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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ उपधान श्रुत |
उद्देशक-४ आतंकित | Hindi | 330 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अवि सूइयं व सुक्कं वा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासं ।
अदु बक्कसं पुलागं वा, लद्धे पिंडे अलद्धए दविए ॥ Translated Sutra: भोजन सूखा हो, अथवा ठंडा हो, या पुराना उड़द हो, पुराने धान को ओदन हो या पुराना सत्तु हो, या जौ से बना हुआ आहार हो, पर्याप्त एवं अच्छे आहार के मिलने या न मिलने पर इन सब में संयमनिष्ठ भगवान राग – द्वेष नहीं करते थे। | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
उद्देशक-८ | Hindi | 380 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा–आमडागं वा, पूइपिण्णागं वा, महुं वा, ‘मज्जं वा’, सप्पिं वा, खोलं वा पुराणगं।
एत्थ पाणा अणुप्पसूया, एत्थ पाणा जाया, एत्थ पाणा संवुड्ढा, एत्थ पाणा अवुक्कंता, एत्थ पाणा अपरिणया,
एत्थ पाणा अविद्धत्था–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि जाने कि वहाँ भाजी है; सड़ी हुई खली है, मधु, मद्य, घृत और मद्य के नीचे का कीट बहुत पुराना है तो उन्हें ग्रहण न करे, क्योंकि उनमें प्राणी पुनः उत्पन्न हो जाते हैं, उनमें प्राणी जन्मते हैं, संवर्धित होते हैं, इनमें प्राणियों का व्युत्क्रमण नहीं होता, ये प्राणी शस्त्र – परिणत नहीं होते, न ये प्राणी विध्वस्त | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-३ इर्या |
उद्देशक-२ | Hindi | 455 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं परो नावा-गए नावा-गयं वदेज्जा–आउसंतो! एस णं समणे नावाए भंडभारिए भवइ। से णं बाहाए गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवह। एतप्पगारं निग्घोसं सोच्चा निसम्म से य चीवरधारी सिया, खिप्पामेव चीवराणि उव्वेड्ढिज्ज वा, णिव्वेड्ढिज्ज वा, उप्फेसं वा करेज्जा।
अह पुणेवं जाणेज्जा–अभिक्कंत-कूरकम्मा खलु बाला बाहाहिं गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा।
से पुव्वामेव वएज्जा–आउसंतो! गाहावइ! मा मेत्तो बाहाए गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवह, सयं चेव णं अहं नावातो उदगंसि ओगाहिस्सामि।
से णेवं वयंतं परो सहसा बलसा बाहाहिं गहाय नावाओ उदगंसि पक्खिवेज्जा, तं नो सुमणे सिया, नो दुम्मणे सिया, नो उच्चावयं Translated Sutra: यदि कोई नौकारूढ़ व्यक्ति नौका पर बैठे हुए किसी अन्य गृहस्थ से इस प्रकार कहे – ‘आयुष्मन् गृहस्थ ! यह श्रमण जड़ वस्तुओं की तरह नौका पर केवल भारभूत है, अतः इसकी बाँहें पकड़कर नौका से बाहर जलमें फेंक दो।’ इस प्रकार की बात सूनकर और हृदय में धारण करके यदि वह मुनि वस्त्रधारी है तो शीघ्र ही फटे – पुराने वस्त्रों को खोलकर | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-५ वस्त्रैषणा |
उद्देशक-२ वस्त्र धारण विधि | Hindi | 485 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा नो वण्णमंताइं वत्थाइं विवण्णाइं करेज्जा, विवण्णाइं नो वण्णमंताइं करेज्जा, ‘अन्नं वा वत्थं लभिस्सामि’ त्ति कट्टु नो अन्नमन्नस्स देज्जा, नो पामिच्चं कुज्जा, नो वत्थेण वत्थ-परिणामं करेज्जा, नो परं उवसंकमित्तु एवं वदेज्जा– ‘आउसंतो! समणा! अभिकंखसि मे वत्थं धारेत्तए वा, परिहरेत्तए वा? ’थिरं वा णं संतं नो पलिच्छिंदिय-पलिच्छिंदिय परिट्ठवेज्जा, जहा चेयं वत्थं पावगं परो मन्नइ।
परं च णं अदत्तहारिं पडिपहे पेहाए तस्स वत्थस्स णिदाणाए नो तेसिं भीओ उम्मग्गेणं गच्छेज्जा, नो मग्गाओ मग्गं संकमेज्जा नो गहणं वा, वणं वा, दुग्गं वा अणुपविसेज्जा, नो रुक्खंसि Translated Sutra: साधु या साध्वी सुन्दर वर्ण वाले वस्त्रों को विवर्ण न करे, तथा विवर्ण वस्त्रों को सुन्दर वर्ण वाले न करे। ‘मैं दूसरा नया वस्त्र प्राप्त कर लूँगा’, इस अभिप्राय से अपना पुराना वस्त्र किसी दूसरे साधु को न दे और न किसी से उधार वस्त्र ले, और न ही वस्त्र की परस्पर अदलाबदली करे। दूसरे साधु के पास जाकर ऐसा न कहे – आयुष्मन् | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१० [३] उच्चार प्रश्नवण विषयक |
Hindi | 500 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा, गाहावइ-पुत्ता वा कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा अंतातो वा बाहिं णीहरंति, बहियाओ वा अंतो साहरंति, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–खंधंसि वा, पीढंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, अट्टंसि वा, पासायंसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अनंतरहियाए पुढवीए, ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए Translated Sutra: साधु या साध्वी यदि ऐसे स्थण्डिल को जान कि गृहपति या उसके पुत्र कन्द, मूल यावत् हरी जिसके अंदर से बाहर ले जा रहे हैं, या बाहर से भीतर ले जा रहे हैं, अथवा उस प्रकार की किन्हीं सचित्त वस्तुओं को इधर – उधर कर रहे हैं, तो वहाँ साधु – साध्वी मल – मूत्र विसर्जन न करे। ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि स्कन्ध पर, चौकी पर, मचान पर, | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-११ [४] शब्द विषयक |
Hindi | 503 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तं जहा–वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, उप्पलाणि वा, पल्ललाणि वा, उज्झराणि वा, निज्झराणि वा, वावीणि वा, पोक्खराणि वा, दीहियाणि वा, गुंजालियाणि वा, सराणि वा, सागराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसरपंतियाणि वा, अन्नयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सद्दाइं कण्णसोय-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तं जहा–कच्छाणि वा, णूमाणि वा, गहणाणि वा, वनानि वा, वनदुग्गाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्वयदुग्गाणि वा, अन्नयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सद्दाइं कण्णसोय-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए।
से Translated Sutra: वह साधु या साध्वी कईं प्रकार के शब्द श्रवण करते हैं, जैसे कि – खेत की क्यारियों में तथा खाईयों में होने वाले शब्द यावत् सरोवरों में, समुद्रों में, सरोवर की पंक्तियों या सरोवर के बाद सरोवर की पंक्तियों के शब्द, अन्य इसी प्रकार के विविध शब्द, किन्तु उन्हें कानों से श्रवण करने के लिए जाने के लिए मन में संकल्प न करे। साधु | |||||||||
Acharang | आचारांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१२ [५] रुप विषयक |
