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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
प्रथम खण्ड – ज्योतिर्मुख |
२. जिनशासनसूत्र | Hindi | 24 | View Detail | ||
Mool Sutra: यदिच्छसि आत्मतः, यच्च नेच्छसि आत्मतः।
तदिच्छ परस्यापि च, एतावत्कं जिनशासनम्।।८।। Translated Sutra: जो तुम अपने लिए चाहते हो वही दूसरों के लिए भी चाहो तथा जो तुम अपने लिए नहीं चाहते वह दूसरों के लिए भी न चाहो। यही जिनशासन है--तीर्थंकर का उपदेश है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२७. आवश्यकसूत्र | Hindi | 427 | View Detail | ||
Mool Sutra: ऋषभादिजिनवराणां, नामनिरुक्तिं गुणानुकीर्तिं च।
कृत्वा अर्चित्वा च, त्रिशुद्धिप्रणामः स्तवो ज्ञेयः।।११।। Translated Sutra: ऋषभ आदि चौबीस तीर्थंकरों के नामों की निरुक्ति तथा उनके गुणों का कीर्तन करना, गंध-पुष्प-अक्षतादि से पूजा-अर्चा करके, मन वचन काय की शुद्धिपूर्वक प्रणाम करना चतुर्विंशतिस्तव नामक दूसरा आवश्यक है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
२७. आवश्यकसूत्र | Hindi | 431 | View Detail | ||
Mool Sutra: विनयोपचारः मानस्य-भंजनं, पूजनं गुरुजनस्य।
तीर्थकराणांच आज्ञा-श्रुतधर्म आराधना अक्रिया।।१५।। Translated Sutra: वंदना करना, उपचार नाम का विनय है। उससे अभिमान का विलय होता है, गुरुजनो की पूजा होती है, तीर्थंकरों की आज्ञा और श्रुतधर्म की आराधना होती है तथा उसका पारम्परिक फल परम ध्यान (अक्रिया) होता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
द्वितीय खण्ड - मोक्ष-मार्ग |
३०. अनुप्रेक्षासूत्र | Hindi | 514 | View Detail | ||
Mool Sutra: रत्नत्रयसंयुक्तः जीवः अपि भवति उत्तमं तीर्थम्।
संसारं तरति यतः, रत्नत्रयदिव्यनावा।।१०।। Translated Sutra: (वास्तव में-) रत्नत्रय से सम्पन्न जीव ही उत्तम तीर्थ (तट) है, क्योंकि वह रत्नत्रयरूपी दिव्य नौका द्वारा संसार-सागर से पार करता है। | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
३९. नयसूत्र | Hindi | 693 | View Detail | ||
Mool Sutra: तीर्थंकरवचनसंग्रहविशेषप्रस्तार - मूलव्याकरणी।
द्रव्यार्थिकश्च पर्यवनयश्च, शेषाः विकल्पाः एतेषाम्।।४।। Translated Sutra: तीर्थंकरों के वचन दो प्रकार के हैं--सामान्य और विशेष। दोनों प्रकार के वचनों की राशियों के (संग्रह के) मूल प्रतिपादक नय भी दो ही हैं--द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। शेष सब नय इन दोनों के ही अवान्तर भेद हैं। (द्रव्यार्थिक नय वस्तु के सामान्य अंश का प्रतिपादक है और पर्यायार्थिक विशेषांश का।) | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
४२. निक्षेपसूत्र | Hindi | 741 | View Detail | ||
Mool Sutra: द्रव्यं खलु भवति द्विविधं, आगमनोआगमाभ्यां यथा भणितम्।
अर्हत् शास्त्रज्ञायकः, अनुपयुक्तो द्रव्यार्हन्।।५।। Translated Sutra: जहाँ वस्तु की वर्तमान अवस्था का उल्लंघन कर उसका भूतकालीन या भावी स्वरूपानुसार व्यवहार किया जाता है, वहाँ द्रव्यनिक्षेप होता है। उसके दो भेद हैं--आगम और नोआगम। अर्हत्कथित शास्त्र का जानकार जिस समय उस शास्त्र में अपना उपयोग नहीं लगाता उस समय वह आगम द्रव्यनिक्षेप से अर्हत् है। नोआगम द्रव्यनिक्षेप के तीन भेद | |||||||||
Saman Suttam | समणसुत्तं | Sanskrit |
चतुर्थ खण्ड – स्याद्वाद |
४४. वीरस्तवन | Hindi | 756 | View Detail | ||
Mool Sutra: जयति श्रुतानां प्रभवः, तीर्थंकराणामपश्चिमो जयति।
जयति गुरुर्लोकानां, जयति महात्मा महावीरः।।७।। Translated Sutra: द्वादशांगरूप श्रुतज्ञान के उत्पत्तिस्थान जयवन्त हों, तीर्थंकरों में अन्तिम जयवन्त हों। लोकों के गुरु जयवन्त हों। महात्मा महावीर जयवन्त हों। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 346 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे एरवए वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इसी जम्बूद्वीप के ऐरवत वर्ष में इसी अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर हुए – १. चन्द्र के समान मुख वाले सुचन्द्र, २. अग्निसेन, ३. नन्दिसेन, ४. व्रतधारी ऋषिदत्त और ५. सोमचन्द्र की मैं वन्दना करता हूँ। ६. युक्तिसेन, ७. अजितसेन, ८. शिवसेन, ९. बुद्ध, १०. देवशर्म, ११. निक्षिप्तशस्त्र (श्रेयांस) की मैं सदा वन्दना करता हूँ। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१ |
Hindi | 1 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं–
इह खलु समणेणं भगवया महावीरेणं आदिगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसोत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपोंडरीएणं पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगोत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोग-पज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरणाणदंसणधरेणं वियट्ट-च्छउमेणं जिणेणं जावएणं तिण्णेणं तारएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेणं सव्वण्णुणा सव्व-दरिसिणा सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउका- मेणं Translated Sutra: हे आयुष्मन् ! उन भगवान ने ऐसा कहा है, मैने सूना है। [इस अवसर्पिणी काल के चौथे आरे के अन्तिम समय में विद्यमान उन श्रमण भगवान महावीर ने द्वादशांग गणिपिटक कहा है, वे भगवान] – आचार आदि श्रुतधर्म के आदिकर हैं (अपने समय में धर्म के आदि प्रणेता हैं), तीर्थंकर हैं, (धर्मरूप तीर्थ के प्रवर्तक हैं)। स्वयं सम्यक् बोधि को | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-८ |
