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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-८ लोक | Hindi | 683 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] केमहालए णं भंते! लोए पन्नत्ते?
गोयमा! महतिमहालए लोए पन्नत्ते, जहा बारसमसए तहेव जाव असंखेज्जाओ जोयण-कोडाकोडीओ परिक्खेवेणं।
लोयस्स णं भंते! पुरत्थिमिल्ले चरिमंते किं जीवा, जीवदेसा, जीवपदेसा, अजीवा, अजीवदेसा, अजीवपदेसा?
गोयमा! नो जीवा, जीवदेसा वि, जीवपदेसा वि, अजीवा वि, अजीवदेसा वि, अजीवपदेसा वि। जे जीवदेसा ते नियमं एगिंदियदेसा य, अहवा एगिंदियदेसा य बेइंदियस्स य देसे–एवं जहा दसमसए अग्गेयी दिसा तहेव, नवरं–देसेसु अनिंदियाण आ-इल्लविरहिओ। जे अरूवी अजीवा ते छव्विहा, अद्धासमयो नत्थि। सेसं तं चेव निरवसेसं।
लोगस्स णं भंते! दाहिणिल्ले चरिमंते किं जीवा? एवं चेव। एवं पच्चत्थिमिल्ले Translated Sutra: भगवन् ! लोक कितना विशाल कहा गया है ? गौतम ! लोक अत्यन्त विशाल कहा गया है। इसकी समस्त वक्तव्यता बारहवें शतक अनुसार कहना। भगवन् ! क्या लोक के पूर्वीय चरमान्त में जीव हैं, जीवदेश हैं, जीवप्रदेश हैं, अजीव हैं, अजीव के देश हैं और अजीव के प्रदेश हैं ? गौतम ! वहाँ जीव नहीं हैं, परन्तु जीव के देश हैं, जीव के प्रदेश हैं, अजीव | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-९ बलीन्द्र | Hindi | 687 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहिण्णं भंते! बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं तिरियमसंखेज्जे जहेव चमरस्स जाव बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता एत्थ णं बलिस्स वइरोयणिंदस्स वइरोयणरन्नो रुयगिंदे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते। सत्तरस एक्कवीसे जोयणसए– एवं पमाणं जहेव तिगिच्छकूडस्स पासायवडेंगस्स वि तं चेव पमाणं, सीहासणं सपरिवारं बलिस्स परियारेणं, अट्ठो तहेव, नवरं–रुयगिंदप्पभाइं–रुयगिंदप्पभाइं–रुयगिंदप्पभाइं।
सेसं तं चेव जाव बलिचंचाए रायहानीए अन्नेसिं च जाव रुयगिंदस्स णं उप्पायपव्वयस्स उत्तरे णं छक्कोडिसए तहेव जाव Translated Sutra: भगवन् ! वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की सुधर्मा सभा कहाँ है ? गौतम ! जम्बूद्वीप में मन्दर पर्वत के उत्तर में तीरछे असंख्येय द्वीपसमुद्रों को उल्लंघ कर इत्यादि, चमरेन्द्र की वक्तव्यता अनुसार कहना; यावत् (अरुणवरद्वीप की बाह्य वेदिका से अरुणवरद्वीप समुद्र में) बयालीस हजार योजन अवगाहन करने के बाद वैरोचनेन्द्र | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-२ संयत | Hindi | 699 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से नूनं भंते! संजत-विरत-पडिहत-पच्चक्खातपावकम्मे धम्मे ठिते? अस्संजत-अविरत-अपडिहत-अपच्चक्खात-पावकम्मे अधम्मे ठिते? संजतासंजते धम्माधम्मे ठिते?
हंता गोयमा! संजत-विरत-पडिहत-पच्चक्खातपावकम्मे धम्मे ठिते, अस्संजत-अविरत-अपडिहत-अपच्चक्खातपावकम्मे अधम्मे ठिते, संजतासंजते धम्माधम्मे ठिते।
एयंसि णं भंते! धम्मंसि वा, अधम्मंसि वा, धम्माधम्मंसि वा चक्किया केइ आसइत्तए वा, सइतए वा, चिट्ठइत्तए वा, निसीइत्तए वा तुयट्टित्तए वा?
गोयमा! नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणं खाइं अट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ जाव संजतासंजते धम्माधम्मे ठिते?
गोयमा! संजत-विरत-पडिहत-पच्चक्खातापावकम्मे धम्मे ठिते, Translated Sutra: भगवन् ! क्या संयत, प्राणातिपातादि से विरत, जिसने पापकर्म का प्रतिघात और प्रत्याख्यान किया है, ऐसा जीव धर्म में स्थित है? तथा असंयत, अविरत और पापकर्म का प्रतिघात एवं प्रत्याख्यान नहीं करनेवाला जीव अधर्ममें स्थित है ? एवं संयतासंयत जीव धर्माधर्ममें स्थित होता है ? हाँ, गौतम ! संयत – विरत यावत् धर्माधर्म में स्थित | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-५ ईशान | Hindi | 708 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहिं णं भंते! ईसानस्स देविंदस्स देवरन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तरे णं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढं चंदिम-सूरिय-गहगण-नक्खत्त-तारारूवाणं जहा ठाणपदे जाव मज्झे ईसानवडेंसए।
से णं ईसानवडेंसए महाविमाने अद्धतेरसजोयणसय-सहस्साइं–एवं जहा दसमसए सक्कविमान-वत्तव्वया सा इह वि ईसानस्स निरवसेसा भाणियव्वा जाव आयरक्ख त्ति। ठिती सातिरेगाइं दो सागरोवमाइं, सेसं तं चेव जाव ईसाने देविंदे देवराया, ईसाने देविंदे देवराया।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! देवेन्द्र देवराज ईशान की सुधर्मा सभा कहाँ कही है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अत्यन्त सम रमणीय भूभाग से ऊपर चन्द्र और सूर्य का अतिक्रमण करके आगे जाने पर इत्यादि वर्णन यावत् प्रज्ञापना सूत्र के ‘स्थान’ पद के अनुसार, यावत् – मध्य भाग में ईशानावतंसक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-६ पृथ्वीकायिक | Hindi | 709 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा? पुव्विं संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा?
गोयमा! पुव्विं वा उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा, पुव्विं वा संपाउणित्ता पच्छा उववज्जेज्जा।
से केणट्ठेणं जाव पच्छा उववज्जेज्जा?
