Welcome to the Jain Elibrary: Worlds largest Free Library of JAIN Books, Manuscript, Scriptures, Aagam, Literature, Seminar, Memorabilia, Dictionary, Magazines & Articles

Global Search for JAIN Aagam & Scriptures

Search Results (36429)

Show Export Result
Note: For quick details Click on Scripture Name
Scripture Name Translated Name Mool Language Chapter Section Translation Sutra # Type Category Action
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 301 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संघाडिओ पविसिस्सामो, एहा य समादहमाणा । पिहिया वा सक्खामो, अतिदुक्खं हिमग-संफासा ॥

Translated Sutra: हिमजन्य शीत – स्पर्श अत्यन्त दुःखदायी है, यह सोचकर कोई साधु संकल्प करते थे कि चादरों में घूस जाएंगे या काष्ठ जलाकर किवाड़ों को बन्द करके इस ठंड को सह सकेंगे, ऐसा भी कुछ साधु सोचते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 302 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तंसि भगवं अपडिण्णे, अहे वियडे अहियासए दविए । निक्खम्म एगदा राओ, चाएइ भगवं समियाए ॥

Translated Sutra: किन्तु उस शिशिर ऋतु में भी भगवान ऐसा संकल्प नहीं करते। कभी – कभी रात्रि में भगवान उस मंडप से बाहर चले जाते, मुहूर्त्तभर ठहर फिर मंडप में आते। उस प्रकार भगवान शीतादि परीषह समभाव से सहन करने में समर्थ थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-२ शय्या Hindi 303 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस विही अणुक्कंतो, माहणेण मईमया । ‘अपडिण्णेण वीरेण, कासवेण महेसिणा’ ॥

Translated Sutra: मतिमान महामाहन महावीर ने इस विधि का आचरण किया जिस प्रकार अप्रतिबद्धविहारी भगवान ने बहुत बार इस विधि का पालन किया, उसी प्रकार अन्य साधु भी आत्म – विकासार्थ इस विधि का आचरण करते हैं – ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 304 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तणफासे सीयफासे य, तेउफासे य दंस-मसगे य । अहियासए सया समिए, फासाइं विरूवरूवाइं ॥

Translated Sutra: भगवान घास का कठोर स्पर्श, शीत स्पर्श, गर्मी का स्पर्श, डाँस और मच्छरों का दंश; इन नाना प्रकार के दुःखद स्पर्शों को सदा सम्यक्‌ प्रकार से सहते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 305 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अह दुच्चर-लाढमचारी, वज्जभूमिं च सुब्भ भूमिं च । पंतं सेज्जं सेविंसु, आसणगाणि चेव पंताइं ॥

Translated Sutra: दुर्गम लाढ़ देश के वज्रभूमि और सुम्ह भूमि नामक प्रदेश में उन्होंने बहुत ही तुच्छ वासस्थानों और कठिन आसनों का सेवन किया था।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 306 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] लोढेहिं तस्सुवसग्गा, बहवे जाणवया लूसिंसु । अह लूहदेसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थ हिंसिंसु णिवतिंसु ॥

Translated Sutra: लाढ़ देश के क्षेत्र में भगवान ने अनेक उपसर्ग सहे। वहाँ के बहुत से अनार्य लोग भगवान पर डण्डों आदि से प्रहार करते थे; भोजन भी प्रायः रूखा – सूखा ही मिलता था। वहाँ के शिकारी कुत्ते उन पर टूट पड़ते और काट खाते थे
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 307 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अप्पे जणे णिवारेइ, लूसणए सुणए दसमाणे । छुछुकारंति आहंसु, समणं कुक्कुरा डसंतुत्ति ॥

Translated Sutra: कुत्ते काटने लगते या भौंकते तो बहुत से लोग इस श्रमण को कुत्ते काँटे, उस नीयत से कुत्तों को बुलाते और छुछकार कर उनके पीछे लगा देते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 308 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एलिक्खए जणे भुज्जो, बहवे वज्जभूमि फरुसासी । लट्ठिं गहाय णालीयं, समणा तत्थ एव विहरिंसु ॥

Translated Sutra: उस जनपद में भगवान ने पुनः पुनः विचरण किया। उस जनपद में दूसरे श्रमण लाठी और नालिका लेकर विहार करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 309 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एवं पि तत्थ विहरंता, पुट्ठपुव्वा अहेसि सुणएहिं । संलुंचमाणा सुणएहिं, दुच्चरगाणि तत्थ लाढेहिं ॥

