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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
काल प्रमाणं |
Gujarati | 94 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिन्नि सहस्से सगले छ च्च सए उडुवरो हरइ आउं ।
हेमंते गिम्हासु य वासासु य होइ नायव्वं ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૪ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
काल प्रमाणं |
Gujarati | 95 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वाससयं परमाउं एत्तो पन्नास हरइ निद्दाए ।
एत्तो वीसइ हायइ बालत्ते वुड्ढभावे य ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭૪ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
अनित्य, अशुचित्वादि |
Gujarati | 102 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आउसो! जं पि य इमं सरीरं इट्ठं पियं कंतं मणुन्नं मणामं मणाभिरामं थेज्जं वेसासियं सम्मयं बहुमयं अणुमयं भंडकरंडगसमाणं, रयणकरंडओ विव सुसंगोवियं, चेलपेडा विव सुसंपरिवुडं, तेल्लपेडा विव सुसंगोवियं ‘मा णं उण्हं मा णं सीयं मा णं पिवासा मा णं चोरा मा णं वाला मा णं दंसा मा णं मसगा मा णं वाइय-पित्तिय-सिंभिय-सन्निवाइया विविहा रोगायंका फुसंतु’ त्ति कट्टु। एवं पि याइं अधुवं अनिययं असासयं चओवचइयं विप्पणासधम्मं, पच्छा व पुरा व अवस्स विप्पचइयव्वं।
एयस्स वि याइं आउसो! अणुपुव्वेणं अट्ठारस य पिट्ठकरंडगसंधीओ, बारस पंसुलिकरंडया, छप्पंसुलिए कडाहे, बिहत्थिया कुच्छी, चउरंगुलिआ गीवा, Translated Sutra: હે આયુષ્યમાન્ ! આ શરીર ઇષ્ટ, પ્રિય, કાંત, મનોજ્ઞ, મનોહર, મનાભિરામ, દૃઢ, વિશ્વસનીય, સંમત, બહુમત, અનુમત, ભાંડ કરંડક સમાન, રત્નકરંડકવત્ સુસંગોપિત, વસ્ત્રની પેટી સમાન સુસંપરિવૃત્ત, તેલપાત્રની જેમ સારી રીતે રક્ષણીય, ઠંડી – ગરમી – ભૂખ – તરસ – ચોર – દંશ – મશક – વાત – પિત્ત – કફ – સંનિપાત આદિ રોગોના સંસ્પર્શથી બચાવવા યોગ્ય | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
अनित्य, अशुचित्वादि |
Gujarati | 105 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इमं चेव य सरीरं सीसघडीमेय मज्ज मंसऽट्ठिय मत्थुलिंग सोणिय वालुंडय चम्मकोस नासिय सिंघाणय धीमलालयं अमणुण्णगं सीसघडीभंजियं गलंतनयणकण्णोट्ठ गंड तालुयं अवालुया खिल्लचिक्कणं चिलिचिलियं दंतमलमइलं बीभच्छदरिसणिज्जं अंसलग बाहुलग अंगुली अंगुट्ठग नहसंधिसंघायसंधियमिणं बहुरसियागारं नाल खंधच्छिरा अनेगण्हारु बहुधमनि संधिनद्धं पागडउदर कवालं कक्खनिक्खुडं कक्खगकलियं दुरंतं अट्ठि धमनिसंताणसंतयं, सव्वओ समंता परिसवंतं च रोमकूवेहिं, सयं असुइं, सभावओ परमदुब्भिगंधि, कालिज्जय अंत पित्त जर हियय फोप्फस फेफस पिलिहोदर गुज्झ कुणिम नवछिड्ड थिविथिविथिविंतहिययं दुरहिपित्त Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૩ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Gujarati | 127 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पूइयकाए य इहं चवणमुहे निच्चकालवीसत्थो ।
आइक्खसु सब्भावं किम्ह सि गिद्धो तुमं मूढ!? ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૦૯ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Gujarati | 143 | Sutra | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जाओ चिय इमाओ इत्थियाओ अनेगेहिं कइवरसहस्सेहिं विविहपासपडिबद्धेहिं कामरागमोहिएहिं वन्नियाओ ताओ विय एरिसाओ, तं जहा–
पगइविसमाओ पियरूसणाओ कतियवचडुप्परून्नातो अथक्कहसिय-भासिय-विलास- वीसंभ-पचू(च्च) याओ अविनयवातोलीओ मोहमहावत्तणीओ विसमाओ पियवयणवल्लरीओ कइयवपेमगिरितडीओ अवराहसहस्सघरिणीओ ४, पभवो सोगस्स, विनासो बलस्स, सूणा पुरिसाणं, नासो लज्जाए, संकरो अविणयस्स, निलओ नियडीणं १० खाणी वइरस्स, सरीरं सोगस्स, भेओ मज्जायाणं, आसओ रागस्स, निलओ दुच्चरियाणं १५, माईए सम्मोहो, खलणा नाणस्स, चलणं सीलस्स, विग्घो धम्मस्स, अरी साहूण २०, दूसणं आयारपत्ताणं, आरामो कम्मरयस्स, फलिहो मुक्खमग्गस्स, Translated Sutra: કામરાગ અને મોહરૂપી વિવિધ દોરડાથી બંધાયેલ હજારો શ્રેષ્ઠ કવિઓ દ્વારા આ સ્ત્રીઓની પ્રશંસામાં ઘણું જ કહેવાયેલ છે. વસ્તુતઃ તેમનું સ્વરૂપ આ પ્રમાણે છે – સ્ત્રીઓ સ્વભાવથી કુટિલ, પ્રિયવચનોની લતા, પ્રેમ કરવામાં પહાડની નદીની જેમ કુટિલ, હજારો અપરાધોની સ્વામિની, શોક ઉત્પન્ન કરાવનારી, વાળનો વિનાશ કરનારી, પુરુષો માટે | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Gujarati | 153 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] किं पुत्तेहिं? पियाहि व? अत्थेण व पिंडिएण बहुएणं? ।