गोयमा! पुढविक्काइयाणं तओ समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेदनासमुग्घाए, कसायसमुग्घाए, मारणंतियसमुग्घाए। मारणंति-यसमुग्घाएणं समोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णति, सव्वेण वा समोहण्णति, देसेण वा समोहण्णमाणे पुव्विं संपाउणित्ता Translated Sutra: भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण – समुद्घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे आहार ग्रहण करते हैं, अथवा पहले आहार ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे पुद्गल ग्रहण करते हैं; अथवा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-७ पृथ्वीकायिक | Hindi | 710 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुढविक्काइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुढविक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते! किं पुव्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेज्जा? सेसं तं चेव। जहा रयणप्पभाए पुढविक्काइए सव्वकप्पेसु जाव ईसिपब्भाराए ताव उववाइओ, एवं सोहम्मपुढविक्काइओ वि सत्तसु वि पुढवीसु उववाएयव्वो जाव अहेसत्तमाए।
एवं जहा सोहम्मपुढविकाइओ सव्वपुढवीसु उववाइओ, एवं जाव ईसिंपब्भारापुढविक्काइओ सव्वपुढवीसु उववाएयव्वो जाव अहेसत्तमाए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण – समुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी में पृथ्वीकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य है, वे पहले उत्पन्न होते हैं और पीछे आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं अथवा पहले आहार (पुद्गल) ग्रहण करते हैं और पीछे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के पृथ्वीकायिक जीवों यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-८ अप्कायिक | Hindi | 711 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं जहा पुढविक्काइओ तहा आउक्काइओ वि सव्वकप्पेसु जाव ईसिंपब्भाराए तहेव उववाएयव्वो।
एवं जहा रयणप्पभआउक्काइओ उववाइओ तहा जाव अहेसत्तमआउक्काइओ उववाएयव्वो जाव ईसिंपब्भाराए।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, इस रत्नप्रभा पृथ्वी में मरण – समुद्घात करके सौधर्मकल्प में अप्कायिक – रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं इत्यादि प्रश्न। गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के अनुसार अप्कायिक जीवों के विषय में सभी कल्पों में यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक उत्पाद कहना चाहिए। रत्नप्रभापृथ्वी के अप्कायिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-९ अप्कायिक | Hindi | 712 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आउक्काइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घनोदहिवलएसु आउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते? सेसं तं चेव, एवं जाव अहेसत्तमाए। जहा सोहम्मआउक्काइओ एवं जाव ईसिंपब्भारा-आउक्काइओ जाव अहेसत्तमाए उववाएयव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण – समुद्घात करके इस रत्नप्रभा पृथ्वी के घनोदधि – वलयों में अप्कायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं इत्यादि प्रश्न। गौतम ! शेष सभी पूर्ववत्। जिस प्रकार सौधर्मकल्प के अप्कायिक जीवों का नरक – पृथ्वीयों में उत्पाद कहा, उसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के अप्कायिक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-१० ११ वायुकायिक | Hindi | 713 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए जाव जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते? जहा पुढविक्काइओ तहा वाउक्काइओ वि, नवरं–वाउक्काइयाणं चत्तारि समुग्घाया पन्नत्ता, तं जहा–वेदनासमुग्घाए जाव वेउव्वियसमुग्घाए। मारणंतियसमुग्घाए णं समोहण्णमाणे देसेण वा समोहण्णइ, सेसं तं चेव जाव अहेसत्तमाए समोहओ ईसिंपब्भाराए उववाएयव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी में मरण – समुद्घात करके सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने के योग्य हैं, इत्यादि प्रश्न। गौतम ! पृथ्वीकायिक जीवों के समान वायुकायिक जीवों का भी कथन करना चाहिए। विशेषता यह है कि वायुकायिक जीवों में चार समुद्घात कहे गए हैं, यथा – वेदनासमुद्घात यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१७ |
उद्देशक-१० ११ वायुकायिक | Hindi | 714 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घनवाए, तनुवाए घनवायवलएसु, तणुवायवलएसु वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, से णं भंते? सेसं तं चेव। एवं जहा सोहम्मे वाउक्काइओ सत्तसु वि पुढवीसु उववाइओ एवं जाव ईसिंपब्भारावाउक्काइओ अहेसत्तमाए जाव उववाएयव्वो।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, सौधर्मकल्प में समुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के घनवात, तनुवात, घनवातवलयों और तनुवातवलयों में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! शेष सब पूर्ववत् कहना चाहिए। जिस प्रकार सौधर्मकल्प के वायुकायिक जीवों – का उत्पाद सातों नरकपृथ्वीयों में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-२ विशाखा | Hindi | 727 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। बहुपुत्तिए चेइए–वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे–एवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरं–एत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में विशाखा नामकी नगरी थी। वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य था। (वर्णन) एक बार वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत् परीषद् पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वीतिय उद्देशक में शक्रेन्द्र का जैसा वर्णन है, | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-४ प्राणातिपात | Hindi | 733 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव भगवं गोयमे एवं वयासी–अह भंते! पाणाइवाए, मुसावाए जाव मिच्छा-दंसणसल्ले, पाणाइवायवेरमणे जाव मिच्छादंसणसल्लवेरमणे, पुढविक्काइए जाव वणस्सइकाइए, धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवे असरीरपडिबद्धे, परमाणु-पोग्गले, सेलेसिं पडिवन्नए अनगारे, सव्वे य बादरबोंदिधरा कलेवरा– एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति?
गोयमा! पाणाइवाए जाव एए णं दुविहा जीवदव्वा य अजीवदव्वा य अत्थेगइया जीवाणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति, अत्थे गइया जीवाणं परिभोगत्ताए नो हव्वमागच्छंति।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–पाणाइवाए Translated Sutra: उस काल और उस समय में राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से इस प्रकार पूछा – भगवन् ! प्राणातिपात, मृषावाद यावत् मिथ्यादर्शनशल्य और प्राणातिपातविरमण, मृषावादविरमण, यावत् मिथ्या – दर्शनशल्यविवेक तथा पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक, एवं धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, शरीररहित | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-७ केवली | Hindi | 744 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नगरे। गुणसिलए चेइए–वण्णओ जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुण सिलस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति, तं जहा–कालोदाई, सेलोदाई, सेवालोदाई, उदए, नामुदए, नम्मुदए, अन्नवालए, सेलवालए, संखवालए, सुहत्थी गाहावई।
तए णं तेसिं अन्नउत्थियाणं अन्नया कयाइ एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सण्णिसण्णाणं अय-मेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पंच अत्थिकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं जाव पोग्ग-लत्थिकायं।
तत्थ णं समणे नायपुत्ते चत्तारि अत्थिकाए अजीवकाए पन्नवेति, तं जहा–धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, Translated Sutra: उस काल उस समय राजगृह नामक नगर था। (वर्णन)। वहाँ गुणशील नामक उद्यान था। (वर्णन)। यावत् वहाँ एक पृथ्वीशिलापट्टक था। उस गुणशील उद्यान के समीप बहुत – से अन्यतीर्थिक रहते थे, यथा – कालोदायी, शैलोदायी इत्यादि समग्र वर्णन सातवें शतक के अन्यतीर्थिक उद्देशक के अनुसार, यावत् – ‘यह कैसे माना जा सकता है?’ यहाँ तक समझना | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-७ केवली | Hindi | 748 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अत्थि णं भंते! देवा जे अनंते कम्मंसे जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं पंचहिं वाससएहिं खवयंति?
हंता अत्थि।
अत्थि णं भंते! देवा जे अनंते कम्मंसे जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेणं पंचहिं वाससहस्सेहिं खवयंति?
हंता अत्थि।
अत्थि णं भंते! देवा जे अनंते कम्मंसे जहन्नेणं एक्केण वा दोहिं वा तीहिं वा, उक्कोसेण पंचहिं वाससयसहस्सेहिं खवयंति?
