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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 258 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पाईणं पडिणं वा वि उड्ढं अणुदिसामवि ।
अहे दाहिणओ वा वि दहे उत्तरओ वि य ॥ Translated Sutra: MISSING_TEXT_IN_ORIGINAL | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 259 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] भूयाणमेसमाघाओ हव्ववाहो न संसओ ।
तं पईवपयावट्ठा संजया किंचि नारभे ॥ Translated Sutra: MISSING_TEXT_IN_ORIGINAL | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 260 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं ।
तेउकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए ॥ Translated Sutra: MISSING_TEXT_IN_ORIGINAL | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 261 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अनिलस्स समारंभं बुद्धा मन्नंति तारिसं ।
सावज्जबहुलं चेयं नेयं ताईहिं सेवियं ॥ Translated Sutra: तीर्थंकरदेव वायु के समारम्भ को अग्निसमारम्भ के सदृश ही मानते हैं। यह सावद्य – बहुल है। अतः यह षट्काय के त्राता साधुओं के द्वारा आसेवित नहीं है। ताड़ के पंखे से, पत्र से, वृक्ष की शाखा से, स्वयं हवा करना तथा दूसरों से करवाना नहीं चाहते और अनुमोदन भी नहीं करते हैं। जो भी वस्त्र, पात्र, कम्बल या रजोहरण हैं, उनके | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 262 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तालियंटेण पत्तेण साहाविहुयणेण वा ।
न ते वीइउमिच्छंति वीयावेऊण वा परं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 263 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं पि वत्थं व पायं वा कंबलं पायपुंछणं ।
न ते वायमुईरंति जयं परिहरंति य ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 264 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं ।
वाउकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 265 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वणस्सइं न हिंसंति मनसा वयसा कायसा ।
तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥ Translated Sutra: सुसमाहित संयमी मन, वचन और काय तथा त्रिविध करण से वनस्पतिकाय की हिंसा नहीं करते। वनस्पतिकाय की हिंसा करता हुआ साधु उसके आश्रित विविध चाक्षुष और अचाक्षुष त्रस और स्थावर प्राणियों की हिंसा करता है। इसे दुर्गतिवर्द्धक दोष जान कर (साधुवर्ग) जीवन भर वनस्पतिकाय के समारम्भ का त्याग करे सूत्र – २६५–२६७ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 266 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वणस्सइं विहिंसंतो हिंसई उ तयस्सिए ।
तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 267 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं ।
वणस्सइसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 268 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तसकायं न हिंसंति मनसा वयसा कायसा ।
तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया ॥ Translated Sutra: सुसमाधियुक्त संयमी मन, वचन, काया तथा त्रिविध करण से त्रसकायिक जीवों की हिंसा नहीं करते। त्रसकाय की हिंसा करता हुआ उसके आश्रित अनेक प्रकार के चाक्षुष और अचाक्षुष प्राणियों की हिंसा करता है। इसे दुर्गतिवर्द्धक दोष जान कर जीवनपर्यन्त त्रसकाय के समारम्भ का त्याग करे। सूत्र – २६८–२७० | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 269 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तसकायं विहिंसंतो हिंसई उ तयस्सिए ।
तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 270 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दुग्गइवड्ढणं ।
तसकायसमारंभं जावज्जीवाए वज्जए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २६८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 271 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जाइं चत्तारिभोज्जाइं इसिणाहारमाईणि ।