जो मरणदेस-काले न होइ आलंबनं किंचि ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૫૨ | |||||||||
Tandulvaicharika | તંદુલ વૈચારિક | Ardha-Magadhi |
उपदेश, उपसंहार |
Gujarati | 154 | Gatha | Painna-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुत्ता चयंत्ति, मित्ता चयंति, भज्जा वि णं मयं चयइ ।
तं मरणदेस-काले न चयइ सुबिइज्जओ धम्मो ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૧૫૨ | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 1 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था–वण्णओ।
पुण्णभद्दे चेइए–वण्णओ। Translated Sutra: उस काल, उस समय में, चम्पा नामक नगरी थी, पूर्णभद्र चैत्य था। (वर्णन औपपातिक सूत्र समान)। | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 2 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नामं थेरे जातिसंपन्ने कुलसंपन्ने बलसंपन्ने रूवसंपन्ने विनयसंपन्ने नाणसंपन्ने दंसणसंपन्ने चरित्तसंपन्ने लज्जासंपन्ने लाघवसंपन्ने ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाने जियमाए जियलोहे जियनिद्दे जिइंदिए जियपरीसहे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे लाघवप्पहाणे खंतिप्पहाणे गुत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे वेयप्पहाणे नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे Translated Sutra: उस काल उस समय आर्यसुधर्मा समवसृत हुए। आर्य सुधर्मा के ज्येष्ठ अन्तेवासी आर्य जम्बू नामक अनगार ने – पूछा छठे अंग नायाधम्मकहाओ का जो अर्थ बतलाया, वह मैं सून चूका हूँ। भगवान ने सातवें अंग उपासकदशा का क्या अर्थ व्याख्यात किया ? जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने सातवे अंग उपासकदशा के दस अध्ययन प्रज्ञप्त किये। – आनन्द, | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 5 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नयरे होत्था–वण्णओ।
तस्स वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए, एत्थ णं दूइपलासए नामं चेइए।
तत्थ णं वाणियगामे नयरे जियसत्तू राया होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं वाणियगामे नयरे आनंदे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिन्न-विउलभवन-सयनासन-जाण-वाहने बहुधन-जायरूव-रयए आओगपओगसंपउत्ते विच्छड्डियपउर-भत्तपाणे बहुदासी-दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए बहुजनस्स अपरिभूए।
तस्स णं आनंदस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, चत्तारि हिरण्ण-कोडीओ वड्ढिपउत्ताओ चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि Translated Sutra: जम्बू ! उस काल, उस समय, वाणिज्यग्राम नगर था। उस के बाहर – ईशान कोण में दूतीपलाश चैत्य था। जितशत्रु वहाँ का राजा था। वहाँ वाणिज्यग्राम में आनन्द नामक गाथापति था जो धनाढ्य यावत् अपरिभूत था। आनन्द गाथापति का चार करोड़ स्वर्ण खजाने में, चार करोड़ स्वर्ण व्यापार में, चार करोड़ स्वर्ण – धन, धान्य आदि में लगा था। उसके | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 9 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इहखलु आनंदाइ! समणे भगवं महावीरे आनंदं समणोवासगं एवं वयासी–एवं खलु आनंदा! समणोवासएणं अभिगयजीवाजीवेणं उवलद्धपुण्णपावेणं आसव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्खकुसलेणं असहेज्जेणं, देवासुर-नाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किन्नर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहिं निग्गंथाओ पावयणाओ अनइक्कमणिज्जेणं सम्मत्तस्स पंच अति-यारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. संका, २. कंखा, ३. वितिगिच्छा, ४. परपासंडपसंसा, ५. परपासंडसंथवो।
तयानंतरं च णं थूलयस्स पाणाइवायवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अतियारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. बंधे २. वहे ३. छविच्छेदे ४. अतिभारे Translated Sutra: भगवान महावीर ने श्रमणोपासक आनन्द से कहा – आनन्द ! जिसने जीव, अजीव आदि पदार्थों के स्वरूप को यथावत् रूप में जाना है, उसको सम्यक्त्व के पाँच प्रधान अतिचार जानने चाहिए और उनका आचरण नहीं करना चाहिए। यथा – शंका, कांक्षा, विचिकित्सा, पर – पाषंड – प्रशंसा तथा पर – पाषंड – संस्तव। इसके बाद श्रमणोपासक को स्थूल – प्राणातिपातविरमण | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 12 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–पहू णं भंते! आनंदे समणोवासए देवानुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अनगारियं पव्वइत्तए?