हंता अत्थि।
कयरे णं भंते! ते देवा जे अनंते कम्मंसे जहन्नेणं एक्केण वा जाव पंचहिं वाससएहिं खवयंति? कयरे णं भंते! ते देवा जाव पंचहिं वाससहस्सेहिं खवयंति? कयरे णं भंते! ते देवा जाव पंचहिं वाससयसहस्सेहिं खवयंति?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! क्या इस प्रकार के भी देव हैं, जो अनन्त कर्मांशों को जघन्य एक सौ, दो सौ या तीन सौ और उत्कृष्ट पाँच सौ वर्षों में क्षय कर देते हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! क्या ऐसे देव भी हैं, जो अनन्त कर्मांशों को जघन्य एक हजार, दो हजार या तीन हजार और उत्कृष्ट पाँच हजार वर्षों में क्षय कर देते हैं ? हाँ, गौतम ! हैं। भगवन् ! क्या | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Hindi | 755 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: Translated Sutra: भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के नीचे वर्ण से – काला, नीला, पीला, लाल और श्वेत, गन्ध से – सुगन्धित और दुर्गन्धित; रस से – तिक्त, कटुक कसैला, अम्ल और मधुर; तथा स्पर्श से – कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष – इन बीस बोलों से युक्त द्रव्य क्या अन्योन्य बद्ध, अन्योन्य स्पृष्ट, यावत् अन्योन्य सम्बद्ध हैं | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Hindi | 756 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नामं नगरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए–वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे नगरे सोमिले नामं माहणे परिवसति अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए, रिव्वेद जाव सुपरिनिट्ठिए, पंचण्हं खंडियसयाणं, सयस्स य, कुडुंबस्स आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं आणा-ईसर-सेनावच्चं कारेमाणे पालेमाणे विहरइ। तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे जाव परिसा पज्जुवासति।
तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स इमीसे कहाए लद्धट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–एवं खलु समणे नायपुत्ते पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे Translated Sutra: उस काल उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था। वहाँ द्युतिपलाश नाम का (चैत्य) था। उस वाणिज्य ग्राम नगर में सोमिल ब्राह्मण रहता था। जो आढ्य यावत् अपराभूत था तथा ऋग्वेद यावत् अथर्ववेद, तथा शिक्षा, कल्प आदि वेदांगों में निष्णात था। वह पाँच – सौ शिष्यों और अपने कुटुम्ब पर आधिपत्य करता हुआ यावत् सुख – पूर्वक जीवनयापन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-१० सोमिल | Hindi | 757 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एगे भवं? दुवे भवं? अक्खए भवं? अव्वए भवं? अवट्ठिए भवं? अनेगभूयभाव-भविए भवं?
सोमिला! एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–एगे वि अहं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं?
सोमिला! दव्वट्ठयाए एगे अहं, नाणदंसणट्ठयाए दुविहे अहं, पएसट्ठयाए अक्खए वि अहं, अव्वए वि अहं, अवट्ठिए वि अहं, उवयोगट्ठयाए अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं। से तेणट्ठेणं जाव अनेगभूय-भाव-भविए वि अहं।
एत्थ णं से सोमिले माहणे संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा खंदओ जाव से जहेयं तुब्भे वदह। जहा णं देवानुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुंबिय-इब्भसेट्ठि-सेनावइ-सत्थ Translated Sutra: भगवन् ! आप एक हैं, या दो हैं, अथवा अक्षय हैं, अव्यय हैं, अवस्थित हैं अथवा अनेक – भूत – भाव – भाविक हैं? सोमिल ! मैं एक भी हूँ, यावत् अनेक – भूत – भाव – भाविक भी हूँ। भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं ? सोमिल ! मैं द्रव्यरूप से एक हूँ, ज्ञान और दर्शन की दृष्टि से दो हूँ। आत्म – प्रदेशों की अपेक्षा से मैं अक्षय हूँ, अव्यय हूँ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-६ अंतर | Hindi | 791 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वाउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए? एवं जहा सत्तरसमसए वाउक्काइयउद्देसए तहा इह वि, नवरं–अंतरेसु समोहणा नेयव्वा, सेसं तं चेव जाव अनुत्तरविमानाणं ईसीपब्भाराए य पुढवीए अंतरा समोहए, समोहणित्ता जे भविए घनवाय-तनुवाए घनवाय-तनुवायवलएसु वाउक्काइयत्ताए उववज्जित्तए, सेसं तं चेव जाव से तेणट्ठेणं जाव उववज्जेज्जा।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! जो वायुकायिक जीव, इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा पृथ्वी के मध्य में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प में वायुकायिक रूप से उत्पन्न होने योग्य हैं; इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। गौतम ! सत्तरहवे शतक के दसवे उद्देशक समान यहाँ भी कहना। विशेष यह है कि रत्नप्रभा आदि पृथ्वीयों के अन्तरालों में मरणसमुद्घातपूर्वक | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२० |
उद्देशक-८ भूमि | Hindi | 794 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसु णं भंते! पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु अत्थि ओसप्पिणीति वा उस्सप्पिणीति वा?
हंता अत्थि। एएसु णं पंचसु महाविदेहेसु नेवत्थि ओसप्पिणी, नेवत्थि उस्सप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पन्नत्ते समणाउसो
एएसु णं भंते! पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं पन्नवयंति?
नो इणट्ठे समट्ठे।
एएसु णं पंचसु भरहेसु, पंचसु एरवएसु, पुरिम-पच्छिमगा दुवे अरहंता भगवंतो पंचमहव्वइयं सपडिक्कमणं धम्मं पण्णवयंति, अवसेसा णं अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पन्नवयंति। एएसु णं पंचसु महाविदेहेसु अरहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पन्नवयंति।
जंबुद्दीवे णं भंते! दीवे भारहे Translated Sutra: भगवन् ! महाविदेह क्षेत्रों में अरहन्त भगवान सप्रतिक्रमण पंच – महाव्रत वाले धर्म का उपदेश करते हैं ? (गौतम !) यह अर्थ समर्थ नहीं है। भरत तथा ऐरवत क्षेत्रों में प्रथम और अन्तिम ये दो अरहन्त भगवंत सप्रतिक्रमण पाँच महाव्रतोंवाले और शेष अरहन्त भगवंत चातुर्याम धर्म का उपदेश करते हैं और पाँच महाविदेह क्षेत्रों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२२ ताड, निंब, अगस्तिक... वर्ग-२ थी ६ |
Hindi | 827 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! सेरियक-नवमालिय-कोरेंटग-बंधुजीवग-मणोज्जा, जहा पन्नवणाए पढमपदे गाहाणु-सारेणं जाव नवनीतिय-कुंद-महाजाईणं–एएसि णं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति? एवं एत्थ वि मूलादीया दस उद्देसगा निरवसेसं जहा सालीणं। Translated Sutra: भगवन् ! सिरियक, नवमालिक, कोरंटक, बन्धुजीवक, मणोज्ज, इत्यादि सब नाम प्रज्ञापनासूत्र के प्रथम पद की गाथा के अनुसार नलिनी, कुन्द और महाजाति (तक) इन सब पौधों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ भी मूलादि समग्र दश उद्देशक शालिवर्ग के समान (जानने चाहिए)। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-१२ थी १६ पृथ्व्यादि | Hindi | 848 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ मनुस्सेहिंतो उववज्जंति– किं सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति? असण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति, असण्णिमनुस्सेहिंतो वि उववज्जंति।
असण्णिमनुस्से णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकाल-ट्ठितीएसु उववज्जेज्जा? एवं जहा असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स जहन्नकालट्ठितीयस्स तिन्नि गमगा तहा एयस्स वि ओहिया तिन्नि गमगा भाणियव्वा तहेव निरवसेसं। सेसा छ न भण्णंति।
जइ सण्णिमनुस्सेहिंतो उववज्जंति–किं संखेज्जवासाउय? असंखेज्जवासाउय?
