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Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 49 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] तमतिमिरपडल विद्धंसणस्स सुरगणनरिंदमहियस्स । सीमाधरस्स वंदे पप्फोडियमोहजालस्स ॥

Translated Sutra: अज्ञान समान अंधेरे के समूह को नष्ट करनेवाले, देव और नरेन्द्र के समूह से पूजनीय और मोहनीय कर्म के सर्व बन्धन को तोड़ देनेवाले ऐसे मर्यादावंत यानि आगम युक्त श्रुतधर्म को मैं वंदन करता हूँ।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ सामायिक

Hindi 1 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र]

Translated Sutra: अरिहंत को नमस्कार हो, सिद्ध को नमस्कार हो, आचार्य को नमस्कार हो, उपाध्याय को नमस्कार हो, लोक में रहे सर्व साधु को नमस्कार हो, इस पाँच (परमेष्ठि) को किया गया नमस्कार सर्व पाप का नाशक है। सर्व मंगल में प्रथम (उत्कृष्ट) मंगल है। अरिहंत शब्द के लिए तीन पाठ हैं। अरहंत, अरिहंत और अरूहंत। यहाँ अरहंत शब्द का अर्थ है – जो
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ सामायिक

Hindi 2 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।

Translated Sutra: हे भगवंत ! (हे पूज्य !) में (आपकी साक्षी में) सामायिक का स्वीकार करता हूँ यानि समभाव की साधना करता हूँ। जिन्दा हूँ तब तक सर्व सावद्य (पाप) योग का प्रत्याख्यान करता हूँ। यानि मन, वचन, काया की अशुभ प्रवृत्ति न करने का नियम करता हूँ। (जावज्जीव के लिए) मन से, वचन से, काया से (उस तरह से तीन योग से पाप व्यापार) मैं खुद न करूँ,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ वंदन

Hindi 10 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि अहोकायं काय-संफासं खमणिज्जो मे किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो जत्ता भे जवणिज्जं च भे, खामेमि खमासमणो देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ तस्स खमासमणो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।

Translated Sutra: (शिष्य कहता है) हे क्षमा (आदि दशविध धर्मयुक्त) श्रमण, (हे गुरुदेव !) आपको मैं इन्द्रिय और मन की विषय विकार के उपघात रहित निर्विकारी और निष्पाप प्राणातिपात आदि पापकारी प्रवृत्ति रहित काया से वंदन करना चाहता हूँ। मुझे आपकी मर्यादित भूमि में (यानि साड़े तीन हाथ अवग्रह रूप – मर्यादा के भीतर) नजदीक आने की (प्रवेश करने
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 12 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चत्तारि मंगलं अरहंता मंगलं सिद्धा मंगलं साहू मंगलं केवलिपन्नत्तो धम्मो मंगलं।

Translated Sutra: मंगल – यानि संसार से मुझे पार उतारे वो या जिससे हित की प्राप्ति हो वो या जो धर्म को दे वो (ऐसे ‘मंगल’ – चार हैं) अरहंत, सिद्ध, साधु और केवलि प्ररूपित धर्म। (यहाँ और आगे के सूत्र – १३, १४ में ‘साधु’ शब्द के अर्थ में आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, गणि आदि सबको समझ लेना। और फिर केवली प्ररूपित धर्म से श्रुत धर्म और चारित्र धर्म
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 15 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ अइयारो कओ काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: मैं दिवस सम्बन्धी अतिचार का प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ, यह अतिचार सेवन काया से – मन से – वचन से (किया गया हो), उत्सूत्र भाषण – उन्मार्ग सेवन से (किया हो), अकल्प्य या अकरणीय (प्रवृत्ति से किया हो) दुर्ध्यान या दुष्ट चिन्तवन से (किया हो) अनाचार सेवन से, अनीच्छनीय श्रमण को अनुचित (प्रवृत्ति से किया हो।) ज्ञान, दर्शन, चारित्र,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 25 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] चउद्दसहिं भूयगामेहिं, पन्नरसहिं परमाहम्मिएहिं, सोलसहिं गाहासोलसएहिं, सत्तरसविहे असंजमे, अट्ठारसविहे अबंभे, एगूणवीसाए नायज्झयणेहिं, वीसाए असमाहिट्ठाणेहिं।

Translated Sutra: इहलोक – परलोक आदि सात भय स्थान के कारण से, जातिमद – कुलमद आदि आँठ मद का सेवन करने से, वसति – शुद्धि आदि ब्रह्मचर्य की नौ वाड़ का पालन न करने से, क्षमा आदि दशविध धर्म का पालन न करने से, श्रावक की ग्यारह प्रतिमा में अश्रद्धा करने से, बारह तरह की भिक्षु प्रतिमा धारण न करने से या उसके विषय में अश्रद्धा करने से, अर्थाय –
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 27 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तेत्तीसाए आसायणाहिं।

Translated Sutra: तैंतीस प्रकार की आशातना जो यहाँ सूत्र में ही बताई गई है उसके द्वारा लगे अतिचार, अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, साधु, साध्वी का अवर्णवाद से अबहुमान करने से, श्रावक – श्राविका की निंदा आदि से, देव – देवी के लिए कुछ भी बोलने से, आलोक – परलोक के लिए असत्‌ प्ररूपणा से, केवली प्रणित श्रुत या चारित्र धर्म की आशातना के द्वारा,
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 32 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं धम्मं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि फासेमि पालेमि अनुपालेमि तं धम्मं सद्दहंतो पत्तियंतो रोएंतो फासेंतो पालंतो अनुपालंतो तस्स धम्मस्स केवलि पन्नत्तस्स अब्भुट्ठिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए– असंजमं परियाणामि संजमं उवसंपज्जामि अबंभं परियाणामि बंभ उवसंपज्जामि अकप्पं परियाणामि कप्पं उवसंपज्जामि अन्नाणं परियाणामि नाणं उवसंपज्जामि अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि अबोहिं परियाणामि बोहिं उवसंपज्जामि अमग्गं परियाणामि मग्गं उवसंपज्जामि

Translated Sutra: उस धर्म की मैं श्रद्धा करता हूँ, प्रीति के रूप से स्वीकार करता हूँ, उस धर्म को ज्यादा सेवन की रुचि – अभिलाषा करता हूँ। उस धर्म की पालना – स्पर्शना करता हूँ। अतिचार से रक्षा करता हूँ। पुनः पुनः रक्षा करता हूँ। उस धर्म की श्रद्धा, प्रीति, रुचि, स्पर्शना, पालन, अनुपालन करते हुए मैं केवलि कथित धर्म की आराधना करने
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Hindi 35 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] खामेमि सव्वजीवे सव्वे जीवा खमंतु मे । भित्ती मे सव्वभूएसु वेरं मज्झ न केणई ॥