Hindi | 8 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अट्ठ भयट्ठाणा पन्नत्ता, तं० जातिमए कुलमए बलमए रूवमए तवमए सुयमए लाभमए इस्सरियमए।
अट्ठ पवयणमायाओ पन्नत्ताओ, तं जहा– इरियासमिई भासासमिई एसणासमिई आयाणभंडमत्त-निक्खेवणासमिई उच्चारपासवणखेलसिंधाणजल्लपारिट्ठावणियासमिई मणगुत्ती वइगुत्ती कायगुत्ती
वाणमंतराणं देवाणं चेइयरुक्खा अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
जंबू णं सुदंसणा अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
कूडसामली णं गरुलावासे अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ते।
जंबुद्दीवस्स णं जगई अट्ठ जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ता।
अट्ठसामइए केवलिसमुग्घाए पन्नत्ते, तं जहा–पढमे समए दंडं Translated Sutra: आठ मदस्थान कहे गए हैं। जैसे – जातिमद, कुलमद, बलमद, रूपमद, तपोमद, श्रुतमद, लाभमद और ऐश्वर्यमद। आठ प्रवचन – माताएं कही गई हैं। जैसे – ईयासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदान – भाण्ड – मात्र निक्षेपणासमिति, उच्चार – प्रस्रवण – खेल सिंधारण – परिष्ठापनासमिति, मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति। वाणव्यन्तर देवों के | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-९ |
Hindi | 13 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पासे णं अरहा नव रयणीओ उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
अभीजिनक्खत्ते साइरेगे नव मुहुत्ते चंदेणं सद्धिं जोगं जोएइ।
अभीजियाइया नव नक्खत्ता चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति, तं जहा– अभीजि सवणो धणिट्ठा सयभिसया पुव्वाभद्दवया उत्तरापोट्ठवया रेवई अस्सिणी भरणी।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ नव जोयणसए उड्ढं अबाहाए उवरिल्ले तारारूवे चारं चरइ।
जंबुद्दीवे णं दीवे नवजोयणिया मच्छा पविसिंसु वा पविसंति वा पविसिस्संति वा।
विजयस्स णं दारस्स एगमेगाए बाहाए नव-नव भोमा पन्नत्ता।
वाणमंतराणं देवाणं सभाओ सुधम्माओ नव जोयणाइं उड्ढं उच्चत्तेणं पन्नत्ताओ।
दंसणावरणिज्जस्स Translated Sutra: पुरुषादानीय पार्श्वनाथ तीर्थंकर नौ रत्नी (हाथ) ऊंचे थे। अभिजित् नक्षत्र कुछ अधिक नौ मुहूर्त्त तक चन्द्रमा के साथ योग करता है। अभिजित् आदि नौ नक्षत्र चन्द्रमा का उत्तर दिशा की ओर से योग करते हैं। वे नौ नक्षत्र अभिजित् से लगाकर भरणी तक जानना चाहिए। इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से नौ सौ योजन | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१० |
Hindi | 14 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] दसविहे समणधम्मे पन्नत्ते, तं जहा–खंती मुत्ती अज्जवे मद्दवे लाघवे सच्चे संजमे तवे चियाए बंभचेरवासे।
दस चित्तसमाहिट्ठाणा पन्नत्ता, तं जहा–
धम्मचिंता वा से असमुप्पन्नपुव्वा समुप्पज्जिज्जा, सव्वं धम्मं जाणित्तए।
सुमिणदंसणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, अहातच्चं सुमिणं पासित्तए।
सन्निनाणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, पुव्वभवे सुमरित्तए।
देवदंसणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, दिव्वं देविड्ढिं दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवानुभावं पासित्तए।
ओहिनाणे वा से असमुप्पन्नपुव्वे समुप्पज्जिज्जा, ओहिना लोगं जाणित्तए।
ओहिदंसणे वा से Translated Sutra: श्रमण धर्म दस प्रकार का कहा गया है। जैसे – क्षान्ति, मुक्ति, आर्जव, मार्दव, लाघव, सत्य, संयम, तप, त्याग, ब्रह्मचर्यवास। चित्त – समाधि के दश स्थान कहे गए हैं। जैसे – जो पूर्व काल में कभी उत्पन्न नहीं हुई, ऐसी सर्वज्ञ – भाषित श्रुत और चारित्ररूप धर्म को जानने की चिन्ता का उत्पन्न होना यह चित्त की समाधि या शान्ति के | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-१९ |
Hindi | 49 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिआ उक्कोसेणं एकूनवीसं जोयणसयाइं उड्ढमहो तवंति।
सुक्केणं महग्गहे अवरेणं उदिए समाणे एकूनवीसं नक्खत्ताइं समं चारं चरित्ता अवरेणं अत्थमणं उवागच्छइ।
जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स कलाओ एकूनवीसं छेयणाओ पन्नत्ताओ।
एकूनवीसं तित्थयरा अगारमज्झा वसित्ता मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारिअं पव्वइआ।
इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एकूनवीसं पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
छट्ठीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं एकूनवीसं सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता।
असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं एकूनवीसं पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता।