गोयमा! संखेज्जवासाउय, नो असंखेज्जवासाउय।
जइ संखेज्जवासाउय किं पज्जत्तासंखेज्जवासाउय? Translated Sutra: (भगवन् !) यदि वे (पृथ्वीकायिक) मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे संज्ञी मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं या असंज्ञी मनुष्यों से ? गौतम ! वे दोनों प्रकार के मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! असंज्ञी मनुष्य, कितने काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है ? जघन्य काल की स्थिति वाले | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२० तिर्यंच पंचेन्द्रिय | Hindi | 856 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति– किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? तिरिक्ख-जोणिएहिंतो उववज्जंति? मनुस्सेहिंतो देवेहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! नेरइएहिंतो उववज्जंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो, मनुस्सेहिंतो वि, देवेहिंतो वि उववज्जंति।
जइ नेरइएहिंतो उववज्जंति– किं रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढवि-नेरइएहिंतो उववज्जंति?
गोयमा! रयणप्पभपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति जाव अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उववज्जंति।
रयणप्पभपुढविनेरइए णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठि-तीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं Translated Sutra: भगवन् ! पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से यावत् देवों से भी आकर उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! यदि वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या वे रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, अथवा | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२४ |
उद्देशक-२२ थी २४ देव | Hindi | 860 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सोहम्मदेवा णं भंते! कओहिंतो उववज्जंति–किं नेरइएहिंतो उववज्जंति? भेदो जहा जोइसिय-उद्देसए।
असंखेज्जवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए साहम्मगदेवेसु उववज्जित्तए, से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! जहन्नेणं पलिओवमट्ठितीएसु उक्कोसेणं तिपलिओवमट्ठितीएसु उववज्जेज्जा।
ते णं भंते! जीवा एगसमएणं केवतिया उववज्जंति? अवसेसं जहा जोइसिएसु उववज्ज-माणस्स, नवरं–सम्मदिट्ठी वि, मिच्छादिट्ठी वि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी। नाणी वि, अन्नाणी वि, दो नाणा दो अन्नाणा नियमं। ठिती जहन्नेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं। एवं अनुबंधो वि। सेसं तहेव। Translated Sutra: भगवन् ! सौधर्मदेव, किस गति से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से यावत् देवों से आकर उत्पन्न होते हैं ? ज्योतिष्क – उद्देशक के अनुसार भेद जानना चाहिए। भगवन् ! असंख्यात वर्ष की आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय – तिर्यंचयोनिक कितने काल की स्थिति वाले सौधर्मदेवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम की | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-३ संस्थान | Hindi | 878 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कतिविहे णं भंते! गणिपिडए पन्नत्ते?
गोयमा! दुवालसंगे गणिपिडए पन्नत्ते, तं जहा–आयारो जाव दिट्ठिवाओ।
से किं तं आयारो? आयारे णं समणाणं निग्गंथाणं आयार-गोयर-विनय-वेणइय-सिक्खा-भासा- अभासा-चरण-करण-जाया-माया-वित्तीओ आघविज्जंति, एवं अंगपरूवणा भाणियव्वा जहा नंदीए जाव– Translated Sutra: भगवन् ! गणिपिटक कितने प्रकार का है ? गौतम ! बारह – अंगरूप है। यथा – आचारांग यावत् दृष्टिवाद। भगवन् ! आचारांग किसे कहते हैं ? आचारांग – सूत्र में श्रमण – निर्ग्रन्थों के आचार, गोचर – विधि आदि चारित्र – धर्म की प्ररूपणा की गई है। नन्दीसूत्र के अनुसार सभी अंगसूत्रों का वर्णन जानना चाहिए, यावत् – | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 881 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता– कडजुम्मे जाव कलियोगे? एवं जहा अट्ठारसमसते चउत्थे उद्देसए तहेव जाव से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ।
नेरइयाणं भंते! कति जुम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे जाव कलियोगे।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइयाणं चत्तारि जुम्मा पन्नत्ता, तं जहा–कडजुम्मे? अट्ठो तहेव। एवं जाव वाउकाइयाणं।
वणस्सइकाइयाणं भंते! –पुच्छा।
गोयमा! वणस्सइकाइया सिय कडजुम्मा, सिय तेयोगा, सिय दावरजुम्मा, सिय कलियोगा।
से Translated Sutra: भगवन् ! युग्म कितने कहे हैं ? गौतम ! युग्म चार प्रकार के कहे हैं, यथा – कृतयुग्म यावत् कल्योज। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! अठारहवें शतक के चतुर्थ उद्देशक में कहे अनुसार यहाँ जानना, यावत् इसीलिए ऐसा कहा है। भगवन् ! नैरयिकों में कितने युग्म कहे गए हैं ? गौतम ! उनमें चार युग्म कहे हैं। यथा – कृतयुग्म यावत् | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-४ युग्म | Hindi | 892 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! धम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता?
गोयमा! अट्ठ धम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता।
कति णं भंते! अधम्मत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता? एवं चेव।
कति णं भंते! आगासत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता? एवं चेव।
कति णं भंते! जीवत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता?
गोयमा! अट्ठ जीवत्थिकायस्स मज्झपदेसा पन्नत्ता।
एए णं भंते! अट्ठ जीवत्थिकायस्स मज्झपदेसा कतिसु आगासपदेसेसु ओगाहंति?
गोयमा! जहन्नेणं एक्कंसि वा दोहिं वा तीहिं वा चउहिं वा पंचहिं वा छहिं वा, उक्कोसेणं अट्ठसु, नो चेव णं सत्तसु।
सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति। Translated Sutra: भगवन् ! धर्मास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! अधर्मास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! आकाशास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! जीवास्तिकाय के मध्य – प्रदेश कितने कहे हैं ? गौतम ! आठ। भगवन् ! जीवास्तिकाय के ये आठ मध्य – प्रदेश कितने आकाशप्रदेशों | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-६ निर्ग्रन्थ | Hindi | 913 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] पुलाए णं भंते! कालगए समाणे किं गतिं गच्छति?
गोयमा! देवगतिं गच्छति।
देवगतिं गच्छमाणे किं भवनवासीसु उववज्जेज्जा? वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा? जोइसिएसु उववज्जेज्जा? वेमा-णिएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! नो भवनवासीसु, नो वाणमंतरेसु, नो जोइसिएसु, वेमाणिएसु उववज्जेज्जा। वेमाणिएसु उववज्जमाणे जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे उववज्जेज्जा।
बउसे णं एवं चेव, नवरं–उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे। पडिसेवणाकुसीले जहा बउसे। कसायकुसीले जहा पुलाए, नवरं–उक्कोसेणं अनुत्तरविमानेसु उववज्जेज्जा। नियंठे णं एवं चेव जाव वेमाणिएसु उववज्ज-माणे अजहन्नमणुक्कोसेनं अनुत्तरविमानेसु Translated Sutra: भगवन् ! पुलाक मरकर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में। भगवन् ! यदि वह देवगति में जाता है तो क्या भवनपत्तियों में उत्पन्न होता है या वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह केवल वैमानिक देवों में उत्पन्न होता है। वैमानिक देवों में उत्पन्न होता हुआ पुलाक जघन्य सौधर्मकल्प में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 937 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] सामाइयम्मि उ कए, चाउज्जामं अणुत्तरं धम्मं ।
तिविहेणं फासयंतो, सामाइयसंजओ य खलु ॥ Translated Sutra: सामायिक – चारित्र को अंगीकार करने के पश्चात् चातुर्याम – रूप अनुत्तर धर्म का जो मन, वचन और काया से त्रिविध पालन करता है, वह ‘सामायिक – संयत’ है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 938 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] छेत्तूण उ परियागं, पोराणं जो ठवेइ अप्पाणं ।
धम्मम्मि पंचजामे, छेदोवट्ठावणो स खलु ॥ Translated Sutra: प्राचीन पर्याय को छेद करके जो अपनी आत्मा को पंचमहाव्रत धर्म में स्थापित करता है, वह ‘छेदोपस्था – पनीय – संयत’ कहलाता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 939 | Gatha | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] परिहरइ जो विसुद्धं, तु पंचयामं अणुत्तरं धम्मं ।
तिविहेणं फासयंतो, परिहारियसंजओ स खलु ॥ Translated Sutra: जो पंचमहाव्रतरूप अनुत्तर धर्म को मन, वचन और काया से त्रिविध पालन करता हुआ आत्म – विशुद्धि धारण करता है, वह परिहारविशुद्धिक – संयत कहलाता है। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 945 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सामाइयसंजए णं भंते! कालगए समाणे कं गतिं गच्छति?