Translated Sutra: सभी जीव को मैं खमाता हूँ। सर्व जीव मुझे क्षमा करो और सर्व जीव के साथ मेरी मैत्री है। मुझे किसी के साथ वैर नहीं है। उस अनुसार मैंने अतिचार की निन्दा की है आत्मसाक्षी से उस पाप पर्याय की निंदा – गर्हा की है, उस पाप प्रवृत्ति की दुगंछा की है, इस प्रकार से किए गए – हुए पाप व्यापार को सम्यक्‌, मन, वचन, काया से प्रतिक्रमता
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 58 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो उवट्ठिओमि अब्भिंतरपक्खियं खामेउं इच्छं खामेमि अब्भिंतर पक्खियं पन्नरस्सण्हं दिवसाणं पन्नरसण्हं राईणं जंकिंचि अपत्तियं परपत्तियं भत्ते पाणे विनए वेयावच्चे आलावे संलावे उच्चासणे समासणे अंतरभासाए उवरिभासाए जंकिंचि मज्झ विनयपरिहीणं सुहुमं वा बायरं वा तुब्भे जाणह अहं न जाणामि तस्स मिच्छामि दुक्कडम्‌।

Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण ! मैं इच्छा रखता हूँ। (क्या ईच्छा रखता है वो बताते हैं) पाक्षिक के भीतर हुए अतिचार की क्षमा माँगने के लिए उसके सम्बन्धी निवेदन करने के लिए उपस्थित हुआ हूँ। (गुरु कहते हैं खमाओ तब शिष्य बोले) ‘‘ईच्छं’’। मैं पाक्षिक के भीतर हुए अतिचार को खमाता हूँ। पंद्रह दिन और पंद्रह रात में, आहार – पानी में, विनय
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 59 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो पिअं च मे जं मे हट्ठाणं तुट्ठाणं अप्पायं काणं अभग्गजोगाणं सुसीलाणं सुव्वयाणं सायरिय उवज्झायाणं नाणेणं दंसणेणं चरित्तेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणाणं बहुसुभेणं भे दिवसो पोसहो पक्खो वइक्कंतो अन्नो य भे कल्लालेणं पज्जुवट्ठिओ सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि –तुब्भेहिं समं।

Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण (पूज्य) ! मैं ईच्छा रखता हूँ। (क्या चाहता है वो बताता है) – और मुझे प्रिय या मंजूर भी है। जो आपका (ज्ञानादि – आराधना पूर्वक पक्ष शुरू हुआ और पूर्ण हुआ वो मुझे प्रिय है) निरोगी ऐसे आपका, चित्त की प्रसन्नतावाले, आतंक से, सर्वथा रहित, अखंड़ संयम व्यापारवाले, अठ्ठारह हजार शीलांग सहित, सुन्दर पंच महाव्रत
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 60 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो पुव्विं चेइयाइं वंदित्ता नमंसित्ता तुब्भण्हं पायमूलं विहरमाणेणं जे केई बहु देवसिया साहुणो दिट्ठा समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा वा राइणिया संपुच्छंति ओमराइणिया वंदंति अज्जया वंदंति अज्जियाओ वंदंति सावया वंदंति सावियाओ वंदंति अहंपि निसल्लो निक्कसाओत्ति-कट्टु सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि –अहमवि वंदावेमि चेइयाइं।

Translated Sutra: हे क्षमाश्रमण (पूज्य) ! मैं (आपको चैत्यवंदना एवं साधुवंदना) करवाने की ईच्छा रखता हूँ। विहार करने से पहले आपके साथ था तब मैं यह चैत्यवंदना – साधु वंदना श्रीसंघ के बदले में करता हूँ ऐसे अध्यवसाय के साथ श्री जिन प्रतिमा को वंदन नमस्कार करके और अन्यत्र विचरण करते हुए, दूसरे क्षेत्र में जो कोई काफी दिन के पर्यायवाले
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Hindi 61 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो उवट्ठिओ मि तुब्भण्हं संतिअं अहाकप्पं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा [रयहरणं वा] अक्खरं वा पयं वा गाहं वा सिलोगं वा सिलोगद्धं वा अट्ठं वा हेउं वा पसिणं वा वागरणं वा तुब्भेहिं सम्मं चिअत्तेण दिन्नं मए अविणएण पडिच्छिअं तस्स मिच्छामिदुक्कडं –आयरियसंतिअं।

Translated Sutra: हे क्षमा – श्रमण (पूज्य) ! मैं भी उपस्थित होकर मेरा निवेदन करना चाहता हूँ। आपका दिया हुआ यह सब कुछ जो मेरे लिए जरुरी है वस्त्र, पात्र, कँबल, रजोहरण एवं अक्षर, पद, गाथा, श्लोक, अर्थ, हेतु, प्रश्न, व्याकरण आदि स्थविर कल्प को योग्य और बिना माँगे आपने मुझे प्रीतिपूर्वक दिया फिर भी मैंने अविनय से ग्रहण किया वो मेरा पाप
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 63 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तत्थ समणोवासओ पुव्वामेव मिच्छत्ताओ पडिक्कमइ सम्मत्तं उवसंपज्जइ नो से कप्पइ अज्जप्पभिई अन्नउत्थिए वा अन्नउत्थिअदेवयाणि वा अन्नउत्थियपरिग्गहियाणि वा अरिहंतचेइयाणि वा वंदित्तए वा नमंसित्तए वा पुव्वि अणालत्तएणं आलवित्तए वा संलवित्तए वा तेसिं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा दाउं वा अनुप्पयाउं वा नन्नत्थ रायाभिओगेणं गणाभिओगेणं बलाभिओगेणं देवयाभिओगेणं गुरुनिग्गहेणं वित्तीकंतारेणं से य सम्मत्ते पसत्थ-समत्त-मोहणिय-कम्माणुवेयणोवसमखयसमुत्थे पसमसंवेगाइलिंगे सुहे आयपरिणामे पन्नत्ते सम्मत्तस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा न समायरियव्वा तं

