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Global Search for JAIN Aagam & ScripturesScripture Name | Translated Name | Mool Language | Chapter | Section | Translation | Sutra # | Type | Category | Action |
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Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-१ असमाधि स्थान |
Hindi | 1 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं,
एसो पंच नमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसि, पढमं हवइ मंगलं,
सुयं मे आउसं तेणं भगवता एवमक्खातं। Translated Sutra: अरिहंत को मेरे नमस्कार हो, सिद्ध को मेरे नमस्कार हो, आचार्य को मेरे नमस्कार हो, उपाध्याय को मेरे नमस्कार हो, लोक में रहे सभी साधु को मेरे नमस्कार हो, इन पाँचों को किए नमस्कार – सर्व पाप के नाशक हैं, सर्व मंगल में उत्कृष्ट मंगल हैं। हे आयुष्मन् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सुना है। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-१ असमाधि स्थान |
Hindi | 2 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता l
कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं वीसं असमाहिट्ठाणा पन्नत्ता तं जहा–
१. दवदवचारी यावि भवति। २. अप्पमज्जियचारी यावि भवति। ३. दुप्पमज्जियचारी यावि भवति। ४. अतिरित्तसेज्जासणिए। ५. रातिनियपरिभासी। ६. थेरोवघातिए। ७. भूतोवघातिए।
८. संजलणे। ९. कोहणे। १०. पिट्ठिमंसिए यावि भवइ।
११. अभिक्खणं-अभिक्खणं ओधारित्ता।
१२. नवाइं अधिकरणाइं अणुप्पन्नाइं उप्पाइत्ता भवइ।
१३. पोराणाइं अधिकरणाइं खामित-विओस-विताइं उदीरित्ता भवइ।
१४. अकाले सज्झायकारए Translated Sutra: यह (जिन प्रवचन में) निश्चय से स्थविर भगवंत ने बीस असमाधि स्थान बताए हैं। स्थविर भगवंत ने कौन – से बीस असमाधि स्थान बताए हैं ? १. अति शीघ्र चलनेवाले होना। २. अप्रमार्जिताचारी होना – रजोहरणादि से प्रमार्जन किया न हो ऐसे स्थान में चलना (बैठना – सोना आदि)। ३. दुष्प्रमार्जिताचारी होना – उपयोग रहितपन से या इधर – उधर | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-२ सबला |
Hindi | 3 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवता एवमक्खातं– इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पन्नत्ता।
कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पन्नत्ता?
इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कवीसं सबला पन्नत्ता, तं जहा–
१. हत्थकम्मं करेमाणे सबले। २. मेहुणं पडिसेवमाणे सबले।
३. रातीभोयणं भुंजमाणे सबले। ४. आहाकम्मं भुंजमाणे सबले।
५. रायपिंडं भुंजमाणे सबले।
६. कीयं पामिच्चं अच्छिज्जं अनिसिट्ठं आहुट्टु दिज्जमाणं भुंजमाणे सबले।
७. अभिक्खणं पडियाइक्खित्ताणं भुंजमाणे सबले।
८. अंतो छण्हं मासाणं गणातो गणं संकममाणे सबले।
९. अंतो मासस्स तओ दगलेवे करेमाणे सबले।
१०. अंतो मासस्स ततो माइट्ठाणे Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने इस प्रकार सूना है। यह आर्हत् प्रवचन में स्थविर भगवंत ने वाकई ईक्कीस सबल (दोष) प्ररूपे हैं। वो स्थविर भगवंत ने वाकई कौन – से ईक्कीस सबल दोष बताए हैं ? स्थविर भगवंत ने निश्चय से जो ईक्कीस – सबल दोष बताए हैं वो इस प्रकार है – १. हस्त – कर्म करना, मैथुन सम्बन्धी | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-३ आशातना |
Hindi | 4 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ।
कतराओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ?
इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं तेत्तीसं आसायणाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
१. सेहे रातिनियस्स पुरतो गंता भवति, आसादना सेहस्स।
२. सेहे रातिनियस्स सपक्खं गंता भवति, आसादना सेहस्स।
३. सेहे रातिनियस्स आसन्नं गंता भवति, आसादना सेहस्स।
४. सेहे रातिनियस्स पुरओ चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स।
५. सेहे रातिनियस्स सपक्खं चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स।
६. सेहे रातिनियस्स आसन्नं चिट्ठित्ता भवति, आसादना सेहस्स।
७. सेहे रातिनियस्स Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! उस निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्व – मुख से मैंने इस प्रकार सूना है। यह आर्हत् प्रवचन में स्थविर भगवंत ने वाकई में ३३ – आशातना प्ररूपी है। उस स्थविर भगवंत ने सचमुच कौन – सी ३३ – आशातना बताई है ? वो स्थविर भगवंत ने सचमुच जो ३३ – आशातना बताई है वह इस प्रकार है – १ – ९. शैक्ष (अल्प दीक्षा पर्यायवाले साधु) | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 5 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं– इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं अट्ठविहा गणिसंपदा पन्नत्ता।
कयरा खलु थेरेहिं भगवंतेहिं? अट्ठविहा गणिसंपदा पन्नत्ता?
इमा खलु थेरेहिं भगवंतेहिं? अट्ठविहा गणिसंपदा पन्नत्ता, तं जहा– आयारसंपदा सुतसंपदा सरीरसंपदा वयणसंपदा वायणासंपदा मतिसंपदा पओगसंपदा संगहपरिण्णा नामं अट्ठमा। Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! उस निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्व – मुख से मैंने इस प्रकार सूना है। यह (आर्हत् प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने सचमुच आठ प्रकार की गणिसंपदा कही है। उस स्थविर भगवंत ने वाकई, कौन सी आठ प्रकार की गणिसंपदा बताई है ? उस स्थविर भगवंत ने सचमुच जो ८ – प्रकार की संपदा कही है वो इस प्रकार है – आचार, सूत्र, शरीर, वचन, | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 69 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जं निस्सितो उव्वहती, जससाहिगमेण वा ।
तस्स लुब्भसि वित्तंसि, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो जिसके आश्रय से आजीविका करता है, जिसकी सेवा से समृद्ध हुआ है, वह उसीके धन में आसक्त होकर, उसका ही सर्वस्व हरण करे, निर्धन ऐसा कोई जिस व्यक्ति या ग्रामवासी के आश्रय से सर्व साधनसम्पन्न हो जाए, फिर इर्ष्या या संक्लिष्टचित्त होकर आश्रयदाता के लाभ में यदि अन्तरायभूत हो, तो महामोहनीय कर्म बांधे सूत्र – ६९–७१ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 70 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इस्सरेण अदुवा गामेण, अनिस्सरे इस्सरीकए ।
तस्स संपग्गहितस्स, सिरी अतुलमागता ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ६९ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 71 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] इस्सादोसेण आइट्ठे, कलुसाविलचेतसे ।
जे अंतरायं चेतेति, महामोहं पकुव्वति ॥ [युग्मम्] Translated Sutra: देखो सूत्र ६९ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 72 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सप्पी जहा अंडउडं, भत्तारं जो विहिंसइ ।
सेणावतिं पसत्थारं, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जिस प्रकार सापण अपने बच्चे को खा जाती है, उसी प्रकार कोई स्त्री अपने पति को, मंत्री, राजा को, सेना सेनापति को या शिष्य शिक्षक को मार ड़ाले तो वे महामोहनीय कर्म बांधते हैं। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 73 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जे नायगं व रट्ठस्स, नेतारं निगमस्स वा ।