सोहम्मीसानेसु कप्पेसु अत्थेगइयाणं Translated Sutra: जम्बूद्वीप में सूर्य उत्कृष्ट एक हजार नौ सौ योजन ऊपर और नीचे तपते हैं। शुक्र महाग्रह पश्चिम दिशा से उदित होकर उन्नीस नक्षत्रों के साथ सहगमन करता हुआ पश्चिम दिशा में अस्तगत होता है। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप की कलाएं उन्नीस छेदनक (भागरूप) कही गई हैं। उन्नीस तीर्थंकर अगार – वास में रहकर फिर मुंडित होकर अगार से | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२३ |
Hindi | 53 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेवीसं सूयगडज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा– समए वेतालिए उवसग्गपरिण्णा थीपरिण्णा नरयविभत्ती महावीरथुई कुसीलपरिभासिए विरिए धम्मे समाही मग्गे समोसरणे आहत्तहिए गंथे जमईए गाहा पुंडरीए किरियठाणा आहारपरिण्णा अपच्चक्खाणकिरिया अनगारसुयं अद्दइज्जं णालंदइज्जं।
जंबुद्दीवेणं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसाए जिणाणं सूरुग्गमनमुहुत्तंसि केवलवरनाणदंसणे समुप्पण्णे
जंबुद्दीवे णं दीवे इमीसे ओसप्पिणीए तेवीसं तित्थकरा पुव्वभवे एक्कारसंगिणो होत्था, तं जहा–अजिए संभवे अभिनंदने सुमती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अनंते धम्मे Translated Sutra: सूत्रकृताङ्ग के तेईस अध्ययन हैं। समय, वैतालिक, उपसर्गपरिज्ञा, स्त्रीपरिज्ञा, नरकविभक्ति, महावीर – स्तुति, कुशीलपरिभाषित, वीर्य, धर्म, समाधि, मार्ग, समवसरण, याथातथ्य ग्रन्थ, यमतीत, गाथा, पुण्डरीक, क्रिया – स्थान, आहारपरिज्ञा, अप्रत्याख्यानक्रिया, अनगारश्रुत, आर्द्रीय, नालन्दीय। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप में, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२५ |
Hindi | 55 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पुरिमपच्छिमताणं तित्थगराणं पंचजामस्स पणवीसं भावणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
१. इरियासमिई, २. मणगुत्ती, ३. वयगुत्ती, ४. आलोय-भायण-भोयणं, ५. आदाण-भंड-मत्त-निक्खेवणासमिई।
१. अनुवीति-भासणया, २. कोहविवेगे, ३. लोभविवेगे, ४. भयविवेगे, ५. हासविवेगे।
१. उग्गहअणुण्णवणता, २. उग्गहसीमजाणणता, ३. सयमेवउग्गहअणुगेण्हणता, ४. साहम्मियउग्गहं अणुन्नविय परिभुंजणता, ५. साधारणभत्तपानं अणुन्नविय परिभुंजणता।
१. इत्थीपसुपंडगसंसत्तसयणासणवज्जणया, २. इत्थीकहविवज्जणया, ३. इत्थीए इंदियाण आलोयणवज्जणया, ४. पुव्वरयपुव्वकीलिआणं अननुसरणया, ५. पणीताहार विवज्जणया।
१. सोइंदियरागोवरई, २. चक्खिंदियरागोवरई, Translated Sutra: प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों के (द्वारा उपदिष्ट) पंचयाम की पच्चीस भावनाएं कही गई हैं। जैसे – (प्राणा – तिपात – विरमण महाव्रत की पाँच भावनाएं – ) १. ईर्यासमिति, २. मनोगुप्ति, ३. वचनगुप्ति, ४. आलोकितपान – भोजन, ५. आदानभांड – मात्रनिक्षेपणासमिति। (मृषावाद – विरमण महाव्रत की पाँच भावनाएं – ) १. अनुवीचिभाषण २. क्रोध – विवेक, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-२९ |
Hindi | 63 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एगूणतीसइविहे पावसुयपसंगे णं पन्नत्ते, तं जहा–
भोमे उप्पाए सुमिणे अंतलिक्खे अंगे सरे वंजणे लक्खणे।
भोमे तिविहे पन्नत्ते, तं जहा– सुत्ते वित्ती वत्तिए, एवं एक्केक्कं तिविहं। विकहानुजोगे विज्जाणुजोगे मंताणुजोगे जोगाणुजोगे अन्नतित्थियपवत्ताणुजोगे।
आसाढे णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
भद्दवए णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
कत्तिए णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
पोसे णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
फग्गुणे णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं राइंदियग्गेणं पन्नत्ते।
वइसाहे णं मासे एकूणतीसराइंदिआइं Translated Sutra: पापश्रुतप्रसंग – पापों के उपार्जन करने वाले शास्त्रों का श्रवण – सेवन उनतीस प्रकार का है। जैसे – भौमश्रुत, उत्पातश्रुत, स्वप्नश्रुत, अन्तरिक्षश्रुत, अंगश्रुत, स्वरश्रुत, व्यंजनश्रुत, लक्षणश्रुत। भौमश्रुत तीन प्रकार का है, जैसे – सूत्र, वृत्ति और वार्तिक। इन तीन भेदों से उपर्युक्त भौम, उत्पात आदि आठों प्रकार | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३० |
Hindi | 94 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे कहाहिगरणाइं, संपउंजे पुणो पुणो ।
सव्वतित्थाण भेयाय, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो पुनः पुनः स्त्री – कथा, भोजन – कथा आदि विकथाएं करके मंत्र – यंत्रादि का प्रयोग करता है या कलह करता है, और संसार से पार ऊतारने वाले सम्यग्दर्शनादि सभी तीर्थों के भेदन करने के लिए प्रवृत्ति करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३४ |