Translated Sutra: वहाँ (श्रमणोपासकों) – श्रावक पूर्वे यानि श्रावक बनने से पहले मिथ्यात्व छोड़ दे और सम्यक्त्व अंगीकार करे। उनको न कल्पे। (क्या न कल्पे वो बताते हैं) आजपर्यन्त अन्यतीर्थिक के देव, अन्य तीर्थिक की ग्रहण की हुई अरिहंत प्रतिमा को वंदन नमस्कार करना न कल्पे। पहले भले ही ग्रहण न की हो लेकिन अब वो (प्रतिमा) अन्यतीर्थिक
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 72 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अनत्थदंडे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा– अवज्झाणारिए पमत्तायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवएसे अनत्थदंडवेरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– कंदप्पे कुक्कुइए मोहरिए संजुत्ताहिगरणे उवभोगपरिभोगाइरेगे।

Translated Sutra: अनर्थदंड़ चार प्रकार से बताया है वो इस प्रकार – अपध्यान – प्रमादाचरण – हत्याप्रदान और पापकर्मोपदेश। अनर्थदंड़ विरमण व्रत धारक श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए वो इस प्रकार – काम विकार सम्बन्ध से हुआ अतिचार, कुत्सित चेष्टा, मौखर्य, वाचालता, हत्या अधिकरण का इस्तमाल, भोग का अतिरेक।
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 79 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पोसहोववासे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा– आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे, पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए, अप्पडि-लेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमीओ, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमीओ, पोसहोववासस्स सम्मं अननुपालणया।

Translated Sutra: पौषधोपवास चार तरह से बताया है वो इस प्रकार – आहार पौषध, देह सत्कार पौषध, ब्रह्मचर्य पौषध और अव्यापार पौषध। पौषधोपवास, व्रतधारी श्रमणोपासक को यह पाँच अतिचार जानने चाहिए, वो इस प्रकार – अप्रतिलेखित दुष्प्रतिलेखित, शय्या संथारो, अप्रमार्जित, दुष्प्रमार्जित मल – मूत्र त्याग भूमि, पौषधोपवास की सम्यक्‌ परिपालना
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 81 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इत्थं पुण समणोवासगधम्मे पंचाणुव्वयाइं तिन्नि गुणव्वयाइं आवकहियाइं चत्तारि सिक्खा-वयाइं इत्तरियाइं एयस्स पुणो समणोवासगधम्मस्स मूलवत्थु सम्मत्तं तं जहा– तं निसग्गेण वा अभिगमेणं वा पंच अइयारविसुद्धं अणुव्वय-गुणव्वयाइं च अभिग्गा अन्नेवि पडिमादओ विसेसकरणजोगा। अपच्छिमा मारणंतिया संलेहणाझूसणाराहणया इमीसे समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– इहलोगासंसप्पओगे, परलोगासंसप्पओगे, जीवियासंसप्पओगे, मरणासंसप्पओगे, काम-भोगासंसप्पओगे।

Translated Sutra: इस प्रकार श्रमणोपासक धर्म में पाँच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और यावत्कथिक या इत्वरकथिक यानि चिरकाल या अल्पकाल के चार शिक्षाव्रत बताए हैं। इन सबसे पहले श्रमणोपासक धर्म में मूल वस्तु सम्यक्त्व है। वो निसर्ग से और अभिमान से दो प्रकार से है। पाँच अतिचार रहित विशुद्ध अणुव्रत और गुणव्रत की प्रतिज्ञा के सिवा दूसरी
Aavashyakasutra आवश्यक सूत्र Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Hindi 83 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: सूर्योदय से पोरिसी (यानि एक प्रहर पर्यन्त) चार तरह का – अशन, पान, खादिम, स्वादिम का पच्चक्खाण करते हैं। सिवा कि अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल से, दिशा – मोह से, साधु वचन से, सर्व समाधि के हेतुरूप आगार से (पच्चक्खाण) छोड़े।
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-१ सामायिक

Gujarati 2 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] करेमि भंते सामाइयं सव्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए काएणं न करेमि न कारवेमि करंतं पि अन्नं न समणुजाणामि तस्स भंते पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।

Translated Sutra: હે ભદંત ! હું સામાયિક સ્વીકાર કરું છું. જાવજ્જીવને માટે સર્વે સાવદ્ય યોગના પચ્ચક્‌ખાણ કરું છું. (કેવી રીતે?) ત્રિવિધ, ત્રિવિધ વડે (અર્થાત્‌) મન, વચન, કાયા વડે હું (તે) કરું નહીં, કરાવું નહીં, કરનારને અનુમોદું નહીં. હે ભદંત ! હું તેને પ્રતિક્રમું છું, નિંદું છું, ગર્હુ છું. (મારા તે ભૂતકાલીન પર્યાયરૂપ) આત્માને વોસિરાવું
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-३ वंदन

Gujarati 10 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो वंदिउं जावणिज्जाए निसीहियाए, अणुजाणह मे मिउग्गहं निसीहि अहोकायं काय-संफासं खमणिज्जो मे किलामो, अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वइक्कंतो जत्ता भे जवणिज्जं च भे, खामेमि खमासमणो देवसियं वइक्कमं आवस्सियाए पडिक्कमामि खमासमणाणं देवसियाए आसायणाए तित्तीसन्नयराए जं किंचि मिच्छाए मणदुक्कडाए वयदुक्कडाए कायदुक्कडाए कोहाए माणाए मायाए लोभाए सव्वकालियाए सव्वमिच्छोवयाराए सव्वधम्माइक्कमणाए आसायणाए जो मे अइयारो कओ तस्स खमासमणो पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि।