सेट्ठिं च बहुरवं हंता, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो राष्ट्र नायक को, नेता को, लोकप्रिय श्रेष्ठी को या समुद्र में द्वीप सदृश अनाथ जन के रक्षक को मार ड़ाले तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ७३, ७४ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 74 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] बहुजनस्स नेतारं, दीवं ताणं च पाणिणं ।
एतारिसं नरं हंता, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७३ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 75 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] उवट्ठियं पडिविरयं, संजयं सुतवस्सियं ।
वोकम्म धम्माओ भंसे, महामोहं पकुव्वइ ॥ Translated Sutra: जो पापविरत मुमुक्षु, संयत तपस्वी को धर्म से भ्रष्ट करे, अज्ञानी ऐसा वह जिनेश्वर के अवर्णवाद करे, अनेक जीवों को न्यायमार्ग से भ्रष्ट करे, न्यायमार्ग की द्वेषपूर्वक निन्दा करे तो वह महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ७५–७७ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 76 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तहेवानंतनाणीणं जिणाणं वरदंसिणं ।
तेसिं अवण्णवं बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७५ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 77 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] नेयाउयस्स मग्गस्स, दुट्ठे अवयरई बहुं ।
तं तिप्पयंतो भावेति, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७५ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 78 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयरिय-उवज्झाएहिं, सुयं विनयं च गाहिए ।
ते चेव खिंसती बाले, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जिस आचार्य या उपाध्याय के पास ज्ञान एवं आचार की शिक्षा ली हो – उसी की अवहेलना करे, अहंकारी ऐसा वह उन आचार्य – उपाध्याय की सम्यक् सेवा न करे, आदर – सत्कार न करे, तब महामोहनीय कर्म बांधता है। सूत्र – ७८, ७९ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 79 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] आयरिय-उवज्झायाणं, सम्मं न पडितप्पति ।
अप्पडिपूयए थद्धे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ७८ | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 80 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अबहुस्सुते वि जे केइ, सुतेणं पविकत्थइ ।
सज्झायवायं वायंइ, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: जो बहुश्रुत न होते हुए भी अपने को बहुश्रुत, स्वाध्यायी, शास्त्रज्ञ कहे, तपस्वी न होते हुए भी अपने को तपस्वी बताए, वह सर्व जनों में सबसे बड़ा चोर है। ‘‘शक्तिमान होते हुए भी ग्लान मुनि की सेवा न करना’’ – ऐसा कहे, वह महामूर्ख, मायावी और मिथ्यात्वी – कलुषित चित्त होकर अपने आत्मा का अहित करता है। यह सब महामोहनीय कर्म | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 81 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अतवस्सिते य जे केइ, तवेणं पविकत्थति ।
सव्वलोगपरे तेणे, महामोहं पकुव्वति ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८० | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दशा ९ मोहनीय स्थानो |
Hindi | 82 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] साहारणट्ठा जे केइ, गिलाणम्मि उवट्ठिते ।