Translated Sutra: वहाँ विचरण करने वाले श्रमणों को भी पहले कुत्ते पकड़ लेते, काट खाते या नोंच डालते। उस लाढ़ देश में विचरण करना बहुत ही दुष्कर था।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 310 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] निधाय दंडं पाणेहिं, तं कायं वोसज्जमणगारे । अह गामकंटए भगवं, ते अहियासए अभिसमेच्चा ॥

Translated Sutra: अनगार भगवान महावीर प्राणियों प्रति होनेवाले दण्ड का परित्याग और अपने शरीर प्रति ममत्व का व्युत्सर्ग करके (विचरण करते थे) अतः भगवान उन ग्राम्यजनों के काँटों समान तीखे वचनों को (निर्जरा हेतु सहन) करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 311 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नाओ संगामसीसे वा, पारए तत्थ से महावीरे । एवं पि तत्थ लाढेहिं, अलद्धपुव्वो वि एगया गामो ॥

Translated Sutra: हाथी जैसे युद्ध के मोर्चे पर (विद्ध होने पर भी पीछे नहीं हटता) युद्ध का पार पा जाता है, वैसे ही भगवान महावीर उस लाढ़ देशमें परीषह – सेना को जीतकर पारगामी हुए। कभी – कभी लाढ़ देशमें उन्हें अरण्यमें भी रहना पड़ा
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 312 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उवसंकमंतमपडिण्णं, गामंतियं पि अप्पत्तं । पडिणिक्खमित्तु लूसिंसु, एत्तो परं पलेहित्ति ॥

Translated Sutra: आवश्यकतावश निवास या आहार के लिए वे ग्राम की ओर जाते थे। वे ग्राम के निकट पहुँचते, न पहुँचते, तब तक तो कुछ लोग उस गाँव से नीकलकर भगवान को रोक लेते, उन पर प्रहार करते और कहते – ‘यहाँ से आगे कहीं दूर चले जाओ।’
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 313 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] हयपुव्वो तत्थ दंडेण, अदुवा मुट्ठिणा अदु कुंताइ-फलेणं । अदु लेलुणा कवालेणं, हंता हंता बहवे कंदिंसु ॥

Translated Sutra: उस लाढ़ देश में बहुत से लोग डण्डे, मुक्के अथवा भाले आदि से या फिर मिट्टी के ढेले या खप्पर से मारते, फिर ‘मारो – मारो’ कहकर होहल्ला मचाते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 314 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] मंसाणि छिन्नपुव्वाइं, उट्ठुभंति एगया कायं । परीसहाइं लुंचिंसु, अहवा पसुणा अवकिरिंसु ॥

Translated Sutra: उन अनार्यों ने पहले एक बार ध्यानस्थ खड़े भगवान के शरीर को पकड़कर माँस काट लिया था। उन्हें परीषहों से पीड़ित करते थे, कभी – कभी उन पर धूल फेंकते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 315 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] उच्चालइय णिहणिंसु, अदुवा आसणाओ खलइंसु । वोसट्ठकाए पणयासी, दुक्खसहे भगवं अपडिण्णे ॥

Translated Sutra: कुछ दुष्ट लोग ध्यानस्थ भगवान को ऊंचा उठाकर नीचे गिरा देते थे, कुछ लोग आसन से दूर धकेल देते थे, किन्तु भगवान शरीर का व्युत्सर्ग किये हुए प्रणबद्ध, कष्टसहिष्णु प्रतिज्ञा से युक्त थे। अतएव वे इन परीषहों से विचलित नहीं होते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 316 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सूरो संगामसीसे वा, संवुडे तत्थ से महावीरे । पडिसेवमाणे फरुसाइं, अचले भगवं रीइत्था ॥

Translated Sutra: जैसे कवच पहना हुआ योद्धा युद्ध के मोर्चे पर शस्त्रों से विद्ध होने पर भी विचलित नहीं होता, वैसे ही संवर का कवच पहने हुए भगवान महावीर लाढ़ादि देश में परीषहसेना से पीड़ित होने पर भी कठोरतम कष्टों का सामना करते हुए मेरुपर्वत की तरह ध्यान में निश्चल रहकर मोक्षपथ में पराक्रम करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-३ परीषह Hindi 317 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस विही अणुक्कंतो, माहणेण मईमया । ‘अपडिण्णेण वीरेण, कासवेण महेसिणा’ ॥