Hindi | 110 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पन्नत्ता, तं जहा–१. अवट्ठिए केसमंसुरोमनहे। २. निरामया निरुवलेवा गायलट्ठी। ३. गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए। ४. पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे। ५. पच्छन्ने आहारनीहारे, अद्दिस्से मंसचक्खुणा। ६. आगासगयं चक्कं। ७. आगासगयं छत्तं। ८. आगासियाओ सेयवर-चामराओ। ९. आगासफालियामयं सपायपीढं सीहासणं। १०. आगासगओ कुडभीसहस्सपरि-मंडिआभिरामो इंदज्झओ पुरओ गच्छइ। ११. जत्थ जत्थवि य णं अरहंता भगवंतो चिट्ठंति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थवि य णं तक्खणादेव संछन्नपत्तपुप्फपल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ। १२. ईसिं पिट्ठओ मउडठाणंमि तेयमंडलं Translated Sutra: बुद्धों के अर्थात् तीर्थंकर भगवंतों के चौंतीस अतिशय कहे गए हैं। जैसे – १. नख और केश आदि का नहीं बढ़ना। २. रोगादि से रहित, मल रहित निर्मल देहलता होना। ३. रक्त और माँस का गाय के दूध के समान श्वेत वर्ण होना। ४. पद्मकमल के समान सुगन्धित उच्छ्वास निःश्वास होना। ५. माँस – चक्षु से अदृश्य प्रच्छन्न आहार और नीहार होना। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-३५ |
Hindi | 111 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] पणतीसं सच्चवयणाइसेसा पन्नत्ता।
कुंथू णं अरहा पणतीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
दत्ते णं वासुदेवे पणतीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
नंदने णं बलदेवे पणतीसं धनूइं उड्ढं उच्चत्तेणं होत्था।
सोहम्मे कप्पे सुहम्माए सभाए माणवए चेइयक्खंभे हेट्ठा उवरिं च अद्धतेरस-अद्धतेरस जोयणाणि वज्जेत्ता मज्झे पणतीस जोयणेसु वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु जिन-सकहाओ पन्नत्ताओ।
बिंतियचउत्थीसु–दोसु पुढवीसु पणतीसं निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता। Translated Sutra: पैंतीस सत्यवचन के अतिशय कहे गए हैं। कुन्थु अर्हन् पैंतीस धनुष ऊंचे थे। दत्त वासुदेव पैंतीस धनुष ऊंचे थे। नन्दन बलदेव पैंतीस धनुष ऊंचे थे। सौधर्म कल्प में सुधर्मासभा के माणवक चैत्यस्तम्भ में नीचे और ऊपर साढ़े बारह – साढ़े बारह योजन छोड़ कर मध्यवर्ती पैंतीस योजनों में, वज्रमय, गोल, वर्तुलाकार पेटियों में जिनों | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-४२ |
Hindi | 118 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे बायालीसं वासाइं साहियाइं सामण्णपरियागं पाउणित्त सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिनिव्वुडे सव्वदुक्खप्पहीणे।
जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स पुरत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथूभस्स णं आवासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्ले चरिमंते, एस णं बायालीसं जोयणसहस्साइं अबाहाते अंतरे पन्नत्ते।
एवं चउद्दिसिं पि दओभासे संखे दयसीमे य।
कालोए णं समुद्दे बायालीसं चंदा जोइंसु वा जोइंति वा जोइस्संति वा, बायालीसं सूरिया पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा।
संमुच्छिमभुयपरिसप्पाणं उक्कोसेणं बायालीसं वाससहस्साइं ठिई पन्नत्ता।
नामे णं कम्मे बायालीसविहे पन्नत्ते, तं जहा– Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर कुछ अधिक बयालीस वर्ष श्रमण पर्याय पालकर सिद्ध, बुद्ध यावत् (कर्म – मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और) सर्व दुःखों से रहित हुए। जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप की जगती की बाहरी परिधि के पूर्वी चरमान्त भाग से लेकर वेलन्धर नागराज के गोस्तूभ नामक आवास पर्वत के पश्चिमी चरमान्त भाग तक मध्यवर्ती क्षेत्र | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय-५४ |
Hindi | 132 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] भरहेरवएसु णं वासेसु एगमेगाए ओसप्पिणीए एगमेगाए उस्सप्पिणीए चउप्पन्नं-चउप्पन्नं उत्तमपुरिसा उप्पज्जिंसु वा उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा, तं जहा–चउवीसं तित्थकरा, बारस चक्कवट्टी, नव बलदेवा, नव वासुदेवा।
अरहा णं अरिट्ठनेमी चउप्पन्नं राइंदियाइं छउमत्थपरियागं पाउणित्ता जिणे जाए केवली सव्वण्णू सव्वभावदरिसी।
समणे भगवं महावीरे एगदिवसेणं एगनिसेज्जाए चउप्पण्णाइं वागरणाइं वागरित्था।
अणंतस्स णं अरहओ चउप्पन्नं गणा चउप्पन्नं गणहरा होत्था। Translated Sutra: भरत और ऐरवत क्षेत्रों में एक एक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल में चौपन चौपन उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए हैं, उत्पन्न होते हैं और उत्पन्न होंगे। जैसे – चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलदेव और नौ वासुदेव। अरिष्टनेमि अर्हन् चौपन रात – दिन छद्मस्थ श्रमणपर्याय पालकर केवली, सर्वज्ञ, सर्वभावदर्शी जिन हुए। श्रमण | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 213 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] समणे भगवं महावीरे तित्थगरभवग्गहणाओ छट्ठे पोट्टिलभवग्गहणे एगं वासकोडिं सामण्णपरियागं पाउणित्ता सहस्सारे कप्पे सव्वट्ठे विमाने देवत्ताए उववन्ने। Translated Sutra: श्रमण भगवान महावीर तीर्थंकर भव ग्रहण करने से पूर्व छठे पोट्टिल के भव में एक कोटि वर्ष श्रमण – पर्याय पालकर सहस्रार कल्प में सर्वार्थविमान में देवरूप से उत्पन्न हुए थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 220 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं समवाए?