गोयमा! देवगतिं गच्छति।
देवगतिं गच्छमाणे किं भवनवासीसु उववज्जेज्जा? वाणमंतरेसु उववज्जेज्जा? जोइसिएसु उववज्जेज्जा? वेमाणिएसु उववज्जेज्जा?
गोयमा! नो भवनवासीसु उववज्जेज्जा– जहा कसायकुसीले। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए। सुहुमसंपराए जहा नियंठे।
अहक्खाए–पुच्छा।
गोयमा! एवं अहक्खायसंजए वि जाव अजहन्नमणुक्कोसेनं अनुत्तरविमानेसु उववज्जेज्जा; अत्थेगतिए सिज्झति जाव सव्व दुक्खाणं अंत करेति।
सामाइयसंजए णं भंते! देवलोगेसु उववज्जमाणे किं इंदत्ताए उववज्जति–पुच्छा।
गोयमा! अविराहणं पडुच्च एवं जहा Translated Sutra: भगवन् ! सामायिकसंयत काल कर किस गति में जाता है ? गौतम ! देवगति में। भगवन् ! वह देवगति में जाता हुआ भवनवासी यावत् वैमानिकों में से किन देवों में उत्पन्न होता है ? गौतम ! वह कषायकुशील के समान भवनपति में उत्पन्न नहीं होता, इत्यादि सब कहना। इसी प्रकार छेदोपस्थापनीयसंयत को भी समझना। परिहार – विशुद्धिकसंयत की गति | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 965 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनसने? अनसने दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–इत्तरिए य, आवकहिए य।
से किं तं इत्तरिए? इत्तरिए अनेगविहे पन्नत्ते, तं जहा–चउत्थे भत्ते, छट्ठे भत्ते, अट्ठमे भत्ते, दसमे भत्ते, दुवाल-समे भत्ते, चोद्दसमे भत्ते, अद्धमासिए भत्ते, मासिए भत्ते, दोमासिए भत्ते, तेमासिए भत्ते जाव छम्मासिए भत्ते। सेत्तं इत्तरिए।
से किं तं आवकहिए? आवकहिए दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–पाओवगमणे य, भत्तपच्चक्खाणे य।
से किं तं पाओवगमणे? पाओवगमणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे य, अणीहारिमे य। नियमं अपडिकम्मे सेत्तं पाओवगमणे।
से किं तं भत्तपच्चक्खाणे? भत्तपच्चक्खाणे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–नीहारिमे Translated Sutra: भगवन् ! अनशन कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का – इत्वरिक और यावत्कथिक। भगवन् ! इत्वरिक अनशन कितने प्रकार का कहा है ? अनेक प्रकार का यथा – चतुर्थभक्त, षष्ठभक्त, अष्टम – भक्त, दशम – भक्त, द्वादशभक्त, चतुर्दशभक्त, अर्द्धमासिक, मासिकभक्त, द्विमासिकभक्त, त्रिमासिकभक्त यावत् षाण्मासिक – भक्त। यह इत्वरिक अनशन | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 967 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सज्झाए? सज्झाए पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा–वायणा, पडिपुच्छणा, परियट्टणा, अणुप्पेहा, धम्मकहा। से त्तं सज्झाए। Translated Sutra: (भगवन् !) स्वाध्याय कितने प्रकार का है ? (गौतम !) पाँच प्रकार का – वाचना, प्रतिपृच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मकथा। | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-२५ |
उद्देशक-७ संयत | Hindi | 968 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं ज्झाणे? ज्झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा– अट्टे ज्झाणे, रोद्दे ज्झाणे, धम्मे ज्झाणे, सुक्के ज्झाणे।
अट्टे ज्झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अमणुन्नसंपयोगसंपउत्ते तस्स विप्पयोगसतिसमन्नागए यावि भवइ, मणुन्नसंपयोगसंपउत्ते तस्स अविप्पयोगसतिसमन्नागए यावि भवइ, आयंकसंपयोग-संपउत्ते तस्स विप्पयोगसतिसमन्नागए यावि भवइ, परिज्झुसियकामभोगसंपयोग-संपउत्ते तस्स अविप्पयोग-सतिसमन्नागए यावि भवइ।
अट्टस्स णं ज्झाणस्स चत्तारि लक्खणा पन्नत्ता, तं जहा–कंदणया, सोयणया, तिप्पणया, परिदेवणया।
रोद्देज्झाणे चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–हिंसानुबंधी, मोसानुबंधी, तेयानुबंधी, Translated Sutra: (भगवन् !) ध्यान कितने प्रकार का ? (गौतम !) चार प्रकार का – आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान, शुक्लध्यान। आर्त्तध्यान चार प्रकार का कहा गया है। यथा – अमनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके वियोग की चिन्ता करना, मनोज्ञ वस्तुओं की प्राप्ति होने पर उनके अवियोग की चिन्ता करना, आतंक प्राप्त होने पर उसके वियोग की | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-९ गुरुत्त्व | Gujarati | 95 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] सत्तमे णं भंते! ओवासंतरे किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए?
गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, नो गरुयलहुए, अगरुयलहुए।
सत्तमे णं भंते! तनुवाए किं गरुए? लहुए? गरुयलहुए? अगरुयलहुए?
गोयमा! नो गरुए, नो लहुए, गरुयलहुए, नो अगरुयलहुए।
एवं सत्तमे घनवाए, सत्तमे घनोदही, सत्तमा पुढवी।
ओवासंतराइं सव्वाइं जहा सत्तमे ओवासंतरे।
जहा तनुवाए एवं–ओवास-वाय-घनउदही, पुढवी दीवा य सागरा वासा।
नेरइया णं भंते! किं गरुया? लहुया? गरुयलहुया? अगरुयलहुया?
गोयमा! नो गरुया, नो लहुया, गरुयलहुया वि, अगरुयलहुया वि।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–नेरइया नो गरुया? नो लहुया? गरुयलहुया वि? अगरुयलहुया वि?