ताइं तु विवज्जंतो संजमं अनुपालए ॥ Translated Sutra: जो आहार आदि चार पदार्थ ऋषियों के लिए अकल्पनीय हैं, उनका विवर्जन करता हुआ (साधु) संयम का पालन करे। अकल्पनीय पिण्ड, शय्या, वस्त्र और पात्र को ग्रहण करने की इच्छा न करे, ये कल्पनीय हों तो ग्रहण करे। जो साधु – साध्वी नित्य निमंत्रित कर दिया जाने वाला, क्रीत, औद्देशिक आहृत आहार ग्रहण करते हैं, वे प्राणियों के वध का अनुमोदन | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 272 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पिंडं सेज्जं च वत्थं च चउत्थं पायमेव य ।
अकप्पियं न इच्छेज्जा पडिगाहेज्ज कप्पियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 273 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे नियागं ममायंति कीयमुद्देसियाहडं ।
वहं ते समनुजाणंति इइ वुत्तं महेसिणा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 274 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा असनपानाइं कीयमुद्देसियाहडं ।
वज्जयंति ठियप्पाणो निग्गंथा धम्मजीविणो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 275 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] कंसेसु कंसपाएसु कुंडमोएसु वा पुणो ।
भुंजंतो असनपानाइं आयारा परिभस्सइ ॥ Translated Sutra: गृहस्थ के कांसे के कटोरे में या बर्तन में जो साधु अशन, पान आदि खाता – पीता है, वह श्रमणाचार से परिभ्रष्ट हो जाता है। (गृहस्थ के द्वारा) उन बर्तनों को सचित्त जल से धोने में और बर्तनों के धोए हुए पानी को डालने में जो प्राणी निहत होते हैं, उसमें तीर्थंकरों ने असंयम देखा है। कदाचित् पश्चात्कर्म और पुरःकर्म दोष संभव | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 276 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सीओदगसमारंभे मत्तधोयणछड्डणे ।
जाइं छन्नंति भूयाइं दिट्ठो तत्थ असंजमो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 277 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पच्छाकम्मं पुरेकम्मं सिया तत्थ न कप्पई ।
एयमट्ठं न भुंजंति निग्गंथा गिहिभायणे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 278 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आसंदी-पलियंकेसु मंचमासालएसु वा ।
अनायरियमज्जाणं आसइत्तु सइत्तु वा ॥ Translated Sutra: आर्य के लिए आसन्दी और पलंग पर, मंच और आसालक पर बैठना या सोना अनाचरित है। तीर्थंकरदेवों द्वारा कथित आचार का पालन करनेवाले निर्ग्रन्थ में बैठना भी पड़े तो बिना प्रतिलेखन किये, आसन्दी, पलंग आदि बैठते उठते या सोते नहीं है। ये सब शयनासन गम्भीर छिद्र वाले होते हैं, इनमें सूक्ष्म प्राणियों का प्रतिलेखन करना दुःशक्य | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 279 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नासंदी-पलियंकेसु न निसेज्जा न पीढए ।
निग्गंथापडिलेहाए बुद्धवुत्तमहिट्ठगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 280 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गंभीरविजया एए पाणा दुप्पडिलेहगा ।
आसंदी-पलियंका य एयमट्ठं विवज्जिया ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २७८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 281 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] गोयरग्गपविट्ठस्स निसेज्जा जस्स कप्पई ।
इमेरिसमनायारं आवज्जइ अबोहियं ॥ Translated Sutra: भिक्षा के लिए प्रविष्ट जिस (साधु) को गृहस्थ के घर में बैठना अच्छा लगता है, वह इस प्रकार के अनाचार को तथा उसके अबोधि रूप फल को प्राप्त होता है। वहां बैठने से ब्रह्मचर्य – व्रत का पालन करने में विपत्ति, प्राणियों का वध होने से संयम का घात, भिक्षाचरों को अन्तराय और घर वालों को क्रोध, उत्पन्न होता है, (गृहस्थ के घर में | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 282 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विवत्ती बंभचेरस्स पाणाणं अवहे वहो ।
वनीमगपडिग्घाओ पडिकोहो अगारिणं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 283 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अगुत्ती बंभचेरस्स इत्थीओ यावि संकणं ।
कुसीलवड्ढणं ठाणं दूरओ परिवज्जए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 284 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिण्हमन्नयरागस्स निसेज्जा जस्स कप्पई ।