पभू ण कुव्वती किच्चं, मज्झं पेस ण कुव्वती ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ८० | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 6 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं आयारसंपदा? आयारसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– संजमधुवजोगजुत्ते यावि भवति, असंपग्गहियप्पा, अनियतवित्ती, वुड्ढसीले यावि भवति। से तं आयारसंपदा। Translated Sutra: वो आचार संपदा कौन – सी हैं ? आचार यानि भगवंत की प्ररूपी हुई आचरणा या मर्यादा दूसरी प्रकार से कहे तो ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य उन पाँच की आचरणा, संपदा यानि संपत्ति। यह आचार संपत्ति चार प्रकार से हैं वो इस प्रकार – संयम क्रिया में सदा जुड़े रहना, अहंकार रहित होना, अनियत विहार होना यानि एक स्थान पर स्थायी होकर | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 7 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सुतसंपदा? सुतसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–बहुसुते यावि भवति, परिचितसुते यावि भवति, विचित्तसुते यावि भवति, घोसविसुद्धिकारए यावि भवति। से तं सुतसंपदा। Translated Sutra: वो श्रुत – संपत्ति कौन – सी है ? (श्रुत यानि आगम या शास्त्रज्ञान) यह श्रुत संपत्ति चार प्रकार से बताई है। वो इस प्रकार – बहुश्रुतता – कईं शास्त्र के ज्ञाता होना, परिचितता – सूत्रार्थ से अच्छी प्रकार परिचित होना। विचित्र श्रुतता – स्वसमय और परसमय के तथा उत्सर्ग – अपवाद के ज्ञाता होना, घोषविशुद्धि कारकता – शुद्ध | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 8 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं सरीरसंपदा? सरीरसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–आरोहपरिणाहसंपन्ने यावि भवति, अनोतप्पसरीरे, थिरसंघयणे, बहुपडिपुण्णिंदिए यावि भवति। से तं सरीरसंपदा। Translated Sutra: वो शरीर संपत्ति कौन – सी है ? शरीर संपत्ति चारप्रकार से। वो ऐसे – शरीर की लम्बाई – चौड़ाई का सही नाप होना, कुरूप या लज्जा पैदा करे ऐसे शरीरवाले न होना, शरीर संहनन सुद्रढ़ होना, पाँच इन्द्रिय परिपूर्ण होना। | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 9 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वयणसंपदा? वयणसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–आदिज्जवयणे यावि भवति, महुर-वयणे यावि भवति, अनिस्सियवयणे यावि भवति, असंदिद्धभासी यावि भवति। से तं वयणसंपदा। Translated Sutra: वो वचन संपत्ति कौन – सी है ? (वचन यानि भाषा) वचन संपत्ति चार प्रकार की बताई है। वो इस प्रकार – आदेयता, जिसका वचन सर्वजन माननीय हो, मधुर वचनवाले होना, अनिश्रितता राग – द्वेष रहित यानि कि निष्पक्ष पाती वचनवाले होना, असंदिग्धता – संदेह रहित वचनवाले होना। | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 10 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं वायणासंपदा? वायणासंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–विजयं उद्दिसति, विजयं वाएति, परिनिव्वावियं वाएति, अत्थनिज्जवए यावि भवति। से तं वायणासंपदा। Translated Sutra: वो वाचना संपत्ति कौन – सी है ? वाचना संपत्ति चार प्रकार से बताई है। वो इस प्रकार – शिल्प की योग्यता को तय करनेवाली होना, सोचपूर्वक अध्यापन करवानेवाली होना, लायकात अनुसार उपयुक्त शिक्षा देनेवाली हो, अर्थ – संगतिपूर्वक नय – प्रमाण से अध्यापन करनेवाली हो। | |||||||||
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दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 11 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं मतिसंपदा?
मतिसंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–ओग्गहमतिसंपदा, ईहामतिसंपदा, अवायमतिसंपदा, धारणामतिसंपदा।
से किं तं ओग्गहमती? ओग्गहमती छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा– खिप्पं ओगिण्हति, बहुं ओगिण्हति, बहुविहं ओगिण्हति, धुवं ओगिण्हति, अनिस्सियं ओगिण्हति, असंदिद्धं ओगिण्हति।
से तं ओग्गहमती। एवं ईहामती वि, एवं अवायमती वि।