Translated Sutra: શિષ્ય કહે છે – હે ક્ષમા (આદિ દશવિધ ધર્મથી યુક્ત) શ્રમણ ! આપને હું ઇન્દ્રિયો તથા મનની વિષયવિકારના ઉપઘાત રહિત, નિર્વિકારી અને નિષ્પાપ કાયા વડે વંદન કરવાને ઇચ્છું છું. મને આપની મર્યાદિત ભૂમિમાં પ્રવેશવાની અનુજ્ઞા આપો. નિસીહી (એમ કહી શિષ્ય અવગ્રહમાં પ્રવેશે.) અધોકાય એટલે આપના ચરણને હું મારી કાયા વડે સ્પર્શુ છું.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 15 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ अइयारो कओ काइओ वाइओ माणसिओ उस्सुत्तो उम्मग्गो अकप्पो अकरणिज्जो दुज्झाओ दुव्विचिंतिओ अणायारो अणिच्छियव्वो असमणपाउग्गो नाणे दंसणे चरित्ते सुए सामाइए तिण्हं गुत्तीणं चउण्हं कसायाणं पंचण्हं महव्वयाणं छण्हं जीवनिकायाणं सत्तण्हं पिंडेसणाणं अट्ठण्हं पवयणमाऊणं नवण्हं बंभचेरगुत्तीणं दसविहे समणधम्मे समणाणं जोगाणं जं खंडियं जं विराहियं तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: હું દિવસ સંબંધી અતિચારોનું પ્રતિક્રમણ કરવાને ઇચ્છું છું. (આ અતિચાર સેવન) – કાયાથી, વચનથી, મનથી કરેલ હોય. ઉત્સૂત્રભાષણ કે ઉન્માર્ગ સેવનથી (હોય). અકલ્પ્ય કે અકરણીયથી (થયેલ હોય). દુર્ધ્યાન કે દુષ્ટ ચિંતવનથી (થયેલ હોય). અનાચારથી, અનિચ્છનીયથી, અશ્રમણપ્રાયોગ્યથી હોય. જ્ઞાન, દર્શન કે ચારિત્ર – શ્રુત અને સામાયિકમાં હોય. ત્રણ
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 17 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए निगामसिज्जाए संथारा उव्वट्टणाए परियट्टणाए आउंटण-पसारणाए छप्पइयसंघट्टणाए कूइए कक्कराइए छीए जंभाइए आमोसे ससरक्खामोसे आउल-माउलाए सोअणवत्तियाए इत्थीविप्परिआसियाए दिट्ठिविप्परिआसिआए मणविप्परिआ-सिआए पाणभोयणविप्परिआसिआए जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छा मि दुक्कडं।

Translated Sutra: હું પ્રતિક્રમણ કરવાને ઇચ્છું છું. (શેનું?) પ્રકામ શય્યાથી, નિકામ શય્યાથી, સંથારામાં પડખા ફેરવવાથી, પુનઃ તે જ પડખે ફરવાથી, આકુંચન – પ્રસારણ કરવાથી, જૂ વગેરે જીવોના સંઘટ્ટનથી, ખાંસતા – કચકચ કરતા – છીંક કે બગાસું ખાતા (મુહપત્તિ ન રાખવાથી), આમર્ષથી, સરજસ્ક વસ્તુને સ્પર્શવાથી, આકુળ – વ્યાકુળતાથી, સ્વપ્ન નિમિત્તે,
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 24 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पडिक्कमामि छहिं जीवनिकाएहिं- पुढविकाएणं आउकाएणं तेउकाएणं वाउकाएणं वणस्सइकाएणं तसकाएणं, पडिक्कमामि छहिं लेसाहिं किण्हलेसाए नीललेसाए काउलेसाए तेउलेसाए पम्हलेसाए सुक्कलेसाए, पडिक्कमामि सत्तहिं भयट्ठाणेहिं, अट्ठहिं मयट्ठाणेहिं, नवहिं बंभचेरगुत्तीहिं, दसविहे समण-धम्मे, एक्कारसहिं उवासगपडिमाहिं, बारसहिं भिक्खुपडिमाहिं, तेरसहिं किरियाट्ठाणेहिं।

Translated Sutra: હું છ જીવનિકાય – પૃથ્વીકાય, અપ્‌કાય, તેઉકાય, વાયુકાય, વનસ્પતિકાય અને ત્રસકાયની વિરાધનાથી થયેલ અતિચારો પ્રતિક્રમું છું. હું છ લેશ્યા – કૃષ્ણ લેશ્યા, નીલ લેશ્યા, કાપોત લેશ્યા, તેજોલેશ્યા, પદ્મલેશ્યા અને શુક્લ લેશ્યા નિમિત્તે થયેલ અતિચારોને પ્રતિક્રમું છું. હું પ્રતિક્રમું છું – સાત ભયસ્થાનોથી૦, આઠ મદસ્થાનોથી૦,
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 28 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अरिहंताणं आसायणाए सिद्धाणं आसायणाए आयरियाणं आसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए साहूणं आसायणाए साहुणीणं आसायणाए सावयाणं आसायणाए सावियाणं आसायणाए देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए इहलोगस्स आसायणाए परलोगस्स आसायणाए केवलिपन्नत्तस्सधम्मस्स आसायणाए सदेवमणुयासुरस्सलोगस्स आसायणाए सव्वपाणभूयजीव-सत्ताणं आसायणाए कालस्स आसायणाए सुयस्स आसायणाए सुयदेवयाए आसायणाए वायणायरियस्स आसायणाए।

Translated Sutra: (૧) અરિહંતોની આશાતના, (૨) સિદ્ધોની આશાતના, (૩) આચાર્યની આશાતના, (૪) ઉપાધ્યાયની આશાતના, (૫) સાધુની આશાતના, (૬) સાધ્વીની આશાતના, (૭) શ્રાવકની આશાતના, (૮) શ્રાવિકાની આશાતના, (૯) દેવોની આશાતના, (૧૦) દેવીની આશાતના, (૧૧) આલોક સંબંધી આશાતના, (૧૨) પરલોક સંબંધી આશાતના, (૧૩) કેવલિ પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મની આશાતના, (૧૪) દેવ – મનુષ્ય – અસુર લોક સંબંધી
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 30 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नमो चउव्वीसाए तित्थगराणं उसभादिमहावीरपज्जवसाणाणं।

Translated Sutra: ભગવંત ઋષભથી લઈને મહાવીર પર્યન્તના ચોવીસે તીર્થંકરોને મારા નમસ્કાર થાઓ.
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-४ प्रतिक्रमण

Gujarati 32 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं धम्मं सद्दहामि पत्तियामि रोएमि फासेमि पालेमि अनुपालेमि तं धम्मं सद्दहंतो पत्तियंतो रोएंतो फासेंतो पालंतो अनुपालंतो तस्स धम्मस्स केवलि पन्नत्तस्स अब्भुट्ठिओमि आराहणाए विरओमि विराहणाए– असंजमं परियाणामि संजमं उवसंपज्जामि अबंभं परियाणामि बंभ उवसंपज्जामि अकप्पं परियाणामि कप्पं उवसंपज्जामि अन्नाणं परियाणामि नाणं उवसंपज्जामि अकिरियं परियाणामि किरियं उवसंपज्जामि मिच्छत्तं परियाणामि सम्मत्तं उवसंपज्जामि अबोहिं परियाणामि बोहिं उवसंपज्जामि अमग्गं परियाणामि मग्गं उवसंपज्जामि

