं। उनकी आयु स्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। उत्कृष्टतः पृथक्त्व करोड़
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1650 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कायट्ठिई थलयराणं अंतरं तेसिमं भवे । कालमणंतमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६४६
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1651 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विजढंमि सए काए थलयराणं तु अंतरं । चम्मे उ लोमपक्खी य तइया समुग्गपक्खिया ॥

Translated Sutra: खेचर जीव के चार प्रकार हैं – चर्मपक्षी, रोम पक्षी, समुद्‌ग पक्षी और विततपक्षी। वे लोक के एक भाग में व्याप्त हैं, सम्पूर्ण लोक में नहीं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से खेचर जीवों के कालविभाग का कथन करूँगा। प्रवाह की अपेक्षा से वे अनादि अनन्त हैं। स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। उनकी आयु स्थिति उत्कृष्ट
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1656 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कायठिई खहयराणं अंतरं तेसिमं भवे । कालं अनंतमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६५१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1662 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संतइं पप्पणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥

Translated Sutra: उक्त मनुष्य प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं, स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं। मनुष्यों की आयु – स्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की है। उत्कृष्टतः पृथक्त्व करोड़ पूर्व अधिक तीन पल्योपम और जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त मनुष्यों की काय – स्थिति है, उनका अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त और
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1665 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कायट्ठिई मनुयाणं अंतरं तेसिमं भवे । अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १६६२
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1680 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोगस्स एगदेसम्मि ते सव्वे परिकित्तिया । इत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउव्विहं ॥

Translated Sutra: वे सभी लोक के एक भाग में व्याप्त हैं। इस निरूपण के बाद चार प्रकार से उनके काल – विभाग का कथन करूँगा। वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं। स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं। सूत्र – १६८०, १६८१
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1708 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जा चेव उ आउठिई देवाणं तु वियाहिया । सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे ॥

Translated Sutra: देवों की पूर्व – कथित जो आयु – स्थिति है, वही उनकी जघन्य और उत्कृष्ट कायस्थिति है। देव के शरीर को छोड़कर पुनः देव के शरीर में उत्पन्न होने में अन्तर जघन्य अन्तमुहूर्त्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल का है। सूत्र – १७०८, १७०९
Uttaradhyayan उत्तराध्ययन सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३६ जीवाजीव विभक्ति

Hindi 1709 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अनंतकालमुक्कोसं अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । विजढंमि सए काए देवाणं हुज्ज अंतरं ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र १७०८
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-२ परिषह

Gujarati 52 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कालीपव्वंगसंकासे किसे धमणिसंतए । मायन्ने असन-पानस्स अदीन-मनसो चरे ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૫૧
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१३ चित्र संभूतीय

Gujarati 412 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] दासा दसन्ने आसी मिया कालिंजरे नगे । हंसा मयंगतीरे सोवागा कासिभूमिए ॥

Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૧૦
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान

Gujarati 512 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं दस बंभचेरसमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमबहुले संवरबहुले समाहिबहुले गुत्ते गुत्तिंदिए गुत्तबंभयारी सया अप्पमत्ते विहरेज्जा, तं जहा– विवित्ताइं सयनासनाइं सेविज्जा, से निग्गंथे। नो इत्थी पसुपंडगसंसत्ताइं सयनासनाइं सेवित्ता हवइ, से निग्गंथे। तं कहमिति चे? आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीपसुपंडगसंसत्ताइं सयनासनाइं सेवमाणस्स बंभयारिस्स

Translated Sutra: સ્થવિર ભગવંતોએ બ્રહ્મચર્ય સમાધિના કયા સ્થાન બતાવેલ છે, જેને સાંભળી, જેના અર્થનો નિર્ણય કરી ભિક્ષુ સંયમ, સંવર અને સમાધિથી અધિકાધિક સંપન્ન થાય, ગુપ્ત, ગુપ્તેન્દ્રિય, ગુપ્ત બ્રહ્મચારી થઈ સદા અપ્રમત્ત ભાવે વિચરણ કરે ? તે સ્થાનો આ છે – જે વિવિક્ત શયન, આસનને સેવે છે. તે નિર્ગ્રન્થ છે. જે સ્ત્રી, પશુ અને નપુંસક સંસક્ત
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान

Gujarati 513 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो इत्थीणं कहं कहित्ता हवइ, से निग्गंथे। तं कहमिति चे? आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीणं कहं कहेमाणस्स, बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा नो इत्थीणं कहं कहेज्जा।

Translated Sutra: જે સ્ત્રીઓની કથા નથી કરતા, તે નિર્ગ્રન્થ છે. એમ કેમ ? આચાર્ય કહે છે – જે સ્ત્રીની કથા કરે છે, તે બ્રહ્મચારી નિર્ગ્રન્થને બ્રહ્મચર્ય વિષયમાં શંકા, કાંક્ષા, વિચિકિત્સા ઉત્પન્ન થાય છે. ભેદ પ્રાપ્ત થાય છે. ઉન્માદને પામે છે, દીર્ઘ – કાલિક રોગાંતક થાય છે અથવા કેવલી પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મથી ભ્રષ્ટ થાય છે. તે સ્ત્રી કથા ન કહેવી
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१६ ब्रह्मचर्यसमाधिस्थान

Gujarati 514 Sutra Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नो इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरित्ता हवइ, से निग्गंथे। तं कहमिति चे? आयरियाह–निग्गंथस्स खलु इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागयस्स, बंभयारिस्स बंभचेरे संका वा, कंखा वा, वितिगिच्छा वा समुप्पज्जिज्जा, भेयं वा लभेज्जा, उम्मायं वा पाउणिज्जा, दीहकालियं वा रोगायंकं हवेज्जा, केवलिपन्नत्ताओ वा धम्माओ भंसेज्जा। तम्हा खलु नो निग्गंथे इत्थीहिं सद्धिं सन्निसेज्जागए विहरेज्जा।

Translated Sutra: જે સ્ત્રીઓની સાથે એક આસને બેસતા નથી, તે નિર્ગ્રન્થ છે. એમ કેમ ? જે સ્ત્રીઓ સાથે એક આસને બેસે છે, તે બ્રહ્મચારીને બ્રહ્મચર્યના વિષયમાં શંકા, કાંક્ષા, વિચિકિત્સા ઉત્પન્ન થાય, ભેદ પામે, ઉન્માદને પ્રાપ્ત કરે, દીર્ઘકાલિક રોગ કે આતંક થાય અથવા કેવલી પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મથી ભ્રષ્ટ થાય, તેથી નિર્ગ્રન્થને સ્ત્રીની સાથે એક
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ विनयश्रुत

Gujarati 10 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मा य चंडालियं कासी बहुयं मा य आलवे । कालेन य अहिज्जित्ता तओ ज्झाएज्ज एगगो ॥

Translated Sutra: શિષ્ય આવેશમાં આવી કોઈ ચાંડાલિક અકર્મ ન કરે, બકવાસ ન કરે, અધ્યયન કાલે અધ્યયન કરે, પછી એકાકી ધ્યાન કરે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ विनयश्रुत

Gujarati 31 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] कालेन निक्खमे भिक्खू कालेन य पडिक्कमे । अकालं च विवज्जित्ता काले कालं समायरे ॥

Translated Sutra: ભિક્ષુ સમયે જ ભિક્ષાને માટે નીકળે અને સમયે જ પાછા ફરે. અકાળે કોઈ કાર્ય ન કરે. બધા કાર્ય સ્વ – સ્વકાળે જ આચરે.
Uttaradhyayan ઉત્તરાધ્યયન સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ विनयश्रुत

Gujarati 32 Gatha Mool-04 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] परिवाडीए न चिट्ठेज्जा भिक्खू दत्तेसणं चरे । पडिरूवेण एसित्ता मियं कालेन भक्खए ॥

Translated Sutra: ભિક્ષાર્થે ગયેલ ભિક્ષુ, ભોજનાર્થે એકઠા થયેલા લોકોની પંક્તિમાં ન ઊભા રહે. મર્યાદાનુરૂપ એષણા કરીને ગૃહસ્થ દત્ત આહાર સ્વીકારે અને શાસ્ત્રોક્ત કાળે પરિમિત ભોજન કરે.
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