Translated Sutra: (स्थान और आसन के सम्बन्ध में) प्रतिज्ञा से मुक्त मतिमान, महामाहन भगवान महावीर ने इस विधि का अनेक बार आचरण किया; उनके द्वारा आचरित एवं उपदिष्ट विधि का अन्य साधक भी इसी प्रकार आचरण करते हैं। ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 318 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] ओमोदरियं चाएत्ति, अपुट्ठे वि भगवं रोगेहिं । पुट्ठे वा से अपुट्ठे वा, नो से सातिज्जति तेइच्छं ॥

Translated Sutra: भगवान रोगों से आक्रान्त न होने पर भी अवमौदर्य तप करते थे। वे रोग से स्पृष्ट हों या अस्पृष्ट, चिकित्सा में रुचि नहीं रखते थे। वे शरीर को आत्मा से अन्य जानकर विरेचन, वमन, तैलमर्दन, स्नान और मर्दन आदि परिकर्म नहीं करते थे, तथा दन्तप्रक्षालन भी नहीं करते थे। सूत्र – ३१८, ३१९
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 319 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] संसोहणं च वमणं च, गायब्भंगणं सिणाणं च । संबाहणं ण से कप्पे, दंतपक्खालणं परिण्णाए ॥

Translated Sutra: देखो सूत्र ३१८
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 320 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] विरए गामधम्मेहिं, रीयति माहणे अबहुवाई । सिसिरंमि एगदा भगवं, छायाए ज्झाइ आसी य ॥

Translated Sutra: महामाहन भगवान विरत होकर विचरण करते थे। वे बहुत बुरा नहीं बोलते थे। कभी – कभी भगवान शिशिर ऋतु में स्थिर होकर ध्यान करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 321 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] आयावई य गिम्हाणं, अच्छइ उक्कुडुए अभिवाते । अदु जावइत्थं लूहेणं, ओयण-मंथु-कुम्मासेणं ॥

Translated Sutra: भगवान ग्रीष्म ऋतु में आतापना लेते थे। उकडू आसन से सूर्य के ताप के सामने मुख करके बैठते थे। और वे प्रायः रूखे आहार को दो – कोद्रव व बेर आदि का चूर्ण, तथा उड़द आदि से शरीर – निर्वाह करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 322 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एयाणि तिण्णि पडिसेवे, अट्ठ मासे य जावए भगवं । अपिइत्थ एगया भगवं, अद्धमासं अदुवा मासं पि ॥

Translated Sutra: भगवान ने इन तीनों का सेवन करके आठ मास तक जीवन यापन किया। कभी – कभी भगवान ने अर्ध मास या मासभर तक पानी नहीं पिया।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 323 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अवि साहिए दुवे मासे, छप्पि मासे अदुवा अपिवित्ता । रायोवरायं अपडिण्णे, अन्नगिलायमेगया भुंजे ॥

Translated Sutra: उन्होंने कभी – कभी दो महीने से अधिक तथा छह महीने तक भी पानी नहीं पिया। वे रातभर जागृत रहते, किन्तु मन में नींद लेने का संकल्प नहीं होता था। कभी – कभी वे वासी भोजन भी करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 324 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] छट्ठेणं एगया भुंजे, अदुवा अट्ठमेण दसमेणं । दुवालसमेण एगया भुंजे, पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे ॥

Translated Sutra: वे कभी बेले, कभी तेले, कभी चौले कभी पंचौले के अनन्तर भोजन करते थे। भोजन प्रति प्रतिज्ञारहित होकर समाधि का प्रेक्षण करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 325 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] नच्चाणं से महावीरे, णोवि य पावगं सयमकासी । अन्नेहिं वा ण कारित्था, कीरंतं पि णाणुजाणित्था ॥

Translated Sutra: वे भगवान महावीर (दोषों को) जानकर स्वयं पाप नहीं करते थे, दूसरों से भी पाप नहीं करवाते थे और न पाप करने वालों का अनुमोदन करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 326 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] गामं पविसे णयरं वा, घासमेसे कडं परट्ठाए । सुविसुद्धमेसिया भगवं, आयत-जोगयाए सेवित्था ॥

Translated Sutra: ग्राम या नगर में प्रवेश करके दूसरे के लिए बने हुए भोजन की एषणा करते थे। सुविशुद्ध आहार ग्रहण करके भगवान आयतयोग से उसका सेवन करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 327 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अदु वायसा दिगिंछत्ता, जे अन्ने रसेसिनो सत्ता । घासेसणाए चिट्ठंते, सययं निवतिते य पेहाए ॥