गोयमा! विउव्विय-तेयाइं Translated Sutra: ભગવન્ ! શું સાતમો અવકાશાંતર ગુરુ(ભારે) છે, લઘુ(હલકો) છે, (ગુરુ – લઘુ)ભારે – હલકો છે કે અગુરુલઘુ છે ? ગૌતમ ! તે ભારે, હલકો કે ભારે – હલકો નથી, પણ અગુરુલઘુ છે. ભગવન્ ! સાતમો તનુવાત શું ભારે છે, હલકો છે, ભારે – હલકો છે કે અગુરુલઘુ છે ? ગૌતમ ! ભારે, હલકો કે અગુરુલઘુ નથી, પણ ભારે હલકો છે. એ પ્રમાણે સાતમો ઘનવાત, સાતમો ઘનોદધિ, સાતમી | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-९ गुरुत्त्व | Gujarati | 98 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं पासावच्चिज्जे कालासवेसियपुत्ते नामं अनगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता थेरे भगवंते एवं वयासी–
थेरा सामाइयं न याणंति, थेरा सामाइयस्स अट्ठं न याणंति।
थेरा पच्चक्खाणं न याणंति, थेरा पच्चक्खाणस्स अट्ठं न याणंति।
थेरा संजमं न याणंति, थेरा संजमस्स अट्ठं न याणंति।
थेरा संवरं न याणंति, थेरा संवरस्स अट्ठं न याणंति।
थेरा विवेगं न याणंति, थेरा विवेगस्स अट्ठं ण याणंति।
थेरा विउस्सग्गं न याणंति, थेरा विउस्सगस्स अट्ठं न याणंति।
तए णं थेरा भगवंतो कालासवेसियपुत्तं अनगारं एवं वदासी–
जाणामो णं अज्जो! सामाइयं, जाणामो णं अज्जो! सामाइयस्स Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે પાર્શ્વાપત્યીય – (ભગવંત પાર્શ્વનાથની પરંપરાના શિષ્યાનુશિષ્ય) કાલાશ્યવેષિપુત્ર નામક અણગાર જ્યાં સ્થવિર ભગવંતો હતા, ત્યાં જાય છે, જઈને સ્થવિર ભગવંતોને આ પ્રમાણે કહે છે – હે સ્થવિરો! તમે સામાયિક જાણતા નથી, સામાયિકનો અર્થ જાણતા નથી, પચ્ચક્ખાણ જાણતા નથી, પચ્ચક્ખાણનો અર્થ જાણતા નથી. સંયમ જાણતા | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-९ गुरुत्त्व | Gujarati | 100 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] आहाकम्मं णं भुंजमाणे समणे निग्गंथे किं बंधइ? किं पकरेइ? किं चिणाइ? किं उवचिणाइ?
गोयमा! आहाकम्मं णं भुंजमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनियबंधनबद्धाओ पकरेइ, हस्स कालठिइयाओ दीहकालठिइयाओ पकरेइ, मंदानुभावाओ तिव्वा-नुभावाओ पकरेइ, अप्पपएसग्गाओ बहुप्पएसग्गाओ पकरेइ, आउयं च णं कम्मं सिय बंधइ, सिय नो बंधइ, अस्सायावेयणिज्जं च णं कम्मं भुज्जो-भुज्जो उवचिणाइ, अनाइयं च णं अनवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतं संसारकंतारं अनुपरियट्टइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–आहाकम्मं णं भुंजमाणे आउयवज्जाओ सत्त कम्मप्पगडीओ सिढिलबंधनबद्धाओ धनियबंधनबद्धाओ पकरेइ जाव चाउरंतं Translated Sutra: આધાકર્મી દોષયુક્ત આહાર કરતો શ્રમણ નિર્ગ્રન્થ શું બાંધે ? શું કરે છે ? શું ચય કરે છે ? શું ઉપચય કરે છે ? ગૌતમ ! આધાકર્મી દોષયુક્ત આહાર કરતો શ્રમણ આયુકર્મ સિવાયની શિથિલબંધન બદ્ધ સાતે કર્મપ્રકૃતિને દૃઢ બંધન બદ્ધ કરે છે યાવત્ સંસારમાં ભમે છે. ભગવન્ ! એમ કેમ કહ્યું ? ગૌતમ ! આધાકર્મી દોષયુક્ત આહાર કરતો શ્રમણ આત્મધર્મને | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-७ नैरयिक | Gujarati | 84 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] जीवे णं भंते! गब्भगए समाणे किं आहारमाहारेइ?
गोयमा! जं से माया नाणाविहाओ रसविगतीओ आहारमाहारेइ, तदेकदेसेणं ओयमाहारेइ।
जीवस्स णं भंते! गब्भगयस्स समाणस्स अत्थि उच्चारे इ वा पासवने इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा?
नो इणट्ठे समट्ठे।
से केणट्ठेणं?
गोयमा! जीवे णं गब्भगए समाणे जमाहारेइ तं चिणाइ, तं जहा–सोइंदियत्ताए, चक्खिंदियत्ताए, घाणिंदियत्ताए, रसिंदियत्ताए फासिंदियत्ताए, अट्ठि-अट्ठिमिंज-केस-मंसु-रोम-नहत्ताए। से तेणट्ठेणं गोयमा! एवं वुच्चइ–जीवस्स णं गब्भगयस्स समाणस्स नत्थि उच्चारे इ वा पासवने इ वा खेले इ वा सिंघाणे इ वा वंते इ वा पित्ते इ वा।
जीवे णं Translated Sutra: ભગવન્ ! ગર્ભગત જીવ નૈરયિકમાં ઉત્પન્ન થાય ? ગૌતમ ! કોઈ ઉપજે, કોઈ ન ઉપજે. ભગવન્ ! એમ કેમ કહો છો ? ગૌતમ ! તે સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય સર્વ પર્યાપ્તિથી પર્યાપ્ત, વીર્યલબ્ધિ અને વૈક્રિય લબ્ધિ વડે શત્રુસૈન્ય આવેલ સાંભળીને, અવધારીને આત્મ – પ્રદેશોને બહાર ફેંકે છે, ફેંકીને વૈક્રિય સમુદ્ઘાત વડે ચાતુરંગિણી સેના વિકુર્વે, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
Gujarati | 6 | Sutra | Ang-05 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थगरे सहसंबुद्धे पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपोंडरीए पुरिसवरगंधहत्थी लोगुत्तमे लोगनाहे लोगपदीवे लोगपज्जोयगरे अभयदए चक्खु- दए मग्गदए सरणदए धम्मदेसए धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी अप्पडिहयवरनाणदंसणधरे वियट्टछउमे जिने जाणए बुद्धे बोहए मुत्ते मोयए सव्वण्णू सव्वदरिसी सिवमयलमरुयमणंतमक्खय- मव्वाबाहं सिद्धिगतिनामधेयं ठाणं संपाविउकामे…
…जाव पुव्वानुपुव्विं चरमाणे गामानुगामं दूइज्जमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव रायगिहे नगरे जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે આદિકર, તીર્થંકર, સ્વયંસંબુદ્ધ, પુરુષોત્તમ, પુરુષસિંહ, પુરુષવરપુંડરીક, પુરુષવરગંધહસ્તિ, લોકમાં ઉત્તમ, લોકનાં નાથ, લોકપ્રદીપ, લોકપ્રદ્યોતકર, અભયદાતા, ચક્ષુદાતા, માર્ગદાતા, શરણદાતા, ધર્મ ઉપદેશક, ધર્મસારથી, ધર્મવરચાતુરંત ચક્રવર્તી, અપ્રતિહત શ્રેષ્ઠ જ્ઞાનદર્શનના ધારક, છદ્મતા(ઘાતિકર્મના આવરણ) | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-२ दुःख | Gujarati | 32 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] अह भंते! असंजयभवियदव्वदेवाणं, अविराहियसंजमाणं, विराहियसंजमाणं, अविराहियसंजमा-संजमाणं, विराहियसंजमासंजमाणं, असण्णीणं, तावसाणं, कंदप्पियाणं, चरगपरिव्वायगाणं, किब्बि सियाणं, तेरिच्छियाणं, आजीवियाणं आभिओगियाणं, सलिंगीणं दंसणवावन्नगाणं– एतेसि णं देव-लोगेसु उववज्जमाणाणं कस्स कहिं उववाए पन्नत्ते?