समवाए णं ससमया सूइज्जंति परसमया सूइज्जंति ससमयपरसमया सूइज्जंति जीवा सूइज्जंति अजीवा सूइज्जंति जीवाजीवा सूइज्जंति लोगे सूइज्जति अलोगे सूइज्जति लोगालोगे सूइज्जति।
समवाए णं एकादियाणं एगत्थाणं एगुत्तरियपरिवुड्ढीय, दुवालसंगस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समणुगाइज्जइ, ठाणगसयस्स बारसविहवित्थरस्स सुयणाणस्स जगजीवहियस्स भगवओ समासेणं समायारे आहिज्जति, तत्थ य नानाविहप्पगारा जीवाजीवा य वण्णिया वित्थरेण अवरे वि य बहुविहा विसेसा नरग-तिरिय-मणुय-सुरगणाणं अहारुस्सास-लेस-आवास-संख-आययप्पमाण उववाय-चयन-ओगाहणोहि-वेयण-विहाण-उवओग-जोग-इंदिय-कसाय, विविहा य Translated Sutra: समवायाङ्ग क्या है ? इसमें क्या वर्णन है ? समवायाङ्ग में स्वसमय सूचित किये जाते हैं, परसमय सूचित किये जाते हैं और स्वसमय – परसमय सूचित किये जाते हैं। जीव सूचित किये जाते हैं, अजीव सूचित किये जाते हैं और जीव – अजीव सूचित किये जाते हैं। लोक सूचित किया जाता है, अलोक सूचित किया जाता है और लोक – अलोक सूचित किया जाता है। समवायाङ्ग | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 225 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं अनुत्तरोववाइयदसाओ?
अनुत्तरोववाइयदसासु णं अनुत्तरोववाइयाणं नगराइं उज्जाणाइं चेइयाइं वणसंडाइं रायाणो अम्मापियरो समोसरणाइं धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइय-परलोइया इड्ढिविसेसा भोगपरिच्चाया पव्वज्जाओ सुयपरिग्गहा तवोवहाणाइं परियागा संलेहणाओ भत्त पच्चक्खाणाइं पाओवगमणाइं अणुत्तरोववत्ति सुकुल-पच्चायाती पुण बोहिलाभो अंतकिरियाओ य आघविज्जंति।
अनुत्तरोववातियदसासु णं तित्थकरसमोसरणाइं परममंगल्लजगहियाणि जिनातिसेसा य बहुविसेसा जिनसीसाणं चेव समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसहसेण्ण-रिउ-बल-पमद्दणाणं तव-दित्त-चरित्त-नाण-सम्मत्तसार-विविह-प्पगार-वित्थर-पसत्थगुण-संजुयाणं Translated Sutra: अनुत्तरोपपातिकदशा क्या है ? इसमें क्या वर्णन है ? अनुत्तरोपपातिकदशा में अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले महा अनगारों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखंड, राजगण, माता – पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथाएं, इहलौकिक पारलौकिक विशिष्ट ऋद्धियाँ, भोग – परित्याग, प्रव्रज्या, श्रुत का परिग्रहण, तप – उपधान, पर्याय, प्रतिमा, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 226 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पण्हावागरणाणि?
पण्हावागरणेसु अट्ठुत्तरं पसिणसयं अट्ठुत्तरं अपसिणसयं अट्ठुत्तरं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति।
पण्हावागरणदसासु णं ससमय-परसमय-पन्नवय-पत्तेयबुद्ध-विविहत्थ-भासा-भासियाणं अतिसय-गुण-उवसम-नाणप्पगार-आयरिय-भासियाणं वित्थरेणं वीरमहेसीहिं विविहवित्थर-भासियाणं च जगहियाणं अद्दागंगुट्ठ-बाहु-असि-मणि-खीम-आतिच्चमातियाणं विविहमहापसिण-विज्जा-मनपसिणविज्जा-देवय-पओगपहाण-गुणप्पगासियाणं सब्भूयविगुणप्पभाव-नरगणमइ-विम्हयकारीणं अतिसयमतीतकालसमए दमतित्थकरुत्तमस्स ठितिकरण-कारणाणं दुरहिगमदुर- वगाहस्स Translated Sutra: प्रश्नव्याकरण अंग क्या है – इसमें क्या वर्णन है ? प्रश्नव्याकरण अंग में एक सौ आठ प्रश्नों, एक सौ आठ अप्रश्नों और एक सौ आठ प्रश्ना – प्रश्नों को, विद्याओं को, अतिशयों को तथा नागों – सुपर्णों के साथ दिव्य संवादों को कहा गया है। प्रश्नव्याकरणदशा में स्वसमय – परसमय के प्रज्ञापक प्रत्येकबुद्धों के विविध अर्थों | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 232 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: –सेत्तं पुव्वगए।
से किं तं अणुओगे?
अणुओगे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–मूलपढमाणुओगे य गंडियाणुओगे य।
से किं तं मूलपढमाणुओगे?