Translated Sutra: भिक्षाटन के समय, रास्ते में क्षुधा से पीड़ित कौओं तथा पानी पीने के लिए आतुर अन्य प्राणियों को लगातार बैठे हुए देखकर –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 328 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अदु माहणं व समणं वा, गामपिंडोलगं च अतिहिं वा । सोवागं मूसियारं वा, कुक्कुरं ‘वावि विहं ठियं’ पुरतो ॥

Translated Sutra: अथवा ब्राह्मण, श्रमण, गाँव के भिखारी या अतिथि, चाण्डाल, बिल्ली या कुत्ते को मार्ग में बैठा देखकर –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 329 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] वित्तिच्छेदं वज्जंतो, तेसप्पत्तियं परिहरंतो । मंदं परक्कमे भगवं, अहिंसमानो घासमेसित्था ॥ (त्रिभिः कुलकम्‌)

Translated Sutra: उनकी आजीविका विच्छेद न हो, तथा उनके मन में अप्रीति या अप्रतीति उत्पन्न न हो, इसे ध्यान में रखकर भगवान धीरे – धीरे चलते थे। किसीको जरा – सा भी त्रास न हो, इसलिए हिंसा न करते हुए आहार की गवेषणा करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 330 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अवि सूइयं व सुक्कं वा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अदु बक्कसं पुलागं वा, लद्धे पिंडे अलद्धए दविए ॥

Translated Sutra: भोजन सूखा हो, अथवा ठंडा हो, या पुराना उड़द हो, पुराने धान को ओदन हो या पुराना सत्तु हो, या जौ से बना हुआ आहार हो, पर्याप्त एवं अच्छे आहार के मिलने या न मिलने पर इन सब में संयमनिष्ठ भगवान राग – द्वेष नहीं करते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 331 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अवि ज्झाति से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए ज्झाणं । उड्ढमहे तिरियं च, पेहमाणे समाहिमपडिण्णे ॥

Translated Sutra: भगवान महावीर उकडू आदि आसनों में स्थित होकर ध्यान करते थे। ऊंचे, नीचे और तिरछे लोक में स्थित द्रव्य – पर्याय को ध्यान का विषय बनाते थे। वे असम्बद्ध बातों से दूर रहकर आत्म – समाधि में ही केन्द्रित रहते थे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 332 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] अकसाई विगयगेही, सद्दरूवेसुऽमुच्छिए ज्झाति । छउमत्थे वि परक्कममाणे, नो पमायं सइं पि कुव्वित्था ॥

Translated Sutra: भगवान क्रोधादि कषायों को शान्त करके, आसक्ति को त्यागकर, शब्द और रूप के प्रति अमूर्च्छित रहकर ध्यान करते थे। छद्मस्थ अवस्था में सदनुष्ठान में पराक्रम करते हुए उन्होंने एक बार भी प्रमाद नहीं किया।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 333 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] सयमेव अभिसमागम्म, आयतजोगमायसोहीए । अभिणिव्वुडे अमाइल्ले, आवकहं भगवं समिआसी ॥

Translated Sutra: आत्म – शुद्धि के द्वारा भगवान ने स्वयमेव आयतयोग को प्राप्त कर लिया और उनके कषाय उपशान्त हो गए उन्होंने जीवन पर्यन्त माया से रहित तथा समिति – गुप्ति से युक्त होकर साधना की।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-९ उपधान श्रुत

उद्देशक-४ आतंकित Hindi 334 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] एस विही अणुक्कंतो, माहणेणं मईमया । ‘अपडिण्णेण वीरेण, कासवेण महेसिणा’ ॥

Translated Sutra: किसी प्रतिज्ञारहित ज्ञानी महामाहन भगवानने अनेकबार इस विधि का आचरण किया, उनके द्वारा आचरित एवं उपदिष्ट विधि का अन्य साधक भी अपने आत्म – विकास के लिए इसी प्रकार आचरण करते थे। ऐसा मैं कहता हूँ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 335 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठ समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा– पाणेहिं वा, पणएहिं वा, बीएहिं वा, हरिएहिं वा– संसत्तं, उम्मिस्सं, सीओदएण वा ओसित्तं, रयसा वा परिवासियं, तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा– परहत्थंसि वा परपायंसि वा– अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे वि संते नो पडिग्गाहेज्जा। से य आहच्च पडिग्गाहिए सिया, से तं आयाय एगंतमवक्कमेज्जा, एगंतमवक्कमेत्ता– अहे आरामंसि वा अहे उवस्स-यंसि वा अप्पडे, अप्प-पाणे, अप्प-बीए, अप्प-हरिए, अप्पोसे, अप्पुदए, अप्पुत्तिंग-पणग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणए विगिंचिय-विगिंचिय,