Translated Sutra: તે ધર્મની હું શ્રદ્ધા કરું છું. પ્રીતિ કરું છું. રૂચિ કરું છું. પાલન – સ્પર્શના કરું છું. અનુપાલન કરું છું. તે ધર્મની શ્રદ્ધા કરતો, પ્રીતિ કરતો, રૂચિ કરતો, સ્પર્શના કરતો, અનુપાલન કરતો હું – તે ધર્મની આરાધનામાં ઉદ્યત થયો છું, વિરાધનાથી અટકેલો છું (તેના જ માટે) અસંયમને જાણીને તજુ છું અને સંયમનો સ્વીકારું છું. અબ્રહ્મને
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 48 Gatha Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] पुक्खरवरदीवड्ढे धायइसंडे य जंबुद्दीवे य । भरहेरवय विदेहे धम्माइगरे नमंसामि ॥

Translated Sutra: સૂત્ર– ૪૮. અર્દ્ધ પુષ્કરવરદ્વીપ, ધાતકીખંડ અને જંબૂદ્વીપ (એ અઢીદ્વીપ)માં આવેલ ભરત, ઐરવત અને વિદેહ ક્ષેત્રમાં રહેલા શ્રુત ધર્મના આદિ કરોને હું નમસ્કાર કરું છું. સૂત્ર– ૪૯. અજ્ઞાનરૂપી અંધકારના સમૂહનો નાશ કરનાર, દેવ અને નરેન્દ્રોના સમૂહથી પૂજાયેલ, મોહની જાળને તોડી નાંખનારા, મર્યાદાધરને વંદુ છું. સૂત્ર– ૫૦. જન્મ
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 59 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो पिअं च मे जं मे हट्ठाणं तुट्ठाणं अप्पायं काणं अभग्गजोगाणं सुसीलाणं सुव्वयाणं सायरिय उवज्झायाणं नाणेणं दंसणेणं चरित्तेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणाणं बहुसुभेणं भे दिवसो पोसहो पक्खो वइक्कंतो अन्नो य भे कल्लालेणं पज्जुवट्ठिओ सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि –तुब्भेहिं समं।

Translated Sutra: હે ક્ષમાશ્રમણ ! હું ઇચ્છું છું. (શું ઇચ્છે છે ?) મને જે પ્રિય અને માન્ય પણ છે. જે આપનો (જ્ઞાનાદિ આરાધના – પૂર્વક પક્ષ શરૂ થયો અને પૂર્ણ થયો તે મને પ્રિય છે) નિરોગી એવા આપનો, ચિત્તની પ્રસન્નતાવાળા – આતંકથી સર્વથા રહિત, અખંડ સંયમ વ્યાપારવાળા, શીલાંગ સહિત, સુવ્રતી, બીજા પણ આચાર્ય, ઉપાધ્યાય સહિત, જ્ઞાન – દર્શન – ચારિત્ર
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 60 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो पुव्विं चेइयाइं वंदित्ता नमंसित्ता तुब्भण्हं पायमूलं विहरमाणेणं जे केई बहु देवसिया साहुणो दिट्ठा समाणा वा वसमाणा वा गामाणुगामं दूइज्जमाणा वा राइणिया संपुच्छंति ओमराइणिया वंदंति अज्जया वंदंति अज्जियाओ वंदंति सावया वंदंति सावियाओ वंदंति अहंपि निसल्लो निक्कसाओत्ति-कट्टु सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि –अहमवि वंदावेमि चेइयाइं।

Translated Sutra: હે ક્ષમાશ્રમણ ! હું ઇચ્છું છું. (આપને ચૈત્ય અને સાધુવંદના કરાવવા) પૂર્વે આપની સાથે હતો ત્યારે હું આ ચૈત્યવંદના, સાધુવંદના શ્રીસંઘ વતી કરું છું એવા અધ્યવસાય સાથે શ્રી જિનપ્રતિમાને વંદન – નમસ્કાર કરીને અને અન્યત્ર વિચરતા, બીજા ક્ષેત્રોમાં જે કોઈ ઘણા દિવસના પર્યાયવાળા, સ્થિરવાસ કરનારા કે નવકલ્પી વિહારવાળા
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-५ कायोत्सर्ग

Gujarati 62 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] इच्छामि खमासमणो अहमपुव्वाइं कयाइं च मे किइ कम्माइं आयरमंतरे विणयमंतरे सेहिए सेहाविओ संगहिओ उवग्गहिओ सारिओ वारिओ चोइओ पडिचोइओ चिअत्ता मे पडिचोयणा उव्वट्ठिओहं तुब्भण्हं तवतेयसिरीए इमाओ चाउरंतसंसार-कंताराओ साहट्टु नित्थरिस्सामि त्तिकट्टु सिरसामणसा मत्थएण वंदामि –नित्थारगपारगाहोह।

Translated Sutra: હે ક્ષમાશ્રમણ ! હું ભાવિકાળમાં કૃતિકર્મ – વંદન કરવાને ઇચ્છું છું. ભૂતકાળમાં તે આચાર વિના કર્યા, વિનય વિના કર્યા, આપે મને જે આચાર આદિ શીખવ્યા, કુશળ બનાવ્યો, સંગ્રહિત અને ઉપગ્રહિત કર્યો, સારણા – વારણા – ચોયણા – પ્રતિ ચોયણા કરી. હવે હું તે ભૂલો સુધારવા ઉદ્યત થયેલો છું. આપના તપ અને તેજરૂપી લક્ષ્મી વડે આ ચાતુરંત સંસાર
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 79 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पोसहोववासे चउव्विहे पन्नत्ते तं जहा– आहारपोसहे सरीरसक्कारपोसहे बंभचेरपोसहे अव्वावारपोसहे, पोसहोववासस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा जाणियव्वा तं जहा– अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारए, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारए, अप्पडि-लेहिय-दुप्पडिलेहिय-उच्चारपासवणभूमीओ, अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमीओ, पोसहोववासस्स सम्मं अननुपालणया।