से किं तं धारणामती? धारणामती छव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–बहुं धरेति, बहुविधं धरेति, पोराणं धरेति, दुद्धरं धरेति, अनिस्सियं धरेति, असंदिद्धं धरेति।
से तं धारणामती। से तं मतिसंपदा। Translated Sutra: वो मति संपत्ति कौन – सी है ? (मति यानि जल्द से चीज को ग्रहण करना) मति संपत्ति चार प्रकार से बताई है। वो इस प्रकार – अवग्रह सामान्य रूप में अर्थ को जानना, ईहा विशेष रूप में अर्थ जानना, अवाय – ईहित चीज का विशेष रूप से निश्चय करना, धारणा – जानी हुई चीज का कालान्तर में भी स्मरण रखना। वो अवग्रहमति संपत्ति कौन – सी है ? अवग्रहमति | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 12 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं पओगसंपदा? पओगसंपदा चउव्विधा पन्नत्ता, तं जहा– आतं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, परिसं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, खेत्तं विदाय वादं पउंजित्ता भवति, वत्थुं विदाय वादं पउंजित्ता भवति। से तं पओगसंपदा। Translated Sutra: वो प्रयोग संपत्ति कौन – सी है ? वो प्रयोग – संपत्ति चार प्रकार से है। वो इस प्रकार – अपनी शक्ति जानकर वादविवाद करना, सभा के भावों को जानकर, क्षेत्र की जानकारी पाकर, वस्तु विषय को जानकर पुरुष विशेष के साथ वाद – विवाद करना यह प्रयोग – संपत्ति। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 13 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] से किं तं संगहपरिण्णासंपदा? संगहपरिण्णासंपदा चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–बहुजनपाओग्गताए वासावासासु खेत्तं पडिलेहित्ता भवति, बहुजनपाओग्गताए पाडिहारियपीढफलगसेज्जासंथारयं ओगेण्हित्ता भवति। कालेणं कालं समाणइत्ता भवति, अहागुरुं संपूएत्ता भवति।
से तं संगहपरिण्णासंपदा। Translated Sutra: वो संग्रह परिज्ञा संपत्ति कौन – सी है ? संग्रह परिज्ञा संपत्ति चार प्रकार से। वो इस प्रकार – वर्षावास के लिए कईं मुनि को रहने के उचित स्थान देखना, कईं मुनिजन के लिए वापस करना कहकर पीठ फलक शय्या संथारा ग्रहण करना, काल को आश्रित करके कालोचित कार्य करना, करवाना, गुरुजन का उचित पूजा – सत्कार करना। | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 14 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] आयरिओ अंतेवासिं इमाए चउव्विधाए विणयपडिवत्तीए विनएत्ता निरिणत्तं गच्छति, तं जहा–आयारविनएणं, सुयविनएणं, विक्खेवणाविनएणं, दोसनिग्घायणाविनएणं।
से किं तं आयारविनए? आयारविनए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–संजमसामायारी यावि भवति, तवसामायारी यावि भवति, गणसामायारी यावि भवति, एगल्लविहारसामायारी यावि भवति।
से तं आयारविनए।
से किं तं सुतविनए? सुतविनए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–सुतं वाएति, अत्थं वाएति, हियं वाएति, निस्सेसं वाएति।
से तं सुतविनए।
से किं तं विक्खेवणाविनए? विक्खेवणाविनए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–अदिट्ठं दिट्ठपुव्वगताए विनएत्ता भवति, दिट्ठपुव्वगं साहम्मियत्ताए Translated Sutra: आठ प्रकार की संपदा के वर्णन के बाद अब गणि का कर्तव्य कहते हैं। आचार्य अपने शिष्य को आचार – विनय, श्रुत विनय, विक्षेपणा – (मिथ्यात्व में से सम्यक्त्व में स्थापना करने समान) विनय और दोष निर्घातन – (दोष का नाश करने समान) विनय। वो आचार विनय क्या है ? आचार – विनय (पाँच प्रकार के आचार या आठ कर्म के विनाश करनेवाला आचार यानि | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-४ गणिसंपदा |
Hindi | 15 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] तस्सेवं गुणजातीयस्स अंतेवासिस्स इमा चउव्विहा विनयपडिवत्ती भवति, तं जहा–उवगरण-उप्पायणया, साहिल्लया, वण्णसंजलणता, भारपच्चोरुहणता।