Translated Sutra: कोई भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा में आहार – प्राप्ति के उद्देश्य से गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होकर यह जाने कि यह अशन, पान, खाद्य तथा स्वाद्य रसज आदि प्राणियों से, फफुंदी से, गेहूँ आदि के बीजों से, हरे अंकुर आदि से संसक्त है, मिश्रित है, सचित्त जल से गीला है तथा सचित्त मिट्टी से सना हुआ है; यदि इस प्रकार का अशन, पान, खाद्य,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 336 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा–कसिणाओ, सासिआओ, अविदल-कडाओ, अतिरिच्छच्छिन्नाओ, अव्वोच्छि-न्नाओ, तरुणियं वा छिवाडिं अणभिक्कंता-भज्जियं पेहाए – अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा प्राप्त होने की आशा से प्रविष्ट हुआ भिक्षु या भिक्षुणी यदि इन औषधियों को जाने कि वे अखण्डित हैं, अविनष्ट योनि हैं, जिनके दो या दो से अधिक टुकड़े नहीं हुए हो, जिनका तिरछा छेदन नहीं हुआ है, जीव रहित नहीं है, अभी अधपकी फली है, जो अभी सचित्त या अभग्न है या अग्नि में भुँजी हुई नहीं है, तो उन्हें देखकर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 337 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जाओ पुण ओसहीओ जाणेज्जा– अकसिणाओ, असासियाओ, विदलकडाओ, तिरिच्छच्छिन्नाओ, वोच्छिन्नाओ, तरुणियं वा छिवाडिं अभिक्कंतं भज्जियं पेहाए– फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–पिहुयं वा, बहुरजं वा, भुज्जियं वा, मंथु वा, चाउलं वा, चाउल-पलंबं वा सइं भज्जियं–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा लेने के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसी औषधियों को जाने कि वे अखण्डित नहीं है, यावत्‌ वे जीव रहित हैं, कच्ची फली अचित्त हो गई है, भग्न हैं या अग्नि में भुँजी हुई हैं, तो उन्हें देखकर, उन्हें प्रासुक एवं एषणीय समझकर प्राप्त होती हों तो ग्रहण कर ले। गृहस्थ के घर भिक्षा निमित्त गया
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 338 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–पिहुयं वा, बहुरजं वा, भुज्जियं वा, मंथु वा, चाउलं वा, चाउल-पलंबं वा असइं भज्जियं– दुक्खुत्तो वा भज्जियं, तिक्खुत्तो वा भज्जियं– फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसितुकामे नो अन्नउत्थिएण वा, गारत्थिएण वा, परिहारिओ अपरिहारिएण वा सद्धिं गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसेज्ज वा निक्खमेज्ज वा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा बहिया वियार-भूमिं वा विहार-भूमिं वा निक्खममाणे वा पविसमाणे वा णोअन्नउ-त्थिएण वा, गारत्थिएण

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के निमित्त प्रवेश करने के ईच्छुक भिक्षु या भिक्षुणी अन्यतीर्थिक या गृहस्थ के साथ तथा पिण्डदोषों का परिहार करने वाला साधु अपारिहारिक साधु के साथ भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में न तो प्रवेश करे, और न वहाँ से नीकले। वह भिक्षु या भिक्षुणी बाहर विचारभूमि या विहारभूमि से लौटते या वहाँ प्रवेश
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 339 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दुइज्जमाणे–नो अन्नउत्थिएण वा, गारत्थिएण वा, परिहारिओ अपरिहा-रिएण वा सद्धिं गामाणुगामं दूइज्जेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे नो अन्नउत्थियस्स वा, गारत्थियस्स वा, परिहारिओ अपरिहारिअस्स वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा देज्जा वा अणुपदेज्जा वा।