नो इणट्ठे समट्ठे।
गोयमा! आनंदे णं समणोवासए बहूइं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणिहिति, पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं आनंदस्स वि Translated Sutra: गौतम ने भगवान महावीर को वन्दन – नमस्कार किया और पूछा – भन्ते ! क्या श्रमणोपासक आनन्द देवानुप्रिय के – आपके पास मुण्डित एवं परिव्रजित होने में समर्थ है ? गौतम ! ऐसा संभव नहीं है। श्रमणोपासक आनन्द बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक – पर्याय – का पालन करेगा वह सौधर्म – कल्प – में – सौधर्मनामक देवलोक में अरुणाभ नामक विमान | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 14 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वीइक्कंताइं। पन्नरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं वाणियगामे नयरे बहूणं राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेनावइ-सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी पमाणं Translated Sutra: तदनन्तर श्रमणोपासक आनन्द को अनेकविध शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत, प्रत्याख्यान – पोषधोपवास आदि द्वारा आत्म – भावित होते हुए – चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। जब पन्द्रहवां वर्ष आधा व्यतीत हो चूका था, एक दिन आधी रात के बाद धर्म – जागरण करते हुए आनन्द के मन में ऐसा अन्तर्भाव – चिन्तन, आन्तरिक मांग, मनोभाव या संकल्प उत्पन्न | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 16 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए।
तए णं तस्स आनंदस्स समणोवासगस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्म-जागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–
एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धम्मणिसंतए जाए।
तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता Translated Sutra: श्रमणोपासक आनन्द ने तत्पश्चात् दूसरी, तीसरी, चौथी, पाँचवी, छठी, सातवी, आठवी, नौवी, दसवी तथा ग्यारहवीं प्रतिमा की आराधना की। इस प्रकार श्रावक – प्रतिमा आदि के रूप में स्वीकृत उत्कृष्ट, विपुल प्रयत्न तथा तपश्चरण से श्रमणोपासक आनन्द का शरीर सूख गया, शरीर की यावत् उसके नाड़ियाँ दीखने लगीं। एक दिन आधी रात के बाद | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 17 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे समोसरिए।
परिसा निग्गया जाव पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमसगोत्ते णं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघयणे कनगपुलगनिघस- पम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से छट्ठंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए ज्झाणं ज्झियाइ, तइयाए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते Translated Sutra: उस काल वर्तमान – अवसर्पिणी के चौथे आरे के अन्त में, उस समय भगवान महावीर समवसृत हुए। परिषद् जुड़ी, धर्म सूनकर वापिस लौट गई। उस काल, उस समय श्रमण भगवान महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, जिनकी देह की ऊंचाई सात हाथ थी, जो समचतुरस्र – संस्थान – संस्थित थे – कसौटी पर खचित स्वर्ण – रेखा | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 18 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–अत्थि णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ?
हंता अत्थि।
जइ णं भंते! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहिनाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते! मम वि गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स ओहि नाणे समुप्पण्णे–पुरत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाइं खेत्तं जाणामि पासामि। उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि। उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं Translated Sutra: श्रमणोपासक आनन्त ने भगवान् गौतम को आते हुए देखा। देखकर वह (यावत्) अत्यन्त प्रसन्न हुआ, भगवान गौतम को वन्दन – नमस्कार कर बोला – भगवन् ! मैं घोर तपश्चर्या से इतना क्षीण हो गया हूँ कि नाड़ियाँ दीखने लगी हैं। इसलिए देवानुप्रिय के – आपके पास आने तथा चरणों में वन्दना करने में असमर्थ हूँ। अत एव प्रभो ! आप ही स्वेच्छापूर्वक, | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१ आनंद |
Hindi | 19 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से आनंदे समणोवासए बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता, बीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं ज्झूसित्ता, सट्ठिं भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कंते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसगस्स महाविमानस्स उत्तरपुरत्थिमे णं अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। तत्थ णं आनंदस्स वि देवस्स चत्तारि पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
आनंदे णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं Translated Sutra: यों श्रमणोपासक आनन्द ने अनेकविध शीलव्रत यावत् आत्मा को भावित किया। बीस वर्ष तक श्रमणो – पासक पर्याय – पालन किया, ग्यारह उपासक – प्रतिमाओं का अनुसरण किया, एक मास की संलेखना और एक मास का अनशन संपन्न कर, आलोचना, प्रतिक्रमण कर मरण – काल आने पर समाधिपूर्वक देह – त्याग किया। वह सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कामदेव |
Hindi | 20 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी। पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया।
तत्थ णं चंपाए नयरीए कामदेवे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए।
तस्स णं कामदेवस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, छ हिरण्ण-कोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था।
से णं कामदेवे गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी Translated Sutra: हे भगवन् ! यावत् सिद्धि – प्राप्त भगवान महावीर ने सातवे अंग उपासकदशा के प्रथम अध्ययन का यदि यह अर्थ – आशय प्रतिपादित किया तो भगवन् ! उन्होंने दूसरे अध्ययन का क्या अर्थ बतलाया है ? जम्बू ! उस काल – उस समय – चम्पा नगरी थी। पूर्णभद्र नामक चैत्य था। राजा जितशत्रु था। कामदेव गाथापति था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कामदेव |
Hindi | 21 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे मायी मिच्छदिट्ठी अंतियं आउब्भूए।