Translated Sutra: પૌષધોપવાસ ચાર ભેદે કહેલ છે, તે આ પ્રમાણે – આહાર પૌષધ, શરીર સત્કાર પૌષધ, બ્રહ્મચર્ય પૌષધ, અવ્યાપાર પૌષધ. પૌષધોપવાસ વ્રતધારી શ્રાવકે આ પાંચ અતિચારો જાણવા જોઈએ. તે આ પ્રમાણે – અપ્રતિલેખિત – દુષ્પ્રતિલેખિત શય્યા સંસ્તારક, અપ્રમાર્જિત – દુષ્પ્રમાર્જિત શય્યા સંસ્તારક. અપ્રતિલેખિત દુષ્પ્રતિલેખિત ઉચ્ચાર પ્રશ્રવણ
Aavashyakasutra આવશ્યક સૂત્ર Ardha-Magadhi

अध्ययन-६ पच्चक्खाण

Gujarati 83 Sutra Mool-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] उग्गए सूरे पोरिसिं पच्चक्खाइ चउव्विहंपि आहारं-असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्वसमाहिवत्ति-आगारेणं वोसिरइ।

Translated Sutra: સૂર્ય ઊગ્યા પછી પોરીસી (અર્થાત્‌ એક પ્રહાર પર્યન્ત) ચાર ભેદે અશન, પાન, ખાદિમ, સ્વાદિમનું પચ્ચક્‌ખાણ કરે છે. અન્નત્થ અર્થાત અનાભોગ, સહસાકાર, પ્રચ્છન્નકાળ, દિશામોહ, સાધુવચનથી, સર્વસમાધિ નિમિત્તે આ છ કારણો સિવાય. હું અશનાદિ ચારેનો ત્યાગ કરું છું.
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-१ स्वजन Hindi 63 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे गुणे से मूलट्ठाणे, जे मूलट्ठाणे से गुणे। इति से गुणट्ठी महता परियावेणं वसे पमत्ते– माया मे, पिया मे, भाया मे, भइणी मे, भज्जा मे, पुत्ता मे, धूया मे, सुण्हा मे, सहि-सयण-संगंथ-संथुया मे, विवित्तोवगरण-परियट्टण-भोयण-अच्छायणं मे, इच्चत्थं गढिए लोए– वसे पमत्ते। अहो य राओ य परितप्पमाणे, कालाकाल-समुट्ठाई, संजोगट्ठी अट्ठालोभी, आलुंपे सहसक्कारे, विणि-विट्ठचित्ते एत्थ सत्थे पुणो-पुणो। अप्पं च खलु आउं इहमेगेसिं माणवाणं, तं जहा–

Translated Sutra: जो गुण (इन्द्रियविषय) हैं, वह (कषायरुप संसार का) मूल स्थान है। जो मूल स्थान है, वह गुण है। इस प्रकार विषयार्थी पुरुष, महान परिताप से प्रमत्त होकर, जीवन बीताता है। वह इस प्रकार मानता है, ‘‘मेरी माता है, मेरा पिता है, मेरा भाई है, मेरी बहन है, मेरी पत्नी है, मेरा पुत्र है, मेरी पुत्री है, मेरी पुत्र – वधू है, मेरा सखा –
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-२ अद्रढता Hindi 77 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तं परिण्णाय मेहावी नेव सयं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभेज्जा, नेवण्णं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभावेज्जा, नेवण्णं एएहिं कज्जेहिं दंडं समारंभंतं समणुजाणेज्जा। एस मग्गे आरिएहिं पवेइए। जहेत्थ कुसले नोवलिंपिज्जासि।

Translated Sutra: यह जानकर मेधावी पुरुष पहले बताए गए प्रयोजनों के लिए स्वयं हिंसा न करे, दूसरों से हिंसा न करवाए तथा हिंसा करने वाले का अनुमोदन न करे। यह मार्ग आर्य पुरुषों ने बताया है। कुशलपुरुष इन विषयों में लिप्त न हों ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 80 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से अबुज्झमाणे ‘हतोवहते जाइ-मरणं अणुपरियट्टमाणे’। जीवियं पुढो पियं इहमेगेसिं माणवाणं, खेत्त-वत्थ ममायमाणाणं। आरत्तं विरत्तं मणिकुंडलं सह हिरण्णेण, इत्थियाओ परिगिज्झ तत्थेव रत्ता। न एत्थ तवो वा, दमो वा, नियमो वा दिस्सति। संपुण्णं बाले जीविउकामे लालप्पमाणे मूढे विप्परियासुवेइ।

Translated Sutra: वह प्रमादी पुरुष कर्म – सिद्धान्त को नहीं समझाता हुआ शारीरिक दुःखों से हत तथा मानसिक पीड़ाओं से उपहत – पुनः पुनः पीड़ित होता हुआ जन्म – मरण के चक्र में बार – बार भटकता है। जो मनुष्य, क्षेत्र – खुली भूमि तथा वास्तु – भवन – मकान आदि में ममत्व रखता है, उनको यह असंयत जीवन ही प्रिय लगता है। वे रंग – बिरंगे मणि, कुण्डल,
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 81 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] इणमेव नावकंखंति, जे जना धुवचारिनो । जाती-मरणं परिण्णाय, चरे संकमणे दढे ॥

Translated Sutra: जो पुरुष ध्रुवचारी होते हैं, वे ऐसा विपर्यासपूर्ण जीवन नहीं चाहते। वे जन्म – मरण के चक्र को जानकर द्रढ़तापूर्वक मोक्ष के पथ पर बढ़ते रहें।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-३ मदनिषेध Hindi 82 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] नत्थि कालस्स नागमो। सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अप्पियवहा पियजीविनो जीविउकामा। सव्वेसिं जीवियं पियं। तं परिगिज्झ दुपयं चउप्पयं अभिजुंजियाणं संसिंचियाणं तिविहेणं जा वि से तत्थ मत्ता भवइ– अप्पा वा बहुगा वा। से तत्थ गढिए चिट्ठइ, भोयणाए। तओ से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवइ। तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, नस्सति वा से, विणस्सति वा से, अगारदाहेण वा से डज्झइ। इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ। मुनिणा हु एयं पवेइयं। अनोहंतरा एते, नोय ओहं तरित्तए । अतीरंगमा