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी अन्यतीर्थिक या परपिण्डोपजीवी याचक को तथैव उत्तम साधु पार्श्वस्थादि शिथिलाचारी साधु को अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य तो स्वयं दे और न किसी से दिलाए।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 340 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अस्सिंपडियाए एगं साहम्मियं समुद्दिस्स, पाणाइं भूयाइं जीवाइं सत्ताइं ‘समारब्भ समुद्दिस्स’ कीयं पामिच्च अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपुरिसं-तरकडं वा, बहिया नीहडं वा अनीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, ‘परिभुत्तं वा’ ‘अपरिभुत्तं वा’ आसेवियं वा अनासेवियं वा –अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए

Translated Sutra: गृहस्थ के घर में भिक्षा के लिए प्रविष्ट भिक्षु या भिक्षुणी जब यह जाने कि किसी भद्र गृहस्थ ने अकिंचन निर्ग्रन्थ के लिए एक साधर्मिक साधु के उद्देश्य से प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों का समारम्भ करके आहार बनाया है, साधु के निमित्त से आहार मोल लिया, उधार लिया है, किसी से जबरन छीनकर लाया है, उसके स्वामी की अनुमति के बिना
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 341 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमए पगणिय-पगणिय समुद्दिस्स, पाणाइं वा भूयाइं वा जीवाइं वा सत्ताइं वा समारब्भ समुद्दिस्स कीयं पामिच्चं अच्छेज्जं अनिसट्ठं अभिहडं आहट्टु चेएइ। तं तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पुरिसंतरकडं वा अपुरिसंतरकडं वा, बहिया नीहडं वा अनीहडं वा, अत्तट्ठियं वा अणत्तट्ठियं वा, परिभुत्तं वा अपरिभुत्तं वा, आसेवियं वा अनासेवियं वा–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यावत्‌ गृहस्थ के घर प्रविष्ट होने पर जाने कि यह अशनादि आहार बहुत से श्रमणों, माहनों, अतिथियों, कृपणों, याचकों को गिन – गिनकर उनके उद्देश्य से बनाया हुआ है। वह आसेवन किया किया गया हो या न किया गया हो, उस आहार को अप्रासुक अनेषणीय समझकर मिलने पर ग्रहण न करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 342 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra:

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी यावत्‌ गृहस्थ के घर प्रविष्ट होने पर जाने कि यह चतुर्विध आहार बहुत – से श्रमणों, माहनों, अतिथियों, दरिद्रों और याचकों के उद्देश्य से प्राणादि आदि जीवों का समारम्भ करके यावत्‌ लाकर दे रहा है, उस प्रकार के आहार को जो स्वयं दाता द्वारा कृत हो, बाहर नीकाला हुआ न हो, दाता द्वारा अधिकृत न हो, दाता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-१ Hindi 343 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए पविसितुकामे, सेज्जाइं पुण कुलाइं जाणेज्जा–इमेसु खलु कुलेसु नितिए पिंडे दिज्जइ, नितिए अग्ग-पिंडे दिज्जइ, नितिए भाए दिज्जइ, नितिए अवड्ढभाए दिज्जइ–तहप्पगाराइं कुलाइं नितियाइं नितिउमाणाइं, नो भत्ताए वा पाणाए वा पविसेज्ज वा निक्खमेज्ज वा। एयं खलु तस्स भिक्खुस्स वा भिक्खुणीए वा सामग्गियं, जं सव्वट्ठेहिं समिए सहिए सया जए।