गोयमा! असंजयभवियदव्वदेवाणं जहन्नेणं भवनवासीसु, उक्कोसेणं उवरिमगेवेज्जएसु। अविराहिय संजमाणं जहन्नेणं सोहम्मे कप्पे, उक्कोसेणं सव्वट्ठसिद्धे विमाने। विराहियसंजमाणं जहन्नेणं भवन वासीसु, उक्कोसेणं सोहम्मे कप्पे।
अविराहियसंजमासंजमाणं जहन्नेणं सोहम्मेकप्पे, Translated Sutra: હે ભગવન્ ! ૧.અસંયત ભવ્યદ્રવ્યદેવ, ૨.અવિરાધિત સંયત, ૩.વિરાધિત સંયત, ૪.અવિરાધિત સંયતા – સંયત, ૫.વિરાધિત સંયતાસંયત, ૬.અસંજ્ઞી, ૭.તાપસ, ૮.કાંદર્પિક, ૯.ચરકપરિવ્રાજક, ૧૦.કિલ્બિષિક, ૧૧.તિર્યંચો, ૧૨.આજીવિકો, ૧૩.આભિયોગિકો, ૧૪.શ્રદ્ધાભ્રષ્ટ વેશધારકો, આ ચૌદ જો દેવલોકમાં ઉત્પન્ન થાય તો કોનો ક્યાં ઉપપાદ કહ્યો છે ? ગૌતમ ! અસંયત | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१ |
उद्देशक-५ पृथ्वी | Gujarati | 52 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कति णं भंते! पुढवीओ पन्नत्ताओ?
गोयमा! सत्त पुढवीओ पन्नत्ताओ, तं० रयणप्पभा, सक्करप्पभा, वालुयप्पभा, पंकप्पभा, धूमप्पभा, तमप्पभा, तमतमा
इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए कति निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता?
गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। Translated Sutra: સૂત્ર– ૫૨. ભગવન્ ! પૃથ્વીઓ કેટલી કહી છે ? ગૌતમ ! સાત પૃથ્વીઓ(નરકભૂમિઓ) કહી છે. તે આ – રત્નપ્રભા યાવત્ તમસ્તમા. ભગવન્ ! આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીમાં કેટલા લાખ નરકાવાસો કહ્યા છે ? ગૌતમ ! ૩૦ લાખ નરકાવાસ. સૂત્ર– ૫૩. સાતે નરકના નરકાવાસોની સંખ્યા આ પ્રમાણે – પહેલી નરકમાં ૩૦ લાખ નારાકાવાસ છે, એ પ્રમાણે – બીજીથી સાતમી નરકમાં | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 106 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: Translated Sutra: તે કાળે, તે સમયે રાજગૃહ નામે નગર હતું. નગરીનું વર્ણન ‘ઉવવાઈ’ સૂત્રાનુસાર જાણવું. ભગવંત મહાવીર સ્વામી સમોસર્યા(પધાર્યા), પર્ષદા ધર્મોપદેશ સાંભળવા નીકળી, ભગવંતે ધર્મ કહ્યો. પછી પર્ષદા પાછી ફરી. તે કાળે તે સમયે ભગવંત મહાવીરના જ્યેષ્ઠ શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ ગૌતમ, ભગવંતની પર્યુપાસના કરતા બોલ્યા – ભગવન્ ! જે આ બે – ત્રણ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 112 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं महावीरे रायगिहाओ नगराओ गुणसिलाओ चेइआओ पडिनिक्खमइ,
पडिनिक्खमित्ता बहिया जनवयविहारं विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं कयंगला नामं नगरी होत्था–वण्णओ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए छत्तपलासए नामं चेइए होत्था–वण्णओ।
तए णं समणे भगवं महावीरे उप्पन्ननाणदंसणधरे अरहा जिने केवली जेणेव कयंगला नगरी जेणेव छत्तपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हइ, ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ जाव समोसरणं। परिसा निग्गच्छइ।
तीसे णं कयंगलाए नयरीए अदूरसामंते सावत्थी नामं नयरी होत्था–वण्णओ।
तत्थ Translated Sutra: (૧) તે કાળે તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર રાજગૃહી નગર પાસે આવેલ ગુણશીલ ચૈત્યથી નીકળ્યા. નીકળીને બહાર જનપદમાં વિહાર કર્યો. તે કાળે તે સમયે કૃતંગલા નામે નગરી હતી. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર નગરીનું વર્ણન જાણવું. તે કૃતંગલા નગરીની બહાર ઈશાન ખૂણામાં છત્રપલાશક નામે ચૈત્ય હતું. ઉવવાઈ સૂત્રાનુસાર ઉદ્યાનનું વર્ણન જાણવું. ત્યારે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 113 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] एत्थ णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते संबुद्धे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–इच्छामि णं भंते! तुब्भं अंतिए केवलिपन्नत्तं धम्मं निसामित्तए।
अहासुहं देवानुप्पिया! मा पडिबंधं।
तए णं समणे भगवं महावीरे खंदयस्स कच्चायणसगोत्तस्स, तीसे य महइमहालियाए परिसाए धम्मं परिकहेइ। धम्मकहा भाणियव्वा।
तए णं से खंदए कच्चायणसगोत्ते समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए णंदि पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता Translated Sutra: તે કાત્યાયન ગોત્રીય સ્કંદક બોધ પામ્યો. શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને વંદન, નમસ્કાર કરીને આ પ્રમાણે કહ્યું – ભગવન્ ! હું આપની પાસે કેવલી પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મને સાંભળવા ઇચ્છુ છું. હે દેવાનુપ્રિય! સુખ ઉપજે તેમ કર, વિલંબ ન કર. પછી શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે કાત્યાયન ગોત્રીય સ્કંદકને અને મહામોટી પર્ષદાને ધર્મ કહ્યો. અહીં. ધર્મકથા કહેવી. ત્યારે | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 115 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे समोसरणं जाव परिसा पडिगया।
तए णं तस्स खंदयस्स अनगारस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–
एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं कल्लाणेणं सिवेणं धन्नेणं मंगल्लेणं सस्सिरीएणं उदग्गेणं उदत्तेणं उत्तमेणं उदारेणं महानुभागेणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। जीवंजीवेणं गच्छामि, जीवंजीवेणं चिट्ठामि, भासं भासित्ता वि गिलामि, भासं भासमाणे गिलामि, Translated Sutra: તે કાળે તે સમયે રાજગૃહનગરમાં સમવસરણ થયું (ભગવાન મહાવીર પધાર્યા), યાવત્ પર્ષદા પાછી ગઈ. ત્યારે તે સ્કંદક અણગાર અન્યદા ક્યારેક રાત્રિના પાછલા પ્રહરે ધર્મ જાગરિકાથી જાગતા હતા ત્યારે તેમના મનમા આવો સંકલ્પ યાવત્ થયો કે – હું આ ઉદાર તપકર્મથી શુષ્ક, રુક્ષ, કૃશ થયો છું, યાવત્ બધી નાડીઓ બહાર દેખાય છે, આત્મબળથી જ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 116 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से खंदए अनगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुण्णाए समाणे हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिए नंदिए पीइमणे परमसोमनस्सिए हरिसवसविसप्पमाण हियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता सयमेव