Hindi | 505 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं रूवाइं पासइ, तं जहा–गंथिमाणि वा, वेढिमाणि वा, पूरिमाणि वा, संघाइमाणि वा, कट्ठकम्माणि वा, पोत्थकम्माणि वा, चित्तकम्माणि वा, मणिकम्माणि वा, दंतकम्माणि वा, पत्तच्छेज्जकम्माणि वा, ‘विहाणि वा, वेहिमाणि वा’, अन्नयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं [रूवाइं?] चक्खुदंसण-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं रूवाइं पासाइ, तं जहा–वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, उप्पलाणि वा, पल्ललाणि वा, उज्झराणि वा, निज्झराणि वा, वावीणि वा, पोक्खराणि वा, दीहियाणि वा, गुंजालियाणि वा, सराणि वा, सागराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसरपंतियाणि वा, Translated Sutra: साधु या साध्वी अनेक प्रकार के रूपों को देखते हैं, जैसे – गूँथे हुए पुष्पों से निष्पन्न, वस्त्रादि से वेष्टित या निष्पन्न पुतली आदि को, जिनके अन्दर कुछ पदार्थ भरने से आकृति बन जाती हो, उन्हें, संघात से निर्मित चोलका – दिकों, काष्ठ कर्म से निर्मित, पुस्तकर्म से निर्मित, चित्रकर्म से निर्मित, विविध मणिकर्म से निर्मित, | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-१ अध्ययन-१ पिंडैषणा |
उद्देशक-८ | Gujarati | 380 | Sutra | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं पिंडवाय-पडियाए अणुपविट्ठे समाणे सेज्ज पुण जाणेज्जा–आमडागं वा, पूइपिण्णागं वा, महुं वा, ‘मज्जं वा’, सप्पिं वा, खोलं वा पुराणगं।
एत्थ पाणा अणुप्पसूया, एत्थ पाणा जाया, एत्थ पाणा संवुड्ढा, एत्थ पाणा अवुक्कंता, एत्थ पाणा अपरिणया,
एत्थ पाणा अविद्धत्था–अफासुयं अनेसणिज्जं ति मन्नमाणे लाभे संते नो पडिगाहेज्जा। Translated Sutra: તે સાધુ કે સાધ્વી યાવત્ જાણે કે ત્યાં કાચી ભાજી, સડેલો ખોળ, મધ, મદ્ય, ઘી નીચે જૂનો કચરો છે, જેમાં જીવોની પુનઃ ઉત્પત્તિ થાય છે. તેમાં જીવો જન્મે છે, વૃદ્ધિ પામે છે, વ્યુત્ક્રમણ થતું નથી, શસ્ત્ર પરિણત નથી થતાં એ પ્રાણી વિધ્વસ્ત નથી. તો તેને અપ્રાસુક જાણી ગ્રહણ ન કરે. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-९ उपधान श्रुत |
उद्देशक-४ आतंकित | Gujarati | 330 | Gatha | Ang-01 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] अवि सूइयं व सुक्कं वा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासं ।
अदु बक्कसं पुलागं वा, लद्धे पिंडे अलद्धए दविए ॥ Translated Sutra: ભિક્ષામાં પ્રાપ્ત થયેલ આહાર દૂધ – ઘીથી યુક્ત હોય કે રુક્ષ – સૂકો હોય, શીત હોય કે ઘણા દિવસના અડદ હોય કે જૂનું ધાન્ય – જવ આદિ હોય; તે પણ મળે કે ન મળે ભગવંત સમભાવ ધારણ કરતા હતા. | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१० [३] उच्चार प्रश्नवण विषयक |
Gujarati | 500 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–इह खलु गाहावई वा, गाहावइ-पुत्ता वा कंदाणि वा, मूलाणि वा, [तयाणि वा?], पत्ताणि वा, पुप्फाणि वा, फलाणि वा, बीयाणि वा, हरियाणि वा अंतातो वा बाहिं णीहरंति, बहियाओ वा अंतो साहरंति, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–खंधंसि वा, पीढंसि वा, मंचंसि वा, मालंसि वा, अट्टंसि वा, पासायंसि वा, अन्नयरंसि वा तहप्पगारंसि थंडिलंसि नो उच्चारपासवणं वोसिरेज्जा।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा सेज्जं पुण थंडिलं जाणेज्जा–अनंतरहियाए पुढवीए, ससिणिद्धाए पुढवीए, ससरक्खाए Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી એવી સ્થંડિલ ભૂમિને જાણે કે ગૃહસ્થ કે તેના પુત્રોએ – ૧ – કંદ યાવત્ બીજને અહીં ફેંક્યા છે, ફેંકે છે કે ફેંકશે તો તેવી કે તેવા પ્રકારની બીજી ભૂમિમાં મળ – મૂત્રનો ત્યાગ ન કરે. ૨ – શાલી, ઘઉં, મગ, અડદ, કુલત્થા, જવ, જ્વારા આદિ વાવ્યા છે, વાવે છે કે વાવશે તો તેવી ભૂમિમાં મળ – મૂત્ર ત્યાગ ન કરે. ૩ – સાધુ – સાધ્વી | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-११ [४] शब्द विषयक |
Gujarati | 503 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तं जहा–वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, उप्पलाणि वा, पल्ललाणि वा, उज्झराणि वा, निज्झराणि वा, वावीणि वा, पोक्खराणि वा, दीहियाणि वा, गुंजालियाणि वा, सराणि वा, सागराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसरपंतियाणि वा, अन्नयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सद्दाइं कण्णसोय-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं सद्दाइं सुणेति, तं जहा–कच्छाणि वा, णूमाणि वा, गहणाणि वा, वनानि वा, वनदुग्गाणि वा, पव्वयाणि वा, पव्वयदुग्गाणि वा, अन्नयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं सद्दाइं कण्णसोय-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए।
से Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી ક્યારી, ખાઈ, સરોવર, સાગર, સરોવર પંક્તિ આદિ કે તેવી જ બીજી જગ્યા પર થતી તેવા પ્રકારના કલકલ આદિ શબ્દોની ધ્વની વગેરે સાંભળવાની ઈચ્છાથી તે સ્થાને ન જાય. સાધુ – સાધ્વી જળાશય, ગુફા, ગહન ઝાડી, વન, વનદુર્ગ, પર્વત, પર્વતદુર્ગ કે તેવા પ્રકારના અન્ય સ્થળોમાં થતા શબ્દો સાંભળવાની ઈચ્છાથી તે સ્થાને ન જાય. સાધુ | |||||||||
Acharang | આચારાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-२ चूलिका-२ अध्ययन-१२ [५] रुप विषयक |
Gujarati | 505 | Sutra | Ang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं रूवाइं पासइ, तं जहा–गंथिमाणि वा, वेढिमाणि वा, पूरिमाणि वा, संघाइमाणि वा, कट्ठकम्माणि वा, पोत्थकम्माणि वा, चित्तकम्माणि वा, मणिकम्माणि वा, दंतकम्माणि वा, पत्तच्छेज्जकम्माणि वा, ‘विहाणि वा, वेहिमाणि वा’, अन्नयराइं वा तहप्पगाराइं विरूवरूवाइं [रूवाइं?] चक्खुदंसण-पडियाए नो अभिसंधारेज्जा गमणाए।
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहावेगइयाइं रूवाइं पासाइ, तं जहा–वप्पाणि वा, फलिहाणि वा, उप्पलाणि वा, पल्ललाणि वा, उज्झराणि वा, निज्झराणि वा, वावीणि वा, पोक्खराणि वा, दीहियाणि वा, गुंजालियाणि वा, सराणि वा, सागराणि वा, सरपंतियाणि वा, सरसरपंतियाणि वा, Translated Sutra: સાધુ – સાધ્વી કદાચ કોઈ રૂપને જુએ, જેમ કે – ગ્રથિત, વેષ્ટિમ, પૂરિમ, સંઘાતિમ, કાષ્ઠકર્મ, પુસ્તકર્મ, ચિત્રકર્મ, મણિકર્મ, દંતકર્મ, પત્રછેદનકર્મ અથવા વિવિધ વેષ્ટિમરૂપ કે તેવા અન્ય પ્રકારના વિવિધ પદાર્થના રૂપોને જોવા માટે જવાનો વિચાર મનથી પણ ન કરે. બાકી બધું ‘શબ્દ’ના વિષયમાં જે કહેવાયું છે, તે અહીં પણ સમજી લેવું. | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-२ अक्षोभ अदि अध्ययन-१ थी ८ |
Hindi | 8 | Gatha | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. अक्खोभ २. सागरे खलु, ३. समुद्द ४. हिमवंत ५. अचलनामे य ।
६. धरणे य ७. पूरणे य, ८. अभिचंदे चेव अट्ठमए ॥ Translated Sutra: अक्षोभ, सागर, समुद्र, हैमवन्त, अचल, धरण, पूर्ण और अभिचन्द्र। | |||||||||
Antkruddashang | अंतकृर्द्दशांगसूत्र | Ardha-Magadhi |
वर्ग-६ मकाई आदि अध्ययन-१ थी १४ |
Hindi | 27 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे। गुणसिलए चेइए। सेणिए राया। चेल्लणा देवी।
तत्थ णं रायगिहे नयरे अज्जुनए नामं मालागारे परिवसइ–अड्ढे जाव अपरिभूए।
तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स बंधुमई नामं भारिया होत्था–सूमालपाणिपाया।
तस्स णं अज्जुनयस्स मालायारस्स रायगिहस्स नयरस्स बहिया, एत्थ णं महं एगे पुप्फारामे होत्था–किण्हे जाव महामेहनिउरुंबभूए दसद्धवन्नकुसुमकुसुमिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे।
तस्स णं पुप्फारामस्स अदूरसामंते, एत्थ णं अज्जुनयस्स मालायारस्स अज्जय-पज्जय-पिइपज्जयागए अणेगकुलपुरिस-परंपरागए मोग्गरपाणिस्स जक्खस्स जक्खाययणे होत्था–पोराणे Translated Sutra: उस काल उस समय में राजगृह नगर था। गुणशीलक उद्यान था। श्रेणिक राजा थे। चेलना रानी थी। ‘अर्जुन’ नाम का एक माली रहता था। उसकी पत्नी बन्धुमती थी, जो अत्यन्त सुन्दर एवं सुकुमार थी। अर्जुन माली का राजगृह नगर के बाहर एक बड़ा पुष्पाराम था। वह पुष्पोद्यान कहीं कृष्ण वर्ण का था, यावत् समुदाय की तरह प्रतीत हो रहा था। | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-२ अक्षोभ अदि अध्ययन-१ थी ८ |
Gujarati | 7 | Sutra | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं पढमस्स वग्गस्स अयमट्ठे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते! वग्गस्स अंतगडदसाणं समणेणं भगवया महावीरेणं के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स अंगस्स अंतगडदसाणं दोच्चस्स वग्गस्स अट्ठ अज्झयणा पन्नत्तातेणं कालेणं तेणं समएणं बारवई नामं नयरी होत्था। अंधगवण्ही पिया। धारिणी माया। Translated Sutra: સૂત્ર– ૭. હે ભગવન! જો શ્રમણ ભગવંત મહાવીરે અંતકૃદ્દશા સૂત્રના પહેલા વર્ગનો આ અર્થ કહ્યો છે તો ભગવંત મહાવીરે બીજા વર્ગનો શો અર્થ કહ્યો છે? તે કાળે, તે સમયે દ્વારવતી નગરીમાં અંધકવૃષ્ણિ રાજા રાજ્ય કરતા હતા અને રાણીનું નામ ધારિણીદેવી હતું. સૂત્ર– ૮. અક્ષોભ, સાગર, સમુદ્ર, હિમવંત, અચલ, ધરણ, પૂરણ અને અભિચંદ્ર આ આઠ તેમના | |||||||||
Antkruddashang | અંતકૃર્દ્દશાંગસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
वर्ग-२ अक्षोभ अदि अध्ययन-१ थी ८ |
Gujarati | 8 | Gatha | Ang-08 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] १. अक्खोभ २. सागरे खलु, ३. समुद्द ४. हिमवंत ५. अचलनामे य ।
६. धरणे य ७. पूरणे य, ८. अभिचंदे चेव अट्ठमए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૭ | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 45 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावसुयं?
लोइयं भावसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
भारहं २. रामायणं ३-४. हंभीमासुरुत्तं ५. कोडिल्लयं ६. घोडमुहं ७. सगभद्दियाओ ८. कप्पासियं ९. नागसुहुमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं १२. वइसेसियं १३. बुद्धवयणं १४. काविलं १५. लोगायतं १६. सट्ठितंतं १७. माढरं १८. पुराणं १९. वागरणं २०. नाडगादि। अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया संगोवंगा।
से तं लोइयं भावसुयं। Translated Sutra: लौकिक (नोआगम) भावश्रुत क्या है ? अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों द्वारा अपनी स्वच्छन्द बुद्धि और मति से रचित महाभारत, रामायण, भीमासुरोक्त, अर्थशास्त्र, घोटकमुख, शटकभद्रिका, कार्पासिक, नागसूत्र, कनकसप्तति, वैशेकिशास्त्र, बौद्धशास्त्र, कामशास्त्र, कपिलशास्त्र, लोकायतशास्त्र, षष्ठितंत्र, माठरशास्त्र, पुराण, व्याकरण, | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 249 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दंदे? दंदे–दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्, अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम्, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम्। से तं दंदे।
से किं तं बहुव्वीही? बहुव्वीही–फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुडय-कयंबो। से तं बहुव्वीही।
से किं तं कम्मधारए? कम्मधारए–धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो। से तं कम्मधारए।
से किं तं दिगू? दिगू–तिन्नि कडुयाणि तिकडुयं, तिन्नि महुराणि तिमहुरं, तिन्नि गुणा तिगुणं, तिन्नि पुराणि तिपुरं, तिन्नि सराणि तिसरं, तिन्नि पुक्खराणि Translated Sutra: द्वन्द्वसमास क्या है ? ‘दंताश्च ओष्ठौ च इति दंतोष्ठम्’, ‘स्तनौ च उदरं च इति स्तनोदरम्’, ‘वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्’ ये सभी शब्द द्वन्द्वसमास रूप हैं। बहुव्रीहिसमास का लक्षण यह है – इस पर्वत पर पुष्पित कुटज और कदंब वृक्ष होने से यह पर्वत फुल्लकुटजकदंब है। यहाँ ‘फुल्लकुटजकदंब’ पर बहुव्रीहिसमास | |||||||||
Anuyogdwar | अनुयोगद्वारासूत्र | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Hindi | 309 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे।
से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य।
से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे।
से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे।
से किं तं पायसाहम्मे? Translated Sutra: आग्नेय मंडल के नक्षत्र, वायव्य मंडल के नक्षत्र या अन्य कोई उत्पात देखकर अनुमान किया जाना कि कुवृष्टि होगी, ठीक वर्षा नहीं होगी। यह अनागतकालग्रहण अनुमान है। उपमान प्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है, जैसे – साधर्म्योपनीत और वैधर्म्योपनीत। जिन पदार्थों की सदृशत उपमा द्वारा सिद्ध की जाए उसे साधर्म्योपनीत कहते | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 299 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] कइ णं भंते! सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! पंच सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए वेउव्विए आहारए तेयए कम्मए।
नेरइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
असुरकुमाराणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–वेउव्विए तेयए कम्मए।
एवं तिन्नि-तिन्नि एए चेव सरीरा जाव थणियकुमाराणं भाणियव्वा।
पुढविकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! तओ सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए तेयए कम्मए।
एवं आउ-तेउ-वणस्सइकाइयाण वि एए चेव तिन्नि सरीरा भाणियव्वा।
वाउकाइयाणं भंते! कइ सरीरा पन्नत्ता? गोयमा! चत्तारि सरीरा पन्नत्ता, तं जहा–ओरालिए Translated Sutra: [૧] હે ભગવન્! શરીરના કેટલા પ્રકાર છે? હે ગૌતમ! શરીરના પાંચ પ્રકાર છે, તે આ પ્રમાણે છે – ૧. ઔદારિક શરીર, ૨. વૈક્રિય શરીર, ૩. આહારક શરીર, ૪. તૈજસ શરીર, ૫. કાર્મણ શરીર. [૨] હે ભગવન્ ! નારકીઓને કેટલા શરીર છે ? હે ગૌતમ! નારકીઓને ત્રણ શરીર હોય છે, ૧. વૈક્રિય, ૨. તૈજસ, ૩. કાર્મણ. હે ભગવન્ ! અસુરકુમારને કેટલા શરીર હોય છે ? હે ગૌતમ! તેને | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 45 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं लोइयं भावसुयं?