से किं तं उवगरणउप्पायणया? उवगरणउप्पायणया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अणुप्पन्नाइं उवगरणाइं उप्पाएत्ता भवति, पोराणाइं उवगरणाइं सारक्खित्ता भवति संगोवित्ता भवति, परित्तं जाणित्ता पच्चुद्धरित्ता भवति, अहाविधिं संविभइत्ता भवति।
से तं उवगरणउप्पायणया।
से किं तं साहिल्लया? साहिल्लया चउव्विहा पन्नत्ता, तं जहा–अनुलोमवइसहिते यावि भवति, अनुलोमकायकिरियता, पडिरूवकायसंफासणया, सव्वत्थेसु अपडिलोमया।
से तं साहिल्लया।
से किं तं वण्णसंजलणता? Translated Sutra: इस प्रकार शिष्य की (ऊपर बताए अनुसार) चार प्रकार से विनय प्रतिपत्ति यानि गुरु भक्ति होती है। वो इस प्रकार – संयम के साधक वस्त्र, पात्र आदि पाना, बाल ग्लान असक्त साधु की सहायता करना, गण और गणि के गुण प्रकाशित करना, गण का बोझ वहन करना। उपकरण उत्पादन क्या है ? वो चार प्रकार से बताया है – नवीन उपकरण पाना, पूराने उपकरण | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 16 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण – प्राप्त भगवंत के मुख से मैंने ऐसा सूना है – इस (जिन प्रवचन में) निश्चय से स्थविर भगवंत ने दश चित्त समाधि स्थान बताए हैं। वो कौन – से दश चित्त समाधि स्थान स्थविर भगवंत ने बताए हैं? जो दश चित्त समाधि स्थान स्थविर भगवंत ने बताए हैं वो इस प्रकार है – उस काल और उस समय यानि चौथे आरे में भगवान | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 17 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] अज्जो! इति समणे भगवं महावीरे समणा निग्गंथा य निग्गंथीओ य आमंतेत्ता एवं वयासी–
इह खलु अज्जो! निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इरियासमिताणं भासासमिताणं एसणा-समिताणं आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिताणं उच्चारपासवणखेलसिंधाणजल्लपारिट्ठावणिता-समिताणं मनसमिताणं वयसमिताणं कायसमिताणं मनगुत्ताणं वयगुत्ताणं कायगुत्ताणं गुत्ताणं गुत्तिंदियाणं गुत्तबंभयारीणं आयट्ठीणं आयहिताणं आयजोगीणं आयपरक्कमाणं पक्खियपोसहिएसु समाधिपत्ताणं ज्झियायमाणाणं इमाइं दस चित्तसमाहिट्ठाणाइं असमुप्पन्नपुव्वाइं समुप्पज्जिज्जा, तं जहा–
१. धम्मचिंता वा से असमुप्पन्नपुव्वा समुप्पज्जेज्जा Translated Sutra: हे आर्य ! इस प्रकार सम्बोधन करके श्रमण भगवान महावीर साधु और साध्वी को कहने लगे। हे आर्य ! इर्या – भाषा – एषणा – आदान भांड़ मात्र निक्षेपणा और उच्चार प्रस्नवण खेल सिंधाणक जल की परिष्ठापना, वो पाँच समितिवाले, गुप्तेन्द्रिय, गुप्तब्रह्मचारी, आत्मार्थी, आत्महितकर, आत्मयोगी, आत्मपराक्रमी, पाक्षिक पौषध (यानि पर्वतिथि | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 18 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] ओयं चित्तं समादाय, ज्झाणं समनुपस्सति ।
धम्मे ठिओ अविमनो, निव्वाणमभिगच्छइ ॥ Translated Sutra: रागद्वेष रहित निर्मल चित्त को धारण करने से एकाग्रता समान ध्यान उत्पन्न होता है। शंकरहित धर्म में स्थित आत्मा निर्वाण प्राप्त करती है। | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 19 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] न इमं चित्तं समादाए, भुज्जो लोयंसि जायति ।
अप्पणो उत्तमं ठाणं, सन्नीनाणेण जाणइ ॥ Translated Sutra: इस प्रकार से चित्त समाधि धारण करनेवाली आत्मा दूसरी बार लोक में उत्पन्न नहीं होती और अपने अपने उत्तम स्थान को जातिस्मरण ज्ञान से जान लेता है। | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 20 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] अहातच्चं तु सुविणं, खिप्पं पासइ संवुडे ।
सव्वं च ओहं तरती, दुक्खतो य विमुच्चइ ॥ Translated Sutra: संवृत्त आत्मा यथातथ्य सपने को देखकर जल्द से सारे संसार समुद्र को पार कर लेता है और तमाम दुःख से छूटकारा पा लेता है। | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 21 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पंताइ भयमाणस्स, विवित्तं सयनासनं ।