तए णं से देवे एगं महं पिसायरूवं विउव्वइ। तस्स णं दिव्वस्स पिसायरूवस्स इमे एयारूवे वण्णावासे पन्नत्ते–सीसं से गोकिलंज-संठाण-संठियं, सालिभसेल्ल-सरिसा से केसा कविलतेएणं दिप्पमाणा, उट्टिया-कभल्ल-संठाण-संठियं निडालं मुगुंसपुच्छं व तस्स भुमकाओ फुग्गफुग्गाओ विगय-बीभत्स-दंसणाओ, सीसघडिविणिग्गयाइं अच्छीणि विगय-बीभत्स-दंसणाइं, कण्णा जह सुप्प-कत्तरं चेव विगय-बीभत्स-दंसणिज्जा, उरब्भपुडसंनिभा से नासा, ज्झुसिरा जमल-चुल्ली-संठाण-संठिया दो वि तस्स नासापुडया, घोडयपुच्छं Translated Sutra: (तत्पश्चात् किसी समय) आधी रात के समय श्रमणोपासक कामदेव के समक्ष एक मिथ्यादृष्टि, मायावी देव प्रकट हुआ। उस देव ने एक विशालकाय पिशाच का रूप धारण किया। उसका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है – उस पिशाच का सिर गाय को चारा देने की बाँस की टोकरी जैसा था। बाल – चावल की मंजरी के तन्तुओं के समान रूखे और मोटे थे, भूरे रंग के थे, | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-२ कामदेव |
Hindi | 22 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी–हंभो! कामदेवा! समणोवासया! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं, पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवानुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि।
तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं पिसायरूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे Translated Sutra: पिशाच का रूप धारण किये हुए देव ने श्रमणोपासक को यों निर्भय भाव से धर्म – ध्यान में निरत देखा। तब उसने दूसरी बार, तीसरी बार फिर कहा – मौत को चाहने वाले श्रमणोपासक कामदेव ! आज प्राणों से हाथ धौ बेठोगे। श्रमणोपासक कामदेव उस देव द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर भी अभीत रहा, अपने धर्मध्यान में उपगत रहा। | |||||||||
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अध्ययन-२ कामदेव |
Hindi | 23 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्ग अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्ख-मित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ–सत्तंगपइट्ठियं सम्मं संठियं सुजातं पुरतो उदग्गं पिट्ठतो वराहं अयाकुच्छिं अलंबकुच्छिं पलंब-लंबोदराधरकरं अब्भुग्गय- मउल- मल्लिया- विमल- धवलदंतं Translated Sutra: जब पिशाच रूपधारी उस देव ने श्रमणोपासक को निर्भय भाव से उपासना – रत देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ, उसके ललाट में त्रिबलिक – चढ़ी भृकुटि तन गई। उसने तलवार से कामदेव पर वार किया और उसके टुकड़े – टुकड़े कर डाले। श्रमणोपासक कामदेव ने उस तीव्र तथा दुःसह वेदना को सहनशीलता पूर्वक झेला। जब पिशाच रूपधारी देव ने देखा, श्रमणोपासक | |||||||||
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अध्ययन-२ कामदेव |
Hindi | 24 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडि-निक्खमित्ता दिव्वं हत्थिरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं सप्परूवं विउव्वइ–उग्गविसं चंडविसं घोरविसं महाकायं मसी-मूसाकालगं नयणविसरोसपुण्णं अंजणपुंज-निगरप्पगासं रत्तच्छं लोहियलोयणं जमलजुयल-चंचलचलंतजीहं धरणीयलवेणिभूयं Translated Sutra: हस्तीरूपधारी देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भीकता से अपनी उपासना में निरत देखा, तो उसने दूसरी बार, तीसरी बार फिर श्रमणोपासक कामदेव को वैसा ही कहा, जैसा पहले कहा था। पर, श्रमणोपासक कामदेव पूर्ववत् निर्भीकता से अपनी उपासना में निरत रहा। हस्ती रूपधारी उस देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भीकता से उपासना | |||||||||
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अध्ययन-२ कामदेव |
Hindi | 25 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभि त्तए वा विपरिणामेत्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनि-क्खमित्ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउव्वइ–हार-विराइय-वच्छं कडग-तुडिय-थंभियभुयं अंगय-कुंडल-मट्ठ-गंड-कण्णपीढधारिं विचित्तहत्थाभरणं विचित्त-माला-मउलि-मउडं कल्लाणग-पवरवत्थपरिहियं कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणं Translated Sutra: सर्प रूपधारी देव ने जब श्रमणोपासक कामदेव को निर्भय देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध होकर सर्राटे के साथ उसके शरीर पर चढ़ गया। पीछले भाग से उसके गले में तीन लपेट लगा दिए। लपेट लगाकर अपने तीखे, झहरीले दाँतों से उसकी छाती पर डंक मारा। श्रमणोपासक कामदेव ने उस तीव्र वेदना को सहनशीलता के साथ झेला। सर्प रूपधारी देव ने जब | |||||||||
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अध्ययन-२ कामदेव |
Hindi | 27 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कामदेवाइ! समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी–से नूनं कामदेवा! तुब्भं पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए। तए णं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवल-गुलिय-अयसि-कुसुमप्पगासं खुरधारं, असिं गहाय तुमं एवं वयासी–हंभो! कामदेवा! समणोवासया! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवानुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर ने कामदेव से कहा – कामदेव ! आधी रात के समय एक देव तुम्हारे सामने प्रकट हुआ था। उस देव ने एक विकराल पिशाच का रूप धारण किया। वैसा कर, अत्यन्त क्रुद्ध हो, उसने तलवार नीकालकर तुमसे कहा – कामदेव ! यदि तुम अपने शील आदि व्रत भग्न नहीं करोगे तो जीवन से पृथक् कर दिए जाओगे। उस देव द्वारा यों कहे जाने पर | |||||||||
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अध्ययन-२ कामदेव |
Hindi | 28 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कामदेवे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
तए णं से कामदेवे समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ।
तए णं से कामदेवे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ।
तए णं से कामदेवे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रमणोपासक कामदेव ने पहली उपासकप्रतिमा की आराधना स्वीकार की। श्रमणोपासक कामदेव ने अणुव्रत द्वारा आत्मा को भावित किया। बीस वर्ष तक श्रमणोपासकपर्याय – पालन किया। ग्यारह उपासक – प्रतिमाओं का भली – भाँति अनुसरण किया। एक मास की संलेखना और एक मास का अनशन सम्पन्न कर आलोचना, प्रतिक्रमण कर मरण – काल | |||||||||
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अध्ययन-३ चुलनीपिता |
Hindi | 29 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, तच्चस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया।
तत्थ णं वाणारसीए नयरीए चुलनीपिता नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए।
तस्स णं चुलणीपियस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्सि-एणं वएणं होत्था।
से णं चुलनीपिता गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे सयस्स Translated Sutra: उपोद्घातपूर्वक तृतीय अध्ययन का प्रारम्भ यों है – जम्बू ! उस काल – उस समय, वाराणसी नगरी थी। कोष्ठक नामक चैत्य था, राजा जितशत्रु था। वाराणसी नगरी में चुलनीपिता नामक गाथापति था। वह अत्यन्त समृद्ध एवं प्रभावशाली था। उसकी पत्नी का नाम श्यामा था। आठ करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में, आठ करोड़ स्वर्ण | |||||||||