Translated Sutra: काल का अनागमन नहीं है, मृत्यु किसी क्षण आ सकती है। सब को आयुष्य प्रिय है। सभी सुख का स्वाद चाहते हैं। दुःख से धबराते हैं। वध अप्रिय है, जीवन प्रिय है। वे जीवित रहना चाहते हैं। सब को जीवन प्रिय है। वह परिग्रह में आसक्त हुआ मनुष्य, द्विपद और चतुष्पद का परिग्रह करके उनका उपयोग करता है। उनको कार्य में नियुक्त करता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-४ भोगासक्ति Hindi 85 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] तिविहेण जावि से तत्थ मत्ता भवइ–अप्पा वा बहुगा वा। से तत्थ गढिए चिट्ठति, भोयणाए। ततो से एगया विपरिसिट्ठं संभूयं महोवगरणं भवति। तं पि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से अवहरति, रायानो वा से विलुंपंति, णस्सइ वा से, विणस्सइ वा से, अगारडाहेण वा डज्झइ। इति से परस्स अट्ठाए कूराइं कम्माइं बाले पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढे विप्परियासुवेइ।

Translated Sutra: यहाँ पर कुछ मनुष्यों को अपने, दूसरों के अथवा दोनों के सम्मिलित प्रयत्न से अल्प या बहुत अर्थ – मात्रा हो जाती है। वह फिर उस अर्थ – मात्रा में आसक्त होता है। भोग के लिए उसकी रक्षा करता है। भोग के बाद बची हुई विपुल संपत्ति के कारण वह महान्‌ वैभव वाला बन जाता है। फिर जीवन में कभी ऐसा समय आता है, जब दायाद हिस्सा बँटाते
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 89 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] समुट्ठिए अनगारे आरिए आरियपण्णे आरियदंसी ‘अयं संधीति अदक्खु’। से नाइए, नाइआवए, न समणुजाणइ। सव्वामगंधं परिण्णाय, निरामगंधो परिव्वए।

Translated Sutra: संयम – साधना में तत्पर हुआ आर्य, आर्यप्रज्ञ और आर्यदर्शी अनगार प्रत्येक क्रिया उचित समय पर ही करता है। वह ‘यह शिक्षा का समय – संधि है’ यह देखकर (भिक्षा के लिए जाए)। वह सदोष आहार को स्वयं ग्रहण न करे, न दूसरों से ग्रहण करवाए तथा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन नहीं करे। वह (अनगार) सब प्रकार के आमगंध (आधाकर्मादि दोषयुक्त
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 90 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] अदिस्समाणे कय-विक्कएसु। से न किणे, न किनावए, किणंतं न समणुजाणइ। से भिक्खू कालण्णे बलण्णे मायण्णे खेयण्णे खणयण्णे विणयण्णे समयण्णे भावण्णे, परिग्गहं अममायमाणे, कालेणुट्ठाइ, अपडिण्णे।

Translated Sutra: वह वस्तु के क्रय – विक्रय में संलग्न न हो। न स्वयं क्रय करे, न दूसरों से क्रय करवाए और न क्रय करने वाले का अनुमोदन करे। वह भिक्षु कालज्ञ है, बलज्ञ है, मात्रज्ञ है, क्षेत्रज्ञ है, क्षणज्ञ है, विनयज्ञ है, समयज्ञ है, भावज्ञ है। परिग्रह पर ममत्व नहीं रखने वाला, उचित समय पर उचित कार्य करने वाला अप्रतिज्ञ है।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-२ लोकविजय

उद्देशक-५ लोकनिश्रा Hindi 96 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से मइमं परिण्णाय, मा य हु लालं पच्चासी। मा तेसु तिरिच्छमप्पाणमावातए। कासकंसे खलु अयं पुरिसे, बहुमाई, कडेण मूढे पुनो तं करेइ लोभं। वेरं वड्ढेति अप्पणो। जमिणं परिकहिज्जइ, इमस्स चेव पडिवूहणयाए। अमरायइ महासड्ढी। अट्ठमेतं पेहाए। अपरिण्णाए कंदति।

Translated Sutra: वह मतिमान्‌ साधक (उक्त विषय को) जानकर तथा त्यागकर लार को न चाटे। अपने को तिर्यक्‌मार्ग में, (कामभोग के बीच में) न फँसाए। यह पुरुष सोचता है – मैंने यह कार्य किया, यह कार्य करूँगा (इस प्रकार) वह दूसरों को ठगता है, माया – कपट रचता है, और फिर अपने रचे मायाजाल में स्वयं फँसकर मूढ़ बन जाता है। वह मूढ़भाव से ग्रस्त फिर लोभ करता
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-१ भावसुप्त Hindi 113 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] पासिय आउरे पाणे, अप्पमत्तो परिव्वए। मंता एयं मइमं! पास। आरंभजं दुक्खमिणं ति नच्चा। माई पमाई पुनरेइ गब्भं। उवेहमानो सद्द-रूवेसु अंजू, माराभिसंकी मरणा पमुच्चति। अप्पमत्तो कामेहिं, उवरतो पावकम्मेहिं, वीरे आयगुत्ते ‘जे खेयण्णे’। जे पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे, से असत्थस्स खेयण्णे, जे असत्थस्स खेयण्णे, से पज्जवजाय-सत्थस्स खेयण्णे। अकम्मस्स ववहारो न विज्जइ। कम्मुणा उवाही जायइ। कम्मं च पडिलेहाए।

Translated Sutra: (सुप्त) मनुष्यों को दुःखों से आतुर देखकर साधक सतत अप्रमत्त होकर विचरण करे। हे मतिमान्‌ ! तू मननपूर्वक इन (दुखियों) को देख। यह दुःख आरम्भज है, यह जानकर (तू निरारम्भ होकर अप्रमत्त भाव से आत्महित में प्रवृत्त रह)। मया और प्रमाद के वश हुआ मनुष्य बार – बार जन्म लेता है। शब्द और रूप आदि के प्रति जो उपेक्षा करता है, वह
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-२ दुःखानुभव Hindi 115 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] जातिं च वुड्ढिं च इहज्ज! पासे। भूतेहिं जाणे पडिलेह सातं। तम्हा तिविज्जो परमंति नच्चा, समत्तदंसी न करेति पावं॥

Translated Sutra: हे आर्य ! तू इस संसार में जन्म और बुद्धि को देख। तू प्राणियों को (कर्मबन्ध और उसके विपाकरूप दुःख को) जान और उनके साथ अपने सुख (दुःख) का पर्यालोचन कर। इससे त्रैविद्य या अतिविद्य बना हुआ साधक परम (मोक्ष) को जानकर (समत्वदर्शी हो जाता है)। समत्वदर्शी पाप नहीं करता।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-३ शीतोष्णीय