लोइयं भावसुयं–जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छंदबुद्धि-मइ-विगप्पियं, तं जहा–
भारहं २. रामायणं ३-४. हंभीमासुरुत्तं ५. कोडिल्लयं ६. घोडमुहं ७. सगभद्दियाओ ८. कप्पासियं ९. नागसुहुमं १०. कणगसत्तरी ११. वेसियं १२. वइसेसियं १३. बुद्धवयणं १४. काविलं १५. लोगायतं १६. सट्ठितंतं १७. माढरं १८. पुराणं १९. वागरणं २०. नाडगादि। अहवा बावत्तरिकलाओ चत्तारि वेया संगोवंगा।
से तं लोइयं भावसुयं। Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૪ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 249 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं दंदे? दंदे–दन्ताश्च ओष्ठौ च दन्तोष्ठम्, स्तनौ च उदरं च स्तनोदरम्, वस्त्रं च पात्रं च वस्त्रपात्रम्, अश्वाश्च महिषाश्च अश्वमहिषम्, अहिश्च नकुलश्च अहिनकुलम्। से तं दंदे।
से किं तं बहुव्वीही? बहुव्वीही–फुल्ला जम्मि गिरिम्मि कुडय-कयंबा सो इमो गिरी फुल्लिय-कुडय-कयंबो। से तं बहुव्वीही।
से किं तं कम्मधारए? कम्मधारए–धवलो वसहो धवलवसहो, किण्हो मिगो किण्हमिगो, सेतो पडो सेतपडो, रत्तो पडो रत्तपडो। से तं कम्मधारए।
से किं तं दिगू? दिगू–तिन्नि कडुयाणि तिकडुयं, तिन्नि महुराणि तिमहुरं, तिन्नि गुणा तिगुणं, तिन्नि पुराणि तिपुरं, तिन्नि सराणि तिसरं, तिन्नि पुक्खराणि Translated Sutra: [૧] દ્વન્દ્વ સમાસનું સ્વરૂપ કેવું છે ? દ્વન્દ્વ સમાસના ઉદાહરણો – દાંત અને ઔષ્ટ – હોઠ તે દંતોષ્ઠ, સ્તનો અને ઉદર તે સ્તનોદર, વસ્ત્ર અને પાત્ર તે વસ્ત્રપાત્ર, અશ્વ અને મહિષ તે અશ્વમહિષ, સાપ અને નોળિયો તે સાપનોળિયો. આ દ્વન્દ્વ સમાસ છે. [૨] બહુવ્રીહિ સમાસનું સ્વરૂપ કેવું છે ? બહુવ્રીહિ સમાસમાં આ પર્વત ઉપર વિકસિત કુટજ | |||||||||
Anuyogdwar | અનુયોગદ્વારાસૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अनुयोगद्वारासूत्र |
Gujarati | 309 | Sutra | Chulika-02 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अग्गेयं वा वायव्वं वा अन्नयरं वा अप्पसत्थं उप्पायं पासित्ता तेणं साहिज्जइ, जहा–कुवुट्ठी भविस्सइ। से तं अनागयकालगहणं। से तं अनुमाणे।
से किं तं ओवम्मे? ओवम्मे दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–साहम्मोवणीए य वेहम्मोवणीए य।
से किं तं साहम्मोवणीए? साहम्मोवणीए तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–किंचिसाहम्मे पायसाहम्मे सव्वसाहम्मे।
से किं तं किंचिसाहम्मे? किंचिसाहम्मे–जहा मंदरो तहा सरिसवो, जहा सरिसवो तहा मंदरो। जहा समुद्दो तहा गोप्पयं, जहा गोप्पयं तहा समुद्दो। जहा आइच्चो तहा खज्जोतो, जहा खज्जोतो तहा आइच्चो। जहा चंदो तहा कुंदो, जहा कुंदो तहा चंदो। से तं किंचिसाहम्मे।
से किं तं पायसाहम्मे? Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૩૦૭ | |||||||||
Auppatik | औपपातिक उपांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Hindi | 3 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से णं पुण्णभद्दे चेइए एक्केणं महया वनसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते।
से णं वनसंडे किण्हे किण्होभासे नीले नीलोभासे हरिए हरिओभासे सीए सीओभासे निद्धे निद्धोभासे तिव्वे तिव्वो भासे किण्हे किण्हच्छाए नीले नीलच्छाए हरिए हरियच्छाए सीए सीयच्छाए निद्धे निद्धच्छाए तिव्वे तिव्वच्छाए घणकडियकडच्छाए रम्मे महामेहनिकुरंबभूए।
से णं पायवे मूलमंते कंदमंते खंधमंते तयामंते सालमंते पवालमंते पत्तमंते पुप्फमंते फलमंते बीयमंते अनुपुव्व-सुजाय-रुइल-वट्टभावपरिणए एक्कखंधी अनेगसाला अनेगसाह प्पसाह विडिमे अनेगनरवाम सुप्पसारिय अगेज्झ घन विउल बद्ध वट्ट खंधे अच्छिद्दपत्ते Translated Sutra: वह पूर्णभद्र चैत्य चारों ओर से एक विशाल वन – खण्ड से घिरा हुआ था। सघनता के कारण वह वन – खण्ड काला, काली आभा वाला, नीला, नीली आभा वाला तथा हरा, हरी आभा वाला था। लताओं, पौधों व वृक्षों की प्रचुरता के कारण वह स्पर्श में शीतल, शीतल आभामय, स्निग्ध, स्निग्ध आभामय, सुन्दर वर्ण आदि उत्कृष्ट गुणयुक्त तथा तीव्र आभामय था। यों | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
समवसरण वर्णन |
Gujarati | 33 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं ताओ सुभद्दप्पमुहाओ देवीओ अंतोअंतेउरंसि ण्हायाओ कयबलिकम्माओ कय कोउय मंगल पायच्छित्ताओ सव्वालंकारविभूसियाओ बहूहिं खुज्जाहिं चिलाईहि वामणीहिं वडभीहिं बब्बरीहिं पउसियाहिं जोणियाहिं पल्हवियाहिं ईसिणियाहिं थारुइणियाहिं लासियाहिं लउसियाहिं सिंहलीहिं दमिलीहिं आरबीहिं पुलिंदीहिं पक्कणीहिं बहलीहिं मरुंडीहिं सबरीहिं पारसीहिं णाणादेसीहिं विदेसपरिमंडियाहिं इंगिय चिंतिय पत्थिय वियाणियाहिं सदेसणेवत्थ गहियवेसाहिं चेडियाचक्कवाल वरिसधर कंचुइज्ज महत्तरवंदपरिक्खित्ताओ अंतेउराओ निग्गच्छंति, ...