मूलपढमाणुओगे–एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा, देवलोगगमणाणि, आउं, चव-णाणि, जम्मणाणि य अभिसेया, रायवरसिरीओ, सीयाओ पव्वज्जाओ, तवा य भत्ता, केवलनाणु-प्पाता, तित्थपवत्तणाणि य, संघयणं, संठाणं, उच्चत्तं, आउयं, वण्णविभातो, सीसा, गणा, गणहरा य, अज्जा, पवत्तिणीओ–संघस्स चउव्विहस्स जं वावि परिमाणं, जिणमनपज्जव-ओहिनाणी सम्मत्तसुयनाणिणो य, वाई, अणुत्तरगई य जत्तिया, जत्तिया सिद्धा, पातोवगता य जे जहिं जत्तियाइं भत्ताइं छेयइत्ता अंतगडा मुनिवरुत्तमा तम-रओघ-विप्पमुक्का Translated Sutra: वह अनुयोग क्या है – उसमें क्या वर्णन है ? अनुयोग दो प्रकार का कहा गया है। जैसे – मूलप्रथमानुयोग और गंडिकानुयोग। मूलप्रथमानुयोग में क्या है ? मूलप्रथमानुयोग में अरहन्त भगवंतों के पूर्वभव, देवलोकगमन, देवभव सम्बन्धी आयु, च्यवन, जन्म, जन्माभिषेक, राज्यवरश्री, शिबिका, प्रव्रज्या, तप, भक्त, केवलज्ञानोत्पत्ति, वर्ण, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 263 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं पियरो होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस पिता हुए। जैसे १.नाभि – राय, २. जितशत्रु, ३. जितारि, ४. संवर, ५. मेघ, ६. घर, ७. प्रतिष्ठ, ८. महासेन ९. सुग्रीव, १०. दृढ़रथ, ११. विष्णु, १२. वसुपूज्य, १३. कृतवर्मा, १४. सिंहसेन, १५. भानु, १६. विश्वसेन, १७. सूरसेन, १८. सुदर्शन, १९. कुम्भराज, २०. सुमित्र, २१. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 268 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगराणं मायरो होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी में चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस माताएं हुई हैं। जैसे – १. मरु – देवी, २. विजया, ३. सेना, ४. सिद्धार्था, ५. मंगला, ६. सुसीमा, ७. पृथ्वी, ८. लक्ष्मणा, ९. रामा, १०. नन्दा, ११. विष्णु, १२. जया, १३. श्यामा, १४. सुयशा, १५. सुव्रता, १६. अचिरा, १७. श्री, १८. देवी, १९. प्रभावती, २०. पद्मा, २१. वप्रा, २२. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 271 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा होत्था, तं जहा–उसभे अजिते संभवे अभिनंदनेसुमत्ती पउमप्पभे सुपासे चंदप्पहे सुविही सीतले सेज्जंसे वासुपुज्जे विमले अनंते धम्मे संती कुंथू अरे मल्ली मुनिसुव्वए नमी अरिट्ठनेमी पासे वद्धमाणे य।
एएसिं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पुव्वभविया नामधेज्जा होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीस तीर्थंकरों के पूर्वभव के चौबीस नाम थे। जैसे – १. वज्रनाभ, २. विमल, ३. विमलवाहन, ४. धर्मसिंह, ५. सुमित्र, ६. धर्ममित्र, ७. सुन्दरबाहु, ८. दीर्घबाहु, ९. युगबाहु, १०. लष्ठबाहु, ११. दत्त, १२. इन्द्रदत्त, १३. सुन्दर, १४. माहेन्द्र, १५. सिंहस्थ, १६. मेघरथ, १७. रुक्मी, १८. सुदर्शन, १९. नन्दन, २०. सिंहगिरि, २१. अदीनशत्रु, २२. शंख, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 276 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं चउवीसाए तित्थकराणं चउवीसं सीया होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस शिबिकाएं (पालकियाँ) थीं। (जिन पर बिराजमान होकर तीर्थंकर प्रव्रज्या के लिए वन में गए।) जैसे – १. सुदर्शना शिबिका, २. सुप्रभा, ३. सिद्धार्था, ४. सुप्रसिद्धा, ५. विजया, ६. वैजयन्ती, ७. जयन्ती, ८. अपराजिता, ९. अरुणप्रभा, १०. चन्द्रप्रभा, ११. सूर्यप्रभा, १२. अग्निप्रभा, १३. सुप्रभा, १४. विमला, १५. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 281 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पुव्विं उक्खित्ता, मानुसेहिं साहट्ठरोमकूवेहिं ।
पच्छा वहंति सीयं, असुरिंदसुरिंदनागिंदा ॥ Translated Sutra: जिन – दिक्षा – ग्रहण करने के लिए जाते समय तीर्थंकरों की इन शिबिकाओं को सबसे पहले हर्ष से रोमांचित मनुष्य अपने कंधों पर उठाकर ले जाते हैं। पीछे असुरेन्द्र, सुरेन्द्र और नागेन्द्र उन शिबिकाओं को लेकर चलते हैं। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 284 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उसभो य विनीयाए, बारवईए अरिट्ठवरनेमी ।
अवसेसा तित्थयरा, निक्खंता जम्मभूमीसु ॥ Translated Sutra: ऋषभदेव विनीता नगरी से, अरिष्टनेमि द्वारावती से और शेष सर्व तीर्थंकर अपनी – अपनी जन्मभूमियों से दीक्षा – ग्रहण करने के लिए नीकले थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 287 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उग्गाणं भोगाणं, राइण्णाणं च खत्तियाणं च ।
चउहिं सहस्सेहिं उसभो, सेसा उ सहस्सपरिवारा ॥ Translated Sutra: भगवान ऋषभदेव चार हजार उग्र, भोग राजन्य और क्षत्रिय जनों के परिवार के साथ दीक्षा ग्रहण करने के लिए घर से नीकले थे। शेष उन्नीस तीर्थंकर एक – एक हजार पुरुषों के साथ नीकले थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 288 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुमइत्थ निच्चभत्तेण, निग्गओ वासुपुज्जो जिनो चउत्थेणं ।