जराए अभिभूयस्स वाहियस्स तवस्सिणो ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८१ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 285 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वाहिओ वा अरोगो वा सिणाणं जो उ पत्थए ।
वोक्कंतो होइ आयारो जढो हवइ संजमो ॥ Translated Sutra: रोगी हो या नीरोगी, जो साधु स्नान करने की इच्छा करता है, उसके आचार का अतिक्रमण होता है; उसका संयम भी त्यक्त होता है। पोली भूमि में और भूमि को दरारों में सूक्ष्म प्राणी होते हैं। प्रासुक जल से भी स्नान करता हुआ भिक्षु उन्हें पल्वित कर देता है। इसलिए वे शीतल या उष्ण जल से स्नान नहीं करते। वे जीवन भर घोर अस्नानव्रत | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 286 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] संतिमे सुहुमा पाणा घसासु भिलुगासु य ।
जो उ भिक्खू सियाणंतो वियडेणुप्पिलावए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 287 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा ते न सियाणंति सीएण उसिणेण वा ।
जावज्जीवं वयं घोरं असिनाणमहिट्ठगा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 288 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सिणाणं अदुवा कक्कं लोद्धं पउमगाणि य ।
गायस्सुव्वट्टणट्ठाए नायरंति कयाइ वि ॥ Translated Sutra: संयमी साधु स्नान अथवा अपने शरीर का उबटन करने के लिए कल्क, लोघ्र, या पद्मराग का कदापि उपयोग नहीं करते। नग्न, मुण्डित, दीर्घ रोम और नखों वाले तथा मैथुनकर्म से उपशान्त साधु को विभूषा से क्या प्रयोजन है ? विभूषा के निमित्त से साधु चिकने कर्म बाँधना है, जिसके कारण वह दुस्तर संसार – सागर में जा पड़ता है। तीर्थंकर देव | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 289 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नगिनस्स वा वि मुंडस्स दीहरोमनहंसिणो ।
मेहुणा उवसंतस्स किं विभूसाए कारियं? ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 290 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विभूसावत्तियं भिक्खू कम्मं बंधइ चिक्कणं ।
संसारसायरे घोरे जेणं पडइ दुरुत्तरे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 291 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] विभूसावत्तियं चेयं बुद्धा मन्नंति तारिसं ।
सावज्जबहुलं चेयं नेयं ताईहिं सेवियं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८८ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 292 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] खवेंति अप्पाणममोहदंसिणो तवे रया संजम अज्जवे गुणे ।
धुणंति पावाइं पुरेकडाइं नवाइ पावाइं न ते करेंति ॥ Translated Sutra: व्यामोह – रहित तत्त्वदर्शी तथा तप, संयम और आर्जव गुण में रत रहने वाले वे साधु अपने शरीर को क्षीण कर देते हैं। वे पूर्वकृत पापों का क्षय कर डालते हैं और नये पाप नहीं करते। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-६ महाचारकथा |
Hindi | 293 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सओवसंता अममा अकिंचणा सविज्जविज्जाणुगया जसंसिणो ।
उउप्पसन्ने विमले व चंदिमा सिद्धिं विमाणाइ उवेंति ताइणो ॥ –त्ति बेमि ॥ Translated Sutra: सदा उपशान्त, ममत्व – रहित, अकिंचन अपनी अध्यात्म – विद्या के अनुगामी तथा जगत् के जीवों के त्राता और यशस्वी हैं, शरद्ऋतु के निर्मल चन्द्रमा के समान सर्वथा विमल साधु सिद्धि को अथवा सौधर्मावतंसक आदि विमानों को प्राप्त करते हैं। – ऐसा मैं कहता हूँ। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 294 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चउण्हं खलु भासाणं परिसंखाय पन्नवं ।
दोण्हं तु विनयं सिक्खे दो न भासेज्ज सव्वसो ॥ Translated Sutra: प्रज्ञावान् साधु चारों ही भाषाओं को जान कर दो उत्तम भाषाओं का शुद्ध प्रयोग करना सीखे और दो (अधम) भाषाओं को सर्वथा न बोले। | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 295 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जा य सच्चा अवत्तव्वा सच्चामोसा य जा मुसा ।