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अध्ययन-३ चुलनीपिता |
Hindi | 30 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए।
तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी– हंभो! चुलनीपिता! समणोवासया! अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीनपुण्णचाउद्दसिया! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया! पुण्णकंखिया! सग्गकखिया! मोक्खकखिया! धम्मपिवासिया! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवाणु-प्पिया! सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं चालित्तए वा Translated Sutra: उस देव ने जब दूसरी बार, तीसरी बार ऐसा कहा, तब श्रमणोपासक चुलनीपिता के मन में विचार आया – यह पुरुष बड़ा अधम है, नीच – बुद्धि है, नीचतापूर्ण पाप – कार्य करने वाला है, जिसने मेरे बड़े पुत्र को घर से लाकर मेरे आगे मार डाला। उसके मांस और रक्त से मेरे शरीर सींचा – छींटा, जो मेरे मंझले पुत्र को घर से ले आया, जो मेरे छोटे पुत्र | |||||||||
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अध्ययन-३ चुलनीपिता |
Hindi | 31 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से चुलनीपिता समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
तए णं से चुलनीपिता समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ।
तए णं से चुलनीपिता समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ
तए णं से चुलनीपिता समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए Translated Sutra: तत्पश्चात् श्रमणोपासक चुलनीपिता ने आनन्द की तरह क्रमशः पहली, यावत् ग्यारहवीं उपासक – प्रतिमा की यथाविधि आराधना की। श्रमणोपासक चुलनीपिता सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान कोण में स्थित अरुणप्रभ विमान में देवरूप में उत्पन्न हुआ। वहाँ उसकी आयु – स्थिति चार पल्योपम की बतलाई गई है। महाविदेह | |||||||||
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अध्ययन-४ सुरादेव |
Hindi | 32 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए चेइए। जियसत्तू राया।
तत्थ णं वाणारसीए नयरीए सुरादेवे नामं गाहावइ परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए।
तस्स णं सुरादेवस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, छ हिरण्ण-कोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था।
से णं सुरादेवे गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स Translated Sutra: उपोद्घातपूर्वक चतुर्थ अध्ययन का प्रारम्भ यों है। जम्बू ! उस काल – उस समय – वाराणसी नामक नगरी थी। कोष्ठक नामक चैत्य था। राजा का नाम जितशत्रु था। वहाँ सुरादेव गाथापति था। वह अन्यन्त समृद्ध था। छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं स्थायी पूंजी के रूप में उसके खजाने में थीं, यावत् उसके छह गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-४ सुरादेव |
Hindi | 33 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था।
तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी–
हंभो! सुरादेवा! समणोवासया! अपत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीनपुण्ण-चाउद्दसिया! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया! धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया! पुण्णकंखिया! सग्गकंखिया! मोक्खकंखिया! धम्मपिवासिया! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवानुप्पिया! सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं चालित्तए Translated Sutra: उस देव द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार यों कहे जाने पर श्रमणोपासक सुरादेव के मन में ऐसा विचार आया, यह अधम पुरुष यावत् अनार्यकृत्य करता है। मेरे शरीर में सोलह भयानक रोग उत्पन्न कर देना चाहता है। अतः मेरे लिए यही श्रेयस्कर है, मैं इस पुरुष को पकड़ लूँ। यों सोचकर वह पकड़ने के लिए उठा। इतने में वह देव आकाश में उड़ गया। | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ चुल्लशतक |
Hindi | 34 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं चउत्थस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, पंचमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया नामं नयरी। संखवणे उज्जाणे। जियसत्तू राया।
तत्थ णं आलभियाए नयरीए चुल्लसयए नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए।
तस्स णं चुल्लसययस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था।
से णं चुल्लसयए गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स Translated Sutra: उपोद्घातपूर्वक पाँचवे अध्ययन का आरम्भ। जम्बू ! उस काल – उस समय – आलभिका नगरी थी। शंख – वन उद्यान था। राजा का नाम जितशत्रु था। चुल्लशतक गाथापति था। वह बड़ा समृद्ध एवं प्रभावशाली था। छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं उसके खजाने में रखी थीं – यावत् उसके छह गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दस – दस हजार गायें थीं। उसकी पत्नी | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ चुल्लशतक |
Hindi | 35 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउब्भूए।
तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहायं एवं वयासी–हंभो! चुल्लसयगा! समणोवासया! अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीणपुण्णचाउद्दसिया! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया! पुण्णकंखिया! सग्गकंखिया! मोक्खकंखिया! धम्म पिवासिया! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवानुप्पिया! सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए Translated Sutra: एक दिन की बात है, आधी रात के समय चुल्लशतक के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उसने तलवार नीकालकर कहा – अरे श्रमणोपासक चुल्लशतक ! यदि तुम अपने व्रतों का त्याग नहीं करोगे तो मैं आज तुम्हारे ज्येष्ठ पुत्र को घर से उठा लाऊंगा। चुलनीपिता के समान घटित हुआ। देव ने बड़े, मंझले तथा छोटे – तीनों पुत्रों को क्रमशः मारा, मांस – खण्ड | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-५ चुल्लशतक |
Hindi | 36 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से वि य आगासे उप्पइए, तेण य खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए।
तए णं सा बहुला भारिया तं कोलाहलसद्दं सोच्चा निसम्म जेणेव चुल्लसयए समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासी–किण्णं देवानुप्पिया! तुब्भे णं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए?
तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुलं भारियं एवं वयासी–एवं खलु बहुले! न याणामि के वि पुरिसे आसुरत्ते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय ममं एवं वयासी–हंभो! चुल्लसयगा! समणोवासया! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाइं वयाइं वेरमणाइं पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं Translated Sutra: MISSING_TEXT_IN_ORIGINAL | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ कुंडकोलिक |
Hindi | 37 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, छट्ठस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं कंपिल्लपुरे नयरे। सहस्संबवणे उज्जाणे। जियसत्तू राया।
तत्थ णं कंपिल्लपुरे नयरे कुंडकोलिए नामं गाहावई परिवसइ–अट्ठे जाव बहुजनस्स अपरिभूए।
तस्स णं कुंडकोलियस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्ढिपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छव्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था।
से णं कुंडकोलिए गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स Translated Sutra: जम्बू ! उस काल – उस समय – काम्पिल्यपुर नगर था। सहस्राम्रवन उद्यान था। जितशत्रु राजा था। कुंड – कोलिक गाथापति था। उसकी पत्नी पूषा थी। छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में, छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं व्यापार में, छह करोड़ स्वर्ण – मुद्राएं – धन, धान्य में लगी थीं। छह गोकुल थे। प्रत्येक गोकुल में दस | |||||||||
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अध्ययन-६ कुंडकोलिक |
Hindi | 38 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए अन्नदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोगवणिया, जेणेव पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था।
तए णं से देवे नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी–हंभो! कुंडकोलिया! समणोवासया! सुंदरी णं देवानुप्पिया! गोसालस्स Translated Sutra: एक दिन श्रमणोपासक कुंडकोलिक दोपहर के समय अशोक – वाटिका में गया। पृथ्वी – शिलापट्टक पहुँचा। अपने नाम से अंकित अंगूठी और दुपट्टा उतारा। उन्हें पृथ्वीशिलापट्टक पर रखा। श्रमण भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – अनुरूप उपासना – रत हुआ। श्रमणोपासक कुंडकोलिक के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। उस देव ने | |||||||||
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अध्ययन-६ कुंडकोलिक |
Hindi | 39 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कुंडकोलियाइ! समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी–से नूणं कुंडकोलिया! कल्लं तुब्भं पच्चावरण्हकालसमयंसि असोगवणियाए एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था।
तए णं से देवे नाममुद्दगं च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्ख-पडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए तुमं एवं वयासी–हंभो! कुंडकोलिया! समणोवासया! सुंदरी णं देवानुप्पिया! गोसालस्स मंखलिपु-त्तस्स धम्मपन्नत्ती–नत्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपन्नत्ती–अत्थि उट्ठाणे इ Translated Sutra: भगवान महावीर ने श्रमणोपासक कुंडकोलिक से कहा – कुंडकोलिक ! कल दोपहर के समय अशोक – वाटिका में एक देव तुम्हारे समक्ष प्रकट हुआ। वह तुम्हारी नामांकित अंगूठी और दुपट्टा लेकर आकाश में चला गया। यावत् हे कुंडकोलिक ! क्या यह ठीक है ? भगवन् ! ऐसा ही हुआ। तब भगवान ने जैसा कामदेव से कहा था, उसी प्रकार उससे कहा – कुंडकोलिक | |||||||||
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अध्ययन-६ कुंडकोलिक |
Hindi | 40 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वीइक्कंताइं। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं कंपिल्लपुरे नगरे बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।
तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए Translated Sutra: तदनन्तर श्रमणोपासक कुंडकोलिक को व्रतों की उपासना द्वारा आत्म – भावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। जब पन्द्रहवा वर्ष आधा व्यतीत हो चूका था, एक दिन आधी रात के समय उसके मन में विचार आया, जैसा कामदेव के मन में आया था। उसी की तरह अपने बड़े पुत्र को अपने स्थान पर नियुक्त कर वह भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति | |||||||||
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अध्ययन-७ सद्दालपुत्र |
Hindi | 41 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, सत्तमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं पोलासपुरं नामं नयरं। सहस्संबवणं उज्जाणं। जियसत्तू राया।
तत्थ णं पोलासपुरे नयरे सद्दालपुत्ते नामं कुंभकारे आजीविओवासए परिवसइ। आजीविय-समयंसि लद्धट्ठे गहियट्ठे पुच्छियट्ठे विणिच्छियट्ठे अभिगयट्ठे अट्ठिमिंजपेमाणुरागरत्ते। अयमाउसो! आजीवियसमए अट्ठे अयं परमट्ठे सेसे अणट्ठेत्ति आजी-वियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्का Translated Sutra: पोलासपुर नामक नगर था। सहस्राम्रवन उद्यान था। जितशत्रु राजा था। पोलासपुर में सकडालपुत्र नामक कुम्हार रहता था, जो आजीविक – सिद्धान्त का अनुयायी था। वह लब्धार्थ – गृहीतार्थ – पुष्टार्थ – विनिश्चितार्थ – अभिगतार्थ हुए था। वह अस्थि और मज्जा पर्यन्त अपने धर्म के प्रति प्रेम व अनुराग से भरा था। उसका निश्चित | |||||||||
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अध्ययन-७ सद्दालपुत्र |
Hindi | 42 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयंसि जेणेव असोग-वणिया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स एक्के देवे अंतियं पाउब्भवित्था।
तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवण्णे सखिंखिणियाइं पंचवण्णाइं वत्थाइं पवर परिहिए सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी– एहिइ णं देवानुप्पिया! कल्लं इहं महामाहणे उप्पन्न-नाणदंसणधरे तीयप्पडुपन्नाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय-महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे Translated Sutra: एक दिन आजीविकोपासक सकडालपुत्र दोपहर के समय अशोकवाटिका में गया, मंखलिपुत्र गोशालक के पास अंगीकृत धर्म – प्रज्ञप्ति – के अनुरूप वहाँ उपासना – रत हुआ। आजीविकोपासक सकडालपुत्र के समक्ष एक देव प्रकट हुआ। छोटी – छोटी घंटियों से युक्त उत्तम वस्त्र पहने हुए आकाश में अवस्थित उस देव ने आजीविको – पासक सकडालपुत्र से | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ सद्दालपुत्र |
Hindi | 43 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अह पंडुरे पहाए रत्तासोग-प्पगास-किंसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिनयरे तेयसा जलंते समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव पोलासपुरे नयरे जेणेव सहस्संबवने उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ।
तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे–एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणु-पुव्विं चरमाणे गामाणुगामं Translated Sutra: तत्पश्चात् अगले दिन प्रातः काल भगवान महावीर पधारे। परीषद् जुड़ी, भगवान की पर्युपासना की। आजीविकोपासक सकडालपुत्र ने यह सूना कि भगवान महावीर पोलासपुर नगर में पधारे हैं। उसने सोचा – मैं जाकर भगवान की वन्दना, यावत् पर्युपासना करूँ। यों सोचकर उसने स्नान किया, शुद्ध, सभायोग्य वस्त्र पहने। थोड़े से बहुमूल्य | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ सद्दालपुत्र |
Hindi | 44 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नदा कदाइ वाताहतयं कोलालभंडं अंतो सालाहिंतो बहिया नीणेइ, नीणेत्ता आयवंसि दलयइ।
तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं एवं वयासी–सद्दालपुत्ता! एस णं कोलालभंडे कहं कतो?
तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविओवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी–एस णं भंते! पुव्विं मट्टिया आसी, तओ पच्छा उदएणं तिमिज्जइ, तिम्मिज्जित्ता छारेण य करिसेण य एगयओ मीसिज्जइ, मीसिज्जित्ता चक्के आरुभिज्जति, तओ बहवे करगा य वारगा य पिहडगा य घडगा य अद्धघडगा य कलसगा य अलिंजरगा य जंबूलगा य० उट्टियाओ य कज्जंति।
तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओवासयं Translated Sutra: एक दिन आजीविकोपासक सकडालपुत्र हवा लगे हुए मिट्टी के बर्तन कर्मशाला के भीतर से बाहर लाया और उसने उन्हें धूप में रखा। भगवान महावीर ने आजीविकोपासक सकडलापुत्र से कहा – सकडालपुत्र ! ये मिट्टी के बर्तन कैसे बने ? आजीविकोपासक सकडालपुत्र बोला – भगवन् ! पहले मिट्टी की पानी के साथ गूंथा जाता है, फिर राख और गोबर के साथ | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ सद्दालपुत्र |
Hindi | 46 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जाए–अभिगयजीवाजीवे जाव समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ।
तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणोवासिया जाया–अभिगयजीवाजीवा जाव समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असन-पान-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ।
तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे–एवं खलु सद्दालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाणं निग्गंथाणं दिट्ठिं पवण्णे, तं Translated Sutra: तत्पश्चात् सकडालपुत्र जीव – अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता श्रमणोपासक हो गया। धार्मिक जीवन जीने लगा। कुछ समय बाद मंखलिपुत्र गोशालक ने यह सूना कि सकडालपुत्र आजीविक – सिद्धान्त को छोड़कर श्रमण – निर्ग्रन्थों की दृष्टि – स्वीकार कर चूका है, तब उसने विचार किया कि मैं सकडालपुत्र के पास जाऊं और श्रमण निर्ग्रन्थों | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ सद्दालपुत्र |
Hindi | 47 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छरा वीइक्कंता। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–
एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।
तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए Translated Sutra: तदनन्तर श्रमणोपासक सकडालपुत्र को व्रतों की उपासना द्वारा आत्म – भावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। जब पन्द्रहवा वर्ष चल रहा था, तब एक बार आधी रात के समय वह श्रमण भगवान महावीर के पास अंगीकृत धर्मप्रज्ञप्ति के अनुरूप पोषधशाला में उपासनारत था। अर्ध – रात्रि में श्रमणोपासक सकडालपुत्र समक्ष एक देव प्रकट | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ महाशतक |
Hindi | 48 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया।
तत्थ णं रायगिहे नयरे महासतए नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजनस्स अपरिभूए।
तस्स णं महासतयस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ वड्ढिपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसाओ पवित्थरपउत्ताओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था।