पासो मल्ली वि य, अट्ठमेण सेसा उ छट्ठेणं ॥ Translated Sutra: सुमति देव नित्य भक्त के साथ, वासुपूज्य चतुर्थ भक्त के साथ, पार्श्व और मल्ली अष्टमभक्त के साथ और शेष बीस तीर्थंकर षष्ठभक्त के नियम के साथ दीक्षित हुए थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 289 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एएसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमभिक्खादया होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीसो तीर्थंकरों को प्रथम बार भिक्षा देने वाले चौबीस महापुरुष हुए हैं। जैसे – १. श्रेयांस, २. ब्रह्मदत्त, ३. सुरेन्द्रदत्त, ४. इन्द्रदत्त, ५. पद्म, ६. सोमदेव, ७. माहेन्द्र, ८. सोमदत्त, ९. पुष्य, १०. पुनर्वसु, ११. पूर्णनन्द, १२. सुनन्द, १३. जय, १४. विजय, १५. धर्मसिंह, १६. सुमित्र, १७. वर्गसिंह, १८. अपराजित, १९. विश्वसेन, २०. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 295 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उसभस्स पढमभिक्खा, खोयरसो आसि लोगनाहस्स ।
सेसाणं परमन्नं, अमयरसरसोवमं आसि ॥ Translated Sutra: लोकनाथ ऋषभदेव को प्रथम भिक्षा में इक्षुरस प्राप्त हुआ। शेष सभी तीर्थंकरों को प्रथम भिक्षा में अमृत – रस के समान परम – अन्न (खीर) प्राप्त हुआ। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 296 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वेसिंपि जिणाणं, जहियं लद्धाओ पढमभिक्खातो ।
तहियं वसुधाराओ, सरीरमेत्तीओ वुट्ठाओ ॥ Translated Sutra: सभी तीर्थंकर जिनों ने जहाँ जहाँ प्रथम भिक्षा प्राप्त की, वहाँ वहाँ शरीरप्रमाण ऊंची वसुधारा की वर्षा हुई। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 297 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं चेइयरुक्खा होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस चैत्यवृक्ष थे। जैसे – १. न्यग्रोध (वट), २. सप्तपर्ण, ३. शाल, ४. प्रियाल, ५. प्रियंगु, ६. छत्राह, ७. शिरीष, ८. नागवृक्ष, ९. साली १०. पिलंखुवृक्ष। तथा – ११. तिन्दुक, १२. पाटल, १३. जम्बु, १४. अश्वत्थ (पीपल), १५. दधिपर्ण, १६. नन्दीवृक्ष, १७. तिलक, १८. आम्रवृक्ष, १९. अशोक, २०. चम्पक, २१. बकुल, २२. वेत्रसवृक्ष, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 302 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तिन्ने व गाउयाइं, चेइयरुक्खो जिनस्स उसभस्स ।
सेसाणं पुण रुक्खा, सरीरतो बारसगुणा उ ॥ Translated Sutra: ऋषभ जिन का चैत्यवृक्ष तीन गव्यूति (कोश) ऊंचा था। शेष तीर्थंकरों के चैत्यवृक्ष उनके शरीर की ऊंचाई से बारह गुण ऊंचे थे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 304 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसीसा होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस प्रथम शिष्य थे। जैसे – १. ऋषभदेव के प्रथम शिष्य ऋषभसेन और अजितजिन के प्रथम शिष्य सिंहसेन थे। पुनः क्रम से ३. चारु, ४. वज्रनाभ, ५. चमर, ६. सुव्रत, ७. विदर्भ, ८. दत्त, ९. वराह, १०. आनन्द, ११. गोस्तुभ, १२. सुधर्म, १३. मन्दर, १४. यश, १५. अरिष्ट, १६. चक्ररथ, १७. स्वयम्भू, १८. कुम्भ, १९. इन्द्र, २०. कुम्भ, २१. | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 308 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पढमसिस्सिणीओ होत्था, तं जहा– Translated Sutra: इन चौबीस तीर्थंकरों की चौबीस प्रथम शिष्याएं थीं। जैसे – १. ब्राह्मी, २. फल्गु, ३. श्यामा, ४. अजिता, ५. काश्यपी, ६. रति, ७. सोमा, ८. सुमना, ९. वारुणी, १०. सुलसा, ११. धारिणी, १२. धरणी, १३. धरणिधरा, १४. पद्मा, १५. शिवा, १६. शुचि, १७. अंजुका, १८. भावितात्मा, १९. बन्धुमती, २०. पुष्पवती, २१. आर्या अमिला, २२. यशस्विनी, २३. पुष्पचूला और २४. आर्या | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 327 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमाए ओसप्पिणीए नव दसारमंडला होत्था, तं जहा–उत्तमपुरिसा मज्झिमपुरिसा पहाणपुरिसा ओयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी छायंसी कंता सोमा सुभगा पियदंसणा सुरूवा सुहसीला सुहाभिगमा सव्वजण-नयन-कंता ओहबला अतिबला महाबला अनिहता अपराइया सत्तुमद्दणा रिपुसहस्समाण-महणा सानुक्कोसा अमच्छरा अचवला अचंडा मियमंजुल-पलाव-हसिया गंभीर-मधुर-पडिपुण्ण-सच्चवयणा अब्भुवगय-वच्छला सरण्णा लक्खण-वंजण-गुणोववेया मानुम्मान-पमाण-पडिपुण्ण-सुजात-सव्वंग-सुंदरंगा ससि-सोमागार-कंत-पिय-दंसणा अमसणा पयंडदंडप्पयार-गंभीर-दरिसणिज्जा तालद्धओ-व्विद्ध-गरुल-केऊ महाधणु-विकड्ढगा Translated Sutra: इस जम्बूद्वीप में इस भारतवर्ष के इस अवसर्पिणीकाल में नौ दशारमंडल (बलदेव और वासुदेव समुदाय) हुए हैं। सूत्रकार उनका वर्णन करते हैं – वे सभी बलदेव और वासुदेव उत्तम कुल में उत्पन्न हुए श्रेष्ठ पुरुष थे, तीर्थंकरादि शलाका – पुरुषों के मध्य – वर्ती होने से मध्यम पुरुष थे, अथवा तीर्थंकरों के बल की अपेक्षा कम और सामान्य | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 354 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए ओसप्पिणीए दस कुलगरा भविस्संति, तं जहा–
*विमलवाहने सीमंकरे, सीमंधरे खेमंकरे खेमंधरे ।
दढधनू दसधनू, सयधनू पडिसूई संमुइत्ति।*
जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा भविस्संति, तं जहा– Translated Sutra: इसी जम्बूद्वीप के ऐरवत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में दश कुलकर होंगे – १. विमलवाहन, २. सीमंकर ३. सीमंधर, ४. क्षेमंकर, ५. क्षेमंधर, ६. दृढ़धनु, ७. दशधनु, ८. शतधनु, ९. प्रतिश्रुति और १०. सुमति। इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर होंगे। | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 355 | Gatha | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] महापउमे सूरदेवे, सुपासे य सयंपभे ।
सव्वानुभूई अरहा, देवउत्ते य होक्खति ॥ Translated Sutra: १. महापद्म, २. सूरदेव, ३. सुपार्श्व, ४. स्वयंप्रभ, ५. सर्वानुभूति, ६. देवश्रुत, ७. उदय, ८. पेढ़ालपुत्र, ९. प्रोष्ठिल, १०. शतकीर्ति, ११. मुनिसुव्रत, १२. सर्वभाववित् , १३. अमम, १४. निष्कषाय, १५. निष्पुलाक, १६. निर्मम, १७. चित्रगुप्त, १८. समाधिगुप्त,१९. संवर, २०. अनिवृत्ति, २१. विजय, २२. विमल, २३. देवोपपात और २४. अनन्तविजय ये चौबीस तीर्थंकर | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 360 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं पुव्वभविया चउवीसं नामधेज्जा भविस्संति, तं जहा– Translated Sutra: इन भविष्यकालीन चौबीस तीर्थंकरों के पूर्व भव के चौबीस नाम इस प्रकार हैं, यथा – १. श्रेणिक, २. सुपार्श्व, ३. उदय, ४. प्रोष्ठिल अनगार, ५. दृढ़ायु, ६. कार्तिक, ७. शंख, ८. नन्द, ९. सुनन्द, १०. शतक, ११. देवकी, १२. सात्यकि, १३. वासुदेव, १४. बलदेव, १५. रोहिणी, १६. सुलसा, १७. रेवती, १८. शताली, १९. भयाली, २०. द्वीपायन, २१. नारद, २२. अंबड, २३. स्वाति, | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 365 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एतेसि णं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं पियरो भविस्संति, चउवीसं मायरो भविस्संति,
चउवीसं पढमसीमा भविस्संति, चउवीसं पढमसिस्सिणीओ भविस्संति,
चउवीसं पढमभिक्खादा भविस्संति, चउवीसं चेइयरुक्खा भविस्संति।
जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे आगमेस्साए उस्सप्पिणीए बारस चक्कवट्टी भविस्संति, तं जहा– Translated Sutra: उक्त चौबीस तीर्थंकरों के चौबीस पिता होंगे, चौबीस माताएं होंगी, चौबीस प्रथम शिष्य होंगे, चौबीस प्रथम शिष्याएं होंगी, चौबीस प्रथम भिक्षा – दाता होंगे और चौबीस चैत्य वृक्ष होंगे। इसी जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में आगामी उत्सर्पिणी में बारह चक्रवर्ती होंगे। जैसे – | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 374 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जंबुद्दीवे णं दीवे एरवए वासे आगमिस्साए उस्सप्पिणीए चउवीसं तित्थकरा भविस्संति, तं जहा– Translated Sutra: इसी जम्बूद्वीप के ऐरवत वर्ष में आगामी उत्सर्पिणी काल में चौबीस तीर्थंकर होंगे। जैसे – १. सुमंगल, २. सिद्धार्थ, ३. निर्वाण, ४. महायश, ५. धर्मध्वज, ये अरहन्त भगवंत आगामी काल में होंगे, पुनः ६. श्रीचन्द्र, ७. पुष्पकेतु, ८. महाचन्द्र केवली और ९. श्रुतसागर अर्हत् होंगे, पुनः १०. सिद्धार्थ, ११. पूर्णघोष, १२. महाघोष केवली | |||||||||
Samavayang | समवयांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवाय प्रकीर्णक |
Hindi | 383 | Sutra | Ang-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इच्चेयं एवमाहिज्जति, तं जहा– कुलगरवंसेति य, एवं तित्थगरवंसेति य चक्कवट्टिवंसेति व दसारबंधेति य गणधर-वंसेति य इसिवंसेति य जतिवंसेति य मुनिवंसेति य सुतेति वा सुतंगेति वा सुयसमासेति वा सुयखंधेति वा समाएति वा संखेति वा। समत्तमंगमक्खायं अज्झयणं। Translated Sutra: इस प्रकार यह अधिकृत समवायाङ्ग सूत्र अनेक प्रकार के भावों और पदार्थों को वर्णन करने के रूप से कहा गया है। जैसे – इसमें कुलकरों के वंशों का वर्णन किया गया है। इसी प्रकार तीर्थंकरों के वंशों का, चक्रवतियों के वंशों का, दशार – मंडलों का, गणधरों के वंशों का, ऋषियों के वंशों का, यतियों के वंशों का और मुनियों के वंशों | |||||||||
Sanstarak | संस्तारक | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं, संस्तारकगुणा |
Hindi | 4 | Gatha | Painna-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] वेरुलिओ व्व मणीणं, गोसीसं चंदणं व गंधाणं ।
जह व रयणेसु वइरं, तह संथारो सुविहियाणं ॥ Translated Sutra: मणिकी सर्व जाति के लिए जैसे वैडूर्य, सर्व तरह के खुशबूदार द्रव्य के लिए जैसे चन्दन और रत्न में जैसे वज्र होता है तथा – सर्व उत्तम पुरुषों में जैसे अरिहंत परमात्मा और जगत के सर्व स्त्री समुदाय में जैसे तीर्थंकरों की माता होती है वैसे आराधना के लिए इस संथारा की आराधना, सुविहित आत्मा के लिए श्रेष्ठतर है। सूत्र | |||||||||
Sanstarak | संस्तारक | Ardha-Magadhi |
मङ्गलं, संस्तारकगुणा |
Hindi | 11 | Gatha | Painna-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वत्तुमलाभाणं सामन्नं चेव लाभ मन्नंति ।
परमुत्तम तित्थयरो, परमगई परमसिद्धि त्ति ॥ Translated Sutra: श्री जिनकथित श्रमणत्व, सर्व तरह के श्रेष्ठ लाभ में सर्वश्रेष्ठ लाभ गिना जाता है; कि जिसके योग से श्री तीर्थंकरत्व, केवलज्ञान और मोक्ष, सुख प्राप्त होता है। और फिर परलोक के हित में रक्त और क्लिष्ट मिथ्यात्वी आत्मा को भी मोक्ष प्राप्ति की जड़ जो सम्यक्त्व गिना जाता है, वो सम्यक्त्व, देशविरति का और सम्यग्ज्ञान |