अप्पाहारस्स दंतस्स, देवा दंसेंति तातिणो ॥ Translated Sutra: अंतप्रान्त भोजी, विविक्त, शयन, आसन सेवन करके, अल्प आहार करनेवाले, इन्द्रिय का दमन करनेवाले, षट्काय रक्षक मुनि को देवों के दर्शन होते हैं। | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 22 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सव्वकामविरत्तस्स, खमतो भयभेरवं ।
तओ से तोधी भवति, संजतस्स तवस्सिणो ॥ Translated Sutra: सर्वकामभोग से विरक्त, भीम – भैरव, परिषह – उपसर्ग सहनेवाले तपस्वी संयत को अवधिज्ञान उत्पन्न होता है | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 23 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] तवसा अवहट्टुलेसस्स, दंसनं परिसुज्झति ।
उड्ढमहेतिरियं च, सव्वं समनुपस्सति ॥ Translated Sutra: जिसने तप द्वारा लेश्या को दूर किया है उसका अवधि दर्शन अति विशुद्ध हो जाता है और उसके द्वारा सर्व – उर्ध्व – अधो तिर्यक्लोक को देख सकते हैं।सुसमाधियुक्त प्रशस्त लेश्यावाले, वितर्करहित भिक्षु और सर्व बंधन से मुक्त आत्मा मन के पर्याय को जानते हैं। (यानि कि मनःपर्यवज्ञानी होते हैं) सूत्र – २३, २४ | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 24 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुसमाहडलेसस्स, अवितक्कस्स भिक्खुणो ।
सव्वओ विप्पमुक्कस्स, आया जाणति पज्जवे ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २३ | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 25 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जदा से नाणावरणं, सव्वं होति खयं गयं ।
तदा लोगमलोगं च, जिनो जाणति केवली ॥ Translated Sutra: जब जीव के समस्त ज्ञानावरण कर्म क्षय हो तब वो केवली जिन समस्त लोक और अलोक को जानते हैं। | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 26 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जदा से दंसणावरणं, सव्वं होइ खयं गयं ।
तदा लोगमलोगं च, जिनो पासइ केवली ॥ Translated Sutra: जब जीव के समस्त दर्शनावरण कर्म का क्षय हो तब वो केवली जिन समस्त लोकालोक को देखते हैं। | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 27 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] पडिमाए विसुद्धाए, मोहणिज्जे खयं गते ।
असेसं लोगमलोगं च, पासंति सुसमाहिया ॥ Translated Sutra: प्रतिमा यानि प्रतिज्ञा के विशुद्ध रूप से आराधना करनेवाले और मोहनीय कर्म का क्षय होने से सुसमाहित आत्मा पूरे लोकालोक को देखता है। | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 28 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जहा मत्थए सूईए, हताए हम्मती तले ।
एवं कम्माणि हम्मंति, मोहणिज्जे खयं गते ॥ Translated Sutra: जिस प्रकार ताल वृक्ष पर सूई लगाने से समग्र तालवृक्ष नष्ट होता है, जिस प्रकार सेनापति की मौत के साथ पूरी सेना नष्ट होती है, जिस प्रकार धुँआ रहित अग्नि ईंधण के अभाव से क्षय होता है, उसी प्रकार मोहनीय कर्म का (सर्वथा) क्षय होने से बाकी सर्व कर्म का क्षय या विनाश होता है। सूत्र – २८–३० | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 29 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सेनावतिम्मि निहते, जधा सेना पणस्सती ।
एवं कम्मा पणस्संति, मोहणिज्जे खयं गते ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८ | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 30 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] धूमहीने जधा अग्गी, खीयती से निरिंधणे ।
एवं कम्माणि खीयंति, मोहणिज्जे खयं गते ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र २८ | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 31 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] सुक्कमूले जधा रुक्खे, सिच्चमाणे न रोहति ॥