पंच महाव्वयाइं आरुहेइ, आरुहेत्ता समणा य समणीओ य खामेइ, खामेत्ता तहारूवेहि थेरेहिं कडाईहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं सणियं-सणियं द्रुहइ, द्रुहित्ता मेहघणसन्निगासं देवसन्निवातं पुढविसिलापट्टयं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता उच्चारपासवणभूमिं पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारगं संथरइ, संथरित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे Translated Sutra: પછી તે સ્કંદક અણગાર શ્રમણ ભગવંત મહાવીરની અનુજ્ઞા પામીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ થઈ યાવત્ વિકસિત હૃદય થઈને ઊભા થયા. થઈને ભગવંત મહાવીરને ત્રણ વખત આદક્ષિણ – પ્રદક્ષિણા કરીને યાવત્ નમીને સ્વયમેવ પાંચ મહાવ્રત આરોપે છે. પછી શ્રમણો – શ્રમણીઓને ખમાવે છે પછી તથારૂપ યોગ્ય સ્થવિરો સાથે ધીમે ધીમે વિપુલ પર્વત ચડે છે, મેઘઘન સદૃશ, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-१ उच्छवास अने स्कंदक | Gujarati | 117 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो खंदयं अनगारं कालगयं जाणित्ता परिनिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेंति, करेत्ता पत्तचीवराणि गेण्हंति, गेण्हित्ता विपुलाओ पव्वयाओ सणियं-सणियं पच्चोरुहंति, पच्चोरुहित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदंति नमंसंति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
एवं खलु देवानुप्पियाणं अंतेवासी खंदए नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए।
से णं देवानुप्पिएहिं अब्भ णुण्णाए समाणे सयमेव पंच महव्वयाणि आरुहेत्ता, समणा य समणीओ य खामेत्ता, अम्हेहिं सद्धिं विपुलं पव्वयं Translated Sutra: ત્યારે તે સ્થવિર ભગવંતો સ્કંદક અણગારને કાળધર્મ પામેલા જાણીને પરિનિર્વાણ નિમિત્તે કાયોત્સર્ગ કર્યો, કરીને તેમના વસ્ત્ર, પાત્ર ગ્રહણ કર્યા. વિપુલ પર્વત ઉપરથી ધીમે ધીમે ઊતર્યા. ઊતરીને જ્યાં શ્રમણ ભગવંત મહાવીર હતા, ત્યાં આવીને ભગવંતને વંદન, નમસ્કાર કરીને આ પ્રમાણે કહ્યું – એ પ્રમાણે આપ દેવાનુપ્રિયનો શિષ્ય | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Gujarati | 132 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं तुंगियाए नयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु जाव एगदिसाभिमुहा निज्जायंति।
तए णं ते समणोवासया इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा हट्ठतुट्ठ चित्तमानंदिया नंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! पासावच्चिज्जा थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना जाव अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता णं संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति।
तं महाफलं खलु देवानुप्पिया! तहारूवाणं थेराणं भगवंताणं नामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमन-वंदन-नमंसण-पडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए?
एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स Translated Sutra: ત્યારે તુંગિકાનગરીના શૃંગાટક(સિંઘોડા આકારનો ત્રિકોણ માર્ગ), ત્રિક(ત્રણ રસ્તા ભેગા થાય તે), ચતુષ્ક (ચાર રસ્તા ભેગા થાય તે), ચત્વર(અનેક માર્ગો ભેગા થતા હોય તે), મહાપથ(રાજમાર્ગ), પથો(સામાન્ય માર્ગ)માં યાવત્ એક દિશામાં રહીને તે સ્થવિરોને વંદન કરવા પર્ષદા નીકળી. ત્યારે તે શ્રાવકો આ વાત જાણીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ થયેલા | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-५ अन्यतीर्थिक | Gujarati | 133 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ते थेरा भगवंतो तेसिं समणोवासयाणं तीसे महइमहालियाए महच्चपरिसाए चाउज्जामं धम्मं परिकहेंति, तं जहा–
सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं,
सव्वाओ अदिन्नादानाओ वेरमणं, सव्वाओ बहिद्धादाणाओ वेरमणं।
तए णं ते समणोवासया थेराणं भगवंताणं अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठा जाव हरिसवसविसप्पमाणहियया तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेंति, करेत्ता एवं वयासी– संजमेणं भंते! किंफले? तवे किंफले?
तए णं ते थेरा भगवंतो ते समणोवासए एवं वयासी–संजमे णं अज्जो! अणण्हयफले, तवे वोदाणफले।
तए णं ते समणोवासया थेरे भगवंते एवं वयासी–जइ णं भंते! संजमे अणण्हयफले, तवे वोदाणफले। Translated Sutra: ત્યારે તે સ્થવિર ભગવંતોએ, તે શ્રાવકોને અને તે મહા – મોટી પર્ષદાને ચતુર્યામ ધર્મ કહ્યો. કેશીસ્વામીની માફક યાવત્ તે શ્રાવકોએ પોતાના શ્રાવકપણાથી તે સ્થવિરોની આજ્ઞાનું આરાધન કર્યું – યાવત્ – ધર્મકથા પૂર્ણ થઈ ત્યારે તે શ્રાવકો સ્થવિર ભગવંતો પાસે ધર્મ સાંભળીને, અવધારીને હૃષ્ટ – તુષ્ટ યાવત્ વિકસિતહૃદયી થયા. | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-२ |
उद्देशक-८ चमरचंचा | Gujarati | 140 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] कहि णं भंते! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो सभा सुहम्मा पन्नत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणे णं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीईवइत्ता अरणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुद्दं बायालीसं जोयणसयसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो तिगिंछिकूडे नामं उप्पायपव्वए पन्नत्ते–सत्तरस-एक्कवीसे जोयणसए उड्ढं उच्चत्तेणं चत्तारितीसे जोयणसए कोसं च उव्वेहेणं मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं, मज्झे चत्तारि चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं, उवरिं सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं मूले तिन्नि जोयणसहस्साइं, दोन्निय बत्तीसुत्तरे Translated Sutra: ભગવન્ ! અસુરેન્દ્ર અસુરકુમારરાજ ચમરની સુધર્માસભા ક્યાં છે ? ગૌતમ ! જંબૂદ્વીપ દ્વીપના મેરુ પર્વતની દક્ષિણે તીર્છા અસંખ્ય દ્વીપ સમુદ્રો ગયા પછી અરુણવરદ્વીપના વેદિકાના બાહ્ય છેડાથી અરુણોદય સમુદ્રમાં ૪૨,૦૦૦ યોજન ગયા પછી આ અસુરેન્દ્ર અસુરકુમાર રાજ ચમરનો તિગિચ્છિકકૂટ નામે ઉત્પાતપર્વત છે. તે ૧૭૨૧ યોજન ઊંચો |