Translated Sutra: गृहस्थ घरमें आहार – प्राप्ति की अपेक्षा से प्रवेश करने के ईच्छुक साधु साध्वी ऐसे कुलों को जान लें कि इन कुलों में नित्यपिण्ड दिया जाता है, नित्य अग्रपिण्ड दिया जाता है, प्रतिदिन भाग या उपार्द्ध भाग दिया जाता है; इस प्रकार के कुल, जो नित्य दान देते हैं, जिनमें प्रतिदिन भिक्षाचरों का प्रवेश होता है, ऐसे कुलों में
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 344 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अट्ठमिपोसहिएसु वा, अद्धमासिएसु वा, मासिएसु वा, दोमासिएसु वा, तिमासिएसु वा, चाउमासिएसु वा, पंचमासिएसु वा, छमासिएसु वा उउसु वा, उउसंधीसु वा, उउपरियट्टेसु वा, बहवे समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगे एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए, ‘तिहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए’ ‘चउहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे पेहाए’, कुंभीमुहाओ वा कलोवाइओ वा सण्णिहि-‘सण्णिचयाओ वा’ परिएसिज्जमाणे पेहाए– तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार – प्राप्ति के निमित्त प्रविष्ट होने पर अशन आदि आहार के विषय में यह जाने कि यह आहार अष्टमी पौषधव्रत के उत्सवों के उपलक्ष्य में तथा अर्द्धमासिक, मासिक, द्विमासिक, त्रैमासिक, चातुर्मासिक, पंचमासिक और षाण्मासिक उत्सवों के उपलक्ष्य में तथा ऋतुओं, ऋतुसन्धियों एवं ऋतु
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 345 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जाइं पुण कुलाइं जाणेज्जा, तं जहा–उग्ग-कुलाणि वा, ‘भोग-कुलाणि’ वा, राइण्ण-कुलाणि वा, खत्तिय-कुलाणि वा, इक्खाग-कुलाणि वा, हरिवंस-कुलाणि वा, एसिय-कुलाणि वा, वेसिय-कुलाणि वा, गंडाग-कुलाणि वा, कोट्टाग-कुलाणि वा, गामरक्खकुलाणि वा, पोक्कसालिय-कुलाणि वा–अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु कुलेसु अदुगुंछिएसु अगरहिएसु, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा फासुयं एसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी गृहस्थ के घर में आहार प्राप्ति के लिए प्रविष्ट होने पर जिन कुलों को जाने वे इस प्रकार हैं – उग्रकुल, भोगकुल, राज्यकुल, क्षत्रियकुल, इक्ष्वाकुकुल, हरिवंशकुल, गोपालादिकुल, वैश्यकुल, नापित – कुल, बढ़ई – कुल, ग्रामरक्षककुल या तन्तुवायकुल, ये और इसी प्रकार के और भी कुल, जो अनिन्दित और अगर्हित हों,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 346 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्जं पुण जाणेज्जा–असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा समवाएसु वा, पिंड-नियरेसु वा, इंद-महेसु वा, खंद-महेसु वा, रुद्द-महेसु वा, मुगुंद-महेसु वा, भूय -महेसु वा, जक्ख-महेसु वा, नाग-महेसु वा, थूभ-महेसु वा, चेतिय-महेसु वा, रुक्ख-महेसु वा, गिरि-महेसु वा, दरि-महेसु वा, अगड-महेसु वा, तडाग-महेसु वा, दह-महेसु वा, णई-महेसु वा, सर-महेसु वा, सागर-महेसु वा, आगर-महेसु वा–अन्नयरेसु वा तहप्पगारेसु विरूवरूवेसु महामहेसु वट्टमाणेसु...... बहवे समण-माहण-अतिहि-किविण-वणीमए एगाओ उक्खाओ परिएसिज्जमाणे पेहाए, दोहिं उक्खाहिं परिएसिज्जमाणे

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होते समय वह जाने कि यहाँ मेला, पितृपिण्ड के निमित्त भोज तथा इन्द्र – महोत्सव, स्कन्ध, रुद्र, मुकुन्द, भूत, यक्ष, नाग – महोत्सव तथा स्तूप, चैत्य, वृक्ष, पर्वत, गुफा, कूप, तालाब, हृद, नदी, सरोवर, सागर या आकार सम्बन्धी महोत्सव एवं अन्य इसी प्रकार के विभिन्न
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-२ Hindi 347 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा परं अद्धजोयण-मेराए संखडिं नच्चा संखडि-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए। से भिक्खू वा भिक्खुणी वा–पाईणं संखडिं नच्चा पडीणं गच्छे, अणाढायमाणे, पडीणं संखडिं नच्चा पाईणं गच्छे, अणाढायमाणे, दाहिणं संखडिं नच्चा उदीणं गच्छे, अणाढायमाणे, उदीणं संखडिं नच्चा दाहिणं गच्छे, अणाढायमाणे। जत्थेव वा संखडी सिया, तं जहा–गामंसि वा, नगरंसि वा, खेडंसि वा, कव्वडंसि वा, मडंबंसि वा, पट्टणंसि वा, दोणमुहंसि वा, आगरंसि वा, निगमंसि वा, आसमंसि वा ‘सन्निवेसंसि वा रायहाणिंसि वा’–संखडिं संखडि-पडियाए णोअभिसं-धारेज्जा गमणाए। केवली बूया आयाणमेयं–संखडिं संखडि-पडियाए अभिसंधारेमाणे