...निग्गच्छित्ता जेणेव पाडियक्कजाणाइं तेणेव उवागच्छंति, Translated Sutra: ત્યારપછી તે સુભદ્રા આદિ રાણીઓ અંતઃપુરમાં અંદર સ્નાન યાવત્ પ્રાયશ્ચિત્ત કરી, સર્વાલંકારથી વિભૂષિત થઈ, ઘણી કુબ્જા, ચિલાતી, વામણી, વડભી, બર્બરી, બકુશી, યુનાની, પહ્નવિ, ઇસિનિકી, ચારુકિનિકિ, લકુશિકા, સિંહાલિ, દમીલિ, આરબી, પુલંદી, પકવણી, બહલી, મુરુંડી, શબરિકા, પારસી અર્થાત્ તે – તે દેશાદિની જે પોતપોતાની વેશભૂષા થી | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 44 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कनग पुलग निघस पम्ह गोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे झाणकोट्ठवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से भगवं गोयमे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पन्नसड्ढे उप्पन्नसंसए उप्पन्नकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोऊहल्ले, समुप्पन्नसड्ढे समुप्पन्नसंसए समुप्पन्नकोऊहले Translated Sutra: [૧] તે કાળે, તે સમયે શ્રમણ ભગવંત મહાવીરના મોટા શિષ્ય ઇન્દ્રભૂતિ અણગાર, જે ગૌતમ ગોત્રના, સાત હાથ ઊંચા, સમચતુરસ્ર સંસ્થાન સંસ્થિત, વજ્રઋષભનારાચ સંઘયણી, કસોટી ઉપર ખચિત સ્વર્ણરેખાની આભા સહિત કમળ સમાન ગૌરવર્ણી હતા. તેઓ ઉગ્રતપસ્વી, દીપ્તતપસ્વી, તપ્તતપસ્વી, મહાતપસ્વી અને ઘોરતપસ્વી હતા. તેઓ (પ્રધાન તપ કરતા હોવાથી)ઉદાર, | |||||||||
Auppatik | ઔપપાતિક ઉપાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
उपपात वर्णन |
Gujarati | 50 | Sutra | Upang-01 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] बहुजने णं भंते! अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ–एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ। से कहमेयं भंते! एवं खलु गोयमा! जं णं से बहुजने अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ एवं भासइ एवं पन्नवेइ एवं परूवेइ– एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ, सच्चे णं एसमट्ठे अहंपि णं गोयमा! एवमाइक्खामि एवं भासामि एवं पन्नवेमि एवं परूवेमि एवं खलु अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नयरे घरसए आहारमाहरेइ, घरसए वसहिं उवेइ।
से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ–अम्मडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे णयरे घरसए आहारमाहरेइ, Translated Sutra: ભગવન્! ઘણા લોકો એકબીજાને એમ કહે છે, એમ ભાખે છે, એમ પ્રરૂપે છે કે નિશ્ચે અંબડ પરિવ્રાજક, કંપિલપુર નગરમાં સો ઘરોમાં આહાર કરે છે, સો ઘરોમાં વસતિ કરે છે. ભગવન્ ! તે કેવી રીતે ? ગૌતમ! જે ઘણા લોકો એકબીજાને એમ કહે છે યાવત્ એમ પ્રરૂપે છે – નિશ્ચે અંબડ પરિવ્રાજક કંપિલપુરમાં યાવત્ સો ઘરોમાં વસતિ કરે છે. આ અર્થ સત્ય છે. ગૌતમ | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-८ |
उद्देशक-९ प्रयोगबंध | Hindi | 423 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] वीससाबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा–सादीयवीससाबंधे य, अनादीयवीससाबंधे य।
अनादियवीससाबंधे णं भंते! कतिविहे पन्नत्ते?
गोयमा! तिविहे पन्नत्ते, तं जहा–धम्मत्थिकायअन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे, अधम्मत्थिकाय-अन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे आगासत्थिकायअन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे।
धम्मत्थिकायअन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे णं भंते! किं देसबंधे? सव्वबंधे?
गोयमा! देसबंधे, नो सव्वबंधे। एवं अधम्मत्थिकायअन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे वि, एवं आगासत्थि-कायअन्नमन्नअणा-दीयवीससाबंधे वि।
धम्मत्थिकायअन्नमन्नअनादीयवीससाबंधे णं भंते! कालओ केवच्चिरं होइ?
गोयमा! Translated Sutra: भगवन् ! विस्त्रसाबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा – सादिक विस्त्रसाबंध और अनादिक विस्त्राबंध। भगवन् ! अनादिक – विस्त्रसाबंध कितने प्रकार का है ? गौतम ! तीन प्रकारकाधर्मास्तिकायका अन्योन्य – अनादिक – विस्त्रसाबंध, अधर्मास्तिकाय का अन्योन्य – अनादिक – विस्त्रसाबंध और आकाशास्तिकाय | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-२ चमरोत्पात | Hindi | 172 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरे णं भंते! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? पत्ते? अभिसमन्नागए?
एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए या वि होत्था।
तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं Translated Sutra: भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर को वह दिव्य देवऋद्धि और यावत् वह सब, किस प्रकार उपलब्ध हुई, प्राप्त हुई और अभिसमन्वागत हुई ? हे गौतम ! उस काल और उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारत वर्ष (क्षेत्र) में, विन्ध्याचल की तलहटी में ‘बेभेल’ नामक सन्निवेश था। वहाँ ‘पूरण’ नामक एक गृहपति रहता था। वह आढ्य और दीप्त | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१० |
उद्देशक-४ श्यामहस्ती | Hindi | 487 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियग्गामे नयरे होत्था–वण्णओ। दूतिपलासए चेइए। सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्ठे अंतेवासी इंदभूई नामं अनगारे जाव उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतेवासी सामहत्थी नामं अनगारे पगइभद्दए पगइउवसंते पगइपयणुकोहमाणमायालोभे मिउमद्दवसंपन्ने अल्लीणे विनीए समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरे ज्झाणकोट्ठोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।
तए णं से सामहत्थी अनगारे जायसड्ढे जाव उट्ठाए Translated Sutra: उस काल और उस समय में वाणिज्यग्राम नामक नगर था (वर्णन) वहाँ द्युतिपलाश नामक उद्यान था। वहाँ श्रमण भगवान महावीर का समवसरण हुआ यावत् परीषद् आई और वापस लौट गई। उस काल और उस समय में, श्रमण भगवान महावीरस्वामी के ज्येष्ठ अन्तेवासी इन्द्रभूति नामक अनगार थे। वे ऊर्ध्वजानु यावत् विचरण करते थे। उस काल और उस समय में | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-२ जरा | Hindi | 667 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे जाव दिव्वाइ भोगभोगाइं भुंजमाणे विहरइ। इमं च णं केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विपुलेणं ओहिणा आभोएमाणे-आभोएमाणे पासति, एत्थ णं समणं भगवं महावीरं जंबुद्दीवे दीवे। एवं जहा ईसाने तइयसए तहेव सक्के वि, नवरं–आभिओगे ण सद्दावेति, हरी पायत्ताणियाहिवई, सुघोसा घंटा, पालओ विमानकारी, पालगं विमाणं, उत्तरिल्ले निज्जाणमग्गे, दाहिणपुरत्थिमिल्ले रतिकरपव्वए, सेसं तं चेव जाव नामगं सावेत्ता पज्जुवासति। धम्मकहा जाव परिसा पडिगया।
तए णं से सक्के देविंदे देवराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे समणं Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में शक्र देवेन्द्र देवराज, वज्रपाणि, पुरन्दर यावत् उपभोग करता हुआ विचरता था। वह इस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप की ओर अपने विपुल अवधिज्ञान का उपयोग लगा – लगाकर जम्बूद्वीप में श्रमण भगवान महावीर को देख रहा था। यहाँ तृतीय शतक में कथित ईशानेन्द्र की वक्तव्यता के समान शक्रेन्द्र कहना। विशेषता यह है | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-५ गंगदत्त | Hindi | 676 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–गंगदत्तस्स णं भंते! देवस्स सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवानुभावे कहिं गते? कहिं अनुप्पविट्ठे?