एवं कम्मा न रोहंति, मोहणिज्जे खयं गते ॥ Translated Sutra: जिस प्रकार सूखे मूलवाला वृक्ष जल सींचन के बाद भी पुनः अंकुरित नहीं होता, उसी प्रकार मोहनीय कर्म का सर्वथा क्षय होने से बाकी कर्म उत्पन्न नहीं होते। जिस प्रकार बीज जल गया हो तो पुनः अंकुर उत्पन्न नहीं होता उसी प्रकार कर्म बीज के जल जाने के बाद भव समान अंकुर उत्पन्न नहीं होते। सूत्र – ३१, ३२ | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 32 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] जधा दड्ढाण बीयाण, न जायंति पुणंकुरा ।
कम्मबीएसु दड्ढेसु, न जायंति भवंकुरा ॥ Translated Sutra: देखो सूत्र ३१ | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 33 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] चिच्चा ओरालियं बोंदिं, नामगोत्तं च केवली ।
आउयं वेयणिज्जं च, च्छित्ता भवति नीरओ ॥ Translated Sutra: औदारिक शरीर का त्याग करके, नाम, गोत्र, आयु और वेदनीय कर्म का छेदन करके केवली भगवंत कर्मरज से सर्वथा रहित हो जाते हैं। | |||||||||
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दसा-५ चित्तसमाधि स्थान |
Hindi | 34 | Gatha | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [गाथा] एवं अभिसमागम्म, चित्तमादाय आउसो!
सेणिसोधिमुवागम्म, आतसोधिमुवेइइ ॥ Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! इस प्रकार (समाधि को) जानकर रागद्वेष रहित चित्त धारण करके शुद्ध श्रेणी प्राप्त करके आत्माशुद्धि को प्राप्त करते हैं। यानि क्षपक श्रेणी प्राप्त करके मोक्ष में जाते हैं। उस प्रकार मैं कहता हूँ। | |||||||||
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दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 35 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: [सूत्र] सुयं मे आउसं! तेणं भगवया एवमक्खातं–इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ।
कयरा खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ?
इमाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं एक्कारस उवासगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तं जहा–
अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी नाहियपण्णे नाहियदिठ्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी, नसंति-परलोगवादी, नत्थि इहलोए नत्थि परलोए नत्थि माता नत्थि पिता नत्थि अरहंता नत्थि चक्कवट्टी नत्थि बलदेवा नत्थि वासुदेवा नत्थि सुक्कड-दुक्कडाणं फलवित्तिविसेसो, नो सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफला भवंति, नो दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति, अफले कल्लाणपावए, Translated Sutra: हे आयुष्मान् ! वो निर्वाण प्राप्त भगवंत के स्वमुख से मैंने ऐसा सूना है। यह (जिन प्रवचन में) स्थविर भगवंत ने निश्चय से ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है। स्थविर भगवंत ने कौन – सी ग्यारह उपासक प्रतिमा बताई है? स्थविर भगवंत ने जो ११ उपासक प्रतिमा बताई है, वो इस प्रकार है – (दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषध, दिन में ब्रह्मचर्य, | |||||||||
Dashashrutskandha | दशाश्रुतस्कंध सूत्र | Ardha-Magadhi |
दसा-६ उपाशक प्रतिमा |
Hindi | 36 | Sutra | Chheda-04 | View Detail | |
Mool Sutra: Translated Sutra: क्रियावादी कौन है ? वो क्रियावादी इस प्रकार का है जो आस्तिकवादी है, आस्तिक बुद्धि है, आस्तिक दृष्टि है। सम्यक्वादी और नित्य यानि मोक्षवादी है, परलोकवादी है। वो मानते हैं कि यह लोक, परलोक है, माता – पिता है, अरिहंत चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव है, सुकृत – दुष्कृत कर्म का फल है, सदा चरित कर्म शुभ फल और असदाचरित कर्म |