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी अर्ध योजन की सीमा से पर संखड़ि हो रही है, यह जानकर संखड़ि में निष्पन्न आहार लेने के निमित्त जाने का विचार न करे। यदि भिक्षु या भिक्षुणी यह जाने कि पूर्व दिशा में संखड़ि हो रही है, तो वह उसके प्रति अनादर भाव रखते हुए पश्चिम दिशा को चला जाए। यदि पश्चिम दिशा में संखड़ि जाने तो उसके प्रति अनादर भाव
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 348 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से एगइओ अन्नतरं संखडिं आसित्ता पिबित्ता छड्डेज्ज वा, वमेज्ज वा, भुत्ते वा से नो सम्मं परिणमेज्जा, अन्नतरे वा से दुक्खे रोयातंके समुपज्जेज्जा। केवली बूया आयाणमेयं–

Translated Sutra: कदाचित्‌ भिक्षु अथवा अकेला साधु किसी संखड़ि में पहुँचेगा तो वहाँ अधिक सरस आहार एवं पेय खाने – पीने से उसे दस्त लग सकता है, या वमन हो सकता है अथवा वह आहार भलीभाँति पचेगा नहीं; कोई भयंकर दुःख या रोगांतक पैदा हो सकता है। इसलिए केवली भगवान न कहा – ‘यह (संखड़िगमन) कर्मों का उपादान कारण है।’
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 349 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु भिक्खू गाहावइहिं वा, गाहावइणीहिं वा, परिवायएहिं वा, परिवाइयाहिं वा, एगज्झ सद्धं सोडं पाउं भो! वतिमिस्सं हुरत्था वा, उवस्सयं पडिलेहमाणे नो लभेज्जा, तमेव उवस्सयं सम्मिस्सि-भावमावज्जेज्जा। अन्नमण्णे वा से मत्ते विप्परियासियभूए इत्थिविग्गहे वा, किलीवे वा, तं भिक्खुं उवसंकमित्तु बूया–आउसंतो! समणा! अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, राओ वा, वियाले वा, गामधम्म-णियंतियं कट्टु, रहस्सियं मेहुणधम्म-परियारणाए आउट्टामो। तं चेगइओ सातिज्जेज्जा। अकरणिज्जं चेयं संखाए। एते आयाणा संति संचिज्जमाणा, पच्चावाया भवंति। तम्हा से संजए णियंठे तहप्पगारं पुरे-संखडिं वा, पच्छा-संखडिं

Translated Sutra: यहाँ भिक्षु गृहस्थों – गृहस्थपत्नीयों अथवा परिव्राजक – परिव्राजिकाओं के साथ एकचित्त व एकत्रित होकर नशीला पेय पीकर बाहर नीकलकर उपाश्रय ढूँढ़ने लगेगा, जब वह नहीं मिलेगा, तब उसी को उपाश्रय समझकर गृहस्थ स्त्री – पुरुषों व परिव्राजक – परिव्राजिकाओं के साथ ही ठहर जाएगा। उनके साथ धुलमिल जाएगा। वे गृहस्थ – गृहस्थपत्नीयाँ
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-२

चूलिका-१

अध्ययन-१ पिंडैषणा

उद्देशक-३ Hindi 350 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अन्नयरं संखडिं सोच्चा निसम्म संपरिहावइ उस्सुय-भूयेणं अप्पाणेणं। धुवा संखडी। णोसंचाएइ तत्थ इतरेतरेहिं कुलेहिं सामुदानियं एसियं, वेसियं, पिंडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेत्तए। माइट्ठाणं संफासे, नो एवं करेज्जा। से तत्थ कालेण अणुपविसित्ता तत्थितरेतरेहिं कुलेहिं सामुदानियं एसियं, वेसियं, पिंडवायं पडिगाहेत्ता आहारं आहारेज्जा।

Translated Sutra: वह भिक्षु या भिक्षुणी पूर्व – संखड़ि या पश्चात्‌ – संखड़ि में से किसी एक के विषय में सूनकर मन में विचार करके स्वयं बहुत उत्सुक मन से जल्दी – जल्दी जाता है। क्योंकि वहाँ निश्चित ही संखड़ि है। वह भिक्षु उस संखड़ि वाले ग्राम में संखड़ि से रहित दूसरे – दूसरे घरों से एषणीय तथा वेश से लब्ध उत्पादनादि दोषरहित भिक्षा से
Showing 451 to 500 of 36429 Results