गोयमा! सरीरं गए, सरीरं अनुप्पविट्ठे, कूडागारसालादिट्ठंतो जाव सरीरं अनुप्पविट्ठे। अहो णं भंते! गंगदत्ते देवे महिड्ढिए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे।
गंगदत्तेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुती से दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमन्नागए? पुव्वभवे के आसी? किं नामए वा? किं वा गोत्तेणं?
कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा Translated Sutra: भगवान गौतम ने श्रमण भगवान महावीर से यावत् पूछा – ‘भगवन् ! गंगदत्त देव की वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति यावत् कहाँ गई, कहाँ प्रविष्ट हो गई ?’ गौतम ! यावत् उस गंगदत्त देव के शरीर में गई और शरीर में ही अनुप्रविष्ट हो गई। यहाँ कूटाकारशाला का दृष्टान्त, यावत् वह शरीर में अनुप्रविष्ट हुई, (तक समझना चाहिए।) | |||||||||
Bhagavati | भगवती सूत्र | Ardha-Magadhi |
शतक-१८ |
उद्देशक-२ विशाखा | Hindi | 727 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं विसाहा नामं नगरी होत्था–वण्णओ। बहुपुत्तिए चेइए–वण्णओ। सामी समोसढे जाव पज्जुवासइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे–एवं जहा सोलसमसए बितियउद्देसए तहेव दिव्वेणं जाणविमानेणं आगओ, नवरं–एत्थं आभियोगा वि अत्थि जाव बत्तीसतिविहं नट्टविहिं उवदंसेत्ता जाव पडिगए।
भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–जहा तइयसए ईसानस्स तहेव कूडागारदिट्ठंतो, तहेव पुव्वभवपुच्छा जाव अभिसमन्नागए?
गोयमादि! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे Translated Sutra: उस काल एवं उस समय में विशाखा नामकी नगरी थी। वहाँ बहुपुत्रिक नामक चैत्य था। (वर्णन) एक बार वहाँ श्रमण भगवान महावीर स्वामी का पदार्पण हुआ, यावत् परीषद् पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, वज्रपाणि, पुरन्दर इत्यादि सोलहवें शतक के द्वीतिय उद्देशक में शक्रेन्द्र का जैसा वर्णन है, | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-३ |
उद्देशक-२ चमरोत्पात | Gujarati | 172 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] चमरे णं भंते! असुरिंदेणं असुररण्णा सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? पत्ते? अभिसमन्नागए?
एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूदीवे दीवे भारहे वासे विंज्झगिरिपायमूले बेभेले नामं सन्निवेसे होत्था–वण्णओ।
तत्थ णं बेभेले सन्निवेसे पूरणे नामं गाहावई परिवसइ–अड्ढे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए या वि होत्था।
तए णं तस्स पूरणस्स गाहावइस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झत्थिए चिंतिए पत्थिए मनोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था–अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुपरक्कंताणं Translated Sutra: અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરે તે દિવ્ય દેવઋદ્ધિ યાવત્ ક્યાં લબ્ધ – પ્રાપ્ત – અભિસન્મુખ કરી ? ગૌતમ ! તે કાળે તે સમયે આ જ જંબૂદ્વીપમાં ભરતક્ષેત્રમાં વિંધ્યગિરિની તળેટીમાં બેભેલ નામે સંનિવેશ હતું. તેનું વર્ણન ઉવાવાઈ સૂત્રાનુસાર ચંપાનગરી મુજબ જાણવું. તે બેભેલ સંનિવેશે પૂરણ નામે ગૃહસ્થ રહેતો હતો, તે આઢ્ય, દિપ્ત યાવત્ | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-९ |
उद्देशक-३३ कुंडग्राम | Gujarati | 464 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, दुरुहित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं महयाभडचडगर पहकरवंदपरिक्खित्ते, जेणेव खत्तियकुंडग्गामे नयरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता खत्तियकुंडग्गामं नयरं मज्झंमज्झेणं जेणेव सए गेहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हित्ता रहं Translated Sutra: ત્યારે તે જમાલિ ક્ષત્રિયકુમાર શ્રમણ ભગવંત મહાવીર વડે એ પ્રમાણે કહેવાતા હર્ષિત અને સંતુષ્ટ થઈને ભગવંતને ત્રણ વખત આદક્ષિણ પ્રદક્ષિણા કરી. યાવત્ વંદન નમસ્કાર કરીને, તે જ ચાતુર્ઘંટ અશ્વરથમાં આરૂઢ થઈને શ્રમણ ભગવંત મહાવીરની પાસે બહુશાલક ચૈત્યથી નીકળે છે, નીકળીને કોરંટ પુષ્પની માળાયુક્ત છત્રને ધારણ કરીને | |||||||||
Bhagavati | ભગવતી સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
शतक-१६ |
उद्देशक-५ गंगदत्त | Gujarati | 676 | Sutra | Ang-05 | View Detail |
Mool Sutra: [सूत्र] भंतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–गंगदत्तस्स णं भंते! देवस्स सा दिव्वा देविड्ढी दिव्वा देवज्जुती दिव्वे देवानुभावे कहिं गते? कहिं अनुप्पविट्ठे?
गोयमा! सरीरं गए, सरीरं अनुप्पविट्ठे, कूडागारसालादिट्ठंतो जाव सरीरं अनुप्पविट्ठे। अहो णं भंते! गंगदत्ते देवे महिड्ढिए महज्जुइए महब्बले महायसे महेसक्खे।
गंगदत्तेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्ढी सा दिव्वा देवज्जुती से दिव्वे देवाणुभागे किण्णा लद्धे? किण्णा पत्ते? किण्णा अभिसमन्नागए? पुव्वभवे के आसी? किं नामए वा? किं वा गोत्तेणं?