जा य बुद्धेहिंणाइण्णा न तं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: तथा जो भाषा सत्य है, किन्तु अवक्तव्य है, जो सत्या – मृषा है, तथा मृषा है एवं जो असत्यामृषा है, (किन्तु) तीर्थंकर देवों के द्वारा अनाचीर्ण है, उसे भी प्रज्ञावान् साधु न बोले। जो असत्याऽमृषा और सत्यभाषा अनवद्य, अकर्कश और असंदिग्ध हो, उसे सम्यक् प्रकार से विचार कर बोले। सत्यामृषा भी न बोले, जिसका यह अर्थ है, या दूसरा | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 296 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] असच्चमोसं सच्चं च अनवज्जमकक्कसं ।
समुप्पेहमसंदिद्धं गिरं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 297 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एयं च अट्ठमन्नं वा जं तु नामेइ सासयं ।
स भासं सच्चमोसं पि तं पि धीरो विवज्जइ ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 298 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वितहं पि तहामुत्तिं जं गिरं भासए नरो ।
तम्हा सो पुट्ठो पावेणं किं पुन जो मुसं वए? ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९५ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 299 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तम्हा गच्छामो वक्खामो अमुगं वा णे भविस्सई ।
अहं वा णं करिस्सामि एसो वा णं करिस्सई ॥ Translated Sutra: हम जाएंगे, हम कह देंगे, हमारा अमुक (कार्य) अवश्य हो जाएगा, या मैं अमुक कार्य करूंगा, अथवा यह (व्यक्ति) यह (कार्य) अवश्य करेगा; यह और इसी प्रकार की दूसरी भाषाऍं, जो भविष्य, वर्तमान अथवा अतीतकाल – सम्बन्धी अर्थ के सम्बन्ध में शंकित हों; धैर्यवान् साधु न बोले। अतीत, वर्तमान और अनागत काल सम्बन्धी जिस अर्थ को न जानता हो | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 300 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवमाई उ जा भासा एसकालम्मि संकिया ।
संपयाईयमट्ठे वा तं पि धीरो विवज्जए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 301 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अईयम्मि य कालम्मी पच्चुप्पन्नमणागए ।
जमट्ठं तु न जाणेज्जा एवमेयं ति नो वए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 302 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अईयम्मि य कालम्मी पच्चुप्पन्नमनागए ।
जत्थ संका भवे तं तु एवमेयं ति नो वए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 303 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अईयम्मि य कालम्मी पच्चुप्पन्नमनागए ।
निस्संकियं भवे जं तु, एवमेयं ति निद्दिसे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २९९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 304 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव फरुसा भासा गुरुभूओवघाइणी ।
सच्चा वि सा न वत्तव्वा जओ पावस्स आगमो ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार जो भाषा कठोर हो तथा बहुत प्राणियों का उपघात करने वाली हो, वह सत्य होने पर भी बोलने योग्य नहीं है; क्योंकि ऐसी भाषा से पापकर्म का बन्ध (या आस्रव) होता है। इसी प्रकार काने को काना, नपुंसक को नपुंसक तथा रोगी को रोगी और चोर को चोर न कहे। इस उक्त अर्थ से अथवा अन्य ऐसे जिस अर्थ से कोई प्राणी पीड़ित होता है, उस | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 305 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव काणं काणे त्ति पंडगं पंडगे त्ति वा ।
वाहियं वा वि रोगि त्ति तेणं चोरे त्ति नो वए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३०४ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 306 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एएणन्नेण वट्ठेण परो जेणुवहम्मई ।
आयारभावदोसण्णू न तं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३०४ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-७ वाकशुद्धि |
Hindi | 307 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेव होले गोले त्ति साणे वा वसुले त्ति य ।
दमए दुहए वा वि नेवं भासेज्ज पन्नवं ॥ Translated Sutra: इसी प्रकार प्रज्ञावान् साधु, ‘रे होल !, रे गोल !, ओ कुत्ते !, ऐ वृषल (शूद्र) !, हे द्रमक !, ओ दुर्भग !’ इस प्रकार न बोले। स्त्री को – हे दादी !, हे परदादी !, हे मां !, हे मौसी !, हे बुआ !, ऐ भानजी !, अरी पुत्री !, हे नातिन, हे हला !, हे अन्ने!, हे भट्टे !, हे स्वामिनि !, हे गोमिनि ! – इस प्रकार आमंत्रित न करे। किन्तु यथायोग्य गुणदोष, वय आदि का |