उद्देशक-३ अक्रिया Hindi 126 Gatha Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [गाथा] समयं तत्थुवेहाए, अप्पाणं विप्पसायए। अनन्नपरमं नाणी, नोपमाए कयाइ वि ॥ आयगुत्ते सया वीरे, जायामायाए जावए । विरागं रूवेहिं गच्छेज्जा, महया खुड्डएहि वा॥

Translated Sutra: इस स्थिति में (मुनि) समता की द्रष्टि से पर्यालोचन करके आत्मा को प्रसाद रखे। ज्ञानी मुनि अनन्य परम के प्रति कदापि प्रमाद न करे। वह साधक सदा आत्मगुप्त और वीर रहे, वह अपनी संयम – यात्रा का निर्वाह परिमित आहार से करे। वह साधक छोटे या बड़े रूपों – (द्रश्यमान पदार्थों) के प्रति विरति धारण करे।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-१ धर्मप्रवादी परीक्षा Hindi 146 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवंति केआवंति लोयंसि समणा य माहणा य पुढो विवादं वदंति–से दिट्ठं च णे, सुयं च णे, मयं च णे, विण्णायं च णे, उड्ढं अहं तिरियं दिसासु सव्वतो सुपडिलेहियं च णे– ‘सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता’ हंतव्वा, अज्जावेयव्वा, परिघेतव्वा, परियावेयव्वा, उद्दवेयव्वा। एत्थ वि जाणह नत्थित्थ दोसो। अनारियवयणमेयं। तत्थ जे ते आरिया, ते एवं वयासी–से दुद्दिट्ठं च भ, दुस्सुयं च भ, दुम्मयं च भे, दुव्विण्णायं च भे, उड्ढं अहं तिरियं दिसासु सव्वतो दुप्पडिलेहियं च भे, जण्णं तुब्भे एवमाइक्खह, एवं भासह, एवं ‘परूवेह, एवं पण्णवेह’– ‘सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता हंतव्वा,

Translated Sutra: इस मत – मतान्तरों वाले लोक में जितने भी, जो भी श्रमण या ब्राह्मण हैं, वे परस्पर विरोधी भिन्न – भिन्न मतवाद का प्रतिपादन करते हैं। जैसे की कुछ मतवादी कहते हैं – ‘हमने यह देख लिया है, सून लिया है, मनन कर लिया है और विशेष रूप से जान भी लिया है, ऊंची, नीची और तिरछी सब दिशाओं में सब तरह से भली – भाँति इसका निरीक्षण भी कर
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-४ सम्यक्त्व

उद्देशक-४ संक्षेप वचन Hindi 150 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] आवीलए पवीलए निप्पीलए जहित्ता पुव्वसंजोगं, हिच्चा उवसमं। तम्हा अविमणे वीरे सारए समिए सहिते सया जए। दुरनुचरो मग्गो वीराणं अनियट्टगामीणं। विगिंच मंस-सोणियं। एस पुरिसे दविए वीरे, आयाणिज्जे वियाहिए । जे धुनाइ समुस्सयं, वसित्ता बंभचेरंसि ॥

Translated Sutra: मुनि पूर्व – संयोग का त्याग कर उपशम करके (शरीर का) आपीड़न करे, फिर प्रपीड़न करे और तब निष्पीड़न करे। मुनि सदा अविमना, प्रसन्नमना, स्वारत, समित, सहित और वीर होकर (इन्द्रिय और मन का) संयमन करे। अप्रमत्त होकर जीवन – पर्यन्त संयम – साधन करने वाले, अनिवृत्तगामी मुनियों का मार्ग अत्यन्त दुरनुचर होता है। (संयम और मोक्षमार्ग
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-१ एक चर Hindi 157 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे छेए से सागारियं ण सेवए। ‘कट्टु एवं अविजाणओ’ बितिया मंदस्स बालया। लद्धा हुरत्था पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अनासेवनयाए

Translated Sutra: जो कुशल है, वह मैथुन सेवन नहीं करता। जो ऐसा करके उसे छिपाता है, वह उस मूर्ख की दूसरी मूर्खता है। उपलब्ध कामभोगों का पर्यालोचन करके, सर्व प्रकार से जानकर उन्हें स्वयं सेवन न करे और दूसरों को भी कामभोगों के कटुफल का ज्ञान कराकर उनके अनासेवन की आज्ञा दे, ऐसा मैं कहता हूँ।
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-२ विरत मुनि Hindi 163 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] से ‘सुपडिबुद्धं सूवणीयं ति नच्चा’, पुरिसा! परमचक्खू! विपरक्कमा। एतेसु चेव बंभचेरं ति बेमि। से सुयं च मे अज्झत्थियं च मे, ‘बंध-पमोक्खो तुज्झ अज्झत्थेव’। एत्थ विरते अनगारे, दीहरायं तितिक्खए। पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्तो परिव्वए ॥ एयं मोणं सम्मं अणुवासिज्जासि।

Translated Sutra: (परिग्रह महाभय का हेतु है) यह सम्यक्‌ प्रकार से प्रतिबुद्ध है और सुकथित है, यह जानकर परमचक्षुष्मान्‌ पुरुष! तू (परिग्रह से मुक्त होने) पुरुषार्थ कर। (जो परिग्रह से विरत हैं) उनमें ही ब्रह्मचर्य होता है। ऐसा मैं कहता हूँ। मैंने सूना है, मेरी आत्मा में यह अनुभूत हो गया है कि बन्ध और मोक्ष तुम्हारी आत्मा में ही स्थित
Acharang आचारांग सूत्र Ardha-Magadhi

श्रुतस्कंध-१

अध्ययन-५ लोकसार

उद्देशक-३ अपरिग्रह Hindi 165 Sutra Ang-01 View Detail
Mool Sutra: [सूत्र] जे पुव्वुट्ठाई, नोपच्छा-निवाई। जे पुव्वुट्ठाई, पच्छा-निवाई। जे नोपुव्वुट्ठाई, नोपच्छा-निवाई। सेवि तारिसए सिया, जे परिण्णाय लोगमणुस्सिओ।

Translated Sutra: (इस मुनिधर्म में मोक्ष – मार्ग साधक तीन प्रकार के होते हैं) – एक वह होता है, जो पहले साधना के लिए उठता है और बाद में (जीवन पर्यन्त) उत्थित ही रहता है। दूसरा वह है – जो पहले साधना के लिए उठता है, किन्तु बाद में गिर जाता है। तीसरा वह होता है – जो न तो पहले उठता है और न ही बाद में गिरता है। जो साधक लोक को परिज्ञा से जान और
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