से णं महासतए गाहावई बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, Translated Sutra: आर्य सुधर्मा ने कहा – जम्बू ! उस काल – उस समय – राजगृह नगर था। गुणशील चैत्य था। श्रेणिक राजा था। राजगृह नगर में महाशतक गाथापति था। वह समृद्धिशाली था, वैभव आदि में आनन्द की तरह था। केवल इतना अन्तर था, उसकी आठ करोड़ कांस्य – परिमित स्वर्ण – मुद्राएं सुरक्षित धन के रूप में खजाने में रखी थी, आठ करोड़ कांस्य – परिमित | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ महाशतक |
Hindi | 49 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे।
परिसा निग्गया। कूणिए राया जहा, तहा सेणिओ निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ।
तए णं से महासतए गाहावई इमीसे कहाए लद्धट्ठे समाणे–एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव रायगिहस्स नयरस्स बहिया गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तं महप्फलं खलु भो! देवानुप्पिया! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन-वंदन-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण Translated Sutra: उस समय भगवान महावीर का राजगृह में पदार्पण हुआ। परीषद् जुड़ी। महाशतक आनन्द की तरह भगवान की सेवा में गया। उसने श्रावक – धर्म स्वीकार किया। केवल इतना अन्तर था, महाशतक ने परिग्रह के रूप में आठ – आठ करोड़ कांस्य – परिमित स्वर्ण – मुद्राएं निधान आदि में रखने की तथा गोकुल रखने की मर्यादा की। रेवती आदि तेरह पत्नीयों | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ महाशतक |
Hindi | 50 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तीसे रेवतीए गाहावइणीए अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुंबं जागरियं जागरमाणीए इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं इमासिं दुवालसण्हं सपत्तीणं विघातेणं नो संचाएमि महासतएणं समणोवासएणं सद्धिं ओरालाइं मानुस्सयाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरित्तए। ते सेयं खलु ममं एयाओ दुवालस वि सवत्तीओ अग्गिपओगेण वा सत्थप्पओगेण वा विसप्पओगेण वा जीवियाओ ववरोवित्ता एतासिं एगमेगं हिरण्णकोडिं एगमेगं वयं सयमेव उवसंपज्जित्ता णं महासतएणं समणोवासएणं सद्धिं ओरालाइं मानुस्सयाइं भोगभोगाइं भुंजमाणी विहरित्तए– एवं संपेहेइ, Translated Sutra: एक दिन आधी रात के समय गाथापति महाशतक की पत्नी रेवती के मन में, जब वह अपने पारिवारिक विषयों की चिन्ता में जग रही थी, यों विचार उठा – मैं इन अपनी बारह, सौतों के विघ्न के कारण अपने पति श्रमणो – पासक महाशतक के साथ मनुष्य – जीवन के विपुल विषय – सुख भोग नहीं पा रही हूँ। अतः मेरे लिए यही अच्छा है कि मैं इन बारह सौतों की अग्नि | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ महाशतक |
Hindi | 52 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण-पोसहो-ववासेहिं अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छरा वीइक्कंता। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अन्नदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु अहं रायगिहे नयरे बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपन्नत्तिं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए।
तए णं से महासतए समणोवासए जेट्ठपुत्तं Translated Sutra: श्रमणोपासक महाशतक को विविध प्रकार के व्रतों, नियमों द्वारा आत्मभावित होते हुए चौदह वर्ष व्यतीत हो गए। आनन्द आदि की तरह उसने भी ज्येष्ठ पुत्र को अपनी जगह स्थापित किया – पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्व बड़े पुत्र को सौंपा तथा स्वयं पोषधशाला में धर्माराधना में निरत रहने लगा। एक दिन गाथापति की पत्नी रेवती | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ महाशतक |
Hindi | 53 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से महासतए समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ।
तए णं से महासतए समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ।
तए णं से महासतए समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छट्ठं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ।
तए णं से महासतए समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमनिसंतए Translated Sutra: श्रमणोपासक महाशतक ने पहली उपासकप्रतिमा स्वीकार की। यों पहली से लेकर क्रमशः ग्यारहवीं तक सभी प्रतिमाओं की शास्त्रोक्त विधि से आराधना की। उग्र तपश्चरण से श्रमणोपासक के शरीर में इतनी कृशता – आ गई की नाडियाँ दीखने लगीं। एक दिन अर्द्ध रात्रि के समय धर्म – जागरण – करते हुए आनन्द की तरह श्रमणोपासक महाशतक के मन | |||||||||
Upasakdashang | उपासक दशांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-८ महाशतक |
Hindi | 54 | Sutra | Ang-07 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं सा रेवती गाहावइणी अन्नदा कदाइ मत्ता लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं विकड्ढमाणी-विकड्ढमाणी जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महासतयं समणोवासयं एवं वयासी– हंभो! महासतया! समणोवासया! किं णं तुब्भं देवानुप्पिया! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुमं मए सद्धिं ओरालाइं मानुस्सयाइं भोगभोगाइं भुंजमाणे नो विहरसि?
तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमट्ठं नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरि-याणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ।
तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी–हंभो! Translated Sutra: तत्पश्चात् एक दिन महाशतक गाथापति की पत्नी रेवती शराब के नशे में उन्मत्त बार – बार अपना उत्तरीय फेंकती हुई पोषधशालामें जहाँ श्रमणोपासक महाशतक था, आई। महाशतक से पहले की तरह बोली। दूसरी बार, तीसरी बार, फिर वैसा ही कहा। अपनी पत्नी रेवती द्वारा दूसरी बार, तीसरी बार कहने पर श्रमणोपासक महाशतक को क्रोध आ गया। उसने |