कयरंसि वा गामंसि वा नगरंसि वा निगमंसि वा Translated Sutra: ભન્તે! એમ આમંત્રી, ગૌતમસ્વામીએ શ્રમણ ભગવંત મહાવીરને યાવત્ આ પ્રમાણે કહ્યું – ભગવન્ ! ગંગદત્ત દેવને તે દિવ્ય દેવઋદ્ધિ, દિવ્ય દેવદ્યુતિ યાવત્ ક્યાં અનુપ્રવેશી ? ગૌતમ ! શરીરમાં ગઈ, શરીરમાં પ્રવેશી. કૂટાગાર શાળાના દૃષ્ટાંતે યાવત્ શરીરમાં અનુપ્રવેશી. ગૌતમસ્વામીએ આશ્ચર્યથી કહ્યું – અહો ! હે ભગવન્ ! ગંગદત્ત | |||||||||
Bhaktaparigna | ભક્તપરિજ્ઞા | Ardha-Magadhi |
आचरण, क्षमापना आदि |
Gujarati | 122 | Gatha | Painna-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साकेयपुराहिवई देवरई रज्जसोक्खपब्भट्ठो ।
पंगुलहेउं छूढो वूढो य नईइ देवीए ॥ Translated Sutra: સૂત્ર– ૧૨૨. સાકેતપુરનો અધિપતિ દેવરતિ રાજા રાજ્યસુખથી ભ્રષ્ટ થયો. કેમ કે પાંગળાને માટે રાણીએ તેને નદીમાં ફેંક્યો અને તે ડૂબ્યો, સૂત્ર– ૧૨૩. સ્ત્રી શોકની નદી, દુરિતની ગુફા, કપટનું ઘર, કલેશકારી, વૈરાગ્નિ સળગાવનાર અરણી, દુઃખની ખાણ, સુખની વિરોધી છે. સૂત્ર– ૧૨૪. કામબાણના વિસ્તારવાળી મૃગાક્ષીના દૃષ્ટિ કટાક્ષો વિશે | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-१ असमाधि स्थान |
Hindi | 2 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता l
कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता तं जहा–
१. दवदवचारी यावि भवति। २. अप्पमज्जियचारी यावि भवति। ३. दुप्पमज्जियचारी यावि भवति। ४. अतिरित्तसेज्जासणिए। ५. रातिनियपरिभासी। ६. थेरोवघातिए। ७. भूतोवघातिए।
८. संजलणे। ९. कोहणे। १०. पिट्ठिमंसिए यावि भवइ।
११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओधारित्ता।
१२. नवाइं अधिकरणाइं अणुप्पन्नाइं उप्पाइत्ता भवइ।
१३. पोराणाइं अधिकरणाइं खामित-विओस-विताइं उदीरित्ता भवइ।
१४. अकाले सज्झायकारए Translated Sutra: यह (जिन प्रवचन में) निश्चय से स्थविर भगवंत ने बीस असमाधि स्थान बताए हैं। स्थविर भगवंत ने कौन – से बीस असमाधि स्थान बताए हैं ? १. अति शीघ्र चलनेवाले होना। २. अप्रमार्जिताचारी होना – रजोहरणादि से प्रमार्जन किया न हो ऐसे स्थान में चलना (बैठना – सोना आदि)। ३. दुष्प्रमार्जिताचारी होना – उपयोग रहितपन से या इधर – उधर | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 15 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्सेवं गुणजातीयस्स अंतेवासिस्स इमा चउव्विहा विनयपडिवत्ती भवति, तं जहा–उवगरण-उप्पायणया, साहिल्लया, वण्णसंजलणता, भारपच्चोरुहणता।
से किं तं उवगरणउप्पायणया? उवगरणउप्पायणया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अणुप्पन्नाइं उवगरणाइं उप्पाएत्ता भवति, पोराणाइं उवगरणाइं सारक्खित्ता भवति संगोवित्ता भवति, परित्तं जाणित्ता पच्चुद्धरित्ता भवति, अहाविधिं संविभइत्ता भवति।
से तं उवगरणउप्पायणया।
से किं तं साहिल्लया? साहिल्लया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अनुलोमवइसहिते यावि भवति, अनुलोमकायकिरियता, पडिरूवकायसंफासणया, सव्वत्थेसु अपडिलोमया।
से तं साहिल्लया।
से किं तं वण्णसंजलणता? Translated Sutra: इस प्रकार शिष्य की (ऊपर बताए अनुसार) चार प्रकार से विनय प्रतिपत्ति यानि गुरु भक्ति होती है। वो इस प्रकार – संयम के साधक वस्त्र, पात्र आदि पाना, बाल ग्लान असक्त साधु की सहायता करना, गण और गणि के गुण प्रकाशित करना, गण का बोझ वहन करना। उपकरण उत्पादन क्या है ? वो चार प्रकार से बताया है – नवीन उपकरण पाना, पूराने उपकरण | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ७ भिक्षु प्रतिमा |
Hindi | 52 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] एवं अहोरातियावि, नवरं– छट्ठेणं भत्तेणं अपानएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा ईसिं दोवि पाए साहट्टु वग्घारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए। तत्थ दिव्व-मानुस्स-तिरिक्खजोणिया उवसग्गा समुप्पज्जेज्जा, ते णं उवसग्गा पयालेज्ज वा पवाडेज्ज वा नो से कप्पति पयलित्तए वा पवडित्तए वा।
तत्थ से उच्चारपासवणं उव्वाहेज्जा नो से कप्पति उच्चारपासवणं ओगिण्हित्तए वा, कप्पति से पुव्वपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिट्ठवित्तए, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए।
एवं खलु एसा अहोरातिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अनुपालिया यावि भवति।
एगराइयण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस अनगारस्स निच्चं Translated Sutra: इसी प्रकार ग्यारहवीं – एक अहोरात्र की भिक्षुप्रतिमा के सम्बन्ध में जानना। विशेष यह कि निर्जल षष्ठभक्त करके अन्न – पान ग्रहण करना, गाँव यावत् राजधानी के बाहर दोनों पाँव सकुड़कर और दोनों हाथ घुटने पर्यन्त लम्बे रखकर कायोत्सर्ग करना। शेष पूर्ववत् यावत् जिनाज्ञानुसार पालन करनेवाला होता है। अब बारहवीं भिक्षुप्रतिमा | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-९ विनयसमाधि |
उद्देशक-४ | Hindi | 480 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] विविहगुणतवोरए य निच्चं भवइ निरासए निज्जरट्ठिए ।
तवसा धुणइ पुराणपावगं जुत्तो सया तवसमाहिए ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ४७९ | |||||||||
Dashvaikalik | दशवैकालिक सूत्र | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० सभिक्षु |
Hindi | 491 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सम्मद्दिट्ठी सया अमूढे अत्थि हु नाणे तवे संजमे य ।
तवसा धुणइ पुराणपावगं मनवयकायसुसंवुडे जे स भिक्खू ॥ Translated Sutra: जिसकी दृष्टि सम्यक् है, जो सदा अमूढ है, ज्ञान, तप और संयम में आस्थावान् है तथा तपस्या से पुराने पाप कर्मों को नष्ट करता है और मन – वचन – काया से सुसंवृत है, वही भिक्षु है। | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-९ विनयसमाधि |
उद्देशक-४ | Gujarati | 480 | Gatha | Mool-03 | View Detail |
Mool Sutra: [गाथा] विविहगुणतवोरए य निच्चं भवइ निरासए निज्जरट्ठिए ।
तवसा धुणइ पुराणपावगं जुत्तो सया तवसमाहिए ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૭૯ | |||||||||
Dashvaikalik | દશવૈકાલિક સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
अध्ययन-१० सभिक्षु |
Gujarati | 491 | Gatha | Mool-03 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सम्मद्दिट्ठी सया अमूढे अत्थि हु नाणे तवे संजमे य ।
तवसा धुणइ पुराणपावगं मनवयकायसुसंवुडे जे स भिक्खू ॥ Translated Sutra: જુઓ સૂત્ર ૪૯૦ | |||||||||
Gyatadharmakatha | धर्मकथांग सूत्र | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Hindi | 76 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अठमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणु इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पन्नत्ते।
तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नामं रायहाणी–नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोग-भूया।
तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे Translated Sutra: ’भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने सातवे ज्ञात – अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो आठवे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ?’ ‘हे जम्बू ! उस काल और उस समय में, इसी जम्बूद्वीप में महाविदेह नामक वर्ष में, मेरु पर्वत से पश्चिम में, निषध नामक वर्षधर पर्वत से उत्तर में, शीतोदा महानदी से दक्षिण में, सुखावह नामक वक्षार पर्वत से पश्चिम | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Gujarati | 76 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं सत्तमस्स नायज्झयणस्स अठमट्ठे पन्नत्ते, अट्ठमस्स णं भंते! नायज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणु इहेव जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे मंदरस्स पव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, निसढस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, सोओदाए महानदीए दाहिणेणं, सुहावहस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुद्दस्स पुरत्थिमेणं, एत्थ णं सलिलावई नामं विजए पन्नत्ते।
तत्थ णं सलिलावईविजए वीयसोगा नामं रायहाणी–नवजोयणवित्थिण्णा जाव पच्चक्खं देवलोग-भूया।
तीसे णं वीयसोगाए रायहाणीए उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए इंदकुंभे Translated Sutra: સૂત્ર– ૭૬. ભગવન્ ! જો શ્રમણ યાવત્ સિદ્ધિ ગતિ સંપ્રાપ્ત ભગવંત મહાવીરે સાતમા જ્ઞાત અધ્યયનનો આ અર્થ કહ્યો, તો આઠમા જ્ઞાત અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો ? હે જંબૂ ! તે કાળે, તે સમયે આ જ જંબૂદ્વીપના મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં મેરુ પર્વતની પશ્ચિમે નિષધ વર્ષધર પર્વતની ઉત્તરે, શીતોદા મહાનદીની દક્ષિણે સુખાવહ વક્ષસ્કાર પર્વતની | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-५ शेलक |
Gujarati | 66 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं सेलगपुरे नामं नगरे होत्था। सुभूमिभागे उज्जाणे। सेलए राया। पउमावई देवी। मंडुए कुमारे जुवराया।
तस्स णं सेलगस्स पंथगपामोक्खा पंच मंतिसया होत्था–उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मियाए पारिणामियाए उववेया रज्जधुरं चिंतयंति।
थावच्चापुत्ते सेलगपुरे समोसढे। राया निग्गए।
तए णं से सेलए राया थावच्चापुत्तस्स अनगारस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमानंदिए पीइमणे परम-सोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता थावच्चा-पुत्तं अनगारं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी–
सद्दहामि Translated Sutra: સૂત્ર– ૬૬. તે કાળે, તે સમયે શૈલકપુર નગર હતું. સુભૂમિભાગ ઉદ્યાન હતું. શૈલક રાજા, પદ્માવતી દેવી, મંડુકકુમાર યુવરાજ. તે શૈલકને પંથક આદિ ૫૦૦ મંત્રી હતા. તેઓ ઔત્પાતિકી, વૈનયિકી આદિ ચાર પ્રકારની બુદ્ધિયુક્ત થઈ રાજ્યધૂરાના ચિંતક હતા. થાવચ્ચાપુત્ર, શૈલકપુરે પધાર્યા, રાજા નીકળ્યો, ધર્મકથા કહી, ધર્મ સાંભળ્યો, પછી કહ્યું | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Gujarati | 9 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं नायाणं एगूणवीसं अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा–उक्खित्तणाए जाव पुंडरीए त्ति य। पढमस्स णं भंते! अज्झयणस्स के अट्ठे पन्नत्ते?
एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे दाहिणड्ढभरहे रायगिहे नामं नयरे होत्था –वण्णओ।
गुणसिलए चेतिए–वण्णओ।
तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए नामं राया होत्था–महताहिमवंत-महंत-मलय-मंदर-महिंदसारे वण्णओ। Translated Sutra: સૂત્ર– ૯. ભગવન્ ! જો શ્રમણ યાવત્ સિધ્ધિસ્થાનને સંપ્રાપ્તે જ્ઞાત કથાના ૧૯ – અધ્યયનો કહ્યા છે – ઉત્ક્ષિપ્ત યાવત્ પુંડરીક. તો. ભગવન્ ! પહેલા અધ્યયનનો શો અર્થ કહ્યો છે ? હે જંબૂ! તે કાળે, તે સમયે આ જંબૂદ્વીપ દ્વીપના ભરતક્ષેત્રના દક્ષિણાર્દ્ધ ભરતમાં રાજગૃહ નામે નગર હતું. ગુણશીલ ચૈત્ય હતું. તે રાજગૃહ નગરમાં શ્રેણિક | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ उत्क्षिप्तज्ञान |
Gujarati | 31 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तए णं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-
सद्दहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं।
पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं।
रोएमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं।
अब्भुट्ठेमि णं भंते! निग्गंथं पावयणं।
एयमेयं भंते! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते! से जहेयं तुब्भे वयहं। नवरि देवानुप्पिया! अम्मापियरो आपुच्छामि। तओ पच्छा मुंडे भवित्ता णं अगाराओ अनगारियं पव्वइस्सामि।
अहासुहं देवानुप्पिया! Translated Sutra: ત્યારે તે મેઘકુમારે શ્રમણ ભગવંત મહાવીર પાસે ધર્મ સાંભળી, સમજી, હૃષ્ટ – તુષ્ટ થઈ ભગવંતને ત્રણ વખત આદક્ષિણ – પ્રદક્ષિણા કરે છે, કરીને વંદન – નમસ્કાર કરે છે, કરીને આમ કહે છે – ભગવન્ ! હું નિર્ગ્રન્થ પ્રવચનની શ્રદ્ધા કરું છું, નિર્ગ્રન્થ પ્રવચનની પ્રીતિ કરું છું. નિર્ગ્રન્થ પ્રવચનની રૂચિ કરું છું, હું નિર્ગ્રન્થ | |||||||||
Gyatadharmakatha | ધર્મકથાંગ સૂત્ર | Ardha-Magadhi |
श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-८ मल्ली |
Gujarati | 89 | Sutra | Ang-06 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तेणं कालेणं तेणं समएणं कुणाला नाम जनवए होत्था। तत्थ णं सावत्थी नाम नयरी होत्था। तत्थ णं रुप्पी कुणालाहिवई नाम राया होत्था। तस्स णं रुप्पिस्स धूया धारिणीए देवीए अत्तया सुबाहू नाम दारिया होत्था–सुकुमालपाणिपाया रूवेण य जोव्वणेण य लावण्णेण य उक्किट्ठा उक्किट्ठसरीरा जाया यावि होत्था।
तीसे णं सुबाहूए दारियाए अन्नया चाउम्मासिय-मज्जणए जाए यावि होत्था।
तए णं ते रुप्पी कुणालाहिवई सुबाहूए दारियाए चाउम्मासिय-मज्जणयं उवट्ठियं जाणइ, जाणित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी–एवं खलु देवानुप्पिया! सुबाहूए दारियाए कल्लं चाउम्मासिय-मज्जणए भविस्सइ, Translated Sutra: સૂત્ર– ૮૯. તે કાળે, તે સમયે કુણાલ જનપદ હતું. શ્રાવસ્તી નગરી હતી. ત્યાં કુણાલાધિપતિ રુકમી નામે રાજા હતો. તે રુકમીની પુત્રી ધારિણી રાણીની આત્મજા સુબાહુ નામે કન્યા હતી. તે સુકુમાર, રૂપ – યૌવન અને લાવણ્યથી ઉત્કૃષ્ટ અને ઉત્કૃષ્ટ શરીરી હતી. તે સુબાહુ કન્યાને કોઈ દિવસે ચાતુર્માસિક સ્નાનનો અવસર આવ્યો. ત્યારે રુકમી |